Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 23
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 363
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MAG ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. पांचमतपगर्भितश्रीमहावीर स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बहत, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२०. ६. पे. नाम. गौतमस्वामी गीत, पृ. ७आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेश्वर केरो शिष्य; अंति: लावण्यसमय० वंछित कोडि, गाथा-९. ७. पे. नाम. सर्पचोर मंत्र, पृ. ७आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ अर्प सर्प भृदंते; अंति: स्वाहा आज्ञा आस्तीक. ८. पे. नाम. शेजयमंडन आदिजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनवु जी; अंति: समयसुंदर इम भणै, गाथा-३१. ९.पे. नाम. पद्मावतीजीव रास, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: कहे पापथी छुटे ___ ततकाल, ढाल-३, गाथा-३३. ९८०७२. (+) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४७-५०). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: नेमीसर गुणनिलो; अंति: संबप्रजून गुण गावतां, खंड-२ ढाल २२, गाथा-६३१, ग्रं. ८००. ९८०७३. गोडीपार्श्वनाथजीना सोल ढालिया, संपूर्ण, वि. १९२१, चैत्र शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. अमदावादनगर, प्रले. पं. पंडितमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४९.५, ११४३४-४०). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: भाव धरी भजना करु आपो; अंति: नेमविजय जयकार, ढाल-१५. ९८०७५. उत्तम चरित्र, संपूर्ण, वि. १७१९, श्रावण कृष्ण, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. खेजडला, प्रले. ग. रूपहर्ष वाचक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०, १८४६१). ____उत्तमकुमार चरित्र, ग. चारुचंद्र, सं., पद्य, आदि: वंदित्वा स्वगुरुन; अंति: य कथेयं नंदितश्चिरम्, श्लोक-५७५. ९८०७६. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २३-४(१२ से १३,१९,२१)=१९, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नाममालासूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११, १५-१८४३६-५०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. कांड-३ श्लोक-८७ अपूर्ण से १७६ अपूर्ण तक, कांड-३ श्लोक-५६६ अपूर्ण से नहीं है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९८०७८. श्रावकपडिकमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२६४१०.५, १२४४०-४८). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ९८०८० (+) मानतंगमानवतीरी चतःपदी, संपूर्ण, वि. १७९५, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. सिद्धितिलक पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४३४-४४). मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमुं माता सरसती; अंति: भेद मतिमंदिर लहै, ढाल-१४. ९८०८३. (+#) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:चउसरण., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०, ६४३२-४२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610