Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 05
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 11
________________ अशिक्षित एवं प्रसभ्य वर्तन वाला बनता है। कर्कश खराब भाषा बोलने वाला बनता है। गाली-गलौच की गंदी भाषा बोलने वाला होता है। ज्ञान-ज्ञानी के प्रति प्रविनयी-अनादर वृत्ति वाला बनता है। इस प्रकार ज्ञान-ज्ञानी तथा ज्ञानोपकरण आदि की घोर आशातना पूर्वक अशुभ पाप वृत्ति तथा प्रवृत्ति से उपार्जित किये हुए ज्ञानवरणीय कर्म के उदय में आने से अन्ध-मूक-बधिर आदि के रूप में दुःख सामने प्राता है । जीव वैसा बनता है । किये हुए कर्मानुसार फल भोगता है। पांच ज्ञान के पांच ज्ञानावरणीय कर्म | Maratureer YWalayaur XXX सवाद Kraateex NEXHINAXY प्रात्मा अनन्त ज्ञानमय है, जहां-जहां प्रात्मा है वहां-वहां ज्ञान निश्चित है भले ही वह अल्प या अधिक प्रमाण में हो। पर प्रात्मा ज्ञानमय है। ज्ञान रहित नहीं है । परन्तु ज्ञान-ज्ञानी तथा ज्ञानोपकरण की पाशातना-विराधना करके जीव ने खुद ने जो ज्ञानावरणीय कर्म उपार्जन किये हुए होते हैं उसके परिणाम स्वरूप आत्मा का ज्ञान गुण ढक जाता है, दब जाता है। +EEEEया 17 जिसके कारण ज्ञान गुण प्रकट नहीं होता। पांच प्रकार के ज्ञान है तो पांचों प्रकार के ज्ञानों के प्रावरक-पाच्छादक पांच प्रकार के कर्म है । प्रतः कर्म किसी अलग स्वतंत्र नाम से नहीं पहचाने जाते परन्तु प्रात्मा के उन गुणों के आच्छादक आवरक के रूप में ही पहचाने जाते हैं । JL જ્ઞાસ્વાન (१) मतिज्ञान का आवरक-मतिज्ञानावरणीय कर्म । (२) श्र त ज्ञान का प्रावरक - श्रु तज्ञानावरणीय कर्म । (३) अवधिज्ञान का प्रावरक-प्रवधिज्ञानावरणीय कर्म । (४) मनःपर्यवज्ञान का प्रावरक-मन: पर्यव ज्ञानावरणीय कर्म । (५) केवलज्ञान का प्रावरक-केवलज्ञानावरणीय कर्म । इस तरह पांच ही ज्ञान के प्रकार हैं अतः पांचों ज्ञान के प्रावरक-प्राच्छादक (ढकनेवाले) पांच प्रकार के ज्ञानावरणीय कर्म है। ये पांचो ही ज्ञानावरणीय कर्म अपने अपने ज्ञानं को ढकने का कार्य करते हैं। चित्र में बताए अनुसार प्रात्मा जो कि अनन्त ज्ञानवान है उस पर पांच पावरण रूप परदे चारों तरफ से डाले जाये। जैसे एक तेज लाइट के गोले पर यदि कर्म की गति न्यारी २५३

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