Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 23
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.२३) KAILASA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts Nd 1.1.2018 बुदाणावादगाणासा बदरिमीणासवमा वादमणरावण आणानामाझिणझिम HARYAमादागत For Private and Personal Use Only कायातमतारमा MAITत्रानादान मान|5/ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.२३) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध संस्थान एवं ग्रन्थालय) श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची से आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी ले प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५४३० वि.सं. २०७३ ० ई. २०१७ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २३ Aacārya Śhrī Kailāsasāgarasūri Smrti Granthasūcī - Ratna 23 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.२३ Kailāsa Śrutasāgara Granthasūcī: 1.1.23 * संपादक मंडल * पं. संजयकुमार आर. झा पं. नवीनभाई वी. जैन पं. भाविन पंड्या पं. अश्विन भट्ट श्रीमती जागृति प्रजापति पं. रामप्रकाश झा पं. अरुण कुमार झा पं. राहुल त्रिवेदी पं. पंकज शर्मा सुश्री मीनाक्षी शिंदे * संयोजक * डॉ. हेमन्त कुमार * संपादन सहयोग * परबत ठाकोर संजय गुर्जर * कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग * केतन डी. शाह For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २३ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथाना विस्तृत सूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची* वर्ग - १ : जैन साहित्य खंड - २३ - आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Śrī Dēvarddhigani Kșamāśramaņa Hastaprat Bhāņdāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir (Jain, Indological Oriental Research Institute and Library) under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section - I : Manuscripts Catalogue * Class - I: Jain Literature Volume - 23 d Blessings & Inspirations Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Publishers Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, (Guj.) India 2017 For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 23 Kailasa Śrutasagara Granthasūcī: 1.1.23 Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.23 Preserved in Śrī Dēvarddhigani Kṣamāśramaṇa Hastaprat Bhāndāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir ©: Publisher O Vir Samvat 2543, Vikram Samvat 2073, A.D. 2017 Edition: First • प्रकाशन सौजन्य : शेठ श्री सोहनराजजी बच्छराजजी सिंघवी परिवार, जोधपुर (राज.), हाल - कोलकाता. Sheth Shri Sohanrajji Bachharajji Singhvi Parivar, Jodhpur (Raj.), migrated to Kolkata. O Available at: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Publisher: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382007. (Guj.) INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, WhatsApp: 07575001081 Web site: www.kobatirth.org E_mail: gyanmandir@kobatirth.org O Price: Rs. 1500/ O ISBN: 81-89177-00-1 (Set) 978-93-85803-08-6 (Vol.23) • Printer : Navprabhat Printing Press, Ahmedabad Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * उपलक्ष * श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के ८३ वें जन्मोत्सव पुनीत प्रसंग पर वि. सं. 2073, भाद्रपद सुद, 12, रविवार दि. 03-09-2017 For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अर्हम् नमः ॥ 卐 मंगल कामना तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार-भाष्यकार-चूर्णिकार-टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋणस्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सर्वप्रथम सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरे-धीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. श्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सव्यवस्थित-समद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस खंड से पूर्व की सूचियों में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का जो भगीरथ कार्य मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी ने जो सहयोग दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबकी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को उत्तरोत्तर गति प्रदान की, वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक कार्य है. डॉ. हेमन्त कुमार, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, श्री नवीनभाई जैन, श्री अरुण कुमार झा, श्री भाविन पंड्या, श्री राहुल त्रिवेदी, श्री अश्विन भट्ट, श्री पंकज शर्मा, श्रीमती जागृति प्रजापति, सुश्री मीनाक्षी शिंदे आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. संस्था के अध्यक्ष श्री सुधीरभाई मेहता, ज्ञानमंदिर में चल रही विविध गतिविधियों की देख-रेख करनेवाले अन्य ट्रस्टीगण व कारोबारी सदस्य सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत २३वें खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले शेठश्री सोहनराजजी बच्छराजजी सिंघवी परिवार, कोलकाता के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ. बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों के अपने-आप में विशिष्ट प्रकार के सूचीपत्र कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का २३वाँ खंड प्रकाशित हो रहा है, जो ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वज्जन इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकासपथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. समसार करि For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * प्रकाशकीय* जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के २३वें खंड को चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध संस्थान एवं ग्रंथालय) में हस्तलिखित ग्रंथों का बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है. यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में राष्ट्रसंत पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरिजी के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने तों के सूचीकरण हेतु वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी तथा यहाँ के पंडितवर्यों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. पंडितों के साथ-साथ करीब पचास कार्यकर्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती हैं. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं वों का आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो इस कार्य को आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है __ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में चल रहे श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण एवं कारोबारी सदस्य तो अत्यन्त उत्साही व सक्रिय रहे ही हैं, साथ-साथ ज्ञानमंदिर को आज की ऊँचाईयों तक पहुँचाने में भूतपूर्व ट्रस्टीयों एवं कारोबारी सदस्यों का भी जो महत्त्वपूर्ण योगदान प्राप्त हुआ है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची-जैन हस्तलिखित साहित्य के इस २३३ खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता शेठश्री सोहनराजजी बच्छराजजी सिंघवी परिवार, कोलकाता के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस २३वें रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट - कोबातीर्थ, गांधीनगर For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *प्राक्कथन* कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में प्रकाशित हो रहे इस २३वें रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. प्रस्तुत भाग में संस्कृत, प्राकृत व देशी भाषाओं की आगमिक साहित्य, कर्मसिद्धान्त की मूल, टीका, अवचूरि आदि महत्त्वपूर्ण कृतियों के अतिरिक्त देशी भाषाओं की रास, कथा, औपदेशिक-सुभाषित पद आदि अनेक कृतियाँ भी अप्रकाशित प्रतीत हो रही हैं. जिसमें ज्ञानसारजी रचित अनेक लघु कृतियाँ, कल्याणजित रचित करणकुतुहल की रत्नावली व्याख्या, रत्नचंद्र एवं हर्षकीर्ति रचित भक्तामरस्तोत्र की टीकाएँ, मेरुतुंगसूरि रचित शतपदी सारोद्धार, कपूरविजय रचित अहमदाबाद नगर वर्णन गजल, उदयरत्न रचित मुनिपति रास, सकलचंद्र रचित मृगावती रास आदि अनेक कृतियाँ संशोधन-संपादन हेतु विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. हस्तप्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही जटिल व कष्टसाध्य होता है, परंतु उनमें समाहित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ, जो अद्यावधि विद्वद्वर्ग की नजरों से ओझल थीं, उन्हें आपके कर-कमलों में समर्पित करने का यह सुंदर परिणाम हमारे लिये अपार संतोषदायक सिद्ध हो रहा है.. जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत ही जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ विविधस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री; इस तरह छः भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्त्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकरण का कार्य कर दिया गया है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची खंड-२३ से पूर्व के सभी खंडों में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी का अनुसरण करते हुए हमने यह संपादनकार्य किया है. मुनिश्री के हम चिरकृतज्ञ हैं. समग्र कार्य के दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. तथा श्रुताराधक आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी म. सा. की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; फलतः हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है. ___ प्रतों की प्राथमिक सूचनाओं की कम्प्यूटर में प्रविष्टि तथा सन्दर्भ हेतु पुस्तकें आदि शीघ्रतापूर्वक उपलब्ध कराने हेतु ज्ञानमन्दिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है. फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह गई होंगी. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें, जिससे भविष्य में प्रकाशित होनेवाले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल III For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ........ji ................... iii अनुक्रमणिका मंगलकामना. प्रकाशकीय........................................... प्राक्कथन............................................................................................. अनुक्रमणिका ......................................................................................................................iv प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत............................................. ........................................................................ V-Vi हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य एवं सादर ग्रंथ समर्पण...................... .....vii-viii हस्तप्रत सूची.......................... .........................................................१-४८४ परिशिष्ट : कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या..... ..४८५-५९६ १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १. .........४८५-५३० २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २. ................५३१-५९६ इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ VI एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ 454 पर हैं. कृपया वहाँ पर देख लें. प्रस्तुत खंड २३ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. * प्रत क्रमांक - ९४६५१ से १००९५० * इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से इस खंड में २५६५ प्रतों की सूचनाओं का समावेश हुआ है. * समाविष्ट प्रतों में कुल ३१२५ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. * इन परिवारों की कुल ३७६२ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. * सूची में उपरोक्त कृतियाँ कुल ६३०६ बार आई हैं. ___IV For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ($) . कृति/प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक. - - (-) .प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ सूचक. (+)..........प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में- प्रत की महत्ता सूचक. - इस हेतु प्र. वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्त्ता कर्त्ता के शिष्य प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित शुद्धप्राय टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत, यथा अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद संधि सूचक वचन विभक्ति क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. .... कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह निर्युक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. (#) .......... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में. प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. मूल पाठ का टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है, अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. *******... कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में ऊर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक अपूर्ण, लुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--) ......... आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप............ अपभ्रंश (कृति भाषा ) अंति:......... अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ............. आचार्य (विद्वान स्वरूप) * प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत * . कृति नाम के अंत में विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. आदिः........ आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप............. प्रत प्रतिलेखन उपदेशक. (प्र. ले. पु. विद्वान) उपा. . उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ******... ग. गडी. - क्रीत....... को............. कोष्टक (कृति स्वरूप) ....... गणि (विद्वान स्वरूप) ...........गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य........... गद्यबद्ध (कृति प्रकार) गा. . गाथा (कृति परिमाण) गु.. - ऋ.. ........ ऋषि (विद्वान स्वरूप) क ............. कवि (विद्वान स्वरूप) कुं.. कुल ग्रं ...... कुंडली (कृति स्वरूप) .मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्वग्रंथास परिमाण प्रत व पेटाकृति विशेष में. कुल पे. ....... कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) ********* www.kobatirth.org प्रत को खरीदनेवाला (प्र. ले. पु. विद्वान) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . गुजराती (कृति भाषा) गुटका......... बंधे पन्नों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) क्वचित् गोटका शब्द भी प्रयुक्त होता है. V For Private and Personal Use Only - - Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाला प्र........... यं............. गृही........... गहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला | प्रे.. प्रतलेखन प्रेरक. (प्र. ले. पु. विद्वान) (प्र. ले. पु. विद्वान) बौ............. बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) गोल.......... गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) म............. मराठी (कृति भाषा) ग्रं.............ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) महा.......... महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा) ..जैन कृति (कृति परिशिष्ट) मा............ मागधी प्राकृत (कृति भाषा) जै.क.........जैन कवि (विद्वान स्वरूप) मा.गु......... मारुगुर्जर (कृति भाषा) जैदे...........जैन देवनागरी (प्रत लिपि) मुनि (विद्वान स्वरूप) ते............. जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) .... मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) ........... ... आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला. (प्र. ले. पु. | मूपू......... जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) विद्वान) यंत्र (कृति स्वरूप) दि........... जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट) रा............. राजा (विद्वान स्वरूप) देना....... देवनागरी (प्रत लिपि) रा............. राजस्थानी (कृति भाषा) पं............. पंजाबी (कृति भाषा) राज्यकाल... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. पं............ पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) राज्ये......... जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का पठ........... पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेत प्रत लिखी या लिखवाई | लेखन हुआ हो. गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान) लिख......... प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. प. विद्वान) प+ग......... पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार) ले. स्थल..... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) पद्य........... पद्यबद्ध (कृति प्रकार) वा............ वाचक (विद्वान स्वरूप) पा. ........... पाठक (विद्वान स्वरूप) वि.............विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्र. ले. पु., कृति पु. हिं......... पुरानी हिंदी (कृति भाषा) रचना वर्ष) पृ. वि......... पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व | विक्र.......... विक्रेता - प्रत का. (प्र. ले. प. विद्वान) कृतिमाहिती स्तर) |वी............. वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि. 'श. आदि २०००. वर्ष संख्या पश्चात् होने पर वी सदी. के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति पृ............. पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकति स्तर रचना वर्ष) पर) वै............ वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट) पे. नाम...... प्रतगत पेटाकृति नाम व्या.प........ व्याख्याने पठित -विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान) पे. वि........ प्रतगत पेटाकृति विशेष श............. शक संवत् (वर्ष माहिती - प्र.ले.पु. कृति रचना वर्ष) पै.............. पैशाची प्राकृत (कृति भाषा) श्राव.......... श्रावक (विद्वान स्वरूप) प्र. वि......... प्रत विशेष. श्रावि......... श्राविका (विद्वान स्वरूप) प्रले........... प्रतिलेखक, लहिया, (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, | श्रु............. श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान) पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर.) श्वे.............जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट) प्र. ले. पु..... प्रतिलेखन पुष्पिका की-(प्रत/पेटाकृति/कृति स्तर) | संस्कृत (कृति भाषा) ('सामान्य, मध्यम आदि उपलब्धता सूचक.) सम........... समर्पक. ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. प्र.ले.श्लो.... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित (प्र. ले. पु. विद्वान) प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) प्र. सं......... प्रति संशोधक स्था.......... जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) प्रा............. प्राकृत (कृति भाषा) | हिं........... हिंदी (कृति भाषा) VI For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (* सुकृत केसहभागी*) * हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली * महुडी मुंबई मुंबई मुंबई १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), २२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट, बेंग्लोर पालडी अहमदाबाद २३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार, अहमदाबाद २४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, मुंबई ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर मुंबई ॥ २५. श्री जुहु स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, २६. श्री शांतिनाथ देरासर जैन पेढी, श्री शंखे. पार्श्व., __ वालकेश्वर बावन जिनालय, देवचंदनगर रोड, भायंदर (वे.) थाणा मुंबई ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ | २७. श्री जैन पंच महाजन मांडाणी (राज.) ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ मुंबई |२८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया मुंबई ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव मुंबई मेवानगर (राज.) ९.जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया अमेरिका |२९. श्री संभवनाथ जैन ट्रस्ट बिसलपुर (राज.) |१०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग अहमदाबाद ३०. श्री पुष्पदंत श्वे. मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल मुंबई ३१. श्री सेटेलाईट श्वे. म. प. जैन संघ अहमदाबाद १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट मुंबई ||३२. श्री वेपेरी श्वे. म. प्र. जैन संघ चेन्नई १३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ ||३३. श्री शाहीबाग-गीरधरनगर जैन श्वे. मू. पू. संघ अहम. ___अमेरिका, 'जैना' हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा अमेरिका |३४. श्रीमद यशोविजय जैन संस्कृत पाठशाला महेसाणा १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन मुंबई | ३५. श्री जैन सोसायटी जैन संघ अहमदाबाद १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी मुंबई || ३६.शेठ नवलचंद सुप्रतचंद जैन देवकी पेढी पाली-राज. १६. श्री सांताक्रुज जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ ३७. श्री माटुंगा जैन श्वे. मू. पू. तपगच्छ संघ मुंबई जैन देरासर मार्ग, सांताक्रुज़ (वे.) ३८. श्री दशापोरवाड सोसायटी जैन संघ अहमदाबाद १७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी अहमदाबाद ३९. श्री विले पार्ले (वे.) श्वे. मू. पू. संघ मुंबई १८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, ४०. श्री जैन श्वे. मू. पू. संघ, सायन मुंबई १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद २०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. म. प. जैन संघ, ४१. श्री सीमंधरस्वामी जिनमंदिर पेढी महेसाणा ___ आरे रोड, गोरेगाँव ४२. श्री अदाणी फाउन्डेशन अहमदाबाद २१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, बेंग्लोर || ४३. श्री शेनुजय तीर्थधाम, भुवनभानु मानसमंदिर मुंबई मुंबई मुंबई * हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली * १. श्री पुरुषादानीय पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, देवकीनंदन अहमदाबाद VII For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (* सुकृत के सहभागी * ) हस्तप्रत सूचीकरण में 9 से २3 भाग के आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. रमेशकुमार चोथमलजी, तारादेवी रमेशकुमार : सन्स नोवी, हाल शिवगंज (राज.) २. श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ३. घाणेराव (राजस्थान) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई एस. देवराजजी जैन चेन्नई ४. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ५. मांडवला (राज.) निवासी संघवी मुथा । मोहनलालजी रघुनाथमलजी सोनवाडीया परिवार चेन्नई ६. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ ९. शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी अहमदाबाद १०. श्री भवानीपुर मूर्तिपूजक जैन श्वेताम्बर संघ कोलकाता ११. श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार कोलकाता १२. श्री सांताक्रुज़ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ मुंबई १३. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) यु.एस.ए. १४. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) यु.एस.ए. १५. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद १६. श्री विजय देवसूर संघ श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज, पायधुनी मुंबई १७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर १८. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद १९. श्रीमती छगनकंवर अमृतलालजी गांधी परिवार सिरोही-जोधपुर २०. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद २१. शेठ श्री देवीचंद, विकासकुमार, अनिलकुमार चोपड़ा परिवार (बच्छराज डेवलपर्स) मुंबई २२. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद २३. शेठ श्री सोहनराजजी बच्छराजजी सिंघवी परिवार, कोलकाता मेवानगर *सादरसमर्पण* कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में... जिनके द्वारा यह श्रुतपरंपरा अक्षुण्ण रही. ००० VIII For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्री महावीराय नमः॥ ॥ श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९४६५१.(+) सिंदूरप्रकरं नाम सूक्तिशतक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०,११४३८-४०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. ९४६५२. (#) विविध विषय संबद्ध गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११,११४३८). गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: रिउ समय नाय नारी नरोव; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम शृंखला में गाथा-५ तक लिखा है., वि. विषयानुसार अलग-अलग गाथाक्रम है.) ९४६५३. (+) पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५, प्रले. पं. आणंद (गुरु मु. चारुदत्त, खरतरगच्छ); गुपि. मु. पीथाजी; मु. चारुदत्त (गुरु मु. हंसप्रमोद, खरतरगच्छ); मु. हंसप्रमोद (गुरु पं. हर्षचंद्र गणि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३७६, जैदे., (२५४१०, १५४४४-५२). पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआर्यरक्षितसूरि ते; अंति: श्रीजिनसागरसूरि थापी, (वि. विस्तृत घटनाक्रम सहित.) ९४६५४ (+#) शत्रुजयतीर्थ रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(३)=५, प्र.वि. सर्वगाथा-१००८, संशोधित. कुल ग्रं. १५०, टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२४४१०, १३४४०-४४). शजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी; अंति: समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-११२, (पू.वि. ढाल-४ की गाथा-१४ अपूर्ण से ढाल-५ की गाथा-१३ अपूर्ण तक नहीं है.) ९४६५५. दशवैकालिकसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:दशवै०वृत्ति, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४२-५०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पृ.वि. अध्ययन-४ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-शिष्यबोधिनी टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति विजितान्यतेजाः; अंति: (-). ९४६५७. पाक्षिकसूत्र व पार्श्वजिन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, ८४४३-४७). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-१५आ, संपूर्ण. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: सयं जेसिं सुअसायरे सत्ति. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकरसिद्ध; अंति: हुइ ते मिच्छामि दुकडं. २. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल विराजे; अंति: श्रीजिनचंद्र० मन आस, गाथा-९. ९४६५८. (+) अजितशांति स्तवन, गणपरिचय श्लोक व गणविवरण, संपूर्ण, वि. १६३८, श्रावण अधिकमास कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ३, प्रले. पूरनमल माथुर कायस्थ, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. लिखावट से प्रत का लेखनकाल १९वीं प्रतीत होता है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०, ५४३२-३६). For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. अजितशांति सह टबार्थ, पृ. १अ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. गणसंकेत सहित. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत अंति: अजिअसति जिणनाहस्स गाथा-४२. अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्री अजितनाथ प्रति जीता; अंतिः एहवा जे श्री अजितशांति. २. पे. नाम. गणपरिचय श्लोक, पृ. १२आ, संपूर्ण. **, श्लोक संग्रह पुहिं. प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि तिर्थेशनयन सहितं मंदार, अंतिः प्रथमाक्षर नामतः सांज्ञा, श्लोक १. ३. पे. नाम. गण विवरण, पृ. १२आ, संपूर्ण. ८ साहित्यगण विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: १ मगण २ यगण ३ रगण; अंति: ६ जगण ७ भगण ८ नगण ९४६५९. (+) अष्टप्रकारी पूजा, स्नात्र पूजा व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२६११, ९५३१). , १. पे नाम, अष्टप्रकारी पूजा, पू. १अ ४आ, संपूर्ण, ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: स्वस्ति श्रीसुख पूरवा; अंति: मोक्षसोक्षं श्रयंति, ढाल-८, गाथा-६६. २. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-जालोरनगरमंडन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेस्वर राया हुं; अंति: वडदाई जिनहर्ष सदावै हो, गाथा-६. ३. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधि, पृ. ५अ -१२अ, संपूर्ण, वि. १९०१, आश्विन शुक्ल, १३, सोमवार, प्रले. मु. वृद्धिचंद, अन्य. पं. श्रीचंद (गुरु मु. देवीचंदजी), प्र.ले.पु. सामान्य. स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम अंग शुद्ध करी; अंति: कहे सूत्र मोझार, ढाल-८, गाथा- ६०, (वि. शांतिजिन आरती संलग्न है. अंत में पूजासामग्री का विवरण दिया गया है.) ४. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. १२अ, संपूर्ण. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: जै जै आरती शांति तुम्हारी; अंति: नरनारी अमर पद पावे, गाथा-६. ५. पे. नाम. जिनाभिषेक पंचामृतवस्तु श्लोक, पृ. १२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि दधि दुग्धं घृतं चेक्षुरसं; अति ते पंचामृतमेतभि निगद्यते श्लोक-१. ६. पे. नाम. तपोभेद ५० पद नमस्कार, पृ. १२ आ, संपूर्ण, पे. वि. बाद में लिखी गयी है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 सं., गद्य, आदिः यावत्कथित अणसणतपसे नमः; अंति: उपसर्गतपसे नमः. ९४६६० (+) जीवभेद विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, दे. (२४.५४१०.५, ९x१५-२६). י' For Private and Personal Use Only जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवरा २ भेद एक मुक्त; अंति: (-), (पू.वि. पक्षी के २ भेद अपूर्ण तक है.) ९४६६१. (४) साधुवंदना बृहद्, संपूर्ण वि. १९४९ कार्तिक शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल, सवाईमाधोपूर, प्रले. किसनराम पुरोहित; अन्य. श्राव. डूंगरदासजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X११, ११-१२X४२-४५). साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोवीसी ऋषभादिक; अंति: जेमले पाम्या सो परे ठामे, गाथा १३१. ९४६६२. (+) संग्रहणी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८०८, फाल्गुन कृष्ण, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल, सोझितनगर, प्रले. पं. जगद्विलास; पठ. मु. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. जिनकुशलसूरि प्रसादात्, संशोधित., प्र.ले. श्लो. (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, जैवे., (२५.५X११, १३४३६-४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताइं ठिइ; अंति : जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३०७. ९४६६३. (+) विद्याविलासनृप चौपाई, संपूर्ण, वि. १७२८, फाल्गुन शुक्ल, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२४X१०.५, १३x४०-४४). Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ विद्याविलास चौपाई, मु. राजसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६७९, आदि: श्रीजिनवर मुखवासिनी; अंति: राजसिह० सुख भरपूर, ढाल-१९, गाथा-६४२. ९४६६४. नेमराजिमती गीत, औपदेशिक सज्झाय व धन्नाशालिभद्र चरित्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(८)=९, कुल पे. २३, प्रले. ग. सिंहभुवन (गुरु ग. कनकजय); गुपि.ग. कनकजय (गुरु ग. महीसमुद्र); ग. महीसमुद्र; पठ. श्रावि. रूडी, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. वि. सं. १५५२, फाल्गुण वदि ५ में लिखी गई प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२४) भग्न पृष्टिं कटी ग्रीवा, जैदे., (२५४१०, १३-१४४२९-३२). १. पे. नाम. भद्र गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि गीत, श्राव. भुंभच संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: कमलवदनी मृगलोयणी चित्तहरण; अंति: भुंभच०श्रेणिक जोवा आविसिइ, गाथा-७. २. पे. नाम. शालिभद्र गीत, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि गीत, श्राव. भुंभच संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: रुयडा पोलि पगारे रुयडा; अंति: भुंभच० तिजि संयम लिउ ए, गाथा-१५. ३. पे. नाम. सज्जनदर्जन गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श्राव. भुंभच संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: एक इस्या नर जिस्या; अंति: तेहनइ करइ जुहार, गाथा-६. ४. पे. नाम. नेमराजिमती हरियाली, पृ. २आ, संपूर्ण. क. गंग, मा.गु., पद्य, आदि: ए सखी एह पान न खाउं मझमख; अंति: गंग० मोरि मनि छइ लाख रे, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमराजिमती हरियाली, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: कामिनी कालीमइ दीठउ; अंति: घिर घिर दीवडा ज्योति करे, गाथा-४. ६. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. साधुहंस, मा.गु., पद्य, आदि: जान लेई नइ तोरणि आविउ पसू: अंति: साधुहंस० रे मोरी सहिई ए, गाथा-५. ७. पे. नाम. नेमराजिमती हरियाली, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सलूणी सुकमाल सुंदरि एकलडी; अंति: अवधारी नइ सेवक वीनती ए, गाथा-७. ८. पे. नाम. नेमिनाथ गीत, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: आज सजनी रजनी भरि भरि; अंति: मिली रे लहिइ सुख बहुत, गाथा-५. ९. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. कंत, मा.गु., पद्य, आदि: पुढी गउखि पूनिम निसि पेखि; अंति: कंत० घरणि तुम्ह जोइ रे, गाथा-५. १०.पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, म. गणपति, मा.ग., पद्य, आदि: नेमि जिणेसर परमयोगीसर राय; अंति: गणपति या नेमीसर पाया, गाथा-३. ११. पे. नाम. नेमिनाथ गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मा.ग., पद्य, आदि: झिरमरि झिरमरि वरिसी नीर; अंति: राजलि मिलिया ऊजलि राय, गाथा-६. १२. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: परणावण प्रिइ परिहरी रे; अंति: नेमिजिण आवागमण निवारी, गाथा-२. १३. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. ५अ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: यादव जे मनि आदरं रे; अंति: नेमिजिण आवागमण निवारी रे, गाथा-५. १४.पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ते जोईइ गोपीवर गोविंद इंद; अंति: नेमिजिण भवदुखसागर तारु रे, गाथा-३. १५. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. चारित्रसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: नेमिजिण तोरणि आविउ ए परणे; अंति: चारित्रसुंदर० सिवपुर वारि, गाथा-७. १६. पे. नाम. नेमिनाथ गीत, पृ. ६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि अगर चंदन घन कस्तूरी कपूरः अति मनि धरित संयम भार, गाथा-४. १७. पे. नाम. नेमिनाथ गीत, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, श्राव. सामल, मा.गु., पद्य, आदि: राजलि भणइ रे हरिणाला; अंति: वधू प्रभु पहिली सीद्धइ, गाथा-४. १८. पे नाम, नेमिजिन गीत, पु. ६आ, संपूर्ण, नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: सुणउ यादवजी वात अम्हारी; अंति: वलि प्रणमऊ मुगित दानेसर, गाथा-४. १९. पे नाम, वैराग्य गीत, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. कर्मसागर- शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गववरहाथिणी परिवरिउ फिरतड अंति: तणउ सीस इसी परि बोलइए, गाथा- ७. २०. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: भोग भला भरता भरता भला रे; अंति: राजलि वर ब्रह्मचारी रे, गाथा-४. २१. पे नाम, नेमिनाथ गीत, पृ. ७आ, संपूर्ण. राजिमती पद, मा.गु., पद्य, आदि कहि कहि रे बाई कुणि रधि; अंतिः सेवइ मनवांछित फल इम लेबइ, गाथा- ३. २२. पे नाम. धन्नाशालिभद्र चरित्र, पृ. ७आ ९अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: मोटुं छइ चरित श्रीधनातणउअ; अंति: पालेसिइ ते न रसिइ संसार, गाथा- १८, ( पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से गाथा-१४ अपूर्ण तक नहीं है.) २३. पे नाम औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पृ. ९अ-१०अ संपूर्ण. मु. साधुहंस, मा.गु., पद्य, आदि सुणि सिखामण जीवडा म करिसि अति साधुहंस०जिम निश्चल होई रे, गाथा- १४. ९४६६५. (+#) ऋषभदेव विवाहलो, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पठ. मु. कर्णचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२५x१०.५, ९४३१-३७). " आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि आदि धर्म जिणि उथर्यो अति कहत कविता ऋषभदासो, गाथा ६७. ९४६६६. श्रावक आराधना विधि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-१ (१) = ५, प्र. वि. हुंडी : चैत्यवंदन, आराधना., (२५.५X१०.५, १३x४७-५२). For Private and Personal Use Only जैदे... आवक आराधना विधि, आ. जयशेखरसूरि प्रा. मा. गु. प+ग, आदि (-) अति पुणरवि बोहिं जिणाभिहिवं, (पू.वि. "ए वीसतीर्थंकर महाविदेहि" पाठ से है.) " ९४६६७. (+) ज्ञाताधर्मकर्धाांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १६. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे. (२५x१०, ११४३०-३४) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन १ सूत्र- २३ पूर्ण पाठ तक है.) 1 ९४६६८ (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. हुंडी चउसरण, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११, ५X३२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि सावज्जजोग विरई अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, , , गाथा-६४. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्य व्यापार त्यागरुप; अंति: ए चउसरण अध्ययन गणीवर. ९४६६९. (+) सिंदूरप्रकरण, संपूर्ण वि. १८४४, आषाढ़ कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल, रोहितनगर, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रकर्ण., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, १३X३८-४४). सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार - २२, श्लोक-१००. ९४६७०. व्याख्यान संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे. (२५x१०.५, १०x४०) व्याख्यान संग्रह, प्रा. मा. गु., रा. सं., प+ग, आदि धर्मतः सकल मंगलावली; अतिः संप्राप्त जन्मनः फलं, Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ व्याख्यान संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत असरण सरण; अंति: करता मंगलीक माला संपजै. ९४६७१. (+) स्तुतिचतुर्विंशतिका, अपूर्ण, वि. १८७४, कार्तिक शुक्ल, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ८-१(१)-७, ले.स्थल. दासरथपुर, प्रले. भुवानी; पठ. मु. गुमानचंद; मु. धना (गुरु मु. चंद्रहर्ष); गुपि. मु. चंद्रहर्ष (गुरु पं. मनरूपहर्ष); पं. मनरूपहर्ष (गुरु पं. नेमहर्ष), प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,११४३४-३६). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: परम वसुतरांगंतजा, स्तुति-२४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अजितजिन स्तुति श्लोक-७ अपूर्ण से है.) ९४६७२ (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. पंचपाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, २-३४२९-३१). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-४१. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंति: बाला० श्रीसाधुरत्नसूरिभिः. ९४६७३. सीताराम चरित्र, गाथा संग्रह व सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १३-१४४३७-४५). १. पे. नाम. रामसीता चरित्र, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. सीताराम चरित्र, प्रा.,सं., प+ग., आदि: शुद्धं शीलं श्रियां मूलं; अंति: लिहियं पुन्नस्स युत्तेण, श्लोक-१५१. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ.८आ, संपूर्ण, वि. १६९०, फाल्गुन कृष्ण, ४, रविवार, प्रले. ग. सिद्धिरत्न, प्र.ले.प. सामान्य. गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: रणहरो सदा लिद्ध दुच्छछ; अंति: तरंति ते तु बिणीजायाः, (वि. गाथा-३.) ३. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. ८आ, संपूर्ण. सुभाषित संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: रथे चैकं चक्रे भुजंगयमिता; अंति: द्राक्षस्य कुलं क्रिया, गाथा-४. ९४६७४ (+#) प्रद्युम्नकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:प्रद्युम्नकुमरचौपाई., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १७-१९x४२). प्रद्युम्नकुमार चौपाई, मु. रंगसार पं, मा.गु., पद्य, आदि: शेजगिरसिणगार आदिदेव; अंति: निरंतर सुणइ नवनिध तेह तणइ, ढाल-७, गाथा-३४१. ९४६७५ (+#) उपासकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-९(१ से २,५ से ११)=६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक भाग खंडित हैं., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०, १५४५६-६२). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१,७,८ अपूर्ण से अध्ययन-९ तक है.) ९४६७६. (+) कल्पसूत्र-महावीरजिन जन्म वाचना ५ सह व्याख्यानकथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १७X४८-५५). कल्पसूत्र-व्याख्यान कथा *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: वंदामि भद्दबाहुं इत्यादि; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. भगवान महावीर के २१वे उपसर्ग वर्णन अपूर्ण तक है.) ९४६७७. (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६१, फाल्गुन कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. राणपुर, प्रले. ग. वृद्धिविजय (गुरु ग. लब्धिविजय); गुपि.ग. लब्धिविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०, ४-५४३२-३६). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३. भाष्यत्रय-टबार्थ, मु. मेरुधीर, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तु क० वांदीने वांदव; अंति: ते स्युं भीरु भाव विरहित. ९४६७८. (#) वसतिदानादि विषयक कथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १५४५१-५३). कथासंग्रह-वसतिदानादि विषयक, प्रा.,सं., गद्य, आदि: वसही सयणासण भत्तपाणे; अंति: तृतीयभवे मोक्षः, कथा-८. For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४६७९ (+) सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १६९७, पीष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ९, गृही. मु. जीवराज दत्त. मु. रायमल्ल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२५x१०.५ १२५३३). "" सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक १००. ९४६८० (+) सूक्ति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९-५ (४ से ५ १२, १७ से १८) = १४, प्र. वि. हुंडी सुक्तावली., पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२६११, १५४५४). " सूक्ति संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (१) स्वस्ति श्रीवर्द्धमानं ०, (२) प्रणम्यार्हते वादौ वा; अंति: कृत्य खलु पिछति, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं. वि. सूक्तमौक्तिक व सूक्तमालिका दोनों कृतियां संयुक्त रूप से चल रही हैं.) ९४६८१ (+) भक्तामर स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८६२, चैत्र कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल बिलाडा, प्रले. मु. हुकमचंद्र, पठ. क्र. देवीचंदजी; मु. खूबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१०, ३X३४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलि; अति मानतुंग० लक्ष्मी, श्लोक-४४. , भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्ताम क० भक्त करि कै; अंति: (१) कहयौ मी मै मानतुंगै इति, (२) फूल सेह तइसी स्तवनमाला छे. ९४६८२. (+) आराधनासूत्र, संपूर्ण, वि. १६५३, चैत्र कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ३१, ले. स्थल. स्तंभतीर्थ, पठ. मु. वर्द्धमान ऋषि (गुरु ग. अमृत गणि); गुपि. ग. अमृत गणि (गुरु ग. शिवचंद्र ); ग. शिवचंद्र; राज्यकाल आ. राजचंद्रसूरि (गुरु आ. समरचंद्रसूरि, पायचंदगच्छ); गुपि. आ. समरचंद्रसूरि (गुरु आ. पार्श्वचंद्रसूरि पार्श्वचंद्र गच्छ); आ. पार्श्वचंद्रसूरि (गुरु आ. साधुरत्नसूरि, नागपुरीयबृहत्तपागच्छ); अन्य. सा. राजबाई, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी आराधनापत्र, संशोधित कुल ग्रं. ६००, जैदे., (२५x१०.५, ११४२९-३२ ). 1 आराधनासूत्र, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु.. पद्य वि. १५९२, आदि जिनवर चरण युगल पणमेस; अति पासचंद० चतुर विचारि, गाथा- ४०६. 1 "" ९४६८३. (*) चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ६ प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२५.५X१०.५, १३x४१-४६). आषाढकार्तिकफाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, सं., गद्य, आदि सामायिकावश्वकपौषधानि अति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रशस्त भावप्रतिक्रमणे मार्गदृष्टांत शीर्षक मात्र तक लिखा है.) ९४६८४. (+#) दस अछेरा दृष्टांत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१ (१) = १०, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी दस अछेरादृष्टांत, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५x१०, ११४३२-३४). १० आश्चर्य वर्णन, प्रा., मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "महाबल राज ऋषि" पाठ से "नेहने काया संकोची" तक है.) ९४६८५ नियंठा बोल, संपूर्ण, वि. १९१५, माघ कृष्ण, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पू. ७, ले. स्थल, धांग्रधा, अन्य, मु. अमरसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: नियंठाबोल., दे., (२५.५X१०.५, १४४१८-२२). नियंठा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणा१ वेय२ रागे३; अंति: ६ छठा उद्देश मध्ये छ. ९४६८६. (+४) वृत्तरत्नाकर सह टीका व लघुगुरुक्रिया मात्रा विचार, अपूर्ण, वि. १८२४, चैत्र शुक्ल, ९, जीर्ण, पृ. २७-६ (३ से ८) = २१, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी: छंदोवृत्ति, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है. जैवे. (२५x१०.५, १५-१६४४७-५२). For Private and Personal Use Only १. पे. नाम. वृत्तरत्नाकर सह टीका, पृ. १आ-२६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. वृत्तरत्नाकर, केदार भट्ट, सं., पद्य, आदि: सुखसंतानसिध्यर्थं नत्वा; अंति: वृत्तरत्नाकराख्यम्, अध्याय-६, ग्रं. १८९, (पू.वि. अध्याय-९ श्लोक-११ से "प्राच्यवृत्तिनामछंद" अपूर्ण तक नही है.) वृत्तरत्नाकर-बृहद्वृत्ति, ग. सोमचन्द्र, सं., गद्य, वि. १३२९, आदिः यत्पादाग्रनखांशुराजिररुणा; अंति : (१) योगाज्जातानि किंचिदधिकानि, (२) हितानिहिविङितानपरं ग्रं. ११९०. , Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. लघुगुरुक्रियामात्रा छंदोविषयक विचार, पृ. २६आ-२७आ, संपूर्ण. गुरुलघुक्रियामात्रा छंदोविषयक विचार, सं., प+ग, आदि: संख्यांकसजेत्पृष्टान् अति: (१) एवमज्ञेपिज्ञेयं, (२) बीजा अगरता हेठलि लघु दीजड़. ९४६८७. (*) चार प्रत्येकबुद्ध रास, संपूर्ण वि. १८०३, पौष कृष्ण, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३४, ले. स्थल सिमरोल प्रले, मु. करणजी (गुरु मु. मंगलजी); गुपि. मु. मंगलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : चार प्रत्येकबु., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. ग्रं. १२४९, जैदे., (२५.५X१०.५, १५X३४). कुल ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलड; अंतिः आणंद लील विलास, खंड-४, गाथा ८६२. ग्रं. ११२० (वि. सर्वढाल - ४४.) ९४६८८. (*) गुणस्थानक्रमारोह सह स्वोपज्ञ अवचूर्णि संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २०, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. १४५०, जैवे., (२६X११, १७x४३-५३). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्म, वि. १४४७, आदि गुणस्थानक्रमारोह हत; अंतिः रत्नशेखरसूरिभिः, लोक-१३५. गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि. सं., गद्य वि. १४४७, आदि अहं पदं हृदि; अंतिः प्रकटित इत्यर्थः. , ९४६८९. (+) उपदेशमाला सह टीका व अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रले. सा. सत्यश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र - ११अ पर सं. १७९९ आषाढ कृ. २ बुधवार को प्रतलेखन प्रारंभ का उल्लेख है. पत्र १४अ पर प्रतिलेखिका का उल्लेख है. लिखावट से प्रत १९वी की लगती है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x१०.५, १६-१८४४४-५२). " उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ तक है.) उपदेशमाला-वृत्ति, ग. रामविजय, सं., गद्य, वि. १७८१, आदिः श्रेयस्करं कामितदान; अंति: (-), (वि. टीकान्तर्गत संलग्न है.) उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (१) नत्वा विभू सकलकामितदान, ( २ )नमिऊण शब्देन नमस्कारं; अंति: (-), (वि. अवचूरि टबार्थ शैली मे है.) ९४६९१. (*) सिंदूरप्रकर सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें त्रिपाठ-संशोधित, जैदे., (२५X११.५, १६-१८४५१-५३). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि सिंदूर प्रकरस्तपः करिशिरः अति सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, 1 द्वार - २२, श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर- टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य वि. १६५५, आदि श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा अति: प्रकरनाम्नी व्यरचिता कृता. ९४६९२. (*) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, संपूर्ण वि. १८२६ कार्तिक शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पू. १५, प्रले. पं. कपूरचंद (गुरु मु. प्रतापसी); गुपि. मु. प्रतापसी (गुरु उपा. करमचंद); उपा. करमचंद (गुरु उपा. गांगजी गणि); उपा. गांगजी गणि (गुरु उपा. आसा गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४११.५, १५४४६). " जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा. गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१, (वि. अंत में ग्रंथ में वर्णित २० कथाओं के नाम दिये गए हैं.) जै.., ९४६९३. (+) गमा विस्तार, संपूर्ण वि. १८९१, पौष शुक्ल ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, अन्य. मु. प्रेमचंद ऋषि (गुरु मु. रामजी ऋषि); गुपि. मु. रामजी ऋषि; अन्य. मु. कर्मचंद ऋषि (विजयगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२४.५X११.५, ६-२०X१४-६६ ). भगवतीसूत्र-गम्माशतक यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: असन्नीतिर्जवपंचेंद्री; अंति: शतक २४मों गमा समाप्त. For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४६९४. (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल, रामसिणनगर, प्रले. ग. ज्ञानविजय पंडित (गुरु पं. अजितविजय); गुपि.पं. अजितविजय (गुरु पं. रत्नभूषण पंडित); पं. रत्नभूषण पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पच्चक्खाणभा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११, ५-६४३२-४५). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, (वि. १८८६, माघ शुक्ल, १०, मंगलवार) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनेइ वांदवा योग्य; अंति: भाष्यं पांमया अनंता जीवा, (वि. १८८६, माघ शुक्ल, १५, रविवार) ९४६९५ (+#) पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ७-८४३६-४०). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: मणसा मत्थेण वंदामि. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकरसिद्ध; अंति: मनइं करी वांदउ छउं. ९४६९६.(+) प्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ५४२८-३४). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहं० पंचिंदिय; अंति: (-), (पृ.वि. "एवमहं आलोइअ निदिअ" पाठ तक है.) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत प्रतिमाहरु० पांच; अंति: (-). ९४६९७. (+) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:कल्पांत०., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५-१६x४५-४८). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, वि. १६४०, आदि: पुत्राः पंचमतिश्रुता; अंति: (-), (पू.वि. "सिअवत्थपाउअंगो जसयमुल्लंसयसहस्सं" पाठ तक है.) ९४६९८ (#) शिक्षा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्रले. ग. कीर्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३-१५४३३-३८). ७ व्यसन निवारण सज्झाय, म. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: समरुं हुं सरसति सामिनी; अंति: प्रीतिविमल० मुगतइ संचरइ, गाथा-१६, संपूर्ण. ९४६९९. अनेकांतजयपताकासूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:अनेकांतजयपताकासूत्रं., जैदे., (२६४११, १३४३८-४७). अनेकांतजयपताका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति विनिर्जितरागः; अंति: (-), (पृ.वि. "सर्वधिकस्मानेक जन्म" पाठ तक है.) ९४७०० सिरिसिरिवाल कहा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २४+१(१५)=२५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १५४५०-५४). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाइं झायित; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-९६५ अपूर्ण तक है.) ९४७०१. (+) शांतिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५-१८४३२-४३). शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्वान्; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रस्ताव-२ तक लिखा है.) ९४७०२ (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., अन्य. मु. चरित्रविजय; मु. कंचनविजय; मु. ज्ञानविजय; मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १अ पर प्रत लेन-देन संबंधी उल्लेख है., संशोधित., जैदे., (२६४११, ९-१०४३१-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-१ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ कल्पसूत्र - टबार्थ, मु. हेमविमलसूरि- शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि नमस्कार होज्यो बार गुण अंति: (-). कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी अति: (-). ९४७०३. (+*) आवश्यकसूत्र की अवचूर्णि संपूर्ण वि. १४५० श्रावण शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३५ प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४११.५, ३६४८४). 3 आवश्यक सूत्र- अवचूर्णि ॥, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य वि. १४४०, आदि प्रारभ्यते श्री अंति: नयमतमाह नावं सव्वे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९४७०४ (२) पर्युषणाद्यष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९११, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्रले. मु. वृद्धिचंद्र (गुरु मु. सरीचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमद्वामेवजिन प्रसादात्, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १०x३३-३८) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीश शांतिकर्त्ता अति: पद्मबंध विलोक्य तत्. ९४७०५. (+) भक्तामर स्तोत्र सह गुणाकरीय टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९-१२(१ से १२)=१७, प्र.वि. हुंडी:भक्तामरटीक., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २६११, १५४६२). " भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि (-) अति मानतुंग० लक्ष्मी, श्लोक-४४ (पू.वि. श्लोक-२२ से है.) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: (-); अंति: पमतिः ० प्रायशः संति, (पू.वि. श्लोक-२१ की टीका अपूर्ण से है.) ९४७०६ () सूक्तमाला, संपूर्ण वि. १९३१ आश्विन १४ शनिवार, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल कांबा, प्रले. मु. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सूक्तावली पत्र ., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१०.५, १२-१३X३९-४१). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लि वृंदजी अंतिः मोक्ष साधे जि कोई, वर्ग - ४, श्लोक - १७६. ९४७०७, (+) परमात्मछत्रीसी, प्रश्नोत्तरमाला आदि संग्रह, संपूर्ण वि. १९१४ आश्विन शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ४, ले.स्थल. कांबा, प्रले. पं. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (८५३) पोथी प्यारी प्रांणथी, दे., ( २६x११.५, १३x४४-४७). ९ १. पे. नाम. परमात्मछत्रीसी, पू. १अ २अ संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: परमातमछतीसी. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदिः परमदेव परमातमा परम; अंति: चिदानंद० आतम को उद्धार, गाथा-३६. २. पे. नाम. प्रश्नोत्तरमाला, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: प्रश्नोत्तरमाला. प्रश्नोत्तररत्नमाला, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य वि. १९०६ आदि परम जोत परमातमा परमा अति वाणी कही भवसायर तरी गाथा ६२. 1 1 ३. पे नाम पुगलगीता, पृ. ४आ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: पुगलगीता. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि संतो देखीये जे परगट, अंतिः चिदानंद सुखकारी, गाथा- १०८. ४. पे. नाम. आत्मशिक्षा, पृ. ८अ - ११आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : आत्मशिख्या. क. हंसरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि सकल साखे वर्णव्य; अंतिः घरि जय कमला धीर थाय, गाथा ११०. ९४७०८. (*) आवश्यकसूत्रनिर्युक्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २६-४ (१ से ४)=२२, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ७२४, जैये., (२५.५X१०.५, १३x४२-४६). आवश्यक सूत्र-निर्मुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि (-); अति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पीठिका गाथा ५९ अपूर्ण से है व उपोद्घातनिर्युक्ति गाथा - ६९ तक लिखा है., " वि. उपोद्घातनिर्युक्ति पूर्ण किये विना ही पूर्णतासंकेत व ग्रंथाग्र दे दिया गया है.) ९४७०९. (२) देवराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९- २ (१,३ ) =७, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५.५X११, ८-११X३२-३५). For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची देवराजवच्छराज चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१४ अपूर्ण से गाथा-२७ अपूर्ण तक गाथा-३९ अपूर्ण से है व गाथा-१४० अपूर्ण तक लिखा है.) ९४७१० (+) नवतत्त्व भेद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०१, फाल्गुन कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १२४३३). १.पे. नाम. नवतत्त्व भेद, पृ. १अ-१४आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम जीवतत्व जीवरो; अंति: द्रव्य बीजा ५ असर्वगत. २. पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, पृ. १४आ-२१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम अष्टकर्म कहीइ छइ; अंति: धर्मनइ विषइ उद्यम करवौ. ३. पे. नाम. संयम के १७ भेद, पृ. २१आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: पंचाश्रवाद्विरमणं; अंति: दंडत्रय सतरेवी संजम, गाथा-१. ४. पे. नाम, पंचप्रमाद गाथा-१, पृ. २१आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: मज्ज१ विसय२ कषाया३; अंति: पमाया जीव पाडति संसारे, श्लोक-१. ५. पे. नाम, ज्योतिषचक्र विचार, पृ. २१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चंद्रमा दोय सूर्य भरत; अंति: भरतखेत्र आधो पुषार्ध. ९४७११ (+#) थविरावली व आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १९४४६-५४). १.पे. नाम. थविरावली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: नाणस्स परूवणं वुच्छं, गाथा-५०. २. पे. नाम. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, पृ. १आ-२७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: (-), (पू.वि. वन्दनकाध्ययन की गाथा-४० अपूर्ण तक है.) ९४७१३. (+) पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. संक्षिप्त परिचय सहित., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १५४३०-४१). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानसामी; अंति: (१)ओछु मिच्छामि दक्कडं, (२)धर्मतः सकल मंगलावली. ९४७१४. (+) सिंदूरप्रकर काव्य, संपूर्ण, वि. १९२७, भाद्रपद कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. विदासर, प्रले. भेरुचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११.५, ११४२८-३४). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. ९४७१५ (+#) नवस्मरण व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-७(१ से ६,११)=१०, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ११४२९-३४). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. ७अ-१६अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, स्मरण-९, (पू.वि. अजितशांति स्तवन गाथा-२० अपूर्ण तक व भक्तामर स्तोत्र श्लोक-२२ अपूर्ण से श्लोक-२८ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण. __ आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ९४७१६. (#) आठ कर्मप्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)-५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:आठकर्मनी प्रकृति., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४३२-३८). For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ८ कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. "सातावेदनी १ असातावेदनी २" पाठ से "तै जीव थोडा काल माहे" पाठ तक है.) ९४७१९. आराधना, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७-१(६)=६, अन्य.पं. वीरविमल गणि (गुरु आ. आनंदविमलसरि); गुपि. आ. आनंदविमलसूरि (गुरु उपा. धीरविमल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आराधना., जैदे., (२६४१०.५, १३४४६). - पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, (पू.वि. गाथा-५३ अपूर्ण से गाथा-६५ अपूर्ण तक नहीं है.) ९४७२०. योगशास्त्रांतर्गत सुभाषितश्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)=७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, २३४६०-६४). योगशास्त्र सुभाषितानि, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३९ अपूर्ण से ५३८ अपूर्ण तक है., वि. त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्रगत सुभाषित श्लोक भी इसमें समाहित हैं.) ९४७२१ (+#) उत्तराध्ययन कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, २१४५१-५७). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: एक आचार्यनइं एक चेलो; अंति: (-), (पू.वि. भरतचक्रवती का मुद्रिकापतन व वैराग्यभाव प्रसंग अपूर्ण तक है., वि. बालावबोध शैली में कथा है.) । ९४७२२. (4) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक का बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. हुंडी:प्रसनोतरी पत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३६). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिलै बोलै तीर्थंकर; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-५३ अपूर्ण तक लिखा है.) ९४७२३. (+) कल्याणमंदिर पार्श्वनाथ स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ४४२७-३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, क. दौलतराम, मा.गु., गद्य, आदि: परमकल्याण का मंदिर उदार; अंति: (१)मोक्षने प्राप्त होय छे, (२)दौलतराम० परमसुख निको धाम. ९४७२४. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३५). जिनस्तवनचौवीसी, आ. हंसरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: सकल वंछित सुख आपवा; अंति: प्रगट्यो पुण्य पडू रे, स्तवन-२४. ९४७२५. शीलोपदेशमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.६, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३९). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, कथा-४३, गाथा-११५. ९४७२७.(#) लघुक्षेत्रसमाससूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४४२-४९). लघक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय पईट्ठि; अंति: सव्वंपि सव्वत्त कवित्ता, अधिकार-६, गाथा-२६१. ९४७२८. (+) सिंदूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९१०, माघ कृष्ण, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. कांबा, प्रले. पं. तिलोकचंद; पठ. मु. नरसिंग (गुरु पं. तिलोकचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रकरण पत्र., संशोधित., दे., (२६४११.५, १२४४२-४५). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४७२९. (#) चतुःशरण प्रकीर्ण सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १० प्र.वि. कुल ग्रं. २५३. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, ४X३४-३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्म, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरई उक्कित; अंति: वंझ कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टवार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं गणद्रान्; अति: थोवो बालजणविबोहणट्ठाए. ९४७३० (+) विचार संग्रहणी सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८३४, चैत्र कृष्ण, ८. शुक्रवार, मध्यम, पृ. १८, ले. स्थल, रामपुर, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि (गुरु मु. ताराचंद); गुपि. मु. ताराचंद (गुरु मु. सामजी); मु. सामजी (गुरु मु. रामजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी विचारसंग्रह., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १२८१, जैवे. (२५x१०.५, ७४४७-५२). विचार संग्रहणी, आ. रूपसिंह ऋषि, प्रा., पद्य, वि. १६९३, आदि: तियसिंदनरिंदणयें पणमित्तु; अंति: रम्मे सारंगपुरेयवरनगरे, गाथा-२७३. विचार संग्रहणी- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि त्रिदशदेवताना इंद्रना अति नामप्रधान नगरइ विषइ. ९४७३१. (+#) नंदीसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६०-४४ (१ से ४४ ) = १६, प्र. वि. हुंडी : नंदीटीका., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १८x४६-५४). नंदीसूत्र - टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., बीच के पाठांश हैं.) ९४७३२. दशवैकालिक दशाध्यवन, १२ व्रत व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र. वि. हंडी सिज्झाय. दे. (२४.५X१०.५, १२X४०). , " १. पे. नाम. दशवैकालिक दशाध्ययन सज्झाय, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण. दशवेकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि धरम मंगल महिमानिलो; अति सदाजी जयतसी जय जयकार, अध्याय- १०. २. पे. नाम. १२ व्रत सज्झाय, पू. ५अ ५आ, संपूर्ण. . कीर्तिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण पाय प्रणमीजै, अंति: कीरतसागर सुभ गुण गाया, गाथा-१३. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. पदेशिक सज्झाय गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासमै चिंतवै ए अति तो जइये मुगति मझार कै, गाथा-१०. ९४७३३. (*) पंचप्रतिक्रमण, छमासीतपचितवन विधि व दूहा, संपूर्ण, वि. १९०६ माघ कृष्ण, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. ३, ले. स्थल. पालीताणानगर, प्रले. मु. विनयकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५x१०.५, १४X३९). १. पे नाम. पंचप्रतिक्रमण सूत्र विधिसहित, पृ. १अ- १५अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि (१) प्रणम्य श्रीजिनाधिशं, (२) तिहां प्रथम प्रभात अंतिः पोसह सामायिक पारी सांभलै. २. पे. नाम. छम्मासी तपचिंतन विधि, पृ. १५अ - १५आ, संपूर्ण. छमासीतपचितवन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि श्रीमहावीरसामिना अति धारी काउसम्म पारे ३. पे नाम प्रतिक्रमणविधि दूहा, पृ. १५आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संबंधी दूहा, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचंदसुरिंद नितु राज, अंतिः अशुद्ध इह सो सोधियो सुजान, गाथा-३. ९४७३४. (+) पौषधविधि संग्रह व विविध मत विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, ११X३१). १. पे नाम, पौषधविधि संग्रह. पू. १२-५आ, संपूर्ण संबद्ध, प्रा.मा.गु., प+ग, आदि पहिलिइ आठही पडिकमइ तस अति गुरुणो जिन पन्नत्तं तत्तं. २. पे. नाम. विविध मत विचार, पृ. ५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १३ विविध विचार मत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, आदि: तपा कहे झीया पहिली खरतर अति मिटे जइ केवलि पासे गछे, गाथा १. ९४७३५. (*) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ५, प्र. वि. पंचपाठ संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६११, ४-७४३२-३६). " लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य वि. २४वी, आदि जिणदंसण विणा जं लोअं; अति: धम्मकित्ति० , इह भिसं, गाथा - ३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जं लोयंक० जे लोक पूरयंतिक; अंति: जिम एहनइ विषइ भमाइ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाही. ९४७३६. गतागतिना बोल, संपूर्ण, वि. १९०२, चैत्र कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. श्राव. जेसंग वर्धजेचंद शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गतागतिबो., कुल ग्रं. १३०, दे., (२६x११.५, ११X३०). ९४७३७. ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकीना अप्रज्याप्ता; अंति: पांचसेत्रेसठनि ३४ बोल. . (+) नवतत्त्व प्रकरण के बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. हुंडी : नवतत्त्व, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे. (२५४११, ९-१२x२५-३०). नवतत्त्व प्रकरण-बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि जीवतत्त्व प्राणचेतनावंत, अंतिः अंतरायकर्म भंडारी समान. ९४७३८. खंडाजोयणविधि दश बोल, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १५-१० (१ से १०) =५, जैवे. (२४.५४१०.५, १९४४५-५०% लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हजार बावन योजन देश ऊणा, (पू.वि. "४ कला तेहनी बाहा ३३ हजार" पाठांश से है.) ९४७४०. कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम पू. १५-१० (१ से १०) = ५ पू.वि. बीच के पत्र है. जैदे. (२५x१०.५, १९५५२-५८). יי कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति: (-) (पू.वि. इंद्र कृत शक्रस्तव अपूर्ण से "१० अच्छेरा अपरकंका गमन वर्णन अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४७४१. (+) विचारषट्त्रिंशका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. ग. मानविजय, पठ. श्राव. गंगदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ४-५X३८-४६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: एसा विनत्ति अपहिया, गाथा-४२. ९४७४२. (+*) कर्मविपाक प्रथम कर्मग्रंथ का विषयसूचक यंत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २१+१ (११) २२, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२५X१०.५, १२x२५-३२). " कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ - १-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा., यं., आदि: (-); अंति: (-). ९४७४४. (*) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १० ३(२ से ३ ७) ७, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, १२३४-४०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से श्लोक-१३ अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नही हैं.) कल्याणमंदिर स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि मंगलीकनुं घर वांछितनुं अति: थोडे काले मुक्ति जास्ये. ९४७४५. (*) प्रश्नोत्तररत्नाकर उल्लास ३ अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ९-१ (३)=८. पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १९X६०). प्रश्नोत्तररत्नाकर, गच्छा. सेनसूरि मु. शुभविजय, सं., गद्य, आदि (-); अति (-) (प्रति अपूर्ण, पू.वि. "इत्येतत्कालिकाचार्यपञ्चक" पाठांश तक है व बीच के कुछ पाठांश नहीं है.) For Private and Personal Use Only ९४७४६. (+) पंचमोद्यापन विधि व ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. मु. खंतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२६४१२, १२४३३) Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. पंचमोद्यापन विधि, पृ.१अ-५आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीउद्यापन विधि, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु.,सं., प+ग., आदिः श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा०; अंति: भुक्ता मुक्तिं गमिष्यति. २. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिरुदीरिता, श्लोक-११. ९४७४७. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७९६, कार्तिक कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ.६,प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (१३५०) जिहां लगि मेरु महीधरा, (१३५१) शिवराधन मुनिवरतणी, जैदे., (२६४११.५, १५४३८). स्तवनचौवीसी, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा वालेसर अरिहंत; अंति: निसाण वजाव्या रे, स्तवन-२४. ९४७४८. (4) विविध कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-१२(१ से १२)=१४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १२४३८-४३). कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "कुलटा स्त्री कथा" अपूर्ण से "मांसभक्षण कथा" अपूर्ण तक है.) ९४७४९ (+#) थूलिभद्रइकवीसो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. पासदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३३). स्थूलिभद्रएकवीसो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: आविउ आविउ रे आव्यउ जलहर: अंति: लावणयसमय० अंग निरमल थाईयै, गाथा-४२. ९४७५० (+) चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २०-१(१)=१९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४११, ८४५४-५६). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः (-); अंति: कथामकरोत् पाठकराजवल्लभः, श्लोक-५०९, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: उपाध्याय राजल्लभ इसे नामे. ९४७५१ (+) भक्तामर सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८२, वैशाख शुक्ल, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. स्तंभतीर्थबंदिर, प्रले. मु. प्रतापविजय (गुरु पं. अमीविजय); गुपि.पं. अमीविजय (गुरु पंन्या. वर्द्धमानविजय); पं. वर्द्धमानविजय (गुरु ग. शिवविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भक्तामर.ट०.बा०.प०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२५४१०.५, ४४३२-३९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणित मौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-वार्तिकबालावबोध, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)भक्तिवंत जे देवता तेणे; अंति: (१)स्वर्गापवर्ग संबंधी संपदा, (२)युक्त प्रीतिविजय तेणे, (वि. बालावबोध टबार्थ की शैली में है.) ९४७५२. ३३ बोल थोकडा व पांत्रीसवाणीना गुण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)-७, कुल पे. २, ले.स्थल. आगरा, प्रले. दयाराम; पठ. मु.खेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १८-१९४३०-४०). १.पे. नाम. ३३ बोल थोकडा, पृ. २अ-८अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ३३ बोल थोकडा-जैन पदार्थज्ञान, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: देवजस१९ अजितवीर्जसामी२०, (पू.वि.८ मद से है.) २. पे. नाम. पांत्रीसवाणीना गण, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. ३५ जिनवाणीगुण वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संस्कार सहित वचन बोल; अंति: करता अविछिन्न वचन कहे, अंक-३५. ९४७५३. (+) चोमासा व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:चौमासारो वखा०., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४५४-६०). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामाइकावश्यकपौषधानि; अंति: (-), (पू.वि. वसंतनगर भाग्यवंत शेठ दृष्टांत अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९४७५४. (+) विक्रमादित्य चउपई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १७X४२-४८). विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरिसादाणी प्रणमीइं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२५ तक है.) ९४७५५. अढारपापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८११, आश्विन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. भिन्नमाल, प्रले. मु. हरिसागर (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पापस्थानक., जैदे., (२५४११, १३-१४४३८-४२). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलं कहि; अंति: __ वाचकजस इम आखै जी, सज्झाय-१८, ग्रं. २११. ९४७५६. अषाढाभूति रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०.५, १४४४०-४८). आषाढाभूति रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१० गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ९४७५७. (#) पूजा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४२६-३८). १.पे. नाम. सत्तरभेदी पूजा, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सत्तरभे०. १७ भेदी पूजा, वा. साधकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: ज्योति सकल जगि जागती; अंति: सब लीला सुख साजै, ढाल-१७. २. पे. नाम. स्नात्र विधि, पृ. ६आ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्ना० विधि. स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चउत्तिसे अतिशय जुओ; अंति: देवचंद० सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६०. ३. पे. नाम, अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १०आ-१३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अष्टप्रका०. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: (१)गंगा मागध क्षीरनिधि औषध, (२)स्वस्ति श्रीसुख पूरवा; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, ढाल-८, गाथा-६६. ४. पे. नाम, वस्त्र पूजा, पृ. १३आ, संपूर्ण.. वस्त्रपूजा श्लोक, सं., पद्य, आदिः शक्रो यथा जिनपते; अंति: क्लेशक्षयाकांक्षया, श्लोक-२. ५. पे. नाम. नवपदवास पूजा, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नवपदवासक्षेपपूजा दोहा, मा.ग., पद्य, आदि: जो करि सिर अरिहंत पद अमल; अंति: (-), (पू.वि. दे ९४७५८. चरित्र व गजल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६७, कार्तिक शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. १०, दे., (२५.५४११, १५४४२-४६). १. पे. नाम. चंद्रलेहामहासती चउपई, पृ. १आ-१७अ, संपूर्ण, वि. १९६७, आश्विन शुक्ल, ५, शनिवार, पे.वि. हुंडी:चंद्रलेहा०. चंद्रलेहा रास, म. मतिकशल, मा.ग., पद्य, वि. १७२८, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: मतिकुशल हवें तेह, ढाल-२९, गाथा-६२४. २. पे. नाम. निर्मोही चरित्र, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नीर्मोहीचरित्र. निर्मोहीराजा पंचढालीयो, म. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: निरमोही गुण वरणवं; अंति: रे लाल पंच ढाल प्रसीध रे, ढाल-५. ३. पे. नाम, गुरुज्ञान गजल, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गजल संग्र०. औपदेशिक गजल-गुरुज्ञान, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: मिलीये मनुष्यकी काया कभी; अंति: देख चरम को आनंद आते हैं, गाथा-७. ४. पे. नाम. मुरसद की नसीयत गजल, पृ. १८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गजल संग्र०. For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक गजल-नशीयत, मु. हीरालाल, उ.,पुहि., पद्य, आदि: मुरशद की नशीयत को; अंति: हीरालाल० बताता है, गाथा-७. ५. पे. नाम. हीदायत गजल, पृ. १८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गजल संग्र०. औपदेशिक गजल-हिदायत, मु. हीरालाल, उ.,पुहिं., पद्य, आदि: आलिम से मालूम होना; अंति: हीरालाल० में मीया, गाथा-५. ६. पे. नाम. तकदीर की गजल, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गजल संग्र०. औपदेशिक गजल-तकदीर, मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, वि. १९६४, आदि: फिकर नहीं कीजीये कोई सवी; अंति: चौष्ट के साल में गाया, गाथा-७. ७. पे. नाम, औपदेशिक गजल-तकदीर, पृ. १९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गजल संग्र०. म. हीरालाल, पुहि., पद्य, वि. १९६४, आदि: अपनी अपनी तगदीर के; अंति: बडे तकवीर हीरालाल, गाथा-६. ८. पे. नाम. औपदेशिक गजल, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:स्तवन संग्र०. मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि: अब ज्ञान का दरपण देख; अंति: हीरालाल० जगत से तरे, गाथा-६. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद-कर्मगति, पृ. १९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवन संग्र०. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: क्या कहना कुछ कर्म गती; अंति: हीरालाल० भागो मती रे, गाथा-७. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद-संयम पालन, पृ. १९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवनसंग्र०. म. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: चतुर नर देखो ग्यान; अंति: हीरालाल० संजम को साथ, गाथा-६. ९४७५९ (+) प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १८-२०४२८-३८). प्रश्नोत्तर संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीज्ञाता सूत्रे द्रुपदी; अंति: स्यु जाणे मूलज दया जाणिजो. ९४७६०. सेबूंजा उद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. पं. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:से०.द्धार., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३५). शत्रुजय उद्धार, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरवर विमल गिरव; अंति: नित करेवा देह दंशण जय करो, ढाल-६, गाथा-१२३. ९४७६१ (4) गोडीपार्श्वनाथ, पार्श्वनाथ व त्रिपुरामाता छंद, संपूर्ण, वि. १८०५, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. वा. पुन्यसार; पठ. ग. नित्यभक्ति (गुरु ग. पुन्यसारजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १५४४५). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन संपो सारदा मया; अंति: इम तवीयो छंद देशंतरी, गाथा-४७. २.पे. नाम. गोडीपार्श्व छंद-आठ भयनिवारक, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: धरमसीह ध्याने धरण, गाथा-२९. ३. पे. नाम. त्रिपुरामाता छंद, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.. जगदंबा छंद, सारंग कवि, मा.गु., पद्य, आदि: विजया सांभलि वीनती; अंति: भगति भाव इणि परि भणउ, गाथा-२८. ९४७६२ (+#) भववैराग्यशतक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९४, कार्तिक शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. स्वर्णगिरि, प्रले. उपा. क्षमाप्रमोद गणि (बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); पठ. श्राव. जसवंत फतेहचंद मोदी; श्राव. जगन्नाथ मोदी; श्राव. ताराचंद मोदी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वैराग्यशतक., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, ४४३२-३८). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: लहइ जीओ सासयठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: च्यारगति रुप संसार ते; अंति: धर्म नइ विषई उद्यम करिवउ. ९४७६३ (#) जयतिहअण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५५-६०). For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: त्रिलोकश्लाधितः, गाथा-३०, ग्रं. २००. ९४७६४. (+) उपदेशरत्नमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४)=५, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने से अनुमानित पत्रांक दिया है., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४२-४४). उपदेशरत्नमाला, आ. सकलभूषण, सं., पद्य, वि. १६२७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., परिच्छेद-९ अपूर्ण से है व परिच्छेद-११ अपूर्ण तक लिखा है.) ९४७६५ (+) जीवविचार, नवतत्त्व प्रकरण व चतुर्विशंतिदंडक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ११४३८). १. पे. नाम, जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण, वि. १८४३, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, गुरुवार, प्रले. पं. अमृतकुशल (गुरु ग. रामकुशल, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: १३ एग १४ णिक्काय १५, गाथा-६०. ३. पे. नाम, चतुर्विंशति दंडक विचार, पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४३. ९४७६६. (#) नवतत्त्व का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-८(१ से ८)=७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्वबाला०. अन्य मूल पत्रांक ५२२ से ५२८ भी है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १६x४२-४६). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आस्रवतत्त्व अपूर्ण से मोक्षतत्त्व अपूर्ण तक ९४७६७. (+) धर्मपरीक्षा कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-५(१ से २,४ से ५,१०)=७, प्र.वि. हुंडी:धर्मपरीक्षा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, १२४२८-३२). धर्मपरीक्षा कथा, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., बीच के पाठांश हैं.) ९४७६९ (+) स्तवनचोवीसी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-२०(१ से २०)=८, ले.स्थल. रानेर बंदर, प्रले. मु. विवेकविजय (गुरु मु. लब्धिविजय); गुपि. मु. लब्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रथमादर्श प्रत पर से प्रतिलिपि की जाने की संभावना है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ९२५, जैदे., (२६४११.५, ५४४०). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: अनंत सुखनो सदा रे, स्तवन-२४, ग्रं. १७२५, (पू.वि. सुव्रतजिन स्तवन से है.) स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: आप सरुपइ भोक्ता छो, ग्रं. ८२८. ९४७७० (+#) आदिजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १२४३९-४३). आदिजिन विवाहलो, म. गणनिधानसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सासनदेवीय पाय प्रणमेवीय; अंति: बोलेइ सेवक इम मुदा, ढाल-४४, गाथा-२४३, संपूर्ण. ९४७७२ (+) भवभावना प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १८-२१४५०-७०). भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण नमिरसुरवर मणि; अंति: हेम० कीरउ अलंकारो, गाथा-५३१. For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४७७४. (+) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६-२९(१ से २८,३०)=१७, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, २०४४७). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ अपूर्ण से अध्ययन-८ __अपूर्ण तक है.) ९४७७५ (+) श्रेणिक अभयकुमार चरित्र प्रथमखंड लक्षण, संपूर्ण, वि. १६९८, आषाढ़ कृष्ण, ३०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५२, प्र.वि. हुंडी:शरणीकरास., संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२५४१०.५,११४३७-४२). श्रेणिकराजा चौपाई, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: परम पुरुष प्रणमु सदा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९४७७६. (+) सौभाग्यपंचमी कथा का व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४२५). सौभाग्यपंचमी कथा-व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथां; अंति: सिद्धि नवनिधि पामीजे.. ९४७७७. (+) लोगस्ससूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७११, मध्यम, पृ. ७, प्रले. ग. माणिक्यविमल; पठ. श्रावि. माणिक्यबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ लाल अक्षर तथा अलग-अलग पदों में है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १६५, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३६-४१). लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्स उज्जोअगरे; अंति: सिद्धिं मम दिसंतु, गाथा-७. लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: लोगस्स उज्जोअगरे चउद राज; अंति: जनइ दिसंतु कहीइ दिओ. ९४७७८. (+) वसुधारानाम महाविद्या, संपूर्ण, वि. १८६१, माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ९४३८-४२). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंतिः शृणोति भोगं च करोति. ९४७७९ (+#) भक्तामर स्तोत्र का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १७४३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ.७, प्रले.पं. सिद्धसोम गणि (गुरु आ. विशालसोमसूरि), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११, ११४३८-४३). भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. देवविजय, पुहिं., पद्य, वि. १७३०, आदि: भगत अमरगण प्रणत मुगटमणि; अंति: देवविजय० गायो सब सुखकार, गाथा-४४. ९४७८०. सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:सुभाषितपत्र., जैदे., (२५४११, १४४३३-३८). सभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंच यत्र न विद्यते न; अंति: तोरंज्य सह कोइ, गाथा-१७६. ९४७८१ (+) योगोद्वहन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:योगविधि., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४११.५, १२-१७४२७-४८). योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आवश्यकाद्यं कालिकेषु; अंति: ८ एवं दिन ८ नंदि २. ९४७८२. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. १९, जैदे., (२५४११, १३४४०-४२). १. पे. नाम, एकादशी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति: समयसुंदर०कहु द्याहडी, गाथा-१३. २. पे. नाम. एकादशी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी रे नणदल; अंति: उदयरत्न०लीला लहेस्ये, गाथा-७. ३. पे. नाम. बीजदिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.ग., पद्य, वि. १८१९, आदि: वीरजिणेसर इम वदे रे; अंति: गणेशरूचि० वंद पाय, गाथा-१६. ४. पे. नाम. समुद्रपाल स्वाध्याय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ समुद्रपालमुनि सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी चंपामाहि वसे; अंति: उदयवाचक कहै० __ मोहनगार, गाथा-८. ५.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर साहिबा रे; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. ६. पे. नाम. ढंढणकुमार सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ढंढणऋषि सज्झाय, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिजीने वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. ७. पे. नाम. इलाचीपुत्र सझाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामेलापूत्र जाणीयै; अंति: (१)लब्धिविजय गुण गाय, (२)लबधिविजय मुनि गाय, गाथा-९. ८. पे. नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मारुं मन मोह्यु रे; अंति: कहेतां नावे रे पार, गाथा-५. ९. पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदि: आज तो बधाइ राजा नाभि; अंति: निरंजन आदिसर दयाल रे, गाथा-६. १०.पे. नाम. चोवीश तीर्थंकर स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रह समे भाव धरी; अंतिः प्रणमता नित होय जगीस, गाथा-५. ११. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तव, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वजी प्रगट; अंति: तुज पद पाया रे, गाथा-५. १२. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.. क. हिम्मत, मा.गु., पद्य, आदि: भवी जिव जपीये रे; अंति: म्या हिमत ध्यान रसाल, गाथा-९. १३. पे. नाम. बीजतिथि सझाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: नित नित विविध विनोद रे, गाथा-८. १४. पे. नाम. चेलणा महासती स्वाध्याय, पृ. ६आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखांणी राणी; अंति: समयसुंदर० भवतणो पार, गाथा-६. १५. पे. नाम. मेतारजऋषि सझाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदिः समदम गुणना आगरु जी; अंति: साधुतणी रे सज्झाय, गाथा-१४. १६. पे. नाम. रुषमणि सझाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, म. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामोगाम नेमि; अंति: जाइ राजविजे रंगे भणे, गाथा-१४. १७. पे. नाम, अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगध देस राजग्रही नगरी; अंति: साधुतणा गुण गाय रे, गाथा-१३. १८. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. म. ज्ञानविमल, पुहि., पद्य, आदि: वीर विना वाणी कोण; अंति: भेदि ग्यानविमलगुण गावे, गाथा-९. १९. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो; अंति: समयसुदंर कहे माहरीजी, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४७८३.(-) समगतना भेद, संपूर्ण, वि.१९वी, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. हंडी:समग०., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४११,१५४१६-३०). ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सासवादान समगत१ उपसमगत; अंति: मोक्ष जावानो उपाय छे. ९४७८४ (+#) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४२७). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिनेसर चरणकमल; अंति: विनवंत गुरु भणे ए, गाथा-४५. ९४७८५ (+#) १३ जीव स्थानक विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-७(१ से ७)=१०, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:१३जीवथानक., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४१२, १०४५६-५८). १३ जीव स्थानक विचार, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-)... ९४७८६ (#) अंतकृद्दशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-८(१ से ८)=५, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, ५४२५). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वर्ग-१ अपूर्ण से वर्ग-३ अपूर्ण तक है.) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४७८७. बारव्रत टीप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५, जैदे., (२६.५४११.५, १६४४३). १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, आदि: देव श्रीअरिहंत अढार; अंति: राखवी सम्यक्तथी डगवू नही. ९४७८८. चैत्रीपूनम देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, जैदे., (२६४११.५, १०x२८-३३). चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञानविमल घरि आवइ रे, देववंदनजोडा-५, (पू.वि. बीजू देववंदनजोडा स्तुति गाथा-२ अपूर्ण से है.) ९४७८९ (+) आराधना प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ७४४०). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सोक्खं, गाथा-७०, ग्रं.२४५. पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करी प्रणमीनइ; अंति: गुणिवउं इस्यु भाव. ९४७९० (#) नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. हुंडी:नवतत्व., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ४४३३). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: (१)अणंतभागो य सिद्धि गओ, (२)बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४९. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: एक सिद्ध अनेक सिद्ध. ९४७९१ (+) अनेकार्थ संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४२). अभिधानचिंतामणि नाममाला-अनेकार्थ संग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, __ आदि: ध्यात्वार्हतः कृतै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कांड-२ के श्लोक-१४० तक लिखा है.) ९४७९२. (+#) तपागच्छ पट्टावली सह स्वोपज्ञवृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-५(१ से ३,६,१२)=८, प्र.वि. पट्टानुक्रम दिया गया है., त्रिपाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १६x४०-९५). पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागर गणि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: दिंतु सिद्धिसुहं, गाथा-२१, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., गाथा-६ से १४ व गाथा-१६ से है.) पट्टावली तपागच्छीय-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: मम भद्रं प्रयच्छंतु, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. ९४७९३. (+) भगवतीसूत्र-शतक १२, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३७-३९). For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ __ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. शतक-१२ उद्देश-२ अपूर्ण तक ९४७९४. पांडव चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२६.५४११, १६४५०-५२). पांडव चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., पद्य, आदि: श्रियं विश्वत्रयत्रा; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चौरिगुप्त प्रवज्याग्रहण तक है., वि. संक्षिप्त पाठ है.) ९४७९५ (+) कामघट कथानक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-३(२,५ से ६)=६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कामघट., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०, ११-१३४३८-४२). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग., आदि: धर्मतः सकलमंगलावली; अंति: (-), (पू.वि. कामघटकथानक १से ८ श्लोक-१८ अपूर्ण से ३६, ६२ से १७० अपूर्ण व ९३ से वैराग्यशतक ९वां पत्र नहीं है.) ९४७९६ (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, माघ कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १९७, ले.स्थल. जालोर, प्र.वि. श्रीगौडीपार्श्वनाथ प्रसादात्. शब्दमय लेखन संवत् अस्पष्ट है., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१३९१) भग्न पृष्टी ग्रीवा, जैदे., (२५४१०.५, ६-१३४३२-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: इक्का रस गणहरा होत्था, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (वि. १८६०, रसाष्ट चंद्र, माघ कृष्ण, ५, सोमवार, ले.स्थल. कनकदुर्ग, राज्यकालरा. मानसिंह महाराजा, प्र.ले.पु. सामान्य) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमो क० माहरो नमस्कार; अंति: बार बार श्रीभगवंत कर्यो, (ले.स्थल. जालोर, पठ. मु. माणिक (गुरु मु. केसरजी); गुपि. मु. केसरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, वि. श्रीगौडीपार्श्वप्रसादात्.) कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदि: नमः वर्द्धमानाय श्रीमते च; अंति: उपदिसइ कहइ त्ति बेमि. ९४७९७. (2) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध-८ व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०७, प्रले. मु. गजविजय (गुरु मु. प्रीतविजय, तपागच्छ); गुपि. मु. प्रीतविजय (परंपरा गच्छाधिपति विजयप्रभसूरि, तपागच्छ); राज्ये भट्टा. विजयप्रभसूरि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (३७८) यावच्चंद्रस्य सूर्यस्य, जैदे., (२५४११, ७-१७४३१-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), प्रतिपर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: नमस्कार अरिहंत भणी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९४७९८ (+) समयसार नाटक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ५४२६-३७). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: ताकौ मेरी तसलीम है, अधिकार-१३, गाथा-७२७, ग्रं. १७०७, (संपूर्ण, वि. प्रशस्ति भाग नहीं है.) समयसार नाटक-पद्यानुवाद का टबार्थ, उपा. रामविजय, पुहिं., गद्य, वि. १७९८, आदि: श्रीपार्श्वनाथस्वामी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. प्रारंभिक भाग में ही टबार्थ है, इसके बाद क्रमशः टबार्थ नहीं है.) ९४८०१ (+) शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८०८, कार्तिक शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४५, ले.स्थल. लींबपुरी, प्रले. ग. जसविजय (गुरु ग. विवेकविजय); गुपि.ग. विवेकविजय (गुरु ग. कृष्णविजय); ग. कृष्णविजय (गुरु ग. चंद्रविजय पंडित); ग. चंद्रविजय पंडित; अन्य. मु. ऋद्धिविजय; ग. फतेविजय गणि, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. आवरणपृष्ठ व प्रारंभ के तीन पत्रों में मध्यफुल्लिका स्वस्तिकमय है. अंत में हस्तप्रत लेन-देन संबंधी विवरण 'संवत्-१८५४, पोष शुक्ल-३' दिया है व अंतिम आवरण पृष्ठ में हस्ताक्षर के बारे में अस्पष्ट लिखा है. अंतिम पत्र के हांसिया में शांतिनाथजी के १२ भव के नाम है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४०-५०). शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्वान; अंति: शांतिः स करोत शांतिम्, प्रस्ताव-६. For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४८०२. (+#) आवश्यकसूत्र की शिष्यहिता टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८३४+३(१६१,६५३,७९८)=८३७, प्र.वि. हुंडी:आ०बृ०वृ०, आवश्यकबृहद्वृत्ति., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. २२०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, ११४३८-४४). आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: मिच्छंतीति गाथार्थः, ग्रं. २२०००. ९४८०३. (+) भगवतीसूत्र की टीका व श्रेष्ठी लाखावंश प्रशस्ति, संपूर्ण, वि. १४७७, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २८७, कुल पे. २, ले.स्थल. अणहिलपुर, पठ. मु. धनविमल (गुरु आ. आणंदविमलसूरि); गुपि. आ. आणंदविमलसूरि; उप. आ. सोमसुंदरसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५-१९४५०-७०). १.पे. नाम. भगवतीसूत्र की टीका, पृ. १आ-२८७अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: सर्वज्ञमीश्वरमनंत; अंति: श्लोकमानेन निश्चितम्, शतक-४१. २.पे. नाम, श्रेष्ठी लाखावंश प्रशस्ति, पृ. २८७अ-२८७आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्राग्वाटवंशे विशदे; अंति: ह्यमुं पुस्तकमप्यलीलिखत्, गाथा-१६. ९४८०४. (+#) उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४४-१८४६, वैशाख कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १४१-२१(२,२० से २१,४३ से ५८,७७,१४०)=१२०, ले.स्थल. पत्तननगर, प्रले. मु. धनसोम (गुरु मु. अमृतसोमशिष्य); गुपि. मु. अमृतसोमशिष्य (गुरु मु. अमृतसोम); मु. अमृतसोम (गुरु मु. मुक्तिसोम); मु. मुक्तिसोम (गुरु आ. सोमसूरि); आ. सोमसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपदेश., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, ३-१५४३५-६०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से गाथा-९ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: एहवी जे वाणी श्रुतदेवताने, (वि. १८४६, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, शुक्रवार) ९४८०५ (+#) सीता चरित्र, संपूर्ण, वि. १७५७, आश्विन अधिकमास कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४०, ले.स्थल. फतेपुर, प्रले. श्राव. सबलसिंह; गुपि. मु. कनकनिधानजी; राज्यकाल सिरदार खां; अन्य. श्राव. हरिवंश शाह; श्राव. प्रशराम हरिवंश शाह (पिता श्राव. हरिवंश शाह); श्राव. मनसाराम शाह; श्राव. घासीराम शाह (पिता श्राव. प्रशराम हरिवंश शाह); श्राव. चैनराय; श्राव. दुलीचंद; श्राव. अमीचंद (पिता श्राव. घासीराम शाह); गुज्जरमल पांडे, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:सिताचरित., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३५-४०). सीतासती चरित्र, मु. बाल कवि, पुहिं., पद्य, वि. १७१३, आदि: प्रणमुं परम पुनीत; अंति: ठीक कारिज होइ लोहडै लीक, दोहा-२५५०. ९४८०७ (+) क्षेत्रसमास सुधामात्र विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५८-२५(१ से ३,७,१९,२२ से २९,३२,४२,४४ से ४७,४९ से ५१,५५ से ५७)=३३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४११.५, १२४२८). क्षेत्रसमास विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: समुद्रको विचार अपार छै, (पू.वि. 'जगतिरे वारणाको आंतरो' पाठ से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९४८१०. (+#) उवासगदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९०१, वैशाख कृष्ण, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५५-१९(१ से १९)=३६, प्रले. पं. सरूपचंद्र; पठ. मु. सुगालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपासग.ट., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११, ६४४५-४८). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं. ९१२, (पू.वि. अध्ययन-२ से है.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जोबि दिवसे श्रुतांग तिमईज. For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९४८११. (+) मुनिपतिराजऋषि चरित्र, संपूर्ण, वि. १८९३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ५८, ले. स्थल. पालिताणा, प्रले. मु. मूलराज (गुरु मु. मनरूपराज, अंचलगच्छ); गुपि. मु. मनरूपराज (गुरु मु. सरूपराज, अंचलगच्छ); मु. सरूपराज (गुरु मु. पद्मराज, अंचलगच्छ); अन्य. मु. बखतसागर (तपागच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. सिधक्षेत्र प्रसादात् नवाणु यात्रा उपलक्ष्य में लिखित प्रत, संशोधित, जै. (२५x११, १२४३०-३५ ). " मुनिपति चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीप्रणिपत्य पार्श्वनाथं; अंति: तरस्यै मुगत रमणी वरस्यै. ९४८१२. (+) दीपालिका कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०९ पौष शुक्ल १, सोमवार, मध्यम, पू. ४३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४.५X१०.५, ५X३४-३७). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि सं., पद्य वि. १४८३, आदि श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये, लोक-४३७. २३ दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वार्ह यं जिनेंद्रै; अंति: उद्योत करे तिवारे प्रतपो, (वि. १९०९, पौष शुक्ल, ६) ९४८१६. (+) आचारांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६४९, पीष शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पू. ६३, प्र. वि. हुंडी : आचा०सू०., संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. लो. (१०१०) बादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैवे. (२५.५४११.५, १५४३५-५२) आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. पग, आदिः सुयं मे आउस तेणं, अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि, अध्ययन- २५, ग्रं. २५५४. " ९४८१७. (*) ८ प्रकारी पूजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०१, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी पूजारास., संशोधित., जैदे., ( २४X११, १३-१५x२८-३३). ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि अजर अमर अविनाश जे; अंति (-), (पू.वि. रचना प्रशस्ति का पाठांश "ते मुझ गुरु सुपसाय" तक है.) ९४८१८. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १०९-१८(१ से ६, ८ से १४,१६,४३,४६ से ४७,९८)=९१, 1 पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी : कल०सू०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित मूल व टीका का अंश नष्ट है, जै.. (२५.५X११.५, ५४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-) अंति: (-), (पृ.वि. सक्के देविंदे देवराया' से पडिलेहिवब्वाई भवंति' तक के पाठ हैं व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४८१९. (+#) ) कल्पसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६८-६७ (१ से ६३,६५ से ६६,७५,१०१) = १०१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी : कल्पसूत्रट०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, ५-१५X३४-४०). "" कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि (-) अंति (-), (पू.वि. पाठ "आदि इक्कताण" से "पाणिपडिम्गाहि अस्स भिक्खुस्स तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ+कथा, मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४८२३. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११९-२४ (१ से २४) = ९५ पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित त्रिपाठ, मूल व टीका का अंश नष्ट है, जै. (२६१२, १०x२६-३८). " जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वक्षस्कार- ६ अपूर्ण से आंशिक भाग अपूर्ण तक है.) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका, सं., गद्य, आदि (-); अति: (-). ९४८२४. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४१ - २ (१ से २) = ३३९, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे., (२५४१२, ६३२-४२). For Private and Personal Use Only ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १ पाठ "अंतेवासी अज्झ जंबूनाम" से अध्ययन- १६ पाठ "अंतिए सामाईयमाईयांई" तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ * मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). *, Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४८२७. (+) महीपाल चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९९, पौष कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १११, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले. पं. मनरूपविजय (गुरु पं. भक्तिविजय, तपागच्छ); गुपि.पं. भक्तिविजय; राज्यकालरा. मानसिंघ, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:महीपालच०. श्रीगोडीजी प्रसादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२, ९४३२-३८). महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण रिसहनाहं केवल; अंति: वीरदेवगणी० पसाएण, ___ गाथा-१८४०, ग्रं. २५००. महीपालराजा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनै श्रीऋषभदेव; अंति: ग्रथिता निजगुरोः प्रसादेन. ९४८२८. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९३-२४(१ से ९,१४,४४ से ४७,६१ से ६४,६६,६८ से ६९,७७,७९,९२) ६९, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्रट०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२.५, ६४३२-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. पाठ "सक्कंसि सिहासणं" से "अणपविट्ठस्स निगिब्भिय" पाठ तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४८२९ (+) उपासकदशांगसूत्र व वर्द्धमानदेशना, अपूर्ण, वि. १९२७, कार्तिक कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पृ. १६२-१(१९)=१६१, कुल पे. २, ले.स्थल. खेरवा, प्रले. पं. गंभीरसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपासंगद०., संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, ७-१७४३६-४०). १.पे. नाम. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-१६२अ, संपूर्ण. उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं.८१२. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: अ०अनुज्ञापवेइ २.पे. नाम. वर्द्धमानदेशना, पृ. १६२अ-१६२आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह कृति पेटांक-१ 'उपासकदशांग' के बीच-बीच के पत्रांक ३असे १६१आ के अंतर्गत प्रसंगोचित समाहित है. कुल ग्रं. ५००० ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंति: शोधयंतु गतमत्सराः, उल्लास-१०, ग्रं. ४३००. ९४८३४. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:ज्ञाताटबूपत्र., संशोधित., जैदे., (२५४१२, ७४४०). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ वर्ग-१० के "महावीरेणं आइगरे" पाठ तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-). ९४८३५ (+) महाबलमलयसुंदरीनी चउपइ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९३-१९(१ से १९)=१७४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १२४३२). मलयासुंदरी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदिः (-); अंति: पभणे जिनहर्ष विचार, खंड-४, गाथा-३००६, (पू.वि. खंड-१ ढाल-१७ की गाथा-४ अपूर्ण से है.) ९४८३६. (+) सोहमकुलरत्न पट्टावली रास, संपूर्ण, वि. १९१२, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७४, ले.स्थल. हरजी, प्रले. ग. खंतिविजय (गुरु पं. उत्तमविजय); गुपि.पं. उत्तमविजय (गुरु पंन्या. कांतिविजय); राज्यकाल दोलतसिंघ ठाकुर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४११.५, १२४३२). सोहमकलरत्न पट्टावली रास, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीत्रिसला; अंति: नाम चतुर्थोल्लास, उल्लास-४ ढाल ६५, (वि. मूल पाठ के साथ साथ विद्वानों की नामावली अनुक्रम में दी गई है.) For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९४८३७. (+) उवासगदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०७, कार्तिक कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५४, प्रले. मु. श्रीचंद्र (गुरु पं. वृद्धिचंद); गुपि. पं. वृद्धिचंद (गुरु मु. देवीचंद); मु. देवीचंद; राज्ये आ. महेंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:उवासगद., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, (१३५२) तैलाद्रक्षे जलाद्रक्षे, दे., (२५४११.५, ७४३४-४५). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं. ९१२. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: जउवि दिवसे श्रुतांग तिमईज, (वि. १९०७, कार्तिक शुक्ल, १०) ९४८३८. (+#) कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिका टीका का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०२, आश्विन शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १२७, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. चारित्रविनय (गुरु पंन्या. सुमतिवर्धन, खरतरगच्छ); गुपि. पंन्या. सुमतिवर्धन (गुरु ग. विनीतसुंदर, खरतरगच्छ); ग. विनीतसुंदर; राज्ये आ. जिनसुखसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. जिनदत्तसूरि प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १५४४७-५४). कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका का बालावबोध, रा., गद्य, आदि: वर्द्धमान जिनेसररा; अंति: रीसंघ रे मंगलीक हुवै. ९४८३९ (+#) धन्नाशालिभद्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १८८६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७२, ले.स्थल. गोत्रकानगर, प्रले. पं. उत्तमविजय; पठ. मु. जसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:धनासालिरास पत्र., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२४४११, १४४४८-५०). धन्नाशालिभद्र रास, म. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: ऐंद्रश्रेणिं नत क्रम; अंति: जिनविजय० सुठायो रे, खंड-४ ढाल ८५, गाथा-२२४२, ग्रं. २५००. ९४८४० (#) पांडव चरित्र, संपूर्ण, वि. १६६८, भाद्रपद कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. २७२+२(३९,१८५)=२७४, प्र.वि. हुंडी:पांडवच., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १४-१६४३६-४२). पांडव चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., पद्य, आदि: श्रियं विश्वत्रयत्रा; अंति: (१)ममहाकाव्यमेतद्धिनोतु, ___ (२)महाग्रंथस्यमुनाक्षणा, सर्ग-१८, ग्रं. ९५००. ९४८४१ (#) आत्मप्रबोध सह स्वोपज्ञ वृत्ति व बीजक, संपूर्ण, वि. १८७५, फाल्गुन शुक्ल, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १९३, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. अक्षयचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:आत्मप्रबोध.व्या., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४४३८-४६). १. पे. नाम, आत्मप्रबोध सह स्वोपज्ञ वृत्ति, पृ. १आ-१९१आ, संपूर्ण. आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग., वि. १८३३, आदि: अनंतविज्ञानविशुद्ध; अंति: ग्रंथवरात्मबोधः, प्रकाश-४, श्लोक-१८१. आत्मप्रबोध-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनलाभसूरि, सं., गद्य, वि. १८३३, आदि: अथ तावद ग्रंथादौ; अंति: रथः सद्बोधभक्तिभृता. २. पे. नाम. आत्मप्रबोध का बीजक, पृ. १९१आ-१९३आ, संपूर्ण. आत्मप्रबोध-बीजक, सं., गद्य, आदि: तत्राद्य प्रकाशे यथा; अंति: ग्रंथो विनिर्मितः. ९४८४२. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८११, वैशाख कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. ६९, प्रले.पं. राजविजय; लिख. मु. सुरसौभाग्य (गुरु आ. सरुपसौभाग्य); गुपि. आ. सरुपसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपासक.सू., संशोधित., जैदे., (२५४१२, ६४३०-३५). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: चेव दिवसेसु उद्दिसति, अध्ययन-१०. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने वि ते; अंति: जाणवा दस दीवसने वीषे कहै. For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४८४३. (+) समयसार सह आत्मख्याति टीका, संपूर्ण वि. १७५३ आश्विन, मध्यम, पू. १२३+२ (१६, ७६)-१२५, 1 प्रले. मु. लालजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में विषयानुक्रम दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२५x११.५ १२-१३४३६-३९). " समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा. पद्म, आदि: वंदितु सव्वसिद्धेः अति होही उत्तमं सोक्खं, अधिकार-९, गाथा-४१५. समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., प+ग., आदि: नमः समयसाराय स्वानुभूत्या; . मृतचंद्रसूरे, अधिकार-९ श्लोक-२७८. अंति: " ९४८४५ (+*) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १६६ ५१ (१ से १४,२४,२६,३४ से ३५,४० से ५६,६४,८० से ८१,८४ से ८८,९५,१०० से १०१,१५५ से १५९)-११५. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित द्विपाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४४११.५, ५-११४३८-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. "श्रीमहावीरस्वामी च्यवन प्रसंग" से "श्रीऋषभदेव निर्वाण प्रसंग अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पृ.वि. बत्रीसलक्षण विचार से आदिजिन चरित्र तक है.) " ९४८४६. (+) चंद्रराजा चरित्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. १०७, प्र. वि. हुंडी: चंदरासपत्र, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११, १४-१६४३२-३६). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धरा धवति प्रथम, अंति: मोहनविजय वर्णव्यागुणचंदना, उल्लास-४ ढाल १०८, गाथा-२६७९. ९४८४७, (+*) दानशीलतपभावना कुलक १ से ३ सह वालावबोध, संपूर्ण वि. १८१९ मार्गशीर्ष कृष्ण, १, मध्यम, पू. १५२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२३.५x११, १३४४४). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि परिहरिव रज्जसारो अति (-), प्रतिपूर्ण. " दानशीलतपभावना कुलक-बालावबोध, मु. विनयकुशल, मा.गु., गद्य, आदि नत्वा जिनपदयुगलं वक्ष्येह, अंति: (-), प्रतिपूर्ण, ९४८४८. (+) समरादित्यकेवली चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १६४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२४४११. १३३८-४२). "" समरादित्यकेवली चरित्र, उपा. क्षमाकल्याण; पंन्या. सुमतिवर्धन, सं., प+ग., वि. १९८७२-१८७४, आदि: श्रीमंतं परमात्मतापद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "चंडसिंह वृत्तांत" तक लिखा है.) ९४८५३. (+) हरिवाहनराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१-७ (१ से ७) = १४, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित, जैये., 9 ." ( २६१२, १३५३९). हरिवाहनराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. डाल-८ गाथा १३ अपूर्ण से डाल- ३१ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ९४८५७. (+) ज्ञाताधर्मकथांगोपनय गाथा सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६x११.५, ५X४९). ज्ञाताधर्मकथांगोपनय गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि महुरेहिं निउणेहिं वय; अंति: (-), गाथा-७३ (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण अंतिम गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) ज्ञाताधर्मकथांगोपनय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: म. मधुर मीठिइं नि० निपुण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण द्वार १४ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ज्ञाताधर्मकथांगोपनय गाथा- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि निवेमि कहता श्रीसुधर्मा अंति: (-), अपूर्ण, For Private and Personal Use Only पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९४८५८, (+) प्रत्याख्यानसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५x११, ६४३८-४२). Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यना उदयथी मांडी; अंति: थकी वोसरावू . ९४८५९ सुकमालप्रबंध ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. हुंडी:अवंती., जैदे., (२६४१२, १२४३४). अवंतिसकमाल रास, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: पास जिनेसर सेवीये; अंति: ते जिनहर्ष सखपावे रे. ढाल-१३, गाथा-१०७. ९४८६० (+) शांबप्रद्युम्न प्रबंध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:संवप्रजू., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११, १९४४४-४७). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१६ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ९४८६१ (+#) आदिजिन व पार्श्वजिन कलश, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ९, कल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ९-१०४२२-२७). १. पे. नाम, आदिजिन जन्माभिषेक कलश, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पवित्र बाजोट ऊपर; अंति: तुम्ह दियो वर मुक्ति, गाथा-१२. २. पे. नाम. पार्श्वजिन कलश, पृ. ७आ-९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन कलश-नवपल्लव मांगरोलमंडन, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसौराष्ट्र देश; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ९४८६२ (+#) सिंदरप्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११.५, ९४३६-४५). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४९ अपूर्ण तक है.) ९४८६३. मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १८५८, फाल्गुन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १४-५(१,३ से ६)=९, ले.स्थल. राजपुर, प्रले. मु. भागसोभाग, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५,१७-२०४३७-५२). मानतुंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदिः (-); अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., ढाल-२३ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-२६ गाथा-१ अपूर्ण तक व ढाल-३४ गाथा-३३ अपूर्ण से है.) ९४८६४. गुर्वावली खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६-१(१)=१५, दे., (२५४११.५, १४४३६-४४). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "तेनाग्रे गौतमस्वामि परंपरानव्यूढा" पाठ से है व "१२०० साधु संप्रदायो जातः " पाठ तक लिखा है.) ९४८६५. पोषध विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, दे., (२५.५४११.५, १०४२३-३०). पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: रात्रिनै पाछलै घडी; अंति: पोसहना विकल्प जाणवा. ९४८६६. वसतिदान विषयक कथासंग्रह व औपदेशिक गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १०४३३-३६). १.पे. नाम. वसतिदान विषयक कथासंग्रह का अनुवाद, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण. वसतिदानादि विषयक कथासंग्रह-अनुवाद, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)वसहीसयणंसणभत्तपाण, (२)वसही० सति उपाश्रय शयन पाट; अंति: ऊपाजवइ त्रीजइ भवि मुक्ति, कथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक पद्य संग्रह-श्रावकाचार सह अनुवाद, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद्य संग्रह-श्रावकाचार, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: संवत्सर चाउम्मासिए; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक पद्य संग्रह-श्रावकाचार-अनुवाद, मा.गु., गद्य, आदि: संवत्सर पर्युषणा पर्व अणइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ "अपरिग्रह नरय० नरकगति" तक लिखा है.) ९४८६७. (+#) गणकरंडगणावली रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४११, १८-२०४४०-४६). गुणकरंडकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण सेवे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२६ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ९४८६८. () श्रावकप्रतिक्रमण अतिचार, अपूर्ण, वि. १८८४, आश्विन कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १०-१(८)=९, प्रले. मु. रामचंद; पठ. श्राव. हजारीमलजी मंगलचंदजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१२, ९४३१). श्रावक पाक्षिकादि अतिचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि अ चरणंमि; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं, संपूर्ण. ९४८६९ (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. १२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३४-३८). १. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेश्वर केरो शिष्य; अंति: गौतमइ नामि संपत्तनी कोडि, गाथा-९. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रवचन जग जयकार; अंति: मुनि विमल मनि धरी जगीस, गाथा-१३. ३. पे. नाम, नवकार महामंत्र सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नवकार सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल ऋद्धिदायक नायक; अंति: वृद्धिविजय गुण गाय रे, गाथा-१४. ४. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. म. सिंहविमल, पुहिं., पद्य, आदि: मगध देश को राज राजे; अंति: बोले छोड्यो गरभावास, गाथा-१९. ५. पे. नाम. नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मिथीला नगरीनो; अंति: समयसुंदर० घरि घरि मंगलमाल, गाथा-७. ६. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सुहामणो; अंति: सिंहविमल० प्रणाम रे, गाथा-२४. ७. पे. नाम, जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक नरवर राजिओ; अंति: पुहता छे मुगति मझार, गाथा-१६. ८. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: वंदे अइमुत्तो अणगार, गाथा-१८. ९.पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अकल अरूपी आतमा अविना; अंति: मेरू हो नामे आणंद के, गाथा-९. १०. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. अमरचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आवो रे थुलिभद्र रंगे; अंति: अमरचंद तुछ चरण नमे छे, गाथा-५. ११. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. अमरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: लाछलदे सुत लाडलो; अंति: अमरचंद० लाल मनमोहन, गाथा-११. १२. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण... स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कोस्या कामिनि कहे; अंति: चंदा चोरासी चोवीसी रे, गाथा-१८. ९४८७० (+) सूत्रकृतांगसूत्र, उत्तराध्ययनसूत्र व प्रास्ताविक गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १२-१४४३२-३८). For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र- अध्ययन ६. पू. १आ २आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्म, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अति आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा - २९. २. पे नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि पंचमहव्वयमुव्वयमूलं अंति: संतिकर लोय पतोगइ मणु तेरं, गाधा-१४. ३. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन ९ नमीपवज्जा, पू. ३आ-५आ, संपूर्ण, उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन- ९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि चहऊण देवलोगाओ उवयन्न अति: नमीरावरिसित्ति बेमि, गाथा- ६२. ९४८७२ (+#) पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र व नवकारगर्भित आत्मरक्षा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१२ (१ से १२) = ३, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x१०.५ १४४३६-५१). " १. पे नाम. पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, पृ. १३-१५आ, संपूर्ण आ. रघुनाथ, सं., पद्य, वि. १८५७, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अति रचित लिखितो मोदभरतः, श्लोक-४१. २. पे. नाम. नवकारगर्भित आत्मरक्षा, पृ. १५आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि परमेष्ठि नमस्कारं सारं अंति: राधिचापि कदाचन, श्लोक ८. ९४८७४ (+) भक्तामर स्तोत्रकाव्य का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९१९, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित., ., (२५X१२, १३X३५-४० ). भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. देवविजय, पुहिं., पद्य, वि. १७३०, आदि: भक्त अमरगण प्रणत मुकुटमणि; अंतिः देवविजय सब सुखकार, स्तवन ४४ (वि. मूल का प्रतीकपाठ दिया गया है.) ९४८७५ (+) मौनएकादशीपर्व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ७-१ ( ४ ) =६ प्र. वि. संशोधित, जै, (२५X११.५, १४४४५-४८). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२०१, (पू.वि. लोक- ९६ अपूर्ण से ११५ अपूर्ण तक नहीं है.) ९४८७६ (+) नंदीश्वरद्वीप पूजा, अपूर्ण, वि. १८९६ आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पू. ९-४ ( १३ से ५) ५ प्रले. मु. धर्मचंद्र (गुरु मु. कल्याणचंद्र, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित., जैदे., ( २६४१२, १२४३५). नंदीश्वरद्वीप पूजा, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८९६, आदि: (-); अंति: रे संघ सकल हरखायो रे, ढाल-१२, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., ढाल १ गाथा- २ अपूर्ण से ढाल -३ गाथा ८ तक व ढाल-८ गाथा-३ अपूर्ण से है.) ९४८७७ (#) परमेष्टि रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २०-११(१ से ११ ) = ९, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी परमेष्टिरास, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६x२२, १५-१६x४०-४७). २९ नमस्कार महामंत्र चौपाई, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल १४ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल २५ गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ९४८७८ (+#) श्रीपालरास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५०-३० (१ से ३०) = २०, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण , युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६१२, १४४४६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-३ ढाल ६ गाथा- ११ अपूर्ण से खंड-४ डाल -१३ गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ९४८७९ आनंदघनचौवीसी व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८ कुल पे. २, प्रले. पं. दयाल विजय पठ. श्रावि. रहिया बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५. ५X११.५, १५X३४-३५). १. पे नाम, आनंदघनचौवीसी, पृ. १अ ८आ, संपूर्ण 1 For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन प्रभु जाग रे, स्तवन-२४. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: वाचक यस० गुण गाय के, गाथा-५. ९४८८१ (+) प्रज्ञापनोपांगसूत्र-लेश्यापद उद्देश ५ से अंतकिरियापद २०, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. अंतिम पत्र पर नक्षत्रादि नाम कोष्ठक है., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४३६-४१). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद-२० सूत्र-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ९४८८५. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-२(१,८)-७, जैदे., (२६४१२, १०४३८). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-१३ अपूर्ण से श्लोक-८४ अपूर्ण तक व श्लोक-९३ अपूर्ण से श्लोक-१०६ अपूर्ण तक है.) ९४८९०. विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८३, भाद्रपद कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. २५-१(१७)=२४, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. मु. कनीराम ऋषि (लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, ११४३०-३६). ___बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जंबूद्वीपमांहि १४ लाख; अंति: अभीचि नक्षत्रे लगंति. ९४८९५ (+#) आनंदघन पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, कुल पे. ४८, ले.स्थल. रानेरबंदर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १५४४२). १.पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: रज धरे आनंदघन आवे हो, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से २.पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पीया बिन शद्ध बद; अंति: आनंदघन ऐसे न टले वेजे हो, गाथा-६. ३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अणजोवंता लाख जोवे तो एके; अंति: आनंदघन पद लीधुं, गाथा-३. ४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: वारो रे कोई पर घर भम; अंति: गोरे गाल झबूके जाल, गाथा-३. ५.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. अध्यात्म पद, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मोने कोय मिलावो कंचन; अंति: निशदिन धरुं उमाहा रे, गाथा-३. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाहलीयाने मिलिवानो कोडि; अंति: महारे आनंदघन शिरमोड, गाथा-३. ७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऐसी कैसी धरवरी; अंति: सुनो सी वंदी अरज कहेसी री, गाथा-३. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तरस कीजइ दइको दइकी सवारी; अंति: आनंदघन दाह हमारी री, गाथा-३. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: क्या सोवे तनमठ में अवधौ; अंति: नाथ निरंजन पावै, गाथा-७. १०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आस्या औरन की कहा; अंति: खेले देखत लोक तमासा, गाथा-४. ११. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि.१८वी, आदि: अवधू राम राम जग गावे; अंति: रमता पंकज भमरा, गाथा-४. १२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू क्या मांगगुनहीना; अंति: रटन करुं गुणधामा, गाथा-४. १३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नट नागर की बाजी; अंति: परमार्थ सो पावै, गाथा-४. १४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू अनुभव कलिका; अंति: जगावै अलख कहावे सोई, गाथा-४. १५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नाम हमारा राखे; अंति: मुरत सेवकजन बल जाइ, गाथा-४. १६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: साधो भाई समता रंग; अंति: यक हित करी कंठ विलाई, गाथा-५. १७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: आतम अनुभव फूल की; अंति: आनंदघनवा केम कहावै, गाथा-३. १८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: अनुभव तूं है हेतु; अंति: आनंद० बाजे जीत नगारो, गाथा-३. १९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अनुभव हम तो रावरी; अंति: सुमता अटकलि ओर नवासी, गाथा-३. २०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाथ निहारो आप मतासी; अंति: नौ और नहीं तू समतासी, गाथा-३. २१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आतम अनुभव रस कथा; अंति: हो वदे आनंदघन मेद, गाथा-५. २२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सलूने साहेब आवेंगे; अंति: हो लीने आनंदघन मांहि, गाथा-४. २३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: विवेकी वीरा सह्यो न; अंति: कें दीनो आनंदघन राज, गाथा-४. २४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण... मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: माला पूछीयै आली खबर; अंति: ल्याई आनंदघन तान, गाथा-४. २५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: भादंकी राति कातसी; अंति: आए आनंदघन मान, गाथा-५. २६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-जकडी, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: राशि शशि तारा कला जोसी; अंति: करै आनंदघन प्रभु आस, गाथा-६. २७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रीसानी आप मनावो रे; अंति: बिराजे आपही समता सेज, गाथा-५. २८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मिलापी आन मिलावें; अंति: लेगो आय घरे हरी भांत, पद-५. २९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: निसाणी कहा बतावुरे; अंति: प्यारे आनंदघन महाराज, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: विचार कहा विचारे रे; अंति: यारे लखे अनादि अनंत, गाथा-५. ३१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: देखो आली नट नागरको; अंति: चित कहो ओर दीजे बंग, गाथा-३. ३२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रीत की रीत न होइ; अंति: न घनधारा तबहि दे पठई, गाथा-३. ३३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: करे जारे जारे जारे जा सजि; अंति: घन० आइ अमित सुख देजा, गाथा-३. ३४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, हिं., पद्य, आदि: देखो अपूरव खेला आप ही; अंति: मिट जाय मनका झोला, गाथा-४, (वि. यह दो कृतियों के रूप में विभक्त है, दोनों कृतियाँ २-२ गाथाओं की हैं.) ३५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अपना रूप जब देखा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ३६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: मेरिसुं मेरिसुं० तुम्ह; अंति: आनंदघन० हुं अने सीरिरी, गाथा-२. ३७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मीठडो लागे कंतडो; अंति: का आनंदघन अवरन टोक, गाथा-४. ३८. पे. नाम. गुरुमहिमा पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगतगुरु मेरा मैं जगत का; अंति: अकथ कहाणी आनंदघन बाबा, गाथा-५. ३९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन सकल वियापक होइ; अंति: आनंदघन तत सोइ, गाथा-३. ४०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे घट ज्ञान भानू; अंति: दघन० और न लाख किरोर, गाथा-३. ४१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हमारी लै लागी प्रभु; अंति: बतावे आनंदघन गुनधाम, गाथा-३. ४२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अनुभव प्रीतम कैसी; अंति: लावो नहितर करो धनासी, गाथा-३. ४३. पे. नाम, साधारणजिन पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अब मेरे पति गति देव; अंति: घन० काम मतंग गज गंजन, गाथा-३. ४४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हठीली आख्यां टेक न; अंति:री उर आनंदघन नाहे रे, गाथा-४. ४५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: साधु संगति बिनु कैसे; अंति: आनंदघन महाराज री, गाथा-४. ४६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: आनंदघन पद भोग हो, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) ४७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अनंत अरूपी अविगत; अंति: करी रे आनंदघन पद पाम, गाथा-५. ४८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: बालुडी अबला जोर किश; अंति: सुरंग आनंदघन उछरंग, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९४८९७. (+) नवतत्त्व बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९५२, फाल्गुन कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. कालावड, प्रले. आंबामाडण खत्री, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२,८-१७४९-५३). नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीव १ अजीव २ पुण्य ३; अंति: ते माहिथी मोक्ष जाय. ९४८९९ (+#) गुणरत्नाकर छंद, अपूर्ण, वि. १७२७, भाद्रपद कृष्ण, ९, रविवार, मध्यम, पृ. २९-१७(१ से १७)=१२, ले.स्थल. नवरंगाबाद, प्रले. श्रावि. लाडिका (ओसवाल); पठ. पंन्या. मेघजी,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४४०). गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: (-); अंति: करो सहिजसुंदर मया, अध्याय-४, (पू.वि. अधिकार-२ गाथा-७५ अपूर्ण से है.) ९४९०० (+) सूक्तावली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ६४३०). सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: राज्यं निःसचिवं गतप्रहरणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-६५ तक लिखा है.) सूक्तावली संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: राज्य प्रधान बिना न शोभई; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., श्लोक-२१ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ९४९०१ () वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७९, कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. मढाहडनगर, प्रले. पं. वालचंद्र (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२,११-१२४२८-३४). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: रुपक एवं गृहपूजा करणीया, (वि. अंत में होम विधि सहित यंत्र दिया है.) ९४९०२. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, पठ.पं. तिलोकसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमनमोहनपार्श्व प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२.५, ४-५४२६-३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रूद्धाओ सूअ समुद्धाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनमांहे पईवं क० दीव; अंति: मोटा श्रुतसमुद्र थकी. ९४९०४ (#) सुक्तावली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-१(२)=१०, प्र.वि. हुंडी:शुक्तावली, शुक्तमाला., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १०-११४२२-३२). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलकुशलवल्लि; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वर्ग-१ श्लोक-७ अपूर्ण से श्लोक-१७ तक नहीं है व वर्ग-२ श्लोक-२० तक लिखा ९४९०५ (+#) सेज रास, संपूर्ण, वि. १८९५, कार्तिक कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल, जालोर, प्रले. मु. खूबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४११, १२४२८-३२). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पय नमी; अंति: समयसुंदर० आनंद थाय, ढाल-६, गाथा-११२. ९४९०६ (+) विक्रमादित्य चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, पूवि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, १४४३५-४०). विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरिसादाणी प्रणमीइं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२७ की गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ९४९०७. (+) जिन रास व १८ नातरा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. वेगडागच्छ पं.तिलकचंद के प्रत परसे प्रतिलिपि की गई है., संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १४४३५-४२). For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. जिन रास, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण, प्रले. पं. चारित्रसिंधु (गुरु पंन्या. विद्यासेन); गुपि. पंन्या. विद्यासेन (गुरु ग. नित्यभक्ति); ग. नित्यभक्ति (गुरु ग. पुन्यसारजी); ग. पुन्यसारजी (गुरु पं. मतिविमल); राज्ये आ. कीर्तिरत्नसूरि (बृहत्खरतरगच्छ); अन्य. मु. तिलकचंद्र, प्र.ले.पु. विस्तृत, पे.वि. अंत में दोहा लिखा है. मु. वेणीराम, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: गणपद सारद पाय नमी; अंति: वेणीराम कही० धजा धस धीग, गाथा-१९०. २. पे. नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: समरु सरसतमाय निज गुरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ९४९०९ (+#) शालिभद्र चरित, संपूर्ण, वि. १९५६, जीर्ण, पृ. २७, ले.स्थल. बोरसद, प्रले. श्राव. मगनलाल नरोतम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शालिभद्रच०., संशोधित. कुल ग्रं. १३००, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १६४४४-५२). शालिभद्र चरित्र, म. धर्मकुमार, सं., पद्य, वि. १३३४, आदि: श्रीदानधर्मकल्प; अंति: मतिर्विस्तारिधर्मेस्थितिः, प्रक्रम-७, श्लोक-११७०, ग्रं. १२२४. ९४९१० (+) षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ४-६४३२-३६). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: गारेणं वोसिरामि. आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने नमस्कार; अंति: करइ तउ पुण भंग नही. ९४९११. (+) मुनिपति रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१-३२(१ से ३२)=९, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४२-४४). मुनिपति रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२७ की गाथा-२६ से ढाल-३५ की गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ९४९१२. कर्मप्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२, १५४४१-४३). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कोई वाय में हरे कोई वाय; अंति: (-), (पू.वि. "कोई रुंखनी छाया देखीनै पठै तिमजी" पाठ तक है.) । ९४९१३. (+) दिवाली कल्प, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प.६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३७). दीपावलीपर्व कल्प, मा.गु., गद्य, आदि: दसमै देवलोकथी चविने देवाण; अंति: (-), (पू.वि. "ते माटे बे घड़ी आधी पाछी करो वीर" पाठ तक है.) ९४९१४. (+) वीसवीहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६७, फाल्गुन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ७, प्रले. पं. चैनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. २४०, जैदे., (२२४११, १४४४२-५०). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: देव० परम महोदयशक्ति रे, स्तवन-२०. ९४९१५. (+) मोतिकपासीया संबंधवाद चोपिइ, संपूर्ण, वि. १८६२, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. भलडारेवाड, प्रले. पं. शिवचंद्र ऋषि (गुरु पं. राजविजय); गुपि. पं. राजविजय (गुरु पं. प्रेमविजय गणि), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२,१५४२८-३४). मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सुंदर रुप सोहामणो; अंति: चतुरनरां चमतकार, ढाल-५, गाथा-१०४. ९४९१७. (+) समयसार नाटक भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १५४४२-४६). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: (-), (पू.वि. "सप्तम निर्जराद्वार ज्ञानदृष्टि अनुभवसामर्थ्य कथन" अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९४९१८. (+) शत्रुजयमाहात्म्य चतुष्पदी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४-२३(१ से २३)=२१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १८४४४-५२). शत्रुजयतीर्थ रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२ ढाल-५ से खंड-३ ढाल-५ दोहा-६ अपूर्ण तक है.) ९४९१९ (+) श्रावक समाचारी की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४४१). श्रावक सामाचारी-टीका, सं., गद्य, आदि: येन ध्यानसमन्वितेन; अंति: गुणं कोपि कालः सभावी. ९४९२० (+#) पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रावण शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. महमाइ बंदर, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४३०-३३). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं; अंति: सीत्तरमें पाटे थया. ९४९२१. (+) माहावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७८, चैत्र शुक्ल, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. वनारस, प्रले. मु. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १३-१५४२६-४६). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: आणा शिर वहस्ये जी, ढाल-६, गाथा-१४७, ग्रं. २२८. ९४९२२. (+) पुण्यसार रास उल्लास-२ से ३, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(२)=६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १४४३४-३८). पुण्यसार रास, मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. उल्लास-२ ढाल-२ की गाथा-२ __अपूर्ण से ढाल-३ गाथा-१ तक व उल्लास-३ की ढाल-१ गाथा-१३ अपूर्ण से नहीं है.) ९४९२३. (+) खंडाजोयण बोल व ज्ञानादि आलोयणा विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(९)=९, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४३२-३६). १.पे. नाम. खंडाजोयण बोल, पृ. १अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूपिपनो विचार किंचित; अंति: बयालीस भाग दिनमांहि वालइ, (पू.वि. द्वार-१० "सातहजार नदीपूरती" पाठांश से "उपरि चवदेसइ देस" पाठांश तक नहीं है.) २. पे. नाम, ज्ञानादि आलोयना विचार, पृ. १०आ, संपूर्ण. आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ग्यानाशातनायां श्रीठाणांग; अंति: चोट दीधी होय उप. करै. ९४९२४. स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८१९, मध्यम, पृ.७, कुल पे. १९, जैदे., (२४.५४११, ११-१४४३०-३३). १.पे. नाम. शांतरसभाव सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८१९, माघ कृष्ण, १३, ले.स्थल. राजनगर. मुनिशिक्षा स्वाध्याय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शांति सुधारस कुंडमा; अंति: सुख चित्त पूर रे, गाथा-२०. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, प. २आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: अजब बनी रे माहाराज के; अंति: तिहां मोहन होजो जगीश हो, गाथा-७. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा हु; अंति: होज्यो मुझ चित हो, गाथा-९. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. पुण्यविजय, पुहि., पद्य, आदि: पीयानइ चुंदरवा भीजन लागी; अंति: इम जंपे बलिहारी तोरी, गाथा-६. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक पद संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: सारंग गाज्यो तन तप्यो; अंति: मे करु मुख को सारंग जाइ, पद-२. ६. पे. नाम, अध्यात्म पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, मा.गु., पद्य, आदि: हम बेठे अपने मुन सौं दिन; अंति: संगति सुरझे आवागौंन सौ, गाथा-४. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुं आतमगुण जाण रे; अंति: वारोवार अवरण कोय छोडणहार, गाथा-४. ८. पे. नाम. नेमजिन गीत, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदरसारी बालकुंयारी नव; अंति: मान० जंपे मनना मनोरथ फलीय, गाथा-५. ९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे घरियारी बावरे मत घरीय; अंति: आनंदघन० विरला पावे, पद-३. १०. पे. नाम, पार्श्वनाथ गीता, पृ. ५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राग छैजी छैजी राग छैजी; अंति: मोहन० सुप्रसंस छैजी राज, गाथा-७. ११. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. पुण्यविजय, पुहि., पद्य, आदि: अखियन में गुलजारा जिनंद; अंति: बलिहारी अब ले मुझ रीजा, गाथा-६. १२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: उदर भरण के कारणेरी सुरभि; अंति: तुम ईस विध समरो नाम री, गाथा-४. १३. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. सूरदास, पुहिं., पद्य, आदि: कुबजानूं वैरण पूरव जनम की; अंति: सूरदास० नट रे करम की, गाथा-५. १४. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. सुखानंद, मा.गु., पद्य, आदि: जाउ जाउ छु बाईजी जल भरवा; अंति: भुंडी आवता वारे जाइ छु सु, गाथा-४. १५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: परपुद्गल के सह को रागी; अंति: आनंदघन० लीजे परपद वासा वे. गाथा-५. १६. पे. नाम, धर्मनाथ स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. ___धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धर्मजिणेसर गावु रागसुं; अंति: आनंदघन० सेवक अरदास जिणेसर, गाथा-८. १७. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण, वि. १८१९, चैत्र शुक्ल, ३. नेमराजिमती स्तवन, मु. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे रहो रे यादव; अंति: हरखत होवे मेरी अखडीयां, गाथा-६. १८. पे. नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हम मगन भए प्रभुध्यान; अंति: जीत लीओ मेदान मे, गाथा-६. १९. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. ७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) ९४९२५. थावच्चापुत्र चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १८७३, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., जैदे., (२४४११, १०४२६-३२). थावच्चापुत्र सज्झाय, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदि: द्वारिका नगरी अति भली रे; अंति: भणी सीस क्षमाकल्याण, ढाल-४, गाथा-५३. ९४९२७. (+) पासाकेवली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, १६४३२-३८). पाशाकेवली, म. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: गर्गनामा० पाशककेवली, श्लोक-१८५. ९४९२८ (+) महावीरजिनमहिम्न स्तोत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ७४३७). महावीरजिनमहिम्न स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: शिवः शक्त्यायुक्तो नधिगत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३४ अपूर्ण तक है.) महावीरजिनमहिम्न स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: शिव हेतुत्वात् पराक्रमेण; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९४९३१. वीरजिनेश्वरना पाटपरंपरा, सूत्रवृत्ति के कर्तानाम व जीवरा १४ भेदादिबोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११.५, ३५-५३४१५-४०). १. पे. नाम, वीरजिनेश्वरना पाटपरंपरा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुधरमस्वामी प्रथमा; अंति: (अपठनीय). २. पे. नाम. सूत्रवृत्ति के कर्ता नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. आगमसूत्रवृत्ति के कर्तासंवत विचार, रा., गद्य, आदि: वीर मुक्त गया पुठे जोडाणी; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "ए ८ ना नाम नंदीसत्रमाही" तक लिखा है.) ३. पे. नाम. जीवरा १४ भेदादि विविधबोल संग्रह, पृ. २अ-५आ, संपूर्ण. बोल संग्रह-जीवादि भेद , मा.गु., गद्य, आदि: संजतीम बेइदरीमे मीनखमे; अंति: (-). ९४९३३. (+) वीशस्थानकजीक क्षणश्रवण देणे का विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १०-१२४२२-३०). २० स्थानक खमासमणदान विधि, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम स्थानके; अंति: (-), (पू.वि. पद-१८ अपूर्ण तक है.) ९४९३४. (+) सुदर्शन रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २९-१३(२,५ से ७,१० से १८)=१६, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सुदर्सण., संशोधित., दे., (२५४१२, १२४३२-३६). सुदर्शनशेठ चौपाई, मु. ब्रह्म ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचरण प्रणांम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२८ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ९४९३८. (+) दशवीकालकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८७७, आषाढ़ कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. १६-५(१ से ५)=११, ले.स्थल. भरुदा, प्रले. मु. गोमा ऋषि; पठ. मु. पेमाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दसमीका०, दसवीका०., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १९-२१४३६-४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः (-); अंति: अपणागमं गइ तिबेमि, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-५ उद्देश-१ गाथा-२१ से है.) ९४९४० (+) स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१५(१ से ११,१४ से १७)=६, कुल पे. १९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १४४४२-४८). १. पे. नाम, सेजानो स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा नवाणु करिइं; अंति: पदम कहै भव तरियै, गाथा-६. २. पे. नाम. शितलजिन स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहजानंदी थयो; अंति: जिनविजय आनंद सुहावे, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: लय लागी लय लागी रे जी हो; अंति: ज्ञान० आवागमण नीवारोरे, गाथा-४. । ४.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण. म. माणिक्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समझ जा गुमानी हो दिलजानी; अंति: नही कोई जैनधरमने तोले, गाथा-४. ५.पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण. ___मु. आनंद, मा.गु., पद्य, आदि: मुतियडे मेह वुठा रे आज; अंति: सुपसाइं आनंद होत सवाई रे, गाथा-५. ६.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मारे भले उग्यो दिन आजुनो; अंति: जिनलाभसूरि० राजनो रे, गाथा-५. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. श्राव. मकन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह समे पासने देह रे; अंति: दास मकन गुण गाय रे, गाथा-६. ८. पे. नाम, आदिजिन गीत, पृ. १३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सींघासन पदमासन बेठे नाभी; अंति: प्रभ०की रुपचंद गुण गाइ ले, गाथा-३. ९. पे. नाम. शांतिजिन गीत, पृ. १३अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तुं मेरा मन में तुं; अंति: जिनरंग०दिठा देव सकल मे हो, गाथा-५. १०. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थकर सेवना; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. ११. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीजा अजित जिणंदजी रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १२. पे. नाम. ढुंढा रास, पृ. १८अ-२०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८८०. ढुंढक रास, मु. अविचल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अविचल० रास ए उलास ए, गाथा-१०७, (पू.वि. गाथा-४१ से १३. पे. नाम. सेजानो तवन, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: माहरु मन मोह्यो रे; अंति: कहेतां नावे पार, गाथा-५. १४. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. २०आ, संपूर्ण. मु. सुमतिविजयशिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: मने संभव जिनशं; अंति: सुमति०सीस दिलमाहि धारो रे, गाथा-७. १५. पे. नाम. से@जानो तवन, पृ. २०आ, संपूर्ण. ___ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल भेटवा मुने; अंति: कांति० सेजागिरि गायो, गाथा-५. १६. पे. नाम. नेमराजिमती फाग, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण.. पं. निधानविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी के दरबार चालो खेलीइ; अंति: वीनवे निधान कहे करजोड, गाथा-९. १७. पे. नाम. सुमतिशांतिनाथनो स्तवन, पृ. २१अ, संपूर्ण. सुमतिशांतिजिन स्तवन, मु. रामसागर, मा.गु., पद्य, आदि: भवि तुमे वंदो रे सुमति ने; अंति: सेवक राम जपो गुणवंता, गाथा-६. १८. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. श्राव. मकन, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति सुरपति सुरपति प्रभ; अंति: मकन०नाणी करजोडी करी विनती, गाथा-११. १९. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __ मा.गु., पद्य, आदि: जोवन प्रहुणो रे हो प्राणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९४९४१. अंजनासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१२, १५४४०). _____ अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से गाथा-१०४ तक है.) ९४९४३. (#) नवतत्व प्रकरण सह बालावबोध व असंख्यातअनंत विचार, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ५२-४२(१ से ४२)=१०, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १७४४९). १. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण सह बालावबोध, पृ. ४४अ-५२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १४६८, फाल्गुन शुक्ल, १२, बुधवार, ले.स्थल. तारापुर. नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: परियट्टतो भवे सिद्धि, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-९ से नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुतुंगसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)तद्बुधैर्विशदाशयैः, (२)नवतत्व विचारु लिखिउ छइ. २. पे. नाम. असंख्यात अनंत विचार, पृ. ५२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदिः यथा जंबूद्वीप जेवडा सहस्र; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९४९४४. (+#) प्रश्नोत्तरादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२-१७(१ से ७,१३ से २२)=१५, कुल पे. २०, ले.स्थल. जेसलमेरदुर्ग, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४३६). १. पे. नाम. प्रश्नोत्तरं, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण. जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मुहर्त एकना सासोसास ३७७३; अंति: लुखाईकरणने ध्यान करै. २. पे. नाम. सम्यग्दृष्टि, देशविरति व सर्वविरति ११ बोल, प. ९आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: विधिवाद१ चरितानुवाद२; अंति: ११ केवलीने गम्य ते निश्चय. ३. पे. नाम, साधुरा अतीचार, पृ. १०अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. साधपाक्षिकअतिचार-श्वे.म.प., संबद्ध, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: करी तस्स मिच्छामि दक्कडं, (वि. विषमपद टिप्पण सहित.) ४.पे. नाम. सम्यक्त्व १२ व्रत स्वरूप विचार सह टिप्पण, पृ. १२आ-२३अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. गृहस्थधर्म स्वरूप, प्रा.,सं., प+ग., आदि: बारै व्रत मांहि प्रथम; अंति: लिख्य वंदनक द्वयं ददाति, (पू.वि. बीच का पाठांश नहीं है.) गृहस्थधर्म स्वरूप-टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. नववाडी ब्रह्मचर्य, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. ९ वाड-ब्रह्मचर्य, मा.गु., गद्य, आदि: वसति निरदूषण १ स्त्रीनी; अंति: गंधरसफरस धीरजसुए व्रत धरो, (वि. अंत में लोकांतिक देव विमान संबंधी प्रश्नोत्तर है.) ६. पे. नाम, २१ श्रावक गुण, पृ. २४अ-२५अ, संपूर्ण. श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम बोले श्रावक केह वा; अंति: २० वृद्धअनुगर २१ शुभपक्ष, अंक-२१. ७. पे. नाम. १३ काठिया नाम, पृ. २५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आलस सो धरम उद्यम रहित १; अंति: रमणासो रमतिसु रमे कोउहले. ८.पे. नाम. पंचेद्रिय विवरण, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय २३ विषय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चक्षुइंद्री१ कामीविषय५; अंति: लूखो फरस राखनी परे. ९.पे. नाम. ६ लेस्या द्वार विवरण, पृ. २५आ-२७अ, संपूर्ण. ___लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम १ वर्न २ रस; अंति: लेस्या सिद्धां मे नही. १०. पे. नाम. उच्चनीच गोत्र उपार्जन विचार, पृ. २७आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: हिवे सोले बोले उच्च गोत्र; अंति: बोले जीव नीच गोत्र बांधै. ११. पे. नाम. ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती विवरण, पृ. २७आ, संपूर्ण. पुहिं.,प्रा.,रा., गद्य, आदि: एक सासोसोसको एक प्राण सात; अंति: निगदीया ५९४२४७५० मरण करै. १२. पे. नाम. ईर्यापथिकी कुलक, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण. इरियावहि कलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडचत्ता तिसय; अंति: जीव निच्चंपि, गाथा-१२. १३. पे. नाम. ५६३ जीवभेद, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नारकी सात नरकना; अंति: भेद ५६३ ए जाणवा. १४. पे. नाम. २८ लब्धि नाम सह टबार्थ, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण. २८ लब्धिविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आमोसहि विप्पोसहि खेल; अंति: तवसेणे इमाई हंति लद्धीओ. २८ लब्धिविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० हस्तादिकनउ फरस ते; अंति: इण आदि हुवै लद्धिओ. १५. पे. नाम. १४ पूर्व विचार, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. १४ पूर्व नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम उत्पादपूर्व पद; अंति: प्रमाण मस्या १४ पूर्वाणां. १६. पे. नाम. निगोदकर्मणा विचार सह टीका, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण. सूक्ष्मनिगोद विचार, प्रा., पद्य, आदि: लोए असंखजोयण माणे; अंति: तहत्ति जिणवुत्तं, गाथा-३. सूक्ष्मनिगोद विचार-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: अस्मिन् चतुर्दश रज्व; अंति: निर्मलतरमेव भवति. For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७. पे. नाम. षट् मतका भेद, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण. ६मत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जिनमती१ अद्वेतमती२; अंति: जैन सर्व पदार्थ को जानना. १८. पे. नाम, श्रावक ११पडिमा विचार, पृ. ३०आ, संपूर्ण.. श्रावक ११ पडिमा विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सण वय सामाई पोसह; अंति: करइ एवं इग्यारमी प्रतिमा. १९. पे. नाम. भिक्ष द्वादशप्रतिमाधिकार सह बालावबोध, पृ. ३०आ-३१आ, संपूर्ण. साधप्रतिमा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: मासाईय सतंता पढमा; अंति: भिक्खु पडिमाण बारसगं, गाथा-१. साधप्रतिमा गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहली प्रतिमा एक मास तलक; अंति: तप महाधीर्यवंत से होय. २०. पे. नाम. संमूर्छिमजीवोत्पत्यादि विचार संग्रह, पृ. ३१आ-३२आ, संपूर्ण. विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ९४९४५. (+#) श्रीपाल रास का हिस्सा अजितसेनमुनि देशना सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-७(१ से ७)=७, ले.स्थल. भृगुपुर, प्रले. पं. राजेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमुनिसुव्रतस्वामि प्रसादात्., संशोधित. कुल ग्रं. १८८, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, ४४३२). श्रीपाल रास-अजितसेनमुनि देशना, हिस्सा, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: प्राणी वाणी जिनतणी तुम्हे; अंति: विलास संवेग गुण पालीइं, गाथा-४१, संपूर्ण. श्रीपाल रास-अजितसेनमुनि देशना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते वाणीमां हिंसा निवारी; अंति: वरे क० पामे निश्चे, संपूर्ण. ९४९४६. (+#) दरिअरयसमीर स्तोत्र सह व्याखा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३८). दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ तक है.) दरिअरयसमीर स्तोत्र-व्याखा, मा.गु., गद्य, आदि: दुरित पाप रज परिहार करिवा; अंति: (-). ९४९४७. (+) दंडक प्रकरण व ८ कर्मप्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्रले. मु. लालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १७४४३). १.पे. नाम, दंडक प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, वि. १५७९, आदि: चउविश तिर्थंकरने नमस; अंति: प्रकरण लोकप्रसीद्ध दंडक. २. पे. नाम. ८ कर्मप्रकृति विचार, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण. ८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीयकर्मनी उत्तर; अंति: अवस्थित ८ अवक्तबंध १. ९४९४८. न्यायदीपिका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, दे., (२५४१२, १२४३५). न्यायदीपिका, आ. धर्मभूषण महाराज, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमहँतं; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "भावादित पांचरूप्प संपत्तिः" पाठांश तक लिखा है.) ९४९४९ (+) महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमागर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १०x२९-३३). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, म. गणहर्ष, मा.ग., पद्य, आदि: श्रमणसंघतिलकोपम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१० की गाथा-११६ तक है.) ९४९५०. पुराण श्लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-२(१,९)-८, दे., (२४.५४११, १३४३२-३६). पुराणहंडी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अहिंसासत्यमस्तेयं; अंति: क्षमामंगल्यमुच्यते, श्लोक-२७८, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९४९५२. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४२७). उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवविभत्तिं सुणे; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-२०५ अपूर्ण तक है.) ९४९५३. (+) दशविधि यतीधर्माधिकार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प.६-१(१)=५, प्र.वि. हंडी:सज्झायपत्र., संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४४४-४७). १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: सुजश लीला अनुभवे, ___ ढाल-११, गाथा-१३६, (पू.वि. ढाल-१ की गाथा-९ अपूर्ण से है.) ९४९५४. (+#) आनंदघन गीतबहोत्तरी व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. १६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४४-५०). १.पे. नाम. आनंदघन अध्यात्मपद बहोत्तरी, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण. आनंदघन गीतबहोत्तरी, म. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: क्यौ सोवै उठि जागि वाउ रे; अंति: मांनो यह जनरा घरो थको, पद-७२. २. पे. नाम. अध्यात्म गीत, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक गीत, म. लब्धिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: जब लगि विषय घटा न घटी तब; अंति: लबधिविजय० विषय वेल कटी, गाथा-५. ३. पे. नाम, वैराग्य स्वाध्याय, पृ. १०अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: कहां करू मंदिर कहां; अंति: फरे दुनिया में फेरा, गाथा-५. ४. पे. नाम, वैराग्य पद, पृ. १०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, पुहि., पद्य, आदि: पांचो घोरे एक रथ; अंति: अपना राज बिनयजीऊ पाया, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०अ, संपूर्ण. म. विनयविवेक, पहिं., पद्य, आदि: जीउ मगन भयो महा मोह मे; अंति: सिद्धि सदा सुख सोह में, गाथा-४. ६. पे. नाम, अध्यात्म गीत, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, मु. विनय, रा., पद्य, आदि: थिर नांहि रे थिर; अंति: बंधन थे छोडणहारा वे सांइ, गाथा-५. ७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १०आ, संपूर्ण. मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: घोरा जूठा हे रे तु; अंति: विनय० ज्युं पाओ भवपारा, गाथा-५. ८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १०आ, संपूर्ण.... ___ मु. विनय, पुहि., पद्य, आदि: सांई सलूना केसे पाऊं; अंति: विनय० नजरि मोहि जोय, गाथा-५. ९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन चेतन अथिर संयोगा जलध; अंति: विनय०विगारी विरान हो लोगा, गाथा-३. १०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११अ, संपूर्ण. म. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: धरम सखायत धरमबल परबल संबल; अंति: विनय० सहिजे शिव संपद लहीइ, गाथा-११. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-जीवकाया, म. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: सुनि सोहागन बे दिल की रै; अंति: नय० अविहड करु अयारी, गाथा-५. १२. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ११आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, पुहिं., पद्य, आदि: शांति तेरे लोचन है; अंति: विनयी० अति प्यारे, गाथा-३. १३. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. ११आ, संपूर्ण. औपदेशिक जकडी-जीवकाया, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: काया कामिनी बे लाल; अंति: युं अभेदे तुज मिलुं, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२ more कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४. पे. नाम, सरतिमंडणश्रीपार्श्वजिन स्तव, पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सूरतमंडन, मु. विनयविजय, पुहि., पद्य, आदि: जिणंदराय सरण तुम्हारे आयो; अंति: विनय उल्लसंत भगवंत गायो, गाथा-२५. १५. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: अज हुं कहाल्युं प्या; अंति: तुम विनये सुनाई हो, गाथा-६. १६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: जागो प्यारे भयो सुवि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९४९५५. विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८, प्र.वि. हुंडी:विपाकसूत्र., जैदे., (२४.५४११.५, १३४३८-४३). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०. ९४९५६. (+#) अवंतिसुकुमाल रास, संपूर्ण, वि. १८४६, आषाढ़ शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. मढाहडनगर, प्रले. मु. रंगसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:एवंतीसूक., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४३५). अवंतिसकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरष सुख पावे रे, ढाल-१३, गाथा-१०७. ९४९५७. (+#) पार्श्वजिनादि मंत्रसाधन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, ११४२८-३०). __ मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४९६२. (+) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १५४४१-४४). __ चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामाइकावश्यकपौषधानि; अंति: मिच्छामि दुक्कडं देवो. ९४९६५ (+) दीवालीकल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८६९, आश्विन कृष्ण, ११, शुक्रवार, मध्यम, प. ३८-६(८,३३ से ३७)=३२, ले.स्थल. साभराई, प्रले. मु. मोहनसुंदर (गुरु मु. रत्नसुंदर); गुपि. मु. रत्नसुंदर (गुरु मु. न्यायवर्द्धन); मु. न्यायवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसुपार्श्वनाथजी प्रशादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१३, ६४३३-३९). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये, श्लोक-४३७, (पू.वि. गाथा-७७ अपूर्ण से गाथा-८९ अपूर्ण तक व गाथा-३६८ अपूर्ण से गाथा-४३० अपूर्ण तक नहीं दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानसामीरूपी; अंति: सूर्य लगे त्रिण जगमांहि. ९४९६७. अज्ञात जैन स्तवन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-२(१,१३)=२३, प्र.वि. यह प्रत ९४९९३ से मिलने की संभावना है., त्रिपाठ., दे., (२६४१२, ९४३७-४०). अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-स्तवनात्मक*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक __द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० से गाथा-३४ तक लिखा है.) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-स्तवनात्मक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व ___ प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९४९६८. (#) अध्यात्मकल्पद्रुमाधिकारे शांतरस वर्णन, संपूर्ण, वि. १९१४, फाल्गुन कृष्ण, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३५, प्र.वि. हुंडी:अ०.क.p०. तथा शांतरस., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४११, १८४४०-४५). अध्यात्मकल्पद्रुम-हिस्सा शांतरस अधिकार का शांतरसवर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: अहो भव्य जीवो सदाकाल; अंति: चाखे तो परमपद पामे, ग्रं. १८५०. ९४९७० (+) समयसारनाटक-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११६-९६(१ से ९६)=२०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १०x२५-२८). For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-११ गाथा-६२ अपूर्ण से प्रशस्ति गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) ९४९७२ (4) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १०४२७). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३५ अपूर्ण तक लिखा है.) ९४९७३. सुक्तावली सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सूक्तावली., जैदे., (२६४१२, १४-१६४३७-४१). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० तक है.) सूक्तमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व जे सुभ करणीनी; अंति: (-). ९४९७५ (#) दशवकालिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १८६५, चैत्र शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. २३-१३(५ से १७)=१०, ले.स्थल. पोकर्ण (पोखरन), प्रले. श्रावि. रामकुंवर बाई (गुरु सा. अजवाजी); गुपि. सा. अजवाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दसमीकाल., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६४३०-३३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ तिबेमि, _अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-४ सूत्र-४४ अपूर्ण से अध्ययन-८ गाथा-२८ अपूर्ण तक नहीं है.) ९४९७६. महावीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४५, आषाढ़ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. मोटी चंदुर,बजाणा, प्रले. भानजी भीमजी ठाकुर; पठ. पं. जसविजय (गुरु पं. प्रेमविजय, तपागच्छ); गुपि.पं. प्रेमविजय (गुरु पं. चतुरविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, ७-११४२८). महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सासननायक सीवकरण वंदु वीर; अंति: नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५६. ९४९७७. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति व २४ जिन नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२४३०-३३). १. पे. नाम, चतुर्विंशतिका स्तवन, पृ. १आ-१६आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, ग. सिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम युग आदि अवतार प्रभु; अंति: सिवचंद उजियारे वारी चंद्र, स्तुति-२४. २. पे. नाम, २४ जिन नाम, पृ. १६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. __ सं., पद्य, आदि: ऋषभ १ अजित २ संभव ३; अंति: (-), (पू.वि. सुविधिनाथ नाम तक है.) ९४९८० (+) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९२३, आश्विन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ९-३(५ से ६,८)=६, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. जीवन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पासाके., संशोधित., दे., (२४.५४१२, ११४२५-३५). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: सो जस धन प्राप्ति होयगी, संपूर्ण. ९४९८१ (+) पर्युषणामहापर्व माहात्म्य कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९-१(१)=१८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४.५४१२.५, ११४३५-४५). पर्युषणा महापर्व के कर्तव्य माहात्म्य कथा संग्रह, पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रावक कर्तव्य "पूजासामायकपोसा आदि वर्णन" अपूर्ण से "रोहिणीया चोर कथा" अपूर्ण तक है.) ९४९८२. (#) कर्मग्रंथ चतुष्टय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७-५(१ से ५)=२२, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, दे., (२४.५४१२.५, ४४३२-३६). १.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ६अ-१३आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कर्मग्रंथनो अर्थ कीथो. २.पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १४अ-२०अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तिमश्री महावीरें गुणठाणने; अंति: प्रतइ माहारो नमस्कार होय. ३.पे. नाम, बंधस्वामित्य नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २०अ-२५आ, संपूर्ण, ले.स्थल. यमुनापुरी, प्रले. मु. डालचंद्र (विजयगच्छ); पठ. मु. शिखरचंद्र (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधविधान कर्मबंधना; अंति: सोऊ कहता सांभलीनइ. ४. पे. नाम. षड्शीति नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, प. २६अ-२७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिअक० नमस्कार करीने; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से गाथा-४ अपूर्ण तक टबार्थ नहीं लिखा है.) ९४९८६ (#) उपदेशमाला कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १०४३२-४५). उपदेशमाला कथा संग्रह, म. सत्यविजय शिष्य, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: वंदित्वा वीरजिणं गुरुंश्च; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "अंगारमईकाचार्य कथा" तक लिखा है.) ९४९८७. (+) तपागच्छ खरतरगच्छ संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४३५-४२). खरतर तपागच्छ ३० उत्सूत्र बोल, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तपागच्छीय श्रीविजयदानसूरि; अंति: (-), (पू.वि. "तत्त्वगवेषिणाम् भव्यानाम्" पाठ तक है.) ९४९८८.(#) दानविषये रत्नपालरत्नावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०१, माघ शुक्ल, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. देसणोक, प्रले. मु. रूपचंद (पूनमीयागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रत्नपालचौपाई., कुल ग्रं. ६६५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १७७५४). रत्नपालरत्नावती चौपाई, पं. माणिक्यराज, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदिः (अपठनीय); अंति: वरतै मंगलीकमाला जी, ढाल-३५, गाथा-६६५, ग्रं. ९०५, (वि. चिपके हुए पत्र होने के कारण प्रारंभिक पाठ अवाच्य है.) ९४९८९ (+) धन्नाशालिभद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-३(१ से ३)=२२, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५-१६x४५-५०). धन्नाशालिभद्र रास, म. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-३ की गाथा-१९ अपूर्ण से खंड-२ ढाल-१२ की गाथा-७ तक है.) ९४९९० (+) नवकार महामंत्र कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १६-१७४४२-५०). नमस्कार महामंत्र कथा संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० एसो मंगल; अंति: अरिहंतने नमस्कार करीयइ, कथा-५. ९४९९१ (+) सकलार्हत् स्तोत्र, अजितशांति व लघुशांति स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(५)=५, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ११४२७-३०). १. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४५ त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: स जयति जिराउली पार्श्व, श्लोक-३६. २. पे. नाम. अजितशांति, पृ. ३अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, __गाथा-४०, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से ३० अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ६आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ९४९९२. (+#) स्तुति, स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. १३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२,१३४३६-३८). १.पे. नाम. अढारपापस्थानक सज्झाय, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलं कहि; अंति: पदसेवक वाचकजस इम आखै जी, सज्झाय-१८, ग्रं. २११. २. पे. नाम. गजसुकमाल सिज्झाय, पृ. ७आ-९आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: द्वारिकानगरी ऋद्धि; अंति: ज्यो सुगुरु सहाय रे, ढाल-३, गाथा-३८. ३. पे. नाम, मौन एकादशीपर्व स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति: समयसुंदर० कहो दाहडी, गाथा-१३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, आदि: अंतरजामी सण अलवेसर; अंति: जिनहर्ष० सागरथी तारो, गाथा-५. ५. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण. __उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुमतिनाथ गुणस्युं; अंति: मुझ प्रेम प्रकार, गाथा-५. ६.पे. नाम. सपार्श्वजिन स्तवन, पृ.१०आ-११अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीसुपास जिनराज; अंति: वाचक जसे थुण्यो जी, गाथा-५. ७. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण... उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामि तुमे कांइ; अंति: क जस कहें जे लहस्युं, गाथा-५. ८. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण... उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: यशविजये० पोष लाल रे, गाथा-५. ९. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ११आ, संपूर्ण. वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथनायक जिनवरू रे; अंति: नित प्रति नमत कल्याण, गाथा-५. १०.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, म. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षनो रे; अंति: देवचंद्र पद लीधरे, गाथा-९. ११. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-निंदागर्भित, म. धर्मवर्धन, मा.ग., पद्य, आदि: हिय निधि विनती त्रिकरण; अंति: अरज श्रीध्रमसी तणी, गाथा-१६. १२. पे. नाम. रात्रिभोजनपरिहार सज्झाय, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्य संयोगे नरभव; अंति: वसता० अधिकारी रे, गाथा-१३. १३. पे. नाम. तेरकाठिया सज्झाय, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: साधु समीपै आवतो जी आलस; अंति: तणो जी सीस उत्तम गुण गेह, गाथा-१६. ९४९९३. (#) अज्ञात जैन देशी पद्य कति-स्तवनात्मक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ११, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ८-९४३३-४०). अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-स्तवनात्मक, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-स्तवनात्मक-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९४९९४ (#) मंगलकलस रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-१२(१ से १२)=१६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १६४३२-३४). मंगलकलश रास, मु. दीप्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७४९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२ ढाल-१ गाथा-१६ अपूर्ण से खंड-३ ढाल-६ गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ९४९९५. भक्तामर स्तोत्र व साधारणजिन स्तवन सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९१९, श्रावण शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १०-२(८ से ९)=८, कुल पे. २, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्रले. पं. सुमतिराज, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२४.५४१२,५४४२-४९). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, मु. साधुकीर्ति, सं., गद्य, आदि: सर्वत्र काव्येषु वसंततिलक; अंति: भक्तामरस्तोत्रार्थपद्धति. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन सह अवचूरि, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: भावं ययानंदमय प्रदेयाः, श्लोक-९, (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण से है.) साधारणजिन स्तव-अवचूरि, ग. वानर्षि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)इकारः गुणश्च प्रदेयाः, (२)अवचूरिः कृता ऋषि वानरेण. ९४९९६. (#) वसुधारा स्तोत्र व वसुधारा विधि, संपूर्ण, वि. १८७८, माघ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. वीजापुर, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ११४२९-३८). १. पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह: अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. २. पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र विधि, पृ. ७आ, संपूर्ण.. वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम० श्रीनंदावर्त्त; अंति: करे अवश्य लिला पांमे सहि. ९४९९७. संबोधसप्ततिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. चोरवाद्र, प्रले. अमरसी लीलाधर खत्री; दत्त. श्राव. मूलचंद अमथाराम; गृही. सा. रलियातबाई (गुरु सा. जीवीबाई); गुपि. सा. जीवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संबोधसि., दे., (२६४१२, ४४३८). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर०नत्थि संदेहो, गाथा-७७. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण क० नमस्कार करी; अंति: सूरि विरचिता संबोधसित्तरी. ९४९९८.(2) अक्षरबावनी, संपूर्ण, वि. १९००, श्रावण शुक्ल, १२, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. आढसर, प्रले. श्रावि.रूंराबती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सबैया., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४३२-३७). अक्षरबावनी, म. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, वि. १७२५, आदि: ॐकार उदार अगम अपार; अंति: नाम धर्मबावनी, गाथा-५७. ९५००० (#) नेमराजुल संवाद, संपूर्ण, वि. १८४९, वैशाख शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ५, प्रले. ग. गंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ११-१५४३१-४०). For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org नेमगोपी संवाद- चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि एक दिवसे नेमकुमर निज; अति सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. ९५००१. (+) युगप्रधान स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५X१२, १०x४६-५३). १. पे नाम. युगप्रधान विवरण कोष्टक, पू. १अ ४आ, संपूर्ण मा.गु., को., आदि (-): अंति: (-). २. पे. नाम. युगप्रधान स्तवन, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. दुषमकाल श्री श्रमण संघ स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि वीरजिण भुवणविस्सुय; अंतिः दूसमसंघ नमह निच्च गाथा - २४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. युगप्रधानादि संख्याविचार, पृ. ५आ, संपूर्ण. युगप्रधान साधुसाध्वी राजा श्रावकश्राविका संख्या गाथा, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. बोल संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: कंद १ मूल २ फल ३; अंति: चैव षड्बीजा च वनस्पतिः. ९५००२. (+#) जिनबिंब प्रवेशप्रतिष्ठादि विधि, अपूर्ण, वि. १८८०-१८८२, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २३-७(१ से ७)=१६, ले.स्थल. मकसुदाबाद(अजीमग, प्रले. मु. वीरचंद ऋषि, पठ. मु. साधु ऋषि (गुरु मु. लालजी ऋषि); गुपि. मु. लालजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२३.५१२, १५X३७-४०). " जिनबिंब प्रवेशप्रतिष्ठादि विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: श्राविका धवल मंगल गावे, (पू.वि. राशि के अनुसार प्रतिमा विवरण अपूर्ण से है.) ९५००३. (+) चैत्यप्रतिष्ठा विधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १० प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैवे., (२५.५X१२.५, ५X३०). जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, सं., प+ग., आदि: विषमैरंगुलैर्हस्तैः कार्य; अंति: लग्ने तत्सर्वमाचरेत्. चैत्यप्रतिष्ठा विधि-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि विषम क० एकी गणतीई अति चैत्यप्रतिष्ठा करवी. ९५००४. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ९, प्रले. श्राव. लखमीचंद नरखेडावाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५४१२, ८x२२-२८). " १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. . कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्री रे सिद्धाचल; अंति: करी विमलाचल गायो, गाथा-५. २. पे नाम औपदेशिक पद- आलस त्याग, पू. २आ, संपूर्ण पुहिं., पद्य, आदि: सुयो तू बहुत काल अवधु तु; अंति: अमृत सरसजा सब माग रे, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे ए प्रभु चाहीए; अंति: में तो ओर न ध्याउं, गाथा-३. ४. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. शांतिजिन पद, मु. नेम, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमां श्रीशांतिनाथ; अंति: प्रेमसु प्रभु दोउ कर जोडी, गाथा-४. ५. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. ४आ, संपूर्ण. गाथा-३. ८. पे. नाम गौतमगणधर छंद, पृ. ७आ९आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि रे जीव जिन धरम कीजीय; अति: मुगति तणां फल तांहि गाथा- ६. ६. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र स्तवन, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टसिद्ध नवनिध भंडार; अंति: जीवदया प्रतिपाल, गाथा - ५. ७. पे. नाम. चार मंगल शरणा, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. ४ मंगल, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि चत्तारि मंगलं अरिहंत अंति: (१) धमो सरणं पवजामि, (२) ज्यांने दुख कदीव न हो, ४७ For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेश्वर केरो शिष्य; अंति: गौतम तुठै संपति __ कोड, गाथा-९. ९. पे. नाम. तीर्थमाला स्तवन, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेर्जेजे रीषभ समोसर्या; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-८. ९५००५. (+#) बारव्रत पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १२४३०-३४). १२ व्रतपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: उच्चैर्गुणैर्यस्य; अंति: टालवा १२४ दीवा करीई, ढाल-१३, गाथा-१२४. ९५००६. (+) मैणरेहानी चोपी, अपूर्ण, वि. १८६०, आश्विन कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ६-१(३)=५, ले.स्थल. जहानाबाद, अन्य. सा. चतुरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १५-१७४३५-४३). मदनरेखासती रास, मु. हीर ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: जोवो मांस दारु थकी; अंति: सुणीनै परनारी संग न कीजै, गाथा-१७८, (पू.वि. गाथा-४७ अपूर्ण से गाथा-८१ अपूर्ण तक नहीं है.) ९५००९ (+) गणधरवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२.५, १६४५१). गणधरवाद, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तस्मिन्नवसरे ते अवसरने; अंति: (-), (पृ.वि. ११ गणधरों को दीक्षा प्रदान प्रसंग अपूर्ण तक है.) ९५०१० पर्युषण अष्टाहिका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५-१(८)=१४, दे., (२५४१२.५, ११४३७-४०). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: गद्यवंधं विलोक्य तत्, (पू.वि. "हे नाथ तत्र देवकुले" पाठ से "असत्य सत्य चौर्या" तक नहीं है.) ९५०१२. मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. जयनगर, प्रले. पं. गिरधारी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १२४४०-४५). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, म. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: शिष्यैरामोदतस्त्वदः, ग्रं. १६५. ९५०१४. (+#) द्विजवदनचपेटानाम प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२.५, १५४४८). द्विजवदनचपेटानाम प्रकरण, प्रा.,सं., प+ग., आदि: प्रमाणरूपं देवं; अंति: (-), (पू.वि. "तस्मादेकवर्ण एव नास्ति चातुर्वण्यमिति" पाठ तक है.) ९५०१५. (+) संयोगी भांगा गाथासंग्रह सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२,१०४३७). संयोगी भांगा गाथासंग्रह, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवद्धमाणतित्थाहिनायगं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ तक है., वि. यंत्र __ सहित.) संयोगी भांगा गाथासंग्रह-अवचरि, सं., गद्य, आदि: अट्ठनवेति प्रथमगाथोदाहरणं; अंति: (-). ९५०१६. (+#) कृष्णरुक्मणी चौपाई, अपूर्ण, वि. २१वी, मध्यम, पृ.५१-४०(१ से ४०)=११, ले.स्थल. देशणोक, प्रले. चंपालाल छल्लाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अद्यतन प्रत. पत्रांक दोनों ओर लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, २१४४७). कृष्णरुक्मणी चौपाई, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: रूक्मिणी पाती सिद्धि अनूप, (पू.वि. "बाहुबली महाराज आपका बलका" पाठ से है., वि. परिमाण संबंधी ढाल-गाथांक नहीं लिखा है.) ९५०१७. (+#) पोषदशमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८९, माघ कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. पुनमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, ७७३८-४२). For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंति: इदं कथानकं कृतं. पौषदशमीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने पार्श्वनाथ; अंति: तथा मोक्षना सुख पामे. ९५०१९. मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, जैदे., (२४.५४११.५, १२४२९-३४). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति:: शिष्यैरामोदतस्त्वदः, ग्रं. १६५. ९५०२०. मेरुत्रयोदशी व्याख्यान का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. हुंडी:मेरुतेरस., दे., (२५.५४१२, ११४३४-४०). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवस्वामीनै; अंति: संपत्ति प्रगट हुवै. ९५०२२. (+) भक्तामर व कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४१२.५, ९४२५-२७). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ५-१०आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ९५०२३. (+) अठावीस सामाचारी, संपूर्ण, वि. १७८३, पौष कृष्ण, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले. मु. प्रतापसी (गुरु पं. करमसी, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.पं. करमसी (गुरु ग. ज्ञानमेरू, बृहत्खरतरगच्छ); ग. ज्ञानमेरू (गुरु उपा. आणंदकुशल, बृहत्खरतरगच्छ); उपा. आणंदकुशल (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, १५४३२-३६). कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिणे काल तिणे समै श्रमण; अंति: ए वात भद्रबाहुस्वामी कही, (वि. मूल का मात्र प्रतीक पाठ दिया है.) ९५०२४. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१२, ५४३२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५२. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन क० स्वर्ग; अंति: जे समुद्र तेह थकी. ९५०२६. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८८७, आषाढ़ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. मुंबईबिंदर, प्र.वि. प्रतिलेखक का नाम मात्र मुनीजी लिखा है., जैदे., (२५.५४१२, ११४२३-२६). ४५ आगम पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: संघने तिलक करायो रे. ९५०२७. मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९४३, कार्तिक कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ८-१(१)-७, ले.स्थल. टधीटोला, प्रले. पं. रत्नचंद्र (बृहत्खरतरगच्छ); पठ. श्राव. गिरधारीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजी प्रासादात्., दे., (२४.५४११.५, ११४२३-२८). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, म.क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदिः (-); अंति: शिष्यैरामोदतस्त्वदः, ग्रं. १६५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., "निसंगृहितानियदा तेचलनार्थपुद्यताजाता" पाठ से है.) ९५०२८. सूत्रकृतांगसूत्र-विरत्थुइनामाज्झयण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२४, कार्तिक शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ५, दे., (२५४१२, ५४३२). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु० पुछता हवा कोण; अंति: काले इम हुं कहुं ९५०२९ (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-द्विपाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १०४२९-३७). For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-१ अपूर्ण पाठ "सागरोवमटठिआउ आउखएणं भवखएणं" तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमो क० नमस्कार हुवो माहरो; अंति: (-)... कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: सकलार्थ सिद्धि जननी कवि; अंति: (-), (पू.वि. पीठिका मात्र है.) ९५०३० (+) गुणठाणाना बोल, संपूर्ण, वि. १८९०, नभनंदवसुससि, माघ, मध्यम, पृ. १४, प्रले. मु. प्रेमजी (गुरु ग. अमरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पुज्यजी महाराजश्री वसरामजीस्वामी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४३७-४०). १४ गुणस्थानके २५ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार १ लखणद्वार; अंति: अनुयोगद्वारसूत्रथी जाणवो. ९५०३१. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१२(१ से १२)=९, जैदे., (२४४११.५, ८४४२-४६). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., "भिगभेयं रिट्ठग भमरावलि" पाठ से "अत्थमाणीय पेच्छमाणीय" तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "सर्पना छत्र तथा वृक्षविशेष" पाठ तक लिखा है व बीच के पाठ नहीं हैं.) ९५०३२ (+) वीसस्थानक जयति व वीसस्थानक माहात्म्य दूहा, संपूर्ण, वि. १९४६, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्रले. पं. गिरधारीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२४.५४१२.५, १४४२५-२७). १.पे. नाम. वीशस्थानक जयति, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण. २० स्थानकपद नमस्कार, सं., गद्य, आदि: अशोकवृक्ष प्रातिहार्य; अंति: श्रीसाधु तीर्थाय नमः. २.पे. नाम. वीशस्थानक माहात्म्य दहा, पृ. १२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वीशस्थानक तप आदरे; अंति: पदवी लहै पावे भवनो पार, गाथा-१. ९५०३३. (4) बिंबप्रवेश विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४-१६x४४-४७). जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: भलां मूहुर्त जोईइं; अंति: (-), (पू.वि. "विसर्जनोत्तर सौभाग्यमुद्रा मंत्रन्यास विधि" अपूर्ण तक है.) ९५०३४ (+#) जिनमंदिरपूजा विधिविधान संबंधी विविध विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-३(२ से ३,५)=१६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, २०४३४). जिनमंदिरपूजा विधिविधान संबंधी विविध विचार संग्रह, पंन्या. सुमतिवर्धन, रा., गद्य, आदि: वांदवा योग्य तीर्थंकर; अंति: कहतां मोक्ष पद तुरत पामै, (प.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९५०३५. (+) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १६x४८-५२). १.पे. नाम, ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. ___ ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज, पूजा-५, गाथा-९. २.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. ५आ, पूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ___ आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर वयण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ९५०३६. कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)-६, जैदे., (२५.५४१२, १६-१८४३६). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. बीच के पत्र हैं., "श्रीकल्पश्री सर्वज्ञ प्रणित मे शास्त्र प्रमाण" पाठ से "नागकेतु कथा" तक है.) ९५०३७. (+) जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११,१३४३०-३६). For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: हिवे पूर्वोक्त भला; अंति: (-), (पू.वि. "ॐ नमो वरुणाय पश्चिम दिगधिष्ठायमकरवाह" पाठ तक है.) ९५०३८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे.८, प्रले. मु. कल्याण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११.५, ११४१६-२२). १. पे. नाम. जंबुकुमार गहुँली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. दर्शनसागर पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी राजगृही सार लोक; अंति: दर्शनसागर इम वदेरे, गाथा-९. २. पे. नाम. महावीरजिन भास, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आया रे गुणशीलवन के; अंति: लक्ष्मीसूरि गुणठाण, गाथा-५. ३. पे. नाम. गुणसागरसूरि गहुँली, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजब कियो मुनिराय लघु; अंति: सुणि पामें शिवराज, गाथा-७. ४. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे आपण ससनेहि; अंति: वृषभ लंछन बलिहारी, गाथा-७. ५. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेश्वर पूजवा; अंति: उछले हर्षतरंग हो, गाथा-९. ६. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज उलग; अंति: मनरंग सुपंडित रूपनो, गाथा-७. ७. पे. नाम. इलाचीपुत्र सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम एलापुत्र जाणीइं धनदत; अंति: करे प्रेमविजय गुण गाया, गाथा-९. ८. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: घेर आवोने नेम वरणागी; अंति: मनोरथ सहु फल्या रे, गाथा-७. ९५०३९ (+) द्वादशव्रतटिप्पनिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में तिलोकचंदजी द्वारा की गई आलोयणा का विवरण है., संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३४-३७). ___ द्वादशव्रत टिप्पणक, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: निमंत्रण करै सौ पाचमौ. ९५०४० (+) स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. हुंडी:अतीतचोवीसी., संशोधित., जैदे., (२४४११, १०४३४-३६). स्तवनवीसी-अतीत, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जिणंदा तारा नामथी; अंति: देवचंद्र० देज्यो सदा सहाय, स्तवन-२१. ९५०४१ (+) भवणद्वार, संपूर्ण, वि. १९३४, आश्विन शुक्ल, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. सा. रिद्धि कंवर (नागोरीलुंकागच्छ); पठ. श्रावि. तेजकुवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भवणद्वार., संशोधित., दे., (२५.५४१२, १४-१६४३५-३८). भवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: घमा १ बंसा २ सिला ३ अंजणा; अंति: वंदणा नमस्कार हय जो. ९५०४२. (+#) नीशीथसूत्रवचनिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:नशीत., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १८-१९४३१-३५). निशीथसूत्र-वचनिका, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवौ श्रुतदेव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उद्देश-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ९५०४३. (+) बोल संग्रह-जैनाचार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. कालंद्री, प्रले. पं. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:विचारपत्र., संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १५४३५-४२). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिमान वांदवू; अंति: अनाचारी पिंडविशुद्धि सीखे. ९५०४४.(+) श्रीपाल चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४०-३३(१,७ से २४,२६ से ३९)=७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४११.५, ९४३२-३७). For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-१ गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-१६ अपूर्ण तक, खंड-२ ढाल-४ गाथा-२ अपूर्ण से गाथा-१७ अपूर्ण तक व खंड-३ ढाल-२ गाथा-१९ अपूर्ण से ढाल-३ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९५०४६ (+) कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कालिकाचार्य., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४११.५, १३४३२-३८). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. गर्दभिल्ल सरस्वती सती प्रसंग अपूर्ण तक है.) ९५०४७. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, ६४३५-३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन-३४ गाथा-४९ अपूर्ण से अध्ययन-३६ गाथा-९४ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ९५०४८. स्थानांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२०-११५(१ से ८९,९१ से ११३,११६ से ११८)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२५४११.५, ५-७X३८-४२). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थान-४ उद्देस-३ सूत्र-३४९ अपूर्ण से उद्देस-४ सूत्र-३६४ अपूर्ण तक है.) ९५०४९ (#) स्थापना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १५४३४-३८). जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.ग.,सं., प+ग., आदि: प्रणम्य स्वस्तिऋद्धिश्री; अंति: आवै तो बिंब की थापना करवी, (वि. सारिणी युक्त.) ९५०५० (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८६८, माघ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १२-४(१ से ४)=८, पठ. श्राव. प्रभुचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११.५, ४४२२-३२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: भेएहिं उदाहरणं, गाथा-५९, (पू.वि. गाथा-२० से है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: उदाहरण दृष्टांत जाणवा. ९५०५१ (+) मौनएकादशी व अक्षयतृतीया पर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी:मौनेका०.व्या०., संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १३४३२-३५). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व कथा, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीशाने; अंति: हम्मीरपुरसंश्रितैः, श्लोक-११६. २.पे. नाम. अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभुं; अंति: (-). ९५०५३. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १०४२५-२७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन कहता स्वर्ग; अंति: जीव सिद्धांत उद्धरीउं. ९५०५४. (+) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१२(१ से १२)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १२४३०-३४). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-१० की गाथा-१२ अपूर्ण से खंड-२ ढाल-५ की गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ५३ ९५०५५. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७१, माघ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ.८, प्रले. मु. ज्ञानचंद; पठ. मु. पानाचंद (गुरु मु. ज्ञानचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, ४४३०-३५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: गजसारेण० अप्पहिया. दंडक प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभादिक महावीर; अंति: लखी पोताना आत्माने अर्थे. ९५०५६. (+) चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९१८, आषाढ़ कृष्ण, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. मोरबी, लिख. देवजी गोर; पठ. श्राव. फुलचंद सखीदास महेता; अन्य. मु. खोडाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चिंता०.८०., संशोधित. कुल ग्रं. १५०, दे., (२६४१२, ३-४४३०). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि-अवचूरि, उपा. भोजसागर, सं., गद्य, आदि: (१)ॐ ह्रीं चिंतामणि प्रायं, (२)श्रीपार्श्वनाथस्य भगवतो; अंति: (१)इत्येकादशम पद्यार्थः, (२)विषये भव्यात्मनां कारणं, (वि. अवचूरि टबार्थ शैली में लिखी गई है.) ९५०५९ (+) आठ कर्मनी अठावन प्रकृतिनो विचार, संपूर्ण, वि. १८४७, कार्तिक शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. ओरंगाबाद, प्रले. मु. केसवजी; अन्य. सा. केसरजी; सा. रुषभजी; सा. कासीजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४४३). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते केहा; अंति: विषइ उद्यम करिवउ. ९५०६०. पंचकल्यानक महोत्सवे अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९५०, पौष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. लक्ष्मणपुर, प्र.वि. हुंडी:पंचकल्यानक., दे., (२५४१२.५, १२४४८-५२). पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिबो; अंति: (१)वंछित दाय सुहायो रे, (२)नैवेद्य यजामहे स्वाहा, ढाल-८. ९५०६२. (+#) बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २५-१८(१ से १८)=७, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ४४३१). बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधन कारण सभाव हेतु तेह; अंति: कर्मबंधादिक जाणवा अर्थे, संपूर्ण. ९५०६४. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-२(१ से २)=८, जैदे., (२६४१२, १३४३०-३२). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., स्नातस्या स्तुति से श्रावक अतिचार अपूर्ण तक है.) ९५०६५. (+#) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३१-१२७(१ से ११५,११७ से ११९,१२२ से १३०)=४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. हुंडी:शांतिनाथ चरित्र., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८४५०). शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रस्ताव-६ की "करालपिंगल कथा" अपूर्ण से "सुलस कथा" अपर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं है.) ९५०६७. (+) श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८७९, ज्येष्ठ कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४३०). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ९५०६९ (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-५(१ से २,६,८ से ९)=७, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:दशविकालिक०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२४.५४११.५, ५४३१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३ गाथा-२३ अपूर्ण से अध्ययन-४ प्रत्याख्यान अपूर्ण आलापक अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५०७० (+) प्रज्ञाप्रकाश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७१, भाद्रपद कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. जुनागढ, प्रले. मु. त्रीभोवनजी (गुरु मु. गुलाबचंद्रजी स्वामी, लींबडी संप्रदायगच्छ); गुपि. मु. गुलाबचंद्रजी स्वामी (गुरु मु. लाधाजी स्वामी, लींबडी संप्रदायगच्छ); मु. लाधाजी स्वामी (गुरु मु. हीमचंद्रजी स्वामी, लींबडी संप्रदायगच्छ); मु. हीमचंद्रजी स्वामी (लींबडी संप्रदायगच्छ); पठ. श्रावि. मोतीबहेन हर्खचंदभाई कोठारी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:प्रज्ञाप्र०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११.५, ५४३१-३३). प्रज्ञाप्रकाशषत्रिंशिका, म. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन; अंति: मयका प्रणीता, श्लोक-३७. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: प्र० बुद्धिप्रकाश कर; अंति: भव्यजीवनां हेत कारणे रची. ९५०७१ (+) महावीर स्तव निगोदविचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १२-१३४३९). भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (१)लोगस्स णं भंते एगम्मि, (२)लोगस्सेगपएसे जहणयपय; अंति: जाणए पद्यं तेनंता असंखाया, गाथा-३६. निगोदषट्त्रिंशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इम लोकाकाश प्रदेशनें; अंति: उद्देशे ए अधीकार छे. ९५०७५ () नवतत्त्व प्रकरणादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-८(९ से ११,१३ से १७)=११, कुल पे. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १०४२२-२७). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.. नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-५३. २.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ४आ-८आ, संपूर्ण, वि. १८३३, वैशाख कृष्ण, १, बुधवार, प्रले. पं. आणंदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. शांतिसरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. ३. पे. नाम. साधुअतिचार, पृ. ८आ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: संबंधीओ अनेरो०, (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं हैं.) । ४. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार मवद्य; अंति: (-), (पू.वि. मात्र श्लोक-१ है.) ५. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १८अ-१९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. ___ ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से गाथा-४० तक है.) ९५०८० (+) नवतत्त्व बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(३)=५, ले.स्थल. पाली, प्रले. घासीराम; पठ.सा.खेमाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १७-१९४३१-४७). नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: ते पुन्य आदरवा योग्य छे. ९५०८२. दानशीयलतपभावसंवाद व कर्मविपाकफल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३१-३८). १.पे. नाम. दानशीलतपभाव संवाद, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, वि. १८३४, फाल्गुन कृष्ण, ८, शनिवार, ले.स्थल. समउग्राम, प्रले. पं. गोविंदविजय (गुरु पं. वृद्धिविजय गणि); गुपि. पं. वृद्धिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पय नमी; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. २.पे. नाम, कर्मविपाकफल सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तिर्थंकर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ९५०८३. (+#) रात्रीभोजन चतपदी, अपूर्ण, वि. १८२७, वैशाख कृष्ण, ६, मध्यम, पृ.७-२(१,३)=५, प्रले. सा. सुजाणाआर्या शिष्या (गुरु सा. सुजाणा आर्या); गुपि. सा. सुजाणा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रातेभोजनरीचोपाई., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, २१-२२४६०). For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ रात्रिभोजन चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: (-); अंति: सुमतिहंस० चिरनंदैजी, ढाल-२४, गाथा-४०५, (पू.वि. ढाल-५ की गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-६ अपूर्ण व ढाल-११ गाथा-६ अपूर्ण से है.) ९५०८४ (+#) सूर्ययसराजारी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, अन्य. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १५४२६-५०). सूर्ययशराजा कथा, मा.गु., गद्य, आदि: पुन कहतां फेर इण परव; अंति: फल री सिद्धी हुवो. ९५०८७. (+) चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४९, पौष कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. १३३-१२४(१ से १२४)=९, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. दीपसागर (गुरु ग. कुंअरसागर); गुपि.ग. कुंअरसागर (गुरु पं. रामसागर गणी); पं. रामसागर गणी (गुरु पं. महिमासागर); पं. महिमासागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:चित्रसेनपद्मावतीचरित्रं पत्र. श्रीआदिनाथजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१२) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२५.५४११.५, ५-७X२१-३५). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: (-); अंति: कथामकरोत् __ पाठकराजवल्लभः, श्लोक-१२१४, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., श्लोक-११४० से है.) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, ग. भक्तिविजय, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: अर्थे का छे, प.वि. अंत के पत्र हैं. ९५०८८ (+#) उत्तराध्ययनसूत्र का विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-११(१ से ९,११ से १२)=५, पूवि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १२-१४४२८-३३). उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सज्झाय-१९ की गाथा-८ अपूर्ण से सज्झाय-३० की गाथा-२ अपूर्ण तक है व बीच-बीच की गाथाएँ नहीं हैं.) ९५०८९ (+) इंद्रियपराजयशतक, भववैराग्यशतक व आदिनाथदेसनोद्धार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९, कुल पे. ३. प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ६४३०-३७). १. पे. नाम. इंद्रियपराजयशतकं सह टबार्थ, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण. इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: सुच्चिअ सूरो सो; अंति: संवेगरसायणं निच्चं, गाथा-१००. इंद्रियपराजयशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेहिज सूर तेहिज; अंति: संवेग रसायन नित्यं. २. पे. नाम. भववैराग्यशतकं सह टबार्थ, पृ. १०आ-२०आ, संपूर्ण. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि सुहं; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: पामीस तुं शाश्वतुं ठाम. ३. पे. नाम. आदिनाथदेशनोद्धारं सह टबार्थ, पृ. २०आ-२९अ, संपूर्ण. आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुहं; अंति: सिवं जंति, गाथा-८८, ग्रं. ८२५. आदिनाथ देशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारमांहि नथी सुख; अंति: शिव मोक्ष पहुंचइ. ९५०९२. (#) अनंतव्रत कथा व मौनएकादशीपर्व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-२(१ से २)=६, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १२-१५४३६-४२). १.पे. नाम. अनंतव्रत कथा, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: इदृग् विधं फलं प्राप्नोति, (पू.वि. "उत्पाद्य धर्मोपदेशं दत्वा" पाठ से है.) २.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व कथा, पृ. ३अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१४१ तक है.) ९५०९३. (+#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. गेरमल व्यास, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२, १२४४०). महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरस्वति भगवती दीओ; अंति: धन्य धन्य मुज ए गुरो, ढाल-१२, गाथा-७९. ९५०९५. अष्टादसपापस्थानक स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १८४१, चैत्र शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ११-३(२ से ४)=८, जैदे., (२६४११.५, ११४३६). For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलं का; अंति: वाचक जस इम आखइरे, सज्झाय-१८,ग्रं. २११. ९५०९६. (+) नवतत्त्व चौपाई व मानवभवदर्लभ सज्झाइ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-१२(१ से ११,२२)=११, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४३४). १.पे. नाम. नवतत्त्व चौपाई, पृ. १२अ-२१आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जीवतत्त्व ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण से मोक्षतत्त्व ढाल-९ गाथा-३५ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. मानवभवदुर्लभ सज्झाय-औपदेशिक, पृ. २३अ-२३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. औपदेशिक सज्झाय-मानवभवदुर्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) ९५०९७. प्रियमेलक चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२५.५४११.५, १३-१५४३५-४५). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१० गाथा-४ अपूर्ण तक है. (२९६ अपूर्ण तक)) ९५०९९ (+) धम्मिल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:धमीलरास., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १४-१५४४२-५०). धम्मिल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: स्वस्ति श्रीसुखदायिक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११२ अपूर्ण तक है.) ९५१०० (+) महावीरजिन स्तवन २४ दंडक गर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२४३४). महावीरजिन स्तवन-२४ दंडकगर्भित, क. पद्मविजय, मा.ग., पद्य, आदि: प्रणमी सरसति भगवती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८४ अपूर्ण तक है.) ९५१०१. (+#) सुक्तमुक्तावली प्रकृतिबंध, अपूर्ण, वि. १८२२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १०-४(१ से ४) ६, ले.स्थल. रोहिठनगर, प्रले. मु. उरजा ऋषि; पठ. मु. भगवान (गुरु मु. जेसींघजी); गुपि. मु. जेसींघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३-१६४३८-४३). सूक्तमाला, म. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: केसरविमलेन विबुधेन, (पू.वि. धर्म वर्ग की गाथा-६२ अपूर्ण से है.) ९५१०२ (+#) भुवनदीपक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२६४११.५, १७४४८-५०). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१०२ अपूर्ण तक है.) ९५१०३ (+#) शत्रुजयतीर्थ रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६२-५७(१ से ५७)-५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२४४११, १९x४८-५४). शत्रंजयतीर्थ रास, म. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, वि. १७५५, आदिः (-); अंति: ), (प.वि. खंड-३ ढाल-२७ गाथा-२ अपूर्ण से खंड-४ ढाल-७ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ९५१०४. (+#) खंडाजोयण, संपूर्ण, वि. १८९३, चैत्र कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. उदयपुर, प्र.वि. हुंडी:खंडज., संशोधित. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२४४११, १५४३०-३४). लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: लाख जोयणनो जंबूद्वीप; अंति: रोहितानी पर जाणवो. ९५१०५ (+#) आर्य वसुधारा कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२५४११.५, १२४३४-३६). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ५७ ९५१०६. (+#) सिंदरप्रकर व साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८९२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, सोमवार, मध्यम, पृ.८, कुल पे. २, ले.स्थल. नीबोल, प्रले. मु. कीर्तिसौभाग्य (गुरु मु. अनोपविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रकर., संशोधित. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४३७-४०). १. पे. नाम. सिंदूरप्रकर, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. __ आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सकल करम वारी मोक्षमार्गा; अंति: राजेंद्र टंकार सहितोहरी, गाथा-५. ९५१०७. (+#) पखीसूत्र, पक्खी खमासणा व पक्खी चौमासी प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८६५, भाद्रपद कृष्ण, ९, रविवार, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ३, ले.स्थल. वाडीया, प्रले. ग. तिलोकहंस (गुरु ग. युक्तिहंस); पठ. मु. दीपहंस (गुरु ग. तिलोकहंस), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पाखीसूत्र., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १४४३६-४२). १. पे. नाम, पक्खिसूत्र, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पक्खि खमासणा, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंति: इच्छं समोणसट्ठियं, आलाप-४. ३. पे. नाम. पाक्षिक चोमासी प्रतिक्रमण विधि सह टबार्थ, पृ. ११आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: मुहपत्तिवंदणयं; अंति: पक्खिपडिक्कमणं. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह भगवन्; अंति: पछै उत्तरतै मंकवा. ९५१०८. कर्मग्रंथ १-६, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८, कुल पे. ६, जैदे., (२४४११, १०४३०-३५). १.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६२. २. पे. नाम, कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३५. ३. पे. नाम, बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, पृ. ७आ-९आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२४. ४. पे. नाम, षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, पृ. ९आ-१५आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, पृ. १५आ-२२अ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. ६.पे. नाम. प्राचीन कर्मग्रंथ, पृ. २२अ-२८आ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: पूरेऊणं परिकहंतु, गाथा-९२. ९५१०९ (4) वसुधारा स्तोत्र व विधि, संपूर्ण, वि. १८७२, आश्विन कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. दुधइ, प्रले. पं. मणिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १४४३२-३८). १. पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: भोगयोगं च विधत्ते. २. पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र साधना विधि, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. वसधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: मास ६ पर्यंत सेवा; अंति: कीजे वांछित सिद्धि होइं. ९५११० (+) ब्रह्मचर्यबावनी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १३४३३). For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ब्रह्मचर्यद्विपंचाशिका, मु. समरसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर पाय प्रणमी; अंति: वर हेलें शिवरमणी वरे, गाथा-५३. ९५१११ (+#) पचीस बोलरो थोकडो, अपूर्ण, वि. १९०१, आषाढ़ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १६-१२(१ से १२)=४, प्रले. मु. देवीचंद; पठ. मु. वृद्धिचंद, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १४४३३-३६). २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: यथाख्यातचारित्र, (पू.वि. बोल-१० अपूर्ण से है.) ९५११२. (+) आचारप्रदीप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १३४४३-४७). आचारप्रदीपादि विविध ग्रंथों से चयनित गाथासंग्रह, प्रा., पद्य, आदि: ओहो सुओवउत्तो सुणनाणीजइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "स कथं हार्यते हंत प्रमादरज्जसा नरै" पाठ तक लिखा है.) ९५११३. (#) दानविषये सती गुणावली चरित्र, अपूर्ण, वि. १८७९, आषाढ़ शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. १३-४(६ से ९)-९, ले.स्थल. पाली, पठ. सा.रंभा (गुरु सा. जामा); गुपि. सा. जामा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १८४४०-५५). गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: गजकुशल०नित सुख आणंदा, ढाल-२९, (पू.वि. ढाल-९ गाथा-१५ अपूर्ण से ढाल-२२ तक नहीं है.) ९५११५. (+) पंचप्रतिक्रमणसूत्र विधिसहित सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२३-१११(१ से ११०,११५)=१२, प.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ३-१७४१९-४५). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "देसावगासिक पचक्खाण से स्नातस्या स्तुति" गाथा-३ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है., वि. १४ नियम, पौषधविधि व पंचमी स्तुति आदि संग्रह हैं.) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९५११६. (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, ३-७४१८-५०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, बीच-बीच के पाठ हैं., वि. पत्रांक भाग खंडित है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ९५११७. सभाषित कोश, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-२(९ से १०)=१२, जैदे., (२४.५४११.५, १४४४२-५०). सुभाषित कोश, सं., पद्य, आदि: कर्तव्यं जिनवंदनं विधि; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा __ अपर्ण., "प्रतिज्ञा द्वार" श्लोक-३ अपूर्ण से "मनस्वी द्वार" श्लोक-२ अपूर्ण तक नहीं है व "कुपुत्र द्वार" श्लोक-४७ अपूर्ण तक लिखा है.) ९५११८. (+) वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. हुंडी:वैद्यवल्लभ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ८४४५-५५). वैद्यवल्लभ, म. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि; अंति: परोपकाराय विहितोयम, विलास-९, श्लोक-३४१. वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसारदा प्रते हृदय; अंति: हेतइं ए ग्रंथ कीधो. ९५११९ सौभाग्यपंचमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. १२, प्रले. मु. प्रतापविजय (गुरु मु. पद्मविजय); गुपि. मु. पद्मविजय (गुरु पं. भीमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ६४३४-४०). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनाधि; अंति: लिखिता सुरेव च मेडतानगरे, श्लोक-१५३. वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानलक्ष्मीवंत शोभावंत; अंति: १६ सोल पन्नत्तरा वषई. ९५१२०. आनंदश्रावक संधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, दे., (२६४१२, १३४४८-५१). For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४ आदि वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति पभणड़ मुनि श्रीसार, ढाल - १५, गाथा - २५२. ९५१२३. कोश्या स्थूलभद्र संवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १३-४ (१ से ४)=९. दे. (२४४११, ८-९४१८-२० ). