Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 05
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 69
________________ वर्तमान चौवीशी के २४ भगवानों में १९वें श्री मल्लीनाथ भगवान जो जन्म से मल्लीकुमारी के रूप में स्त्री देहधारी ही थे । कर्म संयोगवश देह स्त्री का मिला। परन्तु संसार का त्याग करके दीक्षा लेकर कर्मक्षय की महान साधना करके इसी राजमार्ग की प्रक्रिया से चारों घाती कर्मों का क्षय करके केवलज्ञान प्राप्त करके तीर्थंकर बने । श्री मल्लीनाथ भगवान का चरित्र शास्त्रों में सर्वत्र बिना किसी मतभेद के एक सरीखा पाता है । इस तरह शास्त्रों में स्त्री-देहधारी केवलज्ञान पाकर मोक्ष में जाने वाले एक-दो ही नहीं, सैकड़ों दृष्टान्त व नाम आते है । चौबीस तीर्थकर भगवन्तों के अपने-अपने काल में उनके द्वारा स्थापित साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ में साध्वियों की संख्या साधुनों की अपेक्षा ज्यादा ही रही है । तथा सभी तीर्थंकर भगवन्तों के परिवार में से कई साध्वीयां केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष में गई हैं। यह संख्या भी काफी बड़ी है। उपरोक्त शास्त्र प्रमाण देखने से यह सिद्ध होता है कि अनेक स्त्रियों ने तीर्थंकरों के शासन काल में चारित्र धर्म अंगीकार करके दीक्षा लेकर चारों घनघाती कर्मो का क्षय करके केवलज्ञान प्राप्त करके अन्त में सर्वथा कर्म रहित होकर मोक्ष प्राप्त करके सिद्ध बने । संक्षेप में उपरोक्त वर्णन स्त्री के केवलज्ञान पाने के विषय में किया । विशेष जानने की जिज्ञासावालों को रत्नाकरावतारिका, स्याद्वादमंजरी, शास्त्रवार्तासमुच्चय, सन्मतितर्क प्रकरण तथा कर्मग्रन्थ आदि कई ग्रन्थ उपलब्ध हैं, उनमें से पढ़कर जिज्ञासा संतुष्ट करनी चाहिए । अतः स्त्री का केवलज्ञान पाना और मोक्ष में जाना, स्त्री मुक्ति प्रादि तथा केवली भुक्ति आदि के विषय में आसानी से समझ में प्रा जाएंगे । सूर्यप्रकाशवत् एक बात तो स्पष्ट ही है कि केवलज्ञान आत्मा का विषय (गुण) है, शरीर का नहीं। शरीर को ज्ञान नहीं होता आत्मा को ही होता है । अतः केवलज्ञान को स्त्री शरीर या पुरुष शरीर से कोई सम्बन्ध नहीं है । आत्मा से संबंध है । और स्त्री हो या पुरुष सभी का आत्म द्रव्य स्वरूप एक जैसा ही है तथा गुणस्थानक की क्षपकश्रेणि में चढ़नेवाली सभी आत्माएं कर्मक्षय करती हुई तथाप्रकार के कर्मों का क्षय करती हुई एक सादृश्य अवस्था को प्राप्त कर लेती है और केवलज्ञान कर्मक्षय जन्य ही है, अतः क्षायिक अवस्था में ही प्राप्त होता है । केवलज्ञान की प्राप्ति के प्रसंग ___ (१).भरत चक्रवर्ती को केवलज्ञान-भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती को प्रारीसा भुवन में अनित्य भावना का चिन्तन करते हाथ की मुद्रा (अंगुठी) के निमित्त प्रसंग पर केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। (२) बाहुबली को केवलज्ञान-भगवान ऋषभदेव के दूसरे पुत्र बाहुबली को युद्ध के मैदान में दीक्षा लेकर कायोत्सर्ग ध्यान में खड़े हुए बारह मास बीत जाने के कर्म की गति न्यारी ३११

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