Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 23
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 495
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १००८९३. (+#) श्रावकपाक्षिकअतिचार, स्तवन व चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५७-४९(१ से ४९)-८, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१x१०.५, १०x२५-३१). १. पे. नाम. श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, पृ. ५०अ-५५अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १८५०, माघ कृष्ण, ९, प्रले. श्राव. अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, (पू.वि. "सुलसा चंदनबाला मनोरमा" पाठ से है., वि. स्याही उखड़ जाने कारण पाठ अस्पष्ट है.) २.पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ५५आ-५६आ, संपूर्ण. म.खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणमं प्रथम; अंति: लहै पामै सुख अमित्त, गाथा-८. ३. पे. नाम. ५ तीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ५६आ, संपूर्ण. मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तिर्थंकर आदिदेव विम; अंति: कमलविजय० जयजयकार, गाथा-६. ४. पे. नाम. अतीतअनागतवर्तमानचोवीसी वीसविहरमान च्यारतिर्थंकर साश्वता छन्नतिर्थंकर चैत्यवंदन, पृ. ५६आ-५७आ, संपूर्ण. अतीतअनागतवर्तमान चौवीसीनाम स्तवन, पं. विनयकशल, मा.गु., पद्य, आदि: केवली निरवाणी सागर महा; अंति: विनयकुशल० ते पामै शिवठाम, गाथा-६. ५. पे. नाम. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, पृ. ५७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेर्जेजे रीषभ समोसर्या; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) १००८९८. (+) संबोधसत्तरी प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४)=५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४११, ९४२५). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जयसेहर०नत्थि संदेहो, गाथा-७२, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) १००८९९ (+) अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१०(१ से १०)=५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११, १३४३४). अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि __कर्णाभ्यां; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रकाश-१० श्लोक-१३ अपूर्ण तक है.) १००९००. आगमयोगवहन आलोवो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से ३)=५, ले.स्थल. हिमापुर, दे., (२३४११, ११४४०). सम्यक्त्वादि व्रत आरोपण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नित्थार पारगा होह, (पू.वि. "इच्छाकारेण संदिस्सह भगवन् आममण आलोउ" पाठ से है.) १००९०१ (+#) भक्तामर स्तोत्र व लघुशांति, संपूर्ण, वि. १८३७, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. श्राव. नाथा मूलचंद वोरा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ११४३०). १. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. लघशांति, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांत; अंति: जयनं जयति शाशनम्, श्लोक-१९. १००९०३. चैत्यवंदनसूत्र व सुभाषित श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२२४१०.५, ४४२६). १.पे. नाम. चैत्यवंदनसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, वि. १९५८, माघ कृष्ण, १२, बुधवार, अन्य. मु. जितमल, प्र.ले.पु. सामान्य. चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उपाध्याय सर्वसाधुभ्यः. चैत्यवंदनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार होज्यौ अरि; अंति: प्रतें नमस्कार थाज्यौ. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक सह टबार्थ, पृ. ५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610