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., ढाल-१ गाथा-१ से ढाल ४ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ५९ ९५१२५ (+#) गुणस्थानक्रमारोह सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७३२, मध्यम, पू. २७-३(५,१५ से १६) = २४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२५X१२, १५X३६-३८). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि सं., पद्य वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह अति चैव रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३६, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदि: अर्हं पदं हृदि, अंतिः प्रकटित इत्यर्थः ९५१२८. २० विहरमानजिन गीत, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-१ (१) = ६, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६X१२, ११-१४४३२-३५). २० विहरमानजिन स्तवन, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति (-) (पू.वि. युगमंधरजिन गीत गाथा- २ अपूर्ण से देवजसजिन गीत गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ९५१३० (+) कल्पसूत्र-समाचारी सह टवार्ध व वालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X११.५, ६-१५X३४-३७). 1 , संपूर्ण . कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-) अति उबदसेइ ति बेमि . १२१६, प्रतिपूर्ण कल्पसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-) अंति: आगे एहवो कहता हुआ, प्रतिपूर्ण कल्पसूत्र - बालावबोध*, मा.गु. रा., गद्य, आदि: (-); अंति: तत्र देवगुर्वीः प्रसादः, ९५१३२. ज्ञानस्वरोदय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २६. प्र. वि. हुंडी स्वरोद०, दे. (२४.५४११.५, ९-११४२८-४०)स्वरोदयज्ञान, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०७, आदि: नमो आदि अरिहंतदेव; अंति: नंद चंद चित्त धार, गाथा ४५१. ९५१३४ (+) दसविकालिकसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७९७, भाद्रपद कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ५८-५९ (७ से ५७)=७, प्र. वि. हुंडी वसविसू०, पदच्छेद सूचक लकीरें. प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (१४८) यदक्षरपदभ्रष्ट, जैवे., (२५.५X११.५, ५X३८). • दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी आदि धम्मो मंगलमुक्कि अंति: अपुणागमं गइ तिबेमि, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-४ महाव्रत- १ पच्चक्खाण अपूर्ण से अध्ययन १० गाथा - १७ अपूर्ण तक नहीं है. ) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ध० धर्म जिनभाषित; अंति: एहवी मोक्षगति पामइ. ९५१३५. (+) त्रैलोक्यदीपिका नाम संग्रहणि, अपूर्ण, वि. १८९७, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २१-५ (१२ से १६)=१६, ले. स्थल. भावपुर, प्रले. मु. मोतीविजय (गुरु मु. कस्तूरविजय); गुपि मु. कस्तूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : संग्रहणी, संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १२-१४X३५-३७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ, अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा - ४१५, (पू.वि. गाथा २४५ से गाथा-३३२ अपूर्ण तक नहीं है.) ९५१३६. .(+) धनंजयनाममाला, संपूर्ण, वि. १७०८, फाल्गुन शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ११, प्रले. मु. वीरविजय (गुरु पं. वृद्धिविजय गणि) गुपि पं. वृद्धिविजय गणि पठ श्रावि. केसरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४११.५, १३४३३-४०). धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि परं ज्योति; अंतिः शरणोत्तम मंगलान्, श्लोक-२४६. ९५१३७. महावीरजिन स्तवन सह वालाववोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १६- १ ( २ ) = १५. पू. वि. बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. हंडी प्रतीमा स्तुती, त्रिपाठ, जै, (२५.५४११, १-११४३३-३७). , For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-८ से ढाल-६ गाथा-१३ तक है.) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९५१३९ (#) भक्तामर स्तोत्र व चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.६, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११.५, ८४३५-४०). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण, वि. १८५९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, शुक्रवार, ले.स्थल. चीलाडा. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २.पे. नाम, चिंतामणपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मनसुध आसता देव; अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर, गाथा-७. ९५१४० मौनेकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२४४११,११४३८-४२). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीशाने; अंति: हम्मीरपुरसंश्रितैः, श्लोक-११६. ९५१४१ (+#) विचाररत्नसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १२-१४४३६-४२). विचाररत्नसार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-), (पृ.वि. "अचेतन २ अक्रीय ३ गतिसहाय ४ अधर्मा" पाठ तक है.) ९५१४२. चिदानंदबहोतरी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६, दे., (२४.५४११.५, १३४३६-४३). चिदानंदबहोत्तरी, म. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: पिया परघर मत जावो; अंति: कुतरक तौहे नांही नडै रे, अध्याय-७०. ९५१४३. (+) वंगचूलियासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६०, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि (गुरु ग. वनीतविजय); गुपि. ग. वनीतविजय (गुरु ग. रत्नविजय); ग. रत्नविजय (गुरु ग. सुखविजय); ग. सुखविजय (गुरु ग. बुद्धिविजय); ग. बुद्धिविजय (गुरु मु. तत्त्वविजय); मु. तत्त्वविजय (गुरु ग. देवविजय, तपागच्छ); ग. देवविजय (गुरु ग. संघविजय, तपागच्छ); ग. संघविजय (गुरु गच्छाधिपति सेनसूरि *, तपागच्छ); गच्छाधिपति सेनसूरि * (गुरु आ. हीरसूरि *, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४१२, ७X४३-४५). वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिब्भरनमियसुरवर; अंति: चित्तो होह पइ हियहं. वंगचूलिका प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिना समुहे करीने; अंति: भाव ही तो मुगति आप हजूर. ९५१४४ (+) तपस्या विधि, संपूर्ण, वि. १८७४, आश्विन कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. मकसुदाबाद(अजीमग, प्रले. पं. भाग्यविलास, प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. श्रीनेमनाथजीप्रसादात्. भागीरथीतटे., संशोधित., जैदे., (२४४११, १६-१८४३६-४६). तपावली, मा.गु., गद्य, आदि: पुरिमढ्ढ१ एकासणां२; अंति: ६६ पारणा ६२ मास ४ लागे, (वि. सारिणी युक्त) ९५१४५. (+) १४ जीवठाणानां बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, अन्य. मु. वसरामजी स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जीवट्ठा०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३२-३७). १४ जीवस्थान-कर्मविशुद्धिमार्गणा अपेक्षाए, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: जीवठाणा नाम १ लक्षण; अंति: ४ अनंतानुबंधनो उदय नहीं. ९५१४७. (+#) ग्रंथसूची, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४११.५, २३४२१). आगमादि ग्रंथसूची, मा.गु., गद्य, आदि: प्रस्फुरंतु संवत् १८६०; अंति: टबो पत्र ८३. ९५१४८. (+#) उपदेशमाला-पीठिका की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८८०, आश्विन कृष्ण, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, ले.स्थल. सोजतनगर, प्रले. मु. कमलसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपदेशमाला., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १६x४६-४८). For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. "तदवसरे सुग्रामवासी ___ कश्चित्सुंदरनामाकटुंबिक" पाठ से है.) ९५१४९ (#) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प.७, प्रले.पं. धर्मरूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, ११४२३-२७). गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल; अंति: कहीये कुसलदा दो परतिख देव, गाथा-५४. ९५१५० (+) बावनजिनालायांपूजा , संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४४११, ९४३२-३५). नंदीद्वीपस्थजिनालय स्तुति, सं., पद्य, आदि: दिशि श्रीपूर्वस्या; अंति: जयंत मदमानवसिंधुराए, श्लोक-५३. ९५१५१. (#) उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१-९(१ से २,२४ से ३०)=२२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:उपदेसमालाकथा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २६-३०४६८-७२). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से गाथा-१३८ अपूर्ण तक व बीच के कुछ पाठांश नहीं है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कथा-४ से कथा-३९ तक है व बीच के कथांश नहीं है.) ९५१५३.(+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४५०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा- ५३९ तक है.) ९५१५४. वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३१-३५). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. 'मनोज्ञा संदर्शनीयांश्च भवेयुः' पाठ से 'नामधारिणी धारिता वाचिता' पाठ तक है.) ९५१५६. (+) गोतमपृच्छा सह सगमावृत्ति, अपूर्ण, वि. १८८१, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५२-३५(१ से ३५)=१७, ले.स्थल. गोगुंदा(मेवाड), प्रले. मु. नेमिचंद्र (गुरु पं. मानविजय); गुपि.पं. मानविजय (गुरु पं. विनितविजय); राज्यकाल रा. शत्रुसालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १३४३४-४०). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४, (पू.वि. गाथा-४७ से है.) गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: नगर्यां च शुभे दिने, ग्रं. १६८२. ९५१५७. नवतत्त्व प्रकरण का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-२(१ से २)=१९, जैदे., (२४.५४११, ९४२८-३२). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: माहरो निमस्कार हुवै, (पू.वि. संभावित गाथा-४ के बालावबोध अपूर्ण से है.) ९५१५८. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९-५(७ से ११)=३४, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. वस्तुतः पत्रांक-२असे प्रारंभ है., जैदे., (२४.५४११, ५४३२-३७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-७ गाथा-३६ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: गो० श्रीगोतमस्वामीनइ न०; अंति: (-). ९५१५९ (+) गौतमपृच्छा का कथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १८४७, माघ शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. जालणापुर, प्रले. मु. माणकचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १६४३७). गौतमपृच्छा-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: जिम जाया पुछीइं अशुभकर्म; अंति: लिधी इतलई दृष्टांत कह्यो, कथा-९. ९५१६१ (+) नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१०, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी:जीवतत्वट०., संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४११.५, ६४३०). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. सौ . For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४४. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: एक सिद्ध अनेक सिद्ध. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ५अ-१०अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनरइ विषइ दीवा; अंति: श्रुतशास्त्रसमुद्र थकी. ९५१६५. थूलिभद्र नवरस, संपूर्ण, वि. १८३३, ज्येष्ठ, ७, मध्यम, पृ. ११, जैदे., (२५४११.५, १०४२८-३२). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत दायक सदा पायक जास; अंति: उदयरतन० भणतां मंगलमाल, ढाल-९, गाथा-७४. ९५१६६ (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, भाद्रपद कृष्ण, मध्यम, पृ. १२-१(८)=११, ले.स्थल. मुजपुर, पठ. मु. देवजी (गुरु मु. दीपचंदजी); गुपि.मु. दीपचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४११.५, ४४३०-३२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४८, (पू.वि. श्लोक-३० अपूर्ण से श्लोक-३४ अपूर्ण तक नहीं है.) ९५१६७. (+#) वच्छराजहंसराज चौपई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०-११(१ से ८,२३ से २५)=२९, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४२५). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., खंड-१ ढाल-७ गाथा-५ अपूर्ण से खंड-४ ढाल-१ गाथा-२ अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं है.) ९५१६८. गुर्वावली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७-१५(२ से १६)=१२, प्र.वि. हुंडी:गुर्वावलीपत्र., दे., (२५४११.५, १३४३४-४०). पट्टावली, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जगन्नाथं; अंति: (-), (पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जिनमहेंद्रसूरि तक लिखा है व बीच के पाठांश नहीं है.) ९५१७० (+) वृद्धसंग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २३-३(१ से ३)=२०, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:वृ०सं०सू०., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ९४३८-४२). बहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि.७पू, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३९ अपूर्ण से ३४० अपूर्ण तक है.) ९५१७५. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-९(१ से ८,१३)=५, जैदे., (२६४१२, ६४३३). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-३ अपूर्ण से है व सूत्र-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ९५१७६. (+) नारचंद्र ज्योतिषसार, संपूर्ण, वि. १८६१, पौष कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. भावनगरबिंदर, प्रले. ग. निधानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आदेसरप्रसादात., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-द्विपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १४४४०-४२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति: वस्तु मीने वस्तु जलाश्रये, श्लोक-२९४. ९५१७९. वीसविहरमानजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८१५, भाद्रपद कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, ले.स्थल, कालावाड, प्रले. पं. कल्याणचंद्र (गुरु पं. खुशालचंद्र गणि); गुपि.पं. खुशालचंद्र गणि (गुरु पं. भाग्यचंद्र गणि); पं. भाग्यचंद्र गणि (गुरु पं. सभाचंद्र गणि); पं. सभाचंद्र गणि, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:वैहरमानवीसी., जैदे., (२६४११.५, १५-१७४३५-४५). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सेवक वाचक जस इम बोलई रे, स्तवन-२०, (पू.वि. पंचम सुजातजिन स्तवन से है., वि. अंत में १ सुभाषित श्लोक है.) ९५१८० (+#) हरिबलराजाधिराज रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)=७, प्र.वि. पत्रांक वाला भाग खंडित होने से अनुमानित पत्रांक दिया गया है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १३४४६-४८). For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ जीवदया रास-हरिबलराजा, मु. विनयकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: विनयकुशलतस लिखमी भरपूरसु, गाथा-२९६, (पू.वि. गाथा-१२३ अपूर्ण से है.) ९५१८१. २२ परिषह दृष्टांत कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-४(१,३,६ से ७)=७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, १६x४८-५४). २२ परिषह दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "श्रेणिकनृप कथा" अपूर्ण से "आर्यरक्षित कथा" अपूर्ण तक है.) ९५१८२. (+#) २४ जिन पंचकल्याणक स्तवन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४)=५, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३). १. पे. नाम. विंशतिशतजिनकल्याणक स्तवन, पृ. ५अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. २४ जिन पंचकल्याणक स्तवन, मु. विद्याविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६०, आदि: (-); अंति: विद्या० संपद सुखकरा, गाथा-४६, (पू.वि. गाथा-१३ से है.) २. पे. नाम. बीजनी थोय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूद्वीपे अहनिश दीप; अंति: नय संघना विघन निवारि जी, गाथा-४. ३. पे. नाम, पांचमनी थोइ, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचवरण कलशे करी जिन; अंति: रीसंघ विघन निवारीजी, गाथा-४. ४. पे. नाम. आठिमनी थोइ, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगलि; अंति: तपथी कोडि कल्याण जी, गाथा-४. ५. पे. नाम. मौन्यएकादशी थोई, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., पद्य, आदि: नयरी द्वारामती कृष्ण नरेश; अंति: जे कवि नय इम पभणीजे, गाथा-४. ६.पे. नाम. चतुर्दशीतिथि स्तति, पृ. ९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चउद सुपन सूचित हरिपूजित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ९५१८३. (+#) नयचक्र की भाषावचनिका का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-५(४,६ से ९)=६, प्रवि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ११४३०-३४). नयचक्र-भाषावनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: स्यात्कारमुद्रिता; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., भूतनय वर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९५१८४. (4) शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १५-७(१ से ६,९)=८, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५-१६४३८-४२). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रेणिकराजा का भद्राशेठाणी के घर आगमन से शालिभद्र द्वारा माता के संयमग्रहण के लिए विनती प्रसंग तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९५१८९ (+) गोराबादल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:गोराबादल., संशोधित., जैदे., (२४४११, ११४२८-३२). गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६४५, आदि: सुखसंपतिदायक सकल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३८८ अपूर्ण तक है.) ९५१९० (+#) जिनप्रतिमास्थापना प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. १५७५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११-१३४३८-४४). For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनप्रतिमास्थापना प्रबंध, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: श्रीजिणवर वंदउं चउवी; अंति: जिनधर्म विस्तर, अधिकार- १३, गाथा - ६७२, ग्रं. १६००. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९५१९१. (+) राजसिंहरत्नवती पंचकथा रास, संपूर्ण वि. १८४२ कार्तिक शुक्ल, ७ मंगलवार, मध्यम, पू. ३८, ले. स्थल, नंदीपुर, प्रले. मु. रुपचंद (गुरु पं. धनविजय); गुपि. पं. धनविजय (गुरु पं. भक्तिविजय); पं. भक्तिविजय (गुरु पं. हेमविजय) पं. हेमविजय (गुरु पं. वर्द्धमानविजय); पं. वर्द्धमानविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी : रास नवकारनो., संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, १३x२२-२८). राजसिंहरत्नवती कथा नवकारप्रभावे, मु. गौडीदास, मा.गु., पच, वि. १७५५, आदि सारद शुभमतिदायिनी; अति भणे सकल संघ मंगल करु, ढाल - २४, गाथा- ६०५, ग्रं. ८८५. ९५१९४. (+) वर्द्धमानदेशना, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १३०-१०० (१ से १६, १९ से ४० ६५ से १२६) = ३०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी: बर्द्धमानदेश०., पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२५x१२, १०x४०-४२). " " " वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-१ हरिबलकथा अपूर्ण से उल्लास-४ सुरादेवचरित्र अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं है.) ९५१९५. दीवालीकल्प व्याख्यान, संपूर्ण वि. १९३१ मध्यम, पू. २५, ले. स्थल. नागपुर, प्र. वि. हुंडी दीवाली, दे., (२५४११.५, ९x१७-२३). יי दीपावलीपर्व व्याख्यान, प्रा. सं., गद्य, आदि जाते वीरजिनस्य निवृत अंतिः ऋद्धिबुद्धिदायको भवतु. " ९५१९६. (+) पार्श्वजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २६-३ (१ से ३)=२३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२५४१२, १५४३९-४५). पार्श्वजिन चरित्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., भव-३ अपूर्ण से "काममोहिता अनार्याणि कार्या" पाठांश तक है.) ९५१९८. (+) वैद्यमनोत्सव व रामविनोद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७३ कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १६x४४-४८). १. पे. नाम वैद्यमनोत्सव, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण, वि. १८२१, चैत्र कृष्ण, ११, बुधवार. नयनसुख केसराज, मा.गु., पद्य, वि. १६४९, आदि: शिवसुत प्रणमुं हुं; अंति: थ कह्यौ समझि आदिअंत, अध्याय-७, गाथा - ३२५. २. पे नाम. रामविनोद, पृ. १२आ- ७३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धबुद्धिदायक सलहीयै; अंति: (-), (पू.वि. समुद्देश-७ गाथा-२७० अपूर्ण तक है.) ९५१९९. (९) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण वि. १७७७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, रविवार, मध्यम, पू. १६६-१११(१ से २२, २५ से ७९,१०३,१२७ से १५९)=५५ ले स्थल मेदनीपुर प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १००८०, जैवे. (२५.५x११, ६५३४-३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-) अंति: (१) सम्मए त्ति बेमि, (२) पुव्वरिसी एवं भासंति, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पू.वि. अध्ययन- ७ गाथा - ११ अपूर्ण से गाथा- ३० तक, अध्ययन-२१ गाथा-८ अपूर्ण से अध्ययन-३२ गाथा-१६ अपूर्ण तक व अध्ययन-३६ गाथा-९४ अपूर्ण से है.) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति जीव पूर्व ऋषीश्वर इम कहई. ९५२०१. दानशीलतपभावना कुलक-दानकुलक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१०, चैत्र कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३२, ले. स्थल आसोप प्रले. पं. कुस्यालहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४४१०.५ १६ १७४३२-४३). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रज्जसारो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. दानशीलतपभावना कुलक-बालावबोध, मु. विनयकुशल, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा जिनपदयुगलं वक्ष्येह, अति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९५२०२. (+) विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८४५, माघ शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. २१-१(१)=२०, ले.स्थल. सूरतबिंदर, प्रले. मु. रामचंद्र (गुरु पं. कृष्णविजय); गुपि.पं. कृष्णविजय (गुरु पं. कनकविजय); पं. कनकविजय (गुरु भट्टा. विजयऋद्धिसूरि); भट्टा. विजयऋद्धिसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, (४७१) भग्नपृष्टं कटिग्रीवा, जैदे., (२५.५४११.५, ३-१६४११-५०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४३, (पू.वि. गाथा-१ नहीं है.) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आत्महिता आत्माने हितकारी. ९५२०३. (+) हंसराजवच्छराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१७, पौष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ४५, प्र.वि. हुंडी:हंस०वछ., संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १३४३०-३५). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: ए हंस अनै वच्छराज, खंड-४ ढाल ४८, गाथा-९१२. ९५२०४.(+) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १२-१३४४५-४८). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: त० तेणकाले चउथो आरो; अंति: शाता भवोभवै पामस्यै. ९५२०५ (+) नवस्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९४८, वैशाख कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३९-१(१)=३८, ले.स्थल. सिरोही, प्रले. मु. जालमविजय (गुरु ग. मेघविजय, तपागच्छ विजयाणंदसूरिशाखा); गुपि. ग. मेघविजय (गुरु पं. रंगविजय गणि, तपागच्छ विजयाणंदसूरिशाखा); पं. रंगविजय गणि (गुरु ग. सुमतिविजय, तपागच्छ विजयाणंदसूरिशाखा); ग. सुमतिविजय (गुरु ग. पद्मविजय, तपागच्छ विजयाणंदसूरिशाखा); ग. पद्मविजय (गुरु ग. संघविजय, तपागच्छ विजयाणंदसूरिशाखा); ग. संघविजय (गुरु ग. भावविजय, तपागच्छ विजयाणंदसूरिशाखा); ग. भावविजय (गुरु उपा. मुनिविमल, तपागच्छ विजयाणंदसूरिशाखा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:साते स्मरण. श्रीआदिजिन प्रसादात्. अंत में प्रतिलेखक ने सप्तस्मरण लिखा है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च, दे., (२६४१२, १८४३७-४३). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: समुपैति लक्ष्मीः , स्मरण-९, (पू.वि. नवकार मंत्र पाठ-"पावप्पणासणो मंगलाणं" से है., वि. कल्याणमंदिर व बृहत्शांति स्तोत्र नहीं है.) नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: परिणाम गुण प्रयोज्या. ९५२०७. मानतुंगमानवती चरित्र, संपूर्ण, वि. १८६२, वैशाख शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ४३, ले.स्थल. लोहीयांणा, प्रले. पं. रामसोम गणि (गुरु पं. जीवणसोम); गुपि.पं. जीवणसोम; राज्यकाल रा. सेरसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपातलियरजी प्रसादात्. प्रतिलेखन वर्ष वि. १८९८ लिखकर आगे के ९८ को काट दिया गया है व बाद में ६२ लिखा है., जैदे., (२४४११.५, १४४३५-३७). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५. ९५२०८. (+#) वीसस्थानक तपविधि, संपूर्ण, वि. १८७६, पौष कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ४१, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३४३८-४२). २० स्थानकतप विधि, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, पुहिं., प+ग., आदि: श्रीमदहँतमानम्य; अंति: अनंत सुख अनुभवै. ९५२१० (+#) धन्नाशालिभद्र चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८३५, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रले. पं. हर्षविजय (गुरु पंन्या. वनीतविजय); गुपि. पंन्या. वनीतविजय (गुरु पं. कनकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका पत्रांक-३४ पर है., संशोधित. कुल ग्रं. ४०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ६४३८-४२). दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: स श्रेयस्त्रिजगद्; अंति: (-), (पू.वि. पल्लव-४ गाथा-७४ तक है.) दानकल्पद्रुम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभस्वामी कहेवा छे; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५२११ (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३३-७६(१ से ७६)+२(१०७ से १०८)=५९, पू.वि. बीच के ___ पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ४४३०-३२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१५ गाथा-३ अपूर्ण से अध्ययन-२२ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९५२१२. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११,१४४३१-३६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ४१ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: जीवतेस्यु कहिये चेतना; अंति: (-). ९५२१३. (+) आवश्यकसूत्रगत प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६२-२१(१ से ४,१७ से २०,२२ से २४,३४ से ३६,४२,४८ से ४९,५१ से ५३,५७)=४१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १३४४६). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पंचमंगलपद टीका अपूर्ण से अतिचार अधिकार अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है., वि. टीकागत दृष्टांतकथा संलग्न है.) ९५२१४. हीरावेधिबत्रीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:हीरावेधी., दे., (२५४११.५, ४४३३-३९). हीरावेधद्वात्रिंशिका, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजनगर सम एह नारि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ९५२१५ (+) पाखीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८४५, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १६-३(१ से ३)=१३, ले.स्थल. वढवाण, प्रले. पं. धर्मकुशल (गुरु दानकुशल, तपागच्छ),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसामलाजी प्रसादे., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ९४२९-३७). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति, (पू.वि. "सायासुखमणुपालयंतेणं इह वा भवे अन्तेसु वा" पाठ से है.) । ९५२१६ (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१३, पौष शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. ग. फतेंद्रविजय; अन्य. पं. ऋषभविजय गणि; पठ. श्राव. हठुलाल काचवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमांनभद्रजी प्रशादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१३५३) पढणगुणन कुं पुस्तका, दे., (२५४१२, १०४३०-३७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ९५२१७. (2) शुभाशुभध्यान चतुष्कं व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २.प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १८४४२-४८). १.पे. नाम, शुभाशुभध्यान चतुष्कं, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: सकल जिणेसर पाय वंदे; अंति: भावविजय० चित्त रंगे, ढाल-९, गाथा-१०३. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांतिजिणेसर अरचित जग; अंति: वाचक जसविजय सिरि लही, ढाल-६, गाथा-४८. ९५२१८. पोषह व देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (२४.५४११.५, १०x२८-३२). १.पे. नाम. पोषध विधि, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम राई पडिकमणो; अंति: अंतस्स मिच्छामि दक्कडं. २. पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ६७ प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: खमासमन देइ इच्छाकारेन; अंति: जयवियराय संपूण. ९५२२३. (+#) सडसठिबोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४९, मध्यम, पृ. ६,प्र.वि. हंडी:स.बो.झा., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२, ११४३०-३२). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८. ९५२२४. (+) पोसह विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:पोसे की वीधी., संशोधित., दे., (२५४१२.५, ९-१२४२१-३०). पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: रात्रिनै पाछलै घडी; अंति: पोसहना विकल्प जाणवा. ९५२२५ (+) उपदेशमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७, अन्य. सा. रूपाई आर्या; सा. लीला आर्या; सा. तेजबाई आर्या, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:उपदेशमाला. विद्वानों का नाम बाद में लिखा गया प्रतीत होता है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, ११४३५). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. ९५२२७. राइप्रतिक्रमणानी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. कोराल, प्रले. मु. वल्लभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १२४३६-४२). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि पडिकम; अंति: आयरिय० नोकार १ग० सामाइय०, (वि. प्रारंभिक जगचिंदामणी चैत्यवंदन के पहले सीमंधरस्वामी व शत्रंजयतीर्थ का चैत्यवंदन लिखा है तथा प्रसंगोपात चैत्यवंदन, स्तुति व स्तवनादि भी संलग्न है.) ९५२२८. समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, दे., (२६४१२, ११४३४-४५). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., साधु की स्तुति से सम्यक्त्व मिथ्यात्व व्यवस्था कथन अपूर्ण तक है.) ९५२३१. (+#) भरहेसर सज्झाय सह वृत्ति, मूल व वृत्ति का टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५३४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:भरहेसरवृत्ति., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, ७४२७-३३). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ तक है.) भरहेसर सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवपुत्र भरत; अंति: (-). भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, ग. शुभशील, सं., गद्य, वि. १५०९, आदि: युगादौ व्यवहाराध्वा; अंति: (-), (पू.वि. ऋषिदत्तासती प्रसंग कथा अपूर्ण तक है.) भरहेसर सज्झाय-वृत्ति का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: युगनै आदै व्यवहाररूप; अंति: (-). ९५२३३. कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १४०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्रटबार्थ. कल्पसिद्धांतटबार्थ. पेज नं. १०१ के स्थान पर पेज नं. १ से प्रारंभ है., जैदे., (२५४१२.५, ४४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-९ ऊगणी सामाचारी अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमो क० माहरो नमस्कार; अंति: (-). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: श्रीमतेचसुधर्मणे सर्वा; अंति: (-). ९५२३४. (+) मानतुंगराजामानवतीसती रास, अपूर्ण, वि. १९३१, ज्येष्ठ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ४९-१(४०)=४८, कुल पे. १, प्रले. मु. केसरीचंद (गुरु मु. भीमराज); गुपि. मु. भीमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मा:मानवती. पूर्व के प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है, जिसमे ५ दोहों में प्रतिलेखन पुष्पिका उल्लिखित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१३, १३-१५४३२-३४). १.पे. नाम. मानतुंगमानवती रास, पृ. १अ-४९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मानतंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५, (पू.वि. ढाल-३७ गाथा-२१ अपूर्ण से ढाल-३९ गाथा-९ अपूर्ण तक नहीं है.) ९५२३५. (#) शत्रुजयतीर्थ रासादि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३४-१(१)=३३, कुल पे. ६, प्रले. मु. उत्तमविजय (गुरु पं. कपूरविजय); गुपि.पं. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (७९२) ज्यां लगि मेरु अडिग है, दे., (२५४१२.५, ९४२५). १. पे. नाम. शेजाजीनो रास, पृ. २अ-११अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदिः (-); अंति: समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल-६, ___ गाथा-१०५, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-८ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, पृ. ११अ-१६अ, संपूर्ण. म. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मवादिनी; अंति: जिण नाम अभिराम ते, ढाल-५, गाथा-५५. ३. पे. नाम. पंचतीर्थी स्तवन, पृ. १६अ-१७आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि ए आदि ए आदिजिने; अंति: मुनि लावण्यसमय भणे ए, गाथा-११. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-थंभण, पृ. १८अ-२३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुं रे पास; अंति: जाणी कुशललाभ पयंपए, ढाल-५, गाथा-३५. ५.पे. नाम. अवंतीसुकमाल चोढाल्यो, पृ. २३अ-३४अ, संपूर्ण. अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: संतहरख सुख पावैरे, ढाल-१३, गाथा-१०७. ६. पे. नाम. द्वादश मास-कोष्ठक, प. ३४आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ९५२३६. (+) पर्युषणाकल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८४२, आश्विन शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ६२-८(१ से ८)=५४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ११४३०-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. "उवागच्छित्ता आलोए समणस्स भगवओ महावीरस्स" पाठ से है.) ९५२३८. (#) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३४, प्र.वि. कुल ग्रं. २१००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१३५५) करकंकण राजवीधु, दे., (२४.५४१२, १६-२०४४३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४ ढाल ४१, गाथा-१८२५. ९५२४०. दीवालीकल्प का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३२, प्र.वि. हुंडी:दीपमा०.दीवाली०., दे., (२५४१२.५, ११४२४-२९). दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामी; अंति: तणी दिवालीकल्प कह्यौ. ९५२४२. (+) मानतुंगमानवतीनो रास, संपूर्ण, वि. १९३४, वैशाख शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४२, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२५४१२.५, १३४४०-४५)... मानतंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१०१७. ९५२४३. (+#) भुवनभानुकेवली चरित्र, संपूर्ण, वि. १८९२ शुक्ल, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ३८, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. लालचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर मिट गए हैं, प्र.ले.श्लो. (२९४) अज्ञानदोषान्मतिविभ्रमाद्वा, जैदे., (२५४१२, १७-१८४४६-५०). For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., गद्य, आदि अस्तीह जंबूद्वीपे अति: नरेंद्रर्षिः केवली, ग्रं. १८००. ९५२४४ (४) नवाणुप्रकारी पूजा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६X१३, १४X३५). नवाणुप्रकारीपूजा विधि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: (-), (पू.वि. अभिषेक १० उत्तर पूजा- ९० की गाथा- ९ अपूर्ण तक है.) ९५२४५. चंदनबालासती चौपाई, आषाढाभूति रास व नेमिजिन चरित्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. ४, वे. (२५४१२.५, १३४४०-४५) ६९ १. पे. नाम. चंदनवाला चौपाई. पू. १ आ-५अ संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: चंदनबा० चौ०. चंदनवालासती चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि फणीमणीमंडित निलतन; अति: रतन० भवपारो रे लो, ढाल १४, गाथा- ९२. २. पे. नाम. आषाढभूति चौडालियो, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: आषाढ ०ची०. आषाढाभूति रास, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि गौतम गुणधर गुणनीलो; अंति: रतनचद० फासी रे लो, ढाल ९. ', ३. पे. नाम. नेमनाथप्रभुनो चरित्र, पृ. ७आ-१५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: नेमचरीत्र. नेमिजिन चरित्र, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: (१) संघराजाने जसोमती रांणी, (२) नेयर सोरीपुर राजीयो अंति: जयमल० अप्रेषु श्रीनेमतेतु गाथा ५२. ४. पे. नाम. एवंताकुंवर सज्झाय, पृ. १५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. , , अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९४४, आदि नाव तराइवेता नीर में एवंत अंति: (-), (पू. वि. गाथा- ४ अपूर्ण तक है.) ९५२४६. (+) बिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४४१२, १३४३४-३९)जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: हवे पूर्वोक्त भव्य; अंति: साधर्मिक भगति साचवे. ९५२४७. उपस्थान विधि, संपूर्ण, वि. १८७४, कार्तिक कृष्ण, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. २३, ले. स्थल. कृष्णगढनगर, प्रले. हीरानंद मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४४१२, १५४३५-४२). योगोहनविधि संग्रह, प्रा. मा. गु. सं., गद्य, आदि श्री आवश्यक सुअक्खंध; अंति: पछइ यथायोग्य नाम दीजइ. ९५२४९ (४) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. १५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५X१२.५, २X३७-५० ). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंति: (-), ग्रं. ८१२, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन-१ "तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा अपूर्ण पाठ तक लिखा है.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२) ते कालई चउथइ अरइ ते समय; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, उपासकदशांगसूत्र-कथा, सं., गद्य, आदि अस्मिन् जंबूद्वीपे भरनामा अति (-) (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. कुसुमश्री प्रसंगकथा अपूर्ण तक लिखा है.) ९५२५१. दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९२५, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, सोमवार, जीर्ण, पृ. ९ - १ ( १ ) = ८, प्रले. जयशंकर मूलजी ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६X१३, ९X२६). For Private and Personal Use Only दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: भणे० सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रारंभिक गाथा- ७ अपूर्ण से है.) ९५२५२. (+#) श्रेणिकराजा अभयकुमारादि संबंधे पंचसाधुना चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८३, आषाढ़ कृष्ण, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल, मेडतानगर, प्रले. मु. मालचंद्र (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : अभयकुमार चोपई., संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११.५, १३४३५). • Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५ साधु चौपाई-अभयकुमारसंबंधे, मु. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: जगगुरु प्रणमुं वीर; अंति: कानजी संघ उदय सूखकार, ढाल-१२. ९५२५४. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-५(६ से १०)=१४, जैदे., (२५४१३, १७४३९). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: (-), (पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३० तक है व गाथा-९वी नहीं है.) शीलोपदेशमाला-बालावबोध कथा, ग. मेरुसंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: श्रीवामेयममेय; अंति: (-), पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ९५२५५. (+#) जैनस्वरोदय, संपूर्ण, वि. १९१४, वैशाख कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १९, प्रले. पं. दोलतविजय; अन्य. मु. वृद्धिचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. "लिखमीविजयजी वाचनार्थं" लिखकर उसे काट दिया गया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १३-१४४३४). स्वरोदयसार, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०७, आदि: नमो आदि अरिहंत देव; अंति: नंद चंद चित्त धार, गाथा-४४८, ग्रं. ५५०. ९५२५६. (+) नित्यकृत्यपूजा विधि व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, १०४२९). १. पे. नाम. नित्यपूजाकृत्य विधि, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण. तपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: प्रथम तो दांतण करतां जल; अंति: गुणी वंदना नमस्कार करीजे. २. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं ह्रीं हूं हूं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "सिराणो पूर्व सामी उत्तर सामी करणो" पाठ तक लिखा है.) ९५२५७. (+) अष्टान्हिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९३६, भाद्रपद कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. विशाला,मिरजापुर, प्रले. मु. जोधराज ऋषि (गुरु मु. अनोपचंद ऋषि); गुपि. मु. अनोपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, ११-१३४३०-३४). __ अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शांतिनाथ स्वामि; अंति: पालेगा वह मोक्ष जायगा. ९५२५८. (+) उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १८६१, आश्विन कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. सुरतबंदर, प्रले. पं. गंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री गोडीपार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२, १५४३२-३६). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिले नोकारने उपधानि १; अंति: (१)वडा कहें ते प्रमाण, (२)पुरिमड्ढे लेखइ आवइं. ९५२५९ (#) वंदितुसूत्र, अजितजिन स्तवन व जयतिहुअण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४२-३३(१ से ३३)=९, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १२४३०-३२). १. पे. नाम. श्रावकपडिकमणासूत्र, पृ. ३४अ-३६अ, संपूर्ण. वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. २. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. ३६अ-४०अ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: पुव्वुप्प० विणासंति, गाथा-३९. ३. पे. नाम. जयतिहअण स्तोत्र, पृ. ४०अ-४२अ, संपूर्ण. आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२० अपूर्ण तक लिखा है.) ९५२६० (+) महावीरनिर्वाण पश्चात् ऐतिहासिक घटनाक्रम व विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१०, कुल पे. २, ले.स्थल. आहोर, प्रले. पंडित. जगन्नाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, ११४५०-६३). For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १.पे. नाम, महावीरनिर्वाण पश्चात ऐतिहासिक घटनाचक्र कालमान, प. १अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तेवीसं तित्थयरा अजियाईय; अंति: लोओ सीसा न पूइंति गुरुं. २.पे. नाम, विविधविचार संग्रह, प. ४आ-१०आ, संपूर्ण. विविध विचार संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., आदि: दुसमभावेण विणयपरिहीणा; अंति: शल्यो सेनां जयिष्यति, (वि. कालमान, मंगलश्लोकादि संग्रह.) ९५२६१. (+) वसुधारिणी, संपूर्ण, वि. १९१२, फाल्गुन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १०, प्रले. पं. वृद्धिचंद (गुरु मु. देवीचंद); गुपि.मु. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वसुधारा., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२६४२२,१०) वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ९५२६२. (+) मणिविजय गुरुनिर्वाण वर्णन, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रावण कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२, ९४२७-३२). मणिविजय गुरूनिर्वाण वर्णन, पं. गलाबविजय, सं., गद्य, आदि: प्रणम्यानंतविज्ञानं; अंति: सिद्धिर्भविष्यतीति. ९५२६३. पाखीसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, दे., (२४.५४१२, १५४३३-३५). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१२ अपूर्ण पाठ तक लिखा है.) ९५२६४. (+) आप्तमीमांसा की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९१४, भाद्रपद शुक्ल, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४१२.५, १९४४९-५३). __आप्तमीमांसा-देवागम वृत्ति, आ. वसनंदि सैद्धांतिक, सं., गद्य, आदि: सार्वश्रीकुलभूषणं; अंति: भव्यैर्वसुनंदिसमागमः, (वि. कहीं-कहीं आंशिक मूलपाठ भी मिलता है.) ९५२६५ (+) संबोधसप्ततिका सह टबार्थ, अपर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. ३०-२३(१ से १३,१५ से २४) ७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१३, ४४२५-२९). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४५ अपूर्ण से गाथा-४७ अपूर्ण तक ___ व गाथा-९३ अपूर्ण से गाथा-१२४ अपूर्ण तक है.) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९५२६६. होली, चैत्रीपूनम, अक्षयतृतीयादि व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २४, कुल पे. ४, दे., (२५.५४१२, ११४२६-३२). १. पे. नाम. होलीपर्व व्याख्यान, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:होली०. होलिकापर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: लोक फागुण चोमासा पर्बनें; अंति: सर्व मनोवांछित सिद्ध थाय. २.पे. नाम. चैत्रीपूनम व्याख्यान, पृ. ४अ-९अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:चैत्री०. चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: सा चैत्री पूर्णिमा; अंति: मंगलिकमाला संपजै. ३. पे. नाम. अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, पृ. ९अ-१४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अक्षय०. प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: उसभस्सय पारणए इक्खु; अंति: आतम कारज सार्या. ४. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व का बालावबोध, पृ. १४आ-२४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मोंनए०. मौनएकादशीपर्व कथा बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेवने; अंति: सकल सुख विभागी थाय, (वि. मूलपाठ मंगलाचरण मात्र है.) ९५२६७. (+#) पक्खि चउमासी संवत्सरी पडिक्कमण विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४३८). पक्खि चउमासी संवत्सरी पडिक्कमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. चिपके हुए पत्र होने से आदि-अंतिमवाक्य अवाच्य है.) ९५२६९ (+) अठारेपापस्थानकउपर कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११.५, १४४३६-४०). For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कथा संग्रह-१८ पापस्थानकगर्भित, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: थूला सुहमा जीवा संकप्पारं; अंति: (-), (पू.वि. आणंद श्रावक कथा अपूर्ण तक है.) ९५२७०. (+) गुणावली चौपाई, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११.५, १३४३०-३४). गणावलि चौपाई, ग. गजकशल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: (-), (पृ.वि. ढाल-२९ गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ९५२७२. भावविषे एलापुत्र रास, अपूर्ण, वि. १७९३, पौष कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. ११-४(१ से २,४,१०)=७, ले.स्थल. हलवद, प्रले. ग. माणिक्यरत्न (गुरु ग. सुमतिरत्न); गुपि.ग. सुमतिरत्न (गुरु पंन्या. मानरत्न); पंन्या. मानरत्न (गुरु आ. भावरत्नसूरि); आ. भावरत्नसूरि; पठ. मु. विवेकरत्न, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२४४१२, १३४२८-३०). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: (-); अंति: ज्ञान दर्शन अजूआले, ढाल-१६, गाथा-१८७, ग्रं. २९९, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-१२ अपूर्ण तक व ढाल-७ से है.) ९५२७३. (+#) ढंढक रास, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ.७, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२.५, ११४३२). ढुंढक रास, म. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरसती चरण नमी करी; अंति: (-), ढाल-७, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-७ गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ९५२७५ (+) श्रावकना अतिचार, अपूर्ण, वि. १९०९, श्रावण कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, ले.स्थल. अठाणानगर, प्रले. पं. माणिककुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१३३६) कटि कुबरी कर बेगडी, दे., (२५४१३, १०x२२-२७). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, (पू.वि. प्रारंभ के __ पत्र नहीं हैं., ज्ञानाचार "द्रव्य विणस्यौ विणसतौ उवेख्यो छत्ती सक्ति सार संभाल न" अपूर्ण पाठ से है.) ९५२७६. (+) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९१८, भाद्रपद कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ३१-५(१३ से १७)=२६, ले.स्थल. पुष्कर, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२.५, १०४२५-३२). प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सामयक लीजै पछी; अंति: गुणीजें पछे कपडा पहरीजें, (पू.वि. मुंहपत्ति पडिलेहण अपूर्ण से खमासणा विधि अपूर्ण तक नहीं है.) ९५२७७. (+) तेतलीपुत्र चौढालियो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:तेतलीपुत्र०., संशोधित., दे., (२५४१२.५, १८४३०-३५). तेतलीपत्र चौढालिया, म. जेमल ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८२५, आदि: अरिहंत सिधनै आयरिया; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-३१ अपूर्ण तक है.) ९५२७८. (#) नवपदरा खामण बोल टिप्पनका, संपूर्ण, वि. १९२२, चैत्र शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३, १५४४२-४८). ___३४६ नवपदगुण वर्णन-खामणा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अशोकवृक्षप्रातिहार्य; अंति: भूपतपोगुण संयुक्ताय नमः. ९५२७९ (#) स्नात्रपूजा विधि सहित, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४१३, ७४३६-४०). स्नात्रपूजा विधिसहित, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकारविकारसार; अंति: (-), (पू.वि. मंगल आरती तक है.) ९५२८०. खंडाजोयण व बत्रीस असज्झाय विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, १७७३८). १. पे. नाम. खंडाजोयण, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. लघसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: एक लाख जोयणनो लांबो छै; अंति: हजारने नेऊ नदीउ थई. २. पे. नाम, बत्रीस असज्झाय विचार, पृ. ६अ, संपूर्ण. ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चैत्रसुदी पूनीम१ आषाढसूदी; अंति: मवे३१ राज वीग्रहमाही३२. For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९५२८२. तीर्थमाला, अपूर्ण, वि. १८८५, आश्विन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ७-१(४)=६, प्रले. ग. देवविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, ११४३१). तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेंद्रसिंहसरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः (१)अरिहंतं भगवंतं, (२)इच्छाकारेण तीर्थमाला कहं; ___ अंति: चंद मुणिविंद थुअ महिया, गाथा-१११, संपूर्ण. ९५२८३. (+) स्तुति, स्तोत्र व छंदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-२(१ से २)=१०, कुल पे. १२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५४१२.५, १३४२८). १. पे. नाम, सिचियादेवी स्तुति, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. सिचीयायदेवी स्तुति-ओसिया, मु. जुगति पाठक, पुहिं., पद्य, वि. १७७२, आदि: (-); अंति: तू से साचलमात, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. साचलदेवी गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. चूहड, रा., पद्य, आदि: सरसति गणपति वीनवुने; अंति: चूहड० हसकर घूमर गावे, गाथा-५. ३. पे. नाम, साचलदेवी गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. ___मु. तुलसी, रा., पद्य, आदि: साचल ज्यौति सवाई मनसा; अंति: गुणीयण तुलछै गाई, गाथा-६. ४. पे. नाम. सिचियादेवी स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. सिचीयादेवी स्तुति, मु. महिमासुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: ऊएशगढरे ईश्वरी आप पधारिया; अंति: माता संतकारिज सारिया, गाथा-४. ५. पे. नाम. सच्चकादेवी स्तुति, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. वा. हेमरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: वरदाता वागेश्वरीदेवी; अंति: वाचक वरदेणी माता मंगलकरणी, गाथा-४. ६. पे. नाम. सत्यकादेवी स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण.. म. धर्मचंद, मा.गु., पद्य, आदि: महरकर सुभमनिजर मात सिचिया; अंति: ते खोड चोमासो कीधो आनंदे, गाथा-७. ७. पे. नाम. भवानीदेवी स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. भवानीदेवी पद, हनवंत, मा.गु., पद्य, आदि: सुन सेवक की अरज सगत; अंति: जोड हनवंत गुणी जन गाया, गाथा-४. ८. पे. नाम. साचलदेवी स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: भवानी लाज रखो मोरी भक्त; अंति: करण शुभचरण पड्यो तेरी, गाथा-४. ९. पे. नाम, भवानीदेवी स्तुति, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मात साखंभराज राणी लाज; अंति: छाती साय मोपे रखो महरवानी, गाथा-७. १०. पे. नाम. त्रिपुराभवानी स्तोत्र, पृ. ७अ-१०आ, संपूर्ण, वि. १९७०, फाल्गुन कृष्ण, १३, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. देवसुंदरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि: ॐ अस्य श्रीलघुस्तव; अंति: लक्ष्मिश्च रोगक्षयं, श्लोक-२४. ११. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, पृ. १०आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं तं नमह; अंति: स्वामिने नमः स्वाहा, श्लोक-४. १२. पे. नाम. भैरवीमाता छंद, पृ. ११अ-१२आ, संपूर्ण. मु. सुमतिरंग, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि माता संकरी; अंति: सुमतिरंग करुणा करे, गाथा-२४. ९५२८४ (4) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, अन्य. पं. रतनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १०x२७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिंदिय; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. ९५२८५. स्तुति, स्तवन, स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ४, दे., (२४.५४१३, १२४३८-४०). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार-पाक्षिक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: श्रीवीर भद्रं दिश, श्लोक-२९. २. पे. नाम, चतुर्दशीतिथि स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (१)सकलकुशलवल्लि पुष्करा, (२)स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. ३. पे. नाम, अजितशांति स्तवन, पृ. २आ-५अ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ४. पे. नाम. श्रावकपाक्षिक अतिचार, पृ. ५आ-१०आ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ९५२८७. (+) दीपमालिका कथा, संपूर्ण, वि. १९३१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. खुडाला, प्रले. पं. चतुरसौभाग्य; पठ.पं. तिलोकसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, १४४३६-४०). दीपावली व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या; अंति: उत्तमा भविष्यंति. ९५२८८. (+) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९१५, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ८, मध्यम, पृ.६, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. आसकरण श्रीमाली, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दीक्षा०., संशोधित., दे., (२५४१२, १०४३२-३८). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम दिने सांझरी; अंति: जयवीयराय कहीजे. ९५२९१. (+) शत्रुजयमाहात्म्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७१८-५५(५४९ से ५६७,५७७ से ६१०,६८८,६९५)=६६३, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, ७४२६-३२). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: संघस्य सर्वेष्टदम्, सर्ग-१४, ग्रं. १००००, संपूर्ण. शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., गद्य, वि. १७६७, आदि: नत्वा वीरं सुबोधाय; अंति: संघ हेते श्रीरस्तु, ____ ग्रं. १२०००, संपूर्ण. ९५२९२ (+) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७३२-७९(१ से ७९)+२(१०८,५६७)=६५५, प्रले. श्राव. लीलाधर आणंदजी सेठ; अन्य. मु. वसरामजी स्वामी; अमरसी स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जीवाभिग०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ४४२६-२८). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, ग्रं. ४७५०, (वि. १८६३, आषाढ़ शुक्ल, १, मंगलवार, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., "अक्कमनुमिकमणस्सित्थीणं भंते" पाठ से है.) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जीव- अभिगम कडं, ग्रं. २००००, (वि. १८६३, आषाढ़ शुक्ल, २, बुधवार, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.) जीवाभिगमसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: इहां वीस्तारी लिख्यो छे, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ९५२९३. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५३९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०.५, ६४३२-४४). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "जावसियावोपच्चोरुभति सी२ जेणेव" पाठ तक है.) भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवै ब्राह्मी; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "मूल थकी दूरि वेगलउ दीसै छै हां गौतम जंवूद्वीपनांमाद्वीप" पाठ तक लिखा है.) । ९५२९४. (+) कल्पसूत्र सह कल्पकिरणावली टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८९-४(३८,४०,१८७ से १८८)=१८५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-त्रिपाठ-द्विपाठ., जैदे., (२५४११, १३४३८-४५). For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति वेमि, व्याख्यान-९. ग्रं. १२१६, (पू.वि. "भोगराइन्न नायखत्ति अइक्खा" पाठ से "लोहिअक्खाणंमसारगल्लाणं" तक, "करयलसंपुडेणंगिण्हइरत्ता" से "महावीरदेवाणं दाएमाहेणीए" तक व "उवसमियव्वंसेकिंमाहुभंतेउवसमसा" से "ईएबहुणा...बहूणं समणीणंबहुणं सावयाणं" तक नहीं है.) कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदि: प्रणम्य प्रणताशेष; अंति: श्रुतस्कंधस्याष्टममध्ययन, ग्रं. ५२१६. ९५२९५ (+#) चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९०-२(१,८९)=८८, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. हंडी:श्रीचंदरास., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४२). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-१ ढाल-१ गाथा-३ अपूर्ण से उल्लास-४ ढाल-३२ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ९५२९६ (+) उपदेशरसालप्राकृतबंध सूक्तमाला, संपूर्ण, वि. १९३७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ९०, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, १३४४५-५७). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: कहतां विचारवू, वर्ग-४, श्लोक-१७६. ९५२९७ (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९०२, फाल्गुन कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९४-२१(१ से २०,७६)=७३, ले.स्थल. जालोर, प्रले. मु. श्रीचंद्र (गुरु पं. वृद्धिचंद); गुपि.पं. वृद्धिचंद (गुरु मु. देवीचंद); मु. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, ११-१४-२८-३३). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: रोषोक्तावू नतौ नमः, कांड-६, (पू.वि. कांड-२ श्लोक-१६६ से कांड-४ श्लोक-१५९ व श्लोक-१६५ से है., प्र.ले.पु. सामान्य) ९५२९९ (+#) आचारांगसूत्र श्रुतस्कंध-१ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९३-१(१)=९२, प्र.वि. संशोधित-पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ३-६४२८-३२). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत श्रीसुधर्म; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९५३०० (+) जैन रामायण, अपूर्ण, वि. १६४५, चैत्र शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १००-३(१ से ३)=९७, प्रले. मु. वच्छा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४४८-५४). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-रामचंद्र चरित्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: खानंदं प्रपेदे पदम्, सर्ग-१०, ग्रं. ४०३२, (पू.वि. सर्ग-१ श्लोक-९४ अपूर्ण से है.) ९५३०१. (+) सिद्धांतचंद्रिका की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८८३, भाद्रपद शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २१९-१(१८१)=२१८, ले.स्थल. अजयदुर्ग, प्रले. मु. भगवानचंद्र ऋषि (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (७५) यादृशं पुस्तकं दष्टं, जैदे., (२५४१०.५, १५४५४-५८). सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: पुराणपुरुषं ध्यात्वा; अंति: सदानंदेन निर्मिता, प्रकरण-१९, संपूर्ण. ९५३०२ (+) समयसार नाटक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०५, ले.स्थल. शिवपुरी, प्रले. पं. रत्नविजय (गुरु पं. भाग्यविजय); गुपि. पं. भाग्यविजय (गुरु मु. प्रतापविजय); मु. प्रतापविजय; राज्ये आ. विजयउदयसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ४-५४३०-३३). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: (१)ताकौ मेरी तसलीम है, (२)नाममइ परमारथ विरतंत, अधिकार-१३, गाथा-७२७, ग्रं. १७०७. For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची समयसार-टबार्थ, पं. रूपचंद, मा.गु., गद्य, आदि: करम भरम क० करम सौ आठो ही; अंति: यान पात साहसौं मुझरो कीनो. ९५३०३. (+) राम चरित्र, संपूर्ण, वि. १८४४, माघ कृष्ण, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. १८४, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय); गुपि.पं. जयविजय (गुरु ग. दीपविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसामलापार्श्वनाथजी प्रसादात्., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११.५, १२-१४४४०-४४). जैन रामायण-गद्यबद्ध, संबद्ध, पंन्या. देवविजय, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: श्रीसुव्रतस्वामिजिने; अंति: भवतु श्रियापदम्, सर्ग-१०, ग्रं. ५०००. ९५३०४. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८३३, वैशाख शुक्ल, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. १२५-२३(१ से २२,६४)+१(७०)=१०३, ले.स्थल. शिवाणादर्ग, प्रले. पं. हर्षविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वजिन प्रशादात्., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (६१५) जाद्रिसं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२५४१०, १७-१९४४०-४५). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, (पू.वि. गाथा-१ से गाथा-४९ अपूर्ण तक व गाथा-६९ से गाथा-७१ अपूर्ण तक नहीं है.) उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: (-); अंति: (१)वाणी श्रुतदेवता ते, (२)संशोधनीयो वसुधाधणैश्च. ९५३०५ (+#) चंदराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १८८२, आषाढ़ शुक्ल, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८३, ले.स्थल. कांबा, पठ. मु. तलोखचंद (गुरु पं. माणकचंद मुनि, खरतरगच्छ); गुपि.पं. माणकचंद मुनि (गुरु पं. केशरजी वाचक, खरतरगच्छ); पं. केशरजी वाचक (गुरु पं. कानजी, खरतरगच्छ); पं. कानजी (गुरु पं. रूपचंद वाचक, खरतरगच्छ); पं. रूपचंद वाचक (गुरु पं. मोहनजी वाचक, खरतरगच्छ); पं. मोहनजी वाचक (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. खरतरगछेमेरुशाखायां श्रीदादाजी श्रीजिनदत्तसूरि श्रीजिनकुशरसूरी प्रसादात्. श्रीरूद्रएकादशमा श्रीकांबेशरजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १६x४३-४८). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धरा धवति प्रथम; अंति: वर्णव्या गुणचंदना, उल्लास-४ ढाल १०८, गाथा-२६७९. ९५३०६. (+) प्रवचनसारोद्धार सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४१९-२२१(१ से १८९,३१४ से ३३५,४०१ से ४१०)=१९८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:प्र०बृ०बृ०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०, १७७५४-६२). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६४८ अपूर्ण से ११५९ तक, १२३९ से १४९१ तक व १५४४ से १५९५ तक है.) प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., गद्य, वि. १२४२, आदि: (-); अंति: (-). ९५३०७. (+) शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८२५, कार्तिक कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १३१, ले.स्थल. प्रहलादनपुर, प्रले. पं. भक्तिविजय (गुरु ग. कांतिविजय, तपगच्छ); गुपि.ग. कांतिविजय (गुरु पंडित. प्रेमविजय, तपगच्छ); पंडित. प्रेमविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि, तपगच्छ); आ. विजयप्रभसूरि (तपगछ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (५२५) तैलाद् रक्षेज्जलाद्रक्षेद्, जैदे., (२५४१०.५, १६x४८-५४). शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्वान्; अंति: शांतिः स करोतु शांतिम्, प्रस्ताव-६. ९५३०८ (+) उपाशकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उपा.टबो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ६४३४-३८). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-८ "अपच्छिम मारणंतियसंलेहणा" पाठ तक है.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणि कालि तेणे समइ जेणइं; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९५३०९ (+) संघयणी सह बालाबोध, संपूर्ण, वि. १७६०, फाल्गुन कृष्ण, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५७, ले.स्थल. पट्टणानगर, प्रले. पं. सुरताण, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संघय.बा. प्रतिलेखक ने प्रतनाम में "लघुसंघयणी" नाम लिखा है., संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५-१८४४८-५३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: णमिउं अरिहंताई; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४९. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. हेमचंद्रशूरि मलधारि शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथफलर्द्धिका; अंति: संसारीक जीव सर्वसुख पामइ. ९५३१० (+#) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७३, प्र.वि. हुंडी:सूय०सू, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५४१०.५, ६४२७-२९). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: जंमहं भय तारो तिबेमि, अध्याय-२३, ग्रं. २१००. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बुझि० छकायनू स्वरूप; अंति: भयतार कहीइ एहवं रोचबइ. ९५३११. (+) कर्मग्रंथ १ से ६ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०४, कुल पे. ६, प्र.वि. सारिणीयुक्त., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, ५-१२४३८-४४). १. पे. नाम, कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१ सह टबार्थ, पृ. १अ-१५आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ , म. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: प्रणिपत्य जिनं वीरं; अंति: पूर्तिमगात्. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२ सह टबार्थ, पृ. १५आ-२३आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, म. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: तथा तिणे प्रकारे; अंति: श्रीमहावीरजीनी स्तुति करि. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३ सह टबार्थ, पृ. २३आ-२७आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं वंद; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवप्रदेशनी साथे; अंति: कही ते कर्मस्तवथी. ४. पे. नाम. षड्शीति नव्य कर्मग्रंथ-४ सह टबार्थ, पृ. २७आ-४७अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: श्रीजिनने नमस्कार कर; अंति: कस्य पूर्तिमगात्. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५ सह टबार्थ, पृ. ४७अ-६८आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: जिनप्रति नमस्कार; अंति: संभारवाने अर्थे. ६. पे. नाम. सप्ततिका नव्य कर्मग्रंथ-६ सह टबार्थ, पृ. ६९अ-९१आ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: चंद० एगणा होई नउईओ, गाथा-९१. For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथ चंद्रमहत्तरि कृत; अंति: चंदमहत्तर० होइ नउईओ. ९५३१२. (+#) चंदराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:चंदराजाचउ, संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०, १३४३२-३६). चंद्रराजा रास, म. विद्यारुचि, मा.ग., पद्य, वि. १७१७, आदि: श्रीजिननायक समरीइं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७० गाथा-९२ अपूर्ण तक है.) ९५३१३. (+) प्रतिक्रमण, स्मरण, प्रकरण व स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७७-४(१,६० से ६२)=७३, कुल पे. ५७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१०.५, १०४३०-३४). १.पे. नाम. पडिकमणासूत्र, पृ. २अ-८अ, अपूर्ण, पृ.वि.प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:पडिक्कमणा. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: निमत्तं करेमि काउसगं, (पू.वि. प्रारंभिक चैत्यवंदन अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. साधु अतिचार गाथा, पृ. ८अ, संपूर्ण. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: वितहायरणेअ अईयारो, गाथा-१. ३. पे. नाम. गोचरचर्या गाथा, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. गोचरी आलोयण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कालोअगोअचरिया थंडिल्ला; अंति: जंकिंचि अणुउत्तं, गाथा-१. ४. पे. नाम. आगारसंख्या गाथा, पृ.८आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो चेव नमोक्कारे; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-३. ५.पे. नाम. प्रत्याख्यान सूत्र, पृ. ८आ-११अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पच्चक्खाणप. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. ६. पे. नाम. मांगलिक श्लोक संग्रह, पृ. ११आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सर्वमंगल मांगल्यं सर्व; अंति: सर्वत्र सुखी भवतु लोकः, गाथा-३, (वि. श्लोक क्रमशः १ से ३.) ७. पे. नाम. जिनदत्तसूरि स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अष्टकपत्र. जिनदत्तसूरि स्तुति-खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: दासानुदासा इव सर्व; अंति: पदा हस्तिपदे प्रविष्टाः, श्लोक-२, (वि. श्लोक क्रमशः ४ से ५, श्लोक ४ दो बार लिखा है.) ८. पे. नाम, जिनचंद्रसूरि स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरि स्तुति-युगप्रधान, सं., पद्य, आदि: यः सार्वभौमाकबराभिधेन; अंति: प्रधान्या जिनचंद्रपूज्या, श्लोक-२, (वि. श्लोक क्रमशः ६ से ७.) ९. पे. नाम. जिनराजसूरि स्तति, पृ. १२अ, संपूर्ण. ___ जिनराजसूरि स्तुति-युगप्रधान, सं., पद्य, आदि: भव्यांबुजवातविबोधशक्तो; अंति: युगप्रधानो जिनराजसूरिः, श्लोक-१, (वि. श्लोक क्रमशः ८.) १०. पे. नाम. जिनलाभसूरि अष्टक, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८३४, आदि: सुगुरुजिनभक्तिसूरीश; अंति: क्षमाधाम कल्याणकाराः, श्लोक-९. ११. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अष्टकपत्र. सं., पद्य, आदि: राजती श्रीमतीदेवता भारती; अंति: मेधावी बुद्धिविभवेन, श्लोक-९. १२. पे. नाम. उपदेशमाला प्रकरण, पृ. १३आ-१५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:उपदेशमा०. पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. १३. पे. नाम. प्रव्रज्याभिधान कुलिक, पृ. १५आ-१७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:संसारविस०. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. १४. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १७आ-२१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चत्तारिमं०. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि० पगाम सिज्झाए; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. जिनम For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ७९ १५. पे. नाम. राईसंथारा गाथा, पृ. २१अ-२२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:राईसंथा०. संथारापोरसीसूत्र-खरतरगच्छीय, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: वंदामि जिणे चउव्विसं, गाथा-१९. १६. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २२आ-२५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वंदित्तूस०. वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. १७. पे. नाम, आलोयणा, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आलोयणा. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजूणा च्यार पुहर; अंति: तस्स मिच्छामि दुक्कडं. १८. पे. नाम, थंभणापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २५आ-२९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जयतिहु०. जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभयदेव विण्णिवइ आणिंदिय, गाथा-३०. १९. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. २९अ-३९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सातेस्मरण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअ सव्वभयं; अंति: (-), स्मरण-७, (वि. उवसग्गहर स्तोत्र का मात्र प्रतीक पाठ लिखा है.) २०.पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. ४०अ-४१अ, संपूर्ण. लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. २१. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ४१अ-४५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:भक्तामरस्तो०. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २२. पे. नाम, कल्याणमंदिर स्तवन, पृ. ४५अ-४९अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:कल्याणमं०. ___ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २३. पे. नाम, महावीरसमसंस्कृत बृहत्स्तवन, पृ. ४९अ-५१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:भावारिवा०. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: जिनवल्लभ० दयालो मयि, श्लोक-३०. २४. पे. नाम. वीर चरित्र, पृ. ५१आ-५४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वीरस्तवन. दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४५. २५. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ५४आ-५७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीवविचार. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २६. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ५७आ-५९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३ पावा४; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण तक है.) २७. पे. नाम. लघुसंग्रहणी स्तवन, पृ. ६३अ-६३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. वस्तुतः कृति दंडक प्रकरण है, किन्तु प्रतिलेखक ने अंत में "लघसंग्रहणी स्तवन" ऐसा लिखा है. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदिः (-); अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण से है.) २८. पे. नाम. महावीरजी स्तवन, पृ. ६३आ-६४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:महावीरस्तु०. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भगवं; अंति: पढयकयं अभयसूरिहिं, गाथा-२२. २९. पे. नाम. पंचपरमेष्टि नमस्कारमंत्रमय सप्रभावकंसाम्नाय पद, पृ. ६४आ-६६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नवकारस्त०. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पत्तरू रे; अंति: तणी सेवा देज्यो नित, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तोत्र, प.६६आ-६७आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ३१. पे. नाम. नवग्रहगर्भित पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ६७आ-६८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नवग्रहस्तो. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: जिणप्पहसूरि० पीडंति, गाथा-१०. ३२. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ६८अ-६८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिप०. मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: विहसंति कल्याणदाता, गाथा-४. ३३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ६८आ-६९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिप०. सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद; अंतिः सा सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ३४. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. ६९अ-६९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिप०. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. ३५. पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. ६९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिप०. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वनायक लायक; अंति: जिनलाभ० होज्यो जयजयकारी, गाथा-४. ३६. पे. नाम. शीतलजिन स्तुति, पृ. ६९आ-७०अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनजन नायक दायक; अंति: पभणै श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ३७. पे. नाम. शीतलजिन स्तुति, पृ. ७०अ-७०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिपत्रम्. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुख समकित दायक कामित; अंति: धरीये कहे जिनलाभसूरीस, गाथा-४. ३८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७०आ-७१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिपत्र. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योतिरूपं; अंति: बुद्धिं वृद्धिं वैदष्यम्, श्लोक-४. ३९. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ७१अ-७१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिपत्रम्. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय पंकज; अंति: मंगल करे अंबक देवीय, गाथा-४. ४०. पे. नाम. जिनकुशलसूरिजीकृत स्तुति, पृ. ७१आ-७२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिपत्रम्. ध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: नै दें कि धप; अंति: दिशत् शासनदेवता, श्लोक-४. ४१. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ७२अ-७२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिपत्रम्. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकवलगवल मुक्ताफल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ४२. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. ७२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिपत्रम्. ___आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगुणं; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. ४३. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. ७३अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: भारही देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ४४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७३अ-७३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समदमोत्तम वस्तु; अंति: सा जिनशासन देवता, श्लोक-४. ४५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिपत्रम्. सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: तीर्थपमज्जनशस्तनिजाघः, श्लोक-४. ४६. पे. नाम. वीसविहरमान स्तुति, पृ. ७३आ-७४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिपत्रम्. २० विहरमानजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय विहरंता वीस; अंति: तिहुअण जण मनवंछित सारै, गाथा-४. ४७. पे. नाम. नेमिनाथ स्तुति, पृ. ७४अ-७४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिपत्रम्. साधारणजिन स्तुति, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: माई तुसै देव अंबाई, गाथा-४, (वि. प्रतिलेखक ने नेमिनाथ स्तुति के नाम से कृति लिखा है.) ४८. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. ७४आ-७५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिपत्रम्. For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, गाथा-४. ४९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७५अ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा; अंति: जिनभक्ति० बहु वित्त, गाथा-४. ५०. पे. नाम. सेनंजा स्तुति, पृ. ७५अ-७५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिपत्रम्. श@जयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजेंजमंडण आदि; अंति: नंदसूरि तुम्ह पाय सेविता, गाथा-४. ५१. पे. नाम. दीवाली स्तुति, पृ. ७५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिपत्रं. दीपावलीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: संस्तौमि वीर प्रभु, श्लोक-१. ५२. पे. नाम. महावीर स्तुति-अणोजारी, पृ. ७५आ-७६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिपत्रं. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. ५३. पे. नाम. मौनेकादशी स्तुति, पृ. ७६अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन; अंति: विदधति सुखं विस्मित हृदः, श्लोक-४. ५४. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ७६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिपत्रं. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वलि बलि हूं ध्यावं गाऊ; अंति: कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. ५५. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ७६आ-७७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तुतिपत्रं. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसे जिनवर प्रणमु; अंति: जिनसुख० जनम प्रमाण, गाथा-४. ५६. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. ७७अ-७७आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथ भनाथ निभानन; अंति: तनुभातनुभातनु भारती, श्लोक-४. ५७. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तुति, पृ. ७७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: दीवे नंदीसरम्मि; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९५३१४. (+#) अनुयोगद्वारसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८६६ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २२२, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्र.वि. हुंडी:अनुयोगद्वारसूत्रवृत्तिः, पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १०-१९४३६-४७). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: नाणं पंचविहं; अंतिः साहू से तं नए, प्रकरण-३८, ग्रं. २०८५. अनुयोगद्वारसूत्र-टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: सम्यक्सुरेंद्रकृत; अंति: रचिता प्रकृतिवृत्तिः, ग्रं. ५९००. ९५३१५ (+) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८२२, माघ शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ.७६१-४२७(१ से ४२७)+१(६२७)=३३५, ले.स्थल. लींबडीग्राम, पठ. सा. धनबाई आर्या; अन्य. मु. वसरामजी स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ४४२६-२८). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: भिगमे सेतं जीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, ग्रं. ४७५०, (पू.वि. "तएणं तस्स विजयस्सदेवस्स आभियो" पाठ से है.) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अभिगम प्रकार कह्यो, ग्रं. २००००. ९५३१६. (2) उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३५८-११३(१ से १११,३०९,३५६)=२४५, प्र.वि. हुंडी:श्रीउ०वृ०., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १३-१५४३६-४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मएत्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-७ गाथा-११ से है व बीच के पाठ नहीं हैं.) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: (-); अंति: वृत्तेरस्या विनिश्चितम्, ग्रं. १२०००, पृ.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. ९५३१७. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८७, फाल्गुन शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. १६७, प्रले. पं. जसवंतविजय; पठ. मु. रणजीतविजय, प्र.वि. सुविधिनाथ प्रसादात्, संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, ५-१२४३१-३७). For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरो; अंति: पयूषणा कल्प कहीइं. ९५३१८. (+#) प्रज्ञापनासूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३३८-२३(१ से ६,१३,५७,७७ से ७९,११३,१२१ से १२३,१५९,१६१,१७३ से १७४,१८१,२३२,२४८ से २४९)=३१५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ५४३८-४४). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पद-१ सूत्र-१३ पाठ "सुकिल्लवण्णपरिणता" से पद-१६ अंतिमसूत्र पाठ "बोराण वा तिंदयाणक" तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९५३१९. राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७४६, आश्विन शुक्ल, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. ९८, प्रले. ग. दयाविजय; पठ. ग. बुद्धिविजय (गुरु मु. तत्त्वविजय); गुपि. मु. तत्त्वविजय (गुरु ग. देवविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२४.५४११, १७X४८-५५). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: पस्से पस्सावणीए णमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २१००, (वि. अंत में धर्ममहिमाबोधक सुभाषित श्लोक है.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवंदेवं जिनं नत्वा श्रुत; अंति: श्रवणस्य शिष्य मेराजेन, ग्रं. ३२६६, (प्रले. पं. बुधिविजय (गुरु मु. दयाविजय, तपागच्छ); गुपि. मु. दयाविजय (गुरु मु. स्थिरविजय, तपागच्छ); मु. स्थिरविजय (गुरु मु. तत्त्वविजय, तपागच्छ); मु. तत्त्वविजय (गुरु ग. दर्शनविजय, तपागच्छ); ग. दर्शनविजय (गुरु ग. संघविजय, तपागच्छ); ग. संघविजय (गुरु गच्छाधिपति सेनसूरि *, तपागच्छ); गच्छाधिपति सेनसूरि * (गुरु आ. हीरसूरि *, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत) ९५३२२. (+#) रत्नपाल रास व मुहर्त विचार श्लोक, संपूर्ण, वि. १८७७, फाल्गुन कृष्ण, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७३, कुल पे. २, प्रले. मु. भागचंद्र (गुरु ग. टेकचंद); गुपि. ग. टेकचंद (गुरु पं. प्रेमचंद); पं. प्रेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, जैदे., (२४४१०.५, १३४२५-३१). १. पे. नाम. रत्नपाल रास, पृ. १अ-७३अ, संपूर्ण. रत्नपालरत्नावती चौपाई, म. मोहनविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दर; अंति: लच्छी मोहनविजय विलास जी, खंड-४ ढाल ६६, गाथा-१३७२. २. पे. नाम. मुहूर्त विचार श्लोक, पृ. ७३आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: अष्टमेसचतुर्थेस द्वादशे; अंति: टालवा चवरीकाल जाणवो, श्लोक-८. ९५३२३. (+) जंबू चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५४-३(५१ से ५३)=५१, प्र.वि. हुंडी:जंबूच, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ६४३५-४६). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१, (अपूर्ण, पृ.वि. "निच्चंआराहइ देवगुरुआसायणा" पाठ से उद्देशक- २१ "संयमतिय ८ केवलनंणो ९ सिद्धीमगे" तक नहीं है.) जंबअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.ग., गद्य, आदि: ते काल जे चोथा आराने; अंति: एकवीसमो उद्देसो जाणवो, संपूर्ण. ९५३२४. (+#) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८९२, माघ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ५७, ले.स्थल. जालोर, प्रले. पं. सरूपचंद (गुरु पं. खुबचंद, खरतरगच्छ); गुपि.पं. खुबचंद (गुरु पं. देवीचंद, खरतरगच्छ); पं. देवीचंद (गुरु ग. हितप्रमोद, खरतरगच्छ); ग. हितप्रमोद (गुरु उपा. रत्नविमल, खरतरगच्छ); उपा. रत्नविमल (गुरु मु. कनकसागर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १३४३३-३५). For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org ८३ श्रीपाल रास- बृहद्. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य वि. १७४०, आदि श्रीअरिहंत अनंतगुण, अंतिः जिनहर्ष० अजरामल फल होई रे, डाल- ४९, गाधा-८६१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९५३२५. (+०) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११७-२ (१ से २ ) = ११५, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अपूर्ण है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४१०, १८-२३४४८-५२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६, संपूर्ण. , " कल्पसूत्र- कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य वि. १६८५, आदि (-); अंति: समयादिमसुंदराः, (अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. "समये श्रमणो भगवान श्रीमहावीर ः राजगृहे नगरे" पाठ से है.) ९५३२६. (+#) पर्यूषणाकल्प सह टबार्थ व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १७२८, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १६४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x१०.५, ६-१५४३९-४८). * कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान- ९ नं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल अवसर्पिणीनुं; अंति: एतले गुरुक्त जणाविउ. कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा सं., गद्य, आदि पुरिमचरिमाणकप्पो अति अन्यशास्त्रेभ्यो ज्ञेया, , ९५३२७. (+) स्थविरावली चरित्र, संपूर्ण, वि. १६७८, फाल्गुन शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. २०५, ले. स्थल. पतन, प्रले. हरजी देवजी जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जै, (२५X१०, ९×३२-३८). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-परिशिष्टपर्व, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रीमते वीरनाथाय अति कंठतटावनीषु सर्ग १३ नं. ३४६०. " ९५३३० (+) कल्पसूत्र सह टवार्ध व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७९४ वेदनिधिमुनींदु, आश्विन शुक्ल, २ गुरुवार, मध्यम, पू. ८९-३५ (३४ से ६८) =५४, ले. स्थल, सुभटपुर, प्रले. मु. कनकसागर (गुरु उपा. धर्मकल्याण, खरतरगच्छ); . गुपि उपा. धर्मकल्याण (गुरु मु. कमलसौभाग्य, खरतरगच्छ); मु. कमलसीभाग्य (गुरु उपा. कनककुमार, खरतरगच्छ); उपा. कनककुमार (गुरु उपा. सुमतिसुंदर, खरतरगच्छ); उपा. सुमतिसुंदर (गुरु उपा. मतिकीर्ति, खरतरगच्छ); उपा. मतिकीर्ति ' (गुरु पं. गुणविनय गणि, खरतरगच्छ); पं. गुणविनय गणि (गुरु उपा. जयसोम, खरतरगच्छ); अन्य उपा. रतनविमल पाठक (गुरु मु. कनकसागर); राज्यकालरा. भयसिंह, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी : कल्पसूत्रट०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (५५२) भग्न पृष्टि ग्रीवा, जैदे., ( २४.५X१०.५, ६-१६x४२-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेण काले० समणे; अति: उवदंसेइ त्ति बेमि नं. १२१६. (पू.वि. "मणाणुकुलाए विहारभूमी पसत्थदोहला सम्माणि" पाठ से "भासे कोडिन्नगुत्ते तिन्न २ समणस० समणस्स भगवऊ" तक नहीं है.) कल्पसूत्र - टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि सूत्रकार सूत्रे करी बखाणै; अति सभा आगे एहवी कहता हुआ. कल्पसूत्र- बालावबोध, मा.गु. रा., गद्य, आदि नमः वर्द्धमानाय श्रीमते च अंति देवी पिण क्रोध न राखिवी. ९५३३१. . (+#) औपदेशिक कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६ - १ (१) = २५, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११.५, १७४३५-३९). औपदेशिक कथा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. प्रारम्भ व अन्त के पाठ नहीं हैं। ९५३३२. (+) नीतिशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४x१०.५, ४X३४-४०). नीतिशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदिः यां चिंतयामि सततं अंति (-), (पू.वि. श्लोक-१०४ अपूर्ण तक है.) नीतिशतक - टवार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, आदि जिन प्रतई हुं चित्त अति: (-). For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५३३३. (+) शालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १७०६, भाद्रपद कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २४, ले.स्थल. पिल्पका, प्रले. मु. धर्मरत्न (गुरु मु. कुंरसीजी वाचक, पूर्णिमागच्छ); गुपि. मु. कुंरसीजी वाचक (गुरु मु. गोदाजी वाचक, पूर्णिमागच्छ); मु. गोदाजी वाचक (पूर्णिमागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:धन्नाशालभद्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १४-१५४३२-४०). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइ जी, ढाल-२९, गाथा-५१०. ९५३३४. (+#) रत्नपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:रत्नपाल., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १३-१५४२७-३४). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणिधरतणी दायक; अंति: (-), (पू.वि. खंड-४ ढाल-१८ गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ९५३३५. (+) नलराजा रास, संपूर्ण, वि. १७७१, पौष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २८, ले.स्थल. लिंचनगर, प्रले. पं. भाणविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिजिन प्रसादतः., संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४४२-४५). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: समयसुंदर भणै भावसुं, खंड-६ ढाल ३९, गाथा-९३१, ग्रं. १३५०. ९५३३६ (+#) मानतुंगमानवती चरित्र, संपूर्ण, वि. १८१०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३८, प्रले. मु. साधुविजय (गुरु पं. गौतमविजय गणि); गुपि. पं. गौतमविजय गणि; पं. दयालविजय गणि (गुरु मु. पद्मविजय); ग. वल्लभविजयजी (गुरु ग. नरेंद्रविजय); ग. नरेंद्रविजय (गुरु ग. गोविंदविजय); ग. गोविंदविजय (गुरु ग. रामविजय); ग. रामविजय (गुरु पं. वृद्धिविजय गणि); पं. वृद्धिविजय गणि, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२७४) मंगलं लेखकानां च, (९७४) तैला द्रक्षे जलाद्रक्षे, (१३५४) जिहा लगे मेरुगीरद है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३७-३९). मानतुंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: रीषभजिणंद चरणांबुजै; अंति: घरिघरि मंगलमाला हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५. ९५३३७. (+) अंजनासुंदरीपवनंजयराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३५, फाल्गुन कृष्ण, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. पीपलीया, प्रले. मु. उत्तम ऋषि (नागोरीगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , जैदे., (२५४११.५,१४४३५-४२). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: गणधर गौतम प्रमुख; अंति: ऋद्धि वृद्धि मंगलमाल, खंड-३ ढाल २२, गाथा-६३२. ९५३३८.(+) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१(१)=१९, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, ७४३३-३६). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. सूत्र-७ अपूर्ण "पढमे भंते महव्वए" पाठ से "नाणुपालेहिं संतेबले संतेवीरीए" पाठ तक है.) ९५३३९. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५, प्र.वि. हुंडी;दशवेका०सूत्र., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, ५४४८-५२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गए त्तिबेमि, अध्ययन-१० चूलिका २, (वि. १७५९, चैत्र शुक्ल, ७, ले.स्थल. पिंपाड, प्रले. मु. सामाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंतिः स्वमति करी नथी कहंतउ, (ले.स्थल. वडल, प्रले. मु. कान्हजी ऋषि (गुरु आ. धनराज ऋषि); गुपि. आ. धनराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, वि. आदिवाक्य वाले भाग खंडित हैं.) ९५३४०. योगशास्त्र-१ से ४ प्रकाश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९२, आश्विन कृष्ण, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. ४४, ले.स्थल. बुरहानपुर, जैदे., (२५४१०.५, ६x२८-३४). योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: ध्यानोद्यतो भवेत्. For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगशास्त्र-हिस्सा १ से ४ प्रकाश का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि नमस्कार दुखि वार्या जाइ; अंति: करणहार ध्याननइ उजमाल हुइ. .वे. (२५x११. ९५३४१. (+) विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २५, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., १५-१७X३२-३५). १. पे. नाम. पल्योपमसागरोपम मानविचार, पृ. १आ - १० आ, संपूर्ण. पल्योपम सागरोपम विचार संग्रहणीमध्ये, प्रा. मा. गु. सं., पग, आदि इहा महतिना धणिने जाणवा अतिः भवति नापि भविष्यंति. २. पे. नाम. सप्तनय विचार, पृ. १० आ-१३अ, संपूर्ण. ७ नय विचार, प्रा.,मा.गु., सं., गद्य, आदि: (१) से कितं नए सतमुल नयायनंता, (२) निगमनय १ संग्रहनय २ व्यवहार; अंति: सुत्रानुगमपणि समकालि एतलि. ३. पे. नाम. विविध बोल संग्रह, पृ. १३अ-२५आ, संपूर्ण. बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: कोहे? माणे२ माया३ लोभे४; अंतिः लख्यो हूइ० मीच्छामिवुकडं. ९५३४२. (+) गौतमपृच्छा सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८८२, माघ कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३७, प्रले. वा. चतुरविजय (गुरु वा. सत्यविजय); गुपि. वा. सत्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६११, १६x४०). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-खालावबोध, आ, जिनसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा कहता नमीने; अति हर्षपूरेण भावतः. गौतमपृच्छा- कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि वसंतपुर नगरनइ पासई, अंति: हुओ मोक्ष पामिस्वइ, कथा- ३५, (वि. अंत में कथाओं का विवरण दिया गया है. ) ८५ ९५३४३. (+) वाग्भट्टालंकार, संपूर्ण, वि. १७२८, पौष शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २८, ले. स्थल. पेसुआ, प्रले. मु. भानुविजय (गुरु ग. हंसविजय); गुपि. ग. हंसविजय (गुरु पं. हीरविजय) पं. हीरविजय (गुरु भट्टा, विजवाणंदसूरि) भट्टा विजयाणंदसूरि प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५X११, ७२३-२६). वाग्भटालंकार, जै. क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी आदि श्रियं दिशतु वो देवः, अंतिः सारस्वताध्यायिनः परिच्छेद-५. ९५३४५ ग्यानकला चौपई, संपूर्ण, वि. १७६८, फाल्गुन शुक्ल, ५, मध्यम, पू. ३९, ले. स्थल. आगरानगर, प्रले. ग. रूपविजय (गुरु ग. गुणविजय गणि); गुपि. ग. गुणविजय गणि (गुरु पं. जीवविजय गणि); पं. जीवविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x११.५, १३x४८). प्रबोधचिंतामणि रास, मु. सुमतिरंग, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: परमज्योति प्रकासकर परम; अंति: ज्ञानकीरति० आणंद लीलविलास, ढाल - ४७. ९५३४६. (+४) भुवनभानुकेवली चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६८-१६ (१ से १६) =५२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पणक का अंश नष्ट, भुवनभानुकेवली चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति जैदे. (२५. ५४११.५, १३-१४४३७-४९). (-) (पू.वि. चंद्रमौलीराजा प्रसंग अपूर्ण से पुण्योदय महादंडनायक प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) " ९५३४७. (+) भाष्यत्रय सह बालावबोध व रंग विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे. (२३.५५११, ७५३८). १. पे. नाम. भाष्यत्रय सह बालावबोध, पृ. १अ १६अ, संपूर्ण, वि. १८७४, पीष कृष्ण, २. गुरुवार, ले. स्थल, पादरु, प्रले. पं. दलीचंद (गुरु पंन्या. खुशालचंद); गुपि. पंन्या. खुशालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. बालावबोध टबार्थ शैली में लिखा है. भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे, अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य- ३. For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भाष्यत्रय खालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य वि. १७५८, आदि: वंदितु क० वांदिने अति कर्मनुं संकट ते रहित छे. ग्रं. ३५० २. पे. नाम रंग विधि, पृ. १६आ, संपूर्ण. रंगनिर्माण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: सफेदो पे वडी थोडो सो; अंति: शेलू रंग निप्पन्न होय. ९५३४८. (+#) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४१, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११, १३४३६-४३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंति: उवदंसेड़ ति बेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६. ९५३४९. (*) पृथ्वीराज वेलि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०९, भाद्रपद शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ३२, ले. स्थल, खेमपाटक, प्रले. पं. विनयरत्न राज्ये आ. कल्याणसागरसूरि (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., ( २४४१०.५, ६X३८-४२). कृष्णरुक्मणी बेलि, रा. पृथ्वीराज राठोड, मा.गु, पद्य, वि. १६३७, आदि परमेसर प्रणमि; अंति: अचल तइरोपी कलियाणतन, गाथा - ३०४. कृष्णरुक्मणी वेलिटबार्थ, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य वि. १६३८, आदि: श्रीहर्षसारसगुरु, अंति: तन कहतां पृथ्वीराज कही... ९५३५०. नारचंद्रज्योतिष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१८, वैशाख कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. २७, जैदे., (२५X१०.५, ५X३०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि सं., पद्य, आदि श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंतिः राहु कृतकादीव भार्गवे, श्लोक-२९४. ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंतिः शुक्रना जाणवा ए दसा जाणवी, (वि. प्रतिलेखक ने टार्थ को पुष्पिका में बालावबोध नाम दिया है.) ९५३५१. (+) सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. ६. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४११, १५X४२-४८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अति शुभोत्शवज्ञानगुणा स्तनोतु, द्वार-२२, लोक- ९८. १५३५२. (*) औपदेशिक सवैया व जादव वर्णन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-४ (१ से ४) ५, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे., (२५४११.५, १३४३२). १. पे नाम औपदेशिक सवैया, पू. ५अ ५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राम मेरै या फूहड विचारी, गाथा-४२, (पू.वि. गाथा - ३३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जादव वर्णन, पृ. ५आ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमिजिन रास, पुहिं., पद्य, आदि: आदिपुरुष कहियै जगत आदितनो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५० तक है.) , ९५३५३. (४) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४-५ (१ से २७ से ९) ९. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४.५४११.५, १४-१५X४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा ४ अपूर्ण से २५ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ+कथा मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). ९५३५४. (*) आवश्यकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १८. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी आवसक, आवस्यक टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२५x११, ५-६४२७-३७). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि णमो अरहंताणं० सव्व; अति: (-), (पू.वि. अध्ययन-६ अंतिमसूत्र अपूर्ण तक है.) आवश्यक सूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अ० इत्यादि एहनो; अंति: (-). ९५३५५ (+) आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७-१९ (६ से १६) = ६. पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२५.५४११, ११-१२४३३-३७). For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ८७ आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. "एत्थणं महातवो" पाठ से "अहपंचहिंठाणेहिं" पाठ तक व "एवं हवइ बहस" पाठ से नहीं है.) ९५३५७. (+#) उपदेशमाला कथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४-१५४३७-४३). उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: आ जंबूद्वीप नामा; अंति: मोक्षना देणहार कहीये. ९५३५८ (+) नवपदजीनो गुणणो ओलीनो, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रावण कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. जालोर, प्रले. सिरदारा हिमतरामजी व्यास (पिता सिद्धकरण शिवकरण त्रिवाडी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४३०). नवपद खमासणा विधि, सं., गद्य, आदि: स्वर्ण सिंघासन स्थित; अंति: इति तपना भेद ५० जाणिवा. ९५३५९. कालिकाचार्य बालाबोध कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कालिकाचार्य कथा., दे., (२४४१०.५, १३४३४-३८). कालिकाचार्य कथा*, मा.ग., गद्य, आदि: तिहां पूर्वइ स्थविरावली; अंति: (-), (प.वि. "अनेक शिष्य साथे लईनै राजा पासि गया" पाठ तक है.) ९५३६० (+#) चतुशरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)-८,प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ५४२२-३२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कारण मोक्ष- कारण. ९५३६१ (+#) सेठेजाजीरो रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. हुंडी:सेजजीरो रास., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, ९४२४-२८). श@जयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पय नमी; अंति: समयसुंदर० आनंद थाय, ढाल-६, गाथा-१०८. ९५३६२. (+#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-२(१ से २)-७, कुल पे. ११, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, ११४२८-३२). १. पे. नाम. कर्मसिंघजीनी भास, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण. कर्मसिंहजी गुरुगुण भास, मु. सेवक, रा., पद्य, वि. १६९८, आदि: श्रीसुमति जिणेसरजी सरसति; अंति: सेवक ने सदा उलाहस ऐ, ढाल-२, गाथा-३५. २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन-अमीझरा, मु. जगरुपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण विनवू; अंति: जुगतसागर तणो जंप इम जगरूप, गाथा-११. ३. पे. नाम, संभवनाथ स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. सुजाण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंभवजिणंदसु विनती; अंति: सुजाण आवागवण नीवारो, गाथा-८. ४. पे. नाम, रीषभनाथ स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रंजयमंडन, म. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: म्हे तो सहिपुराथी उमाया; अंति: शिवकीरत करजोडी हो, गाथा-५. ५. पे. नाम. रीषभजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. खुस्यालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रीषभ जिणेसर सांभलो मुज; अंति: खुस्याल० भण द्यो सुख ठाम, गाथा-६. ६. पे. नाम. नेमनाथजीकी लहर, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम प्यारो हो राजल; अंति: गुण गावै हो मनवंछत पावे, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ.७आ-८अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहिं., पद्य, आदि: तोरण आयो है सखी कहै; अंति: जीतसासागर० नवानिध संपजै, गाथा-८. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: लगी लगी अंगीयाने रही; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ९. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणहरख० मुगत मझार हो, गाथा-३२, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२३ अपूर्ण से लिखा है.) १०. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी प्रीतम प्राण; अंति: सुमतिकुशल० सुजस लहै घणो, गाथा-६. ११. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. सिंहकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: मे तो उदीयापुरथी उमाया हो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ९५३६३. (+#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-७(१ से ७)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी;द्वितीयव्या०., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १४४४०-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय व्याख्यान का पाठ "इक्कवीसाए० कासवगुत्तेहिं" से "चओद्दसमहासुमिणे पासित्ताणं पडिबुधा" तक है.) कल्पसूत्र-बालावबोध, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९५३६४. (+#) प्रवचन विचार-बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४४०-४३). बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पलिओवमसमंसो पढमस्साऊतओ; अंति: उत्कृष्टा ९ लाख योनमे. ९५३६५ (+) योगशास्त्र-प्रकाश १-२, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प.५, प्रले. म. वीरविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित..दे.. (२५.५४११.५, १६-१७X४२-४४). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९५३६६ (+) थूलभद्रजीनी वेल, अपूर्ण, वि. १८८५, मध्यम, पृ. १०-५(५ से ९)-५, प्रले. मु. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४११, १३४३०-३४). स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजिन; अंति: विमला कमला वरस्ये रे, ढाल-१७, (पू.वि. ढाल-९ से ढाल-१६ गाथा-४ अपूर्ण तक नहीं है.) ९५३६७. (+#) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१०.५, ११४३२-३६). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: या तन काची मटी क डिरा; अंति: रूप० तारन तारैगा तारनहारा, गाथा-४. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, म. कनककशल, पुहिं., पद्य, आदि: छवी मो पै वरती न जाय जिन; अंति: कनक० मेरो समरत सदा सुहाय, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ध्यानमें ध्यानमें ध्यानमे; अंति: होवें एही अखय सखचैन में, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गिना है.) ४. पे. नाम, सर्वज्ञ पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ औपदेशिक पद-परभावे, उपा. यशोविजयजी गणि, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिउ लाग रह्यो परभावमें; अंति: जसकहै०ज्यौ वेधक रस धाउ मै, गाथा-४. ५. पे. नाम. नेमी स्तव, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, आ. ज्ञानविमलसरि, पहिं., पद्य, आदि: रहो रहो रे प्रीतम; अंति: नयविमल० होत मेरी आंखडीयां, गाथा-११, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गिना है.) ६. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तव, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभुस्युं प्रीतडी; अंति: देवकुशलने प्यारी, गाथा-७. ७. पे. नाम, सिद्धाचल स्तव, पृ. २आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्री रे सिद्धाचल; अंति: कांतिविजय० गायो, गाथा-५. ८. पे. नाम. पार्श्व स्तव, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण... पार्श्वजिन स्तवन-आध्यात्मिक, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीउडा जिनचरणांरी सेवा; अंति: चरणरसीलो मोहन अनुभव मांगे, गाथा-६. ९. पे. नाम. सर्वज्ञ स्तव, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-जिनवाणी महिमा, म. कांति, पहिं., पद्य, आदि: वाणी गाजे अंबरनाद; अंति: गावे इम कवि कांति रे, गाथा-५.. १०. पे. नाम. नेमी स्तव, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सखी अपना प्रीतम केरी वात; अंति: रूप० चरण तुहारा ध्याउरे, गाथा-७. ११. पे. नाम. शीतलजिन स्तव, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-उदयापुरमंडन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहज सुरंगा; अंति: सुबुधिकुसल गुण गाया रे, गाथा-६. १२. पे. नाम. समेतसिखर स्तव, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: आदीसर अष्टापद सिद्धा; अंति: जिनहरख०चैत्यवंदन करी, गाथा-६. १३. पे. नाम. ऋषभ स्तव, पृ. ४आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जगनायक जगगुरु; अंति: केसर कहैदरसण सुखकंद, गाथा-६. १४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तव, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, म. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद वखाण्यौ; अंति: कांतिसा० सुख पाया रे, गाथा-१०. १५. पे. नाम. आदिजिन स्तव, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-नारदपुरीमंडन, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: चालो सहेली आपण सहु; अंति: पग पग वल्लभ करेय प्रणाम, गाथा-७. १६. पे. नाम, सिमंधर स्तव, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सहज विलासी सुदरं; अंति: करज्यो सेव सवाइ हो राज. १७. पे. नाम. पद्मप्रभ स्तव, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-नाडोलमंडन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: नाडूलनगर विराजे तिहा; अंति: अमृत० सिरनामी रे, गाथा-५. १८. पे. नाम. शेजय स्तव, पृ. ७अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: यारो शेजो रे सांभरे; अंति: न्याय० मोक्षमारगदातार हो, गाथा-५. १९. पे. नाम, सिद्धाचल स्तव, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मोरं मन मोह्यं रे श्री; अंति: नयविमल० केहतां न लहुं पार, गाथा-५. २०. पे. नाम. आदिस्वर स्तव, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एतो प्रथम तीर्थंकर सेवना; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. २१. पे. नाम. सुमतिनाथ स्तव, पृ. ८अ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजीसुं बांधी प्रीतडी; अंति: मोहन० मुझ वालो जिनवर एह, गाथा-७. २२. पे. नाम. ऋषभ स्तव, पृ.८आ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा नवाणुं करीये; अंति: पद्म कहै भव तरीयै, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गिना है.) ९५३६८.(+) हंसराजवछराजकी चौपई, संपूर्ण, वि. १८२७, माघ शुक्ल, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. हुंडी:हंसवछ०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०.५, २१-२२४५२-५८). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसरि, मा.ग., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: सुख पामीयां हंस अनइ वछराज, खंड-४, गाथा-९०५. ९५३६९ (+) कर्मग्रंथ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१०.५, १०४२७). कर्मग्रंथ -यंत्र*, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ९५३७० (+) उपधान विधि, अपूर्ण, वि. १८८५, फाल्गुन शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. १४-१(१)=१३, ले.स्थल. ममाहीबिंदर, प्रले. ग. भक्तिविजय (गुरु पं. आणंदविजय); गुपि.पं. आणंदविजय (गुरु पं. रत्नविजय); पं. रत्नविजय (गुरु पं. तिलकविजय); पं. तिलकविजय (गुरु पं. दर्शनविजय); पं. दर्शनविजय (गुरु आ. विजयसिंहसूरि); आ. विजयसिंहसूरि (गुरु भट्टा. विजयदेवसूरि); भट्टा. विजयदेवसूरि; अन्य. पं. शिवचंद्र; पं. उत्तमचंद्र, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. हंडी;उपधानविधि पत्र. श्रीगोडीजी प्रशादात्., संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १४४४२-४४). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: पधानतपोमहानिशीथादवगंतव्यं, (पू.वि. प्रारंभिक चैत्यवंदनविधि अपूर्ण से है.) ९५३७१ (+#) महासतीद्रपदी चतपदी, संपूर्ण, वि. १७२१, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. खोडाडानगर, प्रले. ग. सुंदरचंद्रमुनि; पठ. मु. कृपाचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, २२-२४४६२-७०). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.ग., पद्य, वि. १६९३, आदि: परिसादाणी पासजिण; अंति: कनककीरति सुखकार, ढाल-३९, गाथा-१११७. ९५३७२. (+) कर्मबंधउदयउदीरणासत्ता विचार, अपर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १०-५(३ से ७)=५, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, ७-१०४२१-३०). बंधउदयउदीरणासत्ता विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. जीवसंयोगी अंकमय विचार से बंध-३१ उदयस्थानक विचार तक है., वि. अंकमय भाषा.) ९५३७३. (+#) स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. १६, ले.स्थल. वासानगर, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११,१५४४४-५४). १.पे. नाम. वर्तमान चतुर्विंशितिजिन स्तवन, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, वि. १८२६, फाल्गुन कृष्ण, ६, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. स्तवनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आदिकरण अरिहंतजी ओलगड; अंति: नयविमल० अखय ___ अनंतसुख पावई, स्तवन-२४. २. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. 19). For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९१ पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. ज्ञानमहोदय, मा.गु., पद्य, आदि चिंतामणि चिंता सवि चूरें; अति ज्ञानमहोदय० हैं दासा रे, गाथा-५. ३. पे नाम. नेमिजिन चतुर्मासकवर्णन स्तव, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-चातुर्मासवर्णनगर्भित, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि मोरा सांमि म जाओ रे वाला; अंतिः नेमजीनें मिलवानो दिल साचो गाथा ५. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणी हो के सूण; अंति: जंपे हो बहु सुख पाया, गाथा ५. ५. पे नाम. सुमतिजिन स्तवन, पू. ६अ ६आ, संपूर्ण, सुमतिजिन गीत-समवसरण, ग. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि : आज हुं गई थी रे समवस; अंति: जीतना डंका वाजे रे, गाथा-७. ६. पे. नाम. गौडीपार्श्व स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अकल मुरति अलवेसरू; अंति: श्रीविजय सुख रसाल हो, गाथा-७. ७. पे नाम चतुर्विंशतिजिन स्तवनमाला, पू. ६आ-११अ संपूर्ण, वि. १८३३ माघ शुक्ल, ४, प्रले. पं. विनयानंद, प्र.ले.पु. सामान्य. स्तवनचीवीसी उपा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि श्रीजिन जगआधार; अंतिः भावे मेघ वाचक जिनवरु स्तवन- २४. ८. पे. नाम संभव स्तव, पु. ११अ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, आ. भावप्रभसूरि, गु., पद्य, आदि: संभव जिनस्युं चित्त; अंति: मीई जगि सोभाग रंगीले, गाथा-५. ९. पे नाम समेतगिरि गिरिराज स्तव, पृ. ११अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि आदीसर अष्टापद सिद्धा अति भावे चैत्यवंदन करी, गाथा- ६. १०. पे नाम नेमि स्तव, पू. ११अ ११आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: माईरी गिरि जान दें मोहै; अंति: श्रीराम० सदा शुभध्यान है, गाथा-६. ११. पे. नाम. आत्मस्वरूप स्वाध्याय, पृ. ११आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: कहां करू मंदिर कहां, अंति: या दुनिया मे फेरा, गाथा-५. १२. पे नाम नेमराजिमती पद, पृ. १९आ, संपूर्ण. मु. ,जैराम, पुठि, पद्य, आदि दिल महिर न आनी तजि जात; अति: मिलानी बोले जैराम वानी, गाथा ४. " १३. पे. नाम. नेमि पद, पृ. ११आ - १२अ, संपूर्ण. " नेमिजिन पद, मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि निपट ही कठन कठोर; अति हरषचंद० वीति भयो भोर, गाथा ४. १४. पे नाम, पार्श्व पद, पृ. १२अ, संपूर्ण, पार्श्वजिन पद- गोडीजी, मु. लाल, मा.गु., पद्य, आदि पास गोडिचा पर उपगारी, अंति लाल कहै ० चरनकमल बलिहारी, गाथा- ४. १५. पे. नाम गौतम स्वाध्याय, पू. १२अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि परभाते गौतम प्रणमीजै; अति प्रगट्यो परधान, गाथा ८. १६. पे. नाम सीखामण स्वाध्याय पु. १२अ १२आ, संपूर्ण. 1 श्रावककरणी सज्झाय, मु. नित, मा.गु., पद्य, आदि श्रावक धरम करो सुख; अति नित्य० मुगति वधु वरीजेंजी, गाथा - ९. For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५३७४ (+) सत्तावीसभव संबंध, संपूर्ण वि. १७६३, पौष कृष्ण, मध्यम, पू. ६, प्रले सा. प्रेमा आर्या (गुरु सा. जीलाजी आर्या); गुप. सा. जीलाजी आर्या (गुरु सा. तोराजी आर्या); सा. तोराजी आर्या, पठ. सा. प्रेमबाई आर्या (गुरु सा. रामबाई आर्या); गुपि. सा. रामबाई आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४ ११, १६३७-३९). महावीरजिन २७ भव विचार, मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रथम भवेइ पश्चिम महाविदे; अंति: ईम जाणी प्रमाद न करवो. ९५३७५ (F) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ५२-३९ (१ से ३९) = १३, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५X११, ५X३४-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी, रवी, आदि (-) अति (-) (पू.वि. अध्ययन-६ गाथा ३६ अपूर्ण से अध्ययन-९ उद्देश-२ गाथा-१२ तक है.) ९५३७६. (+) नवपद पूजा व पद्मप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ६, कुल पे. २, प्रले. मु. सरूपचंद; पठ. मु. सुगालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: नवपदपूजा., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५x१०.५, १५X४०-४४). १. पे. नाम, नवपद पूजा, पृ. १अ ६अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि उपन्नसन्नाणमहोमयाणं अति: कोई न थई अधूरी रे, पूजा ९. २. पे. नाम पद्मप्रभुजीरो तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण, पे. वि. पत्र- ६आ पर नवपद पूजा की आवश्यक सामग्री का उल्लेख है. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: तुमह पाय सेवरे, गाथा- ९. ९५३७७. (+#) सूक्तिमाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२३.५x११, १२x२८-३२). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७५४, आदि सकलकुशलवल्लि, अंति: (-), (पू. वि. गाधा-५८ अपूर्ण तक है.) ९५३७८. (+) स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३ ९ (१,११,१३ से १५, १७ से २०) १ (५) = १५, कुल पे. ११, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२४.५x१०.५, १४४४०-४६). १. पे नाम, जैनरक्षा स्तोत्र, पू. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: संपदश्च पदे पदे, श्लोक-१८, (पू.वि. श्लोक - ६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम जिनपंजर स्तोत्र, पृ. २अ ३अ, संपूर्ण. आ. कमलप्रभसूरि से, पद्य, आदि ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अति श्रीकमलप्रभाख्यः श्लोक-२५. ३. पे नाम ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ३अ ५अ संपूर्ण. ऋषिमंडल स्तोत्र वृहद् आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य, आदि आद्येताक्षरसंलक्ष्यमक्षर; अति लभ्यते पदमुत्तमम्, श्लोक - ६३, ग्रं. १५०. ४. पे. नाम. आप्तागम, पू. ५अ ६आ, संपूर्ण, आप्तस्वरूप, सं., पद्य, आदि आप्तागमः प्रमाणं अंतिः प्रणमामि सदा जिनमाद्यम्, श्लोक ७९. ५. पे. नाम. अर्हन्नामसहस्र, पृ. ६आ-१०आ, संपूर्ण. अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्म, वि. १२वी १३वी आदि अर्हन्नामापि कर्णाभ्यां अंति: पठनाज्जपात, प्रकाश ११ लोक-११७. ६. पे. नाम. पार्श्वनाथ मंत्रगर्भित अष्टोत्तरनाम स्तोत्र, पू. १०आ- १२आ, संपूर्ण पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि श्रीपार्थः पातु वो अंतिः नित्यं मनोवांछित लभ्यते, श्लोक-३३. ७. पे नाम. आदिजिनमहिम्न स्तोत्र. पू. १६अ १६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: (-). (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण तक है.) ८. पे. नाम. वीरद्वात्रिंशका, पृ. २१अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.. For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ महावीरद्वात्रिंशिका, हिस्सा, आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: तांश्चक्रि शक्रश्चियः, श्लोक-३३, (पू.वि. श्लोक-२९ से है.)। ९.पे. नाम, गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. २१अ-२२अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तव, आ. वज्रस्वामि, सं., पद्य, आदि: स्वर्णाष्टाग्रसहस्रपत्र; अंतिः श्रेयांसि भयांसि नः, श्लोक-११. १०. पे. नाम. सर्वजैनतीर्थमाला स्तवन, पृ. २२अ-२३अ, संपूर्ण. तीर्थवंदना, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: संसारतारयाणं तियसा; अंति: संथुया सिवसुहं दितु, गाथा-३४. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन मालामंत्र स्तोत्र, पृ. २३अ-२३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __ सं., गद्य, आदि: ॐ नमोर्हते भगवते श्रीमते; अंति: (-). ९५३७९ (+) पार्श्वजिन महिम्न स्तोत्र, पार्श्वजिन व जिनकशलरि अष्टक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८-१(१)=७, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, ९४३४-३८). १.पे. नाम. पार्श्वप्रभु स्तव महिम्नाख्य, पृ. २अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १९०४, माघ कृष्ण, ५, ले.स्थल. जालोरगढ, प्रले. पंडित. सोभाचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य. पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघनाथ, सं., पद्य, वि. १८५७, आदिः (-); अंति: संसृतितोवपार्श्वः, श्लोक-४०, (पू.वि. श्लोक-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वयक्षराज अष्टक, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अष्टक, म. सागरचंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ हृदये; अंति: सागर तनयस्यनोदनया, श्लोक-११. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरिगुरुणामष्टक, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. रत्नसोम, सं., पद्य, आदि: देवराजपुरमंडनमाप्त; अंति: रत्नसोम समसद्यशोभरम्, श्लोक-९. ९५३८०. धर्मोपदेसो वाख्यान, अपूर्ण, वि. १८२८, चैत्र कृष्ण, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. १४-३(८ से १०)=११, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३८-४२). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: देवपूजा१ दया२ दानं३; अंति: मंगलीकमाला संपजे. ९५३८१ (+#) ढालसागर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-२०(१ से २०)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १७-१९४३८-४४). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२२ गाथा-५८७ अपूर्ण से ढाल-२९ गाथा-८०२ अपूर्ण तक है.) । ९५३८२. (+#) सिंदर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८४९, पौष कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. वीदासर, प्र.वि. हुंडी:सिंदर०., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १३४३२-३६). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-९९. ९५३८३. (+#) वरदत्तगुणमंजरी व्याख्यान व पंचमीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी:सोभाग्यपंचमीव्याख्यानं., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १०-१३४४२-४८). १.पे. नाम. कार्तिक सौभाग्यपंचमीमहात्म्यविषये वरदत्तगणमंजरी व्याख्यान, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, वि. १९१०, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, ले.स्थल. आहोरनयर, प्रले. मु. सरीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. वरदत्तगणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५२. २. पे. नाम. पंचमीतप स्तवन, पृ. ६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५३८४. (2) अढार नातरा चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. सा. बाण शिष्या (गुरु सा. मानाजी); गुपि.सा. मानाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी;नाता., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १५४३२-३४). १८ नातरा चौपाई, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: प्रथम जिनेसर आददेइ प्रणमु; अंति: लाल. समत अठार १९ सोलावस, ढाल-३०. ९५३८५ (+#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, ११४२४-३२). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उवसग्गहर स्तोत्र गाथा-४ अपूर्ण से अजितशांति गाथा-२० अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने तिजयपहुत्त स्तोत्र नहीं लिखा है.) ९५३८६. (+) वीचारपांचासिकासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२४, आश्विन शुक्ल, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ.७, अन्य. मु. अमरसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "आ प्रत अमरसीजी सामी नेसराने सावके वोरावेल छे १९४५ ना" ऐसा उल्लिखित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ४४३८-४०). विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: वीरपयकयं नमिउं देवा; अंति: विमलसूरिवराणं विणएण, गाथा-५०. विचारपंचाशिका-टबार्थ *, मा.ग., गद्य, आदि: वीरपयकय कहे० श्रीमहावीर; अंति: विनयेन क० विनये करीने. ९५३८७. (+#) अणुत्तरोववाईदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१-३(१ से ३)=१८, ले.स्थल. वांकानेरनगर, प्रले. ग. रामविजय; पठ. श्राव. लालचंद निहालचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अणुत्तरो. अंत में "सेठ मोनानी दीकरीइ सरबाई परत वोरावी छे नवमा अंगनी लालचंदजीने श्री वांकानेरमध्ये संवत् १७९९" ऐसा उल्लिखित है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ५४२८-३८). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: जहा धम्मकहा णेयव्वं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२, (वि. १७९९, आश्विन कृष्ण, १०, मंगलवार, पू.वि. वर्ग-१ पाठ "गोयमा माहाविदेहे सिज्झति" से है.) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: धर्मकथानी परे जाणवा, (वि. १७९९, आश्विन कृष्ण, १२, गुरुवार) ९५३८८ (+) भुवनदीपक सह टबार्थ व महावीरजिन जन्मपत्रिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:भुवनदी०, भुवनदीप०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, ६४३६-४०). १. पे. नाम, भुवनदीपकनाम योतिष्कशास्त्र सह टबार्थ, पृ. १अ-२०अ, संपूर्ण, वि. १८२४, आश्विन शुक्ल, १५, बुधवार, ले.स्थल. चांणोदनगर, प्रले. ग. अजितविजय; राज्यकालरा. वीसनसिंघजी मेडतीया, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीशांतिनाथप्रसादेन. भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सूरिःपद्मप्रभः पूर्व; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-२१०. भवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सूरि आचार्य पद्मप्रभ; अंति: इस्ये आचार्य कह्यो. २.पे. नाम, महावीरजिन जन्मपत्रिका, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: गतकलि संवत युग २६९; अंति: उल्लापने वर्द्धमानः, (वि. अंत में कुंडली का चित्र दिया है.) ९५३८९ (+#) नारचंद्र ज्योतिष सह यंत्रकोद्धार टिप्पण, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ.७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४-१६४३४-४०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: तिथिवारधिष्णयोगा४ राशि५; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., करणविवरण अपूर्ण तक लिखा है.) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. ९५३९२ (+) आखातीजनो व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११, ११४२६-३०). For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: उसभस्सय पारणए इक्खु; अंति: (-), (पू.वि. आदिनाथ भगवान को श्रेयांसकुमार द्वारा इक्षुरस दान, देवों द्वारा अहोदानं अहोदानं प्रसंग तक है.) ९५३९३. (+#) समयसारनाटक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हंडी:समैसारनाटक., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १४-१७४३६-४०). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: (-), (पू.वि. ज्ञानदीपक वर्ण दोहा तक है.) ९५३९४. (+) पंचमीतपविषे गणमंजरीवरदत कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(५)=५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १०४२४-३६). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सकल भवि मंगल करे, ढाल-६, गाथा-६८, (पू.वि. ढाल ३ की गाथा-८ अपूर्ण से ढाल ४ की गाथा-११ अपूर्ण तक नहीं है.) ९५३९५ (+#) दशाश्रुतस्कंधसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २९-२४(१ से २४)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४४०). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. दशा-१० सूत्र-१०४ अपूर्ण से __ सूत्र-१११ अपूर्ण तक है.) ९५३९६. ककानी सिझाय व दूहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (२५४१२, ६४१६-२०). १. पे. नाम. तेत्रीसअक्षर ककानी सिझाय, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण, ले.स्थल. मेदिनीतट, पठ. श्रावि. अमृतकुमरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. कक्काबत्रीसी, म. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करी; अंति: सीस जीवो ऋष इम वीनवै, गाथा-३३. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहासंग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह-विविध विषयक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गिरीयै गिरवर धाय जाय; अंति: ठांममै कैसै सेर समात, गाथा-३. ९५३९७.(+) सोभागपंचमीरो वखाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १३४३८). वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)श्रीमत्पार्श्वजिनाधीशां, (२)भूवन कहितां तिनै त्रिभूव; अंति: करतां श्रेय कल्याण संपजै. ९५३९९ (4) संबोधसप्ततिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. नगराज (गुरु आ. रत्नसागरसूरि); गुपि. आ. रत्नसागरसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ५४३७-४२). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सोलही नित्थि संदेहो. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिनइ कुणी प्रतै त्रिलोक; अंति: ते लहै मोख्य संदेह रहीत. ९५४०० (+) चत्तारिअठगाथा स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२८, वैशाख शुक्ल, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. शिवराम पानाचंद ठाकोर; पठ. श्रावि. आधारबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४११.५, ४४२८). परिपाटीचतुर्दशक, उपा. विनयविजय, प्रा., पद्य, वि. १८वी, आदि: नमिऊण वद्धमाणं; अंति: जिणा इमे विणयविजयेण, गाथा-२७. परिपाटीचतुर्दशक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी; अंति: विजय नामा उपाध्याय जे ते. ९५४०१. (+) पांचप्रतिक्रमण व दसपच्चक्खाण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. कालद्री नगर, प्रले. पं. मानविजय; पठ. पं. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १५४४२-४६). १. पे. नाम. पांचप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: खमासण देई इरियावहियं; अंति: भणु नो ___कही सामाईयवययुत्तो, (वि. पौषध व देववंदन विधि सहित.) २. पे. नाम. दसपच्चक्खाण विधि, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरे. ९५४०२. (+) कयवन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १५४३२-३४). कयवन्ना चौपाई, म. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ की गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९५४०३. (+#) नियंटा-संजया आलापक बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४)=५, प्र.वि. हुंडी:संजया., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १७७५६). भगवतीसूत्र-नियंट्ठा-संजया आलापक-बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नाना प्रकारेनो आकार छै, (पू.वि. द्वार-१५ अपूर्ण से है.) ९५४०४. (#) श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८०३, पौष शुक्ल, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४४२). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि; अंति: मिच्छामि दक्कडं. ९५४०५ (+) ऋषिमंडल स्तव सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित-पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १६x४८). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से गाथा-४४ अपूर्ण तक है.) ऋषिमंडल प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९५४०६ (+) धर्मशिक्षा प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७३६, पौष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. जेसलमेर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, ७४५४). धर्मशिक्षा प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: नत्वा भक्तिनतांगकोऽहमभयं; अंति: रून्द्रे नरः सादरम्, श्लोक-४०. ९५४०७. (+) आराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ५४३६). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-६९. पर्यंताराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: गुरु प्रति नमस्कार करीनइ; अंतिः प्रकारे लहइ साम्यता सुख. ९५४०८.(+#) नवस्मरण व लघुशांति, संपूर्ण, वि. १८७०, चैत्र शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, ले.स्थल. मगोल, प्र.वि. प्रतिलेखक नाम मिटाया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ११-१२४३१-३३). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ-१२आ, संपूर्ण. म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, स्मरण-९. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह कृति पत्रांक १०असे ११अ पर है. __ आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांता शांतिनिसांता शांत्य; अंति: जायात् सूरि श्रीमानदेवस्य. ९५४०९ (+#) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्र., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३२-३८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७८ अपूर्ण तक है.) ९५४१० (+#) षष्ठिशतक प्रकरण सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, २२४४८-५२). For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९७ षष्टिशतक प्रकरण, आव, नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि अरहं देवो सुगुरु; अंति: (-) (पू. वि. गाथा- ७९ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षष्ठिशतक प्रकरण-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: देवो अर्हन् चारित्रलक्षणो; अंति: (-). ९५४११. (*) अनेकार्थ संग्रह सह कैरवाकरकौमुदी टीका, अपूर्ण, वि. १६७९, चैत्र शुक्ल, ३, मध्यम, पू. ३१७-२८५ (१ से २८५)=३२, लिख. श्रावि. वीरा कुंवर सा (पति श्राव. सुरजीकुंवर सा); गुपि श्राव. सुरजीकुंवर सा; पठ. ग. हमीररूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में संवत् - १६५१ का भी उल्लेख मिलता है, संभव है की सं-१६५१ से १६७९ के मध्य में प्रत गई हो., संशोधित प्रायः शुद्ध पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- त्रिपाठ. कुल ग्रं. ११००० प्र.ले. श्री. (५६७) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२३.५x१०, १५४४५-५४). " अभिधानचिंतामणि नाममाला अनेकार्थं संग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १२वी, आदि: (-); अंति: खेदामंत्रणयोरपि, अध्याय ७, श्लोक-१९३१, (पू.वि. अध्याय- ४ के श्लोक-२३१ से है.) अनेकार्थ संग्रह- कैरवाकरकौमुदी टीका, आ. महेंद्रसूरि, सं. गद्य, आदि (-); अंति: करकौमुदीत्यभिधानेति, ग्रं. ११०००. ९५४१२. (+) महिवाल कहा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-१३(१ से ६,९ से १४,२३) = १२, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., ( २४.५x१०.५, १३X३६-४२). महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४८ से २०३ अपूर्ण, ३६३ अपूर्ण से ५६३ अपूर्ण व ५८८ अपूर्ण से गाथा - ६३७ अपूर्ण तक है.) ९५४१३. (+३) गुणस्थान प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, १०-१२X३४-३५). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह अंतिः रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३७. ९५४१४. (४) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १५२-१४५ (१ से १४३,१५० से १५१) =७, प्र. वि. हुंडी, ज्ञातासूत्र, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५x१०, ६-७५३७-४६). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं, "अम्मापियरो तेणेवकरयल एवं पाठ से गंधमचोरकंतं सर्व आहुणिय" पाठ तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), पू. वि. बीच के पत्र हैं. ९५४१५. (+) क्षेत्रसमास प्रकरण व चंद्रसंवत्सरमान विचार, संपूर्ण, वि. १६८२, चैत्र शुक्ल, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. २२, कुल पे. २, प्रले. वशराम नानजी जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : क्षेत्रसमास टबा., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, ५-७५४२-४८). १. पे. नाम. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १आ-२२आ, संपूर्ण. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी, आदि वीरं जयसेहरपयपद्विय; अति सव्वनुमइक्कचित्ता, अधिकार-६, गाथा-२६५. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि वीर श्रीमहावीर केहवउ, अंति समासविवरणः संक्षेपतः. २. पे. नाम. चंद्रसंवत्सरमान विचार, पृ. २२आ, संपूर्ण. ज्योतिष विचार, मा.गु. गद्य, आदि: चंद्र संवत्सर ३५४ दिन भाग अति भाग सतसठि कीजइ तेहवा भाग. ९५४१६. भक्तामर स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८११ चैत्र कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ७, प्रले. पं. मयाचंद मधेन प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४.५x११, ६५३४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमीलि अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: छइ आवै लक्ष्मी शोभवा. ९५४१७ सम्यक्त्वसत्तरिसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२७, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. हुंडी : सम्यक्त्वसत्तरि, जैये. (२५.५x११, ९४३८). For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सणसुद्धिपयासं; अंति: सणसुद्धिं धुवं लहह, गाथा-७०, संपूर्ण. सम्यक्त्वसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक्त्व सुद्धिनो प्रकास; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___अपूर्ण. ९५४१८. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पठ. श्रावि. जसोदा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ७२३२-३७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण से है.) ९५४१९. (+) भावषट्त्रिंशका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१०.५, ६४१७-२२). भावछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: क्रिया असुधता कछु नही भाव; अंति: मुनिज्ञानसार मतिमंद, गाथा-३९. भावछत्रीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: क्रियानो असुद्धपणो; अंति: शिष्य मंदबुद्धियें. ९५४२० (+#) शतक नव्य कर्मग्रंथ व सप्ततिका कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३-३३(१ से ३३)=१०, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ५४३८). १.पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ३४आ-३५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: देविंदसूरि आयसरणट्ठा, गाथा-१००, (पू.वि. गाथा-८३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ, पृ. ३६अ-४३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-७५ अपूर्ण तक है.) ९५४२१. (+2) पट्टावली तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पट्टावली., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२-१४४३२-३८). पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरपट्टे सुधर्मा; अंति: (-), (पू.वि. आचार्य जगत्चंद्रसूरि पाट-४५ अपूर्ण तक ९५४२२. (+) अंजना रास, संपूर्ण, वि. १८२३, कार्तिक शुक्ल, ७, रविवार, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. नोरंगावाद, प्रले. मु. कुशाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अंज., संशोधित., जैदे., (२४.५४९.५, १२४३८-४०). अंजनासंदरी रास, मा.ग., पद्य, आदि: पहिलैने कडवइ हो पाय नम: अंति: भावधरंता हो भवदख जाय तो, ढाल-२२, गाथा-१६०. ९५४२३. (+#) चतुसरणपइन्न सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०६, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. कंटालीया, प्रले. पं. खुशालसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चउसरण., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ६x४२-४६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारण निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सा सावज्जजोगनु वर्तवु ते; अंति: सुखनो कारणभूत छे. ९५४२४. (+#) बृहत्संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्रले. ग. दयालाभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संग्रहणीसूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १३४३८-४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई; अंति: नंदओ जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१३. For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९५४२५ (+) सिंदरप्रकरण-हिंसाप्रक्रम से मानप्रक्रम सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६६७ आश्विन कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९-३ (६ से ८) ६, ले. स्थल, राजनगर ( अहमदाबा, प्रले. ऋ. किसना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे.. (२५x१०.५, १६x४५-५२). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३वी आदि (-); अंति (-) (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. परिग्रह प्रक्रम की ', 1 गाथा- १ अपूर्ण से मानप्रक्रम की गाथा- २ अपूर्ण तक नही है.) सिंदूरकर- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), प्रतिअपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९५४२६. (+४) भक्तामर स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७१२ आश्विन शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल, जावाल, प्र. ग. सुविधिसागर (गुरु ग. आमोदसागर) गुपि. ग. आमोदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा जैये. (२४१०.५, ५X३५) " भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अति मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वि. १७१०, आदि: प्रणम्य श्रीगुरोः पादान् अति भानु० शिष्य कृते मनोज्ञः. ९५४२७. (+) ज्योतिषसार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५X११, १५X३६-४४). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अति (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ११३ अपूर्ण तक लिखा है.) " जैदे.. " ९५४२८ (+) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२५X११, १३X३२). " साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चोवीस जिण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल -६ की गाथा ८४ अपूर्ण तक है.) ९५४२९ वनारसीविलास संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १३-५ (१ से ५ ) ८, पू.वि. बीच के पत्र हैं, जैदे. (२५.५४११.५, १३X३८-३९). १. पे. नाम. पट्टावली खरतरगच्छीय, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. सं., पद्य, बि. १८९२, आदि नमः श्रीवर्द्धमानाय, अति सिद्धांत वचाये यथाशक्ति, श्लोक १९. २. पे. नाम. ज्ञानपहिरावणी गाथा, पृ. ७अ, संपूर्ण. ९९ जिनसहस्रनाम स्तोत्र, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जिनपूजा अधिकार गाथा - १० अपूर्ण से तपाधिकार गाथा ८३ अपूर्ण तक है.) ९५४३०. (४) पट्टावली खरतरगच्छीय व ज्ञानपहिरावणी गाथा संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५x१०.५, ६४१९-२२) प्रा., पद्य, आदि नमंति सामंति महीवनाह; अंति लाभाय भवक्खयाय, गाथा २. ९५४३१. (+४) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४७-३७ (१ से ३७) १०, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४१०.५, १०X३२-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. सूत्र - २०० "पद्मप्रभ जीवन प्रसंग" अपूर्ण से "स्थविरावली" अपूर्ण तक है.) ९५४३२. (*) प्रज्ञापनासूत्र-पद १ रूपी अजीवना ५३० भेद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित - पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २४x१०.५, १२x२८-३६). For Private and Personal Use Only प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९५४३३. (#) दशदृष्टांत सह कथा, संपूर्ण, वि. १८८०, आषाढ़ कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले. स्थल. कांबा, प्रले. पं. माणिक्यमेरु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कांबेसरजी प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२५.५x११, ११-१२X३१-३३). मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि चत्तारि परमांगाणि अंति: स चेत् पूर्ववत्, श्लोक १०. Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत काव्य-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: कपिलपुरनगरे ब्रह्मदत; अंति भव परभवनी सर्वनी गरज सरे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९५४३४. (+#) ) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यानकथा, अपूर्ण, वि. १८६५ १८६६ भाद्रपद कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४८-२३(१ से २२,७६) - १२५. पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, ले. स्थल, सेणा, हस्तिनापुर, प्रले. पं. नायकविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. पत्रांक- २६ व १४० पर प्रतिलेखन पुष्पिका उल्लिखित है. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४४११, ६-१४४३६-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. व्याख्यान १ मेघकुमार कथा अपूर्ण से व्याख्यान-८ स्थविरावली अपूर्ण तक है व बीच बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र - टवार्थ" मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). विशेष " " ९५४३५. (+) सुसद चरित्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ७६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ४४२९-३२). सुसढ चरित्र, प्रा., पद्य, आदि: जे परमाणंदमय परप्पमा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ५१५ तक है.) सुसढ चरित्र - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-). ९५४३६. (*) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७२५ आश्विन कृष्ण, मध्यम, पू. ५१-५ (३ से ७) = ४६, ले. स्थल, पावटी, प्रले. मु. टोडर (गुरु मु. वाघाजी ऋषि); गुपि. मु. वाघाजी ऋषि पठ. सा. धनाआर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२४४१०.५, १२४३२-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ ति वेमि, व्याख्यान- ९, (पू.वि. व्याख्यान-१ के "विपणमई पुव्व" पाठांश से "तेणेव उवागत्थ" पाठांश तक है) ९५४३७. (+) वीर वंशावलि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३८, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४११, 3 "" ११X३५-३७). वीर वंशावली, मा.गु., प+ग, आदि (१) श्री आदिदेवादि जिनांश्च, (२) प्रथम श्रीमहावीरने पाटे अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. श्रीजिनवल्लभ परंपरा तक लिखा है.) 1 ९५४३८. (*) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यानकथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११२-२८ (१ से २८) = ८४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५X१०, ५-१३X३२-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरभव वर्णन अपूर्ण से व्याख्यान- ६ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ९५४३९. (*) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १८, प्र. वि. हुंडी नाममाला, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, ११३५). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि प्रणिपत्यार्हतः; अति (-), (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "नारायण नाम" अपूर्ण तक लिखा है.) ९५४४० (+#) धर्मविषयेधर्मबुद्धि चोपई, संपूर्ण, वि. १८१६, पौष कृष्ण, ६, रविवार, मध्यम, पृ. २४, ले.स्थल. रायपुर, प्र. वि. प्रतिलेखक नाम अवाच्य है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५x१०.५, १५X३२-४२). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: प्रथम जिणेसर परगडो; अंति: गृह शिवसुख सुजस लहै, ढाल-३९, गाथा-५३५. १५४४१. (+) मानवतीचरित्र चौपई, अपूर्ण, वि. ९८४२, चैत्र कृष्ण, ४, मध्यम, पू. ३४-१२ (१ से १२) २२, ले. स्थल जयतारणनगर, प्रले. पं. दौलतसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४X१०.५, १६३८-४३). For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ मानतुंगमानवती रास- मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति मोहन० घरि मंगलमाल हे, ढाल - ४७, गाथा-१०१५, (पू.वि. ढाल १७ की गाथा-३ अपूर्ण से है.) ९५४४२. (#) प्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति व चैत्यवंदनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४५-५ (३८ से ४२) =४०, कुल पे. ३१, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जै, (२५X११, १०२७-३७). १. पे नाम प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - खरतरगच्छीय, पृ. १आ-२२आ, संपूर्ण. साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंति सर्व मंगल मांगल्यम्. २. पे. नाम दसविधिपच्चखाण, पू. २३अ २५आ, संपूर्ण प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३. पे. नाम. छ आगार, पृ. २६अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काउसरण आगार, संबद्ध, प्रा. मा.गु., पद्य, आदि रायभीओगेणं गणाभी ओगेण अति: तिकतारेण गुरु निग्रहेणं. ४. पे नाम प्रतिपदा स्तुति, पृ. २६अ, संपूर्ण. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ५. पे नाम बीजतीथि स्तुति, पृ. २६अ २७अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज, अंति कहे पुरो मनोरथ माय गाथा-४. ६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि वरमुत्तिवहार सुतारगुणं, अंतिः मम वाणी सुहाणि कुसुमसया, १०१ गाथा-४. ७. पे. नाम. चोथतिथि स्तुति, पृ. २७आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि युगादिपुरुषेंद्राव युगादि अति कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. ८. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषे विहरता वीस अंति तिहुअण जण मनवंछित सारे, गाथा-४. ९. पे नाम पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २८अ २८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति - पनांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, लोक-४. १०. पे नाम ७ तिथो, पृ. २८आ- २९अ, संपूर्ण, शांतिजिन स्तुति, भाव, अगरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशांतिजिणेसर पूजो नित अतिः श्रावक अगरचंद गुण गाय, गाथा-४. ११. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चउवीसे जिणवर प्रणमुं; अंति: इम शासन देवी सुजाण, गाथा-४. १२. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि समरु सुखदायक मन, अंतिः श्रीजिनचंद्रनी वाणी, गाधा ४. १३. पे. नाम. दशमि स्तुति, पृ. ३० अ- ३१अ, संपूर्ण. पार्श्व स्तुति, मु. रुचि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीपास जिणेसर पुजा, अंति: सुख संपत्ति हितकार, गाथा-४. १४. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ३१अ - ३१आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: निवारो संघतणा निशदिश, गाथा-४. १५. पे नाम. १२ तिथि स्तुति, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जेकारि जिनवर वासूपुज्य; अंति: सासणदेवी लहिए रूची जेकार, गाथा-४. १६. पे. नाम. त्रयोदशी स्तुति, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: जिनचंद्र० क्रीडितं, श्लोक-४. १७. पे. नाम. चतुर्दशी स्तुति, पृ. ३२आ-३३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: नै दें कि दें; अंति: कुसल० तुझ सासनदेवता, श्लोक-४. १८. पे. नाम. अमवस्या स्तुति, पृ. ३३आ-३४आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसती वर वाणी, गाथा-४. १९. पे. नाम. अध्यात्म स्तुति, पृ. ३४आ-३५आ, संपूर्ण. औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठी सवेरे सामायिक; अंति: थाओ शिवपद भोगी जी, गाथा-४. २०. पे. नाम. सीमंधर स्तुति गाथा-१, पृ. ३५आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २१. पे. नाम. श्रीमंधर स्तुति गाथा-१, पृ. ३५आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तति, मा.ग., पद्य, आदि: सकलसरासर नरवर; अंति: (-), प्रतिपर्ण २२. पे. नाम. सिमंधर स्तुति गाथा-१, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुजने वाल; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २३. पे. नाम. गिरि स्तुति, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण..। पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्यतीर्थ; अंति: सुरास्ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. २४. पे. नाम. २४ जिन मोक्षस्थान स्तुति, पृ. ३६आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: अष्टापदे श्रीआदिजिन; अंति: नित्य वंद सयलसंग सुहंकरु, गाथा-१. २५. पे. नाम. शत्रंजय स्तुति, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. हितप्रमोद, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीसचेंजो तिरथ प्रणमु; अंति: हितप्रमोद० मन उसरंगेजी, गाथा-४. २६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३७आ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमलाचलमंडण जिनवर; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २७. पे. नाम. शत्रुजय स्तुति, पृ. ३७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेāजो तीरथ; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा के २ पद २८. पे. नाम. जिन स्तवन, पृ. ४३अ-४४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: भवति सततं चितमानंदकारि, श्लोक-९, (प.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है.) २९. पे. नाम. निरजंनाष्टक स्तोत्र, पृ. ४४अ-४४आ, संपूर्ण. निरंजनाष्टक, सं., पद्य, आदि: स्थानं न मानं न च; अंतिः प्रभु वर्त्तिताय तस्मे, श्लोक-८. ३०. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. ४४आ, संपूर्ण. हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्करावर्त; अंति: श्रेयसे पार्श्वदेवः, श्लोक-१. ३१. पे. नाम. पंचतिर्थी चैत्यवंदन, पृ. ४४आ-४५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दर्शनात् दुरितध्वंसी; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १०३ ९५४४३. (+#) आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष ___पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३०-३४). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-८ उद्देश-८ __गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९५४४५ (+) वार्ता संग्रह व वाका-संवतवार ऐतिहासीकनगरस्थापनादि विवरण, संपूर्ण, वि. १८२४, कार्तिक शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४३६-४२). १. पे. नाम. चंदकुंवर की वार्ता, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु., पद्य, आदि: समरु सरसति माय गणपति; अंति: जे सुणे रहिइ प्रेमसुभाय, गाथा-९३. २. पे. नाम. अचलदास खीचीरी वात, पृ. ५आ-११आ, संपूर्ण. अचलदास उमासांखली लाला मेवाडी की वार्ता, क. सूर कवि, रा., गद्य, आदि: विघन हरण मंगल करण गणपति; अंति: सूर० धणीजीरो रूसणो गयो. ३. पे. नाम. राजा रीसालूरी वार्ता, पृ. ११आ-१९अ, संपूर्ण. राजारीसालू की वार्ता, नरबद चारण, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्रीपुरनगर के विषे राजा; अंति: (१)राजाराणी बहु सुख पाया, (२)नरबदो० पावे मोज सोयबें, गाथा-६९. ४. पे. नाम. वाका-संवतवार ऐतिहासीकनगरस्थापनादि विवरण, पृ. १९अ-२०आ, संपूर्ण.. संवतवार ऐतिहासिक घटनाक्रम, मा.गु., गद्य, आदि: संवत ८०९ वर्षे वैशाख सुदि; अंति: १६२३ मृगशिर० सोजत भागी. ९५४४६. (+) सिद्धांत हुंडी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १७X४२-४६). सिद्धांत हंडी, पंन्या. सहजकुशल, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण जिणवराई सअ; अंति: भवियजीयाणवबोहिव्वं, संपूर्ण. सिद्धांत हंडी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनादिक प्रति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. अंतिम गाथार्थ नही है.) ९५४४७. (+) कुमतिमतिनिर्घाटीताकुमतिनिर्नाशन वीरजिनवर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२५, फाल्गुन कृष्ण, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. गुंदवच नगर, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अंत में प्रतिलेखक ने "परतऊपरली माफक लिख्यो छे खोटखभाडिनो दोष लिखणहारने नही छे" लिखा है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४४११, १५४४५-४८). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: इनै गुरु आणी सिर वहस्यैजी, ढाल-६, गाथा-१४८, ग्रं. २२८. ९५४४८.(+) उपासकदसासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९११, भाद्रपद कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ७१, प्रले. शिवचंद ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपासदशा., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१०.५, ५४३३-३६). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनइ विषइ तिण समयनइ; अंति: दिवसे श्रुतांग तिमज जाणवौ. ९५४४९ (+#) मानतुंगमानवती चरित्र, अपूर्ण, वि. १८२१, पौष शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ५२-२४(३ से २६)=२८, प्रले. पं. हस्तिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११,१४४३४-४९). मानतुंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदिः श्रीरिषिभजिणंद पदांबुजे; अंति: मोहनविजै० घर मंगलमालो हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५, (पू.वि. ढाल-१ की गाथा-११ अपूर्ण से ढाल-२२ तक नही है.) For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५४५० (+) कल्पसूत्र-महावीर जीवनचरित्र सह व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९७२, चैत्र कृष्ण, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५१, प्रले. श्राव. खीमचंद पोपटलाल गांधी; पठ.सा. शेजकुंवरबाईस्वामी (गुरु सा. मोटाडाहीबाईस्वामी, लींबडी संप्रदायगच्छ); गुपि. सा. मोटाडाहीबाईस्वामी (लींबडी संप्रदायगच्छ); दत्त. श्रावि. भचीबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:मंगलकल्प., संशोधित., दे., (२५४१०.५, १६४५०-५३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. प्रारम्भिक पाठ का टबार्थ दिया है.) ९५४५१ (+#) सम्मतितर्क प्रकरण सह तत्त्वबोधविधायिनीटीका, त्रुटक, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४०५-३३४(१ से २२९,२३२ से २९१,३०० से ३०२,३०४ से ३०५,३१९ से ३२०,३२२ से ३२६,३२८ से ३२९,३३१,३३८,३४५ से ३४६,३४८ से ३५२,३६४,३६७,३७७ से ३९५,३९७)=७१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:संमतिप्र.द्वि.खंड. पत्र-४०१ के बाद पत्रांकभाग नष्ट होने से पत्रांक अनुमानतः दिया गया है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४५७). सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१, २ व ३ के बीच-बीच के पाठांश है.) सन्मतितर्क प्रकरण-तत्त्वबोधविधायिनी टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९५४५२. (+) कल्पसूत्र सह कल्पद्रमकलिका टीका-व्याख्यान १-५, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६४-२१(३५ से ५५)=४३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, १८४३६-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. व्याख्यान-४ अपूर्ण से व्याख्यान-५ अपूर्ण तक नहीं है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ९५४५३. (+) चौपाई संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७३-२(६५ से ६६)=७१, कुल पे. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १४-१६x४०-४६). १. पे. नाम. दानसीलाधिकारे रतनहासस्य चतुःपदी, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. रत्नहास चौपाई-दानशीलाधिकारे, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सरसति सामणि पय नमी पामी; अंति: लखमी० भवियणनइ उपगारइरे, ढाल-१२. २. पे. नाम. रात्रिभोजनचरित्र चउपई, पृ. ७अ-२०अ, संपूर्ण, वि. १७७४, आषाढ़ शुक्ल, १, शुक्रवार, ले.स्थल. अकबरावाद, प्रसं.पं. जेसिंघ गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. रात्रिभोजन चौपाई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: वरधमान जिनवर तणा चरण नम; अंति: श्रीलखमी०अतिचयन सुचंगा हो, ढाल-२६. ३. पे. नाम. गजसुकमालमहामुनिश्चतुपदी, पृ. २०आ-३५अ, संपूर्ण, वि. १७७४, श्रावण कृष्ण, १२, ले.स्थल. अकबरावाद, प्रले. पं. जससोम, प्र.ले.पु. सामान्य. गजसुकुमालमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: तेवीसमा जिनवर तणा चरणकमल; ___ अंति: जिणवर चरण नमीजे छे, ढाल-३०, गाथा-५६१. ४. पे. नाम. दानधर्मविषये अमरकुमार चरित्र, पृ. ३५आ-४३आ, संपूर्ण. अमरकुमार रास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदीसर प्रथम जिन शांति; अंति: लखमी० दान तणी मति दीपइ, ढाल-१८. ५. पे. नाम. दसारणभद्रराजर्षि चतुःपदी, पृ. ४३आ-४६आ, संपूर्ण. दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: वीरजिणेसर वंदिनई प्रणमुं; अंति: ध्रमसीह० द्यौ सुख दीह, ढाल-६. ६. पे. नाम. मोतीकपासीयारी चउपई, पृ. ४६आ-४९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १०५ मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सुंदर रूप सुहामणउ आदीसर; अंति: चतुरनरां चमतकार, ढाल-५, गाथा-१०२. ७. पे. नाम. लीलावती रास, पृ. ४९अ-६४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: तेवीसमो त्रिभुवनतिलो जग; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२८ गाथा-४ तक है.) ८. पे. नाम. मानतंगमानवती चौपई, पृ. ६७अ-७३आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदिः (-); अंति: अभयसोम० मतिमंदिर लहै, ढाल-१४, (पू.वि. ढाल-४ दोहा-६ अपूर्ण से है.) ९५४५४. (+) शांतिनाथ चरित्र, अपर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १८०-१३२(१ से ६४,६६ से७०,८०,९४ से ११७,१२०,१३५ से १३९,१४१ से १४२,१४४ से १४९,१५१,१५६ से १६९,१७१ से १७९)=४८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हंडी:शांतिनाथ., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३२-३८). शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रस्ताव-६ अपूर्ण है.) ९५४५५ (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ९-१०४२२-२४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-४२ अपूर्ण तक है.) ९५४५६. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रावण कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५,१३४३६-४२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: एगंते होई मिच्छत्तं, गाथा-५३. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व१ अजीवतत्व२ पुन्य; अंति: बिहुं बराबरि पणे ९५४५७. (+) प्राकृत वैद्यक, योगनिधान व पिपीलिका विचार गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. ३,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०, १३४३५-३७). १. पे. नाम. पराकृत वैद्यक सह टबार्थ, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण. वैद्यक शास्त्र, श्राव. हरिपाल, प्रा., पद्य, वि. १३४१, आदि: णमिऊण जिणो विज्जो; अंति: सत्थो य पुण्णोया, गाथा-२५७. वैद्यक शास्त्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने जिण द्वितीय; अंति: विद्या शास्त्र पुन्य. २. पे. नाम, योगनिधान, पृ. १२अ-१७आ, संपूर्ण. श्राव. हरिपाल, प्रा., पद्य, वि. १३४१, आदि: णमिऊण वीयरायं जोयविस; अंति: फुल्ल पवाहो गओ होइ, अध्याय-८, गाथा-१०८. ३. पे. नाम, पिपलिका निमित्त, पृ. १७आ, संपूर्ण. पिपीलिका विचार गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: घयतिलणेह कुकुस विवज्जिए; अंति: देसं गामं विणा संति, गाथा-९. ९५४५९. (+) अंजनासती बखाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. हुंडी:अंजना, अंज०., संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३८-४०). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलैने कडवै हो पाय; अंति: रामभारिज्या जगततणी मात तो, ढाल-२२, गाथा-१६२. ९५४६० (+) लीलावती की भाषा व दाडिमकूष्मांड बीजवर्णन श्लोक, संपूर्ण, वि. १८००-१८१६, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. २, ले.स्थल. वटग्राम, प्र.वि. हंडी लीलावती पत्र., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०.५, १५४४४-४८). १. पे. नाम. लीलावती की भाषा, पृ. १आ-१७आ, संपूर्ण, वि. १८००, वैशाख शुक्ल, ४, बुधवार, ले.स्थल. वटग्राम, प्रले. पं. देवेंद्रविजय; गुभा. ग. जयविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); गुपि.पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (४६) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा, (५५१) चोरानलादुदकेभ्यो. For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सोभित सिंदूर पुर; अंति: ऐ वरतो जनसुख काज, अध्याय-१६, गाथा-७०७. २. पे. नाम. दाडिमकूष्मांड बीजवर्णन श्लोक, पृ. १७आ, संपूर्ण, वि. १८१६, माघ शुक्ल, ८, प्रले. पं. विनयविजय गणि (गुरु ग. देवेंद्रविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. औषधवैद्यक संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दाडिमपरिपक्वस्य प्रकारी; अंति: द्विगुणं बिजमादिसेत्, गाथा-२. ९५४६१ (+#) पाक्षिकसूत्र व पगामसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. २, प्रले. रुपसोम; पठ. श्रावि. पद्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १४४३०-३४). १. पे. नाम, पक्खियसुत्त, पृ. १आ-१४आ, संपूर्ण. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: मणसा मत्थेण वंदामि. २.पे. नाम. पगाम सझाय, पृ. १४आ-१७अ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-५०. ९५४६२ (#) साधु सामाचारी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४३-४७). सामाचारी*, सं., पद्य, आदि: इंद्रेण वरदत्तमुनेः; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सामाचारी-२७ प्रारंभमात्र तक लिखा है., वि. दृष्टांतकथा युक्त.) ९५४६४. (+) पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.११, पठ. मु. राजेंद्रविजयजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १४४३४-३८). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामी त्रीस; अंति: सं०माहेई सुरीपद पांम्या. ९५४६५ (+#) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७२, वैशाख कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:तत्वा०सूत्रम्., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३८-४२). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: सम्यग्दर्शनशुद्धं यो; अंति: गाहनांतरसंख्या० साध्याः, अध्याय-१०. ९५४६६. (+) भक्तामर स्तोत्र का वार्तिक व छद्मस्तकाल प्रमाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४२-४६). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र का वार्तिककथा, पृ. १अ-१७आ, संपूर्ण, वि. १८१०, पौष कृष्ण, २, बुधवार, ले.स्थल. खारीया, प्रले. पं. खुशालसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:भक्तामरपत्र.कुल ग्रं. ७०० भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: लक्ष्मी स्वयं वरइ. २. पे. नाम. छद्मस्तकाल प्रमाण, पृ. १७आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी हुई है. २४ जिन छद्मस्थकालमान, मा.गु., गद्य, आदि: आदिनाथनै १ हजारवरसई केवल; अंति: साडा १२ वरसे केवल ऊपनो. ९५४६७. (+#) दंडक प्रकरण व जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७७५, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. वडनगर, प्रले. पं. विवेकविजय गणि (गुरु ग. कांतिविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. कांतिविजय (गुरु ग. देवविजय, तपागच्छ); ग. देवविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ३-४४४०-४४). १. पे. नाम. चउवीसदंडक विचार सह टबार्थ, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण, वि. १७७५, माघ कृष्ण, ८, रविवार. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४४. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ ऋषभ; अंति: अर्थे प्रणाम करीनेए लिखि. २.पे. नाम. जीवविचारसूत्र सह टबार्थ, पृ. ७आ-१२आ, संपूर्ण, वि. १७७५, पौष शुक्ल, ५, मंगलवार. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: भुवन क० स्वर्ग; अंति: जे समुद्र तेह थकी. For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९५४६८ (+#) अठ्ठाईरो वखांण, संपूर्ण, वि. १८९८, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल. जालोरनगर, प्रले. पं. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १५X४२-४७). . अष्टाह्निका व्याख्यान- बालावबोध, पं. मतिमंदिर, मा.गु., गद्य वि. १८८२, आदि (१) शांतीशं शांतिकर्त्ता, (२) इहा समस्त खोटे कर्मरी पाल: अंति मतिमंदिर० कविजन लेजो देख Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९५४६९. (*) कथा कल्लोल सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८२, माघ शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. १३, ले. स्थल. राजद्रंग, प्रले. ग. सत्यविजय (गुरु ग. ऋद्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५X११, ४X३७-४३). कथा कल्लोल, सं., पद्म, आदि पंचाधा गजमीक्षणार्थमगमत्; अतिः खेदं तु दृष्ट्वाकरोत् श्लोक-४७. कथा कल्लोल-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पांच अंधा एक नगरमांहि, अंति: पश्चाताप कीधि स्युं थाइते, कथा-४७. ९५४७० (+) मेरत्रयोदशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. राजनगर, प्रले. मु. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हंडी : मेरतेरसकथा., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. जैवे. (२५x११.५, १४४३२-३६). " " मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य भारतीं; अंतिः समुक्तिसाधनं कृतः " " ९५४७१. (+) आषादाभूतिमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जै, (२४.५X१०.५, १२X३२-३६). आषाढाभूतिमुनि चौपाई सम्यक्त्व परिषह, मु. कृष्ण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनराज सुहंकरू समर्या, अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ की गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ९५४७२. (+) मोटो बासठियो, संपूर्ण, वि. १८८४, मध्यम, पृ. ६, पठ. मु. प्रेमजी ऋषि ( गुरु मु. सुंदरजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी; बासठीयो पत्र एकसोने अठ्यावीस बोल सहित 'पंक्ति अक्षर अनियमित है. संशोधित, जैदे. (२५X११). ', , बासठीयो बृहत् मा.गु., गद्य, आदि जीव १ गइ २ इंदीय ३ क अंति वनस्पतीनो दंडक अनंतगुणो. ९५४७३. (*) थूलभद्र रास, संपूर्ण, वि. १८८१, चैत्र शुक्ल, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. हुंडी खू० नवरसो, संशोधित, जैये., (२४X११, १३X३२-३६). - स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत दायक सदा पायक जास, अति मनोरथ वेगे फल्या, ढाल १०, गाथा - ७४. ९५४७४. (+) १८ हजार शीलांगरथ सह यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., , (२५X११, १५X४८-५४). १०७ १८ हजार शीलांगरथ, प्रा., पद्य, आदि: जे नो करेंति मणसा, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ तक है.) १८ हजार शीलांगरथ-यंत्र, प्रा., मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). " ९५४७५, (+*) चतुर्मासिकत्रय व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०, प्र. वि. हुंडी : चतुर्व्या०, चतुर्मासिक, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४-१६४४२-४८). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि स्मारं स्मारं स्फुरज्ज्ञा, अंतिः ततः सर्वेष्टार्थसिद्धिः, ग्रं. ४०१. ९५४७६. (+#) जिन जन्माभिषेक कलश, स्नात्रविधि व मंगल दीवो, संपूर्ण, वि. १८४७, चैत्र कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. ५, ले.स्थल. स्वस्तिकग्राम, प्रले. मु. हिम्मतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंशखंड है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१३.५, ५-१७४३६-४२). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ जन्माभिषेक कलस, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन कलश-मांगरोलमंडन, मु. महिमासागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुरीष्टदेसमध्ये श्री; अंति: जयो जयो भगवंत जी, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे नाम आदिनाथ जन्माभिषेक कलश सह टवार्थ, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: म तुम्ह दइ वरमुत्ति, गाथा- १६. For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन जन्माभिषेक कलश-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्व दिसइं तथा उत्त; अंति: धान मुक्ति मोक्ष आपे. ३. पे. नाम. महावीर जन्माभिषेक कलश सह टबार्थ, पृ. ६अ-९अ, संपूर्ण. महावीरजिन कलश, आ. मंगलसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रेयः पल्लवयंतु वः; अंति: मंगलसू०पूजो एहिज देव, श्लोक-१५. महावीरजिन कलश-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदिनाथनों जन्माभिषेक; अंति: थाइं ते माटे २८ सों छंद. ४. पे. नाम, स्नात्र विधि सह टबार्थ, पृ. ९अ-११अ, संपूर्ण. समराइच्चकहा-स्नात्र विधि, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवणेउ मंगलं वो जिणाण; अंति: पयाहिणं दितो, गाथा-१४. समराइच्चकहा-स्नात्र विधि का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स्नात्राभिषेकनुं तोय पाणी; अंति: ते सूर्यसमान ए भाव छेइ. ५. पे. नाम. मंगल दीवो, पृ. ११आ, संपूर्ण. श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, आदि: दीवो रे दीवो मंगलिक; अंति: देपाल० कुमारपालें, गाथा-३. ९५४७७. (+) सप्तस्मरण व लघुशांति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४११, ९४२६-३२). १.पे. नाम. सप्तस्मरणानि, पृ. १आ-१६आ, संपूर्ण, वि. १९३४, आश्विन शुक्ल, १०, शुक्रवार, ले.स्थल. जयपुरनगर, प्रले. मु. रत्नानंद; पठ. श्राव. उमेदमल फतेचंदजी साहा, प्र.ले.पु. सामान्य. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअ सव्वभयं; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १७अ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: (-), (प.वि. श्लोक-१३ अपूर्ण तक है.) ९५४७८.(+) ६ द्रव्यपरिमाणादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १९४५३-५९). १.पे. नाम. छ द्रव्य स्वरूप, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा का विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलु जीवद्रव्य जीव ते; अंति: गुणपर्यायइ करी वर्ते छइ. २.पे. नाम. आत्मप्राप्ति विधि, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. आत्मप्राप्ति गुण, मा.गु., गद्य, आदि: जे कारण आत्म स्वरूप; अंति: छ द्रव्य को जाणिवो करै. ३. पे. नाम. १४ गुणस्थान स्वरूप, पृ. ५आ-१०आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां पहिलौ मिथ्यात्वगुण; अंति: गति करै ए अयोगि गुणस्थानक. ४. पे. नाम. छ भावनौ स्वरूप, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण. ६ भावना स्वरूप, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो औदयिक भाव ते ज्ञाना; अंति: मिल्याई छवीसभेद चाल्या छै. ९५४७९. सप्तव्यसन कथासमुच्चय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १५४४६). सप्तव्यसन कथासमुच्चय, आ. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५२६, आदि: प्रणम्य श्रीजिनान्; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-२ श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) ९५४८० (+) पंचमकर्मग्रंथ का यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. हमीरविजय (गुरु पं. धीरविजय पंडित); गुपि.पं. धीरविजय पंडित, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका पद्मबद्ध २ गाथा में लिखि है. हुंडी;पंचमकर्मग्रंथ यंत्र., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४४१०.५, १५४३५-४२). शतक नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, पंन्या. सुमतिवर्धन, मा.गु., को., वि. १८७५, आदि: श्रीजिन प्रते नमस्का; अंति: कृष्णगढे सुभ वास. For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १०९ ९५४८१ (+) श्रावकविधि प्रकास, संपूर्ण, वि. १९०१, वैशाख कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. जालोरदुर्ग, प्रले. पं. देवीचंद (गुरु ग. हितप्रमोद, खरतरगच्छ); पठ. मु. सरीचंद (गुरु आ. देवीचंद); पं. वृद्धिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४११.५, १३४२६-२८). श्रावकविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: क्षमाकल्याण सोधीयो सुजान. ९५४८३. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. पं. जसवंतविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, ७४३०-३६). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि सुहं; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: जीव सास्वतुं ठाम. ९५४८४. (+) गुणस्थानक्रमारोह सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-५(१ से ५)=११, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १८४३७-४१). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३१ से १३५ तक गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदि: (-); अंति: (-). ९५४८५. लीलावती विलास, संपूर्ण, वि. १८२०, माघ शुक्ल, १५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. पं. प्रीतविजय (पूनमगच्छ); पठ. पं. जसविजय (पूनमगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सुमतिविलास, सुमतवि०. श्रीशांतिजिनप्रसादात्. अजुवसापाडे., जैदे., (२४.५४११, १४४३८-४४). लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: परम पुरुष प्रभु पास; अंति: सुख संपति सुरसाल जी, ढाल-२१, गाथा-३४८. ९५४८६. नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-३(१ से ३)=११, जैदे., (२५.५४११, २१४५०-६०). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-३१, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, ग. हर्षवर्द्धन, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: धेयं तु जिनागमविद्या. ९५४८७. () योगशास्त्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २८-१७(१ से १७)=११, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १६-१९४५२-५६). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-२ श्लोक-१७ से ६९ तक है.) योगशास्त्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९५४८८.(+) माधवानडकामकंदला चउपई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १७X४०-५६). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देव सरसति देव सरसति; अंति: नर सुख पामइ संसारि, गाथा-५६०. ९५४८९ (+) स्तुति,स्तवन व पद्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-१(६)=८, कुल पे. १९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १३४३०). १.पे. नाम. मुनीश्रीरी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, मु. भुदर, पुहि., पद्य, आदि: वंदु श्रीजिनगुरु चरण; अंति: मन वसे मेरी हरो पातक पीर, गाथा-८. २. पे. नाम, अभिनंदनजिनेश्वर गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनवरे; अंति: समविषमे जिनराज रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. चतुर्विधसंघ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन साधुसाध्वी श्रावक श्राविकासंपदा सज्झाय, मु. करमसी, मा.गु., पद्य, आदि चोवीस तीर्थंकरनो, अंति: हरर्षे संघसीरी प्रणमु सही, गाथा- ६. ४. पे. नाम रिषभजिन स्तवन, पू. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोही रयो; अंति: जिनराज० सेवे बे कर जोड रे, गाथा-५. ५. पे नाम, चंदाप्रभजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभु पाहुण; अंति: जिनराज ० वंछत चढ परवाण रे, गाथा ५. पे. नाम. नेमराजल गीत, प्र. २आ-३अ संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, उपा. अमरसी, मा.गु., पद्य, आदि पंथीडा हरकर कहै रे अति अमरसी कहै उवझाव, गाथा- ९. ७. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, श्राव. गोरधन माली, मा.गु., पद्य, आदि : आज भला दीन उगोजी श्रीमंदर; अंति: माहरी आवागमन अवधार, गाथा - १०. ८. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पू. ४अ संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: थे तो महाविदेहना; अंति: कान० गांउं नित ताहरा, गाथा - ९. ९. पे. नाम. नवकारमंत्र छंद, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमस्कार महामंत्र छंद, मु, गुणप्रभुसूरि शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि सुखकारण भविवण समरो नित; अति: गुणप्रभसूरि सीस० पद नीरवाण, गाथा - १४, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गिना है. ) १०. पे नाम. नवकार मंत्र, पू. ४आ-५अ, संपूर्ण नवकार प्रभावदर्शक दोहे, पुहिं., पद्य, आदि पढ्यो नित नोवकार सीध; अंति आदरे तो अखे अमर पद होय, दोहा-४. ११. पे नाम. नवकार मंत्र, पृ. ५२-५आ, संपूर्ण नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंगे; अंतिः पद्मराज० जास अपार रे, गाथा - ९. १२. पे नाम. युगबाहुजिन स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. जिनदेव, मा.गु., पद्य, आदि: इण जंबुदीपमें जाणये; अंति: (-), (पू. वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) १३. पे नाम. नवतत्त्व वर्णन, पू. ७अ ७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण से है व गाथा-१२ अपूर्ण तक लिखा है.) १४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ८अ संपूर्ण. मु. नवललाभ, मा.गु., पद्य, आदि भव वन धरणी के विषे अंतिः ए लीजीये भजीये भगवान, गाथा ५. १५. पे. नाम औपदेशिक सज्झाच, पृ. ८अ ८आ. संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: तुं सुण रे तुं सुण रे; अंति: ब्रह्म पद मि पामसी लाल, गाथा-८. १६. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. . दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: नेमी श्रीवांदवा नेमी हुं; अंति: दोलत०महिर करो महाराज, गाथा-५. १७. पे नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण मु. पुहिं., पद्य, आदि: सबे दुख टालेंगे महावीर सब, अंति: तार तार भवतीर, गाथा-५. १८. पे. नाम उपदेस सिज्झाय, पृ. ९अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-असार संसार, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत दरसण अनंतन ग्यानी; अंति: दान सील तप भाया, गाथा-८. १९. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय-पंचमआरा, मा.गु., पद्य, आदि अरिहंत जिनवर सीध का अंति: पुरो नहीं पांचमो आरो, गाथा - १४. ९५४९० (+) विचारगर्भित ऋषभजिन स्तवन सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पं. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२४.५४१०.५, ३-५X३१-३५). आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि पहिलउ पणमिय देव अंति: विजयतिलय निरंजणो, गाथा २१. - आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जिवारे मोटो कार्य अंति विजय० उपाध्याय कहइ भणइ छइ. ९५४९१ () प्रास्ताविक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अशुद्ध पाठ.. जड़े.... १११ (२४x१०.५, १५X३२-३५). प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि भटाय भटेसग भमारी वैराग, अंति: (-), (पू.वि. गाथा २५६ अपूर्ण तक है.) ९५४९२. स्तवन, अष्टक व छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. १०, प्र. वि. हुंडी : छंदपत्र, जैदे., (२५X११, १६-१७४३८-४४) १. पे. नाम. शंखेश्वर परमेश्वर छंदस्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थमंडन, ग. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि सारद माता सरसती प्रणमी; अति सेवक नित्यविजय सार ए, गाथा ३७. २. पे. नाम. गोडी पार्श्वजिन छंदस्तवन, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: समरी माता सारदा प्रणमी; अंति: घणीजै नवला भोग आपई सदा, गाथा ४२. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ नवअष्टक, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. करमसी, मा.गु, पद्य, आदि गवरीसुत गणेस वर दें, अंतिः करमसी० पारसनाथ अप्रमपरं, गाथा - ९. ४. पे नाम. आसापुरा माताजीरो छंद, पू. ४अ ४आ, संपूर्ण. आशापुरादेवी छंद, किसना, मा.गु., पद्य, आदि प्रगट थह आसापुरा थं मन; अंति नाम लिया सहु को नमे, गाथा ५. ५. पे. नाम. अजारी मातारो छंद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. शारदादेवी छंद, नरसिंह, पुहिं, पद्य, आदि: सरसति सरस वचन शुभवाणी अति: नरसिघ० आस पूर सेवक तणी, " गाथा-१५. ६. पे. नाम चोधगणेश छंद. पू. ५अ-६आ, संपूर्ण. चौथमाता छंद, क. कान्ह, मा.गु., पद्य, आदि ब्रह्माणी वीणा धरणी, अंतिः कांन० जै जै श्रीगणपति जैं, गाथा-४१. ७. पे. नाम. चामुंडाष्टक, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. बालात्रिपुरा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: देवि त्वं आदिशक्तिस; अंति: वांछितामर्थसिद्धिः, श्लोक-१०. ८. पे. नाम. माहादेवजीरो छंद, पृ. ७ अ-७आ, संपूर्ण. महादेव छंद, पंडित. नारायण, मा.गु., पद्य, आदि: कटिकटाशंकटकटा घटिघटि; अंति: गवरीनटा जागि शिव जोगटा, गाथा - ५. ९. पे नाम गणपति छंद, पू. ७आ-८अ संपूर्ण. गणेश छंद, मु. हेमरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (१) समरी माता सारदा बंदु श्री, (२) जय जय गूणपति गुण, अंतिः हेमरत्न० गणपति तुरंत, गाथा- ११. १०. पे. नाम. गौडीजीनो छंद, पृ. ८अ -८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तोत्रगोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु. सं., पद्य, आदि नमु सारदा सार अति सोख्यप्रदा सर्वदा, गाथा १४. - Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५४९३. (#) नवतत्व प्रकीर्ण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२८, चैत्र कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. भावी, प्रले. मु. वीरभाण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवतत्वः., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३८-४०). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व१ अजीवतत्व२; अंति: आगमिककालई इम जाणवो. ९५४९४.(+) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका-व्याख्यान ७, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. हुंडी:वाचना७., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, १९-२१४५२-५६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९५४९५. (+) भक्तामर व कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८११, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. २, ले.स्थल, खारीयाग्राम, प्रले. मु. खुशालसौभाग्य (गुरु ग. जयसौभाग्य); गुपि.ग. जयसौभाग्य (गुरु ग. नेमसौभाग्य),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ४४३८-४४). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:भक्तामरटबा०. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मु. रूपचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: जिनपादयुगं सम्यक् प्रणम्य; अंति: रूपचंद्रा० शिष्यबोधनहेतवे. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ८आ-१६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुडी:कल्याणमंदिर. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (वि. १८११, ज्येष्ठ शुक्ल, १०) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, पा. रूपचंद्र गणि, मा.गु., गद्य, वि. १८११, आदि: जिनेश्वरस्य अंहिपद; अंति: शिष्ययोराग्रहादसौ, (वि. १८११, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १२, ले.स्थल. कर्मवाटी) ९५४९६ (+#) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. हुंडी; खेत्रसमास., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५४११, ७४४६-५२). बृहत्क्षेत्रसमास-चयनित पाठ, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजल जलहर; अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, अध्याय-५, गाथा-२३३. बृहत्क्षेत्रसमास-चयनित पाठ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीउ कहतां नमीनै जिन; अंति: ध्यावउ सम्यग्दृष्टीइ. ९५४९७. (+) विवाहपटल, शेषनाग विधि व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.३४१०.४, १०४३७-४१). १.पे. नाम. शेषनाग विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ईसानत सर्पत काल सौ; अंति: जिहां शनीसर तिहां ज कालु, श्लोक-७, (वि. यंत्र सहित.) २. पे. नाम, विवाह पटल, पृ. १आ-१२अ, संपूर्ण, वि. १८०६, पौष शुक्ल, १. विवाहपटल, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., पद्य, आदि: स्युर्वेधा१ लात२ पात३; अंति: ग्रंथे विदधेनुक्रमं शुभम, श्लोक-२७३. ३. पे. नाम, ज्योतिष संग्रह, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सूर्य नक्षत्र आदि दीजै; अंति: अपरलोक कोई न संभाले. ९५४९८ (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७२९, कार्तिक शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६-१(२)=५, ले.स्थल. बरहानपुर, प्रले. ग. कीर्तिसागर; पठ. श्रावि. मानबाई; राज्ये आ. अमरसागरसूरि (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १३४३५-४१). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: समत्तं निच्चलं तस्स, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-४ से १२ अपूर्ण तक नहीं है.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीव१ अजीवर पुण्य३ पाप४; अंति: सम्यक्त्व निश्चल जाणिवू. ९५४९९. श्राविकापाक्षिक अतीचार, संपूर्ण, वि. १६६३, पौष कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ८, जैदे., (२५४११.५, ११४३३). For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org अविकापाक्षिक अतिचार .मू. पू. मान्य, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंशणमिव चरणमि; अति करी मिच्छामि दुक्कडं, अध्याय-२२. 3 ९५५००. आवक सिज्झाइ व अध्यात्म पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २-२ (१) १, कुल पे. ७, जैदे., (२५X१०.५, १५-१८x४५-५६). १. पे. नाम. श्रावक सिज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. भद्रसेन, पुहिं., पद्य, आदि: प्राणी मेरो ना डरे रे हुं; अंति: भद्रसेन० गरीब निवाज, गाथा-३. ४. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सफल जनम तेणे लीधो जी, गाथा - २१, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कसो सास को वेसास कुस अणि अति जिनराज तामै लेहु थिर सवास, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहिं, पद्य, आदि ऐसे कुं प्रभु पाईयै सुणि; अंतिः विना तू समुझत नाहीं, गाथा-८. " ५. पे. नाम औपदेशिक पद पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि कहा अग्यानी जीउ कुं गुरु: अंतिः जिनराज० ताकउ सहज मिटावइ, गाथा ३. - " ६. पे. नाम औपदेशिक पद. पू. २आ, संपूर्ण, वि. १९वी मार्गशीर्ष कृष्ण, ८. ११३ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., रा., पद्य, आदि: मन रे तुं छोडि माया जंजाल; अंति: चलइ वइभी स्वामिनाम संभार, गाथा-३. ७. पे. नाम औपदेशिक पद. पू. २आ, संपूर्ण. नामदे, मा.गु., पद्य, आदि: रे मन पंखीया में पडस प अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) " ९५५०१. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला-कांड ६ सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १६१७, आषाढ़ कृष्ण, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. १६, प्रले. मु. मान (गुरु उपा. हीरसुंदर वाचक, चैत्रगच्छ); गुपि. उपा. हीरसुंदर वाचक (गुरु वा. अभयचंद्र, चैत्रगछ); वा. अभयचंद्र (गुरु आ. विनयचंद्रसूरि, चैत्रगछ); दत्त. मु. गुणकीर्ति (गुरु उपा. गुणलाभ); गुपि. उपा. गुणलाभ; गृही. श्रावि. माना, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. "संवत् १६२६ वर्षे कार्तिक वदि २ दिने " ऐसा प्रत के आदान-प्रदान विषयक उल्लेख मिलता है., संशोधित., जैदे., (२३.५X१०.५, १८-२१X५३-५८). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-); अंति रोषोक्ताबु नतौ नमः, प्रतिपूर्ण, अभिधानचिंतामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२१६, आदि (-); अति निपात्यंते पदे पदे, प्रतिपूर्ण ९५५०२. (+) भक्तामर स्तवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४१०.५, ११X३९-४१). भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., सं., गद्य, आदि: किल इति संभावने; अंतिः समुपैति आवइ, (वि. मूल का प्रतिक पाठ लिखा है.) For Private and Personal Use Only ९५५०३. (+) मंगलकलश रास, संपूर्ण, वि. १६९३, पौष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. खंभायति, प्रले. मु. हरखा ऋषि । (गुरु मु. वणायग ऋषि); गुपि. मु. वणायग ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : मंगल., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (५१८) तैलाद्रक्षे ज्जलाद्रक्षेत्, जै. (२४.५X१०.५, १७९५२-५४). "" मंगलकलश रास, मु. ज्ञानरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १५२५, आदि आदि जिणवर जिणवर सुख; अंति: घरि उच्छव जय जयकारा, गाथा- ३५०. ९५५०४. श्रावक आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैवे. (२५.५x११.५, ११४३०). " श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत, अंति: मुनिषड्रसचंद्रवर्षे, अधिकार ५. ग्रं. १६६. Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५५०५ (+) ६२ मारगणा उपरे २४ बोल उतारवानो जंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, २१४४२). ६२ मार्गणा २४ बोल यंत्र, मा.ग., को., आदिः (-); अंति: (-). ९५५०६. (+) थूलभद्र नवरसो, राजारामचंद्रजी की मदडी व सीतासती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.६, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १६-१८४३४-३८). १. पे. नाम. थूलभद्र नोरसो, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत दायक सदा पायक जास; अंति: मनोरथ वेगै फल्या रे, ढाल-९, गाथा-७४. २. पे. नाम, राजारामचंद्रजी की मदडी, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. रामचंद्रजी की मुंदरी, मा.गु., पद्य, आदि: सिरसत सामण वीनम गुणपत; अंति: आपण दुर्जन हसन कोय, गाथा-३९. ३. पे. नाम, सीतासती सज्झाय, पृ.६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: कुबधि कंत गरब नीवारो रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ९५५०७. गुणकरंडगुणावली, सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ३, प्र.वि. अंत में प्रतिलेखन पुष्पिका पर कागज चिपकाए हुए हैं., जैदे., (२५४१०.५, २२-२६४६३-६७). १. पे. नाम. गुणकरंडगुणावली, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण, वि. १८४०, माघ कृष्ण, ३, शनिवार, ले.स्थल. नागोर, प्रले. सा. फतु आर्या (गुरु सा. अखु); गुपि. सा. अखु, प्र.ले.पु. सामान्य. गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: संपति सुखदायक सरस; अंति: थिर संपति जस थावै जी, ढाल-२८, गाथा-१६०३. २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. ___ मु. सकलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: मोरी सदा सोहागण आतमा; अंति: हितकरि विसवावीस हे, गाथा-१४. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: आज भलइ दिन उगियो; अंति: चरणजी चुवि रह्यो, गाथा-७. ९५५०८. (+) चित्रसेनपद्मावती कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७६१, श्रावण कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. २५-२(१ से २)=२३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४११, ७४३३-३५). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: (-); अंति: कथा कृता शीलसमुधृतेन, श्लोक-५०४, (पू.वि. श्लोक-३१ अपूर्ण से है.) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सील उपर कथा करी. ९५५०९ क्षेत्रसमास प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मु. गुप्तिधर्म, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, ५४३६-४२). बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; __अंति: धणुसय तेरंगुलद्धहिअं, गाथा-१३०, संपूर्ण. जंबूद्वीप प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनइ जलसहित मेघ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक टबार्थ लिखा है.) ९५५१० (+#) बृहत्कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १७५०, भाद्रपद शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि (गुरु मु. देदाजी); गुपि. मु. देदाजी (गुरु मु. मूलाजी); मु. मूलाजी (गुरु मु. हरखाजी); मु. हरखाजी (गुरु आ. कल्याणजी); आ. कल्याणजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:वृहत्कल्पसू०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १३४४०-४७). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई त्तिबेमि, उद्देशक-६, ग्रं. ४७३. ९५५११. (+) नलदवदंतीनी चौपई, संपूर्ण, वि. १८३५, ज्येष्ठ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ४२, ले.स्थल. बीनातट, प्रले. म्. लब्धिसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४३५-४२). For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: समयसुंदर० सचितवसी, खंड-६ ढाल ३९, गाथा-९३१, ग्रं. १३५०. ९५५१२. (+) जंबूअध्ययन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५२-१(१२)=५१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ६४३५-३८). १. पे. नाम. जंबूअध्ययन सह टबार्थ, पृ. १आ-५२आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. जंबअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१, (पू.वि. "जंबुपाकेठियापासई हट्ठाजेणेवजंबु" पाठ से "भयभीयापहमज्झे एगंमहाकुवंपासई" तक नहीं है.) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ते काल नि विषइ ते समय नि; अंति: ते आराधक जीव कह्या. २. पे. नाम. छः आरा मान, पृ.५२आ, संपूर्ण. ६ आरा मान, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो आरो २१ हजारनो छठा; अंति: आराना मान सालटपालट जाणवा. ९५५१३. (+) द्रोपदीमहासती चतुःपदी, संपूर्ण, वि. १७३२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३४, ले.स्थल. सत्यपुर, प्रले. पं. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीधर्मनाथ प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४५४). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरसादाणी पासजण चरण; अंति: कनककीरति कहें सुखकार, ढाल-३९, गाथा-१११७. ९५५१४. (+) रत्नपालरत्नवती संबंध चौपई, संपूर्ण, वि. १८४०, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २९, ले.स्थल, पाटोधि, प्रले. उपा. रत्नविमल गणि; पठ.पं. हितप्रमोद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रत्नपालरत्नावती चौपाई., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११-१६४५-४०). रत्नपालरत्नावती चौपाई, उपा. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: चौवीसे जिनवर नमुं; अंति: रत्नविमल० गुणकारी ए भारजी, ढाल-४५. ९५५१५. (+) सिद्धांतसारोद्धार व पाला विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५१, कुल पे. २, ले.स्थल. उदयपुरनगर, प्र.वि. न्यानविजय द्वारा लिखी गइ प्रत उपर से प्रतिलिपि की संभावना है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०.५, १५-१८४४२-४८). १.पे. नाम. सिद्धांतसारोद्धार, पृ. १आ-४९आ, संपूर्ण, वि. १७६९, कार्तिक शुक्ल, ५, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. पं. पदमानंद; निदाताग. तत्त्वहंस; अन्य. ग. ज्ञानविजय (गुरु मु. देवविजय); गुपि. मु. देवविजय (गुरु आ. विजयसिंहसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा. सिद्धांत सारोद्धार, मा.ग., गद्य, आदि: एक बोलनो विचार प्रथम; अंति: पूजा करीइ ऊन्हो पाणी पीजइ. २. पे. नाम. पाला विचार, पृ. ५०अ-५१अ, संपूर्ण, वि. १७६९, कार्तिक शुक्ल, १३, शुक्रवार. पालामान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अनवस्थीत पालो जंबूद्वीप; अंति: नवमैं अनंते खाली छइ. ९५५१७. (+) सरसंदरी चरित-गेयरूप, संपूर्ण, वि. १७२२, पौष शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ३७, ले.स्थल. जहानाबाद, प्रले. मु. वैराग्यसागर; पठ. श्रावि. केसरबाई विमलदास सा (माता श्रावि. विमलादे विमलदास सा); गुपि. श्रावि. विमलादे विमलदास सा (पति श्राव. विमलदास सारंग सा); श्राव. विमलदास सारंग सा, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४.५४१०, ११४३२-३६). सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: आदि धर्मनी करिवा ए; अंति: इम भणइ आणंदरि, ढाल-२१, गाथा-५१२. ९५५१८. (+) क्षेत्रसमास प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, ४४२९-३२). लघक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुशलरंगमयं पसिद्धिं, अधिकार-६, गाथा-२६५. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: वीर श्रीमहावीर केहवउ; अंति: रंग सय प्रसिद्ध पामो. For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५५१९ (4) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६-३(१ से ३)=३३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०, १२४४४-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति वेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. "णुअंचेइरत्ता दाहिणि" पाठ से है.) ९५५२०. (+) कर्मग्रंथ १ से ५ सह टबार्थ, ८ कर्म व १४ गुणस्थानक विचार, संपूर्ण, वि. १८११, आषाढ़ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ७१, कुल पे. ७, ले.स्थल. लस्कर, प्रले. ग. रूपविजय; गुभा.पं. विनयविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१०, ३-४४२८-३२). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १आ-१४आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: श्रीमहावीर क० महावीरदेव; अंति: देवंद्रसरि० कह्यो. २.पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १५अ-२१अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक-४२आ से ४३अ पर यंत्र दिये हैं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३५. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तथा प्रकारे स्तुति; अंति: महावीरने सत्ता कहा कर्मनी. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २१अ-२६आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. । बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधविधान कर्मबंधना; अंति: लिख्यो कीधो जाणवो. ४. पे. नाम. षड्शीति नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २६आ-४२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. खोडाडानगर, प्रले. ग. -विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८९. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइ तीर्थंकर प्रति; अंति: कह्यौ देविंद्रसूरिइं. ५. पे. नाम. आठ कर्मविचार, पृ. ४३अ, संपूर्ण. ८ कर्म विचार, मा.ग., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी १ दर्शनाव: अंति: ए आठ कर्मरी जघन्यस्थिति. ६.पे. नाम. चौदगुणस्थानक विचार, पृ. ४३आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: मिच्छे १ सासण २ मीसे ३; अंति: अविरत ए च्यार गुणठाणा हूद. ७.पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, प. ४४अ-७१अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में जीवभेद विचार उल्लिखित है. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिअ जिणं कहतां; अंति: संभारवानइ अर्थइ. ९५५२१. शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११७-३५(१ से ३५)=८२, प्र.वि. हुंडीःशांतिनाथ चरित्र, जैदे., (२४४१०, १५४५०-५५). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: (-); अंति: स करोतु शांतिः, प्रस्ताव-६, श्लोक-४८९०, ग्रं. ५०००, (पू.वि. श्लोक-४४२ अपूर्ण से है.) ९५५२२ (+) स्तुति, स्तवन, सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३८-४(२,१५,२६ से २७)=३४, कुल पे. ७१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३-१५४४६-५०). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ११७ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: सयल रिपु जीपतो, गाथा-५. २.पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति: कहै कहौ द्याहडी, गाथा-१३. ३. पे. नाम. गौडीजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुणज्यौ गोडीजी; अंति: दीपचद० कीजै एतो काम, गाथा-५. ४.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पीया सुंदर मूरति गुण; अंति: भेटस ताहरा पायो, गाथा-९. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मनसुध आसता देव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक गा ६.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. ___ महम्मद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) ७. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: देव सकल सिरसेहरौ लाल; अंति: जिनचंद भेट्या आज, गाथा-७. ८. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन-राणपुर, पृ. ३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणकपुर रलीयामणुं; अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा-७. ९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मीठी मनि लागी साहिबा; अंति: मोहन अनुभव मांगी, गाथा-४. १०. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. रामविजय, पुहि., पद्य, आदि: सुन सांई प्याराबे; अंति: साये राम लहै सुखकारा, गाथा-७. ११. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिमा हो; अंति: जिन प्रतिमासु नेह, गाथा-७. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. वृद्धिकशल, रा., पद्य, आदि: तेवीसमा जिनराज जोडी; अंति: वृद्धकुशल० दीदार, गाथा-३. १३. पे. नाम. नेमजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: अब मोहि यादव जीवन; अंति: जिनहरख० मै मांनी हो, गाथा-४. १४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वयण हमारा लाल हीयडै; अंति: जिनहरष० हुं बंदा लाल, गाथा-७. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी मन मान्यौ; अंति: ध्रमसी० जस गावै, गाथा-७. १६. पे. नाम, मृगापुत्र सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनगर सुहामणो; अंति: करण सुद्ध परिणाम हो, गाथा-१७. १७. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. १८. पे. नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, पुहिं., पद्य, आदि करिज्यौ मत अहंकार अंति कहे एह धरम मनमें धरो, " गाथा - ११. १९. पे नाम. थूलभद्र सज्झाय, पू. ५आ-६अ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि मुनिवर रहण चोमासे, अंतिः ऋषि लालचंद० सुख सवाया, गाथा - ११. २०. पे. नाम. चेलणा सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाव, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि बीर वांदी बलतां थकां अंति: पामशे भवतणो पार गाथा- ७. २१. पे नाम. पांचइंद्री सज्झाय, पू. ६अ-६आ, संपूर्ण, ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: सुजाण लहो सुख सासता, गाथा-६. २२. पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि धन धन्नो रिष बंदीये; अंतिः विद्या० निस्तार रे, गाथा-७. २३. पे. नाम वैराग्य सज्झाय, पू. ६आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-काया, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि सुणि बहिनी पीउडो; अंति: नारी विण सोभागी रे, गाधा-७. २४. पे. नाम. इलापुत्र सिज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि नाम इलापुत्र जाणीए अति लब्धिविजय गुण गाय, गाथा - ९. २५. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि : देव दानव तिरथंकर गण; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१८, (वि. दो गाथा को एक गिना गया है.) २६. पे. नाम. नववाडिब्रह्मचार्य सिज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि चित्रलिखित ने पूतली; अति कठै जिनहर्ष प्रबंध, गाथा-८. २७. पे. नाम. अनाथी सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंतिः वंदे रे बे कर जोड, गाथा - ९. २८. पे. नाम. सातव्यसन सज्झाय, पृ. ८अ -८आ, संपूर्ण. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुरु; अंति: गुरु सीस जयरंग कहे, गाथा - ९. २९. पे नाम, संप्रतिराजा सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: दिज्यो भवभव सेव रे, गाथा - ९. ३०. पे नाम, भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अति समयसुंदर० पावा रे, गाथा-७. ३१. पे. नाम. आत्म सिज्झाय, पृ. ९अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. कर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली नरभव दोहिलो; अंति: आउह अल्है सुभावै रे, गाथा - १३. ३२. पे. नाम. राचाबत्रीसी, पृ. ९-१०अ, संपूर्ण. राचाबत्तीसी, श्राव. राचो, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा जाग रे सोवे; अंति: रुडां कहै छे राचो, गाथा-३२. ३३. पे. नाम. साधु अध्ययन, पृ. १०अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ साधुगुण सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: पंच महाव्रत जे धरइ; अंति: ब्रह्म नमें सुजगीसरे, गाथा-८. ३४. पे. नाम. श्रावकना २१ गुण, पृ. १०अ ११अ, संपूर्ण. श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कईयै मिलस्यै रे; अंति: समयसुंदर० तिण लाधो जी, गाथा - २१. ३५. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. ११अ - ११आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तवन- मेरुनंदनीय, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि मंगल कमलाकंद ए सुख; अति मेरुनंदण उवज्झाय ए, गाथा - ३२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६. पे. नाम ऋषभदेवजीवृद्ध स्तवन, पू. १२अ १३आ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन- आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि आदीश्वर पहेलो अरिहंत, अंति कमलहर्ष ०भव आपणो गिणी, ढाल ४, गाथा ५२. ३७. पे नाम बीसविहरमान स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीसे विहरमाण जिणवर; अंति: भवभव तुम पाय सेवा, गाथा-४. י. ३८. पे. नाम. अठावीसलब्धिभिन्नभिन्नरविचारउपलक्षणे स्तवन, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- २८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुं प्रथम जिनेसर; अंति: प्रगट ज्ञान प्रकास ए, ढाल -३, गाथा - २६. ३९. पे नाम आर्द्रकुमार चौढालियो पृ. १६अ १६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. " आर्द्रकुमारमुनि सज्झाय, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: (-); अंति: कनकसोम० सुणतां सिव सुखकार, ढाल ५, गाथा ४९ (पू.वि. ढाल ४ गाथा ४ अपूर्ण से है.) ४०. पे नाम. दानसीलतपभावना चौढालीयो, पृ. १६आ १९आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय अति समृद्धि सुप्रसादो रे, डाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. ११९ ४१. पे. नाम. आषाढभूति चौढालीयो, पृ. १९आ-२१अ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी; अंति: कनकसोम ० सुखकारा, गाथा-६७. ४२. पे. नाम. मेघकुमार चौडालीयो, पृ. २१अ २४अ संपूर्ण. मेघकुमार चौडालिया, क. कनक, मा.गु., पद्य, आदि देस मगधमाहे जाणीय; अंतिः कवि कनक भणड़ निशदीश, ढाल-४, गाथा ४७. ४३. पे. नाम नमस्कार चौडालीयो, पू. २४-२५अ, संपूर्ण. गुण नवकारमंत्र चौढालिया, मु. दयाकुशल वाचक, मा.गु., पद्य, आदि लोक अलोका एहनी समरउ; अंतिः धर्ममंदिर गाय, ढाल ४, गाथा - २४. ४४. पे नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय-शीलगर्भित, पृ. २५-२५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंचपरमेष्ठी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-३ तक है.) ४५. पे नाम. हितशिक्षा सज्झाय, पू. २८अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय - हितशिक्षा, मु. जिनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति जिनकीर्ति० जपी नवपद सारीजी, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) ४६. पे नाम. शील सज्झाय, पृ. २८अ संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, मु. करणो, मा.गु., पद्य, आदि: शीयल मुंद्रडी खरी रे; अंति: इम जपै आवागमण निवारजी, गाथा - १०. ४७. पे. नाम चार प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. २८आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हु; अंति: पाप पुलाय रे, गाथा-६. ४८. पे. नाम. दूजा प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. २८आ, संपूर्ण. दूमराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी कंपिलानो धणी रे जय; अंति: आकरा रे पाम्यो भवनो पार, गाथा-७. ४९. पे. नाम. तृतीय प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नयर सुंदरसण राय हो; अंति: समयसुंदर कहै साधुनै, गाथा-६. ५०. पे. नाम. चतुर्थ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. २९अ, संपूर्ण. नीगइराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुंड व्रधनपूर राजीओ; अंति: चउथो परत्येकबुद्ध हे, गाथा-६. ५१. पे. नाम. चार प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. २९अ, संपूर्ण. ४प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुं दिसथी च्यारे; अंति: हे पाटण नगर मझार, गाथा-५. ५२. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. २९आ, संपूर्ण. गजसकमालमुनि सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिकानगरी अतिभली; अंति: भावसं वंदौ वारोवार, गाथा-१२. ५३. पे. नाम. बाहुबलिराजरिषि सिज्झाय, प. २९आ-३०अ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबल चारित लीयो; अंति: विमलकीरति गुण गाय, गाथा-१२. ५४. पे. नाम. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र गीत, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धन्नौ सालिभद्र बेउ; अंति: समय० हं सदाजी हो, गाथा-८. ५५. पे. नाम. सनत्कुमार सज्झाय, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: साचा सुज्ञानी ध्यानी; अंति: श्रीधर्मसी वारंवारा, गाथा-१६. ५६. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: चारित्र लइ चित्त; अंति: मुनिश्रीसारद० सिरनाम, गाथा-१४. ५७. पे. नाम, आत्मउपदेश सज्झाय, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण. वैराग्यपच्चीसी, म. गोपालदास, पहिं., पद्य, आदि: यो प्रमादी जीव जगि; अंति: करणी स्वर्ग ले जाई, गाथा-२५. ५८. पे. नाम. नींद परिहार सज्झाय, पृ. ३२अ-३३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नींद परिहार, मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: नींदडली लोभन परिहरौ जागौ; अंति: सुख लहेस्यौ कहै अमर जगीस, गाथा-१३. ५९. पे. नाम. महावीरजी पारणो, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: जी ते नमे मुनि माल, गाथा-३१. ६०. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन-कापरहेडा, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-कापरडामंडन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंग सुरंगी अंगीयां; अंति: नमुं कापरहेडा पास, गाथा-७. ६१. पे. नाम, संभवजिन स्तवन, पृ. ३४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १२१ आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: श्रीसंभवजिन गाई रे गाई; अंति: जिनलाभ० टलै पांचे अंतराय, गाथा-५. ६२. पे. नाम. सीमंधरस्वामि स्तवन, पृ. ३४अ-३५अ, संपूर्ण. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: प्रभु आसा अमतणी, गाथा-१९. ६३. पे. नाम. माया सिज्झाय, पृ. ३५अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: माया कारमी रे माया; अंति: गुण गंधर्व जस गाय, गाथा-८. ६४. पे. नाम, बारगुणअरिहंत स्तवन, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण.. __ अरिहंतपद सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वारी जाउं श्रीअरिहंत; अंति: ज्ञानविमल गुण गेह, गाथा-७. ६५. पे. नाम. आठगुणसहित तवन, पृ. ३५आ, संपूर्ण. सिद्धपद स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमो सिद्धाणं बीजे पद; अंति: सुखिया सघला लोकरे, गाथा-८. ६६. पे. नाम, आचार्य के छत्रीस गुण सज्झाय, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण. आचार्यपद सज्झाय-नवकार पदाधिकारे तृतीय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आचारी आचार्यनो जी त्; अंति: विमल० बोधिबीज उच्छाह सूरी, गाथा-९. ६७. पे. नाम. उपाध्यागुण सज्झाय-पचीस गुण, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण. उपाध्यायपद सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: चउथे पद उवझायनों गुण; अंति: तेहथी सुभ ध्यान रे, गाथा-५. ६८. पे. नाम. सतावीस गुण सहित साधु सिज्झाय, पृ. ३६आ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ते मुनिने करूं वंदन; अंति: ज्ञान० गुणें वाधो रे, गाथा-७. ६९. पे. नाम, नवकारगुणवर्णन स्तवन, पृ. ३६आ-३७अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ए पंचपरमेष्टि पद; अंति: एह छे सिद्धस्वरूप, गाथा-५. ७०. पे. नाम. दशार्णभद्र चौढालिया, पृ. ३७अ-३८अ, संपूर्ण. दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सारदमात मनरली समरु; अंति: कुशल सीस गुण गाईया, ढाल-४, गाथा-२८. ७१.पे. नाम. पदमावतीजीरी जीवराशि, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. ___ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर०छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३५. ९५५२३. (+#) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १७४३७-३८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-३ ढाल-८ गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) ९५५२४. (+#) पाक्षिकसूत्र व खमासणासूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ७४२०-२४). १. पे. नाम, पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-३२अ, संपूर्ण. ___ आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २.पे. नाम. खमासणासूत्र, पृ. ३२अ-३२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंति: (-), (पू.वि. "वंदंति अज्झाउवंददि अज्झि" पाठ तक है.) ९५५२५ (+) सिंदूर प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१२, श्रावण कृष्ण, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २७, ले.स्थल. पीपाड, प्रले. पं. बोहिथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, ४४३४-३६). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सज्झानात्तिझनाग्रतः, द्वार-२२, श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: केहवो छै नखद्युतिभरः; अंति: आगै जांणै उपदेश द्यइ. ९५५२६. सूक्तावली सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९-२(५,२६)+२(१५,१९)=२९, जैदे., (२४४१०.५, ४४३४-३८). सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: राज्यं निःसचिवं गतप्रहरणं; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-१६ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक, २५ अपूर्ण से २६ अपूर्ण तक व श्लोक-१४० अपूर्ण तक है.) सूक्तावली संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: राज्य प्रधान बिना न शोभई; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ श्लोक-२० अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ९५५२८ (+#) नलदमदंती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९, प्र.वि. हंडी:नलदवदंतीरीचउपइ., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं.१३९८, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,१५४४८-५२). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: समयसुंदर० चित्तवसी, खंड-६ ढाल ३९, गाथा-९३१, ग्रं. १३५०. ९५५२९ (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८७-१७(१,२२,३२ से ४५,८३)=७०, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी;ज्ञाताटीका०, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४४-४६). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: (-); अंति: (-). ९५५३० (+) वृहत्संग्रहणी सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. सारिणीयुक्त., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०, ५४३२-४२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६३ अपूर्ण तक है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिओ कहता वांदीने; अंति: (-). बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: आठ निकाय व्यंतरनी तेहना; अंति: (-). ९५५३१ (4) चंद्रलेहामहासती चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. २४, ले.स्थल. देसुरीनगर, प्रले. ग. कुशलरूचि (गुरु ग. हंसरुचि, तपगच्छ); गुपि. ग. हंसरुचि (गुरु ग. हर्षरूचि, तपगच्छ); ग. हर्षरूचि (गुरु मु. उदयरुचि कवि, तपगच्छ); मु. उदयरुचि कवि (अज्ञा. मु. कुशलविजय, तपगच्छ); पठ. ग. हमीररुचि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:चंद्रलेहाचोपी., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०-४५). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: त्रिभुवनपति हुवे तेह, ढाल-२९, गाथा-६२४. ९५५३२. (+) हरिबल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८१०, माघ शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८१, प्रले. पं. हेमविजयगणि (गुरु पं. लक्ष्मीविजय गणि); गुपि.पं. लक्ष्मीविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५-१७४३४-४३). हरिबल चौपाई, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: प्रथम धराधर जगधणी; अंति: लब्धिनी० फलज्यो रे, उल्लास-४ ढाल ५९, ग्रं. ३७५१. ९५५३३. (+) साधुवंदना स्वाध्याय व द्वादश भावना, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-९(१ से ९)=७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, ११४३४-३७). १. पे. नाम. साधुवंदना स्वाध्याय, पृ. १०अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. साधवंदना, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: वंदइ तं सकलचंद मुणी, गाथा-१४७, (पू.वि. गाथा-१४७ अपूर्ण मात्र है.) For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. द्वादशभावना, पृ. १०अ १६अ, संपूर्ण. १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकुलकमलना हंस तुं; अंति: ध्यान सकल मुनि आणो, ढाल - १४, गाथा- ९०. ९५५३४. (+#) पंचप्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति, स्तवन व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-८ (१,८ से १४ ) = ९, कुल पे. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १३४४७-५०). १. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. २अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अति: (-). (पू.वि. प्रारंभिक चैत्यवंदन-मुत्थुर्ण अपूर्ण से सकलार्हत् श्लोक-२७ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. पंचमीतिथि, पृ. १५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तुति-३ अपूर्ण से है व अंतिमवाक्य प्रतिलेखक ने नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. शत्रुजयादितीर्थ स्तुति, पृ. १५ अ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमुख्यतीर्थ अति सुरास्ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. १५अ -१६अ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण पणय सुरगण; अति: परमपवत्थं फुडं पासं, गाथा- २३. ५. पे. नाम. शांतिकर स्तोत्र, पृ. १६अ १६आ, संपूर्ण संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी, आदि संतिकां संतिजिणं, अति स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा - १३. ६. पे. नाम. लघुशांति, पू. १६आ-१७अ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. ७. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भगवं; अंति: सत्तुमित्तेसु वावि, १२३ गाथा - ३. ९५५३५. कर्मग्रंथ १ से ३, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १४, कुल पे ३, प्र. मु. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., जैवे. (२४४१०, ४४३८-४२). गाथा-२१. ८. पे नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पू. १७आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीमंदिर वीतराग; अंति: विनय धरे तुम ध्यान, गाथा-३. ९. पे. नाम. ऋषभदेव नमस्कार, पृ. १७आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. आदिजिन चैत्यवंदन, मु. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं श्रीआदिदेव; अंति: नगरीनो धणी रुप कहे गुणगेह, १. पे. नाम. कर्मविपाकसूत्र नव्य कर्मग्रंथ १ सह टबार्थ, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण, वि. १७५१, वैशाख कृष्ण, १४, मंगलवार, ले. स्थल, खिमेलनगर, For Private and Personal Use Only कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ -१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी -१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं गाथा ६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि सिरिवीरजिणं क० अति: हिताय ज्ञानावरणी तेप वीनइ. