Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 23
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 494
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४८१ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजो तिरथ; अंति: पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. १००८८१ (+2) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-१४(१ से ४,९ से १०,१२ से १३,१५,१७ से २१)=८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:हैमको०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४११, ९-१०४२९-३२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड-१ श्लोक-३३ अपूर्ण से कांड-२ श्लोक-२४१ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) १००८८३ (+#) सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , जैदे., (२२४११, ८-११४२५-३१). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअ सव्वभयं; अंति: नमामि साहम्मिया तेवि, स्मरण-७, (वि. उवसग्गहर स्तोत्र नहीं लिखा है.) १००८८४. रामतीयालाशिष्यप्रबंध व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १५४४६). १.पे. नाम. रामतीयाला शिष्यप्रंबध की टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १६१८, पौष शुक्ल, ८, ले.स्थल. हरीपुरा, प्रले. हेमसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य. फूलडा सज्झाय-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरमुक्ति गमनतः; अंति: वर्गसौख्यभाग बभूव. २. पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: डोकर दूजइ भइसविलोवइ; अंति: वह व्याई सासू जाई. १००८८५ (+#) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १७४१, कार्तिक शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ९, प्रले. पं. हेमविजय गणि (गुरु उपा. मुक्तिविजय गणि); गुपि. उपा. मुक्तिविजय गणि (गुरु भट्टा. विजयसिंहसूरीश्वर); पठ. ग. सुमतिविजय (गुरु पं. हेमविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १४४३६-४२). नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: जैन जयति शासनं, स्मरण-९, (वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं लिखा है.) १००८८८. विजयप्रभसूरि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१३४१०.५, १३४१८). विजयप्रभसूरि स्तति, पं. केसरसागर, सं., पद्य, आदि: श्रीविजयप्रभसूरि स्तवीमिव; अंति: रेयोवरं मे वितरत्वजसस्तम्, गाथा-१०. १००८८९ (4) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९-२६(१ से २६)=३, प्र.वि. प्रारंभ में मुहर्तमुक्तावली की मात्र प्रतिलेखन पुष्पिका है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, ८-१०४२२-२५). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) १००८९०. गच्छनामावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१६४११, ५४४५५). ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: काजामति १ सागरमती २; अंति: बाल गछ नाडोला गछ, (वि. अंत में वर्षानुक्रम में खरतरगच्छ एवं कुछ विशिष्ट गच्छ के नामों का उल्लेख है.) १००८९१. पद्मावतीमंत्र जापविधि व पद्मावती कल्प, संपूर्ण, वि. १८२२, आश्विन शुक्ल, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. दयालवकस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रतिलेखन वर्ष हेतु विक्रम संवत १९५७ एवं शक संवत १८२२ लिखा है., जैदे., (१७.५४११, १३४२६-३२). १. पे. नाम. पद्मावतीमंत्र जापविधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पद्मावती मंत्रजाप विधि सहित, सं., प+ग., आदि: ॐ अस्य श्रीपद्मावती; अंति: पार्श्वनाथजी मंत्रोयं. २. पे. नाम. पद्मावती कल्प, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्रे; अंति: पद्मावती स्तोत्रम्, श्लोक-२६. For Private and Personal Use Only

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