Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 05
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 45
________________ की तीसरी स्तुति जो श्रागम एवं श्रुत शास्त्रज्ञान के विषय में की जाती है उससे पता चलता है | उदाहरणार्थ (१) “कल्लाण कंदं” नामक स्तुति में तीसरी " निव्वाण मग्गे वरजाण कप्पं" (२) “संसारदावा" की स्तुति में तीसरी स्तुति "बोधगाधं सुपदपदवी नीरपूराभिरामं” इसमें श्रुतज्ञान की एक अगाध सागर के साथ तुलना की गई है। जिसके लिए " सारंवीरा गमजल निधि" इत्यादि शब्द प्रयोग किये गये । (३) “स्नातस्या” की प्रसिद्ध स्तुति में तीसरी स्तुति "प्रवक्त्र प्रसूतं गणधररचितं द्वादशांगं विशालं” स्तुति में अरिहंत भगवान के मुख से निकली हुई वाणी और गणधर भगवंत द्वारा उसका जो गुंथन किया गया है वही द्वादशांगी श्रागम कहलाता है । इस तरह अनेक स्तुतियां देखने पर प्रत्येक की तीसरी स्तुति सदा ही श्रागम या श्रुत शास्त्र सम्बन्धी होगी। जिनमें श्रुतज्ञान की प्रशस्ति मिलेगी । प्रमाण का स्वरूप प्रमाणशास्त्र में कई प्रमाणों का विचार किया गया है । जिसका संक्षिप्त स्वरूप निम्न तालिका में दर्शाया है - प्रत्यक्ष सांव्यवहारिक पारमार्थिक (श्रात्म प्रत्यक्ष ) ऐन्द्रियप्रत्यक्ष प्रतीन्द्रिप्रत्यक्ष क्षायोपशमिक - प्रमाण अवग्रह ईहा प्रवाय धारणा मतिज्ञान कर्म की गति न्यारी अवधिज्ञान श्रुतज्ञान स्मृति प्रत्यभिज्ञान तर्क अनुमान श्रागम क्षायिक परोक्ष मनः पर्यवज्ञान केवलज्ञान

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