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ २ सह टवार्थ, पृ. ८अ ११आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा - ३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तिम स्तवं महावीरदेव; अंति: देवंद्र० लोको इहांश्री. Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची .पे. नाम, बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ ३ सह टवार्थ, पृ. ११ आ. १४आ, संपूर्ण, वि. १७५१, वैशाख शुक्ल, ७, बुधवार, बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १३वी १४बी, आदि बंधविहाणविमुक्कं अंति: लिहियं नेयंकम्मत्थयं सोयं, गाथा २५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अभिनव कर्मनो ग्रहवो; अंति: देवंद्रसूरि० कर्मस्तव. ९५५३६. (+) श्रीपाल रास सह टबार्थ खंड-४ ढाल ११ व १२, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे., (२४.५X११, ११X३४). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल रास-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (-), प्रतिपूर्ण ९५५३७ वीतराग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९, प्रले. पं. संवरत्नगणि (गुरुग. सुमतिरत्नगणि); गुपि. ग. सुमतिरत्नगणि (गुरु आ सुधानंदसूरि) आ. सुधानंदसूरि (गुरु आ सोमसुंदरसूरि ); आ. सोमसुंदरसूरि पठ. श्रावि. अजाई. प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x११, ११४३३). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः यः परात्मा परं; अंतिः फलमीप्सितम्, प्रकाश- २०. ५. ९५५३८. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र, श्रावक के चौद नियम, दस पच्चक्खाणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. जैवे. (२५x१०.५, १२x४६). "" १. पे. नाम. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र. पू. १२-६आ, संपूर्ण देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: मणसा मत्थे वंदामि, २. पे. नाम. चौदह नियम गाथा - श्रावक, पृ. ६आ, संपूर्ण. १४ श्रावकनियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित१ दिव्व२ विगइ३; अंति: न्हाण१३ भत्तिसु१४, गाथा - १. ३. पे. नाम. दस प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि उगाए सूरे नमुक्कार; अंतिः समाहिवत्ति वोसिरामि ४. पे. नाम. दस प्रत्याख्यान नाम, पृ. ७अ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाण नाम, मा.गु., गद्य, आदि १ नवकारसी २ पोरसी अंति अभिप्र ९ निब्बी १०. ५. पे. नाम. मुखवस्त्रिका प्रतिलेखना गाथा, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण, पडिलेहण कुलक- हिस्सा गाथा १-५, रा. विजयविमल, प्रा., पद्म, आदि सुत्तत्थदिट्ठी १ अति: निजंतणत्थं मुणिबिंति, गाथा - ५. ९५५३९ (+) स्तुतिचतुर्विंशतिका व पार्श्वजिन स्तवन की अवचूरि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १४, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, ११x४२-४४). १. पे नाम. स्तुतिचतुर्विंशतिका की वृत्ति, पृ. १आ-१३अ, संपूर्ण. स्तुतिचतुर्विंशतिका- वृत्ति, गच्छा. जिनरत्नसूरिजी सं., गद्य, आदि नमस्कृत्य जिनं; अंतिः शोध्या गतमत्सरः. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव की अवचूरि, पृ. १३-१४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अहं पार्श्वं नुवामि; अंति: विनाशने दक्षं चतुरम्. ९५५४०. दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९१७, फाल्गुन कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. सरीचंद्र, पठ. मु. पूनमचंद्र (गुरु पं. श्रीचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. लो. (४६५) यासि पुस्तके दृष्ट्वा, वे., (२५.५X११, ५x२८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य वि. १५७९, आदि नमिउं चौवीस जिणे तस्सुतः अंति भणिया तिलुक्क दंसीहिं, गाथा-४२. ९५५४१. अणुत्तरोपपातिकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८८२, भाद्रपद शुक्ल, १४ सोमवार, श्रेष्ठ, पू. २५, प्रले. मु. अमरचंद (गुरु मु. शिवचंद); गुपि. मु. शिवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, ४x२६). For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: जहा धम्मकहा णेयव्वा, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. अनत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिण कालने विषेने कालन; अंति: धर्मकथानी परे जाणवा. ९५५४२. (+) नेमराजीमतीसती स्वाध्याय, नवतत्त्व प्रकरण व पंद्रह सिद्धभेद गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. ३, अन्य. म. देवचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४.५४११, ४४२७). १.पे. नाम. नेमराजीमतीसती स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: देवरीया मुनीवर छेडो; अंति: ज्ञान्नविमलगुण माल, गाथा-५. २. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: पहिलं जीवतत्त्व; अंति: श्रीजिनवचने हुइ ते प्रमाण. ३. पे. नाम, पंद्रह सिद्ध भेद गाथा सह टबार्थ, पृ. ८आ, संपूर्ण. १५ सिद्धभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जिण १ अजिण २ तीत्थ ३; अंति: कणिक्काय १४ काय १५, गाथा-१. १५ सिद्धभेद गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जैनार्थ कर सिद्धांते; अंति: एक समें घणा सिद्धांते. ९५५४३. (+) भक्तामर स्तोत्र व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-२(१ से २)=१६, कुल पे. २, ले.स्थल. देवसूरि, प्रले. पं. रुच्चिविजय (गुरु पं. रुपविजय गणि); गुपि. पं. रुपविजय गणि; पठ. मु. रणछोड (गुरु पं. रुच्चिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, ४४२४-२८). १.पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ३अ-१४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:भक्तामर ट०. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण से भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एहवी साहमी आवई संपदा, (वि. १८१०, आश्विन शुक्ल, ७, बुधवार) २.पे. नाम. लघुशांति सह टबार्थ, पृ. १४आ-१८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:लघुशांति ट०. लघशांति, आ. मानदेवसरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७, (वि. १८१०, आश्विन शुक्ल, ८, गुरुवार) । लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ शांतिनु; अंति: स्तोत्रनो करणहार पहुचई. ९५५४४. आषाढभूति चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८८, पौष शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. सीओरग्राम, प्रले. मु. वेलविजय (गुरु पं. प्रेमविजय गणि); गुपि. पं. प्रेमविजय गणि (गुरु पं. मेघविजय गणि); पं. मेघविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४-१५४४०-४६). आषाढाभूतिमनि चौपाई, म. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: न्यान०परम कल्याणो रे, ढाल-१६, गाथा-२१८, ग्रं. ३५१. ९५५४५ (+#) निरयावलिकादि उपांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७६-३७(३० से ६३,७० से ७१,७५)=३९, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:निरया., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ६x४०). १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-२९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ प्रारंभमात्र तक है.) __ कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणइ कालई तिणइ समई; अंति: (-). २. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ६४अ-६५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-५ अपूर्ण से है.) पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: गाथामाहे छे तिम. ३. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ६५अ-६९आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२६ www.kobatirth.org पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जइ णं भंते समणे०; अति वासे सिज्झिहिति, अध्ययन- १०. पुष्पचूलिकासूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि ज० जो हे पूज्य स०; अंति: देह खेत्र सीझसी सर्व ४. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ६९आ-७६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जइ णं भंते ० पंचमस्स अंति: (-), (पू. वि. बीच-बीच व अंत के पाठांश नहीं है.) वृष्णिदशासूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जौ हे पूज्य० पांचमान; अंति: (-). ९५५४७ (+३) अंतगडदशांगसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ९५-८९ (१ से ८७,९२ से १३)=६. पू. वि. बीच-बीच के पत्र 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हैं., प्र.वि. हुंडी:अंतगड., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X११, ५-६X२६-२८). "" अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. वर्ग-८ अध्ययन १ अपूर्ण से अध्ययन-३ अपूर्ण एवं अध्ययन- ७ अपूर्ण से अध्ययन ८ तक है.) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति : (-). " "" ९५५४८ () प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ८. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२३४१०.५, १३x२८-३६). साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं० इच्छा, अंति (-), (पू.वि. "शाखा प्रशाखा तणु साहपरितापउपद्रवहु" पाठ तक है.) ९५५४९. जंबूअध्ययन प्रकीर्णके जंबूस्वामी चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१ (१) = ८, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हंडी; जंबू कथा चरित्र, जैदे. (२४४१०५ १५-१८४४२-५०). " जंबू अध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम कथा अपूर्ण से आठमी कथा अपूर्ण है.) मु. धर्मसिंह, पुहिं., पद्य, आदिः प्रगटा विकटा उमटा; अंति: केली हुं० खि भादुं, गाथा - ३. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद-पकवानवर्णन गर्भित, पृ. १३आ, संपूर्ण. ९५५५० (+) सिंदूर प्रकरण, स्तुति, पद व सवैयादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २० ९(१ से ७,११,१६) ११. कुल पे. १०, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३१०.५, १३३०-३२). १. पे नाम. सिंदूर प्रकरण का पद्यानुवाद, पृ. ८अ १३अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है. सिंदूरकर पद्यानुवाद, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: लक्ष्मीवल्लभ० किय ग्रंथ, गाथा ९९, (पू. वि. गाथा-५८ अपूर्ण से ८१ अपूर्ण तक व ८९ अपूर्ण से ९९ तक है.) २. पे. नाम नेमिजिन पद. पू. १३अ संपूर्ण. मु. धर्मवर्धन, पुर्हि, पद्य, आदि आछी फूल खंड के अखंड अति धर्मसह० कैसी बोल है, सवैया २. " ४. पे नाम. पार्श्वजिन सवैया, पृ. १३आ, संपूर्ण. , सवैया - १. For Private and Personal Use Only मु. धर्मसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: ताल कंसाल मृदंग; अंति: भ्रम० जिणंद की पुजा, ५. पे. नाम. नेमराजिमती सवैया, पृ. १३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. ज्ञान, पुहिं., पद्य, आदि: जदुराय चढै वर राजुल; अंति: ज्ञानहरख० गडडौं गडडौं, पद-१. ६. पे नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-मन, मु. उदयराज, पुहिं., पद्य, आदि: गरज थकी मन और है; अंति: उदयराज० रहत नए कनठौर, पद- १. ७. पे. नाम भावना विलास, पृ. १४अ २०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमि चरणयुग पास; अंति: बुद्धि न होइ विरुद्ध, गाथा-५२, (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण से २६ अपूर्ण तक नहीं है.) ८. पे. नाम. नेमराजिमती सवैया, पृ. २०आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. ज्ञानसुंदर, पुहिं., पद्य, आदि लाल घोडो लाल पाघ लाल; अंति ज्ञानसुंदर ० मै सामरी, पद-२. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २०आ, संपूर्ण. Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: करम भरम जग तिमर हरन; अंति: दलन जिन नमत बनरसी, सवैया-३. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, पुहिं., पद्य, आदि: जलवट थलवट जंगमै दुसम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ मात्र है.) ९५५५१ (+) सतरभेदीजिनपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:सतरभेदीपूजा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०.५, १२४३४-४२). १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: भाव भले भगवंतनी पूजा; अंति: साधुकीरत० सुख साजै, ढाल-१७. ९५५५२. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५,प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३७५, जैदे., (२५४११, ३४२६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३ पावा४; अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-५४. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व जेह प्राण; अंति: भाग हजी सिद्धगयउ छइ. ९५५५३. (#) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३४३७). नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: जैनं जयति शासनं, स्मरण-९. ९५५५४. (+#) अंबड चरित्र, अपूर्ण, वि. १७२१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. ३५-११(१०,१२,१४,१८ से २४,२८)=२४, ले.स्थल. महिसाणा, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (७६३) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२४४१०.५, १३४४०-४४). अंबड चरित्र, आ. मुनिरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: (१)अंबडस्सणं परिव्वायस्सानो, (२)धर्मात् संपद्यते; अंति: विजये तद्वाच्यमानं, आदेश-७, श्लोक-१२२०, (पू.वि. गाथा-३०२ अपूर्ण से गाथा-३३० तक व बीच-बीच के पाठांश नही ९५५५५ (+) सामायकाधिकारेचंद्रलेहा चतुप्पदी, संपूर्ण, वि. १७९६, आश्विन शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. उदरासर, प्र.वि. हुंडी:चंद्रलेहाचौ. अबरखयुक्त पाठ., संशोधित. कुल ग्रं. ८२४, जैदे., (२५.५४११, १६-१७४४६-५०). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: त्रिभुवनपति हुवे तेह, ढाल-२९, गाथा-६२४. ९५५५६. (+) भावारिवारण स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८०१, चैत्र शुक्ल, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. जावद, प्रले. मु. सोमचंद; गुभा. मु. कुशलसौभाग्य (गुरु उपा. गजवल्लभजी); गुपि. उपा. गजवल्लभजी (गुरु ग. अमरमूर्त वाचक); ग. अमरमूर्त वाचक, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १५४५२-५६). महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: विशदां दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-बालावबोध, वा. महिमासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १६८१, आदि: श्रीपार्श्वजिनं नत्वा; अंति: शिवतातिर्वाच्यमानस्तात्. ९५५५७. (+) अठाईमोहछव, अपूर्ण, वि. १८७४, चैत्र शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९-१(४)=८, ले.स्थल. ताजपुर, प्रले. मु. श्रीचंद (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अठाईमोहछव., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०.५, १२४२८-३२). अट्ठाईमहोत्सव व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पढमं हवइ; अंति: देखै श्रीजिनधरम इम जाणवो, (प.वि. "अरिहंत देव" पाठांश से "जिहां साधु चौमासो रहै" पाठांश तक नहीं है.) ९५५५८. विवेकविलास सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:विवेकविला., जैदे., (२४४१०.५, १३-१६४३८-४०). For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: शाश्वतानंदरूपाय तमस्तौमेक; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., श्लोक-५२ तक है.) विवेकविलास- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तीको एक परमातमाने नमस्कार; अंति: (-), पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ९५५५९. (+#) संघयण, संस्थान व लेश्यादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७- १(१ ) = १६, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, १५X३६-४०). विचार संग्रह - विविधविषयक, मा.गु. रा., गद्य, आदि (-); अति (-) (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, संघयणविवरण से सिद्धिशिला विचार तक लिखा है.) ९५५६०. श्रीपालमयणसुंदरी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८ - १ ( १ ) = ७, प्र. वि. हुंडी : श्रीपालराश., दे., (२६X११.५, १५X४२). श्रीपाल रास, मु. तत्त्वकुमार मुनि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति तत्त्व० चरित उदार, ढाल ५, (पू. वि. ढाल १ की गाथा-८ अपूर्ण से है.) ९५५६१. (+) वीरजिनदीवालीमहोत्सव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, प्रले. श्राव. गेरमल पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५४११. ११४२८-३२). " " महावीर जिन स्तवन- दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्री श्रमणसंघ तिलकोपम: अंतिः श्रीगुणहर्ष वधामणे, ढाल १०, गाथा- १२५. ९५५६२. (+) शांतिदेव चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७५-५३ (१ से ५२,७४) =२२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १३x४१-४६). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रस्ताव-३ श्लोक-६२२ अपूर्ण से प्रस्ताव ४ श्लोक ५३२ अपूर्ण तक व ५४१ अपूर्ण से ५६८ अपूर्ण तक है.) ९५५६३. (+#) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. न्यानविजय (गुरु पं. गजविजय); गुपि. पं. गजविजय (गुरु पं. जिनविजय) पं. जिनविजय (गुरु भड्डा. विजयदेवसूरि) भट्टा. विजयदेवसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, ५X३६-३८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः संतिसूरि० सुयसमुदाओ, गाथा-५३. जीवविचार प्रकरण- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि भुवन कहता त्रिभुवन विषे अंतिः श्रुतसिद्धांत थको को. ९५५६४. (+) त्रैलोक्यसार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७- २ (१ से २) = ५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २५X११, १५X३८). त्रैलोक्यसार चौपाई, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६२७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५५ अपूर्ण से १९० अपूर्ण तक है.) ९५५६५. (*) दृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. २२- १(१) २१. पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैवे. (२६४१२, ११४४३) दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. "वेणानामाभूपतिरभूत" पाठांश से "स्वस्थानगतः त" पाठांश तक है., वि. अरिदूषण - बिदूषण, कपिल, धनदत्त, मंगलकलश आदि कथाएँ संकलित हैं.) ९५५६६. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह वालाववोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित त्रिपाठ.. जैये. (२४४१०.५, १६-१८४४४-४६). " कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३३ अपूर्ण तक है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र वालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ पदकमल; अति: (-). ९५५६७. (*) नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७४३, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल वीकानेर, प्रले. ग. विनयमेरु पठ. श्रावि. हेराबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नवतत्व., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५X१०.५, ५X३४-३६). For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १२९ नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५१. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: साची वस्तुनउ स्वरूप; अंति: अनंतमताग सिद्धिगयउ. ९५५६८ (+#) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४३६-४२). स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रीषभजिणंदा रीषभजिणंदा; अंति: मानविजय नितु ध्यावे, स्तवन-२४. ९५५६९ (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ४४३६-३८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, आ. वर्द्धमानसूरि, मा.ग., गद्य, आदि: कल्याण कहता मंगलीक; अंति: प्रपद्यंते क० पामइं. ९५५७० (+) द्वादशभावना स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. अहिमननगर, प्रले. ग. हितविजय; पठ. श्रावि. रामा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३६). १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरे विमलकुलकमलना हंस तुं; अंति: सकलमुनि चित्त आणो, ढाल-१४, गाथा-९०. ९५५७१. (+) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १८४०, पौष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. पाटोधि, प्रले. पा. रत्नविमल; पठ. श्राव. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कालिकाचार्य कथा., संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४१-४३). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: सूरीणामाज्ञा प्रवर्त्तय. ९५५७२. (+) शीयलप्रकाश रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४३६-४०). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: पहिलउ प्रणाम करूं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७२ तक है.) ९५५७३. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८७३, चंद्रसूसीद्धयोसइलवंन्यपहचान, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. स्वर्णगिरि, प्रले. पं. खुबचंद (गुरु पं. देवीचंद, खरतरगच्छ); गुपि.पं. देवीचंद (गुरु ग. हितप्रमोद, खरतरगच्छ); ग. हितप्रमोद (गुरु उपा. रत्नविमल, खरतरगच्छ); उपा. रत्नविमल (गुरु मु. कनकसागर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२६८) भग्न पृष्ठं कटी ग्रीव, जैदे., (२५४११, १२४३९-४१). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुण्णं पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-३०. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. सोमसुंदरसूरि शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: यथास्थिक साचू जे वस्तु ते; अंति: अर्द्धइतिव मोक्ष जाय. ९५५७४. (+) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी;चोमासी व्या.बा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, ९४३०-३६). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामाइक १ वस्यक २ पौषधानि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है.) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आषाढ चोमासो राजा १; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९५५७५ (+) संखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन प्रतिष्ठा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९-१(१०)=१८, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, दे., (२४४१०.५, १२४३०-३३). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर पंचकल्याणकगर्भित प्रतिष्ठाकल्प, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: श्रीमद्यादवसैनिकस्य; अंति: सघले सदा रंगविजय लहे, ढाल-१९, (पू.वि. ढाल-१० की गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-११ का प्रारंभिक पाठ अपूर्ण तक नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "पुक्क ड. १३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५५७६. (+#) अल्पबहुत्वादि बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-६(१ से ३,१० से १२)=९, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५-१८४४७-५६). १.पे. नाम. अल्पबहुत्व विचार, पृ. ४अ-१३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १७९२, चैत्र कृष्ण, ७, ले.स्थल. वीकानेर. २४ द्वारे अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आहारक अंगोपांगे१० सूक्ष्म पाठ से सौधर्मेशान पाठ तक नहीं है.) २. पे. नाम. ११ बोल विचार, पृ. १३अ-१५आ, संपूर्ण. सम्यग्दृष्टि, देशविरति व सर्वविरति ११ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: विधिवाद१ चरितानुवादर यथा; अंति: तेहनउ मिच्छामिदुक्कडं. ३. पे. नाम, बंधहेतु विचार, पृ. १५आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक ५७ कर्मबंधहेतु, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व१ अविरति२ कषाय३; अंति: एकलु योग प्रत्ययक बंध हुइ. ४. पे. नाम. निगोद, पृ. १५आ, संपूर्ण. निगोद स्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: निगोदीयाजीव अत्यंत सूक्ष; अंति: सकल जीव चेतनावंत छइ. ९५५७७. (+#) पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. प्रतापगढ, प्रले. सा. नगी आर्या (गुरु सा. माना आर्या); गुपि. सा. माना आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:पटावली., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०.५, १७४२६-३०). पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: समण भगवंत महावीरने वंदना; अंति: श्रीताराचंदजी हवणा छेए. ९५५७८. (+) आदिनाथ देशनोद्धार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ७४४२-४४). आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुहं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७९ अपूर्ण तक है.) आदिनाथ देशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारमांहि नथी सुख; अंति: (-). ९५५७९ (+#) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १३४४०). पापबद्धिराजा धर्मबद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग., आदि: धर्मतः सकलमंगलावली धर्मतः; अंति: (-), (प.वि. "कारितः प्रतिष्टा दिवि" पाठांश तक है.) ९५५८१ (+) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-६(१ से ६)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११,१३४३४-४१). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१८५ अपूर्ण से ४९६ अपूर्ण तक है.) ९५५८२ (+) चउवीसजिन छपइया, पद व बावनी आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४-१५४४२-४५). १. पे. नाम. चउवीसजिन छपइआ, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. २४ जिन छपइआ, उपा. सूर्यविजय पाठक, मा.ग., पद्य, आदि: छत्रत्रय चामर त्रिगड्ढ; अंति: सूर्यविजय०महावीर मंगल करउ, गाथा-२४. २.पे. नाम. राजिमती पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, उपा. सूर्यविजय पाठक, पुहिं., पद्य, आदि: बरषइ अति जोर कीइ बहु बादर; अंति: सूर्यविजय चारित्र लीया रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. छीहल सुकवी बावनी, पृ. ४आ-१०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:छीहल्ल. For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १३१ छीहल बावनी, छीहल्ल, मा.गु., पद्य, वि. १५८४, आदि: ॐकार आकार रहित अविगत अपरं; अंति: हरि सेवक छीहल्लकवि, गाथा-५३. ४. पे. नाम. प्रहेलिका दोहा, पृ. १०अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: वायस वीकमराय बुद्धि विणि; अंति: नको राउ बिरवि चक्कतलि, पद-१. ५. पे. नाम, बावन्नी, पृ. १०अ-१६अ, संपूर्ण. छंदछप्पनी, वा. मालदेव, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार अक्षर प्रथम जैन सिव; अंति: जसु मालदेव वाचक विदर, सवैया-५६. ६. पे. नाम. प्रस्ताविक, पृ. १६अ-१७आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: करडा कामिन आवही कामिणि; अंति: एकिणि अन्न विना सब सुन्न, गाथा-२९. ९५५८३. (+) नंदीषेणऋषि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १२, ले.स्थल. बर्हाणपुर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४०). नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सूत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सिद्धि निति गहिइरे. ढाल-१६. ९५५८४. (+) पृथ्वीराज वेली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१४, चैत्र कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ३०, ले.स्थल. पत्तननगर, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ५४४८-५२). कृष्णरुक्मणी वेलि, रा. पृथ्वीराज राठोड, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: परमेसर प्रणमि: अंति: अचल तैरोपी कल्याणतन, गाथा-३०६, संपूर्ण. कृष्णरुक्मणी वेलि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ग्रंथनी आदइ करी मंगल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३०५ तक टबार्थ लिखा है.) ९५५८५ (+#) सिंदूर प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(२)=५, ले.स्थल. श्रीकंठशहर, प्रले. पं. जेसिंघगणि; पठ. मु. खुस्यालचंद; गुभा.पं. मोहनदास (गुरु पं. जेसिंघगणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रकरण. अंत में छंदगण वर्णन श्लोक दिया है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१०, १५४३८-४२). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: यदमपि न गंतु प्रभवति, द्वार-२२, श्लोक-१०१, (पू.वि. श्लोक-३६ अपूर्ण से श्लोक-५३ अपूर्ण तक नहीं है.) ९५५८६. (+#) श्रीपाल रास-लघु, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१०.५, १६-१८४४१-४६). श्रीपाल रास-लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: चउवीसे प्रणमु जिनराय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२० की गाथा-२७० अपूर्ण तक है.) ९५५८७. (#) जिनकुशलसूरि छंद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ९, ले.स्थल. गोधण, प्रले. मु. वनेचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १३४३२-३५). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि निसाणी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रावण शुक्ल, १. मु. दोलत, रा., पद्य, वि. १८३५, आदि: सरसती माता जग; अंति: सिद्धि नित बाधंदा है, गाथा-११. २. पे. नाम. जिनदत्तसूरि सवैया, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ मु. धर्मसी, पुहि., पद्य, आदि: बावन वीर कीयै अपने; अंति: जिणदत्त की एक दुहाई, सवैया-१. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि सवैया, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. ध्रमसी, पुहिं., पद्य, आदि: राजे धुंभ ठौर ठौर एसो देव; अंति: कुशलसूर नाम युं कहायौ है, गाथा-१. ४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि सवैया, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: दीपे देव प्रतक्ष देव सुर; अंति: हीनत हरखचंद ध्यायौ है, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम, जिनकुशलसूरि गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. धर्मसीह, पुहिं., पद्य, आदि: प्रेम मन धारि नित; अंति: कुशलसूर नाम युं कहायो है, गाथा-१. ६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: कुशल वडो संसार कुशल सजन; अंति: पूजता नवेनीध्यान लिखमी है, गाथा-१. ७. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. रुघपति, पुहिं., पद्य, आदि: मिश्री घिरत खीर रलीय मिला; अंति: रूघपत० मील्या लटके लटके, गाथा-१. ८. पे. नाम. जिनकुशलसूरि छंद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रावण शुक्ल, २. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सुध मन समरु सारदा प्रणमु; अंति: भविकजन आस कलट विकट दिणंदे, गाथा-१२. ९. पे. नाम. जिनकुशलसूरि छंद, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण. मु. कविराज, मा.गु., पद्य, आदि: वदनकमल वाणी विमल; अंति: कविराज० धन खरतरधणी, गाथा-४९. ९५५८८. (+) सूक्तमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८-१(१)=७, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:शुक्तावली., संशोधित., जैदे., (२४४१०, १५४४२-४८). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वर्ग-१ श्लोक-९ अपूर्ण से वर्ग-४ श्लोक-३१ अपूर्ण तक है.) ९५५८९ (4) जल्पकल्पलता, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-२(४,८)=८, प्रले. ग. जयसोम, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १९४५५-६२). जल्पकल्पलता, ग. रत्नमंडन, सं., पद्य, आदि: जिनवर वरद त्वं सेवके; अंति: दयांचक्रे सुधीमण्डनः, स्तबक-३, श्लोक-६६, (पू.वि. स्तबक-१ श्लोक-२० अपूर्ण से श्लोक-२३ तक व बीच के कुछेक पाठांश नही है.) ९५५९०. महावीरजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१०.५, १२४३२-३६). महावीरजिन चरित्र, अप., पद्य, आदि: भवसिरि भत्तार हो निज्जिय; अंति: (-), (पू.वि. "कुलवत्तिहिपयवउखंडइ" पाठ तक है.) ९५५९१ (4) पाक्षिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०-५(१ से ५)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक वाला भाग खंडित है, अनुमानित दिया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, ११४४४-४८). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से "निभय निराग निदोस निम्म" पाठ तक ९५५९६. (+) मयणरेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५२, पठ. श्रावि. वीरा बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मयणरेहा चुपई., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, ७७२४-२६). मदनरेखासती रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १५३७, आदि: श्रीजिनचुवीसइ नमी प्रणमीय; अंति: शेखर० ते सर्वसुख लहइ, गाथा-३५०. ९५५९७. (+) कयवना चउपइ, संपूर्ण, वि. १७३२, वैशाख शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल, जावरा, प्रले. मु. पंचायण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कयवनो., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १८४४४-४८). कयवन्ना चौपाई, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दान न देखइ दलिद्रहि; अंति: सुधरइ छइ भव दोय, ढाल-२५, गाथा-२१९. ९५५९८ (+) हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:वछहंस., संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४६-५०). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदीसर आदै करी चौवीसेय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४५ की गाथा-९२ अपूर्ण तक है.) ९५६०० (+) गौतमपच्छा की सुगमावृत्ति व कथा, अपूर्ण, वि. १७७९, आश्विन शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ४८-१(१)=४७, ले.स्थल. मेडतानगर, प्र.वि. हुंडी:गौतमपृ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १६८२, जैदे., (२४४१०, १५४३८-४२). गौतमपच्छा, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org गौतमपृच्छा- टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: नगर्यां च शुभे दिने.. गीतमपृच्छा. कथा, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, आदि (-); अंति: मोक्षं यास्यति. ९५६०१ (+#) कर्मग्रंथ अवचूरि आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, कुल पे. ९, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४९.५, ११४४२-४९). ६. पे. नाम. समवसरणवक्तव्यता स्तवन, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. प्रा. पद्य, आदि तिहुयण सिरिकुलभवणं अंतिः सो भट् वयं दिसउ भवियाणं, गाथा २१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. कर्मस्तव की अवचूरि, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नमिऊणजिणवरिंदेत्यादि तत्र; अंति: पंचपंचाशत्तम गाथा स्थाने. २. पे. नाम षडशीति की अवचूरि, पृ. २आ-६अ, संपूर्ण. षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: मिच्छेसासाणेति षडशीतिगाथा; अंति: राशिसत्प्रमाणत्वात्. ३. पे. नाम. शतक की अवचूरि, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. शतक प्राचीन कर्मग्रंथ अवचूरि, सं., गद्य, आदि शतकेउवङगोजोमेत्यादिगाथा अतिः क्षपकोपशमकश्रेणि, ४. पे. नाम. देवद्रव्यदानाशुभफलविषये केशवकथा, पृ. ७आ-१९आ, संपूर्ण. केशव कथा - देवद्रव्यदानाशुभफलविषये, प्रा., गद्य, आदि महई वियारभूमी विहारभूमीय, अंति खवणजखोनराइसंपत्तिसिट्ठीया. ५. पे. नाम. प्रतिमालक्षण विचार, पृ. १९आ २१अ संपूर्ण. जिनप्रतिमालक्षण विचार, सं., पद्य, आदि उपविष्टस्य देवस्यो; अति: कार्योमध्यप्रासादमानतः. 1 . ७. पे. नाम. ह्रस्वसंज्ञा विचार, पृ. २१-२२अ, संपूर्ण. प्रा. पद्य, आदि वाससहस्से उम्गंतवंतः अति हस्वसंज्ञा विशारदाः 1 ८. पे. नाम. पंचविधिचैत्यस्वनामप्रतिपादना गाथा, पू. २२आ- २४आ, संपूर्ण, प्रा., गद्य, आदि: अंगुलवग्गमूलं छन्नउइछेयण; अंति: पंचमसुवइट्टं जिणवरिंदेहिं. ९. पे नाम, प्रासुकजल विचार, पू. २४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. प्रा.,सं., प+ग., आदि: सीयर फासुय चउहादव्वे; अंति: (-), (पू.वि. "मीठउ पाणी खारा पाणीसिं मेलिइ अथवा " पाठ तक है.) ९५६०२. संग्रहणी गाथा व २८ लब्धिविचार गाथा संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. २९, कुल पे. २, जैदे., (२५.५x११, 7 " ६X३४-३७). १. पे. नाम संग्रहणी गाथा सह टवार्थ, पृ. १आ- २९अ, संपूर्ण. सिद्धांतविचार गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि कंचणगिरि पव्वेसुं अंति साहु सगवीस नायव्वा, गाथा-२८३. सिद्धांतविचार गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कंचनगिरि पर्वतनइ; अंति: भेला करी एकसउ आठ था २. पे. नाम. २८ लब्धिविचार गाथा, पृ. २९अ - २९आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: आमोसहि १ विप्पोसहि२; अंतिः एमाई हुंति लद्धीओ, गाथा-४. ९५६०४. (#) गोराबादल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-७ (१ से ६, ९) = ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.., १३३ (२४४१०, २०-२२X४७-५५). गोराबादल रास. ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य वि. १७०७ आदि (-); अति (-) (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. गाथा - ३२४ अपूर्ण से ४३३ व गाथा ४९५ अपूर्ण से ६५२ अपूर्ण तक है.) ९५६०५. सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ सह स्वोपज्ञ धातुतरंगिणी टीका, संपूर्ण, वि. १६८९, भाद्रपद शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पू. ५३. ले. स्थल. कर्मवाटी, पड मु. युक्तिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x११, १८-१९४५३-५५ ). सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य वि. १६६३, आदि: श्रीसर्वज्ञं जिनं नत्वा; अंति निर्मितो नंदताच्चिरम्. " For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ की स्वोपज्ञ धातुतरंगिणी टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य महोतं; अंति: वतां निर्मलां मतिम्. ९५६०६. (4) प्रद्युम्नशाब प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१, ले.स्थल. वक्कासर ग्राम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैदे., (२५.५४११, १५४३३-३७). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: एम पभणइ संघनइ सुजगीस ए, खंड-२ ढाल २२, गाथा-५३५, ग्रं. ८००. ९५६०७. (+#) रत्नपालरत्नावती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १८४४९-५४). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीरीषभादिक जिन नमु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-३ ढाल-५ गाथा-११ तक लिखा है.) ९५६०८. (+) केसीवचनाप्त परदेसीप्रबोध, संपूर्ण, वि. १८०८, पौष शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. देवीकोट, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, १५४४३-४६). केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीअरिहंत; अंति: ज्ञानचंद० शिवसुख सार, ढाल-४१, गाथा-५९४. ९५६०९. (#) सतिगणावलि रास व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७४९, आषाढ़ शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. २, ले.स्थल. विंधनगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६०५) भग्न पुष्टि कट ग्रिवा, (११६०) तैलात् रक्षेत् जलात् रक्षेत्, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३४-४५). १. पे. नाम, सतिगुणावली रास, पृ. १अ-१८आ, संपूर्ण. गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: गजकुसल० नित सुख ___आणंदा रे, ढाल-२९, गाथा-५१९. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १८आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जईफल भरेण नमीउ नींबोघण; अंति: जण जण साहमो जोवता, गाथा-३. ९५६१०. (+#) श्रीपाल रास-खंड ४ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रावण कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ३५, ले.स्थल. कांबा, प्रले. मु. तिलोकचंद (गुरु पं. माणिकचंद); गुपि.पं. माणिकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ६४३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, प्रतिपूर्ण. श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-४ ढाल-४ गाथा-५ से ढाल-१३ तक लिखा है.) ९५६१२. (+#) शालिभद्रमनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५४, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. ग. ऋद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १४-१६x४०-४४). शालिभद्रमनि चौपाई, म. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइजी, ढाल-२९, गाथा-५१०. ९५६१३. (+) शीलाधिकारे सुदर्शनशेठ आदि कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७४-१८७५, मध्यम, पृ. ३४, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३१-३८). १.पे. नाम. सुदर्शनश्रेष्टनी कथा, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण, वि. १८७४, फाल्गुन शुक्ल, १३, शुक्रवार, पे.वि. श्रीपार्श्वदेव प्रसादात्. सुदर्शनश्रेष्ठि कथा-शीलविषये, मा.गु., गद्य, आदि: (१)शील पभाव पभाविय सुदंसणं, (२)अंगदेशिने विशे चंपा नामै; अंति: मुक्ति रूपणी लीला पामै. For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. मेणरेहानी कथा सीलउपर. पू. ६अ ९आ, संपूर्ण मदनरेखासती कथा-शीलविषये, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नीय शील रक्खणत्थं तणं, (२) अवंतीने विषे सुदर्शनामा; अंतिः करम खपावी उत्तम फल पाम्यो. ३. पे. नाम रामलक्ष्मणसिता चरित्र, पृ. १०अ २१ आ. संपूर्ण. सीतासती कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१) तिहुयणपहुणाविहु रावणेण, (२) मिथुलानगरीयै जनकराजा राज्; अंति: राम सीतानो संबंध थयो. ४. पे. नाम. दवदंतीनी कथा, पृ. २२अ-३४आ, संपूर्ण, वि. १८७५, वैशाख शुक्ल, ३. दमयंतीसती कथा, मा.गु., गद्य, आदि: इणहिज जंबूद्वीप भरतक्षेत्; अंति: मुक्ष रूपणी लीला पाम छै. ९५६१४. (+) रामकृष्ण चतुःप रामकृष्ण चतुःपदी, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३९, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२५.५x११, १२-१६४५०-५६). रामकृष्ण चौपाई, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य वि. १६७७, आदि जगत आदिकर जगतगुरु आद; अति " लावण्यकीरति० जस अखंड, खंड-६ डाल ६८, गाथा- १२५१. ९५६१५ (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५ + १ (२४) = २६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११, ५X३८-४२). १३५ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शतक- ९ उद्देस-३२ से शतक-११ उद्देस - ११ तक लिखा है.) भगवतीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (-), प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९५६१६. (+#) सुरसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८०३, आश्विन शुक्ल, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १७, ले. स्थल. मेडता, प्र. सा. चैना (गुरु सा. राजाजी); गुपि. सा. राजाजी (गुरु सा फूलाजी); सा. फूलाजी (गुरु सा रामु आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १७x४५-५०). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य वि. १७३६, आदि: सासण जेहनो सलहिये आज अति: धर्मवर्द्धन० उमंगे जी, खंड-४ ढाल ४०, गाथा - ६१३. ९५६१७ (*) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८७ श्रावण कृष्ण, ६, रविवार, मध्यम, पृ. १०, ले. स्थल. कवराडा, प्रले. पंन्या मोतीविजय अन्य. मु. विनयविजय (गुरु पं. धरणेंद्रविजय); गुपि. पं. धरणेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : पाखीसू., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११, १४४३९-४७) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतिथे अतिथ; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ९५६१८. आनंदश्रावक संधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २४.५X१०.५, १३X२८-३०). आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि : वर्द्धमान जिनवर चरण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१५ की गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ९५६१९ बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५X११, १२x३१-३५). , बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिऊ अरिहंताई ठिइ अति: (-) (पू.वि. गाथा ११९ तक है.) ९५६२० (+) सांवप्रजुन चौपाई, संपूर्ण वि. १७९३, मध्यम, पृ. १९, ले. स्थल. पोहकरण, प्रले. पं. जीवण (गुरु पं. नववर्द्धन); गुपि. पं. नयवर्द्धन (गुरु आ. मुनिसुंदर); आ. मुनिसुंदर अन्य आ. जिनोदयसूरि (वेगडगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०, १६X३७-४२). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलो; अंति: इम पभणे संघ सुजगीस ए. खंड- २ डाल २२, गाथा ५३५ नं. ८००. For Private and Personal Use Only ९५६२१. (#) रिषभदेव धवलबंध, अपूर्ण, वि. १६०९, मध्यम, पृ. १५- २ (१ से २) = १३, ले. स्थल. नव्य नगर, प्रले. श्रावि. खीमाई; अन्य. सा. रामबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, ११×३८-४०). आदिजिन विवाहलो, मु. गुणनिधानसूरि शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि: (-); अंति: बोलेइ सेवक इम मुदा, डाल-४४, गाथा - २४३, (पू.वि. डाल-४ की गाथा - ६ अपूर्ण से है.) Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५६२२ (+) सप्तस्मरण-अजितशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:सप्तस्मरण., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११,७४२५-३०). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. बृहत् व लघु दोनों है.) ९५६२३. (+) ईग्यारे गणधरनी वारता, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. वनेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१०.५, १२-१४४३७-४१). ११ गणधरपद स्थापना अधिकार, मा.गु., गद्य, आदि: मध्यम अपापानगरीइं महेसेन; अंति: सुधर्मास्वामी०अनुज्ञा करे. ९५६२४. उपदेशमालाकथा संग्रह व अज्ञात जैन प्राकृत पद्य कृति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४७-२५(१ से २५)=२२, कुल पे. २, जैदे., (२६४११,११४३६-४५). १.पे. नाम. उपदेशमाला कथा संग्रह, पृ. २६अ-४६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा . उपदेशमाला-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: जीवो नरके व्रजति, (पू.वि. श्रेणिकराजा कथा अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. अज्ञात-प्राकृत गाथा संग्रह, पृ. ४७अ-४७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अज्ञात जैन प्राकृत पद्य कृति*, प्रा., पद्य, आदि: समणेण संजमट्ठा नाणा देसे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक ९५६२५ (+#) दानविषये सुमित्रकुमार प्रबंध व शंखपूजन मंत्रविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सुमित्रचउपई., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४४२-४७). १. पे. नाम. दानविषये सुमित्रकुमार प्रबंध, पृ. १अ-१८आ, संपूर्ण. सुमित्रकुमार चौपाई, ग. धर्मसमुद्र वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १५६७, आदि: पणमिसु मण वय तणु करी पहिल; अंति: तां लगइ चिर जयवंत, गाथा-४३१. २. पे. नाम, शंखपूजन मंत्रविधि, पृ. १८आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह , मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९५६२६ (#) वाक्यप्रकाश सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. पंचपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३०). वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदि: प्रणम्यात्मविदं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४० अपूर्ण तक लिखा है.) वाक्यप्रकाश-टीका, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, वि. १५८०, आदि: श्रीमज्जितेंद्रमानम्; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९५६२८. (+) शोभन स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, कार्तिक शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(१ से २)-६, प्र.वि. हुंडी:शोभन. प्रतिलेखक नाम अवाच्य है., संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३४-३६). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६, (पू.वि. पद्मप्रभजिन स्तुति गाथा-४ अपूर्ण से है.) ९५६२९ (+) विमलाचलतीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तीरथमाला., संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, ११४२८-३०). शत्रुजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाल्हा वारू; अंति: साजे अमृतरंग सुहंकरो, ढाल-१०, गाथा-१५२. ९५६३० (+) समवसरण व चउवीसदंडकविचार स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(४)=६, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:स्तवन.प., संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ९४२५-३०). १.पे. नाम. समवसरणविचार स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १३७ पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासनसेहरो जग; अंति: पाठक धरमवरधन धार ए, ढाल-२, गाथा-२९. २.पे. नाम. चउवीसदंडकविचार स्तवन, पृ. ३आ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४, (पू.वि. ढाल-१ की गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-२ की क्रमशः गाथा-१२ अपूर्ण तक नहीं है.) ९५६३१. (+) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १७८७, पौष शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १६, प्रले. पंडित. राजहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४२). कालिकाचार्य कथा, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अरिहंत भगवंत उत्पन्न; अंति: वाच्यमानं चिरनंद्यात्. ९५६३२. (+) तेजसारकुमार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, १३४३६-४४). तेजसारकुमार रास, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६२४, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३९९ अपूर्ण तक लिखा है.) ९५६३३. (+) पार्श्वजिन, १४ गुणठाणा व समवसरण विचार स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३७). १.पे. नाम, चउवीसदंडकविचारगर्भित श्रीपार्श्वनाथस्वामि वृद्धस्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, म. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावे धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३३. २. पे. नाम. १४ गुणठाणा स्तवन, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमतिदाता; अंति: कहे इम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४. ३. पे. नाम. समवसरणविचार स्तवन, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासनसेहरो जग; अंति: पाठक धरमवरधन धार ए, ढाल-२, गाथा-२८. ९५६३४. वयरस्वामि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८३७, माघ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. प्रत के अंत में पठनार्थ साधवीजी ऐसा लिखा है., कुल ग्रं. १६०, जैदे., (२५४११, १२x२८-३०). वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरध भरतमांहि शोभतो; अंति: जिनहर्ष० गुण गाया रे, ढाल-१५, गाथा-८९. ९५६३७. (+) मयणरेहा चौपाई व चेडाराजा की सात पुत्री नाम, संपूर्ण, वि. १८४१, भाद्रपद कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पृ.८, कुल पे. २, ले.स्थल. नाथद्वारा, प्रले. मु. तेजपाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३४-३६). १. पे. नाम. मणरेहा चौपाई, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. ___ मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: वीसन सातमो परनारीनो परतख; अंति: आयो राजवीया न राज पीयारो, गाथा-१८३. २. पे. नाम. चेडाराजा की सात पुत्री नाम, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चेडाराजानी सात बेटी ते; अंति: राजान घरे क्षत्रीकुंडनगर, गाथा-७. ९५६३८. (+) सनतकुमार चउपई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १०-१४४३२-४०). सनत्कुमार रास, मु. लक्ष्मीमूर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: जोइ विमासी जीव तु पनि; अंति: जंपइ मनि मनोरथ समह फलइ, ढाल-७, गाथा-४५. ९५६३९ (4) सुबाहुऋषि संधि, संपूर्ण, वि. १७२०, आश्विन कृष्ण, १२, शनिवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. भुज नगर, प्रले. पंन्या. नयनवर्द्धन (गुरु उपा. कनककुमार); गुपि. उपा. कनककुमार (गुरु उपा. सुमतिसुंदर, खरतरगच्छ); पठ. श्रावि. जेठी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३८-४२). For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुबाहुकुमार संधि, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६०४, आदि: पणमि पास जिणेसर केरा; अंति: थायउ नितु भणतां, गाथा-९०. ९५६४० (+) देवसिप्रतिक्रमण विधि, १४ श्रावक नियम गाथा व प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. १७०१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ३, प्रले. ग. जीतविजय (गुरु पं. रंगविजय, तपागच्छ); गुपि. पं. रंगविजय (गुरु पं. तेजविजय गणि, तपागच्छ); पं. तेजविजय गणि (गुरु ग. विजयसिंह पंडित, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १६x४४-४८). १.पे. नाम. देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय सह भावार्थ, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमोअरिहंताणं नमोसिद्धाणं; अंति: सरिसा मणुसा मत्थएण वंदामि. देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय-भावार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: माहरु नमस्कार अरिहंतनइ; अंति: मनिवचनि कायाइ करी वांद्. २. पे. नाम. १४ नियम गाथा, पृ. ९अ, संपूर्ण. १४ श्रावकनियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त १ दव्व २ विगइ; अंति: न्हाण१३ भत्तेसु१४, गाथा-१. ३. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र सह बालावबोध, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए नमुक्कार; अंति: असित्थेण वा वोसिरामि. प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यनि उदए आरंभिइ; अंति: अनेरी प्रकृति छोडउ. ९५६४१ (+#) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. ६७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४९.५, ११४३२-३६). १.पे. नाम. वैराग्यपरक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वैराग्यपरक, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: कहा भरोसा तन का औधू; अंति: नांही जनम मरण भवपासा, गाथा-४. २. पे. नाम, वैराग्यपरक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वैराग्यपरक, मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: औधू ए जगका आकारा; अंति: सब सिद्धं का डेरास, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: दरवाजा छोटा रे नीक; अंति: या ते सिद्ध शनोटा रे, गाथा-३. ४. पे. नाम. वैराग्यपरक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वैराग्यपरक, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: औधू हम विन जग कछु; अंति: ज्ञानसार० चिदघनघन अभिधासी, गाथा-५. ५.पे. नाम. आत्मज्ञान पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: औधू आतम तत गति बूझै; अंति: अचल अमरपद अव्याध अनंता, गाथा-३. ६. पे. नाम, औपदेशिक पद, प. २अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम पतियां कौन्न; अंति: तावत तौ कहारोय बतावै, गाथा-३. ७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: नाथ तुमारी तुमही; अंति: ग्यानसार०दुख वीसराणो, गाथा-३. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: कहा कहियै हो आप सयान; अंति: ग्यानसार० गरज लजीयानते, गाथा-३. ९.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: प्रीतम पतियां क्यौं; अंति: घर हिलमिल प्रीत वढाई, गाथा-३. १०. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: अनुभौ हम तौरा उरै खो; अंति: कर कैसैं मूंछ मरोरै, गाथा-३. ११. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: अनुभौ ग्यान्न नयन; अंति: गुन सुझे सहिज समाजे, गाथा-३. १२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: क्या करियै अरदास साध; अंति: ग्यानसार० जड वेदासा, गाथा-४. १३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: अनुभौ ढौलन कब घर; अंति: ग्यान० विनतडै उठ आवै, गाथा-४. १४. पे. नाम, भक्तिपरक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: हमारी अखियां अति ऊलस; अंति: ग्यानसार रसदानी, गाथा-३. १५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: एही अजब तमासा औधू; अंति: ग्यानसार पद पावै, गाथा-५. १६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: मनुआ वस नही आवै औध कैसे; अंति: ग्यानसार० निहचै सिव पावै, गाथा-५. १७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: अनुभो अपनी चाल चलीजे; अंति: ग्यान नो उपर दो दीजे, गाथा-३. १८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यान कला गति घेरी मेरी; अंति: अजर अमर पद केरी, गाथा-३. १९. पे. नाम, आध्यात्मिक होली पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: सुध वसंत क्यु यात चतुर; अंति: जिहि ग्यानसार खेलै वसंत, गाथा-३. २०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: सासरेरि आज रंग वधाई; अंति: ग्यान० लगाईजी म्हारे, गाथा-३. २१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: औधु या जाग के जगवासी; अंति: ग्यानसार पद पाशी, गाथा-५. २२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: आतम अनुभौ आंबकौ नवलो; अंति: ग्यानसार० पय पानी को पानी, पद-३. २३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदिः रहे तुम आज क्युं जीव; अंति: लीने कंठ लगाय, पद-३. २४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: और खेल भव खेल बावरे; अंति: अजर अमर पद राय रे, गाथा-६. २५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: अनुभो हम कबके संसारी मेरे; अंति: ग्यान०विवहारे परनाता, गाथा-४. २६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: छकी छवी वदन नीहार; अंति: पद भीतर चेतनता भरतार, गाथा-३. २७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: पर परणांम नवी भाये; अंति: ग्यानसार० काल लबध सिंघही, गाथा-३. २८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: मेरा आतम अतहि अयांना; अंति: तो गति अगति नही काया, गाथा-३. २९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: औधु आतम भरम भुलाना; अंति: ग्यानसार० अव्याबाधा, गाथा-३. ३०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. . For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: साधो भाई ऐसा योग; अंति: निहचै थै निरबंधा, गाथा-३. ३१. पे. नाम, औपदेशिक पद, प. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: औधू कैसी कुटंब सगाई; अंति: तुझ सूझै ग्यानसार पराइ, गाथा-४. ३२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: माई रे मेरे कंत; अंति: ग्यानसार रस खाणी, गाथा-३. ३३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: ओधू सुमति सुहागन; अंति: जल मय जल व्यापारा, गाथा-३. ३४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: साधो भाई जग करता कहि; अंति: ग्यानसार०जीत निसान घुरानै, गाथा-६. ३५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७आ, संपूर्ण.. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: साधो भाइ जब हम भए; अंति: पद कैसे हूं नहि पावै, गाथा-६. ३६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: साधो भाई निहचै खेल; अंति: ज्ञानसार० भवदधि पारा, गाथा-१४. ३७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: औधु घरणी विण घर कैसो; अंति: यानतै अपने आतम कलीये, गाथा-३. ३८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: औधू हम विन जग अंधियारा है; अंति: ग्यान०परमारथ पथ गावे, गाथा-४. ३९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण.. म. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: नाथ विचारो आप विचारी; अंति: ल्यायौ लगिय न वारी, गाथा-४. ४०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: साधौ भाइ आतम भाव; अंति: ग्यानसार पद पेखा, गाथा-२. ४१. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: साधो भाई आतम खेल; अंति: ग्यानसार० यही तमासा, गाथा-५. ४२. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: पिया विन खरी दुहेली हो; अंति: फुल सुवास चमेली हो, गाथा-४. ४३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: अनुभौ तुमारी हासी मीत; अंति: सहिजै समझै जासी, गाथा-३. ४४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: क्युं आज अचानक आए; अंति: पावौ आत्म परमात्मरूप, गाथा-३. ४५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. मु.ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: मनडानी अमै केनै जो; अंति: जोतौ जे ख्याल खेलातौ. गाथा-५. ४६. पे. नाम, आत्मस्वरुप पद, पृ.१०आ, संपूर्ण. आत्मस्वरूप पद, म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: जाग रे सब रैन विहानी; अंति: ग्यान० निज राजधानी, गाथा-४. ४७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: यूंही जनम गमायो भेख; अंति: ग्यानको मरम न पायो, गाथा-४. ४८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: भाई मति खेलै तू माया; अंति: ख्यान० निज ख्यालसूं, गाथा-२. ४९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: आप मतीयै भला मूढ मतीयै; अंति: सार पद सही होवे, गाथा-१२. ५०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि कंत को हूं न माने अंतिः सिद्ध अनंत समाने, गाथा ४. ५१. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १२अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि मरणा तो आया माया; अंतिः माया पांती आया, गाथा-४. ५२. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पू. १२-१२आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: अरी मै कैसे मनावै री मेरो; अंति: ग्यानसार० सोरठ गावै री, गाथा- ३. ५३. पे नाम. मतमतांतर पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि औधू जिन मति जग उपगारी; अंति: ग्यानसार० पावै सिप अखेदे, गाथा-६. ५४. पे नाम. आध्यात्मिक पद पृ. १२-१३अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: औधू आतम धरम सुभावै; अंति: सिद्ध अनादि सुभावै, गाथा-४. ५५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: विसम अति प्रीत निभान; अंति: सब दुख विसराना हो, गाथा-५. ५६. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३२-१३आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारे नाह घर विन; अंति: तो सब दुख मिट जाय, गाथा-३. ५७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: घर के घर विन मैरो; अंति: ग्यानसार गलबांही, ५८. पे नाम भक्तिपरक पद पू. १३आ, संपूर्ण. गाथा - ३. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: जब हम तुम इक ज्योत; अंति: भज आतम पद केरी, गाथा- ३. ५९. पे नाम नेमिनाथ चोक, पृ. १४-१५आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमगोपी संवाद- चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९८३९, आदि: एक दिवसे नेमकुमर निज अति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल - ९ गाथा - ३ तक लिखा है.) ६०. पे नाम शत्रुंजयतीर्थ पद, पृ. १५आ, संपूर्ण, मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: विमलगिर क्यु न भये हम मोर; अंति: धर्मसी करत अरज करजोड, गाथा-४. ६१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १५-१६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: घोर घटा करी आयो री; अंति: सर तब परमारथ पायोरी, गाथा-३. ६२. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १६अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे घरीयारे बावरे मत घरी; अंति: आनंदघन० विरला कोइ पावै, पद-३. ६३. पे नाम आध्यात्मिक पद, पृ. १६अ, संपूर्ण. १४१ मु. आनंदघन, पु,ि पद्य, वि. १८वी, आदि: क्या सोवे उठ जाग अति आनंदघन० नरंजन देव गायो रे, गाथा-३. ६४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १६अ १६आ, संपूर्ण मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जीवउ जाने मेरी सफल घरी; अंति: आनंदघन० माया क करी, गाथा - ३. ६५. पे नाम आध्यात्मिक पद, पृ. १६आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि सुहागन जागी अनुभव प्रीते; अंतिः प्रेम की अकथ कहानी कोई, गाथा ४. ६६. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि माहरो मोहन ए कब मिलसे मन अंति: आनंदघन कोन विवलगे वेलू, गाथा-२. ६७. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदि क्यारे मुने मलसे संत अंति: कीम जीवै महुमेही, गाथा-३. ९५६४२. (४) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन १३ सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२४X११, ४X३७). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-), प्रतिपूर्ण, Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९४२ ९५६४३. पंचपरमेष्ठि मंत्र विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६, जैदे. (२४.५४११, १४४३१). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " पंचपरमेष्ठी मंत्र संग्रह, प्रा., सं., गद्य, आदिः ॐ नमो अरिहंताणं अरिरयण; अंति: चाडण ताडन तिहुयण साहु. ९५६४४. () चतुःश् चतुःशरण प्रकीर्णक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित-पंचपाठ., जैदे., (२६X१२, १७x४६-४९). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि सावज्जजोग विरई, अंति: कारण निव्वुह सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इदमध्ययनं परमपद; अंति: भवतीति गाथार्थः. ९५६४५. (+) द्रव्य संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. त्रिपाठ - संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११, २४X५७-८०). द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि जीवमजीवं दव्वं जिणवर अति: चंदमुणिणा भणियं जं, अधिकार-३, गाथा ६०. द्रव्य संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तं जिनवर वृषभ सर्वज्ञं; अंति: तौ कौभा पंडित हो साधो. ९५६४६ (+मैं) गौतमपुच्छा सह कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १८-८ (१ से ७,१७) = १०, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x१०.५, १७४५५). " गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. गाथा २८ से ५९ तक है व बीच के पाठांश नहीं है.) गौतमपृच्छा-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ९५६४७. (+) जातकदीपकाभिधानपद्धति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२०, आश्विन शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. गुंदवचनगर, प्रले. पं. गणपतविजय (गुरु पं. देवेंद्रविजय); गुपि. पं. देवेंद्रविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X१०, ६x४२-४४). जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेशं अंतिः एषा जातकदीपिका, श्लोक ९३, (वि. अंत में चूडलाचक्रकचकडा मुहूर्त दिया है.) जातकपद्धति-टबार्थ, मु. रंगविजय, मा.गु., गद्य, वि. १५९७, आदि: प्रणाम करीने पार्श्वदेव; अंति: टबको हि जातक भिधा पदवी. ९५६४८. (#) देवसिप्रतिक्रमण विधि आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-२ (१३ से १४ ) = १५, कुल पे. ६, ले. स्थल. भेसवाडा, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x१०.५, ११४२८-३३). "" १. पे नाम. देवसिप्रतिक्रमण विधि, पृ. १आ-१२अ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं अंति सिवायसं अम्मसया पसत्था. २. पे नाम बीजतिथि स्तुति, पृ. १२अ १२आ, संपूर्ण. मु. . लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज, अंति: पूरो मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे नाम. २० विहरमानजिन स्तुति, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषै विहरता वीस अति (-) (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ४. पे नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: जाणजो रे आनंदघन मति अंज, गाथा-६, (पू.वि. ६ ठी गाथा अपूर्ण मात्र है.) ५. पे नाम. कुंथुजिन स्तवन, पू. १५-१५आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कुंथुजिन मनडुं किमहि; अंति: आनंदघन० जाणु हो कुंथु, गाथा-९. ६. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. १५आ-१७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारा ठांम धरम, अंतिः कांति सुख पावै घणो ढाल. २. गाथा - २४, ', 3 Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १४३ ९५६४९ (+) जीवविचार स्तवन व परमानंद स्तोत्र पंचवीसी, संपूर्ण, वि. १७७७, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३१-३४). १.पे. नाम. जीवविचार स्तवन, पृ.१अ-६आ, संपूर्ण. जीवविचार स्तवन-पार्श्वजिन, म. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसतीजी वरसति; अंति: विजय भणइ आणंदकारी, ढाल-९, गाथा-७९. २. पे. नाम. परमानंदस्तोत्र पंचवीसी, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंदसंयुक्तं; अंति: परमं पदमात्मनः, ___श्लोक-२५. ९५६५० (+) सीमंधरस्वामि स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१०.५, ४४३४-३८). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: चरणसेवक जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५, ग्रं. १८८, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, आदि: हे श्रीसीमंधरस्वामी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१० तक लिखा है.) ९५६५१. नंदीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४-४(१ से ४)=१०, दे., (२५४११, ४-५४२७-२९). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२१ अपूर्ण से है व ६८ अपूर्ण तक लिखा है.) नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२१ तक टबार्थ लिखा है.) ९५६५२ (#) सप्ततिका कर्मग्रंथ की अवचर्णि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प.११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २२४५८-७०). सप्ततिका कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सिद्ध० सिद्धानि चालयितुम; अंति: (-), (पू.वि. पाठ 'एतावंतो लेश्या' तक ९५६५३. (+) संग्रहणी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७४६, आश्विन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १३, प्रले. पं. ज्ञानतिलक; पठ. वेणीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १३४३८-४२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१५. ९५६५४. (+) कुमारपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-७(१ से ७)=१६, प.वि. बीच के पत्र हैं..प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १३-१७४४८-५४). कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-८ गाथा-८ से ढाल-३० गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ९५६५५. (+) पाक्खीखामणासूत्र व १२ मास सुर्यकिरणसंख्या विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०, १६४३५-४०). १.पे. नाम. पाक्खीखामणासूत्र, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण, वि. १८२९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, ले.स्थल. जावद, पे.वि. हुंडी:पाखीसूत्र. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: नित्थारगपारगाहोह. २. पे. नाम, बार मास सूर्यकिरणसंख्या, पृ. ११आ, संपूर्ण. १२ मास सूर्यकिरणसंख्या विचार, पुहिं., गद्य, आदि: चैत्रमास बारसैकिरण वैशाख; अंति: फाल्गुण० हजार किरण जाणिवा. ९५६५६. (+) विचारषट्त्रिंशिका, नवपद काउसग्गसंख्या व मिरगीनिदान औषध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०,४४३८-४२). १. पे. नाम. विचारषट्त्रिंशिका सूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊण चउवीसजिणे तस्स; अंति: गजसागरेण० अप्पहिया, गाथा-४०. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मु. यशसोम-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: मन वचन कायायै; अंति: टबार्थं दंडकस्तवे. २. पे. नाम. नवपदरा काउसग, पृ. ९आ, संपूर्ण. नवपदतप विधि-काउसग्ग संख्या, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमपदरा लोगस १२ दूजापद; अंति: ८पदरा लो०७० ९पदरा लोगस १२. ३. पे. नाम. मिरगीनिदान औषध, पृ. ९आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९५६५७. सूक्तमौक्तिक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. हंडी:सक्तपत्र. पत्रक्रम का योग्य उल्लेख न होने से क्रमशः गिनकर लिखा गया है., दे., (२६४११, १२४४२). सक्तमौक्तिक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम भाग अपूर्ण तक लिखा है., वि. श्लोकानुक्रम का क्रमशः उल्लेख नहीं है. बीच-बीच में प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण भी है.) ९५६५८. प्रीयमेलक चउपई, संपूर्ण, वि. १७५६, भाद्रपद कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. कोलदा, प्रले. हरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. गुरुप्रसादात्., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३४-३६). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: पुण्य अधिक परमोद, ढाल-११, गाथा-२२०. ९५६५९ (+) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. हंडी:संघयणी., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. जैदे.. (२५.५४११, १४४४६-४८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३२५. ९५६६० (+#) आषाढभूति रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १०४३२-३६). आषाढाभूतिमनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी; अंति: सिणगार ए मुनिवर थया उदार, गाथा-६६, (वि. प्रतिलेखक ने अंतिम प्रशस्तिगाथा नहीं लिखी है.) ९५६६१. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७१-१६३(१ से १४२,१४७ से १६७)=८, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पंचपाठ., जैदे., (२४.५४१०, ५-१२४२८-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नेमिजिन दीक्षा प्रसंग अपूर्ण से स्थविरावली स्थूलिभद्र प्रसंग अपूर्ण तक हैं. बीच का पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९५६६२ (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३,४,९,१२,१३ व २२, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)-६, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४०-४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-३ अपूर्ण से अध्ययन-२२ अपूर्ण तक है.) ९५६६३. (+) अबयदी शकुनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, ११४३७). अबयदीशुकनावली, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१३ अपूर्ण से है व श्लोक-१४५ अपूर्ण तक लिखा है.) ९५६६४. (#) विषापहार स्तोत्र सह सुखबोधकारिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२-१६४३८-४४). विषापहार स्तोत्र, जै.क. धनंजय कवि, सं., पद्य, ई.७वी, आदि: स्वात्मस्थितः सर्वगत; अंतिः सुखानि यशोधनंजयं च, श्लोक-४०. विषापहार स्तोत्र-टीका, म. चंद्रकीर्ति, सं., गद्य, आदि: पुराणः पुरुषः परमेश्वरः; अंति: तव स्तुतिविषया इत्यर्थः. For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९५६६६. (2) कल्पसूत्र सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.१९-३(१,११,१६)=१६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १५४५२-५४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जिनआंतरा-शीतलजिन प्रसंग अपूर्ण से सामाचारी अपूर्ण तक हैं.) कल्पसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९५६६७. (2) मानतुंगमानवती रास, कवित व पद्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १८४४७-५२). १.पे. नाम. मानवतीमानतुंग चौपईनी कथावारता, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण, वि. १७८६, चैत्र कृष्ण, १३, ले.स्थल. भिन्नमाल, प्रले. वा. मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य. मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमुं माता सरसती; अंति: अभय० इम पांमि सिव सुखधरी, ढाल-१४. २.पे. नाम. राजिमती कवित, पृ. ७आ, संपूर्ण. राजिमती कवित्त, रा., पद्य, आदि: राजलोक रिष इण वीस पडदा; अंति: मरण एम महाराजरो, गाथा-३. ३. पे. नाम. राजाने धोबीनी कथा, पृ. ७आ, संपूर्ण. राजा और धोबी कथा-दहा, पुहिं., पद्य, आदि: आठ च्यार के काम नाए नीकल; अंति: दरसेके नजीकसे तो नजीकसे, गाथा-२. ४. पे. नाम. हेमाचार्यनै ब्राह्मणे परीक्षा कीधी ते गाथा, पृ. ७आ, संपूर्ण. ब्राह्मण द्वारा हेमाचार्य परीक्षा गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: नगर भमंतो दिठडो केसरि; अंति: पथर तरे सो कहो परमथ, गाथा-१. ५. पे. नाम, आध्यात्मिक फाग, पृ. ७आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अहो वालम घरि फागुण हो; अंति: सिधार्यो धोली भए दोए नेण, गाथा-६. ६. पे. नाम. सम्यक्त्व पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीउडा जिनसरणारी सेवा; अंति: मोहण इण भव मांगे, गाथा-३. ९५६६८.(+) प्रवचनसारोद्धार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८-३(१ से २,५)=५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ५४३४). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६९ तक लिखा है व गाथा-१ से १४ तक तथा गाथा-२९ अपूर्ण से ५४ अपूर्ण तक नहीं है., वि. यही गाथाएँ संग्रहशतक, यतिदिनचर्चा व विचार सार आदि ग्रंथों में भी समाहित हैं.) प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९५६६९ (4) विधि पत्र, संपूर्ण, वि. १७०२, कार्तिक शक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, प. ९, ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. म. (गुरु मु. मेघकलश, खरतरगच्छ); गुपि. मु. मेघकलश (गुरु मु. कुशलकल्लोल, खरतरगच्छ); मु. कुशलकल्लोल (गुरु मु. विमलरंग, खरतरगच्छ); मु. विमलरंग (गुरु मु. साधुमंदिर, खरतरगच्छ); मु. साधुमंदिर (गुरु वा. हर्षधर्म, खरतरगच्छ); वा. हर्षधर्म (गुरु वा. हर्षविशाल, खरतरगच्छ); वा. हर्षविशाल (गुरु आ. कीर्तिरत्नसूरि, खरतरगच्छ); आ. कीर्तिरत्नसूरि (बृहत्खरतरगच्छ); राज्ये भट्टा. जिनरत्नसूरि (बृहत्खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अंतमें २९ विधियों की सूची दी गइ है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २१४६७). विधि संग्रह, मु. शिवनिधान, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रथम सामायिक ग्रहण; अंति: एसा पुण देह पणवीसा. ९५६७०. () कर्मग्रंथ ३ से ५, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-५(१ से ५)=७, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:कर्मग्रंथ, कर्मग्रन्थसू०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १०-१२४४०-४६). १.पे. नाम. बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदिः (-); अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. छयासिअ कर्मग्रंथ सह अवचूरि, पृ. ६आ-१०आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: ___ लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-८५, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ की अवचूरि अपूर्ण से लिखा है.) ३. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ सह अवचूरि, पृ. १०आ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं धुवबंधोदय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५० अपूर्ण तक है.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४२ की अवचूरि अपूर्ण तक लिखा है.) ९५६७१. (+#) भावट्त्रिंशका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. श्रीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, ५४२६-३०). भावछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: क्रिया असुधता कछु नही भाव; अंति: ग्यानसार मतिमन्न, गाथा-३९, संपूर्ण. भावछत्रीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: क्रियानो असुद्धपणो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ९५६७२. (+#) समयसारना प्रस्तावीक दहा सवईया व औपदेशिक सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४५७). १. पे. नाम, समयसारना प्रस्तावीक दूहा सवईया, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: जिन के वचन उर धारत जुगुल; अंति: भगति मृषा दरसनी सेव, गाथा-५९. २.पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. ७आ-१२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पायसको रसको चसको होजु; अंति: करो काज जिको करिव पछे, सवैया-१०७. ९५६७३. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टीका व कल्याणमंदिर स्तोत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)=७, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, २१४४८-६०). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, पृ. २अ-८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १७५९, आश्विन शुक्ल, १२, सोमवार. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६८३, आदि: (-); अंति: आश्रयिष्यते इति भावः, (अपूर्ण, पू.वि. 'महाप्रभावकैः श्रीमानतुंगसूरि' पाठ से है.) २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र की टीका, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. 'पादौ कृत्वा सुप्तोस्ति' पाठ तक है.) ९५६७४. (+#) नारचंद्र जैन ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९००, भाद्रपद शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ११, अन्य. मु. सुगालचंद (गुरु पं. सरुपचंद, खरतरगच्छ, क्षेमशाखा); गुपि.पं. सरुपचंद (गुरु उपा. हितप्रमोद, खरतरगच्छ, क्षेमशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रारंभमें नवग्रह प्रकार व अंतमें दूहा लिखा है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ९४३२). For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १४७ ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति: कन्या० पांच इगतीसां, श्लोक-२९४. ९५६७५ () लीलावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-४(१ से ४)=१३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:लीलावतीचो०., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, २०४४२-५६). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-४१ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ९५६७६. (+) सीलमहिमायां चंदणमलयागरी चतुप्पदी, संपूर्ण, वि. १७७२, आश्विन शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. ग. जिनहस गणि (गुरु मु. सुखलाभ, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चंदनमल०, चंदनमलया. लिखावट अबरखयुक्त है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १७X४८-५४). चंदनमलयागिरि चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: सकल सुरासुर पयकमल सेवै धर; अंति: कहैं जिनहरख०पाटणनयर मझारि, ढाल-२३, गाथा-४०७. ९५६७७. (+) व्याख्यान व पद्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४.५४११, १२४३०-४२). १. पे. नाम. आठबोल मनुष्यभव सफलता, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: देवपूजा१ दया२ दानं३; अंति: अनुक्रमै संसार समुद्र तरइ. २.पे. नाम. व्याख्यान संग्रह-पंचपरमेष्ठी वर्णन, पृ.५आ-७अ, संपूर्ण. ___ व्याख्यान संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: श्रीय कल्याण ऋद्धिसिद्धि. ३. पे. नाम. पांच ददा अक्षर-व्याख्यान, पृ. ७अ-९अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: दानं१ दया२ दमेंद्रीणां३; अंति: (१)पीडा रहित सुख छइ ते पामइ, (२)श्रीकल्याण ऋद्धिसिद्धि.. ४. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. विद्याविलास, पुहिं., पद्य, आदि: मोरी प्रीत लगीय वामा; अंति: विद्याविलास० सिव वालासै, गाथा-४. ५. पे. नाम. जिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-विक्रमपुरमंडन, मु. करमसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: नाभीनंदन प्यारो लागै; अंति: करमसिह० विक्रमपुर राजे, गाथा-५. ६. पे. नाम. तेरह काठीयारा नाम, पृ. ९आ, संपूर्ण. १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आलस १ मोह २ अवन्ना ३; अंति: विषेद११ कत्तूहला१२ रमणा१३. ९५६७८. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९२२, ज्येष्ठ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. कर्मवाटी, प्रले. मु. सरीचंद्र; खुशाल जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सतरभेदीपत्र., दे., (२४.५४११, १२४३४-३८). १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: भाव भले भगवंतनी पूजा; अंति: साधुकीरत० सुख साजै, ढाल-१७. ९५६७९ (#) एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२४४१०.५, १०x२२-२६). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्या रे; अंति: गावे कांति सुख पामै घणो, ढाल-३, गाथा-२३. ९५६८० (+) पवनंजय चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१(५)+१(१०)=१२, प्र.वि. हुंडी:पवन चौपई., संशोधित., जैदे., (२५४१०, १७X४२-४६). For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अंजनासुंदरी चौपाई, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७०६, आदि: करतां सगली साधना; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-२, ढाल-६ गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.) ९५६८१ (क) मृगावती चरित्र, अपूर्ण, वि. १७४९, कार्तिक कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. १९-१२(१ से ४,७ से १४)=७, ले.स्थल. फलोदी, प्रले. सा. हीरा आर्या (गुरु सा. राजा आर्या); गुपि. सा. राजा आर्या (गुरु सा. मया आर्या); सा. मया आर्या (गुरु सा. रूपा आर्या); सा. रूपा आर्या (गुरु सा. नोरंगदे); सा. नोरंगदे, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:मृगावती., संशोधित., जैदे., (२५४१०,१६-१८४४४-५२). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: (-); अंति: वृद्धि सुजगीसा, खंड-३, गाथा-७४४, ग्रं. ११००, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., खंड-३, ढाल-८ दोहा-६ अपूर्ण से है.) ९५६८२ (+) जंबूद्वीपादि परिधि आणवानी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ६४५४-५६). जंबूद्वीपादि परिधि परिमाण, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ९५६८३. उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-२(२ से ३)=१३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उपदेशमा०., जैदे., (२५४१०, ६x४८-५०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से ३८ अपूर्ण तक व गाथा-२१२ अपूर्ण से नहीं है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जगत्रइ विषइ चूडामणि आभरण; अंति: (-). ९५६८४. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-६(१ से ६)=१४, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, ११४३५-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ गाथा-९ अपूर्ण से ___अध्ययन-८ तक है.) ९५६८५ (#) चोवीस तीर्थंकर स्तवन व चउसरण प्रकीर्ण, संपूर्ण, वि. १८वी-१९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ५४३८-४२). १.पे. नाम. चोवीस तीर्थंकर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी हुई है. २४ जिन स्तवन, मु. क्षेमकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव; अंति: फल पावै वलस्यै खेमकल्याण, गाथा-५. २.पे. नाम. चउसरण प्रकीर्ण सह टबार्थ, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (वि. १७६७, आश्विन कृष्ण, १, ले.स्थल. वीरमग्राम, प्रले. मु. रूपा ऋषि (गुरु मु. देवजी ऋषि); गुपि. मु. देवजी ऋषि (गुरु मु. तेजसिंह ऋषि); पठ. सा. गुलाल आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावध व्यापार त्यागरुप; अंति: भणी नित्य चतुःशरण करवउं, (वि. १८०३, चैत्र अधिकमास शुक्ल, ३, गुरुवार, ले.स्थल. वडग्राम, प्रले. मु. कुंअररुचि; गुभा. मु. रंगरूचि (गुरु पं. दयारूचि गणि); गुपि. पं. दयारूचि गणि (गुरु मु. अमरचंद), प्र.ले.पु. सामान्य) ९५६८६. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ४४४०-४२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, वा. चारित्रचंद्र गणि, सं., गद्य, वि. १७५२, आदि: अहं शांतिसूरिः किंचित; अंति: बोध्यै वाचकचारित्रचंद्रेण. ९५६८७.(+) गोडीपार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि.२०वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, ११-१२४२६-३०). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. रूप, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन मझ ततसारं; अंति: परि धर जयवंत गवडीधणी, गाथा-११२. For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १४९ ९५६८८ (#) नव्यक्षेत्रसमास सह अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४८-४१(१ से ४१)=७, प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ५४४८-५२). बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३७३, आदिः (-); अंति: सोहेयव्वो सुअहरेहिं, गाथा-३८९, (पू.वि. गाथा-३१५ अपूर्ण से है.) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: स्वपरार्थमेताम्. ९५६८९ (+#) त्रिशलामाता चौद स्वप्न वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, ११४३४-३८). १४ स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तीसला नामा क्षत्रियाणी; अंति: चउदै सुप्ना देखीनै जागै. ९५६९० (+) कल्याणाराधना सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-६(१ से ६)=५, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, ४४३०-३२). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, ग्रं. २४५, (पू.वि. गाथा-३८ अपूर्ण से है.) पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: ते शाश्वतां सुख पामइ. ९५६९१. नागकेतु आदि कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ४, दे., (२४४११, १०४२७-३०). १.पे. नाम. नागकेतुरी कथा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नागकेतु कथा, मा.गु., गद्य, आदि: चंद्रकांती नगरीनै विषै; अंति: पछै नागकेतु मोक्ष पहुंतो. २. पे. नाम. ऋषिपंचमी कथा, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: पुष्पवती नगरीने विषै; अंति: पछै भली गतिमांहि गया. ३. पे. नाम. नवकार उपर शीवकुमार की कथा, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. शिवकुमार कथा-नमस्कार महामंत्र विषये, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्विपे भरतखेत्रे रतन; अंति: नवकारमंत्ररो प्रभाव जाणनौ. ४. पे. नाम. जिनदास श्रावक कथा-नवकार प्रभाव बिजोराफल प्रदान, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जिनदासश्रावक कथा-नवकारप्रभाव बिजोराफलप्रदाने, मा.गु., गद्य, आदि: पोतनपुर नगर तिहां एक नदी; अंति: (-), (पू.वि. व्यंतरदेव द्वारा जिनदास को बिजोरा देने प्रसंग तक हैं.) ९५६९२. नवपदमहिमा दृष्टांत कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४११, १५४३७-४४). नवपदमहिमा दृष्टांत कथा, मु. प्रेमविशाल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवता अणहुं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१२, गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ९५६९३. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, ३४३६-४०). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से ३८ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९५६९४. (+) राजा हरचंद चौपाई, संपूर्ण, वि. १६९७, माघ, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, २०४५२-५६). हरिश्चंद्रराजा रास, म. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६७९, आदि: शभ मति आपो सारदा; अंति: बोलेइ हो लालचंद आणंद, ढाल-३८,ग्रं.८०८. ९५६९५ (+#) कुमती उथापण चरचा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १३४२४-३०). कमतिउत्थापन चर्चा, पुहिं., गद्य, आदि: मनोमती झठी प्ररुपणा; अंति: (-), (पू.वि. भगवान महावीर के लिए रेवती श्राविका के घर से बीजोरा पाक प्रसंग अपूर्ण तक हैं.) For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५६९६. (+) सदैववच्छलसावलिंगा चौपाई, अपर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २५-१३(१ से १०,१२,१४ से १५)=१२, प.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४२९-३३). __ सदैववच्छलसावलिंगा वार्ता, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से २०२ अपूर्ण तक हैं. बीच का पाठांश नहीं हैं.) ९५६९७. (+) समेताचल महातीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, प्रले. ग. जयविजय पंडित (गुरु उपा. कल्याणविजय गणि*, तपागच्छ); गुपि. उपा. कल्याणविजय गणि* (गुरु आ. हीरसूरि *, तपागच्छ); पठ. श्रावि. नागबाई पावजी; अन्य. श्रावि. विमलादेवि पावजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १३४३६-४०). सम्मेतशिखर तीर्थमाला, ग. जयविजय पंडित, मा.गु., पद्य, वि. १६१४, आदि: प्रणमिअ सुहगुरुतणा पाय; अंति: जयजंपई सुष अनंत सो पावइ, गाथा-८६.. ९५६९८. (+) वंदित्तुसूत्र सह विवरण+कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, प्र.वि. हुंडी;षडा०सू०., संशोधित., दे., (२५४११, ९-१०x२८-३०). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२० से २१ तक हैं.) वंदित्तुसूत्र-विवरण+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९५६९९ (+) पर्यांताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२५, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. वटपल्ली , प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४१०, ६४३८). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, ग्रं. २४५. पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर नमस्करी; अंति: सुख मुक्ति जावै. ९५७०१ (+) कर्मग्रंथ १ से ५, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३-१(१)=३२, कुल पे. ५, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. अमृतवल्लभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०, ५४३२-३४). १.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१ सह टबार्थ, पृ. २अ-८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. अमृतवल्लभ, प्र.ले.पु. सामान्य. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदिः (-); अंति: लिहिओ देविंदसरिहिं, गाथा-६१, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: देवेंद्रसूरि आचार्ये. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, पृ. ८अ-१२अ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, पृ. १२अ-१५अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षड्शीत नव्य कर्मग्रंथ-४, पृ. १५अ-२४आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, पृ. २४आ-३३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८३ अपूर्ण तक है.) ९५७०२. (+#) विक्रमसेन राजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८५४, वैशाख शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ४२, ले.स्थल. देवरीया नगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३४-४५). विक्रमसेनराजा चौपाई, म. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखेश्वरो; अंति: मानसागर० दिन दोलत पाइजी, ढाल-५२, गाथा-११६२, ग्रं. १६२४. For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १५१ ९५७०३. (+३) नलदमयंति चरित्र, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३४, प्र. वि. हुंडी नलदव, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२४.५४१०.५, १५४३८-४२). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १६७३, आदि सीमंधरस्वामी प्रमुख अंतिः समवसुंदर ० चित्तवसी, खंड-६ डाल ३९. गाथा- ९३१ नं. १३५०. , ९५७०४ (+) बच्छराजहंसराज चौपाई, संपूर्ण वि. १७८९ कार्तिक शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २७, पठ सा सजनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १२००, जैदे. (२४४१०, १५४४५-५०) "" हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य वि. १६८०, आदि आदिसर आदे करी चोवीसे अंतिः ए हंस अनै वच्छराज, खंड-४ ढाल ४८, गाथा-९०५. १५७०६. (+) सुरसुंदरी चौपाई, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २१, प्रले. मु. गोविद (गुरु पं. रामविजय); गुपि. पं. रामविजय (गुरु मु. सुमतिविजय); मु. सुमतिविजय (गुरु पं. रुपविजय); पं. रुपविजय (गुरु ग. देवेंद्रविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ९००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x९.५, १६X३५-४१). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि सासण जेहनी सलहीये आज, अंति: आणंद लील उमंगे जी, खंड ४ ढाल ४०, गाथा - ६१३. १५७०७ (+) भरटकद्वात्रिंशिका, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. २८. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरत्न, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: देवदेवं नमस्कृत्य; अंति: कांई क्रय विक्रय न कीजि, (वि. कुछ कथाओं के अर्थ भी दिये गए हैं.) ९५७०८. (#) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १७८६, आश्विन कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६२, ले. स्थल. पत्तननगर (पाटण), प्रले. त्रंबक गणेश पंड्या; लिख. श्राव. रतनजी तलकसी साहा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे. (२४.५४९.५, १९४४७). , 5 श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य वि. १७३८ आदि कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४ ढाल ४१, गाथा- १८२५. , ९५७० (+) मानतुंगमानवती चौपाई मृषावादविरमणाधिकारे, संपूर्ण वि. १८२९ श्रावण कृष्ण, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. २७, ले. स्थल. झांझणवास, प्रले. पं. क्षमाधर्म गुरु ग. रत्नविमल): गुपि. ग. रत्नविमल अन्य पं. क्षमाधीर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२४४१०, १७४५२). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल ४७, गाथा- १०१५. ९५७११. मानवतीमानतुंगचतुपदी, संपूर्ण वि. १८२२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल वगडीनगर, प्रले. पं. दलीचंद प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X११, १३×३८-४२). मानतुंगमानवती रास, उपा. अभवसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणम् माता सरसती; अति भेद मतिमंदिर लहे, ढाल- १४. ९५७१४. (+) अंबड कथानक, अपूर्ण, वि. १७१३, आश्विन शुक्ल, ८, जीर्ण, पृ. ३४- १ (१) = ३३, ले. स्थल. बुर्हानपुर, प्रले. मु. लधराज (गुरु पं. लक्ष्मीविजय); गुपि. पं. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५X११, १५X३९-४१ ). अंबड चरित्र, आ. मुनिरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: तावद्वाच्यमानं बुधैः, आदेश- ७, श्लोक-१२२०, ग्रं. १११६, (पू.वि. श्लोक - १९ अपूर्ण से है . ) ९५७१५. (+#) श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, पठ. श्रावि. रेखाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x१०.५, १०३२). " श्रावकसंक्षिप्त अतिचार, संबद्ध, मा.गु., प+ग, आदि: नाणंमि दंसणंमि चरणंमि, अंति: साखि मिच्छामि दुक्कडं. For Private and Personal Use Only , Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५७१६ (+) नवतत्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, ९-१०४३०-३६). नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुन्नं३; अंति: सन्नि पज्जत्ते, गाथा-१०६. ९५७१७. (+) स्तुति चौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४४२). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधकतरण; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६, संपूर्ण. ९५७१८. (+) आलोचना विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:आलोवणोविधि., संशोधित., जैदे., (२४४९.५, १५४४०). आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम मुहूर्तं; अंति: सहस्र सज्झाइं उपवास. ९५७१९ सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, जैदे., (२४.५४१०.५, ९४३३). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५, ग्रं. १८८.. ९५७२० (+) विमलमंत्री, शालिभद्र व नेमिनाथजी सिलोको, संपूर्ण, वि. १८४१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. ३, ले.स्थल. खेजडला, प्रले.पं. निहालचंद; पठ. मु. माहसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (३०५) अदृष्ट दोषान् मति विभ्रमाच्च, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४०). १.पे. नाम. विमलमंत्री शलोको, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. विमलमंत्री रास, पंडित. शांतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामण बे करजोडी; अंति: शांतिविमल गुण गायो, गाथा-१११. २. पे. नाम. शालिभद्रजी शलोको, पृ. ६अ-१४अ, संपूर्ण. शालिभद्रधन्नाजी शलोको, मु. सिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: सरसति साम्मण समरु; अंति: राजे सिंहमुनि गाया, गाथा-१४७. ३.पे. नाम. नेमराजिमती शलोको, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती श्लोक, मु. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: समरु गणपतिनै सारिद; अंति: कुसल० कैरू मैं हरखे, गाथा-२०. ९५७२१ (+#) देवराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १९-२३४५२-६०). देवराजवच्छराज चौपाई, ग. कनकविलास, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: प्रहसमि पणम पेम धरि पास; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. ढाल-४६ की गाथा-२२ रचना प्रशस्ति अपूर्ण तक है.) ९५७२२. (+#) सिंदरप्रकराख्यसोमशतकं, संपूर्ण, वि. १८४०, ज्येष्ठ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. वावडीग्राम, पठ. पं. हितप्रमोद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रकरण, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४४१-४४). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. ९५७२४. (4) भक्तामर स्तोत्र सह बालाबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १४४३८-४२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: लक्ष्मी स्वयंवर वरइ. For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १५३ ९५७२५. (+) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८४०, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. काला ऊना, प्रले. पं. धर्मरूपमुनि; पठ. पं. निहालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, १२-१४४३०-३३). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१८६. ९५७२६. (+#) नवस्मरण व लघशांति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १५४४२-४७). १. पे. नाम, नवस्मरण, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: अचीरान्मोक्षप्रतिपद्यते, स्मरण-९. २. पे. नाम, लघुशांति, पृ. ९आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: श्रीमानदेव० शासनम्, श्लोक-१९. ९५७२७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी;उत्तरा., संशोधित., दे., (२४४१०, १८४३०-३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१३ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ९५७२८. (4) पार्श्वजिनबृहत्सहस्त्रनाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. द्विपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १०४३८-४५). पार्श्वजिनसहस्रनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पार्श्वः पातु नतांगि; अंति: मुच्यते नात्र संशयः, श्लोक-१५४. ९५७२९ (+) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १८०६, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. बाहडमेर, प्रले. मु. गुप्तिधर्म (गुरु मु. क्षमाधर्म, खरतरगच्छ); गुपि. मु. क्षमाधर्म (गुरु मु. रत्नविमल, खरतरगच्छ); मु. रत्नविमल (गुरु ग. कनकसागर, खरतरगच्छ); ग. कनकसागर (गुरु ग. धर्मकल्याण, खरतरगच्छ); ग. धर्मकल्याण (गुरु ग. कमलसौभाग्य, खरतरगच्छ); ग. कमलसौभाग्य (गुरु ग. कनकविलास, खरतरगच्छ); ग. कनकविलास (गुरु उपा. कनककुमार, खरतरगच्छ); उपा. कनककुमार (गुरु उपा. सुमतिसुंदर, खरतरगच्छ); उपा. सुमतिसुंदर (गुरु उपा. मतिकीर्ति, खरतरगच्छ); उपा. मतिकीर्ति (गुरु पं. गुणविनय गणि, खरतरगच्छ); अन्य. श्राव. मानसिंघ साह; श्रावि. चतुरा; सा. रूपा, प्र.ले.प. अतिविस्तृत, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११,१५४४२). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: एके भावना भावयंति. ९५७३० (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र व घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०, १०४३३). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, पठ. मु. सरीचंद (गुरु आ. देवीचंद); गुपि. आ. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २. पे. नाम, भवानी वाक्य, पृ. ५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: बारां मास वीडोतरौ प्रभू; अंति: तुलसी केसे० दुसमन पांच, गाथा-३. ३. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीर मंत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण. __घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ४. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र की विधि, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र-विधि, मा.गु., गद्य, आदि: वार १०८ सदा समरीजै सुख; अंति: पढी लाइ लागी होइ० उपसमै. ५. पे. नाम, मंत्र संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐअट्टी मट्टी सर्व पिशन; अंति: मन वांछित सर्व सिद्धि थाय. For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५४ www.kobatirth.org 2 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९५७३१. (+) जीवविचार प्रकरण, नवतत्व प्रकरण, विचारषट्त्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ९, कुल पे, ३, प्रले. मु. भोगा (गुरु पं. माणिक्यमेरु); गुपि. पं. माणिक्यमेरु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५x११, ९-११४३३). " १. पे नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी जिवविसार. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम. नवतत्वप्रकरण, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : नवतत्त्व. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा अति अणागवद्धा अनंतगुणा, गाथा ५०. ३. पे नाम. विचारषट्त्रिंशिका, पृ. ६आ- ९अ, संपूर्ण, दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ गाथा ४१. ९५७३२. (*) अष्टमीवाचना सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैये. (२४४१०, १५X४१-४५). स्थविरावली हिस्सा, प्रा. प+ग, आदि तेणं कालेणं तेणं समए अंति: (-). स्थविरावली खालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (१) अर्हत भगवंत उत्पन्न, (२) तिणि कालि तिणइ समइ नइ; अति श्री आर्य संडिल्लसूरि ९५७३३ (२) विद्याविलासनरिद चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. २१, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए। हैं. जैवे. (२५.५x१०.५, १३४३४-३६). विद्याविलास चरित्र, उपा. आज्ञासुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५१६, आदि गोयम गणहर पय नमी; अंति: प्रभाव मनोरथ फलइ, गाथा - ३५८. ९५७३४. (मैं) दशवैकालिकसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. २७-२१ (१ से १९,२५ से २६) =६, प्र. वि. पंचपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ टीकादि का अंश नष्ट है, जैये. (२४.५x१०. ८-१२x२८-३३), दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन-६, गाथा ५६ अपूर्ण से अध्ययन- ९, गाथा ४ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ९५७३५. (*) मंगलकलश चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १९, प्र. वि. हुंडी : मंगलकलशचोपई, संशोधित, जैदे., (२३.५X१०, १४X३१-३५). मंगलकलश चौपाई, उपा. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि प्रणमुं चौवीस जिनवर अंतिः रतनविमल० शिवगांमीजी, ढाल -२६. ९५७३६. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५४ १३८ (१ से १३८) = १६, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X१०, ७-१३X३६-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा. गद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ३५० काश्यप गोत्रीय श्रमणों को वाचना देने के प्रसंग अपूर्ण से समाचारी "किटित्ता आराहिता आणाए अणुपालिता अत्थे" पाठ तक है.) For Private and Personal Use Only कल्पसूत्र - टबार्थ + कथा, मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति (-). पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ९५७३७. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १०-५ (१ से ५ ) =५. पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित, जै.. " (२५X१०.५, ११४३८-४५). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अति (-) (पू.वि. श्रुत. १ अध्ययन १ सूत्र १२ अपूर्ण से १३ अपूर्ण तक है.) Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९५७३९ पार्श्वजिन स्तुति, महावीरजिन चैत्यवंदन व मांगलिक श्लोकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८६०, आश्विन शुक्ल, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७-१(३)=६, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०, ३४३०-३४). १.पे. नाम, मांगलिक श्लोक संग्रह सह टबार्थ, पृ. १अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: देवपूजादयादानं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ तक हैं.) औपदेशिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दया पालवी दांन देवो मेघ; अंति: (-). २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. ४अ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीपार्श्वजिनेस्वरम्, श्लोक-१९, (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण से है.) पार्श्वजिन स्तति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः सदामंगलीकना करणहार. ३. पे. नाम, व्याख्यान पीठिका, पृ. ७आ, संपूर्ण. मा.ग.,सं., प+ग., आदि: (१)जयई जगजीव जोअणी, (२)परिम चरमाण कप्पो मंगलं; अंति: जदी युं कहेने पूरो करणो. ९५७४० (+) शांतिस्नात्रादि विधिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी;स्नात्रवि०. अंत में ले.सं.१४४० आषाढ शुक्ल अष्टमी का उल्लेख है किंतु लिखावट से प्रत १७वी की प्रतीत होती है अतः उक्त वर्ष में लिखित प्रत की प्रतिलिपि होनी चाहिए., संशोधित., जैदे., (२५४१०, १७४४२-४६). १.पे. नाम, वृद्धस्नात्र विधि, पृ. २अ-६अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. स्नात्रविधिपंजिका, आ. शांतिसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: विसर्जनं क्रियते, पर्व-५, (पू.वि. पर्व-१ अपूर्ण से हैं.) २.पे. नाम. अष्टाह्निका स्नात्रविधि, पृ. ६अ-८अ, संपूर्ण, ले.स्थल. महिमावती, पठ.पं. ज्ञानसुंदर; पं. धर्मप्रमोद; म्. धर्मरत्न (गुरु ग. कल्याणधीर वाचक, खरतरगच्छ); प्रले.ग. कल्याणधीर वाचक (गुरु ग. माणिक्यमंदिर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम. सं., प+ग., आदि: सच पखावलि प्रक्षेपछत्र; अंति: प्रकर्षा अष्टान्हिका. ३. पे. नाम. शांतिपर्व विधि, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: एवमष्टान्हिकासु संपर्णा; अंति: चेयुरिति शांतिपर्व विधि. ९५७४१. कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिका टीका- वाचना-१, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४७-५०). कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. ४१०९, (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., "विरावलिंबाचयंति अयं द्वितीयोधिकारः पश्चात् चरित्र" पाठ से है.) ९५७४२. (+) संजयानियंठा बोल, संपूर्ण, वि. १९१५, माघ कृष्ण, ३०, बुधवार, मध्यम, पृ.६, गृही. सा. अमरसीजी सामि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संजया, प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., दे., (२६४११, ११-१४४३६-३८). भगवतीसूत्र-शतक २५ उद्देश ६गत संजया विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणा १ वेयरागे; अंति: सामायकना संखेज गुणा, द्वार-३६. ९५७४३ (+) सिद्धांतोक्त विचार-प्रतिक्रणविधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पठ. श्रावि. तेजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२५४१०, १३४३९-४७). प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पडिक्कमणानउ पहिलउ बीज; अंति: निजंतणत्थं मुणी बिंति. ९५७४४. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ८, दे., (२५४११, १३-१५४३८-४२). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय- श्रावकाचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- वैराग, मु. हेमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु थकि डरि डगला भरिए; अंति: हेमचंद कहे कारज सारो रे, गाथा-३१. २. पे. नाम. तेर काठिया सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आलस पेलो काठियो धर्म; अंति: साधु धन्य तेह विचारो, गाथा-७. ३.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, प. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: माधुकुलनो मोडवो अलबेला; अंति: मुगति गया गिरनार रे, गाथा-३९. ४. पे. नाम. शालिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आ. विजयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शालिभद्रकेरि बे नारि; अंति: सूरिविजय० सिवपद विलसे सार, गाथा-२५. ५. पे. नाम. बार व्रत सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. १२ व्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर पाय नमीजे; अंति: मुगति तणा मुगता फल लेसे, गाथा-१५. ६.पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. मु. सिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि वीनवू; अंति: मुजने साधु- सरण, गाथा-१९. ७. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. ४-५अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. मु. सिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि वीनवू; अंति: मुजने साधुनुं सरण, गाथा-१५. ८. पे. नाम. वीस नारी सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-२० नारी उपदेश, मु. भोज, मा.गु., पद्य, आदि: महापुरुषनो उछव मांडो रचना; अंति: भोज० तुम्हे कीरत आव्यो रे, गाथा-२१. ९५७४५ (#) भक्तामर स्तोत्र सह अवचूरि व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ४, प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ३-५४५२-५६). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, प्रले. ग. रविविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___अपूर्ण., श्लोक-४१ तक लिखा है. श्लोक-३५ अपूर्ण से श्लोक-३८ अपूर्ण तक पुनः लिखा है.) भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमानंद; अंति: न महत्तरमित्यर्थं, संपूर्ण. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. बृहच्छांति मेघदतयोः पादपूर्तिः, सं., पद्य, आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: पक्वबिंबाधरा श्रीः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पर्युषण स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण.. ___ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासनपति सोहे साचो; अंति: इदेवी पुरो मनह जगीश, गाथा-४. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. पं. मणिविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र सदा भवि; अंति: मणिविजय सुखकारीजी, गाथा-४. ९५७४६. (#) दंडकना ३० बोल बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-९(१ से ९)=९, प्रले. पं. राजप्रमोदगणि (गुरु आ. जिनराजसूरि); गुपि. आ. जिनराजसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १५४३४-३८). प्रकरण-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: ब्रह्मदत्तनो० लांब बोल, (प.वि. "विमाननइ १६००० सहस देवता ऊपाडइ छइ" पाठ से है.) ९५७४७. (+) आराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.६, प्र.वि. हुंडी;आराधना पत्र., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ६४३३-३६). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: सोम० ते सासयं सुक्खं, गाथा-६७, ग्रं. २४५. पर्यंताराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीनमीने शिष्य पूछई छइ; अंति: सास्वता सुखनी श्रेणी पामै. ९५७४८.(+#) जंबूद्वीपसंघ्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८७७, पौष शुक्ल, २, शनिवार, मध्यम, पृ. १५-९(१ से ९)=६, प्रले. मु. तिलकमेरु, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजी प्रसादात्, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ३४३४-३६). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०, संपूर्ण. लघसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी सर्वज्ञ; अंति: श्रीहरिभद्रसूरीइ कृतं, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९५७४९. (#) ढोलामारु चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. हुंडी, ढोलारा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १०x४१-५२). ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि सकल सुरासुर सामिनी अंति: (-), गाथा-७००, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १४८ तक लिखा है.) २५७५० (+०) विक्रमसेनकनकावती रास- शीलविषये संपूर्ण वि. १८२१ आषाढ कृष्ण, ४. शुक्रवार, मध्यम, पृ. २४, ले. स्थल. विजेवानगर, प्र. वि. हुंडी कनकावतीरा, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ८९० अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x१०.५, १४४४८-५२). कनकावती रास-शीलविषये, पं. कांतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: सकल समीहित पूरवइ; अति परि मंगलमाल हो राजि, ढाल ४१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९५७५१. (+#) सप्तस्मरण आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२४.५४१०, १३४४२-४५). १. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. सप्तस्मरण खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि अजिअं जिअ सव्वभयं अंति: नमामि साहम्मिया तेवि, स्मरण - ७, (वि. अंत में उवसग्गहर स्तोत्र की मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) २. पे नाम. शांतिस्तव, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत अति सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. ३. पे. नाम. सत्तरिसय यंत्र, पृ. ८अ - ८आ, संपूर्ण. १५७ , तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि तिजयपहुत्तयासं अद्रुमः अति नियंतं निच्चमच्चेह, गाथा १४. ४. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ८आ- १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमीलि अंति (-), (पू.वि. श्लोक-४१ अपूर्ण तक है.) ९५७५२. (+#) सदैववच्छलसावलिंगा वार्ता व अच्युताष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्रले. पं. हितविजय गणि; अन्य. पंडित. बालम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४३१). १. पे. नाम सदैवछलसावलिंगा वार्ता, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण सदैववच्छलसावलिंगा वार्ता, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसगति पाय लागी; अंति: चंदकुं हूं नित वंदू तूझ २. पे. नाम. अच्युताष्टक, पृ. ९आ, संपूर्ण. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: अच्युतं केशवं रामनार, अंति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा- २ अपूर्ण .. तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only ९५७५३. (*) रात्रिभोजन चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६३, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १९, ले. स्थल. गांवपी, प्र. वि. हुंडी रात्रीभो. चो. संशोधित., जैदे., (२३.५X१०, १२X३८-४२). रात्रिभोजन चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: सुबुद्धि लबधि नवनिधि सदा; अंति: संघ सकल चित्तनंदजी, दाल- २४, गाथा- ४०५. ९५७५४. (*) ज्ञानसागरसूरिजीरी बावनी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४४१०, १५४४२-४५) कवित्तबावनी, आ. ज्ञानसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि ॐकार अपारपार परमेस्वर, अंति कहड़ वरन सबै मंगलकरन, गाथा-५५. ९५७५५. (*) धर्म तपादि बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैये. (२४४१०, १८-२६X६२-६८). बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: धर्म किम जीव पामै तिवारै; अंति: (-), (पू.वि. "अनित्य पर्याय आश्री" पाठ तक है.) Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५७५६ (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-१०(१ से ९,१२)=१८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, ११४२८-३३). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-१५९ अपूर्ण से १९६ अपूर्ण तक व २१५ अपूर्ण से ५०८ अपूर्ण तक है.) ९५७५७. (+) इलाचीकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)-६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, १२४३५-३८). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., ढाल-१ गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-११ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ९५७५८. (+) कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १८३८, फाल्गुन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १५-९(१ से ९)=६, ले.स्थल. उदासर, प्रले. राजकुमार; पठ. पं. नेणचंद्र; गृही. श्राव. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कालिकाचा., संशोधित., जैदे., (२५४१०, १३४३८-४२). कालिकाचार्य कथा, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: आज्ञा श्रीसंघ प्रवत्तौं, (पू.वि. मालवदेश में आगमन प्रसंग अपूर्ण से है.) ९५७५९. प्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १८१०, वैशाख कृष्ण, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, ले.स्थल. दादरी, प्रले. मु. जोधसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १२-१३४३२-३४). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: सुहायसा अवसया पसत्था, (पू.वि. प्रारंभिक चैत्यवंदन अपूर्ण से है.) ९५७६०. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७९३, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. १०, प्रले. श्राव. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०, १३-१५४३५-३८). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अ तित्थे; अंति: सयं जेसिं सुअसायरे सत्ति. ९५७६१ (+#) ढोलामारवण चौपाई, अपूर्ण, वि. १७८२, ज्येष्ठ शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. २६-१०(११ से २०)=१६, ले.स्थल. बहलवा, प्रले. मु. माणिक्यवल्लभ (गुरु ग. उदयसोम, बृहत्खरतरगच्छ क्षेमशाखा); गुपि. ग. उदयसोम (गुरु ग. जससोम, बृहत्खरतरगच्छ क्षेमशाखा); ग. जससोम (गुरु ग. कनकप्रिय, बृहत्खरतरगच्छ क्षेमशाखा); ग. कनकप्रिय (गुरु ग. लक्ष्मीसमुद्र, बृहत्खरतरगच्छ क्षेमशाखा); ग. लक्ष्मीसमुद्र (गुरु वा. सोमहर्ष, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:ढोलामारू., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०, १४४३८-४२). ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सकल सुरासुर सामिणी; अंति: नित फलइ __मनोरथमाल, गाथा-७००, (पू.वि. गाथा-२५४ अपूर्ण से गाथा-५५६ अपूर्ण तक नही है.) ९५७६२. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८५-७८(१ से ७६,७८,८४)=७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४१०, ७X३४-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थविरावली का पाठ हिअस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ से सुप्पडिबुद्धाणं कोडियकाकं पाठ तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९५७६३. (+#) पुप्फमाला प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-१(१)=१७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १४४३८-४२). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: सया सुहत्थिहिं, द्वार-२०, गाथा-५०५, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) ९५७६४. (+#) मुनिपति चरित्र, संपूर्ण, वि. १६३८, वैशाख शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. हुंडी:मुनिपतिचरित्र., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४.५४१०, १७X४२-४८). मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११७२, आदि: नमिऊण महावीरं चउव्वि; अंति: (१)चरिए रइए संखेवओ महत्थमि, (२)छच्चसया चेव चउपन्ना, गाथा-६५४. For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १५९ ९५७६५ (+) पाखीसूत्र, संपूर्ण वि. १६१७ कार्तिक शुक्ल, १४, मध्यम, पू. ९ प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १४X३७). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्थंकरे अतित्वे अति: खामणयं तहचोरो छोभवदणयं. ९५७६६ (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८६६, मार्गशीर्ष, मध्यम, पृ. २०, ले. स्थल. बीकानेर, दत्त. पं. बालचंद्र; गृही. मु. सुमतिवर्द्धन; अन्य श्राव. भवानीदास साह बरदिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२४.५x१०, १४X३८-४४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठे; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन- १० चूलिका २. 1 ९५७६७. व्याख्यानश्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २४.५X१०.५, १३x४५-५२). व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु., सं., पद्य, आदि: दानं दुर्गतिनासाय शीलं; अंति: (-), (पू.वि. "पून्यविहूणा न पावंति" पाठांश तक है.) ९५७६८ (+४) नवतत्त्वसूत्र प्रकरण व जीवविचारसूत्र, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. वल्लभहंस पठ. मु. वखतमल्ल (गुरु ग. कृष्णहंस); गुपि. ग. कृष्णहंस (गुरु आ. ललितहंस); आ. ललितहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५x११, १४४३२). १. पे नाम. नवतत्त्वसूत्र प्रकरण, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: नवतत्त्व. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं अंति: क्क१४ णिक्काय१५, गाथा ४८. २. पे. नाम. जीवविचारसूत्र, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : जीवविचार. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवणपईव वीरं नमिऊण अति रूदाउ सुय समुदाओ, " " गाथा - ५१. " ९५७६९ (*) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पू. ७. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२४.५x१०, ५X४२-४६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि अति: (-). (पू.वि. श्लोक-४४ अपूर्ण तक है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण मंगलीक तेहनु मंदिर; अंति: (-). ९५७७० (+४) प्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे ४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x११. १३४३२). "" १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसुत्र, पृ. १आ - ९आ, संपूर्ण, वि. १८७७, भाद्रपद शुक्ल, १४. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि; अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धि. २. पे नाम नेमिजिन स्तुति, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपस्त्रिदश; अंति: कुसलं धीमतां सावधाना, गाथा-४. ३. पे नाम शातिजिन स्तवन, पृ. १०अ संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन- जालोर मंडण, आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि जालोर मंडण सांति अंति: लक्ष्मीसूरि० सुखकरै, गाथा-१४, (वि. गाथाक्रम न होने से अनुमानित दिया है.) ४. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-शत्रुंजय मंडण, आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सेतुंजा मंडन श्रीजिनराय; अति: कहे संघनी पूरो आस, गाथा-४. ९५७७१. (+) नवतत्त्व सह वालाबोध, अपूर्ण, वि. १७७४ श्रावण कृष्ण, ७, मध्यम, पू. १५-१ (१) = १४, ले. स्थल, रोहिटनगर, प्र. मु. धनजी ऋषि, पठ. सा. केसर आर्या (गुरु सा. धारावे आर्या); गुपि. सा. धारावे आर्या (गुरु सा खेतल आर्या); .दामाजी ऋषि); मु. दामाजी ऋषि, अन्य. मु. तिलोकसौभाग्वजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी: नवतत्त्व बाला. संशोधित, जैवे. (२४.५x१०.५, १९x४२-४८). मु. . मनोहरजी ऋषि (गुरु मु. " For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा- ४६, ( पू. वि. गाथा-४ से है. ) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अर्द्धमांहि मोक्ष जाई. ९५७७२. (*) अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८८६, चैत्र कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. जिनेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४११, १२x२८-३६). " ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य वि. १८२१, आदि अजर अमर अकलंक जे अंति: यांति मोक्षं हि वीरा, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाल-९, गाथा- ७७. ९५७७३ (+) पाक्षिकखामणा, संपूर्ण, वि. १९०१ फाल्गुन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. हुंडी : पाखी, संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२५x११. ११४२४-३४). " पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा. प+ग, आदि तित्यंकरे य तित्थे; अंतिः नित्थारगपारगाहोह. ९५७७४. (+#) सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-५ (१ से ५) = १०, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X१०, १०X२५-३० ). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: नमामि साहम्मिया तेवि, स्मरण- ७, (पू.वि. बृहत् अजितशांति नहीं है.) ९५७७५ (+) स्तुतिचतुर्विंशतिका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी सोभन स्तुति., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४१०, ९-१०X२८-३२). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति (-), (पू. वि. शांतिजिन स्तुति गाथा -४ अपूर्ण तक है.) ९५७७६. (*) नवस्मरण, लघुशांति व जिनपंजर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १०-२ (६ से ७) ८, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५४१०, १३४४२-४६) " १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ - ९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम् अति: जैन जयति शासनम्, स्मरण-९, (पू.वि. भक्तामर स्तोत्र श्लोक ५ अपूर्ण से ४२ अपूर्ण तक नही है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. 1 आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत अंति: (१) सूरि श्रीमानदेवस्य (२) जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. पे. नाम जिनपंजर स्तोत्र, पू. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अह, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) ९५७७७. आदिजिन स्तोत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२५४१०.५, १४४४०-४४). आदिजिन स्तोत्र, सं., पद्म, आदि: श्रीनाभिवंश नलिनैक, अति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२ तक है.) आदिजिन स्तोत्र वालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि ते श्रीआदिनाथ तुम्हे रहइ अति (-) (पू.वि. श्लोक-१२ के बालावबोध अपूर्ण से है.) ९५७८२, (१०) सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८०-६८ (२ से ६८ ) = १२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५.५४११, २१४५४) सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, ग. क्षेमंकर, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि (-); अति (-), (पू.वि. बीच-बीच की कथा मिलती हैं., वि. पाठ में सामान्य अंतर है.) ९५७८४. (*) कल्याणमंदिर स्तव सह टीका, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ८. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४१०.५, १३४४२-४७) कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र- टीका, सं., गद्य, आदि: किल इति संभावनायां अति विशिष्टा विगलितमल निचयाः, " For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १६१ ९५७८५ (+#) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५-१६४५४-५८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४९. ९५७८६. (#) पाखीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८४२, वैशाख शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, पठ. मु. रूघनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३२-३६). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सयं जेसिं सुअसायरे सत्ति, (पू.वि. "मणेणं वायाए काएणं" गद्यांश से नही है.) ९५७८८.(+) सचित्त अचित्त जल विचार व सिंदर प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, ५४२७-३०). १. पे. नाम. सचित्त अचित्त जल विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: जगराई बार पहरं वीसघि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) २.पे. नाम. सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, पृ. १आ-१९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७९ अपूर्ण तक है.) सिंदरप्रकर-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: सिंदरनो प्रकरण कहतां; अंति: (-), (पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५ तक लिखा है.) ९५७८९ (+#) नंदीषेण चतप्पदी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. कल्याणसोम, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १७४५०). नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: ऋद्धि सिद्ध नित गेह रे, ढाल-१६. ९५७९० (+#) माधवानल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७-६(१ से २,१०,१७ से १९)=२१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १४४३४-३८). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण से ५८१ अपूर्ण तक है व बीच-बीच की गाथाएँ नहीं हैं.) ९५७९१. (+#) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. कर्मवाट्या, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५४४७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन त्रिभुवन तणो प्रदीप; अंति: सिद्धांत समुद्रमाहि थी. ९५७९२. (+) मांगल्योपदेश, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १४४४२-४८). मांगल्योपदेश, सं., प+ग., आदि: दिने दिने मंजुल मंगलावली; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२८७ अपूर्ण तक है.) ९५७९४. (+#) वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. १६६३, वैशाख कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. १७, प्रले. गोवर्धन कान्हाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४७-५१). वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव जिनो; अंति: सिरिसंघ सुखविजय लाहो, ढाल-६१, गाथा-४५६. ९५७९५ (+) उपधानविधि आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(२)=५, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३-१५४३६-४४). For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६२ www.kobatirth.org १. पे नाम, शांतिक विधि, पू. १अ १आ, संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदि: तणी बांधी माटी प्रमुख आणी; अंति: मंगलीक वधावीयै. २. पे. नाम. सम्यक्त्वाद्यारोपण नंदी विधि, पृ. १आ-४आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है. नंदी विधि, सं., पद्य, आदि: चमास पोसचैत्रवर्जिवा अति प्रत्याख्यानादि कार्य (पू.वि. ध्यानउपवास २ धूलमुषा" पाठ से "यादशांतिमपनीयमे पाठ तक नहीं है.) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे नाम. उपधानादितपोविधि, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु., सं., प+ग., आदि: प्रथमं पाश्चात्य दिने; अंतिः तु वासुदेव प्रकीर्तितं. ९५७९६. (+*) श्रावक आराधना व औषधादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ६, कुल ये. ५. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जी., (२५४११, १३४३५-५०) १. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. अन्त में जोधपुर के किसी वैद्य के द्वारा लिखवाए जाने का उल्लेख मिलता है. औषधवैद्यक संग्रह, पुहिं. प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि आगी गाडारी वानी १ तला अति: आँखरो ओषध छे. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं, पद्म, आदि प्रीत आप पर जलै प्रीत अवर; अति उदयराज० प्रीत जण सुकरे. " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. श्रावक आराधना, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण, वि. १७३८, फाल्गुन कृष्ण, ७, ले. स्थल. सीरोही, प्रले. पं. विनयरत्न (गुरु उपा. भुवनरत्नगणि, अंचलगच्छ); गुपि. उपा. भुवनरत्नगणि (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञं प्रपंपुण्य अंति पछी बली चैत्ववंदन कीजई. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सनमुख तो सांदो भलो जोगण; अंति: थांभ मै पात पात मै पात, गाथा - २. ५. पे. नाम औषध संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण, ले. स्थल, सैणीनार, प्रले. बनारस वजैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. औषधवैद्यक संग्रह*, पुहिं., प्रा., मा.गु.,सं., गद्य, आदि: एलसी डोडा टां१; अंति: त्रांबो फुटो होवै तास्हां. ९५७९७ (+*) उत्तराध्ययनसूत्र (मा.गु.) कथा संग्रह-अध्ययन- १३, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X१०.५, १४X३०-३२). उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (-), प्रतिपूर्ण, ९५७९८. (+*) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. हुंडी, कल्पसूत्रार्थ., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२६X११, ६X३५). कल्पसूत्र टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि माहरो नमस्कार होवो अरिहंत अंति: (-). कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि नमः श्रीवर्द्धमानाय अति: (-). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-) (पू.वि. "कन्दस्स अमरकंका" गद्यांश , तक है.) יי ९५७९९. (+*) जयतिहुअण स्तोत्र व प्रवज्या कुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र. वि. त्रिपाठ संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६११, २४४४०-६० ). " १. पे नाम. जयतिहुअण स्तोत्र सह टीका, पृ. १ अ-४अ संपूर्ण, पे. वि. हुंडी जयतिहुणवृत्ति. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभवदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अति: अभय० 7 विन्नवह अणिदिय, गाथा- ३०. For Private and Personal Use Only जयतिहुअण स्तोत्र- टीका, सं., गद्य, आदि: अत्रायं वृद्धसंप्रदायः अति: खिलोकलोकभाषितः, २. पे नाम. प्रव्रज्या कुलक सह टीका, पृ. ४अ ७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी प्रव्रज्याकुलकवृत्ति. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि संसार बिसमसायर भवजल, अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाधा - ३४. Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १६३ A प्रव्रज्या कुलक-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरस्य पदांभोज; अंति: प्रव्रज्या विधानवृत्तिः. ९५८०० (+#) विक्रमराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:विक्रमचरित्रचौपइ. अभ्रकयुक्त पाठ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १७-१९४३५-४२). विक्रमराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: देवसरसित देवसरसति पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४८२ तक है.) ९५८०१ (+#) आराधना प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०१, भाद्रपद शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. वाल्ही, प्रले. मु. केशव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ५४३२-३६). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, ग्रं. २४५. पर्यंताराधना-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइं; अंति: लहइ ते सासतउ सख. ९५८०२ (+) स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, ११४३३-३५). १. पे. नाम. राजासैन्य परिमाण कवित्त, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: त्रीसपदम तुष्यार पदम पनरह; अंति: चवइ वडे परूरव चक्कवइ, कडी-५. २. पे. नाम. नाट्य स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: नै दें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद; अंति: सा सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ४. पे. नाम. सेज स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजमंडण आदि; अंति: नंदसूरी तस पाय सेवता, गाथा-४. ५. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अविरल कमल गवल मुक्ता; अंति: श्रुतदेवी श्रुतोदयम्, श्लोक-४. ६. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषे विहरंता वीस; अंति: जिण मनवंछति सारै, गाथा-४. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तीहार सतारगणं; अंति: वाण सुहाण कुणेसु सया, गाथा-४. ८. पे. नाम. वृद्धि स्तुति, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचि महामणि स्वर्ण; अंति: प्रशद्यादलं भारती भारती, श्लोक-४. ९. पे. नाम. बीजतिथि स्तति, पृ. ४आ, संपूर्ण.... प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. १०. पे. नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय युगादि; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. ११. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. ___सं., पद्य, आदिः यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: जणानवत् नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. १२. पे. नाम. आधाशीशी निवारण मंत्र विधिसहित, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ॐ अठाहोली वनगहनः सात रिषी; अंति: लागसी ठः ठः ठः स्वाहा, (वि. कथासहित.) १३. पे. नाम, पार्श्वनाथजीरो दृष्टकूट, प. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-दृष्टिकूटार्थगर्भित, जै.क. मल्ल कवि, मा.गु., पद्य, आदि: अठवदन कर दोय जीभ पनरह; अंति: मल कहै० अरथको विरलौ लहइ, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५८०३. (+#) द्रव्यसंग्रह व भाव प्रकरणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. १०, अन्य. मु. मुक्तिविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३६-४२). १.पे. नाम. द्रव्य संग्रहसूत्र, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: जीवमजीवं दव्वं जिणवर; अंति: मुणिणा भणियं जं, अधिकार-३, गाथा-६१. २.पे. नाम. भाव प्रकरणसूत्र, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण, पठ.पं. भीमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदि: आणंदभरिय नयणो आणंद; अंति: विजयविमल० पुव्वगंथाओ, गाथा-३०. ३. पे. नाम. कायस्थिति भवस्थितिविचार स्तोत्र, पृ.५आ-६आ, संपूर्ण. कायस्थिति प्रकरण, आ. कलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय; अंति: अकायपयसंपयं देस, गाथा-२४. ४. पे. नाम. विचारपंचासिका, प. ६आ-८आ, संपूर्ण.. विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: वीरपयकयं नमिउं देवा; अंति: विमलसूरिवराणं विणएण, गाथा-५२. ५.पे. नाम, श्राद्धव्रतभंग कुलकसूत्र, पृ.८आ-१०अ, संपूर्ण. श्रावकव्रतभंग प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: पणमिविय पसत्थ परमत्थ; अंति: वित्थरं नाउमुज्जमह, गाथा-४२. ६.पे. नाम. लोकनालबत्रीसी, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण. लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जं लोअं; अंति: जहा भमह न ___ इह भिसं, गाथा-३२. ७. पे. नाम. अष्टाविंशतिलब्धिमय वीरजिन स्तोत्र, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण. २८ लब्धि स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: जा जस्स तुह पसायेण पाणिणो; अंति: होइ जह परमपयलद्धी, गाथा-१८. ८. पे. नाम. अनागत चउवीसजिन जीवगर्भित स्तोत्र, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. अनागत २४ जिन स्तोत्र, आ. श्रीचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरवरस्स भगवओ वोलिअ; अंति: सुहयरा हंतु सयकालं, गाथा-१४. ९.पे. नाम. पुण्यपापप्रवर्तन शुभाशुभपल्यलाभफल कुलक, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. पुण्यपाप कलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा वासस; अंति: जिणकित्ति० उज्जमिह, गाथा-१६. १०.पे. नाम. ईर्यापथिकीमिथ्यादष्कृत कुलक, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. इरियावहि कुलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडचत्ता तिगह; अंति: जीव निच्चंपि, गाथा-११. ९५८०८. कुणक चोपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:कुण०, कुणक., दे., (२५४११, १६४३६-४०). कोणिकराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: कुटुंब तणी जागरका; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१० गाथा-१८ तक लिखा है.) ९५८०९ (+) आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१०(१ से १०)=१२, प्र.वि. हुंडी:आवश्य०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, ६x४०-४४). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: तिगिच्छ गुणधारणा चेव, अध्ययन-६, सूत्र-१०५, (पू.वि. करेमि भंते सूत्र से है.) आवश्यकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पचखाणरूप गुणधार वारु छइ. ९५८१० (+#) सज्झाय, स्तवन व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-४(१ से ४)=१९, कुल पे. ३५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २२४५२-५६). १. पे. नाम. १० दान दोहरा, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: हित अहित आन की आन, गाथा - १४, (पू. वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, पुहिं, पद्य, आदि सब दुख टालेंगे; अति रतन चिंतामण तार तार भवतीर गाथा-५. ײ ३. पे. नाम. १० श्रावक सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८२९, आदि आनंदने सेवानंदा रे; अंति ऋषि रायचंद इम भास हो, गाथा १८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: इखागवंसना उपना सामी; अंति: मे मुडि लागु पाय, गाथा-१३. ७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दुलंभ लाधो मनुख जमारो; अंति: क्रोध लोभ अहंकार नही, गाथा-२०. ८. पे. नाम मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. ४. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नयरी वसे ऋषभदत्त, अंति: तणो सीद्धविजे सुपसाया रे, गाथा-१४. ५. पे नाम, जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि राजग्रही नगरीनो वासी, अंतिः रायचंद० नागोर में बखांणी, गाथा १५. ६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. गाथा - १३. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगर वनीता भली विराजे; अंति: पामे लील विलासो जी, ९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मु. चोथमल, पुहिं., पद्य, वि. १८६०, आदि: सासणनायक दीयो उपवेस धर्म; अंतिः चोधमल० मत करिजोजी कोय, " गाथा - १४. १०. पे नाम खंडणऋषि सज्झाव, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढुंढणऋषजीनै वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा - ९. ११. पे. नाम नेमनाथनों व्याह रास, पृ. ८आ-१२अ संपूर्ण , मिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि द्वारामती नगरी भली अति: केइ सुणत प्रमाणीयां, ढाल ६, १६५ गाथा - १६५. १२. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२६, आदि : चंद्रपुरी नगरी भली; अंति: कह्यो संवत अठारा छावीसोजी, गाथा-१७. १३. पे नाम. २० बोल सज्झाय, पृ. १२ आ-१३अ, संपूर्ण. मु. जसराज ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: करम हनी केवल लही; अति सीष हॅ जी कहे जसराज ए. गाथा १६. १४. पे नाम अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १३अ, संपूर्ण. मु. खीमा, पुहिं., पद्य, आदि: काचा था जे चल गया हो; अंति: आयो जिण दीस जाय रे, गाथा - १२. १५. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १३अ १३आ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य वि. १८६५, आदि बाहिर त्याग अध्यातम खेले; अंतिः विनवचंद० दसमीनें परब होरी, For Private and Personal Use Only गाथा - १७. १६. पे. नाम. जमाली सज्झाय, पृ. १३आ, संपूर्ण. मु. चोमल, मा.गु., पद्म, वि. १८३६, आदि: सासणनायक श्रीवीर अति मेडते कीवोजी चोमास, गाथा ११. १७. पे. नाम. रावण सज्झाय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. मु. . जीतमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८७३, आदि: कहे बभीषण सुण हो रावण अरज; अंति: जीत० सांभलजो तुंम नरनारी, गाथा - १७. १८. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १४अ - १४आ, संपूर्ण. मु. छीत्रमल, पुहिं., पद्य, आदि समुदविजेसुत लाडलो जायो अंतिः छौत्रमल० जय जय राजलनेमीको गाथा-२१. १९. पे नाम ज्ञानपच्चीशी, पृ. १४-१५अ संपूर्ण Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: आदि अनादिनो जीवडो; अंति: राय० जोधपुर कीयो चोमास रे, गाथा-२५. २०. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १५अ, संपूर्ण. म. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: आज सफल अवतार असाडा; अंति: धरे ध्यान सदा धर्मसीह, गाथा-७. २१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. म. लालचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८६३, आदि: जन्मउ मर्ण कर भम्यो भव; अंति: लाल०जनममरण मेरा दर हरणां, गाथा-८. २२. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १५आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: श्रीमंदिर सांमीने प्रणमुं; अंति: गुण गाय ऋष लालचंद गुण गाय, गाथा-८. २३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १५आ, संपूर्ण. म. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: रिषभ अजित संभवसांमी; अंति: लालरांमपुरे गुण गाइया ए, गाथा-९. २४. पे. नाम, २२ परिसह ढाल, पृ. १६अ-१९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:परीसहा. २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: आदेसरजी आदे दे चोवीस; अंति: राय० वृहस्पति भलो वारो जी, ढाल-२२. २५. पे. नाम. महावीरजिन चौढालिया, पृ. १९आ-२१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:महावीर. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धार्थ कुल ऊपनों; अंति: कीयो दिवाली दिने, ढाल-४, गाथा-६३. २६. पे. नाम, इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इलावर्द्धन जाणीये नगर; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-३४. २७. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-दयाधर्म, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पांमी दुलभ नरभव भमता; अंति: पास० केवलग्यांन उजवालोरे, गाथा-१३. २८. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. २२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: भव्यजिन भज लो भगवाना; अंति: सुणज्यो भव्य प्रानी, गाथा-१४. २९. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. म. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: नरेंद्रं फणींद्र; अंति: कीजे आप समान, गाथा-१०. ३०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नारी, पुहिं., पद्य, आदि: मुरख के मन भावे नही; अंति: आगे इच्छा थारी रे, गाथा-२२. ३१.पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. २३अ, संपूर्ण. पंडित. खीमाविजय, पुहिं., पद्य, आदि: एक सुनले नाथ अरज; अंति: लायक अनौपम कीर्त जग तेरी, गाथा-५. ३२. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. २३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, पहिं., पद्य, आदि: सुद्ध लीजे नेमकंवर मेरी; अंति: मर्ण कीजै मनवंछित पावो ने, गाथा-७. ३३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सुनीये नाथ अर्ज मेरी; अंति: मेटो भव भव दुख फेरी, गाथा-३. ३४. पे. नाम. साधुपद सज्झाय, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: समकितधारी सुधमती हर साध; अंति: चंद्रभाण० थासी सीद्ध, गाथा-१७. ३५. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. २३आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आ दिन श्रीकृष्णजी; अंति: मरीने माठी गति मे गयो, गाथा-१६. ९५८१४. (+) नवस्मरण, सकलार्हत् स्तोत्र व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७६, आश्विन शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. ८, ले.स्थल. कालद्रीनगर, प्रले. उपा. मानविजय; पठ. मु. गंगाराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४४८). For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १६७ १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सप्तस्मरण. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: अचिरान् मोक्षं प्रपद्यंते, स्मरण-९, (वि. लघुशांति स्तव बीच के पत्रांक-९असे ९आ पर है.) २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, पृ. ११आ-१३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सकलार्हत. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-४२. ३. पे. नाम. जिनदर्शन स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण. जिनदर्शन प्रार्थनास्तति संग्रह, सं., पद्य, आदि: अद्याभवत् सफलता नयनद्वय; अंति: जिनेंद्र तव दर्शनात्, श्लोक-३. ४. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सकलकुसलवल्लि पुष्कसलावरत; अंति: साक्षात् सुरद्रुमः, गाथा-८. ५. पे. नाम. पार्श्वजिनप्रभु स्तव, पृ. १३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ६. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंति: भगवान् सुप्रतस्य प्रजायते, श्लोक-५. ७. पे. नाम. नवग्रहाणां जिनानां सहितं स्तोत्र, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिश्रुतं, श्लोक-११. ८. पे. नाम. शेजय चैत्यवंदन, पृ. १४अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: आदिनाथ जगन्नाथ विमला; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. ९५८१५ () साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-२(१,३)-७, पठ. सा. कपुरा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ९४३३-३५). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: मनि आणंदई संथुआ, ढाल-७, गाथा-८८, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक, गाथा-१४ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक नहीं है.) ९५८१६. (+#) वर्धमानदेशना, संपूर्ण, वि. १६५६, श्रावण शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. १२०, ले.स्थल. अणहल्लपुरपत्तन, प्रले. मु. राजपाल (गुरु मु. वीरसुंदर, बृहद्गच्छ); गुपि. मु. वीरसुंदर (बृहद्गच्छ); अन्य. मु. जीवराज (गुरु मु. राजपाल, बृहद्गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वर्द्धमादे०, श्रीवर्द्धमादेश० श्रीशंखेश्वरप्रसादातु, श्रीसारदाइंप्रसादातु, कोकापारिश्वपाटके., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १७४३८-४४). वर्द्धमानदेशना, पं. शुभवर्द्धन गणि, प्रा., पद्य, वि. १५५२, आदि: वीरजिणंदं देविंदवंदि; अंति: सुहवद्धणेण० गंथो पवित्थरओ, उल्लास-१०, ग्रं. ५२००. ९५८१८ (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, ५४३३-३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३६ गाथा-२५७ __ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंति: (-). ९५८२०. (+) उववाईसत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०२, ले.स्थल. मूलत्राण, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०,५४३८-४६). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सुहीसुहं पत्ता, सूत्र-२२, ग्रं. १२०१. औपपातिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: तिणि कालि चउथा अरानइ विषइ; अंति: सुखीया सुख पाम्या थकी, ग्रं. ५४००. For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६८ युक्त ९५८२१. (+) पज्जोसवणाकप्पो सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११८-१३ (१ से १३) = १०५, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण विशेष पाठ., जैदे., (२३X१०, ५X३०-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान ९ . १२९६ (वि. १७३३, पू.वि. पाठ "पुण एसे वि भावे" से है., प्रले. आ. सुमतसागरसूरि (गुरु आ. कल्याणसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. कल्याणसागरसूरि (गुरु आ गुणसागरसूरि विजयगच्छ); आ. गुणसागरसूरि (गुरु आ पद्मसागरसूरि विजयगच्छ); आ. पद्मसागरसूरि (गुरु आ, खेमासागरसूरि, विजयगच्छ); आ. खेमासागरसूरि (गुरु मु. धर्मदास, विजयगच्छ); सु. धर्मदास (गुरु मु. विजयराज, विजयगच्छ); मु. विजयराज (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत) , कल्पसूत्र -टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एतले गुरुक्त जणाविउ, (प्रले. मु. छीतर, गुभा. मु. दुर्गा ऋषि (गुरु मु. शिवचंद्र, विजयगच्छ); गुपि. मु. शिवचंद्र; गुभा. मु. देवजी, मु. रामजी (गुरु आ. कल्याणसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. कल्याणसागरसूरि (गुरु आ. गुणसागरसूरि, विजयगच्छ); पठ. सा. वीरा (गुरु सा. कसुंभा); गुपि. सा. कसुंभा, प्र.ले.पु. विस्तृत) ९५८२२. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३२, पौष कृष्ण, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३७, ले.स्थल. वडालि, प्र. ग. विबुधकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: उपदेशमालापत्र, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले. लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., ( २४.५X१०.५, १४४४२-४८). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. उपदेशमाला-वार्थ, मा.गु, गद्य, आदि नमिऊण कहीइ नमीनइ अति: मुखयिकुं नीसरी वांणी. ९५८२३. (+) उत्तराज्झयणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४९.५, ५X३२-४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स; अंतिः संबुडे ति बेमि, अध्ययन- ३६, ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, सं., गद्य, आदि संयोगक्रोधादि अंतिः भवसिद्धिकादीनि. ९५८२४. (+#) कल्पसूत्र सह टवार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र.वि. हुंडी:श्रीकल्पसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१०, ५-१३५३४-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान- ९ पाठ "निद्धमणा अप्पणो अट्ठाइ" तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अरिहंतने नमस्कार, अंति: (-). कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रथविभूषणनगर तिहा; अंति: (-). ९५८२५. (#) कल्पसूत्र सह व्याख्यान - १-२ व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १७९४, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ४७, प्र. ग. माणिक्यसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : गर्भापहार, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४४१०, १५X४७-५१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंति (-), प्रतिपूर्ण ', , कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि नमः श्रीवर्द्धमानाय अंति (-), प्रतिपूर्ण ९५८२६. (+) हैमीनाममाला, संपूर्ण, वि. १६६३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७५, ले. स्थल. पत्तन, प्रले. मु. खीमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नाममा०, नाममाल, नाममालापत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५X१०, १३३६-३८). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि प्रणिपत्यार्हतः अंति नमस्कारनाम नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. ९५८२७ (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७२, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x१०.५, ९४३७). " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान- ९ नं. १२१६. For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १६९ ९५८२८. (+) लघुक्षेत्रसमास सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१०६-२(९६,१०२)=१०४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४.५४१०, १८४४२-४८). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: तं कुसलरंगमयं पसत्थं, अधिकार-६, गाथा-२६२, (पूर्ण, पृ.वि. बीच-बीच का पाठांश नहीं है.) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध , पंन्या. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १५२९, आदि: हुं ब्रह्मज्ञान- पद; अंति: ____ दयासिंह० सूत्रसहित कीधा, ग्रं. ४११७, (अपूर्ण, वि. यंत्रसहित.) ९५८२९ (+#) धातुपारायण सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२१-३१(१३ से १४,५७,६८ से ६९,९४ से ११९)=९०, प्र.वि. हुंडी:धातुपारा०, धातुपाराईण., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४५०-५४). धातुपारायण, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: हेमचंद्रव्याकरण निवेशितान; अंति: बहुलमेतन्निदर्शनम्, ग्रं. ६०३, (पू.वि. बीच-बीच का पाठांश नहीं है.) धातुपारायण-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: (१)इह तावत् पदपदार्थज्ञान, (२)भू इत्यविभक्तिको; अंति: मत्त्थयत्थितोद्रेः. ९५८३०. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८२३, फाल्गुन कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ६५, ले.स्थल. जालंधर, प्रले. मु. वीरचंद भट्टारक (गुरु मु. मयाचंद भट्टारक); पठ. मु. रामचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालरो रासपत्र., जैदे., (२३४९.५, १२४३६-४२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: ज्ञान विशाला जी, खंड-४, गाथा-१८२५. ९५८३१ (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६२, आश्विन कृष्ण, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ.४६, ले.स्थल. भैसाणग्राम, प्रले. मु. वाघजी ऋषि; पठ. मु. धनजी ऋषि; गुभा. मु. कर्मचंद (गुरु मु. वस्ता ऋषि); गुपि. मु. वस्ता ऋषि (गुरु मु. राजसिंह ऋषि); म्. राजसिंह ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हंडी:दशवैका टबो., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ५४४२-४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, __ अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट मोटउ; अंति: इंम काउं श्रीगुरु कहई. ९५८३२. (+) स्तवन, चौढालिया व रासादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९५, माघ कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ५९, कुल पे. १०, ले.स्थल. राजपुरा, प्रले. बुधूराम ब्राह्मण; पठ. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१३९३) यादृसं पुस्तिकं दृष्टवा, जैदे., (२४.५४९.५, १०४३२-३८). १. पे. नाम. दानसीलतपभावना चौढालीया, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दानशील, दानसी०. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाय नमी; अंति: रिद्धि वृद्धि प्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. २.पे. नाम. आषाढाभूति धमाल चौढालीया, पृ. ७आ-१२अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:आषाढ. आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी; अंति: श्रीसंघकुं सुखकारा, गाथा-६४. ३. पे. नाम. मेघकुमार चौढालीया, पृ. १२अ-१५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मेघकुमा०. मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: देस मगधमाहि जाणीयइ र; अंति: कवि कनक भणइ निशदीश, ढाल-४, गाथा-४७. ४. पे. नाम. खंदकऋषी चौढालीया, पृ. १५अ-१८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:खंदकचौ०. खंधकमुनि चौढालियो, मु. संतोषराय, मा.गु., पद्य, वि. १८०५, आदि: आद सिंध नवकार गुण; अंति: भाव करए मुगति निरभव पाइयै, ढाल-४. ५. पे. नाम. अयवंतीसकमाल महामनीसर सिज्झाय, पृ. १८अ-२५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अवंतीसु०, अयवंती. For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरख गुण गावै रे, ढाल-१३, गाथा-१०७. ६.पे. नाम, आणंद संधि, पृ. २५अ-४२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आणंदसं०, आणंद. आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: पभणै मुनि श्रीसार, ढाल-१५, गाथा-२५२. ७. पे. नाम. सेज रास, पृ. ४२आ-४९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सेजरा०. शQजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी; अंति: समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-११२. ८. पे. नाम. महावीरजीरो पारणो, पृ. ४९अ-५०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पारणाम०, पारणा. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: तिनही नमै मुन माल, गाथा-३१. ९. पे. नाम. मुनिमालिका, पृ. ५०आ-५४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मुनिमा०. मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: रिषभ प्रमुख जिन पाय; अंति: चारित्तसिंघ०कल्याण कल्याण, ढाल-३, गाथा-३७. १०. पे. नाम, गौतम रास, पृ. ५४आ-५९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गोतम, गौतमरा०. गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमला; अंति: विनयवंत० कल्याण करो, गाथा-४७. ९५८३३. (4) खरतरगच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, प्र.वि. हुंडी:कल्पार्थ., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०,१५४४०-४८). पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: संघ० जयवंतउ प्रवर्त्तइ. ९५८३४ (+#) बप्पभट्टिसूरि प्रबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-३(७ से ८,१०)=८, पू.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:बप्पभट्टि., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १५४६०-६६). बप्पभट्टिसूरि चरित्र, आ. राजशेखरसूरि, सं., प+ग., वि. १५वी, आदि: गूर्जरदेशे पाडलापुर; अंति: (-), (पू.वि. "तदाज्ञामयो बभूव" पाठ तक है व बीच बीच का पाठांश नहीं हैं.) ९५८३५. मुनएकादशी गणणूं, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६x१०.५, ११४३६). मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमुं जिन; अंति: जसविजय जयसिरि लही, ढाल-१२, गाथा-६२. ९५८३६. (+) दानशीलतपभावना कुलक व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १७६५, फाल्गुन शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. कंटालीयाग्राम, प्रले. ग. जीतविजय (गुरु पं. माणिक्यविजय गणि); गुपि.पं. माणिक्यविजय गणि (गुरु पं. पद्मविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४९.५, ६-१४४३८-४४). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना कलक, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिअ रज्जसारो; अंतिः सो लहइ सिद्धिसहं. वक्षस्कार-४, गाथा-८१. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: परहरीउ छांडिउ जेणइ; अंति: माहे पामे ते मुक्तिना सुख. २.पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ७आ, संपूर्ण. क. गद, पुहि., पद्य, आदि: नांहि वडौ नर उत्तम जाति; अंति: गद्द कहै. इण परिदहै. ९५८३७. (+) विजयकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०, १४४५१). For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org १७१ विजयकुमार रास, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. डाल- २, गाथा- २ अपूर्ण से ढाल २२, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ९५८३८. नववाड सज्झाय व शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, जैये. (२३४१० १५X३६-४० ). १. पे. नाम. ब्रह्मचर्य नववाडि सझाय, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण, प्रले. मु. गजविजय, पठ. मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीसर चरणयुग; अंति: जिनहर्ष० जुगति नववाडि, ढाल - ११, गाथा- ९७. २. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, पृ. ५२-५आ, संपूर्ण मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८ आदि विमल गिरिवर मंडन, अंति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल - २ गाथा-६ तक लिखा है.) ९५८३९. (*) नेमराजीमती रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. टिप्पण वुक्त विशेष पाठ.. .दे. (२४४१०.५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०-११३५-३७). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि सारद पाव प्रणमी करी नेम; अंति: पुन्य० नेमिजिणंद कै, गाथा-६३. ९५८४०. जीवविचार व नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, वे. (२४४१०.५, १०x२०-२४)१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ - ४आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंति: रूद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा-५२. २. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण, पृ. ४आ-८अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाधा, प्रा., पद्य, आदि जीवा जीवा२ पुण्ण३ पावा४; अति: अनंतभागो व सिद्धि गओ, गाथा-५३. ९५८४१. (+) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १७१७, आषाढ़ शुक्ल, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. ९-१ ( ३ ) = ८, ले. स्थल, जेसलमेरदुर्ग, प्रले. मु. भुवनसुंदर पं. (गुरु ग. उदयलाभ); पठ. सा. कनकसिद्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११, ११x३४). साधुवंदना, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि पंचपरमेष्ठि पयकमल बंदिय, अंतिः पुण्यसागर कहड़० सुख कारणइ, गाथा ८७, (पू.वि. गाथा १५ अपूर्ण से २८ अपूर्ण तक नहीं है.) " ९५८४२. (+) मृगावतीसती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७ -२ (१ से २) = ५, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी : मृगावती, संशोधित, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४०-४४). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि (-); अति (-), (पू.वि. खंड-१ गाथा-३८ अपूर्ण से १५२ अपूर्ण तक है.) ९५८४३. (**) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. यंत्र सहित त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X१०.५, ३-६X३८-४३). " For Private and Personal Use Only नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा- ९८. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नवतत्त्वनो बोध ते प्रयोजन; अंति: अतीतथी अनागत अनंतगुणा, (वि. बार्थ व बालावबोध दोनों परस्पर सम्मिलित हैं.) ९५८४४. (+) धर्मविषये धर्मबुद्धि चतुष्पदी, अपूर्ण, वि. १७९३, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पू. १५-८ (१,८ से १४) ७ ले.स्थल. पालीपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५X१०, १९x४६-५०). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: (-); अंति: गृह शिवसुख सुजस लहै, ढाल-३९, गाथा-५४५, (पू.वि. ढाल -३ तक व ढाल १८ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल ३८ गाथा-९ तक नहीं है.) ९५८४५. (*) गुर्वादि अष्टक संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, कुल पे ९, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४×१०, १०X३८-४२). १. पे. नाम. विद्यागुरूणामष्टक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी राजसोमजी अष्टक. Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची राजसोमाष्टक, मु. क्षमाकल्याण कवि, सं., पद्य, आदि: श्रेयस्कारि सतां यदाशु; अंति: कल्याणकांक्षिणाम्, श्लोक-९. २. पे. नाम. गुर्वष्टक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:रूपचंद्रजी अष्टक. रूपचंद्र पाठक अष्टक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: पुण्यैर्गुणैरप्रमितैर्यदी; अंति: क्षमाकल्याणकांक्षिणाम्, श्लोक-९. ३. पे. नाम. गुरूणामष्टक, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रीजिनभक्तिसूरिजी अष्टक. जिनभक्तिसूरि अष्टक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०४, आदि: श्रीमच्चंद्रकुलेश्वर; अंति: समीहित सिद्धये, श्लोक-९. ४. पे. नाम. जिनलाभसूरि सद्गरूणामष्टक, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जिनलाभसूरि अष्टक. जिनलाभसूरि अष्टक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८३४, आदि: सुगुरुजिनभक्तिसूरीश; अंति: क्षमाधाम कल्याणकाराः, श्लोक-९. ५. पे. नाम. पद्मावत्यष्टक, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:पद्मावत्यष्टक. पद्मावतीदेवी अष्टक, मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: चिदानंदसंपद्विलासैक; अंति: भवंति ते शुद्धसमृद्धिभाजः, श्लोक-९. ६. पे. नाम. अमृतधर्मगुरूणामष्टक, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रीअमृतधर्मजी अष्टक. अमृतधर्माष्टक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: श्रीवाचनाचार्यपदप्रतिष्ठा; अंति: क्षमा० ददतु स्वदर्शनम्, गाथा-८. ७. पे. नाम. गुरुगुणस्मरणात्मानुशासनाष्टक, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. गुरुगुणस्मरण आत्मानुशासनाष्टक-समसंस्कृत, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अतिदुःसहगुरुविरहो मा; अंति: इय इच्छा फलउ मे निच्चं, गाथा-८. ८. पे. नाम. जिनकुशलसूरिजी सद्गुरूणामष्टक, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रीजिनकुशलसूरिजी अष्टक. जिनकशलसूरि अष्टक, म.क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देवार्यदेव; अंति: प्राणभृतां मुदेस्तात्, श्लोक-९. ९.पे. नाम. जिनदत्तसूरीणामष्टक, प. ६आ-७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रीजिनदत्तसूरि अष्टक. जिनदत्तसूरि अष्टक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: श्रीवीरतीर्थेश्वर; अंति: क्षमा० वांछितपूरकोस्तु, श्लोक-९. ९५८४७. (4) पडिक्कमण व महपत्ती पडिलेहण विधि, अपूर्ण, ई. २०वी, मध्यम, पृ.८-२(३ से ४)=६, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४१०, १४४३५-३८). १. पे. नाम. प्रतिक्रमण विधि, पृ. १आ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: पछइ श्राविका वाखांलइ, (पू.वि. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.)। २. पे. नाम. मुहपत्ती पडिलेहणविधि, पृ. ८आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली दृष्टि पडिलेहण; अंति: जीमणै पगै परिहरु. ९५८४८. (+#) मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १७७३, कार्तिक शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. २४, प्रले. ग. रुचिविजय (गुरु मु. रूपविजय, तपगच्छ); गुपि. मु. रूपविजय (गुरु मु. मानविजय, तपगच्छ); मु. मानविजय (गुरु मु. कीर्तिविजय, तपगच्छ); पठ. श्राव. धनजी, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १९४४६-५०). मानतंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: मोहन० घरि मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५. ९५८४९. १८ नातरा सज्झाय व विचार, संपूर्ण, वि. १७९१, माघ शुक्ल, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. सबला ऋषि; पठ. निरबाणजी, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १०४३०-३३). १.पे. नाम. नाता अठारह, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मानव भव पायो जी; अंति: तातणोजी कवियण करै बखाण रे, ढाल-४, गाथा-७७. For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १७३ २. पे. नाम. अढार नातरा विचार, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कुमेरदत्त राजा मथुरानगर; अंति: नाता डावढ़ाथै नाता. ९५८५० (+) माधवानलनी चौपई, अपूर्ण, वि. १७९४, आश्विन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १७-२(१ से २)=१५, ले.स्थल, जालोर नगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०, १५४४२-४८). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: (-); अंति: कुशल०सुख पामें संसार, गाथा-५४३, (पू.वि. गाथा-५५ अपूर्ण से है.) ९५८५२. (+) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६०६, भाद्रपद कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. ३४४, ले.स्थल. नटपद्रनगर, प्रले. कमलाकर जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३५). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: धम्ममहाभवणधिरबंभं, कथा-४३, गाथा-११४. शीलोपदेशमाला-बालावबोध कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: आबाल ब्रह्मचारी आजन; अंति: सकल सुखनइ भाजनइ हुई, ग्रं. ६२५०. ९५८५३. (+#) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६४३६). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: (-), (पू.वि. "उववायसभा पन्नत्ता झहा सुहम्मण तहेद जाव" पाठ तक है.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार हो अ०; अंति: (-). ९५८५४. (#) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५०-१(३९)=४९, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३६-३९). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ से ढाल-३६ गाथा-१ अपूर्ण तक व ढाल-३७ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-४७ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ९५८५५ (+) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-१(६)=२९, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १६-१८४३६-४६). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ से ढाल-८ गाथा-१ अपूर्ण तक व ढाल-९ गाथा-८ से ढाल-४७ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ९५८५६. (#) सिद्धहेमशब्दानुशासन का हिस्सा अष्टम अध्याय सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १५४४४-५२). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टम अध्याय प्राकृत व्याकरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, ___वि. १२वी, आदि: अथ प्राकृतम् बहुल; अंति: (-), (पू.वि. पाद-४ सूत्र-४३६ तक है.)। प्राकृत व्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अथ शब्द आनंतर्यार्थो; अंति: (-). ९५८५७. (+) अभिधानचिंतामणीनाममाला, संपूर्ण, वि. १८७३, चैत्र शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ११३, ले.स्थल. अजमेर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४११, ९४२८-३०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५८५९ (+) आगमसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३९-१(१)=३८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १२४३६). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के कुछेक अंश नहीं ह.) ९५८६३. () अचलदासभोजावतरि वचनिकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९, कुल पे. ४, ले.स्थल. डभोडा, प्रले. मु. हितविजय (गुरु पंन्या. लालविजय); गुपि. पंन्या. लालविजय (गुरु पंन्या. माणिक्यविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४४१-४७). १.पे. नाम. अचलदासभोजावतरि वचनिका, पृ. १आ-१३अ, संपूर्ण, वि. १८७०, माघ कृष्ण, ३०, रविवार, प्रले. मु. हितविजय (गुरु पंन्या. लालविजय); गुपि. पंन्या. लालविजय (गुरु पंन्या. माणिक्यविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:चोपै अचलदासभोजा. अचलदासभोजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: तू वीसहथी विरोल; अंति: अचलेश्वरजीसुं पाटि पधरावौ, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांकादि नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. राजारतनरी वचनिका, पृ. १३अ-२२अ, संपूर्ण, वि. १८७०, फाल्गुन शुक्ल, ५, गुरुवार, पे.वि. हुंडी:चोपै राजारतनरी. राजारतन चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: गुणपति गुण गहगीरं; अंति: सांभलौ भड मोटा भूपाल. ३. पे. नाम. सुदामा सार, पृ. २२अ-२३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सदामासार. ___मा.गु., पद्य, आदि: सरसती ऊजलमती गुणपति साहा; अंति: धनराजरा हरी करौ निया रे. ४. पे. नाम. गोराबादल कथा, पृ. २३अ-२९आ, संपूर्ण, वि. १८७०, चैत्र कृष्ण, १०, शुक्रवार, पे.वि. हुंडी:गोराबादल. गोराबादल रास, श्राव. जटमल नाहर, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: चरण कमल चितलाय कै; अंति: जटमल० विघन न होज्यो कोई, गाथा-१५४. ९५८६५ (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७२-१५०(१ से १०५,१०७ से १३८,१४०,१४४ से १४६,१५०,१५९ से १६४,१७० से १७१)=२२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ६४३९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन-६ "ततेणं हंदेवदिन्नंदारयंकडीएगएहेमि" पाठ से अध्ययन-७ "सोहणंसितिहिकरणणखत्तेमह" पाठ तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), पृ.वि. बीच के पत्र हैं. ९५८६६. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७-१(११)=२६, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६४३०-३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन ३ गाथा-३ अपूर्ण से १८ अपूर्ण तक नहीं है व अध्ययन-१० गाथा-२ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बाह्य मातापिता; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-२ गाथा-४४ अपूर्ण तक लिखा है.) ९५८६७. (+) रायपसेणइयसुत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७९४, आषाढ़ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १५७-११९(१,२६ से १४३)=३८, प्र.वि. अंचलगच्छे., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ५-६४३६-३८). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सुपस्से पस्सवणा नमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २२२०, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., "अंबसालवणेनामंचेईएहोत्था पोराणे" पाठ से "कंचणंमणिरयणथूभियागंणाविहपंच" तक एवं अयभारतेतं इच्छामिणंदेवाणुप्पियाणं पाठ से अंत तक है.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: सूत्रनो टबो परिपूर्ण, ग्रं. ३२६०, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं ह. ९५८६८. (+) श्रीपालचरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, ७४४०-४७). For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहंताई नवपयाई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३८१ अपूर्ण तक है.) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत प्रमुख नव; अंति: (-). ९५८६९. सूक्तावली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, जैदे., (२५४११, ५४३४-३६). सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: राज्यं निःसचिवं गतप्रहरणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-११४ तक लिखा है.) सूक्तावली संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: राज्य प्रधान बिना न शोभई; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-८४ अपूर्ण तक लिखा है.) ९५८७१ (+#) संघयणिसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३१, पौष शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३३-१(३२*)=३२, ले.स्थल. जेसलमेरदुर्ग, प्रले. मु. चतुरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ५४३७-४५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३३२, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं कहितां नमस्कार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ गाथा-९ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ९५८७२ (#) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५०, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, ६x४७). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं.८१२. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे कालई चोथे आरइं; अंति: उपासकदशांग टबार्थ संपूर्ण. ९५८७३. (+) उत्तराध्ययन सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३६९-१(२७३*)=३६८, प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्य०वृ., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४५-५०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६. ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: प्रणम्य विघ्नसंघात; अंति: संमता निअभिप्रेतानि, ग्रं. १२०००. ९५८७५ () वसुदेवहिंडी-प्रथम खंड, संपूर्ण, वि. १५५७, माघ शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. २४०+१(२१२)=२४१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १३-१५४३५-५५). वसुदेवहिंडी, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण; ग. धर्मसेन, प्रा., प+ग., आदि: नमो विणयपणयसुरिंदविंद; अंति: दारिया दायव्व त्ति, प्रतिपूर्ण. ९५८७६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८२७, वैशाख कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. २६१, प्रले. पंडित. भाग्यविलास (गुरु पं. रंगवल्लभ गणि, बृहत्खरतर); गुपि.पं. रंगवल्लभ गणि (गुरु उपा. राजसोम गणि, खरतरगच्छ); उपा. राजसोम गणि (गुरु उपा. कर्परविजय गणि, खरतरगच्छ); उपा. कर्परविजय गणि (गुरु ग. लक्ष्मीसमुद्र, खरतरगच्छ); ग. लक्ष्मीसमुद्र (गुरु वा. सोमहर्ष, खरतरगच्छ); वा. सोमहर्ष (गुरु ग. लक्ष्मीकीर्ति, खरतरगच्छ); ग. लक्ष्मीकीर्ति (गुरु आ. जिनकुशलसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्ययनवृ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७४४७-६५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पावइ णिज्जरा विउला, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८पू, आदि: अहँतो ज्ञानभाजः; अंति: महतामपीत्युक्तेः, ग्रं. १५३००. For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५८७७. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १८२५, फाल्गुन शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०४, प्र.वि. हुंडी:नाममाला, पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १८००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , जैदे., (२४४१०, १३४२७-३२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: नमस्कारनाम नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. ९५८८० (+#) उववाइसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८१२, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १०५-१८(२,८ से १८,६६,७१,७४ से ७५,८९,१००)=८७, ले.स्थल. साहजाहांनाबाद, प्रले. मु. दिव्यकुशल (गुरु पं. सुमतिकुशल); गुपि.पं. सुमतिकुशल; अन्य. पं. गोविंदकुशलजी (गुरु मु. गुमानकुशलजी); गुपि. मु. गुमानकुशलजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. आवरण पृष्ठ पर किसी अन्य प्रतिलेखक के द्वारा लिखा गया है- "परति पं. श्री गुमानकुशलजी ततशिष्यपं. गोविंदकुशलनी छे कोयि लेण पाव नहीं सं १८५९ मिति श्रावण वदि१४शुक्रे लिखा है.", टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५४००, मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५४८) यावत् गंगातटे भाति, (१३६२) मुखकानलचौरेभ्य, जैदे., (२६४११, ५४३६). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) औपपातिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: तिणि कालि चउथा अरानइ विषइ; अंति: सुखीया सुख पाम्या थकी, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. ९५८८१. (+#) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८९-१(६८)=८८, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथप्रसादात., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४२८-४०). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, प्रा.,सं., गद्य, आदि: एसो पज्जोसवणा समणाण; अंति: देवताशासनस्य, (पू.वि. "अज्ञानमज्ञान नदयायत्तपस्यपि" पाठ से "पुणरविलोगंतिएहिं जावएवंवयासी" तक नहीं है.) ९५८८२. विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९१, जैदे., (२५.५४११, १५४३२-६०). विचार संग्रह-विविधविषयक, मा.गु., गद्य, आदि: यादृशी निषिद्या आचार्यस्य; अंति: ज्ञपानि यावत् अरकपर्यतः. ९५८८४. कल्पसूत्र-व्याख्यान १ से ७ सह कल्पलता वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३८, जैदे., (२५४११, १५४४०-४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९५८८५ (+) औपपातिकसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८३, प्र.वि. संशोधित-पंचपाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १-१६x२५-३२). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००. औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: संशोधिता चेयमिति, ग्रं. ३१२५. ९५८८७. (+) यशोधरनरेंद्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १९२०, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ५६, प्रले. मु. फतेचंद (गुरु पं. वृद्धिचंद); गुपि.पं. वृद्धिचंद (गुरु मु. देवीचंद); मु. देवीचंद; अन्य. पं. श्रीचंद (गुरु मु. देवीचंद); मु. पूनमचंद्र (गुरु पं. श्रीचंद), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:यशोधरनरेंद्रचरितं. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, (५५२) भग्न पृष्टि ग्रीवा, दे., (२४४१०.५, १३४३५-३७). ___ यशोधर चरित्र, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३९, आदि: सकलसुरनरेंद्रश्रेणि; अंति: सकलोपि तेन जनः. ९५८९१ (4) पंचाख्यान चौपई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५५-५(१ से ४,१०)=५०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १६x४२-४६). पंचाख्यान भाषा, संबद्ध, मु. गुणमेरुसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६२६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२१ अपूर्ण से १९०५ अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १७७ ९५८९२. सिद्धहेमशब्दानुश सनलघुवृत्ति की अवचूरि-तद्धितप्रकरण, संपूर्ण, वि. १६६४, आश्विन शुक्ल, ११, रविवार, जीर्ण, पृ. ६६, ले.स्थल. सुरत बिंदर, प्रले. श्राव. लालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तलवृ०. अंत में विजयसेनसूरिशिष्य रामविजयजी के द्वारा ऐसी १५ लाख पुस्तकों को चित्कोश में स्थापित करने का श्लोकबद्ध उल्लेख मिलता है., जैदे., (२६४११, १३-१४४४०-५०). सिद्धहेमशब्दानशासन-स्वोपज्ञ लघवत्ति की अवचर्णि, म. धनचंद्र पंडित, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिप ९५८९४. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १६१०, फाल्गुन शुक्ल, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. ७२, ले.स्थल. ब्रह्मपुर, प्रले. पंडित. विष्णु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रं, संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५-१७X४५-६५). जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१४६. ९५९०० (#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३७-१(३)=३६, प्र.वि. हुंडी:उत्तरा., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११, १६४३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-३१ गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है व अधययन-२ पाठ "१६ तणफासपरीसहे" से ___ "४२ तवोवहाणमादाय" के बीच के पाठ नहीं हैं.) ९५९०१. (+) नंदिसूत्र स्थविरावली व आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, संपूर्ण, वि. १६३२, श्रेष्ठ, पृ. १०२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. २७१५, जैदे., (२६४११, ११-१३४३२-६०). १. पे. नाम. नंदिसूत्र स्थविरावली, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी विआणओ; अंति: नाणस्स परूवणं वुच्छं, गाथा-५०. २. पे. नाम. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, पृ. ३आ-१०२आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू, गाथा-२५५०. ९५९०२. उपासकदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३५, अन्य. ग. शिवविजय (गुरु पं. कमलविजय गणि, तपागच्छ); गुपि.पं. कमलविजय गणि (गुरु आ. हीरसूरि *, तपागच्छ); आ. हीरसूरि * (गुरु आ. दानसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपा.सू., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३०-४०). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०. ९५९०३. (+) नंदिसत्र स्थविरावली व आवश्यकसूत्र की नियुक्ति सह भाष्य व अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७६-१(७०*)=७५, कुल पे. २, अन्य. ग. पुण्यसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ७-१८४२२-५५). १. पे. नाम. नंदिसूत्र स्थविरावली सह अवचूर्णि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: नाणस्स परूवणं वुच्छं, गाथा-५०. नंदीसूत्र-स्थविरावली-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: जयति इंद्रियविषय कषाय; अंति: नामाचार्य शिष्यो देववाचकः. २.पे. नाम. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, भाष्य व नियुक्ति तथा भाष्य की अवचूर्णि, पृ. ३अ-७६आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू, गाथा-२५५०, ग्रं. ३१००. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: अवरविदेहे गामस्स; अंति: जम्हा विउ पमाणं, गाथा-२५३. आवश्यकसूत्र-अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४०, आदि: प्रेक्षावतां प्रवृत्यर्थं; अंति: स्वपरहितहेतोः. ९५९०४.(+) सूयगडांगसूत्र सह दीपिका वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०९, प्र.वि. संशोधित-पंचपाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१०.५, ६-१५४२२-४०). For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३. सूत्रकृतांगसूत्र-दीपिका वृत्ति, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, वि. १५८३, आदि: प्रणम्य श्रीजिनं; अंति: जगति जयतु चिरम्, ग्रं. ७०००. ९५९०५ (+) नंदिसूत्र स्थविरावली व पच्चक्खाण निर्यक्ति, अपूर्ण, वि. १५१०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ५०-१(१)=४९, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११,१६-१७४५०-७०). १.पे. नाम. नंदीसूत्र-स्थविरावली, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है.. संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: णाणस्स परूवणं वोच्छं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-४६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, पृ. २अ-५०आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू, गाथा-२५५०. ९५९०६. (+) उववाईसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १४१७, आश्विन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ५३, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. मु. पंचानन (गुरु उपा. विद्यासागर); गुपि. उपा. विद्यासागर (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ४३७२, जैदे., (२६.५४११, १-१८x२०-५८). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३. औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: व्यक्तार्थे एवेति, ग्रं. ३१२२. ९५९०८.(+) महानिशीथसूत्र, संपूर्ण, वि. १६३६, कार्तिक अधिकमास शुक्ल, मध्यम, पृ.८०,ले.स्थल. विक्रमनगर, प्र.वि. हुंडी:महानिसीथ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११,१५-१६x४५-६०). __ महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे आउसं तेणं०; अंति: य महानिसीहम्मि पाएण, अध्ययन-६ चूलिका २, ग्रं. ४५४४. ९५९०९ (+) गच्छाचार प्रकीर्णक सह बहट्टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प. १०६-१२(१ से १२)=९४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१०.५, १५-१७४५५-६५). गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: इच्छंता हियमप्पणो, गाथा-१३७, (पू.वि. गाथा-१७ से है.) गच्छाचार प्रकीर्णक-बृहट्टीका, ग. विजयविमल, सं., गद्य, वि. १६३४, आदिः (-); अंति: मानानुतां जयम्. ९५९१० (+) शीलविषयेचित्रसेनपद्मावती चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०७, वैशाख कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६६, ले.स्थल. जनकपुर, पठ. पं. सुंदरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, ५४३०-३५). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति: कथामकरोत् पाठकराजवल्लभः, श्लोक-५९८. चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा क० नमस्कार करीनइ; अंति: जन जै छे तेहने वणिवी लीला. ९५९११ (+) समवायांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६९, प्र.वि. हुंडी:समसूत्रं., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ११-१२४३४-४५). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अज्झयणंति त्तिबेमि, अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९. ९५९१२. (+) रघुवंश की विशेषार्थबोधिका वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८०६, सेनान्यास्यखनागचंद्र, वैशाख कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. १४६-८९(१ से ५४,५६ से ५८,६१ से ६६,६८,७६ से ८४,८७ से ९५,१०४ से १०५,११० से १११,१२६ से १२७,१४४)=५७, ले.स्थल. जालोर, प्रले. मु. मोटा ऋषि (गुरु मु. भीमजी ऋषि, लोंकागच्छ); गुपि. मु. भीमजी ऋषि (लोंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:राघवीवृत्ति., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १९४५४-५७). रघुवंश-विशेषार्थबोधिका वृत्ति, पं. गुणविनय गणि, सं., गद्य, वि. १६४६, आदि: (-); अंति: दोषः मंदाक्रांतावृत्तं, सर्ग-१९, (पू.वि. सर्ग-८ श्लोक-४० तक, श्लोक-५३ से श्लोक-९१ तक व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १७९ ९५९१३. (+) आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति व लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६०९, कार्तिक कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. २६७, ले.स्थल. सेरगढ, प्रले. ग. राजशेखर (गुरु ग. लक्ष्मीप्रभ); गुपि. ग. लक्ष्मीप्रभ; पठ. मु. कुमारसुंदर; पं. रत्नसार; श्राव. शंकर; राज्ये आ. जिनमाणिक्यसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनहंससूरि, खरतरगच्छ); गुपि. गच्छाधिपति जिनहंससूरि (गुरु आ. जिनसमुद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनसमुद्रसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनभद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनभद्रसूरि (गुरु आ. जिनवर्धनसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:आवश्यकलघुटीका. प्रतिलेखन संवत्-१६९ लिखा है वस्तुतः १६०९ होने की संभावना है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१०.५, १५-१६x२४-६०). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहंताणं० सव्व; अंति: गारेणं वोसिरामि, अध्ययन-६, सूत्र-१०५. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू, गाथा-२५५०. आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: देवः श्रीनाभिसूनुर्जनयतु; अंति: खेलतात्कृतिमानसे, ग्रं. १२३२५. ९५९१४. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४४, प्र.वि. हुंडी:राजप्रश्नीसूत्रवृत्ति. प्रत के अंत में 'इस प्रत को मेहता दनमलजी भंडार में संवत् १९१० मिति वैशाख मासे शुक्ल पक्ष तिथि-८ सोमवार को स्थापित किया है। ऐसा उल्लिखित है., त्रिपाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५७७१, जैदे., (२४.५४११.५, १-१७४६-६०). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० आमलकप्प; अंति: पस्से पस्सावणीए णमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २१५०. राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: प्रणमत वीरजिनेश्वर; अंति: मलयगिरिणा० भवतु कृती, ग्रं. ३६५०. ९५९१५ (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १८८६, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११०, पठ.पं. सरूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३१-३७). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: नमस्कारनाम नतौ नमः, कांड-६. ९५९१८. (+) त्रैलोक्यप्रकाश, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १४४३९-४६). त्रैलोक्यप्रकाश, आ. हेमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्थाभिधं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१०५८ तक है.) ९५९१९ (+) सम्यक्त्वकौमुदी, संपूर्ण, वि. १७६६, आश्विन शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ५४+२(२,१७)=५६, ले.स्थल. शक्तिपुर, पठ.पं. उद्धव ऋषि (गुरु आ. सुखमल्लजी); गुपि. आ. सुखमल्लजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (५९४) अदर्शदोषात् मतिविभ्रमात् च, जैदे., (२५.५४११.५, १५-१७४४१-५५). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: भूतानां भूमौ भूपतिमंगलं, पद-४४४, ग्रं. १६७५. ९५९२०. (+#) योगचिंतामणि वैद्यसारसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५८-२(७,५२)=५६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४०-४८). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सिद्धौषधानि पथ्यानि; अंति: योगचिंतामणिश्चिरम्, ___अध्याय-७, (पू.वि. अध्याय-१ आदुपाक अपूर्ण से कामदेवगुटी तक नही है व बीच के कुछेक पाठांश नहीं है.) ९५९२२. (2) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ११-१३४४०). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: (-), (पू.वि. वरकनक सूत्र तक है.) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत प्रति माहरु नम; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५९२३. (+#) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५, प्र.वि. हुंडी:संग्रहणी., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ४४२५-२९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२३६ अपूर्ण तक लिखा है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउ क० नमस्कार करीने; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१८८ तक टबार्थ लिखा है.) ९५९२५. (4) ठाणांगसूत्र बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:ठां०स०स०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १६x४८-५४). स्थानांगसूत्र-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: किस्युं ते ठाणांग; अंति: (-), (पू.वि. स्थान-१० में संयम के १० प्रकार तक ९५९३०. (+#) नलदमयंती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१-१(२)=३०, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३७). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-१ की गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-२ की गाथा-७ अपूर्ण तक व खंड-६ ढाल-४ की गाथा-१५ अपूर्ण से नहीं है.) ९५९३१. (+) राजप्रश्नीयसूत्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६२-१(१)+१(४३)=६२, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १५४३३-३७). राजप्रश्नीयसूत्र-चौपाई, संबद्ध, वा. सहजकीर्ति गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-१ गाथा-१३ अपूर्ण से खंड-३ ढाल-२४ गाथा-७० अपूर्ण तक है.) ९५९३४. (+) हरिश्चंद्रराजा चौपाई व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १८८१, आषाढ़ कृष्ण, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. २९, कुल पे. २, ले.स्थल. व्यालपुर, प्रले. पं. प्रतापविजय (गुरु पं. दीपविजय); गुपि. पं. दीपविजय (गुरु उपा. भक्तिविजय); उपा. भक्तिविजय; अन्य. पं. तिलोकसौभाग्य, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:हरीचंद., संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १५४३४-३७). १. पे. नाम. हरिश्चंद्रराजा चौपाई, पृ. १अ-२९आ, संपूर्ण. मु. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: पासजिणेसर पाय नमु; अंति: श्रीसंघनै पूजै आस जगीस, खंड-५ ढाल ३९, गाथा-७८१. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २९आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: भाई सौईसू सू भाई चलै; अंति: मीठो नही सो तौ खाय बलईया, गाथा-१. ९५९३६. (+) आचारांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६५०, कार्तिक शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. २७८, ले.स्थल. मादा, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरे.,प्र.ले.श्लो. (१३६३) यदि अक्षर पदं भ्रष्ट, जैदे., (२६४१०.५, १-१९४५-८०). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: एहिं विमुच्चति त्तिबेमि, अध्ययन-२५. आचारांगसूत्र-टीका # , आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदि: जयति समस्तवस्तु; अंति: मिति तात्पर्यार्थः, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. १२०००. ९५९३७. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३४, प्रले. ग. कनकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५-१७X४०-६०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ+कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानं जिनं नत्वा; अंति: उपदिस पyषणानौ सांभलवौ. ९५९३८. (+) धातुपारायण सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११६+१(६३)=११७, प्र.वि. हुंडी:धातुपारायण., संशोधित. कुल ग्रं.६०००, जैदे., (२६४११, १५४५५-६०). धातुपारायण, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अहँ भू सत्तायां; अंति: बहुलमेतन्निदर्शनम्. For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १८१ धातुपारायण-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: इह तावत् पदपदार्थज्ञान; ___ अंति: मतुत्थयत्थितोद्रेः. ९५९३९ (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९०, प्रले. ग. सुविधिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:राजप्रश्नीयसू.वृत्ति., संशोधित-पंचपाठ., जैदे., (२६४१०.५, १-१६४१५-५०). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: णमो रायपसेणइ, सूत्र-१७५, ग्रं. २१२०. राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: प्रणमत वीरजिनेश्वर; अंति: मलयगिरिणा० भवतु कृती, ग्रं. ३७००. ९५९४० (+) वीसस्थानकविचारमत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५२, अन्य. मु. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वीस.स्थान., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १७-१८x२७-६०). विचारामतसार संग्रह, ग. जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १५०२, आदि: श्रीभूर्भुवः स्व; अंति: वाच्यमानो निरंतरं, कथा-२०, ग्रं. २८००. ९५९४१ (+#) अनेकार्थ संग्रह, अपूर्ण, वि. १६६६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८ अधिकतिथि, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४६-४(१,४१ से ४३)=४२, प्रले. मु. शिवशेखर (गुरु उपा. कनकशेखर); गुपि. उपा. कनकशेखर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४०-५०). अभिधानचिंतामणि नाममाला-अनेकार्थ संग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: खेदामंत्रणयोरपि, अध्याय-७, श्लोक-१९३१, (पू.वि. प्रारंभ से श्लोक-३ अपूर्ण तक व श्लोक-१३२८ अपूर्ण से अध्याय-५ के श्लोक-६ अपूर्ण तक नहीं है.) ९५९४२. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७३, फाल्गुन शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १२८, प्रले. ग. प्रतापसागर (गुरु पं. कपूरसागर गणि); गुपि. पं. कपूरसागर गणि (गुरु पं. शांतिसागर गणि); पं. शांतिसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ५७२१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४१०.५, ६-१४४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरो; अंति: देजो एहवु श्रीवर्धमान. ९५९४३. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६४९, कार्तिक शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ५८, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. श्राव. सुरताण पोमसी सा; लिख. मु. मांडण ऋषि (गुरु मु. पदमा ऋषि); गुपि. मु. पदमा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:प्रश्नव्याकरणवृत्ति., पंचपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१०.५, १-१२४३०-५०). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहंताणं जंबू; अंति: भविस्सत्ती तिबेमि, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १२५०. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य: अंति: संशोधिता चेयम, अध्याय-१०. ९५९४५. चंद्रलेहा चौपाई व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १८०२, श्रावण शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २६, कुल पे. २, ले.स्थल. खंडपनगर, प्रले. पं. धनसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चंद्रलेहा चौपई. श्रीपार्श्वनाथजी प्रसादात्., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४१०.५, १४४३५-५०). १. पे. नाम. चंद्रलेहा चौपई, पृ. १आ-२६अ, संपूर्ण. चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगति नमी करी प्रणमु; अंति: भणैजी श्रीसंघ __ जय जयकार, ढाल-२९, गाथा-६२४, (वि. इस प्रत में कर्ता मतिकुशल का उल्लेख नहीं है.) २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. २६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक दहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: जल मे वसि कमोदनी चंदो वसै; अंति: जो मिला तो ऊण रंगा रहिजो, गाथा-२. ९५९४६. (+#) सारस्वत व्याकरण सह वृत्ति-कृत्प्रत्यय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सारस्वततृतीयवृत्तिः., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १०-१५४३०-४०). सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंतिम कुछ पाठांश अपूर्ण तक है.) ९५९४७. (+) रामविनोदग्रंथ व बीजक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७५, कुल पे. २, ले.स्थल. अंजार, पठ. मु. पीतांबर (गुरु मु. जीवा ऋषि); गुपि.मु. जीवा ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३-१५४४२-६०). १. पे. नाम. रामविनोदग्रंथ, पृ. १आ-७५अ, संपूर्ण.. रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिधिबुधिदायक सलहीयै गवरी; अंति: रामविनोद विनोदसु, समुद्देश-७, गाथा-१६१७. २. पे. नाम. रामविनोद का बीजक, पृ. ७५अ-७५आ, संपूर्ण. रामविनोद-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: १ ग्रंथारंभ साध्वलक्षण पत; अंति: परिमाण ग्रंथ संपूर्तिपत्र. ९५९५१ (+#) लघुक्षेत्रसमास सह विवरण, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ५९-९(१ से ९)=५०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पत्रांक भाग खंडित होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, ११-१३४३०-५५). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच का पाठांश लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-विवरण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९५९५२ (+) प्रश्नोत्तररत्नमाला की कल्पलतिका वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९५-५०(१ से ३९,५४,५९ से ६८)=४५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:प्रश्नोल्टी., संशोधित., जैदे., (२४.५४९.५, १९४६६-७०). प्रश्नोत्तररत्नमाला-कल्पलतिका वृत्ति, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १४२९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पुंडरीक कथा अपूर्ण से ध्वज भुजंग कथा अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं है.) ९५९५३. (+) योगशास्त्र-प्रकाश १ से ४ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४९.५, १५४४२-४८). योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दर्वाररागादि; अंति: ध्यानोद्यतो भवेत्. योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमद्वीरं जिनं भक्त्या; अंति: स्थितिनी विशेष छइ, प्रकाश-४. ९५९५४.(+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १६८१, नृपानागशशीचनोब्द, आषाढ़ शुक्ल, १२, शनिवार, मध्यम, पृ. १४१, ले.स्थल. द्रोणाडानगर, प्रले. मु. उदयचंद्र ऋषि (गुरु मु. खुस्यालचंद्र, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); गुपि. मु. खुस्यालचंद्र (गुरु पं. विजयचंद्र, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); पं. विजयचंद्र (गुरु पं. ज्ञानचंद्र वाचक, पार्श्वचंद्रसूरिंगच्छ); पं. ज्ञानचंद्र वाचक (गुरु उपा. क्षमाचंद्र, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); उपा. क्षमाचंद्र (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, ६-१९४५०-५२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: उवदंसेइ त्ति वेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: उपदिसइ दिखाडइ इति ब्रवीमि. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, सं., गद्य, आदि: पुत्रापंचमतिश्रुतावधिमनः; अंति: अन्यशास्त्रेभ्यो ज्ञेया. For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १८३ ९५९५५ (+) जन्मपत्र पद्धति, अपूर्ण, वि. १७८९, फाल्गुन शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. १४१-१(२)=१४०, प्रले. पं. प्रमोदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जन्मपत्रीयपद्धति., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (४६३) पुस्तके यादृशं दृष्टं, जैदे., (२४.५४१०.५, १५-१६४५०-६५). जन्मपत्री पद्धति, म. लब्धिचंद्र, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीऋद्धि वृद्धि; अंति: लब्धिचद्र० मानसैः, (पू.वि. "आयुर्विपुलतां यातु यस्यैषा जन्मपत्रिका" पाठ से "अमुकदशा प्रवर्त्तमाने" पाठ तक नहीं है.) ९५९५९ (+) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५१, प्र.वि. हुंडी:संग्रह.ट०., त्रिलोकदीपका., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३.५४१०, ३४३२-३६). बहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), गाथा-३४९, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२२५ अपूर्ण तक लिखा है.) बहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.ग., गद्य, आदि: अरिहंतादि पांच पदनि; अंति: (-), (अपर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपर्ण., गाथा-८० अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ९५९६२. (+) रूपसेनचरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०, प्र.वि. हुंडी:रूपसेनच०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३५-५०). रूपसेनकनकावती चरित्र-चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., प+ग., आदिः श्रीमंतं विदुरं शांतं; अंति: सुकृताय कृता कथा, ग्रं. १५३०. ९५९६७. (+) अष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६४११.५, ८x२३-३०). अष्टाह्निका व्याख्यान-बालावबोध, पं. मतिमंदिर, मा.गु., गद्य, वि. १८८२, आदि: (१)शांतीशं शांतिकर्ता, (२)इहां समस्त खोटा कर्मकारी; अंति: साधुरो दृष्टांत कयौ. ९५९६८. (+) चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११-१३४२०-३५). __ चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामाइक १ वस्यक २ पौषधानि; अंति: मिच्छामि दुक्कडं देवो. ९५९७१ (+) जंबूस्वामी चरित-अधिकार १ से २, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल. खंभातबिंदर, प्रले. ग. दयालसागर (गुरु पं. शांतिसागर गणि); गुपि. पं. शांतिसागर गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १८४४८-५०). जंबूस्वामी रास, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७०५, आदि: जोति पुरातन मन धरइ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९५९७२. (+) सम्यक्त्व स्वरूप सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-४(१ से २,२५,२७)=२४, प्र.वि. द्विपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४३७). सम्यक्त्व स्वरूप, आ. विबुधविमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-६ तक है व बीच के पाठांश नहीं है.) सम्यक्त्व स्वरूप-बालावबोध, आ. विबुधविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १८१३, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., "तेणं कालेणं तेणं समएणं सोगंधियाणामणगरी " पाठ से "मनुष्य संबंधि जे उच्चार पासवणादिक विष्टामूत्रा" तक, "नारकाश्चउत्पा० देवतानै उपजवाना सत्तार्नु नाम" तक व "ते स्या माटे जे ते गहिलो पो" से "ज्ञानरूपधर्मशास्त्र जाणवू १ बीजं अंगबाह्यारुप" से "दिठिवाउवएसेणं सन्नीसुय" तक है.) ९५९७३. (+) आराधनापताका भगवती, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३३, प्र.वि. हुंडी:आराधनापताका, संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४४३-४७). आराधनापताका, प्रा., पद्य, आदि: पणमिर नरिंददेविंदवंद; अंति: हेउं सेवह आराहणाअमयं, गाथा-९३२, ग्रं. १०७०. ९५९७६ (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८-१४(१ से ९,१९ से २३)=२४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हंडी:दसवीकालिकसूत्र., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ७४३५-४०). For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ गाथा-१३ अपूर्ण से अध्ययन-६ गाथा-१ अपूर्ण तक व अध्ययन-७ गाथा-१२ अपूर्ण से चूलिका-१ सूत्र-२१अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९५९७७. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३७-१(१)=३६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४५०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., देवाधिदेवकांड-१ गाथा-४१ अपूर्ण से नरककांड-५ गाथा-५५ अपूर्ण तक है.) ९५९७८. शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८-१४(१ से १४)=२४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४.५४११, १०x४३). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. प्रस्ताव-२ श्लोक-१२८ से प्रस्ताव-३ श्लोक-२०३ अपूर्ण तक है., वि. अंत में प्रतिलेखक ने पूर्णतासूचक संकेत दे दिया है.) ९५९७९. (+#) श्रावकविधि प्रकाश, अपूर्ण, वि. १८८०, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(१)=१९, ले.स्थल. लखणेउ, प्रले. श्राव. रतनचंद बोथरा; मु. धर्मचंद्र (परंपरा आ. जिनमाणिक्यसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); राज्यकालगच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४३१). श्रावकविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: (-); अंति: क्षमाकल्याण सोधीयो सुजान, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., सामायिक ग्रहण विधि अपूर्ण से है.) ९५९८१. ३१ बोल थोकडो, संपूर्ण, वि. १९७६, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १४, प्रले. मु. केसरीचंद महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:३१द्वारथो०, दे., (२५.५४११.५, ११x१९-४४).. ३१ बोल थोकड़ो, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलौ उदै द्वारकर कहै छै; अंति: ६ मासरो तप. ९५९८३. (4) मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८८३, चैत्र कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. पं. मोतीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४३२-४५). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: शिष्यैरामोदतस्त्वदः, ग्रं. १६५. ९५९८४. (+#) तीर्थमाला स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:तीर्थमाला, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११,७४३५-४०). तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेंद्रसिंहमूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: अरिहंत भगवंत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०४ अपूर्ण तक है.) तीर्थमाला स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्री अरिहंत ६४ इंद्र; अंति: (-). ९५९८७. (+) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६-२३(१ से २३)+१(२४)=२४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ५४३३). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. रत्नमाला श्लोक-६० अपूर्ण से जन्मकुंडलिका अपूर्ण तक है., वि. अंत के भाग में श्लोक संख्या का उल्लेख नहीं है.) ९५९८८ (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्त०सज्झाय., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७-१९४६०-६८). उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ गाथा-७ अपूर्ण से अध्ययन-३६ गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १८५ ९५९८९ (+) सूक्तिमुक्तावली, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-५(१ से ५)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ९x४२-४५). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४९ अपूर्ण से ९९ अपूर्ण तक है.) ९५९९०. आगमवचन चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-९(१ से ९)=९, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५.५४११.५, १०४२५-३०). आगमवचन चौपाई, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६१७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०५ अपूर्ण से २१० अपूर्ण तक है.) ९५९९२. (+) प्रतिक्रमणहेतु विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४४१). प्रतिक्रमणहेतु विचार, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अभ्यंतर तप शुद्धि अपूर्ण से प्राणातिपात शुद्धि अपूर्ण तक है.) ९५९९५ (2) हैमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७८-६८(१ से ३०,३२ से ५०,५३ से ६३,७० से ७७)=१०, प्र.वि. हुंडी:हैमीनाममाला, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १४४३८). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., केशरचना नाम अपूर्ण श्लोक-३४ अपूर्ण से सामान्येन धरती नाम श्लोक-३६८ अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं है.) ९५९९७. जंबूद्वीपनो विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२६४११.५, ११४३९). जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप लांबो पोहलो एक; अंति: सर्व ५६ अंतरद्वीपना नाम. ९५९९८.(+) मौनेकादशी महात्म्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(५)=५, ले.स्थल. पत्तननगर, प्रले. ग. जसविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५-१६४३८-४२). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२०१, (पू.वि. श्लोक-१४२ अपूर्ण से १८२ अपूर्ण तक नहीं है.) ९५९९९ (+) संघयणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, प्र.वि. हुंडी:संघयणसूत्र., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११-१२४३९-४८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१२ ___ अपूर्ण से ३१४ अपूर्ण तक है.) ९६००० (+) रविवारव्रत चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८-२(१,७)=६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १३४४०-४५). रविवारव्रत चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से १३२ अपूर्ण तक व गाथा-१५६ अपूर्ण से १८० अपूर्ण तक है.) ९६००१. (+) आदिजिन वीनतिद्वय व शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१३(१ से १३)-७, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३०-३६). १.पे. नाम. आदिनाथनी वीनती, पृ. १४अ-१६अ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: (-); अंति: मुनि लावण्यसमि भणि ए, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. संखेस्वर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १६अ-१८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६१०, आदि: सासना देवी मन धरीए; अंति: हंसभवन० लहिइं घणां, गाथा-४६. For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे नाम. आदिजिनविनती स्तवन, पृ. १८अ २०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि श्रीसरसतीजी वरसती, अंति (-), (पू. वि. गावा- ४९ तक है.) ९६००६. (#) रीखव चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १७-११(१ से ११) = ६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी : रीषवचरित्र, मूल पाठ का अंश खंडित है. जे. (२४.५x११.५, १६४३९). आदिजिन चरित्र, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. ढाल २७ गाथा ३ अपूर्ण से ढाल ३९ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) " ९६००८ (१) खंडाजोयण, संपूर्ण, वि. १८२९, चैत्र कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पू. ५, ले. स्थल, पीपाड, प्रले. सा. जीउ (गुरु सा. उदा) गुप. सा. उदा (गुरु सा. सुजाणा ) सा. सुजाणा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी. खंडाजोय, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५x११.५, १७४४८). लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडा १ जोयण २ वासा ३; अंति: ५६ हजार ९० सर्व जाणवी. ९६००९. (+०) नवस्मरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २२-११ (१ से २, ५, ८ से १५) = ११, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, ४४४२-४४). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि (-); अति (-) (पू.वि. संतिकर स्तोत्र गाथा-६ अपूर्ण से तिजयपहुत्त गाथा १० अपूर्ण तक व भक्तामर स्तोत्र गाथा- २ अपूर्ण से ४४ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवस्मरण-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). ९६०१०. (*) तेतलीपुत्र रास व महावीरजिन कृति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, १७-१९x४३-५०). १. .पे. नाम. तेललीपुत्र रास, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण, ले. स्थल पीपाड, प्रले. सा. जीउ (गुरु सा. उदा ); गुपि. सा. उदा (गुरु सा. सुजाणा); सा. सुजाणा, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. हुंडी : तेतलीनीढा ०. तेलीपुत्र चौडालिया, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि अरिहंत सिधने आयरिया, अंति अनुसारे भासो रे दाल-४ गाथा- १६३. २. पे. नाम महावीरजिन अज्ञात कृति, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: खत्रीकुंडनगररो अधिपती, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ९६०११. (A) पाशाकेवली, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ८. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२२x११, ११x१२-१४). 1 ', पाशाकेवली-: - भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: वृधी आणांद फल श्रीकार लाभ. ९६०१५. (+०) व्यवहारशुद्धविषये धनदत्त चउपई, अपूर्ण, वि. १७२३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, मध्यम, पू. ५- १(१ ) =४, ले.स्थल. कहेलवाडा, प्रले. पं. शुभविजय (गुरु उपा. अमृतविजयगणि); गुपि. उपा. अमृतविजयगणि; पठ. ग. माणिक्यविजय; अन्य. पं. वृद्धिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १३x४३). व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि (-) अति सीझई वंछित काज, ढाल-९, गाथा १७०, (पू. वि. दाल २ गाथा-९ अपूर्ण से है.) ९६०१९. (*) एकवीसठाण कोष्ठक, अपूर्ण, वि. १६०० आश्विन शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ९-२ (१ से २)-७, प्रले. सा. भीमाईजी आर्या (गुरु सा. झबाईजी आर्या); गुपि. सा. झबाईजी आर्या; पठ. श्रावि. कोडीबाई; श्रावि. सोनबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखन संवत् १६१०० लिखा है., संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १२x२७). २४ जिन २१ स्थान कोष्टक, मा.गु., को., आदि (-); अंति सेणं भंते सेणं भंते, (पू.वि. तीर्थंकरमाता देवलोकगमन द्वार अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९६०२० (+) जीवविचार, दंडक व नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८६७, माघ कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ८. कुल पे. ३, ले. स्थल, लकाणसापागंज, प्रले. पं. कस्तुरविजय (गुरु पं. जीवणविजय); गुपि. पं. जीवणविजय (गुरु पं. मोहनविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीअजीतनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १२-१४x२५-४५). १. पे. नाम जीवविचार प्रकरण, पृ. १९आ-३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवणपईव वीरं नमिऊण अतिः शांतिसूरि० समुदाओ, गाथा ५९. २. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: गयसारेण० अप्पहिया, गाथा-४७. ३. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण, पृ. ५अ-८अ, संपूर्ण. पाठ., जैदे., (२५.५X११.५, ९-१०X२४-३०). १. पे नाम. गोडीपार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ ४अ संपूर्ण. 3 नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवा जीवार पुण्णं३ पावा४ अंति तिन्निवि ए उववाए वा गाथा ७६. ९६०२१. (+) क्षेत्रसमास प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१ (५) = ६, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ४X३२-३४). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से ३२ अपूर्ण तक व गाथा-४५ अपूर्ण से नहीं है.) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि बीर श्रीमहावीर केहवड; अति: (-). ९६०२२. (+) गोडीपार्श्वनाथ व पद्मावतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : छंद., टिप्पणयुक्त विशेष १८७ पार्श्वजिन स्तवनगोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीधलपति धलदेशें अंतिः कातिविजय० नमो नमो गोडी धवल, गाथा - ३८. २. पे. नाम पदमावति छंद, पृ. ४अ ५आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु., सं., पद्य, आदि: श्रीकलिकुंडदंडं; अंति: हर्ष० पूजो सुखकारणी, गाथा-१२. ९६०२३. (+४) अष्टाह्निका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, ११४३२-३४). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु., सं., गद्य, आदि: शांतीशं शांतिकर्तारं; अंति: (-), (पू.वि. 'भोक्तव्यं तस्मात हे महात्मन' पाठांश तक है.) , ९६०२७ (+४) श्राविकाना अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८-१ (७*) = ७, ले. स्थल. सुरतबिंदर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६५११, ११४३६). " श्रावक पाक्षिक अतिचार तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि नाणंमि दंसणंमि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम, संपूर्ण ९६०२८. (+) विचार पयन्न, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. खेता ऋषि (गुरु मु. ताराजी ऋषि); गुपि. मु. ताराजी ऋषि; अन्य. मु. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है, जैदे. (२६.५४११.५ १२४३२-४४). विचारसार प्रकीर्णक, आ. महेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५७३, आदि: नमिऊण वद्धमाणं धम्म; अंति: पढिज्जमाण सुहं " देउ, गाथा-८८. For Private and Personal Use Only ९६०२९ (#) नंदीसूत्र की स्थविरावली व आवश्यकसूत्र की निर्मुक्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३२-९ (१२ से १६, २० से २३) = २३, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६११, १९४६३-७३). "" १. पे नाम थेरावलिया, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: नाणस्स परूवणं वुच्छं, गाथा-५०. २. पे नाम. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, पू. १आ- ३२आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं है. Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: (-), (पू.वि. अस्वाध्याय अध्ययन गाथा-९८ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९६०३२. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५४५, पौष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४११.५, १०-१६४३२-५२). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह अवचूरि, पृ. १अ-१५अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-१० चूलिका २. दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: धर्म उत्कृष्टमंगलंभवतीति; अंति: इति ब्रवीमीति प्राग्वत्. २.