Book Title: Khartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
View full book text
________________
हो, किन्तु शिक्षा के दृष्टिकोण से वे काफी बढ़े-चढ़े थे। चैत्यवासियों में अनेक साहित्यकार एवं राजगुरु हुए । तन्त्र की साधना में भी वे पहुँचे हुए थे। चैत्यवासी आचार्यों में आचार्य शीलगुणसूरि, देवचन्द्रसूरि, द्रोणाचार्य, गोविन्दाचार्य, सूराचार्य आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि उस युग में चैत्यवासी विस्तृत रूप में था एवं उसका प्रभाव भी था, किन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं कि उस शिथिलाचारी-युग में आदर्श श्रमण-धर्म का पालन करने वाले श्रमण मुनियों का सर्वथा अभाव था। इन्हीं इने-गिने श्रमणों में कुछ श्रमण ऐसे हुए जिन्होंने चैत्यवासियों के विरुद्ध आन्दोलन चलाया
और धर्म-मार्ग में आई हुई विकृतियों को दूर करने की निर्मल भावना से क्रांति मचाई। उसी क्रान्ति की परिणति थी, खरतरगच्छ की उत्पत्ति।
खरतरगच्छ का उद्भव
चैत्यवासी परम्परा ने जैन-संस्कृति की उज्ज्वलता को निर्विवादतः क्षति पहुँचायी। विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी उनके उत्कर्ष की वेला थी। जो सीढ़ियां व्यक्ति को ऊपर चढ़ाती है, वे ही नीचे भी उतारती हैं। क्रांति के स्वर उभरे। साधु-समाज एवं श्रावक-समाज ने धर्मसंघ में शिथिलाचार के भ्रूण को समाप्त करने की प्रतिज्ञा ली। __ इस ओर सर्वप्रथम कदम उठाने का साहस किया ग्यारहवीं शदी के उत्तरार्द्ध में आचार्य जिनेश्वरसूरि एवं आचार्य बुद्धिसागरसूरि बन्धु-युगल ने। दोनों आचार्य चैत्यवासियों को प्रबुद्ध करने की भावना से अणहिलपुर पत्तन पहुँचे। चैत्यवासियों का सर्वाधिकार एवं प्रभाव होने के कारण उन्हें उस नगर में रहने के लिए किसी ने भी स्थान नहीं दिया। इसका कारण वहाँ के राजमान्य चैत्यवासियों ने सुविहित