Book Title: Khartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
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और अम्बड़ उन्हें उसी अवस्था में मिला। वह बड़ा लज्जित हुआ। अपने वैर को शान्त करने के लिए उसने महाराज को विषमिश्रित चीनी का जल दिया। आचार्य के निर्देश से आभू भणशाली ने तत्काल अपने शीघ्रगामी ऊँटों को भेजकर पालनपुर से निर्विर्ष मुद्रिका/विषापहारी रस कुंपक मंगाकर विष प्रभाव दूर किया। अंबड़ के इस दुष्कृत्य की सर्वत्र निन्दा हुई। वह मरकर व्यन्तर हुआ। जिनदत्तसूरि ने अम्बड़ के व्यन्तरोपद्रव दूर किये।
इसी प्रकार उच्चनगर में आचार्य श्री के प्रवेश उत्सव में एक सात वर्षे का बालक अधिक भीड़ होने के कारण व्याकुल होकर मर गया/मृत प्रायः बेहोश हो गया। म्लेच्छों ने जैनों पर दोषारोप किया। आचार्य ने जैन धर्म की गरिमा को ध्यान में रखकर उस मृत बालक को पुनः जीवित कर दिया/बेहोश बालक को होश में ला दिया। म्लेच्छों ने प्रभावित होकर आचार्य से मांस भक्षण त्याग का
व्रत ग्रहण किया। . .... इस प्रसंग में जो म्लेच्छों का उल्लेख है, अन्य पट्टावलियों में मुगलों/मुगल पुत्रों का उल्लेख है किन्तु ये उल्लेख अप्रमाणित है क्योंकि इस प्रदेश में उस समय तक मुगलों का आगमन ही नहीं हुआ था।
एकदा आचार्य जिनदत्तसूरि नारनोल गये। वहाँ श्रीमाल श्रावक के दामाद का विवाह के समय निधन हो गया। लोगों ने वधू को . उसके साथ चिता प्रवेश के लिए आग्रह किया। किन्तु वह प्रज्वलित चिता की भीषण ज्वाला से भयभीत होकर आचार्य के चरणों में आ गिरी। आचार्य ने उसके पिता को समझा कर उसे सन्मार्गारूढ़ किया। पश्चात् उसे दीक्षा दे दी। नव दीक्षिता द्वारा यह पूछे जाने पर कि मेरी कितनी शिष्यायें होंगी, आचार्य ने कहा कि जितनी तुम्हारे शिर में जूं हैं उतनी ही तुम्हारी शिष्यायें होंगी। उसके सिर में ७०० जूं निकली अतः आगे चलकर विक्रमपुर में उसकी
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