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य सह अवचूरि, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिज्जभवं गणहरं जिण; अंति: कहणाय विआलणा संघे, गाथा-४. दशवकालिकसूत्रगत गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नियूंढानि उद्धृतानि; अंति: नोपसंहृतं प्रवचनगुरुणेति. ९६०३३. (+#) नवतत्व चौपाई व द्वार स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २४-१७(१ से १७)=७, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:द्वार., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, ११४३६-३८). १.पे. नाम. नवतत्व चौपाई, पृ. १८अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व स्तवन, ग. भाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदिः (-); अंति: समक्षे चित्तमे धरी, अध्याय-९, गाथा-१६७, (पू.वि. गाथा-१६२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. द्वार स्तवन, पृ. १८अ-२४आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-२४ दंडकगर्भित, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सरसति भगवती; अंति: पद्मविजय गुण गाय, ढाल-६, गाथा-८९. ९६०३४. सिद्धहेमचंद्रशब्दानशासन-स्वोपज्ञ लघवत्ति के आख्यातवत्ति की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-५(५ से ९)=७, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक-१० आ पर रिक्ताक्षर में 'ही' लिखा है., जैदे., (२६४११, २९४७२-८७). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति के आख्यातवृत्ति की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वृधूड वृद्धौ वृध; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-४ पाद-३ सूत्र-९१ तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९६०३५. (4) जयतिहुणस्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, ६४२६-३४). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण तक है.) जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे त्रिभुवनवरश्रेष्ठ; अंति: (-). ९६०३६. (#) सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१२(२ से ३,६ से ७,९ से १६)=५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३५-४५). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: (-), (पू.वि. स्त्रीनेत्र लक्षण अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुष स्त्रीना लक्षण; अंति: (-). ९६०३७. (+) दशवैकालिकसूत्र की लघुटीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-३(२,४,११)=१६, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, २४४६५-७५). दशवैकालिकसूत्र-लघुटीका, आ. सुमतिसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति विजितान्यतेजाः०; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-९ की टीका अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९६०३८. (+#) आदिनाथदेशनोद्धार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६x२५-४५). हाह.) For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८९ . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: सिवं जंति, गाथा-८८, (पृ.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) आदिनाथ देशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सिव मोक्षि पहुंचइ, (वि. प्रतिलेखकने अंतमें अवचूरि लिखा है वस्तुतः टबार्थ है.) ९६०३९ (+) ऋषिदत्ता चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १४-४(१ से ३,५)=१०, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी;ऋषिदत्ता., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १८४४५). ऋषिदत्तासती चरित्र, म. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७६ अपूर्ण से ४६७ अपूर्ण तक है. बीच-बीच का पाठांश नहीं है.) ९६०४० (+#) बढ़ापा रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हंडी:बडो., अशद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे., (२६४११.५, १२-१४४२८). बुढ़ापा रास, श्राव. मोतीचंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: नरधनक गर बेटी जाइ कुल कडु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "माहु बारा बरसरी डावडी" पाठ तक लिखा है.) ९६०४१ (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२६-१११(१ से १०६,१०८ से १०९,११२,१२२ से १२३)=१५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:ज्ञाता०सूत्र, ज्ञाता०सू०., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४५-४७). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१५ अपूर्ण से १९ अपूर्ण तक है व बीच बीच का पाठांश नहीं हैं.) ९६०४२ (+) नवतत्व प्रकरण का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रावण शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. खडाखोटडीना पाडा, प्रले. मणिलाल लहेरचंद पांडे; पठ. श्रावि. हरकोरबाई शेठाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. खडाखोटडीना पाडामधे., संशोधित., दे., (२६४११, ११४३४-३६). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे नवतत्त्वना नाम; अंति: अजीव ते मिश्र कहीइ. ९६०४३. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, अन्य. श्रावि. मोतीकुंवर सेठाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वै०स०., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., दे., (२६४११, ५४२८-३२). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: जीव सास्वतुं ठाम. ९६०४४. (+) कर्मग्रंथ २ से ४ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-९(१ से ९)=८, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:कर्मग्रंथटबो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ५४३०-३४). १. पे. नाम. कर्मस्तव कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १०अ-१४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: देविंद वंदिनमह तं वीरं, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तुम्हे नमस्कार करओ. २.पे. नाम. बंधसामित्व सह टबार्थ, पृ. १४अ-१७अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधविहाण कहितां कर्मबंधना; अंति: गुरु पासे सांभलो. ३. पे. नाम. षडशीति कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १७अ-१७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं जिअ१ मग्गण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे चोथा कर्मग्रंथने; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक टबार्थ लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९६०४५ (+#) वैदर्भी चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, ११४२४-२६). वैदर्भी चौपाई, म. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जिणधरम माहे दीपता; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-२३ तक ९६०४६. (#) ग्रामवास विचार, जैन ज्योतिष व ज्योतिषश्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-९(२ से ३,११,१४ से १९)=१२, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११-१४४३७-४४). १. पे. नाम. ग्रामवास विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: प्रासादप्रतिमालिंगं जगती; अंति: अन्यत्र सखवान् भवेत्. २. पे. नाम. जैन ज्योतिष, पृ. १आ-२१आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. ज्योतिष, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नक्षतहमयनाडी ते चउगणी; अंति: कीयां ते दुख पांमइ जीवडो, (पू.वि. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ३. पे. नाम. ज्योतिषश्लोक संग्रह, पृ. २१आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: आलिस्यंधेधनुर्वक्र सूलाभ; अंतिः सहरि सकलि शिहृतस्य, श्लोक-५. ९६०४७. (+#) कल्पसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २९-२२(१ से १८,२० से २२,२४)=७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१०.५, १३४४५-५३). कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन वृत्त प्रसंग अपूर्ण से नेमिजिन वृत्त अपूर्ण प्रसंग तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं है.) ९६०५० (+#) रामविनोद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१-१(१)=३०, प्र.वि. हंडी:रामविनोद., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८-४२). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., समुद्देश-१ गाथा-११ अपूर्ण से है व समुद्देश-४ गाथा-९७ तक लिखा है.) ९६०५१. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-७(१ से ७)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, १३४३६-४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-७ गाथा-५ अपूर्ण से अध्ययन-११ ___ गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ९६०५३. (+#) उपदेशमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४०-५०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. ९६०५४. (+#) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(८)=८, प्र.वि. हुंडी:अष्टाहि., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १६४५१-५६). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: पद्यबंधं विलोक्य तत्, (पू.वि. "पुनमनिवोभव" पाठ से "प्रतिज्ञः प्रमुदितः" पाठ तक नहीं है.) ९६०५६. दशवैकालिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, ., (२५.५४११.५, १०४३७). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: वृद्धिविजय० जगीशेरे, सज्झाय-११, गाथा-१०८. ९६०५८. (+#) भुवनदीपकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७५० शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. संडेरा, प्रले. मु. सुमतिविजय (गुरु आ. गुणचंद्रसूरि); गुपि. आ. गुणचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.७, १३४४५). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१८१. For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य 1.1.23 191 96060 (+#) भावविषयेइलाकमार चउपई व ऋषभ गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 11, कुल पे. 2, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (24411.5, 12-14431-34). १.पे. नाम, भावविषयेइलाकुमार चउपई, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण. इलाचीकमार चौपाई-भावविषये, म. ज्ञानसागर, मा.ग., पद्य, वि. 1719, आदि: सकल सिद्धदाई सदा; अंति: न्यानसागर० अजूआलइ छे, ढाल-१६, गाथा-१८७. २.पे. नाम. ऋषभ गीत, पृ. ११आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी, मु. ऋषभदास, रा., पद्य, आदि: मरुदेवीना नंद थारा मुखडा; अंति: ऋषभदास बलीहारी रे, गाथा-५. 96063. (+) नवतत्त्व प्रकरणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 9, कुल पे. 6, ले.स्थल. कानपुर, प्रले. पं. जयविजय गणि (गुरु पं. अमृतविजय गणि); गुपि.पं. अमृतविजय गणि; पठ. मु. मुनिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (24.5411, 13438-42). 1. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. ___ नवतत्त्व प्रकरण 60 गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-५३. 2. पे. नाम. जीवविचारसूत्र, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. 3. पे. नाम. विचारषट्त्रिंशिका, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. 1579, आदि: नमिउं चौवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४२. 4. पे. नाम, चउशरण प्रकीर्णक, पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. 5. पे. नाम. सीमंधरजिन मुहपत्तिप्रमाण गाथा, पृ. ९आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सोलसहस्स हत्था चउरंगुल; अंति: श्रीसीमंधरसामीयस्साओ, गाथा-१. 6. पे. नाम. महाविदेहक्षेत्रे पात्रादि प्रमाण विचार, पृ. ९आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: महाविदेहे ऋष तस्य पातरो; अंति: विषै 212430 जोजनताइ देखै. 96064. (+) जीवविचार प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. 1880, आश्विन कृष्ण, 2, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. आहोर, प्रले. मु. फतेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (24.5411.5, 11432). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन त्रिभुवन तणौ प्रदीप; अंति: माहिथी कोउ द्धिरी उद्धरि. 96070 (+#) गौतमपृच्छासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. 1811, कार्तिक शुक्ल, 2, शुक्रवार, मध्यम, पृ. 5, ले.स्थल. लोटोती, प्रले. मु. सुजाण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (25.5411.5, 6450). गौतमपच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमिनइ तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: मोटा अर्थ छे जेहना. 96071, लघुनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 12-1(1)=11, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (24.5411.5, 16-18444-48). लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड-१ श्लोक-३९ अपूर्ण से कांड-३ श्लोक-४३२ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 192 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची 96076. चित्रसेनपद्मावती चरित्र, संपूर्ण, वि. 1855, फाल्गुन शुक्ल, 15, मध्यम, पृ. 12, प्रले. पं. शांतिसमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:चित्रसेनपद्माव., जैदे., (25411, 15447-52). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. 1524, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति: कथामकरोत् पाठकराजवल्लभः, श्लोक-१२३२. 96078. (+) स्नात्रमहोछव विधि व 30 रागनाम कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 7, कुल पे. 2, ले.स्थल. पाटडीनगर, प्रले. ग. कनकसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीसांतिजन प्रसादेत्., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (24.5411.5, 13430). १.पे. नाम. स्नात्रमहोछव विधि, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण, वि. 1836, पे.वि. श्रीशांतीजिनप्रसादेन. स्नात्र पूजा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकारसार; अंति: इम गायो रे भवि भाव धरी ते. 2. पे. नाम. 30 रागनाम कवित्त, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. 30 रागनाम कवित्त-संगीत, जसराज, पुहिं., पद्य, आदि: रसिक हिडोल राग ता के पीया; अंति: सो दीनउ गति उल्लस के, गाथा-२. 96089 (+#) गौतमपृच्छा सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. 1860, वैशाख शुक्ल, 8, गुरुवार, मध्यम, पृ.७७, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. मु. लालजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गौतमपृच्छा., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (1) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (23.5411.5, 11-13430-35). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४. गौतमपच्छा-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा कि कहता नमिने; अंति: घणो महत्वे करीने कह्या. गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा वीरं जिनं; अंति: हर्षपूरेण भावतः. 96094. उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 110-101(1 से 101)=9, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्य.वृ., जैदे., (23.5412, 15448-52). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१० गाथा-४ अपूर्ण से अध्ययन-११ गाथा-२४ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). 96097. (+#) सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. 6, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (23412, 20445-52). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वपु पवित्री कुरु तीर्थ; अंति: भवेद्धि जननी मम सूनोः, (वि. गाथा संख्या अव्यवस्थित है.) 96098 (2) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. 1938, आषाढ़ कृष्ण, 11, शुक्रवार, मध्यम, पृ. 12, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रले. पं. रतनचंद (खरतर गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., कल्पाऽर्थ., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (25.5412.5, 10-14427-36). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-३८ "पिच्छइ सा गगणमडलवि" गद्यांश तक है.) 96099 (+) खेचरमंजरी सह ग्रहगतिकरणी की सारणी, संपूर्ण, वि. 1881, वैशाख कृष्ण, 2, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. 12, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. विनयचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (25.5412.5, 14430). खेचरमंजरी, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्तीर्थपति पुनर; अंति: ना विरचि खेचरमजरीयं, श्लोक-९. खेचरमंजरी-ग्रहगतिकरणी की सारणी, संबद्ध, रा., यं., वि. 1665, आदिः (-); अंति: (-), (, चैत्र शुक्ल, 15) 96100 (+#) लीलावती गणित शास्त्र, दाडिमादिबीजसंख्याज्ञानविधि श्लोक व ज्योतिष विचार श्लोक, संपूर्ण, वि. 1922, मार्गशीर्ष कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. 24, कुल पे. 3, प्र.वि. हंडी:लीलावती., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (24.5412, 14432-36). १.पे. नाम. लीलावती गणित शास्त्र, पृ. १अ-२४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य 1.1.23 लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. 1736, आदि: शोभित सिंदूर सीस पूर गज; अंति: थयौ वरत्यौ जनसुख काज, अध्याय-१६, गाथा-७०७. 2. पे. नाम. दाडिमादिबीजसंख्याज्ञानविधि श्लोक, पृ. २४अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दाडिमस्य सुपक्वस्य; अंति: द्गुण बीज कही देहु, श्लोक-२. 3. पे. नाम. ज्योतिष विचार श्लोक, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. ___ ज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सरेषयुक्तं त्रिधनंजयेन; अंति: 12 नौ भाग देवौ लब्धते सर. 96101 (+) समरादित्य चरित्र-५ से ९भव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 188, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (24.5411, 12438-44). समरादित्यकेवली चरित्र, उपा. क्षमाकल्याण; पंन्या. सुमतिवर्धन, सं., प+ग., वि. 1872-1874, आदिः (-); अंति: मिथ्यादुष्कृतं भवतु, प्रतिपूर्ण. 96109 (4) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पद व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 18-10(1 से 10)=8, कुल पे. 30, प्र.वि. हुंडी:स्तुति., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (26412, 14438). 1. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: वंदामि जिणे चौवीसं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-४३ अपूर्ण से है.) 2. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, म. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिनवर आदि जिनवर आदि; अंति: उदय० संपति लहिइ लील विलास, गाथा-५. 3. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ११आ, संपूर्ण, प्रले. पं. शुभविजय गणि; पठ. पं. कनकविजय (गुरु पं. शुभविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य. म. राम, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय तु जिनराज आज पुन्ये; अंति: रंगविजय० राम करे प्रणाम, गाथा-३. 4. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अंगदेश चंपापुर वासी; अंति: तस घर नित्य दीवाली, गाथा-४. 5. पे. नाम. पंचतिर्थि स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंदं पढमं जिणं; अंति: सया अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. 6. पे. नाम. बीजदिन स्तुति, पृ. १२आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. 7. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तति, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन नेमि जिनेसर स्वा; अंति: रत्नविमल जयमाला, गाथा-४. 8. पे. नाम, पंचमी स्तति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमि पंचरूप; अंति: कसलं धिमतां सावधाना, श्लोक-४. 9. पे. नाम. इग्यारस स्तुति, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. ____ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुणहर्ष० संघ तणा नसदीस, गाथा-४. 10. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ संभाली; अंति: श्रीसंघ विघन निवारि, __गाथा-४. 11. पे. नाम. अष्टमीवीर स्तुति, पृ. १४आ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं सम्मोह; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. 12. पे. नाम, अष्टमी स्तुति, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 194 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अष्टमीतिथि स्तुति, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आठम तप महिमा मोटा कह्यो; अंति: विजय वाचकनो सेवक भासे भाण, गाथा-४. 13. पे. नाम, चतुर्दशी स्तुति, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण.. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. 14. पे. नाम. शांति स्तुति, पृ. १५आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. 15. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण __गाय, गाथा-४. 16. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १६अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजमंडण आदि; अंति: नंदसूरि पाय सेवता, गाथा-४. 17. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाउल जाई; अंति: जो तूसै देव अंबाई, गाथा-४. 18. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-उनामंडण, मु. लक्ष्मीरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो वामासुत जिनराया कमठ; अंति: हजारा लक्ष्मीरत्न जयकारा, गाथा-४. 19. पे. नाम. नेमि स्तुति, पृ. १७अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगिरनारि गुण निलो जे; अंति: मुनि उदयरत्न सुखदायका, गाथा-४. 20. पे. नाम, ऋषभ स्तुति, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. ___ आदिजिन पद, म. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव मोरि मन वसे उंची; अंति: वीर सेवक सुख संपत्ति वरी, गाथा-४. 21. पे. नाम. दिवाली स्तुति, पृ. १७आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पनोता पुन्ये; अंति: लबधि लील लखमी रीजेजी, गाथा-४. 22. पे. नाम, पर्वपजुसण स्तुति, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतर भेद जीन पुजा रचि; अंति: पूरे देवी सिद्धाई जी, गाथा-४. 23. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १८अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिसर आदिजिनवरा; अंति: ते होयो नित्य मेघ मंगलकरा, गाथा-१. 24. पे. नाम. अजितजिन पद, पृ. १८अ, संपूर्ण. मु. भीम, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिनेसर भावि वंदीइं; अंति: तेथी भीम सकल लीला लही, गाथा-१. 25. पे. नाम, महावीरजिन पद, पृ. १८अ, संपूर्ण. म. भीमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धारथ त्रिसलनानंद; अंति: भीमविजय० सिद्धाइका माता, गाथा-१. 26. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. म. विजयदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जय गौतम हितकर वीर जिणेसर; अंति: कमला गले मुगताफल हार, गाथा-१. 27. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. १८आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: सन्नो देवी देयादंबा, श्लोक-१. 28. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंदीरसामी केवला; अंति: मुझ आवागमन निवार निवार, गाथा-१. 29. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १८आ, संपूर्ण. पंन्या. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर अति अलवेस; अंति: नित नित आशा पूरे जी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य 1.1.23 30. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन पद-शांतलपुरमंडण, पृ. १८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मुनिसुव्रतजिन पद-सांतलपुरमंडण, मा.गु., पद्य, आदि: सांतलपुरमंडण दूरीत खंडण; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) 96112. (4) सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 16, प्रले. मु. धीरविजय (गुरु पं. थिरविजय गणि); गुपि. पं. थिरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (25.5411.5, 16x40-42). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं नमस्कृत्य सर्वज्ञ; अंति: लक्ष्मीवृद्धिं करोति च, अध्याय-३६, श्लोक-२७१. सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली आउ जोई जइ लक्षण आयु; अंति: सपुत्रणी होइ सुसकरमी हवइ. 96114. (+) सकलार्हत् स्तोत्र, युगादिधीश प्रथमजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. 1836-1838, मध्यम, पृ. 11, कुल पे. 6, ले.स्थल. भिन्नमाल, प्रले. ग. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (25411, 22452-56). १.पे. नाम. सकलाह स्तोत्र सह टीका, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, वि. 1836, कार्तिक शुक्ल, 14, प्र.ले.श्लो. (12) मंगलं लेखकानां च, (966) जलाद्रक्षे थलाद्रक्षे. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: श्रीवीरं प्रणिदध्महे, श्लोक-२६. सकलार्हत् स्तोत्र-टीका, ग. कनककुशल, सं., गद्य, वि. 1654, आदि: वयम् आर्हत्यं; अंति: शोधनीयेयमादरात्. 2. पे. नाम. युगादिधीशप्रथमजिन स्तवन सह व्याख्या, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण, वि. 1836, कार्तिक शुक्ल, 14. शत्रंजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: हे आदिनाथ आदिः; अंति: थमपुरुषाद्यवचनं तुम्. 3. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टीका, पृ. ५आ-१०अ, संपूर्ण, वि. 1838, ज्येष्ठ शुक्ल, 2, मंगलवार, पे.वि. श्रीवीरप्रभु प्रसादात. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-अक्षरार्थदीपिका अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अहं किंचिदपि जीव; अंति: सकलसंघ श्रेयसे त्विति. 4. पे. नाम, नेमिनाथ स्तव सह व्याख्या, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र, म. शालिन, सं., पद्य, आदि: मानेनानून मानेनानोन्; अंति: वध्वाः परिभोगयोग्याः, श्लोक-९. नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: आनुमः स्तुमः के कर्तारो; अंति: उत्कीर्तनमित्यर्थः. 5. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति सह अवचूरि, पृ. ११अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्मसेवा; अंति: प्रभावदाता ददतां शिवं वः, श्लोक-१. साधारणजिन स्तुति-अवचरि, सं., गद्य, आदि: तीर्थस्य राजा तीर्थ; अंति: दृष्टित्वं सूचितं. 6. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति सह टीका, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति-नैवेद्यगर्भित, सं., पद्य, आदि: घात्या घेवर लापसीमरते; अंति: श्लोकेरसोयिप्रभो, श्लोक-१. साधारणजिन स्तुति-नैवेद्यगर्भित-टीका, सं., गद्य, आदि: अयीति कोमलामंत्रणे; अंति: जानंतीति वृत्तार्थः. 96117. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. 1853, पौष शुक्ल, 5, गुरुवार, मध्यम, पृ. 18, ले.स्थल. अहैलाणा, प्रले. मु. खीमसुंदर (गुरु मु. रत्नसुंदर); गुपि. मु. रत्नसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीप्रभुपार्श्वजिन प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (24.5411, 6x25-28). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमदारमवद्यभेदि; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: मंगलीकन मंदिर वांछिततण; अंति: कालमांहि मोक्ष प्रति पामइ. For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 196 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची 96118. (+) शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 8-3(1 से 3)=5, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (25.5411.5, 12436-38). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. 1678, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-८ दोहा-४ अपूर्ण तक है.) 96120 वियाहपन्नत्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८,प्र.वि. हंडी:विवाहपन्न०., दे., (24410.5, 5-18444-56). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., शतक-१ उद्देश-२ सूत्र-२ अपूर्ण तक लिखा है.) भगवतीसूत्र-टबार्थ, मु. सत्यसागर, मा.गु., गद्य, आदि: सुखसंततिवृद्ध्यर्थं; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. 96121. (+) गच्छाचार प्रकीर्णक सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 9-1(6)=8, प्र.वि. हुंडी:गच्छाचार., पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ., जैदे., (23.5411, 5-8438-42). गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीर तियसंदनमंसिअ; अंति: इच्छंता हियमप्पणो, गाथा-१३६, (पू.वि. गाथा-७६ अपूर्ण से गाथा-९३ अपूर्ण तक नहीं है.) गच्छाचार प्रकीर्णक-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आदौ शास्त्रकारः स्वे; अंति: द्यताः इति गाथार्थः. 96125. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह प्राकृतवार्तावृत्ति, अपूर्ण, वि. 1692, वैशाख कृष्ण, 11, रविवार, मध्यम, पृ. 18-9(1 से 9)=9, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. जयसींगदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भक्तामरनीवृत्तिःटी०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (25.5411, 14-15432-48). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-१९ से है.) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध+कथा, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: लक्ष्मी स्वयं वरइ. 96126. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 51-43(1 से 26,31 से 47)=8, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:उपदेसमाला., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (25411.5, 2-9438-57). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०३ से 125 अपूर्ण तक व गाथा-३६३ अपूर्ण से 444 अपूर्ण तक है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). उपदेशमाला-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). 96128. (+) देवसिप्रतिक्रमण सूत्र विधिसहित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 9-1(8)=8, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पडीक्कमणासुत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (25412, 11430-32). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. संसारदावानल स्तुति तक है व वंदित्तु गाथा-३७ से वरकनक स्तुति गाथा-२ अपूर्ण तक नहीं हैं.) 96129. (+) शांतिक विधि, अपूर्ण, वि. 1946, माघ शुक्ल, 4, मध्यम, पृ. 10-3(1 से 3)-7, ले.स्थल. जेपूर, प्रले. मु. मनसाराम ऋषि (बृहत्विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (24.5411.5, 12-13435-45). शांतिक विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: रोगशोक० दूरतो यांति, (पू.वि. 10 दिक्पाल विधि अपूर्ण से है.) 96130 (+) प्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 15-3(1,13 से 14)=12, कुल पे. 3, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (25412.5, 9435). १.पे. नाम. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र विधिसहित, पृ. २अ-१२आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र हैं. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक इरियावही पाठ अपूर्ण से लघुशांति गाथा-११ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४, (पू.वि. गाथा - १ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: (-), (पू.वि. मात्र गाथा - १ अपूर्ण तक है.) ९६१३१. (+) श्राद्धप्रतिक्रमण विधि सह भावार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५X१२, १८४६-५६). १९७ देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (वि. अंत में पांच आश्रव का नाम लिखा है.) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः ये विहरमाण त्रिभुवननी; अंति: चउवीस० वांदु नमस्करु छु. ९६९३५. शकुनावली भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२६४१२, २१-२३x४६-५०). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवति, अंति: (-), (पू.वि. शकुन संख्या-४३४ तक है.) ९६९३७ (१) जैन ज्योतिष, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. दे. (२५x११. १५X४२). जैन ज्योतिष मुहूर्त विचार*, प्रा.सं., प+ग, आदि: प्रवेशनक्षत्राणि पुष्य१; अंति: शनौ पूर्णा च मृत्यदा. ९६१३९. (*) पाशाकेवली भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैये., (२३.५x११, १२-१४X३८-४०). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम स्थानक थकी लाभ; अंति: उत्तम श्रीकार छे. १६१४० () योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-४(३,८,१०,१५) १२, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५x११.५, १३X४०-४४). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अति: (-), (पू. वि. गाथा- ४४८ अपूर्ण तक है व बीच के गाथांश नहीं है.) ९६१४१. (+#) वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : वैद्यव०., टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५X१२, ५X३०-३२). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि, अंति: (-), (पू.वि. विलास-२ श्लोक-२९ अपूर्ण तक है.) वैद्यवल्लभ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशारदा प्रतें हइडें अति: (-). ९६९४३. (*) महावीरजिन स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१४, कार्तिक कृष्ण ९, मध्यम, पृ. १२, प्र. वि. त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३.५X११.५, १७-२२X४४-४८). महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि प्रणमी श्रीगुरुना पय; अति गुरु आणा सिर वहेस्ये जी, ढाल ६, गाथा- १४८ . २२८. महावीरजिन स्तवनस्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जत्थय जं जाणिज्जा; अति: निर्यक्तिमध्ये छई. For Private and Personal Use Only ९६१४५. प्रतिमा संबंधी बोल व जैनसिद्धांत संदर्भश्लोक-पुराणगत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, जैदे., (२४X११, ११x४०-४३). १. पे. नाम. प्रतिमा बोल संग्रह, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. प्रतिमासंबंधि बोल, मा.गु., गद्य, आदि श्रावकनां बारव्रत छे अंतिः कल्पसूत्रमांहि जोइ लेज्यी. २. पे. नाम. जैनसिद्धांत संदर्भश्लोक-पुराणादिगत, पृ. ३आ-७आ, संपूर्ण. 3 जैन सिद्धांत संदर्भश्लोक-पुराणगत, सं., पद्य, आदि: अहिंसा १ सत्य २ अंति सोपिशूद्रायुधिष्ठर (वि. श्लोक संख्या क्रमशः नहीं लिखा है.) Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९६१४६. (+) सुकनावली भाषा, संपूर्ण, वि. १९३२, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. गोलनगर, प्रले. मु. नवलसोम; गुभा. मु. शिवलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४१२, ११-१३४२८-३४). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: थारे इंद्री उपर तील छइं. ९६१५१ (+) सिद्धांतचंद्रिका सह सदानंदी वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५, प्र.वि. हुंडी:सदानंदी., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४३१-३३). सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: पुराणपुरुषं ध्यात्वा; अंति: (-), अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य महेशानं मत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., हस संधि अपूर्ण तक है., वि. मात्र मूल सूत्र ही है.) ९६१५२. (+) सुयगडांगसूत्र-श्रुतस्कंध २ अध्ययन १, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सुगडंग०., संशोधित., दे., (२४४११, ६-७४३८-४४). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. "एवंविप्पडिवेदंति० किरियाइवा अकिरियाइ" पाठ तक है.) ९६१५४. देवसिपडिकमणो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ., (२४.५४११.५, १२४३१-४१). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: तीन नवकार गुणी थापना थापी; अंति: (-), (पू.वि. "सुयदेवइभगवइ आराधवा निमित्तं" पाठ तक है.) ९६१५६. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प. १५५-६३(१ से २५,२७ से २८,३० से ३७,३९,४९,५८ से ६६,६८,७०,८१,९० से ९१,१२५ से १३५,१४९)=९२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ३-५४२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-२९ अपूर्ण से सूत्र-११३५ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९६१५७. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४१-१०८(१ से ८९,१०४,११३ से १३०)=३३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पट०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ७-१५४४२-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पार्श्वजिन चरित्र सूत्र-१५७ अपूर्ण से समाचारी व्याख्यान सूत्र-६४ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९६१५८. (+) कल्पसूत्र सह कल्पकिरणावली टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २००, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४९-५५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६, संपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदि: प्रणम्य प्रणताशेष; अंति: (-), __ ग्रं. ५२१६, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम प्रशस्ति भाग श्लोक-२१ अपूर्ण तक लिखा है.) ९६१५९ (+) सारस्वत व्याकरण की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३६-५(१ से ५)=१३१, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १५४५०). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., हसानां संज्ञा पाठ "स्वरहीनं० इतएतिगच्छतिइत" से "वृषभेण पंगुः खंजः पुमात् ऊढः" पाठ तक For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९६१६१. (+#) समरादित्य चरित्र सह छाया, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ४७९-३१६(१ से २५३,२९५ से २९७,३००,३०५ से ३२२,३२५ से ३६५)=१६३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:समरादित्य चरित्र. पत्रांक-३२४ के बाद पत्रक्रम का उल्लेख नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, ८-१८x२०-५०). समराइच्चकहा, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भव-१ अपूर्ण से भव-८ अपूर्ण, संवरनाथ प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) समराइच्चकहा-छाया, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ९६१६२. औपपातिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९७-१(३)=९६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, ५४४३). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. "आसत्तोसत्तविउलवद्दः वग्घारीयमल्लदायकलावे:" पाठ से "लमंतोलतमंतो पूफमंतो फलमंतोः" पाठ तक, "अमुककमकवयाः अजराय संगाय" पाठ से नहीं है.) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणि कालि चउथा अरानइ विषइ; अंति: (-). ९६१६५. पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७७, आषाढ़ कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. सूर्यपुर, प्रले. मु. दोलतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पुण्यप्रकास तवन. श्रीअभिनंदनजिन प्रासादात्., जैदे., (२४४१०.५, ११४२७-३५). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०५. ९६१६७. (+) प्रतिक्रमणसूत्र, पार्श्वनाथ नमस्कार व चौद श्रावकनियम गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ५४३५-४२). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-१६अ, संपूर्ण. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० १पद; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, संपूर्ण. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुयो अरिहंत० पद९; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "नाणेतहदंसणेचरित्ते सुहमोयवायरो" पाठ तक टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ नमस्कार सह टबार्थ, पृ. १६अ-२२आ, संपूर्ण. जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तियणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभयदेव०विनवइ अणिंदिअ, गाथा-३०. जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जयवंतउ थाउ त्रिभुवन; अंति: माहे श्लाघा सहित. ३. पे. नाम. चौद श्रावक नियम गाथा सह टबार्थ, पृ. २२आ, संपूर्ण. १४ श्रावकनियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त १ दव्व २ विगइ; अंति: १३नाहण १४ भतेसु, गाथा-१. १४ श्रावकनियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व फल आदे देइने; अंति: १३ भात १४ नेमनी गाथा. ९६१७० (+#) जीवविचारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. वल्लभरूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, ४-५४३४-३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, संपूर्ण.. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ___ गाथा-९ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ९६१७३. (+#) नवतत्त्वप्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-३(१ से ३)=१३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १३४२८-३२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ से ४६ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९६१७५ (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३२, श्रावण कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. नेरनगर, प्रले. पंन्या. ज्ञानकुशल (गुरु मु. हर्षकुशल); गुपि. मु. हर्षकुशल (गुरु मु. भक्तिकुशल); पठ. श्रावि. नानबाई; अन्य. पं. नायकविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ४४३७-४१). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण जगमाहि दीपक समान; अंति: सिद्धांतसागरमाहिथी काढ्यो. ९६१७८. स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १३४३९). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन स्तुति ___ श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) ९६१७९ (+#) शालिभद्र चौपाई व धर्मतरुफलदायक श्लोक, अपूर्ण, वि. १८६८, फाल्गुन कृष्ण, ३०, बुधवार, मध्यम, पृ. २२-१(९)+१(१९)=२२, कुल पे. २, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. पं. अमृतसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३८-४०). १.पे. नाम. शालिभद्र चौपाई, पृ. १आ-२२अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइ जी, ढाल-२९, गाथा-५११, (पू.वि. ढाल-१० गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-१२ गाथा-१ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. धर्मतरुफलदायक श्लोक, पृ. २२अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सकलजन्मविभूतिरनेकधा; अंति: धर्मतरोः फलमीदृशम्, श्लोक-१. ९६१८० (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-२३(१ से २३)=५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १२४४२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कांड-३ श्लोक-८६ अपूर्ण से है व श्लोक-१६३ अपूर्ण तक लिखा है.) ९६१८२. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह अर्थदीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२९-२१०(१ से ४०,४४ से ५२,५४ से १२९,१३२ से १३७,१४९,१५१ से २२८)=१९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. हुंडी:श्रीप्रति०वृ., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १५४४२-५२). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ से ४८ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. अंत में पत्रांक-२२९ पर प्रतिक्रमणसूत्र टीकागत पौषधव्रते देवकुमारप्रेतकुमार कथादि प्रसंग है.) वंदित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ की टीका अपूर्ण से ४८ की टीका अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९६१८३. चतुःशरणप्रकीर्णक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१(३)=६, प्रले.ऋ. श्रुतकीर्ति (गुरु पं. राजकीर्ति, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चउ०.बा०.बो०., जैदे., (२६४११, १५४३७-४२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, - गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से गाथा-२५ तक नहीं है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलीक भणी पहेलू षट्विधि; अंति: वातनो संदेह न करिवो सही. ९६१८४. (+) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १२४३७). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो माता; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., महावीरजिन स्तवन, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २०१ ९६१८५ (+) सीलसंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३-२५(१ से २५)=८, प्र.वि. हुंडी:सी०., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४०). शीलसंदरीसती चौपाई, पंन्या. राजविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: (-); अंति: जिम गगने ध्रुतारी जी, ____ ढाल-३८, गाथा-८५५, (पू.वि. ढाल-२८ गाथा-१ अपूर्ण से है.) । ९६१८६. (+#) दृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४-५(१ से ४,१७)=१९, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७X४६). दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., मेहता कथा अपूर्ण से सिंह सियार कथा अपूर्ण तक है व बीच के पाठ नहीं हैं.) ९६१८७. (#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१(१)=१६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ७४३८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम श्रुतस्कंध प्रथम अध्ययन पाठ __ "रेतिरः किठसगडियगेण्हति विपुलस्स" से प्रथम श्रुतस्कंध अध्ययन-९ पाठ "आमतियाइं समणो तिव्वालकारविभूतिया" तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९६१८९ (+) सीमंधरस्वामी स्तवन सह स्वोपज्ञ टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. सुरतिबंदिर, प्रले. पंडित. श्रीविजय; पठ. श्राव. देवराज साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री पार्श्वनाथजी प्रसादात्., पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४३६). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५, ग्रं. १८८, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेव; अंति: परोपगारी श्रीसाहेबजी, ग्रं. १५५, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा-२ से ढाल-१० गाथा-२ तक लिखा है., वि. टबार्थ पंचपाठ शैली में लिखा है.) ९६१९०. औपदेशिक कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७-४(३ से ६)=२३, जैदे., (२५.५४११, १५-१७४४१-६२). औपदेशिक कथा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: कुमारनंदेर्न परोस्तु; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "शीतलवायकरी प्रमार्जे नाह्रीर्धा" पाठ तक है.) ९६१९४. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६१-४१(१,३ से १६,३५ से ६०)=२०, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ७X४८-५०). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ "णदंसणचरित्ते उराले घोरे घोरवए घोरतवस्सी" पाठ से "धम्मदएणं धम्मदेसिएणं धम्मेवरचा" तक "ढायमामाणी अपरियाणमाणी उसणीयासं" पाठ से "अमेहिकालगतेहिं परिणझवएव" तक व श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ पाठ "जइणं भंते समणेणं भगवया महावीरेण" से "रायगिहे णगरे विझएणामत करे होत्था" पाठ तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९६१९६ (+) नलदवदंती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८५६, चैत्र शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ३५-१५(१ से १५)=२०, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. सा. जीउ (गुरु सा. पना); गुपि. सा. पना (गुरु सा. बालाजी आर्या); सा. बालाजी आर्या (गुरु सा. चनाजी आर्या); सा. चनाजी आर्या (गुरु सा. हीराजी आर्या); सा. हीराजी आर्या (गुरु सा. उदाजी आर्या); सा. उदाजी आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:दवयंती०, संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४३६). नलदमयंती रास, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदिः (-); अंति: समयसुंदर चित्तवास, खंड-६ ढाल ३९, गाथा-९३१, ग्रं. १३५०, (पू.वि. खंड-४ ढाल-१ की गाथा-८ से है.) ९६१९७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१२(१ से ३,५ से ११,१४ से १५)=८, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्ययन., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ५४४२). For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम अध्ययन, गाथा-२७ अपूर्ण से ३८ अपूर्ण तक, अध्ययन-३ गाथा-१४ अपूर्ण से अध्ययन-४ गाथा-१२ अपूर्ण तक व अध्ययन-५ गाथा-२५ अपूर्ण से अध्ययन-८ गाथा-१० अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९६२०० (+) शतक नव्य कर्मग्रंथ का प्रकृति यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७-१(१)=६,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १७-२४४५०-५१). शतक नव्य कर्मग्रंथ-प्रकृति यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: तत्र प्रकृति उद्कृष्ट बंध; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पाठ "स्वामी पंचेसनीयो असेनीयो २" तक है.) ९६२०१ (+) आम्रराजा प्रबंध व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१-१(१२)=२०, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १३४४६-४९). १. पे. नाम. आम्रराजा प्रबंध, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, आदि: न भेतव्यं पातकेभ्यः; अंति: भवसिटान्निर्लक्षणागारतः, श्लोक-११४. २.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ६अ-२१आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. भिन्न भिन्न कर्तक, सं., पद्य, आदि: अधरस्यमधुरमाणं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-११५ से २४१ अपूर्ण तक व २७२ ___ अपूर्ण से ५०२ अपूर्ण तक है.) ९६२०२. (+) पर्मार्थवचनिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पत्तननगर, पठ. श्रावि. हर्षमदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री हेमसागरसूरि प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३०-३४). चौभंगी रूपकार वचनिका संग्रह, पुहि., गद्य, आदि: एक जीव द्रव्यता के; अंति: कल्याणकारी हि भाग्यप्रवान. ९६२०३ (+#) उपासकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २१-१३(१ से ११,१५ से १६)=८, प्रले. पं. कमलसुंदर (गुरु उपा. साधुकीर्ति); गुपि. उपा. साधुकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपाशक, संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११,१५४३५-४०). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२, (पृ.वि. अध्ययन-४ "धित्ताणं विहरामि तएणं तस्स सुरादेवस्स" पाठ से अध्ययन-७ "एवं खलु मम धम्मोयहिएधम्मोवएसएणा" पाठ तक व अध्ययन-७ "निग्रंथाणंदिट्ठवमेता पुणरविआजविय" पाठ से है.) ९६२०६. (4) नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-१९(१ से १९)=७, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, ११-१३४३५). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., "संगहिणीउ संखिज्जाउपडिवतीउ" पाठ से "परिनिट्ठसत्तमए सुतत्थो" तक है.) ९६२०७. (+#) दानकल्पद्रुम, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १७४५४-६०). दानकल्पद्रम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: स श्रेयस्त्रिजगद; अंति: (-), (पू.वि. पल्लव-८ श्लोक-६० अपूर्ण तक ९६२१० (+) परदेशीराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८२६, चैत्र शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. २५-१७(१ से १७)=८, ले.स्थल. पीपाड, प्रले. सा. जीउ (गुरु सा. उदा); गुपि. सा. उदा (गुरु सा. सुजाणा); सा. सुजाणा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रदेशीराजा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, २०४५९). प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: रे मिच्छाम दोकडमो मोयो रे, ढाल-३८, गाथा-७००, (पू.वि. ढाल-२५ गाथा-२७ अपूर्ण से है.) ९६२१२. (+#) जैन धर्मोपदेश श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८-४(१ से ४)=३४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. कुछेक पत्रों के पत्रांक भाग खंडित है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ९४३०). जैनधर्मोपदेश श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. श्लोक-४२ अपूर्ण से ४४५ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २०३ ९६२१३. (*) दंडक बोल, अपूर्ण, वि. १७०४ मध्यम, पृ. २२-१ (१) = २१ ले स्थल लींबीया, प्रले. मु. कचरा ऋषि पठ. मु. सुरताण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : दंडक., संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, १५X३०-४०). महादंडक ३० द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ६नुं आंतरुं डंडक बोलई, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., "रोहणीनउरस एहपाहि अनंतगुणाइ" पाठ से है., वि. अंत में विद्या विषयक गाथा दी है.) ९६२१५. (*) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह वालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ५३-३७(१ से २१, २४ से ३०, ३३ से ३८,४६,४९,५२)=१६. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित, जैये. (२५x११, १५x४१-४३). " पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चैत्यवंदनसूत्र अपूर्ण से वंदित्तु गाथा-१४ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय- बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह तपागच्छीय- कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ९६२१६. (*) जातककर्म पद्धति की सुबोधिनी टीका, अपूर्ण, वि. १७५४ फाल्गुन शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. ३७-३ (५ से י' ६, २८) =३४, ले. स्थल. श्रीपुर, प्रले. उपा. उदयशेखर (गुरु उपा. क्षमाशेखर) गुपि उपा. क्षमाशेखर (गुरु उपा. सुमतिशेखर); उपा. सुमतिशेखर (गुरु मु. कनकशेखर): मु. कनकशेखर (गुरु उपा. हरशेखर); उपा. शेखर (गुरु उपा. धर्मशेखर); उपा. धर्मशेखर (गुरु आ. पद्मशेखर); आ. पद्मशेखर (गुरु आ. नन्हसूरि) आ. नन्हसूरि (गुरु आ. यशोदेवसूरि); आ. यशोदेवसूरि (गुरु आ. शांतिसूरि) आ. शांतिसूरि (गुरु आ चंद्रसूरि) आ. चंद्रसूरि राज्यकालरा भारमल्लजी, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:श्रीपतीसुगमबोधटीका., संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X१०.५, १६-२०X४०-४४). जातककर्म पद्धति-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सुमतिहर्ष, सं., गद्य वि. १६७३, आदि: श्रीअश्वसेनिचलनांबुज अति शुभ्रे षष्टी दिने, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२१७. (*) अभिधानचिंतामणि नाममाला- मर्त्यकांड से सामान्यकांड, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ६१-१९ (१ से १९) =४२. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, जैये. (२५.५x१०.५, १३३८-४२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्म, वि. १३वी आदि (-); अति: (-), ग्रं. १४५२, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. मर्त्यकांड- श्लोक-१८ अपूर्ण से है.) ९६२१९. (+) गोरावादल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३०. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैटे 1 " (२४४९.५, १३-१५X३२-३४). गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., पद्य वि. १६४५, आदि सुखसंपतिदायक सकल; अति: (-), (पू.वि. गाथा ६०५ तक है.) ९६२२१. (*) सिंहासनवत्रीसी, संपूर्ण वि. १७९५, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पू. ३१, प्र. वि. हुंडी सिंहासणचोपई., संशोधित, जैदे (२६X१०.५, २०-२१x६०-८० ). सिंहासनवत्रीसी चौपाई दानाधिकारे, पंन्या, हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि आराही श्रीहरषप्रभु जुगला; अंतिः रिद्धि पामइ बहु परह, कथा-३२, गाथा-२४२२. ग्रं. ३५००. ९६२२३. 1 ९६२२२. (*) दशवैकालिकसूत्र व दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २० कुल पे. २. प्र.वि. हुंडी:दशवैकालिक., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११.५, १३-१४X३५-४५). १. पे नाम. दशवैकालिकसूत्र. पू. १आ-२०आ, संपूर्ण, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्किङ्कं अंतिः सव्वदुहाण मुच्चइ त्तिचेमि, अध्ययन- १० चूलिका २. (#+) २. पे नाम. दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा, पृ. २०आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिज्जंभवं गणहरं जिण, अंति कहणाय विआलणा संघे, गाथा- ४. ) उत्तराध्ययनसूत्र सह अधिरोहिणी वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३३३-३१५ (१ से ६८,७० से २३७, २३९ से ३१६,३३१)=१८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५X११.५, १३x४२). For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-११ गाथा-३१ से अध्ययन-१८ गाथा-३९ अपर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६८९, आदि: (-); अंति: (-). ९६२२४. (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, प्र.वि. हुंडी:सज्झाय., संशोधित., दे., (२५४११, १०४२७-३६). १.पे. नाम. नागीलानी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भवदेव भाई घेर आवीया; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-७. २. पे. नाम, आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: धोबीडा तुं धोजे मननु; अंति: शिवसुखनी दाय रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. मांकण सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. भवसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मांकणनो चटको दोहि; अंति: जीवनी करजो जणा हो, गाथा-८. ४. पे. नाम. राजिमति स्वाध्याय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. राजिमती सज्झाय, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निंदडलीनी होजी चंद्रावदनी; अंति: शीद्धविजय० वयरण होई रही, गाथा-८. ५. पे. नाम. ढंढणऋषि स्वाध्याय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: कहै जिणहरष सुजाण रे, गाथा-९. ६.पे. नाम. यशोधरशेठनी सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अवनितल नयरी वसे जी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ९६२२७. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१४, कार्तिक कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. २९, कुल पे. ५, ले.स्थल. जिहानाबाद, प्रले. पं. कर्पूरचंद्र पंडित; पठ. श्राव. विश्वनाथ लाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, ६४१८-३५). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:भक्तामर. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४८. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ९अ-१५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कल्या०. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३. पे. नाम, विषापहार स्तोत्र, पृ. १५अ-१९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:विषापहार. जै.क. धनंजय कवि, सं., पद्य, ई. ७वी, आदि: स्वात्मस्थितः सर्वगत; अंति: सुखानि यशोधनंजयं च, श्लोक-४०. ४. पे. नाम. भूपालपच्चीसी स्तोत्र, पृ. १९आ-२४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:भूपाल०. २४ जिन स्तव, श्राव. भूपाल, सं., पद्य, आदि: श्रीलीलायतनं महीकुल; अंति: भूयात् पुनदर्शनम्, श्लोक-२५. ५. पे. नाम. एकीभाव स्तोत्र, पृ. २४अ-२९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:एकी०. आ. वादिराजसूरि, सं., पद्य, ई. ११वी, आदि: एकीभावं गत इव मया; अंति: वादिराजमनुभव्य सहाय, श्लोक-२६. ९६२२८. (+) विशेषशतक संक्षेप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३३-४०). विशेषशतक संक्षेप, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (१)सुधर्मास्वामिनं नत्वा, (२)ननु श्रीकृष्णवासुदेवस्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रश्न-५९ तक लिखा है.) ९६२३० (+) पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३२, प्र.वि. हुंडी:कल्पार्थ., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४१०, १७४४४-५२). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्धमानाय; अंति: जयवंतौ प्रवत्र्ती. For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २०५ ९६२३२. (+2) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हंडी:गरावदा, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२४.५४१०.५, १२४३६-४०). पट्टावली*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरनै पाटि; अंति: चंद्रार्क प्रवर्त्ता. ९६२३५ () विक्रमसेननरिंद चउपई, अपूर्ण, वि. १८२२, वैशाख कृष्ण, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:लीलावती., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२-२३.०x१०, १४४४६). विक्रमसेनराजा चौपाई, म. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखेश्वरो; अंति: मानसागर० दिन ____ दोलत पाइजी, ढाल-५२, गाथा-११६३, ग्रं. १६२४, संपूर्ण. ९६२३८. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ६, जैदे., (२६४१०.५, १२-१३४४४-४५). १. पे. नाम. वीतराग स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. वीतराग स्तोत्र-हिस्सा २०वां प्रकाश, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: पादपीठलुठन्मूर्ध्नि; अंति: नाथ नातः परं ब्रुवे, श्लोक-८. २. पे. नाम. आदिजिन चरित्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नाभेय स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणमुसभमुभयं; अंति: (अपठनीय), गाथा-२५, (वि. अंतिमवाक्य वाला भाग चिपका हुआ है.) ३. पे. नाम. शांतिजिन चरित्र, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: गय जिणवल्लहपयं देस, गाथा-३३, (वि. आदिवाक्य वाला भाग चिपका हुआ है.) ४. पे. नाम. नेमिजिन चरित्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: मयनाह सरिस विलसिर देहपहा; अंति: जिणवल्लह पत्त कुणसु सिवं, गाथा-१५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन चरित्र, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुणमणिनिहिणो जस्सुवरि फणि; अंति: सिवसुक्ख पत्त जय, गाथा-१५. ६.पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. ९६२३९. (+) सीतारामरिष चरित्र, संपूर्ण, वि. १६८९, वैशाख अधिकमास शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. विक्रमनगर, पठ. श्रावि. लउगीबाई; राज्यकालरा. कर्णसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:सीतासंबा, संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४८-५७). सीताराम चरित्र, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इहेव भरतक्षेत्रे मिथिला; अंति: वर्ग मिलइ पूजइ वंछित आस. ९६२४० (4) योगशास्त्र की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११-१(३)=१०, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७-२२४६२-६४). योगशास्त्र-अवचरि, सं., गद्य, आदि: वरिण अत्र महावीराय; अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-३ श्लोक-९२ तक की अवचूरि है व बीच के पाठांश नहीं है.) ९६२४४. (+) पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३८). पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: गौर्बरग्रामवासी वसुभूति; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "श्रीजिनरंगसूरि श्रीमालजात सिंधुडगोत्रे" पाठांश तक लिखा है.) ९६२४६. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. हंडी:उत्तरा०, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२५.५४१०, १३-१५४३०-३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-३ गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९६२४७. (+) कर्मविपाक सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. हुंडी:कर्म०.वृत्ति., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१०.५, १७४३०-६०). कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ, ऋ. गर्ग महर्षि, प्रा., पद्य, आदि: ववगयकम्मकलंकं वीरं; अंति: कम्मविवागं च सो अइरा, गाथा-१६८. कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ-पारमानंदी टीका, आ. परमानंदसूरि, सं., गद्य, आदि: निःशेषकर्मोदयमेघजालमुक्तो; अंति: द्वाविंशत्यधिका भवेत्, ग्रं. ९२२. ९६२४९ (+#) प्रज्ञापनासूत्र के बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७-२२(१ से ४,७,१० से २६)=५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, २४-२७४३५-५५). प्रज्ञापनासूत्र-बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: मोक्ष जाय छइ तिण कारण घणा, (पृ.वि. "चोरी करइ नित्यविषय सेवइ" पाठ से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९६२५० (+#) गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१६(१ से १६)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, १५४४५). गौतमपृच्छा , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४७ से ५८ तक है.) गौतमपृच्छा-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). गौतमपृच्छा-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९६२५२. (+#) सिंदूर प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८१९, श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४)=५, ले.स्थल. पाडलीपुर, प्रले. मु. नवनिधविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १२४३२-४२).. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००, (पू.वि. क्रोध प्रक्रम श्लोक-१ अपूर्ण से है.) ९६२५४. (+#) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २४-१०(१ से १०)=१४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२०१ अपूर्ण से ४९७ अपूर्ण तक है.) ९६२५५. (+) सीलोपदेशमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. ग. चारित्रोदय (गुरु उपा. हर्षप्रिय); गुपि. उपा. हर्षप्रिय; पठ. उपा. वीरकलश (गुरु उपा. चारित्रोदय, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११,११४२८-३८). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, कथा-४३, गाथा-११६. ९६२५७. (+) सारस्वत व्याकरण की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:चंद्रकीर्ती. हुंडी में प्रकरणानुसार उसके नाम का उल्लेख मिलता है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १३४४८-५४). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याण; अंति: (-), (पू.वि. स्वरांत पुल्लिंग सूत्र-२१ की वृत्ति अपूर्ण तक है.) ९६२५९ (#) भवानी स्तोत्र व पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, पठ.पं. लक्ष्मीमाणिक्य (गुरु पं. लक्ष्मीसुंदर), प्र.ले.प. सामान्य,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३२-३६). १. पे. नाम. भवानी स्तोत्र, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. त्रिपराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रस्यैव शरासनस्य; अंति: भवंति चिरकालम, श्लोक-२४. २. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदिः श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: पद्मावती स्तोत्रम्, श्लोक-२५. For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २०७ ९६२६१ (+#) नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४३०-४०). ज्योतिषसार-लघनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.ग.,सं., प+ग., आदि: श्रीअर्हतंजिनं नत्वा; अंति: (१)लोह कृते शनीश्चरे, (२)ज्ञेयाः शेषाश्चपलास्मृताः. ९६२६५ (+) अनेकार्थध्वनिमंजरी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)-५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, १४४३२-४०). अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-१ श्लोक-१२ अपूर्ण से अधिकार-२ श्लोक-६१ ___ अपूर्ण तक है.) ९६२६६. (+) वसुधारा धारिणी, संपूर्ण, वि. १९०४, आश्विन कृष्ण, १, शनिवार, मध्यम, पृ.७, प्रले. मु. श्रीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:वसुधारा., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१०.५,१२-१३४३०-३४). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ९६२६९. कल्याणमंदिर स्तोत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १८१३, माघ शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. सिणधरी, प्रले. पं. विवेकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०, १४-१८४४९-५३). कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदिः श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा; अंति: पार्श्वनाथप्रसादतः, (वि. अंत में प्रतिलेखक ने रत्नसंचय की २ गाथाएँ लिखी हैं.) ९६२७१. () प्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १२४३२-३६). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिंदिय; अंति: अम्ह सया पसत्था. २. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: पुर मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: सफल थया अवतार तो, गाथा-४. ४. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) ९६२७२. (+#) प्रास्ताविक श्लोक-दोहादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३८). प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण से ११३ अपूर्ण तक है.) ९६२७३. (+) सिद्धांतसारोद्धार विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:विचारसार.सिद्धांतसार., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १८४५०-६२). सिद्धांत सारोद्धार विचार, रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नदियों के विचार अपूर्ण से आठ की संख्या विवरण अपूर्ण तक है.) ९६२७४. शांतसुधारस गेयकाव्य, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, जैदे., (२५४१०.५, ११४३४-४०). शांतसुधारस, उपा. विनयविजय, सं., पद्य, वि. १७२३, आदि: नीरंध्रे भवकानने; अंति: स्फुरद्वांगमयमातनोतु, भावना-१६, श्लोक-२३४. ९६२७५ (+) कीर्तिधर सुकोसला संबंध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १५४५२-५६). For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुकोशल कीर्तिधर संबंध, मु. मान, मा.गु., पद्य, वि. १६७०, आदि: श्रीसरसति मतिदावनी प्रणमी, अंति: मुनि मान० सुणतां लील वधाई, ढाल ६, गाथा-१५३. ९६२७६, (+४) भक्तामर स्तवन व योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २) २, कुल पे २ प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६११, ११४३४-३८). १. पे. नाम, भक्तामर स्तवन, पृ. ३अ ४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४, (पू. वि. गाथा - २२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. योगशास्त्र, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण तक है.) ९६२७९ (+४) नारचंद्र जोतिषशास्त्र, अपूर्ण, वि. १६७२ आश्विन अधिकमास शुक्ल, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. १०-१ (१) =९, , प्रले. मु. लब्धिविजय (पूनिमगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नारचंद्र., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित - टिप्पणयुक्त पाठ. कुल ग्रं. २७२, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५x१०.५, १४-१५X४२-४८). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: रुचिरावासराः संभवति, श्लोक - २९४, (पू. वि. प्रकीर्णक-१ श्लोक-६ अपूर्ण से है.) ', ९६२८३. (+४) २४ तीर्थंकर ८४ द्वार व १२ चक्रवर्ती आदि द्वार विचार, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ९७-८० (१ से ८० ) = १७, कुल पे. ४. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२५X१०.५, १५-१७३५-४५) १. पे. नाम. २४ तीर्थंकरना ८४ द्वार, पृ. ८१ अ- ९२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे. वि. हुंडी: चोवीसतीर्थंकरना ८४ द्वार. २४ जिन ८४ द्वार बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: चोवीस० नक्षत्रे जन्म्या२४, (पू.वि. द्वार - १७ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. २० विहरमानना द्वार, पृ. ९२आ ९४आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: वीसवेरमानजीन द्वार. २० विहरमानजिन १६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रीमंधीरस्वामी १; अंति: बोल पुर्वली परे जाणवा१६. ३. पे. नाम. बार चक्रवर्तीींना द्वार, पृ. ९४आ- ९६आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : बारचक्रीवर्तना द्वार १२ चक्रवर्ती द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेला भरतचक्रवर्ती अति: नेमनाथना शासन मे हुवा. ४. पे. नाम. नव वासुदेव द्वार, पृ. ९६ आ ९७आ, अपूर्ण. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे. वि. हुंडी नववासुदेव द्वार. ९ वासुदेव द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेला त्रिपृष्ठवासु; अंति: (-), (पू.वि. छट्ठा पुंडरीकवासुदेव द्वार अपूर्ण तक है.) ९६२८४ (३) देवसीराइअ प्रतिक्रमण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैये. (२५.५४१०.५, १६x४०). "" देवसीराइअ प्रतिक्रमण *, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमोसिद्धाणं; अंति: (-), (पू.वि. अठारह पापस्थानक अपूर्ण तक है.) प्र.वि. ९६२८६ (३१ सूत्रनी टीप, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १२-२ (२ से ३ -१०, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं... का अंश खंडित है, दे., (२५X१०, ५६३०). मूल पाठ ३१ आगमगत विषयवस्तु निरूपण टीप, मा.गु., गद्य, आदि प्रथम आचारांग तेहना स्कंध अति (-), (पू.वि. प्रश्न- १२ जीवाभिगम ८मी पडिवत्ती मध्ये छे" पाठ तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९६२८७. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६७-४४ (१ से ६,१०,१२ से १३,१८ से ३१, ३३ से ३८,४४ से ४५,४९ से ५०,५२ से ५३,५६ से ५९,६१ से ६४,६६) = २३, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२४४१०, १०४३८-४०). , For Private and Personal Use Only कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति (-) (पू.वि. सूत्र- १२ अपूर्ण से पार्श्वनाथ चरित्र सूत्र- १ अपूर्ण तक है.) Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २०९ कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच में टबार्थ नहीं लिखा है.) ९६२८८ (+#) दशवीकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७७६, श्रावण कृष्ण, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. भटनेर, प्रले. मु. शिवराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दशवैका०सू०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४५-५५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: आगमं गइ त्ति बेमि, अध्ययन-१०. ९६२९५ (+) सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १८६९, वैशाख शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १४-१(७)=१३, पठ. पं. मानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में औपदेशिक दोहा लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४१०.५, ९४२८-३६). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७. ९६२९६. (+) अवंतीसुकमाल चौपाई व शत्रुजय गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १२४३६-३८). १. पे. नाम. अवंतीसुकमाल चोपई, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. ___ अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतीहर्ष सुख पावे, ढाल-१३, गाथा-१०७. २. पे. नाम, शत्रुजारो गीत, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अंग उमाहो अति घणो; अंति: प्रेम घणो जिणचंद रे, गाथा-७. ९६२९७. (+) भक्तामर स्तोत्र सह भावार्थ व मंत्राम्नाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-६(१ से २,६ से ७,१० से ११)-७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४६-५२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-२७ तक है व बीच-बीच के श्लोक नहीं हैं.) भक्तामर स्तोत्र-भावार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., राजा के आमंत्रण से मानतुंगसूरि की सभा में आगमन प्रसंग से श्लोक-२७ के भावार्थ अपूर्ण तक है.) भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो वृषभनाथाय; अंति: (-), पृ.वि. बीच-बीच व अंत के __पत्र नहीं हैं. ९६२९८. (+#) उपासकदशांगसूत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७-८(३ से १०)=९, प्र.वि. हुंडी:उपा०द०वृत्ति, उपा०दशावृ०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ९४४, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४५२-५६). उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १११७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: कुर्वतां प्रीतये मे, अध्ययन-१०. ९६२९९ (+) आगमसारमाहिला बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, ले.स्थल. जेसलमेरु, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १९-२०४५२-५५). १४ गुणस्थानक विचार-आगमसारगत, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: अजरामर स्थानके पुहचै, (पू.वि. प्रारंभिक ५परमेष्ठी परिचय अपूर्ण से है.) ९६३०० (4) वैतालपचवीसी कथा, अपूर्ण, वि. १८११, श्रावण कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २८-१३(२,४ से १३,२६ से २७)=१५, ले.स्थल. वर्धमानपुर, प्रले. मु. भवान ऋषि (गुरु मु. रणछोड ऋषि); गुपि. मु. रणछोड ऋषि (गुरु मु. कृष्ण ऋषि); अन्य. मु. इंद्र ऋषि; मु. जीवण ऋषि (गुरु मु. भवान ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:वैतालपंच०, वैतालपचवी०., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४०-४४). For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वैतालपच्चीसी कथा, मु. देवशील, मा.गु., पद्य, वि. १६१९, आदि: सरसति सामणि पय नमी मागुं; अंति: कथा जयूतां तपें दिणंद गाथा ८१९ (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९६३०२. (+) एकविंशतिस्थान प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३ - ४(१ से ४) = ९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित. दे., (२५x१०.५, ४X३२). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा. पद्य, आदि (-): अंति: (-). (पू.वि. गाथा २० अपूर्ण से गाथा ७० अपूर्ण तक है.) २१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ९६३०३.(+#) आराधना प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x१०.५, ६X३३). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, ग्रं. २४५. पर्यंताराधना-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: गुरु नमस्करीनइ गिलाण, अंति: लहइ ते शाश्वता सुख. ९६३०६. (*) जंभवती चतु: पदी, अपूर्ण, वि. १८१८ आषाढ़ कृष्ण, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९-१ (५) = ८, ले. स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. राजसी ऋषि, पठ. श्राव. अजाअमराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५x११, १३x४४). जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिली ढाल सोहामणी; अंति: पाट हुं बलहारि वीठला, ढाल १३, (पू.वि. ढाल ७ दोहा-२ अपूर्ण से ढाल ८ गाथा-७ अपूर्ण तक नहीं है.) ९६३०७. (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८६९, वैशाख शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. गोलनयर, प्रले. मु. लालसागर; पठ. मु. मनरुपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में दूहा लिखा है., संशोधित., जैदे., (२४.५X१०.५, ११४३३). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु, पद्य, आदि विरजिणेसर चरण कमल, अंति: भद्र गुरु इम भणे ए. ढाल - ६, गाथा-८२. ९६३१०. सर्वसिद्धांत विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ४०-२७(१ से १३,१५ से २२, ३३ से ३८)= १३, जै, (२५.५x१०.५, १५X४७-५५). सर्वसिद्धांत विचार, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि (-); अति उद्धरिअं सुय समुदाओ (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं.. "जीव प्रदेशीराजा केशीकुमार" पाठ से "पुण बलतु उत्तर दीजइ" तक व भगवतीसूत्र शतक-८ उद्देश ८ के संदर्भ पाठ अपूर्ण से है.) ९६३११. (*) चउसरण पयन्ना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. घडसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण " युक्त विशेष पाठ-संशोधित-दुर्वाच्य., जैदे., ( २४.५X१०.५, ६X३३-३७). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि समाप योगनी विरति करइ अंति निवृति सुखनो छि ए अध्ययन. ९६३१४. (*) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२४.५४१०.५, १८४३६-४१). " स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि सुगुण सुगुण सोभागी; अंति: माला बालाने वरे रे लो, स्तवन- २४. १६३१६. (*) सालिभद्र उपई व गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १६८४, पौष कृष्ण, १, मध्यम, पू. १६.६ (३ से ६,८,१२)=१०, कुल पे. २, ले. स्थल, पाली, प्रले. मु. देवराज, पठ. मु. राजमल्ल, श्राव. धनराज चुनीलालजी बाँठिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सालिभद्र चउपड़, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, कुल ग्रं. ७००, जैदे. (२५.५४१०.५, १५-१५X४२-४४). १. पे. नाम. शालिभद्र चौपाई. पू. १अ १६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहस्य जी, डाल- २९, गाथा-५१०, ( पू. वि. प्रारंभ से डाल-३ गाथा-४ अपूर्ण तक, "जिन तुम्हनइ प्रिय दूहव्या " पाठ से "चारित लेस्यइ खंचत प्रति" तक, "इसासरा त करिस्य पाठ से "आंधी गिणइ न मेह आपइ तक व "अथाह छातीलागी फाटिवाजी" से है.) २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १६आ, संपूर्ण. - गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु., सं., पद्य, आदि: मेरे जीव आरति काइ करई; अंति: पर भवसुं पीवु आ. ९६३१७. (+#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. रामरतन, गुपि. मु. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२४.५x११, ११x२३-२६). औपदेशिक सज्झाय-गुरुशिष्य संवाद, मा.गु., पद्य, आदि: सीख पूछे कहो सामी कांणो; अंति: विश्वासघात करी ते, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १०१. ९६३१९. (*) बोल विचार संग्रह आगमिक, संपूर्ण, वि. १६२५ कार्तिक कृष्ण, ४, रविवार, मध्यम, पू. ९, प्रले. उपा. नवरंग वाचक (गुरु वा. गुणशेखर, खरतरगछ), प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, ४२x२४). आगमिकवोल विचार संग्रह- धार्मिक, प्रा., मा. गु, गद्य, आदि उत्तरार्धनउ भाव हियइ आणि अति एहना अर्थ २११ लिखिज्यो ९६३२१. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-२ (१ से २ ) = ६, प्र. वि. हुंडी : नाम. माला., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १५X४१). " अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १३वी आदि (-); अति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., देवाधिदेवकांड श्लोक ५० अपूर्ण से देवकांड श्लोक-१७६ अपूर्ण तक है.) ९६३२२. (*) संबोधसत्तरि, आदिजिन पद व प्रास्ताविक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२५.५४११.५, १२-१४४३४-४०). , " " १. पे. नाम संबोधसित्तरी, पृ. १आ-५अ संपूर्ण वि. १८५२ श्रावण कृष्ण, २. प्र. ले. लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तिलोअगुरुं अंति जयसेहर० नत्थि संदेहो, गाथा-८६. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. आदिजिन पद- जन्मबधाई, आव. पीतांबर, मा.गु., पच, आदि आज तो बधाई राजा नाभि के अंतिः पीतंबर देव सच पिन गाई रे, गाथा ४. २. पे नाम पच्चक्खाण विचार, पू. २१आ, संपूर्ण. , ३. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा, पृ. ५आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदिः क्षांति तुल्यं तपो नास्ति; अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "रागद्विषां जत्वारि पूजा श्रीजिनरंग" अपूर्ण पाठांश तक लिखा है.) ९६३२३. (*) सुभाषितावली, पच्चक्खाण विचार व औपदेशिक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २१-१२ (१ से १२) = ९, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, वे. (२४.५x१०.५, ११-१३x१९-३५). १. पे. नाम. सुभाषितावली, पृ. १३अ - २१अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सुभाषित लोक संग्रह पुहिं., प्रा., मा.गु.से., पद्य, आदि (-) अति भरणो भाति धर्मसभादिषु, गाथा ४०, (पू.वि. श्लोक-२७ अपूर्ण से है . ) ३. पे. नाम औपदेशिक गाथा संग्रह, प्र. २१ आ. संपूर्ण. भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक-७ उद्देश- २ पच्चक्खाण गाथा का टबार्थ, मा.गु. गद्य, आदि अणागय कहता आवता कालना; अंति: पांचमनो उपवास निश्चै करवो, (वि. मूल पाठ का प्रतीक मात्र है.) For Private and Personal Use Only प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: गात्रं संकुच तंगतीर वीगलि; अति: आपणा महिलांईला भोवंग. ९६३२४. (+) जीवोपदेश व गौतमपृच्छा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २४.५X११, १५X४०). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाव-जीवोपदेश, पृ. १अ संपूर्ण. Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि रे जीव को कहना नही; अंतिः चढ्यो भोले आम खोय, गाथा - १४. २. पे. नाम. गौतमपृच्छा, पृ. १अ - ५आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमपृच्छा चौपाई. मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति आदर करी कीजई जिणवर धर्म गाथा - १००. ९६३२५ (+) नारचंद्र ज्योतिष सह यंत्रकोद्धार टिप्पण, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ११-१ (१०) १० प्र. वि. हुंडी नारचंद्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२४९०, १७३५-४४). " १. .पे. नाम साधुवंदना, पृ. १अ ७आ, संपूर्ण, ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., बृहस्पति विचार प्रसंग तक है व के बीच के पाठ नहीं हैं.) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि सं., गद्य, आदि सरस्वतीं नमस्कृत्य; अति (-). पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ९६३२७ (+) साधुवंदना व गौतम गीत, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे २ प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित कुल ग्रं. ४२, जै. (२४.५X१०, ११४३५). उपा. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमेठि पयकमल, अंति: नंदन हवड सिवसुखकारणे, गाथा-८६. २. पे. नाम. गौतम गीत, पृ. ७आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गौतम नाम जपो परभाते; अंति: समयसुंदर ० गुण गाते, गाथा-३. ९६३२८. (+) आरंभसिद्धि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-७ (१ से ४, ६ से ७,९) = ७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २४.५X१०, १४x२६-४२). आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३वी आदि (-); अंति (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., विमर्श- १ " श्लोक-६४ अपूर्ण से विमर्श-४ श्लोक-३२ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९६३३३. ठाणांगसूत्र के १० बोल व पंचपरमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, अपूर्ण, वि. १७९०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पू. १०-१ (१) = ९, कुल पे. २ प्रले. ग. मोहनविजय (गुरुग, वृद्धिविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. वृद्धिविजय (गुरु ग. नरविजय, तपागच्छ); ग. नरविजय (गुरु उपा. विनयविजय, तपागच्छ); उपा. विनयविजय' (गुरु उपा. कीर्तिविजय, तपागच्छ); पा. कीर्तिविजय (गुरु आ हीरविजयसूरि, तपगच्छ) आ. हीरविजयसूरि (तपगच्छ) पठ. मु. नरसिंहजी ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी : ठाणांगपत्र, कुल ग्रं. २९८ प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२४) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, जैये. (२४.५x११, १०-१२४३३-४०). १. पे. नाम. ठाणांगसूत्र बोल, पृ. २अ-१०अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. १० ठाणा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पीया९ ललतांगपीया १०, (पू.वि. पाठ "वेद त्रण प्रकारे स्त्रीवेद नपुंसकवेद" से है.) २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि बारगुण अरिहंतना जाणवा अंतिः नवकारना १०८ गुण जाणवा ९६३३६ चतुः शरण प्रकीर्णक सह वालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२५x११, " १५X४१). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्म, वि. ११वी, आदि सावज्जजोग विरई अति (-) (पू.वि. गाथा - ५८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only चतुःशरण प्रकीर्णक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो छ आवश्यक वखाणइ छै; अंति: (-). ९६३३७ (+४) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी साधुवंदना, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५X११, १५X४९). साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि पंच भरत पंच एरवय, अंति (-), (पू.वि. डाल-१२ गाथा ३ अपूर्ण तक है.) Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९६३४० (+) ढोलामारु चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २०-२१ (१ से १०, १५)=९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी ढोलामारुचौ०., संशोधित., दे., (२५X१०.५, १४४४५). ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य वि. १६७७, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. गाथा - २५४ अपूर्ण से ६५५ तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९६३४४. (+) सौभाग्यपंचमी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. हुंडी : सौपाग्यपंचमी., संशोधित., जैदे., ( २६ ११, १३x४३). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, लोक-१५२. ९६३४६. () सर्वार्थसिद्धविमान विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१ (१) + १ (४) =५, ले. स्थल. उदयपुर, प्रले. सा. लीमी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी अंगणाइ प्रतिलेखन पुष्पिका पत्रांक ४आ पर है, अशुद्ध पाठ. दे. (२४.५x११, १६४३२). सर्वार्थसिद्धविमानादिपरिमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति अनंता सुखामनीरा मान हुवा, (पू.वि. प्रारंभिक पाठांश नहीं हैं.) ९६३४८ (+#) आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३-१४ (१ से १४) = ९, प्र. वि. हुंडी : आचा०सू०, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५x१०.५, ११४३७). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन- ३ उद्देशक - ३ पाठ "समभिजाणहि सच्चस्साणोए" से अध्ययन - ६ उद्देशक - ३ पाठ "एव तेसि महावीराण चिरराय" तक है.) ९६३५० (+) लिंगानुशासन सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३-१० (१ से १०) = ३. पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६५११, ५X४४). हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १२वी आदि (-); अंति: (-), 3 (पू.वि. पुंनपुंसकलिंगाधिकार श्लोक-१९ अपूर्ण से अंतिम अधिकार के श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) हैमलिंगानुशासन- अवचूरि, सं., गद्य, आदि (-); अंति (-) "" ९६३५१. (*) उववाइसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-४ (१ से ३९) = १५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी: उवाइसूत्र.. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२६११, १७४५०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. समोसरण सूत्र - १२ अपूर्ण से उववाईय सूत्र - २० अपूर्ण तक है.) ९६३५२. (+) षडावश्यकसूत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३. कुल पे. ७. प्र. वि. संशोधित, जैये., (२५.५x११, १०X३५). १. पे नाम, लघुशांति स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. २. पे नाम. आवश्यकसूत्र, पृ. २अ ११अ, संपूर्ण. प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि; अंति: गारेणं वोसिरामि, अध्ययन- ६. ३. पे. नाम. १४ श्रावकनियम गाथा, पृ. ११अ - ११आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा- १. ४. पे नाम. गुरुवंदन विधि, पू. ११आ, संपूर्ण, , प्रा., गद्य, आदि: भयवं फासुएणं एसणिज्ज; अंति: अणुग्गहो कायव्वो.. ५. पे. नाम. अतिचार गाथा, पू. ११ आ-१२अ संपूर्ण. 2 नामि सूत्र- अतिचार गाधा हिस्सा, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि चरणमि: अंतिः नायव्वो वीरियायारो, २१३ आवस्सयं नामं. ७. पे. नाम. चरणसत्तरी करणसत्तरी गाथा. पृ. १३अ संपूर्ण गाथा-८. ६. पे नाम. सामायिक पौषधादि सूत्र. पू. १२अ १३अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि भयवं वसण्णभद्दो सुदंसणो अंति: सम्हा For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बदल. २१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा., पद्य, आदि: एवय समणधम्म १० संजम; अंति: निग्गहो चरणमेयंतु, गाथा-१. ९६३५५ (2) विपाकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७८-४५(१ से ३२,३७,४५,४७ से ५३,५६ से ५९)=३३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, ७४३६-४०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ अपूर्ण से श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९६३५६. (+#) भगवतीसूत्र बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:भगवति., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५-१८४९-४५). भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: भगवती एक सुत खंध एससोएक; अंति: (-), (पू.वि. चार प्रकार के पुरुष वर्णन अपूर्ण तक है.) ९६३५९ (+) बहत्संग्रहणी की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प.७, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. संशोधित., जैदे.. (२६४११, २६-२८४८०-८४). बृहत्संग्रहणी-अवचूरि , सं., गद्य, आदि: नत्वा प्रणम्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५३ की अवचूरि अपूर्ण तक है., वि. कोष्ठकसहित है व मल का प्रतीकपाठ दिया है.) ९६३६० (+) पंचनिग्रंथी प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ६२५, जैदे., (२६४११.५, ७-१२४१८-४०). भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११२८, आदि: नमिऊण महावीरं भव्व; अंति: रइया भावत्थसरणत्थं, गाथा-१०६. भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण का बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान श्रीमहावीर; अंति: मेरुसुंदरस्तुष्ट्यै. ९६३६१. सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सप्तस्म०सू०, सातेस्मर०सू०., जैदे., (२५.५४१०.५,१३४४२-४८). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं; अंति: (-), (प.वि. सिग्घमवहरउ स्तोत्र गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ९६३६२. (+) श्राद्धविधिविनिश्चय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, २०-२२४५४-७०). श्राद्धविधिविनिश्चय, मु. हर्षभूषण, सं., गद्य, आदि: ऐंदवमंडलनिर्मलकेवलकम; अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-४ दृष्टांत-१० अपूर्ण तक है.) । ९६३६३. (#) षष्टिशतक प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.१९, प्र.वि. कुल ग्रं. ९९६, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १८४३२-५८). षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: जिणंतु जंतु सिवं, गाथा-१६१. षष्टिशतक प्रकरण-बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १४९६, आदि: सिरिवद्धमाणजिणवरपाएन; अंति: णव्याख्या चिरं नंदतु. ९६३६४. (+#) पिंडविशुद्ध प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६१३, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पंन्या. देवविजय (गुरु आ. राजविजयसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. राजविजयसूरि (गुरु गच्छाधिपति सेनसूरि*, तपागच्छ); पठ. ग. यादव मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ८-१०४२६-३६). पिंडविशद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: ब गाथा-१०४. पिंडविशुद्धि प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अहं समानेन संक्षेपेण; अंति: अपनयनेन निर्दोषं कुर्वंतु. ईत अ, For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९६३६५ (+) वीतराग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६७७, लेश्याचंद्रअब्धिअद्रि, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. कर्मवाटी, प्रले. मु. माणिक्यचंद्र; पठ. श्रावि. मानबाई; श्रावि. वयजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पठनार्थ का उल्लेख अंकमय किया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. २०५, जैदे., (२६.५४११.५, ११४२७-४०). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: यः परात्मा परं; अंति: फलमीप्सितम्, प्रकाश-२०. ९६३६६.(+) योगशास्त्र की अवचूरि-प्रकाश १ से ४, संपूर्ण, वि. १४४८, कार्तिक शुक्ल, २, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. लोलीयाणा, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, २२-२६४६०-८०). योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: महावीराय नम इति संबंधः; अंति: माह जिनप्रतिमाभिमुखो वा, प्रकाश-४, (वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) ९६३६७. (#) चउरासीगच्छनी चर्चा व विसंवाद, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. २, प्रले. पंन्या. कुमार गणि (गुरु आ. रायचंद्रसूरि, पार्श्वचंद्र गच्छ); गुपि. आ. रायचंद्रसूरि (गुरु आ. समरचंद्रसूरि, पार्श्वचंद्र गच्छ); आ. समरचंद्रसूरि (गुरु । आ. पार्श्वचंद्रसूरि', पार्श्वचंद्र गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १९४५४-६२). १. पे. नाम. चउरासीगच्छनी चर्चा, पृ. १अ-१३अ, संपूर्ण, वि. १६६४, पौष कृष्ण, १२, रविवार, ले.स्थल. श्रीपत्तन, पे.वि. हंडी:चउरासीगच्छनी चर्चा. वीसलनगरमध्ये. आगमादि में पाठांतर के कारण उत्पन्न शंकासमाधान विषयक चर्चा, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (१)श्रीजिनागम बोहित्थं, (२)श्रीजिनशासन मांहे; अंति: आज्ञा इनथी आचरणाइ छइ. २. पे. नाम. विसंवाद, पृ. १३अ-१४आ, संपूर्ण, वि. १६६४, पौष शुक्ल, २, गुरुवार, ले.स्थल. श्रीपत्तन, पे.वि. हुंडी:विसंवाद. आगमिक विसंवाद चर्चाविचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: बालमरण मरतउ अनंताभव करइ; अंति: सर्वत्रयामद्वयानंतरमपीति. ९६३६८ (#) नवस्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-६(१ से २,४ से ७)=११, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६४३५). नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. संतिकर स्तोत्र गाथा-९ अपूर्ण से नमिऊण गाथा-३ अपूर्ण तक व भक्तामर स्तोत्र श्लोक-१२ अपूर्ण से अजितशांति गाथा-३५ अपूर्ण तक है.) नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९६३६९. आध्यात्मिक पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९-१३(१ से ४,७ से १२,१६ से १८)=६, कुल पे. २३, दे., (२६४११, ९४३२-३४). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: मूरत नाथ निरंजन पावै, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: आस्या ओरन की क्या; अंति: आनंदघन० लोक तमासा, गाथा-४. ३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू राम राम जग गावे; अंति: रमता अंतर भरा, गाथा-४. ४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ.५आ-६अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू क्या मांगुगुनहीना; अंति: आनंदघन० करूं गुणधामा, गाथा-४. ५.पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नट नागर की बाजी; अंति: रस परमारथ सो पावे, गाथा-४. ६. पे. नाम, अनुभव रसायन गीत, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू अनुभव कलिका; अंति: समावे अलख कहावे सोई, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नाम हमारा राखे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: आवें आनंदघन रहें घर घाटा, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण ९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३अ, संपूर्ण. ___ मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: भोरे लोगा रु रुहुं तुम; अंति: आनंदघन करु घर दीया, गाथा-४. १०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, रा., पद्य, आदि: निसदिन जोवों वाटडी घरि; अंति: आनंदघन सेजडी रंगरोला, गाथा-५. ११. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मनसा नटनागरसूं जोरी हो; अंति: आनंदघन० दृष्टि भ्रम चकोरी, गाथा-५. १२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: पीया विनु सुधि बुद्धि; अंति: धरो आनंदघन आ हो, गाथा-६. १३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पीया विनु सुद्धि बुद्धि; अंति: आनंदघन ऐसे न टले वेजे हो, गाथा-६. १४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अण जोवांता लाख जोवो; अंति: रमतां आनंदघन पद लीधो, गाथा-४. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण.. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: वारो रे कोई पर घर भम; अंति: आनंदघन० गाल झबुकें झाल, गाथा-३. १६. पे. नाम, अध्यात्म पद, पृ. १५अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मोनें मिलावो रे कोई कंचन; अंति: आनंदघन० निसदिन धरुं उछाह, गाथा-३. १७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मोनें माहरा माधवीयाने; अंति: माहरे आनंदघन सिरि मोड, गाथा-३. १८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अइसी कैसी घरवसी जिन सअनै; अंति: सुनो सी वंदी अरज कहेसी री, गाथा-३. १९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तरस कीजें रीदेंको दइकी सव; अंति: आनंदघन दाद हमारी री, गाथा-३. २०. पे. नाम, आध्यात्मिक गीत, पृ. १५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: मेरी सुमेरी सुमेरी सौमेरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ तक है.) २१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: रीति नांउ की निवहीये, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: निस्पृह देश सोहामणो; अंति: नही आनंदघन पद भोग हो, गाथा-५. २३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अनंत अरुपी अविगत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९६३७० भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. कुल ग्रं. ९३०, जैदे., (१६४११, १५४४२-५०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २१७ भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: वीरं जिनं प्रणम्यादौ; अंति: लक्ष्मी स्वयंवर वरइ. ९६३७१ (+) सम्यक्त्वकौमुदी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. कुल ग्रं. ७९७, जैदे., (२६.५४११, १३४५०). सम्यक्त्वकौमदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य जिनं; अंति: जयशेखर० सम्यक्त्वकौमुदीं, पद-४४४, ग्रं. १६७५. ९६३७२. (+) मृगावती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-३(१,३,१७)=१५, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. हुंडी:मृगावती., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६७११, ११४३२-३८). मृगावतीसती रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ से २५ अपूर्ण तक, गाथा-४४ अपूर्ण से २९४ अपूर्ण तक व गाथा-३१४ अपूर्ण से ३३४ अपूर्ण तक है.) ९६३७३. (4) उपदेशतरंगिणी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५५-४९(१ से ४९)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४५४-५८). उपदेशतरंगिणी, ग. रत्नमंदिरगणि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. तरंग-४ यात्रोपदेश-४ अपूर्ण से तरंग-५ धर्मोपदेश-१० तक है.) ९६३७४. (+) नवतत्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१२, फाल्गुन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. पुरबिंदर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ५४३६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४७, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व १ अजीवतत्व २; अंति: कालइ अनंतगुणा छइ, (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३५ अपूर्ण से ४४ अपूर्ण तक का टबार्थ नहीं लिखा है.) ९६३७५ (+#) उदाईराजा वखाण व विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १८४३२-३६). १.पे. नाम, उदाईराजानो छढाल्यो, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:उदाइ. उदाईराजा वखाण, म. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: चंपानगर पधारीया; अंति: मीच्छाम दकडं मोयो रे, ढाल-६. २. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जिणदेव नमन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ९६३७६. (+#) षडावश्यकसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५२६, मध्यम, पृ. ५२, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. कुल ग्रं. ३३२८, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६-१७४६५). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., गद्य, वि. १५०१, आदि: श्रेयांसि श्रीमहावीर; अंति: आचंद्रार्कनंद्यात्. ९६३७७. (+) रूपसेन चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१-११(१ से ११)=१०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. हुंडी:रूपसेन चरित्र., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १६-१७४३५-४५). रूपसेनकनकावती चरित्र-चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२३ अपूर्ण से श्लोक-३२ अपूर्ण तक है.) ९६३७८. (+) महावीरजिन स्तवन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-११(१ से ४,७,९,११ से १२,१५ से १७)=८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १३-१५४३६-५५). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७३३, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१९ से ढाल-६ गाथा-१७ अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. संदर्भ के लिए आगमसूत्रों के आधार पाठ दिये गये हैं.) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९६३८० (+#) पासाकेवली, अपूर्ण, वि. १८४५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ११-४(१ से २,६ से ७)=७, ले.स्थल. सोजत, प्रले. मु. श्रीचंद (गुरु मु. दोलतराज, अचलगच्छ); पठ. मु. गुलाबचंद (गुरु मु. गुमानचंद, ओसवालगच्छ); गुपि.मु. गुमानचंद (ओसवालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३२-३४). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: गुरुभक्ति करे सही, (पू.वि. १४३ अपूर्ण से है व ४१५ अपूर्ण से ४२१ अपूर्ण तक नहीं है.) ९६३८१ (+#) योगशास्त्र-प्रकाश ५ से १२, संपूर्ण, वि. १४६०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १८-२१४६०-७०). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: श्रीहेमचंद्रेण सा, प्रतिपूर्ण. ९६३८३. (+) भक्तामर स्तोत्र, लघुशांति स्तवन व तिजयपहत्त स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ९४३०). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण. लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३. पे. नाम. तिजयपहत्त स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ९६३८४. (+) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४४-३२(१ से ३०,३२ से ३३)=१२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ११४२८-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पार्श्वजिनचरित्र अपूर्ण से स्थविरावली अपूर्ण तक है व बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९६३८५. कल्पसूत्र सह टबार्थ व अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १७७१, भाद्रपद शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. १५५-१४६(१ से ११७,१२१ से १२३,१२७ से १२८,१३१ से १५४)=९, दत्त. आ. अमररत्नसूरि; गृही. पं. वर्द्धमानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११,११-१५४३३-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (१)अत्थगई वीगई, (२)उवदंसेइ त्ति बेमि, (पू.वि. साधु सामाचारी अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-)... कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९६३८७. (+) गजसुकुमाल व कलावती रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३५-४५). १. पे. नाम, गयसुकमाल रास, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देस सोरठ द्वारापुरी; अंति: अविचल संपद थाइ, गाथा-८५. २. पे. नाम. कलावती रास, पृ. ५अ-१०अ, संपूर्ण. कलावतीसती रास, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रइ रे नयरी; अंति: वेगि वरसइ सयंवरा, गाथा-८४. ९६३८८. (+) नवतत्व, जीवविचार व दंडक प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(६)=६, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १२-१४४३४-४०). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीवचारसूत्र, जिवविचार. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २१९ २.पे. नाम. नवतत्व प्रकरण, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण, प्रले. मु. चंद्रभाण ऋषि; पठ. मु. हंसराजजी वा., प्र.ले.पु. सामान्य. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवा२ पुण्णं३ पावा४; अंति: सिद्धा तेणेग सिद्धाय, गाथा-५७. ३. पे. नाम, दंडक प्रकरण, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से ३९ अपूर्ण तक है.) ९६३९२ (2) अक्षरबावनी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४९.५, ११४३९-४८). अक्षरबावनी, म. जसराजजी; म. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, वि. १७३८, आदि: ॐकार अपार जगत आधार; अंति: जसराज आणी मन उल्लास, गाथा-५३. ९६३९३. (+) मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८९८, कार्तिक शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पं. देवचंद्र (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०.५, १३४३६-३८). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, म.क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: शिष्यैरामोदतस्त्वदः, ग्रं. १६५, (वि. अंत में जिनकृपा विषयक श्लोक लिखा है.) ९६३९७. (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-२०(१ से ३,५,७ से १८,२०,२४ से २६)=८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ११-१३४१८-३८). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण से २४३ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-यंत्र संग्रह *, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ९६३९८. (+) भक्तामर स्तोत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७२५, आषाढ़ शुक्ल, १२, गुरुवार, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. हुंडी:भक्ता०बा०., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४२०-४०). भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: लक्ष्मी स्वयं वरइ. ९६३९९ (+#) पार्श्वनाथ छंद व प्रास्ताविक श्लोकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १६-३(१ से ३)=१३, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४२६-३३). १.पे. नाम. अंग फूरकर विचार, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हंडी:फूरकेतो. अंगस्फुरण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पग फूरके तो चालवु पडे, (पू.वि. भूजा फुरके पाठ से है.) २. पे. नाम, काग विचार, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. कागस्वरसकन विचार, मा.ग., गद्य, आदि: जो गामंतरे जातां काग सामा; अंति: दरभिक्ष दकाल पडे सही. ३. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). ४. पे. नाम. गिरोली विचार, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. पल्लीपतन विचार, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: धनवंतने माथे पडे तो धननो; अंति: उपरि पडे तो० मंत्र कहे. ५. पे. नाम. गोडी पार्श्वनाथ छंद, पृ. ६अ-१०अ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन दे मुझ सारदा; अंति: कांतिविजय जय जय करण, गाथा-५१. ६.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १०अ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.,सं., पद्य, आदि: दाता दरीद्री कृपणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११८ अपूर्ण तक है.) ९६४०० (+) नवतत्व उपर पचीस बोल, संपूर्ण, वि. १९३६, वैशाख कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. राजकोट, प्रले. लाधाजी रणछोड खत्री; अन्य. सा. कस्तुरशिष्या (गुरु सा. कस्तुर आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवतत्व., संशोधित. कुल ग्रं.७२५, दे., (२५४११, १५४४०-५४). नवतत्त्व प्रकरण-२५ बोल, संबद्ध, मु. रत्नचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: सासणपति श्री वीरजिन; अंति: बुद्धजन हीये विमास. ९६४०१ (+) त्रिपुरा स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, ४४३०). For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची त्रिपराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रस्यैव शरासनस्य; अंति: पिच्छलः द्वारदेशे, श्लोक-२४. त्रिपुराभवानी स्तोत्र-टबार्थ, पा. रूपचंद्र गणि, पुहि., गद्य, वि. १७९८, आदि: ज्याकी भगति प्रभावते; अंति: रूप० पुरं न पहचि आस. ९६४०२. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९६६, आषाढ़ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(८)=९, प्र.वि. हुंडी:चउवीश., संशोधित., दे., (२५.५४११, १३४३४-३६). स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्रीआदीश्वरस्वामी हो; अंति: महास्तुति पूरण करी, स्तवन-२४, (पू.वि. ढाल-१९ गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-२१ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९६४०५. विमलशाह श्लोको व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १५४३०). १.पे. नाम. विमलशाह श्लोको, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण, वि. १८०१, श्रावण शुक्ल, १३, प्रले. पं. युक्तिसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. विमलमंत्री सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरूं बे करजोड; अंति: विनीतविमल गुण गायो, गाथा-११०. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन-बृहत्शत्रंजयतीर्थ, पृ. ६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तवन-बृहत् शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सयल जिणंद पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९६४०६. (+) कर्मग्रंथ-४ से ५ व रजस्वला स्त्री विचार गाथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७-१२(१ से ११,१३)=५, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ११४३५-४८). १.पे. नाम, षडशीतिक, पृ. १२अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, __गाथा-८६, (पू.वि. गाथा-७६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शतकसूत्र, पृ. १२अ-१७आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से ३० अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम. रजस्वला स्त्री विचार गाथा, पृ. १७आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जा पुप्फपवाह जाणिऊण; अंति: सिद्धांतविराहगो सोउ, गाथा-६. ९६४०७. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-४(१,३ से ५)=६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पटबु., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ५-६४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-१ सूत्र-२ अपूर्ण से १८ अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९६४०८. (+) जीवविचारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८६, आश्विन, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. पाली नगर, प्रले. पं. कपुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ४४२८-३४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: ___ संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन स्वर्ग१ मृत्यु२; अंतिः श्रुतसिद्धांतसमुद्र थकी. ९६४०९ (+) स्तुति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-८(१ से २,४,६ से ८,११ से १२)=५, कुल पे. १६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ११-१३४३०-३७). १.पे. नाम. रीषभजिन स्तति, पृ. ३अ, अपर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २२१ आदिजिन स्तुति, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: साधारी उदयरत्न सुखकारी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पर्युषणापर्व स्तुतिचतुष्क, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पुण्ये; अंति: दिन दिन करो वधाई जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुविशाला रत्नविमल जइमाला, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ५. पे. नाम. इग्यारस स्तुतिचतुष्क, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ संभाली; अंति: संघने विघन निवारी, गाथा-४. ६. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ.५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगिरनारे गुणनिलो जे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ९अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. म. लक्ष्मीरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: हजारा लक्ष्मीरत्न जयकारा, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ८. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मु. विद्याविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेयांस जिनवर भविय हितकर; अंति: विद्याविमल सुखकार, गाथा-४. ९. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: सनो देवी दया दंबा, श्लोक-१. १०.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तति, पृ. ९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. कीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: वामादेवीनंदन विश्व; अंति: हीररत्नसुरंद० वंछित आस, गाथा-४. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. आ. भावरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कूसल मंगल वन संचत; अंति: भावरत्न० पूरो संघ जगीसजी, गाथा-४. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीपासजिनवर सकल सुखकर; अंति: कहि ते लक्ष्मीकल्लोल, गाथा-४. १३. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. क. ऋषभदास संघवी, मा.ग., पद्य, आदि: सांतिजिणेसर समरीइ जेहनी; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक १४. पे. नाम. अष्टापद थोड़, पृ. १३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ____ अष्टापदतीर्थ स्तुति, आ. सिद्धिसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: जय जयकार चतुर्विधि संघजी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. १६.पे. नाम. आदिजिनविनती स्तवन, पृ. १३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिनविनती स्तवन-शवजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) । ९६४१० (+#) दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५,१०४२६-३५). For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ९६४११ (+#) अजिअसंति स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६४९, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, जीर्ण, पृ. ५, पठ. मु. गोपाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ७४३७). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-३९. अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजितजिण दजउ तिणइं जिय; अंति: वचननइं विषई आदर करो. ९६४१३ (+) सुखविपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०.प्र.वि. हंडी:सुखविपा०., संशोधित., जैदे.. (२३.५-२५.०x१०.५-११.०, ६-७४२६-४५). विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं ___ जहा आयारस्स, अध्याय-१०. विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० ते कालने विषे; अंति: आचारंगे का तिम. ९६४१४. (+) एकवीसठाणा प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८११, पौष कृष्ण, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ.७, प्रले. मु. वर्द्धमान (गुरु मु. भागचंद्र ऋषि); गुपि. मु. भागचंद्र ऋषि (गुरु मु. पूरणचंद ऋषि); मु. पूरणचंद ऋषि; गृही. मु. अमरचंद शिष्य, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३५-४०). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-७०. २१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चवण हुउ ते विमाण१ नगरी२; अंति: साधारण एकठा भण्या. ९६४१५ (+#) चतूरक्षर पाशक शुकलावलोका, अपूर्ण, वि. १७३०, आश्विन शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९-३(५ से ७) ६, प्रले. मु. मतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४२८). अबयदीशुकनावली, सं., गद्य, आदि: संसारासार सिद्ध्यर्थं; अंति: साधयिष्यति नात्र संदेह, प्रकरण-४, (पू.वि. "देवता पूजां कुरु पाठ" से "प्रयोजनं अतिव कठिनं पाठ" तक नहीं है.) ९६४१७. (+) औष्ट्रिकमतोत्सूत्रप्रदीपिका का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६२५, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. सीरोहीनगर, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ९००, जैदे., (२५.५४११, १४-१६x२३-६०). औष्ट्रिकमतोत्सूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अथ औष्ट्रिकमतोत्सूत्र; अंति: मनाववारूप चतुर्थ अधिकार. ९६४१८. (+) चतःशरण प्रकीर्णक व शीलोपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ९-११४२५-३५). १. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चउसर०. ___ ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. २.पे. नाम. शीलोपदेशमाला, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:उपदेससील. आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि.१०वी, आदि: आबालबंभआरि नेमिकुमार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक ९६४१९ (+#) पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-१३(१,६ से १७)=६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ६x४०). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम सूत्र अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. अंतिम पत्र घिस जाने से पाठ अवाच्य है.) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २२३ ९६४२० (+#) पल्योपमसामायक फलादि संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. ५. कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही " फैल गयी है, दे., (२५.५X११, २०-२१x६०). १. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पू. १अ ३आ, संपूर्ण प्रास्ताविक श्लोक सं., मा.गु., पद्य, आदि अंगुल्पाकः कपाट प्रहरति अंति: अध्ययने मरणं ध्रुवं, गाथा- १०७. २. पे. नाम. विद्वद्गोष्ठी, पृ. ४अ, संपूर्ण. पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., पद्य, आदि: श्रीभोजराज सभायां अंतिः नैव च कीदृशा स्युः, श्लोक-२०. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. प्रास्ताविक श्लोक सं., पद्य, आदि वारुकाराण कोच्यते अति नदंतु योगीश्वराः, श्लोक-६६. 9 ४. पे. नाम. पल्योपम सामायिक फल, पृ. ५आ, संपूर्ण प्रा. सं., पद्य, आदि: शाश्वत् सामायकं कुर्यात्; अंतिः तिहा अडलाग पणवीसा, गाथा-७. ९६४२१. (+) लीलावती की भाषा, संपूर्ण वि. १७९० फाल्गुन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १३, प्रले. मु. गंभीरविजय (गुरु ग. ललितविजय); गुपि. ग. ललितविजय (गुरु पं. कृष्णविजय गणि); पं. कृष्णविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैवे. (२५.५x११, १७-१९४३१-६५) " लीलावती भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि सोभित सिंदूर पुर: अंति: लालचंद० जन सुखकाज, अध्याय १६, गाधा ७०७. ९६४२२ (+#) खंदकऋषि चउपइ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X११, १३X३७). खंधकमुनि चरित्र शतक, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य वि. १६००, आदि आदि जिण रिसह श्री अंतिः शुद्धि कर प्रणाम, गाथा - १०२. " ९६४२४. (+) रघुवंश की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३३-२ (१ से २) ३१, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११, १४-१६४३९-४८). रघुवंश - टीका, मु. धर्ममेरु, सं., गद्य, वि. १७४८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१ श्लोक ७ की टीका अपूर्ण से सर्ग-४ श्लोक-४ की टीका अपूर्ण तक है.) ९६४२७. (+) नंदीषेण रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, १६x५५). नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सूत सिद्धारथ भूपनो; अंति: ऋद्धि सिद्ध नित गेह रे, ढाल - १६, ग्रं. ४२९. ९६४२८ (+) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १२, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ४४१, जै.. (२५x११, " १५x५०-५५). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: चक्रे बालावबोधिकाम्, ९६४२९ (+#) सत्तरभेद पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पठ. श्राव. शिवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५४११, १३४३२). जैदे.. ९६४३०. १७ भेदी पूजा, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि सर्वशं जिनमानम्य; अंतिः मेघराज० घरि आणंदोरो बोली, पूजा १७. - (+) कल्पसूत्र की मांडणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. हुंडी: कलपसुतरी मंडणी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२५x१०.५, १३४३६). कल्पसूत्र-मांडणी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हतभगवंत श्रीमन्महावीर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "हिवइ श्रीभद्रबाहुस्वामि ग्रंथ मांडतओ आदिमां" पाठ तक लिखा है.) ९६४३१ (+#) गिरनारतीर्थोद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की फैल गयी है, जैसे., (२५.५X११.५, ११४२५-३०). गिरनारतीर्थोद्धार रास, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सयल वासव सयल वासव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९६४३४. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५५-३३(१ से ३३)=२२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्येन., जैदे., (२४.५४११, ५४३८-४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-११ गाथा-३ अपूर्ण से अध्ययन-१६ सूत्र-७ अपूर्ण तक है.) ९६४३५. (+#) षट्त्रिंशकाप्रज्ञाप्रकाश व चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ६-९४३८-४२). १.पे. नाम. षट्त्रिंशिकाप्रज्ञाप्रकाश सह टबार्थ, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण, प्रले. मु. हरजी ऋषि (गुरु मु. हरषजी ऋषि); गुपि. मु. हरषजी ऋषि (गुरु मु. हाथीजी ऋषि); मु. हाथीजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन; अंति: मयका प्रणीता, श्लोक-३७, संपूर्ण. प्रज्ञाप्रकाशत्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बुद्धि प्रकाशने अर्थ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३० तक टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मी निवासम्, श्लोक-८. ९६४३६. (+) सिंदूर प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-४(१ से ४)=६, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्र०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,११-१२४२५-३५). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-९९, (पू.वि. श्लोक-४९ अपूर्ण से है.) ९६४३७. (+) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८०५, भाद्रपद शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. वाल्ही नगर, पठ.पं. मुनिविजय गणि (गुरु पंन्या. देवेंद्रविजय गणि); प्रले. पंन्या. देवेंद्रविजय गणि (गुरु ग. जयविजय); गुपि. ग. जयविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:भाष्यपत्र. श्रीमनमोहनपार्श्वप्रभुप्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४३७-४२). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: य सुक्खं लहुं मुक्खं, भाष्य-३. ९६४३८. (+#) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३६). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. ९६४३९ (+#) मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:मेरुत्रयो०., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १४४३८-४७). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, म. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: शिष्यैरामोदतस्त्वदः, ग्रं. १६५. ९६४४१. (+#) भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७९७, कार्तिक शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १६-५(२,९ से ११,१५)=११, ले.स्थल. सहजादपुर, प्रले. पं. जीवण (गुरु पं. मुनिसुंदर); गुपि. पं. मुनिसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीभुवनदीपकटबार्थनां., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ६४३६-४२). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: भार्गवश्चेत्तरश्मे, श्लोक-१७०, ग्रं. १७२, (पू.वि. प्रारंभ से श्लोक-७ अपूर्ण तक, द्वार-५ श्लोक-१ अपूर्ण से द्वार-१३ श्लोक-९ अपूर्ण तक, द्वार-२८ श्लोक-१ से द्वार-३३ श्लोक-८ अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधीओ मह; अंति: इस्ये आचार्य कह्यो, ग्रं. ५१७. ९६४४४. (+#) चमत्कारचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ५४३८-४२). For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., पद्य, आदि: नचेत् खेचराः स्थापित; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३६ अपूर्ण तक चमत्कारचिंतामणि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवामेय जिनं नत्वा; अंति: (-). ९६४४५ (१) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३५-४२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१३१ अपूर्ण तक है.) ९६४४८. (+) अंजणासतीको चोपिरास, संपूर्ण, वि. १८४८, श्रावण शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. वाणारस, प्रले. मोभतराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, ९-११४३८-४३). ___ अंजनासुंदरी रास-बृहद, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलै नइ कडवइ पय नमु; अंति: भार्या जगतनी मात तो, गाथा-३१८. ९६४४९ (#) पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८३१, आषाढ़ शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. नाल, प्रले. मु. धनरूप पंडित; राज्यकालरा. विजैसिंघ, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १३४३५-३८). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१८१. ९६४५०. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२-४(१ से ४)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, १३४४२-५०). प्रास्ताविक गाथा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१०८ अपूर्ण से ३३९ अपूर्ण तक है.) ९६४५१ (+#) अंजनासती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४-७(१ से ७)=७, प्र.वि. हुंडी:अंजना., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४११, १७४३३-३६). अंजनासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भारज्यो जगतत्रनी माया तो, गाथा-१५९, (पू.वि. गाथा-८० अपूर्ण से ९६४५२. जिनबिंब प्रवेश प्रतिष्ठादिविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प. ११-६(१ से ६)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४८). जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. रक्षापोटली मंत्र अपूर्ण से "प्रतिष्ठित नवीनबिंब गृहस्थापने" पाठ तक है.) ९६४५५. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९६४, चैत्र कृष्ण, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. पडधरी, प्रले. कालीदास परसोत्तम खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व, दे., (२५४११, १८४४५). नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं०हवे नव; अंति: भोमीयो होय ते मोक्ष जाय. ९६४५६ (+) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-८(१ से ७,१३)=८, प्र.वि. हंडी:पाषी., पाषीपडीकम०., संशोधित., दे., (२५४११, १२४३६). पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पुहि.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सम्मत् देवसियंभणिज्जासुः, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., "हिंसमुणुन्नायं तं निंदामि गरहामिति" पाठ से है.) ९६४५७. इग्यार अंग, गणधर, रुद्रादि नाम संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३४-१९(४,१० से २७)=१५, कुल पे. १३, दे., (२५४११, १८-१९४३९). १.पे. नाम. इग्यार अंग नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ११ अंग नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आचारांगसूत्र १; अंति: प्रश्न० विपाकसूत्र११. २. पे. नाम, श्रावक ११ प्रतिमा विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: दर्शनप्रतिमा निरताचार; अंति: आचारि इग्यार मास सामः. ३. पे. नाम. ११ गणधर नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: इंद्रभूति १; अंति: ११ श्रीप्रभास. For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. ११ रुद्र नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: १ भीमीवलीन २ जितसतन; अंति: प्रतीलीन ११ सतिलीन. ५.पे. नाम. १२ उपांग नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: १ उववाई उपांग १५००; अंति: १२ श्रीपुष्पचुलिया. ६. पे. नाम. वनस्पति के १२ भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ भेद वनस्पति, मा.गु., गद्य, आदि: १ वृक्षआछादिक २ गुलाबीजोर; अंति: १२ कुकंदभुइंफोडादिक. ७. पे. नाम. १२ उपयोग नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मतिज्ञान१ श्रुतज्ञान२; अंति: १२ केवलदर्शन. ८. पे. नाम. १२ भावना नाम, पृ.१आ-२अ, संपूर्ण. १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ संसारना सर्व पदार्थ धन; अंति: ते बोधि दुर्लभ भावना. ९. पे. नाम. १२ पर्षदा विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: साधु विमानिकनी देवी; अंति: २ नारी ३ ईशानि कुणि रहइं. १०. पे. नाम. १२ चक्रवर्ती नाम, पृ. २अ, संपूर्ण. १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम भर्थजी१ सगर२; अंति: जय११ ब्रह्मदत्त१२. ११. पे. नाम. मनुष्यना भवनी बार संपदा, पृ. २अ, संपूर्ण. १२ संपदा-मनुष्य की, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यपणओ१ आर्य; अंति: मनुष्यने१२ संपदा कही. १२. पे. नाम. जिनकल्पी के १२ उपकरण, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ पात्रुओ २ पात्रानु; अंति: ११ रजोहरण १२ मुंहपत्ती. १३. पे. नाम. बोल विचार संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: १ एक मासनी २ द्वि मासनी; अंति: ९ समुद्धात ३ वेदनी १ कषाय. ९६४६६. (+) श्लोकसंग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, २४३०). जैन श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ श्लोक-४ अपूर्ण से है व २८ तक लिखा है.) जैन श्लोकसंग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९६४६८. (+#) कविशिक्षा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. हुंडी:काव्यकल्पलता सूत्रं, संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५,१५४४०-४४). कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह , सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: वाचं नत्वा महानंदकर; अंति: गुरुतापि रथोपमानैः, प्रतान-४. ९६४७४. (+) पर्वविज्ञप्ति लेख संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:पर्वलेख., संशोधित., जैदे., (२६४११, १९४४२-४७). १.पे. नाम. पर्वविज्ञप्ति लेख, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह कृति पत्रांक १असे ३अ तक व ४असे ४आ पर है. मु. नित्यविजय, सं., पद्य, वि. १७५२, आदि: स्वस्तिश्रियो या विविधा; अंति: नित्य० स्तादिति मंगलश्रीः, श्लोक-९५. २. पे. नाम. पर्वलेखपर्यायविधिभावसमर्थन विचार, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. लेखनक्रम व्यतिक्रम होने से वस्तुतः यह कृति ३आ से प्रारंभ होती है तथा इसका अनुसंधान पाठ ५अ पर मिलता है. सं., गद्य, आदि: तिस्रः खलु विधेर्विधाः; अंति: भासकत्वात् सर्वज्ञत्वं. ३. पे. नाम. ईश्वरजीव प्रतिपादन विचार, पृ. ५अ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह कृति ४आ पर है. सं., गद्य, आदि: अथ ईश्वरः कः को जीवः अत्र; अंति: व्यावहारिकः प्रातिभासिकः. ९६४९०.(+) ज्योतिषसार सह यंत्रकोद्धार टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४१०.५, १९-२०४५१). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२९१ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २२७ ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वती प्रसादेन; अंति: (-). ९६४९१ (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८१४, ज्येष्ठ शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२४४११.५, ११४२८-३२). ___कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६. ९६४९२. (+#) सोहमकुलरत्न पट्टावली रास, संपूर्ण, वि. १८९३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७३, ले.स्थल. वडगाम, प्रले. ग. नायकविजय (गुरु ग. मोहनविजय); गुपि. ग. मोहनविजय (गुरु पं. रामविजय); पं. रामविजय (गुरु पं. धनविजय); पं. धनविजय (गुरु पं. भक्तिविजय); पं. भक्तिविजय (गुरु पं. हेमविजय); पं. हेमविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १३४२६-३५). सोहमकुलरत्न पट्टावली रास, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीत्रिसला; अंति: नाम चतुर्थोल्लास, उल्लास-४ ढाल ६५, (वि. मूल पाठ के साथ साथ विद्वानों की नामावली अनुक्रम में दी गई है.) ९६४९३. (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८८८, माघ कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६९-७(३,७,१३,२३,४४,५९,६७)=६२, प्रले. पं. हंसविजय (गुरु मु. राजविजय, तपागच्छ); गुपि. मु. राजविजय (गुरु पंन्या. प्रेमविजय, तपागच्छ); पंन्या. प्रेमविजय (गुरु पं. गंभीरविजय); पठ. मु. हुकमिचंद (गुरु म. विनयसागर, मलधारी पुनियमिया पक्ष- बृहत् विजयगच्छे),प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१२) मंगलं लेखकानां च, (२३) जब लग मेरु अडग है, (५२) पोथी प्यारी प्राणथी, (७९) एक पोथी और एक पद्मनी, (११४) लेखन उर मीस डाबडी, (६७६) भणज्यो गुणज्यो सीषज्यो, जैदे., (२४४११, १३४३१-३४). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४ ढाल ४१, गाथा-१८३०, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९६४९४. (+#) प्रश्नव्याकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५२-६(१,३ से ६,३६)-४६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११, ६४३०-३४). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पाठ "णऊय णिरवयक्खा णिटुंमो णिप्पवासो" से "इमेहि तस्सथावरेहिं जीवेटिं" तक, "कयरे जेतेसोयरिया मछबंधा साउणिया" पाठ से "सिरियाभिसेय २२ तोरण २३ मेयणि २४" तक है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९६४९५. विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२६, ज्येष्ठ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ८५, प्रले. मु. ऋषभचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:विपाक०, कुल ग्रं. ४०००, दे., (२४.५४११.५, ७४३०-३४). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०. विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणइ कालइ तिणइ समय; अंति: जिम आचारांगसूत्र मै. ९६४९७. (+) परमात्मप्रकाश का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९६६, पौष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ३८, ले.स्थल, भीनमाल, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२२.५४१२.५, १५४२७-३०). परमात्मप्रकाश-पद्यानुवाद, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: परम ज्योति प्रणमुं; अंति: सुणतां सुखसंतिति सारो रे. ९६५०५. (+) परमागम समयसारनाटक, अपूर्ण, वि. १९११, कार्तिक, मध्यम, पृ. ९८-१४(१,१८ से २९,६०)=८४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२४४१३, १०-११४२८-३८). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: नाममइ परमारथ विरतंत, अधिकार-१३, गाथा-७२७, ग्रं. १७०७, (पू.वि. पार्श्वनाथ स्तुति गाथा-३ अपूर्ण से गाथा-१०४ अपूर्ण तक, व गाथा-१७५ अपूर्ण से गाथा-३८३ तक व गाथा-३९१ अपूर्ण से For Private and Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९६५१२. (+#) योगचिंतामणि-१ से ५ अध्याय सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७६१, पौष कृष्ण, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. १४७-६०(५८ से ११७)=८७, ले.स्थल. अंजार, प्रले. कल्याणश्री जोशी; अन्य. मु. विश्रामजी (गुरु मु. पितांबरजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पठनार्थ अस्पष्ट है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१२, १३-१५४३२-३५). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. अंत में विषयानुक्रमणिका दी गई है.) योगचिंतामणि-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: सूंठि सेर ५ घृत सेर ५ दूध; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ९६५१३. (#) रत्नसार, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:रत्न., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, २०४३८-४६). विचाररत्नसार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"असार पालया दोवि पएसत्त" तक है.) ९६५१४. (+) पज्जोसवणा कप्पो, अपूर्ण, वि. १८८७, कार्तिक शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०२-४९(१ से ४९)=५३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२३४१२, ९४२१-२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६, (पू.वि. व्याख्यान-६ पाठ "लोभेवा भएवा हासेवा" से है.) ९६५१५ (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०६, ज्येष्ठ शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ.८१, ले.स्थल. बालोचर, प्रले. पं. जोधराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र. भागीरथीतटे. श्रीगुरो प्रसादात लिखितं., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. १२१६, दे., (२४.५४१२, १०४२६-३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६. ९६५२०. (+) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४१-१२(१ से ४,९ से १६)=२९, प्र.वि. हुंडी:नारचंद्र, पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२३.५४१२.५, १०x१६-३०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मृत्युयोग अपूर्ण से अधोमुखानि नक्षत्र तक व आठ वर्ग अपूर्ण से रात्रिज्ञान तक लिखा है.) ९६५२२. (+) उवसग्गहर स्तोत्र व चिंतामणि कल्पमंत्राम्नायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९८०, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४३, कुल पे. १६, ले.स्थल. आहोरनगर, प्रले. पितांबर शर्मा श्रीमाली; पठ. पंन्या. कल्याणविजय मुनि; मु. सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१२, ११४४०). १. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुइ है. आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. २.पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र सह टीका, पृ. १आ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुइ है. उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की पार्श्वदेवीय टीका, ग. द्विजपार्श्वदेव, सं., गद्य, आदि: धरणेंद्रनतं नत्वा; अंति: मिथ्यादःकृतमिति. ३. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र की लघुवृत्ति, पृ. १०आ-१५आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ लघुवृत्ति, आ. पूर्णचंद्राचार्य, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: नमस्कृत्य परं पार्श्व; अंति: द्यावादाभिधग्रंथात्. ४. पे. नाम, भयहर स्तोत्र, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: ईय नाहत्थणामि भत्तीए, गाथा-२५. ५. पे. नाम. भयहर स्तोत्र की टीका, पृ. १६आ-२३अ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: सिद्धार्थपार्थिवसुतं; अंति: भवति मूलमंत्रेण पूजनीयमति. For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६. पे. नाम. पार्श्वनाथ बत्तीसी पृ. २३-२४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु वो; अंतिः स प्राप्नोति शिवश्रियं श्लोक-३३. ७. पे. नाम. चिंतामणि मंत्रराज कल्प. पू. २४आ-२६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मंत्रराज कल्प- चिंतामणि, आ. धर्मघोषसूरि, सं., पद्य, आदि नत्त्वा प्रणतनागेंद्र, अति चिंतामणिजगत्प्रभोः, श्लोक-४५. ८. पे. नाम. चिंतामणि संप्रदाय, पृ. २६अ २९आ, संपूर्ण. चिंतामणिमंत्र संप्रदाय, सं., गद्य, आदि ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमिऊण; अति लेखिन्याः कथिताविधिः, ९. पे. नाम. भयहर स्तोत्र मंत्राम्नाय पृ. २९आ-३०आ, संपूर्ण. " नमिऊण स्तोत्र भयहर स्तोत्र मंत्राम्नाब, संबद्ध, सं., गद्य, आदि जयशालागभीरच गुणेनाशुजिंग, अंति: च आदेशः प्राप्यते. १०. पे नाम, कल्पद्रुम मंत्राम्नाय पू. ३०-३१अ संपूर्ण सं., गद्य, आदि : उपसर्गहरस्तवेपि; अंति: धनधान्यादि लाभः. ११. पे नाम. चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३१अ-३२अ, संपूर्ण. | ददातु लोक-११. पार्श्वजिन स्तव - चिंतामणि, सं., पद्य, आदि किं कर्पूरमयं सुधारस अति बीजं बोधिबीज १२. पे नाम, पार्श्व स्तोत्र, पृ. ३२- ३२आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तोत्र स्तंभनतीर्थ, आ. तरुणप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि श्रीस्तंभनस्तंभनपार्श्व; अंतिः शरणं मम यच्छतु, लोक-११. १३. पे नाम, पार्श्वप्रभु स्तव, पू. ३२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्नकीर्ति, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण पासनाहं विसर; अति: मंगलकरणं संथवर्ण पासनाहस्स, गाथा-७. १४. पे नाम पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३२-३३अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमलप्रभ, प्रा., पद्य, आदि: जस्स फणिंद फणो होई; अंति: कमलप्पह गुरु पसायाओ, गाथा-७ १५. पे नाम. उवसमगहर स्तोत्र सह कल्पलता वृत्ति, पू. ३३२-३८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक (+) २२९ बार जुडी हुई है. , " उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्म, आदि उवसमा पास पास अति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा ५. उवसग्गहर स्तोत्र-कल्पलतावृत्ति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य वि. १३६५, आदि प्रथम श्रीपार्श्वनाथ; अंति: पासजिण ', इति सिद्धम्, १६. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र की अभिप्रायचंद्रिका टीका, पृ. ३८आ-४३आ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र - अभिप्रायचंद्रिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य वि. १३६५, आदि: श्रीपार्श्वस्वामिनं; अंतिः भुवनशब्देन तस्था, (वि. मूल का मात्र प्रतीक पाठ दिया है.) | कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९२२, कार्तिक कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १९७-८२(१ से ८२)=११५, ले. स्थल. विक्रमपुरनगर, प्रले. शिवनारायण आचार्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : कल्पद्रुवा०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२४४१२, १२X४०-४२). " For Private and Personal Use Only कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान - ९, (पू. वि. महावीरस्वामी जन्म प्रसंग अपूर्ण से है.) कल्पसूत्र कल्पद्रुमकलिका टीका का बालावबोध, रा., गद्य, आदि (-); अति श्रीसंघ जयवंती प्रवतीं ९६५२८ (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पू. ३९. प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X१२, १७३८-४६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि प्रणिपत्यार्हतः; अंति रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९६५३०. शत्रुजयतीर्थ रास व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-६(१ से ६)=५, कुल पे. २, ले.स्थल. पोटला, जैदे., (२३४११.५, १५४३२-३४). १. पे. नाम. सेजेजाजीको रास, पृ. ७अ-११अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८५३, आश्विन शुक्ल, ३, मंगलवार, ले.स्थल. पोटला, प्रले. ग. भाग्यसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य. शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: (-); अंति: समयै० सुणतां नवनिध्य थाइ, ढाल-६, गाथा-११२, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. राणपूराजीरो स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणपुरमंडन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: राणपुरे मन मोहियो रे; अंति: कविजनने सुख थाय, गाथा-१५. ९६५३१ (+) मंगलकलश चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १२-२(१ से २)=१०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. हंडी:मंगल कलस चो०., संशोधित., दे., (२३.५४११.५, १२-१४४१८-३६). मंगलकलश चौपाई, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पाठ "माया काया कारमी" से "अधरातमां विणठी तहणी काय" तक है.) ९६५३२. (+) नवपद कलश पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(२ से ३)=७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४११.५, १२४२८-३२). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोई नये न अधूरी रे, पूजा-९, (पू.वि. प्रथमपद पूजा गाथा-२ अपूर्ण से तृतीयपद पूजा गाथा-२ अपूर्ण तक नहीं है., प्र.ले.पु. अतिविस्तृत) ९६५३३. (+#) संजमश्रेणिविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रावण शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:संजमश्रेणी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, ४४२८). संयमश्रेणिविचार स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना; अंति: ध्यानमां ध्यायो रे, ढाल-२, गाथा-२१. संयमश्रेणिविचार स्तवन-स्वोपज्ञ टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रवृंदनतं नत्वा; अंति: यशोविजई कह्यो. ९६५३४. (+) विचारश्रेणी की व्याख्या व संवत्सरा: मतोत्पत्तीनाम, संपूर्ण, वि. १९८४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. आहोर, प्रले. पंडित. जगन्नाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२२.५४११.५, ११-१५४२०-५२). १.पे. नाम, विचारश्रेणी की व्याख्या, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण. विचारश्रेणी-व्याख्या, आ. मेरुतुंगसूरि, सं.,प्रा., गद्य, आदि: जं रयणिं कालगओ इति; अंति: जैनधर्म विधास्यति. २.पे. नाम, संवत्सरा: मतोत्पत्तीनाम, प. १०आ-११अ, संपूर्ण. दिगंबरादि मतोत्पत्ति संवत्सर विचार, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरकेवलात् १४ वर्षे; अंति: २१२० व० ब्रह्मामतीयाः. ९६५३५ (+#) रात्रिभोजन चउढालीओ, अपूर्ण, वि. १९०१, भाद्रपद कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ७-१(४)=६, प्रले. मु. शिवलाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं.८८, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११,१२४२६-३०). रात्रिभोजन चौढालिया, मु. पानाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि पद नमुंजेहथी; अंति: पानाचंद०सुख अधिक जस थात ऐ, ढाल-४, गाथा-८८, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-५ से ढाल-४ के प्रारंभ तक नहीं है.) ९६५३६. (+) पंचकल्याणक पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७-१(१)=६,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३४११, १५४२३-२८). पंचकल्याणक पूजा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वीर पर्यंता कल्याणकगणनेति, (पू.वि. पाठ "चैत्र कृष्ण० पंचम्यातिथौ अजितजिन" से है.) For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २३१ ९६५३७. (#) दशवैकालिकसूत्र सज्झाय-पंचम अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९३१, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. पीगोरा, प्रले. मु. मोतीलाल साधु (गुरु मु. राजाराम उत्तमचंदजी); गुपि.मु. राजाराम उत्तमचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:दस०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, १४४१६). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय अध्ययन ५, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: सम्यकप्रकार पामबानै; अंति: (१)बिचरे एम हुं कहूं छू, (२)छठाध्ययने में धर्म कह्यौ, गाथा-५०. ९६५४१ (+) चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११.५, ९४२२-३२). चैत्यवंदनचौवीसी, क. ऋषभ, मा.ग., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहंत नम; अंति: बह जीव पाम्या पार, चैत्यवंदन-२४. ९६५४४. (#) कर्मग्रंथ-५ के बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४११.५, १०४२५). शतक नव्य कर्मग्रंथ-बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., चौदगुणस्थान अपूर्ण से ६३ प्रकृतिबंध अपूर्ण तक है.) ९६५४६. (+#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६-१०(१ से ७,९,१४ से १५)=६, कुल पे. १३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४११.५, १०-११४२७-३२). १. पे. नाम. पंचभरतपंचऐरवदसजिन एवं सतरसयजिननाम स्तवन, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. १७० जिननाम स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: चरणसेवक न्यायसागर गुण वसै, गाथा-१२, (प.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सूरतमंडनपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सूरतमंडण, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सूरतमंडण मूरत प्यारि; अंति: न्यायसागर० ऐसे कनि अरदास, गाथा-४. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. नयविजय, मा.ग., पद्य, आदि: साहिब सांभलो रे संभव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) ४. पे. नाम. नेमराजल गीत, पृ. १०अ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. नेमराजिमती स्तवन, ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नवनिधि ऋद्धि सिद्धि होय, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) ५. पे. नाम, संखेसरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: रे दीदार की दिलभ्यंतर; अंति: उत्तमसागर चित धरयो रे, गाथा-१४. ६. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तूं तो अचिरानंदन देवरे; अंति: न्यायसागर सुख थाय रे, गाथा-५. ७. पे. नाम, कुंथुनाथजिन स्तवन, पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण. कुंथुजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्री कुंथुजिनेसर प्रणमुं; अंति: न्यायसागर प्रभु आगले कहैं, गाथा-१५. ८. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनशांति वडे महराजा; अंति: न्यायसागर० सीस नमाउंगा, गाथा-६. ९. पे. नाम, मुनिसुव्रत स्तवन, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. सुव्रतजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मोहनगारि हो प्यारी सूरति; अंति: न्यायसागर गुण गेह, गाथा-५. १०. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु ताहरी मूरति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) ११. पे. नाम, अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: न्यायसागर दिल आणीजी, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२. पे. नाम, नमिजिन स्तवन, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आज जिनराज सिरताज दिन; अंति: ते लहैं सहज लीला सहेली, गाथा-७. १३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरजिन साहिबा आगल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ९६५५२. (+#) जीवविचारप्रकरण, अमृतधन व अढार नातरा, संपूर्ण, वि. १८७६, ज्येष्ठ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, प्रले. मु. कमलसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ५-६x४७). १.पे. नाम. जीवविचारप्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, वि. १८७६, ज्येष्ठ शुक्ल, १, ले.स्थल. मोक्ष्यदावाद, प्रले. मु. कमलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनरइ विषइ दीवा; अंति: कहतां संक्षेप थकी. २. पे. नाम. अमृतधुनि, पृ. ६आ, संपूर्ण. __ अमृत धून, गोविंद, मा.गु., पद्य, आदि: ध्रुकटि ध्रुकटि द्रांकुटि; अंति: गोविंद गोविंद के गुण गाया. ३. पे. नाम, अढार नातरा, पृ. ६आ, संपूर्ण. १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: बालकने कहे आपणां चिह्ननी; अंति: माहरा घणी री बहुत रे सोक. ९६५५४. (+#) सूक्तावली व सुभाषित, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३३-१०(८ से ९,१७ से २३,३०)=२३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११, ९-१०४२२-२८). १. पे. नाम. सूक्तावली, पृ. १अ-३१आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: शरीरं नीरोगं सहति; अंति: लोके मान नव खंडितमुच्यते, (पू.वि. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं., वि. श्लोक संख्या अव्यवस्थित है.) २. पे. नाम, सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. ३१आ-३३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुगुरु समै नहीं चूकीये; अंति: (-), (पू.वि. अन्त के पाठ नहीं हैं., वि. श्लोक संख्या नहीं लिखी है.) ९६५५५. चोमासी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१x११.५, ६-१०४२२-२३). चातुर्मासिक व्याख्यान, रा.,सं., पद्य, आदि: सामायकावश्यक पौषधानि; अंति: (-), (पू.वि. "आघो पाछो घाते ते अतिचार ३ धरतीथो" पाठ तक है.) ९६५६० (+) विविध विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१२(१ से १२)=९, कुल पे. १०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १५४४०-४२). १. पे. नाम. बारैव्रतां कौ विचार, पृ. १३अ-१६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं वोसिरामि, (पू.वि. सम्यक्त्व वर्णन अपूर्ण से २. पे. नाम. मार्जारी दोषनिवारण विधि, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: देवसीराई पाखी चउमासी; अंति: तीन वार प्रहार दीजै. ३. पे. नाम, छींक दोषनिवारण विधि, पृ. १६आ, संपूर्ण. छींक निवारण विधि, मा.गु., प+ग., आदि: पाक्षी चौमासी संवच्छरी; अंति: वरसताइ विशेष तप करणा. ४. पे. नाम. कृष्णभव वर्णन-वसुदेवहिंडीगत, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. कृष्णभव चतुष्ट्य वर्णन, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तुमे श्रीकृष्णदेव आश्री; अंति: तित्थयरो भविस्सई गोयमा. ५. पे. नाम. तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेवादि जघन्य-मध्यम-उत्कृष्ट संख्या विचार-ढाईद्वीपस्थित, पृ. १७अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २३३ ६.पे. नाम, षद्रव्यनो विचार, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. __ षड्द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धरमास्तिकाय१ अधरमास्तिकाय; अंति: एक जीव पुद्गल काल अनेक. ७. पे. नाम. विविध विचार संग्रह, पृ. १७आ, संपूर्ण, पे.वि. २२ परिषह, सुपात्रदान व द्विदलादि विचार है. विविध विचार संग्रह, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: केवलिनोपि संभवति; अंति: नलिणी गुल्म विमाणंमि. ८.पे. नाम. कृष्णमहाराज के ७२ सहस्र माता नमस्कार विचार, पृ. १७आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ७२ सहस्रने १८०नो भाग दीजै; अंति: ते वास्तै १८० भाग दीजै. ९.पे. नाम, चवदह नियम स्वरूप सह विवरण, पृ. १८अ-१९आ, संपूर्ण... १४ श्रावकनियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त १ दव्व २ विगइ; अंति: न्हाण१३ भत्तिसु१४, गाथा-१. १४ श्रावकनियम गाथा-विवरण, रा., गद्य, आदि: किनहीक श्रावक पांच; अंति: हंतो सामान्य करणा है. १०. पे. नाम. खरतरगच्छ समाचारी, पृ. २०अ-२१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. खरतरगच्छीय शुद्ध समाचारी, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीविधि प्रसाद विधि; अंति: (-), (पू.वि. सामाचारी-९६ अपूर्ण तक है.) ९६५६१ (+#) दंडक प्रकरण व असनपाणादि कालमान गाथा, संपूर्ण, वि. १८५७, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. फलवद्धी, प्र.वि. हुंडी:दंडक टीका., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १३४४०-५५). १.पे. नाम. दंडक प्रकरण सह स्वोपज्ञ अवचूरि, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-३९. दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामेयं; अंति: इदं बालचापल्यम्, ग्रं. २१६. २. पे. नाम. असनपाणादि कालमान गाथा, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: फगराइ बारपहरं वीसंथिसि; अंति: वसंतमासे घडिएणय गालएय जलं, गाथा-९, (वि. अंत में सूतक विचार दिया है.) ९६५६२ (4) आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ.५४-४८(१ से ४८)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १०४३०). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उपोद्घातनियुक्ति की गाथा-१९४ अपूर्ण से १६० अपूर्ण तक है.) ९६५६३. (+) अनेकार्थ ध्वनिमंजरी, संपूर्ण, वि. १८६९, फाल्गुन कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. मु. उदैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अनेका०., संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४२९-३४). अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., पद्य, आदिः शुद्धवर्णमनेकार्थं; अंति: दिवशब्दो विधीयते, अधिकार-३, श्लोक-२७३. ९६५६४. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६७६, आश्विन कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १२, प्रले. मु. सत्यविजय (गुरु ग. धनहर्ष); गुपि. ग. धनहर्ष; राज्यकाल भट्टा. विजयतिलकसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कल्या वृत्ति., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, २०-२४४४५-५५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: प्रणम्य पार्श्व; अंति: श्लोकानामिह मंगलम्, ग्रं.६५०. ९६५६६ (+#) पंचमी, अष्टमी व मौन एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, ९-१३४२६-३९). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमी व्रत सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीव्रत स्तवन, आ. भावप्रभसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिन इम कहै; अंति: भावप्रभसूरि०सुख लहीयै घणो, गाथा-९. २. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पामे ___ घणु, ढाल-२, गाथा-२३. ३. पे. नाम. मौनएकादशीतप स्तवन, पृ. ४आ-८आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्या रे; अंति: पामीये मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-२५. ९६५६८. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११.५, ११-१३४२५-३१). १. पे. नाम. गर्भावास सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु प्रेमे सरसती वरसती; अंति: एहनुं घणुं छे वखांण, गाथा-१२. २. पे. नाम, गर्भउत्पति सज्झाय, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. गर्भउत्पत्ति सज्झाय, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: हिवे समान पदेथी कहिये जीव; अंति: रंग कहे०सेवे धर्म सदाय रे, ढाल-३, गाथा-३८. ३. पे. नाम. पद्गलपरावर्त्तननी सज्झाय, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. अर्द्धपद्गलपरावर्तनविचार सज्झाय, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन उपदेशें सुलल; अंति: मोहन उपसम रस पीजै रे, गाथा-१३. ९६५६९ (#) उत्पत्ति सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. पालनपूर, प्रले. पं. परसोत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११.५, ११४१०-२८). जीवोत्पत्ति सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पत्ति ज्यों जो आवणी; अंति: रंगे इम कहे श्रीसारए, गाथा-७१. ९६५७२. (+) वीसविहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५०, वैशाख शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ६, प्रले. श्राव. दलमजी; पठ. श्राव. देवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११.५, १२४४३). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुखलवई विजये जयो रे नयर; अंति: वाचक जस इम बोले रे, स्तवन-२०. ९६५७९ (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४११, १०-१४४२१-३३). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पृ.वि. कांड-२ कार्तिकेय नाम अपूर्ण तक है.) ९६५८३. (+) पुण्यफल सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-७(१ से ७)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:पुन०., संशोधित., दे., (२४४११.५, १२४२७-३१). पुण्यफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर आदि देहे रे; अंति: नहीं कांई खींचा ताण रे, गाथा-१०८, संपूर्ण. ९६५८६. (+) अनुयोगद्वार बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १४४३८-४१). अनुयोगद्वारसूत्र-२१ बोल अधिकार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोलै नय ७ दजै; अंति: सेवं भंते सेवं भंते. ९६५८७. तेजसिंह चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, दे., (२४-२५.०x११.५, १६x४४). तेजसिंह रास, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, वि. १९७७, आदि: श्रीभक्तामर शिरमणि अमित; अंति: मंगलिकमाला० सुविसाला रे. ९६५८८, (+#) स्तवन, छंद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चौवीस दंडकगर्भित, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २३५ पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, म. धरमसी, मा.ग., पद्य, वि. १७२९, आदि: पर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. २. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. ३अ-६अ, संपूर्ण, वि. १८६५, कार्तिक शुक्ल, ५, पठ. मु. कपूरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: स्वस्ति श्रीवरवा; अंति: गाता रामविजय श्रीवरे, ढाल-४, गाथा-५३. ३. पे. नाम. क्षेत्रपाल छंद, पृ. ६अ, संपूर्ण. __माधो, मा.गु., गद्य, आदि: ध्रुवे मादलां मृग; अंति: भणे वाह वाह देववाह, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पं. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज आनंद भयो गोडी पासजी; अंति: पद्मविजय सवीसुख लीजे, गाथा-५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, प.६आ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पास; अंति: रंग सदा शिव सुखदानी, गाथा-५. ९६५९२ (+#) जैन पारिभाषिक शब्दसंख्या, धर्मकामधेनु व चौद श्रावक भेद श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४२, कार्तिक शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. ८, ले.स्थल. बेन्नातट, प्रले. मु. गजसार पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १३४३६-४२). १. पे. नाम, विचारकाव्य सह बालावबोध, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. जैन पारिभाषिक शब्दसंख्या, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तत्वानि ९ व्रत ५ धर्म १; अंति: ज्ञेयाः सुधीभिस्सदा. जैन पारिभाषिक शब्दसंख्या-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत श्रीवीतराग; अंति: मंगलमाला प्रवत्तौ. २.पे. नाम, धर्मकामधेन वर्णन, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. औपदेशिक व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: धर्मः कामगवी यदीय; अंति: भोगवै श्रेयः कल्याणं. ३. पे. नाम. धर्मप्राप्ति के १८ दृष्टांत श्लोक, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांतश्लोक, सं., पद्य, आदि: लज्जातो १ भयतो २; अंति: धर्ममसमं तेषांममेदं फलं, श्लोक-१. धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांतश्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्री गुरु गीतार्थ धर्म, (२)लज्जाथकी अर्द्धमांडि; अंति: वयरागी दर्शपूर्व भण्यावली. ४. पे. नाम. १४ श्रावक भेद श्लोक, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. १४ श्रावकभेद श्लोक, सं., पद्य, आदि: मृत्१ चालनी२ महिष३; अंति: भुवि चतुर्दशधा भवंति. १४ श्रावकभेद श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत गुरु गीतार्थ; अंतिः श्रावक कह्या जिन मतै. ५. पे. नाम. श्लोक पद्धति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: सद्व्यं सत्कुले; अंति: श्रेयः कल्याणं. ६. पे. नाम. श्लोककथन पद्धति, पृ. ६आ-१२आ, संपूर्ण. व्याख्यान पीठिका, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अनित्यानि शरीराणि; अंति: मांगलिक्यमाला संपजे. ७. पे. नाम. उठावणा श्लोक, पृ. १२आ-१६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सुभाषितपत्राणि. महावीरजिनदेशना भावांश, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: डहराबुट्ठायपासहा; अंति: श्रेयः कल्याणं. ८. पे. नाम, नवपद स्तुति, पृ. १६आ, संपूर्ण. म. भीमराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन भविक विभासन; अंति: पांमीजै भवपारो जी, गाथा-४. ९६५९३. (+) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.६-१(१)=५, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११,१३४२७-३२). १.पे. नाम. ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, प. २अ, पूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मान सुहंकर हो लाल, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ थवीर सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्थविर सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासनमा कहिउं; अंति: मान कहै धरी प्रेम रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. परिणामशुद्धो अयमता सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुण आदरीइ प्राणीया; अंति: रे मान धरइ बहु प्यार, गाथा-७. ४. पे. नाम. सद्दहणाभावचमरेंद्र सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. अग्निभूति-वायुभूति सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं ते ऋषिरायनइ; अंति: सद्दहणा भाव के, गाथा-११. ५. पे. नाम. चारित्र सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, प्रले. ग. क्षमाविजय; पठ. श्रावि. विजलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१३९४) सहज सलुणा साजना, पे.वि. श्री आदिश्वरजी प्रसादात्. तिष्यकुरुदत्त सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोखइ चित्तइ चारित्र; अंति: अधिकार सुणी मन रीझे रे, गाथा-९. ६.पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जगत दिवाकर जगत कृपानिधि; अंति: सकल मनोरथ सीधो रे, गाथा-८. ७. पे. नाम. श्रीनवपल्लापार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-नवपल्लव, मु. अक्षयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: नायक तुं नवपल्ला स्वामी; अंति: अक्षयकुसल० ___ मननी आसो रे, गाथा-७. ८. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, म. विवेक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर वंदीये रे आतम; अंति: राजुलना पुरो कोड लाल, गाथा-६. ९.पे. नाम. शंखेश्वरजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. विजलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: तत थेई तत थेई राज; अंति: कांति० नीत तस नौबत, गाथा-९. ९६५९६. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७६, श्रावण शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.२४११.३, ११४३१-३६). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: गुरू आणा सिर वहेस्ये जी, ढाल-६, गाथा-१४८, ग्रं. २२८. ९६५९९. प्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ५, दे., (२४४११, ७४३०-३७). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: चेवय चेवयं पजुवासामी. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.प.-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार अ० वेरी हण्या; अंति: सेवा कीजे वंदना कीजे. (वि. बीच-बीच में टबार्थ नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. छावीस बोलरी मर्जादा, पृ. ५अ, संपूर्ण. श्रावक मर्यादा के २६ बोल, प्रा., गद्य, आदि: उलणीयाविहं१ दंतणविहं२ फल; अंति: सचितविहं२५ द्रव्यविहं२६, (वि. बीच-बीच में टिप्पण लिखा है.) ३. पे. नाम. पनरा करमादान सह टबार्थ, पृ. ५अ, संपूर्ण.. १५ कर्मादान विचार, प्रा., गद्य, आदि: अंगालकम्मे१ वनकम्मे२; अंति: असइज पोसणीयाकमे१५. १५ कर्मादान विचार-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: अंगारा कोयला वन कटाना; अंति: पोसन करवु ए पंनरे वरजवा. ४. पे. नाम. चउदा नीयमकी गाथा सह टबार्थ, पृ. ५आ, संपूर्ण. १४ श्रावकनियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त दव्व विगइ; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २३७ १४ श्रावकनियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सचीत काचा पाणी लीलोत्र; अंति: भात पाणीनु मान करे. ५. पे. नाम. साधुजीना चउदा प्रकारको दान सह टबार्थ, पृ. ५आ, संपूर्ण. साध को १४ प्रकार के दान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: फासुयं एसणिज्जेणं असणं; अंति: भयवं अणुग्गाहो कायव्वो, गाथा-२. साधु को १४ प्रकार के दान गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: फा० अचित ए० एषणीक साधुने; अंति: अनुग्रह० जोइए ते वेहरो. ९६६०३.(+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.५, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२३४१२, ८x२२). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक-६२, अं.१५०. ९६६०४. (+) गंहली, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. १६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, ११४३५-४१). १. पे. नाम. महावीरजिन गुहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन गहंली, पं. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहि चालो श्रीमहाविर; अंति: दीपविजय० निज आवासे, गाथा-९. २. पे. नाम. जिनवाणी गुहली, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. जिनवाणी गहंली, म. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमृत सरखी रे सुणीइं; अंति: प्र दीजे, गाथा-७. ३. पे. नाम, वीरजिन गुहंली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गणधरस्थापना गहंली, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अनिहारे नयरी अपापा; अंति: नित वंदन वार हजार, गाथा-९. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र गहुँली, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी गहंली, म. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे महारे जिनआणा; अंति: वात निदाननी रे लो, गाथा-५. ५. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बेहनी वीर पटोधर सोहम; अंति: दीपविजय० शीवपदवी लहे रे, गाथा-८. ६. पे. नाम. गौतमस्वामी गहंली, प. ४अ-४आ, संपूर्ण. म. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो रे बाई चालो रे जोओ; अंति: दीपविजय० मंगल पद पावरे, गाथा-९. ७. पे. नाम, धन्नाअणगार गहली, पृ. ४आ, संपूर्ण. ___आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गहुंली पूरो रे सोहाग; अंति: चाखो सदगुरु गुण मेवा, गाथा-६. ८. पे. नाम, चक्रेश्वरीदेवी गरबो, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अलबेली रे चक्केसरी; अंति: दीप० बह सोभा ताहरी, गाथा-९. ९. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, म. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पर उपगारी रे वाहाला; अंति: पाम्या छे परमानंदो, गाथा-७. १०. पे. नाम. नेमराजिमती गरबा, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गरबो, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंदा संदेसो केहेज्यो; अंति: दीप० जाओ बलीहारी रे, गाथा-११. ११.पे. नाम. नेमजिन गहंली, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. नेमिजिन गहुंली, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखीए वगारो नमएने सुं कहीइ; अंति: दीपविजय० आपो अविचल ठाम ए, गाथा-७. १२. पे. नाम. नेमराजिमती गरबा, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. म. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहो नेमजी रहो रे जाण्य; अंति: दीप० प्रगट्या मंगल कोड, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण, वि. १८८१, माघ कृष्ण, १४, ले.स्थल. सीरोही, प्रले. मु. मोतीविजय, प्र.ले.प. सामान्य. म. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानावरणी क्षय करीन; अंति: पे सहजमां भवदधि तरो, ढाल-४. १४. पे. नाम, पर्युषणपर्व स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपजुसण परव सेवो; अंति: तणो दीपविजय गुण गाय, गाथा-६. १५. पे. नाम. हितोपदेश सज्झाय, पृ. १०अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनडा तुं माहरी सुणि; अंति: भजे तुं श्रीभगवंत रे, गाथा-५. १६. पे. नाम. जंबूस्वामी गहुंली, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. मु. मनमोहन, मा.गु., पद्य, आदि: गाम नगर पुर विचरतां; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ९६६०५. (#) स्तवन, गहुंली व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७-१(१६)=१६, कुल पे. १५, ले.स्थल. पाली, प्रले. आ. हुकमचंद्र (मंडावडगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, ९४२५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-नवलखा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तवन. मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवलखा प्रभु पास; अंति: अमीकुंवर कहै नहीवार. २. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुहली. मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल सजनी रे मारी ह; अंति: अमीकंवर० गृहीनै राखै, गाथा-६. ३. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुहली. ___ मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुणवंता प्रभुनी देशना; अंति: अमीकुंवर० नमे त्रिणकाल रे, गाथा-३. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुहली. महावीरजिन गहंली, मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: गाम नगर प्रभु विचरता करता; अंति: ते पामे शिवपुर राज, गाथा-८. ५. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुहली. मु. अमीकुंअर, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे मारे देशना दो; अंति: अमीय० भणे जी रे जी, गाथा-८. ६. पे. नाम. गुरुगुण भास, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुहली. मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: आवो आवो रे सेहियर वांदायै; अंति: अमीकुंवर०विलसै श्रीकार रे, गाथा-७. ७. पे. नाम, जिनवाणी गहुंली, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुंहली. मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: साहेली हो आवी हुं हर; अंति: कुअर बाछे घणू हो लाल, गाथा-१४. ८. पे. नाम. क्षमाविजयगुरुगुण भास, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुंहली. मु. अमीकुंअर, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु गुणवंता वांदीये; अंति: अमीकुंयर कहे ए वाण, गाथा-८. ९. पे. नाम. बारव्रत सज्झाय, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सज्झाय. १२ व्रत सज्झाय, मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: जीवदया व्रत पेले; अंति: अमीकुंवर० अमरफल लेवा तो, गाथा-१३. १०. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तवन. मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहा प्रभुजी त्रिगड; अंति: अमीयकुंवर नित ध्यावै, गाथा-१०. ११. पे. नाम. खामणा कुलक, पृ. ११अ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:खांमणा०. मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतजीने खामणां; अंति: ते पामै मंगलमाल, गाथा-१४. १२. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १२आ-१४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुंहली. मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: देश प्रदेश विचरताजी करता; अंति: अमीयकुंवर० शिवपुरवास रे, गाथा-१२. १३. पे. नाम. सामायक सज्झाय, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सज्झाय. For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २३९ सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सामायिक नय धारो चतुर नर; अंति: ज्ञानवंत के पासे, गाथा-८. १४. पे. नाम. औपदेशिक पद-निश्चयव्यवहाररूप, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तवन. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि: जैन कहो क्युं होवे; अंति: उनही को जैनदशा जस ऊंची, गाथा-१०. १५. पे. नाम. सिद्धाचलतीर्थ स्तवन, पृ. १५आ-१७अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:तवन. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलना गुण गावो; अंति: अमीकुंवर० दुख गमावै रे, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से गाथा-९ अपूर्ण तक नहीं है.) ९६६०६. (+) सिंदूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९०२, पौष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. मिरजापुर, प्रले. पं. रत्नानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिं.प्र., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२, ११४३०-३१). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. ९६६०७. (+#) उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२६-११५(१ से ७८,८१,८३ से ८४,९२ से १२५)=११, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, ५-१८४३१-३४). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७८ अपूर्ण से ४५८ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९६६०८. (+#) रत्नसंचय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५८-५१(१ से ५१)=७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११, ६४३६-३७). रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८५ अपूर्ण से १५७ अपूर्ण तक है व बीच का पाठांश नहीं है.) रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९६६०९. पुण्यपालनप चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११,११४४२). पुण्यपालनप चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१५ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-९२ अपूर्ण तक है.) ९६६१० (4) मयणरेहा चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, प्र.वि. पत्रांक व गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११.५, १२४३३). मदनरेखासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण से है व अंतभाग अपूर्ण तक लिखा है.) ९६६११.(+) अर्हन्नामसहस्त्र समुच्चय व युगादिदेवमहीम्न स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२२.५४११, १५४२९-३२). १. पे. नाम. अर्हन्नामसहस्त्र समुच्चय, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. अर्हन्नामसहस्र समच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्णाभ्यां; अंति: केवलालोकः लोवली केवलेक्षण, प्रकाश-१०, श्लोक-१०७. २.पे. नाम. युगादिदेवमहीम्न स्तुति, पृ. ५अ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में 'दैवकृतः' लिखा है. आदिजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: ब्रह्मैक तेजोमयी, श्लोक-३८. For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९६६१२. (+) २१ स्थान प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्रले. मु. उत्तमऋषि; अन्य. सा. सुजाणा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. हंडी:एकवीस०, संशोधित., जैदे., (२२.५४१०.५, १०-१३४२१-२८). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा१ नयरी२; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६९. २१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्व चवण विमान २४ तीर्थ; अंति: थाकता ससुत्रइ कह्या. ९६६१४. (#) पद, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. १५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११,८-१०x२२-२८). १.पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: स्वामि माहावीरजी; अंति: समकीत प्रभु रतन दीयो, गाथा-४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: देखी मुरत पास की; अंति: भुधर० आवागमण निवार जी, गाथा-४. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-गर्व, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. मोतीदास, मा.गु., पद्य, आदि: थाका चरणा सुमेरो मन; अंति: दाश मोती० जा मन मरण निवार, गाथा-६. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. सेवाराम, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुजीसू लागो मारो नेह; अंति: प्रीत नही छुटे री, गाथा-४. ५. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मोय कैसै तारोगै दीन; अंति: रूपचंद गुण गाय, गाथा-५. ६. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गिरनारे बोल्या मोर हेली; अंति: भाखै नेम गए चितचोर, गाथा-५. ७. पे. नाम. गिरनारशत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठ देश देखाओ; अंति: ज्ञानविमलसूरीश्वर धरीया, गाथा-७. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद-जिनभक्ति, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: लग जावो जिनचरणा शेति लग; अंति: धरोजी दीनी छे नवल जता, गाथा-५. ९. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मारु सफल थओ छे; अंति: जिनलाभसूरि० ते काजनुं रे, गाथा-५. १०. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पंडित. टोडरमल , पुहिं., पद्य, आदि: उठ तेरो मुख देखुं; अंति: टोडर० अनाथ के फंदा, गाथा-६. ११.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-जिनभक्ति, उपा. समयसंदर गणि, पुहि., पद्य, आदि: कोइक रागी कोइक द्वेषी कोइ; अंति: समयसुंदर० तुम पाय सेवता, गाथा-४. १२. पे. नाम, नेमराजिमती पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: महाराज मो मन भावे सुण; अंति: जिनदास० राजुल मन हरखावे, गाथा-४. १३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. आनंदराम, पुहिं., पद्य, आदि: छोटी सी जान जरा सा; अंति: अरजत भवदुख कंदन हरनावे, गाथा-३. १४. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन-सहस्त्रफणा, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सहस्रफणा, मु. कीर्तिसागर, पुहि., पद्य, आदि: सहेस फणा मोरा साहेबा; अंति: कीरतसागर० पावुरे, गाथा-५. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद, प. ५आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहि., पद्य, आदि: एसी विध तेने पाई रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९६६१५. (+) बुढापा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. हुंडी : बूढो, संशोधित. दे., ( २४ ११.५, १२-१५x२७). बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: निरधन के घर बेटी; अंति: करम खपीयर मुगत्या गया जी, ढाल-८, गाथा - ३८. ९६६१६ (+#) नवतत्त्व प्रकरण व परमाणु कूलक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२३X११, ५x२९-३४). १. .पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, पृ. १आ- ७आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंतिः अतिथसिद्धाय मरुदेवी, गाथा ४९. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (१) साची वस्तुनु स्वरूप, (२) पहिलुं जीवतत्त्व; अंति: सिद्ध ते मरुदेवी प्रमुख, (वि. आ २. पे. नाम. परमाणु कूलक सह टवार्थ, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. परमाणुमान कुलक, प्रा., पद्य, आदि पुढवाइ आसत्ता सव्वं अंति (-), (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) परमाणुमान कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वी १ पाणी २ ते ३ वाय; अंति: (-). ९६६१७. (+) उपधानतप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, अन्य. मु. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जै., (२५X११.५, १२X४८). किया गया है. दे. (२३.५x१२.५, १९४४१-४५). " उपधानतप विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: पहिलै नवकारनै उपधानै; अंति: पछें खमा० अविधि आशातना. ९६६२१. उपासगदशांगसूत्र-प्रथम अध्ययन सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४८, दे. (२३४११.५, ३x२६-३०). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति (-), प्रतिपूर्ण " " उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनें विषे ते; अंति: (-), संपूर्ण. ९६६२४ प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ६ प्र. वि. अंत में "ए प्रश्न कुंवरविजयजीरो ग्रंथमांहेसु लिख्यौ छै" का उल्लेख प्रश्नोत्तर संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: हिबे छठा प्रश्न मध्ये अति पक्षनो विचार जाणवो. ९६६२७. (#) स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ४५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४.५X१२, १८३४-४२). १. पे. नाम सिद्धाचलजी रो स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि जात्रा नवाणु करीए वि; अति: पद्म कठै भव तरीये, गाथा-७. २. पे नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. क्षमारत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि सिद्धाचलगिरि भेट्या; अंति प्रयासी वदि प्रभु खिमा, गाधा-५. ३. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. वल्लभसागर, मा.गु., पद्य, आदि समतिशिखर चालो जहए; अंति: उदयवल्लभ० भवसागर तर जईये, गाथा ४. ४. पे नाम साधारणजिन पद. पू. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदराज, मा.गु., पद्य, आदि: मैं तो खडी निहारू पिया; अंति: आनंदराज० मेहर निज पर आणै, गाथा ३. ५. पे नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ख्याला में तो खडी पुकारु; अंति: नेम पिया को दरस दिखाय, गाथा- ३. ६. पे. नाम नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि मत छोडो म्हांने अति पहिली राजुल नारी रे, गाथा-४, . ७. पे नाम साधारणजिन फाग, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: होरी मैं प्रीतम पायो री; अंति: चंद० प्रीतम पाया री, गाथा - ३. ८. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि सिधारथसुत सांभलो अरदास अंतिः खेम० करी भवसागर तारी, गाथा-३. ९. पे नाम. आदिजिन पद, पू. १आ, संपूर्ण २४१ For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ग. महिमराज, पुहिं., पद्य, आदि: जाग जगमुकटमणि नाभनृप; अंति: महिमराज कहे काट भव फंदा, गाथा-३. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद-जिनभक्ति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कीर्तिसेनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भजन विन यू ही जनम गमायो; अंति: भुवनकीरत गुण गावै, गाथा-३. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन आरती, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जै जै आरती पास जिणंदा; अंति: सहु भव जीवरा ए कारज सरसै, गाथा-५. १२. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. २अ, संपूर्ण.. गु., पद्य, आदि: जय जय आरती शांति; अंति: नरनारी अमर पद पावे, गाथा-६. १३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भाव धर धन्य दिन आज; अंति: रिषभ जिनचंद सुरतरु कहायौ, गाथा-३. १४. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार संलग्न है. मु. नवलदास, पुहिं., पद्य, आदि: सिखरगिर पूजन जावना रे; अंति: नवल० बधु चितलावना रे, गाथा-३. १५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. नवल, हिं., पद्य, आदि: लगी लगन कहो कैसे; अंति: नवल नायक नाभि दुलारा रै, गाथा-३. १६. पे. नाम. आदिजिन पद-धुलेवामंडन, पृ. २आ, संपूर्ण. पं. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: धूलेवें नगर म्हारो ऋषभ; अंति: पायो ऋषभदास गुण रटके छे, गाथा-४. १७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मे मुख देख्यो पारस; अंति: रूपचंद० आवागमण निवार, गाथा-४. १८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-प्रभु की ममता, मु. रुपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुं तो भूल्यो मुसाफर गठरी; अंति: रूपचंद० ममता गठडी रे, गाथा-३. १९. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. म.रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नेमजी मिले तो बाता कीजिये; अंति: रूपचंद सेवा कीजिये रे, गाथा-४. २०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: रूप भलो प्रभुजी को विराजत; अंति: जिनवर जगजीवन सबही को, गाथा-३. २१. पे. नाम. प्रभाती सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. अमृत, अज्ञा., पद्य, आदि: सोयो तुं बहुत दिन अबधू तु; अंति: अमृतरस बीन ए सिव मांग रे, गाथा-३. २२. पे. नाम, श्रावकलक्षण श्लोक, पृ. ३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अंगुष्टमात्रमपियः प्रकरोत; अंति: ते नरा मूर्ख सदृशीः, श्लोक-३. २३. पे. नाम. औपदेशिक पद-आत्मा, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में पेटांक-१८ के प्रतिक पाठ रूप रूपचंदकृत कृति है. औपदेशिक सज्झाय-आत्मा, पुहि., पद्य, आदिः रत्नत्रयी आराधवा आतमजी; अंति: अति आग्रह आणीने आदरो, गाथा-४, (वि. बाँये हांसिये में देवचंद रचित पद अपूर्ण व अस्पष्ट रूप से लिखा है.) २४. पे. नाम, आदिजिन पद-केसरियाजी, पृ. ३आ, संपूर्ण. पं. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: गजरौ चढाउंरी म्हारा; अंति: ऋषभदास० गुण गावू रे, गाथा-४. २५. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. नंदलाल, पुहिं., पद्य, आदि: वाजत रंग बधाइ नगर में; अंति: नंदलाल० पुन्याइ नगर मे, गाथा-१, (वि. यह कृति प्रतीक पाठ रूप में लिखित है.) २६. पे. नाम. पारसनाथजी रो स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: चालो री सखी प्रभु; अंति: जग जस वास भयौ सुखकारीयां, गाथा-३. २७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. राज, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो अश्वसेन लाला; अंति: काटत फंद जमला की, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org २८. पे नाम. साधारणजिन होरी, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं, पद्य, आदि: कुण खेले तोसें होरी, अंति आनंदघन ० मूरत आनंदकार रे, गाथा-४. २९. पे नाम नेमराजिमती पद, पू. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि साजन हो तेरे साथ चलूंगी अंति: जल हो गई में खाख की झेरी, गाथा-४. ३०. पे नाम साधारणजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण मु. रामदास, मा.गु., पद्य, आदि: नैना सफल भये प्रभु; अंति: लोकशिखर को राज, गाथा-५. ३१. पे नाम पार्श्वजिन पद, पू. ४अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज लगी रे आज लगी अंखिया; अंति: जिनचंद० चरण न छोडू एक घडी, गाथा-५. ३२. पे. नाम आदिजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नित ध्यावो ऋषभ; अंति: कहे जिनचंद० जिनवर को, गाथा-५. ३३. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: नवपद के गुण गाय रे; अंति: नवपद संग पसाय रे, गाथा-५. ३४. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ गीत, पृ. ४अ संपूर्ण. मु. दलिचंद, मा.गु., पद्य, आदि चालो चालो सिद्धाचल; अंति दलीचंद० भव शरण तुमारीया रे, गाथा-५. ३५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. खुशालराय, मा.गु., पद्य, आदि: तोरी सांमली सूरत पर वारी; अंति: खुषालराय० फंदा हरणा बें, गाथा-४. ३६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. उदयचंद, मा.गु., पद्य, आदि प्रभु नमो नमो नेमि जिणंदा, अति उदयचंद० आपो सुख आणंदाजी, गाथा ६. ३७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. रुपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कोन खबर ले मेरी मे वारी; अंति: रूपचंद० दिन ध्यान धरो री, गाथा-५. ३८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: राज रिद्धि पाई भेटीये; अंति: जिनगुण गावत हे सिद्ध पाई, गाथा-२. ३९. पे नाम साधारणजिन पद, पू. ४आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि तू ही तू ही याद आवे री; अंतिः षमाकल्याण महामुनि श्रीजिन, गाधा-५. ४०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. किसनगुलाब, पुहिं., पद्य, आदि: देखो री जिणंदा; अंति: किसनदास० मेरो जीवन प्राण, गाथा- ३. ४१. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार संलग्न है. मु. नवलदास, पुहिं., पद्य, आदि: सिखरगिर पूजन जावना रे; अंति: नवलदास० चित लावना रे, गाथा-३. ४२. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति प्रतीक पाठ रूप में लिखित है. गाथा - १. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सखी स्यामवरण सहसा; अंति: रूपचंद भव भव पार उतार, ४३. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदि नवपद महिमा ध्यावो; अति: कांइ वंद बे करजोडि, गाथा-७. २४३ For Private and Personal Use Only ४४. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. आ. जिनपद्मसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतपद आराधीयै आणी ऊलट; अंति: पद्मसूरि० मान महातम मोडि, स्तवन- ९. ४५. पे. नाम. सिद्धचक्र पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद ध्यान धरो रे; अंति: बलिहारी सुरतरु बीज खरो रे, गाथा- ३. ९६६२८. (+) क्षेत्रसमास प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, प्र. वि. हुंडी : क्षेत्रसमास, पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४×१२.५, ५X३६-४०). बृहत्क्षेत्रसमास - जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, गाथा- १४२. Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जंबूद्वीप प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमीउण कहतां नमिउ भगवंतने; अंति: योग्य है सम्यक्दृष्टिने. ९६६२९ (+) सिद्धचक्र कलश पूजा व नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १८९७, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, बुधवार, मध्यम, पृ.७, कुल पे. ३, ले.स्थल. रतनपुर, प्रले. मु. गंभीरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवपद पूजा विधि, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१२, १२-१३४२५-३८). १.पे. नाम. सिद्धचक्र कलश पूजा, पृ. १अ, संपूर्ण. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (१)नमोर्हत्सिद्धाचार्यो, (२)उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: तीर्थंकरा मोक्षकांमे, पूजा-९. २.पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. नवपद उलाला, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: तीर्थपति अरिहा नम; अंति: (१)देवचंद्र सुसोभता, (२)नवनिधि प्रगटे नमीये ते तप, गाथा-२१. ३. पे. नाम, औपदेशिक गाथा, प.७आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: फल शिवसुख मोटुं सुरनरवर स; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ९६६३० (+) थावच्चामुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७५, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. दौलताबाद, प्रले. मु. नगराज ऋषि, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ४५५, जैदे., (२४४११.५, १९४३२-३७). थावच्चापुत्र चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९१, आदि: नेमिनाथना पाय नमुं; अंतिः प्रशिष्य समृद्धा बे, खंड-२, गाथा-४३७, ग्रं. ६५०. ९६६३१ (+) लोरी व कालकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. २, प्र.वि. आधुनिक प्रत., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-द्विपाठ., दे., (२३.५४११.५, १३४४६-५४). १.पे. नाम. राहुल प्रतिबोध लोरी, पृ. १अ, संपूर्ण. क. मैथिलीशरण गुप्त, पुहिं., पद्य, आदि: सो अपने चंचलपन सो; अंति: सो मेरे अंचल धन सो. २.पे. नाम. आर्य कालक, पृ. १आ-२२आ, संपूर्ण. कालिकाचार्य कथा, पंन्या. कल्याणविजयजी गणी, पुहि., गद्य, आदि: आर्य कालक अथवा कालकाचार्य; अंति: सुलझाने की चेष्टा की है. ९६६३३. (+) योगदृष्टिगण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९८५, आश्विन कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मोतीराम सेवक; पठ. हीराचंद वखतचंद पारेख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२, १४-१६x२४-२८). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदिशी; अंति: वाचक जशने वयणे जी, ढाल-८, गाथा-७६. ९६६३५. भगवतीसूत्र सह टबार्थ-शतक-१ उद्देश-२ से उद्देश-३, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:विवाहपन्न०., दे., (२४४१२.५, ८४५२-५६). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., उद्देश-३ के __ 'माहणस्सवा अंतिए' पाठांश तक है.) भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उद्देश-२ के "ते मांहिथी जेतना तांइ कांइ" पाठांश तक लिखा है.) ९६६३६. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१३, ६-२७४४२-५८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-५, गाथा-५५ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)धम्मो० दुर्गति पडता; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-५ गाथा-२ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २४५ ९६६३७.(+) जिनकुशलसूरि पूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९०६, आश्विन शुक्ल, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१२, १०४३०). जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सकलगुणगरिष्टान्; अंति: गुरु चरण __कमल बलिहारी. ९६६३८. (4) पंचप्रतिक्रमणादिसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४,प्र.वि. हुंडी:प्रतिक्रम०., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११.५, २०४३३-३६). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: भणु नो कही सामाईयवययुत्तो. ९६६३९ (+#) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(७)=७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १३४३६). मानतुंगमानवती रास, अनुपचंद-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: श्रीजिनशांति जिनेसरू; अंति: जयनगरे विनयचंद ए कही, ढाल-८, (पू.वि. ढाल-५ गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-७ गाथा-११ अपूर्ण तक नहीं है.) ९६६४०. अवंतिसुकमाल रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-३(१,३ से ४)=५, ले.स्थल. पालीताणा, लिख. मु. जगविमल; प्रले. श्राव. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अवंती, दे., (२५४१२, ११४३१). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: (-); अंति: शांतीहर्ष सुख पावे, ढाल-१३, गाथा-१०५, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., ढाल-३ गाथा-१४ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-२ अपूर्ण तक व ढाल-८ गाथा-५८ अपूर्ण से है.) ९६६४२. (+) वैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १९३०, आश्विन कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. चिमनलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वैराग्यस०., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२.५, ७४३४-४०). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि सुहं; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चौथै राजलोक प्रमाण कहतो; अंति: अमर सासता मोखना सुख पामें. ९६६४६. (+) दशवकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हंडी:दसवि०., संशोधित., जैदे., (२३४१२, १४४३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ गाथा-३१ तक है.) ९६६४७. (+#) नवतत्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८७९, आश्विन शुक्ल, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९-२(१,७)=७, प्रले. मु. रुपचंद्र (गुरु मु. रामचंद्र); गुपि. मु. रामचंद्र (गुरु पं. मयाचंद्र); पं. मयाचंद्र (गुरु पं. नगराज); पं. नगराज (गुरु पं. जयहंसजी); पं. जयहंसजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्वटी., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, ६x२०-२६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-६०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-४ से है व बीच का पाठांश नहीं है.) ९६६४८. लावणी संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, कुल पे. ८, प्र.वि. हुंडी:लावणी, दे., (२४.५४१२, १८४३९). १. पे. नाम. इलाचीपुत्र लावणी, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. म. हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९६३, आदिः (-); अंति: हीरालाल यह गुण गाया जी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से २. पे. नाम. नंदिषेण लावणी, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण.. नंदीषेण लावणी, म. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: ये जिनमारग की शोभा करनी; अंति: हीरालाल चितलाईजी, गाथा-५. ३. पे. नाम. मदनकंवर लावणी, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. म. हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९६३, आदिः ये चरम शरीरी जीव जगत; अंति: हीरालाल यों गुण गावे जी, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. भरतबाहुबली लावणी, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: यह दिया दान प्रजा को; अंति: हीरालाल ज्ञान का भीनाजि, गाथा-५. ५. पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: यों कहै ऋषभजिन ब्राह्मी; अंति: हीरालाल बहु सुख पाया जी, गाथा-४. ६. पे. नाम. परदेशी राजा केशीकुमार संवाद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. परदेशीराजा केशीकुमार संवाद, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: ये मुनिराज महाराज; अंति: हीरालाल कहे कारज सरियाजी, गाथा-६. ७. पे. नाम. पद्मनाभजिन लावणी, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: श्री पद्मनाभ महाराज; अंति: हीरालाल० उपगारी जी, गाथा-४. ८. पे. नाम. भरतेश्वरबाहबली लावणी, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: या करी तपस्या भाग उद; अंति: हीरालाल कहे जश सवायो जी, गाथा-६. ९६६४९ (#) बुढापा चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२, १७४३२). बढ़ापा चौपाई, मा.ग., पद्य, वि. १८४५, आदि: निरधन के घर बेटी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९६६५०. (+#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५५-३८(१ से १७,३२ से ५०,५३ से ५४)=१७, प.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२३.५४१२, १०-१२४१६-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. महावीरस्वामी का देवलोक से च्यवन प्रसंग __ अपूर्ण से तीसरे स्वप्न वर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९६६५९ ढुंढकउत्पत्ति चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९१५, कार्तिक कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. केवलसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, ११-१३५२५-३७). ढुंढकउत्पत्ति चौढालियो, मु. हेमविलास, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि: सरसति माता समरि करि; अंति: हेमविलास० रचना कीनी, ढाल-४, गाथा-९७. ९६६६१ (+#) साधुवंदना बृहद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-४(१ से ४)=८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, १४४२८). साधुवंदना बृहद्, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-११ गाथा-११ तक है.) ९६६६४. (+#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १२४३२-३७). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पंचिंदिय संवरणो तह; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. ९६६६५ (+) लघुशांति व वृद्धशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. अभयचंदजी; पठ. श्राव. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२, १०४२७-३०). १.पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतं शांतिन शांति; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१७. २. पे. नाम. वृद्धशांति, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में चक्रेश्वरीदेवी मंत्र लिखा है. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयतु शासनम्.. ९६६७०. सूक्तमाला, अपूर्ण, वि. १८६४, चैत्र कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १४-५(१ से ५)=९, ले.स्थल. साणंद, प्रले. जोइताराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१२.५, १३४३२). For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदिः (-); अंति: गम्य विचारणीयं, वर्ग-४, श्लोक-१७६, (पू.वि. प्रथम वर्ग श्लोक-५७ अपूर्ण से है.) ९६६७१ (+#) शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-१(१)=२३, ले.स्थल. बालोचर, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, १३४३४). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: फल लहिस्यै जी, ढाल-२९, गाथा-५१०, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१५ अपूर्ण से है.) ९६६७८. (+#) अक्षयतृतीयापर्व कथा, अपूर्ण, वि. १९२३, मध्यम, पृ. १०-१(४)=९, ले.स्थल. जखौ, प्रले. मु. राघवजी (गुरु मु. स्वरूपसागर); गुपि. मु.स्वरूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अक्ष० तृतीया., अक्ष० तृ०क०., अक्षतृती., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३४११.५, १२४२५-३१). अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुखदातार; अंति: गद्यवार्ता रचितवान्, (पू.वि. "एवं जथास्थित बहव" से "सातां ते प्रथम प्रभो" के बीच का पाठ नहीं है.) ९६६७९ (+) जीवविचार व चौवीस दंडक स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्रले. मु. हीराचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३४१२, १३४२४). १. पे. नाम, जीवविचार स्तवन, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीवचार. जीवविचार स्तवन-पार्श्वजिन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: सरसतीजी वरसती वचन; अंति: विजय पभणे आनंदकारी, ढाल-९, गाथा-८३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, पृ. ८अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:डंडनोस्तवन. मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३३ अपूर्ण तक है.) ९६६८० (#) सम्यक्त्वादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-६(१ से ६)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, गु., (२२४१२, ३०-३३४२५-२६). विचार संग्रह-विविधविषयक, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश हैं.) ९६६८७. (#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४)=५, कुल पे. ८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२.५, २०-२१४३७-३८). १. पे. नाम. बारव्रत सज्झाय, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण, वि. १८१५, चैत्र कृष्ण, १३, रविवार, ले.स्थल. श्रीरवनगर, प्रले. मु. विवेकविजय पं. (गुरु पं. न्यानविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. सुमतिनाथ प्रसादात्. १२ व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी धन वुठडो भवि; अंति: तिलकविजय जयकार, ढाल-१३. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२५. ३. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदनजी अरज हमारी; अंति: कवियण सबला कीधी राजी, गाथा-७. ४. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मु. भीमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कला संपूर्ण पूनम; अंति: मुगतिचंद० गुण गाया हो, गाथा-१७. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: धोबीडा तुं धोजे मननु; अंति: सहज० शिवसुखनी दाय रे, गाथा-६. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सुधो धरम मुकिस विनय; अंति: सो चिरकाले नंदो रे, गाथा-९. ७. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण, प्रले. मु. विवेकविजय (गुरु मु. लब्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: आज अनंता भवतणां कीधा; अंति: जिन तणि रे नवि पालि आणतो, गाथा-२०. ८. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण, वि. १८१५ कृष्ण, १४, सोमवार. औपदेशिक सज्झाय-कलियुग, मु. प्रीतिविमल, पुहिं., पद्य, आदि: सरसती स्वामिनी पाय; अंति: प्रीतविमल० सूकृत एक सवायो, गाथा-१२. ९६६८९ (#) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८२६, वैशाख शक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. रविनगर, प्रले. पं. गंगविजय (गुरु ग. हंसविजय); गुपि. ग. हंसविजय; प्रले. मु. लालविजय; गुपि. मु. मेवाराम; पं. नितकुशल (गुरु मु. कल्याणकुशल); मु. कल्याणकुशल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीसुमतजिन प्रासादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२.५, १३-१४४२५-३४). स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंदा; अंति: मानविजय नित ध्यावे, स्तवन-२४. ९६६९६. (+) साधुवंदना रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१(१)=२३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११.५, १३४३०-३३). साधुवंदना रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: नितु मंगल च्यारिजी, ढाल-१४, गाथा-५०२, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१४ अपूर्ण से है.) ९६६९७. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१४(१ से १४)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३४११.५, ११४२१). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-१० गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ९६७०० (+) हस्तजीवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, प्र.वि. हंडी:हस्तसंजी०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१२, १३४३६). हस्तजीवन, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीशंखेश्वरं पार्श्व; अंति: श्रेयः श्रीरस्तु शाश्वती, श्लोक-२८३, ग्रं. ५२५. ९६७०२. (#) साधारणजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:पुरुसोत्मरुच्चतरु., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२, १६४३०). साधारणजिन स्तोत्र, क., पद्य, आदि: श्रीपुरसोतम रच्यु तरु रूप; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९३ अपूर्ण तक लिखा है.) ९६७०४ (4) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४६-२८(१,३ से २९)=१८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१२.५, १५४२४-२६). कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ९६७०९ (4) योगशास्त्र-प्रकाश५ से १२, संपूर्ण, वि. १९१०, श्रावण कृष्ण, ३, शनिवार, जीर्ण, पृ. १४, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्र.वि. हुंडी:योगशा., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३४१२.५, १८-१९४४५). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: भव्यो जनो भवतु, प्रतिपूर्ण. ९६७१० (+) चंद्रधवल कथा-अतिथिसंविभागव्रते, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४१२, १५४३२). __ चंद्रधवल कथा-अतिथिसंविभागवते, आ. माणिक्यसंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इह भरतक्षेत्रे; अंति: (-), (पू.वि. पाठ "पश्यति जातीस्मरणं जातं प्राप्तावबोधि" तक है.) ९६७१२. (+#) योगचिंतामणि की चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९-११(२,७,९ से १०,१७,३१ से ३४,४०,४२)=३८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१२, १२४३३-३५). योगचिंतामणि-चौपाई, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: अजीरण२ आहार२ पित३; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४१० अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २४९ ९६७१४ (+#) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-११(१ से ५,७,११ से १२,२१,२७,२९)=१९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२४४१२, ७४३२-३५). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ पाठ "पचक्खामि तयाणं तरंवाहण" से अध्ययन-२ पाठ "तं आहाणं देवाणुइट्ठाझुइजास" तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९६७१५ () गीत, पद, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३-१५(१,४ से ७,९,११ से १६,१८ से १९,२१)=८, कुल पे. २६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१२, १४४२३). १.पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: गोहो जैनदशा जस उची, गाथा-१०, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम प्रभु सब जन शब्द; अंति: सेवक जन गुण गावे, गाथा-६. ३. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन जो तुंग्यान; अंति: अंतरदृष्टि प्रकासी, गाथा-९. ४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: अजब गति चिदानंद घन; अंति: जस० उनके समरन की, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद-परभावे, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिउ लागी रह्यो परभाव; अंति: यं वेधक रस धाउ में, गाथा-५, (वि. अंत में किसी आज्ञात कृति का प्रारंभिक भाग है.) ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८अ, संपूर्ण. म. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: सांइ सलुणां केसे; अंति: वन नेक नजर मोहे जोय, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.. औपदेशिक गीत, मु. विनय, रा., पद्य, आदि: थिर नांहि रे थिर; अंति: बंधन थे छोडणहारा वे सांइ, गाथा-५. ८. पे. नाम, औपदेशिक गीत, पृ. ८आ, संपूर्ण. म. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: मन नेहे काह के वस मन की; अंति: कहे० सांइ सेती रस हे, गाथा-५, (वि. अंत में किसी अज्ञात कृति का प्रारंभिक भाग है.) ९. पे. नाम. औपदेशिक पद-जीवकाया, पृ.१०अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. म. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: नय० अविहड करु अयारी, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) १०. पे. नाम, औपदेशिक जकड़ी-जीवकाया, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. औपदेशिक जकडी-जीवकाया, म. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: काया कामनी वेलाल; अंति: सांइकासरी विनय सजन, गाथा-५. ११. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १०आ, संपूर्ण. मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: क्या करूं मंदिर क्या; अंति: आ दुनिया में फेरा, गाथा-५. १२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: किसके बे चेले किसके; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १७अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: ज समो रंग रमो रतीयां, गाथा-२, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) १४. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: साहिब ध्याया मन मोहन; अंति: ज्योत सुं जोत मिलाया, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १७आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु बल देखी सुरराज; अंति: बहोरन परि हो भोले, गाथा-५. १६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपायशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि: प्रभु धरी पीठ वैताल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, प. २०अ, अपूर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: जाउं उनकी में बलिहारी, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) १८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पहिं., पद्य, आदि: चेतन अब मोहे दरशन; अंति: सारे सेवक सुजस वखाणे, गाथा-५. १९. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २०आ, संपूर्ण.. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि: मन की तहुन लाहे; अंति: सुजस ब्रह्म तेजइ रे, गाथा-३. २०. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. २२अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: पाए सुजस कल्याण लाल, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से २१. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तवन-अंतरिक्ष, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: जय जय जय जय पास जिणं; ___अंति: वाचक जस० तुम गुनके वंद, गाथा-६. २२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २२आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन जगदानंदन; अंति: तुम हो मेरे आतमराम, गाथा-३. २३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजितदेव मुज वालहा; अंति: णमतें सब प्रणमे तेहा, गाथा-५. २४. पे. नाम. संभवजिन पद, पृ. २३अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: संभव जिन सब नय मिल्य; अंति: सुरतरु होय फल्यो हो, गाथा-४. २५. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, प. २३अ-२३आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु ते हीयडो हेजहलो; अंति: श कहे दीओ छबी अवतारी, गाथा-५. २६. पे. नाम. समतिनाथजिन स्तवन, पृ. २३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सुमतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: सुमतिनाथ साचा हो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ __ अपूर्ण तक है.) ९६७१६. (#) वंदित्तुसूत्र, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. मुजसर, प्रले. मु. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य प्र.वि. हुंडी:वंदेतासुत्र प्रभ., मूल पाठ का अंश खंडित है, ., (२३४१२, १०४२०-२२). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ९६७२६ (+) अंजनासती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३-१९(१ से १९)=२४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४११, ११४२४-२८). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-३ गाथा-२२ अपूर्ण से खंड-३ ढाल-६ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ९६७२७. (#) पद्मावतीसहस्त्रनाम स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१३(१ से २,४ से १४)=५, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:पद्मा०सह., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१२, ८x२१-२३). पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण से २५ अपूर्ण तक व श्लोक-४० अपूर्ण से ८२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २५१ ९६७३० (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३३-२५(१ से २५)=८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९४११, १३४३२-३६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., कांड-३ श्लोक-४३९ अपूर्ण से ४६४ अपूर्ण तक, श्लोक- ४९१ अपूर्ण से ५१९ अपूर्ण तक, व ५४२ अपूर्ण से कांड-४ श्लोक- ६१५ अपूर्ण तक है.) ९६७३६. (+) चोमासाना चौवीस जोडानी विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१)=१७, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १२४३०-३५). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: पास सामलनु चेई रे, (पू.वि. प्रथम आदिजिन चैत्यवंदन से है.) ९६७४२. चौवीसजिन यक्ष-यक्षिणी विवरण, संपूर्ण, वि. १९६१, श्रावण कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२५४१३, १२-१४४३८-४०). २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: गोमुख जक्ष सुवर्ण शरीर; अंति: अभय वाम हाथमां बीज्यु. ९६७४४. (+#) गुणस्थानक्रमारोह की टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. हुंडी:गु.क्र.वृ, पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१३, २०४३८-४५). गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदि: अर्ह पदं हृदि; अंति: प्रकटित इत्यर्थः, (वि. मूल का मात्र प्रतीक पाठ लिखा है.) ९६७४५. (+) चौमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. श्रीनगर, प्रले. मु. लाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चो०देव, संशोधित., दे., (२४.५४१२.५, १२४२४-३२). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई रे. ९६७४६. सत्तरभेदी पूजा, अपूर्ण, वि. १९०२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १०-५(१ से ५)=५, प्र.वि. हुंडी:सत्तरभेदी पूजा, दे., (२५४१३, १२४२९-३२). १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: (-); अंति: सव लीला सुख सा , ढाल-१७, (पू.वि. दशमी आभरण पूजा अपूर्ण से है.) ९६७४७. (#) आदिजिन गीत, पर्युषणा स्तवन व पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९७६, भाद्रपद कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ३, प्रले.क. शुभकरण यति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, १२४३४). १. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.. आदिजिन सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती माता द्यो; अंति: भणतां आवे संपति कोडी, गाथा-५१. २. पे. नाम. पर्युषणापर्व स्तवन, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व अठाई स्तवन, मु. हेमसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पास जिणंदा; अंति: जपे हेमसोभाग हो, गाथा-३७. ३. पे. नाम. महावीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, पृ. ५आ-९अ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंद; अंति: नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५६. ९६७४८. (+#) २४ दंडक के ५ बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(३)=७, प्र.वि. हुंडी:पांचबोल, संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, १७४४८). २४ दंडक के ५ बोल, रा., गद्य, आदि: दंडक १ लेश्या २ थिति ३; अंति: तिम चववा आश्री जांणवो, (पू.वि. बीच का पाठांश नहीं है.) ९६७४९ (+) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०५, पौष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:लोक०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे., दे., (२४४१२, ५-१५४३३-३८). For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह टबार्थ, प. १अ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जंलोअं; अंति: जयह जहा भमह नइ भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे वीतराग देव ताहरु; अंति: विषइ भिसं वारंवार. २. पे. नाम. लोकनालिद्वात्रिंशिका, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. आ. धर्मघोषसरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदंसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. ९६७५० (+#) विवेकविलास-उल्लास-१ स्वर विचार से उल्लास-८ नेत्रविचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. हुंडी:विवेकविलास., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, २०४४२-५०). विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "दृष्टिविचार" श्लोक-३ तक लिखा है.) विवेकविलास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९६७५१ (+#) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १६४३३-३५). पाशाकेवली, म. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: उत्तम छै सत्य मानजै सही. ९६७५२. (+) महानिशीथसूत्र का अपवाद विचार व २५ बोल, संपूर्ण, वि. १८८९, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. २, ले.स्थल. अजमेरगढ, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२३.५४१२, १८४३६-३८). १.पे. नाम. महानिशीथसूत्र का अपवाद विचार, पृ. १अ-१६अ, संपूर्ण. निशीथसूत्र-अपवाद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: निशीथसूत्र महाउत्सूत; अंति: वली प्रस्तावि जाणीसइ. २. पे. नाम. महानिशीथसूत्र के २५ बोल, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. निशीथसूत्र-२५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: माटीमय णवं पूतलु करी अंग; अंति: सेवा करइ तो निर्दोष. ९६७५३. कल्पसूत्र की कल्पलता टीका का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, प्र.वि. हुंडी:कल्प०.सूत्र०., जैदे., (२५४१३, १८४३९-४६). कल्पसूत्र-कल्पलता टीका का बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य परमं ज्योति, (२)अहो भव्य जीवो असरण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., व्याख्यान-६ अपूर्ण पाठ "हिवइ अन्यदा समयनइ बिषइ भग" तक लिखा है., वि. मूल का मात्र प्रतीक पाठ है.) ९६७५५. (+#) मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १९२६, भाद्रपद शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. महमदाबादनगर, प्रले. मु. रूपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मानतुंगमानवती, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२, २०-२४४४७-५४). मानतुंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: होयो धरीधरी मंगलमाला है, ढाल-४७, गाथा-१०१५. ९६७५६. (#) बीसस्थानकपूजा विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १५४३०-३२).. विंशतिस्थानक पूजा विधिसहित, मु. जिनहर्ष, पुहिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., ढाल-१ गाथा-१२ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ९६७५७. चौंतीस अतिशय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(५)=६, कुल पे. ४, दे., (२४४१२.५, १२४३०-३२). १.पे. नाम. चौंतीस अतिशय पैंतीस वाणी, प. १अ-४अ, संपूर्ण. ३४ अतिशय ३५ वाणी नाम विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: १ पहलो अतिसय तीर्थंकररो; अंति: ३५ वाणी गुण कह्या छे. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर बंदीए हरख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ६ अ- ६आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति हीरविजय गुण गाय रे लाला, गाथा-२१ (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. " मु. श्रीसार, पुहि., पद्य, आदि: सीतल जिणवरराया तुम अति श्रीसार० सुखकारी हो, गाथा ९. ९६७५८ (+३) कल्पसूत्र-सामाचारी सह टवार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१४, १२-१४x२७-३९). , कल्पसूत्र - हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं समय; अंति: (-), (पू.वि. "वासावासं पज्जोसवियस्स निम्त्थस्स गाहावई" पाठ तक है.) कल्पसूत्र - हिस्सा सामाचारी अध्ययन का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे कालने विषइ तेणे; अंति: (-). कल्पसूत्र - हिस्सा सामाचारी अध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि सामाचारि पजूसण दिननी, अंति: (-). ९६७६०. स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १९८७, वैशाख कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. पंडित. जगन्नाथ ओझा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२४४१३, १२x४४-४९). " स्थविरावली. आ. हिमवदाचार्य, प्रा. सं., प+ग, वि. ३वी आदि नमिऊण वद्धमाणं; अतिः स्वर्गं प्राप्ताः. ९६७६१ (+४) २४ तीर्थंकर विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४X१२.