Book Title: Khartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
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अल्प समय में ही वे महापंडित हो गए। उन्हें आचार्य-पद पर अभिषिक्त किया गया। वे क्रमशः जिनेश्वरसूरि एवं बुद्धिसागरसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए। __ प्रभावक-चरित्र के अनुसार वर्द्धमानसूरि ने जिनेश्वर तथा बुद्धिसागर को चैत्यवासियों के मिथ्याचार का प्रतिकार करने के लिए प्रेरित किया और आदेश दिया कि वे लोग अणहिलपुरपत्तन जाएँ
और वहाँ सुविहित साधुओं के लिए जो विघ्न-बाधाएँ हों, उन्हें अपनी शक्ति एवं बुद्धि से दूर करे। अतः इन दोनों ने गुर्जर-देश की ओर विहार कर दिया और धीरे-धीरे अणहिलपत्तन में पहुँच गये।' जबकि युगप्रधानाचार्य-गुर्वावली के अनुसार पंडित जिनेश्वर ने वर्द्धमानसूरि से निवेदन किया, भगवन् ! यदि कहीं देश-विदेश में जाकर जिनधर्म का प्रचार न किया जाय तो मेरे जिनमत के ज्ञान का फल क्या है ? सुना है कि गुर्जर देश बहुत विशाल है और वहाँ चैत्यवासी आचार्य अधिक संख्या में रहते हैं। अतः हमें वहां चलना चाहिए। यह सुनकर वर्द्धमानसूरि ने कहा, ठीक है, किन्तु शकुन निमित्तादिक देखना परम आवश्यक है । इससे सब कार्य शुभ होते हैं। पश्चात् वर्द्धमानसूरि सत्रह शिष्यों को साथ लेकर भामह नामक बड़े व्यापारी के संघ के साथ चले। क्रमशः विहार करते वे पाली पहुंचे। एक समय जब वर्द्धमानसूरि पंडित जिनेश्वर गणि के साथ बहिर्भूमिका ( शौचार्थ ) जा रहे थे, तब उन्हें सोमध्वज नामक जटाधर योगी मिला और उसके साथ सुन्दर वार्तालाप हुआ। वार्तालाप के प्रसंग में सोमध्वज ने प्रश्न पूछा
का दौर्गत्यविनाशिनी हरिविश्च्युन प्रवाची च को, वर्णः को व्यपीयनयते च पथिकैख्यदोण श्रमः । चन्द्रः पृच्छति मन्दिरेषु मरुतां शोभाविधायी चको, दक्षिप्येन नयेन विश्व विदित को भूरि विभाजते ।। प्रभावक चरित्र (४३-४५)
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