Book Title: Karmprakrutau Udirnakaranam
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ कर्मप्रकृतिः ॥ ८ ॥ Rak ( उ० ) -- सकलाः पश्चेन्द्रियास्तिर्यश्वो नराश्च शरीरपर्याप्त्या पर्याप्ता देहस्थाः - शरीरनामोदये वर्तमानाः षण्णां संस्थानानां षण्णां च संहननानामुदीरका भवन्ति । इह येषामुदयस्तेषामेवोदीरणा प्रवर्तत इति यदा यत्संस्थानं संहननं वोदयप्राप्तं भवति तत्तदोदीर्यते नान्यदन्यदेति द्रष्टव्यम् । तथोत्तमसंहन निनो वज्रर्षभनाराचसंहननिनः श्रेणिः - क्षपक श्रेणिर्भवति, न शेषसंहननिनः, तेन क्षपकश्रेण्यारूढा वज्रर्षभनाराचसंहननमेवोदीरयन्ति, न शेषसंहननानि, उदयाभावादित्यवसेयम् ॥ १० ॥ चउरंसस्स तणुत्था उत्तरतणु सगल भोगभूमिगया । देवा इयरे हुंडा तसतिरियनरा य सेवा ॥ ११॥ ( ० ) - 'चउरंसस्स' - समचउरससंठाणस्स 'तणुत्था'- सरीरत्था 'उत्तरतणु सगल'त्ति- उत्तरसरीरा, वेउब्वियाहारगा उत्तर सरीरे वट्टमाणा पंचिंदिया, भोगभूभिगया - भोग भूमिगाय तिरिय मणुया, देवाय एए सब्वे उदीरगा । 'इतरे हुंडा,' इतरेत्ति- भणित सेसा । के ते १ एगिंदिता विगलिंदिता णेरतिगा सगलतिरियणरेसु वि अप्पज्जत्ता एते सव्वे सरीरत्था हुंडठाणस्स उदीरगा । 'तसतिरियनरा य सेवा,' इयरेत्ति अहिगारो, [पति ] तसतिरिया (य नरा) यत्ति तिरिक्खेसु जे तसकाइया विगलिंदिता, सगलतिरियणरेसु वि जे अपज्जत्तगा, एते सव्वे सेवहसंघयणस्स उदीरगा ॥ ११॥ ( मलय ० ) – 'चउरंसस्स' त्ति चतुरस्रस्यैव, समचतुरस्त्र संस्थानस्यैव, तनुस्थाः - शरीरस्था उत्तरतनवः - आहारकोत्तर वैक्रियशरीरिणो मनुष्यास्तिर्यञ्चश्व, सकलाः - सकलेन्द्रियाः, पञ्चेन्द्रिया इत्यर्थः । तथा भोगभूमिगता देवाश्चोदीरका भवन्ति । 'इयरे हुंड' चि-इतरे उक्तशेषा एकेन्द्रिय विकलेन्द्रियनैरयिका अपर्याप्तकाश्च पञ्चेन्द्रियतिर्यग्मनुष्याः एते सर्वेऽपि शरीरस्था हुंडसंस्थानस्योदीरका भवन्ति । प्रकृत्युदीरणा ॥ ८ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 212