५, ६x४३). २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (संपूर्ण, वि. कोष्ठक) ९६७६२. (+) प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३२, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५X१३, १६x४२). प्रश्नोत्तर संग्रह प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि तथा तीर्थंकर देव समवरण; अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण प्रश्न- २७४ तक लिखा है.) " ९६७६३ (०) सज्झाय, गीत, पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे १४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४x१२, १३X२८-३३). १. पे. नाम. वैराग्य स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: कहां करू मंदिर कहां अंति: या दुनिया मे फेरा, गाथा-५ २. पे. नाम वैराग्य गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, पुर्हि, पद्य, आदि पांचे घोरो रथ एक अति राज विनय जीउ पाया, गाथा-५. ३. पे नाम. अध्यात्म गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. विनयविवेक, पुर्हि, पद्य, आदि: मगन भयो माह मोह मे अति सिद्ध सदा सुख सोहमे, गाथा ४. ४. पे. नाम. अध्यात्म गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, मु. , विनय, रा., पद्य, आदि: थिर नांहि रे थिर; अंति: बंधन थे छोडणहारा वे सांइ, गाथा-५. ५. पे नाम. आत्म गीत. पू. २अ संपूर्ण २५३ औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: घोरा जूठा हे रे तु; अंतिः य सिखाउ ज्युं भवपारा, गाथा-५. ६. पे. नाम. अध्यात्म गीत, पू. २अ २आ, संपूर्ण साधारणजिन पद, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: सांई सलूना के सई; अंति: विनय० नजरि मोहि जोय, गाथा - ५. ७. पे नाम. आध्यात्मिक पद. पू. २आ, संपूर्ण, मु. विनय, पुहिं, पद्य, आदि: चेतन चेतन अधिर संयोगा जलध; अंतिः विनय० विगारी विरान हो लोगा, गाथा-३. " For Private and Personal Use Only ८. पे. नाम. अध्यात्म गीत, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि धर्मसखायत धर्मबल परबल; अति विनय० सहज शिवसंपद लहीई, गाथा - ११. Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९. पे. नाम. अध्यात्म गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-जीवकाया, मु. विनय, पुहि., पद्य, आदि: सुनि सुहागन वे दिल; अंति: नय० अविहड करु अयारी, गाथा-५. १०. पे. नाम. शांतिनाथ गीत, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, पुहिं., पद्य, आदि: शांति तेरे लोचन है; अंति: कहे मुजको अति प्यारे, गाथा-३. ११.पे. नाम. वैराग्य गीत, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक जकडी-जीवकाया, म. विनय, पुहि., पद्य, आदि: काया कामिनी बे लाल; अंति: अभेदे तुझ मिलुं, गाथा-५. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-सूरतमंडण, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सूरतमंडन, मु. विनयविजय, पुहिं., पद्य, आदि: जिणंदराय सरण तुम्हारे आयो; अंति: विनय उल्लसंत __ भगवंत गायो, गाथा-२५. १३. पे. नाम. वैराग्य गीत, पृ. ६अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: अज हुं कहाल्युं प्या; अंति: तुम विनये सुनाई हो, गाथा-६. १४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.. मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: जागो प्यारे भयो सुवि; अंति: य करी विनवू पीउ चेत, गाथा-५. ९६७६४. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध व बीस विहरमान परिवारादि विवरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, दे., (२४४१२.५, ५-१५४४०-४७). १.पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: नमो जिणाणं जीयभयाणं. आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अनुयोगद्वार मध्ये; अंति: कीधो नथी अनादि अनंत छै. २.पे. नाम. बीस विहरमान, नाम, माता, पितादि विवरण, पृ. १०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २० विहरमानजिन विवरण, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ९६७६५. अवंतिसुकुमाल रास, संपूर्ण, वि. १९१०, पौष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ५, दे., (२५४१३.५, १५४३०). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहर्ष सुख पावेरे, ढाल-१३, गाथा-१०१. ९६७७० (-2) प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १८८३, चैत्र शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. ८-१(३)=७, प्रले. मु. माणकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१३, ९-१०४२६). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. प्रारंभिक चैत्यवंदन में "नमोत्थुणसूत्र" अपूर्ण से जयवीरायसूत्र गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है.) ९६७७४. (#) नवतत्त्व प्रकरण का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९९, मध्यम, पृ.७, प्रले. मु. वखता (गुरु उपा. नैणसी), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:नवतत्त्वबालाबोध., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१३, १९-३३४४३-७८). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: जयंति जिनशासने विमलो. ९६७७८. (+) घंटाकर्ण कल्प, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(२,४)=५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१३, ११४३०-३२). घंटाकर्ण कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य गिरिजाकांत; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., "स्नानकजै जदि यो मंद्र जपिजै" पाठ से "इसै आकारे यंत्र लिखिजै" पाठ तक, "लाल वस्त्र लाल आसण राखीजै" से "रोगादिक को नास होय" तक व "एक मंत्र जपि होमता जा पछै" के बाद पाठ नहीं है.) ९६७८५ (+) स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १९८७, वैशाख कृष्ण, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. पंडित. जगन्नाथ ओझा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२.५, १२४४४). For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २५५ स्थविरावली, आ. हिमवदाचार्य, प्रा.,सं., प+ग., वि. ३वी, आदि: नमिऊण वद्धमाणं; अंति: स्वर्गं प्राप्ताः. ९६७८६. (+) स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १९८७, वैशाख कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. पंडित. जगन्नाथ ओझा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२, १२४४०-४३). स्थविरावली, आ. हिमवदाचार्य, प्रा.,सं., प+ग., वि. ३वी, आदि: नमिऊण वद्धमाणं; अंति: स्वर्गं प्राप्ताः. ९६७८७. (+) हरिवाहन रास, संपूर्ण, वि. १८५१, चैत्र शुक्ल, ५, बुधवार, जीर्ण, पृ. १८, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि (गुरु ग. वनीतविजय); गुपि. ग. वनीतविजय (गुरु ग. रत्नविजय); ग. रत्नविजय (गुरु ग. सुखविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:हरीवाहनरास, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१३, २०४३७-३९). हरिवाहनराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमानंदमइं प्रभु; अंति: मोहनविजय० श्रियः स्फर्यधा, ढाल-३१. ९६७८८. (+) सिद्धाचल तीर्थमाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२.५, १५४३०-३३). शत्रुजयतीर्थ रास, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल पदारथना धणीं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१४ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ९६७८९. नवकारमहामंत्र कल्प, संपूर्ण, वि. १९४२, वैशाख कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ११, दे., (२४४१३, ८x२१-२७). नमस्कारमहामंत्र कल्प, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं ॐ नमो; अंति: २१ स्मर्यते कृषीचाटनं. ९६७९० सिरिसिरिवाल कहा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६३-४१(१ से ४१)=२२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४१३, ६x२३). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११७३ से १२३५ अपूर्ण तक है.) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९६७९६. (4) पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२.५, १४४३०). १. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: क्या सोवै उठि जाग; अंति: निरंजन देव गाउं रे, गाथा-३. २. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे घरियारी बाउ रे मत; अंति: निकला विरला कोय गावै, पद-३. ३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जीय जाने मेरी सफल घरी री; अंति: नर मोह्यो माया करी, गाथा-३. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन चतुर चोगान लरी; अंति: आनंदघन पद पकरी री, गाथा-३. ५.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: पिया बिन निसदिन झुरु; अंति: आनंदघन पीउष झरी री, गाथा-३. ६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: अनुभव तूं है हेत: अंति: आनंद बाजे जीत नगारो, गाथा-३. ७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अनुभव हम तो रावरी; अंति: अठकिलि ओर लिवासी, गाथा-३. ८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: निसाणी कहा बतावु रे; अंति: प्यारे आनंदघन महाराज, गाथा-५. ९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: कोउ राम कहो रहमान; अंति: आनंदघन चेतनमय निःकर्म री, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधुं क्या सोवै तन; अंति: मूरत नाथ निरंजन पावै, गाथा-४. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जग आशा जंजीर की गति; अंति: आनंदघन० देखे लोक तमासा, गाथा-५. १२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अबधू रामराम जग गावै; अंति: रमता अंतर भवरा, गाथा-४. १३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू क्या मांगुगुनहीना; अंति: रटन करुं गुणधामा, गाथा-४. १४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नट नागर की बाजी; अंति: अगोचर परमारथसु पावें, गाथा-४. १५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू अनुभव कलिका; अंति: जगावै अलख कहावे सोई, गाथा-४. १६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नाम हमारा राखे; अंति: मुरत सेवकजन बल जाइ, गाथा-४. १७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, प. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: साधो भाई सुमता रंग; अंति: हित कर कंठ लगाई, गाथा-५. १८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुहागणि जागी अनुभव; अंति: प्रेम की अकथ कहानी कोइ, गाथा-४. १९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: माहरओ बालूडो सन्यासी; अंति: सारी सीझे काज सवारी, गाथा-४. २०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: माहरो मोहनइ कब; अंति: न० को नवि विलगे चेल, गाथा-३. २१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: क्यारे मने मलशे मारो; अंति: आनंदघन जीवै मधुमेही, गाथा-३. २२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: कुबुद्धि कूबरी कुटिल; अंति: तो जिते जीव गाजि, गाथा-६. २३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: आतम अनुभव रस कथा पाला अजब; अंति: आनंदघन सर्वांग धरी री, गाथा-४. २४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम नरममति और न भावै; अंति: कहा कोउ डुंड बजावे, गाथा-३. २५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ठगोरी भगोरी लगोरी; अंति: घट घाट उतारन नवमगोरी, गाथा-३. २६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: तेरी हुं तेरी हुँ; अंति: आनंदघन० तरंग बहुरी, गाथा-३. २७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरी तुं मेरी तुं; अंति: आनंदघन पद केल करी री, गाथा-३. २८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आतम अनुभव फूल की; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९६७९८. (+) शत्रुजयतीर्थ रास व ऋषभ स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४१२, १३-१५४२९-३२). For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थं रास. पू. १आ-६आ, संपूर्ण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी अति समयसुंदर० आनंद धाय, २५७ ढाल - ६, गाथा - १०८. २. पे नाम ऋषभ स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमंडण अति: निह्न० पाय सेवता, गाथा ४. ९६८०० (+) कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X१३, २०x४६). " कल्पसूत्र- खालावबोध, मा.गु. रा. गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं गुरुं अंति (-) (पू.वि. नागकेतु कथा अपूर्ण तक है.) ९६८१४. वर्द्धमानविद्या कल्पादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक दोनों ओर लिखे हुए हैं. अतः अनुमानित पत्रांक दिया गया है. दे. (२३१३, १२४३३). "" १. पे नाम बर्द्धमानविद्या कल्प. पू. १अ २अ संपूर्ण. आ. वज्रस्वामि, प्रा., सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीँ अह हूँ; अंति: महाणसे महाबले स्वाहा. २. पे. नाम. वर्द्धमानविद्या कल्प, पृ. ३अ -१०अ, संपूर्ण. आ. सिंहतिलकसूरि, प्रा. सं., प+ग. वि. १३२२, आदिः ॐ हां हीं हूँ हैं; अति तद्यत्र वार्षयेत्, (वि. गाथाएँ अव्यवस्थित हैं.) " ३. पे. नाम. सारस्वत कल्प, पृ. १०अ १७आ, संपूर्ण. " सरस्वतीदेवी कल्प, आ. बप्पभट्टसूरि, सं. गद्य, आदि प्रथमं कृतस्नातः स मीनः अंतिः स्वाहा लक्ष जपेन सिद्धिः९६८३९. कल्याणमंदिर स्तोत्रम् अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८-१ (१) =७, प्रले. मु. रत्नेदुविजय पठ मु. कस्तूर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४.५x१२.५, ८x१९-२३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि (-); अंति मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है.) " ', ९६८४४. () पट्टावली, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १७. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२३.५x१२, १२x२६-३१). पट्टावली*, मा.गु., गद्य, आदि तेणं कालेणं तेणं समयेणं अति: गुणरत्नसूरि ७३ पाट थाप्या. ९६८५०. धनंजयनाममाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६, प्रले. पं. विजयकीर्त्ति (गुरु ग. श्रुतकीर्त्ति), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५x१२.५, १३X३०). धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि परं ज्योति; अंतिः शब्दाः समुत्पीडिताः, श्लोक-१९५. ९६८५४ (+) वार व्रत टीप, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३+२ (१ से २) ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २४.५X१३.५, ११-१२x२१-३१). " १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सम्यक्त मूल बारे; अंति: (-), (पू.वि. पंचम व्रत अपूर्ण तक है. ) ९६८५७. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. पंडित, नंदराम चौबे, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२३४१३.५, १५X३३). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: गर्गनामा० पाशककेवली, श्लोक-१९६. ९६८५८. (+) रोहिणीतप स्तवन अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., ( २३X१४, १६x२८). For Private and Personal Use Only रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु, पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल - २ गाथा १० अपूर्ण तक है.) ९६८६२. (+) जातक दीपिका, संपूर्ण वि. १९५५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७. ले. स्थल. नारायणगढ, प्रले. पंडित. गणपतलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४X१४, १०-१२x२६-३१). जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि प्रणम्य पार्श्वविवेश; अंतिः एषा जातकदीपिका, श्लोक ९५. Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९६८६३. (+) अष्टाह्निका व अक्षयतृतीया पर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९४६, कार्तिक कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. २, ले.स्थल. व्यालपुर, प्रले. पं. रत्नचंद्र; अन्य. आ. जिनचंद्रसूरि (लोंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३४१४, १५४२६). १.पे. नाम. अठाई वखांण, पृ. १आ-१६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अठ्ठाईवखांण. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (१)शांतीशं शांतिकर्तारं, (२)अठै संपूर्ण खोटा; अंति: पर्वरो वखाण कह्यो. २. पे. नाम. आखात्रीज व्याख्यान, पृ. १६अ-१९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आखातीजव्याख्य. अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभू; अंति: आखा तीजरी कथा कही. ९६८६९ (#) दिगंबर पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१(१)=१८, प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७७१३, १०४३५). पट्टावली-दिगंबर मूलसंघ, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण., मुनिश्री विनयचंद्र से है व आचार्यगुणकीर्तिजी तक लिखा है.) ९६८८७.(#) दृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१४, ११-१२४२१-२७). दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., "थी भूतं चलितरसंचिर्भटिकादि फलं" पाठ से "आत्मनिंदा कर्त्तव्यान परनि" पाठ तक है.) ९६८८८. पार्श्वजिन स्तोत्र, चाणक्य राजनीति व सुभाषित संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-४(६,८ से १०)-७, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१५, १४४१६-२४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्यामो वर्ण विराजिते; अंति: तीर्थस्य दर्शनम्, श्लोक-८. २. पे. नाम. लघुचरणायक राजनीति शास्त्र, पृ. १आ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. चाणक्यलघुराजनीति, संक्षेप, कौटिल्य, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य शंकरं देवं; अंति: पुण्यानि पुराकृतानि, अध्याय-८, (पू.वि. अध्याय-७ श्लोक-३ अपूर्ण से अध्याय-८ श्लोक-२ अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम. सुभाषितानि, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ अपूर्ण से है व ११ अपूर्ण तक लिखा है.) ९६८९०. अकलंकाष्टक स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२२.५४१४, ६४२२). __ अकलंकाष्टक स्तोत्र, आ. अकलंकदेव, सं., पद्य, आदि: त्रैलोक्यं सकलं; अंति: मतिः संताड्यतेतस्ततः, श्लोक-१६. ९६८९४ (+#) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९९, फाल्गुन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १०६, प्र.वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१३.५, ५४२२). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ते काल नि विषइ ते समय नि; अंति: विषे एकविसमो उद्देशो. ९६८९८. अष्टाह्निका पर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९६१, आषाढ़ कृष्ण, मध्यम, पृ. २१-१(१)=२०, ले.स्थल. फलवर्द्धकानगर, प्रले. छोगालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४१३.५, १४४२७). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: इण रीती अठाई पर्व आराधनो, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पाठ "जाणवा सारा में चार-चार बारणा" से है.) ९६८९९. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. खाम, प्रले. मु. नयसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में उर्दु की एक पंक्ति है., प्र.ले.श्लो. (१३७०) तनमन जीवन् प्राणमम्, (१३७१) नंद वृद्धन तन दुख्यता, (१३७२) दीपचंद पीडत प्रथम, दे., (२२.५४१३,१०x२२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९६९०२. (+) जीवविचार प्रकरण, अष्टप्रकारी पूजा, नवतत्व प्रकरण व नवकार माहात्म्य पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-४(२ से ५)=६, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२१.५X१४, १४x२०). १. पे नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पू. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु. सं., पद्य वि. १७२४, आदि (-); अंतिः मोक्षसीख्यं श्रयंति डाल-८ (पू.वि. अंतिम फल पूजा की गाथा-८ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ६आ-९अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: मिस्सो होइ अजीवो, गाथा-५०. , ४. पे. नाम. नवकार माहात्म्य समस्या पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. नमस्कारमहामंत्र माहात्म्य समस्या पद, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: (१)मन वंछित फल होय श्रीपाल, (२) अरिहंताई व निज मन धेरै; अंति: सिरि तसु तिहुअण जण दास, गाथा ५. ९६९०५ (+) श्रावकअतिचार, अपूर्ण, वि. १९२७, पीष शुक्ल, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८-१ ( १ ) = ७, ले. स्थल, स्द्रमाला, प्रले. नाथुराम इच्छारा जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी अ., संशोधित. दे. (२१x१४.५, १४x२७). श्रावकपाक्षिक अतिचार तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति मिच्छामि दुक्कडम् (पू.वि. प्रारंभ के " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र नहीं हैं., पाठ "नवकारवाली वही दस्तरी ओली अप्रते पग लागो" से है.) ९६९१२. (*) नारचंद्र ज्योतिष सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही , फैल गयी है, जैदे. (२३४१४. ५५३२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति (-), (पू. वि. प्रकीर्णक-२ श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीतीर्थंकरदेव; अंति: (-). ९६९१३. पडिक्कमणसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ५. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी: पडिक्कमणो सूत्र.. ..... יי (२२x१३, १५X३०). देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि जयउसामिहि० रिसह सत्त अति: (-), "" (पू.वि. पोषध सामायिक तक है.) ९६९१७. समयसार नाटक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १५. प्र. वि. हुंडी: समयसार नाटिका, समयसा, समैसा, समैसारना ०., समसार., समैयसार., जैदे., (२०x१२, १७१९-३०). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन, अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा - २६ अपूर्ण तक लिखा है.) יי २५९ ן ९६९१९. (+#) ) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०३ - १ (१) = १०२, प्रले. पं. जेष्टहंस, पठ. पं. इंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२०१३, ११४१८-२० ). "" कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. व्याख्यान १ "माएबहुवियकताए पंचहत्तरीवासेहिं अट्ठनव मासेहिं" पाठ से है.) " ९६९३१.(+) उपदेशप्रासाद- स्तंभ १ सह स्वोपज्ञवृत्ति व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०४, प्र. वि. हुंडी : प्रथमस्तंभ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२२.५X१३, ५X३१). उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि. सं., प+ग. वि. १८४३, आदि स्वस्ति श्रीदो नाभि अति: (-), प्रतिपूर्ण. उपदेशप्रासाद-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि श्रेयः संपदाना दायक; अति (-), संपूर्ण. For Private and Personal Use Only उपदेशप्रासाद-टीका, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., गद्य, वि. १९वी, आदि: अहमुपदेशप्रासादं अंति: (-), स्तंभ- १५, संपूर्ण. उपदेशप्रासाद - टीका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि हुं उपदेशप्रासाद नामा; अंति (-), संपूर्ण. Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६० M कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९६९३८. (#) ज्ञाताधर्मकथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४०, प्र.वि. हुंडी:ज्ञातापत्र., ज्ञाताप०., ज्ञाताटबो., मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४१२.५, ७-९४४४). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: प्रणम्यश्री महावीरं; अंति: धम्मकहाओ सम्मत्ताउ, अध्ययन-१९, ग्रं. ५५००, (वि. १८६९, वैशाख अधिकमास शुक्ल, ७, ले.स्थल. सुद्धदंतनीनयर, अन्य. श्रावि. उजीबाई; गुपि. रंभा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर भगवंत शासनना; अंति: ज्ञाताधर्म कथा समाप्त, (वि. १८६९, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, गुरुवार, प्रले. ऋ. जयचंद (गुरु ऋ. जीवणराम); मु. सिरदारमल (अज्ञा. पं. फतेचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य) ९६९३९ (4) त्रेवीश उदयनो विचार, संपूर्ण, वि. १९८४, माघ शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ. ३०, ले.स्थल. आहोर, प्रले. पंडित. जगन्नाथ ओझा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:त्रे०उ०., द्विपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१२.५, ११४४४). युगप्रधान विवरण कोष्टक, मा.गु., को., आदि: त्रयोविंशति रुदयैः कृत्वा; अंति: वरगुणा जुगप्पहाणसमा. ९६९४१ (+#) दशवकालिक बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०९, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ११२, प्र.वि. हुंडी:दशवै, पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११.५, १४४३२-३९). दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, उपा. राजहंस, मा.गु., गद्य, आदि: धम्मो० धर्म केवली भगवंतनउ; अंति: इम कहीउं इम हुं कहुं. ९६९४७. राखीबंधन कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, दे., (२३.५४१३, ११४२३). रक्षाबंधनपर्व कथा, आ. विद्याभूषणसूरि, पुहि., पद्य, आदि: श्रीजिनवर सारद सुखकार; अंति: ब्रह्मज्ञान बोले मनुहार, गाथा-७६. ९६९५० (+) गुणस्थानकक्रमारोह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१३, १८४४७). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह हत; अंति: रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३५. ९६९५२ (#) पुद्गलपरावर्त्तविचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५-४०(१ से ४०)=५, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२.५, १२४३२). पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: भाव पुद्गल परावर्त्त, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पाठ "क्तीतपपवखाणसर्वनमान्यो अनेजिवारें" से है.) ९६९५५ (+) स्तुति, स्तवन, गीत व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१-६(२० से २५)=२५, कुल पे. ३८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२, १२-१९४३२-३६). १.पे. नाम. धारणाप्रमाणेसर्वशेषपच्छक्खाण, पृ.१अ-२अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: समाहिवत्ति आगारेणं. २. पे. नाम, वीसस्थानक स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीशस्थानक तप सेवीयै; अंति: वखतचंद्र मुनिवरो, ढाल-३, गाथा-१९. ३. पे. नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. शजयतीर्थ स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार मांह; अंति: बिनती सफल करेज्यो, गाथा-१२. ४. पे. नाम. चंद्रप्रभूस्वामी स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकलमंगल गुणनिलो महसेनवंस; अंति: पासचंदसूरि० तासु घरे, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ५. पे. नाम. जिनप्रतिमावंदनफल स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर जिनप्रतिमा; अंति: मुगतिरमणि वस आणो जी, गाथा-१०. ६. पे. नाम. थंभणपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण. ___पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे पास; अंति: जाणी कुसललाभ पजपये, ढाल-५, गाथा-१८. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुणज्यौ गोडीजी; अंति: दीपचद० कीजै एतो काम, गाथा-५. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति, सं., पद्य, आदि: (१)हे परमेश्वर पार्श्व, (२)जय जय गोडीजी महाराज; अंति: त्वं प्रणमामि सदैव, श्लोक-९. ९. पे. नाम. सीमंधरवीनती स्तवन, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार एहवु; अंति: भक्तिलाभ० आस्या मनरली, गाथा-१९. १०. पे. नाम. आलोयणऋषभदेवजी स्तुति, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनवू जी; अंति: समयसुंदर गुण भणई, गाथा-३१. ११. पे. नाम. दशपच्चक्खाण स्तवन, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथ नंदण नमुं; अंति: रामचंद्र तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. १२. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. आसकर, मा.गु., पद्य, आदि: वार जाउ रे में बलिहार जाउ; अंति: सेवक भवसागर निस्तार, गाथा-७. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. रतनसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जिनंदा मोरे नयना लागे रे; अंति: प्रभु वीनवे चरणे लागे रे, गाथा-४. १४. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. म. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: मन मोह्यो री मा पासजिनंदा; अंति: चंद कहे० मुझमन मधुकर अटके, गाथा-६. १५. पे. नाम. नेमनाथजी २४ चोक, पृ. १०अ-१३अ, संपूर्ण. नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवसे नेमकुमर निज; अंति: सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. जिनचंद्र, पहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल विराजे; अंति: श्रीजिनचंद्र० मन आस, गाथा-९. १७. पे. नाम. नवपद सज्झाय, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथनायक जिनवरू रे; अंति: नित प्रति नमति कल्याण, गाथा-५. १८. पे. नाम. जिनप्रतिमाअधिकार-ढाल १, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, ___ आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: (-), ग्रं. २२८, प्रतिपूर्ण. १९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: जिनचंद० रिपु जीपतौ, गाथा-५. २०.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, पृ. १४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पच, वि. १७वी, आदि आणी मनसुध आसता देव; अति समयसुंदर सुख भरपुर, गाधा - ७. २१. पे नाम. मेघकुमार सज्झाय, पू. १५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - नाकोडामंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि आपण घर बेठा लील करो; अंति समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८, २२. पे. नाम. कोस्यानारी थूलभद्र सज्झाय, पृ. १५अ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि पिउडा आवो हो जी घर आपणे अंति: गुण जिनहर्ष प्रकाश, गाथा - ९. २३. पे नाम ऋषभजिन स्तवन, पू. १५-१५आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन अंति: बीकानेर मझारो रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ११. २४. पे. नाम. तंबाकु सज्झाय, पृ. १५-१६आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय तमाकु परिहार, ग. उत्तमचंद, मा.गु., पद्य, आदि प्रीतम सेती वीनवड, अंति उत्तम कहइ आणंद, गाथा- २३. २५. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. अनूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि जीवन मांहरा तेवीसम ज अति: पसाय पभणे अनुपमचंद, गाथा ५. २६. पे. नाम. अवंतीसुकमाल सज्झाय, पृ. १६आ, संपूर्ण. अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जगचंद, मा.गु., पद्य, आदि वंदो अबवंती सुकुमालन; अंति: जगचंद० त्रिकाल रे, गाथा-५. २७. पे नाम. समुद्रपालीया सिज्झाय, पृ. १७अ संपूर्ण, समुद्रपालमुनि सज्झाय, मु. ब्रह्म, पुहिं., पद्य, आदि: चंपापुर पालित नामै; अंति: ब्रह्म० काजो रे, गाधा-८, २८. पे नाम. पासचंदसूरी गीत. पू. १७-१७आ, संपूर्ण. पार्श्व चंदसूरि गीत, आ. पद्मचंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: श्रीसूरीसर सुरतरु श्रीपास; अंतिः श्रीपद्मचंदसूरी भासो रे, गाथा ९. २९. पे नाम अजितजिन स्तवन, पू. १७आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति : वाचक यस० गुण गाय के, गाथा-५. ३०. पे नाम. पंचतीर्थीजिन स्तवन, पृ. १७-१८अ संपूर्ण. ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदए आदए आदिजिणेसरु ए; अंति: लावण्यसमय० आणंद पामे सासता, गाथा - ११. ३१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १८अ १८आ, संपूर्ण. मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामणि अंतिः प्रभु पारसनाथ कीये, गाथा १५. ३२. पे. नाम. सेडुंजाजीरो स्तवन, पृ. १८आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि पूरव नवाणु वार अंतिः पद्म कठै भव तरीये, गाथा- १०. ३३. पे नाम. धर्मजिन स्तवन, पू. १८ आ-१९अ संपूर्ण उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: थास्युं प्रेम बन्यौ, अंति: जस० मान्या छै मेरा, गाथा-५. ३४. पे नाम. कर्म सज्झाच, पृ. १९अ १९आ, संपूर्ण कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा - १८. ३५. पे. नाम. रहनेमराजमती सिज्झाय, पृ. १९आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नव भव केरी प्रीत धरी; अंति: प्रेमसागर जंपे करजोडि, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, पृ. १९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. . मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अलगी रहनें कुमति पडी छे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ३७. पे. नाम. प्रत्येकबुद्धि स्वाध्याय, पृ. २६अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. मु. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गाया पाटण परसिद्ध, गाथा-५, (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण से है.) ३८. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, पू. २६-३१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि पचयणदेवी चित्त धरी; अति: (-). (पू.वि. अध्ययन- १६ गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ९६९५६. (+) अनेकार्थध्वनिमंजर्यापादाधिकार व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३२, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २१, ले. स्थल. कृष्णगढ, प्रले. पं. जीतसागर पठ. मु. वल्लभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में मंत्र संग्रह लिखा है, संशोधित, वे. (२२.५x११.५, १०x२०-२४). अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., पद्य, आदि शुद्धवर्णमनेकार्थं अति श्रद्धावतांनिश, अधिकार ३, श्लोक-२१९. ९६९५७. पज्जोसवणाकप्पो, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५६, जैवे. (२३४११, १३४३२-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं काले० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-८ . १२१६. ९६९५९. (+) प्रतिक्रमणसूत्र व नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ४० + १ (३) =४१, कुल पे. २, ले. स्थल. राजनगर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२३४११.५, ७-१०X३६-४१). २६३ 1 १. पे नाम प्रतिक्रमणसूत्र सह टवार्थ, पृ. १अ २०अ संपूर्ण पे. वि. १४ नियम एवं प्रत्याख्यान सूत्र भी लिखे हैं. संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंति जैन जयति शासनम्. बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अरिहंत वीतरागश्री अति जिनशासन जयवंतु वत्त. २०अ-४०आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - वे.मू. पू. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह क्षे.मू. पू. २. पे. नाम. नवस्मरण सह टबार्थ, नवस्मरण, मु. . भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग., आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणिप्रभाण; अंति: स्तूयमाने जिनेश्वरे, स्मरण-९, (वि. नवकारमंत्र, उवसग्गहर व तिजयपहुत्त स्तोत्र नहीं है.) पृ. नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिं देवता नमता तेहना; अंतिः पूज्यमान जिनेश्वर देव. ९६९६० (+) कर्मग्रंथ संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त , पाठ-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२४४१२.५, १२४२६-२८). " नमह तं वीरं, गाथा - ३४. ३. पे. नाम. बंधसामित्तं, पृ. ७आ-१०अ, संपूर्ण. १. पे. नाम. कर्मविपाक, पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १ आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १३वी ९४वी, आदि सिरिवीरजिणं वंदिय अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. २. पे. नाम कर्मस्तव, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ -२, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी, आदि तह थुणिमो वीरजिणं, अति: देविंदवंदिय , " , बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंतिः देविंदसूरि० सो गाथा २५. ४. पे. नाम षड्शीति नव्य कर्मग्रंथ ४, पृ. १०अ १५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी- १४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८२ अपूर्ण तक है.) ९६९६१ (+) वंदितुसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८८१, कार्तिक शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ९-४ (१ से ४) ५, ले. स्थल, कोलकाता, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५X१२, ५X३६-३८). वंदितसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि वंदित्तु सव्वसिद्धेः अतिः वंदामि जिणे चउवीस, गाथा ५०, संपूर्ण. , For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वंदित्तसत्र-टबार्थ*, मा.ग., गद्य, आदि: वांदीनइ सर्व कहीइ; अंति: रीषभादिकनइ प्रणाम करूं छु, संपूर्ण. ९६९६२. (+) जीवविचारसूत्र, दंडकप्रकरण व जंबूद्वीपसंघयणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११.५, १४४३०-३२). १. पे. नाम, जीवविचारसूत्र प्रकरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण. मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४४. ३. पे. नाम. जंबूद्वीपसंघयणी, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. ९६९६७. अजितशांति स्तव, दशपच्चक्खाण आगार गाथा व २४ जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३-११(१ से ८,१० से १२)=२, कुल पे. ३, दे., (२३४१३, ९४२१-२४). १.पे. नाम. अजितशांति स्तव, प. ९अ-९आ, अपर्ण, प.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. १० पचक्खाण आगार, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पच्चक्खाण आगार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: असीथेणवा वोसरई, (पू.वि. "सव्वसमाहिवत्तीयागारेणं" पाठ से ३.पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन-मातापितानामादि गर्भित, पृ. १३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ९६९६९ (१) अयवंतीसुकमालराजर्षि चतुष्पदी व आठकर्मनांनाम मूलप्रकृति उत्तर प्रकृति१०८ भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. ॐकारपुर, प्रले. पं. गुलाबहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४१२, १६x४२-४६). १. पे. नाम. अयवंतीसुकमालराजर्षि चतुष्पदी, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १८२८, माघ कृष्ण, ८, ले.स्थल. ॐकारपुर, प्रले. पं. गुलाबहंस, प्र.ले.पु. सामान्य. अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरष सुख पावे रे, ढाल-१३, गाथा-१०५. २. पे. नाम. कर्मनाबोल विचार, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण, वि. १८२८, ले.स्थल. ॐकारपुर, प्रले. पं. गुलाबहंस, प्र.ले.पु. सामान्य. ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी कर्मना भेद ५; अंति: दुखणछइं सम्यक्ति जाणवा. ९६९७६. सज्झाय, दहा व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, दे., (२२.५४१३, ११४२१). १.पे. नाम. सचित्ताचित्तविचार सिज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी; अंति: नयविमल कहे सज्झाय, गाथा-२५. २. पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक दहा *, पुहिं., पद्य, आदि: मन मांणक गेहणे धर्यो; अंति: अजब फूल दो नैन, दोहा-२. ३. पे. नाम. सिवपुर सिज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. __ गौतमस्वामीनी सज्झाय, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम पृच्छा करे; अंति: पामें सुख अथाग हो गोयम, गाथा-१५. ४. पे. नाम. औपदेशिक दुहा, पृ. ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org २६५ दुहा संग्रह-विविध विषयक *, प्रा., मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जीवनमरें जोग हें प्राणेसर; अंति: बनकुं पीस कर अवस पूरी आस, गाथा- १. ५. पे नाम. नेमनाथजी महाराजरो स्तवन, पृ. ५अ संपूर्ण नेमिजिन स्तवन, मु. अमृतविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मनमोहन मेरे सिवादेविनंदन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ९६९८५ (+) लघुक्षेत्रसमास सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. ३९-१९ (१ से १९) = २० प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२२.५x१३, ७३५-४०). " " लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी, आदि: वीर जयसेहरपय पईडि अति: (-), , " (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा २५३ अपूर्ण तक है.) 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीर वर्द्धमान स्वामी; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ९६९८७ (+) ज्योतिषसार व मुहूर्तचिंतामणि, अपूर्ण, वि. १८२६, मध्यम, पृ. ३५-१ (७) = ३४, कुल पे. २, ले. स्थल. सिणली, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२२x१०, १४X३२-३९). १. .पे. नाम ज्योतिषसार सह यंत्रकोद्धार टिप्पण व बालावबोध, पृ. १अ-२९अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. १८२६ वैशाख कृष्ण, १३, गुरुवार, प्रले. पं. रत्नधीर (गुरु ग. ललितकमल वाचक); गुपि. ग. ललितकमल वाचक, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. हुंडी नारचंद्र. ज्योतिषसार आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि श्रीसर्वज्ञजिन नत्वा नार; अति करइ पुण नत्थि संदेहो, श्लोक-२८८. (पू.वि. श्लोक - ४३ अपूर्ण से ५३ अपूर्ण तक नहीं है.) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: सेषं सूर्य उच्यते. ज्योतिषसार-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागदेव तीर्थंकर; अंति: एह वांहण सहदेव वखाणै. २. पे. नाम. मुहूर्तचिंतामणि संस्कार प्रकरण का बालावबोध, पृ. २९अ - ३५आ, संपूर्ण, वि. १८२६, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, बुधवार, प्रले. पंडित. रामकृष्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. हुंडी: मुहूर्तचिंता ०. मुहूर्तचिंतामणि- हिस्सा संस्कार प्रकरण का वालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: विनाइक जुवारा तोरण करिवा, अति: योगे प्रेत क्रिया न कीजै, (वि. संक्षिप्त मुहूर्तविधि लिखी है.) ९६९८९. (*) श्रीचंद रास, अपूर्ण, वि. १८४५, फाल्गुन कृष्ण, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९० १० (१ से १० ) = ८०, ले. स्थल. पादरु, प्रले. मु. मनोहरविजय (गुरु मु. विवेकविजय); गुपि. मु. विवेकविजय (गुरु पं. सुंदरविजय गणि); पं. सुंदरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी चंदास, संशोधित कुल ग्रं. २६७७ जैदे. (२२१०, १५४४५-५०) राजाराम, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि (-); अंति: मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४ डाल १०८, गाथा-२६७९, (पू.वि. उल्लास - १ ढाल ११ गाथा-७ अपूर्ण से है.) ९६९९४ (+म) गुणकरंडकगुणावली रास, अपूर्ण, वि. १८०६, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०. शुक्रवार, मध्यम, पृ. २९-१ (२५) =२८, ले. स्थल. राधीकापुर प्र. मु. प्रतापविजय (गुरु पं. फतेविजय); गुपि. पं. फतेविजय (गुरु पं. लालविजय): पं. लालविजय (गुरु पं. कुसलविजय): पं. कुसलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२३X१०.५, १४-१६x२४-३०). गुणकरंडक गुणावली रास- बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: श्री अरिहंत अनंत गुण सेवे; अंतिः हर्ष ० दिन दिन आणंद, ढाल - २६, गाथा- ४९३, संपूर्ण. ९६९९७ (+) निरियावलिकादि पंचोपांग, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३८, कुल पे. ५. प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. १३१९, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४११, १३X२७-३९). १. पे नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १आ- १४आ, संपूर्ण प्रा. गद्य, आदि: तेण कालेणं तेणं०; अतिः सुयक्खधो पववया सम्मतो, अध्ययन- १०. २. पे नाम. कल्पावर्तसिकासूत्र, पृ. १५ अ- १६आ, संपूर्ण. प्रा. गद्य, आदि जति णं भंते समणेणं०; अति वा सेज्झिहिति, अध्ययन- १०. For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. १६आ-३०आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संघहणाए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम, पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ३१अ-३४अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ३४अ-३८आ, संपूर्ण.. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्तं एक्कारससुवि, अध्ययन-१२. ९६९९८ (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८८२, फाल्गुन कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, प.७३, ले.स्थल. जालोरदर्ग, प्रले. पं. खूबचंद (गुरु पं. देवीचंद, खरतरगच्छ); गुपि.पं. देवीचंद (गुरु ग. हितप्रमोद, खरतरगच्छ); ग. हितप्रमोद (गुरु उपा. रत्नविमल, खरतरगच्छ); उपा. रत्नविमल (गुरु मु. कनकसागर, खरतरगच्छ); पठ.पं. सरूपचंद (गुरु पं. खुबचंद, खरतरगच्छ),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालजीरोरास, संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०,११४२८-३३). श्रीपाल रास-बहद, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: अरिहंत अनंतगुण धरीये; अंति: जिनहर्ष० अजरामल फल होई रे, ढाल-४९, गाथा-८६१. ९७००० (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८६५, कार्तिक शुक्ल, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६३, ले.स्थल. थावला, प्रले. पं. शिवचंद्र ऋषि (गुरु पं. राजविजय); गुपि.पं. राजविजय (गुरु पं. प्रेमविजय गणि); पं. प्रेमविजय गणि; पं. बनारसीजी; अन्य. मु. सिवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२.५४१०.५, १४४३६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: च्यार खंड सुहायाजी, खंड-४ ढाल ४१, गाथा-१८२५. ९७००१ (+#) चंद चरित्र, संपूर्ण, वि. १८६१, फाल्गुन शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १४८, ले.स्थल. भलडारेवाड, प्रले. मु. शिवचंद (गुरु ग. राजविजय); गुपि. ग. राजविजय (गुरु पं. प्रेमविजय); पं. प्रेमविजय (गुरु पं. हर्षविजय); पं. हर्षविजय (गुरु पंन्या. वनीतविजय), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं.५०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , जैदे., (२२.५४१०, १४४२१-३५). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धरा धवति प्रथम; अंति: मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४ ढाल १०८, गाथा-२६७९.. ९७००८.(+) जीवविचार प्रकरण, नवतत्त्व प्रकरण, दंडक प्रकरण व षेत्रसमास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४६, कुल पे. ४, प्रले. मु. सौभाग्यविजय (गुरु मु. भक्तिविजय); गुपि. मु. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२२.५४१०.५, ४-११४३०-३५). १. पे. नाम, जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-१०आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन केहतां त्रीण भुवन; अंति: समुद्र हुंती. २.पे. नाम. नवतत्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १०आ-१८आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवा२ पुण्णं३ पावा४; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४५. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व चेतनासहित; अंति: एक सिद्ध १४ अनेकसिद्धि १५. ३. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १८आ-२७आ, संपूर्ण, वि. १९३१, फाल्गुन शुक्ल, ६, शनिवार, ले.स्थल. पेशुआ, प्रले. मु. सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीकुंथुनाथप्रसादात्. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३६. दंडक प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: चउवीस तीर्थंकर ऋषभादिक; अंति: अर्थे लिखी छे. ४. पे. नाम. क्षेत्रसमास सह टबार्थ, पृ. २७आ-४६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२२ तक है.) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवे गुरु उपदेश करी; अंति: (-), (वि. गाथा-९० से ९७ तक टबार्थ नहीं लिखा है.) ९७०११. (+) चंदचरित्र, संपूर्ण, वि. १८७१, माघ कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १०३+१(३४)=१०४, प्रले. पं. देवीचंद (गुरु ग. हितप्रमोद, खरतरगच्छ); गुपि.ग. हितप्रमोद (गुरु उपा. रत्नविमल, खरतरगच्छ); उपा. रत्नविमल (गुरु मु. कनकसागर, खरतरगच्छ); पठ. पं. खुबचंद (गुरु पं. देवीचंद, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चंदचौपई, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५५२) भग्न पृष्टि ग्रीवा, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४४२). चंदराजा चौपाई, पा. रतनविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सकलसुरासुर स्वामिनी सारद; अंति: रतनविमल० मति विसतारी जी, ढाल-२५, खंड-५, गाथा-१५९०. ९७०१४ (+#) कल्पसूत्र सह सुबोधिका टीका, अपूर्ण, वि. १७७४, ज्येष्ठ शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. १४७-१(१४६)=१४६, ले.स्थल. पत्तन, प्रले. पं. हंसविजय (गुरु पं. वृद्धिविजय गणि); गुपि.पं. वृद्धिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४६५) याद्रसि पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२४४११, १०-१८४३६-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (प.वि. अंतिम पत्र नहीं है., व्याख्यान-८ पाठ "बहुण समणाणं बहुणं" तक है.) कल्पसूत्र-सबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदि: प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंति: विद्वज्जनराश्रिता, ग्रं. ६५८०, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. टबार्थ शैली में वृत्ति लिखी गई है.) ९७०१५. (+) शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४११, १५४३८-४४). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: श्रेयोरत्नकरोद्भतामह; अंति: शांतिं स करोतु शांति, प्रस्ताव-६, श्लोक-४८९०, ग्रं. ५०००. ९७०१६. (+#) कल्पसूत्र सह सबोधिका वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७३२, आषाढ़ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २०४, प्रले. ग. पद्मविजय (गुरु पं. संघविजय गणि); गुपि.पं. संघविजय गणि (गरु पं. भावविजय गणि); पं. भावविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंति: विद्वज्जनराश्रिता, ग्रं. ६५८०. ९७०१७. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५९-१२१(१ से १२१)-३८, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्रट०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १३-१५४३७-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्रभु महावीर के जन्म के समय नक्षत्रादि के वर्णन से निर्वाण वर्णन अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ९७०१८.(+) शालिभद्रमहामुनि चरित्र, संपूर्ण, वि. १८८८, आषाढ़ कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. २८, ले.स्थल. जालोरनगर, प्र.वि. हुंडी:शालभद्र०, संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१३६५) जबलग मेरु अडग है, जैदे., (२४.५४११, ११४३१). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइ जी, ढाल-२९, गाथा-५११. ९७०१९ (+#) रत्नपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १४-१६x४२-४६). For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: लच्छी मोहनविजय विलास जी, खंड-४ ढाल ६६, गाथा-१३७२. ९७०२१. (+#) नलदमयंती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६-१(१)=३५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १५४३५). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., खंड-१, ढाल-१, गाथा-२७ अपूर्ण से खंड-६ ढाल-९ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ९७०२२. उपदेशमालाशीयलअधिकार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४०, संवत्यष्टादचोतीचंद्रनवभीवर्षे, फाल्गुन कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. १६६, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले.पं. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च, (१०३) यावच्चंद्रादित्यौ, (२०९) जलाद्रक्षे थलाद्रक्षे, (६६४) जादृष्टं पुस्तकं जस्या, (९०५) जीहा लगे सायर चंद रवी, (१२६७) जिहा लग मेरू अडग है, जैदे., (२४४११, १६४३८). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: आराहिय लहह बोहिसुहं, कथा-४३, गाथा-११५. शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: श्रीवामेयममेय; अंति: मोक्षफल पणि पामउ, ग्रं. ६२५०. ९७०२३. (+) रत्नचूड चतुपदी, संपूर्ण, वि. १८६२, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३१, ले.स्थल. आहोरनगर, प्रले. मु. शिवचंद (पुनमगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०.५,१३४२८-३१). रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदिः स्वस्ति श्रीसोभा; अंति: संपति लील कल्याणो रे, ढाल-२४. ९७०२४. (+) सिंहासणबत्रीसी व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१३, माघ कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ८२, कुल पे. २, ले.स्थल. वाल्ही नगर, प्रले. पं. विनयविजय गणि (गरु पंन्या. देवेंद्रविजय गणि); गुपि. पंन्या. देवेंद्रविजय गणि (गरु ग. जयविजय); ग. जयविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय); पंन्या. सिंहविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:सिंघास०., सिंघासण., सिंघासणब., सिंघासणबति., सिं०बत्रिसी., श्रीमनहोनपार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च, (५९९) यावत् विद्यात् समुद्र, जैदे., (२४४१०.५, १४-१५४३८-४५). १.पे. नाम. सिंहासनणबत्रीसी, पृ. १आ-८२अ, संपूर्ण. सिंहासनबत्रीसी चौपाई-दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: आराहीय श्रीहरखी प्रभु; अंति: ऋद्धि पामै बहु परै, कथा-३२, गाथा-२४२०, ग्रं. ३५००. २.पे. नाम, औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ.८२आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अंतर्वशति मार्जारी; अंति: गहरो करी मूरख दीयो वहाय. ९७०२५ (+#) त्रिभुवनसिंहकुमार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९, ले.स्थल. श्रीपुरबंदर, प्रले. पं. हर्षविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, १५-१६४२८-३२). त्रिभुवनसिंहकुमार रास, ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीश्रुतदेवी सार; अंति: मुनि० घर मंगलमाल के, ढाल-४४, गाथा-६५०. ९७०४०. नलदवदंती चउपई, अपूर्ण, वि. १७१७, फाल्गुन शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. ४०-२(१ से २)=३८, ले.स्थल. प्रेमापुर, प्रले. मु. खेमाविजय (गुरु ग. संघविजय); गुपि. ग. संघविजय; पठ. ग. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ९१३, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४४११, १३४३८-४४). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदिः (-); अंति: चतुर माणस चित वसी, खंड-६ ढाल ३९, गाथा-९३१, ग्रं. १३५०, (पू.वि. खंड-१ ढाल-३ गाथा-१ अपूर्ण से है.) ९७०४३. (+#) धर्मबुद्धि चतुपदी, संपूर्ण, वि. १८४६, माघ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३३, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. गोडीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:धर्मबु०, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४२८-३२). For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २६९ पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: प्रथम जिणेसर परगडो; अंति: गृह शिवसुख सुजस लहै, ढाल-३९, गाथा-५३५.. ९७०४४. (+#) नवस्मरण व लघशांति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६६७, मध्यम, पृ. ४५, कुल पे. २, प्रले. पंडित. हेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ४४२६-३५). १. पे. नाम. नवस्मरण सह टबार्थ, पृ. १आ-४१आ, संपूर्ण. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: शिवा० शिवं भवंतु स्वाहा, स्मरण-९, (वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं लिखा है.) नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार; अंति: देवतानै आहुति हुओ. २. पे. नाम. लघशांति, पृ. ४१आ-४५अ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशांति प्रतिउपशमनु घर; अंति: मानदेव०सांति प्रति पाम्यउ. ९७०४५ (+) सप्तस्मरण, पार्श्वजिन स्तवन व संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७४, पौष शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, कुल पे. ४, ले.स्थल. जालोरदुर्ग, प्रले. पं. खुबचंद (गुरु पं. देवीचंद, खरतरगच्छ); गुपि.पं. देवीचंद (गुरु ग. हितप्रमोद, खरतरगच्छ); ग. हितप्रमोद (गुरु उपा. रत्नविमल, खरतरगच्छ); उपा. रत्नविमल (गुरु मु. कनकसागर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., प्र.ले.श्लो. (५५१) चोरानलाददकेभ्यो, (१३६६) यावन्मेरुधरा पीठे, जैदे., (२३.५४१०, १२४३२). १. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-नवग्रहगर्भित, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्ततिगर्भित, आ. जिनप्रभसरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: जिणप्पहरिन पीडंति, गाथा-१०. ४. पे. नाम. संग्रहणीसूत्र, पृ. ११अ-२६आ, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१३. ९७०४६ (+) संघयणी टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.६२,प्र.वि. हुंडी:संग्रहणीटी०., संघयणीटी०., बीच के एक पत्र पर यंत्र व स्वस्तिक बनाए हुए है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १७-१८४४९-५५). बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्यद्भुतं योगिभिरप्यगम्य; अंति: ज्ञानदृग्वीर्य सौख्य, ग्रं. ३५००. ९७०४७. (+) सारस्वतव्याकरण दीपिका, संपूर्ण, वि. १७९१, संवद्भनिधिमुन्येक, वैशाख कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १२४, ले.स्थल. कनकदुर्ग, प्रले. मु. चंद्रकीर्ति; पठ. भट्टा. हर्षरत्नसूरि (गुरु भट्टा. मेघाणंदसूरि); गुपि. भट्टा. मेघाणंदसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सारस्वत०चंद्र०वृ., सारस्वतचंद्रवृत्ति., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (६३५) तैलाद्रक्षे जलाद्रक्षे, जैदे., (२४४१०.५, १९४४६-५३). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याण; अंति: वभूव सुमनोहरम्, वृत्ति-३, ग्रं. ७५००. ९७०५० (4) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६९-३(५ से ६,२९)=६६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १५४४२-४५). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-५४ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शीलोपदेशमाला-बालावबोध कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: श्रीवामेयममेय; अंति: (-), (प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अंजनासती कथा अपूर्ण तक है.) ९७०५४. (+) सम्यक्तकौमुदी कथा, संपूर्ण, वि. १९३३, वैशाख कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ५८, ले.स्थल. दादरी, प्रले. सा. सोनाजी (गुरु सा. चंदरावलजी); गुपि. सा. चंदरावलजी; सा. मीराजी माहासती; मु. तुलसीराम (गुरु मु. लक्ष्मीचंद); मु. लक्ष्मीचंद (गुरु मु. भान्नीराम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३.५४११, १२-१५४२८-३६). सम्यक्त्वकौमुदी कथाष्टक, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८५, आदि: विज समान श्रीवीरजिन; अंति: अविचल रिद्धि तिण पावी जी, ढाल-४२, ग्रं. १८००. ९७०५६ (+) सूर्यप्रज्ञप्ति की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६७४, आश्विन शुक्ल, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २१०+१(१६०)=२११, प्र.वि. हुंडी:सूर्य०वृत्ति., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १५४४५-६०). सूर्यप्रज्ञप्ति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: यथास्थितं जगत्सर्वमी; अंति: ण्वता० तेन भवतु कृती, ग्रं. ९०००. ९७०५७. कुमारपाल रास, संपूर्ण, वि. १८०२, फाल्गुन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १२३, ले.स्थल. दुधिई, प्र.वि. हुंडी:कुमारपाल., कुमारपा०.,प्र.ले.श्लो. (७६) मंगलं लेखकस्यापि, (४८५) यावल्लवणसमुद्रो, जैदे., (२४४११, १७४४४-५०). कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७०, आदि: सकल सिद्ध चरणे नमुं; अंति: नामथी नवनिधान पायो, गाथा-४९४९, ग्रं. ५८००. ९७०५९ (+) वीसस्थानक चउपई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१०, १६४३४-३८). २० स्थानक विचारसार रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: सकल सिद्धि संपतिकरण; अंति: (-), (पू.वि. स्थानक-२० गाथा-३३ अपूर्ण तक है.) ९७०६१. (#) उपासकदसासूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८७०, पौष कृष्ण, मध्यम, पृ. ७७-६(३,२२,३०,३२ से ३३,६२)=७१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, ६४२८-३०). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु उद्दिसंति, अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पत्र नहीं है.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनई विषै ते; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ "ठाणादिक जाव अनित्यसर्वभाव" पाठ तक लिखा है.) ९७०६९ (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५-२(१,१४)=४३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ६४२८-३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "अणते अणुत्तरे निव्वाघाए" पाठ से "राइन्न० नाय खत्तिय" तक व "अन्नयरसुवा तहप्पगारे" पाठ से "सुहेणंतंगझपरिवहइ".तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९७०७० (+) सिंदरप्रकर सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८३२, आश्विन शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ६६, ले.स्थल. आसोपनगर, प्रले. मु. खुस्यालसौभाग्य (गुरु ग. जयसौभाग्य, तपागच्छ); गुपि.ग. जयसौभाग्य (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिंदरप्र. पत्रांक ५५ एवं ५६ एक ही पत्र पर लिखा है., संशोधित., जैदे., (२२४१०.५, १६४३२-३५). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. सिंदरप्रकर-बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शारदाचरणयुग्ममतीतपापं; अंति: राजा सूरीश्वरस्तेन. For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २७१ ९७०७१ (+४) भीमसेन चरित, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६३, अन्य. पं. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. फफुंदग्रस्त एवं अक्षर फीके हो जाने से प्रतिलेखन पुष्पिका अवाच्य है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३X१०, १४-१६४३२-४२). भीमसेन चरित, आ. सुंदरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: श्रीसुत देव नमु सदा धरी; अंति: गाया तो अविचल सुख पाया जी, ढाल - ६०, खंड- ४. ९७०८१ (+) योगचिंतामणि सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, वैशाख कृष्ण ९, मध्यम, पृ. ४४, ले. स्थल. बीलाडानगर, प्रले. पं. दौलतसौभाग्य, प्र. वि. हुंडी योगचिंतामणि, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. जैवे. (२३.५x१०.५, ७-१३४३५-४५). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य वि. १७वी आदिः यत्र वित्रासमावांति तेषां अति: योगचिंतामणिश्चिरम्, अध्याय ७. योगचिंतामणि टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि: जब वित्रासनइ अति तेहनो सातमो मिश्रकाध्याय, ९७०८८. (+) आत्तरपच्चक्खाण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८-१ (१) ७, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२४.५११, ५-८x२८-३२). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: (-); अंति: खयं सव्वदुक्खाणं, गाथा- ७१, (पू.वि. सूत्र- १ अपूर्ण से है.) ९७०९० (+) शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २६-१२(१ से १,१५, १७ से १८) = १४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी;सालीभद्र., अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, ११-१४x२३-२५). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. डाल-१३ दूहा ४ अपूर्ण से ढाल - २७ गाथा १० अपूर्ण तक है.) ९७०९१. (+) सौभाग्यपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १७९५, चैत्र कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २५, ले. स्थल, गोलाग्राम, प्रले. मु. भक्तिविजय, गुपि. पं. अमरविजय (गुरुग, कांतिविजय, तपागच्छ); ग. कांतिविजय (गुरु ग. देवविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हंडी सौभाग्यपंचमीनीकथा, संशोधित, जैदे. (२४.५४११, ४४२५-२७). वरदत्तगुणमंजरी कथा - सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि श्रीमत्पार्श्वजिन; अति लिखिता सूरेव च मेडतानगरे, श्लोक-१५०. वरदत्तगुणमंजरी कथा - सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अति कनककुशल तेमंग्रंथकर्त्ता. ९७०९२. चउवीसी, सज्झाय व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ४, गृही. ग. देवसुंदर (गुरु ग. मानसुंदर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, ११X३६). १. पे नाम चडवीसी जिन स्तवन, पृ. १अ १०अ संपूर्ण, वि. १७६०, भाद्रपद शुक्ल, ४, शुक्रवार, प्रले. मु. महिमाशेखर; पठ. श्रावि. मानकुंवर वीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. २४ जिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि कासमीर मुख मंडणी त्रिभुवन अति जीत कहै० लहीइ लीलानंद रे स्तवन- २४. २. पे. नाम. अरणिककुमार सिज्झाय, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति मनबंछित फल सिधो जी, गाथा - १०. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ गीत, पृ. १०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत-गोडीजी, वा. दाम, मा.गु., पद्य, आदि: जेश्री गोडी पास जे जे; अंति: दाम० त्रिभुवन लील विलास, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक गाथा-सज्जन के गुण, पृ. १० आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहिं., मा.गु. सं., पद्य, आदि जिन दीठे मन उल्लसे लोयण; अंति: किम वीसरे गुणसाकर गुणवंत, गाथा- १. ९७०९४ (+) प्रमाणनयतत्वालोकालंकार, संपूर्ण, वि. १९३०, मध्यम, पृ. २७, प्र. वि. संशोधित. वे. (२४.५x११.५, ६x२८-३०). " " For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २७२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., पण. वि. १९५२-१२२६, आदि रागद्वेषविजेतारं ज्ञातारं अंति यावत्स्फूर्ति च वाच्यम्, परिच्छेद ८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९७०९७. (+) नंदिसेनमुनि रास, संपूर्ण, वि. १७३७, फाल्गुन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ६, अन्य. मु. विश्रामजी (गुरु मु. पितांबरजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२४.५४११, १८४५०-५५) " नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदिः सुत सिद्धारथ भूपनो; अंतिः सिद्धि नित गेहह रे, ढाल १६, नं. ४२१. ९७०९९ (+) श्रावक आराधना, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें.. दे. (२४.५x११, ११४४२). श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य वि. १६६७, आदि श्रीसर्वज्ञपदं नत्वा, अंतिः (-), (पू.वि. अधिकार- ५ अपूर्ण तक है.) " ९७१०१. (+) कर्मस्तव सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १३. पू.वि. अंत के पत्र नहीं है., प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., ( २४.५X१०.५, १७x४९). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं गाथा ३४, संपूर्ण. , कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (१) वीरं बोधनिधिं धीरं, (२)तह थुणिमो वीरंजिणं जह गुण; अति देवेंद्र० वांद्या छे, संपूर्ण. ९७१०४ (+) पाक्षिकसूत्र व पाक्षिक खामणा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी खंडित है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४X१०, १२X३८). १. पे नाम पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-७अ संपूर्ण. हिस्सा, प्रा. प+ग, आदि तित्यंकरे य तित्वे अति मिच्छामि दुक्कई. " २. पे. नाम. पाक्षिकखामणा, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: (-), (पू.वि. "साहुट्टु नित्थरस्समि ति कट्टु सिरसा" पाठ तक है.) ९७१०५. (+०) मृगांकलेखा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १८-१३ (१ से ३, ६ से १५)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पत्रांक खंडित होने से अनुमानित पत्रांक दिये गए हैं. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५x११.५, . " १५X४२). " मृगांकलेखा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु. पच, वि. १८३८ आदि (-) अंति (-) (पू.वि. ढाल ६ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल १० गाथा १० अपूर्ण तक व ढाल ५१ दुहा-७ अपूर्ण से डाल ५९ गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ९७१०६. उदयरत्न चौवीसी व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ७. प्र. वि. हुंडी: चोवी. थोय. प्रतिलेखन पुष्पिका अस्पष्ट है, जै, (२५x११, १०x२७). " १. पे. नाम. उदयरत्न चौवीसी, पृ. १अ ५आ, संपूर्ण, वि. १८६५, फाल्गुन शुक्ल, ९, प्रले. मु. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि मरुदेवीनो नंद माहरो अंति ते संसार सारो रे, स्तवन- २४. २. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुणहर्ष० तणा निशदिश, गाथा-४. For Private and Personal Use Only ३. पे नाम. पाक्षिकस्तुति, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. ४. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि कल्लाणकंदं पढमं अंति: अम्ह सवा पसत्था, गाथा ४. ५. पे नाम बीजस्तुति, पू. ६आ-७अ संपूर्ण Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २७३ बीजतिथि स्तुति, म. लब्धिविजय, मा.ग., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहै पूर मनोरथ माय, गाथा-४. ६. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ७. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं सम्मोह; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा-४ का अंतिम शब्द नहीं है.) ९७१०८. (+#) सिंदरप्रकर, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ११४३०-३४). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६७ __अपूर्ण तक है.) ९७१०९ (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११, ५४३८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४१ अपूर्ण तक है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण क० मंगलिक तेहनो; अंति: (-). ९७११६. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४११, १३४३७). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक अन्नत्थसूत्र अपूर्ण से गंठसी पचक्खाण अपूर्ण तक है.) ९७१२१. तुगीयाश्रावक गीत, रतनगुरु सज्झाय व पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१४, कार्तिक कृष्ण, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ३, दे., (२४४११, ९-१०x२५-२९). १.पे. नाम. तुगीयाश्रावक गीत, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. तुंगीयाश्रावक सज्झाय, मु. कनिराम, मा.गु., पद्य, वि. १८९७, आदि: श्रावग तुंगीया तणो; अंति: कनीरामजी गुण गाय, गाथा-१७. २. पे. नाम. रतनगुरु सज्झाय, पृ. २आ-७अ, संपूर्ण. रतनकुमर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस कमल श्रीभगवंतजी रे; अंति: उपजे रे उपेजेम तंबोल, ढाल-१०, गाथा-५४. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु चिंतामणदेव; अंति: कीरत० पारस मुखै कीयै, गाथा-१५. ९७१२३. (+) दंडक बोल, अपूर्ण, वि. १७७९, भाद्रपद शुक्ल, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६३-५४(१ से २९,३६ से ४७,४९ से ५९,६१ से ६२)=९, प्रले. मु. सारंग ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, १२४२६). २४ दंडक बोल संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मास ६नु आंतरु, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., "स्ता-२ आगस्ती-३ काल-४ जीवभावइ-५" पाठ से "पालना आभिउगीवभइ उतरदेव" तक, "प्रणामे घटइ ४ पडिवा सर्वलोक देखे एकवार" से "द्रव्यक्षेत्रकाल भावजा" तक, "जावसहसा देवलोकइथी आव्या" से "भावदेव २ गतिमाहिथी आवइ०" तक व "उपजइजवइ नारकी सरंतर नरंतर" से है.) ९७१२४. (+#) जीवादि विविधद्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-१४(१,३,५ से ६,८ से ९,११,१३ से १५,१७,२० से २२)=१०, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११,११४२७). जीवादि विविधद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सात नरक वर्णन अपूर्ण से "चक्रवर्तीनी पसणगारी" पाठ तक है.) ९७१२९ (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १३४३५). For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ से है व २४८ अपूर्ण तक लिखा है.) ९७१३०. आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९७-६२(१ से ६२)=३५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३४११, ५४२४-२७). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१, अध्ययन-५, उद्देस-५ पाठ "कंखाए परिवयंति ति बेमि" से श्रुतस्कंध-१, अध्ययन-८, उद्देस-५ पाठ "आणुपुविइ खाए आरभाउ तिउटए २ कसाए" तक है.) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९७१३१ (+) साहुपडिकमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १८७५, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ९-१(१)-८, प्रले. पं. रतनचंद; पठ. श्राव. गुणचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५,१२-१३४२०-३२). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पाठ "इयारे पडिक्कमे देसियंसव्वं १० बीए अणुव्वयंमी" से है.) ९७१३३ (+#) द्वारकानगरी वीसतार व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३३, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले.सा. जीउजी (गुरु सा. उदाजी आर्या); गुपि.सा. उदाजी आर्या (गुरु सा. पांचा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कीसनरी., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १९-२२४५०). १.पे. नाम. द्वारिकानगरी विस्तार, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: बावीसमा श्रीनेमजिणंद ए; अंति: जिनवृद्धिमांन रे, ढाल-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा-श्राविका प्रतिबोध, पृ.५आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: संवड पंडेने खमावजो सण; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक लिखा है.) ९७१३६. (+#) अणुत्तरोववाई सूत्र व आहारमानादि-महाविदेहक्षेत्रे, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:अणुत्तरोववाई., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ६४३१). १. पे. नाम. अणुत्तरोपपातिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-१८अ, संपूर्ण. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: उववाईदशांगं नवमं अंगं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. अनत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषे ते; अंति: नवमो अंग संपूर्ण हओ. २. पे. नाम. आहारमानादि-महाविदेहक्षेत्रे, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. आहारादिमान गाथा-भरतादिक्षेत्रे, प्रा., पद्य, आदि: बत्तीसं कवलाहारो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) आहारादिमान गाथा-भरतादिक्षेत्रे-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बत्रीस कोलीआनो अहार; अंति: मुहपतिमानानिजाणवुमान, अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९७१३७. मानतुंगमानवतीनी चौपई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१)=१०, प्रले. पं. शिवचंद्र ऋषि (गुरु पं. राजविजय); गुपि. पं. राजविजय (गुरु पं. प्रेमविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, १४४३४-३६). मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: (-); अंति: भेद मतिमंदिर लहै, ढाल-१४, (पू.वि. ढाल-१, गाथा-५ अपूर्ण से है.) ९७१३८. स्तवन चौवीसी व अतितचोवीसी नाम, अपूर्ण, वि. १८६७, आश्विन शुक्ल, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. २०-१(४)=१९, कुल पे. २, ले.स्थल. वांकुलीग्राम, प्रले. मु. पुरषोत्तमविजय (गुरु मु. नरसिंघ); गुपि. मु. नरसिंघ; गुभा.पं. हिमतविजय (गुरु मु. पद्मविजय); गुपि. मु. पद्मविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२३.५४१०.५, १०४२८). १. पे. नाम. स्तवन चौवीसी, पृ. १आ-२०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ स्तवनचौवीसी, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ ऋषभ जिणंद निरखी; अंति: प्रतिदिन सयल जगीस, स्तवन-२४, (पू.वि. अभिनंदनजिन स्तवन गाथा-२ अपूर्ण से सुमतिजिन स्तवन गाथा-४ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. अतितचोवीसी नाम. प. २०आ. संपूर्ण... २४ जिननाम-अतीत, मा.गु., गद्य, आदि: केवलन्यांनी १; अंति: संप्रतिनाथ २४. ९७१३९ (4) कान्हडकठियारारि चतूरपदि, संपूर्ण, वि. १७५७, फाल्गुन कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, १२-१५४३०-३४). १. पे. नाम. कान्हडकठियारारि चतरपदि, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण. कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुं सदा; अंति: पांमसी धन कान्हड अणगार, ढाल-९. २.पे. नाम, औपदेशिक गाथा, पृ. ९आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुणौ वृज बोल विसालविबौध्य; अंति: गज पंचसै केसरी वृजतागौ. ९७१४३. कामकंदलामाधवानल चौपई, अपूर्ण, वि. १७८८, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. १५-२(१ से २)=१३, प्रले. मु. रामचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १७४४१). - माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदिः (-); अंति: कुशल सुख पामें संसार, गाथा-५१२, (पू.वि. गाथा-७१ अपूर्ण से है.) ९७१४५. (+#) गौतमस्वामी रास, गौतमस्वामी छंद व पंचपरमेष्टि छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११, ९४३५). १.पे. नाम. गौतमस्वामीजीनो रास, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण, ज्येष्ठ शुक्ल, ४. गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र० ईम भणै ए, ढाल-६, गाथा-६२. २.पे. नाम. गौतमस्वामीनो छंद, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. गौतमगणधर आरती, मु. चंद, गु., पद्य, आदि: जयो जयो गौतम गणधार,; अंति: कहे चंद ए सुमतागार, गाथा-५. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि छंद, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: जिन प्रभ सुरवर सीस रसाल, गाथा-७. ९७१५२ (+) गुणठाणाना २० बोल, समकीत ५ नाम व नियंठा ६, संपूर्ण, वि. १७८४, फाल्गुन शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४११, १२४३६). १. पे. नाम. गुणठाणा २० यार, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण, वि. १७८४, फाल्गुन शुक्ल, १, मंगलवार, प्रले. मु. जगाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. १४ गुणठाणा २१ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार १ लखण २; अंति: संपत्तीना जीव मांहि लीधा. २. पे. नाम. समकीत गुणठाणा, पृ. ७आ, संपूर्ण. ५ समकित स्वरूप विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: १ उपशम समकितनी थित जघन; अंति: १४ गुणठाणासुद्धि होइं. ३. पे. नाम. नियठा ६, पृ. ८अ-१७आ, संपूर्ण, वि. १७८४, फाल्गुन शुक्ल, ११, शनिवार, प्रले. मु. आसाजी ऋषि (गुरु मु. नरसंघजी ऋषि); गुपि. मु. नरसंघजी ऋषि; अन्य. मु. जगावालजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. नियंठा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणा१ वेयर रागे३; अंतिः कषाय कुशीलना संखात गुणा. ९७१५७. (#) रतनचूडमनी चउपई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-५(१,१३,१५ से १६,२०)=१६, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १२४४८). For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदिः (-); अंति: संपद लील कल्याणो रे, ढाल-२४, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., ढाल-१ गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-१४ गाथा-१४ अपूर्ण तक, ढाल-१५ गाथा-२२ अपूर्ण से ढाल-१६ गाथा-२१ अपूर्ण तक, ढाल-१८ गाथा-२४ अपूर्ण से ढाल-२२ गाथा-१५ अपूर्ण तक व ढाल-२४ गाथा-२ से है.) ९७१५८. पुरंदर चरित, अपूर्ण, वि. १९१५, माघ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १२-१(१०*)=११, ले.स्थल. कोसाणा, प्रले. सा. उमेदा (गुरु सा. मानाजी); गुपि. सा. मानाजी (गुरु सा. लछुजी महासती); सा. लछुजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१०.५, १३-१६४३५-४५). पुरंदर चरित्र, मु. कुसालचंद, रा., पद्य, वि. १८९८, आदि: अनंत चौवीसी नित नमु; अंति: केवली वदे सौ परमाणो रे, ढाल-२०, संपूर्ण. ९७१६२. नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४१०.५, १२४३२-३७). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९५ अपूर्ण तक है.) ९७१६८.(#) कर्मापत्र चरित्र का व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५-१०(१ से १०)=५, प्र.वि. हुंडी:वाषा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११, १८४३७). कुम्मापुत्त चरिअ-व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: रंथ रुषमंडलमांहिथी उधरियौ, (पू.वि. "शुक्लधान रुपणी अग्नि करी घाती" पाठ से है.) ९७१७०. साधुवंदणा व चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, जैदे., (२२४१०.५, १४४३६-३८). १.पे. नाम. आगमोक्त साधुवंदणा, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण, वि. १८२४, ज्येष्ठ शुक्ल, १३. साधुवंदना तेरहढाला, मु. देवमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचभरत पंचएरव जाण; अंति: देवमुनि गुण संथुण्या. २. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १०आ-१६अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन-सूत्रार्थ विचारगर्भित, मु. चारित्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती वरसती सगतिरूप; अंति: चारित्र उदधि सुहंकरो, ढाल-११, गाथा-८१. ९७१७१ (+#) सप्तनय विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-२(१ से २)=११, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, १४-१६४३१-३४). सप्तनय विवरण-नैगमादि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नैगमनय वर्णन अपूर्ण से संक्षेपे द्रव्यभाव निश्चैव्यवहार वर्णन अपूर्ण तक है.) ९७१७२ (+) सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(६)=९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, १०४३३-३७). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५, ग्रं. १८८, (पू.वि. ढाल-६, गाथा-६७ अपूर्ण से ढाल-८, गाथा-८१ अपूर्ण तक नहीं है.) ९७१७३. (#) औपदेशिक सज्झाय-हिंसानिवारण, अपूर्ण, वि. १९५८, श्रावण शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ३०-३(१ से २,२९)=२७, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२२४११,१०४२७). औपदेशिक सज्झाय-हिंसानिवारण, रा., पद्य, आदिः (-); अंति: जीव मारे ते धर्म आछो नहीं, ढाल-६, (प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-२ गाथा-१५ अपूर्ण से है.) ९७१७४. पुन्यप्रकाश स्तवन व पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२३४११, १२-१३४२४-२९). १. पे. नाम. विरजिनवसनपुन्यप्रकास स्तवन, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण, वि. १८९५, पौष शुक्ल, ३, ले.स्थल. लुणावा, प्रले. पं. विनयविजय, प्र.ले.प. सामान्य. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०२. २. पे. नाम. पद्मावती आलोयणा, पृ. ६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २७७ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ९७१७५ (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८४४, पौष शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. योधपुर, प्रले. पं. ईश्वरसागर (गुरु पं. सत्यसागर गणि); गुपि.पं. सत्यसागर गणि (गुरु पं. रत्नसागर गणि); पं. रत्नसागर गणि (गुरु पं. विनीतसागर गणि); पं. विनीतसागर गणि (गुरु पं. भावसागर गणि); पं. भावसागर गणि (गुरु पं. वीरसागर गणि); पं. वीरसागर गणि (गुरु पं. ज्ञानसागर गणि); पं. ज्ञानसागर गणि (गुरु पं. प्रीतिसागर गणि); पं. प्रीतिसागर गणि (गुरु पं. विनयसागर गणि); पं. विनयसागर गणि (गुरु ग. सहजसागर); ग. सहजसागर (गुरु उपा. विद्यासागर गणि); उपा. विद्यासागर गणि; पठ. मु. गुमानचंद्र, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:सूत्रप०., सूत्रपत्र., संशोधित., जैदे., (२३४११, १२४४३-४७). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. ९७१७८. (+) वासुपूज्यस्वामी पुन्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. १९०१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले.स्थल. श्रीपुरबंदर, प्रले. शिवराम पानाचंद ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने संवत१९१ लिखा है वस्तुतः १९०१ होना चाहिए., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२३.५४११, १०४३२-३५). वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव जिनो; अंति: सिरि ___संघ सुखविजय लहो, ढाल-६१, गाथा-४५६. ९७१८१ (4) मृगापुत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११, ८x१५-१८). मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनगर सुहामणों; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ९७१८३. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-१(६)=९, कुल पे. १२, दे., (२३४१०.५, १२४३०). १.पे. नाम. पनरैतिथिरी थई, पृ. १अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १५तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम अविरति; अंति: (-), (पू.वि. चतुर्दशी तिथि स्तुति गाथा-२ अपूर्ण तक है.) । २.पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ७अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: अष्टसुख सानिध करे, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. शुक्लपक्षीकृष्णपक्षी स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. शुक्लपक्षकृष्णपक्षतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सासयने असासय चैत्यतण; अंति: सूरि लीला लब्धि लहंत, गाथा-४. ४. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचरूप करि मेरुशिखर; अंति: हरयो विघन हमारा जी, गाथा-४. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मु. महिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर भुवण; अंति: मुनिजिन महिमा छाने जी, गाथा-४. ६. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ.८आ, संपूर्ण. मु.ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधीये; अंति: ग्यानविनोद प्रसिद्ध, गाथा-५. ७. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ८. पे. नाम, एकादशी की थोइ, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तति, म. गणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: निवारो संघतणा निशदिश, गाथा-४. ९. पे. नाम. बीज की थोई, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहि परि मनोरथ माय, गाथा-४. १०. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी जिनपूजा; अंति: पूरे देवी सिद्धाई जी, गाथा-४. ११. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. मु. विजयदेवसरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजूसण पून्ये पाम; अंति: संतोषे गुण गायो जी, गाथा-४. १२. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शांतिजिन स्तवन-शांतिपुर मंडण, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिपुर मंडन प्रभु सोहै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक ९७१८४. (#) स्तवन, भास आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ११४२७-३८). १.पे. नाम. सेरीसापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शेरीसा, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: स्वामि सुहंकर श्रीसेरिस ए; अंति: नमुनमुं त्रिभुवन घणी, गाथा-१६. २. पे. नाम. थावचाकुमरनी भास, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. थावच्चाकुमार भास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: नयरी द्वारामती जाणीइ; अंति: देपो० तेह मुगति जाय, गाथा-१८. ३. पे. नाम. गुण गीत, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, मु. कवियण, पुहि., पद्य, आदि: वनि वनि कुसमि रुपइ भला; अंति: कवियण० करेणि गुणराचीई, गाथा-१५. ४. पे. नाम. आषाढभूतरिषि भावना, पृ. ४आ-८आ, संपूर्ण. आषाढभूति रास, मा.गु., पद्य, आदि: सिरि शांति जिणेसर भुवण; अंति: जीजी आषाढभूतिनी भावना, गाथा-८५. ५. पे. नाम. थूलिभद्रएकवीसु, पृ. ८आ-१२आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रएकवीसो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: आव्यो आव्यो रे जलहर; अंति: बोलइ अंगी निरमल थाईइ, गाथा-४२. ६. पे. नाम. दशार्णभद्र वधामणु, पृ. १२आ-१५अ, संपूर्ण. दशार्णभद्रराजा रास, आ. हीरानंदसरि, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीर जिणेसर पय नमी; अंति: सूरि० जिणवर वांदता ए, गाथा-३१. ९७१८५ (+) उपदेशचिंतामणि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१(१)=१३, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उपदेशचिं., उपचिंता., उपदेशचिंतामणि., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२४४११.५, १३४३८-४०). उपदेशचिंतामणि, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-१, गाथा-१४ अपूर्ण से अधिकार-४, गाथा-१३७ तक है.) ९७१८६. (+) मुनिपति चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७-१(२१)=२६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३२). मनिपति चौपाई, म. सिंहकल, मा.गु., पद्य, वि. १५५०, आदि: गोयम गणहर गोयम गणहर; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-५०७ अपूर्ण तक है.) ९७१८७. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२४.५४११.५, ११४३७-४३). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जसनइ वयणे जी, ढाल-८, गाथा-७६. ९७१८९ (+) सिद्धहेमचंद्राभिधान स्वोपज्ञ शब्दानुसासनलघुवत्ति अध्याय-४ पाद-४, अपूर्ण, वि. १५२४, आश्विन शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १९-३(१ से ३)=१६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १७४४८-५८). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघवत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, प.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., स्वाध्याय-३ पाद-१ से है.) For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९७१९१. (+) वीतराग स्तोत्र सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., जैदे., (२६X११.५, ९- १२X३०-३५ ). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १२वी आदिः यः परात्मा परं अंतिः फलमीप्सितम्, " प्रकाश २०. वीतराग स्तोत्र- अवचूरि, मु. विशालराजसूरि-शिष्य, सं., गद्य वि. १५१२, आदि जयति श्रीजिनो वीरः; अति ', व्याख्यात एवेति, प्रकाश-२०, ग्रं. ६२५. ९७१९२. विजयसेनसूरिश्वरलाभोदयनाम रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१ (१) = ६, प्रले. लालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४३८-४० ). सेनसूरि रास, ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६४९, आदि: (-); अंति दयाकुशल मनरंगि भासइं, गाथा - १३५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-२१ अपूर्ण से है.) ९०९९४ (क) शांतिनाथजिन वीनती स्तवन- चउदगुणठाणागर्भित, संपूर्ण वि. १९वी जीर्ण, पृ. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२६५११.५, ८-११४४०५१). शांतिजिन स्तवन १४ गुणस्थानकगर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि शांतिजिणेसर जग हित; अंति: वाचक मानविजय सुहंकरू, गाथा-८५. २७९ ९७१९७. (#) १८ पाप स्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७६१, फाल्गुन कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. पत्तननगर, प्र. मु. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x११, १३४३८). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि पापस्थानक पहिलुं कहि; अंति पदसेवक वाचकजस इम आख जी, सज्झाय १८, प्र. २११. ९७१९९. (+) गणधर पदस्थापना कथा-कल्पसूत्र अधिकारे, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. हुंडी : कल्पसूत्र अधीकारेछुटककथागणधरगौतम अधीकार, कल्पसूत्रछुटककथाओगौतमस्वामीनीकथा, टिप्पण पाठ., दे., (२३.५x११. १३३८-४०). गणधरवाद, मा.गु., गद्य, आदि: जंभीका नगरी रुजुवालीका; अंति: संघनी स्थापना कीधी. ९७२०० (+) महावीरजिन उपसर्ग कथा संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. हुंडी कल्पसूत्रेउपसर्ग कथा छुटक, टिप्पण युक्त 3 विशेष पाठ. दे., (२३.५४११, १३४३३-३८) " महावीरजिन उपसर्ग, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवंते दीक्षा लेईने; अंति: उपनुं मुगते पोहोता. ९७२०१. (+) मृगावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ७-१ (१) = ६ प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२३.५X१०.५, १५X४०-४५). १७२०२ (१) पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पू. ५, प्र. वि. हुंडी अतिचार, संशोधित. दे. (२३.५x१०.५, ११x२६-३२). युक्त विशेष मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १६६८, आदि (-); अति: (-) (पू.वि. बीच के पत्र हैं.. डाल-३, गाथा-११ अपूर्ण से ढाल १० गावा-७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only आवकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, ९७२०४. (+) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-२ (२,१०) = १३, प्र. वि. गोलचंद्र चिपकाए हुए हैं., संशोधित., जैदे., (२४X११, ९X३०-३४). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि जगजीवन जगवाल हो माता; अंति: (१)तुं जीवजीवन आधारो रे, (२) गिरुआ रे गुण तुम तणा, स्तवन- २४, गाथा- १२२, संपूर्ण. ९७२०५. (*) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८३०, आषाढ कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. कनकदुर्ग, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२३.५X१०.५, १६x४४-५०). वंदित्सूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि वंदितु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा - ५०. Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वंदित्तुसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: इह कृत सामायिकेन; अंति: वंदे जिनान चतुर्विंशतिं. ९७२०६. (+) नारचंद्र ज्योतिषशास्त्र-तृतीय मुहर्त्तप्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८६३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ३७-२९(१ से २८,३१)=८, प्रले. पं. जगरूप (खरतरगच्छ-भट्टारक); पठ. राम ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४१०,७४२८-३२). __ ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. श्लोक-९१ अपूर्ण से १०२ अपूर्ण तक व श्लोक-१११ अपूर्ण से है.) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. श्लोक-९१ अपूर्ण से है व ९४ अपूर्ण तक __लिखा है.) ९७२११. पाशाकेवली व पाशाढालन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४१२-३१). १. पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदि: १११ थानकथी लाभ पुत्र; अंति: सही शकुन श्रीकार छै. २.पे. नाम, पाशाकेवली मंत्र, पृ. ६आ, संपूर्ण. पाशाकेवली-पाशा ढालन विधि, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कुष्मांड; अंति: सत्यभाखे असत्य परिहरेत्, श्लोक-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन आरती, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह कृति ६अ पर दी है. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: आरती करि श्रीपास प्रभु की; अंति: भाइको विस्तार कहै प्रभुका, गाथा-६. ९७२१५ (+#) आनंदघन पंचोतरी, अध्यात्म गीता, औपदेशिक दहा व स्थापनाचार्य परीक्षाविधि, संपूर्ण, वि. १९०५, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ५, ले.स्थल. अमदावादनगर, प्रले. पं. सरुपचंद (गुरु उपा. हितप्रमोद, खरतरगच्छ, क्षेमशाखा); गुपि. उपा. हितप्रमोद (खरतरगच्छ, क्षेमशाखा); पठ. मु. सुगालचंद (गुरु पं. सरुपचंद, खरतरगच्छ, क्षेमशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आनंदघनबोतरी., आन०द्रुपद., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५४११.५, १८४४४-४९). १.पे. नाम, आध्यात्म पंच्योत्तरी, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण. आनंदघन गीतबहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: क्या सोवे उठि जाग बाउरे; अंति: मांनो यह जनरा घरो थको, पद-७८. २. पे. नाम. आध्यात्म गीता, पृ. ९अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक गीत, म. लब्धिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: जब लगे विषय विषया; अंति: जेणइ विषयवेल कटी, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. ९आ, संपूर्ण. औपदेशिक दहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: अजगर करे न चाकरी पंछी; अंति: मलूका कह गए सबके दाता राम, गाथा-१३. ४. पे. नाम. स्थापनाचार्य परीक्षाविधि, पृ. ९आ, संपूर्ण. स्थापनाचार्यजी परीक्षा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: नवमा पूर्वमांहे; अंति: लाई हाथी बंधाई. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: विद्या न हेया विदुषा; अंति: मार्य क्षुलिटा भवंति, गाथा-१. ९७२१७. (+) मानतुंगमानवती चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७-१(१)=१६, प्र.वि. हुंडी:श्रीमानवतीचोपई., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४४१०.५, १४४३६-४०). मानतुंगमानवती चौपाई, आ. सुंदरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७५०, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., खंड-१ ढाल-१ गाथा-५ अपूर्ण से खंड-३ ढाल-३ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ९७२१८ (+) आणंदश्रावकरी संधि व आद्रकुमार चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १८८४, चैत्र शुक्ल, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १२४३१-३५). १.पे. नाम. आणंदश्रावकरी संधी, पृ. १आ-१५आ, संपूर्ण, वि. १८८४, चैत्र कृष्ण, १४. For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमान जिनवर चरण; अंति: पभणइ मुनि श्रीसार, ढाल-१५, गाथा-२५२. २.पे. नाम. आद्रकुमार चोढालीयो, पृ. १६अ-२०आ, संपूर्ण, वि. १८८४, चैत्र शुक्ल, ४, बुधवार. आर्द्रकुमार चोढालियो, उपा. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: चरमजिणेसर नित नमी; अंति: रतनविमल० परि गावैरे, ढाल-५, गाथा-९१. ९७२१९. नेमनाथजीनो चोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. श्रीपार्श्वदेव प्रसादात्., दे., (२४.२४११, १३४३४-३८). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: सरसती चरण कमल नमी; अंति: दहा जयजयकार, चोक-२४. ९७२२० (+#) मानतुंगराजामानवतीराणी चोपई, अपूर्ण, वि. १७७४, नग चः जामित्र नदः तुर्य सहसानचः, ?, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. १७-११(१ से ११)=६, ले.स्थल. हालाग्राम, प्रले. पं. जीवनजी; गुपि. मु. मुनिसुंदर; गच्छाधिपति जिनउदयसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४१७, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १३४२८-३२). मानतुंगमानवती चौपाई, आ. सुंदरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७५०, आदि: (-); अंति: सुंदरसूरि० दिन लील विलास, (पू.वि. ढाल-३, गाथा-२ अपूर्ण से है.) ९७२२४ (+) माधवानल नाटक, संपूर्ण, वि. १७५६, श्रावण कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. बालापुर, प्रले. ग. माणिक्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२३४१०.५, १२-१४४४८-५०). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देवि सरसति देवि; अंति: नर सुख पामइ संसारि, गाथा-४७१. ९७२२७. (+#) महावीरजिन व नरकविस्तार स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(७)=७, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १५४४०). १. पे. नाम. सत्यावीशभवन गर्भित महावीरजीन स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, प्रले. मु. कल्याणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमल कमल दल लोयणा; अंति: शुभविजय शिष्य जय करू, ढाल-६, गाथा-७६. २. पे. नाम. नरक स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. नरकविस्तार स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमान जिन विनवू; अंति: रलीयामणुं प्रेमविजय जयकार, ढाल-६, गाथा-३४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४आ-८आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ गाथा-१५ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-२१ अपूर्ण तक नहीं है व ढाल-५ गाथा-१७ अपूर्ण तक लिखा है.) ९७२२८. (+) मयनएकादशीनो गुणणो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४११, १२४२३). मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को., आदि: जंबूद्वीप भरत अतीत; अंति: आरण्यकनाथाय नमः. ९७२२९ (+) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८८२, मार्गशीर्ष, १०, मध्यम, पृ. ११-१(५)=१०, ले.स्थल. हरिदुर्ग, प्रले. मु. भगवानचंद्र ऋषि (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११,१२४३८). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन प्रभु जाग रे, स्तवन-२४, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra " www.kobatirth.org २८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९७२३५ (+) कार्तिकसौभाग्यपंचमीमहात्म्यै गुणमंजरीवरदत्तकधानक सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १८१८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल. वाल्ही नगर, प्रले. ग. मुनिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X११, १२-१३X२७-३२). सूचक वरदत्तगुणमंजरी कथा- सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि श्रीमत्पार्श्वजिन; अति: मेडतानगरे, लोक- १४७. वरदत्तगुणमंजरी कथा- सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि श्रीफलवर्द्धिमंडण, अति एह श्रीमुनिराज कठै छई. ९७२३६. (+) जीवादि विविधद्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-१० (१ से ७,९ से ११) = १५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५११, १५X३५-४०). जीवादि विविधद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. चौथा आरा वर्णन अपूर्ण से देवद्वार वर्णन अपूर्ण तक है.) ९७२३७ (+) पद, सज्झाय, स्तवन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-२ (१,४)=९, कुल पे. २४, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३.५x११.५ १२-१४४३२-४५). १. पे. नाम औपदेशिक लावणी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. मु. २. पे. नाम. नेमिजिन लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जिनदास, पु,ि पद्य वि. १७वी, आदि (-); अति जिनदास लावणी गाई, गाथा-४. "" मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि में अबला अब जाण लाल तेरे; अंति: पडी चुक विनती जिनदासजी की गाथा- ६. ३. पे नाम औपदेशिक पद, पू. २आ, संपूर्ण पुहिं., पद्य, आदि: मान ले रलीया कोइ दिन; अंति: इण वीध पार उतारीयां, पद-५. ४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. अमीचंद, रा., पद्य, आदि: हरीयालो डुंगर प्यारो हे; अंति: अमीचंद० राजुल पार उतारो हे, गाथा-३. ५. पे. नाम. नवकारमंत्र पद, पू. २आ-३अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवकार मंत्र गीत, पुहिं., पद्य, आदि: मंत्र जपो नवकार; अंति: ध्यान धरोजी समर समर नवकार, गाथा ५. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. " औपदेशिक सज्झाय सत्कर्म, पुहि., पद्य, आदि आक धतुराना बोय रे अति भोंदु तू होय रे अग्यानी, गाथा-४, ७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सरण पकड़ी आंण प्रभु तेरी; अंति: प्रभु तेरी सरण पकड़ी आंण, गाथा-४. ८. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. श्राव. जीवनदास, पुहिं., पद्य, आदि हकीम घरि आइये हो वेद घरि अंति जीवनदास० चरणे चंद चकोर, गाथा-५. ९. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि अब मन मेरे से सुणि अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) " १०. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पू. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. जयैतादास, मा.गु, पद्य, आदि (-); अंति कहे जयैतादास रे, गाथा १४, (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण से है.) " ११. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि एक जो कुत्ता कु ते अति दुर्गंत में फिरे, दोहा-१५. १२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५आ-६अ, , संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि जेसेने तेसा मिल्या सुणीये अति एही गह गड एही गह गड, गाथा-४. १३. पे नाम. राशिफल वर्णन, पृ. ६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वृहमेष तन में लगी; अंति: मीन जल सके न उतर तेह, गाथा- ४. For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २८३ १४. पे. नाम. चोवीसी, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रावण शुक्ल, १४, मंगलवार, ले.स्थल. नाभा, प्रले. मु. रतनचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, म. आणंद, मा.ग., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमं; अंति: तासु सीस भणै आणंद, गाथा-२९. १५. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. म. लालविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: जै जै आदि सदा अरिहंत; अंति: लालविनोद० रमणी पाईये, गाथा-५. १६. पे. नाम, ग्यानपचीसी, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. ज्ञानपच्चीसी, मु. उदयकरण, पुहिं., पद्य, आदि: सुरनर तिर्यग् जोनि; अंति: बुझावत आपको उदैकरन के हेत, गाथा-२४. १७. पे. नाम, अरणकमुनि सज्झाय, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सिधो जी, गाथा-८. १८. पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. दहा संग्रह-विविध विषयक , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कोई उदास रहै प्रभु; अंति: कछु धोखा नांहि राम की, गाथा-६. १९. पे. नाम. नेमराजुल लावणी, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण, वि. १८९०, ले.स्थल. कोटला, प्रले. मु. रतनचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुम तज करि राजुल नार; अंति: जिनदास सुनो जिनवर रे, गाथा-४. २०. पे. नाम. रहनेमिराजमती मंगल-गाथा-५८ से ८२, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण, ले.स्थल. कोटला, प्रले. मु. रतनचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमराजिमती विवाहलो, म. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: इस भव का लाहा लीजइ, प्रतिपूर्ण. २१. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण, मा.गु., पद्य, आदि: लोभी गुरु इम कहै तु मेरी; अंति: उसने लुटो रे खावो, गाथा-५. २२.पे. नाम, औपदेशिक रेखता, पृ. ११आ, संपूर्ण. जादराय, पुहिं., पद्य, आदि: खलक इक रेणका सुपना; अंति: जादराय मोहि तारा, गाथा-५. २३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. आनंदराम, पुहिं., पद्य, आदि: छोटी सी जान जरा सा; अंति: सुखसंपति अतिकरणारे, गाथा-३. २४. पे. नाम, संतान प्राप्ति मंत्र साधना विधि, पृ. ११आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ आसबीर कार्य एही कीजे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ "दूजानो नहीं देवणो सही सत्य छै" तक लिखा है.) ९७२३८, (+) शेजा उद्धार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:शेजाउद्धार, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४११, १२-१३४२५-३७). शत्रुजय उद्धार, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरवर विमल गिरव; अंति: नित करेवा देह दंशण जय करो, ढाल-६, गाथा-१२२. ९७२३९ (+) अष्टप्रवचनमाता कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. हुंडी:छु सामा०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १२-१४४३०-३५). अष्टप्रवचनमाता कथा संग्रह, सं., पद्य, आदि: साधुना समित्यादयः पालनीया; अंति: शास्त्रेभ्यो ज्ञेयावाश्च. ९७२४४. (+#) मानतुंगमानवती चोपाई, संपूर्ण, वि. १८०१, चैत्र कृष्ण, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३१, प्रले. मु. प्रेमविजय (गुरु आ. हर्षचंद्रसूरिश्वर, पूनिमगच्छ); गुपि. आ. हर्षचंद्रसूरिश्वर (पूनिमगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मानतुंगमानवती, संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१०.५, १६x४२-४८). For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: मोहन० घरि मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१०१७, प्र.ले.पु. सामान्य. ९७२४५. वीरिजिन उपदेश, संपूर्ण, वि. १९३३, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. गुमानविजय (गुरु ग. खंतिविजय); गुपि. ग. खंतिविजय (गुरु पं. उत्तमविजय); पं. उत्तमविजय (गुरु पंन्या. कांतिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४११.५, १०४३०-३५). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: बीजेभव वरथानक तप; अंति: कोई नये न अधूरी रे, पूजा-९. ९७२४६. गजसुखमालदेवकी चोपी, जीवउतपती सीझाय व नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. ३, प्रले. पं. राजेंद्ररुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११.५, १५४४०). १. पे. नाम. गजसुखमालदेवकी चोपी, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, वि. १८८९, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, ले.स्थल. पेठनागडा. गजसुकुमालमुनि चौपाई, मु. लावण्य, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: अरिष्टनेमी नामे हुआ लक्षण; अंति: लावण्य० दिन जांणहो, ढाल-११, गाथा-१२८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पृ. ६अ-८अ, संपूर्ण, वि. १८८९, ज्येष्ठ शुक्ल, ६. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपत जोज्यो आपणी मन; अंति: कहै मुनि श्रीसार ए, गाथा-७१. ३. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण. म. केशरकशल, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर जिणेसर इम भणे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) । ९७२५२. (+) शोभन, विमलाचलगिरि व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:स्तुति., संशोधित., दे., (२३४११.५, १५४४२). १.पे. नाम. शोभन स्तति, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. २.पे. नाम. विमलाचलगिरि स्तति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्यतीर्थ; अंति: सुरास्ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आनंदानम्रकम्रत्रिदश; अंति: विघ्नमर्दी कपर्दी, श्लोक-४. ९७२६० (+) पंचपरमेश्वरचैत्यवंदन नमस्कार सह बालाबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. संशोधित., ., (२२४११, ११४३०-३३). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: णमो लोए सव्वसाहणं, पद-५. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: इच्छं इच्छामि खमासमणो; अंति: वंदना सदा सर्वदा होइ. ९७२६२ (+) विमलाचलतीर्थमाला स्तवन व सिद्धचक्रजीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२२.५४१०.५, ११४२७). १.पे. नाम. विमलाचलतीर्थमाला स्तवन, प. १आ-१४अ, संपूर्ण, वि. १८६९, कार्तिक शुक्ल, १४, ले.स्थल. सीरोही नगर, प्रले. पं. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. शत्रुजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: जगजीवन जालम जादवा; अंति: नित नमो गिरिराया रे, ढाल-१०. २. पे. नाम. सिद्धचक्रजीरो स्तवन, पृ. १४अ-१५अ, संपूर्ण.. सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १४१७, आदि: सकल सुरासुर सेवित; अंति: सुविधिविजेय सुपसाय, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९७२६४ (+#) स्तुति, स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३०-११(४ से ५,८ से १३,१६ से १८)=१९, कुल पे. ३३, प्रले. पं. लब्धिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१०.५, १४-१८४३४-४७). १.पे. नाम. उत्तराध्ययन सज्झाय, पृ. १अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १८०७, फाल्गुन कृष्ण, ८, ले.स्थल. रामसेन्यनगर, पठ. ग. रत्नविजय (गुरु ग. शांतिविजय); गुपि.ग. शांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीमहावीर ऋषभ प्रासादात. उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्त धरी; अंति: रे जे थकी नवनिध थाय, सज्झाय-३६, (पू.वि. अध्ययन-१८ गाथा-१ अपूर्ण से अध्ययन-२७ गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. विजयरत्नसूरि सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. रत्नसूरि सज्झाय, म. दौलतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी मनधरी रे लाल; अंति: दौलत द्यौ हितआणंद, गाथा-६. ३. पे. नाम. अढार पापस्थानक सज्झाय, पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १८ पापस्थानक परिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: वंदियो भवियण प्राणी, ढाल-१८, ग्रं. ३५०, (पू.वि. परपरिवाद परिहार सज्झाय, गाथा-६ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. २१ बोल-सबल दोष, पृ. १४आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: हत्थकम्म करेमाणे सबल; अंति: पडिगहता भुजमाणे, (वि. आदि एवं अंतिमवाक्य वाले भाग खंडित हैं.) ५. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१६, आदि: चिदानंद चित चिंत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५२ अपूर्ण तक है.) ६.पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. १९अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राम० लहीयै उत्तम ठाम, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. आगम, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: साहिबा तुं थलवटनो रे; अंति: करजोडी आगम नित नमै, गाथा-९. ८. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १९अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभु तुम सेवना; अंति: निरवहयो साचो नेह, गाथा-५. ९. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १९आ, संपूर्ण. ग. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज उछरंग रसरंग मंगल; अंति: तुम वीस्तरी जगत आखै, गाथा-९. १०. पे. नाम. रुषमणिसती सज्झाय, पृ. १९आ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम; अंति: जाइ राजविजे रंगे भणे, गाथा-१४. ११. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २०अ-२१अ, संपूर्ण, वि. १८०७, फाल्गुन कृष्ण, २, पे.वि. प्रत चिपके हुए होने के कारण प्रतिलेखक नाम अवाच्य है. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्या रे; अंति: लहे ते ___ मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-२५. १२. पे. नाम. विजयधर्मरि सज्झाय, पृ. २१अ, संपूर्ण. धर्मसूरि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पूज्यजी पधारो हो मरुधर; अंति: (-), गाथा-१२, (वि. पत्र चिपके होने के कारण अन्तिम वाक्य अवाच्य है.) १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. २१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १८०६, आदि: (-); अंति: सुंदर कहै कर जोड हो, गाथा-११, (वि. चिपके हुए पत्र होने से आदिवाक्य अवाच्य है.) १४. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हिवे एकादशी तप तणौ माधवजी; अंति: घनै घर दीइ एम आपीयए, ढाल-३, गाथा-२८. १५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २२अ, संपूर्ण.. मु. करमचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकरण प्रभु विरद धरावो; अंति: करमचंद्र०आपणो जांणी रे, गाथा-५. १६. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सौरीपुर नगर सुहामणो; अंति: मनरूप प्रणमु पाय, गाथा-१५. १७. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. २२आ-२३आ, संपूर्ण. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे सुणो, ढाल-६, गाथा-४९. १८. पे. नाम. सुमतिकुमति सज्झाय, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सदा सुलेणी वीनवे; अंति: सेवक नय कहे आज सुहंकर, गाथा-१३. १९. पे. नाम. मदरेखासती सज्झाय, पृ. २४अ, संपूर्ण. मदनरेखासती सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: लघु बंधव जुगबाहूनो; अंति: हुं वांदु त्रिणकाल, गाथा-७. २०. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. २४अ-२५अ, संपूर्ण, प्रले. पं. लब्धिविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य. नेमिजिन स्तवन-ज्ञानपंचमीपर्व, ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शारद मात पसाउले निज; अंति: दयाकुशल आणंद थयो, ढाल-३, गाथा-३०. २१. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन-सौभाग्यपंचमी माहात्म्यगर्भित, पृ. २५अ-२८आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-सौभाग्यपंचमी महात्म्यगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: प्रणमुंपवयणदेवी रे; अंति: कांति० पामीइं मंगल घणो, ढाल-९. २२. पे. नाम. स्थूलिभद्रऋषि सज्झाय, पृ. २८आ, संपूर्ण, वि. १८०७, चैत्र शुक्ल, १५, ले.स्थल, स्याणा. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहण चोमासे; अंति: दिन दिन सुख सवाया हो, गाथा-११. २३. पे. नाम. विजयदेवसूरि भास, पृ. २८आ, संपूर्ण. देवसूरि भास, ग. रंगकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: कांमणगारो रे गुरुजी; अंति: रायनो रंगकुशल करजोडि, गाथा-६. २४. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. २९अ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंति: साधुने कोइ न तोले हो, ढाल-३, गाथा-१३. २५. पे. नाम. पद्मप्रभुजिन स्तवन, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, म. हितविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभुजीस्यू; अंति: भेट्या श्रीभगवंत, गाथा-१२. २६. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. २९आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहो रहो रहो वालहा; अंति: उपझायनो सीस जंपै सुखकार, गाथा-५. २७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २९आ, संपूर्ण. मु. नेम, मा.गु., पद्य, आदि: वारु वारु रे म्हारा; अंति: नेम० करी मानो हो राज, गाथा-५. २८. पे. नाम. शत्रंजयतीर्थ स्तति, पृ. २९आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकमंडण पाय; अंति: सौभाग्य० सुखकंदा जी, गाथा-१. २९. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३०अ, संपूर्ण. म.नित्यरंग, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ मन हीर धरै तुम साथें; अंति: नित्यरंगै० गाया हो. गाथा-९. ३०. पे. नाम. १० प्रत्याख्यानफल सज्झाय, पृ. ३०अ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविध प्रह उठी; अंति: पामी निश्चै निर्वाण, गाथा-८. ३१. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३०अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २८७ मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलग अजित जिणंदनी; अंति: मोहन० जिन अंतरजामी, गाथा-५. ३२. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण.. ___वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु तोरी वाणी सुणी; अंति: मुज तुज ध्यानमां, गाथा-१०. ३३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३०आ, संपूर्ण. ग. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारं मन मोह्यं रे; अंति: रामविजय नितमेव, गाथा-१३. ९७२६६. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८४६, आश्विन शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. सोजत, प्रले. सोमेश्वर रामजी दवे श्रीमाली (पिता रामजी रूपदत्त दवे),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पाशाकेवली शिवमाणकेश्वर प्रसादात्, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२३.५४११.५, १२४३२). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: कुलीनाय जितात्मने, श्लोक-१८४. ९७२६९. अभयकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४११, १५४४१). अभयकुमार चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-१३ गाथा-४ तक है.) ९७२७४. नवस्मरण व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. २, प्रले. पं. कल्याणविजय; पठ. मु. हीराचंद; मु. रतनचंद; मु. लालभाई (गुरु आ. रायचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सातेस्मरण, दे., (२२.५४११.५,१३४२६-२९). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ-१८अ, संपूर्ण. मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: अचीरान्मोक्षप्रतिपद्यते, स्मरण-९, (वि. उवसग्गहर स्तोत्र नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १८अ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ९७२७८. (#) सभाषित संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१(६)=११,प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ७४३९). सभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: राज्यनिः सचिवंगतः प्रहरण; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-१ से ५० अपूर्ण तक व ६२ अपूर्ण से १२४ अपूर्ण तक है.) सुभाषित श्लोक संग्रह- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: राज्य प्रधान विना न सोभे,; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ९७२८०. (4) पाराजा पवाडा आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, २०४४२). १. पे. नाम. पाजीरा दहा, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. पाराजा पवाडा, मा.ग., पद्य, आदि: देवी द्यो वरदान मुण तो यू; अंति: सौइ कहै लधीयो देवी हुकम, गाथा-३०१. २. पे. नाम. उदयराज बावनी, पृ. ५आ-८अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पाटोधि, प्रले. पं. माना, प्र.ले.पु. सामान्य. अक्षरबावनी, मु. उदैराज, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: ॐकाराय नमो अकल अवतार; अंति: तिको अनैक वातां कहे, गाथा-५९. ३. पे. नाम. उसवाल कवित, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. ओसवाल गोत्र उत्पत्ति कवित्त, मु. भूरभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम राज करै परमार; अंति: भूरभद्र० ओसवाल थिर थपिया, गाथा-१३. ४. पे. नाम. संध्यावती कवित्त, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. समधर, पुहिं., पद्य, आदि: संझ्या वंदण फुर वयण कर; अंति: कहै साइ सुप्रसन संझ्यावती, गाथा-४. ५. पे. नाम. लंणीयागौत्र उत्पति, पृ. ९अ, संपूर्ण. लूणीयागोत्र उत्पत्ति सज्झाय, मु. देवीदास, मा.गु., पद्य, आदि: सुबधि भंडार मात सरसती; अंति: विरदाधिपति दीपै देवीदास, गाथा-१८. ६. पे. नाम. लूणीयागौत्र उत्पति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लूंणीयागोत्र उत्पत्ति सज्झाय, मु. देवीदास, मा.गु., पद्य, आदि: जिण वंस मानवजौन धारी हुआ; अंति: देवीदास सुजस० सबद कहे, गाथा- ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७. पे. नाम भावनाविलास, पू. ९आ- १२आ, संपूर्ण, १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुर्हि, पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमि चरणजुग पास अंतिः बुद्धि न होइ विरुद्ध, गाथा - ५२. " ९७२८१. (*) स्तवन चौवीसी, संपूर्ण वि. १८४६ पौष शुक्ल १४, मध्यम, पू. १२ ले स्थल. जैतारणनगर, प्रले. पं. अमृतसागरः पठ. पं. खेमचंद्र (बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२३.५X११, १०X३६). २४ जिन स्तवन, ग. फतेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि हां रे माहरा आदि जिणंदनी अंति: फतेंद्र० ध्रुवपद सुखसार रे, स्तवन- २४. ९७२८२. पडिकमणुं षटआवस्यक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८१७, मध्यम, पृ. ३९-१६ (१ से ३५ से १५,३४,३८)=२३, ,जैदे., ( २३X११, ५-९X३१-४०). साधुभावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अति आराहीये आणाए अणुपालअ भवइ, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., देवसीक प्रतिक्रमण स्थापना आदेश अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९७२८३. (*) सुव्रतामुनी एकादसी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. हुंडी : मीनएकादशी कथा, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., ( २४.५X१०.५, १२-१४x२९-३५). मौनएकादशीपर्व व्याख्यान - सुव्रत श्रेष्ठिकथायां प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि ग्रंथादी ग्रंथमध्ये अति सिद्धि मुगती. ९७२८४. अजितशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, दे., ( २१x११.५, ७१५). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजि अजिअ सव्वभयं संत; अंति: अजिअसंति जिणनाहस्स, गाथा-४२. ९७२८७. (#) ज्योतिषसारोद्धार व लग्नवर्णं, संपूर्ण, वि. १८२८, ज्येष्ठ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. पं. लब्धिविजय गणि; पठ. पं. हर्षविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१X११, १६-१७X३८-४२). १. पे. नाम. ज्योतिषसारोद्धार, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: तं नमामि जिनाधीशं; अंति: स्थापनंस्मृतं, अध्याय-३, श्लोक-१५४, ग्रं. ५००. २. पे. नाम. लग्नवर्ण-लोक, पृ. ६आ, संपूर्ण. ज्योतिषश्लोक, सं., पद्य, आदि: अरुणशित हरीतपाटल; अंति: मलिनारूचयो यथा संख्यं. " ९७२८९ (*) नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १८-११ (१ से ११) ७. पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२३.५x१०.५, १४४३१-३५ ). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा. प+ग, आदि (-); अति (-), (पू.वि. पाठ "उगाहाइ नो चेव णं" से पाठ "सुमीर्ण पासाजी ताणं" तक है.) ९७२९१. (*) स्नात्रपंचाशिका कथा अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पू. १७-६ (११ से १६) =११, पठ. ग. शिवविमल (गुरुग, धनविमल); गुपि. ग. धनविमल (गुरु आ. आणंदविमलसूरि); आ. आणंदविमलसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६X११, १७-१९X५३-५८). स्नात्रपंचाशिका-कथा, प्रा., सं., पद्य, आदि: नत्वा प्रथमसावद श्री; अंति: सतिहा अहिभाग पलिअस्स, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ९७२९२ (+) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-५ (१ से ५ ) = १०, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६ ११, १३X१७-३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि (-); अति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं है. गाथा-७५ अपूर्ण से २५३ अपूर्ण तक है.) 3 For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९७२९३. (d) अष्टोत्तरी स्नात्रविधि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१०.५, १०X३९). अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु. सं., पग, आदि: तिहां प्रथम उपगरण अंतिः प्रमुख धर्मकरणी करी. ९७२९४. सदेवछसावलिंगा वार्ता, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९-१ (३) -८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं है, जैदे., (२३.५X१०.५, १३X३३-३७). सदेववत्स सावलिंगा दोहा, क. संघकविसर, मा.गु., पद्य, वि. १७९७, आदि: सात लाख संधरायवंगषटख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण से गाथा-५४ अपूर्ण तक व गाथा-१८४ अपूर्ण से नहीं है.) ९७२९६. (+) श्रीपाल रास-सिद्धचक्रमहिमाया नवपद आराधन, संपूर्ण वि. १७८२ वैशाख शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल, वटपद्र नगर, प्रले. पं. इंद्रविजय (गुरु ग. पद्मविजय); गुपि. ग. पद्मविजय (गुरु पं. संघविजय गणि) पं. संघविजय गणि (गुरु पं. भावविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. बाद में पं. तिलोकचंदरी परत छे. लि . मु. रतनचंद लिखा है. हुंडी : श्रीपालरास, संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२३.५४१०.५, १८४४४-४६). "" २८९ श्रीपाल रास - लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य वि. १७४२, आदि: चडवीसे प्रणमु जिनराय; अति सुणतां सदा कल्याण, " ढाल - २०, गाथा - २८४. ९७२९८ (+) स्तवनचीवीसी व गुहली संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७९, कार्तिक शुक्ल, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. १६-२ (११, १३) -१४, कुल पे. १३, ले.स्थल. जावालनगर, प्रले. पंन्या. देवेंद्रविजय; अन्य. पंन्या. केशरविजय (गुरु पंन्या. देवेंद्रविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४४१०, १०-१३३०). १. पे नाम. स्तवनचीवीसी, पू. १अ १०आ, संपूर्ण आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मनमधुकर मोही रह्यो रिषभ; अंति: जिनराज० आप समानो रे, स्तवन- २४. २. पे नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: इणि परिभाव भगति मनि आणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम औपदेशिक गहुंली. पू. १२अ संपूर्ण प्रले. पं. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. प्रारंभ में वीरविजय कृत स्थूलभद्र सीयलवेल सज्झाय" की मात्र प्रतिलेखन पुष्पिका है. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर मारगमां वसिया; अंति: श्रीशुभवीर चरण नमती, गाथा- ९. ४. पे नाम. गुरुगुण गहुली, पृ. १२आ, संपूर्ण. गुरुगुण भास, आ. विजयमहेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अहो सखी संजममा रमता अति: महेंद्रसूरि सुख पावे, गाथा-८. ५. पे. नाम महावीरजिन गहुंली, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि जग उपकारी रे वीर, अंति (-), (पू.वि. गाधा-३ अपूर्ण तक है.) ६. पे. नाम जंबूस्वामी गुहली, पृ. १४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. जंबूस्वामी गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: सुणि पामें शिवराज, गाथा- ७, (पू. वि. गाथा ६ अपूर्ण से है.) ७. पे नाम. जिनवाणी गहुली, पृ. १४अ संपूर्ण. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमृत सरखी रे सुणीए अति प्रभुने प्रभुता दीजे, गाथा ७. ८. पे नाम. द्रव्यभावनी गुहली, पृ. १४आ, संपूर्ण द्रव्यभावना गहुंली, आ. उदयप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि परम प्रभातें उठीने रे, अंति: उदयप्रभु अविचलराज रे, For Private and Personal Use Only गाथा-७. ९. पे. नाम महावीरजिन गहुंली. पू. १४-१५अ संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मारो दीइ छे अति ग्यांनसागर दरिशन जयजयकार, गाथा-७. १०. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. १५-१५आ, संपूर्ण. महावीर जिन भास, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती मात मया करी; अति रूपने कोड कल्याण, गाथा ८. Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११. पे. नाम, विजयलक्ष्मीसूरि गहुंली, पृ. १५आ, संपूर्ण. म. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: आर्यदेश नरभव लह्यो; अंति: भाग्यलक्ष्मी गुण जाण, गाथा-६. १२. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. १६अ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवयणे अनुरंगी मुनि; अंति: विजयलक्ष्मी० वरता रे, गाथा-६. १३. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. महावीरजिन भास, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आया रे गुणशैल; अंति: लक्ष्मीसूरि गुणठाण, गाथा-५. ९७३०० (+#) चंदराजा चोपी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४६-२३(१ से १३,१५,१७,२३ से २४,२७,४० से ४३,४५)=२३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. हंडी:चंदरी चोपी., चंदचोपी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १४-१६४२७-४४). चंद्रराजा रास, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-३ ढाल-२१ गाथा-२ अपूर्ण से खंड-४ ढाल-१८ गाथा-४ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९७३०१. नवतत्व चोपई व सम्यक्त्वपच्चीसी की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७९८, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. उंडनगर, प्रले. मु. थिरविजय (गुरु मु. न्यानविजय); गुपि. मु. न्यानविजय (गुरु पं. गजविजय); पं. गजविजय (गुरु पं. जिनविजय); पं. जिनविजय (गुरु भट्टा. विजयदेवसूरि); भट्टा. विजयदेवसूरि, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. श्रीशांतिजिन प्रशादात्., जैदे., (२५४१०.५, १६-१७X४२-४६). १. पे. नाम. नवतत्त्व चौपाई, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. म. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिनेसर प्रणमी; अंति: गणतां संपति कोडि, ढाल-९, गाथा-२०४. २.पे. नाम. सम्यक्त्वपच्चीसी की अवचूरि, पृ. ७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः यथा येन प्रकारेण; अंति: (-), (पू.वि. पाठ "जीवोकम्मट्ठिपहोदीहो यंठिअभयट्ठाणंरा" तक है., वि. मूल पाठ का प्रतीक मात्र है.) ९७३०३. (+#) माधवानल चउपई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-१७(१ से १७)=७, प्रले. कृष्ण; लिख. मु. रुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३३-४३). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: (-); अंति: कुशललाभ० पामे संसार, गाथा-५५२, (पू.वि. गाथा-२४२ अपूर्ण से है.) ९७३०७. (#) दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१०.५, ११४३३-३५). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: सकल संघ सुजगीसो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. ९७३०८. (#) काजलमेघा चौढालिया-गोडीजीपार्श्व, संपूर्ण, वि. १८७६, कार्तिक शुक्ल, मध्यम, पृ. ११, प्रले. मु. भोगा (गुरु पं. माणिक्यमेरु); पठ. मु. लाधा (गुरु मु. भोगा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगौडीराय प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ९४२४-२८). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: भावधरी भजना करी आपें; अंति: प्रणमुं प्रणीत कर जौड, ढाल-१५, गाथा-१३६. ९७३१० (#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-१२(१,३ से ८,१० से १४)=१२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१०, १३४३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. भगवान महावीर के गर्भावतरण से भगवान महावीर के अनगार की अवस्था का वर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नही हैं.) ९७३१२. (+#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ११, प्र.वि. हुंडी:स्तवनपत्रम., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०, ११-१२४२८-३२). १. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २९१ शांतिजिन स्तवन, आ. कीर्तिसरि, पुहिं., पद्य, वि. १७२३, आदि: सकल मुरत श्रीशांतिजि; अंति: कीर्तिसूरि उच्छाहै, गाथा-११. २.पे. नाम, गौतमस्वामी सिझाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर श्रीवर्धमान; अंति: मेघराज मुनि सुजस कहे, गाथा-९. ३. पे. नाम. वरकाणापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काई जीव तुं मन मै कस कै; अंति: पसाइ प्रभु रंगरली, गाथा-९. ४. पे. नाम, चौवीसीजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. २४ जिन अष्टक, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अविचल थानक पहुता; अंति: पभणे श्रीउदैसागरसूरि, गाथा-८. ५.पे. नाम. नवकार स्तवन, पृ.३अ-३आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टलब्धि नवनिधि; अंति: जीवदया प्रतिपाल, गाथा-५. ६. पे. नाम. दानसीलतपभावना सिझाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जीन धर्म कीजीए; अंति: समयसुंदर० भवनो जी पार रे, गाथा-६. ७. पे. नाम, सामायिकफल सिझाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. सामायिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: सामायिक मन शुद्ध कर; अंति: यिक व्रत पालउ निशदीस, गाथा-५. ८. पे. नाम. सोलसती स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सीतल जीणवर करु परणाम; अंति: जगीस तेह भणी समरो निस दीस, गाथा-५. ९. पे. नाम, रिषभजिन स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी ऋषभदेव अरिहंत; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. १०. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: आपो आप तुठा, गाथा-७. ११. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: गुणसूर० सुवसुख पावइ, गाथा-२१. ९७३१३. (+) पट्टावली व दशमत उत्पत्ति, संपूर्ण, वि. १८५०, कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, पठ.पं. कल्याणसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पट्टावली, संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १५४३३-३६). १. पे. नाम. पट्टावली, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण.. पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: चिरंजीवी भूयात्. २. पे. नाम, दशमत उत्पत्ति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. १० मत स्वरूप, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: वीरात् ६०९ वर्षे सहसमल्ल; अंति: पार्श्वचंद्रमत उत्पत्तिः. ९७३१४. (+) राचाबतीसी, अखरबतीसी, जोगपावडी व प्रहेलिका हरीयाली आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३७-४५). १. पे. नाम, राचाबत्तीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. श्राव. राचो, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा जागिरे सूवइ काइ; अंति: रुडां कहै छे राचो, गाथा-३२. २. पे. नाम, अखरबतीसी, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. अक्षरबत्तीसी, मु. महेश, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: कका ते किरिया करी; अंति: मुनि महेस हित जाण, गाथा-३४. For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. योगपावडी, पृ. ३अ ५आ, संपूर्ण, वि. १७७८, वैशाख कृष्ण, १२, बुधवार, ले. स्थल. फलवर्धिगोरखनाथ, मा.गु., पद्य, आदि क्रोध लोभ दुरि परिहर अंति: गोरख० परमपद पावें, गाथा- ६९. ४. पे. नाम. प्रहेलिका हीयाली, पृ. ५आ, संपूर्ण, पठ. सा. किसनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रहेलिका हरीयाली, मु. गुणरत्नविजय कवि, पुहिं., पद्य, आदि: मापति वाहण तास भख्य तस; अंति: गुणविजे०साइ नारि अछई कवण, गाथा- ३. ९७३१७. (#) चौद स्वप्न सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (२३.५X१०.५, १७४४६). कल्पसूत्र - हिस्सा १४ स्वप्न विचार, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि तिसलाए खत्तियाणी वासो अंति पायपीढी याढीयाघीहेट्ठी. ९७३१८. कल्याणमंदिर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६ दे. (२४४११, ९-१०x२३-२६). कल्पसूत्र - हिस्सा १४ स्वप्न विचार बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि देवाणंदा ब्राह्मणी सयणा, अंति: संभारां सुपन संभारीनइ. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अति कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ९७३१९. (+) कल्याणमंदिर का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १७२३, माघ शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. ६, पठ. श्रावि. नवरंगदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४X११, ९X२५). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम ज्योति परमातमा; अंतिः कारन समकित शुद्धि, गाथा ४४. " ९७३२० (+*) नलदवदंतीचरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४४१०, १५X३८-४२). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि सीमंधरस्वामी प्रमुख अंति: (-), (पू.वि. खंड-५ डाल-२ गाथा ३ तक है.) ९७३२२. (+) नेमरासो, संपूर्ण, वि. १८१८, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. रायपुर, प्रले. मु. छाजुजी ऋषि; पठ. सा. कुसलाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी जीहुरास., नेमजीकोरास., संशोधित. जैवे. (२३.५x१०, १०-१२x२८-३२). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि सारद पाय प्रणमी करी नेम, अंतिः पुण्यरतन० नेमिजिणंदकि, गाथा - ६४. ९७३२३. (+#) पापबुद्धि राजा धर्मबुद्धि मंत्री रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-६ (२ से ७) = ८, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ अंश खंडित है, जैवे. (२३.५४१०, २०४४५-४८) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि प्रथम जिणेसर परगडो; अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., डाल-३ गाथा- २ अपूर्ण से डाल- १८ गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं है व डाल- ३८ गावा-९ अपूर्ण तक है.) ९७३२५. (*) आणंदश्रावक संधि, संपूर्ण वि. १७८९, आषाढ़ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २१, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४१०.५, १०X३३). For Private and Personal Use Only आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्म, वि. १६८४ आदि : वर्द्धमान जिनवर चरण; अंति: पभणइ मुनि श्रीसार, ढाल- १५, गाथा - २५२. ९७३२६. (*) मंगलकलसचतुप्पदी-धर्माधिकारे, संपूर्ण वि. १७४७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १. शुक्रवार, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल. गुढा, प्रले. मु. उदयरत्न (गुरु पं. विनयरत्न); गुपि. पं. विनयरत्न (गुरु उपा. भीमाजी गणि); उपा. भीमाजी गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैये. (२४.५४१०.५, १५×५६-६१). मंगलकलश चौपाई. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि पास जिनेसर पर कमल; अंति: जिनहरष० गुणवंत, ढाल - २१. Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९७३३०. (+#) केलीशीयलवेलीथलिभद्रस्य, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १६x४४). स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजिन; अंति: विमला कमला वरस्ये रे, ढाल-१८. ९७३३१ (+) तेरापंथ चर्चा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रले. मु. दलपतराय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १४४४०). बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: १ पांच सै मुनीसर होवै; अंति: ओर ग्रंथांतर सै जाणना, संपूर्ण. ९७३३२ (4) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(७)=८, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३४३५-३९). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति स्तवन गाथा-७ अपूर्ण से २४ अपूर्ण तक, बृहच्छांति अन्त के पाठ व कल्याणमंदिर नहीं है.) ९७३३८. (+) शे@जयगिरिउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १८३९, फाल्गुन शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, ले.स्थल. कोसाणा, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२३४१०.५, १३४२५-३०). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: दर्शन जय करो, ढाल-१२, गाथा-११८, ग्रं. १७०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-१ गाथा-५ अपूर्ण से है.) ९७३४१. (+#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(२)=५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४६-४९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण से ६३ अपूर्ण तक व गाथा-१९५ अपूर्ण से नहीं है.) ९७३४२ (+) गणठाणा द्वार, अपूर्ण, वि. १८८५, ?, आश्विन कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १४-४(१ से ४)=१०, ले.स्थल. कुचामण, अन्य. शिवदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:४९दुवार., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १५४३३). १४ गुणस्थानक ४१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अल्प बहुत्वद्वार, (पू.वि. पाठ "निद्रा तेहनो घणी मरीने सातमी नरग" से है.) ९७३४५. (+) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १३४४२). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: जैनं जयति शासनं, स्मरण-९, (वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं लिखा है.) ९७३४६ (+) शालिभद्रजी व विमलसाहरो सिलोको, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४१०, १४४२९-३२). १.पे. नाम. शालिभद्रजीरो सिलोको, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण. शालिभद्रधन्नाजी शलोको, म. सिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: सरसति सांमण समरूं; अंति: राजे सिंहमुनि गाया, गाथा-१४७. २. पे. नाम. विमलसाहरो सिलोको, पृ. ९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. विमलशाह सिलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरु बे कर जोडी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ९७३४७. (+) नेमनाथराजिमती शीलरास, संपूर्ण, वि. १७३९, आश्विन कृष्ण, ४, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, १८४४०-४२). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: पहिलुं प्रणाम करूं; अंति: वीनवइ इम श्रीअजितदेवसूर, गाथा-७७, ग्रं. २५१. For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९७३४८. (+) पंचमी स्तवन व अष्टमी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३.५४१०.५, १०४३०-३८). १. पे. नाम. चौवीसजिन लंछनादि विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम राशी जन्मनक्षत्र लंछनादि विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (वि. लिखावट अस्पष्ट है.) २. पे. नाम, पंचमी स्तवन, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे भण्यो, ढाल-६, गाथा-४७. ३. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सद्गुरु पाय; अंति: (१)वीरजिणवर इम कहै, (२)भगत भाव प्रसंसयो, ढाल-३, गाथा-२४. ४. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. ६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ९७३४९ (+) कोणकरी ढाल, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. मडता, प्र.वि. हुंडी:कोणक., कोणकरी., संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, १८४३८-४२). कोणिकराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: कुंटव तणी जीगरका करतां; अंति: ज्युं पाम्यौ सुख रसालै, ढाल-२२. ९७३५०. (+) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-२(३ से ४)=७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३३). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-९५ अपूर्ण तक है.) ९७३५१ (2) स्तवन व पूजा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:सेबेजा०.स्तवन०., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१०,१६४३२-३८). १.पे. नाम. शेजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी; अंति: समयसुंदर० आनंद थाय, ढाल-६, गाथा-११२. २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन-अनागत, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. केसरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मनाभ पिहिला नम रे; अंति: केसरविजय० गुणगाया धरी, गाथा-७. ३. पे. नाम. २४ तीर्थंकर स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. म. केसरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव जणेसर जयकारि; अंति: तणोजी केसरनिद्यो सुखपुर. ४. पे. नाम. अष्टप्रकारनी पूजा, पृ. ५आ, संपूर्ण. अष्टप्रकारी पूजा, मा.गु., पद्य, आदि: गंधोदक जल भरीया भरीया कलस; अंति: पूजीइं नीरमल ज्ञान उद्योत, गाथा-११. ९७३५२ (+#) नाकोडा स्तवन, सौभाग्यपंचमी स्तवन, सोलमा अध्ययननी सज्झाय व चिंतामणिपार्श्वनाथजीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३७१०.५, ९-११४२६). १. पे. नाम. नाकोडापार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडामंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपण घर बेठा लील करो; अंति: समयसुंदर कहे कर जोडो, गाथा-८. २.पे. नाम. सौभाग्यपंचमी स्तवन, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण, वि. १८५८, श्रावण कृष्ण, ८, ले.स्थल. नागाजील, प्रले. पंन्या. गौतमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:पंचमी स्तवन. For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पासजिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुनि, ढाल-६, गाथा-४६. ३. पे. नाम. सोलमा अध्ययननी सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१६ बंभचेरसमाहिठाणं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मचारजना दश; अंति: उदयविज० गुरु धन्य रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथजीरो स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मनसुध आसता देव; अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर, गाथा-७. ९७३५३. (+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५९९, माघ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. अलवरगढ, प्रले. मु. देवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पहिलउ०वृत्ति०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२२.५४१०.५, ११४३६-४०). आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलु पणमिअ देव; अंति: विजयतिलक निरंजणो, गाथा-२१. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हुं पहिलउं धुरि पणमी; अंति: छइ निरंजणो पाप रहित. ९७३५६ () प्रतिक्रमणसूत्र व स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(८)=९, कुल पे. ५,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१०.५, १३४३४-३६). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: सा अम्ह सया पसत्था. २.पे. नाम. बीजजिन स्तुति, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: लब्धविजय० मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम, चतुर्दशी स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४, (वि. आदिवाक्य का प्रारंभिक पाठ खंडित है.) ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. वंदित्तुसूत्र, पृ. ९अ-१०आ, पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५० अपूर्ण तक है.) ९७३५७. ८ कर्म १५८ प्रकृति, खंडित जिनप्रतिमा विचार व जिनमंदिर १० आशातना गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३४-४५). १. पे. नाम. ८ कर्म१५८ प्रकृति विचार, पृ. १अ-१७अ, संपूर्ण. पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणावरणी कर्मनी स्थिति; अंति: तेहनउ वर्णन स्तवउ हुंतउ. २. पे. नाम. प्रतिमाधिकार-बृहत्कल्प, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. खंडित जिनप्रतिमा विचार-बृहत्कल्पे, सं., गद्य, आदि: प्रतिमायाः पूजा यदा; अंति: सुगुरु मुखात् श्रोतव्या. ३. पे. नाम. जिनभवन १० आशातना गाथा, पृ. १७आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: तंबोल पाण भोयण वाहण; अंति: वज्जे जिणमंदिरस्संतो, गाथा-१, (वि. अन्त में ८४ आशातना का उल्लेख मात्र किया है.) For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९७३५८. (+#) महाविद्या, संपूर्ण, वि. १८६०, पौष शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. धिणलाग्राम, प्रले. मु. उत्तमविजय (गुरु मु. नेमिविजय); गुपि. मु. नेमिविजय (गुरु मु. उदयविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४९.५, ११४२५-२८). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंतिः श्रृणोति च भोगं करोति. ९७३६० (+#) गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १८१२, माघ शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ३४, प्रले. मु. अमीविजय (गुरु मु. आणंदविजय); गुपि. मु. आणंदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १५-१७४३६-४२). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा वीरं जिनं; अंति: कह्या छे ते जोवा छइ. गौतमपृच्छा-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: परमेश्वरनी वाणी सांभलतां; अंति: बोध वसुद्धा भूषणाभिध, कथा-३५. ९७३६१ (+) चंदरास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:चंदरास, संशोधित., जैदे., (२२४१०, १३४४०-४५). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-१ __ ढाल-११ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ९७३६२. (+) अतिचार व ४५ आगम ग्रंथाग्रसंख्या, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०.५, १५४४७). १.पे. नाम. अतिचार, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:अतीचार. श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि; अंति: मिच्छामि दक्कडम. २. पे. नाम. प्रत्याख्यान, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पच्चक्खाण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: सिद्धांताद्यनुसारेण. ३. पे. नाम. ४५ आगमग्रंथाग्रसंख्या, पृ. ९आ, संपूर्ण. ४५ आगम नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आचारांग१ सुयगडांग२; अंति: ग्रं० १२११० गणिविजा १००. ९७३६३. (+) औपदेशिक सवैया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२२४१०,११४३४-३८). औपदेशिक सवैया, मु. जसराज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से ५३ अपूर्ण तक है.) ९७३६६. (+) बासठ मार्गणा यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४११, १४४२४). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ९७३६९ (+) हीरविजयसूरिनो सलोको, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१०, १३४२९). हीरविजयसरि सलोको, म. विद्याधर, मा.गु., पद्य, वि. १६५२, आदि: शासनदेवी तुम पाये; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७७ अपूर्ण तक है.) ९७३७३. (+#) शीयलप्रकाश रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:सीलरा., सीलनउ., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०, १२४३५-३९). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसरि, मा.ग., पद्य, वि. १६३७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से ६० अपूर्ण तक है.) ९७३७५ (2) अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प.८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१०.५, ११४२८-३८). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि; अंति: मिच्छामि दक्कडम्. For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २९७ ९७३७६. (+#) दंडकना २९ द्वार, संपूर्ण, वि. १८५२, फाल्गुन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २८८, टिप्पणक का अंश नष्ट, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२२४१०, १६x४१-४६). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. ९७३७८.(+) स्नात्रविधि, संपूर्ण, वि. १८६२, कार्तिक शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ.५, प्रले. मु. शिवचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०, १३४३०). स्नात्रपूजा विधिसहित, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकारविकारसार; अंति: मुंकीइं ठारीइं नही. ९७३८१ (+) चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८५-७४(१ से ७४)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, १५४३७). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-४ ढाल-७ गाथा-१४ अपूर्ण से उल्लास-४ ढाल-१८ गाथा-८ तक है.) ९७३८४. हरीचंद्रराजा चोपई, संपूर्ण, वि. १९११, श्रावण कृष्ण, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९, दे., (२१.५४१०, २०-२२४३८-४५). हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. प्रेम, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: आदि जिनेसर पाय नमी; अंति: ग मे नाम तीकारा होये, ढाल-२३. ९७३८५ (+#) कवि विल्हण पंचासिका चत:पदी व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १६८४, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १, रविवार, जीर्ण, पृ. ११, कुल पे. २, प्रले. मु. बिहारीदास (परंपरा उपा. राजतिलक, उपकेशगच्छ); गुपि. उपा. राजतिलक (गुरु आ. सिद्धसूरि, उपकेशगच्छ); आ. सिद्धसूरि (उपकेशगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०, १८४४१-४४). १.पे. नाम, कवि विल्हण पंचासिका चतुष्पदी, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण. बिल्हणपंचाशिका चौपाई, मु. सारंग, मा.गु., पद्य, वि. १६३९, आदि: प्रणमू सामिण सारदा सकल; अंति: सारंग० सदा कुशलखेम कल्लाण, गाथा-४१२. २.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ११आ, संपूर्ण. औषध संग्रह **, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९७३८६. (+) भास, गहुंली, सज्झाय, स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. १४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१०,९४३०). १. पे. नाम. गौतमस्वामी गहूंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुहलीपत्र. गौतमस्वामी गहंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तियाम वनखंड मझारि; अंति: गुरुपद पद्म वधावे तो, गाथा-७. २. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुहलीपत्र. पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंचम गणधर वीरना रे; अंति: करतां लहइं शिवठाण रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. जंबूस्वामी गहुँली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुहलीपत्र. पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजब कीओरे मुनिराय; अंति: सुणि पामें शिवराज, गाथा-७. ४. पे. नाम. सौधर्मगणधरपंचम भास, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुहलीपत्र. सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी उद्यान सुरत; अंति: साद गोहली गीत भणेरी, गाथा-७. ५. पे. नाम. षट्त्रिंशकाचतुष्कगति भास, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. सोहव, मा.गु., पद्य, आदि: चेलणा लावे गहुँली; अंति: श्रीजिनशासन रीति, गाथा-७. ६. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुहलीपत्र. ____ मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नयरी मनोहार; अंति: तिहां बहु छाजे तो, गाथा-७. ७. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुहलीपत्र. म. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे शुभ परिणामें; अंति: उत्तमने मंगलमालो रे, गाथा-७. ८. पे. नाम. साधुगुण गहुंली, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुहलीपत्र. For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची म. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: षट्व्रत सुधा पालता; अंति: उत्तम० निमित्त रे, गाथा-९. ९. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुहलीपत्र. पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान दरसण गुण धरता; अंति: परभावे एहवा उत्तम जीव, गाथा-५. १०. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुहलीपत्र. पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., पद्य, आदि: आतम धरम गुणन भणी आवे; अंति: उत्तम पदवी थाय, गाथा-७. ११. पे. नाम. गणधरगुण गहुंली, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुहलिपत्र. मा.गु., पद्य, आदि: गणधर हे गणधर चारित्र; अंति: ठडो अनुभव रत्न लहंत, गाथा-९. १२. पे. नाम. सुधर्मास्वामीगणधर सज्झाय, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी सज्झाय, पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवरमां परधान; अंति: उत्तम पद वरेजी, गाथा-१३. १३. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ.८आ-१३अ, संपूर्ण. ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत प्रणमीइ; अंति: विनय कहे आनंद ए, ढाल-६, गाथा-५९. १४. पे. नाम. पंचकल्याणकगर्भितधारणजिन स्तवन, पृ. १३अ-१६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कल्याणकपत्र. पंचकल्याणक महोत्सव स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, श. १६८२, आदि: प्रणमी पासजिनेसरु; अंति: पद्मविजये ध्याइया, ढाल-५. ९७३९० (+) पार्श्वनाथ स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)-४, प्रले. मु. गुमानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४११, ९४३१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदिः (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४, (प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., श्लोक-९ अपर्ण से है.) ९७३९३. (+#) सदैवछरीसावलिगारी वात व महादेवजीरा कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, कुल पे. २, ले.स्थल. गागुडाग्राम, प्रले. मु. शिवचंद (गुरु ग. राजविजय); गुपि. ग. राजविजय (गुरु पं. प्रेमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, १३४२६). १.पे. नाम. सदैवछरीसावलिगारी वात, पृ. १अ-२४अ, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रावण शुक्ल, ८, सोमवार. सदयवत्स सावलिंगा कथा, मा.गु., प+ग., आदि: आणंदपुर नयरं सालिवाह नरा; अंति: सुभ नारकै सदैवछलाधियै. २. पे. नाम. माहादेवजीरा कवित्त, पृ. २४आ, संपूर्ण. शंभुनाथ स्तुति, पुहि., पद्य, आदि: मुगट गंग खलहलै चंद ललाटे; अंति: नमै सो सिव सिव संकर सरण, गाथा-२. ९७३९४. (+) आनंदघन गीतबहोत्तरी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १४४२८). आनंदघन गीतबहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: क्या सोवे उठ जाग; अंति: (-), (पू.वि. पद-४८ तक है.) ९७३९७. (+) स्तवन सज्झाय व चौढालिया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-१(२)=२३, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, १५४४८-५७). १.पे. नाम. दानसीलतपभावना संवाद, पृ. १अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समयसुंदर० सदा सुजगीसो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५, (पू.वि. गाथा-३२ से ६५ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. मुनिमालिका स्तवन, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: रिषभ प्रमुख जिन पाय; अंति: सदा कल्याण कल्याण, ढाल-३, गाथा-३७. ३. पे. नाम. मेघकुमार चउढालीयो, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: देस मगधमाहि जाणीयइ र; अंति: कवि कनक भणइ निशदीश, ढाल-४, गाथा-४८. For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २९९ ४. पे. नाम. बारह भावना, पृ.७अ-९अ, संपूर्ण. १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: आदिसर जिणवर तणा पद; अंति: जयसोम० भणता सवि सुख थायइ, ढाल-१२, गाथा-७२. ५. पे. नाम, चतुर्विंशति गीत, प. ९अ-१३अ, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मनमधुकर मोही रह्यो रिषभ; अंति: (१)जिनराज आप समानो रे, (२)जिनराज०दोलति पावै जी, स्तवन-२४. ६. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तवन, पृ. १३अ-१५अ, संपूर्ण. शाश्वतजिन प्रतिमा स्तवन, मु. नयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव सदा; अंति: नयरंग० कमला भोगवइ, गाथा-४१. ७. पे. नाम. आणंद संधि, पृ. १५अ-२३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. नवहर. आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: पभणइ मुनि श्रीसार, ढाल-१५, गाथा-२५२. ८. पे. नाम. गौतमपृच्छा, पृ. २३अ-२४आ, संपूर्ण. गौतमपृच्छा चौपाई, मु. नयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद तणा पय वंदि; अंति: फले इम पभणे नयरंग, गाथा-४४. ९. पे. नाम. दशवकालिक ढाल, पृ. २४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमानिलो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ९७३९९ (+) नाभेयजिन स्तोत्र, शांतिजिन स्तवन व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१०.५, १३४३४). १.पे. नाम. नाभेयजिन स्तोत्र, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण तक है.) ९७४०२ (+) आचारांगसूत्र बोलसंग्रह-श्रुतस्कंध २, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६-१०(१ से १०)=६, प्र.वि. हुंडी:आचारंग, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११, १५४३३). __ बोल संग्रह-आचारांगसूत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एहमा साधुना घणा वर्णव छे, प्रतिपूर्ण. ९७४०३. (+) तत्वार्थसूत्र, संपूर्ण, वि. १८१४, कार्तिक शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. जिहानावाद, प्रले. पं. कर्पूरचंद्र पंडित; पठ. श्राव. विश्वनाथ लाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सूत्र०., सूत्रपाठ., संशोधित., जैदे., (२६x१०.५, ६x२२-३५). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: मोक्षमार्गस्य नेतारं; अंति: चउगइदुक्खं णिवारेइ, अध्याय-१०. ९७४०४. उपासक सूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २४, अन्य. पं. विनयहर्षमुनि (गुरु पं. हेमहंसमुनि); गुपि.पं. हेमहंसमुनि (गुरु उपा. ज्ञानसार); उपा. ज्ञानसार, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपासकसूत्र., उपास०सू., जैदे., (२६४११, १३४४०-४५). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२. ९७४०५ (#) महादंडक, संपूर्ण, वि. १७८६, कार्तिक कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २५, प्र.वि. कुल ग्रं.७७५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १०-११४३५-४०). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: डंडक१ लेश२ ठिती३ अवग; अंति: मास नुं आतरं डंडक बोल. For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९७४०६. (*) नवतत्त्व विचार व नवतत्त्व प्रकरण सह वालाववोध, संपूर्ण वि. १६वी, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४१०.५, १३-१५X४०-५८). १. पे नाम. नवतत्त्व विचार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंतिः परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२७. , २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १आ - २१अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक जुड़ी है. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंतिः परियट्टो चेव संसारो, गाथा-३०. नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, ग. हर्षवर्द्धन, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानप्रभुः अतिः शोधेयं तु जिनागमविज्ञाः. ९७४०७ (+) विविध विषये धर्मकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-१० (१ से १०) =६, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२६.५x१०, १५४४८.५५), ८४ धर्मकथा प्रबंध, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. धर्मद्रढता विषये कथा अपूर्ण से प्रासाद पुण्य विषये आम्रभूप कथा अपूर्ण तक है.) " ९७४१०. (*) योगशास्त्र सह स्वोपज्ञ अवचूरि- प्रकाश १-४, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६. प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें - पंचपाठ., जैदे. (२६.५४११.५, ९-१४४४०-५०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि नमो दुर्वाररागादि अंति (-), प्रतिपूर्ण योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अत्र महावीरायेति; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९७४११. (+) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३२, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६११, १३३६-५०). कल्पसूत्र अंतर्वाच्य, सं., गद्य, आदि पुरिम चरिमाण कप्पो; अंतिः कर्मनिरतः श्रीसंघभट्टारकः. ९७४१२. (+) नलदवदंती रास, संपूर्ण वि. १७४४, ज्येष्ठ, मध्यम, पृ. १९, ले. स्थल, पाटणनगर, प्रले. मु. खेतसंघ (गुरु मु. धर्मदास 9 ऋषि); गुपि. मु. धर्मदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नलरास, टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, जैवे. (२६.५११, १९९५०-६०). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: चतुर माणस चित्त वसी, खंड-६ ढाल ३९, गाथा - ९३१, ग्रं. १३५०. ९७४१३. (+) अंतर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, प्र. वि. हुंडी : अंतर्व्वाच्य, पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित, जैदे. (२६.५४११, ११-१२४४४-५६). वैदिकग्रंथों में जिननाम वर्णन, सं., गद्य, आदि: ब्रम पुराण १ भोरुह; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "स्थंडिलं सपरीवारा कार्ययोजनमात्रकं* पाठ तक लिखा है.) ९७४१४. (+) यशोधरचरित्र, संपूर्ण, वि. १४७० भाद्रपद, मध्यम, पृ. १८, ले. स्थल. डुंगरपुर, राज्यकाल रा. प्रतापसिंह राउल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २६.५X११, १९६०-७५). यशोधर चरित्र, आ. माणिक्यदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: करामलकवद्विश्वं; अंति: जन्मपंचत्वमुक्तम्, सर्ग-१४, श्लोक-१०४४. ९७४१५. (*) उत्तराध्ययनसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३०-११९(१ से ११९) ११. पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६X११, ८४३६-४३). उत्तरज्झयणसूत्तं, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. अध्ययन- २९ सूत्र- १५ अपूर्ण से अध्ययन ३१ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ९७४१६. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १४-२ (१ से २) १२, प्र. वि. संशोधित. जै.... For Private and Personal Use Only " (२६X११, २०X३६). अभिधानचिंतामणि नाममाला- बीजक, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कांड- २ अपूर्ण से है व कांड-४ अपूर्ण तक लिखा है.) Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३०१ ९७४१९ (4) इलाकुमर रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-२(१,७)=७, प्र.वि. हुंडी:इलाकुमररास, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ११-१३४३३-४३). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदिः (-); अंति: ज्ञानदर्शन अजूआले छे, ढाल-१६, गाथा-१८७, ग्रं. २९९, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., ढाल-२ गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-११ गाथा-८ अपूर्ण तक व ढाल-१३ गाथा-१ अपूर्ण से है.) ९७४२०. सज्झाय व गहुँली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ८, दे., (२५.५४११, १०४३४). १. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ___ मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: सोहमस्वामी समोसर्या; अंति: हंसथी मोहन मंगलमाल, गाथा-७. २.पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, वि. १९३०, श्रावण कृष्ण, ५, सोमवार, ले.स्थल. अहमदावाद. म. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: चउनाणी चोखें चित्तें; अंति: लहे सुख श्रीकार हो, गाथा-७. ३. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी उद्यानमा; अंति: चीत चाहे अमृतसुख सार, गाथा-७. ४. पे. नाम. गौतमस्वामी गहुंली, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, प्रले. हरिलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रहि शुभ ठाण; अंति: अमृतपद चित चाहती जी, गाथा-११. ५. पे. नाम. गौतमस्वामी गहंली, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. अमत, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही उद्यानमा गुर; अंति: चाहती अमृत शर्म, गाथा-६. ६. पे. नाम. नेमिजिन गहुंली, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, वि. १९३०, श्रावण कृष्ण, ४, सोमवार, ले.स्थल. अहमदावाद. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिकानगरी दीपती; अंति: जय करज्यो नरनारी रे, गाथा-६. ७. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मारो भोग करम; अंति: पाली कारज सीधो रे, गाथा-७. ८. पे. नाम, पजुसण स्वाध्याय, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमु सरसति; अंति: सुत जगवल्लभ गुण गाय, गाथा-१६. ९७४२१ (#) राघवी वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५४-४१(१ से २१,२४,३३ से ५१)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:राघवीवृत्ति, पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १९४५७-५९). रघवंश-विशेषार्थबोधिका वत्ति, पं. गणविनय गणि, सं., गद्य, वि. १६४६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-३ श्लोक-२५ अपूर्ण से सर्ग-५ श्लोक-४० अपूर्ण तक की वृत्ति है.) ९७४२२. (+#) सुदर्शनसेठ रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३-२(१ से २)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३८-४०). सुदर्शनसेठ रास, मु. मुनिसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५०१, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३३ अपूर्ण से ___ गाथा-२५५ अपूर्ण तक है.) ९७४२३. (+#) उत्तमकुमार चरित्र व चित्रलेखा कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४६). १. पे. नाम. उत्तम चरित्र कथा, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. ___ उत्तमकुमार चरित्र, सं., गद्य, आदि: भक्त्या वस्त्राणि; अंति: भावेर्मोक्षं गमिष्यंति. २. पे. नाम. चित्रलेखा कथा, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., गद्य, आदि: (१)भव नियमेणयमुखो दाणाणय, (२)इह जंबूद्वीपे भरतक्षेत्रे; अंति: (-), (पू.वि. "दुःखिन्यभूत हे भगवन्नस्य पापस्य" पाठ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९७४२४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-३५ से ३६, संपूर्ण, वि. १८७६, आषाढ़ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. रुपाणा, प्रले. श्रावि. वदना; पठ. श्रावि. चतुरा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उत्तरा०, संशोधित., जैदे., (२६४११,१४४३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, ग्रं. २०००, प्रतिपूर्ण. ९७४२५. (+) उपदेशमाला प्रकरण, अपूर्ण, वि. १५९६, श्रेष्ठ, पृ. २२-५(७,९,१५,१७,२१)=१७, पठ. मु. विचारविमल (गुरु ग. धनविमल); गुपि. ग. धनविमल (गुरु आ. आणंदविमलसूरि); आ. आणंदविमलसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, ११-१३४३०-४५). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: विणिज्जया वाणी, गाथा-५४४, (पू.वि. गाथा-८४ अपूर्ण से १२८ अपूर्ण तक, ३५९ अपूर्ण से ३८४ अपूर्ण तक, ४१० अपूर्ण से ५१० अपूर्ण तक व ५१२ अपूर्ण से ५३६ अपूर्ण तक नहीं है., प्र.ले.पु. अतिविस्तृत) ९७४२६. (+) जिनसहस्रनाम स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पठ. श्राव. विश्वनाथ लाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सहस्त्र०., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ६x२५-३७). जिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. जिनसेन, सं., पद्य, आदि: स्वयंभवे नमस्तुभ्य; अंति: सर्वाभीष्टकराणि च, श्लोक-१६२. ९७४२८, (+) दानशीलतपभाव कलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८००, पौष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, ले.स्थल, नागोर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४१०.५, ५४४५). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: असोग० खमंतु तेणं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पूज्य अपराध खमज्यो. ९७४२९. (+) जंबूस्वामी विवाहलो, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ११४३५-३७). जंबूस्वामी रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, ई. १५१६, आदि: सरसति सहि गुरु पय; अंति: भणइ जयवंतु सुखवास, गाथा-६४. ९७४३०. उपदेशमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २६, पठ. श्राव. नवलादे; मु. नमिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३०-४२). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: सोहियव्वं पयत्तेण, गाथा-५४४. ९७४३१. गोरखयोगिनी, अपूर्ण, वि. १७६७, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, शनिवार, मध्यम, पृ. २४-२(१७*,२०)=२२, जैदे., (२५.५४११, १५-१७४२२-५५). अंबड चरित्र, आ. मनिरत्नसरि, सं., पद्य, आदि: धर्मात् संपद्यते; अंति: तावद्वाच्यमानं बुधैः, आदेश-७, श्लोक-१२२०, ग्रं. १११६, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., आदेश-७ श्लोक-३० अपूर्ण से ७८ अपूर्ण तक नहीं है.) ९७४३२ (+) प्रत्याख्यानभाष्यत्रय सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १५१७, मध्यम, पृ. १२, प्रले. मु. शिवचंद्रगणि शिष्य (गुरु ग. शिवचंद्र गणि, अंचलगच्छ); गुपि.ग. शिवचंद्र गणि (गुरु पं. सत्यशेखर गणि, अंचलगच्छ); पं. सत्यशेखर गणि (अंचलगच्छ); पठ. ग. धनविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ५-११४३२-४५). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३. भाष्यत्रय-अवचरि, आ. सोमसंदरसरि, सं., गद्य, आदि: वंदि० वंदनीयान् सर्व; अंति: पच्चक्खाणम० सुगमा. ९७४३३. (+) बंधहेतुदयत्रिभंगीसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५, प्रले. दास; पठ. श्रावि. वीराई बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५-१९४५४-६६). बंधहेतूदयत्रिभंगी प्रकरण, मु. हर्षकुल, प्रा., पद्य, आदि: बंधण हेउ विमुक्कं; अंति: सिरिसायरसूरिसीसेणं, गाथा-६५. बंधहेतूदयत्रिभंगी प्रकरण-टीका, ग. विजयविमल, सं., गद्य, वि. १६०२, आदि: वृद्धतशालायामति रूपगुणै; अंति: स्वपरहितार्थेमिति. ९७४३५ (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २४-१६(६,८ से ९,११ से २३)=८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ११४२८-४०). For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३०३ उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण जिनवरिंदे इंद, अंति (-), (पू.वि. गाधा ९३ अपूर्ण से ११४ अपूर्ण तक, १३३ अपूर्ण से १७४ अपूर्ण तक, २९४ अपूर्ण से ३६२ अपूर्ण तक व ३८३ अपूर्ण से नहीं है.) ९७४४० (+) कथामहोदधि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२, प्रले. मु. कमलसौभाग्य (गुरु मु. सौभाग्यरत्न, तपागच्छ); गुपि. मु. सौभाग्यरत्न (गुरु ग. सोमधर्म, तपागच्छ); आ. सुमतिसुंदरसूरि (गुरु आ. सोमदेवसूरि, तपागच्छ); आ. सोमदेवसूरि (गुरु आ. सोमसुंदरसूरि, तपागच्छ); पठ. आ. राजप्रियसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे. (२६.५११, १७-२०५७-७५), , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "" कर्पूरप्रकर- कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः कज्जं कोडीएविनं नद्वीयं, कथा-२००. ९७४४१ (+) उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ३५ से ३६, संपूर्ण, वि. १८७६, आषाढ़ शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. रुपाणा, प्रले. श्रावि. वदना; पठ. श्रावि. चतुरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : उत्तरा, संशोधित, जैदे., ( २६ १०.५, १५-१८X३०-३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, ग्रं. २०००, प्रतिपूर्ण. ९७४४२. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २३-५ (१ से २,१८ से १९,२२) १८. प्र. वि. हंडी नामांकितनाममाला, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे, (२५X१०.५, १५X३८-४२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. देवाधिदेवकांड श्लोक ५० अपूर्ण से देवकांड १७२ अपूर्ण तक २१६ अपूर्ण से २५५ अपूर्ण तक व २७७ अपूर्ण से २९८ अपूर्ण तक है.) , ९७४४३ (+) चौवीसदंडक विचार, संपूर्ण वि. १८९८, कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. हुंडी दंडकपत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२४.५४१०.५, १३४३८) २४ दंडक संक्षिप्तविचार, रा., गद्य, आदि: साते नारकीरो एक दंडक सात; अंति: इण रीतै ५६३ जीवरा भेद छै.. ९७४४८ (+#) भरटकद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १८०१, पौष शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. राधणपुर, प्रले. मु. दयासेन (गुरु पं. लावन्यहर्ष गणि); गुपि. पं. लावन्यहर्ष गणि (गुरु उपा. नेममूर्त्तिगणि); उपा. नेममूर्त्तिगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भौतिकपच्चीसी., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१०.५, १९x४४-४९). भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरत्न, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: समे कार्ये हि सर्व; अंति: जगामजनैर्हास्यमानाः, (वि. मात्र २५ कथाएँ हैं.) ९७४५० (+) भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२४X१०.५, १३३२-३८). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३५, आदि सारस्वतं नमस्कृत्य अति श्रीपद्मप्रभसूरिभिः श्लोक-१७१. ९७४५१. (+#) रत्नसंचय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१ (१) = २०, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की फैल गयी है, जैदे. (२५४११, ७४३४). "" 1 3 रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा-७ अपूर्ण से है व गाथा ३११ तक लिखा है.) रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९७४५२. संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी संघयणी, दे., (२५.५४११, १३x४८). For Private and Personal Use Only बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहंताई ठिइ अंति: (-), (पू.वि. गाथा २१९ अपूर्ण तक है.) ९७४५४. (+) सारस्वतव्याकरण की चंद्रकीर्त्ती टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९-१८ (१ से १८) = ११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी : चंद्रकीर्तीटीका, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२५x१०.५, १७४५८-६६). सारस्वत व्याकरण- दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं. गद्य वि. १६२३, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. पाठ "यहत्यादेशः नामीतिदीर्घः" से "वावसाने तकारस्यवादकारभकारा तक है.) Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०४ ९७४५७. (*) चंपकश्रेष्टि रास, संपूर्ण वि. १६४७, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल. प्रल्हादनपुर, प्रले. मु. गोवाल (गुरु वा. वस्ता); गुपि. वा. वस्ता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११, १७-१९५३-५५). चंपकश्रेष्ठि रास. आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १६२२, आदि श्रीवीर शारदां नत्व; अतिः श्रीसंघनी करु " कल्याण, गाथा - ५७५. ९७४५८. (+) नवपदपूजा व अष्टोतरीपूजाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, कुल पे २, प्र. वि. हुंडी सिद्धचक्रपूजा, टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैवे. (२४४११, १४४३५-४०). १. पे. नाम. नवपदपूजा, पृ. १अ - ७आ, संपूर्ण, वि. १८७४, भाद्रपद शुक्ल, १०. नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८३०, आदि: श्रीगोडीपासजी नितः अति वरसेवक उत्तमविजयवरसार, , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाल - ९. २. पे नाम. अष्टोतरीपूजा विधि, पृ. ७आ, संपूर्ण. अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु., सं., प+ग., आदि: नालेर १०८ दाख १०८ खजूर; अंति: पूजा करी सनात्र कहेणी. ९७४५९. (+) सत्तरभेदीपूजा व अष्टप्रकारीपूजा, संपूर्ण, वि. १८९६-१८९७, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, ले. स्थल. जालोर, प्रले. पं. देवीचंद (गुरु ग. हितप्रमोद, खरतरगच्छ); पठ. मु. सुगालचंद (गुरु पं. सरुपचंद, खरतरगच्छ, क्षेमशाखा); . गुपि पं. सरुपचंद (गुरु उपा. हितप्रमोद, खरतरगच्छ क्षेमशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे., (२५.५X११, १२X३५). १. पे. नाम. सत्तरभेदी पूजा, पृ. १अ ८आ, संपूर्ण वि. १८९६ मार्गशीर्ष कृष्ण १४. १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: भाव भले भगवंतनी पूजा; अंति: सब लीला सुख साजै, ढाल - १७. २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ९अ-१०अ संपूर्ण, वि. १८९७, भाद्रपद कृष्ण, ८. जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: स्मृत्वा गुरुपदांभोज, अति: संस्तुवैः संस्तुतं ढाल ८. ९७४६० (+) बारह भावना, संपूर्ण, वि. १८९३ वैशाख कृष्ण, १३, मध्यम, पू. ५. ले. स्थल, जालंधर, प्रले. श्राव. खूबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२३.५x१०.५, ११x२७-३०). , १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य वि. १६४६, आदि आदिसर जिनवर तथा पद, अंतिः एह भणता शिवसुख धाये, ढाल १२, गाथा-७२. "1 ९७४६१. (+४) मानतुंगमानवतीरी चोपई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२४४१०.५, १६५३८-४०). मानतुंगमानवती रास- मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य वि. १७६०, आदि ऋषभजिणंद पदांबुजे अंति: (-), (पू.वि. ढाल १७, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ९७४६२. शेत्रुजईगिरी उद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., ( २४१०.५, १७X३५-३७). शत्रुंजय उद्धार, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८ आदि विमल गिरवर विमल गिरव; अंति: नित करेवा देह वंशण जय करो, ढाल ६, गाथा- ११५. ९७४६३. (+) चौमासीदेववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र अधिकमास कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. संशोधित., जै.., (२३.५४१०.५, १३-१४४४३-५२). चौमासपर्व देववंदन, पन्या, पद्मविजय, मा.गु, पद्य, आदि आदिदेव अलवेसरू विनीत अंतिः पास सामलनु चेई रे. ९७४६४ (+) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८. प्र. वि. संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैवे. (२४.५४११, १४४३४). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु. गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अति श्रीविजयधर्मसूरि " ९७४६६ (+) शांतिनाथ विवाहलो, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७. पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी: श्रीशांतिनाथ वीवाहलउ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १२-१३x४६-५१). For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३०५ शांतिजिन विवाहलो, म. सहजकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: संतिकरणजिन सोलमउ तित्थंकर; अंति: (-), (पू.वि. खंड-५, ____ ढाल-१, गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९७४६७. (+) वसुधाराकल्प, संपूर्ण, वि. १८१५, श्रावण कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. विजापुर, प्रले. मु. कपुरविजय (गुरु पं. कस्तुरविजय); गुपि.पं. कस्तुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशंभवजिनप्रशादात्., संशोधित., जैदे., (२३४१०, ११-१२४३६-४०). वसधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: विजयकरं भवति. ९७४७३. (+) बावनी, बत्रीसी व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १६-१७४३६-४०). १. पे. नाम. निन्हव कथा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:निह्नवकथा. निह्नवमतखंडन झलणा, रा., पद्य, आदि: सत्रसिद्धांतरा अरथ; अंति: आपणो के राखे करतार, २.पे. नाम. केशवदासकृत बावनीसवइया ६२, पृ. २अ-७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:केश०बा०. ___ अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: ॐकार सदा सुख देत; अंति: केसवदास सदा सुख पावै, गाथा-६२. ३.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-पुण्योदय, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्यउदयमांहि पाप बंधीजे; अंति: विनयचंद० पाप न सावें, गाथा-९. ४. पे. नाम. सूक्तमुक्तावली, पृ. ७आ-१२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दयासू०बा०. ____ अक्षरबावनी, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४९, आदि: ॐकार अपार सुअक्षर सार; अंति: दयासागर० कीध कवित तेवीसा, गाथा-५८. ५. पे. नाम, बालचंद बत्तीसी, पृ. १२अ-१४आ, संपूर्ण, पे. वे. हंडी:बाल०ब०. अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसर; अंति: सुखकंद रुपचंद जाणीए, गाथा-३३. ६. पे. नाम. प्रहेलिका, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:प्रहेलिपत्र. प्रहेलिका संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: तिणचरसुत तास रिपु तस गुरु; अंति: तोहर वाहन सोवर पायो, गाथा-६. ७. पे. नाम. किसनगढ़नगर स्थापना वर्ष, पृ. १५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नगरस्थापना वर्षवर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: संवत् ४१० राउल बापु; अंति: संवत् १६६९ किसनगढ वसायो, संपूर्ण. ९७४७८ (+) दंडक प्रकरण, गणधरवाद व भरतबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८१३, वैशाख कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ३, ले.स्थल. देवगढ, प्रले. पं. महिमाशील, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४३४-४१). १.पे. नाम, दंडकप्रकरण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४२. २.पे. नाम. गणधरवाद, पृ. २आ-७अ, संपूर्ण. ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: वरदै तूं वरदायनी; अंति: रसिकराज इण विधि भणै, गाथा-९६. ३. पे. नाम, भरतबाहुबलि सज्झाय, पृ. ७अ-११अ, संपूर्ण. क. राजकवि, मा.गु., पद्य, आदि: संपति करण सदा सरसति; अंति: राज० शुद्ध प्रणमत चरण, गाथा-१०३. ९७४८१ (+#) बहत्संग्रहणी व नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ.५, कुल पे. २,प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२४४११, १९४७७). १. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई १; अंति: सन्नी गईरागई वेए, गाथा-२७५. For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. नवतत्त्वप्रकरण, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) ९७४८४. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. हुंडी:भक्तामर., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, ४४३८-४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत जे अमरदेवता; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५ तक टबार्थ लिखा है.) ९७४८५. (+) लोकनालिद्वात्रिंशिका व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४४, पौष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. कनकदर्ग, प्रले. पं. जसविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, ४४३९). १. पे. नाम. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह टबार्थ, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३३. लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: जिनदर्शन विना जे लोक; अंति: भिसं कहतां अत्यंतपणे करी. २.पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ९७४८७. उवाईसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २८, जैदे., (२४४११, १५४४५-५२). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००. ९७४८८ (+#) योगशास्त्र-प्रकाश १ से २, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, पठ. मु. पद्मविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०, ११४४४-४८). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दर्वाररागादिवैर; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९७४८९ (+) सिंदरप्रकरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८२६, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. सांचोर, प्रले. पं. विद्यासार, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिंदूर०प्र०., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४०-५०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. ९७४९१. उत्तराध्ययनसूत्र बोल व पुद्गलअल्पबहुत्व २६ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, १३-१५४३०-३२). १. पे. नाम, उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन २८ के २५ बोल, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन २८ मोक्षमार्गगति के-२५ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सोहोइ निच्चयनउ जोझिंतउ, (२)निश्चे१ व्यवहार२ द्रव३; अंति: निश्चय व्यवहार पणु का. २. पे. नाम. पुद्गलअल्पबहुत्व २६ द्वार विचार, पृ.७अ-७आ, संपूर्ण. २६ द्वार पुद्गलअल्पबहुत्व विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: एएसि णं भंते परमाणु पोगला; अंति: जहा वणा तहा ___ भाणियव्वं. ९७४९२. (+#) दहा, श्लोक व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ३९, प्र.वि. हुंडी:स्तवन., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४२८-३५). १. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलग अजित जिणंदनी; अंति: मोहन० जिन अंतरजामी, गाथा-५. २.पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पूजो जिनवर प्रेमस्यु रे; अंति: जिनहरष० तेहनी करीयै सेव, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३०७ ३. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: धर्म जिनेसर ध्याइईये; अंति: इम जिनहरष कहनो रे, गाथा-५. ४. पे. नाम, पासजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-अवंतीमंडन, पुहि., पद्य, आदि: पंथीडा पंथ चलेगो; अंति: पास प्रभुजी अब तेरो आधार, गाथा-५. ५. पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म.रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज घरे नाथजी पधारे; अंति: रूप० चरणकमल जाउं वार, पद-५. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. म. राज, पुहि., पद्य, आदि: जय बोलो अश्वसेन लाला; अंति: राज० नयन विसाला की, गाथा-७. ७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तुं मेरा मनमांजी त: अंति: देख्या देव सकल मैं, गाथा-५. ८. पे. नाम. पंचजिन आरती- आदिजिन आरती, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंचजिन आरती, मा.गु., पद्य, आदि: पहली आरती प्रथम; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चंदाजी सीमंधर; अंति: सूरो तो वाधे मुख अति नरो, गाथा-७. १०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.. मु. रामदास, मा.गु., पद्य, आदि: नैना सफल भये प्रभु; अंति: मांगत है लोक चउद की राज, गाथा-४. ११. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: निरंजन यार बोरे मेरा; अंति: तुम सम देव न ओर, गाथा-५. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही जिनजी अरज; अंति: थे भवजल तारो राज, गाथा-५. १३. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मु. भूपत, रा., पद्य, आदि: नेम निरंजन ध्यावो रे; अंति: भूपत० रस लीनो रे, गाथा-३. १४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. आदिजिन पद-संध्याकाल, म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सांझ समें जिन वंद; अंति: समझ जीव अने समरथ होत आणंद, गाथा-४. १५. पे. नाम. शेजय स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: शेनंजयगढनो वासी प्यारो; अंति: ज्ञानवि० मारा राजेदा. गाथा-६. १६.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: समझ समझ जिया ग्यांन; अंति: निरंजन एक निरंजन आय, गाथा-३. १७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. म. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिननो विसवास छे; अंति: रूपचंद रस माणे, गाथा-७. १८. पे. नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ.५अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन पद-अंतरिक्ष मंडन, मु. माणिक, पुहि., पद्य, आदि: तोसुं दिल लागा हो; अंति: माणिक०पुरण पास जिणंदा बै, गाथा-४. १९. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सहज विलासी सुदरुं; अंति: करज्यो सेव सवाइ हो राज, गाथा-७. २०. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पीउडा जिनचरणारी सेवा; अंति: मोहन अनुभव मांगे, गाथा-५. २१. पे. नाम. कृष्णगीत, पृ. ६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०८ www.kobatirth.org कृष्णभक्ति गीत, मा.गु., पद्य, आदि अपनें नगर पर जायो; अंतिः सुनि तनम प्रेम की पास, गाथा ५. २२. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि खेलत वसंत पिया प्यारी अंति: मुरली तमलीते हमारी, गाथा ४. " २३. पे, नाम, कृष्णलीला, पृ. ६ अ- ६आ, संपूर्ण. सूरदास, मा.गु., पद्य, आदि भीज रही गरमी सेरी अंगीया अति सूरदास० ध्यान धरमीसेरी, गाथा-४. २४. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्व स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: सचा साहेब मेरा चिंता; अंति: करे बनारसी बंदा तेरा, गाथा-४. २५. पे नाम, नेमिनाथ स्तवन, पू. ६आ-७अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, पं. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमप्रीत बनी छै प्यारी रे अति नित्यविजय दुःख विसारी रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा-६. २६. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., पद्य, वि. १८वी, आदि उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्कं नमामि गाथा - ६. गाथा - ३. ३०. पे. नाम. सीखामण सज्झाय, पृ. ८अ -८आ, संपूर्ण. २७. पे नाम. पार्श्वप्रभुजीरी आरती, पृ. ७आ, संपूर्ण. " ', पार्श्वजिन आरती, य, अगरचंद, पुहि., पद्य, आदि आरती कर श्रीपास अति जिवित सफल भया उनका गाथा ५. २८. पे. नाम. राधाकृष्ण होरी, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. राधाकृष्ण होरी गीत, पुहिं., पद्य, आदि कुंण खेले रंग होरी; अंति बाह पकर जकझोरी, गाथा-४. २९. पे नाम, महावीरजी स्तवन, पृ. ८अ संपूर्ण. महावीरजिन पद, मु. कीर्त्ति, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर सेवीइं मनवंछित; अंति : जिनचंद के इम कीरत गाई, * 1 औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गर्भावासे चिंतवे ए अमे न; अंति: जईई मोक्ष मझार के, गाथा- ८. ३१. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. जिनचंद, पुहि., पद्य, आदि धुसो बाजे रे रीषभजी, अंति: गुणगावो नीत जिनवर को, गाथा-८. ३२. पे. नाम औपदेशिक दुहा, पृ. ९अ, संपूर्ण. आशीर्वचन श्लोक, सं., पद्य, आदि: भाले भाग्यकला मुखे; अंति: दिनं क्षोणीपतौ राजते, प्रतिपूर्ण. ३३. पे नाम, औपदेशिक दूहा, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण. औपदेशिक दहा पुहिं, पद्य, आदि छोठी तु कको दोहरो सबगित अंतिः गया अकबर नाह जंजाल, दोहा-१५. For Private and Personal Use Only ३४. पे. नाम. औपदेशिक दूहा संग्रह, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. " औपदेशिक दुहा संग्रह, पुहि., पद्य, आदि नहीं बाग नहीं वेलडो अंतिः नवरालशी चढे पराये हाथ, गाथा-१४. ३५. पे नाम ज्योतिष श्लोक, पृ. १०आ, संपूर्ण ज्योतिष, पुहिं., मा.गु. सं., पग, आदि हस्ताद्या पंचनक्षत्र, अंति: भोमार्कगुरुभार्गव. ३६. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १० आ-११अ, संपूर्ण, वि. १८८५, माघ शुक्ल, १०, ले.स्थल. सैणाग्राम, पे.वि. श्रीसूवधीप्रभू प्रसादात् क. गद, मा.गु., पद्य, आदि: राजा चंसल होय कै भोम अपणी; अंति: कहे० चंचल नार निचे बुरी, गाथा - १. ३७. पे नाम औपदेशिक दूहा, पृ. ११अ, संपूर्ण. औपदेशिक दुहा संग्रह, क. गंग, पुहिं., पद्य, आदि कहा नीच का संग कहा मूरख अंतिः कूप की सो बाहिर निकसत नाह, गाथा ५. Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३८.पे. नाम, औपदेशिक गाथा, पृ. ११आ, संपूर्ण. ___ गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: काची कजीयांमा जीवीया; अंति: करे सलाम तोरण छोवग तारा. ३९. पे. नाम, अढीद्वीप संख्या यंत्र, पृ. ११आ, संपूर्ण. अढीद्वीप चंद्रसूर्यसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: द्वीपसमुद्र चंद्र सूर्य; अंति: ८८४०७०० कोड़ा कोडी, (वि. सारिणीयुक्त) ९७४९३. सुबाहुकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १८१४, श्रावण शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. रायपुर, प्रले. मु. पूरणमल (गुरु पं. नराणजी); गुपि.पं. नराणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सुबा०., जैदे., (२३४१०.५, १६-१८x२८-३४). सुबाहकुमार चरित्र, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: नमु वीर सासणघणी सर्वहित; अंति: ए चरित्र कीयोर हुलासी जी, ढाल-७, गाथा-२०५. ९७४९४. (+) छ जीवनी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. कुंवरजी ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:छजीवनो., संशोधित., जैदे., (२३४११, १५४३५-३७). ६जीव पंचढालियो, म. सगणनिधान, मा.ग., पद्य, आदि: प्रणमि पास जिणंदने; अंति: हंसला जी सुगुण नीधान, ढाल-६, गाथा-११६. ९७४९५. सुमतिविलासलीलावती रास, संपूर्ण, वि. १८६२, माघ शुक्ल, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. आहोरनगर, प्रले. मु. शिवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, १३४२६-३१). लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: परम पुरुष प्रभु पास; अंति: सुख संपति सुरसाल जी, ढाल-२१, गाथा-३४८, ग्रं. ४९१. ९७४९६. (+) सौभाग्यपंचमीमहात्मकथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२३, माघ कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. मु. अजितविजय (गुरु ग. देवेंद्रविजय); गुपि. ग. देवेंद्रविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथ प्रसादात्, संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१२५) अदृष्टदोषान् मतिविभ्रमाद्वा, जैदे., (२३४१०.५, ६४३८-४२). वरदत्तगणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५२, (वि. प्रारंभ में ज्ञानपंचमी माहात्म्य का संक्षिप्त रुप लिखा है.) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वदेव छे ते; अंति: मेडतानगर मध्ये कीधी. ९७४९७. () कल्पसूत्र का व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. हुंडी:कल्पार्थ., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १५४३६-३७). कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६८०, आदि: श्रीहर्षसार सगुरु चरणरजः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., व्याख्यान-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ९७४९८. (+) ऋषिमंडल स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२१, पौष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. गिरपुर, प्रले. उपा. कांतिसुंदर (गुरु उपा. सहजसुंदर, तपागच्छ); गुपि. उपा. सहजसुंदर (तपागच्छ); पठ. मु. मानसुंदर (गुरु उपा. कांतिसुंदर, तपागच्छ); ग. ज्योतिसुंदर (गुरु मु. मानसुंदर, तपागच्छ); राज्यकाल रा. शिवसिंघ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:ऋषिमंडल., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११, ११४४०). ऋषिमंडल स्तोत्र पूजाविधि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: भंसिय उत्तारिझई अग्घुवर, ग्रं. ३८३. ९७५०० (+#) दशपच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१०.५, १०४२६-३५). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: ते रोटी जीमतां भंग नही, (वि. अंत में आगार गाथा व उसका विवरण लिखा है.) ९७५०५. (#) अष्टापद व अष्टापदतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, ८x११). १.पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण, वि. १७४२, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, प्रले. मु. दानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अष्टापदमहिमा स्तवन, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरु सदगुरुनी वाणी; अंति: पंडित वनीतविमल गुण गायो, गाथा-१०८. २. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण.. म. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ अष्टापद नित नमिए; अंति: जिनेंद्र बुधते नेहरे, गाथा-८. ९७५११. (+) उपदेशमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६०९, भाद्रपद शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४१, ले.स्थल. मसुदानगर, पठ. मु. लावण्यकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपदेशमाला. अंत में 'मेहता वदनमलजी भंडार कीधी संवत-१९१० माघ' ऐसा उल्लिखित है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ९४२३-३२). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. ९७५१२. (+) पच्चक्खाण निजुत्ति, संपूर्ण, वि. १५००, वैशाख कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४५, प्र.वि. हुंडी:आव०सूत्र., आवश०सूत्र., आवि०सूत्र., आवशकसूत्र. ताडपत्र शैली में मूल पत्रानुक्रम-४७० से ५१४ तक है., संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १६-१७७५५-७०). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (१)जयइ जगजीव जोणी विआण, __(२)आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्टिओ साहू, गाथा-२५५०, ग्रं. ३१००. ९७५१३. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६-११(८ से १०,२५ से २६,३२ से ३४,३८ से ४०)=३५, कुल पे. १६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२५४१०.५, १४४३४-३६). १.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-२०अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:पडिक्कम, पच्चक्खाण, जयतिह, जयतिहय, व; पडि, वंदित्तु सूत्र, वंदित्तुसु. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं० जयउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (पू.वि. मौनएकादशी स्तुति गाथा-४ से सिद्धचक्र स्तुति गाथा-२ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. प्रव्रज्याकुलक प्रकरण, पृ. २०अ-२१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:संसारवि.. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. राईसंथारा गाथा, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:राईसंथा. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: मज्झवि तेह खमंतु, गाथा-१४. ४. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन १ से २, पृ. २२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:धम्मोमंग०. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५. पे. नाम. पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, पृ. २२आ-२४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:उपदेसमा. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. ६.पे. नाम. सप्तस्मरणानि, पृ. २४अ-३१अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:सप्तस्मर., सप्तस्मरण. सप्तस्मरण स्तव, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअ सव्वभयं; अंति: मंगल कलाण आवासं, स्मरण-७, (पू.वि. बृहद् अजितशांति गाथा-१४ अपूर्ण से लघु अजितशांति गाथा-७ अपर्ण तक नहीं है.) ७. पे. नाम. सप्तत्युत्तरशत जिनचक्र स्तोत्र, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तिजयपु. तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासं अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, पृ. ३१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालीया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ तक है.) ९. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ३५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) १०. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ३५अ-३७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कल्याणमं०., कल्याण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ११. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३११ नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १२. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ४१अ-४१आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:जीवविचा०. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण से १३. पे. नाम. २४ दंडकविचारगर्भित स्तवन, पृ. ४१आ-४३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दंडकसू०. दंडक प्रकरण, म. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे तस्सत्त; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४४. १४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४३अ-४५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दरियरय०. दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. १५. पे. नाम. महावीर स्तोत्र, पृ. ४५अ-४६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:भावारिवा०. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: जिनवल्लभ० दयालो मयि, श्लोक-३०. १६. पे. नाम. तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह, पृ. ४६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि ९ व्रत ५ धर्म; अंति: (-), (पू.वि. 'काय ६ योग १५' पाठांश तक है.) ९७५१४. (+-) महादंडक ३० द्वार, संपूर्ण, वि. १७८६, पौष शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. हुंडी:महादंडक. प्रतिलेखन पुष्पिका अशुद्धप्राय है. लिखावट से वस्तुतः प्रत २०वी की प्रतीत होती है. वि.सं. १७८६ में लिखी प्रत की प्रतिलिपि होनी चाहिये., अशुद्ध पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १६४३२-३५). महादंडक ३० द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेस्या २ ठिती; अंति: १०८ पेती० नीरंतरनो यार. ९७५१६. (+) वछराज चोपई, संपूर्ण, वि. १८४८, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. आउआनगर, प्रले. पं. क्षमासौभाग्य (गुरु ग. रामसौभाग्य); गुपि.ग. रामसौभाग्य (गुरु पं. जयसौभाग्य); पं. जयसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी;देववछचोपइ, वछराज देवराज चो० वछराज चो० देवराज चो०, देववछ चो०. श्रीशांतिजिन प्रसादात्., संशोधित. कुल ग्रं. १००७, जैदे., (२५४९.५, १४-१६४३८-४२). देवराजवच्छराज चौपाई, उपा. आनंदनिधान पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: मनशुध संतिजिणेसरु; अंति: कुसल कल्याण सहू जाणी जी, ढाल-३५, गाथा-८०४, ग्रं. १०००७. ९७५१७. (+) कर्मबंधविचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४-२०(१ से १९,५१)=३४, कुल पे. ३४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४९.५, २१४४५-५०). १.पे. नाम. कर्मबंधविचार संग्रह, पृ. २०अ-२१अ, संपूर्ण. कर्मबंध विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अवमानात्परिभ्रंशाद्वंधबंध; अंति: पडिमावन्नपमाणाहिनयं एहि. २. पे. नाम, पुद्गलपरावर्तद्रव्यस्वरूप विचार, पृ. २१आ, संपूर्ण. __सं., गद्य, आदि: जीवोनंतकालमेकेंद्रिये; अंति: अवाप्नोत्येवं भावसुप्तोपि. ३. पे. नाम. ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती विवरण, पृ. २२अ, संपूर्ण. पुहिं.,प्रा.,रा., गद्य, आदि: ब्रह्मदत्त; अंति: दक्खं पत्तं बंभदत्तेण. ४. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. २२अ, संपूर्ण. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: भरह पंचमकालेण हंति सेणि; अंति: सिद्धसहित सजीव ९. ५. पे. नाम. सूक्ष्मछेद पुद्गलपरावर्तस्वरूपादि विविध विचार संग्रह, पृ. २२आ-२४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. विविध विचार संग्रह*, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: क्षेत्र चौद रज्जु प्रमाण; अंति: कई ८ अठेवपभावगा भणिया. ६. पे. नाम. आगमग्रंथाग्रपरिमाण विवरण, पृ. २४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आगमग्रंथाग्र परिमाण विवरण, प्रा.,मा.ग., प+ग., आदि: (१)पणयालीसं आगमं सव्वगंथाण, (२)अंग नामानि आचारांग २५४४; अंति: ए ३२ सिद्धांत जाणिवा. ७. पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा सह टीका, पृ. २५अ, संपूर्ण.. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाने चेइय जइ; अंति: वितहाचरणेय अइयारा, गाथा-१. साधुअतिचारचिंतवन गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: शयनीय वितथाचरणे सत्यतिचार; अंति: यथा समितिण्विति गाथार्थः. ८. पे. नाम. द्रव्यभावचतुर्भंगी विचार, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. द्रव्यभाव चतुर्भंगी विचार, प्रा.,सं., प+ग., आदि: द्रव्यभावपद समुत्था चतु; अंति: ओघनियुक्ति वृत्तौ. ९. पे. नाम. जीवादिआयुष्यमान गाथा संग्रह, पृ. २५आ, संपूर्ण. चयनित गाथा संग्रह-जीवादि आयमान, प्रा., पद्य, आदि: पुढवी आउ वणस्सइ बारस; अंति: सिद्धि सुहं न पावंति, गाथा-२२. १०.पे. नाम. प्रश्नोत्तर संग्रह-आगमिक, प. २६अ-२८अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नवकार मांहि पहिला पद; अंति: सत्रमाहै का छै, प्रश्न-५६. ११. पे. नाम. २४ दंडक ५६३ भेद विवरण-गतागति, पृ. २८अ-३०अ, संपूर्ण... मा.गु., गद्य, आदि: १४ नारकी सातरा नाम धमा १; अंति: अपर्याप्ता मांहे आवै. १२. पे. नाम. २४ दंडक २३ पदवी गतिआगति विचार, प. ३०अ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: ७ सात एकेंद्री रत्नरा नाम; अंति: १५ पदवी टली वाकी ८ पांमै. १३. पे. नाम. १४ स्थान समुर्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उच्चारेसु वा वडीनीतमां १; अंति: एवं दस दंडके जावै. १४. पे. नाम, जीवोत्पत्यादि विचार गाथा संग्रह, पृ. ३०आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गब्भाउ विकाऊणं संगमा ईणि; अंति: दीव समुदं तिमो जलही. १५. पे. नाम. प्रश्नोत्तररत्नमाला, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण. आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिणवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. १६. पे. नाम. जिनोत्सेध प्रमाणाधिकार, पृ. ३१आ, संपूर्ण. २४ जिन शरीरमान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पंच धणुसय पढमो कमेण; अंति: णं शरीरमाणं जिणवराणं, गाथा-२. १७. पे. नाम. जिनायुः प्रमाणाधिकार, पृ. ३१आ, संपूर्ण. २४ जिन आयुप्रमाण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चुलसी बावत्तरि सट्ठी; अंति: आउ सिरिवद्धमाणस्स, गाथा-३. १८. पे. नाम. २४ जिन राज्यकाल विचार गाथा, पृ. ३१आ, संपूर्ण. २४ जिन राज्यकालविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वासुपूज्जमल्लिनेमी पासो; अंति: एहं छहिंवा समुज्जिणो, गाथा-१. १९. पे. नाम. जिनादि गत्यागति विचार, पृ. ३१आ, संपूर्ण. चक्रवर्ती-वासदेव-प्रतिवासदेव-बलदेव गति विचार, प्रा., पद्य, आदि: अद्वैव गया मुक्खं; अंति: माहिंदे अट्ठ वच्चंति, गाथा-६. २०. पे. नाम. आगमिकसंदर्भ गाथा संग्रह, पृ. ३१आ, संपूर्ण. विचारगाथा संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., आदि: एगोसत्तमीए पणहरि छठीइ; अंति: संखं कालमसंखं चकेसिंपि, गाथा-११. २१. पे. नाम.५ समवाय विचार, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: ॐ नमो कालो सहाव नियई; अंति: समवाये न मान्या. २२. पे. नाम. सूर्यचंद्रनक्षत्रचारवश मनुष्यसुखदुःख विचार, पृ. ३२आ-३३अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., प+ग., आदि: रयणिकर दिणयराणं नरकत्ताणं; अंति: ते अपास्ता द्रष्टव्या इति. २३.पे. नाम. विविध विचार संग्रह, पृ. ३३आ-४९आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ विविध विचार संग्रह *, गु., प्रा., मा.गु.,सं., प+ग., आदिः यदा भरते ऐरवते आषाढ १८; अंति: दुर्नृप चंडाल वेश्मने. २४. पे. नाम. गुणस्थानारोहावरोह विचार सह बालावबोध, पृ. ५०अ, संपूर्ण, वि. १८०५, वैशाख शुक्ल, ४, ले. स्थल वालोतरा, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५. पे. नाम. ५ इंद्रिय विषय विचार, पृ. ५०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: कायानो विषै १ जीभनो २; अंति: मनु ७० कोडा कोडि. गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि चउरिक्कदुपणपंचय अंति तिय दोहिं गच्छंति, गाथा- १. गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चदुक० हता च्यारि पैडा अति: चौद चौदमाथी मोक्ष जावै. २६. पे. नाम. जिनप्रतिमा की रात्रिपूजा रात्रिजागरण निषेध करने का आलावा छेदसूत्र, पृ. ५०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम देहरा च्यार अंति (-) (पू.वि. 'बले श्री जिनवल्लभसूरि कृत' पाठांश तक है.) २७. पे. नाम. जंबूद्वीपसूर्यचंद्र परिधिमान विचार, पृ. ५२-५३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: कार्य करवा थकी जाणवुं, (पू.वि. विषयगत गाथा- ६९ से है.) २८. पे. नाम भव्याभव्य लक्षण विचार, पृ. ५३आ, संपूर्ण. सं. गद्य, आदि: भव्यस्वाभव्यत्वलक्षणमेव अंति भव्यशं काया अभावादित्यादि. २९. पे नाम. सवाविश्वाजीवदया गाथा सह अर्थ, पू. ५४अ, संपूर्ण सवाविश्वा जीवदया गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा सुहुमा थूला; अंति: विक्खा चेव निरवक्खा, गाथा- १. जीवदया गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना विभेद सूक्ष्म १; अंति: विश्वानी जीवदया पाले. ३०. पे. नाम जीव आहारनिमित्त गाथा, पृ. ५४अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: आहार निमित्तेणं मच्छा; अंति: सर्वं तथा गर्भो न पच्यते, गाथा-५. ३१. पे. नाम. देहस्वरूप कुलक सह अर्थ, पृ. ५४अ-५४आ, संपूर्ण. देहस्वरूप कुलक, प्रा. सं., पद्य, आदि नारीणं गब्ध संखा इग दोति; अंति: ललाटे च पच्यते जठराग्निना, गाथा- ९. दस दशा हुवै जात; अंति: खूटतै पुरुषाकार खूटै. देहस्वरूप कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि जाया ३२. पे. नाम संतानोत्पत्ति आयु विचार, पू. ५४आ, संपूर्ण संतानोत्पत्ति आयु विचार - स्त्री पुरुष, मा.गु., गद्य, आदि तथा शत वर्षायु काले प्राय: अंति जिसे सत्तरि तिथि रहे. ३३. पे नाम. १० संज्ञा विचार वनस्पति, पू. ५४आ, संपूर्ण ३१३ मा.गु., गद्य, आदि : आहार संज्ञा १ वनस्पतिनै; अंति: नथी ते धणी सर्व देखै छे. ३४. पे. नाम ब्रह्मदत्त कथा, पृ. ५४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि संसारमांहि संसारनो सगपण अति: (-), (पू.वि. 'कनककेतु राजाइ आपणा' पाठांश तक है.) ९७५१८ (+) कर्पूरप्रकर सह कथा-श्लोक १ से १२६, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. ५१-३२ (१ से ३२ ) = १९, लिख. ग. धनविजय (गुरु मु. नंदिविजय, तपागच्छ); गुपि. मु. नंदिविजय (गुरु ग. शुभविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : कर्पूर०टी०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, १३X३५-४२). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. श्लोक ८५ अपूर्ण से है.) कर्पूरप्रकर-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. वल्कलचीरी कथा से है., वि. कुल ४२ कथाएँ हैं.) For Private and Personal Use Only ९७५१९. (+) देवनारकादि विविध विचार-वोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २७. प्र. वि. पंक्ति अक्षर अनियमित है. अलग-अलग क्रम में पत्रानुक्रम है., संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४.५४१०.५). बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि असुरकुमारना २ इद्र चमरिंद; अतिः केवली उपदेस दीख्या दि. Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९७५२१. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७४३, कार्तिक कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. कर्मचंद (गुरु मु. पाथाजी); गुपि. मु. पाथाजी (गु रु मु. ठाकुर ऋषि); मु. ठाकुर ऋषि (गुरु मु. घडसी ऋषि); मु. घडसी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:दशवैकालिकसूत्र., संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३६-४३). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: आगमं गइ त्ति बेमि, अध्ययन-१० चूलिका २. ९७५२२. (+#) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, ६-७४३६-४०). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: (-), (पू.वि. 'दोपातीतो पणत्ताओ ताओण' पाठ तक है.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं नमस्कृत्य श्रुत; अंति: (-). ९७५२४. (#) संघग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९-१६(१,१० से ११,१६ से २८)=१३, प्रले. मु. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ५४३६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७८, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक, गाथा-८३ से १०२ अपूर्ण तक व बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नंदउजा वीरनउ शासन वर्तइ. ९७५२५ (+#) विक्रमसेन चतुष्पदी, अपूर्ण, वि. १७६०, मध्यम, पृ. ३४-१३(१,१० से १४,२१ से २२,२६ से २७,३१ से ३३)=२१, ले.स्थल. पीपाडनगर, प्रले. प्रेमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:लीलावतीचौ०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १७४४६). विक्रमसेनराजा चौपाई, म. मानसागर, मा.ग., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: मानसागर० दिन दोलत पाइजी, ढाल-५२, गाथा-११६२, ग्रं. १६२४, (पू.वि. ढाल-१ की गाथा-१७ अपूर्ण तक, ढाल-१४ गाथा-९ अपूर्ण से ढाल-२२ गाथा-१० अपूर्ण तक नहीं है.) ९७५२७. (+#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१(१)=२१, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, ११४२७-३३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से गाथा-३७९ अपूर्ण तक है.) ९७५२८. (#) सूक्तमाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:सुक्तावलि., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१०, १५४३५-३८). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलकुशलवल्लि; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम प्रशस्ति भाग गाथा-४२ अपूर्ण तक है.) ९७५२९ (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८-२(१ से २)=६, कुल पे. ५,प्र.वि. हुंडी:सज्झाय., संशोधित., जैदे., (२३४१०,११४२८-३२). १. पे. नाम. रीषीरी सझाय, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मेतारजमनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सेवताजी साधु तणी रे सिझाय, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से २.पे. नाम. रहनेमी सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, म. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग व्रत रहनेम; अंति: सासय सुख लहिस्ये रे, गाथा-१२. ३. पे. नाम, अनाथरी सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणक रे वाडी चज्यो पेखी; अंति: समयसंदर०वंदे रे बे करजोड, गाथा-९. ४. पे. नाम. रोहेणी पंचमीनी सज्झाय, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३१५ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीवासुपूज्य जिणेशर; अंति: नाणे संघ सयलने खुखदाया रे, ढाल-५, गाथा-१६. ५. पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाय, पृ. ६आ-८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __मा.गु., पद्य, आदि: कोसंबी नयरी पधारीया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) ९७५३० (+#) संघयण प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८४३, वैशाख शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. वीदासर, पठ. मु. जीवणदास (गुरु मु. रत्नचंद); गुपि. मु. रत्नचंद (गुरु मु. सांवलदास ऋषि); मु. सांवलदास ऋषि (गुरु मु. वखतमल्ल); मु. वखतमल्ल (गुरु मु. हेमराज); मु. हेमराज (गुरु मु. महेदास); मु. महेदास (गुरु आ. सदारंग); आ. सदारंग, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हंडी:संघयण., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३०-४५). बहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३३०. ९७५३१ (+-) गोडीपारसनाथजीरो चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १९३४, वैशाख शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ.५, ले.स्थल. जैतारण, प्रले. सीवजी रामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२३.५४१०, १०x२८-३०). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: भंणी ब्रीह्मा भादनी जागे; अंति: प्रीतविमल० जेपतै स्युरणे, ढाल-५, गाथा-५५. ९७५३२. (+#) पाशककेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०, १२-१३४४५-४८). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: १११ पदं पदं पदं चांते; अंति: कुलीनाय हितात्मने, श्लोक-१८४. ९७५३४. (+#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ९४३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ गाथा-२९ अपूर्ण तक है.) ९७५३५ (+#) नमिऊण स्तोत्र, उपसर्गहरस्तोत्र की लघवृत्ति व शक्रस्तवाम्नाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८-२(१ से २)=६, कुल पे. ३, ले.स्थल. बाहोपुर, प्रले. पं. मेरुलाभ (अंचलगच्छ); पं. पद्मलाभ (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०, १८४५२-६०). १. पे. नाम. भयहर स्तव सह विवरण, पृ. ३अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सयल भुवणच्चिअ चलणो, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-८ से है.) नमिऊण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भवति मूलमंत्रेण पूजनीयमति, (पू.वि. गाथा-७ की टीका अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र की लघुवृत्ति, पृ. ५आ-८अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ लघुवृत्ति, आ. पूर्णचंद्राचार्य, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: नमस्कृत्य परब्रह्म; अंति: द्यावादाभिधग्रंथात्, (वि. मूल का प्रतीक पाठ लिखा है.) ३. पे. नाम. शक्रस्तवाम्नाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. शक्रस्तव-शक्रस्तवाम्नाय, संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमुत्थुण अरहंताणं भगवंत; अंति: सर्वभयरक्षा भवति, मंत्र-१०. ९७५३६. (4) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पडिकमणासूत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०,१०४२४-२८). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. 'चत्तारि अठदस दोइ वंदिय' पाठांश तक है.) ९७५३७. (+) कार्तिकसौभाग्यपंचमी माहात्म्य विषये वरदत्तगुणमंजरी कथा, संपूर्ण, वि. १८६५, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र.वि. हुंडी:सौभाग्यपंचमी कथा., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०.५, ४४३५-४२). For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनाधि; अंति: लिखिता सूरेव च मेडतानगरे, श्लोक-१५०. वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ भगवान तेह; अंति: तेणे ज मेडतानगरने विषे. ९७५३८. (+) द्वार २६ गर्भित वीर स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३३-१०(८,१६ से २४)=२३, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १६५, जैदे., (२४४१०.५, ३४२५-३०). महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर स्वामी वीरजिन; अंति: ___ मई लहीइ अविचल ठाउ, गाथा-९१, ग्रं. १६२, (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से २६ अपूर्ण तक व गाथा-४४ अपूर्ण से ६५ अपूर्ण तक नहीं है.) महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुखनो करणहार ठाकुर; अंति: मांहि कह्यो छइ सिद्धिनो. ९७५४० (+#) साधप्रतिक्रमण पगाम सिज्झाय आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. ३६-२८(१ से १४,१६ से १८,२३ से २५,२७ से २९,३१ से ३५)=८, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१०, १०४२६-२८). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमण पगाम सिज्झाय, पृ. १५अ-२१आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. पाली, पठ. पं. हंसराज, प्र.ले.पु. सामान्य. देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीस, (पू.वि. वंदित्तुसूत्र गाथा-१३ अपूर्ण तक व गाथा-२९ अपूर्ण से पगामसूत्र-'दसणविराहणाए' पाठांश तक नहीं है.) २. पे. नाम. जयतिहअण स्तोत्र, पृ. २२अ-२६अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १९०७. आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: सिरिअभयदेव विनवइ आणंदिय, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से २८ अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. २६अ-३०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक नहीं है.) ४. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ३६अ-३६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. श्लोक-३५ अपर्ण से ४३ अपर्ण तक है.) ९७५४१. भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. हुंडी:भुवन०., जैदे., (२५४१०.५, ११४३५). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरयः, श्लोक-१६६, (वि. अंत में ज्योतिष श्लोक दिया है.) ९७५४२ (-) रामयशोरसायन चौपाई आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. ५, प्रले. सवजी रामजी; अन्य. मु. वेलजी ऋषि; मु. देवजी सामी; श्राव. जेठजी; श्राव. जीगमीरचंद; सीताराम जयराम जोशी; श्राव. जडाचंद; श्रावि. कंकुबाई; श्रावि. जडावबाई; श्राव. गुलाबबाइ, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१०, ८-१२४२०-२४). १.पे. नाम. रामयशोरसायन चौपाई-अधिकार-१ की ढाल-१३ वी व अधिकार-२ की ढाल-३२ वी, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण. रामयशोरसायन चौपाई, म. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो-ढाल १, पृ. १२अ-१४अ, संपूर्ण. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे वीइ वली; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org ३१७ शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा. पद्य, आदि: मोरा सामी श्रीसीतलनाथ के; अंति: चरण न छोडुं तोरडा, गाथा-१३. ४. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीरत्न, मा.गु., पद्य, आदि प्रणमुं तुमारा पाय अंति: लखमीचंद० मे तो देखा प्रतस, गाथा-७ ५. पे नाम, नमस्कार महामंत्र, पू. १६आ-१७अ संपूर्ण शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि नमो अरिहंताणं; अंति: नमो लोए सव्वसाहूणं, पद-५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९७५४३. युगप्रधान जिनचंद्रसूरिजी निर्वाण व सोभाग्यपंचमी महात्म्य विषचे वरदत्तगुणमंजरी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, जैदे. (२४४१०.५, १७४३२-३६). १. पे. नाम. युगप्रधान जिनचंद्रसूरिजी निर्वाण, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण, पे. वि. अंत में "आसु वदि २ वंचायै" ऐसा लिखा है. जिनचंद्रसूरिनिर्वाण रास, मु. समयप्रमोद, मा.गु, पद्य, आदि गुणनिधान गुरु पाव; अति युगवर नामै जय जयकार, ढाल-४, गाथा ७०. २. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी महात्म्य विषये वरदत्तगुणमंजरी व्याख्यान, पृ. ३अ-७अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: सोभाग्यपंचमी. वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अति लिखिता सुरेव च मेडतानगरे, श्लोक-१५२. ९७५४५ (-) मेघकुमार पंचढालियादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे., (२३४१० १८x२५-३५). १. पे. नाम. मेघकुमार पंचढालिया, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: गुण गाउ गीरवा तणा गुणधर; अंति: रायचंद० कुण हार मीनख जमार, ढाल-५. २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि धारणी समजावे हो मेगकुवार; अंति: रायचंद० दो हीत ल्याय, गाथा-१४. ३. पे. नाम. मेघकुमार चौढालिया, पू. ४-५ आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मेघकुमार चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: मोटी बणाई एक सेवकाजी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल -४ गाथा-६ तक है.) ९७५४६ (+) आराधनासूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी आराधनासूत्र.. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३.५X१०.५, ७X२०-३०). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६८ अपूर्ण तक है.) ९७५४९. व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १८०९, वैशाख कृष्ण, १०, रविवार, जीर्ण, पृ. २०-१२ (१ से १२) -८, प्रले. पं. हरखचंद गणि (गुरु उपा. करमचंद, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. उपा. करमचंद (गुरु ग. ज्ञानमेरू, बृहत्खरतरगच्छ); ग. ज्ञानमेरू (गुरु उपा. आणंदकुशल, बृहत्खरतरगच्छ); उपा. आणंदकुशल (बृहत्खरतरगच्छ ); पठ. श्राव. नारायणदास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी मौनएकादशी., जैदे. (२४.५४१०, १५X३३-५२). " व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु., रा. