Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 23
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 482
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४६९ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती द्यो मुज सुमति मती; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) १००५६६. (+#) विवेकमंजरी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.६, प्र.वि. अंत में एक यंत्र दिया है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२०४९, १३४३४-४०). विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि , प्रा., पद्य, वि. १२४८, आदि: सिद्धपुरसत्थवाहं वीर; अंति: जलहिदिणेस वरिसम्मि, गाथा-१४४. १००५७६. (+#) भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १६४८, माघ शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. १७, प्रले. पंडित. दुर्गदास ज्योतिषी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४७, ७७२८-३२). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१९७. १००५८३. (+#) संगीतोपनिषत्सारोद्धार-अध्याय २ से ६, संपूर्ण, वि. १६२२, श्रावण शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. ४६, प्रले. वत्सराज गोविंद द्विवेद; अन्य. वेणीदास दीक्षित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-संशोधित. कुल ग्रं.८२२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४८,८४३५-३८). संगीतोपनिषत्सारोद्धार, मु. सुधाकलश, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)श्रीमद्हर्षपुरीयगच्छमु०, (२)यांति मनोतु गुरु ___लाघवं, प्रतिपूर्ण. १००५८८. (+) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४६, ५४३०). पाशाकेवली, म. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः (१)ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी, (२)१११ पदं पदं पदं चांते; अंति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१९६. १००५९० (#) पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, प्र.वि. हुंडी:आराध०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४८, १०४२९). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: नामे पूनप्रकाश ए, ढाल-८, ___ गाथा-१०२, (पू.वि. ढाल-७ गाथा-१४ अपूर्ण से है.) १००५९१. आनंदघन गीतबहोत्तरी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (१९.५४८, १२४३६-४०). आनंदघन गीतबहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: क्या सोवे उठ जाग; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद-२४ तक लिखा है.) १००५९२. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३४८, ९x१६). साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुख उपना दुख गयै री; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ तक लिखा है.) १००५९५. (+) शेजेजय उद्धार रास, संपूर्ण, वि. १८६२, माघ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. कुचेरा, प्रले. मु. चतुरसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४७.५, १२४३५-३८). शQजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी; अंति: समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-१०७. १००६०६. प्रश्नव्याकरण-पंचपद स्तुति गाथा-३, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१५.५४८, ९x१८). महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १००६१७. (#) शनिश्चर वार्ता चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. भाणजी; पठ. लवजीभाई; अन्य. मु. हंसराज ऋषि; श्राव. रतनसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (१४x७, ६४१६-२०). शनिश्चर चौपाई, पं. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति संपति द्यो मति सदा; अंति: लहे पंडीत ललीतसागर ईम कहे, गाथा-२७. १००६२१. शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२३.५४११, १०४२७-३२). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति कुष्मांडनी; अंति: लाभ पुत्र लाभ सुख दोसी. For Private and Personal Use Only

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