Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 05
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 24
________________ ऐसा निर्णयकर आचार्यश्री ने आगे के ४ पूर्वो का अध्यापन नहीं कराया। यद्यपि स्थुलिभद्रजी ने क्षमा याचना की, पश्चात्ताप व्यक्त किया श्री संघ ने भी काफी विनती की फिर भी प्राचार्य जी ने अर्थ से नहीं पढ़ाया। इस तरह मिले हुए ज्ञान का अभिमान करने से कितना नुकसान होता है ? यह इस प्रसंग से समझना चाहिये । अतः श्रुत मद यह दोष है । ज्ञानावरणीय कर्म बंधाने में कारण है। कर्माधीन बुद्धि और परिश्रमाधीन विद्या .. कर्म शास्त्र यह कहता है कि "बुद्धिः कर्माधीना विद्या च परिश्रमाधीना" मर्थात् बुद्धि कर्म के आधीन है और विद्या परिश्रम के प्राधीन मिलती है । संसार अनंत जीवों से भरा पड़ा है यद्यपि जीव मात्र ज्ञानवान है, परन्तु सभी का ज्ञान एक समान -सरीखा नहीं है अर्थात् ज्ञान की मात्रा कम-ज्यादा है। इसका एक ही कारण है कि सभी जीवों के द्वारा जन्म-जन्मान्तर में उपार्जित ज्ञानावरणीय कर्म कम-ज्यादा है। जिन जीवों का ज्ञानावरणीय कर्म प्रमाण से ज्यादा है उन्हें बुद्धि कम मिलती है और जिन जीवों का ज्ञानावरणीय कर्म का प्रमाण कम है उन्हें बुद्धि अधिक मिलती है । अतः बुद्धि का प्रमाण ज्ञानावरणीय कर्म के प्रमाण पर आधारित है । इसलिए बुद्धि को कर्माधीन कहा है। अतः स्वोपार्जित कर्मानुसार जीवों को अल्प अधिक बुद्धि मिलती है। समस्त संसार इस सिद्धांत का प्रत्यक्ष प्रमाण है । एक मां के चार पुत्रों में भी बुद्धि एक सरीखी नहीं होती है, तथा एक मां के जुड़वा सन्तानों में भी एक सरीखी बुद्धि नहीं होती है । "मुंडे-मुडे मतिभिन्नाः" यह कहावत जग प्रसिद्ध है। अर्थात् सभी लोगों की बुद्धियां भिन्न-भिन्न प्रकार की होती हैं । एक ही कक्षा में पचास से सो विद्यार्थी पढ़ते हैं। पढ़ाने वाले शिक्षक अध्याय सभी को समान रूप से समझाते हैं फिर भी किसी की समझ में आता है, किसीकी समझ में नहीं आता है, कोई जल्दी समझता है कोई बिल्कुल समझ नहीं सकता है, कोई एक बार में समझ जाता है, कोई अनेक बार समझाने पर भी समझ नहीं सकता है, यह बुद्धि की न्यूनाधिकता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। जो कि कर्म के प्राधीन है । प्रत्येक जीव अपने ज्ञानावरणीय कर्मानुसार बुद्धि प्राप्त करता है, परन्तु परिश्रम के आधार पर ज्ञान सम्पादन करता है, बुद्धि कम होने पर भी यदि अधिक परिश्रम करेगा तो भी ज्ञान प्राप्त कर लेगा, अन्तर इतना ही रहेगा की तेज बुद्धि वाला जिस ज्ञान को १० मिनट में समझ लेगा उसी ज्ञान को अल्प बुद्धि वाला शायद परिश्रम के आधार पर १० घंटे या १० दिन में समझ पायेगा। इसलिए विद्या परिश्रम के आधार पर प्राप्त होती है। अतः अल्प बुद्धि वाले को भी परिश्रम के आधार पर ज्ञान प्राप्त होता है इसलिए बुद्धि कर्म के आधिन और ज्ञान परिश्रम के प्राधीन है। यह कर्मसत्ता का सिद्धांत सही लगता है, बुद्धि को ही ज्ञान कहते २६६ कर्म की गति न्यारी

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