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. चीमासी व्याख्यान अपूर्ण से है.) ९७५५० (+#) प्रतिक्रमणविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १३-८ (१ से ८) = ५, प्र. वि. हुंडी: पडिकमणासूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४x१०, १०-१२x२८-३०). प्रतिक्रमणविधि संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि (-); अति भो० सह० मह० सव्व० वोसिरड़, (पू.वि. संसारदावानल स्तुति गाथा ४ अपूर्ण से है . ) , , ९७५५१. () सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १२-६ (२ से ६) =६, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३.५x१० १० १२x२४-२९). "" सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि (-) अंति (-), (पू.वि. लघुअजितशांति से गुरुपारतंत्र गाथा-७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९७५५३. (+#) अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-१(७)=९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०, १०४२४-३१). श्रावक पाक्षिकादि अतिचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि अ चरणंमि; अंति: करी मिच्छामि दक्कडं, (पू.वि. "करिवे च्यावासीमा खणतवो" पाठ से "सामाइक लेइ उघारे मुखे बोल्या" के बीच का पाठ नहीं है.) ९७५५६. (+) सिंदूर प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्र०., संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १५४४३). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९४ अपूर्ण तक है.) ९७५५७. (+) दशअछेरा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, १३-१५४४५-४८). १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: उवसग्ग १ गब्भहरणं २; अंति: अवसर्पिणीयइ हवइ, ग्रं. ११३. ९७५६१ (4) नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४-५(२ से ३,१८ से १९,२१)=१९, प्र.वि. हुंडी:नंदीसूत्र., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१०.५, ११४३८-४२). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: से तं परोक्खणाणं, सूत्र-५७, गाथा-७००, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., "इंदियपच्चक्खं नो इंदियपच्चक्खं" पाठ से "इतियपच्चक्खं नोइंदियपच्चक्खंच सेकितं" तक, "एगणतीसंसमदेसणकालो संखिद्यापयसह" से "सकडदकडाणं कम्माणंफलविवागे" तक व "परिक्कमे पुट्ठसेणियापक्खि" से "८ पच्चक्खाणप्पवायं ९ अवब्भं ११" के बीच के पाठ नहीं हैं.) ९७५६२ (+) विक्रमसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१४, फाल्गुन कृष्ण, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. ३२, ले.स्थल. मांडवीबिंदर, प्रले. ग. विनीतविजय (गुरु ग. रत्नविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. रत्नविजय (गुरु ग. सुखविजय, तपागच्छ); ग. सुखविजय (गुरु ग. बुद्धिविजय, तपागच्छ); ग. बुद्धिविजय (गुरु पं. तत्वविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीशीतलनाथ प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १६४५०-५४). विक्रमसेनराजा चौपाई, म. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकास; अंति: परमसागर आणंदा रे, ढाल-६४. ९७५६३. (#) स्तुति, स्तवन व चौढालिया संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१०.५, ११४२९). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, आदि: प्रणमं श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२५.. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, मु. नित्यप्रकाश, मा.गु., पद्य, आदि: सारद हो पाय प्रणमवी; अंति: नितप्रकार०सुखीया करै, गाथा-१३. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन गीत, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण... म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे एही ज चाहीइं; अंति: में तो ओर न ध्याउं, गाथा-३. ४. पे. नाम, दानशीलतपभावना चौढालिया, पृ. ४अ-१०अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: सकल संघ सुजगीसो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. ९७५६४. दशअछरानी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. हुंडी:दसअछेनारी.कथा., दे., (२४४११,११-१२४२७-३१). १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: उवसग्ग १ गब्भहरणं २; अंति: (-), ग्रं. ११३, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "ए पंच अछेरा श्रीमहावीरजीने वारे हुवा" पाठ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९७५६५ (+) पाक्षिकनमस्कार सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८३५ आश्विन शुक्ल, १२, मध्यम, पू. ७, ले. स्थल घाणोरा, प्रले. पं. खुस्यालसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२३१०, ९-१४x२१-३०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " " त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र - हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. पद्य वि. १२वी, आदि सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: भावतोहं नमामि श्लोक-३०. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सकल क० समस्त अर्हत; अंतिः भावधी प्रणाम करूं छु. ९७५७२ (+४) नेमराजुल संवाद- चोवीस चोक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३x१०.५, १२x२७-३३). ३१९ नेमगोपी संवाद- चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवसे नेमकुमर निज; अंति: (-), (पू.वि. ढाल - २२ गाथा - १ तक है. ) ९७५७३. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३६, फाल्गुन शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. श्राव. प्रेमलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२३४१०, ८४२८-३०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अति कुमुद० प्रपद्यते, लोक-४४. , ९७५८२. (+४) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२२.५४९.५, ८-१०x२६-३३) "" कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अति कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक - ४४. ९७५८९ (+#) सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३१-४ (१ से ४)=२७, कुल पे. २८, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३x१०, ११-१५x२७-४५). १. पे. नाम. अरणिक सज्झाच, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति रूपविजय० फल साधो जी, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा - ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अयमत्ताऋषि सीझाय, पृ. ५अ - ६अ, संपूर्ण, प्रले. पं. मतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: ते मुनिवरना पाया, गाथा- १८. ३. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पू. ६आ, संपूर्ण. ग. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ते बळीयो भाई ते बळीय; अंति: हर्षविजय हितकारी रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. इलाचिकुमर सीझाव, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि नामेलापूत्र जाणीवै; अति लबधिविजय गुण गाय, गाथा - ९. ५. पे. नाम अनाधीनी सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति: समय० वंदेरे बे करजोडि, गाथा-९. ६. पे. नाम. असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमुं श्रीगौतम, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - १४ अपूर्ण तक लिखा है.) ७. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय-दानफल, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि एक घर घोडा हाथीवा जी; अंति: पुण्य तणा प्रमाण रे, गाधा- १४. ८. पे. नाम. धनाशालिभद्र सज्झाच, पृ. ९आ ११ अ. संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि प्रथम गोवालतणे भवेई जी अति सहजसुंदर समान सोभागी, गाथा - १७. ९. पे नाम. दशाणभद्र सज्झाय, पू. ११अ १३अ, संपूर्ण दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि सारद बुधवाईक सेवक नयणानंद, अंतिः प्रणमहं लालविजय निसि दीस, गाथा - १४. १०. पे नाम. पंचमीतिथिपर्व सज्झाय पू. १३अ १३आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीगुरु चरण पसाउले रे; अंतिः कांतिविजय गुण गाय, गावा- ७. ११. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १३-१४अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: गोपीपति पुछे पभणे नेम; अंति: किरति पसरै सासन विनय कहंत, गाथा-४. १२. पे. नाम. नमीराजर्षि सज्झाय, पृ. १४अ - १४आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मीथुला नयरिनो धणी; अंति: जिहो पाय प्रणम्यै बारोवार, गाथा-८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३. पे. नाम रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १४-१५अ संपूर्ण मु. : हितविजय, मा.गु., पद्म, आदि प्रणमी सदगुरु पाय गावसु अति एम अविचलपद राजुल लह्यो जी, गाथा ११. १४. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १५ अ- १६अ, संपूर्ण. ग. शिवनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: एहवा साधुजीनेई वंदना रे; अंति: सिवनिधान सुख थाय रे, गाथा-१४. १५. पे नाम. थूलभद्र सज्झाय, पू. १६अ १७अ संपूर्ण स्थूलिभद्रमुनि सज्झाव, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि लाछलदे मात मल्हार बह अंति रे लबधि लील लक्ष्मी घणीजी, गाथा १७. १६. पे. नाम हितशिक्षा सज्झाय, पृ. १७-१७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झायनिंदात्याग, मा.गु., पद्य, आदि म कर हो जीव परताति दिन अति भावसुं एह हित सीख माने, गाथा - ९. १७. पे. नाम. राजीमति सज्झाय, पृ. १७आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. सुखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजूल घर थकी नीसरी रे; अंति: गया रे सूख बोले स्याबास, गाथा - ११. १८. पे नाम. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १७-१८ आ, संपूर्ण. पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि कोस्या कामनी कहे चंदला, अंति: गुणग्यान निसवीस रे, गाधा- २२. १९. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १८-१९अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्री उपनो सुणो विनती हो; अंति राजि शिष्य रूपविजे जयकार, गाथा - ११. २०. पे. नाम. आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. १९अ - १९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-सुखदुखविषये, मु. दाम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करि रे आपो; अंति: धरम सदा सुखकार रे प्राणि, गाथा ८. २१. पे नाम. कुमतिनी सज्झाय, पृ. १९आ- २१अ संपूर्ण महावीरजिन स्तवन- कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, आव. शाह वघो, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि श्रीश्रुतदेवी तणे सुपसायै; अंति: मुजने सदगुरू तूठो रे, गाथा-४०. २२. पे नाम, जीवदयानी सज्झाय, पृ. २१-२२अ संपूर्ण दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करु प्रणाम; अंति: सार विवेकचंद कहे ए विचार, गाथा - २५. २३. पे नाम. तमाकुनी सज्झाय, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३२१ औपदेशिक सज्झाय-तमाकु त्याग, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती वीनवे; अंति: उचरे ते लहइ कोडि कल्याण, गाथा-१८. २४. पे. नाम. आबूशीखरेआदिसर स्तवन, पृ. २२आ-२४अ, संपूर्ण. आबुतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: आज अनोपम पुन्यथी मइ भेटीआ; अंति: दरिसणे पुहती सयल जगीश, गाथा-३५. २५. पे. नाम. पच्छखाणस्वादिम सज्झाय, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यान सज्झाय-दुविहार, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलु प्रणमु सरसति; अंति: दिन दिन दीपो तपगच्छ नाह, गाथा-१६. २६. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मनसुध आसता देव जुहारु; ___ अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर, गाथा-७. २७. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, पृ. २५अ-२९आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुखलवई विजये जयो रे नयर; अंति: सेवक वाचक जस इम बोलई रे, स्तवन-२०. २८. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३०अ-३१आ, संपूर्ण. मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अचिरानंदन प्रणमीये; अंति: जैनेंद्रसागर गुण गायाजी, गाथा-२५. ९७५९७. (+) जयतिहुअणबत्रीसी व परमिष्टलघु स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७९४, भाद्रपद कृष्ण, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. २३-१८(१ से १७,१९)=५, कुल पे. २, पठ. मु. खुस्यालचंद (गुरु पं. रंगवल्लभमुनि); गुपि. पं. रंगवल्लभमुनि (गुरु उपा. कर्पूरप्रिय गणि); उपा. कर्परप्रिय गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०, ८४२६-३१). १.पे. नाम. जयतिहअणबत्रीसी, पृ. १८अ-२२आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:जयतिहु०. जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभयदेव विन्न० आणंदिउ, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से १३ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. परमिष्टलघु स्तोत्र, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: परमेट्ठिमंतसारं सारं; अंति: आरुग्गं देह सुहपन्नो, गाथा-७. ९७६०६. (+#) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८६५, चैत्र शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ६-१(१)-५, ले.स्थल. खंभातबंदर, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय; पठ. मु. देवचंद (गुरु पं. लक्ष्मीविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, १२४२९). नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सूसूहु मोउ कम्मेण बोधद्धो, गाथा-१०१, (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से है.) ९७६११. (#) नेमराजिमती चोक, संपूर्ण, वि. १८६२, आषाढ़ शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. आहोरनगर, प्रले. मु. शिवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, १३४२५). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, म. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: समर्या देवी सारदा बहोली; अंति: सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. ९७६१२. (+) चौपाई व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२-१(१)=२१, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., ., (२२४१०, १३४३२-३५). १. पे. नाम, बंकचूलमहामुनि प्रबंध, पृ. २अ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. वंकचूल रास, मु. गंगदास, मा.गु., पद्य, वि. १६७१, आदिः (-); अंति: गंगदास० टाले कर्मनो बंध, ढाल-६, __ गाथा-१२८, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सकोशलमहामनि चउपड़, पृ. ७अ-१२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुकोशलमुनि चौपाई, म. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: प्रणमुं प्रथम जिणंद; अंति: भावसरे तस घरी कोडि कल्याण, गाथा-११८. ३. पे. नाम, सिलाधीकारकन्हिराम कठियारा चोपइ, पृ. १२अ-१९आ, संपूर्ण. कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पार्श्वनाथ प्रणमुं मुदा; अंति: मानसागर०दिन वधते वानह्या, ढाल-९. ४. पे. नाम. नवपदमहिमा स्तवन, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इण परि भवियण नवपद ध्याइये; अंति: कहै. नवपदनो आधार रे, गाथा-१५. ५. पे. नाम. २४ स्थानक प्रकरण का बालावबोध, पृ. २०आ-२२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ स्थानक प्रकरण-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: गइ इंदिय २ काए ३ जोए; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"ते ज्ञान ३ दर्शन ३ एवं ६ लेश्या" तक है.) ९७६१३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ५, जैदे., (२२४१०, १०४२७). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-पारणाविनति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोमासी पारणो आवे; अंति: शुभवीर वचनरस गावे रे, गाथा-८. २. पे. नाम. पंचमी सज्झाय, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर वयण; अंति: संघ सयल सुखदाय रे, ढाल-५, गाथा-१६. ३. पे. नाम. सरवारथसिद्ध सज्झाय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: रे पुन्य थकी फले आसो रे, गाथा-१५. ४.पे. नाम, विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. ४आ-७अ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय-शीलगर्भित, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः प्रह उठी रे पंच परमेष्टी; अंतिः कुसल नित घर अवतरे, ढाल-३, गाथा-२४. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्वाध्याय, पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो प्रणमुं दिन प्रतिं; अंति: कहे मानविजय उवज्झाय, ढाल-४, गाथा-२५. ९७६१४. (#) नवतत्त्व, जीवविचार व दंडक प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८३७, कार्तिक कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २५-१५(१ से १५)=१०, कुल पे. ३, ले.स्थल. मेगलवास, पठ. मु. केसरचंद (गुरु मु. नेतसी); गुपि. मु. नेतसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०,११४२४-२६). १. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण, पृ. १६अ-१९अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुण्णं३ पावा४; अंति: क्क१४ णिक्काय१५, गाथा-४८. २. पे. नाम, जीवविचार प्रकरण, पृ. १९अ-२२आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३. पे. नाम, दंडक प्रकरण, पृ. २२आ-२५आ, संपूर्ण. मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४४. ९७६१५. श्रावक आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(२)=५, जैदे., (२१.५४१०, १४४३६-४०). श्रावक आराधना, उपा. समयसंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: दुष्टकष्टप्रणाशनं; अंति: मुनिषडरसचंद्रवर्षे, अधिकार-५, ग्रं. १६६, (पू.वि. पाठ-"इह भवेइत्यादिक मिथ्याद्कृतं देहि" से "अहोरात्राणिउवकृष्टं आयु" के बीच का पाठ नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३२३ ९७६१६. अचलदास वात व उदयापुरमंडन शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्रले. मु. शिवचंद (पुनमगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१०, ११-१३४२७). १. पे. नाम. अचलदास वात, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण, वि. १८६१, भाद्रपद शुक्ल, १४, मंगलवार, ले.स्थल. गागुडाग्राम, पे.वि. अंत में "कुवरजी श्री देवसिंघजीरी पोथिसु उतारि छे त्रीतयपोहरे" ऐसा लिखा है. अचलदासजीरी वार्ता, रा., गद्य, आदि: गणपत गवरिसत्तम विगन हरण; अंति: पछे तो परमेसरजी जाणै. २. पे. नाम. उदयापुरमंडन शीतलनाथजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-उदयापुरमंडन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सीतलजिन सहेज सुरंगा; अंति: कुशल गुण गाया रे, गाथा-५. ९७६१९ (2) गुणरत्नाकर छंद, संपूर्ण, वि. १७७०, गगनमुनिरिषिजानि इंदु, आषाढ़ शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २७, ले.स्थल. भानुमतीनगर, प्रले. श्राव. संतोष; अन्य. पं. नरेंद्रसागर (गुरु मु. अनोपसागर); गुपि. मु. अनोपसागर (गुरु मु. महिमासागर); मु. महिमासागर (गुरु ग. अजितसागर); ग. अजितसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पं. नरेंद्रसागरजी की प्रत पर से लिखा है. प्रतिलेखन पुष्पिका पद्यमय है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१०.५, १२४२७). गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल; अंति: करो सहिजसुंदर मया, अध्याय-४. ९७६२२. (+) पासाकेवली शुकनावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१.५४१०.५, ९४२८-३१). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: भलो होसी ए शकुन उत्तम छे. ९७६२३. (2) नवतत्व व जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१०.५, ९४२८). १. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४४. २. पे. नाम, जीवविचार प्रकरण, पृ. ४आ-९आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ९७६२४. (#) नेमीनाथविवाह गरबो, संपूर्ण, वि. १८८५, आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. गौत्रका, प्र.वि. हुंडी:विवाहलो., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, ११४३९). नेमिजिन विवाहलो, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: सरसती चरण सरोज रमी; अंति: विमला कमला झाक जमाला, ढाल-२२. ९७६३०. (+) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धि मंत्री व चंद्रधवल कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-३(१५ से १७)=१५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ४५०, जैदे., (२१.५४१०.५, १७-२०x४३-४८). १.पे. नाम. पापबुद्धि राजा धर्मबुद्धि मंत्री कथा, पृ.१अ-१२अ, संपूर्ण. पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग., आदि: धर्मतः सकलमंगलावली; अंति: जयो वांछितावाप्तिः. २. पे. नाम. चंद्रधवल कथा, पृ. १२अ-१८अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., पे.वि. अंत में "कुलवालक कथा" आरम्भ करके छोड़ दिया है. चंद्रधवल कथा-अतिथिसंविभागव्रते, आ. माणिक्यसंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इह भरतक्षेत्रे; अंति: पार्श्वनाथः श्रियेवः, ग्रं. ४००, (पू.वि. पाठ-"अविचल पालउ अवर धरम अविकार" से "पियाचकोभ्येति तदा तस्मै किंचिद्ददामि" तक नहीं ९७६३१. (+#) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)-५, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२१x१०.५, १०४२५-२८). १.पे. नाम. सती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जासिं जसपढओ तिहणे सयले, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, नंदीसूत्रथिरावली-गाथा १ से १७, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. निंदा स्वाध्याय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: नंद्या न करस्यो कोइ पारकी; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५. ४. पे. नाम, मेघकुमार स्वाध्याय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मेघकुमार सज्झाय, मु. माणिकविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघकुमारने; अंति: माणिकविमल० भवंत तणो पार, गाथा-५. ५. पे. नाम, मुहपति स्वाध्याय, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण. मुहपत्ति सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मांडवमंडण जगदानंद; अंति: प्रीतविजय कहि धरो विचार, गाथा-१३. ६. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायिक मन सुद्धे; अंतिः समायिक व्रत पालो निसदिस, गाथा-५. ९७६४२ (+#) श्रावक अतिचार, अपूर्ण, वि. १८७०, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, प्रले.पं. तीर्थसोम; पठ. मु. लोंडाजी (गुरु पं. तीर्थसोम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अतिचा०. श्रीगोडीजी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, ११-१३४२७-३०). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. विशेष स्थूल अतिचार अपूर्ण से है.) ९७६४४. (+#) श्रावक प्रतिक्रमण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:प्रतिक्रमण., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११.५, ६४३०). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: इत्थं वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. वंदित्तुसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: तीर्थंकर ने वांद छु, (वि. आदिवाक्य वाला भाग खंडित है.) ९७६४८. (+) जंबूद्वीप विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३२-१(१)=३१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२२४११, १०४२९-३३). जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., सिद्धशिलावर्णन अपूर्ण तक है.) ९७६५१ (+) सांबप्रधुन चरित्र, संपूर्ण, वि. १७६९, आश्विन कृष्ण, ४, रविवार, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. आसोतरा, प्रले. पंन्या. रंगविमल गणि (गुरु वा. हेमप्रमोद गणि); गुपि. वा. हेमप्रमोद गणि (गुरु पं. जयरत्न), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सांबप्रद्यु., संशोधित., जैदे., (२१४१०, १७४३८-४०). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: समयसुंदर०सुजस जगीस ए, खंड-२ ढाल २२, गाथा-५३३, ग्रं.८००. ९७६५३. (+#) शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. हुंडी:सुकनावली., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११.५, १५४३०-३६). पाशाकेवली, म. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कृष्मांडिनी; अंति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१८३. ९७६५४. विंशतिविहरमान जिनानां स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५, प्रले. पं. केसरसिंह साधु, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२२४११, ११-१५४२५-३३). स्तवनवीसी, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरजिनराज सुहंकर लागा; अंति: केसरकुशल० दिन दिन अतिकाई, स्तवन-२०. For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३२५ ९७६५५ स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९०४, फाल्गुन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पू. १०-१ (७) =९, कुल पे. ४, ले. स्थल, नागोरनगर, बीलाडा, प्रले. पं. गौतमसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपार्श्वजीन प्रशादात्., दे. (२०.५x१०.५, १३३०-३२). १. पे. नाम. अढीद्वीपवृद्ध स्तवन, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वंदु मन सुध विहरमाण; अंति: धरमसी०धरी भ्रमसी नमे, ढाल ३, गाथा २६. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ -६अ, संपूर्ण, प्रले. पं. गौतमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन छट्टा आरा परिचयगर्भित, आव, देवीदास, मा.गु., पद्य वि. १६११, आदि सकल जिणंद पाय नमी: अंतिः सयल संघ मंगल करो, ढाल -५, गाथा - ६४. ३. पे. नाम. पडावश्यकविचार स्तवन, पृ. ६अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. ६ आवश्यक स्तवन, संबद्ध, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि चोबीसे जिन चिंतवी चतुर अंति: तेह सवि संपद लहे, ढाल-६, गाथा-४४, (पू.वि. ढाल - २ गाथा-१३ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-३२ अपूर्ण तक नहीं है.) ४. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: ए धन सासन वीर जिनवर, अंति कीधो चउपने फलवधिपुरे, ढाल ४, गावा- ३०. ९७६६२. (*) ८ कर्म एकसो अठावन भेदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे ४, प्र. वि. संशोधित. वे. (२२x११, १६-१९४४२). १. पे. नाम. ८ कर्म एकसो अठावन भेद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय; अंति: भोगांतराय ४ वीर्यांतराय ५. २. पे. नाम. १४ गुणठाणा नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि मिध्यात गुणठाणो १ सासादन; अतिः सयोगीगुण १३ अयोगी १४. ३. पे. नाम ६२ मार्गणा नाम, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: देवगति १ मनुष्यगति २; अंति: आहारक ६१ अनाहार ६२. ४. पे. नाम विविधबोल संग्रह, पृ. २अ ६आ, संपूर्ण बोल संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: अदारिक कायजोग १ अदारिक; अंति: निश्चय केवलीगम्य १०. ९७६६३. नवतत्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रावण शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. अमरचंद (गुरु मु. लालचंद); गुपि. मु. लालचंद (गुरु मु. माणकचंद); मु. माणकचंद (गुरु मु. कुशालचंद ऋषि); मु. कुशालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हंडी. न०., जैदे. (२१४१०.५, ५x२२-२४). " नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा- ४४. ९७६६४ (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४१, आषाढ़ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. कनकदुर्ग, प्रले. पं. जसविजय; पठ. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिदेवजी सुप्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२१.५X१०, ८X२८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्म, आदि भक्तामरप्रणतमौलि अति मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ९७६६५ (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६२, भाद्रपद कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २९, ले. स्थल. द्रागद्रा, प्रले. ग. उत्तमविजय (गुरुग, वनीतविजय): पठ, मु. अमरसी मु. कानजी (गुरुग, उत्तमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: थुईपत्र, संशोधित, जैदे., (२२x१०.५, १५X४१). १. पे नाम, पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि पंचरूप करि मेरुशिखर अंति देवी हरजो विघन अमारा जी, गाधा-४. २. पे नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणंदा मुख पुनिम; अंति: प्रसन्न होये मुझ माताजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीपास जिणेसर भवन; अंति: वांछित तेह ज आपे जी, गाथा-४. ४. पे. नाम, पजूसणी स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तर भेदे जिन पूजा; अंति: पुरो देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. ५. पे. नाम. आदिजिन स्तुति-राधनपुरमंडन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर अति अलवेसर; अंति: भाखे पंडित रद्धिचंदो जी, गाथा-१. ६. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. शुभविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमान प्रभु विचरतां; अंति: नित नित मंगल गावे जी, गाथा-४. ७. पे. नाम, अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. ___ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: तपथी कोड कल्याण जी, गाथा-४. ८. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहिले पद जपीइं अरिहंत बीज; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवु पाया; अंति: गणधारी देवविजय हितकारी, गाथा-४. १०. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. कीर्त्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आगे श्रीसिद्धाचल स्वामि; अंति: किरति विमल सुख पावेजी, गाथा-४. ११. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ संभाली; अंति: श्रीसंघ विघन निवारी, गाथा-४. १२. पे. नाम. पजूसण स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पुन्य; अंति: शांतिकुशल गुण गाया जी, गाथा-४. १३. पे. नाम, औपदेशिक स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठि सवारें सामायक किधुं; अंति: थाओ शिवपद भोगी जी, गाथा-४. १४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरस्वामी केवला; अंति: आवागमण निवार निवार, गाथा-१. १५. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: तेंद्रेकि तेंद्रे धुधुग; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. १६. पे. नाम. इग्यारसी स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिषभ अजित; अंति: सवि पूरइ संघ कज्ज, गाथा-४. १७. पे. नाम, इग्यारस थुई, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: नेमि जिन उपदशी मौन एकादशी; अंति: संघ मंगल करा, गाथा-४. १८. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणंद परमपद पाया; अंति: नयविमल० विघन हरेवी, गाथा-४. १९. पे. नाम. आठमी स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अभिनंदन जिनवर परमानं; अंति: नयविमल कहे शीश, गाथा-४. २०. पे. नाम. माहावीरजिन स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-गंधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गंधारे महावीर जिणंदा; अंति: जसविजय सुखकारी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३२७ २१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-जीरावला, मु. वीरमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पास जीरावलो पुजी; अंति: वीरमुनि० शासनां सुखसंपति, गाथा-४. २२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-भीलडीपुरमंडन, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भीलडीपुर मंडन सोहिए; अंति: सुख संपत्तिदातार, गाथा-४. २३. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तति, प.६आ, संपूर्ण. मु. भालतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय कर मंगलदीपक; अंति: कमला भालतिलक वर हीर, गाथा-१. २४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास जिनेसर पूज करू; अंति: सुख संपति हितकार, गाथा-४. २५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. महिमारुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेसर पास जिणंद; अंति: द्यो दोलति मुज माई, गाथा-४. २६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. __ आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गजकुंभे बेसी आवे; अंति: विबुधनो मोहन जयजयकार, गाथा-४. २७. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण. नेमिजिन थोय, म. संघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगिरनार शिखर; अंति: दिन दिन नित्य दिवाळी, गाथा-४. २८. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सौधर्म देवलोक पहिलो; अंति: कांतिविजय गण गाय, गाथा-४. २९. पे. नाम. आधाशीशी निवारण पद, पृ. ८आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: हिमज फटकडी थांनसुं अंजन; अंति: उपर लगाडीई आधो शीशी जाई, गाथा-२. ९७६६६ (+#) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२१.५४११, १४४३०-३३)... पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० नवकारना पद; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "चउक्कसायसूत्र" तक लिखा है.) ९७६७२. (+) घडिया व बुद्धि रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-२(१,८)=९, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०.५४११, १५४३६). १. पे. नाम, घडिया, पृ. २अ-११अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. अज्ञा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारम्भिक व बीच के पाठ नहीं हैं.) २. पे. नाम. बुद्धि रास, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमि देव अबाई पंचासण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ९७६८८. (#) अवयद शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९५७, आश्विन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. सिवगंज, प्रले. पंन्या. डुंगरविजय; पठ. मु. सोमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०४१०.५, १५-१८x२४). अबयद शुकनावली, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर कौं ध्याईकै प्रणमु; अंति: इस वात में संसा नाही, प्रकरण-४. ९७६९२. (+) २४ दंडक २६ द्वार विचार, समतारी ढाल व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:सुमता., संशोधित., दे., (२१४११, ८-१०४२२-२४). १.पे. नाम, २४ दंडक २६ द्वार विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: पहीला महाव्रतरी अवगाणा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'पासणारीधीरा ___ कायानो' पाठांश तक लिखा है.) २.पे. नाम. सुमतारी ढाल, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, श्राव. शंभु, मा.गु., पद्य, आदि: जे हुव उतमपीराणी ज्या दया; अंति: सुमतासुं सीवपुर जाण रे, गाथा-५५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मनवशीकरण, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (१)हाती हुव तो अपर मंगावु, (२)मन तन कीस विध कर समजावू; अंति: मना तन बार बार समजावु, गाथा-५. ९७६९४. नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६+२(४ से ५)=८, दे., (२१४११, १२४२८-३३). नवपद स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्रीअरिहंतभानु; अंति: (१)कुशला कुंभासै रे, (२)ईश्वरसे मुख भाखीजी, स्तवन-९. ९७७०३. (4) नवकारप्रभाव स्तोत्र, औपदेशिक व अढारनातरा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)-५, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४११, ८x२०-२३). १. पे. नाम, नवकारप्रभाव स्तोत्र, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जपे जिनगुण सुंदर सीस रसाल, गाथा-७, (पू.वि. अन्तिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम, औपदेशिक दहा, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक दहा*, पुहिं., पद्य, आदि: याचितं सत्गुणं पुन्यं; अंति: सेवा दानं च निष्फलं, दोहा-१. ३. पे. नाम, अढारनातरानी सज्झाय, पृ. ३अ-७आ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहेलाने समरुं रे; अंति: रिद्धिविजय०मन रंगिला, ढाल-३, गाथा-३२. ९७७०७. (+#) शनिश्चर व ज्वर छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४१०.५, ७४१४). १. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, ले.स्थल. विजापुर, प्रले. मु. माणकचंद; अन्य. ग. विवेकविजय (गुरु ग. हेमविजय); गुपि. ग. हेमविजय (गुरु आ. विजयधर्मसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य. खेतल, मा.गु., पद्य, आदि: वाहण महिष तणा वडवाला; अंति: खेतो कहे० शनिसर विगताला, गाथा-६. २. पे. नाम, ज्वर छंद, पृ. ३आ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आनंदपुर नगर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ९७७१०. (+) २० विहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१८, कार्तिक शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्रले. रामशंकर हरजिवन जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक-व्यतिक्रम है., संशोधित., दे., (२०.५४१०.५, ११४३१). १.पे. नाम. बीस विहरमान स्तवन, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुखलवई विजये जयो रे नयर; अंति: वाचक जस इम बोले रे, स्तवन-२०. २. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: श्श ह्ह ल्लं क्ष्क्ष, (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ "अल्व अद्म अल्भ" तक लिखा है.) ९७७१९ (+) नारचंद्र ज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७९-८(१ से ८)-७१,प्र.वि. हुंडी:नारचंद्र., संशोधित., जैदे., (२२४१२, ४४२०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., वक्रातिचार श्लोक-३१ अपूर्ण से ३२५ अपूर्ण पाठ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ९७७२४. चंदनमलयगीरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१२, कार्तिक शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. कुचामण, प्रले. सा. उमेदा (गुरु सा. मानाजी); गुपि. सा. मानाजी (गुरु सा. लछुजी महासती); सा. लछुजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मलागी, मलीयांगी, मल्यागिरि., दे., (२२.५४११.५,१५४३०). चंदनमलयागिरि चौपाई, मु. कल्याण कलश, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पास जिनेसर चित धरी; अंति: वली सांभलै पूरे तेहनी आस, ढाल-७, गाथा-१२८. ९७७२७. चौरासी गोत्र विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.६, दे., (२२४१२, ११४३६). ८४ गच्छ विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकरां के बारे; अंति: (-), (वि. सारिणीयुक्त) ९७७२९ (4) थुलीभद्रनो नवरसो, संपूर्ण, वि. १८७९, फाल्गुन अधिकमास शुक्ल, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. ११, प्रले. आ. दुल्लप्रभसूरि; पठ. मु. अभेचंद; मु. रायचंद (गुरु पं. खुस्यालचंद); गुभा.पं. खुस्यालचंद; अन्य. आ. खेमप्रभसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीगुरुप्रसादात् लपीकृत्तं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२,१३४२७). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत दायक सदा पायक जास; अंति: कहा भणतां मंगलमाल, ढाल-९, गाथा-७४. ९७७३० (+#) घंटाकर्णकल्पादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-३(१ से ३)=९, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४११.५, १३४३०-३१). १.पे. नाम. षष्टयंत्रसंयुक्तघंटाकर्ण कल्प, पृ. ४अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १८६८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६. घंटाकर्ण कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: गडगू बलकरि नाशै, (पू.वि. पाठ "रोगादिकनो नास होय" से है.) २. पे. नाम. पद्मपुराणेमहागणपति विद्याकवच, पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण. गणेश कवच-पद्मपुराणे, सं., गद्य, आदि: ॐ अस्य श्रीगणेश कवचस्य; अंति: आणछय २ अच तारय २ स्वाहा. ३. पे. नाम. द्वादशगणपतिपूजा विधि, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. १२ गणपतिपूजा विधि, मा.गु., प+ग., आदि: अथातः संप्रविक्ष्यामि; अंति: ऋद्धि राज्य प्रशादौ भवति. ४. पे. नाम. गणपति आम्नाय उपासना, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. मा.गु., प+ग., आदि: द्वे भार्ये सिद्धिबुद्धि; अंति: देयात् चतुर्थ्यामेव देयं. ५. पे. नाम. स्वेतार्कगणेश कल्प, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: अथ स्वेतार्क गोरोचने; अंति: पजीयै सातमै मास लाभदै. ९७७३२ (+#) नारचंद्र ज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४१२, ४४२१). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति: (-), (पू.वि. पाठ "२३ गुणैश्वरै ११३ शरयुग ४५ नभोविश्वै १४०" तक है) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. आदिवाक्य वाला भाग खंडित है.) ९७७३६. (+) अठाइव्याख्यान बालाबोध, संपूर्ण, वि. १९४०, भाद्रपद कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ३२, ले.स्थल. वडाला, मोहमयी, प्रले. श्राव. पूनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४१२, ११४२७). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शांतीशं शांतिकरिं; अंति: परलोक में सुख प्राणी पामै. ९७७४३. (+#) बृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११.५, ६४१५-१९). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. पाठ "२ वज्रश्रृंखला ३ वज्रांकुसा ४ वज्र" तक है.) ९७७४४. (#) आर्यवसधारानामधारिणी स्तोत्र व विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५-४०(१ से ४०)=५, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११.५, १४४३४-३८). १.पे. नाम. आर्य वसधारा स्तोत्र, पृ. ४१अ-४५आ, संपूर्ण, वि. १७४०, कार्तिक अधिकमास शुक्ल, १२, सोमवार. For Private and Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. २. पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र विधि, पृ. ४५आ, संपूर्ण. वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: दीपालिकानी रात्रि मध्य; अंति: निर्मल थइ अने वाचवी. ९७७४५. (+) तीर्थंकर चोवीसी व अमीचंद ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२०.५४१२,११४३०). १. पे. नाम. तीर्थंकर चोवीसी, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण, वि. १९१८, आषाढ़ कृष्ण, ४, बुधवार, ले.स्थल. कीसनगढ. २४ जिन चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १९००, आदि: वंदु बेकर जोडनै जुग; अंति: अंगजिनवर सुरगीर जेम सहीर, ढाल-२४, गाथा-६८. २.पे. नाम. अमीचंद ढाल, पृ. ११आ, संपूर्ण. म. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९१५, आदि: अमीचंद मोटा अणगार ऐ तप; अंति: ए विजयजसवृद्धि सपद पभणे, गाथा-९. ९७७४८. जिराउलपार्श्वनाथनी वीनती, अंतरिकपार्श्वनाथनो छंद व चार मंगल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:स्तोत्रपत्र., जैदे., (२३४१२, १५४२७). १. पे. नाम. जिराउलपार्श्वनाथनी वीनती, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजीराउलामंडण जिन पास; अंति: भणे० नवनिद्ध आंगणे, गाथा-३८. २. पे. नाम. अंतरिकपार्श्वनाथ छंद, पृ. २आ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: भावविजयदेव जय जयकरण, गाथा-५१ ३. पे. नाम. ४ मंगल, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धार्थ भूपति सोहे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक ९७७५१. सिंदूरप्रकर की व्युत्पत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२२४१२, ८x२३-३०). प्रकर-व्युत्पत्ति, सं., गद्य, आदि: तप एव करी तपः करी तपः करि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४१ की व्युत्पत्ति अपूर्ण तक है.) ९७७६२. (+) शक्रस्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.६, ले.स्थल. वाणारस भद्दिलपुर, प्र.वि. श्रीपार्श्वचंद्रसूरिश्वरजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२१४१२.५, १०४२६). शक्रस्तव-अर्हन्सहस्रनाम, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमोर्हते भगवते; अंति: लिलेखे संपदा पदम्. ९७७७२. (+) शत्रंजय तीर्थमाला स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४१२, १३४२८). शत्रुजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाल्हा वारु रे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ९७७९३. बृहद आलोयणा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:अलुण, अलुउण, वृहदोलोयणा, अलउण., दे., (२२४११.५, १७-१९४२७-३५). बृहद् आलोचना, श्राव. रणजीतसिंह लालाजी, मा.गु., प+ग., आदि: सिद्ध श्री परमात्मा; अंति: (-), (पू.वि. पाठ "अढार पापस्थानो की आलोय" तक है.) ९७७९५ (+#) भगवतीसत्र-शतक-८ उद्देशक-९ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ५, प्र.वि. हंडी:आठ, आठकर्मको उलावो., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४१२.५, ७४३७). भगवतीसूत्र-शतक ८ उद्देशक ९, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: कम्मसरीरपयोग बंधेणं; अंति: से भंती से भंती, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३३१ भगवतीसूत्र-शतक ८ उद्देशक ९-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: करमा का सरीरी विचारणा क०; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम पाठ का टबार्थ नहीं लिखा है.) ९७७९८. (E) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र अधिकमास शुक्ल, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. लवणपुर, प्रले. मु. नेमविमल (गुरु पं. पुन्यविमल); गुपि. पं. पुन्यविमल (गुरु पं. हेतविमल); पं. हेतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीवासुपूज्यप्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२०x१२.५, ११४२३). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: त्रीजेभव वरथानक तप; अंति: जस तणी कोई नयेन ___अधूरी रे, पूजा-९. ९७८०१ (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन २६ गाथा ८-२२ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०४, माघ कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. अमरसी ऋषि (गुरु मु. जसराजजी स्वामी); गुपि. मु. जसराजजी स्वामी (गुरु आ. वसरामजी ऋषि); आ. वसरामजी ऋषि; पठ. मु. मुलजी स्वामी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी: उत्तराध्य० टबो, उत्तराध्य० ट०. उपयुक्त स्थलों पर यंत्र-कोष्ठक दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२२४१२, ४४२२-२५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, प्र.ले.पु. सामान्य. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९७८०२ (4) दानशीलतपभावनारो चोढाल्यो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४१२, ७-११४३१-३४). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: समृद्ध सुख प्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.) ९७८०४ (+) आणंदश्रावकरी संधि, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. हुंडी:सिं०,आ०., संशोधित., दे., (२१४१२, ९४२०-२५). आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. ढाल-१५, गाथा-२४८ अपूर्ण तक है.) ९७८०९ (+) प्रदेशीराजानी चऊपई, संपूर्ण, वि. १९४५, कार्तिक कृष्ण, ३ अधिकतिथि, सोमवार, मध्यम, पृ. ३५, ले.स्थल. वीकानेरनयर, प्र.वि. हुंडी:प्रदेशी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२१४११, १२-१६५३०-३५). प्रदेशीराजा चौपाई, म. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरिआ; अंति: रे मिच्छाम दोकडमो मोयो रे, ढाल-२५, गाथा-७००. ९७८११. (+#) नवकार मंत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.६-१(४)=५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१२, १६-२०४३४-३९). नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इसी प्रकारना प्रभाव ऊपरै; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पाठ "कप्पडुमादसविहादिनि" तक है.) । ९७८२४. (+) प्रतिमादोष वर्णन-विवेकविलास व समवसरण स्तव, संपूर्ण, वि. १८७२, वैशाख कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, ले.स्थल. ईडरगढ, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१.५४११, १३-१६x४०-४४). १.पे. नाम. विवेकविलास-प्रतिमादोष वर्णन सह बालावबोध, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. विवेकविलास-हिस्सा प्रतिमादोष वर्णन, आ. जिनदत्तसरि, सं., पद्य, आदि: रौद्री निहति; अंति: नीचौच्चस्था विदेशदा, श्लोक-५. विवेकविलास-हिस्सा प्रतिमादोष वर्णन का बालावबोध, म. वरसिंघजी, मा.ग., गद्य, आदि: प्रतिमायाः निर्मापणे; अंति: कस्युं दिइ परदेश भमाडे. २.पे. नाम. समवसरण स्तव सह बालावबोध, पृ. २आ-१०अ, संपूर्ण. समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसरि, प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. समवसरण स्तव-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: थुणिमो इति वयं एहवो; अंति: करो एतले मोक्षपद आपो. For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९७८२५. व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १९३१, श्रेष्ठ, पृ. २६-१४(१ से १३,१८)=१२, कुल पे. ३, ले.स्थल. पुर्णानगर दक्षिणदेश, प्रले. मं. भानीराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४१०.५, १५४३२-३६). १.पे. नाम, चतुर्मासी व्याख्यान, पृ. १५अ-१५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १९३१, फाल्गुन शुक्ल, ११, बुधवार. चातुर्मासिक व्याख्यान *, रा., गद्य, आदि: (-); अंति: दक्कडम् होज्यो, (पू.वि. पाठ "प्रतीवध २ अणछांणया आटा प्रमुख खावै" से है.) २. पे. नाम. अठाई व्याख्यान, पृ. १६अ-२५आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १९३१, फाल्गुन शुक्ल, १३, शुक्रवार. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)शांतीशं शांतिकर्तार, (२)अठै संपूर्ण खोटा; अंति: तै संसार समुंद्र तिरसी, (पू.वि. पाठ "विलेपन कर्या हजार उपवास" से "वचन कया फेर कह्यौ आर्द्रकुमार" के बीच का पाठ नहीं है.) ३. पे. नाम. दीपमालिका व्याख्यान, पृ. २६अ-२६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दीपावलीपर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: पणमिय वीरं वुच्छं; अंति: (-), (पू.वि. त्रिशला माता के १४ स्वप्न वर्णन अपूर्ण तक है.) ९७८६१. कानडकठियारा चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, दे., (२२.५४११.५, १३४२५). कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुं सदा; अंति: सांभलो दिन दिन वधतो राग, ढाल-९. ९७८६४. (+) पुष्यनक्षत्रबलफल, विवाहपडल व चवरीमंडप विचार, संपूर्ण, वि. १८०२, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ३, ले.स्थल. उंडनगर, प्रले. पं. न्यानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२०४११, १५४२६-३०). १. पे. नाम, पुष्यनक्षत्रबलफल विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: न योग योगो न चल जलजः; अंति: कार्याणि कृता निपुष्प, गाथा-२. २. पे. नाम, विवाहपडल, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण. विवाहपटल, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमानंदं; अंति: वैरं मरणं० राक्षसे, श्लोक-१७०, (वि.रचनाप्रशस्ति श्लोक नहीं होने से कर्ता का उल्लेख नहीं है.) ३. पे. नाम. चवरीमंडप विचार, पृ. ११आ, संपूर्ण. विवाहमंडपस्थापन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: विवाह समें संक्रांत हुई; अंति: स्वजन मरे एमा संदेह नहीं, (वि. यंत्र सहित.) ९७८६५. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:देव तेडवा, देवविसर्जन., दे., (२०.५४११, १६४३१). __ अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, मा.गु., गद्य, आदि: पछै उत्तम स्त्री नीपजाव्य; अंति: न होय तो बीजी पूजा भणावीई. ९७८८८.(+) काव्यसूक्तावली, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६-१(१)=२५, प्रले. मु. कान्हजी; पठ. मु. रामजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक-९आ एवं १८आ पर प्रतिलेखन पुष्पिका है., संशोधित., जैदे., (१९x१०.५, १२-१४४१६-३०). काव्यसूक्तावली, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: गुणा विहीनां बहु भाषयंति, श्लोक-२८३, (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण से सहित) ९७८९४. (+) अष्टभयहरण पारसजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१x११, ८x१६-२९). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, म. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: धरमसीह ध्याने धरण, गाथा-२९. ९७९००. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र का कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७-१(१)=१६, प्र.वि. पत्र १७४२ है., दे., (१८x११, २०-२३४२०-२२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिबुद्धराजा के प्रसंग अपूर्ण से है व कालीकुमारी की वैराग्यप्राप्ति प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९७९०५ (+#) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १७९३, भाद्रपद कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ४३, प्रले. श्राव. कर्मचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४१०.५, ८-११४२१-२६). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदिः (१)प्रणम्य श्रीगुरुं, (२)अत्र पूर्वं स्थविराव; अंति: चक्रे बालावबोधिकाम्. ९७९११. नेम ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, दे., (२१.५४११.५, १६४३२). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवसे नेमकुमर निज; अंति: सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. ९७९१२ (+#) नारचंद्र ज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-१८(१ से १५,२७ से २९)=१२, प्र.वि. हुंडी:नारचंद्रट, नारचंद्रटबो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११.५, ५४२६). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., श्लोक-५७ से १६९ अपूर्ण तक है व बीच के कुछ पाठांश नहीं है.) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५७ से है व श्लोक-१३२ अपूर्ण तक लिखा है.) ९७९२० (#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८१-४२(१ से २२,६१ से ८०)+१(५३)=४०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२१.५४११.५, १४-१६x२८-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पद्मसरोवर स्वप्न से पर्युषणपर्वमहिमा वर्णन ___अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) । कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९७९२४. द्रोपदीसती चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (१९.५४११, १५-१८४३२-३९). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३३ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ९७९२९ (+#) स्तुति, स्तोत्र व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३-१(१०)=४२, कुल पे. १७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४१०, ९-११४२०-२३). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-९आ, संपूर्ण. ___ पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं० जयउ; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., राईप्रतिक्रमणसूत्र तक लिखा है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.,सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणिं भव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: भारही देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगुणं; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. ५. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषै विहरंता वीस; अंति: तिहुअण जण मनवंछित सारै, गाथा-४. ६. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. ७. पे. नाम. अष्टमीरी थुई, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: संति विह संति कल्याणदाता, गाथा-४. ८. पे. नाम. चौवदसरी थुई, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि दें; अंति: मनीशं दिशतु शासन देवता, श्लोक-४. ९. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १४अ-१८आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बुद्धबोहीकणिक्काय, गाथा-४८. १०. पे. नाम, जीवविचार प्रकरण, पृ. १८आ-२३आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुदाउ सूयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ११. पे. नाम. प्रव्रज्या कुलक, पृ. २३आ-२७अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिल रासिं, गाथा-३४. १२. पे. नाम, पार्श्वजिनस्य स्तुति, पृ. २७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे पुरिवरे; अंतिः सदा ध्यायामि मानसे, श्लोक-३. १३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण. ___सं., पद्य, आदि: दसावतारो भुवनैकमल्लो; अंति: ददातु वः सर्वसमीहतानि, श्लोक-१. १४. पे. नाम, दंडक प्रकरण, पृ. २७आ-३१आ, संपूर्ण. मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४२. १५. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३१आ-३८आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. १६. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. ३८आ-४३अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम "स्तंभनकपार्श्व जिननमस्कार स्तवन" लिखा है. आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभयदेव विण्णिवइ आणिंदिय, गाथा-३०. १७. पे. नाम, लघुशांति, पृ. ४३अ-४३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण तक है.) ९७९३७. (+) षडावश्यकसूत्र-टीका, संपूर्ण, वि. १८७४, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १३१, ले.स्थल. कनकदर्ग, प्रले. पं. देवीचंद (गुरु ग. हितप्रमोद, खरतरगच्छ); गुपि.ग. हितप्रमोद (गुरु उपा. रत्नविमल, खरतरगच्छ); उपा. रत्नविमल (गुरु मु. कनकसागर, खरतरगच्छ); मु. कनकसागर (गुरु उपा. धर्मकल्याण, खरतरगच्छ); उपा. धर्मकल्याण (गुरु मु. कमलसौभाग्य, खरतरगच्छ); पठ. पं. खूबचंद (गुरु पं. देवीचंद, खरतरगच्छ), प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. श्रीपार्श्वजिन प्रसादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं, (१०७९) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षे, जैदे., (२१.५४१०, १५४३९-४२). षडावश्यकसूत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीमन्नाभिकुलाब्जबो; अंति: सौधर्मे स सुरो भवत्. ९७९४४. पद्मिनी चरित्र, संपूर्ण, वि. १७६८, ज्येष्ठ शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. ४१, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. पं. लाभविजय; दत्त. मु. प्रेमविजय (कमलकलशागच्छ-पोशाल गच्छ); गृही.ऋ. खुशालचंद्र (खरतरगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अंत में ग्रंथपरिमाण संबंधी ३ श्लोक हैं. सं. १८१३ में, जैदे., (२१.५४१०.५, १३४३४-३६). गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: श्रीआदिसर प्रथम जिण; अंति: सील सफल सुरकंद, खंड-३ ढाल ३९, गाथा-८१६, ग्रं. ११५७. ९७९६२. (+) गिरनार कल्प, वीतराग स्तोत्र व पार्श्वनाथ स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०४१०, १२४३०-३४). १.पे. नाम. गिरनार कल्प, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गिरनारतीर्थ कल्प, म. ब्रह्मद्र; सरस्वती, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: नेमेः संस्तवं तुष्टयैः, श्लोक-२३, (प.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. वीतराग स्तोत्र, पृ. १आ-११अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: यः परात्मा परं; अंति: फलमीप्सितम्, प्रकाश-२०, संपूर्ण. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र-घोघामंडण, पृ. ११अ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-घोघामंडन, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: अंभोधिवीचिचयचंबितभू; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१० अपूर्ण तक है.) ९७९६३ (4) शत्रुजय रास, संपूर्ण, वि. १९३४, माघ कृष्ण, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल, अजिमगंज, पठ. मु. फतेचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीजिनअजयराजजीसुरुसुरान प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१०, १०x१८-२७). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी; अंति: सफल करं अवतार, ढाल-६, गाथा-१०५. ९७९६४. आर्यवसुधारा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२०x१०, १०४२७-२९). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश हैं.) ९७९६५ (+) संथारापोरसीसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., अ., (१९.५४१०, ४४८-१०). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही २ नमो खमासमणाणं; अंति: कयं तस्स मिच्छामि दुक्कडं, गाथा-१७. ९७९६६. (+#) वैराग्य शतक व सिंधुचतुर्दशी, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ.८, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१९.५४१०, ९-११४२७-३१). १.पे. नाम. वैराग्य शतक, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि सुहं; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. २. पे. नाम. सिंधुचतुर्दशी, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जैसे काह पुरुष कौ पार; अंति: मुनि चतुर्दशी होइ, गाथा-१४. ९७९६८. (#) नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रावण कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. २४, प्रले. मु. रूपा; पठ. मु. दलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नारचंद्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०x१०.५, ११४३०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति: यात्रायां शुभे० जपेत, श्लोक-२७३. ९७९७४. (#) सामुद्रिकशास्त्र, अपूर्ण, वि. १७३०, वैशाख कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १८-४(३ से ६)=१४, प्रले. परशुराम ओझा; पठ. मुरलीधर शिवराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, १०४२८). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: यस्तु सोत्तमः परिकीर्तितः, अध्याय-३६, श्लोक-२७४, (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं है.) ९७९७५. (+#) सुभाषित श्लोक संग्रह व पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १८५८, फाल्गुन कृष्ण, १४, बुधवार, मध्यम, पृ.८-१(६) ७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२२४१०.५, ८x२८-३२). १. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: गजरयदुरंग गौउश्रुतं भूमि; अंति: देवो दुर्बल घातकः, श्लोक-४. २. पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. १आ-८अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ थानिक लाभ जस होय; अंति: करे वात हात चढे सीरु लाभ, (पू.वि. शुकन अंक-३३२ अपूर्ण से ४१४ अपूर्ण तक नहीं है., वि. अंत में अस्पष्ट सुभाषित श्लोक व प्रास्ताविक गाथाएँ दी हैं.) ९७९७६ (+#) कल्पसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४, प्र.वि. हुंडी:अछेरापत्र. पत्रांक अस्तव्यस्त हैं अतः अनुमानित पत्रांक दिया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१३, १५४३४-३६). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. पाठ अस्तव्यस्त हैं.) ९७९७९. सिद्धांतषत्रिंशिका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३०-२४(१ से २४)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हंडी:पूजाअ०., दे., (२३.५४१२.५, १३-१४४२५-३०). सिद्धांतषट्त्रिंशिका, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-२४ अपूर्ण से ३३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९८२ (+) श्रावकना बारहव्रत अतिचार, संपर्ण, वि. १९४५, श्रावण शक्ल, ७, मध्यम, प. २५, ले.स्थल. हैदराबाद, प्रले. पं. करमचंद; पठ. श्राव. सूरजराज धाडेवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०.५४१३, ८x१२-२०). श्रावक पाक्षिकादि अतिचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि अ; अंति: करी मिच्छामि दक्कडं. ९७९९५ (+) उत्तराध्ययनसूत्र की चयनित गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०x१२.५, १२४२६-२८). उत्तराध्ययनसूत्र-चयनितगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: जहासूणी पूइकन्नीः निक्क; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) ९७९९८ (+) पंचमी स्तवन व मौनएकादशी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)७, कुल पे. २, प्र.वि. प्रारम्भिक भाग अपूर्ण है परन्तु पत्रांक १ से आरम्भ किया गया है., संशोधित., दे., (२०४१३, ९४२२-२६). १.पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२५, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. २आ-८अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्या रे; अंति: लहे ते __ मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-२७. ९८००५. ज्ञानपंचमीदेववंदन विधि व ज्ञानपंचमी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-१(१६)=१७, कुल पे. २, ३., (२५४११, १०x२१). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्वदेववंदन विधि, पृ. १अ-१८अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज, पूजा-५, गाथा-९, (पू.वि. मनःपर्यवज्ञान गुणवर्णन गाथा-३ अपूर्ण से केवलज्ञान पूजा का प्रारम्भिक भाग अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. ज्ञानपंचमी सज्झाय, पृ. १८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसरि, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर वयण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) ९८००६. उपसर्गहर स्तोत्र की लघवत्ति, संपूर्ण, वि. १९७१, भाद्रपद शुक्ल, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. पाटण, प्रले. श्राव. छगनलाल करमचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में प्रतिलेखन वर्ष के रूप में १९७१ व १९७२ लिखा है, जिससे वर्ष १९७१ में लिखी गई प्रत पर से लिखे जाने की संभावना है., दे., (२१.५४१३, १३४३०). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ लघवृत्ति, आ. पूर्णचंद्राचार्य, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: नमस्कृत्य परंब्रह्म; अंति: द्यावादाभिधग्रंथात्. ९८००८. (+) अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२०.५४१३.५, ९४२०). ८ प्रकारी पूजा, म. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: गंगा मागध क्षीरनिधि औषध; अंति: (-). (पू.वि. आठवी पूजा अपूर्ण तक है.) ९८००९. (#) करणकुतूहल सह व्याख्या, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९९-३२(१ से १०,३९ से ६०)=६७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१९४१२, १२४२२-२८). करणकुतूहल, आ. भास्कराचार्य , सं., पद्य, ई. ११८४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-१ अपूर्ण से अधिकार-१० अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) करणकुतूहल-रत्नावली व्याख्या, मु. कल्याणजित्, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९८०१३. विवाहपडल सह बालावबोध व वर्ण विभावण श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३८, कुल पे. २, दे., (१९.५४१२.५, ९४३०). For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३३७ १.पे. नाम. विवाहपडल सह बालावबोध, पृ. १अ-३७अ, संपूर्ण, वि. १९२१, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, ले.स्थल. रांणावस, प्रले. मु. अजबचंद ऋषि (लूकागछ), प्र.ले.प. सामान्य. विवाहपडल, सं., पद्य, आदि: जंभाराति पुरोहिते; अंति: कन्या शुभलग्ने प्रयच्छति, श्लोक-१९३. विवाहपडल-बालावबोध, मु. अमरसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य शिरसा; अंति: रच्यौ इण विधि अमर. २. पे. नाम. वर्ण विभावण श्लोक, पृ. ३७आ-३८अ, संपूर्ण.. ___ ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: मेषरक्तं वृषश्वेतं मिथुनं; अंति: जीवेषु शुक्र शनीश्वरस्य, श्लोक-९. ९८०१६. (#) स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४१-४(११ से १३,३२)=३७, कुल पे. ३८, प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखे होने से अनुमानित पत्रांक लिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११, १४-१८४३०-३३). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मवादिनी; अंति: प्रीति० संघ मंगलकरो, ढाल-५, गाथा-५६, संपूर्ण. २. पे. नाम. गोडी स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वालेसर मुज विनति; अंति: इम जंपे जिनराज हो, गाथा-७. ३.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, म. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सुणो मुज वीनती; अंति: ऋद्धिहरष जे करि आपणी आस, गाथा-८. ४. पे. नाम, थंभणपार्श्व स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपूर श्रीपासजिणंद; अंति: मंडण पार्श्वनाथ चसालो, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) ५. पे. नाम. वरकाणापार्श्व स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: जीव मनमाहिं कांय तको जिण; अंति: हरषकुशल०पास पसाविं रंगरली, गाथा-९. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सिरोहीमंडन, मु. तेजरुचि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: इण संसारि जिनजी म्हारा; अंति: तेजरुचि० नेणरो माणो राजि, गाथा-५. ७. पे. नाम, शत्रुजय स्तवन, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-बृहत् शत्रंजयतीर्थमंडन, म. प्रेमविजय, मा.ग., पद्य, आदि: प्रणमीय शयल जिणंद पाय मन; अंति: प्रेमविजय० मुझ देयो सेवा, गाथा-२१. ८. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, मु. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लालण ईण डुंगरीइं मन मोहीउ; अंति: शुभविजय० शिवपुरवास हो, गाथा-१३. ९. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन स्तवन, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राग विना तुं रीजवि तुं; अंति: हियडे धरी अतिआणंद हो, गाथा-८. १०. पे. नाम. अनागत चोवीसी स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-अनागत, मु. लाभकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिण पाय नमी समरी; अंति: लाभकुशल० भवि ईस रे, गाथा-१६. ११. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३३८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पद्मप्रभजिन स्तवन- संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि धन धन संप्रति साचो अंति विज्यो भवभव सेव रे, गाथा- ९. १२. पे नाम ऋषभ स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगपाल हो माता; अंति: जसविजे० सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५, (वि. अंतिमवाक्य अपूर्ण है.) १३. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. ८- ९अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि नेमकुमर फागुण रमै रे; अतिः सेवतां कांत वदि सुभ वांण, गाथा - ११. १४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: समरथ साहिब सांभलो; अंति: ललितसागर० दिन दोलित थाय, गाथा - १०. १५. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि: कांइ रीसाणा हो नेम; अति जिनहर्षि हो थाज्यो सहनी, 0 गाथा-५. १६. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन कुल चंदा हो; अंति: चाहे हो पंकज भमरलो, गाथा-८. १७. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०अ १० आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सहज सलुणो हो मिलीयो; अंति: पूरो प्रेम विलास, गाथा-७. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण. मु. • जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सोभागी हो साहिब, अंति: जैतसी०तु ही ज हो देव, गाथा-५. १९. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक चार जुडी हुई है. ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, आदिः आगलि उभो आदरी रे अरज करूं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ मात्र है.) २०. पे नाम. विमल लोको, पू. १४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वि. १७९१, चैत्र कृष्ण, ९, ले. स्थल. चीडीआल, प्रले. ग. मयारुचि पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य. - विमलमंत्री सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: विनीतविमल गुण गायो, गाथा १११, (पू.वि. गाथा - १०५ अपूर्ण से है . ) २१. पे. नाम. अवंतीसुकुमाल सज्झाय, पृ. १४-१८आ, संपूर्ण. अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि मुनिवर आर्य सुहस्ति; अति शांतिहरष सुख पावे रे, ढाल १३, गाथा - १०५. २२. पे नाम. मुहपतिपडिलेहण सज्झाय, पृ. १८आ- १९अ, संपूर्ण. मुहपत्तिबोल सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर करि जुहार; अंति: मेरुविजय तस नामे सीस, गाथा - ११. २३. पे. नाम. पृथ्वीसचित्तअचित्तविचार स्वाध्याय, पृ. १९अ संपूर्ण. सचित्तअचित्त सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं सहें गुरुनुं; अंति: सूगडांग वृत्तिथी लहे, गाथा-५. २४. पे. नाम. जीवउतपतनी स्वाध्याय, पृ. १९ अ २०अ, संपूर्ण. जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि उत्पति जोइनइ आपणी अति लीज्यो परभव लाहोरे, गाथा- ३१. २५. पे. नाम. जीवदुक्कड स्वाध्याय, पृ. २०अ २१अ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवि राणी पदमावती; अंति: कहे पापथी छूटे ततकाळ, ढाल -३, गाथा - ३३. For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३३९ २६. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तवन, पृ. २१आ-२३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-छट्टाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाय नमी; अंति: देवीदास० संघ मंगलकरो, ढाल-५, गाथा-६६. २७. पे. नाम. गोडी स्तवन, पृ. २३आ-२५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: बदन अनोपम चंदलो गोडीमंडन; अंति: सेव करता सुख लहै, गाथा-४१. २८. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, पृ. २५अ-२६अ, संपूर्ण. मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१९ अपूर्ण तक लिखा है.) २९. पे. नाम. खिमाछत्तीसी, पृ. २७अ-२८आ, संपूर्ण.. क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खिमागुण करी म; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा-३६. ३०. पे. नाम. पचक्खाण स्वाध्याय, पृ. २८आ-२९आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: धुरि समरुं सामिणी; अंति: जंपइ जिम सयल संपति वरो, ढाल-२, गाथा-१७. ३१. पे. नाम. सीक्षा सज्झाय, पृ. २९आ-३०आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलं करण नमी जें; अंति: र्भावासे त नवि अवतरे, गाथा-२५. ३२. पे. नाम. रत्नदृष्टांत सज्झाय, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-हितोपदेश, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर रतनपुर जाणीइं; अंति: सोमविमलसरि इम भणे ए, गाथा-८. ३३. पे. नाम, उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय-अध्ययन २५, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयां मोरी चालो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ३५. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुइ है. आदिजिन स्तवन, ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सीसनी रे द्यो उत्तम आणंद, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-२ ३६. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३३अ-३४आ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पं. महिमारूचि गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७२०, आदि: सरसति सूखदाता तुं जग; अंति: महिमारुचि० सघली संपदा, गाथा-२४. ३७. पे. नाम, कपासीयामोती संवाद, पृ. ३६अ-४१अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: (-); अंति: चतुरनरां चमतकार, ढाल-५, गाथा-१०८, (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से है.) ३८. पे. नाम. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ४१अ, संपूर्ण.. ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुरि समरु श्रीआदिदेव; अंति: कमलविजय० जयजयकार, गाथा-८. ९८०२० (+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (१९.५४१०, ११४२७-३२). For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४१ अपूर्ण से १२४ तक है.) ९८०२३. पद, गीत व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २६, दे., (१९४११, ११४१७-२०). १.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: प्रभुजी तुम हो अंतर; अंति: चरण कमल चितरामी, गाथा-३. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती रेखता, मु. चंदविजय, पुहि., पद्य, आदि: राजुल पुकारे नेम; अंति: जै प्रभु मै तो चरण पै खरी, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.. मु. धर्मपाल, पुहिं., पद्य, आदि: काहें जीव डरे दुख सु; अंति: धरमपाल० सबका जश रे रे, गाथा-३. ४. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. गजाणंद, पुहि., पद्य, आदि: आहे हो पिया गरज वादर; अंति: विनवत राजल अरज, गाथा-५. ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. म. हरखचंद, पुहि., पद्य, आदि: देखो माई उमडि घुमडि; अंति: हरखचंद० भव आ ताप बुझाए, गाथा-५. ६. पे. नाम. ४ विकथानिवारण गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण.. ४ विकथा निवारण गीत, मु. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: वृथा करम बांधत जीउ; अंति: करो भवभव सुखकारी, गाथा-३. ७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.. मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: मेटो विथा हमारी प्रभु तुम; अंति: भुधर चरण तुमारी, गाथा-४. ८. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: इस पुद्गलदा की विसवासावो; अंति: नवल० घट में सासा रे, गाथा-३. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. द्यानत, रा., पद्य, आदि: मानोसांढी वतीया यह देही; अंति: द्यानत० आणो छतीया, गाथा-३. १०. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दिल मेडा पातस्याहा; अंति: यह जीव कायम रहंदा, गाथा-३. ११. पे. नाम. २४ जिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. सुविधिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मुज पर महर करो जिन; अंति: सुविधसागर सिरताज, गाथा-३. १२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद-ज्ञान गोदडी, पृ. ५अ, संपूर्ण. पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: गुदडी प्यारी रे वाल; अंति: मुक्ति महाफल चाखै रे, गाथा-३. १३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तोसं जोरी प्रीत जिन; अंति: भक्ति भलि जल धोरी, गाथा-३. १४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. भूदर, पुहि., पद्य, आदि: भगवंत भजनकुं भूला रे इह; अंति: दे दुरमति शिर धूला रे, गाथा-३. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मोतियन थाल भर के मै करहु; अंति: लोह कनक मोहि करकै, गाथा-४. १६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: अणीयावे चरखा चलता; अंति: होयगा भूधर समुझ सबेरा, गाथा-५. १७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पास जिनंदा मेरी निजर; अंति: दास चहित है दीदारा, गाथा-४. १८. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दरवाजा तेरा खोलि बे हम; अंति: रूपचंद० हम रहीये तोले बे, गाथा-३. १९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३४१ पुहिं., पद्य, आदि: मोरा मन की हो वात कासु; अंति: मुक्ति तणा सुख लहियै, गाथा-४. २०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: घोर परिसा सहिये भाई; अंति: आतमप्रांनसुबहिऐ रे, गाथा-३. २१. पे. नाम. परनारी परिहार सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नयनां अटकमां नयनां; अंति: पावै अविचल सिवपुरमांहि, गाथा-३. २२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, पुहि., पद्य, आदि: मेरो आतम अति अभिमानी हो; अंति: अब श्रीसार पिछानी हो, गाथा-६. २३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. मु. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी थे कांई हठ माड; अंति: कांइ वसस्या मुगति कै वास, गाथा-७. २४. पे. नाम. समेतशिखरतीर्थ पद, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, श्राव. वृंदावन साह, पुहिं., पद्य, आदि: समेतशिखर चल हो जियरा वीस; अंति: साहवृंदावन०पावै अति नियरा, गाथा-४. २५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. जगराम, पुहिं., पद्य, आदि: तोसुं जोडी प्रीत जिनराज; अंति: भवबाधा हरो मोरी, गाथा-५. २६.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ९आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. पुहिं., पद्य, आदि: लग लग गइ लगन हमारी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है) ९८०२४. (+) चैत्यवंदन विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४१२.५, ११x१९). चैत्यवंदन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम त्रण खमासमण; अंति: मंगलमांगल्यं तांइ कहीजै. ९८०२५. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८-३(१,३ से ४)=५, कुल पे. ४, दे., (२१४१२, १०x२३). १.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, प. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. गौतमरास, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेश्वर केरो शिष्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. महावीरजीरोवृद्ध स्तवन, पृ. ५अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जैत विनवै मनबंछित आसा घणी, गाथा-२८, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ६अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण सरसती भगवती तोरी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-३ तक ९८०२६. पाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, दे., (२१x१२, ९४२३). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. बीच के पत्र हैं., पाठ ___ "अवज्ञा आसातना कीधी" से "अतिचार माहे जीको अतिचार" तक है.) ९८०२७. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:पडि०., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२०४११.५, १५४३०). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. संवत्सरी तप आलोयणा तक है.) ९८०२८ (+) लघुदंडक, संपूर्ण, वि. १९९०, आषाढ़ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. मु. ऋषभदास यती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:लघुडं०., संशोधित., दे., (१८x१२, १०x२२). For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लघुदंडक, मा.गु., गद्य, आदि: सरीरोगाहण संघयण संठा; अंति: पावदोइ बचनै कोकाय्याको. ९८०२९ (+-) आलोचना विधि व पूर्वाह्निक स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९x१३, १०x१९-२२). १. पे. नाम. पाक्षिक-संवत्सरी आलोचना विधि, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण.. पाक्षिकआलोचना विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामि भंते अट्ठमियम्मि; अंति: जिणगुण सपत्ति होओ मज्झं. २. पे. नाम. पूर्वाह्निक स्वाध्याय, पृ. ८अ-१२अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: शुद्धज्ञान प्रकाशाय लोका; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "जय संतिजिन पद्मनंदीसवर पद्म" तक लिखा है.) ९८०३० (4) गौतमस्वामी रास, शत्रंजय रास व सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३९-५(१ से ३,२३ से २४)=३४, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१९x१२.५, १०४२३). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. ४अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:गो०.रा०. मु. उदयवंत, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नित उच्छव उदौ करो, गाथा-४८, (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, शत्रुजयरास, पृ. ८आ-१९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:से०.रा०. शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी; अंति: पामीजै भवपार, ढाल-६, गाथा-१०९. ३. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. १९आ-३९आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हंडी:सप्तस्मर. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: जैनं जयति शासनम्, स्मरण-७, (पू.वि. नमिऊण, गणधरदेव, गुरुपारतंत्र तथा सिग्घमवहरउ नहीं है व तिजयपहुत्त स्तोत्र व नवकार मंत्र भी लिखा है.) ९८०३३. (+) योगशास्त्र-प्रकाश १ से ४ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५२-१४(१,२९,३२,९४ से १०४)+४(१८,५३,७७,८७)=१४२, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८.५४१०.५, ११४३३-४८). योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तिहां थिकनु जाणिवा, प्रकाश-४, पृ.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ध्यानोद्यतो भवेत्, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., प्रकाश-१ श्लोक-२ से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. कहीं-कहीं पर मात्र प्रतीक पाठ दिया है.) ९८०३५ (+#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७७-१(११)=७६, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र बा०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, १३४४०-५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पाठ "वासावासं कप्पइ निग्गंधीणवा निग्गंधीण" तक है.) कल्पसूत्र-बालावबोध, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: नैतत् पर्वसमं पर्व; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पाठ "अनेरु उपाश्रय नवउ मागिवा न कल्पइं" तक है.) ९८०३७. (+) बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५५-५(१ से ३,२५ से २६)=५०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०, १७४५२-५८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ से २७१ तक है व बीच के पाठांश नहीं है.) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९८०३८. (+) दशवैकालिकसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१,प्र.वि. हुंडी:दशवै०.७०., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४४६). •) For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३४३ दशवैकालिकसूत्र- शिष्यवोधिनी टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि जयति विजितान्यतेजाः; अति: गुणानुरागी भवतु लोकः, अध्ययन- १०, चूलिका २. ग्रं. ६८५० (वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) ९८०३९ (+#) अनेकार्थध्वनिमंजरी, लिंगानुशासन आदि नाममाला संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५० - ४ (२,६ से ७, ४७) = ४६, कुल पे. ८, प्र. वि. एक ही प्रतिलेखक द्वारा विविध प्रकरणों का संकलन प्रतीत होता है. कहीं-कहीं प्रकरणों का स्वतंत्र पत्रक्रम है. पत्रक्रमवाला भाग नष्ट हो जाने से गिनती करके पत्रांक दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१०.५, १४-१७X५६-६५). १. पे नाम. अनेकार्थध्वनिमंजरी, पृ. १अ १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. पू.वि. सं., पद्य, आदि: शिवं भद्रं शिवः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ५६ तक है.) २. पे नाम. पंचवर्गपरिहार नाममाला, पू. ३-५ अ, संपूर्ण आ. जिनभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि नत्वा पंचेषु पंचास्य, अंति: चक्रेभिधानावलीम्, श्लोक-१३३. ३. पे. नाम. अजिरादि एकाक्षर नाममाला, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अजिरादि एकाक्षरी नाममाला, सं., पद्य, आदि: अजिरे कथितोकारो हरिह; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३१ तक है.) ४. पे. नाम. कातंत्रव्याकरण के उणादिवृत्ति की दौर्गसिंहीवृत्ति, पृ. ८अ ८आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे. वि. प्र. ९ अ. १५. कातंत्र व्याकरण- उणादिसूत्र की दौर्गसिंहीवृत्ति, दुर्गसिंह, सं., गद्य, आदि (-); अंति: प्रत्यय ० (पू.वि. चतुर्थ पाद-कुटेर्मलः पाठ से है.) ५. पे नाम लिंगानुशासन सह टिप्पण, पृ. ८आ ११९अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि पुल्लिंग कटणथपभमयर अंति शासनानि लिंगानाम्, प्रकरण-८, श्लोक - १३८. हैमलिंगानुशासन- टिप्पण, सं., गद्य, आदि (-); अति (-). (वि. टिप्पण क्रमशः नहीं है.) ६. पे नाम. अभिधानचिंतामणि नाममाला, पृ. १९आ ४९आ, संपूर्ण. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः अति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. ७. पे. नाम. शेषनाममाला, पृ. ४९आ-४६आ, संपूर्ण. अभिधानचिंतामणि नाममाला-अभिधानचिंतामणि परिशिष्ट, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: निर्वाणे स्याच्छीतीभ; अंति: वशादेते निपात्यंते पदेपदे, श्लोक-२०५. १. पे. नाम. श्रुतावतार, पृ. १- १८, संपूर्ण. जै.क. वासवसेन, सं., पद्य, आदि बर्द्धमान महावीर वीर अति संशोध्याधीयतां बुधाः, सर्ग ६. - युक्तितो धातोः, ८. पे नाम. सामुद्रिकशास्त्र, पृ. ४८अ ५०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. ९८०४० (+) सामुद्रिकशास्त्र. सं., पद्य, आदि (-); अति (-) (पू. वि. पुरुषलक्षण प्रकरण ६८ श्लोक ७५ अपूर्ण से खीलक्षण प्रकरण ७१ श्लोक-२ अपूर्ण तक है., वि. किसी बड़ी कृति का भाग प्रतीत होता है.) श्रुतावतार टीकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १४५४-१४५५, मध्यम, पृ. २२, कुल पे. ४, ले. स्थल. चंद्रपाट दुर्ग, प्रले. श्राव. नारसिंह; प्रे. मु. सहस्रकीर्ति (गुरु मु. पद्मनंदी); गुपि. मु. पद्मनंदी (गुरु मु. वीरनंदी); राज्ये आ. रामचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X१०.५, १२x२४-४२). सं., गद्य, आदि: आचारं मतिपूर्व वृत्तमलं; अंतिः ॐ अक्षीण महानसेभ्य स्वाहा. ४. पे. नाम. श्रुतावतार की टिप्पणिका, पृ. २२अ, संपूर्ण. श्रुतावतार- टिप्पण, सं., गद्य, आदि (-); अंति (-). २. पे नाम श्रुतावतार की पंजिका वृत्ति, पृ. १८अ २०आ, संपूर्ण. श्रुतावतार-स्वोपज्ञ टीका, जै.क. वासवसेन, सं., गद्य, आदि: श्रुतं श्रुताप्तये; अंति: सास्त्रवर्ती तीर्थकरवश. ३. पे. नाम चतुःषष्टिहृदय, पृ. २० आ-२१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९८०४१. (+) कल्पसूत्र व कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ९०, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र-२अ पर अष्टमंगल का आकर्षक रंगीन चित्र हैं., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४९.५, ८४३२-३८). १.पे. नाम. कल्पसूत्र, प. १आ-८४आ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. २. पे. नाम. कालिकाचार्य कथा, पृ. ८४आ-९०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: मोहांधकारप्राग्भार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९३ अपूर्ण तक है.) ९८०४३. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७०-१(१३)=६९, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१०, ९४३६-३९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-८ गाथा-१०६ से ढाल-१४ गाथा-३४ अपूर्ण तक व खंड-४ ढाल-१३ गाथा-८ अपूर्ण से नहीं है.) ९८०४४. (+#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७३७, श्रावण कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ८९-३(३७ से ३९)=८६, प्रले. मु. रूपजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४९.५, १५४३४-३६). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: समक्ष मिछामि दक्कडं, (अपूर्ण, पू.वि. "जेणेवसिठ्ठत्थे खत्तीए तेणेव" से "लालयेतां च वर्षाणि" के बीच का पाठ नहीं है.) कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, संपूर्ण. ९८०४७. (+#) पंचदंडविक्रमादित्य चौपई, अपूर्ण, वि. १८३३, चैत्र कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ४७-४(३,६,३८ से ३९)=४३, ले.स्थल. उदरासर, प्रले. पं. माणिक्यराज (गुरु ग. रूपवल्लभ); गुपि. ग. रूपवल्लभ; पठ. पंन्या. लब्धिकमल (गुरु पं. माणिक्यराज); मु. महेसदास (गुरु पंन्या. लब्धिकमल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १९४५२-५५). विक्रमराजा चौपाई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: प्रणम् पासजिणंद पय; अंति: लखमीवल्लभ० उछरंग वधाइ, खंड-६ ढाल ७५, गाथा-३१६८, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९८०४९ (+) पंचप्रतिक्रमणसूत्र, नवस्मरण व पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३५, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०.५, १०४३४-४०). १.पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-१८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पडिकमणो. __ पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: दुक्कडं तस्स, (वि. संथारा पोरसी भी दी है.) २. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १८अ-३३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:प०.नवस्मरण. म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, स्मरण-९. ३. पे. नाम. पच्चक्खाण, पृ. ३३आ-३५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पडि०.पच्चक्खा०. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरे. ९८०५० (#) कल्पसूत्र-सामाचारी अध्ययन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-१(२)=२३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १५४५२-५५). कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समय; अंति: उवदंसे त्तिवेमि, (अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पाठ नहीं हैं.) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वंदामि भद्दबाहुं पाईणंचरम, (२)हिवे पर्युषणा सामाचारी; अंति: प्रभु श्रीजिनचंद्रसूरि ६५, (संपूर्ण, पू.वि. "भूख लागई तृषा हुवै" से "कोमल पापाण प्रमुख" के बीच का पाठ नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९८०५३. (+) सुरपतिराजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. दे., (२५४१०, ११x४०-४६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरपतिराजा रास-दानधर्मे, मु. दामोदर, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणमुं स्वामि शांति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १५९ अपूर्ण तक है.) ९८०५४. (+*) वसुधारानामधारिणी महाविद्या, अपूर्ण, वि. १६८९, मध्यम, पृ. ६-१ (१) ५. ले. स्थल. आगरानगर, प्र. वा. सहजकीर्ति (नागपुरीयबृहत्तपागच्छ) पठ. श्राव. हीरजी संघपति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (८२०) भग्नपुष्टि कटिग्रीवा, जैदे., ( २६.५X१०.५, १४-१८X३८-४२). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंतिः शृणोति भोगं च करोति, (पू.वि. "रत्नकोष्टागारसंपन्नाश्च भवेयुः " पाठ से है.) ९८०५७. (+#) बृहत्क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंड है, जैदे., (२५.५X१०.५, ११३३). बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: (-), अधिकार-५, गाथा-२२१, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा २२१ तक लिखा है.) ९८०५८. (#) ढोलामरवणी चोपई व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. १७६३, आषाढ़ कृष्ण, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. २, ले. स्थल. उटाला, प्र. ग. गजेंद्रसागर (गुरु ग. मेघसागर) गुपि. ग. मेघसागर (गुरुग. कमलसागर); ग. कमलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x१०.५, १७४४२). " १. पे. नाम. ढोलामरवणी चौपाई, पृ. १आ-१८आ, संपूर्ण. ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सकल सुरासुर सामिनी; अंति: " कुशललाभ० कल्याण, गाथा- ६८४. २. पे. नाम औपदेशिक गाथा, पृ. १८आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहिं., मा.गु., सं., पद्य, आदि राइ दोन गाहा सरस सुंदर, अंति: फिरे कवि विभचारी चोर, ३४५ गाथा - २. ९८०५९ (+) पुण्यसार चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. बंदिरावट्या, प्रले. उपा. रतनविजय, पठ. सा. हरखा; अन्य. श्राव नथमल बागमल गोलेच्छा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैदे. (२५.५४१०.५, १४४४४-४८). पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: नाभिरायनंदन नमु शांति: अंति: इम भ० नवनिधि थाय, ढाल - ९, गाथा - २०४. ९८०६० (+) अजितशांति स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. हुंडी : अजीतसंथ., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२६४१०.५, ५४३८). , "" अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजिये जियसव्वभवं संत अंतिः जिणवयणे आवरं कुणह For Private and Personal Use Only गाथा ४०. अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजितनाथ जीता छइ सर्व; अंति: वचन विषै आदर करउ. ९८०६१. प्रतिक्रमणसूत्र विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२५.५x१०.५, १०४४४). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह@ स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि आवश्यकसूत्रना छ अध्ययन ते अंति: (-), (पू.वि. विधि अपूर्ण तक है., वि. पाठ अस्त-व्यस्त है. अंत के पाठ कल्पसूत्र व अन्य आगमिक विचार है.) ९८०६२. (*) सप्तस्मरणादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २८, कुल पे १३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५X१०, १५X४२-५२). १. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. १अ ७अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: सप्तस्म०, सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि अजिअं जिअ सव्वभयं अंतिः नमामि साहम्मिया तेवि, स्मरण- ७, (वि. उवसग्गहर स्तोत्र नहीं लिखा है.) २. पे नाम, लघुशांति, पृ. ७अ -७आ, संपूर्ण. Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४६ ,י www.kobatirth.org आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत अंति: सूर श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. ३. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, प्रा. पद्य, आदि तिजयपहुत्तपयासय अड्ड, अंतिः निब्धंतं निच्चमच्चेह, गाथा- १४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. ५. पे. नाम. भयहर स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि परमेट्ठिमंतसारं सारं अंति आरुग्णं देह सुहपन्नो, गाथा- ७. पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ, जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य वि. १४वी आदि दोसावहारदक्खो नालिया; अंति जिणप्पहसूरि०न पीडति गाथा १०. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र, पृ. ९अ ११अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ७. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ११अ १३अ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ८. पे. नाम महावीरसमसंस्कृतवृहस्तवन, पू. १३अ १४आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: विशदां दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. ९. पे नाम महावीरचरित्र, पृ. १४आ. १६अ, संपूर्ण. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. יי १०. पे. नाम. नवतत्वप्रकरण, पृ. १६अ - १७आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-५३. ११. पे नाम. जीवविचारप्रकरण, पृ. १७आ-१९अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंतिः शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा - ५६. १२. पे. नाम. दंडकविचार लघुसंग्रहणी, पृ. १९अ-२०अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा. पद्य वि. १५७९, आदि नमिठे चौबीस जिणे तस्सुत्त अति लहिया एसा विनत्ति " 1 अप्पहिआ गाथा ४४. १३. पे. नाम संग्रहणीप्रकरण, पृ. २०अ २८आ, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहंताई ठिङ्ग अति जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२९१. ९८०६३ (+) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. २६ प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४१०.५, ११४३०-४०). + बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदि नमिउं अरिहंताइं ठिङ, अति जा वीरजिण तित्वं, गाथा- ३१५. ९८०६४ (०) सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण वि. १७७३ आषाढ़ शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. १६, ले. स्थल, सावरनगर, प्रले. मु. नेमचंद्र (गुरु उपा. रामचंद्र गणि); गुपि. उपा. रामचंद्र गणि; अन्य. मु. उत्तमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६X१०.५, ८X२८-३२). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं. पद्य वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार - २२, श्लोक-१००. 7 १. पे. नाम. षड्दर्शनश्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी षट्दर्शनविचार. षडदर्शन विचार, सं., पद्य, आदि: प्रथमं जिनमते श्वेतांबर, अंति: १६ एवं ३६ पाखंडिनः. २. पे. नाम. प्रत्याख्यान वालावबोध, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी प्रत्याख्यानबालावबोध. ९८०६५ (+) षडदर्शन श्लोकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३ - १ (१२) = १२, कुल पे. २६, प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ-संशोधित., जैदे., ( २६ १०.५, १७- १९६३-६६). For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: मूल प्रत्याख्यान विहांता; अंति: जीव हुई मोक्षफलदायक थाइ. नाम. गुरुवंदनक विचार, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : गुरुवंदनकविचार. पे. गुरुवंदनसूत्र-श्वे.मू.पू.-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: गुरुवंदन त्रिहुं प्रकारे; अंति: विस्तर ग्रंथउ जाणिवउं. ४. पे नाम गणनस्थिति, पू. ४अ संपूर्ण, गणनस्थिति विचार, प्रा., गद्य, आदि: एकं१ दहं२ शतं३ सहस्रं४; अंति: कोडाकोडिकोडिकोडा २९. ५. पे. नाम. कल्पवृक्ष प्रकार श्लोक, पृ. ४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मयांगकल्पवृक्ष१; अंति: नग्राकल्पवृक्षक्ष९, श्लोक - १. ६. पे. नाम. सुभाषितश्लोक संग्रह, पृ. ४-४आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. सुभाषित लोक संग्रह सं., पद्य, आदि वरं विदेशगमनं वरं कानन; अतिः वो मर्तुकामापिहर्तुकाम, श्लोक ११. * ७. पे. नाम. मुखवस्त्रिका विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: चअंगुल पड्डाणा अड़ंगुल अति बोधव्वे सेसो संसार फलहेऊ. ८. पे. नाम. सिद्धिऋषि कथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: हरिभद्राचार्यशिष्य सिद्धि, अंतिः पगि लागु ए अधिक बुद्धि. ९. पे नाम. विविधविचार संग्रह, पू. ४आ-५अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध विचार संग्रह, प्रा.सं., प+ग, आदि: जरा जोवन पीडेइ वाही जीव; अंति: हस्स गाउ सउं कला चउथा गति. १०. पे नाम नमस्कार विचार, पृ. ५२-५आ, संपूर्ण नमस्कारमहामंत्र विचार, प्रा., गद्य, आदि कम्मभूमिहि पढम संघयणि अंतिः वंदना भविक लोक नीपजावड़ ११. पे नाम, चैत्यवंदन विधि, पृ. ५आ, संपूर्ण पु.ि, प्रा., सं., गद्य, आदि ईर्वापथिकी प्रतिक्रम्य; अति: तेणं तत्ताई सिसलागनाएणं. १२. पे. नाम. चैत्यवंदना कुलक, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: चैत्यवंदनाकुलं. चैत्यवंदनविधि कुलक, प्रा., पद्य, आदि तिन्नि निसीही तिन्नि अति धम्मो आणाइ पडिबद्धो, गाथा ३४. १३. पे. नाम. प्रतिलेखणा कुलक, पृ. ६अ -६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:प्रतिलेखनाकु०. पडिलेहणा कुलक, प्रा., पद्य, आदि: भयवं दसन्नभद्दो सदंसणो; अंति: ता कहे पडिलेहणं कुज्जा, गाथा-३६. १४. पे नाम. दानविधि कुलक, पृ. ७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: दानविधिकुलं. मिथ्यात्वमथन प्रकरण- दानविधि, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: धम्मोवग्गह दाणं दिज; अंति: लोयणाण धम्मो मणे ठाइ, गाथा - २५. १५. पे. नाम. आउरपच्चक्खाण विधि, पृ. ७अ ८अ संपूर्ण, पे.वि. हुंडी आअपच्चक्खाणविधि. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि अरहंता मंगलं मज्झ अति: सव्वं तिवहेण बोसिरिय, गाथा- ३०. १६. पे. नाम. उपवास प्रत्याख्यान, पृ. ८अ, संपूर्ण. अनशन पच्चक्खाण सूत्र, प्रा., गद्य, आदि: भव सचरिमं पच्चक्खाइ; अंति: वोसिरइ वोसिरामि. १७. पे नाम प्रत्याख्यान भेद, पृ. ८अ संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि दुविहारि असणं खाइर्म ए अंतिः चउविहारि सर्वत्याज्य, गाथा - १. २०. पे. नाम. वंदनक भाष्य, पृ. ८आ - ९अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : वंदनकभाष्यं.. गुरुवंदन भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: मुहणंतय २५ देहा २५; अंति: उत्तमट्ठेय वंदणयं, गाथा-२७. २१. पे. नाम. चिंता कुलक, पू. ९अ ९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी चिंताकुलं. ३४७ १८. पे. नाम. प्रत्याख्यान आगार गाथा, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : प्रत्याख्यान आगरगाथा. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि नवकार पोरसी २ परिमड़ अंतिः संचेवतहा उगाहिमदंवद सविगई, गाथा- १०. , १९. पे. नाम. शीलगुप्ति कुलक, पृ. ८आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं भणामिह; अंति: अचिरेण विमाणवासं वा, गाथा - २२. For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा., पद्य, आदि: न कया जिणवरपूया मालइ कुसम; अंति: सो लहइ जहच्छियं सुक्खं, गाथा-१२. २२. पे. नाम, जयणा कुलक, पृ. ९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जयणाकुलं. ___प्रा., पद्य, आदि: जिणवरदेव सुसाहु गुरो; अंति: मणि ते सवि सिद्धि लहुँति, गाथा-१५. २३. पे. नाम. आत्मानशासन, प. ९आ-११अ. संपूर्ण.प.वि. हंडी:आत्मानशास०. ग. पार्श्वनाग, सं., पद्य, वि. १०४२, आदि: सकलत्रिभुवनतिलकं; अंति: भाद्रपदिकायाम्, श्लोक-७७. २४. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सुभाषित. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: धर्माजन्मकुले शरीरपटुता; अंति: अम्ह परत्ताणं को हरइ, श्लोक-२४. २५. पे. नाम. श्रावकवक्तव्यता प्रकरण, पृ. ११आ-१३अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:श्रावकवक्तव्यता. षट्स्थानक प्रकरण, आ. जिनेश्वरसूरि , प्रा., पद्य, आदि: कयवयकम्मयभावो सीलत्त; अंति: भणइ सयं भाणइ परेण, सर्ग-६, (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से १०२ अपूर्ण तक नहीं है.) २६. पे. नाम. पंचलिंगी प्रकरण, पृ. १३अ-१३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हंडी:पंचलंगीप्रकरण. आ. जिनेश्वरसूरि , प्रा., पद्य, आदि: उवसम संवेगो वि य निव; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-६६ अपूर्ण तक है. ९८०६६. (+) सिंदूरप्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १८५१, शशीर्बाणाष्टचंद्रे, आश्विन शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. स्वर्णगिरि, प्रले. मु. रत्नचंद्र पाठक; पठ. मु. हितप्रमोद (गुरु मु. रत्नचंद्र पाठक), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५,१६-२१४५१-६२). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सूक्तिमुक्तावलीं, द्वार-२२, __ श्लोक-१००. सिंदरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा; अंति: वृत्तिमिमामकार्षीत्. ९८०६७. (+) पाक्षिक व क्षमापणासूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-५(१,७ से १०)=१३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, ९४३२-३८). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. २अ-१८अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति, (पू.वि. पाठ "पढमे भंते महव्वय पाणायबायाउ वैरमणं" से ___"अतीपणयाए अपीडणयाए अपरियाव" तक व"त्तारणाएतिकटूं उवसंपज्जिताणं विहरांमि" से है.) २. पे. नाम. क्षमापनासूत्र, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंति: अहमवि चेइयाई वंदामि, आलाप-४. ९८०६८ (+) दीवालीकल्प सह बालबोध, संपूर्ण, वि. १७७३-१७७५, फाल्गुन शुक्ल, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १४४४१-५३). दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: संतु श्रीवर्द्धमान; अंति: सुरेंद्रादिभिः कृतः, श्लोक-२७८. दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीररा चरणकमल तेहना; अंति: संजुहार भटारानाम कहाणो. ९८०६९ (+) जैनधार्मिक प्रश्नोत्तरादि बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. ११, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०, १६४४८). १. पे. नाम. जैनधार्मिक प्रश्नोत्तर, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नवकारमाहे पहिला पद पाठ; अंति: उत्कृष्टा सीझै तो १० सीझै. २. पे. नाम. षड्द्रव्य विचार, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ६द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय१ अधर्मा; अंति: लाख वरसें झाझरे थास्यै. ३.पे. नाम. चौवीसतीर्थकर आश्री विचार, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३४९ २४ तीर्थंकर २९ बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अशोकवृक्ष श्रीऋषभदेवनउ; अंति: तांई छ मासी तप हूतो. ४. पे. नाम. चौवीसतीर्थंकरना भव, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकर भव विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धनसार्थवाह१ कुरुक्षेत्र; अंति: देव२६ श्रीमहावीरस्वामी२७. ५.पे. नाम. तीथंकरगौत्र उपा| ते थानक विचार, प.७आ-८आ, संपूर्ण. २४ तीर्थंतर गोत्रकर्म उपार्जन स्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीऋषभदेवे धनसारनै भवे; अंति: उपार्जी श्रीमहावीर थया. ६.पे. नाम. ध्यानना सोले पाया, पृ. ८आ, संपूर्ण. १६ ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आर्तध्यानना च्यार पाया; अंति: ध्यानना १६ पायाना भाजण. ७. पे. नाम. चारि पडिवा असज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. ४ पडवा असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: वैसाख वदि१ श्रावण वदि१; अंति: ए तीन निर्जरा तत्वमां. ८. पे. नाम. छ दर्शन नाम देवगुरु विचार, पृ. ८आ, संपूर्ण. ६ दर्शन नाम देवगुरु विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जैन१ नैयायिक२ सांख्य३; अंति: देव इश्वर गुरु जोगींद. ९. पे. नाम. शेव्रुजयतीर्थ जात्रा छरी विगत, पृ. ८आ, संपूर्ण. छरी नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सचित्त परिहारी धरतीय; अंति: ब्रह्मचर्य सील पालै. १०. पे. नाम. ६ ऋतु नाम, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ वर्षाऋतु श्रावण१ भाद्र; अंति: ६ ग्रीषमऋतु जेठ१ आसाढ२. ११. पे. नाम. छ रागना नाम, पृ. ८आ, संपूर्ण. संगीतराग नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीराग१ वसंतराग२ पंचमराग; अंति: नटनारायण६ एवं राग जाणवा. ९८०७०. शालिभद्र चतुष्पदी व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७५५, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. इंद्रसागर (गुरु ग. गजेंद्र); गुपि. ग. गजेंद्र (गुरु पं. मेघसागर गणि); पं. मेघसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०, २२४३९-४२). १. पे. नाम. शालिभद्र चतुष्पदी, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण. शालिभद्रमनि चौपाई, म. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित सुख लहस्यैजी, ढाल-२९, गाथा-५१०. २. पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. ११आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: यद्यपि मरशिर खरए नवलसिंह; अंति: पयल गए विसोसिएनी रे, गाथा-२. ९८०७१, (+) वीसविहरमान गीत, स्तति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-३(१ से ३)=५, कुल पे. ९, प्र.वि. हुंडी:स्तवनपत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, २१४५४-५८). १. पे. नाम. वीसविहरमान गीत, पृ. ४अ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २०विहरमानजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंतिः जिनराज जिनवीस, (पूर्ण, पू.वि. सीमंधरजिन गीत गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. ६आ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति: मुगति तणा फल त्याह, गाथा-६. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नीलकमल दल सामली रे; अंति: पायो अबिचल राज, गाथा-७. ४. पे. नाम. चतुर्विंशतिगणधर संख्या स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. कमलरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं प्रहसम प्रथम जिण; अंति: कमलरतन गुण गाय, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MAG ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. पांचमतपगर्भितश्रीमहावीर स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बहत, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२०. ६. पे. नाम. गौतमस्वामी गीत, पृ. ७आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेश्वर केरो शिष्य; अंति: लावण्यसमय० वंछित कोडि, गाथा-९. ७. पे. नाम. सर्पचोर मंत्र, पृ. ७आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ अर्प सर्प भृदंते; अंति: स्वाहा आज्ञा आस्तीक. ८. पे. नाम. शेजयमंडन आदिजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनवु जी; अंति: समयसुंदर इम भणै, गाथा-३१. ९.पे. नाम. पद्मावतीजीव रास, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: कहे पापथी छुटे ___ ततकाल, ढाल-३, गाथा-३३. ९८०७२. (+) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४७-५०). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: नेमीसर गुणनिलो; अंति: संबप्रजून गुण गावतां, खंड-२ ढाल २२, गाथा-६३१, ग्रं. ८००. ९८०७३. गोडीपार्श्वनाथजीना सोल ढालिया, संपूर्ण, वि. १९२१, चैत्र शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. अमदावादनगर, प्रले. पं. पंडितमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४९.५, ११४३४-४०). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: भाव धरी भजना करु आपो; अंति: नेमविजय जयकार, ढाल-१५. ९८०७५. उत्तम चरित्र, संपूर्ण, वि. १७१९, श्रावण कृष्ण, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. खेजडला, प्रले. ग. रूपहर्ष वाचक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०, १८४६१). ____उत्तमकुमार चरित्र, ग. चारुचंद्र, सं., पद्य, आदि: वंदित्वा स्वगुरुन; अंति: य कथेयं नंदितश्चिरम्, श्लोक-५७५. ९८०७६. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २३-४(१२ से १३,१९,२१)=१९, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नाममालासूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११, १५-१८४३६-५०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. कांड-३ श्लोक-८७ अपूर्ण से १७६ अपूर्ण तक, कांड-३ श्लोक-५६६ अपूर्ण से नहीं है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९८०७८. श्रावकपडिकमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२६४१०.५, १२४४०-४८). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ९८०८० (+) मानतंगमानवतीरी चतःपदी, संपूर्ण, वि. १७९५, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. सिद्धितिलक पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४३४-४४). मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमुं माता सरसती; अंति: भेद मतिमंदिर लहै, ढाल-१४. ९८०८३. (+#) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:चउसरण., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०, ६४३२-४२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि सावद्ययोग मनबचनकावाकरी; अंति मोक्षना सुख तणाउ दाब ९८०८५ (+) परमेष्टिबीजयंत्र साधना विधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है., प्र. वि. संशोधित, जैये., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५.५x१०.५, १६४३९-५३). पंचपरमेष्ठि बीजयंत्र साधना विधि, सं., प+ग., आदि: श्रीवामेयं जिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. मायाबीजनीलविधि त है. वि. यंत्रसहित) ९८०८६. (+) दुरिअरयसमीर स्तोत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त वि पाठ-संशोधित, जैवे. (२५४९.५, १७४४४-४८). दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि दुरिअरयसमीरं मोहपंको अंति: (-). ( पू.वि. गाथा २० तक है.) दुरिअरयसमीर स्तोत्र- वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, आदि अहं तस्य महावीरदेव, अंति: (-). ९८०८८. (+) विविधआगम पर्याय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११ - १ (१) = १०, कुल पे. ९, प्र. वि. हुंडी काटा हुआ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित, जैदे., ( २६ १०, १७४२-६०). १. पे. नाम. आचारांगसूत्र का पर्याय, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी: आचारांगपर्याय. आचारांगसूत्र-पर्याय, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: स्वापतेयं संचलकमित्यर्थः, (पू.वि. "तहविपयउनिमंतए" पाठ से है.) २. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र का पर्याय, पू. ३अ ३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी सूयगडंगपर्याय. सूत्रकृतांगसूत्र- पर्याय, सं., गद्य, आदि: सव्वामगध आधाकर्म्मिकं; अंति: वर्तमानक्रियं भवतीत्यर्था. ३. पे. नाम. स्थानांगसूत्र का पर्याय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : ठाणांगपर्याय. स्थानांगसूत्र-पर्याय, सं., गद्य, आदि: वैषच्चं जाड्यं आश्रवण; अंति: एगे भवं दुवे भवं भवानि. ४. पे. नाम. समवायांगसूत्र का पर्याय, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: समवायंग समवायांगसूत्र- पर्याय, सं., गद्य, आदि: वामणमंतराणं सोहंमाउ तोषाम; अति: मेकत्रावश्यं नाखोत्पत्तिः, ५. पे. नाम. भगवतीसूत्र का पर्याय, पृ. ५आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-पर्याय, सं., गद्य, आदि: तिरियाणं चारित्तं इत्यादि; अंति: साधु साध्वीनां श्रूयते. पे. नाम. प्रश्नव्याकरणसूत्र का पर्याय, पू. ५आ, संपूर्ण. प्रश्नव्याकरणसूत्र - पर्याय, सं., गद्य, आदिः यथा सूत्रं व्यवस्थाप्यमतो; अंतिः घुरायासात् श्वपशुः शेफ. ७. पे नाम. जीवाभिगमसूत्र का पर्याय, पू. ५आ, संपूर्ण जीवाभिगमसूत्र-पर्याय, सं., गद्य, आदि: यथासतः संभूत भावम्य; अंति: रुषार्थेषु इत्यर्थः. ८. पे. नाम. प्रज्ञापणासूत्र का पर्याय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र - पर्याय, सं., गद्य, आदि: प्रज्ञापना इष्टदशपदेशतो; अंति: सत्वहिताय नित्यं. ३५१ 1 ९. पे. नाम. निशीथसूत्र की चूर्णि का पर्याय, पृ. ६अ -११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. निशीथसूत्र - विशेषचूर्णिका पर्याय, सं., गद्य, आदि निशीथचूर्णि प्रभृति अति (-) (पू.वि. "कोवीणयछिइज्जा पीनद्विती" पाठ तक है.) ९८०८९ (+) क्रोधमानमायालोभ उपर दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६ प्र. वि. हुंडी: कोडे घेवर दृष्टांत, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैये. (२६×१०, ११४३५). ४ कषाय परिहार-दृष्टांत कथा, रा., गद्य, आदि: कोहे घेवर खवगे माणा; अंति : नीराय नीपरइ क्रोध कहिउ. ९८०९० (+) समवायांगसूत्र सह टबार्थ-अध्ययन ५६ से ६८, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२६४१०, ४X३२-३८). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-) अंति (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., समवाय-५६ से ६८ अपूर्ण तक लिखा है., वि. पत्रांक १अ पर समवाय-३१ का कुछ पाठ लिखा है.) समवायांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९८०९१ (+) क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४२६-३६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुशलरंगमयं पसिद्धिं, अधिकार-६, गाथा-२६५. ९८०९२. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९३-१५६(१ से १५६)=३७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:ज्ञातासू०., जैदे., (२६.५४११, ११४३३-३९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१४ अपूर्ण पाठ "यानि अनिट्ठा ५ जाव दंसणं वा परिसोगं वा तंतु" से अध्ययन-१५ अपूर्ण पाठ "त तेणं से कहे वामदेवेकांतिदेवि हो" तक है.) ९८०९३. (+) स्तुति, स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७४, फाल्गुन कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २३-१(१९)=२२, कुल पे. २६, ले.स्थल. जेसलमेर, पठ. श्राव. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १०x२६-३२). १.पे. नाम, देवसिप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-१०आ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० जयउसामी २; अंति: प्राणिभाजां श्रुतांगी. २. पे. नाम. वर्द्धमान स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा.,सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणिं भव; अंति: मे मंगलं देवि सारं, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं सम्मोह; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ४. पे. नाम. अन्नपूर्णा स्तोत्र, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: उसभस्सय पारणए इक्खुर; अंति: साहु देहस्स धारणा, गाथा-६. ५. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, आ. जिनकशलसरि, सं., पद्य, आदि: नाभेयाजितवासुपूज्यविधि; अंति: नेताः प्रयच्छंतु नः, श्लोक-४. ६. पे. नाम. महावीरजिन पारणा स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः यत्पारणासु प्रथमासु; अंति: पातु मम प्रमोदं, श्लोक-४. ७. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद; अंति: सा सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ८. पे. नाम. तीर्थराजा स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्यसेवा; अंति: प्रभावदाता ददतां शिवः वा, श्लोक-१. ९. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: शार्दूलविक्रीडितम्, श्लोक-४. १०. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन; अंति: क्षयति विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. ११. पे. नाम. महावीजिन स्तति, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदहिनमनादेव देहिन; अंति: जनानवतु नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. १२. पे. नाम. आदिनाथ स्तुति, पृ. १५अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगुणं; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: तीर्थपमज्जनशस्तनिदाघः, श्लोक-४. १४. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, प. १५आ-१६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३५३ - प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. १५. पे. नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. १६अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय युगादि; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. १६. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सुचंडमाडंवर पंचबाण; अंति: निकाम कुरु बाणि देवि, श्लोक-४. १७. पे. नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. राजहंस, सं., पद्य, आदि: यस्यांसयोः कनकपंकजकांति; अंति: मध्यमहिमानमदीनवाचः, श्लोक-४. १८. पे. नाम, साधारणजिन स्तुति, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जिनो जयति यस्यांहि; अंति: मन्यते क्लेशनाशाय संततः, श्लोक-४. १९. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशजयमंडण; अंति: नंदिशर तुझ पाय सेवता, गाथा-४. २०. पे. नाम. चैत्रीपूनमपर्व स्तति, पृ. १७आ, संपूर्ण. चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेāजयतीरथ आदिनाथ; अंति: सुंदर कहै सानिधि करो, गाथा-४. २१. पे. नाम, शांतिजिन स्तुति, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: देवदेवाधिपैः सर्वतो; अंति: भारती भारती यः सदा यः सदा, श्लोक-४. २२. पे. नाम, पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समदमुत्तमवस्तु महाफण; अंति: जयतिशः जिनशासन देवता, श्लोक-४. २३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तति, पृ. १८आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकशलसरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) २४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २०अ-२०आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जो तुसे देवी अंबाई, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २५. पे. नाम, अष्टमीतिथिपर्व स्तति, पृ. २०आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अट्ठ सोहइ; अंति: संति विह संति कल्याणदाता, गाथा-४. २६. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. २१अ-२३आ, संपूर्ण. __संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. ९८०९४. (+) बारसासूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७५-४०(१ से २२,३३,३८ से ४२,४६ से ४९,५४ से ६०,७२)=३५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४२२-३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चौदस्वप्न फलादेश अपूर्ण से "फासित्ता पालित्ता सोभित्ता" पाठ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९८०९७ (+) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६६४, श्रावण कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १६९, ले.स्थल. सांतिकुडी, अन्य. ग. प्रीतिविजय (तपगच्छ); हीराजी वस्ताजी ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:उपदशमाला., संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, १३४४४-४९). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: आराहिय लहह बोहिसुहं, कथा-४३, गाथा-११५. शीलोपदेशमाला-बालावबोध कथा, ग. मेरुसंदर, मा.ग., गद्य, वि. १५५१, आदि: श्रीवामेयममेय; अंति: सकल सुखनइ भाजनइ हुई, ग्रं. ६२५०. For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९८०९८. (+) उपासगदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७१, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४९.५, ५४३५-४२). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं. ९१२. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: दसमा अध्ययन० उपदिस्यउं. ९८१०२. (+-) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२७, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ६७, ले.स्थल. तिवरी, प्रले. पं. प्रेमचंद (गुरु पं. विवेकसागर, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.पं. विवेकसागर (गुरु उपा. नेममुक्ति, बृहत्खरतरगच्छ); उपा. नेममुक्ति (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३.५४९.५, ४४३५-३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिओ अरिहंताई ठिई भवणो; अंति: नंदो जा वीरजिण तत्थं, गाथा-३९०. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमियु क० नमीवांदी अरिहंता; अंति: संसारीक सर्व सुख पामै. ९८१०३ (+#) पदमणी चरीत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, ले.स्थल. आउआनगर, प्रले. ग. दोलतविजय (गुरु पं. शांतिविजय गणि); गुपि. पं. शांतिविजय गणि (गुरु पं. भीमविजयगणि); पं. भीमविजयगणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., संशोधित. कुल ग्रं. १५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १३४३६). गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: आदिस्वर प्रथम जिण जगपति; अंति: लब्धोदय० सफल सुखकंद, खंड-३, गाथा-८१६, ग्रं. ११५७.. ९८१०४. (+) सिंघासणबत्रीसी व औपदेशिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५७-८(१ से २,४० से ४५)=४९, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, १५४२६-७०). १.पे. नाम. सिंघासणबत्रीसी, पृ. ३अ-४७अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १७४७, श्रावण, ले.स्थल. देवकपत्तन, प्रले. मु. जीवसुंदर; पठ. पं. मानसुंदर, प्र.ले.प. सामान्य, पे.वि. हुंडी:३२ पूतली कथा. सिंहासनबत्रीसी, ग. संघविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: हुई लहइं नर कोडि कल्याण, कथा-३२, गाथा-१५४७, ग्रं. १६००, (पू.वि. कथा-१ गाथा-४६ अपूर्ण से कथा-२३ गाथा-२७ अपूर्ण तक है व कथा-२८ गाथा-२६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, औपदेशिक गाथा श्लोक संग्रह, पृ. ४७अ-४७आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: ओहो सुओ चउत्तो सुअराणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३७ तक लिखा है.) ९८१०५ (+) मानतुंगमानवति रास, संपूर्ण, वि. १७७६, ज्येष्ठ कृष्ण, मध्यम, पृ. ३२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४९.५, १५-१९४४१-४८). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजै मन; अंति: कहै० घर घर मंगल माला है, ढाल-४७, गाथा-१०१५. ९८१०६ (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १८१०, कार्तिक कृष्ण, १, शनिवार, मध्यम, पृ. ५३, ले.स्थल. सोजतनगर, प्रले. मु. कनकसागर (गुरु उपा. धर्मकल्याण, खरतरगच्छ); गुपि. उपा. धर्मकल्याण (गुरु मु. कमलसौभाग्य, खरतरगच्छ); राज्ये आ. जिनलाभसूरि (बृहत्खरतरगच्छ); अन्य उपा. रत्नविमल (गुरु मु. कनकसागर, खरतरगच्छ); पं. क्षमाधर्म (गुरु उपा. रत्नविमल, खरतरगच्छ); मु. गुप्तिधर्म (गुरु मु. क्षमाधर्म, खरतरगच्छ); पं. महिमाशील; चतुरा; रूपचंद, प्र.ले.प. अतिविस्तृत, प्र.वि. हंडी:नाममाला०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १५९१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १३४३७-४६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति: ग्रोषोक्तावुन्नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३५५ ९८१०७. (+) ठाणांगसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:श्रीठाणांग सटीक०. बदनमल मेहताजी द्वारा इस प्रत को संवत् १९१० वैशाख शुक्ल ८ सोमवार को भंडार में रखने का उल्लेख है., त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, १-१९४५-७०). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं भग; अंति: (-), (पू.वि. स्थान-७ "पच्चत्थाभिमुहीओ" पाठ तक है.) स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: श्रीवीरं जिननाथं नत्वा; अंति: (-). ९८१०८.(+) उपदेश रसाल, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४९.५, १५४२१-५०). उपदेश रसाल, सं., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं मंगलं भगवान, (२)यत्कल्याणकरो अवतारसमयः; अंति: श्रीसंघार्चादिमंगलम, अध्याय-५२. ९८१०९ (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५५-४(१ से ४)=५१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, ६४३८-४२). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उद्देश-२ सूत्र-१६ अपूर्ण से श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ उद्देश-१ सूत्र-१ अपूर्ण तक है.) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९८११० (+) दंडक प्रकरण व बृहत्संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८३३, चैत्र शुक्ल, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ११५-७५(१ से ७५)=४०, कुल पे. २, प्रले. पं. अनोपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२३४१०, ८x१७-२०). १.पे. नाम. चतुर्विंशति विचार सूचक स्तवन, पृ. ७६अ-७६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: लहिआ एसाए विणत्ति अप्पहिआ, गाथा-४२, (पू.वि. गाथा-३६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. बृहत्संग्रहणीसूत्र, पृ.७६आ-११५आ, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिओ अरिहंताई ठिइ भवणो; अंति: नंदउ जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१५. ९८११२. (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पार्श्वजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८०६, चैत्र कृष्ण, १, मध्यम, पृ. २४, कुल पे. ५, ले.स्थल. वाडमेर, प्रले. मु. क्षमाधर्म (गुरु मु. रत्नविमल, खरतरगच्छ); गुपि. मु. रत्नविमल (गुरु ग. कनकसागर, खरतरगच्छ); ग. कनकसागर (गुरु ग. धर्मकल्याण, खरतरगच्छ); उपा. धर्मकल्याण (गुरु मु. कमलसौभाग्य, खरतरगच्छ), प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०,११४३५-४०). १.पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पडिकम०. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २. पे. नाम. स्थंभनक पार्श्वजिन नमस्कार, पृ. १०अ-१३अ, संपूर्ण. जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तियणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभयदेव विन्निवइ आणंदिय, गाथा-३१. ३. पे. नाम. सप्तस्मरण स्तव, पृ. १३अ-२३अ, संपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: नमामि साहम्मिया तेवि, स्मरण-७. ४. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ५. पे. नाम. नवग्रहगर्भित पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालीआयरविया; अंति: असुहा वग्गहा न पीडंति, गाथा-१०. ९८११७. हरिचंदराजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३४-१०(१,५,९ से ११,२० से २२,२४ से २५)=२४, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, दे., (२३४१०.५, १२x२७). हरिश्चंद्रराजा रास, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६७९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से ४४८ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९८११९ (+#) अध्यात्मकल्पद्रम की अध्यात्मकल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५-१८४४५-५५). अध्यात्मकल्पद्रम-अध्यात्मकल्पलता टीका, उपा. रत्नचंद्र, सं., गद्य, वि. १६७४, आदि: (१)प्रणत सुरासुरकोटी, (२)तत्रोपन्याससूत्रमिदं अथाय; अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-१६ प्रारंभिक अंश अपूर्ण तक है.) ९८१२०. (+#) विक्रमादित्यलीलावतीसत विक्रमसेनकमार चपई, संपूर्ण, वि. १७७४, आषाढ़ शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५४, प्रले. पं. वीरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीधाणामहावीर प्रसादात्, श्रीदेवगुरु प्रासादात्., संशोधित-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४.५४१९.५, १३४३०-४०). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखेसरो पूरण परम; अंति: विक्रमसेन तणा गुण गाया, ढाल-५२, गाथा-११६२, ग्रं. १६२४. ९८१२३. (+#) पाक्षिकसूत्र व पाक्षिक क्षामणा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-४(१ से ४)=११, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४४२-४६). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ५अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १७४८, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, शनिवार. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: सयं जेसिं सुअसायरे सत्ति, (पू.वि. "बहुं वा अणुं वा थूलं वा" पाठ से है., वि. यत्र-तत्र टबार्थ दिया गया है.) २. पे. नाम. पाक्षिकखामणा, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासणौ पिअं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ९८१२४. (+#) रत्नपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५८-३४(१ से ३४)=२४, प्र.वि. हुंडी:रत्नपालरा०. प्रतिलेखन पुष्पिका अस्पष्ट है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १६४३४-३९). रत्नपालरत्नावती चौपाई, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: लच्छी मोहनविजय विलास जी, खंड-४ ढाल ६६, गाथा-१३७२, (प.वि. खंड-३ ढाल-७ से है.) ९८१२७. (+#) उपदेशमाला प्रकरण सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १७७५, चैत्र शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. १४१, प्रले. मु. विवेकविजय; पठ. ग. सुविधिसागर (गुरु ग. आमोदसागर); गुपि. ग. आमोदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपदेशट०, ट० उपदेशमालाकथा., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४४९.५, १४४४०-४३). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहेता नमस्कार; अंति: जे विरुद्ध वचन ते प्रतै. उपदेशमाला-कथा, मा.ग., गद्य, आदि: हवै साध्विआ श्रिउपदेश; अंति: कीधी पछै सर्वे प्रवर्ति. ९८१३३. (+) अध्यात्मकल्पद्रुम सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१३, मध्यम, पृ. ५२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३४१०, २-५४३१-३८). अध्यात्मकल्पद्रम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: अथायं श्रीमान् शांतनामा; अंति: भववैरिजयश्रिया शिवश्रीः, अधिकार-१६, श्लोक-२७८, ग्रं. ४००, (वि. १८१३, पौष शुक्ल, ५, ले.स्थल. साचोर) अध्यात्मकल्पद्रम-स्तबक, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वात्पदयुगलं; अंति: करीने मोक्षलक्ष्मी प्रवरइ, (वि. १८१३, पौष शुक्ल, १२) For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३५७ ९८१३५ (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४२-८८(१,५२ से १३६,१३९ से १४०)=५४, कुल पे. ३६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२.५४९.५, ११४३७-४०). १.पे. नाम. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, पृ. २अ-१२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (१)संघस्स समुन्नइ निमित्तं, (२)अतीचार आलोयणा माहि आलोयसु, (पू.वि. प्रारंभिक चैत्यवंदन अपूर्ण से है., वि. १० पच्चक्खाण व अतिचार भी समाविष्ट है.) २. पे. नाम. स्थंभनकमंडन श्रीपार्श्वनाथ नमस्कार, पृ. १२अ-१४आ, संपूर्ण. जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभयदेव विण्णिवइ आणिंदिय, गाथा-३०. ३. पे. नाम. सातस्मरणा, पृ. १५अ-२३आ, संपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअ सव्वभयं; अंति: नमामि साहम्मिया तेवि, स्मरण-७, (वि. उवसग्गहर स्तोत्र नहीं लिखा है.) ४. पे. नाम, धूमावली, पृ. २३आ-२४आ, संपूर्ण. आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: असुरिंदसुरिंदाणं किन; अंति: सव्वे वि कुणन्तु भवविरह, गाथा-१४. ५. पे. नाम. कुसुमांजलि, पृ. २४आ, संपूर्ण. कुसुमांजलि गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उसरणे जिण पुरउ परिमल; अंति: मंगलं कुसुमवर वुड्ढी, गाथा-१. ६. पे. नाम, मंगलिक लूणपाणीय वृत्ताणि, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण. जिनमांगलिक लूणपाणि गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जिण नयणा सलोणत्तं पिच्छिय; अंति: कीरइ तेणो सा मंगलं पईवा, गाथा-१२. ७. पे. नाम, गृहप्रतिमा स्नात्रविधि, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: मीनकुरंग मदा गुरु सारं; अंति: वृत्तेन स्नानं क्रियते, गाथा-३. ८. पे. नाम, परिथापनिका वृत्तद्वयं, पृ. २५आ, संपूर्ण. परिस्थापनिका श्लोक, सं., गद्य, आदि: क्वापि शक्रस्तव त्रितयं; अंति: क्रोशक्षयाकांक्षया, श्लोक-२. ९. पे. नाम. लघुस्नपन विधि, पृ. २५आ-२८अ, संपूर्ण. जिनलघुस्नपन विधि, सं., गद्य, आदि: प्रथमं स्नात्र समये स्नपन; अंति: सर्वकर्माणि क्रियते. १०. पे. नाम. ज्ञान परिथापनिका, पृ. २८अ, संपूर्ण. ज्ञानपहिरावणी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नमंत सामंतमही विनाहं; अंति: लाभाय भवक्खयाय, गाथा-२. ११. पे. नाम. आरात्रिक वृत्तानि, पृ. २८अ-२९अ, संपूर्ण. आरात्रिक गाथा, आ. जिनदत्तसरि, अप., पद्य, वि. १२वी, आदि: उप्फुल्ल फुल्लं रसलुद्ध; अंति: पंचपुणतत्थ हवंति तेण, गाथा-१०. १२. पे. नाम. मंगलीक वृत्तानि, पृ. २९अ, संपूर्ण. मांगलिक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दीवोविनाणु मरउ महउ; अंति: हितु तस्स जलं विदिति, गाथा-३. १३. पे. नाम, महावीर कलश, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन कलश, मु. नन्निग ऋषि, प्रा., पद्य, आदि: जम्ममज्जणि जिणह; अंति: धन्ना जेहि दिछो सि, गाथा-५. १४. पे. नाम. आदिजिन कलश, पृ. २९आ-३१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सयल दीवानमब्भो जंबु दीवं; अंति: कुणहु जह लहइ सासयं सिवपयं, गाथा-२२. १५. पे. नाम. महावीरजिन कलश, पृ. ३१आ-३४अ, संपूर्ण. __प्रा., पद्य, आदि: पणमेवि तिजयनाहं सिद्धत्थ; अंति: जिम होइ नर नरवरह तक्खणो, गाथा-२९. १६.पे. नाम. नेमिनाथ बोली, पृ. ३४अ-३५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन बोली-गिरनारतीर्थमंडन, अप., पद्य, आदि: धन धन सोरठ देसि पसिद्धओ; अंति: परमेसर याम गयणि ससिभाण, गाथा-७. १७. पे. नाम. थूलभद्दस्वामि बोली, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि बोली, अप., पद्य, आदि: सूरराय समहरि करवि; अंति: जिणि मयण तुहु जित्तउ, गाथा-७. १८. पे. नाम. शांतिनाथ बोली, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण. शांतिजिन बोलिका, आ. जिनेश्वरसूरि, अप., पद्य, आदि: ता उत्तर दक्षिण पूर्व; अंति: नंदिउ दुरिउ पणासइ दूरि, गाथा-४. १९.पे. नाम. जिणेसरसूरि बोली, पृ. ३६अ-३७अ, संपूर्ण. जिनेश्वरसूरि बोली, मु. जिनेश्वरसूरि शिष्य, अप., पद्य, आदि: हलि पंचकुसुम सरविसर नमज्झ; अंति: पयसित्थु द्दइ मयणु, गाथा-१३. २०.पे. नाम. पार्श्वजिन बोली, पृ. ३७अ-३८अ, संपूर्ण.. आ. जिनपद्मसूरि, अप., पद्य, आदि: पढमधुरंधर पढमनाहु निरसाउ; अंति: शकलितकलितनंद कलिमल सलिल, गाथा-६. २१. पे. नाम. जिन चौबीसी बोली, पृ. ३८आ-४०आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथांक पिछली कृति से क्रमशः मिलता है. जिनचौबीसी बोली, आ. जिनचंदसूरि, अप., पद्य, आदि: जो मंगलु सिरिरिसहनाह; अंति: ठाउ लहहु जिव सिद्धिपुरि, गाथा-१३. २२. पे. नाम. श्रावक विधि, पृ. ४०-४१आ, संपूर्ण. श्रावकविधि, जै.क. धनपाल, प्रा., पद्य, आदि: जत्थ पुरे जिणभवणं; अंति: जिणधम्मुवएससलिलेण, गाथा-२२. २३. पे. नाम. मिथ्यात्वमथन प्रकरण-दानविधि, पृ. ४१आ-४३अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: धम्मोवग्रहदाणं दिज्झ; अंति: लोयणाण धम्मो मणे ठाइ, गाथा-२५. २४. पे. नाम. नवकार फल, पृ. ४३अ-४४अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र कुलक, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: घणघायकम्ममुक्का; अंति: संसारो तस्स किं कुणइ, गाथा-२३. २५. पे. नाम. चैत्यवंदन नियम सम्यक्त्व कुलक, पृ. ४४अ-४५आ, संपूर्ण. __चैत्यवंदन कुलक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊणमणंतगुणं चउवयणं; अंति: हणपहे नीसेससुक्खावहे, गाथा-२८. २६. पे. नाम. पडिलेहण कुलक, पृ. ४५आ-४७आ, संपूर्ण. पडिलेहणा कलक, प्रा., पद्य, आदि: भयवं दसन्नभद्दो सदसणो; अंति: ता कहे पडिलेहणं कुज्जा, गाथा-३६. २७. पे. नाम. नमस्कार विचार, पृ. ४७आ-४८अ, संपूर्ण.. नमस्कारमहामंत्र विचार, प्रा., गद्य, आदि: कम्मभूमिहि पढम संघयणि; अंति: सहस्सा चउसय अट्ठसियापडिमा. २८. पे. नाम. प्रभातस्मरण कुलक, पृ. ४८अ-४९अ, संपूर्ण.. सर्वतीर्थमहर्षि कुलक, जिनेश्वरसूरि-शिष्य, प्रा., पद्य, आदि: अट्ठावयम्मि उसभो; अंति: खंदगसीसाण सुमुणीणं, गाथा-२६. २९. पे. नाम. महासतमहासती कुलक, पृ. ४९अ-५०अ, संपूर्ण. भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जासिं जसपढओ तिहूणे सयले, गाथा-१३. ३०. पे. नाम. गुर्वावली, पृ. ५०अ-५०आ, संपूर्ण. अप., पद्य, आदि: वंदे सुहम्म सामि; अंति: संता अहार्णदितु कल्लाणं, गाथा-१०. ३१. पे. नाम. इगुणतीसी भावना, पृ. ५०आ-५१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: जह मुच्चह सव्वदुक्खाणं, गाथा-२९. ३२. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १३७अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: कल्याण करो, ढाल-६, गाथा-४६, (पू.वि. गाथा-४३ अपूर्ण से है.) ३३. पे. नाम. शत्रंजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, पृ. १३७अ-१३८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५९ मा.गु., पद्य, आदि समरवि सरसति हंसला गामिणि; अंति: जात्रह निम्मफल लहंति, गाथा - २५. ३४. पे. नाम महावीरजिन स्तव- समसंस्कृतप्राकृत, पृ. १४९अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि (-); अंतिः विशदां दृष्टिं दयालो मयि श्लोक-३० (पू.वि. गाथा ३० का मात्र अंतिम पाद ही है.) ३५. पे नाम, अजितशांति स्तवन, पृ. १४१-१४२आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तवन- मेरुनंदनीय, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि मंगल कमलाकंद ए सुख, अंतिः श्रीमेरुनंदन उवझाय ए. गाथा - ३२. ३६. पे नाम, जिनचैत्यपरिपाटी स्तवन, पृ. १४२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि सिरिपढमजिणं पणमिय सुरिंद; अति (-) (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ९८१३६. (+) गौतमपृच्छा सह टीका, संपूर्ण, वि. १८२५, माघ शुक्ल ५, रविवार, मध्यम, पृ. ४२, ले. स्थल. कर्णपुर, उप. आ. जिनलाभसूरि (बृहत्खरतरगच्छ); राज्यकालरा. सेरसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक अवाच्य है., टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५x९.५, १४-१८X३६-४२). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तित्थनाहं अति: गोवमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न- ४८, गाथा- ६४, गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: वीर जिनं प्रणम्यादौ बाला; अंति: नगर्यां च शुभे दिने, ग्रं. १६८२. ९८१३९. (+) च्यारप्रतेकबुधरी चौपि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४- १ ( १ ) -२३, ले. स्थल, पंचेटीयागाम, प्रले. पं. रिषभसुंदर गणि पठ. ग. खीमासुंदर (गुरु पं. रिषभसुंदर गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशुपार्श्वजिन प्रसादात्., संशोधित. कुल ग्रं. १३००, जैदे., (२४.५X१०, १६x४४-६०). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: (-); अंति: आणंद लील विलास, खंड-४, गाथा-८६२, ग्रं. ११२०, (पू. वि. डाल- २ गाधा-७ अपूर्ण से है.) १८१४२. जन्मपत्री पद्धति, संपूर्ण वि. १८९४ आश्विन अधिकमास कृष्ण, ५ रविवार, मध्यम, पू. ९०, ले. स्थल, पाल्हणपुर, प्रले. पं. खुस्यालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में चंद्रस्पष्टीकरण विधि लिखी गई है., जैदे., ( २३x९.५, १२X३६-४२). जन्मपत्री पद्धति, उपा. महिमोदय, मा.गु.,सं., प+ग, आदि: (१)स्वस्ति श्रीसौख्यधात्री, (२)श्रीआदिनाथ प्रमुखाः जिनेश अंति: (१) महिमो० वर्द्धमानस्य हेतवे (२)रहे तो संकटादिशा जाणवी, अधिकार-२ ९८१४३. (+) जन्मपत्रीपद्धति, पूर्ण, वि. १७९८, फाल्गुन कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७० - १ (१) = ६९, ले. स्थल. देसुरीनगर, प्रले. मु. गंगविजय; गुभा. पं. शांतिविजय (गुरु पं. विनीतविजय); गुपि. पं. विनीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशातिनाथजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२२x९.५, १५X३२-३६). जन्मपत्री पद्धति, उपा. महिमोदय, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: शनि मध्ये शूक्र पाचका, अधिकार- २, (अपूर्ण, पू.वि. श्लोक ८ अपूर्ण से है.) ९८१४५ (+) सोलैसुपनारौ चौढालियो, पद व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६६-२० (१ से २०) = ४६, कुल पे. १०६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. जैदे. (२३४९.५, १३३०-३६). १. पे. नाम. सोलेसुपनारी चौढालीचो, पृ. २१अ-२५अ, संपूर्ण. १६ स्वप्न चौढालियो -चंद्रगुप्त, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: प्रथम जिणेसर पय कमल नमतां; अंति: अमर सिंघने सुजगीसो रे, डाल-५. For Private and Personal Use Only २. पे. नाम. रिषभदेवजीरी लावणी, पू. २५-२७आ, संपूर्ण, आदिजिन लावणी-धूलेवा, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य वि. १८७३, आदि: रिसहेसर जिनराज विराजे गढ़; अंति अमरसिंधुर० शुभ मनमै भाए. गाथा ४९. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरिजीरो छंद, पृ. २७आ-२९आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि छंद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: सरसत उक्त समप्पीय वाणी, अंति: अमरसिंधुर आसा फली, गाथा - ३५. Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. दादैजिनकुलसूरिजीरो छंद, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि छंद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: गहिर गुणे राजै सुगुरु; अंति: अमर सुखसंपद करौ, गाथा-१५. ५. पे. नाम. दादैजीरो छंद, पृ. ३०अ-३१आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि छंद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत विमलवाण मुझ दीजै; अंति: अमरसिंधुर०इह कनै आणंद करौ, गाथा-१५. ६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. ३१आ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु जिनकुशलनौ ध्यान; अंति: अमरसिंधुर० परै कृपा कीजै, गाथा-४. ७. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: कुशल गुरु० जगत सहु को कहौ; अंति: अमर सेवक०मो पर क्रपा कीजौ, गाथा-८. ८. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: जगतनौ नाथ जिनराय जगगुरु; अंति: अमरेस०आपणौ जाण संपत्त आलौ, गाथा-४. ९.पे. नाम, महावीरजिन पद, पृ. ३२आ, संपूर्ण. वा. जयसार, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जगधणी ध्रम पंथ; अंति: जयसार० जय जय श्रीमहावीर, गाथा-३. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३२आ-३३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: गवडी प्रभु जिनवर गुण गावौ; अंति: अमरसिंधुर० संपदा जिम पावौ, गाथा-८. ११. पे. नाम. महावीरजिन देशना पद, पृ. ३३अ, संपूर्ण. म. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: चलौरी सखी वंदन जईयै गिरवी; अंति: अजर अमर पददायरी, गाथा-३. १२. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. ३३अ, संपूर्ण. वा. जैसार, पुहि., पद्य, आदि: साहिबा चरणे चित्त लीनौ; अंति: जैसार० दीजै तो सेवा पायरी, गाथा-३. १३. पे. नाम. दादैजीरी लावणी, पृ. ३३अ-३४अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि लावणी, मु. अमर, पुहिं., पद्य, आदि: अव सदा नमु गुरु कुशलसुरी; अंति: मुनी० आपद उदधथी तारोगे, गाथा-१४. १४. पे. नाम. नवपद पद, पृ. ३४अ, संपूर्ण. मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: ए नवपद नित ध्यावो हो भवि; अंति: अजर अमर पद पावो हो, गाथा-३. १५. पे. नाम. जैनधर्म महिमा पद, पृ. ३४अ, संपूर्ण. मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: धन्य धन्य जिनधर्म जगतमैरि; अंति: तीरावौ अमर लहो सिवसर्म, गाथा-३. १६. पे. नाम. औपदेशिक पद-नरभव, पृ. ३४आ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधर, पुहिं., पद्य, आदि: पुन्यै नरभव पायोरि अब तै; अंति: अमर० कबहुं न धायौरि, गाथा-३. १७. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ३४आ, संपूर्ण. म. अमरसिंधर, पुहिं., पद्य, आदि: जगपत आदजिणंदा हो भविजन; अंति: अमरसिंधुर० सिवसुख कंदा हो, गाथा-४. १८. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण. वा. जैसार, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणंद सुखदाई हो; अंति: जैसार० वाजत रंग बधाई हो, गाथा-३. १९. पे. नाम. कुशल गुरु पद, पृ. ३५अ, संपूर्ण. ___जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, रा., पद्य, आदि: दादाजी दौलत दीजै दुखीया; अंति: अमर० सुख संपत नित दीजै, गाथा-३. २०. पे. नाम. सद्गुरु स्तवन, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: तेवीसमजिन जग तिलय पणमीय; अंति: अमर होज्यो सद सहाय, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३६१ २१. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण. शजयतीर्थ स्तवन, म. श्रीभद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि: श्रीसिद्धाचल गिरवर भेटवा; अंति: श्रीभद्रनी फली आस, गाथा-८. २२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद-भाद्रवमास, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण. म. अमर, पुहि., पद्य, आदि: भाद्रवडौ भल आयो हो भविजन; अंति: अजर अमर ध्रम पायौ री, गाथा-५. २३. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. ३६आ, संपूर्ण. उपा. मेघजी पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: आंणी हरख अपार भला सुंदर; अंति: इम पाठक मेघजी बोलै, गाथा-५. २४. पे. नाम. दादैजिनकुशलसूरिजीरो स्तवन, पृ. ३६-३७आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुशलसुरीसर साहिब; अंति: रूपचंद० आपीजै नवनिद्ध, गाथा-११. २५. पे. नाम. दादाजिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. ३७आ-३८अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: दादा सुख दीयै जाणी; अंति: दादा अमरनै अपणौ जाणीजै, गाथा-११. २६. पे. नाम, मोक्षपद स्तुति, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. अमर, पुहि., पद्य, आदि: ऋषभ जिणेसर है अलवसर सकल; अंति: अमर० सिवपद दायिक सुखदाया, गाथा-५. २७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३८आ-३९अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी धुलेवामंडन, मु. अमर, पुहिं., पद्य, आदि: सुणौ सदा सिव वात हमारी; अंति: अमर सुजस साता पावै, गाथा-१२. २८. पे. नाम. सद्गुरु स्तुति, पृ. ३९अ-३९आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तुति, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुशलसुरिंद जी हो; अंति: अमरसिं० सुख दीजै श्रीकार, गाथा-१३. २९. पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. ३९आ-४०अ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु अरज सुणीजै देखी; अंति: जाणी राखीजै छत्र छांह, गाथा-३. ३०. पे. नाम. कुशलसूरि पद, पृ. ४०अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: कुशलसूरीसर ध्यावो रे; अंति: अमर० दीजै सुख सहि नाणी रे, गाथा-३. ३१. पे. नाम. सद्गुरु स्तति, प. ४०अ-४०आ, संपूर्ण. गुरुगुण स्तुति-खरतरगच्छ, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: दीपै गुरु देवीकोटै मतवंत; अंति: अमरेस द्यौ सुख सवायो हो, गाथा-८. ३२. पे. नाम. सद्गुरु स्तुति, पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तुति, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुशलसूरीसरू राजै; अंति: अमरनै० ततखिण पूरौ आस रे, गाथा-६. ३३. पे. नाम. कुशलगुरु पद, पृ. ४१अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु तै देव साचा है; अंति: अमर० सदा मुझ संपदा दीजै, गाथा-३. ३४. पे. नाम. जिनकशलसूरि पद, पृ. ४१अ-४१आ, संपूर्ण. म. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुशलसुरिंदजी इक; अंति: अमरसिं० अरीयण गंजो रे लो, गाथा-७. ३५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ४१आ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु भेटीजै सदा रे; अंति: सिंध० प्रणम्या सदगुरु पाय, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६. पे. नाम. कुशलसूरि पद, पृ. ४१आ-४२अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. ___ जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, पुहि., पद्य, आदि: पाया० सुगुरु का दरसण पाया; अंति: अमर मुनी गुण गाया वो, गाथा-३. ३७. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ४२अ, संपूर्ण. वा. जयसार, पुहि., पद्य, वि. १८७२, आदि: भविजन भेटौ मन शुध करकै; अंति: जैसार० अढारबहुत्तर वरषै, गाथा-४. ३८. पे. नाम. कुशलगुरु पद, पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण.. जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु कुशलसुरिंद सेवो; अंति: अमर० चवै मुनि इम चंद, गाथा-५. ३९. पे. नाम. चकेश्वरीदेवी स्तवन, पृ. ४२आ, संपूर्ण. चक्रेश्वरीदेवी स्तवन, म. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: देवी चकेसरी संघ सकल आधार; अंति: अमर सुजस जगमै पावौ, गाथा-८. ४०. पे. नाम. अंबिका स्तुति, पृ. ४३अ, संपूर्ण. अंबिकादेवी स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: मा अंबाई तो दरसणथी अडसिध; अंति: जय लच्छी इणविध वरज्यो, गाथा-७. ४१. पे. नाम. जिनकशलसूरि स्तति, पृ. ४३अ-४३आ, संपूर्ण. मु. अमरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: भेट्या अधिकै भाव श्रीजिन; अंति: अमरचंद० दीजै वंछित देवा, गाथा-९. ४२. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४३आ-४४अ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: दिल रंजण प्रभू दरसण दीजीय; अंति: अमराधिप०परेज्यो मन आस रे, गाथा-९. ४३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ४४अ, संपूर्ण. आदिजिन पद-धूलेवामंडन केसरीयाजी, मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारा धूलेवा धणीनी पूजा; अंति: नम्यां अमर सुख पावौ रे, गाथा-३. ४४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४४अ-४४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: गवडी प्रभु जगनायक लायक; अंतिः सुख संपत द्यौ रिद्ध विलास, गाथा-५. ४५. पे. नाम. कुशलसूरि पद, पृ. ४४आ-४५अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरुनी चरण कमल सेवा मन; अंति: अमरेस० सुख हिव बहिलौ दीजै, गाथा-८. ४६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४५अ-४५आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, म. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहेसर जिनराय हो लाला; अंति: अमर० सफल फली म्हारा लाल, गाथा-७.. ४७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४५आ, संपूर्ण. म. अमरसिंधर, मा.गु., पद्य, आदि: जगपति जय जय रिषभजिणंद परम; अंति: सेव अमरसिंधुरनै दीजीयै, गाथा-५. ४८. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: इक अरज सुणौ गवडीस्वामी जग; अंति: रूपचंद०सुख संपद ___ भंडार भरौ, गाथा-७. ४९. पे. नाम. कुशलसूरि पद, पृ. ४६अ-४६आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु श्रीकुशलसूरिंद सदा; अंति: सुख संपद अमर भणी दीजै, गाथा-६. ५०. पे. नाम. शत्रुजय स्तवन, पृ. ४६आ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. अमरसिंधर, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: सिद्धाचल गिरवर भेटीयै जस; अंति: अमर० अढारपिचत्तर चंग रे, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पृ. ४७अ संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनकुशलसूरि सुखकारी अंति: अमर० संपद ततखिण दीजे रे, गाथा-५. ५२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४७अ ४७आ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि धन्य धन्य जिनराज जगतगुरु, अंति: अमर० प्रभू इम लीजीये, गाथा- ३. ५३. पे नाम. आध्यात्मिक पद-सुमतिकुमति, पृ. ४७आ, संपूर्ण पुहिं., पद्य, आदि सुमत सुहागण सुणरी सुगुणां; अंतिः ततखिण सिवरमणीय वरो रे, गाथा-५. ५४. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४७-४८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि आज भलै दिन ऊगो हो भेट्या; अंति: अमर० कांइ जात्र चढी परमाण, गाथा- ७. ५५. पे. नाम पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ४८आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन- नाडोलमंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि पदमप्रभू दरसण दीये महिर अंति नाडोलै० अमर पूराणी आस, गाथा-७. ३६३ ५६. पे. नाम नेमिजिन स्तवन, पृ. ४८-४९अ संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन- नाडोलाईमंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि: नाडोलाई राजे हो जगमंडण, अंति अमर० चित घर अधिक सुचंग, गाथा-५. ५७. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ४९अ, संपूर्ण. शांतिजिन पद-सादडीमंडन, मु. अमरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि: सादडीनयर सुचंग राजै शांती; अंति अमरचंदनी आसा सीधी रे, गाथा-४. ५८. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ४९आ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि वीर प्रभू मै भावे बंदीया, अंति अमर करीये भल प्रत पाय गाथा-५. ५९. पे. नाम. राणपुरा रिषभजिन स्तवन, पृ. ४९-५०अ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन- राणपुरमंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि राणपुरे राजेस राजे रिषभ, अंति अमर० गुण गाया निज जी है, गाथा - ९. ६०. पे नाम. धुलेवारिषभदेवजी स्तवन, पृ. ५०अ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन- धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि जय जगनायक लायक जगपती रे; अंति: अमर० जात्र करी सुप्रमाण, गाथा- ६. ६१. पे नाम धुलेवाकेसरीयानाथ स्तवन, पृ. ५०आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- केसरीयाजी धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि रिषभजिनंद राजे कि गाजी; अंति अमरसिंधुर०वंदै भल भावै कि, गाथा- ७. ६२. पे नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. ५० आ-५१अ. संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- केसरीयाजी, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि रिसहेसर साहिब जिनराया, अंति दान अमर भणी वंचित दीजे, गाथा १०. For Private and Personal Use Only ६३. पे नाम. रिषभजिन स्तवन, पृ. ५१अ ५१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्रीरिसहेसर जगदानंद; अंति: अमरेस वधारौ महिल मान, गाथा ६. ६४. पे नाम. रिषभजिन स्तवन, पू. ५१ आ-५२अ संपूर्ण आदिजिन पद, मु. अमरसिंधूर, पुहिं., पद्य, आदि सांवरी सूरत की बलिहारी अंति अमरसिंघ० सुप्रसन अब भयोरी, गाथा-३. ६५. पे नाम. धूलेवारिषभजिन स्तवन, पृ. ५२अ, संपूर्ण. Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन-धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: राजे रिषभजिणंद धूलेव सुधन; अंति: अमरसिंधुर० दान वंछित दीयै, गाथा-४. ६६. पे. नाम. आदिजिन धूलेवा स्तवन, पृ. ५२अ-५२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभजिणंदसु वीनतवारू कीजै; अंति: अमर० तिम दीज्यौ राज, गाथा-५. ६७. पे. नाम. धूलेवारिषभजिन स्तवन, पृ. ५२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी धूलेवामंडन, म. अमरसिंधर, पुहिं., पद्य, आदि: केसरीयानाथ कैसा है अखं; अंति: छत्रालौ अमरसिर छाजे, गाथा-५. ६८. पे. नाम. धूलेवाआदिजिन स्तवन, पृ. ५२आ-५३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: राजै रिषभजिणंद जग धूलेव; अंति: अमरसिंधुर०भव तुंहि ज देवा, गाथा-१३. ६९. पे. नाम. धूलेवराय रिषभदेवजी स्तवन, पृ. ५३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी धूलेवामंडन, म. अमरसिंधर, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तौ भलै विराजौजी गढ; अंति: पावत अमरसिंधुर गुण गावै, गाथा-७. ७०. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ५३आ-५४अ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: ध्यावौ ध्यावौ ध्यावौ हो; अंति: अमर० लहीयै सुजस सवायो हो, गाथा-७. ७१. पे. नाम. सद्गुरु स्तुति, पृ. ५४अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. __ जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, पुहि., पद्य, आदि: पाया० सुगुरु का दरसण पाया; अंति: अमर मुनी गुण गाया वो, गाथा-३. ७२. पे. नाम. धूलेवारिषभजिन स्तवन, पृ. ५४अ-५५अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-धूलेवामंडन, म. अमरसिंधर, मा.ग., पद्य, आदि: राजै रिषभजिणंद धूलेवधरा; अंति: अमर० सुख दीजै श्रीकार, गाथा-१३. ७३. पे. नाम. प्रभातीदादाजीरो स्तवन, पृ. ५५अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: भगतज मुकी भीर पधारो; अंति: अमर० राज दीयै सुख रासा, गाथा-३. ७४. पे. नाम, धूलेवाऋषभदेव स्तवन, पृ. ५५अ-५५आ, संपूर्ण. आदिजिन पद-धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी प्रभु अलवेसर आदी; अंति: अमर० साहिब तदा निबाजै, गाथा-३. ७५. पे. नाम. प्रभातीधूलेवा ऋषभदेव स्तवन, पृ. ५५आ-५६अ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन-धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु प्रथम जिणंद वंदित; अंति: अमरसिंधुर० संपदा सुख दीये, गाथा-६. ७६. पे. नाम. दादाजीरी लावणी, पृ. ५६अ-५६आ, संपूर्ण.. जिनकुशलसूरि लावणी, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: कुशल कुशल कहीयैक धरतां मन; अंति: अमरसिंधुर० अपणे उर धरीयैक, गाथा-७. ७७. पे. नाम. दादाजीरो स्तवन, पृ. ५६आ-५७अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: तुम्हतो भलै विराजौजी गुण; अंति: अमरसिंधुर०वंछत दे जस लीजै, गाथा-८. ७८. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, प. ५७अ, संपूर्ण. शांतिजिन पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: सांतिजिणेसर सेवीयै सुखदाइ; अंति: अमरसिंधुर० नित चरणनी सेव, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६५ ७९. पे. नाम. अनंतकाय सज्झाय, पृ. ५७अ-५७आ, संपूर्ण. ३२ अनंतकाय सज्झाय, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिणवर इण पर उपदिसै; अंति: परहरै अजरामर लच्छी वरै, गाथा- ८. ८०. पे. नाम. २२ अभक्ष्य सज्झाय, पृ. ५७आ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर केरी वाण सुणि; अंति: अभक्ष्य तजेसी श्रावक जेह, गाथा - ६. ८९. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पृ. ५८अ संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु, पद्म, आदि सुख संपत दायक जग लायक; अति अमर० चौ सुख संपत वृंदा, गाथा ४. ८२. पे. नाम जिनकुशलसूरि स्तुति, पृ. ५८ अ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनकुशलसूरीसर साहिब, अंति अमरसिंधुर० दीये बंछित मुदा, गाथा-४. ८३. पे. नाम आदिजिन स्तवन, पू. ५८आ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि जय जय रिषभजिणंद दिणंद, अंति: अमर० सरण दीजै श्रीकार, गाथा- ६. ८४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ५८-५९अ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: महिमावंत सुगुरु मणधारी से अंतिः अमर० हित सुख द्यो हितकारी, गाधा-३. ८५. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पृ. ५९अ संपूर्ण मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: केसरसुं कुशलेस सुगुरु के अंति: अमर० सेवकनै सुख दईये रे, गाथा-५. ८६. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पृ. ५९अ -६० अ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: अरज सुणौ इक सदगुरु; अंति: अमर० सुख संपत श्रीकार, गाथा-१०. ८७. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पृ. ६० अ- ६०आ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि सुख संपति ऋद्ध समृद्ध सदा अंति अमरसिंधुर गणि एम कहै, गाथा- १५. ८८. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ६०आ-६१अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- केसरीयाजी धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि धन धन धूलेव सुधाम साची; अंति आपणडौ अमर जाणीजै, गाथा-८. ८९. पे नाम कुशलसूरि पद, पृ. ६१अ संपूर्ण. जिनकुशलसूर पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु, पद्य, आदि: कुशलसुरिंदा अधिक आनंदा अति: अमर वंछित सुख दीजे राज, गाथा ७. ९०. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पू. ६९२.६१आ, संपूर्ण, आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: शिवरमणी वर हेत हीयै धर; अंति: अमरसिंधुर०साहिब सुख सवायो, गाथा-६. ९१. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- मघसी, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि प्रणमंता प्रभु पारस मघसी अंति अमरसिंधुर० नित सीस नमावे, गाथा ६. ९२. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६१-६२अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- मघसी, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि मया करौजी प्रभु पारस मघसी अति अमरसिंधुर० इक चित ध्यायो, गाथा- ६. For Private and Personal Use Only ९३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रपुरमंडण, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि लोद्रवपुर मंडण जग लायक; अंति: अमरसिंधुर० माती हेव सवायो, गाथा-६. ९४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६२अ - ६२आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-सुमति, मु. अमरसिंधूर, मा.गु, पद्य, आदि अलवेसर वीनत अवधारौ मनमोहल; अति: अमर दंपत घर भई रे बधाई, गाथा- ३. Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: श्रीअंतरीक विराजै श्रीपुर; अंति: भेट्या श्रीजिनहर्षसूरीस, गाथा-५. ९६. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पू. ६३अ, संपूर्ण. मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय ऋषभजिणंद त्रिजग तार; अंति: अमर० निगोद दुख दूर हरौ, गाथा - ५. ९७. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पृ. ६३-६३आ, संपूर्ण मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: देश कुंकण मझ दीपतो ममुई, अंति: अमर०पुत्र जेम प्रतिपाल रे, गाथा- ७. ९८. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पृ. ६३ आ. संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि राज श्रीजिनकुशलसुरीसरू गछ; अतिः सदा अमर सुजस गुरुदेव हो, गाथा ६. ९९. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ६३-६४आ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनकुशलसुरिद गुरु: अंति अमरसिंधुर० दिन वधय आणंदा, गाथा १६. १००. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ६४आ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि लायक सद्गुरु लाज हमारी हाथ, अंति: अमर० दिन सुगुरु वधारो, गाधा-३. १०१. पे नाम. जिनकुशलसूरि पद, पू. ६४आ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, पुहिं, पद्य, आदि सबल भरोसो सदगुरु तेरो मै अंति लाज अमर० हुय सुजस घणेरो, गाथा ४. १०२. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पू. ६५ ६५आ, संपूर्ण मु. अमरसिंधूर, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीजिनकुशलसूरीसरू रे सेव अंति: अमरसिंधुर० कोड सुधासै काज, गाथा- १०. १०३. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पृ. ६५आ, संपूर्ण मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि हित वंछक गुरुदेव हमारै; अति अमरसिंधुर० कुशल आनंद बधाई, गाथा-४. . १०४. पे. नाम. आत्मनंदा पद, पृ. ६५आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- आत्मनिंदा, मु. अमरसिंधूर, पुहिं., पद्य, आदि औगण अंग अनेक है ताकी पार; अंतिः अमर० बंछित फल पाउं, गाथा-५. १०५. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पू. ६५-६६अ, संपूर्ण. मु. अमरसिंधूर, पुहिं, पद्य, आदि: कुशल गुरु तुम्ह भल नाम अंति: वाचक अमर० सुजस बधावी, गावा- ३. " १०६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. ६६अ-६६आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन- जीवनचरित्र, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., पद्य, आदि: तेवीसमजिण जगतिलय पणमवि; अति अमरसिंधु नमता नवनिध दायिक, गाथा २०. ९८१४७. (+#) शत्रुंजयमाहात्मोपरि शुकराजानृप रास, संपूर्ण, वि. १८२२ भाद्रपद कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पू. ४१, ले. स्थल. मोरवाडा, अन्य. ग. रामविजय (गुरु ग. विवेकविजय); गुपि. ग. विवेकविजय (गुरु ग. हेमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रारंभ के पत्र पर पं. रामविजयग. पंच विवेकस्तकः लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. १५०१, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २३१०.५, १७२५-४५). शुकराज रास, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि श्रीरीसहेसर विनवुं प्रणमु अति रतन० सीझे वंछीत सुखकंदाजी, ढाल ६५. (९८१५० (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १५३-८० (१ से ५९,६१,७५,८४ से ८५.९९ से १०३,११३,११९,१३१ से १३५, १३८ से १३९,१४२, १४४, १४६) = ७३, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी : नाममाला.. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित. दे. (२२x१०, ११४२८-३२). 1 अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १३वी आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड-३ श्लोक-११० से कांड-६ श्लोक ११२ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९८१५५. । (+#) गुणकरंड चोपड़, संपूर्ण, वि. १८६३, कार्तिक शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, ले. स्थल. आहोरनगर, प्रले. मु. शिवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१X१०, १२x१७-२०). For Private and Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि संपत सुखदायक सरस अंति खेमकरण है तसु दरसणजी, ढाल २७, गाथा १६०३. o ९८१५६ (+४) स्तुति, स्तवन व प्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रावण कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ४२, कुल पे. २०, प्रले. ग. हितप्रमोद (गुरु उपा. रत्नविमल, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २१.५x१०, १२x२४-३४). १. पे नाम प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-८अ संपूर्ण ३. पे नाम, सीमंधरजिन स्तुति बीज थुई. पृ. ८आ ९अ. संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि महीमंडणं पुन्नसोवन्न, अंति देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ४. पे. नाम. पंचमी थुई, पृ. ९अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाण; अंति नित्यं भूयान्मे सुखदायिनी. २. पे नाम पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे अति सदा ध्यायामि मानसे, श्लोक-३. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: विहसंति कल्याणदाता, गाथा-४. ६. पे नाम. पंचमीरी थुई. पू. ९आ-१०अ संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषै विहरंता वीस; अंति: तिहुअण जण मनवंछित सारै, गाथा-४. ५. पे नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण. ३६७ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद, अंति: सा सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ७. पे. नाम चतुर्दशी थुई. पू. १०अ १० आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ, जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि हैं ट्रें कि ट्रें: अंतिः दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ८. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १० आ-१९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति - पलांकित, सं., पद्य, आदि श्रीसर्वज्ञ जोतीरूपं अति बुद्धिं बुद्धिं वैदुष्यं श्लोक-४. " ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण, पठ. मु. शिवचंद्र, मु. खूबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तुति - पनांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदिः समदमोत्तम वस्तुः अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, लोक-४. १०. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण, पृ. ११आ-१४अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुन्नं पावा; अति बुद्धचोहिक्कणिक्काय, गाथा ५०. ११. पे. नाम जीवविचार प्रकरण, पृ. १४अ १७अ संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंतिः संतिसूरि० सुयसमुद्दाओ, गाधा ५१. १२. पे नाम. लघुसंघवणी चतुर्विंशतिविचारगर्भित सूत्र. पू. १७अ १९आ, संपूर्ण दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चोवीसजिणे; अंति: एसी वनति अपहिया, गाथा- ४२. १३. पे नाम. पगाम सज्झाय, पृ. १९आ-२३अ संपूर्ण, पगामसज्जावसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि नवकार करेमिभंते ३ कही करी; अंतिः वंदामि जिणे चडवीस, सूत्र- २१. १४. पे. नाम कल्याणमंदिर स्तोत्र, प्र. २३१-२६आ, संपूर्ण आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. १५. पे. नाम. भक्तामराभिध स्तोत्र, पृ. २६आ - ३०आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्म, आदि: भगतामर प्रणति मोलि अति मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. १६. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३० आ-३२अ संपूर्ण लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: जायात् सूरि श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. १७. पे नाम प्रवज्या कुलक, पृ. ३२-३४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रव्रज्या कलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. १८. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३४अ-३५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. १९. पे. नाम. स्थंभनक पार्श्वजिन नमस्कार स्तवन, पृ. ३५आ-३९अ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: सिरिअभयदेव विनवइ आणंदिय, गाथा-३०. २०. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणवंदेत्तू, पृ. ३९अ-४२अ, संपूर्ण, पठ. मु. खूबचंद; मु. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चोबीसं, गाथा-५०. ९८१६१. उपदेशरसालप्राकृतबंध शुक्तमाला, संपूर्ण, वि. १८८८, पौष कृष्ण, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. १३८, ले.स्थल. चवरछा, प्रले. पं. तीर्थराज (गुरु पं. मुक्तिमाणकजी, खरतरगच्छ); गुपि. पं. मुक्तिमाणकजी (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सुक्तावली, सुक्तमाला., प्र.ले.श्लो. (१३६८) पौथी आथिं सारखी, जैदे., (२२४९.५, १४४३२-३५). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लि वृंदजी; अंति: कहतां विचारवं, वर्ग-४, श्लोक-१७६. ९८१६४ (+2) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, ११४२५). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामाइक १ वस्यक २ पौषधानि; अंति: (-), (पू.वि. बारहवाँ अतिथि संविभाग वर्णन अपूर्ण तक हैं.) ९८१६९ (+#) हैमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६८-१९(१ से १९)=४९, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:है नाम०., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, १३४२५-४०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड-३ श्लोक-८५ अपूर्ण से कांड-६ श्लोक-१५० अपूर्ण तक है.) ९८१७१. प्रदेशीनो रास, संपूर्ण, वि. १९७२, आश्विन कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. पडधरी, प्रले. कालीदास परसोत्तम खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रदेशीरास., दे., (२५.५४११, १६४३३). प्रदेशीराजा चौपाई, म. गिरधर ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९५८, आदि: सतगुरु चरणकमल नमी; अंति: रंगे मुंबईमां उमंगथी, ढाल-७. ९८१७४. जीवविचार प्रकरण व नवतत्वसूत्र, संपूर्ण, वि. १७४६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, पठ. मु. टेकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०, ११४३२). १. पे. नाम, जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २.पे. नाम. नवतत्वसूत्र, पृ. ३आ-६अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४६. ९८१७८. (+#) लघुसंग्रहणी का खंडाजोयण बोल, अपूर्ण, वि. १८७८, चैत्र कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ८-१(१)=७, ले.स्थल. कुंचामण, प्रले. मु. गोमा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:खंडाजोय०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १६४३२-३५). लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: रोहीयानी परइ जाणिवी, (पू.वि. "प्रव वत सासता छै" पाठ से है.) ९८१७९ (+#) कल्पसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. १६९-१६५(१ से १२७,१२९ से १३२,१३५ से १६८)=४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, ७४२८). For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., बीच-बीच के पाठ हैं.) कल्पसूत्र-टिप्पण *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. बीच के पत्र हैं. ९८१८२ (+#) आषाढमुनिवर रास, संपूर्ण, वि. १८४४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. रुपनगर, प्र.वि. हुंडी:आषाढ०, आषा०., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०, १२-१७४३७-५०). आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: न्यांनसागर०परम कल्याणो रे, ढाल-१६, गाथा-२१८, ग्रं. ३५१. ९८१८३. (+#) सारस्वत व्याकरण की चंद्रकीर्ति टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२४-११८(१ से ११८)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:चंद्रकीर्ति., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, १२४४३). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: (-). ९८१८४. (+#) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-९(१ से ४,८,११,१३,२० से २१)=१७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, ७४३७). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ "वाहणविहिं पच्चक्खाइ" पाठ से अध्ययन-४ "समणस्स० धम्मपण्णत्ती" पाठ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९८१८५ (+) दशवकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १०x२३-२६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ उद्देश-१ गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) ९८१८६. अर्हत् सहस्रनाम, चिंतामणि कल्प व चिंतामणि मंत्रसाधन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ८, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०,१०४३७-४०). १.पे. नाम. शक्रस्तव सहस्रनामा परपर्याय, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. शक्रस्तव-अर्हन्सहस्रनाम, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमो अर्हते परमा; अंति: लिलेखे संपदा पदम्. २. पे. नाम. चिंतामणि कल्प, पृ. ४आ-७अ, संपूर्ण. __पार्श्वजिन मंत्रराज कल्प-चिंतामणि, आ. धर्मघोषसूरि, सं., पद्य, आदि: किंचिद् गुरूणां वदन; अंति: ___ चिंतामणिजगत्प्रभोः, श्लोक-४५. ३.पे. नाम. चिंतामणि मंत्र साधनाविधि, प. ७अ-८आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन-चिंतामणि मंत्र साधनाविधि, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: ॐहीं इत्यादि मूलमंत्र; अंति: (-), (पू.वि. "पल्लव विभाग"-तजन्या धनकामः पौष्टिका" पाठ तक है.) ९८१८७. (+) दीपावलीपर्व कल्प का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०, १२४३८-४२). दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१३ के बालावबोध से १६३ के बालावबोध अपूर्ण तक है., वि. मूल का मात्र प्रतिक पाठ दिया है.) ९८१८८. (+) चंपकमाला रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४९.५, ११४३५). चंपकमाला रास, मा.गु., पद्य, आदि: नमिय निरंजन जिनवरू; अंति: संचइ ए निरमल पुण्य, गाथा-९१. ९८१८९ (+) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १६४५१-५५). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: संघः प्रवर्त्तताम्. ९८१९०. (+) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १२४३३-४०). For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: महादेवं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. संख्या-३१२ श्लोक-२ तक है.) ९८१९२. (+) जंबूद्दीवपण्णत्ति सह टबार्थ व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०,७४४७-५०). १. पे. नाम, ४७ बोल संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. जीव ४७ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सुए विहाणं भंति समोसरणा; अंति: अणगार नउता होइ होइ होइ. २. पे. नाम. नारकीनो बोल, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह कृति १असे २अ तक है. नारकी बोल, मा.ग., गद्य, आदि: १ समचइ नारगी; अंति: ८ अनाणी नारकी. ३. पे. नाम. २७ बोल संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह कृति २अ पर है. मा.गु., गद्य, आदि: समचइ पुढवी मांही; अंति: पुढवी बोल २७मुं लीखो. ४. पे. नाम. समोसरण के १४४ बोल, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह कृति ३अ पर है. समवसरण बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एवं अणगार वोता सागारनी पर, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-६५ से लिखा है.) ५.पे. नाम. क्रियावादी अक्रियावादी के बोल, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह कृति ३असे ४अ तक है. बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कीरीयावादीणं भंते नेरीइया; अंति: सेवं भंते सेवं भंतेती. ६.पे. नाम, जंबूद्दीवपण्णत्ति सह टबार्थ, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह कृति प्रत्येक पत्र की दूसरी तरफ लिखी गई जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र, प्रा., गद्य, आदि: तयणं सि भरहे राया; अंति: सव्व दुखप्पहीणं, संपूर्ण. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिवार पछी ते भरथ राजा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम पाठांश का टबार्थ नहीं लिखा है.) ९८१९३. (+) आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४९.५, १४४४२-४७). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: (१)अनादि मिथ्यात्वी अकांम, (२)हिवै भव्यजीवने; अंति: तिथि सफल फली मन आस. ९८१९४. (+#) नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १८४६०-६३). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतं जिनं; अंति: फूडं नत्थि संदेहो, श्लोक-३१०. ९८१९५ (+#) दानविषये रूपसेनराजा चउपई, अपूर्ण, वि. १७३९, कार्तिक शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. १३-४(१,१० से १२)=९, ले.स्थल. साहपुरा, प्रले. ग. दीपसौभाग्य; पठ. ग. जससौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४३९). रूपसेनराजा रास-दानविषये, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदिः (-); अंति: पुण्यकीरति० फलइ मनोरथ माल, ढाल-१९, गाथा-२९७, (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण से २१६ अपूर्ण तक व गाथा-२७९ अपूर्ण से है.) ९८१९७. (+) संघयणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-२(६ से ७) ६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:संघयणीसु०., संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४३६-४५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. द्वार-३ गाथा-६१ अपूर्ण तक व द्वार-४ गाथा-२९ अपूर्ण से ६४ अपूर्ण तक है.) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३-७(१,४ से ९)-६, कुल पे. १२, दे., (२४४१०.५, ११४२८-३२). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: मोह पार करना, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. जिनदास, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सजन विना गुना तजी हम; अंति: जीनदास प्रभु हमकुं, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org ३. पे. नाम औपदेशिक लावणी, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पु,ि पद्य, आदि गइ सब तेरी शील समता; अंतिः जीव जिनराज विना भमता, गाथा-४. ४. पे नाम नेमराजिमती पद, पृ. ३अ संपूर्ण ले. स्थल, उदयपुर. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: कब मीलसी म्हारो अंतिः जिनवास० अब जूनो, गाथा ४. गाथा-४. ८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १०१.१०आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरजी सुणजो; अंति: लालचंद० अरदास जी, गाथा-७. ९. पे नाम. विमलगिरी स्तवन. पू. १० आ. संपूर्ण. मु. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. साधारण जिन स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, पुहिं., पद्य, आदि खतरा करणा दूर एक अंति म्यानउद्योत० वर वरना, गाथा-६. .पे. नाम औषध संग्रह, पू. ३आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: सालम मिश्री ताल मखाण; अंति: सात ऊपर राखणा. ७. पे नाम वीरप्रभुजिन स्तवन, पू. १०अ, संपूर्ण, महावीरजिन पद, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जयजयकार भयो जिनशासन वीर; अंति: नगर में वाजत रंग बधाई, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्थ पद, मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: विमलगिर क्युं न भए; अंति: धर्मसी करत अरज करजोड, गाथा-५. १०. पे नाम, पारसनाथजी स्तवन, पू. ११अ संपूर्ण, ३७१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तुम्ह चालोने तुम्ह; अंति: मतिसागर० भरपूरौ, गाथा-५. ११. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ११अ ११ आ. संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि ते दिननो विसवास छे म अति रूपचंद रस माण्या, गाथा ८. १२. पे. नाम. विमलगिरी स्तवन, पृ. १२अ १३अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि करजोडि कहे कामनी अति: खिमाविजय० घरे ध्यान, गाथा - १६. ९८२०४ (M) आषाडभूत चौढालियो व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८६९ वैशाख अधिकमास कृष्ण, १ शनिवार, मध्यम, पृ. १०-३(१ से ३) ७, कुल पे. ५. ले. स्थल. विक्रमपुरनगर, प्रले. पं. अमृतसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x१०.५, १०X३७-४०). १. पे. नाम. आषाढभूति चउपई, पृ. ४अ-८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि (-) अति मानसागर शुभ वाण रे, डाल-७, (पू.वि. ढाल-४ गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन- मातापिता लंछन नाम गामादिगर्भित, पृ. ८अ ९आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगभिंत, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सवल जिणेसर प्रणम् अतिः बोधवीज साची जिन सेव, गाथा - २८. ३. पे. नाम. संखेसरपारसनाथजीरो कवित्त, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मु. उत्तमविजय, पुहि., पद्य, आदि मेरो दिल बस कीयो जिन, अंति उत्तमवि० चित हर जाय, गाथा-३. ५. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. ४. पे नाम. साधारणजिन पद, पू. १०अ १०आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं, पद्य, आदि अंखीयां हरखण लागी अंति: भव भव भावठ भांगी गाथा ४. ९८२०६. (+) भक्तामर स्तोत्र की अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी " है, दे., (२३.५x९.५, १२-१६X३६-४२). Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: युगादौ युगस्यादि युगादि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२१ तक अवचूरि लिखी है.) ९८२१० (+#) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९-३९(१ से ३९)=१०, प्र.वि. अंत में "मु.हंसवीजेजीनी लाबरेरी बीलाडे खाते भेट" ऐसा उल्लिखित है., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, ७२३२-४०). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., सूत्र-२९ अपूर्ण से ३६ अपूर्ण तक है.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९८२११ (+#) गुणकरंडगुणावली चोपई, अपूर्ण, वि. १७५७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, गुरुवार, मध्यम, पृ. १७-१(१०)=१६, प्रले. मु. कान्हा (गुरु मु. दीपाजी ऋषि); गुपि. मु. दीपाजी ऋषि; पठ. मु. ठाकुरजी ऋषि (गुरु मु. रामाजी ऋषि); गुपि. मु. रामाजी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अन्त में "पं. नीत्यवीजेजीनी परत छे." लिखा है., संशोधित. कुल ग्रं.६०३, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४४६-५१). गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: संपति सुखदायक सरस; अंति: थिर संपति जस थावै जी, ढाल-२८, गाथा-१६०३, (पू.वि. ढाल-१५ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-१७ गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं ९८२१२. प्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३७-४०). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, वि. १७९३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं० जयउ; अंति: अंबिकादत्त गाथाः. २.पे. नाम, आदिजिन स्तुति-शत्रुजयमंडन, पृ. ५आ, संपूर्ण. ____ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशजयमंडण; अंति: निह्न० पाय सेवता, गाथा-४. ३. पे. नाम, आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरि मंडण, पृ. ५आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगुणं; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. ९८२१३. चउबोलीचोपई लीलावती, संपूर्ण, वि. १७८३, कार्तिक शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. कालावड, प्रले. पं. चतुरकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:लीलावतीचोपई, जैदे., (२५.५४११, १७X४४). विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंति: मतिसुंदर काजे कही, ढाल-१७, ग्रं. ३२५. ९८२१४. (+) सम्यक्ताद्यारोपणनंदीविधि व उपधानतप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, १३४३६-४१). १.पे. नाम, सम्यत्त्काधारोपण नंदीविधि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. नंदी विधि, सं., पद्य, आदि: प्रथमं पवित्र नेपथ्य; अंति: क्रियते नंदि प्रवेशकैः. २. पे. नाम. उपधानतप विधि, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण... उपधानादि विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथमं पाश्चात्यदिने; अंति: हियएगेणय आयरणाहोइ उववासो. ९८२१५ (+) पार्श्वनाथ पत्नी प्रभावती हरण, संपूर्ण, वि. १६७९, आश्विन कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११, १३४४०-४८). प्रभावती हरण, मु. नयशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसवयण रस सरसती मति आपु; अंति: शांतिसूरि नयशेखर इम बोलइ. ९८२१६. (+#) प्रियमेलक चउपई-साधुदानाधिकारे, अपूर्ण, वि. १६९७, फाल्गुन कृष्ण, १२, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८-१(१)=७, प्रले. मु. सौभाग्यविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १४४३४-४२). For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ : पुण्य अधिक प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि (-); अति परमोद, ढाल-११, गाथा-२२०, ( पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल ३ गाथा-३१ अपूर्ण से है.) ९८२१७. (*) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५X१०.५, १३X३०-३६). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम् अति: (-), (पू.वि. बृहच्छांति श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) ९८२१८. । (+) ) नमस्कारफल दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १७७९ आश्विन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (२५.५x१०.५, १२-१५X४०-४३). नमस्कार महामंत्र- कथा संग्रह, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: इहलोगंमि तिदंडी; अंति: मंत्रं सदा सौख्यदं. ९८२१९. (+) चउसरणपयन्ना सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१ (१) = ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२४.५x१०.५, १३४४६०५०). , " चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि (-); अंति कारणं निव्वुइ सुहाणं, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-९ से है.) १२-१५X३२-३५). १. पे नाम श्रावक अतिचार, पृ. १अ ५आ, संपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भणी नित्य ए चउसरण गुणिवउं, ग्रं. ३४७, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ९८२२०. श्रावक अतिचार व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, जैवे. (२४.५४१०.५, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रावकसंक्षिप्त अतिचार, संबद्ध, मा.गु., प+ग, आदि श्रावक तणइ धर्मई अति करी मिच्छामि दुक्कडं. २. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति -शत्रुंजयतीर्थ, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., पद्य, आदि पहिला जिन पुजो; अंति ले दिन दिन बोलत धाय, , गाथा-४. ९८२२१. (+) पुण्यसार चौपई, संपूर्ण, वि. १७५४, आश्विन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. वाघावास, प्रले. मु. पूर्णचंद्र पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५X१०, १५X४५-५०). पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य वि. १६६६, आदि नाभिरायनंदन नमुं शांति: अंति नवनिधि होय तस गेह, ढाल - ९, गाथा - २०१. ९८२२२. (*) रूपसेनसुजाणदे चुपई, गुरुगुण स्तुति व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र. मु. विनयसुंदर (गुरु आ देवसुंदरसूरि) गुपि आ. देवसुंदरसूरि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५x९.५, १४-१७X४३-४८). १. पे नाम. रुपसेनसुजाणदे चुपई, पृ. १अ ७आ, संपूर्ण. रुपसेनसुजाणदेवी रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनवुं गणपति; अंति: जे कोई ते सुख लहइ संसारि, गाथा - २२०. २. पे. नाम. गुरुगुण स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वन मद सुर सुर निकर मुगट; अंति: मतिमभीनत सुरनर कवी तनया, ३. पे नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण. सुभाषित लोक संग्रह, मा.गु., सं., पद्म, आदि म कर खंडि खंडि सरि खंडह; अति वृद्धि वाक्ये नमो वितान् श्लोक-४. ९८२२३. (*) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७३७, मध्यम, पू. ११ ले स्थल, जोधपुर, प्रो. ग. आमोदसागर (गुरु कवी तनया, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only पं. उत्तमसागर गणि); गुपि. पं. उत्तमसागर गणि; पठ. पं. मानविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५X१०.५, ४X३०-३३). ३७३ Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण केता मंगलिक; अंति: मोक्षप्रतिइ पामइ. ९८२२४. (+) एकाभावना बत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. गुढानगर, प्रले. मु. रत्नचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४९.५, १५४२६-४४). तत्त्वभावना, आ. अमितगति दिगंबर, सं., पद्य, आदि: एकद्वित्रिहृषी; अंतिः क्रियते करे, श्लोक-१२२. ९८२२५ (+) शुक्तमुक्तावली, संपूर्ण, वि. १८०७, फाल्गुन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. कोटडा, प्रले. मु. गुप्तिधर्म, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४९). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. ९८२२६. (+) आहार के ४२ दोष व जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ३४२५). १.पे. नाम, आहार के ४२ दोष, पृ. १अ, संपूर्ण. ___गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: आधाकर्म दोष धनभेद इम आहार; अंति: (अपठनीय). २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. २अ-१३आ, संपूर्ण... जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन जे त्रिभुवन; अंति: समुद्र तेहथी उद्धर्यं. ९८२२९ चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, मुखपोतिकापडिलेहण स्वाध्याय व औपदेशिक दहा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, ६४४८-५२). १.पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, वि. १७२८, वैशाख कृष्ण, १३, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. सुंदरसागर (गुरु ग. कल्याणसागर, तपागच्छ); गुपि. ग. कल्याणसागर (गुरु ग. चारित्रसागर, तपागच्छ); ग. चारित्रसागर (तपागच्छ); अन्य. ग. रूपसागर, प्र.ले.प. मध्यम. चतःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावध व्यापार त्यागरुप; अंति: छै नि० मोक्षसुखनं. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. २. पे. नाम. मुखपोतिका पडिलेहण स्वाध्याय सह टबार्थ, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५. प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्रार्थ तत्थपुष्टि; अंति: अर्थई मुनिश्वर कहइ. ३. पे. नाम. औपदेशिक दुहा, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक दहा *, पुहि., पद्य, आदि: आंबर रहन घस्वूह चाहै; अंति: मत मंजारजो करैत आवो आव, दोहा-६. ९८२३०. (+) स्वरोदयशास्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८३२, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. बेनातट, प्रले. उपा. रत्नविमल गणि; पठ.पं. क्षमाधर्म; पं. क्षमाधीर; पं. अनोपचंद्र; श्राव. मयाचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हंडी:स्वरोदयपत्र., संशोधित., जैदे., (२४४१०, १७४३८-४४). स्वरोदयज्ञान, सं., पद्य, आदि: अथान्यतः प्रवक्ष्याम; अंति: द्या अरुणेन हुतासना, श्लोक-६३. स्वरोदयज्ञान-भाषाटीका, म. लालचंद, हिं., गद्य, वि. १५५३, आदि: अब मैं स्वरोदय का; अंति: षा करी अखेराज के हेत. ९८२३२. (+) सुभाषितानि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हंडी:सुभाषितानि., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे.. (२५.५४१०.५, १३४४१-४५). For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३७५ सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दानं सुपात्रे विशुद्धं च; अंति: गोप्य गृहणी कथमद्य तक्रं, गाथा-१११. ९८२३४. (+) ज्योतिषसार-प्रकीर्णक १, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ११-४(१,३ से ५)=७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १२-१५४४२-५२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठ हैं.) ९८२४० (+) हंसवछ चोपई, अपूर्ण, वि. १८३८, भाद्रपद कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३३-८(२ से ९)=२५, ले.स्थल. तिवडी, प्रले. पा. रत्नविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित., जैदे., (२४४९.५, १६४३५-४०). हंसराजवच्छराज चौपाई, उपा. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: रिषभादिक चोवीसजिन प्रणमी; अंति: रतनविमल सिद्धि घर आवैजी, ढाल-५१, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-९ अपूर्ण से ढाल-५ गाथा-२ अपूर्ण तक नहीं है.) ९८२४१. (+) श्रमणसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४९.५, १५४३५). पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पंचपरमेष्टि० कहिउ ते तिम; अंति: जिनतीर्थंकरनइ वांदं, (वि. मूल का प्रतीक पाठ लिखा है.) ९८२४२. (+#) मछोदर चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४९.५, १०४५३). मछोदर चौपाई, म. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, वि. १७१८, आदि: प्रह ऊठी प्रणमं सदा; अंति: ए० तेतीसमी ढाल वखाण, __ढाल-३३, गाथा-९४८. ९८२४३. चतुर्विंशतिजिन स्तवन व थूलभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)-५, कुल पे. २, जैदे., (२५४९.५, १२४३२-३५). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ३अ-७अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १८६४, कार्तिक कृष्ण, ४, ले.स्थल. रीणी, प्रले. पं. नेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. २४ जिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनराजदोलति पावो जी, स्तवन-२४, (पू.वि. सुविधिजिन स्तवन गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. थूलभद्ररिष सिज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पा. रुघपत, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुरनगर प्रमाणै; अंति: श्रीमुनि पाया हो लाल, गाथा-१७. ९८२४६. (+) कुसलबंध अज्झयण, संपूर्ण, वि. १६२४, चैत्र कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. फीरोजाबाद, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद्र ऋषि (गुरु मु. मेघराज, अंचलगछ); गुपि. मु. मेघराज (गुरु उपा. भानुलब्धि, अंचलगछ); उपा. भानुलब्धि (गुरु उपा. पुन्यलब्धि, अंचलगछ); उपा. पुन्यलब्धि (गुरु ग. वेलराज, अंचलगछ); पठ. श्रावि. बीबी; राज्ये आ. धर्ममूर्तिसूरि (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ११४२४-३६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ९८२४९. भगवतीसूत्र-शतक ५ उद्देश ६ सूत्र २४४ से शतक ७ उद्देश ६ सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-२(४,८)=७, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५४१०.५, ४-११४४२). भगवतीसूत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., शतक-७ उद्देश-६ सूत्र-३५९ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) भगवतीसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ९८२५० (+) अमरमित्रानंद चउपई, संपूर्ण, वि. १७२७, वैशाख शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १६, प्रले. पं. विनीतविजय (गुरु पं. पुण्यविजय गणि); गुपि.पं. पुण्यविजय गणि (गुरु पं. नेमिविजय गणि); पं. नेमिविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०,१५४४३-४८). For Private and Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अमरदत्तमित्रानंद चौपाई, म. नेमिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासन नायक वीरजिन प्रणमी; अंति: नेमिविजय० फली __मन तणी आस, ढाल-२४, गाथा-५०५. ९८२५२. (4) इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४४१-४५). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धदायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ९८२५४. (+#) नारचंद्रसूत्र सह यंत्रकोद्धारक टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८०९, वैशाख कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ११-२(१ से २)=९, ले.स्थल. देवीकोट, प्रले. मु. गुप्तिधर्म (गुरु उपा. रत्नविमल, खरतरगच्छ); गुपि. उपा. रत्नविमल (गुरु मु. कनकसागर, खरतरगच्छ); मु. कनकसागर (गुरु उपा. धर्मकल्याण, खरतरगच्छ); उपा. धर्मकल्याण (गुरु मु. कमलसौभाग्य, खरतरगच्छ); अन्य. मु. क्षमाधर्म (गुरु मु. रत्नविमल, खरतरगच्छ); पं. महिमाशील; सा. चतुरा; सा. रूपा, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हंडी:नारचंद्रसूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४९.५, १३४३६-४२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: दशायाः क्रमात्, श्लोक-२७५, (पू.वि. श्लोक-४६ अपूर्ण से है.) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. अंत में वृष्टिविचार श्लोक दिया गया है.) ९८२५६. कातंत्रव्याकरण सह बालावबोधटीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ.७-२(३,५)=५, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४१०.५, १७४५५-५८). कातंत्रव्याकरण, आ. शर्ववर्माचार्य, सं., प+ग., आदि: सिद्धो वर्णसमाम्नायः; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-१ पाद-५ सूत्र-१६ अपूर्ण से अध्याय-२ पाद-१ सूत्र-५४ अपूर्ण तक, अध्याय-२ पाद-२ सूत्र-३३ से पाद-३ सूत्र-१७ अपूर्ण तक व अध्याय-२ पाद-४ सूत्र-४८ अपूर्ण से नहीं है.) । कातंत्रव्याकरण-बालावबोधटीका, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., गद्य, वि. १४४४, आदि: ॐकार बिंदु संयुक्तं; अंति: (-). ९८२६७. (+#) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१०, १३४३६-४४). मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ की गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-७ की गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ९८२६८. (+) २३ पदवी, नक्षत्र नाम व २४ जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, कुल पे. ३, प्रले. सा. रायकुंवरजी (गुरु सा. पाराजी); गुपि. सा. पाराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पदवी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२२४१०, १३४२०-३५). १.पे. नाम. तेवीस पदवी, पृ. २अ-६अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १९१५, कार्तिक शुक्ल, ४, मंगलवार, ले.स्थल. किसनगढ. प्रज्ञापनासूत्र-२३ पदवी विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: केवली४ ए च्यार पावे, (पू.वि. "१६ आंगुलनी पीडी ४ आंगुलना गिरीयां" पाठ से है.) २. पे. नाम. नखत्रनाम, पृ. ६अ, संपूर्ण. ज्योतिष, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अश्विनी भरणी कृतिका; अंति: उत्राभाद्रपद२७ रेवंती२८. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, वि. १९१६, माघ कृष्ण, ८, सोमवार, ले.स्थल. जावला. मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: धुर प्रणमु ऋषभजिणंद; अंति: ईण धरमसु राखजो पेम ए, गाथा-१०. ९८२६९ (-) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३५, २६ व २०, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्राद्धीनजी., अशुद्ध पाठ., दे., (२२.५४१०.५, ११४२६-३२). For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३७७ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-३५ गाथा-१ से १७ अपूर्ण तक व अध्ययन-२० गाथा-५६ अपूर्ण से नहीं है., वि. प्रतिलेखक ने अध्ययन क्रम-३५, २६ व २० इस प्रकार दिया है.) ९८२७० (+2) ढोलामारु चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-१(२५)=२५, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४९.५, १५४३६-४०). ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सकल सुरासुर सामिनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६३९ अपूर्ण से ६६५ तक व गाथा-६९६ अपूर्ण से नहीं है., वि. कृति के अंतर्गत पाठांतर भी मिलता ९८२७५ () हीरविजयसुरि सलोको, संपूर्ण, वि. १८०२, आश्विन शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ७, प्रले. पं. माणक्यविजय (गुरु पं. वृद्धिविजय गणि); गुपि.पं. वृद्धिविजय गणि; पठ. श्रावि. रत्नबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०.५, १२४२५). हीरविजयसूरि सलोको, ग. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती वरसती वाणी; अंति: म जपंतां कुशलकल्याण, गाथा-८२. ९८२७६. (+) साधारणजिन स्तुति व गोडीपार्श्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२३, भाद्रपद शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. पं.शुभविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य,प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२३.५४१०.५, १५-१८x२८-४०). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडलि जाई; अंति: आपणि माइ जुउ तुसे अंबाइ, गाथा-४. २. पे. नाम. गोडीपार्श्व स्तवन, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. नेमविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८१७, आदि: भाव धरि भजना करु आपो; अंति: ईम नेमविजे जेकार, ढाल-१५, गाथा-१३७. ९८२७८. (+) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०.५, १३४३६). स्तवनचौवीसी, ग. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणेसर साहब माहरो अरज; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम ___कलश गाथा-३ तक है.) ९८२७९ (+) जंबूस्वामिपंचमभवसूत्र चोपड़, संपूर्ण, वि. १६४६, भाद्रपद शुक्ल, १४ अधिकतिथि, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. मुलताण, पठ. श्राव. गुजरमाल पारख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जंबूसाम चोपइ., संशोधित., जैदे., (२३४१०.५, १२४३४). जंबूस्वामी रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १५२२, आदि: गोयम गणहर पय नमी; अंति: काज सरिस्यइ तेहना, गाथा-१७७. ९८२८० (+#) जसविजयजी री चौवीसी, संपूर्ण, वि. १८६२, भाद्रपद कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. पंचपद्रा, प्रले. सेलसदा, प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. हुंडी:स्तवन., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०,१०४२५-२८). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो माता; अंति: तुं ___ जीवजीवन आधारो रे, स्तवन-२४, गाथा-१२१. ९८२८१. केलिसीयलवेलि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२२.५४१०.५, ९४३८-४२). स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजी; अंति: विमला कलसा वरस्ये रे, ढाल-१८. ९८२८२. (+) पाशाकेवली सह पाशाढालन विधि, अपर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०, १३४३५-३८). पाशाकेवली, म. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: महादेवं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पाशाकेवली - पाशा ढालन विधि, संबद्ध, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती कुष्मांड अंति: (-). ९८२८३. (४) जिनप्रासाद निर्माणोपदेश श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. १७, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२१.५४९.५, १६४४८-५४). १. पे. नाम जिनप्रासाद निर्माणोपदेश श्लोक सह अर्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनप्रासाद निर्माणोपदेश श्लोक, सं., पद्य, आदि: जिनभवनं १ जिनबिंब २ जिण; अंतिः फलानि करपल्लवस्थानि, लोक-१. जिनप्रासाद निर्माणोपदेश श्लोक- अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत० जे भव्य जीव ए अति करता मंगलीकमाला संपजै. २. पे नाम प्रायश्चित विचार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आगमिकबोलविचार संग्रह - धार्मिक, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नेहं अंग न्हाणं इत्थि भोग; अंति: सेवादि निषेधाक्षराणि. ३. पे. नाम. १६ संज्ञा कुलक, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: एगिंदी पंचिंदी अंतरं; अंति: वितिच्छिा सोग धम्माई, गाथा- ६. ४. पे. नाम. २८ लब्धि नाम, पू. १आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि आमोसहीलद्वीणं १ विप, अंति: अक्खाणमहाणसी २७ पुलाक २८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पे. नाम. २८ लब्धि विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. २८ लब्धिविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: भव सिद्धिय जीवाणं एयाओ; अंति: निवसेसाउ अविरुद्धा, गाथा-४. ६. पे. नाम. १४ गुणस्थानक विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा. सं., गद्य, आदि: छावलिया सासाणे समहियतित्तः अतिः सयोगगुण १३ अयोगगुण १४. " ७. पे. नाम. ६ अंतरंगशत्रु नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. सं. गद्य, आदि काम १ क्रोध २: अंति मद ५ हर्ष ६. ८. पे. नाम. २४ जिन छद्मस्थकाल गाथा सह व्याख्या, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन छद्मस्थकाल गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वाससहस्स १ बारस २ चउदस ३; अंति: कम्मं विसेसओ वद्धमाणस्स, गाथा - ३. २४ जिन छद्मस्थकाल गाथा व्याख्या, मा.गु., गद्य, आदि आदिनाथवर्ष सहस्र अजितवर्ष; अंतिः ए २४ तीर्थकरना छद्मस्थकाल. ९. पे. नाम. आत्मानुशासन, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. ग. पार्श्वनाग, सं., पद्य, वि. १०४२, आदि: सकलत्रिभुवनतिलकं; अंतिः भाद्रपदिकायाम्, श्लोक-७७. १०. पे नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. ३-४अ संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह, पुहिं. प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: वयस्थितं च वित्तं च अंति: माणुसुत्तर नियडमणुआणं, लोक-२०. " ११. पे नाम. धर्मोपदेश काव्य सह अवचूरि, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत श्लोक सं., पद्य, आदि: लज्जातो भयतो २ वितर्कः अति धर्म्ममसमं तेषाममेयं फलं श्लोक-१. 7 धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत श्लोक - अवचूरि, सं., गद्य, आदि लज्जातो अर्द्धमंडित अंतिः कृतो धर्म्म महालाभाय भवति. १२. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुगुणा एह सुभावो अवगुण; अंति: भागो स परमाणु उच्यते, गाथा-२७. १३. पे नाम. गच्छोत्पत्ति कालनिर्णय गाथा सह अर्थ, पृ. ६अ, संपूर्ण. गच्छोत्पत्ति कालनिर्णय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खमण १ पुष्णिम २ खरहर ३: अंति: पासोपुण संपइ दशमो, गाथा-१. गच्छोत्पत्ति कालनिर्णय गाथा- अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वीर पछे उसे बरसे दिगंबर अंतिः इत्येवं दशमत कल्पना है. १४. पे नाम प्रहेलिका श्लोक, पृ. ६अ, संपूर्ण सं., पद्य, आदि लोले ब्रूहि कपालि कामिनि, अति दृशो निघ्नतु विघ्न मम, श्लोक १. १५. पे नाम. रुद्राक्षमाला श्लोक, पू. ६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३७९ सं.. पद्य, आदि: रुद्राक्षान्कंठदेशे दशन; अंति: कलयति सततं सस्तुवं नीलकंठ, श्लोक-१. १६. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. ६अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कर्णास्येक्षण लोचनो विसगत; अंति: नियते पैशाचकी भक्तितः, श्लोक-१. १७. पे. नाम. पंचाक्षरमंत्र महादेव स्तोत्र, प.६अ-६आ, संपूर्ण. शिवपंचाक्षर स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: नागेंद्रहाराय; अंति: नोति शिवेन सह मोदते, श्लोक-६. ९८२८५ (+#) सारस्वत व्याकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, ११४२९). सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: अइउकल समानाः; अंति: (-), (पू.वि. कारक प्रक्रिया सूत्र 'अन्योक्ते प्रथमा' तक है.) सारस्वत व्याकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: सकलार्थ स्वार्थ निष्पाद; अंति: (-). ९८२८६. शतपदीसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २८, जैदे., (२८.५४१०, १६x६९). शतपदी-शतपदीसारोद्धार, संबद्ध, आ. मेरुतंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (१)अहँतं जिनं नत्वा भव्या, (२)इह यद्यपि कुमारपालभूपाभूप; अंति: स्विपंचाशतिवत्सरे, श्लोक-१५७०, ग्रं. १५७०. ९८२९१ (+#) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह बालावबोध-अध्याय २ से ६, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६८-६(३९,४४ से ४५,५५,५८,६०)=६२, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x११, ९x४२). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्याय-४ सूत्र-२२ से २३ तक व बीच के कुछेक पाठांश नहीं है.) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ९८२९६ (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. हुंडी:दसवैका०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १४४४३-६३). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मोमंगलमुक8; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-१० ,चूलिका २. ९८३०० (+) लघजातक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:लघुजातक टीका., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४९.५, ११४३६). लघजातक, वराहमिहिर, सं., पद्य, आदि: यस्योदयास्तसमये; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-६ श्लोक-१८ तक है.) लघजातक-बालावबोध, उपा. मतिसागर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परमानंदः संपदः; अंति: (-). ९८३०१. शास्वतजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२६.५४१०.५, ११४४०). शाश्वतजिन चैत्यवंदन, मु. भावसागरसूरि-प्रशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर पणमीअ; अंति: यानिइ हुइ सकल विहाण, गाथा-१२१. ९८३०२ (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-६(१ से ४,१५ से १६)=१५, कुल पे. ११, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४९,११४३४-३८). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. शांतिकशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदिः (-); अंति: शांति० करतां सुख लहै, गाथा-४१, (पू.वि. गाथा-३८ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, म. मतिविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद हो पाय; अंति: सेवकने सुखीयो करो, गाथा-१२. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. गजकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जयकर सुखकारि मोहन; अंति: गजकुशल० प्रभुगुण घुणणां, गाथा-९. पार्श For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. ___मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वंछितपूरण आदि नमो; अंति: शांतिकुशल० सुख थयो, गाथा-५. ५. पे. नाम. वीरजिन वीनती स्तवन, पृ. ७अ-९अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, श्राव. शाह वघो, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: श्रीश्रुतदेवीने चरण; अंति: मुजने सदगुरू तूठो रे, गाथा-४०. ६. पे. नाम. अंतरीकपार्श्वनाथ छंद, पृ. ९अ-१३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: भावविजयदेव जय जयकरण, गाथा-५१. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-बृहत्शजयतीर्थ, पृ. १३अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तवन-बृहत् शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि सयल जिणंद पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ८. पे. नाम. जीरावलापास स्तवन, पृ. १७अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जीरावलो रंग गायो, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से ९. पे. नाम. चत्रविश स्तवन, पृ. १७अ-१९अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: तास सीस प्रणमु आणंद, गाथा-२९. १०.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मनसुध आसता देव; अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर, गाथा-७. ११. पे. नाम. कल्याणमंदिरस्तोत्र-पद्यानुवाद, पृ. १९आ-२१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम ज्योति परमातमा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४० अपूर्ण तक है.) ९८३०३. भवभावना, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. मूल पत्रांक १८६ से २०० दिया है., जैदे., (२५.५४९, १५४४८-५४). भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण नमिरसुरवर मणि; अंति: वलीइ कीरउ अलंकारो, गाथा-५३१. ९८३०४ (+2) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ.५१-८(१ से ६,२०,४८)=४३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १२४४१-४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ गाथा-२४ अपूर्ण से अध्ययन-१६ सूत्र-५ अपूर्ण तक व अध्ययन-१६ गाथा-१७ अपूर्ण से अध्ययन-३६ गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) ९८३०९ (#) वसुधारा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४९.५, १४४३८-४०). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: शिखाई वषट् स्वाहा, (वि. विधि सहित.) ९८३१३. दृष्टांत कथादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-५(१ से २,४ से ६)=१९, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१०, १६x४८-५७). १.पे. नाम. दृष्टांत कथा संग्रह, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भूतवादी मंत्रवादी संवाद अपूर्ण से रात्रिभोजन दृष्टांतकथा अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. २२ परिषह दृष्टांत, प. ७अ-१८अ, अपर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३८१ २२ परिषह दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: स्वामिइ जंबु प्रति कहिउ, (पू.वि. उष्ण परिसह दृष्टांत अपूर्ण से ३. पे. नाम. मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा सह कथा, पृ. १८अ-२१अ, संपूर्ण. मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (१)चत्तारिपरमंगाणि दुल्लहाणी, (२)चूल्लग१ पासग२ धन्ने३; अंति: दसदिळूनामणुयलंभे, गाथा-२.. मनुष्यभव दर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: कपिलपुरे ब्रह्मदत्त कहिउ; अंति: हारि कुबल तु न पामइ. ४. पे. नाम.७ निह्नव दृष्टांत कथा, पृ. २१अ-२३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७ निह्नव गाथा-दृष्टांतकथा, मा.गु., गद्य, आदि: आहच्च समवणं० बहुअरं जमालि; अंति: (-), (पू.वि. पच्चक्खाण विषयक गुरुशिष्य संवाद अपूर्ण तक है.) ९८३१४. (+#) नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४९.५, ११४३५-३८). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वितीयपद पूजा ढाल-१ गाथा-३ अपूर्ण से नवमपद पूजा ढाल-३ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ९८३१५. (+#) हरिबलधीवर कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १०x२५-२९). हरिबलधीवर कथा, सं., प+ग., आदि: एकेकोपि कृतो धर्मो; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "जलं च चंदनं पुष्पं" पाठ तक लिखा है.) ९८३१६. (+) अभयकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५५-६०). अभयकुमार रास, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, वि. १६५०, आदि: अविचल सुखसंपतिकरण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५०४ अपूर्ण तक है.) ९८३१७. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४९.५, १५४३२-३८). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति गाथा-२७ अपूर्ण तक है., वि. कल्याणमंदिर और बृहच्छांति नहीं है.) ९८३१८.(+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-१०(१ से १०)-७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४९.५, ११-२०४३७-४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. अध्ययन-२ गाथा-८ से २९ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९८३१९ गोराबादल कथा, संपूर्ण, वि. १८५०, कार्तिक कृष्ण, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. गोयल, प्रले. मु. खुबसोम (गुरु मु. नरेंद्रसोम); गुपि. मु. नरेंद्रसोम (गुरु मु. फतेहसोम); मु. फतेहसोम (गुरु मु. कनकसोम); मु. कनकसोम, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४१०,१२४३०). गोराबादल रास, श्राव. जटमल नाहर, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: चरन कमल चित लायक; अंति: गुण जनो विघन न उपजै काय, गाथा-१३७. ९८३२०. माधवानल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४९.५, १३४४२-४५). माधवानल चौपाई, उपा. कशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देवि सरसति देवि; अंति: (-), (पृ.वि. पाठ "प्रीय दीठइ विहसंत नयण पदारथ नय" तक है.) ९८३२१. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, ४४४४). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ अजीवा२ पुन्नं३; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४७. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व१ अजीवतत्व२; अंति: अवसर्पिणी अनंतीयै. For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९८३२२ (#) दरिअरयसमीर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७६७, माघ कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, प. १५, ले.स्थल. फलवद्धी नगर, प्रले. पं. सुमतिसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १५४४५). दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. दरिअरयसमीर स्तोत्र-वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, आदि: नत्वा वीरजिनेंद्र; अंति: तस्य उच्छेदनं निरासकं ९८३२५ (+) शक्तावलीभाषित, संपूर्ण, वि. १८१२, माघ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. सोझित, प्रले.ऋ. गोरधन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३४९.५, १३४४४-४८). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: मोक्ष साथे जि केइ, वर्ग-४, श्लोक-१७६. ९८३२७. (#) भाष्यत्रय, अपूर्ण, वि. १७७९, वैशाख कृष्ण, १२, रविवार, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, पठ. ग. गोकलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १२-१५४३७-४०). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: (-); अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, (पू.वि. चैत्यवंदन भाष्य गाथा-४० अपूर्ण से है.) ९८३२९ (+) संघयणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६५, मध्यम, पृ. २३, प्रले.पं. हेमविजय (गुरु पं. अमीविजय); गुपि.पं. अमीविजय (गुरु पं. वर्द्धमानविजय); पं. वर्द्धमानविजय (गुरु ग. शिवविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संघ०.८०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०,५-८x२४-५८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई १; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२८३. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमीने अरिहंतादिक; अंति: वीरनुं तीर्थ ति लगी. ९८३३० (#) भवभावना की चयनित गाथा सह कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १३-१६x४८-५२). भवभावना-चयनित गाथासंग्रह, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: तह रज्जंतह विहवो तह रंगबल; अंतिः भवभावना-चयनित गाथासंग्रह की कथा, सं., गद्य, आदि: कौसंब्यां चंद्रसेनो राजा; अंति: (-), (पू.वि. जिनदत्त श्रावक कथा अपूर्ण तक है.) ९८३३३. (+#) दशवैकालिकसूत्र- अध्ययन १ से ४, संपूर्ण, वि. १८३१, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. रतिसुंदर; पठ. सा. खुशाला आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसत्यिका प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४९.५, ९-१२४२५-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९८३३६. (#) जसराजबावनी, संपूर्ण, वि. १८७७, वैशाख कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. कांबा, प्रले. मु. तोगा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बावनीपत्र. श्रीगोडीजी प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४९.५, ९४३५-४०). अक्षरबावनी, म. जसराजजी म. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, वि. १७३८, आदि: ॐकार अपार जगत आधार; अंति: जसराज० आणी मन उल्लास, गाथा-५३. ९८३३७. (+) रतनचूडचउपई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२३.५४९.५, १३-१८४३२-५५). रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: स्वस्ति श्रीसोभा; अंति: संपद लील कल्याणो रे, ढाल-२४. For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९८३३८. (+) योगदृष्टिसज्झाय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४७, चैत्र कृष्ण, ३०, रविवार, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. अवरंगाबाद, प्रले.पं. दयाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीधर्मनाथ प्रसादेन., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४१०.५, ३४३०-३३). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जशने वयणे जी, ढाल-८, गाथा-७६. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपद्रवरहित जे मोक्षy; अंति: पयसेवक वाचक जसनें वयणेजी. ९८३३९ (+) नवस्मरण-तिजयपहुत्त से अजितशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०, १०४३२-३५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. तिजयपहुत्त, संतिकर, भयहर व अजितशांति गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ९८३४३. इलाकुमर चोपई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. सुमतिविजय (गुरु पं. रुपविजय); गुपि. पं. रुपविजय (गुरु ग. देवेंद्रविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४९.५, १५४४२-४८). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धदायक सदा; अंति: ज्ञानदर्शन अजूआले छे, ढाल-१६, गाथा-१८७, ग्रं. २९९. ९८३४४. (+#) दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०,१३४३३-३६). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: रे धरम हीय धरो, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. ९८३४८ (+#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१-८(१,४,२३,२५ से २९)=२३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४९.५, १३४३६-३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-१७ अपूर्ण से अध्ययन-२ गाथा-२९ अपूर्ण तक, अध्ययन-३ गाथा-१६ अपूर्ण से अध्ययन-१९ गाथा-३६ अपूर्ण तक, अध्ययन-१९ गाथा-७० अपूर्ण से अध्ययन-२० गाथा-२ अपूर्ण तक व अध्ययन-२० गाथा-२२ अपूर्ण से अध्ययन-२४ गाथा-४ अपूर्ण तक ९८३५१ (+#) कयवन्ना व सुमित्रकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १५९०, माघ कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. २, ले.स्थल. नडुलाइ, प्रले. ग. गुणलाभ (गुरु ग. नयसमुद्र, खरतरगच्छ); गुपि. ग. नयसमुद्र (खरतरगच्छ); राज्ये आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनराजसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ७०७, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४९, १५-१८४५५-६०). १.