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(८) __ लेकिन इस भ्रान्ति का निरसन विभिन्न उदाहरणों और सैद्धान्तिक रूप से करके यह स्थापित किया गया है कि कर्मवाद पुरुषार्थयुक्त आशावाद है। कर्मवाद को भलीभांति जानने वाला कभी निराशावादी नहीं हो सकता। वह पुरुषार्थ को प्रधानता देकर अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के प्रयास करता है। कर्मवाद की रेल भाग्यवाद की वैशाखी पर नहीं परन्तु पुरुषार्थ की पटरी पर ही चलती है। उद्वर्तन, संक्रमण आदि के सिद्धान्त मनुष्य को पुरुषार्थ की प्रेरणा देते हैं। - इसी प्रकार कर्म-फल विषयक धारणाओं को लेकर यह भी स्पष्ट किया गया है कि कर्मों का फल सामूहिक भी होता है और व्यक्तिगत भी। कर्मवाद न केवल व्यक्तिगत है, न केवल समूहगत, किन्तु उसका नियम सर्वत्र लागू होता. है।
२-पाँचवें खण्ड "कर्मफल के विविध आयाम" में कर्मकर्ता, फलभोक्ता तथा कर्मफल-प्रदाता कौन है ? इस सम्बन्ध में विशद विवेचन किया गया है।
जैन कर्मविज्ञान का निश्चित सिद्धान्त है कि ईश्वर या भगवान नाम की कोई विशिष्ट शक्ति कर्मफल-प्रदाता नहीं है। प्राणी के पुरुषार्थ संयोग से कर्मों में ही ऐसी शक्ति उत्पन्न हो जाती है कि वे स्वयं ही प्राणी को उसके किये कर्मों का फल भुगतवा देते हैं। कर्म ईश्वर का प्रतिनिधि भी नहीं है, वह प्राणी के पुरुषार्थ का
और उसकी भावनाओं का प्रतिनिधित्व अवश्य करता है। . जैसे शराब अथवा किसी मादक द्रव्य का सेवन कोई पुरुष कर लेता है तो मद्य उसे स्वयं ही मदमत्त बना देती है। इसी प्रकार कृत कर्म स्वयं ही जीव को फल प्रदान कर देते हैं, इसके लिए ईश्वर आदि किसी अन्य माध्यम (Intermediary) की आवश्यकता ही नहीं है।
कुछ विचारकों का कर्मवाद पर ऐसा आरोप है कि कर्मों का फल तत्काल मिलना चाहिए। ऐसे तत्काल-फलवादियों के भ्रम निवारण हेतु कर्मों के नियमों का स्पष्टीकरण करके उनके इस आक्षेप का निरसन भी किया गया है। ___ इस विषय में एक सीधा सा व्यावहारिक दृष्टान्त है-कोई बालक मोन्टेसरी की शिक्षा प्रारम्भ करते ही डाक्टर, वकील, इन्जीनियर नहीं बन जाता, उसे कम से कम २०-२५ वर्ष लगते हैं। बीज को अंकुरित होकर वृक्ष बनने व फलदायी बनने में भी समय तो लगता ही है। इसी प्रकार कर्म को परिपक्व होकर फल प्रदान करने में भी समय अपेक्षित है।
यह समय कितना होगा ?-यह कर्मकर्ता की मानसिक स्थिति पर निर्भर है। यदि तीव्र रोष, द्वेष, लोभ आदि की भावना से उसने कर्म किया है तो उसका फल इस जन्म में भी मिल सकता है और आगामी जन्मों में भी प्राप्त हो सकता है।
वास्तव में कर्म की त्रैकालिक व्यवस्था है। पिछले जन्म में किये हुए कर्मों का फल इस जन्म में मिल सकता है और इस जन्म में किये हुए कर्मों का फल आगामी जन्मों में भी प्राप्त हो सकता है।
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