Book Title: Khartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
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आने के लिए सूचना दिलवा दी गई ताकि आचार्य अभयदेव संबंधित श्रावक - समाज से क्षमत-क्षमापन कर सके ।
प्राप्त सूचना के अनुसार त्रयोदशी के दिन श्रावक समाज एकत्रित हुआ। उसी रात आचार्य अभयदेव को शासन देवी ने टीका- रचना का कार्य प्रारम्भ करने की प्रेरणा दी । ' वृद्धाचार्य प्रबन्धावली के अनुसार देवी से सम्प्रेरित होकर अभयदेव श्रावक संघ के साथ सेढ़िका नदी गये । वहीँ पर उन्होंने जयतिहुअण स्तोत्र की रचना की और पार्श्वनाथ की प्रतिमा आविर्भूत की। प्रतिमा के स्नात्र जल से अभयदेव का कुष्ठ रोग समाप्त हो गया और शरीर स्वर्ण वर्णीय हो गया । १
आचार्य अभयदेवसूरि को क्या रोग हुआ था, इस सम्बन्ध में भी भिन्न-भिन्न प्रकार के संकेत मिलते हैं । प्रभावक चरितकार के अनुसार इन्हें रक्त विकार रोग हुआ था । उपदेश सप्ततिका के अनुसार कुष्ठ रोग, तीर्थकल्प के अनुसार अतिसार रोग हुआ था । प्रबन्धकारों के उल्लेखों में भले ही अन्तर हो, किन्तु इतना तो निश्चित है कि आचार्य अभयदेवसूरि किसी रोग से पीड़ित थे । आचार्य अभयदेव सूरि साहित्य साधना से पूर्व रोग पीड़ित हुए या उसके मध्य समय में या उसके बाद में इस वारे में प्रबन्धकारों ने भिन्न-भिन्न उल्लेख किये हैं। सुमति गणि, उपाध्याय जिनपाल और जिनप्रभसूरि द्वारा
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१ तेरसी अरते य भणिआ पहुणो सासणदेवयाय भयवं ।
जग्गह सुअह वा ? तओ मन्दसरेणं वृत्तं पहुणा - कओ मे निद्दा | देवीए भणिअं एआओ नवसुत्तकुक्कुडीओ उम्मोहे | -- विविध तीर्थंकल्प, पत्रांक- १०४
२ तप्पमावाओ अभय देवस्स कुछ गयं । सुवण्णवन्नो सरीरो जाओ ।
B प्रभावक चरित, पृष्ठ १६०
४ तीर्थकल्प, पृष्ठ १०४
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- वृद्धाचार्य प्रबन्धावली, पत्र-३