पे. नाम. कइवन्ना चउपई, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रीकयवन्नानी चउ०. कयवन्ना चौपाई-दानविषये, आ. पद्मसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५६३, आदि: सरसवचन आपय सदा सरसति; ___ अंति: घरि अविचल ऋद्धि, गाथा-२९६. २. पे. नाम. सुमित्रकुमरमहाराजा चतुःपदी, पृ. ९अ-१८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रीसुमित्र चउ०.कुल ग्रं.७०७ सुमित्रकुमार चौपाई, ग. धर्मसमुद्र वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १५६७, आदि: पणमिसु मण वय तणु करी पहिल; अंति: तां लगइ चिर जयवंत, गाथा-४३४. ९८३५३. (#) दशवैकालिक, आवश्यक योग विधि व जिनबिंब उत्थापन विधि खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३,प्र.वि. हुंडी:विधिप्रपा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४९.५, ११-१४४४५). १.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-योग विधि, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: गृहे भव्य सत्वस्य; अंति: अणु जाणह ख १३ आंबिल. २. पे. नाम. आवश्यकसूत्र योग विधि, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आवश्यकसूत्र-योग विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: आवश्यकेपि प्रथमदिने; अंति: का० १ ख०१३ आंबिलं. ३. पे. नाम. जिनबिंब उत्थापन विधि-खरतरगच्छीय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: पसत्थे तिहिमुहुत्त; अंति: तहा सत्तेया मंडली हुंति. ९८३६१. (+#) लीलावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-७(३ से ९)=१०, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०.५, १०४२६-३०). लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: परम पुरुष प्रभु पास; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-५ से ढाल-६ दोहा-४ अपूर्ण तक व ढाल-११ गाथा-६ अपूर्ण से नहीं है.) ९८३६३. (#) रविव्रत कथा व शंखेश्वरा पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ.८, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी:कथा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, ११४२९-३३). १. पे. नाम. रविव्रत कथा, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणेसर पाय नमी लाग; अंति: वली धन पामें ज्योजो वली, गाथा-११४. २.पे. नाम, संखेश्वरा पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतयामि तुं अलवेसर महिमा; अंति: मुजनै भवसायरथी तारौ, गाथा-५. ९८३६४. (#) बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४६, आश्विन शुक्ल, १५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. कपडवन, प्रले. हेतराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१०.५, ९४२१). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयतु शासनम्. ९८३६५. (+#) सिंदूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. ९८३६६. नेमिजिन छंद व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ९, कल पे. २, जैदे., (२२४९.५, ११-१४४४२-४५). १. पे. नाम. नेमनाथस्य गुणरत्नाकर छंद, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण. नेमिजिन छंद, म. हेमचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वंदेहं विमलंदेवं; अंति: हेमचंद्र विस्तार, अधिकार-३, गाथा-१९१. २. पे. नाम, औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: हीनदीनक्षधार्थीनां नीच; अंति: भोजनृपतिः परदारलुब्ध, श्लोक-३. ९८३६७ (+#) कयवन्नाकस्य चतुपदी, अपूर्ण, वि. १८७६, पौष शुक्ल, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. २२-१(२)=२१, ले.स्थल. सीसोदागाम, प्रले. मु.रूपचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पार्श्वनाथ प्रशाद., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४९.५, १३-१६४३८-४२). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक; अंति: धरम करण मन उलसेजी, ढाल-३१, गाथा-५५५, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-३ गाथा-१० अपूर्ण तक नहीं है.) ९८३६८. (+#) शालभद्र चउपई, अपूर्ण, वि. १८८१, आश्विन कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २२-२(१७ से १८)=२०, ले.स्थल. विकानेर, प्रले. सोमचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीरामसींघजी साहाय छैजी., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४१०.५, १४४३२-३६). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइ जी, ढाल-२९, गाथा-५१०, (पू.वि. ढाल-२६ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-२७ दोहा-२ तक नहीं है.) ९८३७१ (+#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, १५४३७-५०). For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८५ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि नमिउं अरिहंताई ठिक अंति (-), (पू.वि. गाथा-२४६ अपूर्ण तक है.) ९८३७५. (+) कर्पूरप्रकर सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-१७(१ से १२,१५ से १९) = ६, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. त्रिपाठ संशोधित, जैदे. (२४.५x१०.५, १७३९-४५). "3 कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६२ अपूर्ण से ७२ अपूर्ण तक व श्लोक ९८ अपूर्ण से ११९ अपूर्ण तक है.) कर्पूरप्रकर- टीका, आ. जिनसागरसूरि, सं., गद्य वि. १५५१, आदि (-); अंति: (-). ९८३७८. (+#) नवस्मरण व प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३ - ३ (१ से २,७)=२०, कुल पे. २, , प्र. वि. हुंडी: पडिक्रमणसूत्र, पच्चखांण, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२३.५x१०, १०x२४). १. पे. नाम. नवस्मरण, पू. ३अ १० आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वि. १८७२ वैशाख कृष्ण, ५, शनिवार, " प्रले. मु. गोइंदकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. पत्रांक-३अ पर वि.सं. १८७२ वैशाख कृष्ण-१ तथा पत्रांक-५अ पर वि.सं. १८७१ चैत्र कृष्ण-९ लिखा है. मु. . भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.सं., पग, आदि (-); अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. तिजयपहुत्त स्तोत्र गाथा-१० अपूर्ण से है व अजितशांति गाथा-२१ अपूर्ण से २७ अपूर्ण तक नहीं है., वि. तिजयपहुत्त, नमिऊण व अजितशांति ही लिखी है.) २. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय, पृ. ११अ - २३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक पच्चक्खाण अपूर्ण तक है.) ९८३७९. (+) स्तवन चोवीसी व सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. जैवे. (२४४१०.५, १४४४२-४५). १. पे. नाम. स्तवनचोवीसी, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण, वि. १८३३, पे. वि. हुंडी: चोवीसी. स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु, पद्य, आदि: ओलगडी आदिनाथनी जो; अति: रामविजय जयश्री लही, स्तवन- २४. २. पे. नाम. माला सवैया, पृ. ७आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सवैया-माला, पुहिं., पद्य, आदि: कहे गोरि तेरा बदन ज ऐसा; अंति: मेरा घर चुएने लुंस लीया, सवैया- १. ३. पे नाम. स्त्री चरित्र सवैया, पू. ७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सारी-हीणीस्त्री कवित, क. गढ़, मा.गु., पद्य, आदि वरष पनर षटमास, अंति (-). (पू.वि. गाथा १ तक है.) ९८३८०. (M) दानशील चउपई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६, प्रले. ग. रत्नसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२४.५x१०, ११४२९). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पय नमी; अंति: समृद्धि प्रसाद रे, डाल-४, गाथा १०१, प्र. १३५. ९८३८१. (+) कृष्णरुखमणी वेल सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७२२, माघ शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पू. २७-१५(१ से १५) १२, ले. स्थल. लास, पठ. मु. गोपालदास (गुरु मु. डाहाजी, मडाहडगच्छ); गुपि. मु. डाहाजी (गुरु उपा. वीकाजी वाचक, मडाहडगच्छ); उपा. वीकाजी वाचक (गुरु मु. नरबद, मडाहडगच्छ); मु. नरबद (गुरु उपा. जयसागर वाचनाचार्य, मडाहडगच्छ); उपा. जयसागर वाचनाचार्य (गुरु आ. कर्म्मसागरसूरि, मडाहडगच्छ); आ. कर्म्मसागरसूरि (परंपरा आ. चक्रेश्वरसूरि, मडाहडगच्छ); राज्ये आ. चक्रेश्वरसूरि (मडाहडगच्छ); प्रले. गांगदास गोविंद तेजसी गोविंद राज्यकालरा इसरदास रा. लाधाजी, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२४४११, ६४३६) कृष्णरुक्मणी वेलि, रा. पृथ्वीराज राठोड, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: (-); अंति: अचल तैरोपी कल्याणतन, गाथा - ३०७, (पू.वि. गावा- १०८ अपूर्ण से है.) कृष्णरुक्मणी वेलि-टवार्थ, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य वि. १६३८, आदि (-); अति बेट पृथ्वीराज कही. ', For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९८३८२ (#) गमा यंत्र व गांगेयभांगा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १३, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ५४१०). १. पे. नाम, गमाना बोल, पृ. १अ-१२आ, संपूर्ण. गम्मा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. गांगेयभांगा विचार, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण.. गांगेयभंग संख्या आनयन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: एक जीवना सात २ बे जीवना; अंति: एणि रिते आगल पण करता जइई. ९८३८४. (#) धर्मविषये मछोंदर चतुपदी, संपूर्ण, वि. १७६९, फाल्गुन कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. थिराद्रनगर, प्रले. पं. लब्धिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. दुर्वाच्य. कुल ग्रं. १०१५, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १५४३६-४४). मछोदर चौपाई, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१८, आदि: प्रह ऊठी प्रणमं सदा; अंति: ए० तेतीसमी ढाल वखाण, ___ढाल-३३, गाथा-९४८. ९८३८५ (+#) विक्रमचरित्र व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, ले.स्थल. धाखा, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४९.५, १२-१६४३५-३८). १.पे. नाम. विक्रमराजा चरित्र, पृ. १अ-१५अ, संपूर्ण, वि. १७६८, फाल्गुन कृष्ण, ३, प्रले. मु. गोविंदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. ___ विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पूस्तकधारणी हंस; अंति: अभयसोमे० काजे कही, ढाल-१७, ग्रं. ३२५. २.पे. नाम. माहावीर स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: __ समयसुंदर० भुवनतिलो, गाथा-१९. ९८३८६. (+) अनाथीमुनि पंचढालियो, मृगापुत्र चौपाई व नेमराजिमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, ११४३१-३५). १. पे. नाम. अनाथीसाध संधि, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. अनाथीमनि पंचढालियो, उपा. विमलविनय वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १६४७, आदि: श्रीजिनसासन नायक; अंति: पामइ सुख संपति सारी, ढाल-५, गाथा-७१. २. पे. नाम. मृगापुत्ररिषि संधि, पृ. ५अ-१३आ, संपूर्ण, वि. १८०६, चैत्र कृष्ण, ७, सोमवार, ले.स्थल. वाहडमेर, प्रले. मु. गुप्तिधर्म, प्र.ले.पु. सामान्य. मृगापत्र चौपाई, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदिः परतिख प्रणमं वीर; अंति: चरित्र जिनहर कीयो, ढाल-१०, गाथा-१२८. ३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, आदि: कांइ रीसाणा हो नेम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) ९८३८७. वसुधारा स्तोत्र व ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)-७, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४९.५, ११४२८-३६). १. पे. नाम. आर्यवसुधारानामधारिणी स्तोत्र, पृ. २अ-८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. मु. महिमामाणिक्य, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:वसुधारास्तोत्र. वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति, (पू.वि. "दरिद्रोहं भगवन् दरिद्रोह" पाठ से है.) २.पे. नाम, ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:ऋषमंडलस्तोत्र. ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९८३८८. (+) बलभद्र कथानक, संपूर्ण वि. १८५०, पूर्णपांडववर्षेष्टेचंद्रे, फाल्गुन, श्रेष्ठ, पू. ६, प्रले. मु. रत्नचंद्र पाठक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यह प्रत वि. सं. १८५० में लिखी हुई प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैवे. (२३.५४९.५, १८-२२४४३-५५). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बलभद्र कथानक, सं., पद्य, आदि: अस्त्यत्र भरते स्वर्णमयी; अंति: जतिगणैर्नियतं विषह्यः, श्लोक - २६१. ९८३९० (+) लघुशांति, कल्याणमंदिर स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १७८६ कार्तिक शुक्ल १ रविवार, मध्यम, पृ. १५-१० (१ से १०) = ५, कुल पे. ३, ले. स्थल. दांतडी नगर, प्रले. मु. सौभाग्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४X१०, १०x४२-४६ ). १. पे नाम, लघुशांति, पू. ११ अ ११आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अति जैन जयति शासनम्, श्लोक-१७ (पू.वि. त्रैलोक्यपूजिताय नमो नमः" पाठ से है.) २. पे. नाम. कल्याममंदिर स्तोत्र, पृ. ११आ-१५अ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति कुमुद० प्रपद्यते, लोक-४४. ३. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १५अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पंच, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः पूरय मे वांछित नाथ, श्लोक ५. १८३९१. (+) विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, प्रले. लालचंद, पठ. उदयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद , सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२४.५X१०, ११३९-४२). "" जंबूद्वीप क्षेत्र विस्तारमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप एकलाख योजन; अंतिः सर्व जीवारा ५६३ भेद जाणवा. ९८४१६. ४ मंगल रास व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ६-१ (१) =५, कुल पे. ४, वे., (२०.५x१०.५, १३-१६x२७-३०). १. पे. नाम, ४ मंगल रास, पृ. २अ-६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पे. वि. हुंडी मंगल. " मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि (-) अति धर्म आराधीवे ए. ढाल ४ गाथा ११० (पू.वि. गाथा २० • अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: बाल्या सनेही तुं प्रभु; अंति: रामचंद० नही करीये नीरासा, गाथा- ७. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण. ३८७ मु. रामचंद, रा., पद्य, आदि: अमे जिन चरणे चीत धर सार; अंति: तवन सांमीये रामचंद कहे०, गाथा-७. ४. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पू. ६आ, संपूर्ण. मु. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: महाविदेह में थे वसो; अंति: रामचंद० रे मुज पार लघाय, गाथा-८. ९८४१८. (+) भक्तामर स्तोत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८२३, मध्यम, पृ. २८-४(१ से ४) = २४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२४X१०, ७X३७). " भक्तामर स्तोत्र- टीका, उपा. रत्नचंद्र, सं., गद्य, आदि (-); अति मोक्षलक्ष्मीरित्यर्थं ग्रं. ४८९ (पू.वि. पाठ प्रणम्य नमस्कृत्य कथं भूतं भक्तामर" से है.) ९८४१९ (+#) सिंदूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १७७४ युगमुनिभोजन, श्रावण शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. संकराणिग्राम, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०, १३x३९). " सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्म, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार - २२, श्लोक - १००. ९८४२० (+) महावीरजिन स्तवन २४ दंडक २६ द्वारगर्भित सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २४४९.५, ५X३४-३६). For Private and Personal Use Only महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर स्वामी वीरजिन; अंति: (-). (पू.वि. गाथा ८६ अपूर्ण तक है.) Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन २४ दंडक २६ द्वारगर्भित टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि सुखनाकरण हार ठाकुर, अंति (-). ९८४२२. (+) तपागच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., । जैदे. (२३.५४९.५, १५X३७-४८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरपट्टे सुधर्म्मा अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पाट ६१ विजय आनंदसूर तक लिखा है.) ९८४२३. स्तुति स्तवन व चैत्यवंदनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १२८-३(१२ से १३, १७)= १५, कुल पे. २१, दे., ( २२x९.५, ११x२८-३५). १. पे. नाम. दीवालीनी धुई. पू. १अ १आ, संपूर्ण, दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक श्रीमहावीर, अंतिः द्यो सरसति मुझ वाणी, गाथा ४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र थुई. पू. १आ-२अ संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि आसो चैत्र आंबिल ओली; अंति माणिक्य० जयजयकारी जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. सीद्धचक्रजीरी स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. सिध्धचक्र स्तुति, मु. जिनमहिमा, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर भुवन दिनेस; अंति: मुनि जिनमहिमा छाजेजी, गाथा-४. ४. पे नाम. पजुसणापर्व स्तुति, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक प्रभु वीर ज; अंति: रंगविजय० सुखदेवी जी, गाथा-४. ५. पे. नाम ऋषभदेव स्तुति, पू. ३आ, संपूर्ण शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि पुंडरिकमंडण पाय अंतिः सौभाग्य० सुखकंवा जी, गाथा-१. ६. पे नाम. पर्युषणापर्व स्तुति, पू. ३आ-४अ, संपूर्ण पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि परव पजुसण पुन्यै; अंतिः शांतिकुशल गुण गाइजी, गाथा-४. ७. पे. नाम. पर्युषण थुई, पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. धर्मविजय, मा.गु, पद्य, आदि: त्रिभुवनमां मोटु परव; अति सीस भणे इम धरमई मंगल थाई, गाथा-४. ८. पे. नाम. नेमीनाथ स्तुति, पू. ४आ-५अ, संपूर्ण मिजिन स्तुति, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि गिरिनारी गिरिवर नेमज; अंति णविजय० पूरो संघ जगीश, गाधा-४. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अमरगिरिशिरस्थस्फार; अंतिः श्रुतं नः श्रुतांगी, श्लोक-४. १०. पे नाम, सीमंधरजी चैत्यवंदन, पृ. ५आ- ६अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूरबदिशि इशाण कुण; अति हर्ष० पुरो संघ जगीश, गाथा ३. ११. पे नाम, पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवा प्रणमी; अंति: सेवक सकल सुखगुण पांम, गाथा-२२. १२. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. ८आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: न कोहो न मानो माया न लोभो; अति एष प्रातमा कथमें जिनेंद्र, गाथा १. १३. पे नाम रोहिणीतप स्तवन, पृ. ८आ-११आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि हां रे मारे वासुपूज; अंति (-), (पू.वि. ढाल -५ गाथा ७ तक है.) १४. पे नाम, अनंतजिन स्तवन, पू. १४अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. आ. सौभाग्यलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति एतो समकितसुख निसाणी, गाथा-९, (पूर्ण, पू. वि. गाथा- १ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३८९ १५. पे. नाम, पंचम स्तुति, प. १४अ-१४आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः श्रावण सुदि दिन; अंति: सफल करो अवतार तो, गाथा-४. १६. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय तीरथसार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) १७. पे. नाम, आत्मगीत प्रभाती, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, म. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: ओरन से रंग न्यारा; अंति: रुपचंद० चरणचित तिहां रहि, गाथा-९. १८. पे. नाम, नाकोडापार्श्व स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन छंद-नाकोडामंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपण घर बेठा लील करो; अंति: कहै गुण जोडो, गाथा-८. १९. पे. नाम. शेजगिरि स्तवन, पृ. १८अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा नवाणुं करीये; अंति: पद्म कहै भव तरीयै, गाथा-१०. २०. पे. नाम, सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण... मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: ऐहवे वीर समोसर्यो सुखदाई; अंति: तीरथ धरे जिनगुण अंग हो, गाथा-६. २१. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र सेवो भवी प्राणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९८४२४. (+) आषाढभूति चतुष्पदिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पं. रंगप्रमोद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीआषाढ०.चउपई., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२२४९.५, १५४३५-४१). आषाढभूति चौपाई, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: पणमिय विमल विमलमतिदाई; अंति: जिम पूजई मननी सवि आस, गाथा-१५४. ९८४२७. (+) सूक्तमाला, संपूर्ण, वि. १८१२, पौष शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. सोजित, राज्यकाल रा. विजयसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "रामसिंघ विजैसंघ विग्रहसमये" ऐसा लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४९.५, १५४४४-४८). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलकुशलवल्लि; अंति: तेइ मोक्षसाधि जि केइ, वर्ग-४, श्लोक-१७६. ९८४३१ (+) नलदमयंति रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(५)=६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०, १२४३८-४४). नलदमयंती चरित्र, वा. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: प्रणमु पारसनाथना चरण कमल; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-२ से ढाल-६ गाथा-११ अपूर्ण तक व ढाल-७ गाथा-१४ अपूर्ण से नहीं है.) ९८४३३. पद, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ११, दे., (२२४१०, १०४३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, प. १अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विनय सजीने साहिबा; अंति: श्रीजिनलाभसुरीश, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: सयल रिपु जीपतो, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १आ, संपूर्ण. म. नेम, पुहिं., पद्य, आदि: आसणरा रे जोगी पासजिण; अंति: (-), गाथा-७, (अप f, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ४. पे. नाम. बार व्रत सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ व्रत सज्झाय, मु. कीर्तिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण पाय प्रणमीजै; अंति: कीरतसागर सुभ गुण गाया, गाथा-१४, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ५. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: रात दिवस नित सांभरो; अंति: पद्मने मंगलमालो लाल, गाथा-६. ६. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: वाचक यस० गुण गाय के, गाथा-५. ७. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: अष्टापद आदिसर सीद्धा; अंति: भावे चैत्यवंदन करी, गाथा-६. ८.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उलग अजित जिनंदनी; अंति: मोहन० जिन अंतरजामी, गाथा-५. ९. पे. नाम. शांतजिन स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर साहिबा रे; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. १०.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ.५अ, संपूर्ण. मु. रत्नविजयशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणंदनी जाउ बलीहारी; अंति: इम यौत दिए आसीस रे, गाथा-७. ११. पे. नाम. दीवाली में जाप करने की विधि, पृ. ५आ, संपूर्ण.. दीवाली का जाप, सं., गद्य, आदि: श्री महावीरस्वामी; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपर्ण., पाठ "पछे उमणो करणो" तक लिखा है.) ९८४३५. (+#) गौतमस्वामी रास व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६२, चैत्र कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ९, प्रले. मु. दीपाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री सुवधिनाथजीप्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (८५३) पोथी प्यारी प्रांणथी, जैदे., (२१.५४१०, १०४२२-२५). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. ___ आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: भद्र गुरु इम भणे ए, ढाल-६, गाथा-६६. २. पे. नाम, गौतमगणधर सवैया, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तुति-प्रार्थना, मा.गु., पद्य, आदि: कामधेन गो शब्दथी ते; अंति: वंछित सुख घमंड फतेरी, गाथा-२. ३. पे. नाम. ईरीयावही स्वाध्याय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नारी में दीठी एक; अंति: एहनी घणी सेव रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.ग., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर साहिबारे; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. ५. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: तुम दरिसण भलो पायो ऋषभजिन; अंति: एहिज दित मोरे ध्यायो, गाथा-३. ६. पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. केशरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिणेशर वालहो मुज; अंति: केशर० दरिसण सुख थाय, गाथा-५. ७. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. म. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजितजिणेशर सेवीइ रे; अंति: विनय वंदे नितमेव, गाथा-५. ८. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, म. जिनेंद्रसागर, मा.ग., पद्य, आदि: वीर जिणेसर वंदीये; अंति: उत्तम एहवी वाणी रे, गाथा-८. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org ३९१ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. विनयविबुध शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: मीठो मुने लागे रे; अंतिः प्रभुजी पूरो आश रे, गाथा-५. ९८४३६. (+) सत्तभेदी पूजा, संपूर्ण वि. १८६३, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ८ ले स्थल. बीलाडा, प्रले. पं. सोभाचंदमुनि (आचार्यीयागच्छ); पठ. पं. खेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : पूजासत०., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२x१०.५, १३३६). १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: भाव भले भगवंतनी पूजा; अंति: सब लीला सुख साजै, , ढाल- १७. ९८४४४. पार्श्व, ऋषभ व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, जैवे. (२०.५x९.५, १३४३२-३८). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम गौडीपार्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्री गोडी प्रभु पासजी, अंति: जसविजय०जिनराज प्रभुप्यारा, गाथा ११. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: यशविजये० पोष लाल रे, गाथा ५. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: वाचक यस० गुण गाय के, गाथा-५. ९८४४५, (#) षड्दर्शन समुच्चय, संपूर्ण, वि. १८९४, वैशाख शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १०, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५X१०, ७X२५). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा वीरं; अंति: पर्यालोच्य सुबुद्धिभिः, अधिकार - ७, श्लोक ८७. विशेष ९८४४६ (+) दृष्टांतशतक सह वालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण: युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जरो., (२२x९.५, १४X३६-४६). दृष्टांतशतक, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवृषभं सदावृषधरं अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४६ तक है.) दृष्टांतशतक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिम कोइक पुरुष वन मध्ये; अंति: (-). ९८४४७. (+) संघयणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८३६, आषाढ़ कृष्ण, १२, मध्यम, पू. १७, ले. स्थल, श्रीमालपुर, पठ. ग. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २१.५x९.५, १२X३५-३९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति : जा वीरजिण तित्थं, गाथा-४१०. ९८४५०. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८३९, पौष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १४-३ (१,५ से ६) = ११, ले. स्थल. जालोरनगर, पठ. मु. खुबचंद (गुरु मु. जगनाथ); गुपि. मु. जगनाथ (गुरु पं. जसविजय); पं. जसविजय (गुरु पं. प्रीतविजय); पं. प्रीतविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:पक्खीसूत्र. श्रीसंतनाथजी सहाय छे, श्रीबरडाजी सहाय छे., जैदे., (२२.५x९.५, १३x२९-३२). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: समत्तं देवसीयं भणीजासु, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.,' पाठ "दिउवसगुण पडिपुन्नेभारियाए साया" से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९८४५१. (+) विमलरो सलोको व नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण वि. १८३४, मध्यम, पृ. ८. कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५x९.५, ११x२६-३४). सीख्यौ, गाथा- ११२. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. १. पे. नाम. विमलरो सलोको, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण, ले. स्थल. स्याणानगर, प्रले. पं. रामविजय (गुरु पं. हस्तिविजय); गुपि. पं. हस्तिविजय (गुरु पं. भाणविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. विमलमंत्री सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरू वे करजोड अति: मुनी अजितविजैये For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ___ मु. केवल, मा.गु., पद्य, आदि: ग्याननो लाभो ध्याननै पछै; अंति: केवल० किण वध वाधै रंग, गाथा-६. ९८४५३. (+#) आषाढाभूति चोपड़, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि (गुरु ग. वनीतविजय); गुपि.ग. वनीतविजय (गुरु ग. रत्नविजय); ग. रत्नविजय (गुरु ग. सुखविजय); ग. सुखविजय (गुरु ग. बुद्धिविजय); ग. बुद्धिविजय (गुरु मु. तत्त्वविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४९.५, १६४३६-४०). आषाढाभूतिमनि चौपाई, म. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: कहे० परम __कल्याण रे, ढाल-१६, गाथा-२१८, ग्रं. ३५१. ९८४६४. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, ४४४०). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: साचउ वस्तुनउ स्वरूप जाणि; अंति: (-). ९८४६६. (+) जिन रास, पंखीप्रबोध कुंडलीया व औपदेशिक सवैयादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१(१)=१७, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४९.५, १४४२८-३२). १.पे. नाम. जिण रास, पृ. २अ-११अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. जिन रास, मु. वेणीराम, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदिः (-); अंति: वेणीराम० धजादे धिंग, गाथा-१९५, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पंखीप्रबोध कुंडलीया, पृ. ११अ-१६आ, संपूर्ण, वि. १८२२, वैशाख कृष्ण, ५, ले.स्थल. गोडांगडी, प्रले. मु. श्रीचंद (गुरु पं. लब्धिविजय); गुपि.पं. लब्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. केसरीसिंह बारहठ ठाकुर, मा.गु., पद्य, आदि: करता भजीयो कै हरी ज्यां; अंति: केहरी० कारणे बाबहीओ प्रीउ, गाथा-४४. ३. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अली मोती को हार; अंति: अब छोडि दे कंत भया प्ररा, सवैया-७. ४. पे. नाम. पखवाडारा दूहा, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. १५ तिथि दहा, मा.गु., पद्य, आदि: पडिवा आज सहेलीया ने उरठ; अंति: वांका नरा सो पधरा न होइ, गाथा-१५. ९८४६७. (+#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४९.५, ७४२०-२४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३६ अपूर्ण तक ९८४७४. (+) शालिभद्रमुनि चरित्र, संपूर्ण, वि. १७४०, आषाढ़ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ४५, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. सुखमल (गुरु भट्टा. जिनधर्मसूरि); गुपि. भट्टा. जिनधर्मसूरि; पठ. श्रावि. मनभा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४९, ९४३०-३५). शालिभद्रमनि चौपाई, म. मतिसार, मा.ग., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; अंति: मतिसारइ० फल लहिस्यइ जी, ढाल-२९, गाथा-५११. ९८४८६. (+) उपदेशमाला प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १४८६, भाद्रपद शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५४-२(२ से ३)=१५२, प्रले. श्रावि. मंगलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२२.५४९, ११४३७-४७). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, (पू.वि. गाथा-२ से १० तक नहीं है.) उपदेशमाला-बालावबोध, आ. सोमसंदरसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १४८५, आदि: श्रीवर्धमानजिनवर; अंति: सिद्धांतप्राय जाणवी. For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३९३ ९८४९५. समकितसडसठबोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७१, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. अस्तपुर, प्रले. पुंजा जेठा दवे; लिख. मु. कुंअरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसुमतिनाथ चैत्यालये शुभं भव., प्र.ले.श्लो. (८१८) पोथी प्यारी प्रांणथी, जैदे., (२२४१०, १०४२७). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोलइ जी, ढाल-११, गाथा-६८. ९८५०० (#) बूढलैकांडीरो रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.६, ले.स्थल. रणी, प्रले. अडक चोधरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०.५, १२४३३-३८). बुढापा रास, मु. चंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: दया ज माता वीनवु; अंति: चंद० कलयुगरी नीसांणी, ढाल-२२. ९८५०२ (+2) प्रश्नज्ञान व ग्रहदृष्टि विचार, अपूर्ण, वि. १९५१, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १५-१(१)=१४, कुल पे. २, ले.स्थल. टोडा, प्रले. श्रावि. रेखा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१०, ९४२७-३०). १. पे. नाम. प्रश्नज्ञाने ग्रहबलाबले द्वादसभवनपति फल, पृ. २अ-१५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. जन्मप्रदीप, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: व्ययाधिनाथे व्ययगेहलीनो, श्लोक-१४८, (पू.वि. श्लोक-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ग्रहदृष्टि विचार, पृ. १५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पूर्णं पश्यति रविजः तृतीय; अंति: शनि पस्यति पूर्णमयं, श्लोक-२. ९८५०३. (#) उत्तराध्ययन सूत्र-जीवाजीवविभत्ति अध्ययन-३६, अपूर्ण, वि. १८४१, आश्विन कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, प्रले. सा. विना आर्या (गुरु सा. खेमाजी आर्या); गुपि. सा. खेमाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: उत्तराध्ययन., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१x१०.५, १६४३२-४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मएत्ति बेमि, (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से ९८५०९ (+#) सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १०-३(१ से २,५)=७, कल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४८.५, ९४२८-३२). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. म.शांतिकशल, मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: शांतिकुशल लाधो रे सफली आस, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गिना है.) २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लीखहत्यानिषेध, म. शांतिकशल, मा.ग., पद्य, वि. १६७५, आदि: सरसति मति सुमति द्यो; अंति: शातिकुशल शिवसुख वरो, गाथा-१४.. ३. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-कलियुग, म. प्रीतिविमल, पुहिं., पद्य, आदि: यारो कुडो कलिजुग आयो बाबा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती सज्झाय, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: राम० चरजेहे राजुलनेमने, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) ५.पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ६अ-१०आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, म. गणविजय, मा.ग., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुणी, ढाल-६, गाथा-४९. ६. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. रतन, मा.ग., पद्य, आदि: अरे लाला सदर रुप सोहामणो; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९८५२५. नेमराजुल चोवीसचोक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(६)=७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१४९.५, १२४२५-३०). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, म. अमतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: समाँ देवी सारदा; अंति: (-), (पू.वि. चोक-१६ गाथा-३ अपूर्ण से चोक-१९ तक व चोक-२४ की प्रशस्ति गाथा नहीं है.) ९८५३१. (+) कामदेवश्रावक, अरणिकमुनि सज्झाय व आनंदश्रावक ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-१०(१ से १०)=८, कुल पे. ३, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४१०.५, १२४२५-३०). १.पे. नाम. कामदेवश्रावक सज्झाय, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रावककअर. मा.गु., पद्य, आदि: इक दिन इंद्र प्रसस्या; अंति: उपनाजी हुवा एक अवतारोजी, गाथा-१५. २. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रावकअरण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: चंपानगरीथी चालीयाजी सागरम; अंति: गावीयाजी० सांभल ए अधकार, गाथा-१५. ३.पे. नाम. आनंदश्रावक ढाल, पृ. १४अ-१८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आणंदश्रा०. म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२९, आदि: अनरीजी जात अनेक छै न्यारा; अंति: रे लाल चोल मजीठरो रंग हो, ___ ढाल-४, गाथा-६५. ९८५४० (+) तिथि हानि वृद्धि आदि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४१०, १४४३६). विचार संग्रह-विविधविषयक, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: ठाणांग मध्ये १ वरस माहे ६; अंति: सारीने मुक्त जावे छे, (वि. अचित्त भोजन, गुण हानि वृद्धि व आयु लक्षण आदि विचारों का संग्रह.) ९८५४६. (+) प्रत्याख्यानसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०६, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. मु. ताराचंद ऋषि; । अन्य. गुलाबचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२३४१०, ३४३२). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमोकार सहियं; अंति: गारेणं वोसिरामि, (वि. १९०६, आश्विन कृष्ण, प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य उगई थकइ इतरइ सूर्य; अंति: वोसरावू छृ छांडु डूं, (वि. १९०६, आषाढ़ शुक्ल, ५) ९८५४८. (+) जातकदीपिका पद्धति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०३, आषाढ़ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. हमीरपुर, प्रले. हरिराम गोवर्द्धन पुरोहित; पठ. माधा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२१.५४१०,५४३२-३५). जातकपद्धति, म. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेशं; अंति: हर्षविजयो०जातकदीपिका, श्लोक-९४. जातकपद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम करीने; अंति: जातकदिपका नामे पद्धति छे. ९८५५३. कालिकाचार्य संबंध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कालकाचार्य., दे., (२२४१०, १०४२६). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. "अथ समृद्धं पुमान् विनयं कुर्वन्" पाठ तक है.) ९८५६८ (+#) भगवतीसूत्र प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (१९.५४९.५, २०४३९-४२). भगवतीसूत्र-प्रश्नोत्तर संग्रह, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: भग०सूत्र सातमे शतकै प्रथम; अंति: जमक देवताए सूरिआ परे पूजा. ९८५६९ (4) अंजनसलाका स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१०, १३४२७). For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ शत्रुजयतीर्थे मोतीशाट्क स्तवन-अंजनशलाकाइतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उठी प्रभाते प्रभु; अंति: कहै वीरविनय महाराज, ढाल-७. ९८५७०. वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १९१७, आश्विन अधिकमास शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. अमदावादनगर, प्र.वि. हुंडी:विं.पू., दे., (२०४१०,१५४३८). २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: सुखसंपतिदायक सदा; अंति: जनपंक विखंडनाय, पूजा-२०. ९८५७२. जीवछत्तीसी व १६ सती लावणी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२१४११, ८x२५-३०). १.पे. नाम. जीवछतीसी, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीवछ०. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मोह मिथ्यात की नींद; अंति: जैमलजी० इम रुलियो संसार, गाथा-३५. २. पे. नाम. १६ सती लावणी, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर तणा तीन काले; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ९८५७३. (+) नवस्मरण-संतिकर से बृहच्छांति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (१९४९.५, १०x२५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बृहच्छांति अपूर्ण पाठ ___"श्रीश्रमणसंघस्य संति" तक है., वि. नवकार, उवसग्गहर, भक्तामर व कल्याणमंदिर नहीं है.) ९८५७६. (+) भक्तामर स्तोत्र व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१४(१ से १४)=५, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२१x१०, १०४२२-२५). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १५अ-१८अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., प्रले. पं. क्षमासौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १८अ-१९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१३ अपूर्ण तक है.) ९८५७८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र गीत व रात्रिपूजा निषेध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२०.५४१०.५, १६४३८-४१). १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र गीत, पृ. १अ-२५अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर पदजग नमी; अंति: जोडीनई पगई वंछित आस, ढाल-३६. २. पे. नाम. जिनप्रतिमा रात्रिपूजा निषेध, पृ. २५अ, संपूर्ण. जिनप्रतिमा की रात्रिपूजा रात्रिजागरण निषेध करने का आलावा-छेदसूत्र, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तिहां देहरा ३ तीन; अंति: सर्व निषेध जाणिवा. ९८५८४. (+) पडिक्कमणा विधि, अपूर्ण, वि. १९१९, श्रावण कृष्ण, १३, मध्यम, पृ.८-१(२)-७, प्रले. पं. विनयचंद्र (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०x१०.५, ७४१२-१८). प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सामयक लीजै पछी; अंति: चैत्यवंदन वउकसायरो कहवो, (पू.वि. पाठ "सात लाख कहणा नवकार" से "दोय आंबिल तीन नीवी" के बीच का पाठ नहीं है.) ९८५८५ (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२०.५४१०.५, १०४३०). १. पे. नाम. आत्मरक्षा स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठिनमस्कारं सारं; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. २. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिर्मतः, श्लोक-११. ३. पे. नाम, जिनपंजर स्तोत्र, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. ४. पे. नाम. अष्टप्रातिहार्य, पृ. ४अ, संपूर्ण. अष्टमहाप्रातिहार्य नाम, सं., गद्य, आदि: अशोकवृक्ष १ कुसुम; अंति: रातिहार्याणि जिनेस्वराणां. ५. पे. नाम. पद्मावती अष्टक-१ गाथा, पृ. ४अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: (-), प्रतिपर्ण. ६. पे. नाम. उवसग्गहर श्रीपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ७. पे. नाम. जंबूद्वीप स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण.. विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अद्दामलग पमाणे पूढवि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ "जिणवरेहिं पन्नत्ता देजइ सरसवमित्ता" तक लिखा है.) ९८५९५ (+#) पडिक्कमणासूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१०.५, ४-१०x१४-१८). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. पाठ "सासय बिंबाइं पणमामि ५ जे किंचिनामति" तक है.) ९८५९६. आदिजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२०.५४१०, १३४३१-३५). आदिजिन विवाहलो, मु. गुणनिधानसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सासनदेवीय पाय प्रणमेवीय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२०३ अपूर्ण तक है.) ९८५९७. धन्ना रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-५(२ से ६)=९, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (१९.५४१०.५, १४४३२-३५). धन्नाअणगार रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १५१४, आदि: पहिलउं पणमी पयकमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से गाथा-११४ अपूर्ण तक व गाथा-२९९ अपूर्ण से नहीं है.) ९८५९८. पुप्फचूलासाध्वी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. बीसलपुर, प्र.वि. हुंडी-पुफचोला., दे., (२१४१५, १४४३२). पुप्फचूलासाध्वी सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदि: संतनाथ जिन सोलमो; अंति: भाव भगति विलास, ढाल-९. ९८६०६. अनेकांतमंजरी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, दे., (२०.५४१०.५, ८x२८). अनेकांतमंजरी, सं., पद्य, आदि: शब्दांभोधिर्यतोनंतः; अंति: (-), अधिकार-३, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अधिकार-२ श्लोक-८९ अपूर्ण तक लिखा है.) ९८६१९ मांगलिक श्लोक व गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २, दे., (२०४११.५, ११४२६). १.पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो मंगलं; अंति: साहुणो सुठिया भरहे, गाथा-५. २.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमला; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४६ अपूर्ण तक लिखा है.) ९८६२० (+) उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८५३, मध्यम, पृ. १३७-११४(१ से ६५,६७ से ७३,८७ से ११०,११९ से १३६)=२३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२१४१२, १२४२३). For Private and Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३९७ उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८२ से ८५, ८९ से ९९, ११४ से १२० व १४३ से १४५ तक है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अवंतिसुकुमाल कथा अपूर्ण से सागरचंद्रदृष्टांत कथा अपूर्ण तक है व बीच-बीच के कथांश नहीं हैं.) ९८६२१ (+2) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४११, ४-१२४३८). आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० तिखुत; अंति: मिच्छामि दुक्कडं.. ९८६२३. आणंदश्रावक चउपई, संपूर्ण, वि. १७५४, श्रावण शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १७, प्रले. आ. अमीपाल; लिख. रूपाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४११.५, १६४२४). आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: कहइ पभणइ मुनि श्रीसार, ढाल-१५, गाथा-२५२. ९८६२८. (+) हैमीनाममाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३३-१(३१)=३२, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नाम० है०., नाम हैमी०., हैमीनाम०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१४१०.५, ८x२४). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. कांड-२ श्लोक-१९४ अपूर्ण से २०५ अपूर्ण तक व श्लोक-२४६ से नहीं है.) ९८६३० (+) सिंदूरप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९९, चैत्र कृष्ण, २, बुधवार, मध्यम, पृ. २३, प्रले. मु. वसंतविजय; गुभा. ग. हितविजय (गुरु ग. दीपविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. दीपविजय (गुरु मु. लब्धिविजय, तपागच्छ); मु. लब्धिविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि, तपागच्छ); आ. विजयप्रभसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीवासुपूज्यप्रसादात्., संशोधित-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (८४) मंगलं भगवान वीरो, (१८१) मंगलं लेखकस्यापि, जैदे., (२१.५४११.५, ६x२५-३२). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: पराज्ञा सुक्तमुक्तावलीयं, द्वार-२२, श्लोक-९९. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनो प्रकर समूह कहिता; अंति: मुनीश्व० मानवा योग्य. ९८६३४. (+#) पंचकल्याणक मंगल, संपूर्ण, वि. १८४९, वैशाख अधिकमास शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. धूलेवगाम, प्रले. रूपा अमूलख ठाकोर; लिख. कसन भट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४११, १३४२५-२८). पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणभवी पंचपरमगरु; अंति: जनदेवसू संगे जाई जु, ढाल-५, गाथा-२५. ९८६३८. नेमनाथजीरो सीलोको, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०,प्र.वि. हंडी:ने०सी०., दे., (२०.५४११, ७४२०). नेमिजिन सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: समरु सारद माता सुंण रांण; अंति: संसारै देखें नेमिसर आवै, गाथा-५४. ९८६३९ (+) आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:आवसक०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२२४१०.५, ३४२१-२८). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (१)आवस्सही इच्छाकारेण, (२)णमो अरिहंताणं० आवस्स; अंति: (-), (पू.वि. पगामसज्झायसूत्रगत गोचरी ४२ दोष वर्णन अपूर्ण तक है.) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० आवसही करतो सावधान; अंति: (-). ९८६४१ (2) बलचंद रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.६,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२१.५४११,१६-२०४२२-३०). बलचंद रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: श्रीजिन शांतिजिनेसरू; अंति: सबलदास० निस्तारा रे, ढाल-१३. For Private and Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९८६४६. आध्यात्मिक गीत-देहस्थहंस व नरकवेदना वर्णन चौपई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-८(२ से ६,८,१०,१३)=६, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४११, १०x२८-३२). १.पे. नाम. आध्यात्मिक गीत-देहस्थहंस, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. हंसतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतदेव सुसाध गुरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कंध अध्ययन ५ नरकविभक्ति वर्णन सह नरकवेदना वर्णन चौपाई, पृ. ७अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. सूत्रकृतांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कंध अध्ययन ५ नरकविभक्ति वर्णन, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ उद्देश-१ की गाथा-१५ से गाथा-१९ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं सूत्रकतांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कंध अध्ययन ५ नरकविभक्ति वर्णन का नरकवेदना चौपाई, संबद्ध, मा.ग., पद्य, आदि: (-); अंतिः (-). ९८६४७. (+) पोषह विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२२४११, ६४९-२०). पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पोसा त्रण प्रकारना; अंति: (-), (पू.वि. सामायिक पारने की विधि अपूर्ण तक है., वि. श्राद्धविधि प्रकरण प्रकाश-२ से उद्धृत है.) ९८६४८. (+-) भक्तामर, कल्याणमंदिर व लघुशांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११.५, १३४१७-२४). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. २अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ५आ-१०आ, संपूर्ण.. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. ११अ-१२आ, संपूर्ण. लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांत्यं शंति निशंत्यं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ९८६४९ (+#) नमस्कार माहात्म्य व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५९-४९(१ से ३७,४३,४६ से ५१,५३ से ५४,५६ से ५८)=१०, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११.५, ११४२८-३४). १.पे. नाम. नमस्कार माहात्म्य, पृ. ३८अ-४५अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. आ. सिद्धसेनसरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-५ श्लोक-७ अपूर्ण से प्रकाश-७ श्लोक-१६ अपूर्ण तक व प्रकाश-७ श्लोक-३८ अपूर्ण से हैं.)। २. पे. नाम. पार्श्वजिन बृहत्कल्पस्तोत्र, पृ. ४५अ-४५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: भुजगेंद्रनिर्मितमहं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. तीर्थमाला स्तवन, पृ. ५२अ-५५आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ___मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच का पाठांश है.) ४.पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, पृ. ५९अ-५९आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण से २७ अपूर्ण तक है.) ९८६५१. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६-४(१,८,११,१५)=१२, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, दे., (२०४११.५, १२४२१-२५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उवसग्गहर स्तोत्र गाथा-५ से बृहत् शांति पाठ "त्रिलोकेश्वरास्त्रिलोकोद्योतकराः" तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है., वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ९८६५२. (#) सिंदूरप्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-२(२,७)=११, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले. मु. न्यानविजय; पठ. मु. हेमविजय,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रकरणं., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११, १३४२०-३०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१०२, (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण से १४ अपूर्ण तक व श्लोक-४७ अपूर्ण से ५५ अपूर्ण तक नहीं है.) ९८६५९ साधुवंदना, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२०४११.५, १६x२५-२८). एवंदना, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पंचपरमिट्ठ पयकमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९५ अपूर्ण तक है.) ९८६६०. आनंदश्रावक संधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-२(१ से २)=१३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२०४११.५, १५४२६-३०). आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२६ अपूर्ण से ढाल-१५ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ९८६८० (+) अजितशांति स्तवन, भक्तामर स्तोत्र व बृहत्शांति स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६८-५९(१ से ५९)=९, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१८.५४११.५, ११४२२). १.पे. नाम. अजितशांतिनाथजी स्तवन, पृ. ६०अ-६३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __ अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-३९, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ६३अ-६७अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. ६७अ-६८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. "सृजति गायंति च मंगलानि" पाठ तक है.) ९८६८१ (+#) स्तवन व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. ३२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८x११.५, १३४२७). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, प. १अ, संपूर्ण. म. रंगविजय, पुहि., पद्य, आदि: तुम बिन मेरी कुंन खबर ले; अंति: अब साहेब रंग सदा सुखकंदा, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पुण्य, पुहि., पद्य, आदि: जिनस्युं नेह बन्यो हे; अंति: पुन्य०अपनो हम तेरे पद पाय, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: नहि जान दंगी में तो नहि; अंति: संग रंग० मगसै रमु, गाथा-४. ४. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. दीपविजय, पुहि., पद्य, आदि: नेम प्रभु एतलो मान; अंति: ग्रही प्रभू बांहै, गाथा-७. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: एही सभव पड्या मोसे; अंति: नवल० झडाव पड्यावो, गाथा-३. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. म. रंग, पुहि., पद्य, आदि: तारीइं हो जिनराज; अंति: रंग के सधारोजी काज, गाथा-५. ७. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. दीपविजय, पुहिं., पद्य, आदि: हां रे साम रहो रे भवभव की; अंति: बलीहारी मै जाउं रे, गाथा-४. ८. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: रखे नाचता प्रभुजी आगल लाज; अंति: रूप०साचो सदा सुख एही जाणो, गाथा-४. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: सांही तु भलावे संखेस्वर; अंति: रंग कहे सधरे जमवारा, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०. पे. नाम, कृष्णभक्ति पद, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ ध्यानदास, पुहिं., पद्य, आदि: लीख्यो मृगजात लख्यो री हे; अंति: ध्यानदास० देखत नेन सरात, गाथा-३. ११. पे. नाम, पद्मजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन पद, म. जिन, पुहिं., पद्य, आदि: जयो जिनराज जयो री जिनराज; अंति: जिन कहे० इछित होइ काज, गाथा-४. १२. पे. नाम. २० जिन पद-सम्मेतशिखर, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. रतन, पुहिं., पद्य, आदि: मेरी वंदना हां रे मेरा; अंति: रतनमुनि० चरन सरन कुं, गाथा-४. १३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: जिन नाम कुं समरले या; अंति: नाम सच्या जुठा है सब जतन, गाथा-६. १४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. म. विजयप्रभ, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल पोकारे नेम पीया इसी; अंति: विजयप्रभ० राजुल चरन पेखरी, गाथा-४. १५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: पदकज लीनो भंग मांनु जिन; अंति: चरन बुध दीजे अमृति पद रंग, गाथा-३. १६. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. दीप, पुहिं., पद्य, आदि: बेचुंगी बिन मुल नीदतो ये; अंति: दीप के साहिब दुले, गाथा-४. १७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि *, पहिं., पद्य, आदि: वीरजी दृष्टि मान प्रेम; अंति: वांणी वरी सिवनारी हे माई, गाथा-५. १८. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.. मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: लेज्या लेज्या लेज्या हो; अंति: अमृत सुख कुं देजा, गाथा-३. १९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. रतनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारे तेरे मुखकमल की; अंति: रत्न० वधारीजें लाज बे, गाथा-४. २०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. भाग्यउदय, पुहिं., पद्य, आदि: साचो पारसनाथ कहावै; अंति: भाग्य० कंचन कर दीजे, गाथा-५. २१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: एसो ज्ञान बिच्यारे हो; अंति: रहेत समा भव भव काज समारे, गाथा-६. २२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: अपन तुरी ए बनता वृंद; अंति: पार कोरी तपरीया छिन घोरी, गाथा-४. २३. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ.५आ, संपूर्ण.. मु. राजनंदन, पुहिं., पद्य, आदि: छबि चंद्राप्रभु की; अंति: राजाराम० छबी परको वरन, गाथा-३. २४. पे. नाम, नेमराजिमती पद, पृ.५आ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: देखन दे मोये नेम; अंति: अमृत नजर० सुखदानी, गाथा-४. २५. पे. नाम, नेमराजिमती पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: काहां रे लगाई एती बेरीया; अंति: लिनो अमृत दी जाय के, गाथा-३. २६. पे. नाम, सुमतिजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मन वंछित पुरन सुमति जिणंद; अंति: पद पाये तोरके भव भय फंदा, गाथा-४. २७. पे. नाम, महावीरजिन पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. म. रत्न, पुहि., पद्य, आदि: विर तेरो वचन अगोचर; अंति: रत्न० टारीजे दुख दर, गाथा-४. २८. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: अटके निणुदि जिन चरने; अंति: नवलप्रभुरस पीऊंनें घटकें, गाथा-४. २९. पे. नाम. सुपार्श्वजिन पद, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४०१ मु. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज में देख्योरी मुख; अंति: हरखचंद प्रभु बंदा, गाथा-४. ३०.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. दानतिलक, पुहिं., पद्य, आदि: तु आतम हीत कर रे हो आतिम; अंति: एही दानतिलक भवतर रे हो, गाथा-४. ३१. पे. नाम. शेजजयगिरिमंडण ऋषभदेव स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रंजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिजिनं वंदे गण; ___ अंति: वितनोतु सतां सुखानि, श्लोक-६. ३२.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ७आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: हो कछु डार्यो रे० यद्पति; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) ९८६८५. (#) अजितशांति स्तव व प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७.५४११, १३४२२). १.पे. नाम. अजियशांति स्तवन, पृ. ४अ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)कित्तणे अजियसंतिस्स, (२)स्तुयमाने जिनेश्वरे, गाथा-४४, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अढाईजेसु दीवसमुदेसु पनरस; अंति: (-), (पू.वि. मात्र अड्ढाईजेसु व चउवीसजिन स्तुति हैं.) ९८६८६. (#) बृहत्शांति, लघशांति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-३(१ से ३)=७, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९४११, ११४३०). १.पे. नाम. वृहत्छांति, पृ. ४अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदिः (-); अंति: जैनं जयति शासनम्, (प.वि. मात्र अंतिम शब्द "शासनं" ही २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. __आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१८. ३. पे. नाम. सकलार्हतचतुर्दशि चैत्यवंदन, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: हरो० नमस्तस्मै, श्लोक-३२. ४. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. ५. पे. नाम. बीजनी थूई, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पूर मनोरथ माय, गाथा-४. ६. पे. नाम, अष्टमी स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, म. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिसहेसर रंग धरीनइं; अंति: सौभाग्य जंपइं उल्लासाजी, गाथा-४. ९८६९५ (+#) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-३(१ से ३)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८४९.५, १२४२३-३०). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक चैत्यवंदन अपूर्ण से संसारदावानल स्तुति गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ९८६९७. (#) जैन बाराखडी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१.५४१०.५, १०४३२). For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रुत बाराखडी, पुहि., पद्य, आदि: प्रथम नमो अरिहंत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६८ अपूर्ण तक है.) ९८६९८. (+) देवागम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२०.५४१०.५, ११४२८-३२). आप्तमीमांसा, आ. समंतभद्र, सं., पद्य, आदि: (१)मोक्षमार्गस्य नेतारं, (२)देवागमनभोयानचामरादि; अंति: विशेषाप्रतिपत्तये, परिच्छेद-१०, श्लोक-११५. ९८६९९ (4) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र व मांगलिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९.५४९.५, ११-१५४२६-२९). १. पे. नाम. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण. वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: त्रैकाल्यं द्रव्य; अंति: गाहनांतरसंख्या० साध्याः, अध्याय-१०, (वि. अंत में फलश्रुति संबंधी श्लोक लिखे हैं.) २. पे. नाम, मांगलिक श्लोक संग्रह, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: चिदानंदैकरूपाय जिनाय; अंति: मोक्षमार्गोपदेशकाः, श्लोक-७. ९८७०० (+) आप्तमीमांसा सह देवागमवृत्ति का स्तबकार्थ व अभिनंदनजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०४१०, २१४४०-५५). १.पे. नाम. आप्तमीमांसा सह देवागम वृत्ति का स्तबकार्थ, पृ. १अ-२१अ, संपूर्ण, वि. १९१४, आश्विन शुक्ल, २. आप्तमीमांसा, आ. समंतभद्र, सं., पद्य, आदिः (१)मोक्षमार्गस्य नेतारं, (२)देवागमनभोयानचामरादि; अंति: विशेषाप्रतिपत्तये, परिच्छेद-१०, श्लोक-११५. आप्तमीमांसा-देवागम वृत्ति का स्तबकार्थ, मु. सूरचंद, रा., गद्य, आदि: (१)नत्वा श्रीमज्जिनाधीशं, (२)मोक्षमार्गरा ज्ञान दर्शन; अंति: उपकाररै अर्थ कीनो है. २. पे. नाम. अभिनंदन स्तुति, पृ. २१आ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तुति, म. शोभनमनि, सं., पद्य, आदि: त्वमशुभान्यभिनंदननंद; अंतिः परिगतां विसदामिहरोहिणी, श्लोक-४. ९८७०२. (-) श्रावककरणी सज्झाय व दादाजीरो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, अन्य. श्राव. वालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१९.५४१०.५, १०x१७). १.पे. नाम. श्रावक करणी सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:साव०. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२२. २.पे. नाम. दादाजीरो छंद, पृ. ३अ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:दादा०. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: समरु माता सरसती; अंति: विजयसिंघ लीला वरी, गाथा-३२. ९८७०६ () औक्तिकशब्द संक्षेप, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-२(३,७)=७, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८.५४१०.५, १०x२२). औक्तिकशब्द संक्षेप, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: देवदेवं नमस्कृत्य जिनं; अंति: (-), (पू.वि. "उंधो अधोमुखं वांकू" पाठ तक है व बीच के पाठ नहीं हैं.) ९८७०७. (+) वज्रस्वामी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-५(१,७ से १०)=७, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. संशोधित., दे., (१९x१०, ९x१८). वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-७ गाथा-४ अपूर्ण तक व ढाल-१२ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-१४ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९८७११ (#) वैदर्भी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१९x१०, १५-१८x२६-३०). For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गावतां पामई लीलविलास, गाथा-२०९, (पू.वि. डाल- २ गाथा- ७ अपूर्ण से है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९८७१३.(+) भक्तामर, कल्याणमंदिर व वृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १०-४ (१ से ४) = ६, कुल पे. ३, प्र.वि. किसी अन्य प्रतिलेखक ने मूल पत्रांक को मिटाकर पत्रांक-१ से ६ दिया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (१९४१०, ११२७-३२). १. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., पे. वि. किसी के द्वारा पाठ मिटाया गया है. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-४२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तवन, पृ. ५अ-८आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति कुमुद० प्रपद्यते, लोक-४४. ३. पे. नाम. बृहत्सांति स्तोत्र, पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे. ९८७१६. (*) पगामसिझायसूत्र, संपूर्ण, वि. १८६० श्रावण कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल, बीकानेर, प्रले. श्राव. जीवराज राज्ये गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि ( खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २१.५x९.५, ९२३ - २६). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि चत्तारि मंगलं अरिहंत अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं सूत्र- २१. ९८७१८. (+४) कल्याणमंदिर स्तोत्र, पार्श्वजिन स्तोत्र व बृहत्शांति स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २६ १९(१ से १९) ७, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२१x१०, १०x२८). " १. पे. नाम. कल्याणमंदिर सूत्र, पृ. २०अ २३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि (-); अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २३आ- २४अ, संपूर्ण. ४०३ पार्श्वजिन स्तोत्र - शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः पूरय मे वांछित नाथ, श्लोक ५. ३. पे नाम, वृद्धशांति, पृ. २४अ-२६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अंति (-), (पू. वि. अंतिम सर्वमंगल गाथा अपूर्ण तक है.) ९८७२७. (*) अजितशांति स्तव, अपूर्ण, वि. १५५५, मध्यम, पृ. ६-१ (५) -५, ले. स्थल, वाराही, प्रले. मु. माणिक्यसागर (गुरु पं. इंद्रशेखर गणि); गुपि. पं. इंद्रशेखर गणि (तपागच्छ); पठ. श्राव. वासण पंचायणा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में किसी अज्ञात कृति का मात्र प्रारंभिक पाठ लिखा है., संशोधित., जैदे., ( १७.५x९.५, ११x२०-३२). १. पे नाम. अजितशांति स्तव, पृ. १अ ६अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत, अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०, (पू. वि. गाथा - ३० अपूर्ण से ३७ अपूर्ण तक नहीं है.) ९८७२९. (+#) कल्याणक टीप, संपूर्ण, वि. १७४३, मध्यम, पृ. १०, प्रले. श्रावि. नाथीबाई संभूदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०X९.५, ५X१०). २४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा., मा.गु.,सं., को., आदि: काती सुदी वदी ३ ५; अंति: (-). ९८७४०. (+) शतक नव्य कर्मग्रंथ ५ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. हुंडी: पंचमस्तबक, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (१९.५x१०, १६-२२४३१-३८). शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी ९४वी आदि नमिय जिणं ध्रुवबंधोदय अति: (-), For Private and Personal Use Only , (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ३६ तक लिखा है.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिनराज प्रते नमीय जिण; अंति: (-), पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९८७४६. (#) दीपावलीपर्व कल्प, अपूर्ण, वि. १७५८, वसुवर्गसंयम, मध्यम, पृ. ६-१(२)=५, ले.स्थल. नारदपुर, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०x१०, १८४४४). दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: संतु श्रीवर्धमान; अंति: सुरेंद्रादिभिः कृतः, श्लोक-२६३, (पू.वि, श्लोक-४५ अपूर्ण से ९४ अपूर्ण तक नहीं है.) ९८७६३. अवंतीसुकमाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५, प्र.वि. हुंडी:अयवंती, जैदे., (१५.५४९, ७X२०). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: (-), ढाल-१३, गाथा-१०७, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) ९८७६५ (#) सुदयवछसावलिंगा चोपी, अपूर्ण, वि. १८०५, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ५८-१६(१ से ७,१५ से २०,३९,५५ से ५६)=४२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८४९.५, ८x१९-२०). सदयवत्स सावलिंगा चउपई, मु. कीर्तिवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदिः (-); अंति: कीज्यो दया दयाल, गाथा-४४४, (पू.वि. गाथा-४९ अपूर्ण से है व बीच-बीच की गाथाएँ नहीं हैं.) ९८७६९ (#) प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९११, फाल्गुन कृष्ण, १३, जीर्ण, पृ. ४६, ले.स्थल. भाग्यनगर, प्रले. मु. भाग्यउदय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. लाडबजार मुंभणीगरलिनांके., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१९.५४१०.५, १०४२०-२३). प्रदेशीराजा रास *, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वंदण करीने इम कहई हू; अंति: मिच्छामि दुक्कडं मोयो रे. ९८७७५. आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९०६, आषाढ़ शुक्ल, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२-१५(१ से १३,१५ से १६)=२७, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. सा. रायकवरी (गुरु सा. पाराजी); गुपि.सा. पाराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी;आवसक., दे., (२२.५४१०.५, २-१५४१९-३५). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.म.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: खमामि सव्वस्स अहयंपि, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., श्रमणसूत्र अपूर्ण से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) साधप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिमसूत्र का टबार्थ नहीं लिखा है.) ९८७८० (+) ८ कर्म विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(१ से २)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (१९४९.५, ९४२४-३०). ८ कर्म विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वेदनीय कर्म अपूर्ण से गोत्र कर्म अपूर्ण तक है.) ९८७८५ (+) अभिधानचिंतामणीनाममाला- देवाधिदेवकांड, संपूर्ण, वि. १९१९, श्रावण शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. पं. वृद्धिचंद्र; पठ. श्राव. फतेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२०.५४१०.५, ७X१४). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), ग्रं. १४५२, प्रतिपूर्ण. ९८७९५ (2) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१०.५, ८x२६). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पूजा-४ अपूर्ण पाठ "वादकः आतमपरविभजन" तक लिखा है.) ९८७९७. (#) अष्टोत्तरी स्नात्रविधि, संपूर्ण, वि.२०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, १३-१६x२५-२८). अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तत्र प्रथम उपगरण; अंति: पणासेउ स्वाहा. ९८८०३. शांतिस्नात्र विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५-२(२,१४)=१३, दे., (१९.५४१०.५, १२४२०). शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अथ प्रतिष्ठायां वा; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., चैत्यवंदन विधि अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९८८०६. (+#) चंद्रलेखा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २८-१७(१ से १४,१७,१९,२२)=११, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९.५४१०.५, १४४३०). For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४०५ चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-११ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-२७ गाथा-१४ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९८८१२. (+#) श्रावक पडिकमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १६३१, आश्विन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, ले.स्थल. कोचर्बग्राम, पठ. श्राव. वीरजी शंकर सा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. लिखावट से प्रत १९वीं लग रही है. संभव है १६३१ में लिखी हुई प्रत की प्रतिलिपि हो., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४११, ११४२५). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: पडिकंतो वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) ९८८३१. (#) चैत्यप्रवाड आबूतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.६, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८.५४१०.५, १०४२१-२८). आबूतीर्थ स्तवन-चैत्यपरीपाटी, पं. रूपविजय, मा.ग., पद्य, आदि: पणमवि जिन चुवीश देवा सेवक; अंति: सुख भलेरा सुख सघलां पामशे, गाथा-४४. ९८८३४. (#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १५८३, कार्तिक शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १८-१३(१ से १३)=५, प्रले. पं. उदयशेखर गणि (गुरु पं. गुणतिलक गणि, पूर्णिमापक्ष); गुपि. पं. गुणतिलक गणि (गुरु गच्छाधिपति सुमतिरत्नसूरि, पूर्णिमापक्ष); गच्छाधिपति सुमतिरत्नसूरि (पूर्णिमापक्ष); पठ. श्राव. पूंजा मरघी दोशी (पिता श्राव. मरघी पासदत्त दोशी श्रीमाली); गुभा. श्राव. टापर पासदत्त दोशी (पिता श्राव. पासदत्त दोशी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८x१०, ९x१९). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामी जीण चोवीसं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) ९८८३५ (2) विषापहार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. रामचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१७४१०, ८x२४). विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहि., पद्य, वि. १७१५, आदि: विश्वनाथ विमलगुण ईश; अंति: कहें० सत्य साहीब को नाम, गाथा-४१. ९८८४२ (+#) धर्मोपरि त्रणमित्र सज्झाय व भक्तामरमंत्र श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७.५४१०, ११४२५-२८). १.पे. नाम. धर्मोपरि त्रणमित्र सज्झाय, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, वि. १७९४, आश्विन शुक्ल, ४, प्रले. मु. विनयविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. आत्मप्रतिबोध सज्झाय, ग. नयसुंदर वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन पामीय गुरू; अंति: वाचक० नित्य नित्य जयजयकार, ढाल-८, गाथा-८२. २.पे. नाम. भक्तामरमंत्र श्लोक, पृ. ६आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: ऋष हाटक कोटिभूर्जूटा; अंति: वृद्धि कुरु च चक्रेश्वरी, श्लोक-४. ९८८४५. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-९(१,४ से ७,१९,२४,२६ से २७)=२१, प्र.वि. हुंडी:वैद्यवल्लभ., जैदे., (१६.५४१०, ८x१८-२५). वैद्यवल्लभ, म. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदिः (-); अंति: रोहिरसो सुविशेष एव, (पू.वि. विलास-१ श्लोक-८ अपूर्ण से है व बीच बीच के पाठांश नहीं हैं.) वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ए हवे नामे चूर्ण देव वलभ. ९८८४७. (+) जिनसहस्रनाम गद्य स्तोत्र व अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-२(१,८)=८, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०४१४.५, ११४२३-२६). १.पे. नाम. जिनसहस्रनाम गद्य स्तोत्र, पृ. २अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पठ. मु. सुखचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. __ शक्रस्तव-अर्हन्सहस्रनाम, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: प्रपेदे संपदां पदम्, (पू.वि. "सर्वज्ञाय सर्वदर्शिने" पाठांश से है.) २. पे. नाम. अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, पृ. ५अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०६ www.kobatirth.org आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्म, वि. १२वी १३वी आदि अर्हनामापि कर्णाभ्यां अंतिः (-), (पू.वि. प्रकाश-८ श्लोक - ८१ अपूर्ण तक है.) ९८८५७ (+) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९९९, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. सदाशंकर विद्यारंगजी वोरा; पठ. श्राव. मूलचंद माधवजी पारख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नवपदपुजा ०., संशोधित., दे., ( २१.५X१३.५, ११x२५). नवपद पूजा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: श्रुतदायक श्रुतदेवता; अंतिः सम पद्मविजय गुण गायो, ढाल - ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९८८७६. (-) देवकी ढालादि विविध सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६०-१० (२,९,१२ से १३, २३ से २४,३५,४८ से ४९,५५)=५०, कुल पे. ९, प्र. वि. सभी कृतियो के स्वतंत्र पत्रांक होने से क्रमशः गिनकर पत्रक्रम दिया गया है. पत्रानुक्रम अस्त-व्यस्त है., अशुद्ध पाठ., दे., (१८.५X१३.५, ९x१८-२२). १. पे. नाम. देवकी ढाल, पृ. १अ -१६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी : श्रीदेवकीजी. मा.गु., पद्य, आदि उत्तम नगरी बुहारका अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पाठांश नहीं हैं.) " मु. . जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ३ तक है.) २. पे. नाम, नेमिजिन चरित, पू. १७- २२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं, पे. वि. हुंडी: श्रीनेमनाथजीरो चीरत. नेमिजिन चरित्र, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी सोरिपुर राजीयो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पाठ नहीं है.) ३. पे. नाम, साध वंदना, पू. २५अ-३४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., पे. वि. हुंडी साध 3 साधुवंदना लघु, मु. जेमल ऋषि, मा.गु, पद्य वि. १८०७, आदि (-) अति जैमल एही तिरणनो दाव, गाथा-५४, (पू.वि. प्रारंभिक पाठ अपूर्ण से है., वि. गाथानुक्रम अस्पष्ट है.) ४. पे. नाम. आवककरणी सज्झाय, पृ. ३४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५. पे नाम. आवक १२ व्रत सज्झाय, पू. ३६-४७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : बारव्रत. श्रावक बारहव्रत ढाल, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि पांच अणुव्रत परवरया; अंतिः ईम व्रत निपावो बारमो, डाल-११. ६. पे नाम औपदेशिक कुंडलिया, पृ. ४७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: हरि वण साथी कुणे है कीइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७. पे नाम. भोजराजभूप माघपंडित वार्ता, पृ. ५० अ-५३अ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि एक दिनरा समाजोगरे विषै अति माघपिंडत आपरे सर पदारीया, ८. पे. नाम. अरणिकमुनिवर सज्झाय, पृ. ५४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि अरणिक मुनिवर चाल्या; अंतिः (-), (पू. वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) ९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५६अ -६०आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठ हैं., वि. अलग-अलग सज्झायों के छुटक पत्र हैं.) ९८९०७ (+) पार्श्वजिन छंद आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९५७, फाल्गुन कृष्ण, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७- २ (१ से २) =५, कुल पे. ४, ले. स्थल. उण, प्रले. मु. विवेकवर्द्धन; पठ. मु. मणीलाल; अन्य. पं. हंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री धर्मनाथजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., ( १७१३, ६x१०-१२). १. पे. नाम. पार्श्व छंद, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, शंकर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता सेवकां अंति जोड० पार्श्वदेवाधिवर, गाथा - ७. २. पे नाम. सुभाषित लोक संग्रह, पू. ३आ-४आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह, पुहि., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि विद्या रूपं कुरुपाण; अंतिः भागं परमाणु स उच्यते, गाथा-२९३. पे. नाम केसरीयाजीनो छंद. पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: श्रीआदि करण आदि जगत आदि; अंति: दिपविजय० सब कीरत कहै, गाथा- ६५. ४. पे नाम. आदिजिन कवित, पृ. ७आ, संपूर्ण. Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ आदिजिन कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: आदीजीणंद नमे नर इंद; अंति: सुंदर काय नमे सुख थाय, पद-१. ९८९४६. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४९, चैत्र शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १५, प्रले. राधेलाल मिश्रा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१७४११, ७X९-२५). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०२. ९८९५८. वसुधारानाम धारणी महाविद्या, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, दे., (१७४१०.५, १२४१६). वसधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: शृणोति भोगं च करोति. ९८९६३ (+#) नलदवदंती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २४-११(१ से ११)=१३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१६४१०.५, १०x१८-२३). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२ ढाल-५ से खंड-३ ढाल-५ गाथा-१६ तक है.) ९८९९०. शत्रुजय स्तवन व नेमिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (१६४१०, ११४१८-२५). १.पे. नाम. शत्रुजय स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, मा.गु., पद्य, आदि: वागवाणि सुपसाउ करे; अंति: फल होसइ निर्मल देह, गाथा-३४. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३आ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नेमिजिणंद समुद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ९८९९१ (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.प., अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(२)=५, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१६४९, १५४१८-२२). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छामि; अंति: (-), (पू.वि. विशाललोचन सूत्र तक है व "जिणवरा तित्थय" से "णुप्पेहाए वद्धमाणीए" के बीच के पाठ नहीं हैं.) ९८९९२ (+) शीलोपदेशमाला, पिंडशुद्धि प्रकरण व योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६२-५२(१ से ५२)=१०, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१५.५४८.५, ९४२६). १. पे. नाम, शीलोपदेशमाला, पृ. ५३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: णवल्लहायरिअ० बोहिफलं, गाथा-११५, (पृ.वि. श्लोक-१०९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पिंडशुद्धि प्रकरण, पृ. ५३आ-६२अ, संपूर्ण. पिंडविशद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: बोहि गाथा-१०३. ३. पे. नाम. योगशास्त्र, पृ. ६२अ-६२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. योगशास्त्र-लघ योगशास्त्र, संक्षेप, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दर्वाररागादि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण तक है.) ९९००५ (+) पगामसज्झाय सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(४)-६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:वंदेत्तु., संशोधित., जैदे., (१५.५४१०, १०x१६). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: (-), (पू.वि. "पारीत्तावणियाए पांणीईचायकिरियाए" से "चउददसहिभूयागमिहिं" के बीच व "मित्तिमेसवभूएसु वेरमज्झण" के बाद के पाठ नहीं हैं.) ९९००९ (+#) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ व चतुष्क भंडार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-२(१,९)=१०, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४११, ५४२०). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. २अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण से ३० अपूर्ण तक व ३४ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मानवंत पुरुषनई वरइ. २. पे. नाम, भक्तामर शेषकाव्य, पृ. १२आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: गंभीरताररविपुरि; अंति: गुणैः प्रयोज्यः, श्लोक-४. ९९०१३. (#) ११ अंग सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. हुंडी:अंग., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०x१२, १०४२१). ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: आचारांग पहेलु का; अंति: जस० होजो निशदीस रे, स्वाध्याय-११. ९९०१८. (+) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. राघव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१९.५४११,१६४३५). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. रूप, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन मझ ततसारं; अंति: परि धर जयवंत गवडीधणी, गाथा-११३. ९९०२१. पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४३, भाद्रपद कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. छावणी, प्रले. कीरयाराम व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१९४११, १०४२२). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नाम पुण्यप्रकास ऐ, ढाल-८, गाथा-१०२. ९९०२४. (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५७-४९(१ से ४८,५४)=८, कुल पे. ८, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१७४११.५, १८४३०-३३). १. पे. नाम. १८ पाप स्थानक निवारण सज्झाय, पृ. ४९अ-५२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: वाचक जस इम भाखेजी, सज्झाय-१८, ग्रं. २११, (पू.वि. सज्झाय-७ गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, वैरस्वामी स्वाध्याय, पृ. ५३अ, संपूर्ण. वज्रस्वामी सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गणधर दश पूरवधर सुंदर; अंति: ऋद्धिविजय प्रभु वंदा, गाथा-१३. ३. पे. नाम, वयरस्वामी स्वाध्याय, पृ. ५३आ, संपूर्ण. वज्रस्वामी-रूखमणी सज्झाय, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पदमिणी पोईणी पातली; अंति: हुं प्रणमं मुनि तेह, गाथा-१९. ४. पे. नाम. रेवतीश्राविका सज्झाय, पृ. ५५अ-५५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंघासण बैठी; अंति: आनंद हर्ष अपार रे, गाथा-१०. ५. पे. नाम. कर्मोपरि सज्झाय, पृ. ५५आ-५६अ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, म. ऋद्धिहर्ष, मा.ग., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१८. ६. पे. नाम. गजसुकमालमहाऋषि स्वाध्याय, पृ. ५६अ-५६आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमिसर जिनवर; अंति: दान के एहवा मुनीवरू, गाथा-१७. ७. पे. नाम. हितोपदेश स्वाध्याय, पृ. ५६आ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मयगल मातुरे वनमाहि; अंति: कहइ ते पाम शिव माग, गाथा-७. ८. पे. नाम, नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ. ५७अ-५७आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वारी जाउ अरिहंतनें; अंति: ज्ञानविमल० वाधो रे, ढाल-५, ___ गाथा-४१. ९९०३१ (+) आत्मशिक्षा भावना, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१)=१०, ले.स्थल. लसकर, प्रले. सा. जीतकंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (१८.५४११, १३४२५). ७ For Private and Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४०९ आत्मशिक्षा भावना, मु. रतनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: ते लहेसी सिवठाम, गाथा-१८५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१७ अपूर्ण से है.) ९९०३२ (#) शांतिजिन छंद, चैत्यवंदन विधि व महावीरजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-७(२,५,७,१०,१२ से १३,१६)=१०, कुल पे. ७, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८x११.५, ९x१६-२१). १.पे. नाम. संतिजिन स्तवन, पृ. १अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामी; अंति: मनवंछित शिवसुख पावे, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से १३ तक नहीं हैं.) २. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. ४अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से १३ अपूर्ण तक व गाथा-२० अपूर्ण से नहीं हैं.) ३. पे. नाम. महावीरजी तपस्तवन, पृ. ८अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन-तपगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: स्वामी आपो सुख घणा, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से हैं.) ४. पे. नाम, महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक हैं.) ५. पे. नाम. चैत्यवंदन विधि, पृ.११अ-१५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. गु.,प्रा.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: जैन जयति शासनम्, (पू.वि. प्रारंभिक अन्नत्थ पाठ अपूर्ण से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ६.पे. नाम. १४ श्रावकनियम गाथा, पृ.१५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित१ दिव्व२ विगइ३; अंति: (-), (पू.वि. 'सयण९ छवणेण१०' पाठ तक है.) ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-स्तवनात्मक , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पार्श्वजिन व नेमिजिन संबंधी पद्य ९९०४४. (#) जिनप्रतिमा हंडी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-१(५)=१०, पठ. श्राव. लाधा मूलजी साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१६.५४१२, ९x१८). जिनप्रतिमाहंडी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुयदेवी हीयडै धरी; अंति: जिनहरष कहंत कि, गाथा-६७, (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से २८ अपूर्ण तक नहीं है.) ९९०४९ (+#) भवनदीपक व षट्पंचाशिका, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रावण कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. २, प्रले. धनरूप शीवजी ओझा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७४११.५, ११x१८-२२). १. पे. नाम, भुवनदीपक, पृ. १आ-१४अ, संपूर्ण. आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्री विघ्न राजप्रसादतः, श्लोक-१७४. २. पे. नाम, षट्पंचाशिका, पृ. १४अ-१९अ, संपूर्ण. आ. पृथुयशा, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य रविं० वराह; अंति: जातिश्च लग्नपात्, अध्याय-७, श्लोक-५६. ९९०५२. () गौतमपृच्छा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१६४११, १२-१५४१८). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तक ह.) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९९०६८ (#) लावणी, स्तवन व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)=७, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७.५४११.५, १०x२०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १९१६, श्रावण शुक्ल, ११. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपर गोडीजी इतिहास वर्णन, म. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: जिण नाम अभिराम ते, ढाल-५, गाथा-५५, (पू.वि. ढाल-४ गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमनाथजीकी लावणी, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. राजिमतीसती विलाप लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: दे गया दगा दिलदार; अंति: जीनदास॰बेठ विनती गाइ, गाथा-४. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-). ९९०६९ (#) सर्वमंगल स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-३(१ से २,१८)=१६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. प्रत्येक पत्र में एक-एक गाथा लिखी है, पत्र के एक ही ओर लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७४११, ४४१०). सर्वमंगल स्तव, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ से १७ व १९ तक है.) ९९०७१ (#) आचारछत्रीसी, कीवाड बावनी व दैनिक लेन देन आयव्यय सूची, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २५-३(१ से ३)=२२, कल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१६.५४११.५, ९-१३४२०-२५). १. पे. नाम. आचारछत्रीसी, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुणज्यो भवियण प्राणी, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. कीवाड बावनी, पृ. ४अ-८अ, संपूर्ण. कडवाछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: सुत्र सुद्ध परूपणा; अंति: सूत्रपाठतणे अनुसार, गाथा-४५, (वि. अंत में संक्षिप्त दैनिक आयव्यय दिया है.) ३. पे. नाम. दैनिक लेन देन आयव्यय सूची, पृ. ८अ-२५आ, संपूर्ण. सामान्य कति*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: उलणी पावे. कता अंगोचारी; अंति: (-). ९९०७२ (+#) पद, अष्टक व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ८-२(३,६)=६, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१६.५४११, १२४१६). १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: जिणचंद करमदल जीपतो, गाथा-५. २.पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो लघु स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर मूरति सूरति; अंति: विनतीक्रम वच मन साखै, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-परिसादानी, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारी हो साहिब; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. अतीतनागतवर्तमानजिननाम जिन स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: (-); अंति: प्रणमे सदा जिणचंदसूरि ए, ढाल-५, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) ५. पे. नाम. गौतम अष्टक, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी गौतम प्रणमी; अंति: उदय प्रगट्यो परधान, गाथा-८. ६. पे. नाम. महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७. पे. नाम. सम्मेतशिखर होरी, पृ. ७अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४११ सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: मधुवन मे जाय मची; अंति: सुधक्षमा कहै करजोडी, गाथा-२. ८. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. चंद, पुहि., पद्य, आदि: यादव मन मेरो हर लीयो; अंति: चंद कहे मन हरखियो रे, गाथा-५. ९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, वि. १८३९, आदि: वीर जिणंदजीसुं प्यार लागो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ९९०८८.(+) उपसर्गहर स्तोत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४९, १४४३८-४२). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ लघवृत्ति, आ. पूर्णचंद्राचार्य, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: नमस्कृत्य परब्रह्म; अंति: द्यावादाभिधग्रंथात्, (वि. मूल का प्रतीक पाठ लिखा है.) ९९०९४. (+#) षट्स्थानक प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. २००-१३४(२ से १३०,१३९ से १४३)=६६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४८.५, १२४३१-३६). षट्स्थानक प्रकरण, आ. जिनेश्वरसूरि , प्रा., पद्य, आदि: कयवयकम्मयभावो सीलत्त; अंति: भणइ सयं भाणइ परेण, सर्ग-६, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के गाथांश नहीं है.) षट्स्थानक प्रकरण-टीका, उपा. जिनपाल, सं., गद्य, वि. १२९२, आदि: धर्मोपदेशनविधौ; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठांश नहीं है व अंतिम गाथा की टीका अपूर्ण तक है.) ९९१०२ (#) प्रतिक्रमणसूत्र, स्थिविरावली व अतिचारादि प्रकरण संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९२-५०(१ से २,८ से ११,१६ से २२,३२ से ३४,४१ से ४५,४७ से ५६,६१ से ६२,६६ से ८२)=४२, कुल पे. ११, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८.५४८.५, ९४२७-३०). १.पे. नाम. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अंचलगच्छीय, पृ. ३अ-१२अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: भगवन् अग्रहो कायव्वो, (पू.वि. "चउवीसंपि केवली" पाठ से है व बीच के पाठांश नहीं है.) २. पे. नाम. नंदीसूत्र-स्थविरावली, पृ. १२अ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४६ तक है.) ३. पे. नाम. श्रावक अतिचार, पृ. २३अ-३१आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्रावकलघुअतिचार-अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तहा विवराय परूवणाएय, (पू.वि. २२ अभक्ष्य वर्णन अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. सर्वजिन स्तवन, पृ. ३५अ-४०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३६ अपूर्ण से १०६ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. ४६अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: सुखी भवंतु लोकाः, गाथा-४४, (पू.वि. गाथा-४३ अपूर्ण से है.) ६.पे. नाम. अजितशांति स्तवलघु-अंचलगच्छीय, पृ. ४६अ-४६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क. वीर गणि, प्रा., पद्य, आदि: गब्भ अवयारि सोहम्म; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७. पे. नाम. आदिनाथ जन्माभिषेक, पृ. ५७अ-५८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तुम्ह दियो वर मुक्ति, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) ८. पे. नाम. २४ जिन कलश, पृ. ५८अ-६०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __मा.गु., पद्य, आदि: कलस निसुणउ२ रिसह अजीयस्स; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ९. पे. नाम, गुरु स्तुति, पृ. ६३अ-६४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुगुण स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जंदीसय सुगुरु मुहकमलं, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) १०. पे. नाम, जयकेसरीसूरि गुण स्तुति, पृ. ६४आ-६५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जयकेसरीसूरि गुरुगुण स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: सयलसुरअसुरनरसामिमयसेवीयं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ११. पे. नाम. योगशास्त्र, पृ. ८३अ-९२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-१ श्लोक-७ अपूर्ण से प्रकाश-२ श्लोक-८६ अपूर्ण तक है.) ९९१०३. (+#) चतुःशरण प्रकीर्णकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १६८३-१७७९, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. ५, प्रले. आ. पद्मरत्नसूरि (गुरु भट्टा. देवरत्नसूरि); गुपि. भट्टा. देवरत्नसरि; पठ. श्राव. हरीचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्री पार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४९, १०४२०). १. पे. नाम. चोसरण, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चोसरण. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३. २.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ६अ-९आ, संपूर्ण, वि. १६८३, ?, फाल्गुन शुक्ल, १४, शुक्रवार, पे.वि. हुंडी:चउसजीव. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. ३. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ९आ-१४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चोसन०जी०. ___आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. ४. पे. नाम, सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १४अ-१६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सक०. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: श्रीवीर भद्रं दिशः, श्लोक-२९. ५. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १६अ-१७आ, संपूर्ण, वि. १७७९, माघ शुक्ल, १, ले.स्थल. सीरोहिनगर, पे.वि. हुंडी:शांति. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूर श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ९९१०६. (+#) नवस्मरण व लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७.५४८.५, ९-१२x२४-२७). १. पे. नाम, नवस्मरण-स्मरण ५, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. नवकार मंत्र, उवसग्गहर, संतिकर, तिजयपहुत्त व नमिऊण स्तोत्र है.) २. पे. नाम, लघुशांति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांति निशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ९९१११. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७-२१(१ से २१)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (१६.५४१०, ९४२१). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति स्तव गाथा-६ अपूर्ण से ३८ अपूर्ण तक है.) ९९१२३. (+#) पच्चीसी, विनती व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४३, पौष शुक्ल, ३, जीर्ण, पृ. ८३-५(३५ से ३९)-७८, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१५.५४१०, ११४२०-२३). १.पे. नाम. राजुलपचीसी आदि पदादि संग्रह, पृ. १अ-३४आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः पत्र व पत्रांक भाग खंडित होने से पाठ अस्त-व्यस्त है. अतः राजुलपचीसी के अलावा अन्य कृतियाँ भी इसमें समाहित है. राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम हि समरूं; अंति: न सब संघ को मंगल करे, गाथा-२६, (वि. इसके साथ-साथ ज्ञानपचीसी, उपदेशपचीसी, सोल सुपना, ११प्रतिमा पद व आध्यात्मिक पदादि संकलित है.) २.पे. नाम. साधारणजिन विनती, पृ. ४०अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org औपदेशिक सज्झाय, जै. क. भूधरदास, पुहिं, पद्य, आदि (-); अंति भूधरदास० ढील न कीजे, गाथा १२, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ४०-४० आ, संपूर्ण. जै.. भूधरदास, पु,ि पद्य, आदि ऐसी समझ के सीरघुल अति भूधर० ऐसो नफा रहै नही मूल, गाथा-४. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: देख्या दुनियां बीचि, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४२अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. धानत, पुहिं., पद्य, आदि (-); अंति होय रह्यो भीखारी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) ६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पू. ४२-४३अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जै.क. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: आतमराम सयाना कोई झूठा, अंति: यानत० मुक्तिरमणी कुं पासी, गाथा-९. ७. पे. नाम. साधारणजिनविनती स्तवन, पृ. ४३-४४आ, संपूर्ण. साधारणजिन विनती स्तवन, पंन्या. भूधर, मा.गु, पद्य, आदि त्रिभूवनगुरु स्वामी; अति भूधर० निर्भय कीजिये जी, गाथा - १८. ८. पे. नाम. मांगीतुंगी सज्झाय, पृ. ४४आ-५०आ, संपूर्ण. मांगीतुंगीतीर्थ सज्झाय, मु. अभयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि हां जी श्रीपति नित्य जिण; अंति: अभयचंद० पलाय सब दूरि रे, गाथा-४५. ९. पे. नाम. आदित्यवार कथा, पृ. ५१अ-८३आ, संपूर्ण, पे.वि. बीच-बीच में अन्य कृतियाँ भी समाहित है. पत्रांक जर्जरित होने से पाठानुक्रम अस्त-व्यस्त है. ४१३ मा.गु., पद्य, आदि रिसहणाह प्रणमु जिणंद, अंति: नर सुरंग देवता होय, गाथा १८९. ९९१३० (#) श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( १६४९.५, १४x२५). आवकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा. गु, गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि अति: (-). (पू.वि. वीर्याचार स्थूल अपूर्ण तक है.) ९९२२७ (+) वसुधारा, संपूर्ण, वि. १९२३, वैशाख शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल. कोटा, पठ. मु. नयनसुख ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : वसुधारा., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (१७X११, १०x२२). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि संसारद्ववदैन्यस्य प्रतिहं अति: (१) भाषितमध्य नंदन्निति, (२) शृणोति भोगं च करोति. ९९२२८. (+#) स्तवन, पद व औषधादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. १०, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५X११, १७२२-२४). १. पे. नाम. शेत्रुंजय स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि सेगुंजतीरथ सासतो; अंति: खेम० पमणए सुखकरु, गाथा-१७. २. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि पासजिणेसर आस पूरीजे मनतणी, अंतिः खेम ए वयण साचइ दिल वीनवई, गाथा- ७. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रूपविजय, रा. पद्म, आदि पुरसादाणी पासजी थे अति रूप० दैज्यो वारंवारजी, " " For Private and Personal Use Only गाथा-७. ४. पे नाम. पार्श्व पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणामंडन, आ. जिनलाभसूरि, रा. पद्य वि. १८२१, आदि वरकांणा प्रभु शाही; अंति: ए वांद्या श्रीजगदीस जी, गाथा-७, (वि. १८२१, चैत्र शुक्ल, १३) ५. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारी हो साहिब; अंति: विनती सेवक जाणी कृपा करो, गाथा-४. ६. पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन-रतनापुरमंडण, मु. खेम, रा., पद्य, आदि: विजयासुत वड भाग थै; अंतिः सारेज्यो खेमनी आस रे, गाथा-१५. ७. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: माहरो मन मोह्यो रे; अंति: धरीये रिदय मझार, गाथा-५. ८. पे. नाम. पार्श्वनाथ पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: गुण गिरुऔ गोडी धणी; अंति: जिनहरख० प्रांण आधार, गाथा-७. ९.पे. नाम. पार्श्वनाथ पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: अंखीयां हरखण लागी; अंति: भव भय भावठ भांगी, गाथा-४. १०. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ४आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औषध संग्रह **, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९९२६०. (#) श्रीसारबावनी, संपूर्ण, वि. १७८७, वैशाख कृष्ण, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. साथशिणनगर, प्रले. पंन्या. जसवंतविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्राविक सा. केसाजीतस्यपुत्र अमीचंद रे बंगले बेठा लिखी छे., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६४८.५, १४४३३). श्रीसारबावनी, मु. श्रीसार कवि, मा.गु.,रा., पद्य, वि. १६८९, आदि: ॐ ॐकार अपार पार न; अंति: उच्चरै सांभलता पूजै रली, गाथा-५६. ९९२६३. (+#) नारचंद्र ज्योतिष सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४२+१(१६)=४३, प्र.वि. हंडी:नार, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१४४९, ७७१७). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२३८ तक लिखा है.) ज्योतिषसार-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: पडवा सठइग्यारस नंदातिथ; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९९२६४. (+) पद्मावती स्तोत्र रत्न, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पीतांबरनगर, प्रले. पं. परमसुंदर (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:स्तोत्रमंत्रस्य, संशोधित., जैदे., (१३.५४८.५, ९४२३). पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाण; अंति: संपदःस्युनिरापद, श्लोक-३३. ९९३५९. (+) चार प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, प्र.वि. संशोधित., दे., (११.५४६.५, ६४८-१६). ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० परिसिधि, ढाल-५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-२ से है.) ९९३६४. (+#) गणेशाष्टकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२-२९(३ से १०,१२,१५,१७ से २१,२३,२६ से ३६,३९ से ४०)=१३, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१३.५४७, ६४१८-२०). १. पे. नाम. गणेशाष्टक, पृ. १आ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: ॐ अस्य श्री महागणपतिः देव; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारंभिक न्यासविधि तक है.) २.पे. नाम. सद्योमति प्रदायक स्तोत्र, पृ. ११अ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:सरस्व०. सरस्वती स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: शुक्लपुष्पावतंसकां, श्लोक-११, (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. कालभैरवाष्टक-काशीखंडे, पृ. १३अ-१६आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., पे.वि. हुंडी:भैरव०. सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. न्यासविधि अपूर्ण से श्लोक-२ अपूर्ण तक व श्लोक-५ अपूर्ण से ७ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४१५ ४. पे. नाम. वेंकटेश्वर कवच, पृ. २२अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं., पे.वि. हुंडी:वेंकट०. सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. "नित्यं यद्विपुलाश्रयं" पाठ से "इंद्राधिष्ठत लोकपाल" पाठ तक व "ॐ नमो नमस्ते" पाठ से "आयुष्यं लभते" पाठ तक है.) ५.पे. नाम. जिनरक्षा स्तोत्र, पृ. ३७अ-३८आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., पे.वि. हंडी:जिनर०. सं., पद्य, आदि: सर्वातिशयसंपूर्णान; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१४ अपूर्ण तक है.) ६. पे. नाम. सत्तरसय स्तोत्र, पृ. ४१अ-४२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:सत्तर०. तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेय, गाथा-१४, (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण से है.) ७. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, पृ. ४२अ-४२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) ९९३८१. (+#) संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १७९५, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१२४७, ८x१८-२०). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरूं; अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-७४. ९९३८२ (4) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२-१०(१ से ८,१०,१८)=१२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक-१०७ से १२० भी है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (११.५४७.५,११४२५-२८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९८ अपूर्ण से ११० अपूर्ण तक, गाथा-१२३ अपूर्ण से २०८ अपूर्ण तक व गाथा-२१९ अपूर्ण से २६७ अपूर्ण तक है.) ९९३९३. (+) पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७-८(१ से ३,५ से ७,१४ से १५)=९, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (१३.५४७.५, ८x१५). १. पे. नाम. अज्ञातजैन पद्य कृति, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से १३ अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. णमोथुणं स्तवन, पृ. ८अ-९अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.. णमोत्थुणं गीत, मु. विनयचंद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: विनय० पिता तुम मायो, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. जै.क. भूधरदास, पुहि., पद्य, आदि: ऐसी समझ कै सिरधुर ऐसी समझ; अंति: ऐसो नफा रहै नहि मूल, गाथा-४. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १०अ-१३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: पाप पछाडे नरक में रमत; अंति: (-), (पू.वि. "तिलतेलेन माधव अॅसिझामणीरा" पाठांश तक है.) ५. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १६अ-१६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. महावीरजिन स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सासणना नायक सांभलो, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-५ से है.) ६. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १६आ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ९९३९७. (+#) स्तुतिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रावण शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. १०, ले.स्थल. पिंडवाडा, प्रले. मु. अमरविजय (गुरु पं. मेघविजय गणि); गुपि.पं. मेघविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (८८५) लेखण उर मस डबडी, (१३७५) न दोसो दियते आत्मा, जैदे., (११X८, ८x१३). १. पे. नाम. पंचतीर्थंकर स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. २. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ४. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं सम्मोह; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ५. पे. नाम. पाखीक स्तुति, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. __ पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ६. पे. नाम. आदिनाथ स्तुति, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंद ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ७. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. ८. पे. नाम. दशमीपार्श्व स्तुति, पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण. __ पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर पास; अंति: धीरविजय० सुखदाय जी, गाथा-४. ९. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. ११आ-१३आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ संभाली; अंति: श्रीसंघ विघन निवारी, गाथा-४. १०. पे. नाम. साधारण स्तुति, पृ. १३आ-१५अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अंति: माई जो तूंसे अंबाई, गाथा-४. ९९४०७. (#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२-६(१,४ से ५,८,१३ से १४)=१६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (११.५४८.५, ६४१२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४८, (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से ५ अपूर्ण तक, श्लोक-८ अपूर्ण से १३ अपूर्ण तक व श्लोक-२५ अपूर्ण से ३० अपूर्ण तक है.) ९९४५२. संयोगी भांगा यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२०४७, १-२४१२). संयोगी भांगा गाथा- यंत्र, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). ९९४५३. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४५-७(१ से २,५ से ८,३९)+१(२९)=३९, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (१९.५४७, ८४३०-३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३ गाथा-४ अपूर्ण से अध्ययन-४ सूत्र-१० तक, सूत्र-१८ अपूर्ण से अध्ययन-९ उद्देश-२ तक व उद्देश-३ गाथा-१० अपूर्ण से चूलिका-२ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ९९४७७ (+) स्तवन, स्तोत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(७)=९, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१८४८.५, ९४२५). १. पे. नाम. चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. २. पे. नाम. पार्श्वदेव स्तोत्र, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शृंखला वृद्धिकाव्य, सं., पद्य, आदि: सुरनरासुर नायक पूजित; अंति: सुक्ति विद्या विलासै, श्लोक-७. ३. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ख्यातोष्टापदपर्वतो; अंति: उर्द्व तुमे मंगलं, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४१७ ४. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. ५परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: अहँतो भगवंत इंद्रमहिमा; अंति: पतयः उर्दूतुमे मंगलं, श्लोक-३. ५. पे. नाम. १६ सती स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंत वो मंगलम, श्लोक-१. ६. पे. नाम. पार्श्वजिनजीरो स्तोत्र, पृ. ५अ-८अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु वो; अंति: प्राप्नोति स श्रियम्, श्लोक-३३, (पू.वि. श्लोक-१९ अपूर्ण से ३० अपूर्ण तक नहीं है.) ७. पे. नाम, तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. ८अ-१०अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके रविशशि; अंति: सततं चैत्यमानंदकारी, श्लोक-१०. ९९४७८. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र व रिषभजिनजीरो छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-२(१,३)=१०, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४८, ६x२०-२३). १.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. २अ-१२अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदिः (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से ७ अपूर्ण तक व श्लोक-१२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. रीषभदेजीरो छंद, पृ. १२अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. आदिजिन स्तवन-धूलेवामंडन, मा.गु., गद्य, आदि: वरदाईमाईवडी रहे सदा; अंति: (-), संपूर्ण. ९९४७९ (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५, पठ. मु. खुस्याल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०४८, ८-१०४२८-३०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ९९४८५ (2) स्तवन, सज्झाय व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प.६, कल पे.८, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८४८, ९-१०४२५-२९). १.पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलो गणधर वीरनो रे; अंति: वीर नमे निसदिस, गाथा-८. २. पे. नाम. रेवतीशती स्वाध्याय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.. रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिघासण रेवती बेठी; अंति: दानथी जय जयकार रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. चेतनसुमतिमिलन सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. म. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अवन्यासीनी सैझडीई रंग; अंति: रूपचंद० प्रीत वधाणीजी, गाथा-६. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ५. पे. नाम. बीजतीथि स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ६. पे. नाम. पंचमीतीथि स्तुति, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुद दिन पांचम; अंति: ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४. ७. पे. नाम. एकादशी तीथिस्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, म. गणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुणहर्ष० तणा निशदिश, गाथा-४. ८. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा-४. ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: संघने विघन निवारी, गाथा-४. ९९४८६. (#) सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८४८, ८-१०४२३-२६). १.पे. नाम. मृगापुत्रनी सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सोहामणु; अंति: सहज० तास प्रणाम रे, गाथा-२३. २.पे. नाम. दीधमान सज्झाय, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. दानाधिकार सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: समरूं सरसति सामिणीजी; अंति: भणैजी पुन्य तणै परमाण, गाथा-१६. ३. पे. नाम, थुलिभद्र सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रितलडी न कीजे रे नारी; अंति: चुंनडी रे सुंदर एहीज रीत, गाथा-४. ४. पे. नाम. नेमराजुल चातुर्मास, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, म. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल छोडि नेमजी; अंति: इम जपे सीस जिनेंद्र, गाथा-९. ५.पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ.५अ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. सूरजचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वारी जाऊंगोडी जीरा नामने; अंति: सुरचंद० अब मुज पार उतार, गाथा-७. ९९५१९ (+) ऋषिमंडल स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २६-१०(१ से ७,२२ से २४)=१६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (१३.५४१०.५, ७X१४). १.पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ८अ-२६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: स्तोत्रमुत्तमम्, श्लोक-१०९, ग्रं. १५०, (पू.वि. श्लोक-९५ से ९९ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. २६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण तक ९९५२८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९०, कुल पे. ८०, जैदे., (१६.५४१०.५,१३४२२-२५). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजी लघु स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनलाभसरि, मा.ग., पद्य, वि. १८१७, आदि: आज आणंदघण उमट्यौ रे; अंति: श्रीजिनलाभसूरीस, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्वनाथजी लघु स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आ आछी वेला औ आछौ साज; अंति: जिनलाभ० मो सुख वास, गाथा-७. ३. पे. नाम, लोद्रवपुर स्तवन, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: धन धन धुनौ पाटण लुद्रवौ; अंति: हरख धरि बहु शुभ मने, गाथा-१३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-वाराणसी मंडन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वाराणसीमंडन, मु. रूप, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय हो तिहुअण राया; अंति: रूप गुनी गुन गायाजी, गाथा-७. ५.पे. नाम. योगी महात्म्य पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. योगी माहात्म्य पद, म. राज, मा.गु., पद्य, आदि: आली धन ओ पीओ; अंति: नखसिख परिवारु डारी, गाथा-३. ६. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणी, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org ४१९ पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. वसतो वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १८१७ आदि जय जय चिंतामणिस्वामी निज अंति वाचक व गुण गा रे, गाथा- १३. ७. पे. नाम लोद्रव स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुरमंडण, वा, विनय, मा.गु., पद्य, आदि लोद्रपुर उच्छव मंड्यौ भवीया अति: विनय० दिन चढतौ दावौ हे, गाथा ९. ८. पे नाम औपदेशिक पद, पू. ६अ, संपूर्ण, मु. . जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कहा रे अग्यानी जीव; अंति: जिनराज० सहज मिटावै, गाथा- ३. ९. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि जब जाण्यो पीयपाहुणो तब ते अति कहां रोए राज न लहिई, गाथा- ३. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. राजसागर, मा.गु, पद्य, आदि मेरो नाह नहेजो अब मई अति राज० करि कठटटटिण करेजो, गाथा-३. ११. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. नवल, मा.गु., पद्य, आदि: चउरे मास वरस ही चउरे मग; अंति: आली री मेरे किछु न विसाइ, गाथा - ३. १२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: कउण धरम कौ मरम लहैरी; अंति: राज० पावत है री, गाथा-३. १३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि: तु भ्रम भुल्यो रे; अति: तोलु राज न काज सरइ, गाथा-३. १४. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. जिनराज, मा.गु. पच, आदि मेरे मोहन अब कुण पुरः अंतिः इक अपणी आवत साध कमाई, गाथा ३. - १५. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- वैराग्य, वा. जिनराज, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि हमारे माई कंत दिसार कीनो; अंति जिनराज० सांबल साथी न लीनो, गाथा ३. १६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. राज, पुहिं., पद्य, आदि: आज प्रीउ सुपनै खरीय; अंति: हार न रहे कोडि रो चतुराई, दोहा-३. १७. पे. नाम रावणमंदोदरी गीत, पृ. ८अ संपूर्ण. मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: मंदोदरि वार इम भाखइ अति: समझइ होणहार लंका खइ, गाथा- ३. . १८. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ८अ संपूर्ण. 1 मु. ,जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि रे जीव काहे करत गुमान कु; अंतिः खाई मिलि हे होत समहि आसान, गाथा-३. १९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि रे जीउ आपण पर अब सोच अंति क्या साध्यउ करि लोच, गाधा-३. २०. पे नाम औपदेशिक पद, पू. ८आ, संपूर्ण, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: केसौ सासकौ वेसाख कुस; अंति: जिनराज० थिर जसवास, गाथा-३. २९. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण वा. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: जीय रे चल्यो जात जहा; अंति: तेरो समझ जिनराजान, गाथा-३. २२. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ९अ. संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., रा., पद्य, आदि मन रे तु छोडि माया अति: चलेंड वेंभी सामिनाम संभाल, गाथा-३. २३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- वैराग्य, आ. जिनराजसूरि, पुहिं, पद्य, आदि रे मन मूढ म कहि गृह; अंतिः बार बीचि कीडेरी रे, गाथा - ३. For Private and Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२० www.kobatirth.org २४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९अ- ९आ, संपूर्ण. राज, पुहिं., पद्य, आदि: रे जीउ काहइकुं; अंति: द अरु संपद राज रहत समभावे, गाथा-३. २५. पे नाम. स्थूलभद्र पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि पद, मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: थुलिभद्र न्यारी भांत; अंति: रणू तेरउ तुं अणुहारी, गाथा-३. २६. पे नाम औपदेशिक पद- परभव, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: मेरो जीव परभव थें न डरे; अंति: जिनराज० टारत ही न टरे, गाथा- ३. २७. पे नाम, आध्यात्मिक झकडी, पृ. १०अ संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आध्यात्मिक जकडी, मु. जिनराज, पुहिं, पद्य, आदि: कबहुं न करिहुं री, अंतिः जिनराज० न खजरी गहेसी, गावा- ३. २८. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पू. १०अ संपूर्ण, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि विदेसी मेरे आइ रहे, अंतिः राजसमुद्र० एकणि ठोण खटाहि गाथा - ३. २९. पे. नाम. कल्याणमंदिर की भाषा, पृ. १० आ - १३आ, संपूर्ण. " कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जैक, बनारसीदास पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि परम जोति परमातमा परम; अति बनारसी कारण समकत सुध, गाथा-४४. ३०. पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. १४अ १४आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: जै जै नमुं आदि अरहंत; अंति: मनबंछित फल पाइयै, गाथा-५. ३१. पे. नाम. आराधना पाठ, पृ. १४-१५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मैं देव नित अरहंत; अंति: प्रभु चरण कुं दीजिई, गाथा-१६. ३२. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पू. १५आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि तरण तारण दुख निवारण; अंतिः श्रीवर्धमानजिनेश्वरो, गाथा- १. " ३३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५-१६अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: अबहइ मदन नृपति कउ; अंति: ज अखंडित राख्यो अपनो तोरो, चौपाई -३. ३४. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १६अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहिं, पद्य, आदि कहा कोई होर करे काहु की प अति परक विविसारी खलकर जूकी, गाथा-३. " ३५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण. मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: हिलि मिलि साहिब कउ; अंति: करोगे राज वदत सो साचो, गाथा-३. मु. ३८. पे. नाम. पार्श्वलघु स्तवन, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. ३६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि: हरिबोलो बोली हिरणाखी तुम्; अंति: संकटविच राज अखंडित राखी, गाथा-३. ३७. पे. नाम औपदेशिक गीत. पू. १६आ, संपूर्ण. जिनराज, पुहिं, पद्य, आदि परदेसी मीत न करीये, अंति ती प्रेमको पंथ नखरीयेरी गाथा-५. पार्श्वजिन लघु स्तवन, मु. रूप, मा.गु., पद्य, आदि ऊंचे तौ ऊंचे मालीए रे लाल; अंति: लालमु आपणडी छत्र छांह रे, : गाथा-७. For Private and Personal Use Only ३९. पे नाम. विंशतिविहरमाण जिनराजा गीत, पृ. १७अ २६अ, संपूर्ण, २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुज हीयडौ हेजालूवौ; अंति: विहरमान जिन वीस, स्तवन- २०. ४०. पे. नाम. चौवीसी, पृ. २६अ - ३६आ, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी, आ, जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य वि. १७वी आदि मनमधुकर मोही रह्यउ; अति चढती दोलति पावौ , जी. स्तवन- २४. ४१. पे. नाम. चतुर्विंशतितीर्थकृद्विंशतिविहरमान शाश्वतजिनानां स्तवन, पृ. ३६आ-३८आ, संपूर्ण. Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४२१ ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वर्तमान चोवीसी; अंतिः सदा जिणचंदसुर ए, ढाल-५, गाथा-२३. ४२. पे. नाम. त्रैलोक्यशाश्वत चैत्यप्रतिमा प्रमाण स्तव, पृ. ३८आ-४३अ, संपूर्ण. शाश्वतजिन प्रतिमा स्तवन, मु. नयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ१अजितरसंभव३ सदा अभिनंद; अंति: नयरंग० कमला भोगवइ, गाथा-४१. ४३. पे. नाम. पार्श्वजिन लघु स्तवन, पृ. ४३अ-४३आ, संपूर्ण. म. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पारस सरस कृपारस प; अंतिः सुख साधन साधनमो भणइ जयतसी, गाथा-५. ४४. पे. नाम. द्वीतीय सूत्रकृतांगस्थ निरूपित वर्धमान स्तुति, पृ. ४३आ-४५आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. पुण्यप्रधान गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नमै पाय मुनिरायज सु हाथ ज; अंति: आपो पह संपो अचलठाण, गाथा-२१. ४५. पे. नाम. सुमतिजिन चौतीसातिसय स्तवन, पृ. ४५आ-४७आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिसर प्रणमु सुधै मनै; अंति: ___जिनचंद०पाय प्रणमै अमरसी, गाथा-१७. ४६. पे. नाम. विसविहरमाणजिन स्तवन, पृ. ४८अ-५१अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वांद मन सुध वैहरमाण; अंति: धरमसी०धरी ध्रमसी नमे, ढाल-३, गाथा-३६. ४७. पे. नाम, चतुर्दशगुणस्थानवृद्ध स्तवन, पृ. ५१अ-५४आ, संपूर्ण.. समतिजिन स्तवन-१४ गणस्थानविचारगर्भित, म. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति; अंति: सांनिधि पाय प्रणमै धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४. ४८. पे. नाम. चतुर्विंसति जिनायुर्दाय स्तवन, पृ. ५४आ-५६अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-आयचतुर्विधसंघसंख्यागर्भित, म. रंगविनय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव प्रणमं; अंति: रंग० प्रणमें हित घणे, गाथा-१३. ४९. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिनंदेह प्रमाणनिरूपणानिवृद्धि स्तवन, पृ. ५६अ-५७अ, संपूर्ण. २४ जिनदेहमान स्तवन, मु. रंगविनय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं ऋषभ जिनेसर; अंति: रंग श्रीरंगविनेपभणै मनरंग, गाथा-१३. ५०. पे. नाम. अठावीसलब्धिस्तवन, पृ. ५७अ-५९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुं प्रथम जिणेसर; अंति: प्रगट ज्ञान प्रकास ए, ढाल-३, गाथा-२५. ५१. पे. नाम. चतुर्विंशतिदंडक विचार सूचक स्तवन, पृ. ५९आ-६२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ५२. पे. नाम. ८४ आशातना स्तवन, पृ. ६२आ-६३आ, संपूर्ण. उपा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: जयि जयि जिन पास जगत्र धणी; अंति: (-), गाथा-१८, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१८ अपूर्ण तक लिखा है.) ५३. पे. नाम, थूलभद्रकोस्यानो नवरस, पृ. ६४अ-७२आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: उदयरतन० सहु फल्या रे, ढाल-९, गाथा-७४. ५४. पे. नाम, संखलाबध स्तवन, पृ. ७२आ-७३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-श्रृंखलाबंध, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: आदीश्वर आदि करि ध्या; अंति: महोपभणै घणै हरख धरी सदा, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५. पे. नाम. पार्श्वनाथ लघु स्तवन, पृ. ७३अ-७३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: सर्वदेवसेवितपदपद्म; अंति: जैनचंद्रैः०तावन्मुदे, श्लोक-७. ५६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७३आ-७४अ, संपूर्ण. उपा. जयमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: अक्षयसद्गुणगण शुभसरण; अंति: मह्यांदेहा कमला रे, गाथा-५. ५७. पे. नाम. पार्श्वजिनराज स्तुति, पृ. ७४अ-७४आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन, ग. विनयभक्ति, मा.ग., पद्य, आदि: त्रेवीसम पार्श्वजिन सेवं; अंति: विनयभक्ति० दानकल भावत रे, गाथा-५. ५८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, म. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आज वधाई मोतीयडे मेह; अंति: श्रीजिनचंद्र सहाई, गाथा-५. ५९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ.७५अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: प्रभु तेरो महल बन्यौ; अंति: समयसुंदर० सफल जनम ताहि को, गाथा-३. ६०. पे. नाम. नेमिचतुर्मासिक, पृ. ७५अ-७६अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, म. राजसमद्र, पुहि., पद्य, आदि: श्रावण मै प्रीउ संभरै; अंति: भुसंप्रीति जहां जोरी नई, गाथा-४. ६१. पे. नाम. नवकारमहामंत्र छंद, पृ. ७६अ-७६आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम "नवपद महिमा सज्झाय" लिखा है. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. गुणप्रभुसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो नित; अंति: प्रभु सुरवर सीस रसाल, गाथा-९. ६२. पे. नाम. नवकार रास, पृ. ७६आ-७७आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंगे; अंति: जास अपार री माई, गाथा-९. ६३. पे. नाम. नवपदनी स्तुति, पृ. ७७आ-८०आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलौजी लीजै श्रीअरिहंत; अंति: वरतीयो जय जयकार, गाथा-२१. ६४. पे. नाम. नवपदमहिमा सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ८०आ-८१अ, संपूर्ण. नवपद महिमा, पं. दलीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्रकी सेवना आणी; अंति: दलौ कहै भव भव सेवा ताह, गाथा-७. ६५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ८१अ, संपूर्ण. मु. वखता, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु मेरे तारणतरण; अंति: तुम ही वखता के महाराज, गाथा-३. ६६. पे. नाम. पार्श्वजिनराज लघु स्तवन, पृ. ८१अ-८२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लघु, मु. दानकमल, मा.गु., पद्य, आदि: जय बोलो अससेन लाला की; अंति: दानकमल० पीऊं अमरत पाना की, गाथा-७. ६७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ८२अ-८२आ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: देखो भाई महाविकल; अंति: करुनारस अलख अनै निधि जुटै, गाथा-८. ६८.पे. नाम. मढशिक्षा अष्टापदी, पृ. ८२आ-८३अ, संपूर्ण. मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे क्युं प्रभु पाईय; अंति: विना तु समझत नाहि, गाथा-८. ६९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८३अ-८३आ, संपूर्ण. परमार्थ अष्टपदी, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे युं प्रभु पाइयै सुनि; अंति: एक है तब कहो कहिं भेटै, गाथा-८. ७०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८३आ-८४अ, संपूर्ण. ग. लाभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चाह धरे श्रीपास जिणेसर; अंति: लाभसागर० जिनजीसं माया रे, गाथा-७. ७१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, पृ. ८४अ-८४आ, संपूर्ण. आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: अंतरीक जिन अंतरजामी; अंति: जिनचंद्र० जयकारी रे, गाथा-९. मा-८. For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४२३ ७२. पे. नाम. नंदीश्वरद्वीपस्थ सास्वतजिन स्तुति, पृ. ८४-८५आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सेत्रावा. ___ नंदीश्वरद्वीपजिन स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसर बावन जिनालय; अंति: जैनचंद्र गुण गावौ रे, गाथा-१५. ७३. पे. नाम, सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ८६अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: भत्तिजुत्ताण सत्ताण; अंति: थणंताण कल्लाणयं, गाथा-४. ७४. पे. नाम, सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. ८६अ-८६आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, अप., पद्य, आदि: जो धुरि सिरिअरिहंत; अंति: च तवं इय तवपयगं नमसामि, गाथा-४. ७५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ८६आ-८७अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसंनाणमहोमयाणं; अंति: सिद्धचक्कं नमामि, गाथा-६. ७६. पे. नाम. नवपदसिद्धचक्रमहिमामय स्तवन, पृ. ८७अ-८८आ, संपूर्ण. सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, मु. कनककीर्तिशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदनउ ध्यान धीरीजइ सिधचउ; अंति: सिधचक्रनइ कोइ न तोलइं हो, गाथा-१५. ७७. पे. नाम. नवपद गीत, पृ. ८८आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: गोतम पुछत श्रीजिन; अंति: भगति करो भगवान की, गाथा-४. ७८. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. ८९अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठिनमस्कारं सारं; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ७९. पे. नाम, जिनचतुर्विंशतिनवग्रहगर्भितजिन स्तुति, पृ. ८९अ-९०अ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिमुदाहृता, श्लोक-११. ८०. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. ९०अ-९०आ, संपूर्ण. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ; अंति: (-), श्लोक-२५, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१० अपूर्ण तक लिखा है.) ९९५८४. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. २५, दे., (१७.५४११, १३४२७-३१). १.पे. नाम, श्रेणिकराजानी सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. श्रेणिकराजा सज्झाय, म. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रेणिकने समकित नहीं; अंति: पामे मोक्ष दवार, ढाल-२, गाथा-४१. २.पे. नाम. केशीगौतम सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर प्रणमीये केशी; अंति: रूपविजय गुण गाय रे, गाथा-१६. ३. पे. नाम, सद्रूसदूपदेश सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आत्मा, पं. विजयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: इम सद्गुरु जीवने समज; अंति: पावे विजयरत्न गुण गावे रे, गाथा-११. ४. पे. नाम, वैराग्य सिज्झाय, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासदुःखवर्णन, जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: तुने संसारी सुख किम; अंति: महामुसकेल जो रे, गाथा-९. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निदात्याग, मा.गु., पद्य, आदि: म कर हो जीव पर वात दिनरात; अंति: भावनी एह हित सिख माने, गाथा-९. ६. पे. नाम. विजयशेठविजयाशेठाणी का चौढालियो, पृ. ६अ-८अ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय-शीलगर्भित, आ. हर्षकीर्तिसरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंचपरमेष्टि; अंति: वांछित कुशल नित घरे अवतरे, ढाल-३, गाथा-२०. . .. For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: शासननायक सीव सुखदायक गौतम; अंति: रायचंद० जिनजी को जाप, गाथा-२३. ८.पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मु. रामचंद, रा., पद्य, आदि: हलाहल कुलजुग मत जाणो रे; अंति: वख्त भलि है भजन करो भाई, गाथा-९. ९. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. मु. लाल, पुहिं., पद्य, आदि: ध्यान जिनराज तणा धरना रे; अंति: नाथ निरंजन है साचा सरना, गाथा-४. १०. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: सिज्या भली रे संतोषनी वाण; अंति: न आवे गर्भावासो जी, गाथा-५. ११. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, उपा. समयसंदर गणि, रा., पद्य, आदि: धर्म करो रे प्राणिया; अंति: वीनवे ते पामे शिवलीलारे, गाथा-११. १२.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: निंदक तु मत मरजे रे मारि; अंति: रामजी ओर निंदक रे नही कोय, गाथा-५. १३. पे. नाम. स्यादवादमत की सज्झाय, पृ. ११आ-१३अ, संपूर्ण. १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्यादवादमत श्रीजिनवरनौः; अंति: श्रीसीधंतरतन बहुमोल, गाथा-२१. १४. पे. नाम. विनयनी सज्झाय, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. विनय सज्झाय, आ. विमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विनय करो चेला गुरु; अंति: थाइं गुरुने सरीखो रे, गाथा-५. १५. पे. नाम. होली की सज्झाय, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण. होलिकापर्व सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: नवघाटी नव नंबर पाया; अंति: न राखे सबको य वात अधूरी, गाथा-१७. १६. पे. नाम. मृगापुत्रनी सज्झाय, पृ. १४आ-१६अ, संपूर्ण. मृगापुत्र सज्झाय, मु. हंसविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीव नयर सुहामणी जी; अंति: होजो तस परिणाम वेजायान्, गाथा-२९. १७. पे. नाम. वज्रस्वामिनी सज्झाय, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण. वयरस्वामी सज्झाय, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलजो तुमे अद्भुत वातो; अंति: नित्य नमिये नरनारी, गाथा-१४. १८. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: संजम लेवा संचर्या रे; अंति: कवि एहनो रे धन जगमो अवतार, गाथा-१६. १९. पे. नाम. जंबुजीनी सज्झाय, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसत स्वामिने वीनवू; अंति: जंबु नामे जय जयकार, गाथा-१५. २०. पे. नाम. दीवानी सज्झाय, पृ. १८आ-१९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दीवा, मा.गु., पद्य, आदि: दशमेधवार दीवो कह्यो ए; अंति: ए तो निश्चे मुक्ति मे जाय, ढाल-२, गाथा-१३. २१. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: सुरनर परसंशा करे; अंति: कवियण कहे गायो संतिकुमारो, गाथा-१७. २२.पे. नाम. सातकुव्यसन की सज्झाय, पृ. २०अ-२१अ, संपूर्ण. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, म. जयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: परउपगारी साधु सुगुरु इम; अंति: सीस समें जेरंग इम कहै, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ २३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २१अ, संपूर्ण. म. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: संतो मन माया मे राजी घर; अंति: का पासक पावै धुव कितारी, गाथा-५. २४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. न्यामत, पुहिं., पद्य, आदि: परदेशिया मेको न चलैगो; अंति: चेतन मत छोडेगो तोय मझधार, गाथा-७. २५. पे. नाम, जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. २१आ-२२आ, संपूर्ण. आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: ए आठौहि कामिणि जंबू; अंति: जंबू नामे जय जय कार, गाथा-१६. ९९५८६. (+-) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., दे., (२१.५४१२, ९x१७). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीव वारु छु मोरा वालमा; अंति: कहें मुझ मेटोजी भव संतापो, गाथा-५. २.पे. नाम. सेवजगिर स्तवन, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इंणे डूंगरीइ मन मोहीयूंअंति: सिद्धिविजय० तास हो, गाथा-१३. ३. पे. नाम. आदीसर गीत, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आंखडीए मि आज रे सेजो; अंति: पोतइ श्रीआदेसर तूठा रे, गाथा-७. ४. पे. नाम, पचखांणफल स्वाध्याय, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: दसवे प्र उठी पचखांण सगुरु; अंति: कीर्तिविमल कहि नसदीस, गाथा-९. ५.पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, प.५आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मृगनयणी मृगराज कट तोकुं; अंति: (-), (पू.वि. दोहा-२ अपूर्ण तक है.) ९९५८७. (+#) वेदरवी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. पोमावास, प्रले. पं. हस्तिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वेदरवी०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११, १२४२१). वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जेनधरमसुं जागवै होवे धरम; अंति: इम भणै सो मुगतमै कीधो राज, गाथा-२०९. ९९५९१ (4) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. ग. भाग्यविजय (परंपरा पंन्या. गुणविजय); गुपि. पंन्या. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११.५,१३४३०). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ महाउत्तम श्रीथानिक; अंति: बधा सइ सुकुन महा श्रीकार. ९९५९३. पाशाकेवली भाषा, संपूर्ण, वि. १८६७, माघ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ६, दे., (१५४११.५, १३४२२-२६). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम सर्वकार्य; अंति: सुख उपजै मनोरथ फलै. ९९६०१. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:मंत्र., दे., (२१.५४१२, ११४२४). जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो चक्रेश्वरी चक्रपाणे; अंति: (-). ९९६२९. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८१२, फाल्गुन कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल, खीवसर, प्रले. वस्तपाल ओसवाला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१५४११.५, १२४१७). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: गर्गो० तथा पाशक ढालन, श्लोक-१८६. ९९६३१ (+#) रत्नसंचय सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्र १४५., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७.५४११,२६-२८४४६). रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश हैं.) For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रत्नसंचय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ९९६६० (+) संबोधसप्ततिका प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१२.५४११, ८x२४-२९). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर०नत्थि संदेहो, गाथा-७२, (वि. पत्रांक-५आ के हासिये में कृति पूर्ण हुई है.) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनई त्रैलोक गुरुं; अंति: लहइ ईहां संदेह नही. ९९६६४. अनानपूर्वी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्र के दोनों तरफ पत्रांक हैं., जैदे.. (१२४११.५, ९४१०). __ अनानुपूर्वी, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ९९६६५. (+) बंधस्वामित्व व षडशीति नव्य कर्मग्रंथ का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, कुल पे. २, पू.वि. पत्र १२+२०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२०x१०, १२-२०४३७). १.पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ का बालावबोध, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रावण शुक्ल, १४, प्रले. पं. जुहारमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:बंधस्वामित्व. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानस्वामिने वंदी; अंति: निपजायै यो बंधस्वामित्व, (वि. कहीं-कहीं प्रसंगोचित मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) २.पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ का बालावबोध, पृ. १३अ-३२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चतुर्थस्तव षडशीति. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिन प्रते नमस्कार करिकै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७० अपूर्ण तक बालावबोध लिखा है., वि. कहीं-कहीं प्रसंगोचित मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) ९९६८० (+#) माधवानलकामकंदला चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-५(१,१८ से २०,२४)=२०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, ११४३४-३६). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से ३९५ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९९६८१ (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०x१०.५, ८x२०). १. पे. नाम, ऋषभजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: आनंदघन पद रेह, गाथा-५. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहालुं रे; अंति: जाणजो रे आनंदघन मति अंब, गाथा-६. ३. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. ___ मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कुंथुजिन मनमु; अंति: साचो करि जाणुं हो, गाथा-९. ४. पे. नाम, कुंथुजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: रात दिवस नित सांभरे; अंति: पद्मने मंगलमालो लाल, गाथा-६. ५. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: कहे० पंचमि म्याननो भेद रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल रे सांवलीया; अंति: किम विरचे वरदाइ रे, गाथा-५. ९९६८४. (+) साधु आचार १०८ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. संशोधित., दे., (१९४९.५, १८-३२४१३-१७). साध आचार १०८ बोल, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो बोल ते साधु थइने; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-१०४ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४२७ ९९६८५ (4) द्रव्यगुणपर्याय स्वरूप विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९.५४१०, १६७३५-४२). द्रव्यगुण पर्याय स्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय द्रव्य तेहना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., संकेत गुणविवरण तक लिखा है.) ९९७०६ (+#) प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-११(५,११ से २०)=१०, ले.स्थल. भरुअच, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१८.५४१०, १५४४२-४४). प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ०तेज करतो तप्तइ दाता धन; अंति: मूढमति पाप तणो पोतो भरे, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. गाथाक्रम भिन्न-भिन्न है.) ९९७१२ (+) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. १३, प्र.वि. संशोधित., अ., (१७४१०.५, ९x१४-२०). १.पे. नाम. सरस्वती स्तुति, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: सरस्वती महाभागे वरदे; अंति: पूजनीया सरस्वती, श्लोक-९. २.पे. नाम. ॐकार स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण.. मांगलिक काव्य, सं., पद्य, आदि: ॐकार बिंदुसंयुक्तं; अंति: चैव ॐकाराय नमो नमः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. गणपति स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: करकंकण केशजटामुकुटं मणि; अंति: देवा गौरी पुत्र विनायकः, श्लोक-२. ४. पे. नाम, प्रभातेमंगलीक उच्चारण स्तुति, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अहँतो भगवंत इंद्रमहिताः; अंति: दिनमुखे कुर्वंतु नो मंगलं, श्लोक-८. ५. पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण, वि. १९६०, माघ शुक्ल, १३. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, उपा. विद्याविलास, सं., पद्य, आदि: त्वं शारदादेवी समस्त; अंति: पूर्णं कमलानिवासम्, श्लोक-९. ६. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिननामानि स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः श्रीआदिनाथमजितं प्रभ; अंति: सर्गहरणानि समंगलानि, श्लोक-३. ७. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अंघ्री कूर्मयुगं करौ; अंति: नीक्षध्वमेनं जिनं, श्लोक-१. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-अष्टविभक्तियुक्त, पृ. ७अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पार्श्वः पातु नतांग; अंति: प्रयच्छ प्रभो, श्लोक-१. ९. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण. आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: वीरः सर्वसरासरेंद; अंति: श्रीवीर भद्रं दिश, श्लोक-१. १०. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथजीरो मंत्रगर्भित स्तोत्र, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वंछितं नाथः, श्लोक-५. ११. पे. नाम. आत्मरक्षावज्रपंजर स्तोत्र, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्टि नमस्कारं सारं; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. १२. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथजीरो छंद, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण, वि. २०वी, फाल्गुन शुक्ल, ५, रविवार. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी,म. उदयरत्न, मा.ग., पद्य, आदि: धवल धींग गोडी धणी सेवक जन; अंति: उदयरत्न० जाल त्रोडी, गाथा-८. १३. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तव-श्लोक १, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तव, आ. वज्रस्वामि, सं., पद्य, आदि: स्वर्णाष्टाग्रसहस्रपत्र; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. विधि सहित.) ९९७१५ (#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ.१०, प्रले. माहव जोसी संदेहास्पद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका खंडित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१५.५४१०, ७४१६). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध धम्मा; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. For Private and Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९९७३० (मैं) १४ गुणस्थानक ८ कर्म १२० प्रकृति विचार यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ६३-५६ (१ से १२, १४ से २१, २३ से ३२,३५ से ३७,३९,४१ से ६२ ) = ७, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी : च०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७.५x१२.५, ९x१३-१५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ गुणस्थानके ८ कर्म १२० प्रकृति विचार यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) ९९७५८. (*) नवतत्त्व प्रकरण का वालावबोध, संपूर्ण, वि. १९६४, चैत्र कृष्ण, ५, मध्यम, पू. ४१, ले. स्थल. पटण (पाटण), प्रले. श्राव. सुगालचंद गुलेछा; अन्य. श्राव. हीरचंदजी गुलेछा; मु. जवाहरमल; श्राव. अमोलखचंद गुलेछा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२०x१२.५, १३X३२). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः सिद्धा अनेक सिद्धा. ९९७६९ (#) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१X११, १४x२८-३२). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अहावरे भंते सूत्र अपूर्ण तक लिखा है.) ९९७७० (+#) कुर्मापुत्र चरित्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९६६, फाल्गुन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १०, ले. स्थल. राजगढनगर, प्रले. उपा. मोहनविजय ( परंपरा आ. राजेंद्रसूरि सौधर्म बृहत्तपागच्छ ). प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक ने संवत १५६६ लिखा है जो गलत प्रतीत होता है, वस्तुतः १९६६ होना चाहिए. श्रीवीरजिन प्रशादात्., संशोधित अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २१.५x१२.५, १८४३३). कुम्मापुत्त चरिअ-बालावबोध, आ. यतींद्रसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १९६६, आदि: (१) जलस्नानात् मलत्यागो, (२) अस्ति जंबूद्वीपे भरत; अंति: (१)जाता अनंतसुख सुख जाता है, (२)पदयुत यतिंद्रविजयए. ९९७७३. पक्खिसूत्र, संपूर्ण, वि. १९५७, चैत्र शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. ११, ले. स्थल. चांदुर, प्रले. मु. विवेकवर्द्धन (गुरु पं. हंसवर्द्धन गणि); गुपि. पं. हंसवर्द्धन गणि (गुरु पं. नित्यवर्द्धन); पठ. मु. मणिलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी पषिसूत्र. श्री शांतिप्रशादात्., प्र.ले.श्लो. (१२५४) शोधी लेज्यो सुगुण नर, दे., (१८x१२, १७३०-३२). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्यंकरे य तित्थे; अंतिः सवं जेसिं सुअसावरे सति ९९८१२. (+#) ज्योतिषसार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५X१३, ११x२५-२८). ज्योतिषसार, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि लग्नं लग्नपतिर्बलान, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२९८ मौनराशि गुरुफल तक लिखा है व श्लोक-२६० के बाद पाठभेद मिलता है.) ९९८२४. (*) वंदितुश्रावकाचार, अपूर्ण, वि. १८९८ आश्विन अधिकमास कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १८-२ (१ से २ ) =१६, ले. स्थल. लखनउ, प्रले. श्राव. गणेश (गुरु मु. धर्मचंद्र ऋषि); गुपि. मु. धर्मचंद्र ऋषि, राज्ये आ. जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री आदनाथ प्रासादात्., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२०X१२.५, ६x११). , बंदिसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: वंदामी जिणे चउवीसं गाथा ४८ (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण से है.) ९९८२५. (#) पद्मावती स्तोत्र व शिवमानसपूजा, संपूर्ण, वि. १९२२, फाल्गुन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. ग. हंसविजय (गुरु ग. नरेंद्रविजय); गुपि. ग. नरेंद्रविजय (गुरु पं. भक्तिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८.५X१२.५, १२x२२). १. पे. नाम पद्मावती स्तोत्र, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-२४. २. पे नाम, शिवमानसपूजा-श्लोक ३. पू. ६अ-६आ, संपूर्ण. शिवमानसपूजा, सं., पद्य, आदि रत्नैः कल्पितमासनं अंति (-), प्रतिपूर्ण ९९८२७ (+) रामविनोद, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ३५-१ (१) ३४, प्र. वि. पत्रांक भाग खंडित है अतः पत्रांक अनुमानित दिया है., संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (१९४१२, २०४३५). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., बीच के पाठांश है.) For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४२९ ९९८३४. (+#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१८, चैत्र शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. मु. हीरजी प्रेमजी ऋषि; पठ. मु. देवचंद (तपगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भक्तामर, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१६४१२.५, १४४२०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणित मौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ९९८६६. (+) गौतम रास, औपदेशिक कवित्त व विजयशेठविजयाशेठानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२०.५४१४.५, १२४२४). १.पे. नाम. गौतम रास, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण, वि. १९५७, पौष शुक्ल, ९, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. श्राव. खीवराज ओसवाल, प्र.ले.पु. सामान्य. गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमला; अंति: विलसीजै मंगलमाला मन समै ए, गाथा-५५. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. ७आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मोर मेर पर चुगै केहर; अंति: चिंत रहै होणहार समरथ है, गाथा-१. ३. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धीन धीन श्रावक पुन्य प्रभ; अंति: सेठकथा मुखसुंजी आंणी, गाथा-९. ९९८६७. (+) जीवविचार स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (१९x१४, १२४१५-२०). १.पे. नाम. जीवविचार स्तवन, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण, वि. १९५२, पौष कृष्ण, १. जीवविचार स्तवन-पार्श्वजिन, म. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसती रे वरसती; अंति: विजय पभणे आनंदकारी, ढाल-९, गाथा-८३. २. पे. नाम. ५ स्थान जीवगति विचार, पृ. १०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जेहनो जिव पगे निकले ते; अंति: अंगे निकले ते मोक्ष जाये. ३. पे. नाम. सामायकना बत्तीस दोष, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पालखी वेसे अथीरआसणे बेसे; अंति: दूषण सामायकमे टालवा. ४. पे. नाम. २० स्थानक विचार, पृ. ११आ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतरा गुण ग्रांम करतो; अंति: (-), (पू.वि. बोल-१६ अपूर्ण तक है.) ९९८७१ (+) चउवीस तीर्थंकर स्तवन सह टबार्थ व पडिकमण विधि आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११५-१२(५० से ६१)=१०३, कुल पे. ३९, प्र.वि. पत्रांक-७३ के बाद पत्रांक नहीं लिखा है., संशोधित., दे., (२०४१५, ६४३१-३३). १.पे. नाम. स्तवनचौवीसी सह टबार्थ, पृ. १अ-३१आ, संपूर्ण, वि. १९०३, वैशाख कृष्ण, १, सोमवार. स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेसर प्रीतम माहरो; अंति: ज्ञान० सुखनो सदा रे, स्तवन-२४. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: आणंदघनस्यास्या गीत मय्याः; अंति: जिणंद गाता अखयसंपद अतिघणी. २. पे. नाम. दिवसी पडिकमण विधि, पृ. ३२अ-४०अ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: तस्स० नवकार गुणना. ३. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ४०अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहै पूरि मनोरथ माय, गाथा-४. ४. पे. नाम. कृष्णपंचमीतिथि स्तुति, पृ. ४०अ-४०आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदिय पाय पंकज; अंति: सदा मंगल करो अंविक देवीइं, गाथा-४. ५. पे. नाम. शुक्लपंचमीतिथि स्तुति, पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदिः श्रीनेमी पंचरूपस्त्रिदश; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. ४१अ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं सम्मोह; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ७. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ४१अ-४१आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करै जसु आगल भाव; अंति: तपथी कोडि कल्याण जी, गाथा-४. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वरतीर्थ, मु. कल्याणविजय-शिष्य, सं., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरतीर्थेश; अंति: कल्याण विजजश्रियम्, श्लोक-१. ९. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तति, पृ. ४१आ, संपूर्ण... मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादसी अति रूवडी; अंति: गुणहर्ष० संघतणा निसदीस, गाथा-४. १०. पे. नाम. चतुर्दशीतिथि स्तुति, पृ. ४१आ-४२अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ११. पे. नाम, अमावसरी स्तुति, पृ. ४२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नतं वंदे जैना; अंति: शनौ देवी दयादंभ, श्लोक-१. १२. पे. नाम. पूनमरी स्तुति, पृ. ४२अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरीकमंडन पाय प्रणमीजै; अंति: सौभाग्य उदै सुखकंदाजी, गाथा-१. १३. पे. नाम. सिद्धाचलजीरी स्तुति, पृ. ४२अ, संपूर्ण. शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनमाहे तिरथ; अंति: सयल जीव सुख संपत वरे, गाथा-४. १४. पे. नाम. सीमंधरस्वामीरी स्तुति, पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामी; अंति: मुझ आवागमन निवार निवार, गाथा-१. १५. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ४२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पाताले यानि बिंबानि; अंति: तानि वंदे निरंतरम्, श्लोक-१. १६. पे. नाम, पर्युषणारी स्तुति, पृ. ४२आ, संपूर्ण. पर्यषणपर्व स्तुति, म. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतरभेद जिनपूजा रचीजै; अंति: मानविजै० देव अंवाइजी, गाथा-४. १७. पे. नाम. ५ तीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ४२आ, संपूर्ण. मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर समरूं श्रीआदिदेव; अंति: कहै तस घर जै जै कार, गाथा-५. १८. पे. नाम. राईपडिकमण विधि, पृ. ४२आ-४५आ, संपूर्ण. राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम सामायक लेनी इच्छामि; अंति: पाछली तरै चैत्यवंदन कीजै. १९. पे. नाम. नवकारनो छंद, पृ. ४५आ-४६अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: बंछित पूरो बिबिधवर; अंति: विविध ऋद्धि __वंछित लहै, गाथा-१६. २०. पे. नाम. अरणकमुनि सज्झाय, पृ. ४६अ-४६आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनिवर चाल्या गौचरी; अंति: मुनिवरु मनवंछित फल सीधोजी, गाथा-८. २१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४३१ मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: किन गुन भयो रे उदासी; अंति: जाय करवत ल्यूं कासी, गाथा-३. २२. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. ४६आ-४७अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जग वालहो मरूदेवीनो; अंति: दीज्यो सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५. २३. पे. नाम. सोलसती सज्झाय, पृ. ४७अ-४७आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर वांदे; अंति: भणसी ते लेसी सुख संपदा ए, गाथा-१७. २४. पे. नाम. श्रावकनीकरणी सज्झाय, पृ. ४७आ-४८आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तूं उठे परभात; अंति: ससनेह करणी दुख हरणी छै एह, गाथा-२२. २५. पे. नाम, संखेसरापार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पासजिन; अंति: सयल रिपु जीपतो, गाथा-५. २६. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ४८आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जै जै श्रीपार्श्वनाथ सुख; अंति: विंबाइ ताई सवाई वंदामि, गाथा-४. २७. पे. नाम. जगचिंतामणि चैत्यवंदन, पृ. ४८आ-४९अ, संपूर्ण. जगचिंतामणिसूत्र, संबद्ध, आ. गौतमस्वामी गणधर, प्रा., प+ग., आदि: जगचिंतामणी जगनाह; अंति: जंकिंचिनाम तित्थे, गाथा-९. २८. पे. नाम. सेजाजीरो स्तवन, पृ. ४९अ-४९आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा निनाणुं करिय; अंति: पद्म कहें भवतरिइं, गाथा-१०. २९. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. ४९आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकरने नमुं; अंति: शुभ वंछितफल लीध, गाथा-३. ३०. पे. नाम. मन्हजिणाणं सज्झाय, पृ. ४९आ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मनह जिणाण आणं मिच्छं; अंति: मे यं निछं सुगुरु वयसेणं, गाथा-५. ३१. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ४९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: दिवस चरिमं पचक्खामि; अंति: (-), (पू.वि. पाणाहारपचक्खाण अपूर्ण तक है.) ३२. पे. नाम. स्नात्र पूजा, पृ. ६२अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: सारखी कही सूत्र मझार, ढाल-८, ___ गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-४९ अपूर्ण से है.) ३३. पे. नाम, अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ६२अ-६४अ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, म. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: गंगा मागध क्षीरनिधि औषध; अंति: अमर पद पावे, ढाल-८, गाथा-६६. ३४. पे. नाम. सत्तरभेदी पूजा, पृ. ६४अ-६७आ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजा, वा. साधकीर्ति, मा.ग., पद्य, वि. १६१८, आदि: ज्योति सकल जग जागतीए; अंति: सव लीला सुख साजै, ढाल-१७. ३५. पे. नाम. नवपदजी की पूजा, पृ. ६७आ-७१आ, संपूर्ण. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: जस तणी कोइ न ईय अधूरी रे, पूजा-९. For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६. पे. नाम. जिनचौवीसी, पृ.७१आ-७३आ, संपूर्ण, पे.वि. हजारीमलजी द्वारा संवत् १७७५ अषाढ वदि १४ में लिखी हुई प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है. २४ जिन सवैया, म. सार, पुहि., पद्य, आदि: नाभिनरिंद के नंद नंदन चंद; अंति: कवि सार महासुख देने, सवैया-२५. ३७. पे. नाम. नवस्मरण सह अवचूरि, पृ.७४अ-९८आ, संपूर्ण, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मोहनलाल मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. ५ स्मरण दिये हैं.) नवस्मरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नमो नमस्कारोस्तु; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. टबार्थ शैली में अवचूरि लिखी है.) ३८. पे. नाम. अकलंकाष्टक स्तोत्र, पृ. ९९अ-१०५आ, संपूर्ण. आ. अकलंकदेव, सं., पद्य, आदि: त्रैलोक्यं सकलं; अंति: मतिः संताडितेतस्ततः, श्लोक-१६. ३९. पे. नाम, चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १०६अ-११५आ, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिणंदशुं प्रीतडी; अंति: पूर्णानंद समाजोजी, स्तवन-२४, गाथा-२०५. ९९८७२ (#) नेमजिन सज्झाय व लघुशांति आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४०-३४(१ से २६,२८ से २९,३१ से ३४,३६,३९)=६, कुल पे. १०, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१४.५४१४.५, १२४१३-१६). १.पे. नाम. नेमराजिमती रास, पृ. २७अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पसंना नेमजिणंदकि, गाथा-७४, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. नेमजी बारमासौ, पृ. २७अ-२७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्यांम मेली; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. कयवन्ना चौपाई, पृ. ३०अ-३०आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र हैं. ____ मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१४ गाथा-१३ अपूर्ण से १९ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. ३५अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनहर्ष०हुंवारी लाल, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) ५. पे. नाम. ऋषभदेवजीरी लावणी, पृ. ३५अ-३७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. आदिजिन लावणी, पुहि., पद्य, वि. १८६०, आदि: सरस्वतीमाता सुमत की; अंति: ओर टालो भवनी केरी, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से १७ अपूर्ण तक नहीं है.) ६.पे. नाम. ५ परमेष्टि आरती, पृ. ३७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. ५ परमेष्ठि आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: इणविध मंगल आरती कीजै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७. पे. नाम. करमविपाकफल सज्झाय, प. ३८अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: नमो करमनु राजा रे प्राणी, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) ८.पे. नाम. सीतामातारी सज्झाय, पृ. ३८अ-३८आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती बलती घणु रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ तक है.) ९. पे. नाम. नेमजीरी सज्झाय, पृ. ४०अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १८७३, आषाढ़ कृष्ण, ७, सोमवार, प्रले. श्राव. सालगराम, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमिजिन सज्झाय, म. धनराज, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: धनराज० धनसुध सब निरमला ए, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०. पे नाम, लघुशांति स्तव, पृ. ४० अ-४०आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांति, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ९९८७३. (W) अंजनासती चौपाई, अपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. ३५-३० (१ से १८, २० से २१, २४ से ३२, ३४) ५ पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (१५.५४१५.५, १०-१७४१७). अंजनासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-). (पू.वि. गाथा ८३ अपूर्ण से ८८ अपूर्ण तक, गाधा ९९ अपूर्ण से १११ अपूर्ण तक व गाथा २५७ से २६२ अपूर्ण तक है.) ९९८७८. (**) स्नात्र, अष्टप्रकारी व नवपद पूजा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २८, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२०x१५, १६१५-१६). ४३३ १. पे. नाम. स्नात्र पूजा, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा विधिसहित ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदि चोत्तिसे अत्तिसे जुवो; अति: देवचंद० सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा - ६०. २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ८आ-१४अ संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुचि सुगंधवर कुसमयुत, अंति: अमर पद पावे, ढाल-८, गाथा ६६. ३. पे. नाम. नवपदजी की पूजा, पृ. १४अ २८अ, संपूर्ण. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (१) स्नात्र माडे स्नात्रपूर्व, (२) परम मंत्र प्रणमी करी; अंति: (१) कोई नये न अधूरी रे, (२) सरू अनुपमजस लीजे रे, पूजा- ९. १९८८४ () नेमिजिन, नमीनाथ विनती, आदिजिन स्तवन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ११-४ (१,३,७,९) ७, कुल पे. ८. प्र. वि. पत्रांक न होने से काल्पनिक नंबर दिये हैं.. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (१५.५४१३.५, ९-१२x१३-१६). १. पे. नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. आदिजिन स्तवन, मु. फतेचंद, मा.गु, पद्य, आदि (-); अति रिषभजिन चरण कमल पर वारी (पू.वि. "प्रभु भेटत पाप" पाठ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. नेमजी की विनती पू. २आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. नेमराजिमती स्तवन, मु. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तुम रोहो रे जादव दो घरीयो; अंति: (-), (पू.वि. "अरज करे पीठ पाय परी" पाठ अपूर्ण तक है.) ३. पे नाम. नमीनाथजी की विनती, पृ. ४अ संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. नयनसुख, पुहिं., पद्य, आदि: मेटो विथा रे हमारी; अंति: नैनसुख सरन तुमारी, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि (-); अति: (-). ५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ८अ अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि (-); अंति नरनारि सुरंगा सुख लहे जी (पू.वि. पापी मुतहीन तुम गुण बिसर० पाठ अपूर्ण से है.) ६. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. जिनपूजा विधि स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि झारी रतन जडाव की अति (-), (पू.वि. जिन पूजीये भावसुं तपत वस्त्र० पाठ अपूर्ण तक है.) ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणामंडन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मुनिसो व्रतजी सूं मोहनी, अंति: जिनभक्ति० मनोरथ माल. ८. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ११ अ ११आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: जैनधर्म पायो दोहिलो; अंति: लाभ ये लीजीये भगवान जै. For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९९८८५ () स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-१२(१ से ५,७,९,१५,१७,१९,२२,२४)=१३, कुल पे. २७, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख कहीं-कहीं होने से पत्र गिनकर लिखा गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१६.५४१४, १५४२८). १.पे. नाम. बंभणवाडी महावीरजिन स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. ___ महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२१, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिनेसर प्रणमुं पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. चिंतामणी पार्श्वनाथजीरो स्तवन, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणी, म. फतेकसल, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: लहै अविचल संपदा जी, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सारद वरदायक समरी सदा; अंति: पास जिणंद गुण गाय, गाथा-७. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ.८आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. यशोविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहेली हे तोरण आयो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ६. पे. नाम. ५ तीर्थजिन स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मुनि लावण्यसमय भणे ए, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) ७. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. मु. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: श्रीपार्श्वनाछ चउसालो, गाथा-८. ८. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणेसर गाउं रंगस; अंति: सांभलो ए सेवक अरदास, गाथा-८. ९. पे. नाम. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, पृ. ११आ-१३अ, संपूर्ण. मु. सिंहकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १८०५, आदि: अरबुद सिखर सुहामणो जिहां; अंति: अरबुदगिरि० गुण गायजी, गाथा-१८. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-समी, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वलिजाउं समी ना पास की वलि; अंति: सुमतिकुशल० समी ना पास की, गाथा-७. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मानो मानो मानो रे; अंति: मोहन० सेवक करी जाणो रे, गाथा-१०. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, पृ. १४अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सामी सुणो मुज वीनती; अंति: रिद्धहरख०करे आपणी आस, गाथा-८. १३. पे. नाम. शजयतीर्थ स्तवन, पृ. १४आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शेजानो वासी; अंति: जिणेसर० यो भव पार उतारो, गाथा-६. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत-गौडीजी, पृ. १४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत-गोडीजी, म. रामविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मुख नीकौ गौडी पास कौ को; अंति: पसायें रामधनी सुख वास कौ, गाथा-३. १५. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चांदलिया संदेसो कहि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १६. पे. नाम. चोवीस तीर्थंकर स्तवन, पृ. १६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४३५ श २४ तीर्थंकर स्तवन, म. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मुणिंद तास सीस पभणै आनंद, गाथा-२९, (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण से है.) १७. पे. नाम. साधारणजिन आरती, पृ. १६अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: आरती श्रीजिणराज तुम; अंति: आपणे सेवक कुं सुख दीजे, गाथा-४. १८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १६आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. जै.क. भूधरदास, पुहि., पद्य, आदि: ऐसी समजि के सिरधूलि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १९. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १८अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. आ. रत्नसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: संयमनो फल होई जी राजि, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-निदात्याग, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण.. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: गुण छै पूरा रे; अंति: म भणै तुं ओछा रे बोल, गाथा-६. २१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपता त्याग, पृ. १८आ, संपूर्ण. म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडली रे जीभडली तुं कांइ; अंति: लब्धि कहै सुणि प्राणी रे, गाथा-८. २२. पे. नाम. ९ वाड सज्झाय, पृ. १८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी पसु पिंडक तणि रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) २३. पे. नाम. शत्रुजय उद्धार, पृ. २०अ-२१आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरवर विमल गिरवर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ तक है.) २४. पे. नाम, शेजेजाजी को स्तवन, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८०१, आदि: साहिबा सेजो; अंति: राम सफल सुजगीस, गाथा-१२. २५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-विषय परिहार, पृ. २३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव विषय न राचीइं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) २६. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. २५अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजीतजीणंदसुं प्रीतडी; अंति: वाचक यस० गुण गाय के, गाथा-५. २७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: अतुली बल अरिहंतजी सिवदायक; अंति: महोदय साहिब मनरुली. गाथा-७. ९९८८६. (4) खंदककुमार, स्थूलिभद्रमुनि, ढंढणऋषि सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-२(५,११)=१०, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५४१४.५, ८-११४१०-१६). १. पे. नाम. खंधकमुनि चौढालियो, पृ. १अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. संतोषराय, मा.गु., पद्य, वि. १८०५, आदि: आद सीध नोकार गुरचरण बीज; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर*, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ___पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तसु सीवसुखदानाजी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. स्थूलिभद्रजी की सीजाय, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण. स्थलिभद्रमनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनीसरने पाय नम; अंति: परम सीयल पावे नरनार, गाथा-९. ४. पे. नाम. ढंढणऋषरी सीजाय, पृ.८आ-१०आ, संपूर्ण. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणरीखजीने वांदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. ५. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १२अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भावसुं वंदौ वारोवार, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९९८८७.(#) सदैववत्ससावलिंगा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १२-२(१ से २)=१०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक नहीं होने से काल्पनिक नंबर दिये हैं., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४१४, ५४२७). सदयवत्स सावलिंगा कथा, मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ९९८८८. (+#) नांणमिसूत्र, बे प्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३२, कुल पे. ७, प्र.वि. पत्रांक टूटे व अस्त-व्यस्त हैं., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१४४१३, १५४१५). १. पे. नाम. नाणंमि सूत्र-अतिचार गाथा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि चरणंमि; अंति: नायव्वो वीरियायारो, गाथा-८. २. पे. नाम. बे प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ३अ-५आ, त्रुटक, पृ.वि. अस्तव्यस्त पत्र क्रमांक. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: जैनं जयति शासनम्, (पू.वि. पाठ अव्यवस्थित हैं.) ३. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. ५आ-२०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १७३१, फाल्गुन शुक्ल, ५, शुक्रवार, ले.स्थल. सिरोही, प्रले. ग. रविचंद्र गणि (गुरु पं. हीरचंद्र गणि); गुपि. पं. हीरचंद्र गणि; पठ. श्राव. कृष्णा, प्र.ले.पु. मध्यम. म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: शिवं भवतु स्वाहा, स्मरण-९, (पू.वि. नवकार मंत्र नहीं है.) ४. पे. नाम. लघुशांति, पृ. २०आ-२२आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: यायात् सूरी श्रीमानदेवस्य, श्लोक-१७. ५. पे. नाम. बुध रास, पृ. २३अ-२८आ, संपूर्ण, वि. १७३१, फाल्गुन शुक्ल, ५, शुक्रवार, ले.स्थल. सिरोही, प्रले. ग. रविचंद्र गणि (गुरु पं. हीरचंद्र गणि); गुपि. उपा. हीरचंद्र गणि; पठ. श्राव. झींघरा कृष्णा वोरा; श्राव. जूठा कृष्णा वोरा; गुपि. श्राव. कृष्णा; अन्य. श्रावि. कमलादे, प्र.ले.पु. विस्तृत. बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवी अंबाई पंचाणणि; अंति: ते घर टलई कलेस तु, गाथा-६२. ६. पे. नाम. शांतिसुधारस सज्झाय, पृ. २९अ-३०आ, संपूर्ण, प्रले. ग. रविचंद्र गणि (गुरु पं. हीरचंद्र गणि), प्र.ले.पु. सामान्य. मुनिशिक्षा स्वाध्याय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शांति सुधारस कुंडमां; अंति: सुख चित्त पूर रे, गाथा-२०. ७. पे. नाम. मुहपती पडिलेहण सज्झाय, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण. मुहपत्ति पडिलेहण सज्झाय, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सूत्र अरथ उपरिं मनधरो; अंति: आदरतां हुंइ जय जयकार, गाथा-९. ९९८९१ (+) आठदृष्टि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२०, वैशाख शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. धानेरानगर, प्रले. मु. नवलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री शांतिनाथ प्रसादे., संशोधित., दे., (२१.५४१४, १३४२५). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सिवसुख कारण उपदिसी जोगतणी; अंति: वाचक जशने वयणे जी, ढाल-८, गाथा-७६. ९९८९४. सील कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:सील०., दे., (१०४८, १४४२६). शीलदृष्टांत कथा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथमही मनसौ श्रीजिनदेव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५५६ अपूर्ण तक है.) ९९९५१. एलायचिकुमाररो चौढाल्यो, संपूर्ण, वि. १९४०, आश्विन कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. हरसोला, प्रले. शिवदानमल बफना; पठ. श्राव. सीरमल जसराज, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२१.५४११, १४४३९). इलाचीकुमार छढालियुं, मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: मात मया करो सरसती; अंति: मालमुनि गुण गाय, ढाल-६. ९९९५२ (+) नेमबहुत्तरी स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, अन्य. सा. लादकुंवरबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०.५४११, १५४२९). १. पे. नाम, नेमिबहुत्तरी स्तवन, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नेमबहुतेरी. For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ नेमिजिनबहुत्तरी स्तवन, मु. मूलचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रथम जनेसर पाये नमु प्रण; अंति: तस घर होवे जयजयकार, गाथा-७३. २. पे. नाम. औपदेशिक पद-काया विषे, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: इस त का कोइ गरब न करणा; अंति: जिनदास०निफल सब ही गमाय रे, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गिना है.) ९९९५३. (+) खंडाजोयण विस्तार, संपूर्ण, वि. १९५५, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २८, ले.स्थल. विंझोवा, प्रले. मु. गणपत सौभाग्य; अन्य. मु. पद्मसुंदर (कवलागच्छ); मु. प्रतापसुंदर (कवलागच्छ),प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हई है-संशोधित., दे., (२१४११, २०४३०-३३). लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जंबूद्वीप तेस्यु; अंति: लवण समुद्र नाम जाणवो. ९९९५४. (#) नेमिनाथनो सलोको, संपूर्ण, वि. १७९१, फाल्गुन कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ५, प्रले. पं. राजसी; पठ. मानसंघ मनोर ठाकुर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४११.५, ११४२८). नेमिजिन सलोको, क. उदयरत्न, मा.ग., पद्य, आदि: सिद्धि बुद्धि दाता; अंति: र न आवे कोइ तस तोलि, गाथा-५७. ९९९५६. अजितशांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९१०, श्रावण शुक्ल, २, शनिवार, मध्यम, पृ. १०-३(१ से ३)=७, ले.स्थल. मुरारछावनिग्राम, प्रले. मु. कुसलसुंदर (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११.५, १२४२५). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अजिय संतिनाहस्स, गाथा-४२, (पू.वि. गाथा-६ से ९९९६०. (+#) ५६३ जीवरां भेदारो थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. श्राव. मुलचंद; अन्य. मु. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जिवरा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२०.५४११, १५४३२). ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंदीये काए; अंति: तिरजं च एवं ३५१ थया छै. ९९९६३. उपधानतप विधि व बिंबप्रवेश विधि, अपूर्ण, वि. १९१९, कार्तिक शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १७-८(३,६,८ से ९,१२ से १३,१५ से १६)=९, कुल पे. २, ले.स्थल. पूनानगर, लिख. ग. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११,१०४२६). १. पे. नाम. उपधानतप विधि, पृ. १अ-१४अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम शुभदिवसइ पोषध; अंति: पवेमि नवकार१ उभो केहे, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं २.पे. नाम. बिंबप्रवेश विधि, पृ. १४अ-१७आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. जिनबिंबप्रवेश विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम उतम सुभ मुहूर्त जोइ; अंति: पांच आंबिल छ नीवी दिन३५, (पू.वि. "थालीमा साथीओ" पाठ से "ए पोसामां उपवास करवो" पाठ तक नहीं है.) ९९९६४. (#) दानशीलतपभावना विशे व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२-१८(१ से १०,१२ से १३,२० से २५)=१४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११, १३४२५). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "वाचफलं प्रीतिकरं"पाठ से "ते फलनो वृक्षने किणे" पाठ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९९९६५. भुवनदीपक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१.५४११, १२४२३). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११२ अपूर्ण तक है.) ९९९६६ (#) सुषमछत्तीसी, संपूर्ण, वि. २१वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२१४११.५, १०४२६). सुषमछत्रीसी, मु. उदय ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: सुखम भाव तु सुण रे प्राणी; अंति: उदो० कियो ज्ञान विचारजी, गाथा-७२, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गिना है.) ९९९६७. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १५, कुल पे. २, जैदे., (१९x११, ८-१०४१७-२०). For Private and Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. दशविकालिक सझाउ, पृ. १आ-१२अ, संपूर्ण. दशवकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमानिलो; अंति: जयतसी जय जय रंग, अध्याय-१०. २.पे. नाम, आत्मबोध स्तवन, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-आत्मबोधगर्भित, म. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहेबनी सेवामां रेसुं; अंति: उदयरत्न० श्रीमहावीर, गाथा-७. ९९९७०. अष्टान्हिकामंडल पूजा, संपूर्ण, वि. १९१७, आश्विन अधिकमास कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५९, प्रले. पं. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अष्टा०पू०., दे., (१९x१०.५, ७४२०-२३). नंदीश्वरद्वीप ५२ जिनालय अष्टाह्निकामहोच्छव पूजा, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)वसुमद्वीपनंदीश्वरमांहि, (२)ॐ ह्रीं अष्टमनंदीसुरद्वीप; अंति: सिव सर्ग जिहां उपसर्गनां. ९९९७१ (+#) हंसवच्छ चतुष्पदी, संपूर्ण, वि. १७९२, आश्विन कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ३४, ले.स्थल. सिणली, पठ. मु. दीपचंद (गुरु पं. देदा); गुपि. पं. देदा; गुभा.पं. जीवाजी (गुरु ग. पूर्णचंद्र); गुपि. ग. पूर्णचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८.५४१०.५, १५-१८४३२-३६). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदि करी चोऊवीस; अंति: दिन दिन हुवइ जयकार, खंड-४ ढाल ४८, गाथा-९०५. ९९९८८. (+) कैवंना चौपई, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ३९, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. मु. मूलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कैवंनाचो०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२२.५४११.५, ११४२७). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक; अंति: जैतसी० मन उलस्ये जी, ढाल-३१, गाथा-५५५. ९९९८९ (+) चंद्रलेहानौ चरित्र, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रावण अधिकमास कृष्ण, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ४२, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. मु. मूलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चंद्रलेहाच०, चंद्रलेहा., संशोधित., दे., (२२.५४११.५, ११४३२). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति मात नमीकरी प्रणमु स; अंति: दूरै करैजी तसु जन्म परमाण, ढाल-२९, गाथा-६२४. १००००४. (+) प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९१८, पौष कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, ले.स्थल. अहम्मदाबाद, प्रले. पं. सुमतिराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२०४१०.५, १५४३८). प्रतिक्रमणगर्भहेतु, संबद्ध, आ. जयचंद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, वि. १५०६, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: ___ क्लृप्तश्चिरन्दतात्. १००००५ (+) स्नात्रपूजा विधि, अपूर्ण, वि. १९१७, कार्तिक कृष्ण, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. ७-२(३,५)=५, ले.स्थल. पुना, प्रले. मु. लब्धिचंद्र; पठ. सा. लाधाजी; लिख. मु. गुणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:स्नात्रपूजा, संशोधित., दे., (२१.५४११, ११४२६). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चौतीसे अतिसै जूओ वचन; अंति: देवचंद० सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६०, (पू.वि. पाठ "देखे माताजी अनुपम हरखी" से "श्रीतीर्थपतीनो कलस मझन गाई?" व "इम सांभलीजी सुरवर कोडि" से "आगमभासीया तेम आणी ठवे" तक नहीं है.) १००००६ (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (१९x१०,११४२४-२६). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४१. १००००७. (+) आराधना प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. सादडीनगर, प्रले. ग. अमिरूचि (गुरु पंन्या. हितरुचि); गुपि. पंन्या. हितरुचि (गुरु पंन्या. उदयरुचि, तपागच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०४११, ६x२८). For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४३९ पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, ग्रं. २४५. पर्यंताराधना-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेवने; अंति: लहइं ते शास्वता सुख सही. १००००८ (+) अहमदाबाद नगरवर्णन गजल, संपूर्ण, वि. १८६०, चैत्र शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. रामविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४११, १२४२८). अहमदाबाद नगरवर्णन गजल, मु. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: देस सकलमांहे दीपतो गुज्जर; अंति: प्रनपजो जयो जयो तपगछ घणी, गाथा-७६. १००००९ (+) सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५२, आषाढ़ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ.८, कुल पे. १४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०x१०, १३४३२-३८). १. पे. नाम. १८ दोष पोसह सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ दोष पोसह सज्झाय, मु. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर प्रणमी पाया; अंति: अविचल हो सुख संपदा, गाथा-८. २. पे. नाम. १९ दोस काउसगा स्वाध्याय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. काउसग्ग १९ दोष सज्झाय, मु. प्रतापविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी वीर जिनेसर देव सुर; अंति: प्रतापविजय इण परे गुण गाय, गाथा-१३. ३. पे. नाम, ३२ सामायक दोस सझाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष सज्झाय, म. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी नेमी जिनेसर पाय; अंति: मुनिविमल० करज्यो निसदीस, गाथा-१२. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-आत्मोपदेश, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नही एसो जनम वारोवार चित्त; अंति: सुणके पालवो धर्म आचार, गाथा-६. ५.पे. नाम, आध्यात्मिक पद, प. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे ऐसे सेहर विच कौन दिवा; अंति: ग्यांन का कवांण है, गाथा-५. ६. पे. नाम. पक्षनेमराजुल, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, म. प्रतापविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखि पडवेतो वेग पधारो रे; अंति: तो प्रताप प्रभु गुण गाया, गाथा-२१. ७. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. प्रतापविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तेरो गुनो में कौन कीउ हे; अंति: प्रताप गुण स्तव कीउ छे, गाथा-३. ८. पे. नाम. चैत्यवंदन लाभ स्वाध्याय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. देवदर्शन फलवर्णन स्तवन, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिदेवी नमि मनरंग; अंति: कवि मान कहइ करजोडि, गाथा-१२. ९.पे. नाम. इरीयावही स्वाध्याय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, संबद्ध, म. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कुसल दायक अरिहंत; अंति: मेरुविजेय. निसदिस, गाथा-१६. १०.पे. नाम. तेरकाठिया सझाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, म. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर प्रणमी पाय; अंति: हेमविमलसूरि सीसे कही, गाथा-१५. ११. पे. नाम. ८४ आशतना स्तवन, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. ८४ आशातनापरिहार स्तवन-जिनभवन, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर प्रणमइ; अंति: सिरि कर बे धरी, गाथा-२८. १२. पे. नाम, पिंडबत्रीसी सज्झाय, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. मु. सहजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिणेसर प्रणमुं; अंति: या सहजविमल मनमां सद्दह्या, गाथा-३१. For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३. पे. नाम आदिजिन पद. पू. ८आ, संपूर्ण, मु. प्रतापविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शेत्रुंज गिरि चलो जइये; अंति: चढत प्रताप सुख चहीये, गाथा-३. १४. पे नाम, नेमजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मु. मानविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारे तुम नेम जिनंदावो; अंति: मिटंदावो प्रभु का वंदावो, गाथा-४. 1 १०००१० (+) अमीझरापार्श्वनाथ व अंतरिकपार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण वि. १९६१ आषाढ़ शुक्ल, ४ शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २. प्रले. मु. हीरविजय (गुरु मु. विवेकविजय); गुपि. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २१x११.५, ११x२१-२५). १. पे नाम. अमीझराजीनो छंद. पू. १अ २आ, संपूर्ण - पार्श्वजिन छंद अमीद्वारा, मा.गु., पद्य, आदि उठ प्रभात अमिझरो अंति: निर्मल एथी पुरो आसये, गाथा १९. २. पे. नाम. अंतरीक पारस्वनाथजीनो छंद, पृ. २आ-७अ संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन दियो सरसति; अंति: छुसा गाथा-५३. १०००३८. (*) पाशाकेवली, संपूर्ण श. १७७२ श्रावण शुक्ल, १२, मध्यम, पू. १६. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०X११, ६x२२). पाशाकेवली. मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः यत्सत्यं त्रिषु लोकेषु अति तथा पाशकढालनम्, श्लोक १९६. १०००४७ (#) संघयणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८१९, पौष शुक्ल १, गुरुवार, मध्यम, पृ. १५, ले. स्थल. पोमावास, प्रले. ग. युक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री शांतिनाथ प्रशादात् अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३४१०.५, १४x२९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहंताई ठिइ अंति: जा वीरजिण तित्वं, गाथा-२९६. १०००४८ (४) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८१८, पीष शुक्ल, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२३×१०.५, १४X३२). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३. १०००४९ (+) विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. श्री पद्मप्रभु प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३x१०.५, ३X२७). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४३. दंडक प्रकरण-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि नमिठं क० नमस्कार करीनई: अंतिः आत्माने हितनी करणहार, प्र.ले.पु. सामान्य. १०००५० (+) सिंदूरप्रकर का वालावोध कथा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २३, प्र. वि. हुंडी सिंदूरप्रकर्ण, संशोधित, जैदे., (२३x१०.५, १२X३३). " सिंदूरप्रकर-वालावबोध+कथा, मा.गु. गद्य, आदिः येषां न विद्या न तपो अति करो जिम संसार समुद्र: तरो १०००५३. . (+) वरदत्तगुणमंजरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१.५X१०.५, ५X३३-३६). वरदत्तगुणमंजरी कथा- सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५ आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक १०० अपूर्ण तक लिखा है.) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ प्रतिं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक ८४ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only १०००५५. (+) जीवविचार, नवतत्त्व व दंडक प्रकरणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५८, कार्तिक शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. ६, ले. स्थल. खीवसर, प्रले. श्राव. जीतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक ने 'नवीतिथी' ऐसा लिखा है, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. प्र. ले. श्रो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे. (२२४१०.५, ९४२७). Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ५अ-९आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पण्णं पावा; अंति: लेसा तिन्नि सेसाणं, गाथा-५५. ३. पे. नाम, दंडक प्रकरण, पृ. ९आ-१३अ, संपूर्ण. मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चोवीसजिणे; अंति: एसा विणत्ति अप्पहिया, गाथा-४०. ४. पे. नाम. १४ गुणस्थानक नाम, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व सास्वादनं मिश्र; अंति: जोगी गुणठाणा चतुर्दस. ५. पे. नाम. दानप्रकार गाथा, पृ. १३आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: अभय सुपत्तं अणुकंपा उचित; अंति: संजल नोनंत्ता बंद्धय, गाथा-२. ६. पे. नाम. चातुर्मासिककर्तव्य श्लोक, पृ. १३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सामायिकावश्यक पौषधा; अंति: चतुर्मासमंडनानि, श्लोक-१. १०००५६. (+) दसविध पचखाण, १४ नियम गाथा व ८ कर्म नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प.७, कल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४११, ९४२६-२९). १.पे. नाम. दसविध पचखांण, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गे सूरे नोकारसीअं; अंति: धारणा प्रमाण जाणवौ. २. पे. नाम. १४ श्रावकनियम गाथा, पृ. ७आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित१ दिव्वर विगइ३; अंति: न्हाण१३ भत्तिसु१४, गाथा-१. ३. पे. नाम. ८ कर्म नाम, पृ. ७आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावर्णनी १ दर्शनावर्ण; अंति: अंतरायकर्म ७ आवखो ८. १०००५७. (+) सिंदरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९३६, भाद्रपद शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. पं. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिंदूर०., संशोधित., दे., (२१.५४१०.५, १०४३२). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. १०००५९ (+#) संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १८७६, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. सेवंत्री, प्रले. ग. लावण्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री ऋषभदेवजी प्रसादात्. श्री शांतिनाथजी प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, ९४२१). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-७२. १०००७६. (+) सुक्तावलि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:शुक्तावलि., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२४९.५, ११४४५-४८). सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वीरं विश्वगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२७१ अपूर्ण तक है.) १०००७७. (+) सिंदूरप्रकर, मासदशा विचार व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९५८, पौष शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. ३, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. मु. जितमल; राज्यकालरा. रणजीतसिंघ रावल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , दे., (२२४१०.५, ९४२७). १. पे. नाम. सिदूरप्रकरण, पृ. १अ-१६अ, संपूर्ण. __ सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: मुक्तमार्गं समाचरेत्, द्वार-२२, श्लोक-१०१. २. पे. नाम. मासदशा विचार, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. मास दशा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: रविकां२० शां सुख नही पावै; अंति: दिस क्रमेण अष्ट दिशौ. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रोलोका राजावनीजमो; अंति: (-), (पू.वि. "श्रीपुस्यौतरनीर्जरावतुभवाब्धि" पाठ तक है.) १०००७८. (+#) नारचंद्रसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९०१, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ३३, प्रले. मु. चंद्रभाण; पठ. श्राव. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नरचं०, नारचं०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१०.५, ९४२०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति: कुसल चउत्थं ठामि, श्लोक-३२४. १०००७९. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:भक्ता०., जैदे., (२२४१०.५, ६x२९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., श्लोक-२५ अपूर्ण तक लिखा है.) १०००८० (+#) पाक्षीकसूत्र व घंटाकर्णमहावीर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०,१२४३३). १. पे. नाम. पाक्षीकसूत्र, पृ. १अ-१३आ, संपूर्ण. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: सयं जेसिं सुअसायरे सत्ति. २.पे. नाम, घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, प. १३आ, संपूर्ण. ___सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. १०००८१ (+#) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ९, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, ६४२०). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: परमानंदसंपदं, श्लोक-८१. १०००८२. (+#) साधुअतिचार, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रावण कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. अलायनगर, प्रले. मु. रामविजय (गुरु मु. उत्तमविजय); गुपि. मु. उत्तमविजय (गुरु मु. नेमिविजय); मु. नेमिविजय (गुरु मु. उदयविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (२३) जब लग मेरु अडग है, जैदे., (२२४१०, ९४२५). साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: अनेरो जे कोई अतिचार. १०००८३ (+#) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७१३, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. कोटा, प्रले. मु. मतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०.५, ८x२२). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: दोषैर्विमुच्यते, श्लोक-८०. १०००८४ (+#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र, भरतचक्रवर्ति विवरण व १२ गुण अरिहंत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, ८x२४-२८). १.पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. उमेदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीऋषभदेवजी प्रसादात्. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. २. पे. नाम. भरतचक्रवर्ति विवरण, पृ. ६आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी दंसणावरणी; अंति: अनंतवीर्य नही ८. ३. पे. नाम. १२ गुण अरिहंत, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति ६आ के हांसिया में लिखी है. मा.गु., गद्य, आदि: असोकवृक्ष१ फूलारी वर्षा; अंति: भक्ति करे११ वचनातिशय१२, अंक-१२. १०००८५ (+) भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८८१, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. अहिपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२३४१०.५, १३४३५-३८).. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदिः किल इति संभावनायां; अंति: वर्ण विचित्र पुष्पाम्. For Private and Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४४३ १०००८६. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५, प्र.वि. हुंडी:पार्श्वनाथत०, पार्श्वत०, पार्श्वस्त०, पार्श्वनाथस्त०. अंत में तीर्थयात्रा व जिनप्रतिमा पूजा संबंधी श्लोक व कथाओं की सूचि दी है., जैदे., (२३४१०.५, ९४३२). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादनी; अंति: जिण नाम अभिराम ते, ढाल-५, गाथा-५५. १०००८७. (+) ज्ञानपंचमी देववंदनविधि व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३७, फाल्गुन कृष्ण, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. अजिमगंज, प्रले. मु. छत्रचंद्र (गुरु मु. अबीरचंद्र ऋषि, पासचंदगच्छ); गुपि. मु. अबीरचंद्र ऋषि (गुरु मु. इंद्रचंद्र, पासचंदगच्छ); मु. इंद्रचंद्र (गुरु आ. लब्धिचंदसूरि, पासचंदगच्छ); राज्ये आ. हेमचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२३.५४१०.५, ११४३६). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमी देववंदनविधि, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम वाजोठ उपर तथा ठवणी; अंति: पूजीइ विजयलक्ष्मी शुभ जेह, पूजा-५. २. पे. नाम, औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ११अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: अखाद्य खादितो लोके निरसो; अंति: भज परमसौख्यं वृजसुधिं, श्लोक-२. १०००८८. (+) आणंदश्रावकनी संधि, संपूर्ण, वि. १८१०, पौष शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. वरण, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४१०, १२४३७-४२). आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर तणा नमतां; अंति: पभणे मुनि श्रीसार, ढाल-१५, गाथा-२५०. १०००८९ (+#) विसहरा शकुन विचार व पार्श्वजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४९.५, ११४२८). १.पे. नाम. विसहरा विचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८७१. विसहरा शकुन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: वार अदीत१ मंगल२ शनि३; अंति: समरण कीजै सष्ट मिटै. २. पे. नाम. अंगफुरकण विचार, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण, वि. १८७१, चैत्र शुक्ल, १, ले.स्थल. नीबेडा, प्रले. मु. हीमतसोभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य. ___ अंगस्फुरण विचार, मु. हीररत्न, मा.गु., पद्य, आदि: माथै फुरके पुहवीराज; अंति: हीररतन०जिसी गुरु भणी, गाथा-२१. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. प्रधानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पारसनाथ पसायथी रे; अंति: प्रधानसागर० लील विलासरे, गाथा-७. ४. पे. नाम. औपदेशिक दोहासंग्रह, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहासंग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: चौपड मांडो चतुरनर दस; अंति: टहुकडा विरह घटै न समाय, दोहा-९. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जीवन कीस जीवन कै वासते रे; अंति: दैवगम पार नही प्रथीराज, गाथा-४. ६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. अखेराज, पुहिं., पद्य, आदि: सारी सलवट कोय अहरन खंडीया; अंति: अखैराज० कहा जावै एकली, गाथा-३. ७. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. __ मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐनमो आदेस गुरुकु; अंति: मंत्री चलू३ पाणी पीजै. ८. पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ८अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा, क. दिन, पुहिं., पद्य, आदि: मनखा देही पाय कै; अंति: दीन ओडा जुगमे जुगमै सवाया, गाथा-४. १०००९०. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. १८, जैदे., (२२.५४१०, १५४३६-४१). १. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी माहत्म्यगर्भित नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, वि. १८०५, वैशाख कृष्ण, ७, रविवार, ले.स्थल. पोसालीया, प्रले. पं. दीपविजय, प्र.ले.प. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन स्तवन-सौभाग्यपंचमी महात्म्यगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: प्रणमु पवयणदेवी रे; अंति: कांति० पामीइं मंगल घणो, ढाल-९. २. पे. नाम. न्यानपंचमी सौभाग्यफलप्ररूपण स्तवन, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-ज्ञानपंचमीपर्व, ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात पसाउले निज; अंति: दयाकुशल आणंद थयो, ढाल-३, गाथा-३०. ३. पे. नाम. थुलिभद्रऋषि स्वाध्याय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहिण चौमासे; अंति: दिन दिन सुख सवाया हो, गाथा-११. ४. पे. नाम, सुवधी गीत, पृ. ७आ, संपूर्ण. सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: भोरी अमांणी आया रे; अंति: निरंजन रूपचंद बंदा तेरा, गाथा-४. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मु. नेम, मा.गु., पद्य, आदि: वारु वारु रे म्हारा; अंति: नेम०निजसेवक करी मानो राजि, गाथा-९, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गिना है.) ६. पे. नाम, आत्महितसिक्षा स्वाध्याय, पृ. ८अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनमांकड, म. लावण्यसमय, मा.ग., पद्य, आदि: मन मांकडलो आण न माने; अंति: लावण्य० फल लीजे रे, गाथा-६. ७. पे. नाम. संभव स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब सांभल वीनती; अंति: मान० वीनती छे छेक, गाथा-८. ८. पे. नाम, अभिनंदन स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मुझ दरिसन मिली; अंति: नुभवरस मांहेंलो रस तांनइं, गाथा-७. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण.. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजी प्रगट प्रभावी त; अंति: मानविजय० तुज पाया रे, गाथा-५. १०. पे. नाम. अजित स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण. ___ अजितजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणेसर चरणनी; अंति: हुओ मुज मन काम्यो, गाथा-७. ११. पे. नाम, उपधानजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. उपधानतप स्तवन, पंडित. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८५, आदि: प्रणमी वीर जिणंदने; अंति: ता देज्यो मुज सुखदाय, ढाल-३, गाथा-३६. १२. पे. नाम. रिषभदेवजिन स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. कृष्णविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणेसर साहिबो; अंति: कृष्णविमल गुण गाय, गाथा-१३. १३. पे. नाम, अर्बुदाचल स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल करम पाल्हें; अंति: श्रीविजयनित जयकार हो, गाथा-१३. १४. पे. नाम. विजयधर्मसूरी स्वाध्याय, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. गुरुगुण सज्झाय, ग. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज उछरंग रसरंग मंगल; अंति: आण तुम वरतस्ये जगत आखें, गाथा-९. १५. पे. नाम, गुरुगुण स्वाध्याय, पृ. १२अ, संपूर्ण. विजयधर्मसूरि गुरुगुण सज्झाय, मु. विनोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जयजयो श्रीविजयधर्म; अंति: वीनवें नित्य चढतें दिवाझा, श्लोक-७. For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६. पे. नाम बाहूबलऋषि स्वाध्याय पू. १२अ १४अ संपूर्ण, ले. स्थल पोसालीया. भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: स्वस्ति श्रीवरवा; अंति: रामविजय जयश्री वरे, ढाल-४, गाथा - ३८. १७. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १४अ संपूर्ण, मु. जगरूप, मा.गु., पद्य, आदि: चंदाजी हो म्हे अरि, अंति: प्रभु आवागमण निवार, गाथा ५. १८. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १४आ, संपूर्ण. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कुंधु जिणेसर जाणज्यो; अंति लाल मानविजय उवझाय रे, गाथा- ७. १०००९१. (+४) २५ भावना विवरण ५ महाव्रत, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२३४१०.५, १५४४१-४४) ४४५ २५ भावना विवरण ५ महाव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: लिंगतियं वयणतिय कालतियं० अंतिः असौ गाथाया तरंगभावः. १०००९२ (क) १४ जीवठाणाना बोल २३, संपूर्ण वि. १७९३, माघ कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. सूरतबिंदर, प्रले. मु. जगाजी ऋषि पठ.मु. कल्याणजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जै. (२३४१०.५, १७x४०-४७). १४ गुणस्थानके २५ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि पहिलु नाम द्वार१ बीजु गुण; अंतिः थावर माहे लाभे ते भणी. १०००९३. (४) मौनएकादशी व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. पंन्या. रामसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५X१०.५, १२X३३-४०). १. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. मी एकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्म, वि. १७६९, आदि द्वारिकानवरी समोसर्य; अति: लहे मंगल अतिघणो, ढाल ३, गाथा - २५. २. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पू. ४-५आ, संपूर्ण मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि सुणि सुणि सरसति; अंतिः पुरव पुन्ये पायो रे, डाल-७, गाथा ४०. १०००९४. (+) दानशीयलतपभावनारो चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९५८, वैशाख शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२२x१०.५, ९४२३). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: भ० सुप्रसादो रे, ढाल ४, गाथा- १०१, ग्रं. १३५. 3 १०००९५. (+४) पंचकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १३, ले. स्थल वालीनगर, प्रले. मु. नेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मनमोहन प्रसादात्, श्री रीषभदेव प्रसादात्, संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२४x१०.५, ११x२३). पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंति: छित दाय सहायो रे, ढाल -८. १०००९६. (+) नेमजी स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ५, प्रले. मु. नित्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२२.५X१०, १३X३१). १. पे. नाम. नेमजी स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण, वि. १९वी आश्विन कृष्ण, १. नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., पद्य, आदि: हठ करी हरीय मनावीओ; अंति: रिधहरख० दोतनो दातार रे, गाथा - ३३. २. पे. नाम. नेमजी गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. मिजिन बलगीत, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत चंदलो सांव अंति: रुपचंद० बल जोवानी खंत, गाथा-८. ३. पे. नाम, नेमजी स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, नेमिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल छोडि नेमजी; अंति: इम जंपे सीस जिनेंद्र, गाथा-८. ४. पे नाम, दानशील संवाद, पृ. ३अ-७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाय नमी; अंति: भणे० सुप्रसादो रे, ढाल-५, गाथा-१०४, ग्रं. १३५. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: तिलकं गुरु हस्तेषु मात; अंति: निद्रा संसार वर्द्धिनी, गाथा-३. १०००९७. (#) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०x१०,११४२८). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६९ तक है.) १०००९८.(2) भक्तामर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१०, ९४२६-३१). __ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. १००१०० (#) रवि कथा, संपूर्ण, वि. १७८८, श्रावण शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ.८, प्रले. मु. नानजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११, १५४३२). आदित्यवार कथा, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहनाह प्रणमो जिणंद जा; अंति: नर सुरंग देवता होय, गाथा-१५७, (वि. अंत में किसी अज्ञात कृति का मात्र प्रारंभिक पाठ है.) १००१०१ (+) गर्भचिंतामणि सप्तढालियौ, संपूर्ण, वि. १९२८, भाद्रपद कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. श्राव. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गर्भचिं०., संशोधित., दे., (२२४११, ९४२२-२५). गर्भचिंतामणी, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसे जिनराज कू पूजीजै; अंति: अरुदानदौ सौ चालैगौ साथ, ढाल-७, गाथा-१८०. १००१०२.(+) दानशीलतपभावना चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि.संशोधित., दे., (२१४१०.५, १२४२३-२६). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: रे रिध समृधइ सुख कंदो रे, ढाल-४, गाथा-१००. १००१०८. (+) अनुपानमंजरी, अपूर्ण, वि. १९१४, भाद्रपद कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १०-२(२ से ३)=८, ले.स्थल. हरिदुर्ग, प्रले. रामरत्न द्वीज; पठ. भगवानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२०.५४११, ९४३२). अनुपानमंजरी, आ. विश्रामाचार्य, सं., पद्य, वि. १८२७, आदि: यस्य ज्ञानमयी; अंति: विश्रामं ग्रंथकारकः, समुद्देश-५, (प.वि. समुद्देश-२ से समुद्देश-३ श्लोक-१० अपूर्ण तक व बीच के पाठांश नहीं है.) १००१११ (#) शुकनावली मंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२२४११, १२४३९-४०). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ऊँ नमो भगवति; अंति: (-), (पू.वि. ४२१ तक है.) १००११२. (#) सूक्तमाला व ग्रहदशा वर्ष श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७०, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२०४११, १२-१५४३०-३८). १. पे. नाम. सूक्तामाला सह बालावबोध, पृ. १आ-७०आ, संपूर्ण. सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लीवृंद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वर्ग-२ कथा-२०वीं तक लिखा है., वि. मूल का श्लोक भाग है, गद्यांश भाग नहीं है.) सूक्तमाला-बालावबोध, मु. प्रतापविजय, मा.गु., गद्य, आदि: तदनुक्रम संग्रहो; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. ग्रहदशा वर्ष श्लोक, पृ. ७०आ, संपूर्ण. ज्योतिष विचार, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: आदित्ये षट् वर्षाणी ६; अंति: शुक्रेस्यादेक विंशति २१. १००११३. जंबूवती चौपाई व ७ नरक पाथडा विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४(१ से २,४,७)+१(८)-६, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:जं०., दे., (२१.५४१०.५, १८४३२-३६). १.पे. नाम. जांभवती चौपई, पृ. ३अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रह्या श्री कीसन मुरारतो, ढाल-१३, (पू.वि. ढाल-४ गाथा-७ अपूर्ण से है व बीच-बीच की गाथाएँ नहीं हैं., वि. प्रतिलेखक ने कर्तानाम की अंतिम गाथा नहीं लिखी है.) For Private and Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४४७ २. पे. नाम. ७ नरक पाथडा विचार, पृ. ९अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पहली नरगमध्ये १३ पाथडा; अंति: असंख्याताजोजननो पार न पाम. १००११४. (+) स्तवन व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. १२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४१०.५, १०x२४-२५). १. पे. नाम, सेजा स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज आपे चालो सहीयां; अंति: जिनचंद० मन आणी रे, गाथा-९. २. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कुशल, रा., पद्य, आदि: रीषभ केसरीया थारा गुण गाउ; अंति: कुसल० चरण कमल चीत लाउ हो, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहि., पद्य, आदि: देख दिवाना हुवा रे नर देख; अंति: कबीर० चल्यो जैसे जुवा रे, गाथा-४. ४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: जोगारंभ को मारग वांके रे; अंति: कबीर० धणी से राखो रे, गाथा-४. ५. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. २आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: सांवरीया वालम वालम जावो; अंति: लागी लगन लाखा नाय छुटै, गाथा-४. ६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मु. जिनरंग, पुहि., पद्य, आदि: सब स्वारथ के मीत है कोउ; अंति: वे पुरस है तीण आफु संभारा, गाथा-३. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहि., पद्य, आदि: कहां रे अग्यानी जीव; अंति: कहा वाको सहज मिटावै, गाथा-३. ८. पे. नाम. गौतमस्वामी प्रभाति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मे नही जान्यो नाथजी; अंति: करी प्रभू चरणां चीत लाये, गाथा-७. ९.पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे इतनो चाहिये; अंति: आनंदघन० मै अवर न ध्याउं, गाथा-३. १०. पे. नाम. श्रावकनी करणी, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहर्ष० हरणी छे एह, गाथा-२२. ११. पे. नाम. सिचियायजीरी धुन, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण. सिचियायदेवी स्तुति, मु. जयरतन, रा., पद्य, वि. १७६४, आदि: मन सुध ज्यां महिर कर; अंति: एही कीरत श्री साचलमात कही, गाथा-३३.। १२. पे. नाम. पखवाडो, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १५ तिथि सज्झाय, मु. डुंगरसी, रा., पद्य, आदि: हारे चतुरनर ग्यान विचारो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) १००११५ (+) झांझरीयाऋषि चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रावण शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. मु. खीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:झांझ०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२१४११, ९४२५). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसती चरणे सीस; अंति: इम सांभलता आणंद के, ढाल-४, गाथा-४३. १००११६. आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:अ०., दे., (२०.५४१०.५, १४४३२-३८). आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नमोकार १ गुणनो; अंति: किया ध्यान उपजे आनंद हे. १००११७. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. सरवाड, दे., (२१४११, १०४३२-३५). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)पासो मंत्रीजै बार ३, (२)१११ उत्तम सुगन छै थानक; अंति: बडो मनोरथ सिद्ध पामसी. For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १००११८. (+) चेलणारी सतर ढाला, संपूर्ण, वि. १९५६, आश्विन अधिकमास शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:चेलण०., संशोधित., दे., (२१.५४११, १९४३२). चेलणासती सत्तरढालियो, म. रायचंद ऋषि म. दयाचंद ऋषि; म. गोरधन ऋषि, रा., पद्य, आदि: अवसर जो नर अटकलो चेतो; अंति: मेटी जन्म मरण री खांमी, ढाल-१७... १००११९ (+#) तीर्थमाला, अपूर्ण, वि. १८७८, वैशाख कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०-२(१ से २)=८, ले.स्थल. पालीताणानगर, प्रले. पं. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री ऋषभदेवजी प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११, १२४३१). शत्रुजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: साजे अमृतरंग सुहंकरू, ___ढाल-१०, गाथा-१५२, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१८ अपूर्ण से है.) १००१२० (4) पार्श्वजिन छंदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ४, प्रले. पंन्या. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११.५, १३४२१-२५). १.पे. नाम. अंतरिक छंद, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वसन द्यौ सरसती; अंति: धन ते जिनवचने रमे, गाथा-५५. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ छंद, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: गोडी गिरुयो गाजतो धवली; अंति: एकल्ल मल्ल अमतुं धणी, गाथा-२४. ३.पे. नाम, पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पृ. ५अ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवे; अंति: कहें जीनहर्ष अकलविन्यास, गाथा-८. ४. पे. नाम. शंखेश्वर स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अलगी रहे नहिं रहेने रहिने; अंति: मोहन० __ स्तुति लटकाली, गाथा-६. १००१२१. (+) अष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९९०, माघ कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५५, ले.स्थल. भीलवाडा, प्रले. पंन्या. हीरसौभाग्य (गुरु मु. नंदसौभाग्य, तपगच्छ); गुपि. मु. नंदसौभाग्य (तपगच्छ); पठ. मु. उदयसौभाग्य (गुरु मु. नंदसौभाग्य, तपगच्छ); राज्यकालरा. भूपालसिंह महाराणा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१३८४) अद्रसं पुस्तकम् द्रिष्ट्वा, दे., (२१४११, ९४२८-३२). अष्टाह्निका व्याख्यान, म. शांतिसागरसूरि शिष्य, सं.,हिं., गद्य, आदिः श्रीमद्वीरं जिनं: अंति: कोडी वीतराग वंदेती सत्यम्. १००१२२ (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ५, प्रले. मु. तिलोकचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४११.५,११४३२). १. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सुहामणो; अंति: सिंहविमल० प्रणाम रे, गाथा-२३. २. पे. नाम. दीधमान सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. दानाधिकार सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: समरु सरस्वति सामणी जी; अंति: भणीजी पुन्य तणे परीमाण रे, गाथा-१६. ३.पे. नाम, थलिभद्र सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडी न कीजै नारी; अंति: चुंनडी रे सुंदर एहीज रीत, गाथा-७, (वि. अंत में नेमिजिन स्तवन का प्रारंभ करके छोड़ दिया है.) ४. पे. नाम. कृष्णपक्षशुक्लपक्ष सज्झाय, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, म. कसल, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रे रे; अंति: कुसल नीत घरी अवतरी, ढाल-४, गाथा-२७. For Private and Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४४९ ५. