Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 05
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 9
________________ आवे रूमझुम"। हल्की सी लगा भी दी तो कौन सा बुरा कर दिया। यूं ही पढ़ेंगे। पत्नी ने कहा-नहीं यह नहीं चलेगा। बच्चे मेरे हैं, दूसरे को मारने का अधिकार नहीं है। पति-अरे हां ! बच्चे तो तेरे ही रहेंगे। यू तो पढ़ाई के लिए मारना भी पड़ता है । तो विद्वान बनेंगे। पत्नी-नहीं यह नहीं चलेगा। तो फिर पाप ही घर में पढ़ायो। बच्चे कल से स्कूल नहीं जाएंगे। पति-अरे ! राम-राम ! मैं ही घर में पढ़ाने बैठ जाउंगा तो पैसा कमाने कौन जाएगा ? फिर रोटी कहां से खाएंगे ? इसलिए स्कूल जाने दे । पढ़ने दे। नहीं तो मूर्ख रह जाएंगे। फिर भविष्य में इन्हें अनपढ़ देखकर कोई कन्या नहीं देगा। शादी नहीं होगी। हमारे लिए जिन्दगी भर दुःख रहेगा। आखिर पत्नी नहीं मानी। बच्चों को स्कूल नहीं जाने दिया। पढ़ने नहीं दिया । देखते ही देखते १५-२० वर्ष बीत गए। बच्चे अनपढ़ गंवार रह गए। अब शादी की बात आई । कोई कन्या नहीं दे रहा था। पति ने पत्नी से कहा ले-देख, । मूर्ख रखे हैं अब क्या हालत होगी ? - पत्नी-तुम जानों तुम्हारे बच्चे जानें। मैं क्या करूं ? दोष तुम्हारा है तुमने क्यों नहीं पढाया ? अब सिर पर हाथ रखकर रोती रह! बच्चों को मर्ख रखे हैं अब क्या हाल पति-अरे ! तू मेरे ऊपर दोषारोपण करती है ? मैनें तो पढ़ाने के लिए बहुत कहा था परन्तु तू जिद्द पर रही, तू ने पढ़ने नहीं दिया । पुस्तकें कॉपियां सब जला दी। और अब मुझे सुना रही है............पगली कहीं की। पत्नी-पागल तुम................और पागल तुम्हारा बाप। मुझे पगली कहने वाले तुम कौन ? तुम जानों तुम्हारा नसीब जाने । मैं क्या करूं ? मेरा क्या कसूर है । गाली गलौच शुरू हो गई । पत्नी बड़ी विचित्र झगडालू थी उसने गालीयों की बरसात बरसाई। पति को गुस्सा आया। यह सब कुछ बर्दाश्त नहीं कर सका । पति ने पास में पड़ा हुआ पत्थर उठाया और पत्नि के सिर पर मारा, सिर फूट गया। खून की धारा बहने लगी। पत्नी मर गई । दूसरे जन्म में (पत्नी का जीव) वह गुणमंजरी नामक कन्या के रूप में किसी के घर में जन्मी। गत जन्म की ज्ञान तथा कर्म की गति न्यारी २५१

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