Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 05
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 26
________________ बालक को गद्दी पर शीघ्रता से दौड़कर बालक को न उठाने लिए अर्पण कर दो । हेमचन्द्राचार्य - गुजरात के धंधुका गाँव के मोढ ज्ञाति के वणिक पिता चाचींग और माता पाहिनी देवी के पुत्र चांगदेव बचपन से ही प्रगल्भ प्रतिभा वाले थे । एक बार की बात है कि माता पुत्र को लेकर जिन मन्दिर दर्शन करने गई थी । माता मन्दिर में दर्शन कर रही थी कि इतने में बालक पास में उपाश्रय में जाकर आचार्यश्री की गद्दी पर बैठ गया, मानो प्रवचन देने की मुद्रा में अभिनय करने लगा । इतने में मन्दिर से दर्शन करके प्राचार्य महाराज श्री देवचन्द्रसूरीश्वरजी उपाश्रय में पधारें । दूर से ही एक छोटे बालक को अपनी गद्दी पर बैठे हुए देखकर आचार्यश्री को बड़े प्राश्चर्य के साथ सन्तोष भी हुआ । अपनी गद्दी के भावी वारसदार पट्टधर का अनुमान करके मन में सन्तोष व्यक्त किया । इसी बीच माता पाहिनी देवी मन्दिर से दर्शन करके बाहर निकली हुई बालक को ढूंढती हुइ उपाश्रय में श्राई । पूज्य श्राचार्यश्री को स्तब्ध खड़े हुए एवं बैठा हुआ देखकर माताजी भी आश्चर्य चकित रह गई । बालक को लेने गई इतने में आचार्य महाराज ने माताजी से की विनती की और कहा कि हे देवी! इस बालक को शासन के मैं तुम्हारे पास शासन के लिए इस बालक की याचना करता हूं । यदि यह बालक घर में रहेगा तो पढ़ लिखकर व्यापार करके तुम्हारे एक परिवार का भरण-पोषण करेगा परन्तु यह बालक शासन को अर्पण कर दो तो एक महान त्यागी विद्वान बनकर हजारों लाखों का कल्याण करेगा । माताजी ने निर्मोह भाव से बालक को गुरु चरणों में अर्पण किया। बाल्यवय में ही बालक को दीक्षा देकर मुनि सोमचन्द्रविजय नाम रखा । एक शिल्पी जैसे पत्थर को घड़ते हुए प्रतिमा का आकार देता है जो जगत वंदनीय पूजनीय बनती है, वैसे ही श्राचार्यश्री ने न्याय, व्याकरण, साहित्य आदि शास्त्रों का अभ्यास कराके मुनि सोमचन्द्रविजय को ठोस विद्वान बनाए । प्रगल्भ बुद्धि प्रतीभा सम्पन्न एवं प्राश्चर्यकारी तर्क शक्ति से मुनिवर ने हजारों लाखों श्लोक कंठस्थ करके भारी ज्ञान संपादन किया । सरस्वती देवी प्रसन्न हुई और मानो उनकी जीभ पर वास करने लगी प्रागे बढ़कर हजारों श्लोकों की नयी रचना करके न्याय व्याकरण काव्य आदि के शास्त्रों की रचना करके हेमचन्द्राचार्य के नाम से जग प्रसिद्ध बने । कहा जाता है कि प्राचार्यश्री ने करीब ३|| करोड़ श्लोकों की नयी रचना की थी। उनके रचित "सिद्ध हेम शब्दानुशासन" जैसे महाकाय व्याकरण ग्रन्थ का गुजरात के राजा सिद्धराज जयसिंह ने हाथी की अंबाडी पर जुलुस निकालकर सम्मान किया था । उसी तरह कुमारपाल भूपाल ने उनके रचित योगशास्त्र ग्रन्थ को शोभा यात्रा निकाली थी । स्वबुद्धि से स्फुरित ज्ञान की नयी स्फुरणाओं को प्राचार्यश्री सात सौ लेखकों के पास लिखवाते थे । राजा कुमारपाल ने लेखकों और ताड़पत्रों की व्यवस्था की थी । परन्तु कहा जाता है कि ताड़पत्र भोर भोजपत्र कम पड़ते थे लेकिन श्राचार्यश्री का ज्ञान समुद्र की कर्म की गति न्यारी २६८

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