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प्रस्तावनाका हिन्दीसार
प्रति परिचय
आराधना कथा प्रबन्ध या कथाकोशके इस संस्करणका सम्पादन केवल एक ही प्रतिके आधारसे किया गया है। दूसरी प्रति कहींसे भी प्राप्त नहीं हो सकी। उपलब्ध प्रति स्व. पं. नाथूराम प्रेमीकी थी। इसमें ११८ पेज हैं। यह संवत १६३८ में लिखी गयी थी।
आराधना कथा प्रबन्ध या कथाकोश
ग्रन्थकारने अपनी इस कृतिको आराधना कथा प्रबन्ध नाम दिया है। क्योंकि इसमें संगृहीत कथाएँ आराधनाके विषयोंसे सम्बद्ध हैं । इसे अन्तिम सन्धिमें कथाकोश भी कहा है। आराधनामें दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप इन चार आराधनाओंका वर्णन है । भगवती आराधनाको मूलाराधना भी कहते हैं। प्रत्येक कथाके प्रारम्भमें ग्रन्थकारने संस्कृत गद्यके साथ पद्य या भगवती आराधनाकी गाथाका भाग दिया है। इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि शिवार्य या शिवकोटिकी आराधनामें दिये गये साक्षात् या संकेतित उद्धरणोंको चित्रित करने के लिए इस प्रबन्धमें कथाएँ दी गयी हैं।
और यह सम्भव है कि उनका मूल कुछ प्राचीन टीका हो जो सम्भवतया प्राकृतमें रही हो । प्रारम्भ की ९० कथाएँ प्रायः भग. आरा, के ग्राथाक्रमानुसार हैं । कथाकोशके अन्तःपरीक्षणसे यह स्पष्ट है इन कथाओं तक कोशका प्रथम भाग समाप्त होता है। इसका नाम आराधना कथा प्रबन्ध है। इसके रचयिता प्रभाचन्द्र पण्डित हैं जो जयसिंहदेवके राज्यमें धाराके निवासी थे। दूसरे भागके प्रारम्भमें तो मंगल तक नहीं है। किन्तु इसके
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