Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 05
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 58
________________ भगवान होते हैं वे भूल नहीं करते । बस सामान्य मानवी इतनी सी छोटी बात के अच्छी तरह समझकर चले तो शायद वह ऐरे-गैरे-नत्यू-खरे बन बैठे भगवानों या भागे हुए भगवानों से अपने आपको बचा सके । कर्म-८ घाती-प्रघाती कर्म ५. . घाती कर्म-४ प्रघाती कर्म-४ ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय मोहनीय अंतराय नाम गोत्र वेदनीय आयुष्य प्रकृतियां-५ + & + २८ + ५ + १०३+ २ + २ + ४- १५८ कुल ४७ प्रकृतियों में से ४५ प्रकृतियाँ कुल १११ प्रकृतियाँ घाती हैं । इनमें भी २० प्रकृतियाँ सर्वघाती ये सभी प्रघाती प्रकृतियां हैं। हैं। शेष देशघाती हैं। इन्हें ही घनघाती प्रात्मा के गुणों का सर्वथा घात नहीं नाम से भी कहते हैं । घाती कर सकती है। सर्वघाती देशघाती । ४७ धाती+१११ प्रघाती = २५ कुल १५८ कर्म प्रकृतियाँ ८ मूल कर्मों में यह विभाजन किया गया है । घाती कर्मों के क्षय से-केवलज्ञान पांच प्रकार के ज्ञानों में प्रथम के चार ज्ञान क्षयोपशम जन्य हैं । अतः वे क्षायोपशमिक कहलाते हैं। जबकि पांचवां केवलज्ञान क्षायिक है । यह क्षयोपशम जन्य नहीं है । क्षयोपशम की प्रक्रिया में कर्म का सर्वथा क्षय नहीं होता है। कुछ अंश क्षय होता है और कर्म का कुछ उपशमन होता है । अत: उभय मिश्रित भाव का स्वरूप है क्षयोपशम । प्रथम के चार ज्ञानों में उस उस ज्ञानावरणीय कर्म से कुछ अश का क्षय होता है तथा कुछ कर्माश का उपशमन होता है अत: कुछ अंशों में ज्ञानावरणीय कर्म का अंश शेष रहता है । अतः वे ज्ञान सर्वांशग्राही नहीं है । जबकि पांचवें केवलज्ञान की प्रक्रिया ऐसी नहीं है । इसमें क्षयोपशम नहीं, परन्तु सर्वांश का सर्वथा क्षय होता है । अत: केवलज्ञान क्षायिक है। यह क्षायिक भाव से प्रकट होता है पहले के चार ज्ञान अपने-अपने प्रावश्यक ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से प्रकट ३०० कर्म की गति न्यारी

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