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: पुर सुग्रीव सोहामणो; अंति: दीन दीन परम कल्याण हो, गाथा-१२. १००१२३. उत्पत्ति सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. हुंडी:उतप०., दे., (२१x१२.५, ६४१६-२३). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जो जीव आपणी मन; अंति: इम कहे श्रीसार ए, गाथा-७१. १००१२४. उग्रसेन प्रति मजलसराय का पत्र, संपूर्ण, वि. १९४४, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. छावणी, प्रले. बलदेव व्यास; पठ. श्रावि. मुलतानमल भार्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "छावणी शिवपूरि की मध्ये पाठसाला मैं" लिखा है., दे., (२१४११, ९४२६). उग्रसेन प्रति मजलसराय का पत्र, श्राव. मजलसराय अग्रवाल, मा.गु., गद्य, वि. १८०२, आदि: सीधश्री पाणीपंथ सुभसुथान; अंति: मजलसरायनै जात्रा करी. १००१२५. (+#) रामयशोरसायन चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११६-८५(१ से ८५)=३१, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११, १७४२७-३२). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-३ ढाल-४५ गाथा-५३ अपूर्ण से अधिकार-४ ढाल-५७ गाथा-८७ अपूर्ण तक है.) १००१२६ (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२८, आश्विन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. १४, प्र.वि. मात्र १ ही पत्रांकवाली प्रतों का संकलन है, जिसे क्रमशः गिनकर कुल पत्रांक दिया गया है., संशोधित., दे., (२१.५४१०.५, ९४२८). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. नरसिंग, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: नवघाटी बीच वटकत पायो है न; अंति: दीवसे कीधो ग्यान प्रकास, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: जादव कोड वस दुर दंतक; अंति: करम की रेख टर नही टारी, गाथा-२. ३. पे. नाम. अष्टापदगिर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, म. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ अष्टापद नित नमी; अंति: जसवंतसागर० वधते नेहो जी, गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण.. कबीरदास संत, पुहि., पद्य, आदि: जागै क्युनी नींद वटाउडा; अंति: पीवो पोहोचो मुक्त भणी रे, गाथा-५. ५.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. म. चंदखसाल, मा.गु., पद्य, आदि: नानडियो गोद खेलावे छे नान; अंति: गावै निरख हरख सूख पावै छै, पद-६. ६.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: उठ चलणा एक लिगार नमै प्रभ; अंति: कबीर० खाणा अहंकार मै, गाथा-५. ७. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्राव. मूलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सांवरीयो नाथ हमारो छे; अंति: प्रभुकु वंदन वार हजारो छे, गाथा-७. ८. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. श्राव. मूलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: पास जिणेसर प्राण पीयारो; अंति: प्रणमे प्रभु मत दीजो पीठो, गाथा-४. ९. पे. नाम. फलवधीपूर थंभण पार्श्वजिन पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-फलवर्धापूरस्थंभण मंडन, श्राव. मूलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीफलवधीपूरथंभण पारस साह; अंति: बंदै जन्म जन्म हु तेरो जी, गाथा-३. १०.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-सहस्रफणा, पृ. ५अ, संपूर्ण. म. कीर्तिसागर, पुहिं., पद्य, आदि: सहस्र फणारा मेरा साहिबा; अंति: तेरी मोज महर नित पाउरे, गाथा-६. ११. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ.५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तेरी सांवरी सूरत मन वस गई; अंति: ऐ इछा उरमो भइ रे, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी पद, प. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल, रा., पद्य, आदि: तेवीसमा जिनराज जोडै; अंति: वृद्धि० दीज्यो दीदार, गाथा-४. १३. पे. नाम. दिशाशूल-योगिनीवास विचार, पृ. ५आ, संपूर्ण. ज्योतिष विचार, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पूरब सोम सनीसर वार दिखण; अंति: सनमुखे परण प्रदा. १४. पे. नाम. पार्श्वप्रभुजीको स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, श्राव. मूलचंद, पहिं., पद्य, आदि: चिंतामिण पासजी मारी चिंता; अंति: प्रभु अस्वसेनजी का नंद, गाथा-११. १००१२७. (+) दशदृष्टांत व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२०४११, १३४३२). १. पे. नाम. दशदृष्टांत सज्झाय, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. १० दृष्टांत गीत, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति सरसति मति दिओ नरमली; अंति: सोमविलसूरि बोलइ एहवी वाणी, ढाल-१०. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (१)श्रमण नमु निजिन नमुंए, (२)सुध भाव धरे आपण मन वसि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक ___द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक लिखा है.) १००१२८. नारकवेदना वर्णन दोहा, संपूर्ण, वि. १९७२, आश्विन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. तवरी, प्रले. श्राव. गबुलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नारकी दोहा., दे., (२०x१०.५, १७४२७). नरकवेदना वर्णन दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: तिहां प्रथम कयी नरक; अंति: दलमां शोचे झरे सदीव, अंक-५४. १००१२९ (+#) तिलोकसुंदरी चौपाई व नेमजी की बारात, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:तलोकसुदरी., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४१०.५, १७४३३). १. पे. नाम. तिलोकसुंदरी चौपाई, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. त्रैलोक्यसुंदरी रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: विहरमान वीसे नमु जेवंता; अंति: जिण घर लील विलासो रे, ढाल-१२. २. पे. नाम. नेमनाथजी की बारात, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, म. नंदराम, पहिं., पद्य, आदि: नेमजी की जान बणी भारी; अंति: नंदराम० का हवा जै जयकारी, गाथा-१६. १००१३०. स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. ११, दे., (२१.५४१०.५, १०४२८-३२). १.पे. नाम. सर्वतिर्थोत्तम सीधाचलजीनी स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पेथापुरनगर, प्रले. श्राव. लीलो, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीसुवधिनाथ प्रासादे चरणग्रहे. शत्रंजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेव॒जो तीरथ; अंति: पाया रीषभदास गुण गाया, गाथा-४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में "आ थोय चारेवार कहेवाय" ऐसा लिखा है. मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधो साधो; अंति: पद्म वंछित शुभ आज, गाथा-१. ३. पे. नाम. सीतलनाथनु स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, प्रले. जयसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य. शीतलजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: शीतल जिनपति प्रभुता; अंति: देवचंद० परमानंद सरुपजी, गाथा-१०. ४. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्रीजिनराज आज; अंति: मल्यो भवजल पार उतार, गाथा-६, (वि. गाथांक नहीं दिया है.) ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत नमो वली सिद्ध; अंति: नय विमलेसर वर आपो, गाथा-४. ६. पे. नाम. ऋषभदेवजीनी स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४५१ आदिजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: आदि जिनवर राया जास; अंति: पद्मने सुख दियंता, गाथा-४. ७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन वंछित पूरण; अंति: राम कहे नितमेव, गाथा-४. ८. पे. नाम, सीमंधरदेवनी स्तुति, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीसीमंधरदेव सुहंकर; अंति: सकलमां सिद्धि जी, गाथा-४. ९. पे. नाम. वीसस्थानकनी स्तुति, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुछे गौतम वीर जिणंदा; अंति: आधार वीरविजय जयकार, गाथा-४. १०. पे. नाम. २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पृ. ७अ, संपूर्ण. __पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: पहिले पद अरिहंत नमुं; अंति: नमतां होय सुख खाणी, गाथा-५. ११. पे. नाम. विमलाचलनु स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचल विमला पाणी; अंति: शभविर विमलगीरी साचो. गाथा-७. १००१३१ (4) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०.५, १०x२८-३२). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, म. नयसंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल: अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२० अपूर्ण तक है.) १००१३२. (+) नेमजिरो बारमासीयो आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५८, माघ, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४१०, ८x२९). १.पे. नाम. नेमजिरो बारेमासीयो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: रंगीला नेमजी चैत्र; अंति: री राजुल पोहथी मुक्त मझार, गाथा-१३. २.पे. नाम, नक्षत्र राशि गण विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. __ ज्योतिष विचार, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: हस्तस्वाती अनुराधा श्रवण; अंति: द्वादसी द्वादसी हरेत्. ३. पे. नाम, जंबूकुमर सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नगरी वसै रीषभदत्त; अंति: तणै सिद्धविजै सूपसाया रे, गाथा-१४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित फलदायक स्वामी; अंति: जय उतम जिन गुण गावे, गाथा-८. १००१३३. (+#) स्तवनचौवीसी-स्तवन १ से ५, संपूर्ण, वि. १८७८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. मु. हेतवर्द्धन; पठ. शंकर ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ऋषभदेवजी प्रसादात्, माणिभद्रजी प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४१०, १०x१८-३२). स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऊलगडी ते आदे नाथनी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १००१३७. हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-२(१४ से १५)=१४, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:हंसछ चउ०., जैदे., (२०.५४११, २४४३६-४२). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदेसर आदी करी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-४ ढाल-३१ गाथा-१३ अपूर्ण से ढाल-३५ गाथा-८ अपूर्ण तक व ढाल-३८ गाथा-२१ से नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १००१४३. (*) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२३ भाद्रपद शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल, कलकता, प्रले. श्राव. मंगलचंद मथेन पढ श्राव. कवरजी; श्राव. इसरचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., ., दे., (२०.५X१०.५, ९x२३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "" भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्म, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. १००१४४. (*) सिद्धांत प्रश्नोत्तर संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२१x१०.५, १०x३३). सिद्धांत प्रश्नोत्तर, मु. दोलतराय, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धत्थ सवसंजलया; अंति: पहिला लीधो जाणीये छइ. १००१४५. बृहत्शांति स्तोत्र तपागच्छीय, संपूर्ण, बि. २०वी मध्यम, पृ. ५, दे. (१९४९.५, ११x२४-२८) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे. १००१४६. () पोसा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५. प्रले, मु. कीर्त्तिकल्लोल; पठ. श्रावि. कानाजी बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२१.५x१०.५, १०x२६-३२). पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि थापनाचार्य प्रथम थापी अंति: सामायिक पारै० चउपहरी, १००१४७. (*) जीवविचार प्रकरण व नमस्कार महामंत्र, संपूर्ण, वि. १९५९ वैशाख कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, ले. स्थल, खिवसर, प्रले. मु. जितमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, प्र. ले. श्लो. (५७८) यासं पुस्तकं द्रष्ट्वा, दे.. ( २२x१०.५, ४x२६ ). १. पे नाम, जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, पृ. १अ १०अ संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः संतिसूरि० सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण- टवार्थ" मा.गु., गद्य, आदि त्रिणिभुवनने विषे दीवा; अंति रूप जे समुद्र तेह थक्की. २. पे. नाम नमस्कार महामंत्र सह टवार्थ पू. १०अ १०आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि नमो अरिहंताणं; अंति पढमं हवइ मंगलं, पद- ९. नमस्कार महामंत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार होज्यौ; अंति: मंगलीक छै संपतनो दातार छै. १००१४८. (+#) गौतमस्वामी रास व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३२, आषाढ़ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : गोत्रा, गोत्म०. विद्वान नाम खंडित है, संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२१.५४११, ९४२५-२८). , १. पे. नाम गौतमस्वामी रास, पृ. १अ ८अ संपूर्ण, पे.बि. हुंडी गोतम रा०. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमला; अंति: जै मंगलमाला समै भणै ए, गाथा - ५०. २. पे. नाम. गौतमजीरो स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी प्रभाति, मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि मे नही जान्यो नाथजी अंति: रुपचंद० चरण चित लायो, गाथा-७, १००१४९. वैराग्यदेशना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, वे., (२२.५x१०.५, ७४१८). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा., सं., प+ग., आदि: तिथयरा गणहारी सुरवयणो; अंति : (१) पदवी० प्राप्त मान होवेगा, (२) सुख मंगलीकमाला विस्तरे. १००१५०. (+) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र. वि. संशोधित., दे., (२१X१०, ६x२०). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंतिः प्रसीद परमेश्वरि श्लोक-३०. १००१७५ (+) अंजणासती रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५३, प्र. वि. हुंडी : अंजनारा., संशोधित., दे., (२०.५x१०, ७X२५). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंति: सती रे सिरोमणि गाइये, ढाल - २२, गाथा- १६२. १००१७६ (#) अवंतिसुकुमाल रास व चेलणासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की फैल गयी है, जैदे. (२१.५x१०, १४४४३ ). १. पे. नाम. अवंतिसुकमाल रास, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण, वि. १७९५, पौष शुक्ल २ ले स्थल, घिणलाग्राम, प्रले. मु. कनकहंस; पठ. मु. खुस्यालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरख सुख पावै रे, ढाल-१३, गाथा-१०७. २. पे. नाम. चेलणारी सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वंदी घरे आवतांजी चेलण; अंति: पांमिस्यै भव तणो पार, गाथा-६. १००१७७. शत्रुजयतीर्थ रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्रले. पं. क्षमारत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०.५, ११४२०-२३). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: रिसहें जिनेसर पय; अंति: समयसुंदर आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-१२१. १००१७८. (+) प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. २३, प्रले. सा. जैताजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४१०, १०४३९). प्रदेशीराजा चौपाई, म. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: तिण कालैनै तिण समै; अंति: कहि सूत्रथी काढो रे, ढाल-२७. १००१९१ (4) विवाहपडल का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५४१०, ८x१३-१६). विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वंदी करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७ तक १००१९५ (+) भुवनदीपक ज्योतिषसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अवाच्य है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४१०, ५४३०-३९). वनदीपक, आ. पद्मप्रभसरि, सं., पद्य, वि. १३प, आदि: सारस्वतीं नमस्कत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७६. भवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधी नमस्क; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरि. १००१९८.(+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ६, ले.स्थल. सूरति, प्रले.पं. मुनिंद्रविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४९.५, १०४३२). १.पे. नाम. रामसीता सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, शुक्रवार. सीतासती सज्झाय, मु. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: दशरथ नरवर राजीयो; अंति: सीलवंत तणो हुं दास, गाथा-१९. २. पे. नाम, औपदेशिक छंद, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगव भारति चरण नमेम; अंति: मनि धरज्यो चोल, गाथा-१६. ३. पे. नाम. बलभद्र सज्झाय, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारीकाहंती निसरीया एक; अंति: जिनधर्मने नही कोइ तोलें, गाथा-२९. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण.. __मु. भाण, मा.गु., पद्य, आदि: मारग वहे रे उतावलो; अंति: भाण० आतमा ओलगो जगनाथ, गाथा-८. ५.पे. नाम. भावना सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, गुरुवार. मा.गु., पद्य, आदि: भावनामालती चूसीइं भमरिंरि; अंति: करइ तेसवें आश्रव जोय रे, गाथा-१०. ६. पे. नाम. शीलव्रत स्वाध्याय, पृ. ७आ-९आ, संपूर्ण. चंदनमलयागिरि सज्झाय, म. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विजय कहै विजया प्रतै; अंति: चंद्रविजय०ते सुख लहै, गाथा-३२. १००२४२. (+#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०४९.५, ११४२४-२७). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन, मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि अलवेसर अवधारो सेवक तारो अति नद० पदनी प्रेखणा रे, गाथा ६. २. पे. नाम रतनसीनी भास, पृ. १-४, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रत्नगुरु सज्झाब, मु. देवजी, मा.गु., पद्य, आदि रतनगुरु गुण मीठडा रे, अंति: दशमी डाल उदार, डाल- १०, गाधा ४३. ३. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. मु. . रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कहेजो चतुर नर ए कोण; अंति: रूप कहे बुध सारी रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. शिक्षा सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय-नारीचरित्र विषे, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मुखडानो मलकलडो देखाडी पाड; अति हुँ जाउं बलिहारी रे, गाथा-५. .पे. नाम. शिक्षा स्वाध्याय, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण. १००२४३. औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी साथे जो; अंति: उदयरतन इम बोले रे, गाथा-७. . (#) संयमश्रेणिगर्भित महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५८, चैत्र शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. पाटणनगर, प्र. वि. कुल ग्रं. न अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२१.५x११.५, ९४२९). महावीरजिन स्तवन-संयम श्रेणीगर्भित, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: केवल ज्ञान दिवा, अंति: उत्तमविजय मल्हायो रे, डाल-४, गाथा ५१. १००२५७. (*) आगमविचारार्थ स्तवन सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७६६ पौष शुक्ल ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X१०.५, ४X४१). ११x४०). १. पे नाम साधारणजिन स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि पहिलो पणमीय देवि अंतिः विजयतिलय निरंजणो, गाथा २१. - आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिवारे मोटो कार्य; अति विजयतिलकोपाध्याय बोलै कहै. १००२५८. साधारणजिन स्तवन व राजिमतीनेमि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५X१०.५, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मुजरो छे जी मुजरो छे जी; अंति: अभेदइ तिरे ए विधि जाणो, गाथा-५. २. पे. नाम. राजिमतीरथनेमि सज्झाय, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि छेडो नाजी नाजी छेडो अति (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) " , १००२५९ (+) तीर्थंकर जोडावेडड, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २ ) = १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५x१०.५, २१x४३). २४ तीर्थंकर नाम राशि विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मकरराशि विचार तक है.) , १००२६० (+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६४१०.५, १३४४५). "" तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: मोक्षमार्गस्य नेतारं; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-१० की सूत्र- १ अपूर्ण तक है.) " १००२६३. (+) आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे., ( २६.५X१०, ९X३७). आवक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु. सं., गद्य, आदि: स्मारे स्मारं जिनेंद्रादि अति क्षमाकल्याणसाधुना. १००२६४ (+) प्रवज्याकुलक टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. पत्रांक खंडित है।, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७x९.५, १२५०-५५). प्रव्रज्या कुलक- टीका, सं., गद्य, आदि श्रीवीरस्य पदांभोज, अंति: (-), (पू.वि. पाठ "दशमशक५ नाम्या ६ रति ७° तक है.) For Private and Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४५५ १००२६५. (+#) त्रिभुवनदीपक प्रबंध, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १६, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x९.५, १३४५९-६२). त्रिभुवनदीपक प्रबंध, आ. जयशेखरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५वी आदि पहिलु परमेसर नमी, अंतिः इम बोलइ जयशेखरसूरि, गाथा- ४४८. १००२६६. (#) लघुसंग्रहणी व बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१ (५) = ५, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंशखंड है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४१०, ४X३३-३९). , १. पे. नाम. लघुसंग्रहणी, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. आ. हरिभद्रसूरि प्रा. पद्म, आदि नमिय जिणं सव्वन्नु अति रईवा हरिभदसूरिहिं गाथा २९. " २. पे नाम बृहत्संग्रहणी, पृ. ४आ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण से है व ९ अपूर्ण तक लिखा है.) १००२७०. (*) ज्योतिषसार सह यंत्रकोद्धार टिप्पण, अपूर्ण, वि. १७६५, फाल्गुन कृष्ण, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १२-३ (४ से ६ ) =९, ले. स्थल. राजनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६४१०.५, १६४५१-५६). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि श्रीअर्हतं जिनं; अंतिः शनि प्रोक्तो न संशयः, श्लोक-२५८, 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (पू.वि. श्लोक-५२ अपूर्ण से ११८ अपूर्ण तक नहीं है.) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: (-). १००२७२. (+) मयणरेहा चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९-१ (१) ८, प्र. वि. हुंडी : मेवण रेपा०, मयण रेपा०, संशोधित टिप्पण , युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५X१०, १३X३६). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति मिच्छा दुक्कडम महारो, गाथा- १८८, (पू. वि. गाथा १२ से है.) १००२७३. (+४) सम्मेतशिखर तीर्थमाला, संपूर्ण, वि. १७१७, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. कृष्णगडनगर, प्रले. पंन्या हेतुसागर (गुरु पंन्या. विजयसागर तपागच्छ); गुपि पंन्या. विजयसागर (गुरु वा. कुशलसागर, तपागच्छ); अन्य. ग. महिमासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१०.५, १३४३३-४६). बहु सम्मेतशिखर तीर्थमाला, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: प्रणमीय प्रथम परमेसर; अंति: थुइ भणी सुख धरी, डाल-६, गाथा- १३२. १००२७४. (*) जंबूस्वामीपंचभव चतुपदिका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. हुंडी जंबुकु, संशोधित. जैवे. (२५x१०.५, १३४३८). , जंबूस्वामी रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १५२२, आदि: गोयम गणहर पय नमी; अंति: काज सरिस्य तेहना, गाथा - १८५. "" १००२७५ (+) अक्षरबावनी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५x१०, १२X३८-४५). अक्षरबावनी, मु. उदैराज, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि अकल अवतार अपरंपर; अंति (-), (पू.वि. गाथा-५८ अपूर्ण तक है.) १००२७६. (४) पार्श्वजिन छंद अंतरिक्षजी, पूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे., (२५x१०.५, ६x२०). For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय प्रणमी करी आपो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा ५० अपूर्ण तक है.) ', १००२७७ (+४) श्लोकसंग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ६ प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., ( २४.५X१०, ११x४२). Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: जिनेंद्र पूजा गुरु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१९ तक लिखा श्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत असरण; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १००२७८. देशीनाममाला, अपूर्ण, वि. १६३८, ज्येष्ठ, मध्यम, पृ. २०-१(२)=१९, ले.स्थल. नींवडी, प्रले. मु. पुंजराज ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हई है., जैदे., (२६४१०, १५४५५). देशीनाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: गमणय पमाण गहिरा सहिय; अंति: सिरिहेमचंदमुणिवइणा, वर्ग-८, ग्रं. ३७५, संपूर्ण. १००२८० (+) कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८१-७५(१ से ७५)=६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०, १३४३८). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. महावीर दीक्षाप्रसंग से केवलज्ञान प्रसंग तक है.) १००२८५. सिद्धांतसारोद्धार-१२ बोल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.२०, जैदे., (२६.५४९.५, १३४४२-४५). सिद्धांत सारोद्धार, मा.गु., गद्य, आदि: ५२६ योजण ६ कला; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १००२८६. (2) साधुसमाचारी अतिचार, संपूर्ण, वि. १८४५, आश्विन शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. ग्यानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, ८४३४-४०). ___ साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. १००२८८. (+) नलचंपू की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०, १९४७५-८२). नलचंप-प्रकाशटीका, पं. गणविनय गणि, सं., गद्य, वि. १६४७, आदि: ध्यात्वा सरस्वतीं; अंति: (-), (पू.वि. पाठ ___ "पत्तिभिः पदातिभिस्तुगम्य" तक है.) १००२८९ (+) चार प्रकरण संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ४, प्र.वि. हंडी:संस्कृतकर्मग्रंथ., संशोधित., जैदे., (२७४१०.५, १५-१८४६५). १.पे. नाम, प्रकृतिविच्छेद प्रकरण, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंति: गंतव्यं सदा सद्भिः, श्लोक-१३९. २. पे. नाम, सूक्ष्मार्थसंग्रह प्रकरण, पृ. ३आ-७अ, संपूर्ण. आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: सूक्ष्मार्थसार्थवक्तारं; अंतिः प्रकरणमेतद्वितीयं च, श्लोक-२०२. ३. पे. नाम. प्रकृतिस्वरूपसंरूपणं प्रकरणम्, पृ. ७अ-१०आ, संपूर्ण. प्रकृतिस्वरूपसंरूपण प्रकरण, आ. जयतिलकसरि, सं., पद्य, आदि: देवभद्रं सकल्याणं; अंति: स्वरुप संरुपणं नामं, श्लोक-१८२. ४. पे. नाम. बंधस्वामित्व प्रकरण, पृ. १०आ-१२अ, संपूर्ण. आ. जयतिलकसरि, सं., पद्य, आदि: अबंधस्वामिनं देवं प्रणम्य; अंति: प्रकरणमेतच्चतुर्थं च, श्लोक-४७. १००२९५ (+#) योगचिंतामणि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-२(१,७)=१३, प्र.वि. हुंडी:योगचिंता०, संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १३४४०). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., अध्याय-१ श्लोक-१२ अपूर्ण से अध्याय-१ पाठ-१ श्लोक-१७ तक व अध्याय-१ पाठ-१ श्लोक-३ अपूर्ण से अध्याय-२ श्लोक-११ तक है.) योगचिंतामणि-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४५७ १००२९८. () आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८६६, भाद्रपद कृष्ण, १४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. पीपाड, पठ. मु. कस्तूरचंद (गुरु पं. कपूरविजय); प्रले. पं. कपूरविजय (गुरु पं. तिलकविजय); गुपि. पं. तिलकविजय (गुरु पं. प्रेमविजय); पं. प्रेमविजय (गुरु पं. जीवविजय); पं. जीवविजय (गुरु पं. लक्ष्मीविजय); पं. लक्ष्मीविजय (गुरु मु. अमृतविजय); मु. अमृतविजय (गुरु पं. अमरविजय); पं. अमरविजय (गुरु पं. हर्षविजय); पं. हर्षविजय (गुरु ग. नेमविजय); ग. नेमविजय, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१०, १३४४४-४८). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: तिहां प्रथम जीव; अंति: तिथि सफल फली मन आस. १००२९९ (+#) हैमकोश, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १२४३०-४०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. देवकांड श्लोक-१२ अपूर्ण तक है.) १००३०१ (+) लघुशांति व वृद्धिशांति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २, ले.स्थल. रामगढ, प्रले. मु. फता ऋषि (गुरु मु. पद्माजी ऋषि); गुपि. मु. पद्माजी ऋषि (गुरु मु. पेमाजी ऋषि); मु. पेमाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में औपदेशिक गाथा-३ दी है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, ४४३८-४२). १.पे. नाम. लघशांति सह टबार्थ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ शांति; अंति: ए श्रीशांतिस्तेव कर्यउ छइ. २.पे. नाम. वृद्धिशांति सह टबार्थ, पृ. ३अ-७आ, संपूर्ण. बहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: स्तुयमाने जिनेस्वरे, (वि. १७७७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, गुरुवार) बहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भो भो भव्या अरे अरे भव्य; अंति: जिनेश्वरे जिनेश्वर प्रतइं, (वि. १७७७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, शनिवार) १००३०२ (+) प्रत्याख्यान भाष्य की अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, २०४६२). प्रत्याख्यान भाष्य-अवचूर्णि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: दस० दश प्रत्याख्याना; अंति: धानफलमाह पच्च० सुगमा, (वि. अंत में आवश्यकवृति देशावकाशिक व्रताधिकारगत "एगमहत्तं दिवसं..जावइयं उच्छहे कालं"गाथा दी गई है.) १००३०३ (4) उपदेशरत्नकोश सह बालाबोध व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ३४३७-४०). १.पे. नाम, उपदेशरत्नमाला सह बालवबोध, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: वछयले रमइ सच्छा, गाथा-३६. उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरं जिनं नत्वा; अंति: रूपलखमी स्फुरमइ स्वेछाइ. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. ५आ, संपूर्ण.. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उसहइ पुत्ता पुत्तियउ कज; अंति: ते किम कंत कटारी वाहर. १००३१०. (+) जिनस्थानक यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. हुंडी:सीतरसे ठाणे, संशोधित., दे., (२६४१०.५, १७-१८४५८). १७० जिनस्थानक यंत्र, मा.ग.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-). १००३१३ (+#) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १२-१५४३८-४२). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: (-), (पू.वि. ४४४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १००३१४. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२४४१०.५ १३४३५). ऋषिमंडल स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलिख्यमक्षरं; अंति: जापाल्लभत्ते पदमव्ययम्, श्लोक- ९१. १००३१५. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६७६, कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १३, प्रले. मु. श्रीपाल (गुरु मु. वस्ताजी); गुपि. मु. वस्ताजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., ( २४४१०.५, १७-२०×५०-५८). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अथ साधूनां प्रतिक्रम; अंति: तीर्थंकर देवनइ वांदर. १००३१७. (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी : सप्तस्मरण. प्रतिलेखक ने हुंडी में सप्तस्मरण लिखा है वस्तुतः नवस्मरण है, संशोधित, जैदे (२४४१०५ १४X३४). "" नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (पू.वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) १००३१८ (#) नारचंद्र ज्योतिष सह यंत्रकोद्धार टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८९२, भाद्रपद शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १३, ले. स्थल विदासर प्रले. मु. किसनचंद ऋषि (नागोरीलुंकागच्छ); अन्य. उदयसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.., ( २३४१०.५, ९३४). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि सं., पद्य, आदि अर्हतजिनं नत्वा अति लोहा प्रकीर्त्तिता. ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: ते तिअ स्त्री बाहली कहिजे. १००३२० (+#) लघुशांति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. सुखनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे (२४.५४१०, १८४४९.६५ ). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांतं; अंति सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. " लघुशांति- अवचूरि, सं. गद्य, आदि अहं श्री शांतिजिन मंत्र अति : (१) शिवशांति पदं पठति, (२) वायात् प्राप्नुयात्. १००३२१ (+#) परमात्मप्रकाश का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १७७८, आषाढ़ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४६, प्रले. पं. जयवंतसागर; पठ. श्रावि. कुसला बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X१०, ११x२८-३२). परमात्मप्रकाश-पद्यानुवाद, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि परम ज्योति प्रणमुं अंतिः सुणतां सुखसंतिति सारो रे, ढाल - ३२, ग्रं. १२५०. १००३२३. (*) मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी मौनएकादश, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२४४१०.५, ९४४६). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदिः श्रीमहावीरं नत्वा; अंति: माराधनतत्परा समभवत्. १००३२४ (#) पंचांगुलीदेवी व नमस्कारमहामंत्र कल्प, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१ (१) = १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक खंडित होने से अनुमानित पत्रांक दिया है. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२४.५४१०.५, २७४७९). " १. पे. नाम. पंचागुलीदेवी कल्प, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पंचांगुलीदेवी कल्प, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: शाकिनी हुइत लोही पड २. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र कल्प, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., सं., गद्य, आदि: पंचानामादिपदानां; अंति: (-). १००३२५. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ११, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४.५X१०, १२X३५-४०). १. पे. नाम, शांतिजिन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि अहिपुरमंडण सोलमी; अंति: हर्ष० मनोरथ सवि फल्वा, गाथा- ११. २. पे. नाम. शीतलनाथजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सफल आज तणौ दिन आवियाँ अंतिः श्रीपासचदसूरि इम उचरे ए, गाथा - १५. For Private and Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ३. पे. नाम. आदिअजित श्रीशांतिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आदि अजित श्रीशांतिनो; अंति: पूज्यपासचंदसूरि हरखै भणिय, गाथा-९. ४. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वंस इख्यागै राजीयो; अंति: मोरी वीनती सफल करेज्योजी, गाथा-७. ५. पे. नाम. शेव्रुजैयमंडन श्रीऋषभजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सफल एह अवतार माहरो; अंति: म्हारी वीनती सफल करेज्यो, गाथा-१२. ६. पे. नाम, चंद्रप्रभु स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल कलागुण निलो; अंति: पासचंदसूरि० तासु घरे, गाथा-११. ७. पे. नाम. ऋषभदेवजी स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: लग्या मेरा नेहरा वो लग्या; अंति: ग्यान नहीं गहिरा, गाथा-५. ८. पे. नाम. चैत्री स्तवन, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पय प्रणमी रे जिनवरना; अंति: साधुकीरति इम कहै, ढाल-३, गाथा-१३. ९. पे. नाम. आदिजिनेश्वरस्तुतिमय गीत, पृ. ६अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरो रलीयामणौ रे; अंति: करी लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा-७. १०. पे. नाम, अजितजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तारि करतार संसार सागर थकी; अंति: ते तरै जे रहै पासे, गाथा-४. ११. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: भला प्रभु गुण वाला है आछी; अंति: जिणेसर सदा रहित मतवाला, गाथा-४, (वि. कर्ता मात्र आनंद लिखा है.) १००३२९. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १६९९, वैशाख कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ४७-१(१)=४६, ले.स्थल. हंसारकोट, प्रले. मु. परबत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दशविकालि, विद्वान नाम खंडित है, संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६२५) जलात् रक्षेत् तैलात् रक्षेत्, (८५१) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, जैदे., (२५४१०, ६४३८-४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: क्खू अपूणागमं गई ति बेमि, (पू.वि. अध्ययन-२ से है., वि. अंत की २ चूलिका नहीं दी है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: कहुं ए गुरु वचन. १००३३० (+#) सम्यक्त्व कौमुदी कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४०-३(१ से ३)=३७, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १४-१७४४३-४८). सम्यक्त्वकौमदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: (-); अंति: माद्धर्मो विधीयताम्, (पृ.वि. अर्हदास सेठ कथा पाठ "भो श्रेष्टिन् त्वं धन्यः कृतार्थस्तव" से है.) १००३४१ (+) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास व शनैश्वर छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५-२(३ से ४)=१३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (१९x१०, १०x१९-२६). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, पृ. १आ-१५अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. रामसेणनगर, प्रले. मु. सूर्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: दर्शन जय करो, ढाल १२, गाथा- ११७, (पू. वि. गाथा - ११ अपूर्ण से २८ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. शनैश्वर छंद, पृ. १५-१५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. शनैश्चर छंद, मा.गु., पद्य, आदि छाया नंदन जगिजयो अति (-), (पू.वि. अंत के पाठांश नहीं हैं.) १००३४४ (+) अनुयोगना अर्ध वार्तिक, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ६ प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैदे., 1 ( २२x१०, ३४X१६ ). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगद्वारसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ठप्पा कहतां निस्थाप्यानि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "अवियतकस्स भिक्खुणो क० मानरहित साधु" पाठ तक लिखा है.) १००३६०. जीवविचार प्रकरण सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३, ले. स्थल, वगडीनगर, प्रले. पं. जयंतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: जीवचार०. बा०, जैदे. (२४.५x१०, १२५४४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण भणामि; अंति: रुद्दाओ सु समुदाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसिद्धार्थराजानुं; अंति: माहिथी उद्धरीने कह्युं छे. १००३६२. (+#) आराधना प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. हुंडी: आराधना ०. पत्र०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जै, (२५X१०, ६x२९-३२). पर्वताराधना - गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिउण भणइ एवं भयवं अंति ते सासयं सोक्खं गाधा- ७०. पर्यंताराधना-टबार्थ, मा.गु.. गद्य, आदि: महावीर प्रतई नमस्करी नई अति: पुरुष शाश्वता सौर्य लहई. १००३६३. (+) महावीरविज्ञप्तिद्वात्रिंशिका, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. (२३.५x१०, १०x२६-३५). महावीरविज्ञप्तिद्वात्रिंशिका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., पद्य, वि. १६१९, आदि: श्रीमत्स्वर्गिजनार्च; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २६ अपूर्ण तक है.) १००३६४ (+#) बृहत्संग्रहणी सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. पाठ खंडित है, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें - पंचपाठ-संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२३४१०, ११४४३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिकं अरिहंताई ठिइ अति: (-) (पू.वि. गाथा- २३ अपूर्ण तक 1 , है.) बृहत्संग्रहणी - अवचूरि सं. गद्य, आदि (-); अति: (-). " १००३६५. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. हुंडी : कल्या०., जैदे., ( १७.५x९.५, ९×२१-२५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि अंति कुमुद० प्रपद्येते श्लोक-४४. १००३६७ (+) जंबूद्वीपादिनां बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, दे. (२३४१०, ९३०). " लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडा जोयण वासा पव्वय; अंति: (-), (पू.वि. "१ लाख जो पेठे" पाठ तक है.) १००३६८. जिनरस, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७ जैये. (२३१०, ९-१४x२७-३७) जिन रास, मु. वेणीराम, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: गणपत सारद पय नमी आखु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १६१ अपूर्ण तक लिखा है.) १००३६९ (#) इलाचीकुमार चौपाई व प्रियमेलक चौपाई दानाधिकारे, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ११-५ (१ से ५) ६, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, १५X४६-४९). १. पे. नाम एलाचीकुमर चउपई, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४६१ इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदिः (-); अंति: ज्ञानदर्शन अजूआले छे, ढाल-१६, गाथा-१८७, ग्रं. २९९, (पू.वि. ढाल-१५ अंतिम गाथा अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, पृ. ६अ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१० गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) १००३७० (+#) लघुदंडकद्वार बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४९.५, ८४४२). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सरीर अवगाहणा संघेण संठाण; अंति: आवे नथी प्राण नथी जोग नथी. १००३७१ (+#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, ८x२८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण से १००३७२. (4) प्रदेशीराजा जौपाई, संपूर्ण, वि. १६७१, आश्विन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ९, प्रले. मु. लखू खोखा ऋषि (गुरु आ. जसवंत ऋषि); गुपि. आ. जसवंत ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रदेसी०., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, १३४३९-४२). प्रदेशीराजा रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभोवन नयणानंदकर चउविस; अंति: तणी सफल फलि संसारि, गाथा-२६१, ग्रं. ३००. १००३७४ (+#) हरिश्चंद्रराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८३, माघ शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १९, प्रले. मु. जितसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०, १०-१३४३५). हरिश्चंद्रराजा चौपाई, म. कनकसंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: पासजिणेसर पाय नम; अंति: चोपई तामति सो परमाण रे, खंड-५ ढाल ३९, गाथा-४०२. १००३७५. (+#) हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३-९(२,८ से ११,१३,१९,२९,४१)=३४, प्र.वि. हुंडी:हंसबच्छ०.चौपइ०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १३४२८). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदीसर आदि करी चोवीसे; अंति: पाडीयै जी हंस अने वछराज, खंड-४ ढाल ४८, गाथा-९०५, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १००४०० दशाश्रुतस्कंधसूत्रना पर्याय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२२४१०, ३३४१८). दशाश्रुतस्कंधसूत्र-पर्याय, मा.गु., गद्य, आदि: दव दव कहतां ऊतावलउ उतावलउ; अंति: (-), (पू.वि. सामायिकाध्ययन वर्णन अपूर्ण तक है.) १००४१२. कल्याणमंदिर भाषा व विषापहार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, ९४३०). १.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र की भाषा, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम जोति परमातमा परम; अंति: कारन समकित शुद्धि, गाथा-४४. २. पे. नाम. विषापहार स्तोत्र, पृ. ५आ-९अ, संपूर्ण. आ. अचलकीर्ति, पुहि., पद्य, वि. १७१५, आदि: विश्वनाथ विमलगुण ईश; अंति: अचलकीर्ति० अविचल धाम, गाथा-४१. १००४१३. पाशाकेवली की भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२२.५४१०, ९४३०-३५). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: (-), (पू.वि. संख्या-४२४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १००४१४. (#) नरनंदराजबोहत्तरी, संपूर्ण, वि. १८१८, भाद्रपद कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. मुंडाडा, प्रले. मु. मुनिविजय (गुरु पं. जयविजय गणि); गुपि. पं. जयविजय गणि (गुरु पं. अमृतविजय गणि); पं. अमृतविजय गणि; पठ. श्राव. लखमीदास दवे, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:नंदबोह०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७.५४१०.५, १०x१८-२२). नंदबहत्तरी, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: सब ही नगर सब सेहरो; अंति: जस०बोहोत्तरी बीला तासमझार, गाथा-७२. १००४१५. (+#) हेमचंद्रानस्मताश्चरादयोणितोधातवः, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-२(१ से २)=१३, प्र.वि. हुंडी:हेमआदि०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ३००, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१०, ११४३५-३८). धातुपारायण, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: षहणं मर्षणे परस्मैभाषा, ग्रं. ६०३, (पू.वि. भ्वादि सूत्र-१० अपूर्ण से है.) । १००४१७. (+) प्रतिक्रमणगर्भ प्रतिक्रमण विधि व प्रज्ञापनासूत्र संमूर्छिमनुष्योत्पत्ति १४ स्थान आलापक, संपूर्ण, वि. १८०९, आश्विन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. भिनमाल नगर, प्रले. पं. दीपसागर मुनि (गुरु पं. श्रीसागर गणि); गुपि.पं. श्रीसागर गणि (गुरु पं. प्रसिद्धसागर); पं. प्रसिद्धसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४९.५, १२४३५). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणगर्भहेतु प्रतिक्रमणविधि, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणगर्भहेत-प्रतिक्रमणविधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पडिकमणा नउ पहिलउं बीज; अंति: पडिकमणाथिक जाणवउ. २. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र-संमूर्छिमनुष्योत्पत्ति १४ स्थान आलापक, पृ. ९अ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-संमूर्छिममनुष्योत्पत्ति १४ स्थान आलापक, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: कहिणं भंते समुच्छिम; अंति: चेव कालं करंतित्ति. १००४१८. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९००, माघ शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ८-१(२)-७, प्रले. पं. विजैचंद्र (खरतरवृद्धआचार्यागच्छ); पठ. श्राव. सिरदारमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ऋषिमं०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१६४१०.५, १०x२०). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरमालिख्य; अंति: स्तोत्रमुत्तमम्, श्लोक-९६, ग्रं. १५०, (पू.वि. गाथा-१३ से २५ अपूर्ण तक नहीं है.) १००४१९ (+) स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०.५४१०, ११४१९). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीरो स्तवन, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२०. २.पे. नाम, ग्यांनपंचमीरो स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: समयसुंदर० पांचमो भेद रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. सीमंधरजीरो स्तवन, पृ. ४आ-७अ, संपूर्ण. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार; अंति: भगतिलाभ० आस्या मनतणी, गाथा-१८. ४. पे. नाम. अष्टमीरी सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, म. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिववारु छु मोरा वाल; अंति: संतिविजय० आवागमण निवारो, गाथा-५. ५. पे. नाम. नेमराजूल स्तवन, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजिमती सज्झाय, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १७३०, आदि: श्रीनेमीसर नित नमु जादव, अति: खेमो० सांमजी कसहियां हे, गाथा - १६. ४६३ ६. पे. नाम. जादवारो रास, पृ. ९अ -१५अ, संपूर्ण, पठ. मु. सरूपविजय; प्रले. मु. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि सारद पाय प्रणमी करी नेम; अंति: पुन्य० नेमिजिणंद के, गाथा-६३. ७. पे. नाम. नेमराजीमति बारमासो, पू. १५अ १७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. नेमराजिमती बारमासा, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: बीनवै उग्रसेनकी लाडल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १००४२० (+) पाक्षिकसूत्र व क्षामणकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २०-२ (१,८) = १८, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी हैं, जैदे. (२२x१०, ११४२३). " १. पे नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. २अ-२०अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं है. वि. १८६४ आश्विन शुक्ल, १०. गुरुवार. हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: जेसिं सुवसायरे भत्ति, (पू.वि. सूत्र ६ अपूर्ण से है व 'अणभिगमेणं वा' पाठांश से 'रागदौसपडिबुद्धयाए' पाठांश तक नहीं है.) २. पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. २०अ २०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पियं, अंति (-) (पू.वि. आलाप ४ अपूर्ण तक है.) १००४२९ (+) संबोधसत्तरी सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र. वि. हुंडी संबोधस०, संशोधित, दे. (२०.५४९.५, , ४x२३-२८). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तिलोअगुरु अति (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ८० तक लिखा है.) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउण नमीनइ त्रिलोक्यनउ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) १००४३० (+#) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ७-२ (१ से २५, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९.५x१०, १२x२२). " गौतमस्वामी रास, मु. उदयवंत, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण से ६५ अपूर्ण तक है.) १००४३३ (+) गौतमस्वामी, जिनदत्तसूरि व २४ जिन गीत, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२०x१०, ४४१३-१६). " १. पे. नाम गौतमस्वामी गीत, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस अति तूठा संपति कोडि, गाथा - ९. २. पे. नाम जिनदत्तसूरि गीत, पृ. ४अ ९अ, संपूर्ण, मु. जयचंद, रा., पद्य, आदि: जसु हृदयकमल गुरुनाम चसै त अंतिः पावै जयचंद कला चढती, गाथा-१३. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. ९अ ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. दयाल, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल कर जिणराय मणै; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम गाथा आंशिक अपूर्ण तक है.) १००४४५. पद व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १५-२ (१ से २) = १३, कुल पे. ८, दे. (२१x१०, ६x२२-२८) "" १. पे. नाम. खीमा की ढाल, पू. ४अ ४आ, अपूर्ण. पू. वि. अंत के पत्र हैं. पे. वि. हुंडी: खीमाकी. औपदेशिक सज्झाय-क्षमा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: केई परदेसी उठ जाव रे, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण है.) For Private and Personal Use Only २. पे नाम. पूजगूणी ढाल, पृ. ४आ-७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : पूजीगुणी. रायचंद गुरुगुण वर्णन लावणी, मु. रायचंद ऋषि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८९६, आदि: श्रीराईचंदजी का गुणो की; अंति: आबीया रे आणी भाव हुलाश हो, गाथा-२८. Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. २० तीर्थंकर स्तवन, पृ. ७आ-९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बीशतीथं. २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: बीदेक्षेत्र बीरंताजी; अंति: काई तप जपई धक प्रकाशजी. ४. पे. नाम. रीषभदेवजीस्वामी को स्तवन, पृ. ९आ-११अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:रीषदेवजी. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: रीषभदेव कूरणानीध स्वामी; अंति: अब पाम् भवसागरनो पार री, गाथा-७. ५. पे. नाम. चोईस तीथंकर स्तवन, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चोईसी. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: पीरात सम नित समरीये; अंति: समरीये तीर्थंकर चोबीसे, गाथा-९. ६. पे. नाम. पदलावणी ढाल, पृ. १२अ-१४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पदलावणी. जिनवंदन लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: अब जूगचंदा जिम जाण जपो; अंति: यू जिणदास चाउ दरशणकू, गाथा-४. ७. पे. नाम. परनारी की ढाल, पृ. १४अ-१५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:परनारी. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: नर चतर सूजाण परनारी सूपी; अंति: इमरत नही छे वीर वखाणो रे, गाथा-८. ८. पे. नाम. परनारी की ढाल, पृ. १५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:परनारी. औपदेशिक पद-परनारी परिहार, म. शियलविजय, पुहिं., पद्य, आदि: परनारि छे कालि नागणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १००४४९. (#) पार्श्वजिन छंद, कृष्णभक्ति पद व शत्रंजयतीर्थादि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-२(१ से २)=६, कुल पे. ५, प्रले. मु. जितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १२४३१). १.पे. नाम. पार्श्वअंतरीक छंद, पृ. ३अ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १७८९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, ले.स्थल. मंडल, पठ. मु. महिमाहंस, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, ग. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्यो देव जय जय करण, गाथा-४५, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) । २.पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हरि एकवारने समे रे काहनो; अंति: लइ नेह सासीनो सांमी रे. ३. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सहिज सूलुणो हो मलीओ मेलू: अंति: नाहसुं पुरो प्रेम वीलास, गाथा-७. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. ग. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अंगि अवल बनी छे रे आवो; अंति: सेवक जंपे रामविजय करजोडि, गाथा-११. ५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज उलग; अंति: मनरंग सुपंडित रूपनो, गाथा-७. १००४६२. बालचंदबत्रीसी, धर्मबावनी सवैया व कवित्त संग्रहादि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३४, कुल पे. ४५, दे., (२२४११, १२-१६x२६-३४). १.पे. नाम. बालचंदबत्रीसी, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, प्रले. मु. लाभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. अध्यात्मबत्तीसी, म. बालचंद मनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसर; अंति: बालचंद सुणो हो भविक वृंद, गाथा-३३. २.पे. नाम. धर्मबावनी प्रस्तावीक सवैया, पृ. ६अ-१३आ, संपूर्ण. अक्षरबावनी, म. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, वि. १७२५, आदि: ॐकार उदार अगम अपार; अंति: नाम धर्मबावनी, गाथा-५७. ३. पे. नाम. केशवदास बावनी, पृ. १३आ-२०आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: ॐकार सदा सुख देत; अंति: केसवदास सदा सुख पावै, गाथा-६२. ४. पे. नाम. राधाकुष्णसंवाद, पृ. २०आ-२३आ, संपूर्ण. राधाकृष्ण संवाद, ब्र., पद्य, आदि: आजु महि आवीचलिमे वचकु; अंति: श्रीनंदराय वृषभु दुलारी, दोहा-२२. ५. पे. नाम. सुंदरश्रृंगार- गाथा १, पृ. २३आ, संपूर्ण. सुंदरशृंगार, क. राजसुंदर, पुहिं., पद्य, वि. १६८८, आदि: देवी पूजि सरस्वती; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६. पे. नाम, भवानीमाता पद, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जब लग भवानी शिवसेनानी; अंति: थिर साहजहा सीर छत्र सदा, गाथा-१. ७. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. २४अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, म. केशवदास, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मालवदेस नरेस महिपती मुज; अंति: की रेख टरे नही टारी, गाथा-२. ८. पे. नाम. कर्म प्रभाव सवैया, पृ. २४अ, संपूर्ण. कर्मप्रभाव सवैया, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: कर्मप्रतापथें तिहे अतिखार; अंति: कर्म करो सो न करे कोई, सवैया-१. ९. पे. नाम. कृष्ण सवैया, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: उड़ जाण के वात सीवांण; अंति: तिणकुं बलभद्र कहाड रे, सवैया-१. १०. पे. नाम, कर्मप्रभाव सवैया, पृ. २४आ, संपूर्ण. श्राव. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: कर्मे रावण राय राहधडसवे; अंति: ऋषभ० कर्मे कोई नमु कियो, सवैया-१. ११. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २४आ, संपूर्ण. मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: जट कहा जांणे भट की वात; अंति: राम०कहा जाणे पाप लगा को, सवैया-१. १२. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: एकन के घर कंचन भाजन; अंति: दोखो दोखोजी वखत की बाजी, सवैया-१. १३. पे. नाम, औपदेशिक सवैया-ज्ञान, पृ. २५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: आवत आवत जावत जावत कहे नहि; अंति: चाह धरे ताकी चाकरी कीजे, सवैया-१. १४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. क. गंग, पुहि., पद्य, आदि: वाडी नहोत तिहां कंचन; अंति: क्रीपाधि गंगई से फल पाई, सवैया-१. १५. पे. नाम. औपदेशिक सवैया-प्रकृति, पृ. २५आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक सवैया-प्रकृति, मु. हेम, पुहिं., पद्य, आदि: जिण दिन पवन प्रचंड लूयझड; अंति: गोदली तोही ससाय न जाय, सवैया-१. १६. पे. नाम. राधाकृष्ण सवैया, पृ. २६अ-२७अ, संपूर्ण. गंग, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीनंद गोविंद के कारणे; अंति: लघद्धिर कहे अभिमान कहारी, सवैया-६. १७. पे. नाम. पातस्यानां सवैया, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: जीग जीग बेठीई कबिली अंगन; अंति: भला कह्या पण कहि न जाना, सवैया-४. १८. पे. नाम, औपदेशिक सवैया-प्रभगण, पृ. २७आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: ग्यान घटै नरमूढ की; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) १९. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २७आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: खमीआ जिन पकडीखरी; अंति: अलख पर धीरज प्रकमीख्यम्या, सवैया-१. २०. पे. नाम. औपदेशिक सवैया-निम्न सोच, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-संकचित विचार, गंग, पहिं., पद्य, आदि: गंग केरु नीर छोडी खरबारे; अंति: गंग० जाति जाति अवगुण करे, सवैया-१. For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६६ १५.. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २८अ, संपूर्ण... मु. लावण्यसमय, पुहि., पद्य, आदि: न मेले मयगलमसो ससोसू; अंति: लावण्यसमय० न मलि कदा, गाथा-१. २२. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त- चंचल मन, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त-चंचल मन, क. गद, पहिं., पद्य, आदि: चंचल पिपलपांन मनराजानं; अंति: कवि गद० आदिउ खाणो ए खरो, गाथा-३. २३. पे. नाम. औपदेशिक पद-श्रावकधर्म, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- श्रावकधर्म, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: तुछिउ दान लुका तणो; अंति: श्रावक धर्म सदा रमीये, गाथा-३. २४. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. म. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: ओषधने वाषद करे झाडोने; अंति: जिनहर्ष० सजनपरक संपदा, गाथा-३. २५. पे. नाम. साधुनो वर्णमाह, पृ. २९आ, संपूर्ण. साधस्तुति सवैया, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: ग्यान्न को उजागर; अंति: जोडी बनारसी वंदन, पद-२. २६. पे. नाम, औपदेशिक सवैया- स्वार्थ, पृ. २९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: स्वारथ के साचे; अंति: ऐसे जीव समकित है, सवैया-३. २७. पे. नाम, औपदेशिक सवैया- विवेक, पृ. ३०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: जाके घट प्रगट विवेक गुणधर; अंति: सो समकित भवसागर तरतुं हे, सवैया-१. २८. पे. नाम. मिथ्यातिवर्णन माह, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण. मिथ्यादृष्टि जीव स्वरूप, क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: धर्म कुं न जात वखानत भरम; अंति: तासुं वंदत बनारसी, गाथा-८. २९. पे. नाम. ज्योतिष पद, पृ. ३१अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पंचम प्रवीण वार; अंति: रास उपमा कही दीजियै, गाथा-१. ३०. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. ३१अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: धुरि के धनिकेन के हार के; अंति: चातुरी से मेरी भी आशीष है, दोहा-१. ३१. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, पहिं., पद्य, आदि: कहिज्यो नाईणकंत लोक; अंति: त्यारे जतियारी चाडी करे, सवैया-२. ३२. पे. नाम, औपदेशिक पद-सत्कार, पृ. ३१आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, म. केशवदास, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जा घरि तेल फूलेल; अंति: मजूर कुं काहे सतावे, गाथा-२. ३३. पे. नाम, औपदेशिक सवैया- लक्ष्मी, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-लक्ष्मी, म. केशव, पुहिं., पद्य, आदि: आलसकुं थिरता धनवंतकुं; अंति: तिहे क्रप किद्धोहथ, सवैया-३. ३४. पे. नाम. नेमराजिमती सवैया, पृ. ३२अ, संपूर्ण. म. उदयराज, पुहिं., पद्य, आदि: दमनि चमके महरा टमके; अंति: उदयराज० विण लाज जरे पिउरा, सवैया-२. ३५. पे. नाम. औपदेशिक सवैया- अभिमान, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-अभिमान, म. हेमराज, रा., पद्य, आदि: थोरो सो गुमांन करि काल; अंति: हेमराज० काल मरे जायगो, सवैया-१. ३६. पे. नाम. जिनबलविचार छंद, पृ. ३२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुणो वि| विसाल; अंति: अंगुलि अग्रकुं जेम जेतु, गाथा-१. ३७. पे. नाम, औपदेशिक सवैया- ज्ञान, पृ. ३२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org ४६७ औपदेशिक सवैया-ज्ञान, मु. उदयराज, मा.गु., पद्य, आदि: कहा करेवां नरीहार मुगताफल; अंति: उदयराज० सुगुनि पन कुं करे, सवैया - १. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८. पे. नाम. औपदेशिक सवैया- प्रेम, पृ. ३२आ-३३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-प्रेम, पुहिं, पद्य, आदि स्यांम जोवन शालिनी मधुर अति प्याले भरे भर पीजे, गाथा- १. ३९. पे. नाम औपदेशिक कवित्त, पृ. ३३, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त-प्रभुदर्शन, पुहिं., पद्य, आदि: पे कर उभा तप करे; अंति: सरण राम किये गुण रीझवे, गाथा-२. ४०. पे. नाम. औपदेशिक सवैया- प्रभु स्मरण, पृ. ३३ - ३३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-प्रभु स्मरण, रा., पद्य, आदि ससी कीद्धने सुरंग काआ अमन, अंति ठकुरो ठोर ठोर भूली गयो, सवैया- १. ४१. पे नाम औपदेशिक सवैया दुर्भाग्य, पृ. ३३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया दुर्भाग्य, रा., पद्य, आदि काद झाझो कीच विच जलमा अति आतमा लव लाहिखा मंद लखो, सवैया- १. ४२. पे नाम शालिभद्र सवैया, पृ. ३३आ, संपूर्ण मु. तेजपाल, रा., पद्य, आदि गोवाल वखत जागीओ मातकने अंति: तेजपाल० सालिभद्र अवतर्यो, सवैया १. ४३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३३-३४अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि ईका परी घल आथ एकमां गण; अंति: उजेण चोर मुख आग लह्यो, सवैया २. ४४. पे नाम औपदेशिक सज्झाय- गुरु शिष्य संवाद, पृ. ३४अ, संपूर्ण. - औपदेशिक सज्झाय-गुरु शिष्य संवाद, पुहि., पद्य, आदि: वेलु मांगा हुए डरीठ; अति कहो चेला कीण ठाय गाथा ६. ४५. पे. नाम औपदेशिक पद-मोह माया, पृ. ३४आ, संपूर्ण " औपदेशिक पद- मोह माया, मा.गु., पद्य, आदि : आधो नच्यावो पारधी अंगन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ७ तक लिखा है., वि. गाथांक अस्तव्यस्त है.) १००४६३. (५०) नवस्मरण, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र. वि. हुंडी: सातिसमरण, सातिस०, साति०, संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२३X१०, ८x२१-२५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम् अंति: (-), स्मरण ९, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भक्तामर स्तोत्र श्लोक-३३ अपूर्ण तक लिखा है., वि. संतिकर, कल्याणमंदिर बृहत्शांति नहीं है.) १००४७२. सदेवच्छसावलिंगा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१ (१) = ११, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जै.., ( १९.५x९, १४X३०-३५ ). सदेवच्छसावलिंगा रास, मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७८२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल -१ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-१५ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १००४९५. (#) सप्तव्यसननिवारण सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ९, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५x९.५, ५-१०x१९). १. पे. नाम. सप्तव्यसननिवारण सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १९०३, आदि: ग्यानी इणविधि चलणारी तेरा; अंति: हरखकीरति० एकादसी सोमवार, गाथा - ११. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पंडित हरसुख, रा., पद्य, वि. १८९५, आदि: म्हे तो म्हारे जिन पुजणनै अति हरसुख० सोमवार सुखकारी, गाथा ८. ३. पे नाम, मंत्र संग्रह, पृ. ४अ ५अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (वि. अंत में औपदेशिक पद दिया है.) ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहि., पद्य, आदि: भेटा बीना परमातमा जनम; अंति: भावसु अगियाण जी, गाथा-९. ५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन-पूजन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, वि. १९१५, आदि: पाय पडु परणम करुणा परभुजी; अंति: सावण सुद सात सोमवारी, गाथा-६. ६. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: कब निरखु जिनवर देव जगत; अंति: जिनदास सुणो जिनबाणी, गाथा-४. ७. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ.१०अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: खावत हो चुगली चावत हो; अंति: सुण हो साधुजीन की बात, गाथा-१. ८. पे. नाम. जिनभक्ति पद, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिन दरसण बीना नैण जरत मुज; अंति: पाच सात नारगी सीधावोगे, गाथा-४. ९. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ११अ, संपूर्ण. मु. प्रेम, पुहिं., पद्य, आदि: इक नुर आदमी हजार नुर कपरा; अंति: इक नुर आदमी अनेक नुर परा, गाथा-१. १००५१०. झांझरियाऋषि चौढालियो व सीताजी आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९०९, पौष शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, ले.स्थल. मिरजापुर, प्रले. पं. रत्नानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. महल्लावुदेलखंडी, दे., (२३४९.५, १०४३५-३८). १.पे. नाम. झाझरियाऋषि को चौढालियो, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसती चरणें सीस; अंति: सांभल्यो सह वृंदो रे, ढाल-४, गाथा-४३. २.पे. नाम, सीताजी की आलोयणा, पृ. ४अ-१०आ, संपूर्ण. सीतासती कृत आलोयणा, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सती न सीता सारखा रती न; अंति: सुख सासता केवल कुसल कहात, ढाल-६, गाथा-९३. १००५३०. (#) तंदलवैचारिक प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८-५(५,७,१४ से १६)=१३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१९.५४९, ११४२९). तंदलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., आदि: निज्जरिय जरामरणं; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., "पुत्तेहिं - पियाहि" पाठ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १००५३३. (#) धनंजयनाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. हुंडी:ध०.ना०., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१.५४९, ८x२७-३२). धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्ममामि महाज्योतिरबामन; अंति: पुरतः शब्दाः समुत्पीडिताः, श्लोक-२०६. १००५५१. (+-+) नवस्मरण व पगामसज्झायसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(१)=१९, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४८.५, ९४२५-३२). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. २अ-१८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: अचिरान मोक्षं प्रपद्यंते, स्मरण-९, (पृ.वि. भयहर स्तोत्र गाथा-११ अपूर्ण से है व नवकार व उवसग्गहर का नाम मात्र लिखा है.) २.पे. नाम. पगामसज्झायसूत्र, पृ. १८अ-२०अ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम सूत्र अपूर्ण तक लिखा है.) १००५६५. पार्श्वजिन छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (१३४९, ६-९x१५). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, म. रूपविजय, मा.ग., पद्य, आदि: सरसतीमात नमीकरी वली; अंति: रूपविजय० इम गोडीजिनवरु, गाथा-१६. २.पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन छंद, प. ४आ-६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४६९ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती द्यो मुज सुमति मती; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) १००५६६. (+#) विवेकमंजरी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.६, प्र.वि. अंत में एक यंत्र दिया है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२०४९, १३४३४-४०). विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि , प्रा., पद्य, वि. १२४८, आदि: सिद्धपुरसत्थवाहं वीर; अंति: जलहिदिणेस वरिसम्मि, गाथा-१४४. १००५७६. (+#) भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १६४८, माघ शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. १७, प्रले. पंडित. दुर्गदास ज्योतिषी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४७, ७७२८-३२). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१९७. १००५८३. (+#) संगीतोपनिषत्सारोद्धार-अध्याय २ से ६, संपूर्ण, वि. १६२२, श्रावण शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. ४६, प्रले. वत्सराज गोविंद द्विवेद; अन्य. वेणीदास दीक्षित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-संशोधित. कुल ग्रं.८२२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४८,८४३५-३८). संगीतोपनिषत्सारोद्धार, मु. सुधाकलश, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)श्रीमद्हर्षपुरीयगच्छमु०, (२)यांति मनोतु गुरु ___लाघवं, प्रतिपूर्ण. १००५८८. (+) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४६, ५४३०). पाशाकेवली, म. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः (१)ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी, (२)१११ पदं पदं पदं चांते; अंति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१९६. १००५९० (#) पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, प्र.वि. हुंडी:आराध०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४८, १०४२९). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: नामे पूनप्रकाश ए, ढाल-८, ___ गाथा-१०२, (पू.वि. ढाल-७ गाथा-१४ अपूर्ण से है.) १००५९१. आनंदघन गीतबहोत्तरी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (१९.५४८, १२४३६-४०). आनंदघन गीतबहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: क्या सोवे उठ जाग; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद-२४ तक लिखा है.) १००५९२. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३४८, ९x१६). साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुख उपना दुख गयै री; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ तक लिखा है.) १००५९५. (+) शेजेजय उद्धार रास, संपूर्ण, वि. १८६२, माघ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. कुचेरा, प्रले. मु. चतुरसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४७.५, १२४३५-३८). शQजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी; अंति: समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-१०७. १००६०६. प्रश्नव्याकरण-पंचपद स्तुति गाथा-३, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१५.५४८, ९x१८). महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १००६१७. (#) शनिश्चर वार्ता चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. भाणजी; पठ. लवजीभाई; अन्य. मु. हंसराज ऋषि; श्राव. रतनसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (१४x७, ६४१६-२०). शनिश्चर चौपाई, पं. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति संपति द्यो मति सदा; अंति: लहे पंडीत ललीतसागर ईम कहे, गाथा-२७. १००६२१. शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२३.५४११, १०४२७-३२). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति कुष्मांडनी; अंति: लाभ पुत्र लाभ सुख दोसी. For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १००६३० (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८१-६९(१ से ६९)=१२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०, ११४२८-३२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. तिर्यक कांड गाथा-३६ अपूर्ण से सामान्यकांड गाथा-१२६ तक है.) १००६४२. (4) हरिबल चौपाई, अपूर्ण, वि. १८१६, श्रावण शुक्ल, ९, गुरुवार, जीर्ण, पृ. १२३-७१(१ से ७१)-५२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४३१-३५). हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: (-); अंति: जो लब्धिनी वाचा ए फलजो रे, उल्लास-४ ढाल ५९, ग्रं. ३७५१, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., उल्लास-३ ढाल-९ गाथा-२४ अपूर्ण से है.) १००६४५ (+#) २४ दंडक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रावण कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. कुचेरा, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, ३४२९-३२). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे तस्सुत्त; अंति: लिहिआ एसा विन्नती अप्पहिआ, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउवीस तीर्थंकर प्रतइं नमी; अंति: आत्मानइ हितनीकरणहार हवओ. १००६४६ (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २१, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ४४२८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: किल्याणमंदिर कहतां; अंति: कहतो मोक्ष प्रतइ पोहचइ. १००६५०. (#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-४(३,५ से ६,३१)=३०, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१०.५, १२-१५४३८-४२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः (-), (पू.वि. कांड-४ श्लोक-८४ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १००६५४. (#) औपदेशिक स्तुति सह बालाबोध व प्रवचनसारोद्धार आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९६, माघ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, ३४३०-३६). १. पे. नाम, अध्यात्मोपयोगिनी स्तुति सह बालावबोध, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठि सवेर सामायिक कीधू पिण; अंति: थइयें सिद्धपद भोगिजी, गाथा-४. औपदेशिक स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: संसारी जीव बे प्रकार; अंति: सिद्धपद भोगी थाय छ. २. पे. नाम. प्रवचनसारोद्धार का हिस्सा १७० जिन उत्कृष्टमध्यमजघन्य कालस्थिति विचार गाथा सह बालावबोध, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा १७० जिन उत्कृष्टमध्यमजघन्य कालस्थिति विचार गाथा, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: उक्किट्ठ जहन्नेहिं संखा; अंति: वीसं दस हंतिउ जहन्ना, गाथा-२. प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा १७० जिन उत्कृष्टमध्यमजघन्य कालस्थिति विचार गाथा का बालावबोध, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७९६, आदि: उत्कृष्टइ पदई एक कालई; अंति: अढिसय धनुष बहुल पणइ. ३.पे. नाम. प्रवचनसारोद्धार-प्रा. हिस्सा १७० जिन बीस विहरमान जिन कालस्थिति विचार गाथा सह अर्थ, पृ. ४अ, संपूर्ण. प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा १७० जिन २० विहरमानजिन कालस्थितिविचार गाथा, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: सत्तरिसयउ १७० कोसं जहन्नउ; अंति: कम्मयइ वीसं २० दसैगं वा, गाथा-१. प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा १७० जिन २० विहरमानजिन कालस्थितिविचार गाथा का अर्थ, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७९६, आदि: उत्कृष्टइ कालई; अंति: दश १० जीन जन्म पांमिइ. For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४७१ ४. पे. नाम. जिनसंख्यादिविचारमय दोधक सह अर्थ, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन विवरण दोहा, मु. आणंदरुचि कवि, मा.गु., पद्य, आदि: विवरो ए गाथातणौ कवि; अंति: आणंद० सीस कहै करजोडी, गाथा-१८. २० विहरमानजिन विवरण दोहा का अर्थ, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७९६, आदि: चढत काल उत्सर्पिणीना; अंति: सदा काल चउथो आरोहुइ. १००६५५. कानड कठियारानी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७४, आषाढ़ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ.५, ले.स्थल. विलावस, प्रले. पं. उत्तमविजय; अन्य. मु. हिम्मतसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११, १५४३६-४०). कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुं सदा; अंति: दिन वधते रंग मन भमरा रे, ढाल-९. १००६५६. गोडीपार्श्वनाथजी वृद्ध स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३५, माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ६, पठ. श्राव. विरधा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४१०.५, १३४३३-३६). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. अनोपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: जिन वदन निवासनी; अंति: पायो धवल धीग गौडीधणी, ढाल-८. १००६५७. (+#) त्रैलोक्यसुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पीपड, प्रले. सा. उमेदा (गुरु सा. मानाजी); गुपि. सा. मानाजी (गुरु सा. लछुजी); सा. लछुजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:तीलो., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, १८४३६-३९). त्रैलोक्यसुंदरी रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: विहरमान वीसे नमु जेवंता; अंति: लील वीलास सीयल सुहामणो, ढाल-१२. १००६५८. (+) आलोचणा आराधना, संपूर्ण, वि. १९०४, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४११.५, १२४२५-२९). आलोचणा आराधना, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० सम्यक्तादि; अंति: थको सर्वसुख मंगलीक पामे. १००६५९. छत्तीसबोलरो थोकडो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. श्राव. मनालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११, १६४३६-४०). ३६ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: एगेविहेअ संयमे एगेलो; अंति: जीवाजीव विभत्तिरो अध्येन. १००६६०.(+) सप्तस्मरणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९९-१९०२, मध्यम, पृ. ९०, कुल पे. २४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२२४१०.५, ९४२५-३२). १. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. १आ-३०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:साते०.सीमरण०. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: जैनं जयति शासनम्, स्मरण-७. २. पे. नाम. विवाहपट्टल, पृ. ३०अ-३९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:विवाहपट्ट. विवाहपटल, सं., पद्य, आदि: धनाढ्य माघे सुभगा च; अंति: गुरुर्लग्नं विपोहंति, श्लोक-९७. ३. पे. नाम. पंचसंधि व्याकरण, पृ. ४०अ-५१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पंचसंधिव्या०. सारस्वत व्याकरण-टीका*, सं., गद्य, आदि: सूत्रसप्तशति यस्मै; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४. पे. नाम. सवासो शिख, पृ. ५१आ-५५अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:सवासोसी०. औपदेशिक सवैया, म. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसदगुरु उपदेश; अंतिः श्रीधर्मसी उवज्झाय, गाथा-३६. ५. पे. नाम. धम्मोमंगल पाठ, पृ. ५५अ-५५आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रथम अध्याय मात्र.) ६. पे. नाम. संखेश्वरापार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ५५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरिय मे वंछितं नाथ, श्लोक-५. ७. पे. नाम. समायक विधि, पृ. ५६अ-६३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:समाईकवि०. सामायिकादि विधि-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पंचिंदिय संवरण तह नवबेह; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. ८.पे. नाम, ३२ सामायिकदोष सज्झाय, पृ. ६३अ-६४अ, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रावण कृष्ण, १, शनिवार, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. श्राव. खीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:सामायिकवि०. म. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संयमे धीर सुगुरु पय; अंति: ज्ञानविमल० वाधे नूर, गाथा-१०. ९.पे. नाम. सूरेउगे, पृ. ६४आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उगे अभतटुं; अंति: पच्चक्खाण पछै मोकली. १०. पे. नाम. पडिक्कमणासूत्र, पृ. ६५अ-६९अ, संपूर्ण, वि. १९०२, आषाढ़ कृष्ण, १, गुरुवार, पे.वि. हुंडी:पडिक०. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदेसह भगवान; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ११. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ६९अ-६९आ, संपूर्ण. म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पूर मनोरथ माय, गाथा-४. १२. पे. नाम. पंचमी थुई, पृ.६९आ-७० आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमी पंचरूपस्त्रिदश; अंति: कुसलं धीमतां साविधाना, श्लोक-४. १३. पे. नाम. अष्टमी थुई, पृ. ७०आ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसार दावानल दाहनीरं; अंति: भवविरह वरं देह मे देहसारं, श्लोक-४. १४. पे. नाम. एकादशी स्तवन, पृ. ७१अ-७१आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादसी अति रूवडी; अंति: निवारो सिंघतणा निसदीस, गाथा-४. १५. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तवन, पृ. ७१-७२अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. १६. पे. नाम. शेजा स्तवन, पृ. ७२अ-७२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह ऊठी वंदु रिषभदेव; अंति: श्राविक रिषभदास गुण गाय, गाथा-४. १७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ७२आ-७३अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि: आगे पूरब वार निनांणू; अंति: कारिज सिद्ध हमारी जी, गाथा-४. १८. पे. नाम. १२ व्रत नाम, पृ. ७३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात१ मषावाद; अंति: अतिथिसंविभागवत. १९. पे. नाम. ८ कर्म नाम, पृ. ७३अ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावर्णनी १ दर्शनावर्ण; अंति: अंतराय कर्म ७ आउषो ८. २०. पे. नाम. ५ सुमति प्रकार, पृ. ७३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चलैनीर्ष १ भाषैउचित २; अंति: लेहनिर्ष ४ डाइनिर्ष ५. २१. पे. नाम. ५ प्रमाद नाम, पृ. ७३आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: मद १ विषय २ कषाया ३; अंति: जीवं पाडं तीसं सारे. २२. पे. नाम. ८ मद नाम, पृ. ७३आ, संपूर्ण, वि. १९०२, आषाढ़ शुक्ल, १, गुरुवार, पठ. पं. क्षमारतन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१३८५) पाग भाग सूरत प्रक्रत. मा.गु., गद्य, आदि: जाति १ लाभ २ कुलमद; अंति: विद्या ६ बल ७ इधकार ८. For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४७३ २३. पे. नाम, चमत्कारचिंतामणि, पृ. ७४आ-८४अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:चमत्कार०. राजऋषिभट्ट, सं., पद्य, आदि: नचेत् खेचरा स्थापिते किं; अंति: वस्ति गुह्ये सदैव, श्लोक-११२. २४. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. ८४अ-९०आ, संपूर्ण, वि. १९०२, श्रावण शुक्ल, २, मंगलवार, पठ. पं. क्षमारतन, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्य, आदि: तन धन सहज सुहृद सुत रिपु; अंति: सीतरी ७० बहु सुख पावः. १००६६१ (+) चमत्कारचिंतामणि का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२२४१०.५, ८x२९). चमत्कारचिंतामणि-पद्यानुवाद, श्रीसार कवि, पुहि., गद्य, आदि: युं विचार ज्योतिष को; अंति: कहि देख विसवावीस सह. १००६६२ (+) जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५६, फाल्गुन शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. कस्तूरविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिश्वरजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२२.७४११, १२४३३-३६). जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रणम्य स्वस्तिऋद्धिश्री; अंति: नंदावर्त विसर्जन मंत्र. १००६६७. (+) पासाकेवली व प्रश्न ज्ञानार्थ शकनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४११, १३४३४). १.पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण, वि. १८६९, चैत्र कृष्ण, ४. म. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: चढस्यै गुरु भक्ति कर सही, श्लोक-१९६. २. पे. नाम. प्रश्न ज्ञानार्थ शकुनावली, पृ. १०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जिन शकनावली, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर २४ मांहि एक; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) १००७०६. वैद्यजीवन व नाडीपरीक्षा, अपूर्ण, वि. १८७६, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५६-५०(१ से ५०)=६, कुल पे. २, प्रले. मु. लब्धसागर जति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२२.५४११, ४-७४२१-२५). १.पे. नाम. वैद्यजीवन, पृ. ५१अ-५४अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. क. लोलिंबराज, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: लोलिम्मराजः कविः, विलास-५, (पू.वि. विलास-५ श्लोक-१५ अपूर्ण से २. पे. नाम. नाडी परीक्षा, पृ. ५४अ-५६अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सप्ता च सरला दीर्घा; अंति: नाडी दरेण वर्जयेत्, श्लोक-१४. १००७११ (+#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-६(१ से ६)=५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११, १३४२१-२५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, संपूर्ण. १००७१२. (+) गौतमस्वामी रास व धर्मनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२१.५४११, १५४३४). १.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, प्रले. मु. शिवविजय; पठ. श्रावि. रीधुबीवी, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: भद्र गुरु इम भणे ए, ढाल-६, गाथा-४८. २. पे. नाम, धर्मनाथ स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मुंने धरमजिण; अंति: मोहन० अति घणो रे लो, गाथा-७. १००७१३ (+) विपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०, प्र.वि. हंडी:विपाकसूत्र., संशोधित., जैदे., (२३४११, १३४३७-४५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १००७१४. (+) छेदशास्त्र व छेदपिंड, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४८-२२ (१ से २१, २७) = २६, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१९.५x११, १०X२६-२९). १. पे. नाम छेदशास्त्र सह वालावबोध, पू. २२अ-३२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. छेदशास्त्र, प्रा., पद्य, आदि (-); अति उदीणउदी गाहाहिणिविट्ठा, गाथा- ९१ (पू.वि. गाथा ४९ से है व गाथा सं. ६१ नहीं है.) छेदशास्त्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ४८ अपूर्ण से है व ६१ से ७४ तक का बालावबोध नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. छेदपिंड, पृ. ३२अ ४८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. इंद्रनंदिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: विच्छिण्णकम्मबंधे; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - २५० अपूर्ण तक है.) १००७३४. (#) शत्रुंजय रास, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५X१०, १०X३६). शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी अंति समयसुंदर० आणंद धाय, डाल- ६, गाथा- ११८. , १००७३५ (+) भगवतीसूत्र शतक २४ दंडक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित, दे. (२४४१०, ३५x२८). भगवतीसूत्र शतक २४ संबद्ध दंडक विचार, मा.गु.. गद्य, आदि पर्यपता असंज्ञी तिर्वच अति तिम इह्यां पिण सगलेइ कहणा. १००७३७. (*) हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १८३६ कार्तिक कृष्ण, १२, मध्यम, पू. ३५-८ (५,९,१४,१६,१८ से २९) =२७, ले.स्थल. आउआनगर, प्रले. पं. क्षमासौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : हंसराजवछ० चौ०, कुल ग्रं. १०००, मूल पाठ अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (२९) ज्यां सूरज त्यां चंद्रमा, जैदे. (२३४१०, १३x४०). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि आदिसर आये करी चोबीसे, अति सूरि० हंस अनै वछराज, खंड-४ ढाल ४८, गाथा - ९०५, (पू.वि. ढाल-६, गाथा- ७ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा- २ अपूर्ण तक, ढाल-११ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल १३ गाथा-५ अपूर्ण तक, ढाल १८ गाथा-१२ से ढाल - २० गाथा-१ तक, ढाल -२१ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल २२ गाधा-३ अपूर्ण तक व डाल- २३ गाथा ४ अपूर्ण से डाल २९ गाथा- २ अपूर्ण तक नहीं है। १००७४९. रमल शुकनावली, संपूर्ण वि. १८५८ आषाढ़ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. धणलानगर, प्रले. मु. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., जैदे. (२२.५x१०, ११x२७-३०). "" रमल शुकनावली, पुहिं., गद्य, आदि: अरे यार बहुत दिन चिंता; अंति: भली होइगी घरे आनंद होयगा. १००७८५ (४) रोहिणीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पू. ६-१ (१) =५, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (१५.५x११, १०x१६). " रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १००७८९ (४) सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. ५, प्रले. मु. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५X१०.५, २०X२०). १. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. पद्य वि. १८वी, आदि ता योगी चित ल्याउं अंति से बहुरन काल न आउ , गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तेरे दरसण के देखे; अंति: झलाझल सैं झलकता है, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पू. १आ, संपूर्ण, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो निरंजन यार कैसे; अंति: आनंदघन० ही टरैगो, गाथा-३. ४. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: घोर घटा करी आयो री; अंति: परमानंद पायो हो, गाथा-३. ५.पे. नाम. औपदेशिक पद, प.१आ, संपर्ण. म. गणविलास, पुहिं., पद्य, आदि: दया विन करणी दःखदान; अंति: जीवन ज्यो पावे न जिनवाणी, गाथा-४. १००७९० (#) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. १७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१०, ६-९४२५). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ देशांतरी छंद, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन आपो शारदा मया; अंति: तवियो छंद देशांतरी, गाथा-४७. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति सलूणा साहिबा मजरो; अंति: उवज्झायनो रूप० करे आसो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. जंबूस्वामी स्वाध्याय, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, श्राव. पनो, मा.गु., पद्य, आदिः श्रेणिकनरवर राजीयो; अंति: भणे ते लहसी राजने रिद्धि, गाथा-२०. ४. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, म. गणशेखर, पुहिं., पद्य, आदि: अदभूतरूप अनुप विराजै छाजै; अंति: णशेखर भासै तो जाउ बलिहारी, गाथा-६. ५. पे. नाम. रछेरपार्श्व स्तवन, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-रत्नपूरीमंडण, आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्री तेवीस जिणवर; अंति: शांतिसूरि० वंछित कोडी रे, गाथा-१०. ६.पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर समरुं श्रीआदिदेव; अंति: कमलविजै० तिया घर जय जयकार, गाथा-६. ७. पे. नाम. ५ तीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १०आ, संपूर्ण... मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तिर्थंकर आदिनाथ; अंति: प्रम्मतां मनवंछित फल पाइए, गाथा-१. ८. पे. नाम. गौडीपार्श्व स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, आ. यशोदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसादाणी पासजी भेटण; अंति: यशोदेव० दिन दिन चढतै वान, गाथा-७. ९. पे. नाम. थंभणपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभणतीर्थ, आ. यशोदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: समुदा रे पैले पार पार; अंति: यशोदेवसू० जिम दर्शण लहु, गाथा-७. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. आ. यशोदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मूरित ताहरी पेखता सामी; अंति: यशोवसूरि० सामी सिव मनोधाम, गाथा-८. ११. पे. नाम. च्यारआंखडीउपर वंकचूल सज्झाय, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. वंकचूल सज्झाय-४ नियम, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु आदेसी लही दोइ मुनिवर; अंति: विणमाहि सुतिरै संसार, गाथा-१०. १२. पे. नाम, थूलभद्रकोस्या चौमास्यो, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रकोशा सज्झाय, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पावस काल विसम मंडलायो; अंति: अजितदेव० प्रणमै रे पाया, गाथा-६. १३. पे. नाम. सीलनिंदा सिझाय, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनिंदा, मा.गु., पद्य, आदि: म करि करि म म करि पर; अंति: प्रथम जिणंद पाय फरसो रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४. पे. नाम. सुपासजिन स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. गुणविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि अरज सुपास सनेही; अंति: जय जय करि श्रीजगदीसा रे, गाथा-७. १५. पे. नाम. सातकुविसन प्रतिबोध सज्झाय, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जूआ विसने वाहीऊ नल; अंति: अजितदेवसूरि० अविचल धामा, गाथा-१६, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गिना है.) १६. पे. नाम, जैनचैत्य स्तवन, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके रविशशि; अंतिः सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-९. १७. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. ___ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: पांमिस्यै भव तणो पार, गाथा-६. १००७९२ (+#) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८५६, वैशाख शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ६८, प्रले. मु. लावण्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२१.५४१०.५, १०४२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: कासवगुत्ते पणिवयामि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. १००७९३. (#) आत्महितशिक्षा सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-१(२)=११, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७.५४११, १६x२४-२८). १.पे. नाम. आत्महितशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक गीत, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण हमारी सीख सयाणे जाणै; अंति: राजसमुद्र० सिवघरणी बे, गाथा-५. २. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ-१२अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. १७५६, चैत्र कृष्ण, ७, सोमवार, ले.स्थल. असलाउदा, प्रले. पं. लक्ष्मिविजय गणि (गुरु पं. शुभविजय गणि); गुपि.पं. शुभविजय गणि; पठ. मु. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:सातेस्मर०. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्. प्रतिलेखक ने अंत में सप्तस्मरण लिखा है. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: स्तूयमाने जिनेश्वरे, स्मरण-९, ___(पू.वि. तिजयपहुत्त स्तोत्र गाथा-४ अपूर्ण से नमिऊण स्तोत्र गाथा-११ अपूर्ण तक नहीं है., वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है.) ३. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १२अ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह कृति पत्रांक-९आ से १०आ पर है. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ४. पे. नाम. चंद्रलग्र विचार, पृ. १२अ, संपूर्ण.. ज्योतिष विचार, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: कृष्णे च पक्षे तिथयो भवंत; अंति: प्रमितोत्र चंद्रमाः. ५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण. म. ऋषभसागर, मा.ग., पद्य, आदि: काम्मित पुरण चरण; अंति: चरणे लागि मनावं हो, गाथा-१०. १००८०७.(+) दशसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. हुंडी:दससूत्र., संशोधित., दे., (१४४१०, ९x१४). श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: त्रैकाल्यं द्रव्यषट्कं६; अंति: (-), (पू.वि. 'जीवाजीवाश्रवबंधसंवर' पाठ तक है.) १००८२० (#) शुकनावली की भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११,११४२४-३०). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: (-), (पू.वि. संख्या-४४२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४७७ १००८२२. (+) पंचमीतिथिपर्व सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ५, पठ. दीपचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१७४११, १२४२९). १. पे. नाम. सीमंधरजिनबीज स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार; अंति: पूर आस्या मन तणी, गाथा-१८. २. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२५. ३. पे. नाम. पांचमतप स्वाध्याय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पंचमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु चरण पसाउले रे; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-७. ४. पे. नाम, अष्टमीतप स्तवन, पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पामे घणु, ढाल-२, गाथा-२३. ५. पे. नाम. मौनएकादशीतिथस्तपमहात्म नेमीजिन स्तव, पृ. ७आ-११आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानगरी समोसर्य; अंति: घणो पामीये मंगल घणो, ढाल-३, गाथा-२५. १००८४२. (+) रामविनोद शास्त्र, अपूर्ण, वि. १९१०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १४४-१(७६)=१४३, ले.स्थल. विदासर, पठ. मीनीराम नाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रामविनोद., संशोधित., ., (२२.५४११,१०४३२-३५). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धबुद्धिदायक सलहीये; अंति: रामचंद्र० जा लगि धूरविचंद, समुद्देश-७, गाथा-१६१७, ग्रं. ३३२५. १००८४४. (+#) गणितसाठसौ ग्रंथ व ज्योतिषदोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-३(१ से ३)-७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १४-१५४३६-३८). १.पे. नाम. गणितसाठसौ ग्रंथ, पृ. ४अ-१०आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पंचांगगणित विधि, उपा. महिमोदय, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदिः (-); अंति: महिमोदयग्रंथ समुदाय, गाथा-१६४, (पू.वि. गाथा-५० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ज्योतिषदोहा संग्रह, पृ. १०आ, संपूर्ण... ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: शनथापन नृपमिलन रवि न्हांण; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अर्द्धप्रहरा के दोहा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) बृहत्शांति स्तोत्र व दीक्षा विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक खंडित होने से अनुमानित पत्रांक २ दिया गया है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२३.५४१०.५, १०-१६x२९-३४). १. पे. नाम. बृहत्शांति, पृ. २अ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., २४ जिन नाम अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सनालिकेर प्रदक्षिणा खमा०; अंति: देइ चत्तारि परमं० इत्यादि. १००८४९. पार्श्वजिनादि स्तुतिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३३). For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४७८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तुति-पनांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि (-); अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन; अंति: विस्मतहृदः क्षितौ, श्लोक-४. ३. पे नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: जीवित जनम प्रमाण, गाथा-४. ४. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पनांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वशं ज्योतिरूपं अंतिः सद्बुद्धिं वैदुष्यं श्लोक-४. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि हर्षनतासुरनिर्जरलोकं अंति (-), (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण मात्र है.) १००८५३. (+४) पडिकमणासूत्र व नीतिशतक, अपूर्ण, वि. १८०९, फाल्गुन कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६. कुल पे. २, प्रले. मु. डामड (गुरु मु. कला); गुपि मु. कला (गुरु मु. इसरसोम); मु. इसरसोम (गुरु पं. हेमसोम); पं. हेमसोम (गुरु पं. कपुरसोम); पं. कपुरसोम, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३×१०.५, ११×३५). १. पे नाम प्रतिक्रमणसूत्र. पू. १अ ६आ, संपूर्ण, प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे. मू. पू. *, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छामि ; अंति: करि मच्छामि दुक्कड. २. पे. नाम. नीतिशतक, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि वां चिंतयामि सततं अति (-) (पू.वि. श्लोक-२ तक है.) १००८५४. नवतत्त्व प्रकरण के बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १४-२ (१ से २)=१२, दे. (२१.५x१०, १३-१५X१३-३४). नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल- ३४ से है व बोल - ९५ तक लिखा है.) " " १००८५५ मेघकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९ २ (१ से २ ) =७, पू.वि. बीच के पत्र हैं. दे. (१४४१०.५, १११४). मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल -२ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा १८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only १००८५६. (#) देवपूजा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४-३(७,११,१३) ११. पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., ( १६.५X१०.५, ९४२४-३०). देवपूजा विधि, प्रा. सं., प+ग, आदि जय जय जय नमोस्तु० णमो अंति (-), (पू.वि. श्लोक-३१ अपूर्ण से ३३ अपूर्ण तक नहीं है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) 13 १००८५९ आषाढभूति रास व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-४ (१ से ४-५ कुल पे ५ प्रले. सा. नथो (गुरु सा. विनाजी); गुप. सा. विनाजी (गुरु सा. खेमाजी); सा. खेमाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: आषाढ, जैदे. (२१.५४११. १७X४०). " १. पे नाम. आषाढभूति रास, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी; अंति: कनकसोम ० कुं सुखकार, गाथा-६७. २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पू. ७अ ८आ, संपूर्ण, Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४७९ म. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मोहो मीथ्यात की नींद; अंति: जैमलजी० इम रुलियो संसार, गाथा-३५. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. सिंहकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: म्हे तो उदियापुरथी; अंति: हो रसाहिब सुखसंपदा, गाथा-१०. ४. पे. नाम. गजसुकमालकी सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. कान, मा.गु., पद्य, वि. १७५३, आदि: जिन नेम आगम सुणी; अंति: सेवक कहे गणी काहन रे, गाथा-९. ५. पे. नाम. आत्मासंबंध पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- वैराग्य, पुहिं., पद्य, आदि: पांच तत्त्व की भीत वणाई; अंति: चाकरीजी तसाही फल देत, गाथा-४. १००८६०. (+) वृद्धशांति व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-२(६ से ७)=७, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१६.५४१०.५, १०x२१). १. पे. नाम. वृद्धशांति, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वृद्धशां०, वडीशां०. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (१)सुखी भवतु लोकः, (२)पूज्यमाने जिनेश्वरे. २.पे. नाम. लघुशांति, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण.. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. १००८६५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५२+१२(१ से १२)=१६४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२३.५४१०, ११४४२-५०). उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८पू, आदि: अर्हतो ज्ञानभाजः; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-१० पाठ "इत्यत्रतृतीया स्थाने षष्टी श्रुतेन" से अध्ययन-१२ पाठ "कुटुंबानि विविध खाद्यपानकरणा" पाठ तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. अध्ययन-१२ के पत्र-१ पर पत्रांक नहीं १००८७१. वीरस्तुति अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (१९.५४१०.५, ४४२२-२५). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमसंति त्तिबेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु० सुधर्मास्वामीनि; अंति: इम हुं बे० कहुं छु. १००८७३. (+) गजसुकमाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-७(१ से ७)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४११, १५४३४). गजसुकुमालमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१० गाथा-११ अपूर्ण से ढाल-२१ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १००८७४. (#) हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १८८१, भाद्रपद शुक्ल, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. ३७-१४(१ से १०,१३ से १५,१८)=२३, ले.स्थल. आसोप, प्रले. पं. नथमल (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०, १०-१६x२६-३८). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदिः (-); अंति: ए हंस अनै वच्छराज, खंड-४ ढाल ४८, गाथा-९०३, (पू.वि. ढाल-२१ गाथा-३४५ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १००८७७. (+) श्रीपालराजा रास सह बालावबोध-खंड ४, अपूर्ण, वि. १८३५, वैशाख कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ६२-२(१,६१)=६०, प्रले. पं. जसविजय (गुरु पं. दर्शनविजय गणि); गुपि.पं. दर्शनविजय गणि; राज्यकाल आ. विजयधर्मसूरि (गुरु आ. दयाविजयसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २४००, जैदे., (२२.५४११, १५४४१). For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: विलसे ज्ञानविसालाजी, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. खंड-४ ढाल-१ गाथा-३ से ढाल-११ गाथा-३० तक व गाथा-३१ का बालावबोध पाठ "अभक्ष्य कहीयइं भक्षते निरवद्यनिईखण सचित्त" से है.) श्रीपाल रास-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: इम भविक जीवने कहे छे, प्रतिअपूर्ण. १००८७८. (#) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-१(५)=६, कुल पे. १३, प्रले. श्राव. चैनराम, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११, १४४२५). १. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: लबधि० पूरि मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. चतुरदसि स्तुति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. __ पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. चतुरदसि स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: संघ तणा निसदिस, गाथा-४. ४. पे. नाम. माहावीर स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं सम्मोह; अंति: भवविरह वरं देह मे देहसारं, श्लोक-४. ५. पे. नाम. पंचतिथि स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंदं पढमं जिणंदं; अंति: आ अम सया पसथा, गाथा-४. ६. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-जावरापुरतीर्थमंडन, मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकर शांतिकर जावर; अंति: पुन्य प्रभाविका, गाथा-४. ७. पे. नाम, पंचमि स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: कशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ८. पे. नाम. रिषभजिन स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वीसलपुर वांदुं आदि; अंति: संघना विघन निवार, गाथा-४. ९. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: आगै पूरब वार निवाणुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १०. पे. नाम. रिषभजिन स्तुति, पृ. ६अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. साधारणजिन स्तुति, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: जो तुसे देव अंबाई, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ११. पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेनूंजमंडण आदि; अंति: निह्नः पाय सेवता, गाथा-४. १२. पे. नाम, पार्श्व स्तुति, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय पासदेवा करुअ सेवा; अंति: केरी सयल आस्या पुरणी, गाथा-४. १३. पे. नाम. चउविसतिर्थ स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४८१ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजो तिरथ; अंति: पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. १००८८१ (+2) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-१४(१ से ४,९ से १०,१२ से १३,१५,१७ से २१)=८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:हैमको०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४११, ९-१०४२९-३२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड-१ श्लोक-३३ अपूर्ण से कांड-२ श्लोक-२४१ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) १००८८३ (+#) सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , जैदे., (२२४११, ८-११४२५-३१). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअ सव्वभयं; अंति: नमामि साहम्मिया तेवि, स्मरण-७, (वि. उवसग्गहर स्तोत्र नहीं लिखा है.) १००८८४. रामतीयालाशिष्यप्रबंध व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १५४४६). १.पे. नाम. रामतीयाला शिष्यप्रंबध की टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १६१८, पौष शुक्ल, ८, ले.स्थल. हरीपुरा, प्रले. हेमसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य. फूलडा सज्झाय-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरमुक्ति गमनतः; अंति: वर्गसौख्यभाग बभूव. २. पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: डोकर दूजइ भइसविलोवइ; अंति: वह व्याई सासू जाई. १००८८५ (+#) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १७४१, कार्तिक शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ९, प्रले. पं. हेमविजय गणि (गुरु उपा. मुक्तिविजय गणि); गुपि. उपा. मुक्तिविजय गणि (गुरु भट्टा. विजयसिंहसूरीश्वर); पठ. ग. सुमतिविजय (गुरु पं. हेमविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १४४३६-४२). नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: जैन जयति शासनं, स्मरण-९, (वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं लिखा है.) १००८८८. विजयप्रभसूरि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१३४१०.५, १३४१८). विजयप्रभसूरि स्तति, पं. केसरसागर, सं., पद्य, आदि: श्रीविजयप्रभसूरि स्तवीमिव; अंति: रेयोवरं मे वितरत्वजसस्तम्, गाथा-१०. १००८८९ (4) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९-२६(१ से २६)=३, प्र.वि. प्रारंभ में मुहर्तमुक्तावली की मात्र प्रतिलेखन पुष्पिका है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, ८-१०४२२-२५). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) १००८९०. गच्छनामावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१६४११, ५४४५५). ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: काजामति १ सागरमती २; अंति: बाल गछ नाडोला गछ, (वि. अंत में वर्षानुक्रम में खरतरगच्छ एवं कुछ विशिष्ट गच्छ के नामों का उल्लेख है.) १००८९१. पद्मावतीमंत्र जापविधि व पद्मावती कल्प, संपूर्ण, वि. १८२२, आश्विन शुक्ल, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. दयालवकस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रतिलेखन वर्ष हेतु विक्रम संवत १९५७ एवं शक संवत १८२२ लिखा है., जैदे., (१७.५४११, १३४२६-३२). १. पे. नाम. पद्मावतीमंत्र जापविधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पद्मावती मंत्रजाप विधि सहित, सं., प+ग., आदि: ॐ अस्य श्रीपद्मावती; अंति: पार्श्वनाथजी मंत्रोयं. २. पे. नाम. पद्मावती कल्प, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्रे; अंति: पद्मावती स्तोत्रम्, श्लोक-२६. For Private and Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १००८९३. (+#) श्रावकपाक्षिकअतिचार, स्तवन व चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५७-४९(१ से ४९)-८, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१x१०.५, १०x२५-३१). १. पे. नाम. श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, पृ. ५०अ-५५अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १८५०, माघ कृष्ण, ९, प्रले. श्राव. अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, (पू.वि. "सुलसा चंदनबाला मनोरमा" पाठ से है., वि. स्याही उखड़ जाने कारण पाठ अस्पष्ट है.) २.पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ५५आ-५६आ, संपूर्ण. म.खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणमं प्रथम; अंति: लहै पामै सुख अमित्त, गाथा-८. ३. पे. नाम. ५ तीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ५६आ, संपूर्ण. मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तिर्थंकर आदिदेव विम; अंति: कमलविजय० जयजयकार, गाथा-६. ४. पे. नाम. अतीतअनागतवर्तमानचोवीसी वीसविहरमान च्यारतिर्थंकर साश्वता छन्नतिर्थंकर चैत्यवंदन, पृ. ५६आ-५७आ, संपूर्ण. अतीतअनागतवर्तमान चौवीसीनाम स्तवन, पं. विनयकशल, मा.गु., पद्य, आदि: केवली निरवाणी सागर महा; अंति: विनयकुशल० ते पामै शिवठाम, गाथा-६. ५. पे. नाम. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, पृ. ५७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेर्जेजे रीषभ समोसर्या; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) १००८९८. (+) संबोधसत्तरी प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४)=५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४११, ९४२५). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जयसेहर०नत्थि संदेहो, गाथा-७२, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) १००८९९ (+) अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१०(१ से १०)=५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११, १३४३४). अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि __कर्णाभ्यां; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रकाश-१० श्लोक-१३ अपूर्ण तक है.) १००९००. आगमयोगवहन आलोवो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से ३)=५, ले.स्थल. हिमापुर, दे., (२३४११, ११४४०). सम्यक्त्वादि व्रत आरोपण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नित्थार पारगा होह, (पू.वि. "इच्छाकारेण संदिस्सह भगवन् आममण आलोउ" पाठ से है.) १००९०१ (+#) भक्तामर स्तोत्र व लघुशांति, संपूर्ण, वि. १८३७, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. श्राव. नाथा मूलचंद वोरा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ११४३०). १. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. लघशांति, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांत; अंति: जयनं जयति शाशनम्, श्लोक-१९. १००९०३. चैत्यवंदनसूत्र व सुभाषित श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२२४१०.५, ४४२६). १.पे. नाम. चैत्यवंदनसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, वि. १९५८, माघ कृष्ण, १२, बुधवार, अन्य. मु. जितमल, प्र.ले.पु. सामान्य. चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उपाध्याय सर्वसाधुभ्यः. चैत्यवंदनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार होज्यौ अरि; अंति: प्रतें नमस्कार थाज्यौ. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक सह टबार्थ, पृ. ५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ " www.kobatirth.org ४८३ श्लोक संग्रह पु.ि प्रा. मा.गु., सं., पद्य, आदि: काया हंस विना नदी जल अति विना पुन्यं विना मानवा, श्लोक १. श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: काया हंस विना किण कामरी; अति सो पुन विना किसै काम रो. १००९११. (+#) वैद्रवी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १०, प्रले. श्रावि. जेठी बर्णी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे (२२४११, १३४३८). " वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि ० जागता करम धर्मसुं राग; अति: पउडी चढई क्ली नावि अवतार, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १८४. १००९१२. आदिजिन स्तवन, देशंतरीछंद व सीमंधरजिन वीनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ३, अन्य. मु. लाभसुंदर; मु. लक्ष्मीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२x११, १३X३८). १. पे. नाम. सेत्रुंजय स्तवन, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी आदीश्वरस्तव. शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ तीरथ बहु परिक्रोवतां अंति: अजितदेवसूरि०संकट दरि गयी गाथा ४६. २. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो छंद देसतरी, पृ. २आ-५आ, संपूर्ण, अन्य. पं. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी: छंदवेसंतरी. पार्श्वजिन देशांतरी छंद, क. राज, मा.गु., पद्य, आदि सुवचन संपी सारदा मया करो; अंति राज एम तवीची छंद वेसंतरी, गाथा ४७. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ५आ-१०अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : सीमंधरस्तवनं. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: अनंत चोवीसी जिन नमुं; अंति: संप्रति भविकजन मंगल करो, ढाल-७, गाथा- ११७. १००९२० (#) समासशोभा, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ११, प्रले. मु. समुद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. दुर्वाच्य अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २१.५x१०.५, १५x२८). सिद्धहेमशब्दानुशासन-समासशोभा, संबद्ध, मु. कल्याणसागरसूरि - शिष्य, सं., प+ग. वि. १७६०, आदि: श्रीमद्वागीश्वरीं देवीम; अंति: मासे शुचि शुक्लपक्षे. १००९३१. ज्ञानप्रदीप, जन्मपत्रीमासादिज्ञान व द्वादशराशिशनिफलादि विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, दे., (२३.५X१०, १०X३०-३३). १. पे नाम. लग्नज्ञानप्रदीप, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. ज्ञानप्रदीप, सं., पद्य, आदि: चरे लग्ने चरे सूर्ये; अंति: सर्व सौख्यं न शंसय, श्लोक-२९. २. पे. नाम, जन्मपत्री मासादिज्ञान विचार, पृ. २आ - ३अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: प्रथम जन्मकुंडली द्रष्टे; अंति: बाल पद्माश्रेयः प्रदायिनी . ३. पे नाम. द्वादशराशिशनिफल विचार, पू. ३२-४आ, संपूर्ण, १५X४९-६६). १. पे. नाम. त्रिलोकचैत्य स्तव, पृ. १अ संपूर्ण. शनिभाव फल विचार-१२ राशिगत, सं., गद्य, आदि: मेषस्यो भानुपुत्रे; अंति: भुवतले मीनगे सूर्यपुत्रे. ४. पे. नाम. शस्याधिपतिफल विचार, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण, पे. वि. कृति के अंत में ग्रह व नाडी फल विचार दिया है. शस्यादिपतिफल विचार, सं., गद्य, आदि: सूर्येनृपे अल्पजला च मेघा; अंति: यत्रशस्याधिपोशनी.. १००९३२. (+) त्रैलोक्यचैत्य व मंगल स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५४१०.५, तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि सद्भक्त्या देवलोके रविशशि; अंतिः वसततैश्चित्तमानंदकारी, श्लोक १०. २. पे. नाम. मंगल स्तव, पृ. १आ. संपूर्ण. शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्ये श्रीभवनाधिवासिभवन; अंति: स्तथा श्रीधर्मसूरिभिः, श्लोक-१५ For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १००९३६. पार्श्वजिन घग्घरनीसाणी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २९-२४(१ से २४)=५, दे., (२४४११, ८४३०). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: वखाणी गुण जीनहरख कहंदा __है, गाथा-१११, संपूर्ण. १००९४० (+) पाशाकेवली, अबजदीसुकनावली व पुत्रपुत्रीगर्भज्ञान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १६x४४-५२). १. पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. म. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१९६. २. पे. नाम, अबजदी सुकनावली, पृ. ६आ-९अ, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रावण कृष्ण, ५, शुक्रवार. अबयदी प्रश्न, पुहिं., गद्य, आदि: च्यारे पासे अबजद लिखीजे; अंति: आरति छोड दै काम सरैगा. ३. पे. नाम. पुत्रपुत्री गर्भज्ञान, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.. लग्नदोषावली, मा.गु., गद्य, आदि: मेषलग्न क्षेत्रपाल पितर; अंति: आवै गर्भहानि करंत उभावै. ००९५० (#) स्नात्र विधि, अपर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ८-३(२ से ४)=५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११, ११४२६). स्नात्रपूजा विधिसहित, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रथम घर में चोकोदि वरावै; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., वस्त्र पूजा अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४ मंगल, प्रा.,मा.गु., गा. ३, पद्य, पू., (चत्तारि मंगलं अरिहंत), ९५००४-७(#) ५परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अहँतो भगवंत इंद्र), ९९४७७-४(+) ५ परमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., गा.७, पद्य, मूपू., (परमेट्ठिमंतसारं सारं), ९७५९७-२(+), ९८०६२-५(+#) ५ समकित स्वरूप विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (पहिलो उपशम समकित), ९७१५२-२(+) ५ समवाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (काल सभाव नियति पुव्व), ९७५१७-२१(+#) ६ अंतरंगशत्रु नाम, सं., गद्य, मूप., (काम १ क्रोध २), ९८२८३-७(#) ७ नय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (नेगमसंगहववहारुजुसुएव), ९५३४१-२(+) ७ निह्नव गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (बहुयर जमालि पभवा), प्रतहीन. (२) ७ निह्नव गाथा-दृष्टांतकथा, मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रथम जमाली कुंडपुर), ९८३१३-४(5) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., ढा. ८, गा. ६६, वि. १७२४, पद्य, मपू., (गंगा मागध क्षीरनिधि औषध), ९४६५९-१(+), ९६९०२-२(+5), ९८००८(+5), ९९८७१-३३(+), ९९८७८-२(#), ९४७५७-३(#) १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु.,सं., ग्रं. ११३, प+ग., मपू., (उवसग्ग १ गब्भहरणं २), ९४६८४(+#$), ९७५५७(+), ९७५६४(६) १० मत स्वरूप, मा.गु.,सं., गद्य, पू., (वीरात् ६०९ वर्षे), ९७३१३-२(+) १२ उपांग नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (१ उववाई उपांग १५००), ९६४५७-५ १४ गुणस्थानक विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (अथ प्रथम गुणस्थानके), ९८२८३-६(#) १४ गुणस्थानक विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, म्पू., (मिच्छे १ सासण २ मीसे ३), ९५५२०-६(+) १४ जीवस्थान-कर्मविशुद्धिमार्गणा अपेक्षाए, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (जीवठाणा नाम १ लक्षण), ९५१४५(+) १४ पूर्व नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (१ श्रीउत्पादपूर्व), ९४९४४-१५(+#) १४ श्रावकभेद श्लोक, सं., पद्य, मूपू., (मृत् चालनी महिष हंस), ९६५९२-४(+#) (२) १४ श्रावकभेद श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुखे भेदवा योग्य), ९६५९२-४(+#) १४ स्थान समुर्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूप., (उच्चारेसु वा क०), ९७५१७-१३(+#) १५ कर्मादान विचार, प्रा., गद्य, मपू., (अंगालकम्मे१ वनकम्मे२), ९६५९९-३ (२) १५ कर्मादान विचार-टबार्थ, पुहिं., गद्य, मप., (अंगारा कोयला वन कटाना), ९६५९९-३ १५ सिद्धभेद गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (जिण १ अजिण २ तीत्थ ३), ९५५४२-३(+) (२) १५ सिद्धभेद गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध १), ९५५४२-३(+) १६ संज्ञा कुलक, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (एगिंदी पंचिंदी अंतरं), ९८२८३-३(#) १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ब्राह्मी चंदनबालिका), ९९४७७-५(+) १८ हजार शीलांगरथ, प्रा., गा. १८, पद्य, मूपू., (जे नो करंति मणसा), ९५४७४(+$) (२) १८ हजार शीलांगरथ-यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., मप., (--), ९५४७४(+$) २० स्थानकपद नमस्कार, सं., गद्य, मपू., (अशोकवृक्ष प्रातिहार्य), ९५०३२-१(+) २१ बोल-सबल दोष, प्रा., गद्य, पू., (हत्थकम्म करेमाणे सबल), ९७२६४-४(+#) २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मूपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), ९६३०२(+$), ९६४१४(+), ९६६१२(+) (२) २१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (चोवीस तीर्थंकरना २१), ९६३०२(+$), ९६४१४(+), ९६६१२(+) २४ जिन आयुप्रमाण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, पू., (चुलसी बावत्तरि सट्ठी), ९७५१७-१७(+#) २४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., को., मपू., (कार्तिकवदि ५ नाणंस), ९८७२९(+#) परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४ For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ २४ जिन छद्मस्थकाल गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मपू., (वाससहस्स १ बारस २ चउदस ३), ९८२८३-८(#) (२) २४ जिन छद्मस्थकाल गाथा-व्याख्या, मा.गु., गद्य, मप., (आदिनाथवर्ष सहस्र अजितवर्ष), ९८२८३-८(#) २४ जिन नाम, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (ऋषभ १ अजित २ संभव ३), ९४९७७-२(+$) २४ जिन राज्यकालविचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (वासुपूज्जमल्लिनेमी पासो), ९७५१७-१८(+#) २४ जिन शरीरमान गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पंच धणुसय पढमो कमेण), ९७५१७-१६(+#) २४ जिन स्तव, श्राव. भूपाल, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., दि., (श्रीलीलायतनं महीकुल), ९६२२७-४(+) २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (नाभेयाजितवासुपूज्यसुविधि), ९८०९३-५(+) २४ जिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, पू., (श्रीआदिनाथाजितसंभवेश), ९९७१२-६(+) २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मप., (आदौ नेमिजिनं नौमि), ९६४३५-२(+#) २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (रुचितरुचि महामणि स्वर्ण), ९५८०२-८(+) २४ स्थानक प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, श्वे., (गइ इंदिय च काए जोए), प्रतहीन. (२) २४ स्थानक प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (गइ इंदिय काए), ९७६१२-५(+$) २६ द्वार पुद्गलअल्पबहुत्व विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (एएसि णं भंते परमाणु पोगला), ९७४९१-२ २८ लब्धि नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (आमोसहीलद्धीणं १ विप), ९८२८३-४(#) २८ लब्धिविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मप., (आमोसहि विप्पोसहि), ९४९४४-१४(+#), ९५६०२-२, ९८२८३-५(2) (२) २८ लब्धिविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जेहनै सरीरने फरस से), ९४९४४-१४(+#) २८ लब्धि स्तवन, प्रा., गा. १८, पद्य, मूपू., (जा जस्स तुह पसाया), ९५८०३-७(+#) ३५ जिनवाणीगुण वर्णन, मा.गु.,सं., अंक. ३५, गद्य, मपू., (संस्कारत्वं संस्कृत), ९४७५२-२ ८४ धर्मकथा प्रबंध, सं., ग्रं. ३५२५, गद्य, श्वे., (उज्जयिन्यां महासेनो राजा), ९७४०७(+$) १७० जिनस्थानक यंत्र, मा.गु.,सं., को., श्वे., (--), १००३१०(+) ३४६ नवपदगुण वर्णन-खामणा, मा.गु.,सं., गद्य, पू., (अशोकवृक्षप्रातिहार्य), ९५२७८(2) अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ९२, ग्रं. ८९९, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), ९५५४७(+#$), ९४७८६(#S) (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंतगड शब्दस्य कः), ९५५४७(+#$), ९४७८६(#$) अंबड चरित्र, आ. मुनिरत्नसूरि, सं., आदेश ७, श्लो. १२२०, ग्रं. १११६, पद्य, मप., (धर्मात् संपद्यते), ९५५५४(+#s), ९५७१४(+६), ९७४३१(5) अकलंकाष्टक स्तोत्र, आ. अकलंकदेव, सं., श्लो. १६, पद्य, दि., (त्रैलोक्यं सकलं), ९९८७१-३८(+), ९६८९० अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, मपू., (स्वस्ति श्रीसुखदातार), ९६६७८(+#$) अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं. ७०, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य प्रभु), ९५०५१-२(+$) अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा.,रा.,सं., गद्य, मूपू., (उसभस्सय पारणए इक्खु), ९५३९२(+$), ९६८६३-२(+), ९५२६६-३ अच्युताष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (अच्युतं केशवं रामनार), ९५७५२-२(+#$) अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मप., (अजियं जियसव्वभयं संत), ९४६५८-१(+), ९४९९१-२(+$), ९६४११(+#), ९८०६०(+), ९८६८०-१(+६), ९८७२७-१(+s), १००००६(+), ९५२८५-३, ९७२८४, ९५२५९-२(१), ९९१०२-५(#s), ९६९६७-१(s), ९९९५६(६), ९८६८५-१(-#$) (२) अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अजितनाथ जीता छइ सर्व), ९४६५८-१(+), ९६४११(+#), ९८०६०(+) अजितशांति स्तवलघ-अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., गा.८, पद्य, मप., (गब्भ अवयार सोहम्मसुर), ९९१०२-६(#$) अजिरादि एकाक्षरी नाममाला, सं., श्लो. ४६, पद्य, मूप., इतर, (अजिरे कथितोकारो हरिह), ९८०३९-३(+#s) अज्ञात जैन प्राकृत पद्य कृति, प्रा., पद्य, मपू., (समणेण संजमट्ठा नाणा देसे), ९५६२४-२(६) अट्ठाईमहोत्सव व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (तेणं कालेणं० रायगहे नगरे), ९५५५७(+$) अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., अधि. १६, श्लो. २७२, पद्य, मूपू., (जयश्रीरांतरारीणां), ९८१३३(+) For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ४८७ (२) अध्यात्मकल्पद्रम-अध्यात्मकल्पलता टीका, उपा. रत्नचंद्र, सं., अ. १६, ग्रं. २४५९, वि. १६७४, गद्य, मपू., (प्रणत सुरासुरकोटी), ९८११९(+#S) (२) अध्यात्मकल्पद्रुम-स्तबक, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वार्हत्पदयुगल), ९८१३३(+) (२) अध्यात्मकल्पद्रुम-हिस्सा शांतरस अधिकार, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (३) अध्यात्मकल्पद्रम-हिस्सा शांतरस अधिकार का शांतरसवर्णन, मा.गु., ग्रं. १८५०, गद्य, मपू., (अहो भव्य जीवो सदाकाल), ९४९६८(२) अनंतव्रत कथा, सं., गद्य, मूपू., (--), ९५०९२-१(#$) अनशन पच्चक्खाण सूत्र, प्रा., गद्य, मपू., (भव सचरिमं पच्चक्खाइ), ९८०६५-१६(+) अनागत २४ जिन स्तोत्र, आ. श्रीचंद्रसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (वीरवरस्स भगवउ वोलिय), ९५८०३-८(+#) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० नवमस्स), ९५३८७(+#S), ९७१३६-१(+#), ९५५४१ (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथा आराने), ९५३८७(+#$), ९७१३६-१(+#), ९५५४१ अनपानमंजरी, आ. विश्रामाचार्य, सं., समु.५, वि. १८२७, पद्य, जै., इतर, (यस्य ज्ञानमयी), १००१०८(+$) अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प्रक. ३८, ग्रं. २०८५, प+ग., मूपू., (नाणं पंचविह), ९५३१४(+#) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., ग्रं. ५९००, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (सम्यक्सुरेंद्रकृत), ९५३१४(+#) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-२१ बोल अधिकार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलै बोलै नय ७ दुजै), ९६५८६(+) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (ज्ञानपांचमद्ये श्रुत), १००३४४(+#$) अनेकांतजयपताका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अ. ६, ग्रं. ३७५०, गद्य, मप., (जयति विनिर्जितरागः), ९४६९९($) अनेकांतमंजरी, सं., अधि. ३, पद्य, म्पू., इतर, (शब्दांभोधिर्यतोनंतः), ९८६०६(६) अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., अधि. ३, श्लो. २१९, पद्य, मपू., इतर, (शुद्धवर्णमनेकार्थं), ९६२६५(+$), ९६५६३(+), ९६९५६(+), ९८०३९-१(+#$) अबयदीशुकनावली, सं., प्रक. ४, गद्य, मूपू., इतर, (संसारपासनाशार्थं), ९५६६३(+$), ९६४१५(+#$) अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, मूपू., इतर, (प्रणिपत्यार्हतः), ९५२९७(+#$), ९५४३९(+#$), ९५५०१(+), ९५८२६(+), ९५८५७(+), ९५८७७(+), ९५९१५(+#), ९५९७७(+#$), ९६१८०(+$), ९६२१७(+$), ९६३२१(+#$), ९६५२८(+#), ९६५७९(+$), ९६७३०(+#S), ९७४४२(+#$), ९८०३९-६(+#), ९८०७६(+#$), ९८१०६(+#), ९८१५०(+$), ९८१६९(+#s), ९८६२८(+S), ९८७८५(+), १००२९९(+#$), १००६३०(+#S), १००८८१(+#$), ९५९९५(#S), १००६५०(#$) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२१६, गद्य, मूपू., इतर, (धर्मतीर्थकृतां वाचां), ९५५०१(+) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-अनेकार्थ संग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ७, श्लो. १९३१, वि. १२वी, पद्य, मपू., इतर, (ध्यात्वार्हतः कृतै), ९४७९१(+$), ९५४११(+$), ९५९४१(+#5) . (३) अनेकार्थ संग्रह-कैरवाकरकौमुदी टीका, आ. महेंद्रसूरि, सं., ग्रं. १४०००, गद्य, मपू., (परमात्मानमानम्य निज), ९५४११(+$) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-अभिधानचिंतामणि परिशिष्ट, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २०४, पद्य, म्पू., इतर, (निर्वाणे स्याच्छीतीभ), ९८०३९-७(+#) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-बीजक, सं., गद्य, मूपू., इतर, (नाममाला पीठिका जिनेश), ९७४१६(+$) अभिनंदनजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (त्वमशुभान्यभिनंदननंद), ९८७००-२(+) अमृतधर्माष्टक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ८, पद्य, मूप., (वाचनाचार्य पदप्रतिष्ठा), ९५८४५-६(+) अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १०, श्लो. ११७, वि. १२वी-१३वी, पद्य, मूपू., (अर्हन्नामापि कर्णाभ्यां), ९५३७८-५(+#), ९६६११-१(+), ९८८४७-२(+$), १००८९९(+$) अष्टप्रवचनमाता कथा संग्रह, सं., पद्य, म्पू., (साधुभिः प्रतिपाल्येय), ९७२३९(+) For Private and Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ अष्टमहाप्रातिहार्य नाम, सं., गद्य, मूपू., (अशोकवृक्ष १ कुसुम), ९८५८५-४(+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८६०, गद्य, मूपू., (शांतीशं शांतिकर्ता), ९४७०४(+#), ९६०५४(+#$), ९५०१०(६) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (शांतीशं शांतिकर्तार), ९५२५७(+), ९६०२३(+#s), ९६८६३-१(+), ९७७३६(+), ९६८९८(5), ९७८२५-२(5) अष्टाह्निका व्याख्यान, मु. शांतिसागरसूरि शिष्य, सं.,हिं., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरं जिन), १००१२१(+) अष्टाह्निका व्याख्यान, सं., गद्य, जै., (--), प्रतहीन. (२) अष्टाह्निका व्याख्यान-बालावबोध, पं. मतिमंदिर, मा.गु., वि. १८८२, गद्य, मूपू., (शांतीशं शांतिकर्ता), ९५४६८(#), ९५९६७(+) अष्टाह्निका स्नात्रविधि, सं., प+ग., मप., (सच पखावलि प्रक्षेपछत्र), ९५७४०-२(+) अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूप., (ते माहिली शांतिकविधि), ९७४५८-२(+), ९७२९३(#), ९८७९७(#) असनपाणादि कालमान गाथा, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (फगराइ बारपहुरं वीसंथिसि), ९६५६१-२(+#) आगमग्रंथाग्र परिमाण विवरण, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (पणयालीसं आगमं सव्वगंथाण), ९७५१७-६(+#) आगमादि में पाठांतर के कारण उत्पन्न शंकासमाधान विषयक चर्चा, प्रा.,मा.गु., प+ग., मप., (श्रीजिनागम बोहित्थं), ९६३६७-१(+#) आगमिकबोलविचार संग्रह-धार्मिक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (१ वंदित्तुनी ७ गाथा), ९६३१९(+), ९८२८३-२(2) आगमिक विसंवाद चर्चाविचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., प., (बालमरण मरतउ अनंताभव करइ), ९६३६७-२(+#) आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (तेणं कालेणं तेणं), ९५३५५(+s) आचारप्रदीपादि विविध ग्रंथों से चयनित गाथासंग्रह, प्रा., पद्य, श्वे., (ओहो सुओवउत्तो सुणनाणीजइ), ९५११२(+$) आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २५, ग्रं. २६४४, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं० इहमेगे), ९४८१६(+#), ९५२९९(+#), ९५४४३(+#S), ९५९३६(+), ९६३४८(+#s), ९८१०९(+$), ९७१३०(5) (२) आचारांगसूत्र-टीका# , आ. शीलांकाचार्य, सं., श्रु. २, ग्रं. १२०००, वि. ९१८, गद्य, मूपू., (जयति समस्तवस्तु), ९५९३६(+) (२) आचारांगसूत्र-पर्याय, सं., गद्य, मूपू., (--), ९८०८८-१(+६) (२) आचारांगसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (भगवंत श्रीसुधर्म), ९५२९९(+#) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागने नमस्कार), ९८१०९(+$), ९७१३०($) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ७१, वि. ११वी, प+ग., भूपू., (देसिक्कदेसविरओ), ९७०८८(+$) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., गा. ३०, पद्य, मपू., (अरहंता मंगलं मज्झ), ९८०६५-१५(+) आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प्रका. ४, श्लो. १८१, वि. १८३३, प+ग., मूपू., (अनंतविज्ञानविशुद्ध), ९४८४१-१(#) (२) आत्मप्रबोध-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनलाभसूरि, सं., वि. १८३३, गद्य, मूपू., (अनंतविज्ञानविशुद्ध), ९४८४१-१(+#) (२) आत्मप्रबोध-बीजक, सं., गद्य, मपू., (तत्राद्य प्रकाशे यथा), ९४८४१-२(+#) आत्मानुशासन, ग. पार्श्वनाग, सं., श्लो. ७७, वि. १०४२, पद्य, दि., (सकलत्रिभुवनतिलक), ९८०६५-२३(+), ९८२८३-९(#) आदिजिन कलश, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (सयल दीवानमब्भो जंबु दीवं), ९८१३५-१४(+) आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,सं., गा. १६, पद्य, मूपू., (मुक्तालंकार विकार), ९५४७६-२(+#) (२) आदिजिन जन्माभिषेक कलश-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (पूर्व दिसई तथा उत्त), ९५४७६-२(+#) आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,मा.गु., गा. १९, पद्य, मप., (विणयनयरी विणयनयरी), ९४८६१-१(+#), ९९१०२-७(#S) आदिजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. ३८, वि. १५वी, पद्य, मप., (महिम्नः पारं ते परम), ९५३७८-७(+#s), ९६६११-२(+) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. ६, वि. १८वी, पद्य, मपू., (आदिजिनं वंदे गुणसदन), ९८६८१-३१(+) आदिजिन स्तुति, मु. राजहंस, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यस्यांसयोः कनकपंकजकांति), ९८०९३-१७(+) For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (आनंदानम्रकम्रत्रिदश), ९७२५२-३(+) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभनाथ भुनाथनिभानने), ९५३१३-५६(+) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (युगादिपुरुषंद्राय युगादि), ९५८०२-१०(+), ९८०९३-१५(+), ९५४४२-७(4) आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरमुत्तियहार सुतारगुणं), ९५३१३-४२(+), ९५८०२-७(+), ९७९२९-४(+#), ९८०९३-१२(+), ९८२१२-३, ९५४४२-६(#) आदिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, श्वे., (श्रीनाभिवंश नलिनैक), ९५७७७($) (२) आदिजिन स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (ते श्रीआदिनाथ तुम्हे रहइ), ९५७७७($) आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., गा. ८८, पद्य, मूपू., (संसारे नत्थि सुह), ९५०८९-३(+), ९५५७८(+$), ९६०३८(+#$) (२) आदिनाथ देशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारमांहि नथी सुख), ९५०८९-३(+), ९५५७८(+$), ९६०३८(+#$) आप्तमीमांसा, आ. समंतभद्र, सं., परि. १०, श्लो. ११५, पद्य, दि., (देवागमनभोयानचामरादि), ९८६९८(+), ९८७००-१(+) (२) आप्तमीमांसा-देवागम वृत्ति, आ. वसुनंदि सैद्धांतिक, सं., गद्य, दि., (सार्वश्रीकुलभूषणं), ९५२६४(+) (३) आप्तमीमांसा-देवागम वृत्ति का स्तबकार्थ, मु. सूरचंद, रा., गद्य, मप., दि., (नत्वा श्रीमज्जिनाधीशं), ९८७००-१(+) आप्तस्वरूप, सं., श्लो. ६४, पद्य, श्वे., (आप्तागमः प्रमाणं), ९५३७८-४(+#) आम्रराजा प्रबंध, आ. बप्पभट्टसरि, सं., श्लो. ११४, पद्य, मपू., (न भेतव्यं पातकेभ्यः), ९६२०१-१(+) आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., विम. ५, श्लो. ४१३, ग्रं. ४६०, वि. १३वी, पद्य, मूपू., इतर, (ॐ नमः सकलारंभसिद्धि), ९६३२८(+$) आरात्रिक गाथा, आ. जिनदत्तसूरि, अप., गा. १२, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (लोणेण पिच्छिय सुनाण), ९८१३५-११(+) आराधनापताका, प्रा., गा. ९३२, ग्रं. १०७०, पद्य, मप., (सम्मं नरिंददेविंदवंद), ९५९७३(+) आलोचणा आराधना, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (एगेंदियाणं जं कहवी), १००६५८(+) आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (प्रथमं ईर्यापथिकी), १००११६ आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम मुहूर्त), ९५७१८(+) आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू. १०५, प+ग., मपू., (णमो अरहंताणं० सव्व), ९५३५४(+$), ९५८०९(+$), ९५९१३(+#), ९६३५२-२(+) (२) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं), ९४७०८(+$), ९४७११-२(+#$), ९५९०१-२(+), ९५९०३-२(+), ९५९०५-२(+), ९५९१३(+#), ९७५१२(+), ९६०२९-२(#S), ९६५६२(#$) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., गा. २५३, पद्य, मूपू., (अवरविदेहे गामस्स), ९५९०३-२(+) (२) आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति#, आ. तिलकाचार्य, सं., ग्रं. १२३२५, वि. १२९६, गद्य, मूपू., (देवः श्रीनाभिसूनुर्जनयतु), ९५९१३(+#) (२) आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. २२०००, गद्य, मप., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ९४८०२(+#) (२) आवश्यकसूत्र-अवचूर्णि#, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., वि. १४४०, गद्य, मूपू., (प्रेक्षावतां प्रवृत), ९४७०३(+#), ९५९०३-२(+) (२) आवश्यकसूत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मप., (नमो अ० इत्यादि एहनो), ९५३५४(+$) (२) आवश्यकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९५८०९(+$) (२) चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), १००९०३-१ (३) चैत्यवंदनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरो नमस्कार होज्यौ अरि), १००९०३-१ (२) लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., गा. ७, पद्य, मप., (लोगस्स उज्जोअगरे), ९४७७७(+) (३) लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (चउद राजलोकमांहि), ९४७७७(+) (२) शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., गा.१०, पद्य, मपू., (नमुत्थुणं अरिहंताणं), प्रतहीन. (३) शक्रस्तव-शक्रस्तवाम्नाय, संबद्ध, प्रा.,सं., मंत्र. १६, गद्य, मूपू., (ॐ नमुत्थुण अरहताणं भगवंत), ९७५३५-३(+#) (२) संथारापोरसीसूत्र-खरतरगच्छीय, हिस्सा, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (निसीहि निसीहि निसीहि), ९५३१३-१५(+) (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मूप., (सकल कुशलवल्ली पुष्करावर्त), ९५४४२-३०(#) For Private and Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) ६ आवश्यक स्तवन, संबद्ध, मु. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४३, वि. १८वी, पद्य, मपू., (चोवीसे जिन चिंतवी चतुर), ९७६५५-३($) (२) १४ श्रावकनियम गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चित्त दव्व विगई), ९५६४०-२(+), ९६१६७-३(+), ९६३५२-३(+), ९६५६०-९(+), १०००५६-२(+), ९५५३८-२, ९६५९९-४, ९९०३२-६(#$) (३) १४ श्रावकनियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (पाणी फल बीज दातण ते), ९६१६७-३(+), ९६५९९-४ (३) १४ श्रावकनियम गाथा-विवरण, रा., गद्य, मप., (किनहीक श्रावक पांच), ९६५६०-९(+) (२) अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (आजुणा चौपहुर दिवसमाह), ९५३१३-१७(+) (२) आवश्यकसूत्र-प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, पू., (इरियावही पडिकमी), ९५८४७-२(#) (२) आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताणं० तिखुत), ९८६२१(+#), ९६७६४-१ (३) आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., स्था., (अनुयोगद्वार मध्ये), ९६७६४-१ (२) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, म्पू., (नमो अरिहंताणं नमो), ९४९१०(+) (३) षडावश्यकसूत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमन्नाभिकुलाब्जबो), ९७९३७(+) (३) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतने नमस्कार), ९४९१०(+) (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मप., (सकल कुशलदायक अरिहंत), १००००९-९(+) (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढम), ९९३९७-१(+#), ९७१०६-४, ९५४४२-४(१), ९६१०९-५(#), १००८७८-५(#) (२) काउसग्ग आगार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (रायाभियोगेणं राय बले), ९५४४२-३(#) (२) गुरुवंदनसूत्र-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (इच्छा० संदि० अब्भु), प्रतहीन. (३) गुरुवंदनसूत्र-श्वे.म.पू.-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (गुरुवंदन त्रिहुं प्रकारे), ९८०६५-३(+) (२) छमासीतपचिंतवन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मप., (रे जीव महावीर भगवंत), ९४७३३-२(+) (२) जगचिंतामणिसूत्र, संबद्ध, आ. गौतमस्वामी गणधर, प्रा., गा. ७, प+ग., मप., (जगचिंतामणी जगनाह), ९९८७१-२७(+) (२) देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (इच्छामि खमासमणो वंदि), ९५६४०-१(+), ९७५४०-१(+#S), ९८०९३-१(+), ९५६४८-१(२), ९६९१३($) (३) देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय-भावार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरु नमस्कार अरिहंतनइ), ९५६४०-१(क) (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), ९५३१३-१(+$), ९६१२८(+$), ९६१३१(+), ९८५९५(+#$), ९८६९५(+#), ९९८७१-२(+), ९५५३८-१,९५९२२(#$), ९५७५९(s), ९६१५४($), ९६७७०(#$) (३) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत प्रति माहरु नम), ९६१३१(+), ९५९२२(#$) (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ९६१३०-१(+$), ९९८८८-२(+#$) (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मप., (नमो अरिहंताणं० पढम), ९९१०२-१(#$) (३) श्रावकलघअतिचार-अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.ग., गद्य, मप., (इच्छा० भगवन्० अरिहंत), ९९१०२-३(#$) (२) देवसीराइअप्रतिक्रमण , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूप., (पहिलै पडिकमणो करती), ९६२८४(+#$) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० जयउ), ९७५१३-१(+#$), ९७९२९-१(+#S), ९८२१२-१ (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), ९५११५(+$), ९५४०१-१(+), ९५५३४-१(+#5), ९६१६७-१(+), ९६२१५(+$), ९७६६६(+#$), ९८०२७(+$), ९८०४९-१(+), ९८३७८-२(+#$), ९६६३८(#), ९७३५६-१(#), ९७५३६(#$), ९७११६($) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे पंचपरमेष्टी महामंत्र), ९६२१५(+$) For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, ., (श्रीमद्वामेयमानम्य), ९५११५(+$), ९६१६७-१(+$) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय- कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९६२१५(+$) (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मप., (मन्हजिणाणं आणं मिच्छ), ९९८७१-३०(+) (२) पाक्षिकआलोचना विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूप., (इच्छा० संदि० पखिउं), ९८०२९-१(+#) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (मुहपत्तिवंदणयं), ९५१०७-३(+#) (३) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (प्रथम देवसी पडिकमणो), ९५१०७-३(+#) (२) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पुहिं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (देवसिय आलो० इच्छाकार), ९६४५६(+$) (२) पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, पू., (स्नातस्याप्रतिमस्य), ९६१३०-२(+$), ९९३९७-५(+#), ९९८७१-१०(+),१००६६०-१५(+), ९५२८५-२, ९७१०६-३,९६१०९-१३(३), ९७३५६-३(#), १००८७८-२(#) (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूप., (प्रथम इरियावही पडिक), ९८६४७(+$), १००१४६(#) (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूप., (इरियावहि चार नवकारनो), ९५२२४(+), ९४८६५, ९५२१८-१ (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (खमासमण देइने इरिया), ९४७३४-१(+#) (२) प्रतिक्रमणगर्भहेतु, संबद्ध, आ. जयचंद्रसूरि, प्रा.,सं., वि. १५०६, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १००००४(+) (३) प्रतिक्रमणगर्भहेत-प्रतिक्रमणविधि, संबद्ध, मा.ग., गद्य, मप., (पंचविध आचारनी शुद्धि),१००४१७-१(क) (२) प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीप्रवचनसारोद्धार), ९५२७६(+$), ९५७४३(+), ९८५८४(+$) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, स्पू., (पाछिली रात्रइ शय्याथी ऊठी), ९४७३३-१(+), ९६३५२-६(+), ९७५५०(+#$) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (देवसिय आलोइय पडिक्कं), ९५२२७, ९५८४७-१(#$) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., भूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ९६६६४(+#), ९६९५९-१(+), ९८९९१(+६), १००६६०-१०(+), १००८५३-१(+#), ९६५९९-१, ९५०६४(६), ९८६८५-२(#s) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (इह चैत्यवंदनादर्शनशु), ९५२१३(+$) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे वीतरागदेव तुमे), ९६९५९-१(+), ९६५९९-१ (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० करेमि), ९४६९६(+$), ९५७७०-१(+#) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (श्रीगुरुदेवजीकुं), ९४६९६(+$) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह -स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., स्था., (आवश्यकसूत्रना छ अध्ययन ते), ९८०६१(5) (२) प्रतिक्रमणहेतु विचार, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, मूपू., (साधु अने श्रावक दोइ), ९५९९२(+$) (२) प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुतत्थतत्थदिठ्ठी), ९८२२९-२ (३) प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्रार्थ तत्थपुष्टि), ९८२२९-२ (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), ९४८५८(+), ९५३१३-५(+), ९५४०१-२(+), ९५६४०-३(+), ९६९५५-१(+), ९७३६२-२(+), ९७५००(#), ९८०४९-३(+), ९८०९३-२६(+), ९८५४६(+), ९९८७१-३१(+$), १०००५६-१(+), १००६६०-९(+), ९५५३८-३, ९५४४२-२(#) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे सूर्य उगव), ९५६४०-३(+), ९८०६५-२(+) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (सूर्य उग्ये थके इतरे), ९८५४६(+) । (३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यनइ उदये बै घटिक), ९४८५८(+) (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मपू., (दो चेव नमोक्कारे), ९५३१३-४(+), ९८०६५-१८(+) (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ९९८७१-१८(+) (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), ९५२३१(+#$), ९७६३१-१(+#$), ९८१३५-२९(+) (४) भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, ग. शुभशील, सं., अधि. २, वि. १५०९, गद्य, मपू., (युगादौ व्यवहाराध्वा), ९५२३१(+#$) (५) भरहेसर सज्झाय-वृत्ति का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (युगने आदे व्यवहार), ९५२३१(+#$) (४) भरहेसर सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीऋषभदेवपुत्र भरत), ९५२३१(+#$) For Private and Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वंदित्तु सव्वसिद्धे), ९५३१३-१६(+), ९५६९८(+$), ९६१८२(+$), ९६९६१(+), ९७२०५(+), ९७६४४(+#), ९८१५६-२०(+#), ९८८१२(#$), ९९८२४(+$), ९८०७८, ९५२५९-१(#), ९६१०९-१(#$), ९६७१६(#), ९७३५६-५(२), ९८८३४(#s), ९९७१५(4) (३) वंदित्तसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., अधि. ५, ग्रं. ६६४४, वि. १४९६, गद्य, मप., (जयति सततोदयश्रीः), ९६१८२(+$) (३) वंदित्तुसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (कृत सामायिकेन), ९७२०५(+) (३) वंदित्तुसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदितु क० वांदीने), ९६९६१(+), ९७६४४(+#) (३) वंदित्तुसूत्र-विवरण+कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९५६९८(+$) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो), प्रतहीन. (३) पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (जगचूडामणिभूओ उसभो), ९५३१३-१२(+), ९७५१३-५(+#) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं० पंचिंदिय), ९६२७१-१(+#), ९८११२-१(+), ९५२८४(2) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., वि. १५०१, गद्य, मप., (श्रेयांसि श्रीमहावीर), ९६३७६(+#) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.मान्य, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहं० सव्वसाहूण), प्रतहीन. (३) श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूप., (नाणंमि दंसणंमि०), ९५०६७(+), ९५२७५(+s), ९६०२७(+#), ९६९०५(+$), ९७२०२(+), ९७३६२-१(+), ९७३७५(+#), ९७६४२(+#s), १००८९३-१(+#5), ९५२८५-४, ९५४०४(#), ९९१३०(#$), ९८०२६(5) (४) नाणंमि सूत्र-अतिचार गाथा, हिस्सा, प्रा.,मा.गु., गा. ८, गद्य, मूप., (नाणंमि दंसणंमि चरणंमि), ९६३५२-५(+), ९९८८८-१(+#) (३) श्राविकापाक्षिक अतिचार-श्वे.म.प.मान्य, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., अ. २२, गद्य, मप., (नाणंमि दंशणमिय चरणंमि), ९५४९९ (२) श्रावकसंक्षिप्तअतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., मूपू., (पण संलेहणा पनरस), ९५७१५(+#), ९८२२०-१ (२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संसारदावानलदाहनीरं सम्मोह), ९८०९३-३(+), ९९३९७-४(+#), ९९८७१-६(+), १००६६०-१३(+), ९७१०६-७, ९६१०९-११(२), १००८७८-४(#) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० आवस्स), ९८६३९(+$), ९५५४८(#$) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो० नमस्कार होवउ), ९८६३९(+$) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण), ९८७७५(5) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आवसही कहेतउ सावधान), ९८७७५(5) (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), ९५१०७-२(#), ९५५२४-२(+#s), ९७१०४-२(+#S), ९८०६७-२(+), ९८१२३-२(+#), १००४२०-२(+#$) (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., सू. २१, गद्य, मूपू., (करेमि भंते० चत्तारि०), ९५३१३-१४(+), ९५४६१-२(+#), ९७१३१(+s), ९८१५६-१३(+#), ९८७१६(+), ९९००५ (+), १०००८४-१(+#), १००५५१-२(+#$), १००३१५ (४) पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (अथ साधूनां प्रतिक्रम), ९८२४१(+), १००३१५ (३) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), ९४६९५(+), ९५१०७-१(+#), ९५२१५(+$), ९५३३८(+$), ९५४६१-१(+#), ९५५२४-१(+#), ९५६१७(+#), ९५६५५-१(+), ९५७६५(+#), ९५७७३(+), ९६४१९(+#s), ९६४३८(+#), ९७१०४-१(+#), ९७१७५(+), ९८०६७-१(+$), ९८१२३-१(+#$), १०००८०-१(+#), १००४२०-१(+#S), ९४६५७-१,९५७६०, ९९७७३, ९५५९१(#5), ९५७८६(#$), ९९७६९(#$), ९५१७५(s), ९५२६३(s), ९८४५०(5) (४) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (तीर्थंकर प्रते वांदउ), ९४६९५(+#), ९६४१९(+#$), ९४६५७-१ (३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गा. १, पद्य, मूप., (सयणासणन्नपाणे), ९५३१३-२(+), ९७५१७-७(+#) (४) साधुअतिचारचिंतवन गाथा-टीका, सं., गद्य, मूपू., (शयनीयं संस्तारकादि १), ९७५१७-७(+#) For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ (३) साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (नाणम्मि दंसणम्मि०), ९४९४४-३(+#$), १०००८२(+#), ९५०७५-३(#s), १००२८६(#) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण), ९७२८२(5) (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे त्रिभुवननी पूजानइ), ९७२८२($) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., म्पू., (णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाण), ९८१३५-१(+$), ९८१५६-१(#), ९५४४२-१(#) (२) सामायिक ३२ दोष, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम १० मन संबंधी), ९९८६७-३(+) (२) सामायिकादि विधि-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पंचिंदिअ संवरणो तह), १००६६०-७(+) आवश्यकसूत्र-योग विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (आवस्सगम्मि एगो सुय), ९८३५३-२(+#) आशीर्वचन श्लोक, सं., श्लो. १०, पद्य, श्वे., इतर, (भाले भाग्यकला मुखे), ९७४९२-३३+#) आषाढकार्तिकफाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, सं., गद्य, पू., (श्रीपार्श्वसुखमागारं), ९४६८३(+$) आहारादिमान गाथा-भरतादिक्षेत्रे, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (बत्तीसं कवलाहारो), ९७१३६-२(+#$) (२) आहारादिमान गाथा-भरतादिक्षेत्रे-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (बत्तीस के० भरतक्षेत्), ९७१३६-२(+#$) इंद्रियपराजयशतक, प्रा., गा. १००, पद्य, स्पू., (सुच्चिअ सूरो सो), ९५०८९-१(+) (२) इंद्रियपराजयशतक-टबार्थ, मा.ग., गद्य, मप., (तेहिज सूर तेहिज), ९५०८९-१(+) इगुणतीसी भावना, प्रा., गा. ३०, पद्य, श्वे., (संसारम्मि असारे), ९८१३५-३१(+) इरियावहि कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मपू., (चउदस पय अडचत्ता तिगह), ९४९४४-१२(+#), ९५८०३-१०(+#) ईश्वरजीव प्रतिपादन विचार, सं., गद्य, मूपू., (अथ ईश्वरः कः को जीवः अत्र), ९६४७४-३(+) उत्तमकुमार चरित्र, ग. चारुचंद्र, सं., श्लो. ५७२, पद्य, म्पू., (वंदित्वा स्वगुरुन), ९८०७५ उत्तमकुमार चरित्र, सं., गद्य, मूपू., (भक्त्या वस्त्राणि), ९७४२३-१(+#) उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग., मूपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), ९५०४७(+#s), ९५१९९(+s), ९५२११(+$), ९५६६२(+$), ९५७२७(+$), ९५८१८(+#$), ९५८२३(+), ९५८६६(+#$), ९५८७३(+), ९५८७६(+), ९५९००(+#$), ९६१९७(+$), ९६२२३(+#$), ९६२४६(+#$), ९७४१५(+$), ९७४२४+), ९७४४१(+), ९७८०१(+), ९८३०४(+#$), ९८३१८(+$), ९८३४८(+#$), ९५३१६(#$), ९५३५३(#$), ९५६४२(#), ९८५०३(#s), ९६०५१(s), ९६०९४($), ९६४३४($), ९८२६९(-5) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., अध्य. ३६, ग्रं. १४२५५, वि. १६८९, गद्य, मूपू., (ॐ नमः सिद्धि), ९६२२३(+#s) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (--), ९६०९४($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., ग्रं. १२०००, वि. ११२९, गद्य, मपू., (प्रणम्य विघ्नसंघात), ९५८७३(+), ९५३१६(#s) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. १५३००, वि. १८पू, गद्य, मूपू., (अर्हतो ज्ञानभाजः), ९५८७६(+), १००८६५(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (संजोगा० संयोगान्), ९७४१५(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा), ९५८१८(+#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, सं., गद्य, मूपू, (संयोगक्रोधादि), ९५८२३(+), ९८३१८(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (संयोग बे प्रकारे), ९५०४७(+#$), ९५१९९(+$), ९५२११(+$), ९५८६६(+#$). ९६१९७(+$), ९७८०१(+), ९५६४३(#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा*, मा.गु., गद्य, मप्., (उत्तराध्ययनो स्य), ९५३५३(#S) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, मा.गु., कथा. ४, गद्य, मूपू., (एक आचार्यनइं एक चेलो), ९४७२१(+#S), ९५७९७+#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६, हिस्सा, प्रा., गा. २७३, पद्य, मूपू., (जीवाजीवविभत्तिं सुणे), ९४९५२(+#$) For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन २८ मोक्षमार्गगति, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ३६, पद्य, मपू., (मोक्खमग्गइ तं च सुणे), प्रतहीन. (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन २८ मोक्षमार्गगति के-२५ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोहोइ निच्चयनउ जोझिंतउ), ९७४९१-१ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन-९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ६२, पद्य, मूपू., (चइऊण देवलोगाओ उवयन्न), ९४८७०-३(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-चयनितगाथा संग्रह, प्रा., गा. ३८, पद्य, मूपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), ९७९९५(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१६ बंभचेरसमाहिठाणं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ब्रह्मचर्यना दश), ९७३५२-३(+#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, मु. मान, मा.गु., ढा. ३६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर पदजुग नमी), ९८५७८-१(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मप., (पवयणदेवी चित्त धरी), ९५०८८(+#$), ९६९५५-३८(+$), ९७२६४-१(+#$), ९८०१६-३३(#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मपू., (अमीय समाणी वाणी वरस), ९५९८८(#$) उपदेशचिंतामणि, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., अधि. ४, गा. ५४०, पद्य, मप., (तित्थयरे भयवंते परमग), ९७१८५(+$) उपदेशतरंगिणी, ग. रत्नमंदिरगणि, सं., त. ५, ग्रं. ३३००, पद्य, मपू., (श्रीनाभेयः स वो देया), ९६३७३(#$) उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., स्तंभ. २४ व्याख्यान ३६१, वि. १८४३, प+ग., मूपू., (स्वस्ति श्रीदो नाभि), ९६९३१(+) (२) उपदेशप्रासाद-टीका, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., स्तंभ.१५, वि. १९वी, गद्य, मूपू., (अहमुपदेशप्रासाद), ९६९३१(+) (३) उपदेशप्रासाद-टीका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (हुं उपदेशप्रासाद नामा), ९६९३१(+) (२) उपदेशप्रासाद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रेयः संपदाना दायक), ९६९३१(+) उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मप., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), ९४६८९(+#$), ९४८०४(+#s), ९५१५३(+s), ९५२२५(+), ९५३०४(+$), ९५७५६(+$), ९५८२२(+), ९६०५३(+#), ९६१२६(+$), ९६२५४(+#$), ९६६०७(+#$), ९७१२९(+$), ९७४२५(+$), ९७४३५(+s), ९७५११(+), ९८१२७(+#), ९८४८६(+$), ९८६२०(+$), ९७४३०, ९५१५१(#$), ९५६८३($) (२) उपदेशमाला-वृत्ति, ग. रामविजय, सं., ग्रं. ७६००, वि. १७८१, गद्य, मप., (श्रेयस्करं कामितदान), ९४६८९(+#$) (२) उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा जिनवरेंद्रान), ९५१४८(+#$) (२) उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (नमिऊण शब्देन नमस्कार), ९४६८९(+#$) (२) उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., वि. १७१३, गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ जिण), ९५३०४(+$) (२) उपदेशमाला-बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., ग्रं. ५९००, वि. १४८५, गद्य, प., (श्रीवर्द्धमानजिनवर), ९८४८६(+$) (२) उपदेशमाला-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूप., (नमस्कार करीने तीर्थंकर), ९६१२६(+$) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.ग., गद्य, मपू., (धीरं वीरं महावीर), ९६६०७(+#$) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहीइ नमीनइ), ९४८०४(+#S), ९५८२२(+), ९६१२६(+$), ९८१२७(+#), ९८६२०(+s), ९५१५१(#$), ९५६८३($) (२) उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे श्रीउपदेशमाला), ९५३५७(+#), ९६६०७(+#$), ९८१२७(+#), ९८६२०(+$), ९५१५१(#$) (२) उपदेशमाला कथा संग्रह, मु. सत्यविजय शिष्य, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीउपदेसमालासु त्रन), ९४९८६(#$) (२) उपदेशमाला-कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य गुरुपादाब्ज), ९५६२४-१(६) उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मप., (उवएसरयणकोसं नासिअ), १००३०३-१(2) (२) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (उपदेशरूप रतन तेहनो), प्रतहीन. (३) उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवंत श्रीमहावीरने), १००३०३-१(#) उपदेशरत्नमाला, आ. सकलभूषण, सं., परि. १८, ग्रं. ३१००, वि. १६२७, पद्य, दि., (--), ९४७६४(+$) उपदेश रसाल, सं., अ. ५२, गद्य, मूपू., (एसो मंगलनिलओ भयविलओ), ९८१०८(+) उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलं नवकार- उपधान), ९५२५८(+), ९६६१७(+) For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ४९५ उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (प्रथम शुभदिवसइ पोषध), ९५३७० (+$), ९५७९५-३(+), ९९९६३-१(६) उपधानादि विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (पहिलइ नउकारनइ उपधानइ), ९८२१४-२(+) उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०, ग्रं. ८१२, प+ग., मपू., (तेणं० चंपा नामं नयरी), ९४६७५(+#s), ९४८१०(+#$), ९४८२९-१(+), ९४८३७(+), ९४८४२(+), ९५३०८(+$), ९५४४८(+), ९६२०३(+#$), ९६७१४(+#$), ९७०६१(+#$), ९८०९८(+), ९८१८४(+#$), ९५९०२, ९७४०४, ९६६२१, ९५२४९(#S), ९५८७२(#) (२) उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., अध्य. १०, वि. १११७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ९६२९८(+#$) (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., वि. १६९३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ९४८२९-१(+), ९४८३७(+) (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्धमानमानम्य), ९४८१०(+#s), ९४८४२(+), ९५३०८(+$), ९५४४८(+), ९६७१४(+#$), ९७०६१(+#$), ९८०९८(+), ९८१८४(+#s), ९६६२१, ९५२४९(#$), ९५८७२(#) (२) उपासकदशांगसूत्र-कथा, सं., गद्य, मूपू., (अस्मिन् जंबूद्वीपे भरनामा), ९५२४९(#$) उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं पास), ९६५२२-१(+), ९६५२२-२(+), ९६५२२-१५(+), ९८५८५-६(+) (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की पार्श्वदेवीय टीका, ग. द्विजपार्श्वदेव, सं., गद्य, स्पू., (अहँ आवश्यकादि), ९६५२२-२(+) (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ लघुवृत्ति, आ. पूर्णचंद्राचार्य, सं., वि. १२वी, गद्य, मूपू., (नमस्कृत्य परब्रह्म), ९६५२२-३(+), ९७५३५-२(+#), ९९०८८(+), ९८००६ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-कल्पलतावृत्ति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., वि. १३६५, गद्य, मूपू., (प्रतिबोधं विदधानाः), ९६५२२-१५(+) ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २०९, ग्रं. २५९, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमिरसुरवर), ९५४०५(+$) (२) ऋषिमंडल प्रकरण-टीका, सं., गद्य, मप., (नत्वा श्रीपार्श्वनाथ), ९५४०५(+$) ऋषिमंडल स्तोत्र, सं., श्लो. ८४, पद्य, दि., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्य), १००३१४(+) ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६२, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं), ९५३७८-३(+#), ९६६०३(+), ९९५१९-१(+६), १०००८१(+#), १०००८३(+#), १००४१८(+$, ९८३८७-२(5) (२) ऋषिमंडल स्तोत्र पूजाविधि, संबद्ध, सं., ग्रं. ३८३, गद्य, मपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीशं), ९७४९८(+) एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., श्लो. २६, ई. ११वी, पद्य, दि., (एकीभावं गत इव मया), ९६२२७-५(+) औक्तिकशब्द संक्षेप, मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., इतर, (देवदेवं नमस्कृत्य जिन), ९८७०६(#$) औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (अजो कृष्ण अवतार कंस), ९६६२९-३(+$), ९७०९२-४, ९८०७०-२, ९५६०९-२(२), ९७१३९-२(#), ९८०५८-२(२) औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., गा. ४, पद्य, मपू., (जं जं समयं जीवो), ९७१३३-२(+#$) औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ३२, पद्य, मप., (धणमिव चिंतइ धम्म), ९६३२३-३(+), ९८२८३-१२(#) औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ९, पद्य, श्वे., (काम वली सवही पुरहे), ९९५८६-५(+-$) औपदेशिक पद-वैराग्य, वा. जिनराज, प्रा.,मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (हमारे माई कंत दिसाउर कीनो), ९९५२८-१५ औपदेशिक पद्य संग्रह-श्रावकाचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. १७, पद्य, मूपू., (बुद्धेः फलं तत्त्व), ९४८६६-२($) (२) औपदेशिक पद्य संग्रह-श्रावकाचार-अनुवाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (संवत्सर पर्युषणा पर्व अणइ), ९४८६६-२(5) औपदेशिक व्याख्यान, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., मपू., (धर्मः कामगवी यदीय), ९६५९२-२(+#) औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २६९, पद्य, जै., वै., (महतामपि दानानां काले), ९८३६६-२ औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २७, पद्य, मप., (सकल कुशलवल्ली ), ९८१०४-२(+$), १०००८७-२(+), ९५७३९-१(६) (२) औपदेशिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (सकल कहेतां समस्त), ९५७३९-१($) औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु.,सं., सवै. २५, पद्य, जै., वै.?, (पांडव पांचेही सूरहरि), ९५६७२-२(+#) औपपातिकसूत्र, प्रा., सू. ४३, ग्रं. १६००, पद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), ९५८२०(+), ९५८८०(+#S), ९५८८५(+), ९५९०६(+), ९६३५१(+$), ९७४८७, ९६१६२(६) (२) औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं. ३१२५, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ९५८८५(+), ९५९०६(+) For Private and Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउथा आरानइ विषइ वरस), ९५८२०(+), ९५८८०(+#$), ९६१६२($) औषधवैद्यक संग्रह, मा.गु.,सं., गा. ६, पद्य, इतर, (अथ नाडीपरीक्षा करस्यां), ९५४६०-२(+) औषधवैद्यक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, इतर, (अनार दाणा टां.८०), ९५७९६-१(+#), ९५७९६-५(+#), ९९०६८-३(#) औषध संग्रह *, सं., गद्य, इतर, (--), ९७३८५-२(+#), ९९२२८-१०(+#$) औष्ट्रिकमतोत्सूत्र, उपा. धर्मसागरगणि, सं., अ. ४, गद्य, मपू., (स्वस्ति श्रीमंतमानंद), प्रतहीन. (२) औष्ट्रिकमतोत्सूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (अथ औष्ट्रिकमतोत्सूत्र), ९६४१७(+) कथा कल्लोल, सं., श्लो. ४७, पद्य, भूपू., वै., (पंचांधा गजमीक्षणार्थमगमत्), ९५४६९(+) (२) कथा कल्लोल-टबार्थ, मा.गु., कथा. ४७, गद्य, म्पू., वै., (पांच अंधा एक नगरमांहि), ९५४६९(+) कथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (हिवे छ आरानुं नाम), ९७५१७-३४(+#$), ९४७४८(#$) कथा संग्रह-१८ पापस्थानकगर्भित, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (थूला सुहमा जीवा संकप्पारं), ९५२६९(+$) कथासंग्रह-वसतिदानादि विषयक, प्रा.,सं., कथा.८, गद्य, मूपू., (वसही सयणासण भत्तपाणे), ९४६७८(#) (२) वसतिदानादि विषयक कथासंग्रह-अनुवाद, प्रा.,मा.गु., कथा. ८, गद्य, मूपू., (वसहीसयणसणभत्तपाण), ९४८६६-१ करणकुतूहल, आ. भास्कराचार्य , सं., अधि. १०, ग्रं. २००, ई. ११८४, पद्य, वै., इतर, (गणेशं गिरं पद्मजन्मा), ९८००९(#$) (२) करणकुतूहल-रत्नावली व्याख्या, मु. कल्याणजित्, सं., अधि. १०, गद्य, श्वे., वै., इतर, (--), ९८००९(#$) कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., श्लो. १७९, पद्य, मपू., (कर्पूरप्रकरः शमामृत), ९७५१८(#5), ९८३७५(+$) (२) कर्पूरप्रकर-टीका, आ. जिनसागरसूरि, सं., वि. १५५१, गद्य, भूपू., (व्याख्यायां धर्मदेशनायां), ९८३७५ (+$) (२) कर्पूरप्रकर-कथा संग्रह, सं., कथा. १५७, गद्य, मपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ९७४४०(+#), ९७५१८(+#S) कर्मग्रंथ (१ से६), आ. देवेंद्रसूरि; आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., अ.६, गा. ३९७, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं वंदिय कम), प्रतहीन. (२) कर्मग्रंथ (१ से ६)-यंत्र*, मा.गु., को., मूपू., (--), ९५३६९(+) कर्मबंध विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (अवमानात्परिभ्रंशानुंधबंध), ९७५१७-१(#) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., गा. ६१, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मप., (सिरिवीरजिणं वंदिय), ९५३११-१(+), ९५५२०-१(+), ९५७०१-१(+S), ९६९६०-१(+), ९५१०८-१, ९५५३५-१, ९४९८२-१(#$) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ , मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मपू., (प्रणिपत्य जिनं वीरं), ९५३११-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन वांदी), ९५५२०-१(+), ९५७०१-१(+s), ९५५३५-१, ९४९८२-१(#s) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-यंत्र, म. समतिवर्द्धन, रा., यं., मप., (श्रीवीरजिन प्रते), ९४७४२(+#) कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ, ऋ. गर्ग महर्षि, प्रा., गा. १६८, पद्य, मप., (ववगयकम्मकलंकं वीरं), ९६२४७(+) (२) कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ-पारमानंदी टीका, आ. परमानंदसूरि, सं., ग्रं. ९२२, गद्य, मूपू., (निःशेषकर्मोदयमेघजालमुक्तो), ९६२४७(+) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (तह थुणिमो वीरजिणं), ९५३११-२(+), ९५५२०-२(+), ९५७०१-२(+), ९६०४४-१(+$), ९६९६०-२(+), ९७१०१(+), ९५१०८-२,९५५३५-२, ९४९८२-२(#) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीरं बोधनिधिं धीरं), ९७१०१(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मप., (तथा तिणे प्रकारे), ९५३११-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, पू., (बंध ते स्यु कहीयइ), ९५५२०-२(+), ९६०४४-१(+$), ९५५३५-२, ९४९८२-२(#) कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ५५, पद्य, मप., (नमिऊण जिणवरिंदे तिहु), प्रतहीन. (२) कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (नमिऊणजिणवरिंदेत्यादि तत्र), ९५६०१-१(+#) कल्पद्रुम मंत्राम्नाय, सं., गद्य, मूपू., (कल्पद्रुम मंत्ररुचेव), ९६५२२-१०(+) कल्पवृक्ष प्रकार श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (मयांगकल्पवृक्ष१), ९८०६५-५(+) For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ४९७ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ९, ग्रं. १२१६, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० समणे), ९४६७६(+$), ९४७०२(+$), ९४७९६(+), ९४८१८(+#S), ९४८१९(+#$), ९४८२८(+$), ९४८४५(+#S), ९५०२९(+s), ९५१३०(+), ९५२३६(+$), ९५२९४(+$), ९५३१७(+), ९५३२५(+#), ९५३२६(+#), ९५३३०(+#S), ९५३४८(+#), ९५३६३(+#$), ९५४३१(+#$), ९५४३४(+#$), ९५४३६(+$), ९५४३८(+$), ९५४५०(+), ९५४५२(+$), ९५४५५(+$), ९५४९४+), ९५६६१(+$), ९५६६६(+#s), ९५७९८(+#s), ९५८२१(+$), ९५८२४(+#$), ९५८२७(+#), ९५९३७(+#), ९५९४२(+#), ९५९५४(+#), ९६१५७(+#s), ९६१५८(+), ९६२८७(+$), ९६३८४(+$), ९६४०७(+#$), ९६४९१(+), ९६५१४(+s), ९६५१५(+), ९६५२३(+$), ९६६५०(+#s), ९६९१९(+#s), ९७०१४(+#$), ९७०१६(+#), ९७०१७(+$), ९७०६९(+#S), ९८०३५(+#s), ९८०४१-१(+), ९८०४४(+#), ९८०९४(+$), ९८१७९(+#$), १००७९२(#), ९६९५७, ९५८८४, ९४७९७(#), ९५५१९(#$), ९५७३६(#$), ९५८२५(#), ९६०९८(#s), ९६१५६(#$), ९७३१०(#$), ९७९२०(#S), ९४७४०(६), ९५२३३($), ९५७६२($), ९६३८५($) (२) कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., ग्रं. ५२१६, वि. १६२८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), __ ९५२९४(+s), ९६१५८(+s) । (२) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. ४१०९, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्य), ९५४५२(+$), ९५४९४+), ९५७४१(६) (३) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका का बालावबोध, रा., गद्य, मूपू., (वर्द्धमान जिनेसररा), ९४८३८(+#), ९६५२३(+$) (२) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., ग्रं. ७७००, वि. १६८५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), ९५३२५(+#$), ९५८८४ (३) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका का बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीमन्महावीरं), ९६७५३($) (२) कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेषखंडल), ९६०४७(+#$), ९६३८४(+$), ९४७४०(5) (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., ग्रं. ६५८०, वि. १६९६, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमश्रेयस्कर), ९७०१४(+#s), ९७०१६(+#) (२) कल्पसूत्र-टिप्पण*, सं., गद्य, म्पू., (--), ९८१७९(+#$) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., वि. १६८०, गद्य, मपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ९७४९७(#$) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ९५६६६(+#$) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं), ९४७९६(+), ९५०२९(+5), ९५१३०(+), ९५३३०(+#S), ९५३६३(+#$), ९६६५०(+#$), ९६८००(+$), ९७९७६(+#), ९८०३५(+#$), ९८०४४(+#$), १००२८०(+$), ९४७९७#), ९७९२०(#$), ९५२३३($) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइं नमस्कार हो), ९४७०२(+$) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (अरिहंतनइ माहरो), ९४७९६(+), ९४८१८(+#$). ९४८२८(+$). ९४८४५(+#$) ९५०२९(+६), ९५१३०(+), ९५३१७(+), ९५३२६(+#), ९५३३०(+#S), ९५४३४(+#), ९५४३८(+$), ९५६६१(+$), ९५७९८(+#$), ९५८२१(+$), ९५८२४(+#$), ९५९४२(+#), ९५९५४(+#), ९६१५७(+#$), ९६२८७(+$), ९६४०७(+#$), ९७०१७(+$), ९७०६९(+#$), ९४७९७१), ९६१५६(#S), ९५२३३(s), ९६३८५(६) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ*, सं., गद्य, मपू., (श्रीमद्वीरचरित्रबीज), ९५७६२($) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ+कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), ९४८१९(+#s), ९५९३७(+#), ९५७३६(#$) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, म्पू., (सकलार्थसिद्धिजननी), ९४७०२(+$) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, सं., गद्य, मूपू., (तत्रादौ श्रीऋषभदेवस्य), ९५३२६(+#), ९५४३८(+$), ९५४५०(+), ९५९५४(+#) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, मूप., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ९४८४५(+#$), ९५४३४(+#$), ९५७९८(+#$), ९५८२५(#) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेषं), ९४६७६(+$) (२) कल्पसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, मूप., (बलदेव बलिदेव वासुदेव), ९५८२४(+#s), ९६१५७(+#$) (२) कल्पसूत्र-हिस्सा १४ स्वप्न विचार, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ३, गद्य, मूपू., (इमेए आरसे सुभे सोमे), ९७३१७(#) For Private and Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) कल्पसूत्र-हिस्सा १४ स्वप्न विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवाणंदा ब्राह्मणी सयणा), ९७३१७(#) (२) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं तेणं समय), ९६७५८(+#$), ९८०५०(#) (३) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (हिवे वर्षाकाल आव्ये), ९५०२३(+), ९६७५८(+#$), ९८०५० () (३) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (तेणे कालनै विषइ तेणे), ९६७५८(+#S) (२) स्थविरावली, हिस्सा, प्रा., प+ग., मप., (तेणं कालेणं तेणं समए), ९५७३२(+) (३) स्थविरावली-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जगन्नाथ श्रीआदिनाथना), ९५७३२(+) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अल्त भगवंत उत्पन्न), ९५०३६ (६) (२) कल्पसूत्र-मांडणी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), ९६४३०(+s) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., वि. १६४०, गद्य, मूपू., (पुत्राः पंचमतिश्रुता), ९४६९७(+$) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (एसो पज्जोसवणा समणाण), ९५८८१(+#$) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, सं., गद्य, मपू., (कल्याणांपुरिम इह), ९७४११(+), ९६३८५(६) कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जति णं भंते समणेणं०), ९६९९७-२(+#) कल्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं०), ९५५४५-१(+#), ९६९९७-१(+#) (२) कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (श्रीवीतरागदेवने नमस्कार), ९५५४५-१(+#$) कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ४४, वि. १वी, पद्य, मप., (कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि), ९४७२३(+), ९४७४४(+#$), ९५०२२-२(+), ९५२१६(+#), ९५३१३-२२(+), ९५४१८(+#5), ९५४९५-२(+), ९५५६६(+$), ९५५६९(+#), ९५७३०-१(+#), ९५७६९(+$), ९५७८४(+#), ९६११७(+), ९६२२७-२(+), ९६५६४(+), ९७१०९(+#S), ९७३९०(+$), ९७३९९-३(+$), ९७५१३-१०(+#), ९७५४०-४(+#$), ९७५७३(+), ९७५८२(+#), ९८०६२-७(+#), ९८१५६-१४(+#), ९८२२३(+), ९८३९०-२(+), ९८५७६-२(+$), ९८६४८-२(+#), ९८७१३-२(+), ९८७१८-१(+#$), ९९४७८-१(+$), ९९४७९(+), १००६४६(+#), ९७३१८, १००३६५, ९५०७५-४(#$), ९६८३९(६) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., ग्रं. ६५०, वि. १६५२, गद्य, मपू., (प्रणम्य पार्श्व), ९६५६४(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा), ९५६७३-२(+$), ९६२६९ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (किल इति संभावनायां), ९५७८४(+#) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, पू., (किल इति संभावनायां), ९५५६६(+$) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, क. दौलतराम, मा.गु., गद्य, मप., (परमकल्याण का मंदिर उदार), ९४७२३(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, पा. रूपचंद्र गणि, मा.गु., वि. १८११, गद्य, मपू., (जिनेश्वरस्य अंहिपद), ९५४९५-२(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, आ. वर्द्धमानसूरि, मा.गु., ग्रं. ४२५, गद्य, मप., (कल्याण कहता मंगलीक), ९५५६९(+#) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (पार्श्वनाथजीरा चरण), ९४७४४(+#5), ९५७६९(+s), ९६११७(+), ९७१०९(+#$), ९८२२३(+), १००६४६(+#) । (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४४, वि. १७वी, पद्य, मप., दि., (परम ज्योति परमातमा), ९७३१९(+), ९८३०२-११(+$), ९९५२८-२९, १००४१२-१ ।। कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह , सं., प्रता. ४, वि. १३वी, पद्य, मूपू., इतर, (वाचं नत्वा महानंदकर), ९६४६८(+#) कातंत्रव्याकरण, आ. शर्ववर्माचार्य, सं., अ. ४ पाद २५, सू. १४०१, प+ग., वै., इतर, (सिद्धो वर्णसमाम्नायः), ९८२५६(5) (२) कातंत्रव्याकरण-बालावबोधटीका, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., ग्रं. ४८०, वि. १४४४, गद्य, मूपू., वै., इतर, (ॐकार बिंदु संयुक्तं), ९८२५६($) (२) कातंत्रव्याकरण-उणादिसूत्र, हिस्सा, आ. शर्ववर्माचार्य, सं., गद्य, वै., इतर, (नमस्कृत्य शिवं भूरि), प्रतहीन. (३) कातंत्रव्याकरण-उणादिसूत्र की दौर्गसिंहीवत्ति, दर्गसिंह, सं., गद्य, वै., इतर, (--), ९८०३९-४(+#$) कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (जह तुह दंसणरहिओ काय), ९५८०३-३(+#) For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ४९९ कालभैरवाष्टक-काशीखंडे, सं., श्लो. ११, पद्य, जै., वै., (यं यं यं यक्षरूपं दश), ९९३६४-३(+#$) कालिकाचार्य कथा, आ. जिनदेवसूरि, सं., श्लो. ९७, वि. १४वी, पद्य, मपू., (मोहांधकारप्राग्भार), ९८०४१-२(+$) कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६६, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीगुरुं), ९५०४६(+$), ९५५७१(+), ९५७२९(+), ९६४२८(+), ९७९०५(+#), ९८१८९(+), ९८५५३($) कालिकाचार्य कथा, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (श्रीकालिकाचार्य धर्म), ९५६३१(+), ९५७५८(+s) काव्यसूक्तावली, प्रा.,सं., श्लो. २८३, पद्य, मूपू., (--), ९७८८८(+$) कुम्मापुत्त चरिअ, मु. जिनमाणिक्य, उपा. अनंतहंस, प्रा., गा. १९८, ग्रं. १०००, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं असुरं), प्रतहीन. (२) कुम्मापुत्त चरिअ-बालावबोध, आ. यतींद्रसूरि, मा.गु., वि. १९६६, गद्य, मूपू., (जलस्नानात् मलत्यागो), ९९७७०(+#) (२) कुम्मापुत्त चरिअ-व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९७१६८(#$) कुसुमांजलि गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (उसरणे जिण पुरउ परिमल), ९८१३५-५(+) कष्णभव चतुष्टय वर्णन, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ननु श्रीकृष्णवासुदेव), ९६५६०-४(+) केशव कथा-देवद्रव्यदानाशुभफलविषये, प्रा., गद्य, पू., (महई वियारभूमी विहारभूमीय), ९५६०१-४(+#) खंडित जिनप्रतिमा विचार-बृहत्कल्पे, सं., गद्य, मूपू., (प्रतिमायाः पूजा यदा), ९७३५७-२ खरतरगच्छीय शुद्ध समाचारी, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (धूंअरिपडै तांसीम), ९६५६०-१०(+$) खरतर तपागच्छ ३० उत्सूत्र बोल, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (तपः यतयः उत्सूत्र), ९४९८७(+$) खेचरमंजरी, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., इतर, (श्रीमत्तीर्थपति पुनर), ९६०९९(+) (२) खेचरमंजरी-ग्रहगतिकरणी की सारणी, संबद्ध, रा., वि. १६६५, यं., मपू., इतर, (वक्रीमार्गी रो चार), ९६०९९(+) गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., गा. १३७, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीर), ९५९०९(+$), ९६१२१(+$) (२) गच्छाचार प्रकीर्णक-बृहट्टीका, ग. विजयविमल, सं., ग्रं. ५८५०, वि. १६३४, गद्य, भूपू., (उद्बोधं विदधेब्जानाम), ९५९०९(+$) (२) गच्छाचार प्रकीर्णक-अवचूरि, सं., ग्रं. ५००, गद्य, मप., (आदौ शास्त्रकारः स्वे), ९६१२१(+६) गच्छोत्पत्ति कालनिर्णय गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (खमण १ पुण्णिम २ खरहर ३), ९८२८३-१३(2) (२) गच्छोत्पत्ति कालनिर्णय गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीर पछै छसै वरसे दिगंबर), ९८२८३-१३(#) गणधरवाद, मा.गु.,सं., गद्य, मूप., (अस्मिन् भरतक्षेत्रे), ९५००९(+$) गणनस्थिति विचार, प्रा., गद्य, श्वे., (एकं१ दहं२ शतं३ सहस्रं४), ९८०६५-४(+) गणपति स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, वै., (करकंकण केशजटामुकुटं मणि), ९९७१२-३(+) गणेश कवच-पद्मपुराणे, सं., गद्य, वै., (ॐ अस्य श्रीगणेश कवचस्य), ९७७३०-२(+#) गणेशाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (ॐ ॐ ॐकाररूपं अहमि), ९९३६४-१(+#$) गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वै., इतर, (कज्जल विज्जल गुंद), ९७४९२-३८(+#), १००८८४-२ गाथा संग्रह*, प्रा., पद्य, श्वे., (सत्तइ रत्ता मत्तइ), ९७५१७-३०(+#), ९४६५२(#$) गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, म्पू., (सललमथघ्रतकाज निक्खु), ९६३१६-२(+), ९७५१७-१४(+#), ९४६७३-२ गिरनारतीर्थ कल्प, मु. ब्रझेंद्र; सरस्वती, सं., श्लो. २३, पद्य, मप., (श्रीविमलगिरेस्तीर्था), ९७९६२-१(+$) गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा, प्रा.,मा.गु., गा. १, गद्य, श्वे., (चउरिक्कद्पणपंचय), ९७५१७-२४(+#) (२) गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउक्क० च्यारि पैडा), ९७५१७-२४(+#) गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. १३५, वि. १४४७, पद्य, मूपू., (गुणस्थानक्रमारोह), ९४६८८(+), ९५१२५ (+#S), ९५४१३(+#), ९५४८४(+$), ९६९५०(+) (२) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., वि. १४४७, गद्य, मूपू., (अहँ पदं हृदि), ९४६८८(+), ९५१२५(+#S), ९५४८४(+$), ९६७४४(+#) गुरुगुण स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, श्वे., (वन मद सुर सुर निकर मुगट), ९८२२२-२(+) गुरुगुणस्मरण आत्मानुशासनाष्टक-समसंस्कृत, प्रा.,सं., गा. ८, पद्य, मूपू., (अतिदुःसहगुरुविरहो मा), ९५८४५-७(+) For Private and Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ गुरुलघुक्रियामात्रा छंदोविषयक विचार, सं., प+ग., मूपू., इतर, (संख्यांकस्रजेत्पृष्टान्), ९४६८६-२(+#) गुरुवंदन भाष्य, प्रा., गा. ३१, पद्य, मूपू., (मुहणंतय २५ देहा २५), ९८०६५-२०(4) गुरुवंदन विधि, प्रा., गद्य, मपू., (इच्छकारि भगवन पसाउ), ९६३५२-४(+) गुर्वावली, अप., गा. १०, पद्य, म्पू., (वंदे सुहम्म सामि), ९८१३५-३०(+) गृहप्रतिमा स्नात्रविधि, प्रा., गा. ३, पद्य, मपू., (मीनकुरंग मदा गुरु सारं), ९८१३५-७(+) गृहस्थधर्म स्वरूप, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (सम्यक्त्वमूलानि पंचा), ९४९४४-४(+#$) (२) गृहस्थधर्म स्वरूप-टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९४९४४-४(+#$) गोचरी आलोयण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (कालेणय गोअरिआ), ९५३१३-३(+) गौतमपृच्छा , प्रा., प्रश्न. ४८, गा. ६४, पद्य, मप., (नमिऊण तित्थनाह), ९५१५६(+$), ९५३४२(+), ९५६००(+$), ९५६४६(+#$), ९६०७०(+#), ९६०८९(+#), ९६२५०(+#$), ९७३६०(+#), ९८१३६(+) (२) गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., ग्रं. १६८२, वि. १७३८, गद्य, मप., (वीर जिनं प्रणम्यादौ बाला), ९५१५६(+S), ९५६००(+$), ९८१३६(+) (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा कहता नमीने), ९५३४२(+), ९६०८९(+#) (२) गौतमपच्छा -टबार्थ*, मा.गु., गद्य, म्पू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ९६०७०(+#), ९६०८९(+#), ९६२५०(+#$), ९७३६०(+#) (२) गौतमपृच्छा-कथा, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, मूपू., (एकस्मिन् ग्रामे एको), ९५६००(45) (२) गौतमपृच्छा -कथा संग्रह*, मा.गु., कथा. ३५, गद्य, मपू., (वसंतपुर नगरने विषे), ९५१५९(+), ९५३४२(+), ९५६४६(+#$), __ ९६२५०(+#s), ९७३६०(+#) गौतमस्वामी स्तव, आ. वज्रस्वामि, सं., श्लो. ११, पद्य, मपू., (स्वर्णाष्टाग्रसहस्रपत्र), ९५३७८-९(+#), ९९७१२-१३(+) गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (इंद्रभूतिं वसुभूति), ९४९२४-१९(६) ग्रहदृष्टि विचार, सं., पद्य, वै., इतर, (पूर्णं पश्यति रविजः तृतीय), ९८५०२-२(+#) ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. ११, पद्य, मपू., (जगद्रे नमस्कृत्य), ९४७४६-२(+), ९५८१४-७(+), ९८५८५-२(+), ९९५१९-२(+$), ९९५२८-७९ ग्रामवास विचार, सं., प+ग., इतर, (प्रासादप्रतिमालिंगं जगती), ९६०४६-१() घंटाकर्ण कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., वै., (प्रणम्य गिरिजाकांत), ९६७७८(+$), ९७७३०-१(+#$) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), ९५७३०-३(+#), ९९३६४-७(+#s), १०००८०-२(+#) (२) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र-विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वार १०८ सदा समरीजै सुख), ९५७३०-४(+#) चंद्रधवल कथा-अतिथिसंविभागव्रते, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., ग्रं. ४००, गद्य, मूप., (इह भरतक्षेत्रे), ९६७१०(+$), ९७६३०-२(+$) चक्रवर्ती-वासुदेव-प्रतिवासदेव-बलदेव गति विचार, प्रा., गा. ९, पद्य, मप., (अट्ठेव गया मुक्खं), ९७५१७-१९(+#) चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, मप., (सावज्जजोग विरई), ९४६६८(+#), ९५३६०(+#s), ९५४२३(+#), ९५६४४(+), ९६०६३-४(+), ९६३११(+-), ९६४१८-१(+), ९८०८३(#), ९८२१९(+$), ९८२४६(+), ९९१०३-१(+#), ९८२२९-१, ९४७२९(१), ९५०७५-५(#$), ९५६८५-२(#), ९६१८३($), ९६३३६($) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (इदमध्ययनं परमपद), ९५६४४(+) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., ग्रं. ३४७, गद्य, मपू., (पहिलं छ आवश्यकना), ९८२१९(+$), ९६३३६($) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (सावध योग विरति ते), ९६१८३($) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनं गणींद्रान्), ९४७२९(2) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (चउसरणपइनाना अर्थ०), ९४६६८(+#), ९५३६०(+#S), ९५४२३(+#), ९६३११(+-), ९८०८३(+#), ९८२२९-१, ९५६८५-२(#) चतःषष्टिहृदय, सं., गद्य, दि., (आचारं मतिपर्व वृत्तमलं), ९८०४०-३(+) चतुर्विंशतिका स्तुति, उपा. क्षमाकल्याण, सं.,स्तु. २४, श्लो. ७७, वि. १८०१-१८४१, पद्य, मप., (सद्भक्त्या नतमौलि), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५०१ (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-वृत्ति, गच्छा. जिनरत्नसूरिजी, सं., गद्य, मपू., (नमस्कृत्य जिन), ९५५३९-१(#) चमत्कारचिंतामणि, नारायण भट्ट, सं., गद्य, वै., इतर, (--), प्रतहीन. (२) चमत्कारचिंतामणि-पद्यानुवाद, श्रीसार कवि, पुहिं., गद्य, मप., वै., इतर, (युं विचार ज्योतिष को),१००६६१(+) चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., श्लो. १११, पद्य, वै., इतर, (क्वणत्किंकिणी जालकोल), ९६४४४(+#S), १००६६०-२३(+) (२) चमत्कारचिंतामणि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (श्रीवामेय जिनं नत्वा), ९६४४४(+#$) चयनित गाथा संग्रह-जीवादि आयुमान, प्रा., गा. २२, पद्य, भूपू., (पुढवी आउ वणस्सइ बारस), ९७५१७-९(+#) चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मप., (एवय समणधम्म १० संजम), ९६३५२-७(+) चाणक्यवद्धराजनीति, कौटिल्य, सं., अ. १७, पद्य, वै., इतर, (प्रणम्य शिरसा विष्णु), प्रतहीन. (२) चाणक्यलघराजनीति, संक्षेप, कौटिल्य, सं., अ.८, पद्य, वै., इतर, (प्रणम्य शंकरं देवं), ९६८८८-२(5) चातुर्मासिककर्तव्य श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सामायिकावश्यक पौषधा), १०००५५-६(+) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., ग्रं. ४०१, गद्य, मूपू., (स्मारं स्मारं स्फुरज्ज्ञा), ९५४७५ (+#) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., मूप., (सामाइकावश्यकपौषधानि), ९४७५३(+$), ९४९६२(+), ९५५७४(+$), ९५९६८(+), ९८१६४(+#s) (२) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (आसाढ चौमासो काती चौमासो), ९५५७४(+$) चातुर्मासिक व्याख्यान, रा.,सं., पद्य, मप., (सामायिकावश्यकपौषधानि), ९६५५५(३) चिंता कुलक, प्रा., गा. १२, पद्य, मूप., (न कया जिणवरपूया मालइ कुसम), ९८०६५-२१(+) चिंतामणिमंत्र संप्रदाय, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमिऊण), ९६५२२-८(+) चित्रलेखा कथा, सं., गद्य, श्वे., (भव नियमेणयमुखो दाणाणय), ९७४२३-२(+#$) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसरि, सं., श्लो. १२३२, वि. १५२४, पद्य, मप., (नत्वा जिनपतिमाद्यं), ९४७५०(+$), ९५०८७(+$), ९५९१०(+), ९६०७६ (२) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गद्य, मपू., (अद्य क० पहेला युगला), ९५०८७(+$) (२) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (अशरण शरण भव भय हरण), ९४७५०(+$), ९५९१०(+) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., श्लो. १२३१, वि. १५२४, पद्य, मूपू., (नत्वा जिनपतिमाद्यं), ९५५०८(+$), ९५५८१(+#s) (२) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (प्रथम ही आदिश्वरकौ), ९५५०८(+$) चैत्यवंदन कुलक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. २७, वि. १२वी, पद्य, म्पू., (नमिऊणमणंतगुणं चउवयणं), ९८१३५-२५(+) चैत्यवंदन विधि, गु.,प्रा.,हिं., प+ग., म्पू., (इच्छामी खमासमणो वंदि), ९९०३२-५ (#$) चैत्यवंदन विधि, पुहिं.,प्रा.,सं., गद्य, मपू., (मंदिर के अग्रद्वार), ९८०६५-११(+) चैत्यवंदनविधि कुलक, प्रा., गा. ३५, पद्य, मपू., (तिन्नि निसीही तिन्नि), ९८०६५-१२(+) छेदपिंड, आ. इंद्रनंदिसूरि, प्रा., गा. ३६१, पद्य, मप., (विच्छिण्णकम्मबंधे), १००७१४-२(+$) छेदशास्त्र, प्रा., गा. ९४, पद्य, मूपू., (णमिऊण य पंचगुरुं), १००७१४-१(+$) (२) छेदशास्त्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रायश्चितं विशुद्धि), १००७१४-१(+$) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., उ. २१, गद्य, मूप., (तेणं कालेणं० रायगिहे), ९४६९२(+), ९५२०४(+), ९५३२३(+$), ९५५१२-१(+$), ९६८९४(+#) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मपू., (ते काल चउथो आरो तेवाइ समइ), ९५२०४(+), ९५३२३(+), ९५५१२-१(+$), ९६८९४(+#) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, म्पू., (सुप्रभावं जिनं नत्वा), ९५५४९($) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष. ७, ग्रं. ४१४६, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), ९४८२३(+#$), ९५८९४(+) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका*, सं., गद्य, म्पू., (कहि० कीहां सरुछइ), ९४८२३(+#$) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र, प्रा., गद्य, मपू., (तेणं से भरहे राया), ९८१९२-६(+) For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहवार पछी ते भरतराज), ९८१९२-६(+$) जंबूद्वीपसूर्यचंद्र परिधिमान विचार, प्रा.,मा.ग., प+ग., मपू., (--), ९७५१७-२७(+#$) जन्मपत्री पद्धति, उपा. महिमोदय, मा.ग.,सं., अधि. २, प+ग., मप., इतर, (स्वस्ति श्रीसौख्यधात्री), ९८१४३(+$), ९८१४२ जन्मपत्री पद्धति, मु. लब्धिचंद्र, सं., गद्य, मूपू., इतर, (स्वस्ति श्रीऋद्धि वृद्धि), ९५९५५(+$) जन्मपत्री मासादिज्ञान विचार, सं., गद्य, मूपू., इतर, (प्रथम जन्मकुंडली द्रष्टे), १००९३१-२ जन्मप्रदीप, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. १४८, पद्य, मूपू., इतर, (सर्वं जगतितलेतमः), ९८५०२-१(+#$) जयकेसरीसूरि गुरुगुण स्तुति, प्रा., पद्य, मपू., (सयलसुरअसुरनरसामिमयसेवीयं), ९९१०२-१०(#$) जयणा कुलक, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिणवरदेव सुसाहु गुरो), ९८०६५-२२(+) । जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मपू., (जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय), ९५३१३-१८(+), ९५७९९-१(+#), ९६१६७-२(+), ९७५४०-२(+#$), ९७५९७-१(+$), ९७९२९-१६(+#), ९८११२-२(+), ९८१३५-२(+), ९८१५६-१९(+#), ९४७६३(#), ९५२५९-३(#), ९६०३५(#S) । (२) जयतिहअण स्तोत्र-टीका, सं., ग्रं. २५०, गद्य, मप., (अत्रायं वृद्धसंप्रदायः), ९५७९९-१(+#) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जयवंतो वर्ति), ९६१६७-२(+), ९६०३५ (#$) जल्पकल्पलता, ग. रत्नमंडन, सं., स्तब. ३, श्लो. ६६, पद्य, मूपू., (वक्तृत्वं च कवित्वं), ९५५८९(#$) जातककर्म पद्धति, श्रीपति भट्ट, सं., अ.८, पद्य, वै., इतर, (नत्वा तां श्रुतदेवता), प्रतहीन. (२) जातककर्म पद्धति-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सुमतिहर्ष, सं., वि. १६७३, गद्य, मूप., वै., इतर, (श्रीअश्वसेनिचलनांबुज), ९६२१६(+) जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., श्लो. ९३, वि. १७६५, पद्य, मूपू., इतर, (प्रणम्य पार्श्वदेवेशं), ९५६४७(+), ९६८६२(+#), ९८५४८(+) (२) जातकपद्धति-टबार्थ, मु. रंगविजय, मा.गु., वि. १५९७, गद्य, मूपू., इतर, (प्रणाम करीने पार्श्वदेव), ९५६४७(+) (२) जातकपद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (प्रणाम करीने), ९८५४८(+) जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ९, पद्य, पू., (श्रीमद्देवार्यदेव), ९५८४५-८(+) जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. रत्नसोम, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (देवराजपुरमंडनमाप्त), ९५३७९-३(+) जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (सकलगुणगरिष्टान्), ९६६३७(+) जिनचंद्रसूरि स्तुति-युगप्रधान, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू, (यः सार्वभौमाकबराभिधेन), ९५३१३-८(+) जिनचैत्यपरिपाटी स्तवन, प्रा., पद्य, मप., (सिरिपढमजिणं पणमिय सुरिंद), ९८१३५-३६(+$) जिनचौबीसी बोली, आ. जिनचंदसूरि, अप., गा. १३, पद्य, मपू., (जो मंगलु सिरिरिसहनाह), ९८१३५-२१(+) जिनदत्तसूरि अष्टक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीवीरतीर्थेश्वर), ९५८४५-९(+) जिनदत्तसरि स्तुति-खरतरगच्छीय, सं., श्लो. २, पद्य, मप., (दासानुदासा इव सर्व), ९५३१३-७(+) जिनदर्शन प्रार्थनास्तुति संग्रह, सं., श्लो. ८, पद्य, मपू., (अद्य प्रक्षालितं गात्रं), ९५८१४-३(+) जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), ९५३७८-२(+#), ९५७७६-३(+$), ९८५८५-३(+), ९९५२८-८०(5) जिनप्रतिमा की रात्रिपूजा रात्रिजागरण निषेध करने का आलावा-छेदसूत्र, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (तिहां देहरा ३ तीन), ९७५१७-२६(+#S), ९८५७८-२(+) जिनप्रतिमालक्षण विचार, सं., श्लो. ३४, पद्य, मप., (उपविष्टस्य देवस्यो), ९५६०१-५(+#) जिनप्रासाद निर्माणोपदेश श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (जिनभवनं १ जिनबिंब २ जिण), ९८२८३-१(#) (२) जिनप्रासाद निर्माणोपदेश श्लोक-अर्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (अर्हत० जे भव्य जीव ए), ९८२८३-१(#) जिनबिंब उत्थापन विधि-खरतरगच्छीय, प्रा., गद्य, मूपू., (पसत्थे तिहिमुहत्त), ९८३५३-३(+#) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पूर्वोक्त शुभ दिवसे), ९५०३७(+$), ९५२४६(+) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, सं., प+ग., मप., (विषमैरंगलैर्हस्तैः कार्य), ९५००३(+) (२) चैत्यप्रतिष्ठा विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (विषम क० एकी गणतीइं), ९५००३(+) जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रणम्य स्वस्तिऋद्धिश्री), १००६६२(+), ९५०४९(#), ९६४५२($) For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५०३ जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.ग.,सं., गद्य, मप., (पहिलु मुहर्त भल), ९५००२(+#$), ९५०३३(#$), ९९९६३-२() जिनभक्तिसूरि अष्टक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ९, वि. १८०४, पद्य, मूपू., (श्रीमच्चंद्रकुलेश्वर), ९५८४५-३(+) जिनभवन १० आशातना गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (तंबोल पाण भोयण वाहण), ९७३५७-३ जिनमांगलिक लूणपाणि गाथा, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिण नयणा सलोणत्तं पिच्छिय), ९८१३५-६(+) जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १८, पद्य, मपू., (श्रीजिनं भक्तितो), ९५३७८-१(+#$) जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १७, पद्य, मपू., (सर्वातिशयसंपूर्णान्), ९९३६४-५(+#$) जिनराजसूरि स्तुति-युगप्रधान, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (भव्यांबुजवातविबोधशक्तो), ९५३१३-९(+) जिनलघुस्नपन विधि, सं., गद्य, मूपू., (प्रथमं स्नात्र समये स्नपन), ९८१३५-९(+) जिनलाभसूरि अष्टक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ९, वि. १८३४, पद्य, मपू., (राग विभास तथा कडषौ), ९५३१३-१०(+), ९५८४५-४(+) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. जिनसेन, सं., श्लो. १६६, पद्य, दि., (प्रसिद्धाष्टसहस्रेद), ९७४२६(+) जिनाभिषेक पंचामृतवस्तु श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (दधि दुग्धं घृतं चेक्षरसं), ९४६५९-५(+) जिनेश्वरसूरि बोली, मु. जिनेश्वरसूरि शिष्य, अप., गा. १३, पद्य, मूप., (हलि पंचकुसुम सरविसर नमज्झ), ९८१३५-१९(+) जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), ९४७६५-१(+), ९४९०२(+), ९५०२४(+), ९५०५३(+), ९५१६१-२(+), ९५३१३-२५(+), ९५४६७-२(+#), ९५५६३(+#), ९५६८६(+), ९५७३१-१(+#), ९५७६८-२(+#), ९५७९१(+#), ९६०२०-१(+#), ९६०६३-२(+), ९६०६४(+), ९६११४-३(+), ९६१७०(+#), ९६१७५(+), ९६३८८-१(+), ९६४०८(+), ९६५५२-१(+#), ९६९०२-१(+$), ९६९६२-१(+), ९७००८-१(+), ९७५१३-१२(+#$), ९७६२३-२(+#), ९७९२९-१०(+#), ९८०६२-११(+#), ९८१५६-११(+#), ९८२२६-२(+), ९९१०३-३(+#), १०००५५-१(+), १००१४७-१(+), ९५८४०-१, ९८१७४-१, १००३६०,९५०७५-२(#), ९७६१४-२(#) (२) जीवविचार प्रकरण-अक्षरार्थदीपिका अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं किंचिदपि जीव), ९६११४-३(+) (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भुवनमाहि मिथ्यात्व), ९६०६४(+) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, वा. चारित्रचंद्र गणि, सं., वि. १७५२, गद्य, मपू., (अहं शांतिसूरिः किंचित्), ९५६८६(+) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मप., (तीन भुवन रै विषै), ९४९०२(+), ९५०२४(+), ९५०५३(+), ९५१६१-२(+), ९५४६७-२(+), ९५५६३(+#), ९५७९१(+#), ९६१७०(+#s), ९६१७५(+), ९६४०८(+), ९६५५२-१(+#), ९७००८-१(+), ९८२२६-२(+), १००१४७-१(+) (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (श्रीसिद्धार्थराजानु), १००३६० जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, सू. २७२, ग्रं. ४७५०, गद्य, मपू., (णमो उसभादियाणं चउवीस), ९५२९२(+$), ९५३१५(+$) (२) जीवाभिगमसूत्र-पर्याय, सं., गद्य, मपू., (यथासतः संभूत भावम्य), ९८०८८-७(+) (२) जीवाभिगमसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९५२९२(+$) (२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. २००००, गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नत्वा), ९५२९२(+$), ९५३१५(+$) जैन ज्योतिष मुहूर्त विचार, प्रा.,सं., प+ग., मप., इतर, (प्रवेशनक्षत्राणि पुष्य१), ९६१३७(+) जैनधर्मोपदेश श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ७००, पद्य, दि., (देवः केवलमूर्तिरांतरतमः), ९६२१२(+#$) जैन पारिभाषिक शब्दसंख्या, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (तत्वानि ९ व्रत ५/१२), ९६५९२-१(+#) (२) जैन पारिभाषिक शब्दसंख्या-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (तत्वानि नवतत्व जीव१), ९६५९२-१(+#) जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (श्रीनवकार मंत्र में), ९४९४४-१(+#) जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), ९५२५६-२(+$), ९९६०१ जैन श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (दर्शनज्ञानचारित्रात), ९६४६६(+$) (२) जैन श्लोकसंग्रह-टबार्थ, मा.ग., गद्य, मपू., (--), ९६४६६(+$) जैनसिद्धांत संदर्भश्लोक-पुराणगत, सं., श्लो. ७२, पद्य, श्वे., वै., (अहिंसा १ सत्य २), ९६१४५-२ For Private and Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५०४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १९, ग्रं. ५५००, प+ग. म्पू. (तेणं कालेणं० चंपाए), ९४६६७ (+३), ९४७७४(+$), ९४८२४ (+), ९४८३४ (+), ९५५२९ (+#$), ९५७३७ (+$), ९५८६५ (+$), ९६०४१(+#S), ९६१९४(+$), ९५४१४(०३), ९६१८७ (MS), ९६९३८(४), ९५०३१(३), ९८०९२ (३) " , (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., अध्य. १९, ग्रं. ३८००, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीमन्महावीरं), ९५५२९(+#$) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टवार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु, ग्रं. ८५००, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ९४८३४(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार श्रीमहावीरने), ९४८२४ (+), ९५८६५ (+), ९६१९४(+$), ९५४१४(#$), ९६१८७ (#S), ९६९३८ (#), ९५०३१($) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- कथा, मा.गु., गद्य, भूपू (राजग्रही नामा नगरी), ९७९०० (३) (२) ज्ञाताधर्मकथांगोपनय गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ७३, पद्य, मूपू (महुरेहिं निउणेहिं वय), ९४८५७/*) (३) ज्ञाताधर्मकथांगोपनय गाथा - बालावबोध, मा.गु. गद्य, मूपू.. (त्तिवेमि कहता श्रीसुधर्मा ), ९४८५७ (३) (३) ज्ञाताधर्मकथांगोपनय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (म. मधुर मीठिझं नि० निपुण), ९४८५७ / +६) ज्ञानपंचमीउद्यापन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. सं., प+ग, मूपू. ( श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा० ) ९४७४६ १(+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (पंचानंतकसुप्रपंच परमानंद), ९५३१३-३३(०) ९५८०२-३ (१), ९८०९३०७(+), ९८१५६-६(+#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मू, श्रीनेमि: पंचरूपत्रिदशपति), ९५५३४-२(७), १९३९७-३ (+#), ९९८७१-५(*), १००६६०-१२(+), ९७१०६.६, ९७९८३-७, ९६१०९-८(१) ९७३५६-४(०६), १००८७८-७/का ज्ञानपहिरावणी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (नमंत सामंतमही विनाहं), ९८१३५-१०(+), ९५४३०-२(#) ज्ञानप्रदीप, सं. लो. ३०, पद्य, म्पू, इतर (चरे लग्ने चरे सूर्ये), १००९३१-१ ज्योतिष, पुहिं., मा.गु., सं., प+ग., जै., वै., इतर, (आदित्यं १ सोम २मंगल), ९५४९७-३ (+), ९७४८५-२ (+), ९७४९२-३५(+#), ९८२६८-२ (०) ९६०४६- २(१६) ज्योतिष विचार, मा.गु., सं., प+ग. म्पू, इतर (बुधचंद्रोत्तरे मार्ग), १००१२६-१३(+), १००१३२-२ (+), १००११२-२ (A), "" " १००७९३-४(#) ज्योतिषश्लोक सं., श्लो. ४, पद्य, इतर (अरुणशित हरीतपाल), १७२८७-२(क) ज्योतिष लोक संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., गा. ११, पद्य, म्पू, इतर (अच्चिबुहविहप्पिसणिवारा), ९७८६४-१ (+), १००८४४-२ (MS) ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २५, पद्य, वै., इतर, (इष्टस्यावधिसंस्थितौ ), ९८०१३-२, ९६०४६-३(#) ज्योतिष लोक संग्रह, सं., पद्य, इतर (चैत्र १ वैशाख २ जेष्ट ३) १००६६०-२४(+) ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., इतर, (मेषे च मीने त्रियुगा ), ९५३२२-२(+#) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि सं., श्लो. २९४, पद्य, मूपू इतर ( श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार), ९५१७६ (*), ९५३८९ (5) ९५४२७ (३), , ९५६७४(४०), ९५९८७(+४), ९६२७९ (+), ९६३२५ (+), ९६४९० (+), ९६५२० (+४), ९६९८७-१ (०४), ९७२०६ (३), ९७७१९(+$), ९७७३२(+#$), ९७९१२(+#$), ९८१९४ (+#), ९८२३४ (+), ९८२५४ (+#$), ९९२६३ (+#$), १०००७८(+#), १००२७० (०९), ९५३५०, ९६४४५ (MS), ९६९१२(MS), ९७९६८ (०) १०००९७६) १००३१८(४), ९७१६२ (३) (२) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (सरस्वतीं नमस्कृत्य), ९५३८९ (+#$), ९६३२५(+$), ९६४९०(+$), ९६९८७-१ (+), ९८२५४ (+#S), १००२७० (+), १००३१८(#) (२) ज्योतिषसार बालावबोध", मा.गु., गद्य, म्पू, इतर ( पडवा सठइग्यारस नंदातिथ), ९६९८७-१(३), १९२६३(७) (२) ज्योतिषसार-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (श्रीअरिहंतभगवानने), ९७२०६ (+$), ९७७१९(+$), ९७७३२(+#$), ९७९१२(+#$), ९५३५०, ९६९१२ (३) (२) ज्योतिषसार-लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु., सं., प+ग., मूपू., इतर, (अर्हतं जिनं नत्वा), ९६२६१ (+#) ज्योतिषसार, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. ३३४, पद्य, मूपू., इतर, (लग्नं लग्नपतिर्बलान), ९९८१२(+#$) ज्योतिषसारोद्धार, आ.हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ३, श्लो. ३३७, ग्रं. ५००, पद्य, म्पू., इतर ( तं नमामि जिनाधीशं), ९७२८७- १(०४) For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ तंदलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., मपू., (निज्जरिय जरामरणं), १००५३०(#s) तत्त्वभावना, आ. अमितगति दिगंबर, सं., श्लो. १२१, पद्य, दि., (एकद्वित्रिहृषी), ९८२२४(+) तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (तत्त्वानि७ व्रत१२), ९७५१३-१६(+#$) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., अ. १०, गद्य, मूपू., दि., (सम्यग्दर्शनशुद्धं), ९५४६५(+#), ९७४०३(+), ९८२९१(+#5), १००२६०(+#$), ९८६९९-१(२) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., दि., (--), ९८२९१(+#$) तपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम ठवणीमांडि ईरीय), ९५२५६-१(+) तपोभेद ५०पद नमस्कार, सं., गद्य, मपू., (यावत्कथित अणसणतपसे नमः), ९४६५९-६(+) तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ), ९५३१३-३०(+), ९५७५१-३(+#), ९६३८३-३(+$), ९७०४५-२(+), ९७५१३-७(+#), ९८०६२-३(+#), ९८११२-४(+), ९९३६४-६(+#) तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., गा. १११, वि. १४वी, पद्य, पू., (अरिहंतं भगवंत), ९५९८४(+#S), ९५२८२ (२) तीर्थमाला स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (श्री अरिहंत ६४ इंद्र), ९५९८४(+#$) तीर्थवंदना, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (संसारतारयाणं तियसासु), ९५३७८-१०(+#) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (ख्यातोष्टापदपर्वतो), ९९४७७-३(+) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मपू., (सद्भक्त्या देवलोके रविशशि), ९९४७७-७(+), १००९३२-१(+), ९५४४२-२८(#s), १००७९०-१६(#) त्रिपराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., श्लो. २४, पद्य, वै., (ऐंद्रस्यैव शरासनस्य), ९५२८३-१०(+), ९६४०१(+), ९६२५९-१(#) त्रिपुराभवानी स्तोत्र-टबार्थ, पा. रूपचंद्र गणि, पुहिं., वि. १७९८, गद्य, मपू., वै., (ज्याकी भगति प्रभावते), ९६४०१(+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठानम), प्रतहीन. (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-परिशिष्टपर्व, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. १३, ग्रं. ३४६०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (श्रीमते वीरनाथाय), ९५३२७(+) (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-रामचंद्र चरित्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. १०, ग्रं. ४०३२, पद्य, पू., (अथ श्रीसुव्रतस्वामीज), ९५३००(+$) (३) जैन रामायण-गद्यबद्ध, संबद्ध, पंन्या. देवविजय, सं., स. १०, ग्रं. ५०००, वि. १६५२, गद्य, मपू., (अथास्मिन् जंबूद्वीपे), ९५३०३(+) (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठानम), ९४९९१-१(+), ९५८१४-२(+), ९६११४-१(+), ९७५६५(+), ९९१०३-४(+#), ९५२८५-१, ९८६८६-३(#) (३) सकलार्हत् स्तोत्र-टीका, ग. कनककुशल, सं., ग्रं. २८२, वि. १६५४, गद्य, मूपू., (वयम् आर्हत्यं), ९६११४-१(+) (३) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ९७५६५(+) त्रैलोक्यप्रकाश, आ. हेमप्रभसूरि, सं., श्लो. १२५०, पद्य, मप., इतर, (श्रीमत्पार्थाभिध), ९५९१८(+$) दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४४, वि. १५७९, पद्य, मपू., (नमिउं चौवीस जिणे तस्सुत्त), ९४७४१(+), ९४७६५-३(+), ९४९४७-१(+), ९५२०२(+), ९५३१३-२७(+$), ९५४६७-१(#), ९५६५६-१(+), ९५७३१-३(+#), ९६०२०-२(+#), ९६०६३-३(+), ९६३८८-३(+$), ९६५६१-१(+#), ९६९६२-२(+), ९७००८-३(+), ९७४७८-१(+), ९७५१३-१३(+#), ९७९२९-१४(+#), ९८०६२-१२(+#), ९८११०-१(+5), ९८१५६-१२(+#), १०००४९(५), १०००५५-३(+), १००६४५(+#), ९५०५५, ९५५४०, ९७६१४-३(#) (२) दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., ग्रं. २१६, वि. १५७९, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयं महिमामेयं), ९६५६१-१(+#) (२) दंडक प्रकरण-बालावबोध , मा.ग., वि. १५७९, गद्य, मप., (चउविश तिर्थंकरने नमस), ९४९४७-१(+) (२) दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (थमा १ वंसा २ सेला ३), ९५७४६ (#$) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मु. यशसोम-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रराजं जिनं नत्वा), ९५६५६-१(+) For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै), ९५२०२(+), ९५४६७-१(+#), ९७००८-३(+), १०००४९(+), १००६४५(+#), ९५०५५ दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. रवी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ९४९३८(+$), ९५०६९(+#S), ९५१३४(+$), ९५३३९(+#), ९५६८४(+s), ९५७३४(+#$), ९५७६६(+), ९५८३१(+#), ९५९७६(+$), ९६०३२-१(#), ९६२२२-१(+#), ९६२८८(+#), ९६६३६(+$), ९६६४६(+5), ९७५१३-४(+#), ९७५२१(+), ९७५३४(+#$), ९८१८५(+s), ९८२९६(+), ९८३३३(+#), ९९४५३(+$), १००३२९(+#$), १००६६०-५(+), ९४९७५ (#$), ९५३७५ (#S), ९४६५५(६), ९५१५८६६) (२) दशवैकालिकसूत्र-लघुटीका, आ. सुमतिसूरि, सं., ग्रं. ३५००, गद्य, मूपू., (जयति विजितान्यतेजाः०), ९६०३७(+$) (२) दशवैकालिकसूत्र-शिष्यबोधिनी टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अध्य. १० चूलिका २, ग्रं. ६८५०, गद्य, मप., (जयति विजितान्यतेजाः), ९८०३८(+), ९४६५५(६) (२) दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (धम्मो मंगलमुत्कृष्टं), ९५७३४(+#$), ९६०३२-१(+#) (२) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, उपा. राजहंस, मा.गु., गद्य, पू., (नत्वा श्रीवर्द्धमान), ९६९४१(+#) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ध० जीवनइ दुर्गति), ९५०६९(+#$), ९५१३४(+$), ९५३३९(+#), ९५८३१(+#), ९५९७६(+$), ९६६३६(+$), १००३२९(+#$), ९५१५८($) (२) दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिज्जंभवं गणहरं जिण), ९६०३२-२(+#), ९६२२२-२(+#) (३) दशवैकालिकसूत्रगत गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नियूंढानि उद्धृतानि), ९६०३२-२(+#) (२) दशवैकालिकसूत्र-योग विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, भूपू., (दशवेयालियम्मि एगो), ९८३५३-१(+#) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., अ. १०, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (धर्ममंगल महिमा निलो), ९७३९७-९(+$), ९४७३२-१, ९९९६७-१ (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., सज्झा. ११, गा. १०८, पद्य, मूपू., (श्रीगुरूपदपंकज नमीजी), ९६०५६ (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय अध्ययन ५, संबद्ध, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सम्यकप्रकार पामबान), ९६५३७(#) दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., दशा. १०, ग्रं. १३८०, पद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० हवइ), ९५३९५(+#$) (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-पर्याय, मा.गु., गद्य, मूपू., (दव दव कहतां ऊतावलउ उतावलउ), १००४००(5) दाडिमादिबीजसंख्याज्ञानविधि श्लोक, मा.गु.,सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (दाडिम पाक्की देखि के), ९६१००-२(+#) दानकल्पद्रम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पल्ल. ९, पद्य, मप्., (स श्रेयस्त्रिजगद), ९५२१०(+#$), ९६२०७(+#S) (२) दानकल्पद्रुम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभस्वामी कहेवा छे), ९५२१०(+#$) दानप्रकार गाथा, प्रा.,सं., गा. २, पद्य, मपू., (अभय सुपत्तं अणुकंपा उचित), १०००५५-५(+) दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (देवाहिदेवं नमिऊण), ९७४२८(+$) (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्था., (देवाधिदेवनइं नमस्कार), ९७४२८(+$) दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., वक्ष. ४, गा. ८१, पद्य, मूपू., (परिहरिय रज्जसारो), ९४८४६+#), ९५८३६-१(+), ९५२०१ (२) दानशीलतपभावना कुलक-बालावबोध, मु. विनयकुशल, मा.गु., गद्य, पू., (नत्वा जिनपदयुगलं वक्ष्येह), ९४८४८+#), ९५२०१ (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परिहरिउं छाडिउ), ९५८३६-१(+) दिगंबरादि मतोत्पत्ति संवत्सर विचार, सं., गद्य, श्वे., (श्रीवीरकेवलात् १४ वर्षे), ९६५३४-२(+) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (पुच्छा वासे चिइ वेसे), ९५२८८(+), १००८४८-२(+#) दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ४३७, ग्रं. १५००, वि. १४८३, पद्य, म्पू., (श्रीवर्द्धमानमांगल्य), ९४८१२(+), ९४९६५(+$) For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५०७ (२) दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मंगलिक दीवा सरीखी), ९५२४० (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (अर्हते बालबोधीनां), ९४८१२(+) (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (श्रीवर्द्धमानस्वामी), ९४९६५(+$) दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २७८, पद्य, मप., (संतु श्रीवर्द्धमान), ९८०६८(+), ९८७४६(#$) (२) दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीमहावीररा चरणकमल तेहना), ९८०६८(+), ९८१८७(+$) दीपावलीपर्व व्याख्यान, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (जाते वीरजिनस्य निवृत), ९५१९५ दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (पापायां पुरि चारु), ९८०९३-९(+), ९५४४२-१६(#) दीपावलीपर्व स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, म्पू., (पापायां पुरि चारु), ९५३१३-५१(+) दीपावली व्याख्यान, सं., गद्य, मप्., (प्रणम्य परया भक्त्या), ९५२८७(+) दीवाली का जाप, सं., गद्य, मप., (श्री महावीरस्वामी), ९८४३३-११(६) दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, मूपू., (दुरिअरयसमीरं मोहपंको), ९४९४६(+#s), ९५३१३-२४(+), ९७५१३-१४(+#), ९८०६२-९(+#), ९८०८६(+$), ९६२३८-६, ९८३२२(2) (२) दुरिअरयसमीर स्तोत्र-वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, मूपू., (अहं तस्य महावीरदेव), ९८०८६(+s), ९८३२२(#) (२) दुरिअरयसमीर स्तोत्र-व्याखा, मा.गु., गद्य, मूपू., (दुरित पाप रज परिहार करिवा), ९४९४६(+#$) दषमकाल श्रीश्रमणसंघ स्तव, आ. धर्मघोषसरि , प्रा., गा. २५, पद्य, मप., (वीरजिण भुवणविस्सुय), ९५००१-२(+) दहा संग्रह-विविध विषयक, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २५, पद्य, वै., इतर, (अनमिलनी बहुतइं मिलई), ९७२३७-१८(+), ९५३९६-२, ९६९७६-४ दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (रे दालिद्दवियक्खणवत्), ९५५६५(+६), ९६१८६(+#S), ९६८८७(#S), ९८३१३-१(६) दृष्टांतशतक, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., श्लो. १०२, पद्य, श्वे., (नत्वा श्रीवृषभं सदावृषधरं), ९८४४६(+#$) (२) दृष्टांतशतक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (जिम कोइक पुरुष वन मध्ये), ९८४४६(+#$) देवपूजा विधि, प्रा.,सं., प+ग., दि., (जय जय जय णमोस्तु०), १००८५६(#$) देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूप., (नमोत्थुणं कहीने भगवन), ९५२१८-२ देशीनाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, प्रा., वर्ग. ८, गा. ६७७, वि. १२वी, पद्य, मूपू., इतर, (गमणय पमाण गहिरा सहिय), १००२७८ देहस्वरूप कुलक, प्रा.,सं., गा. ९, पद्य, मूपू., (नारीणं गब्भ संखा इग दोति), ९७५१७-३१(+#) (२) देहस्वरूप कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (जाया पूठे दस दशा हुवै जात), ९७५१७-३१(+#) द्रव्यभाव चतुर्भंगी विचार, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (द्रव्यभावपद समुत्था चतु), ९७५१७-८(+#) द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., अधि. ३, गा. ५८, पद्य, दि., (जीवमजीवं दव्वं जिणवर), ९५६४५(+), ९५८०३-१(+#) (२) द्रव्य संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, दि., (अहं कहिय मजुहो), ९५६४५(+) द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., द्वात. २१, श्लो. ६६३, पद्य, मूपू., (स्वयंभुवं भूतसहस्रने), प्रतहीन. (२) महावीरद्वात्रिंशिका, हिस्सा, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ३३, वि. १वी, पद्य, मप., (सदा योगसात्म्यात्), ९५३७८-८(+#s) द्विजवदनचपेटानाम प्रकरण, प्रा.,सं., प+ग., जै., वै., (प्रमाणरूपं देवं), ९५०१४(+#$) धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., श्लो. २११, पद्य, दि., इतर, (तन्नमामि परं ज्योति), ९५१३६(+), ९६८५०, १००५३३(2) धर्मतरुफलदायक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (सकलजन्मविभूतिरनेकधा), ९६१७९-२(#) धर्मपरीक्षा कथा, सं., गद्य, मूपू., (--), ९४७६७(+$) धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांतश्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूप., (लज्जातो भयतो वितर्क), ९६५९२-३(+#), ९८२८३-११(2) (२) धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांतश्लोक-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (लज्जातो अर्द्ध मंडित), ९८२८३-११(#) (२) धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांतश्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (लज्जाथकी अर्द्धमांडि), ९६५९२-३(+#) धर्मशिक्षा प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. ४०, वि. १२वी, पद्य, मपू., (नत्वा भक्तिनतांगकोऽहमुभयं), ९५४०६(+) For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५०८ www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धूमावली, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (असुरिंदसुरिंदाणं किन ), ९८१३५-४(+) नंदीद्वीपस्थ जिनालय स्तुति, सं., श्लो. ५३, पद्य, भूपू (दिशि श्रीपूर्वस्या), ९५९५० (+) नंदी विधि, सं., पद्य, म्पू., (प्रथमं पवित्र नेपथ्य), ९५७९५-२(+३), ९८२१४-१(+) नंदीश्वरद्वीप ५२ जिनालय अष्टाह्निकामहोच्छव पूजा, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, मूपू., (वसुमद्वीपनंदीश्वरमांहि), ९९९७० नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा. सूत्र. ५७ गा. ७००, प+ग, मूपू (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ९६२०६ (३) ९७२८९ (३), ९७५६१(०३), ९५६५११३) 19 , (२) नंदीसूत्र टीका, सं., गद्य, भूपू (--), ९४७३१ (+AS) (२) नंदीसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु., (नंदी ते आनंदनी देणहारी ते), ९५६५१(३) (२) नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणी वियाणओ), ९४७११-१(+#), ९५९०१-१(*), ९५९०३-१(+), ९५९०५-१(०३), ९७६३१-२(+), ९६०२९-१(१), ९९१०२-२(ड) (३) नंदीसूत्र-स्थविरावली - अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (जयति इंद्रियविषय कषाय), ९५९०३-१(+) नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद. ९, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं), ९७२६० (+), १००१४७-२(+), ९७५४२-५(#) (२) नमस्कार महामंत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू (बारसगुण अरिहंता), ९७२६० (+), ९७८११(+४७) (२) नमस्कार महामंत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंतनइ काज), १००१४७-२ (+) (२) नमस्कार महामंत्र- कथा संग्रह, संबद्ध, सं., गद्य म्पू., ( नमस्कारप्रभावे इह), ९८२१८(+) 1 (२) नमस्कार महामंत्र कथा संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., कथा. ५, गद्य, मूपू., ( नवकार इक्क अक्खर पाव), ९४९९० (+) (२) नमस्कार महामंत्र कुलक, संबद्ध, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (घणघायकम्ममुक्का), ९८१३५-२४(+) नमस्कारमहामंत्र कल्प, प्रा. सं., गद्य, मूपू., (पंचादिपदानां परमेष्ट), ९६७८९, १००३२४-२(४४) नमस्कारमहामंत्र माहात्म्य समस्या पद, प्रा., मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अरिहंताई नवपय निज मन धेरै), ९६९०२-४(+) नमस्कार महामंत्र विचार, प्रा., गद्य, मूपू., (कम्मभूमिहि पढम संघयणि), ९८०६५-१०१०), ९८१३५-२७(*) नमस्कार माहात्म्य, आ. सिद्धसेनसूरि सं., प्रका. ८ पद्य म्पू. ( नमोस्तु गुरवे कल्प) ९८६४९-१(३) " नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू. (नमिऊण पणच सुरगण), ९५५३४-४(+), ९६५२२-४(*), ९७५,३५-१(+०३) (२) नमिऊण स्तोत्र- अभिप्रायचंद्रिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं. ग्रं. ३००, वि. १३६५ गद्य पू. श्रीपार्श्वस्वामिनं), ९६५२२-१६(+) ܕ. (२) नमिऊण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (सिद्धार्थपार्थिवसुतं), ९६५२२-५ (+), ९७५३५-१(+#$) (२) नमिऊण स्तोत्र-भयहर स्तोत्र मंत्राम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (श्रीस्तंभन स्तंभन), ९६५२२-९(+) नयचक्र, मु. माइल्लधवल, प्रा. गा. ४२५, पद्य, दि., (दव्वाविस्स सहावा), प्रतहीन. (२) नयचक्र-भाषावचनिका, श्राव. हेमराज शाह, पुहिं., वि. १७२६, गद्य, दि., (वंदो श्रीजिनके वचन), प्रतहीन. (३) नवचक्र-भाषावचनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, म्पू., दि., (स्यात्कारमुद्रिता), ९५१८३(+) नलचंपू, त्रिविक्रम भट्ट, सं., उच्छ. ७, प+ग, वै., इतर (जयति गिरिसुतायाः), प्रतहीन. (२) नलचंपू-प्रकाशटीका, पं. गुणविनय गणि, सं., ग्रं. ११०००, वि. १६४७, गद्य, मूपू., वै., इतर, ( ध्यात्वा सरस्वतीं), १००२८८(+$) नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि प्रा. गा. ३०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुण्णं पावास), ९४९४३-१ (६) (२) नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, मु. मेरुतुंगसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपु (श्रीवीर विभु), ९४९४३-१(३) "" नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), ९५७१६ (+), ९५८४३ (+#), ९७४८१-२(+#$), ९७६०६ (+#$), ९५०७५-१(#) For Private and Personal Use Only (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, (हवे नवतत्त्वना नाम), ९५८४३(+), ९६०४२(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण- हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, म्पू (परिणामि जीव मुत्ता), प्रतहीन, (३) नवतत्त्व प्रकरण- हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा का विवरण, मा.गु., गद्य, म्पू, षटद्रव्य मध्ये जीव१), ९५४७८-१(१) Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ 1 नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., गा. ६०, पद्य, मृपू., (जीवाजीबा पुण्णं पावा), ९४६७२(+), ९४७६५-२(+), ९४७९०(**), ९५०५०(+३), ९५१६१-१ (+), ९५२१२ (+३), ९५३१३-२६ (+३), ९५४५६ (+), ९५४९३ (+), ९५४९८ (+5), ९५५४२-२(*), ९५५५३(०) ९५५६७(*), ९५५७३(+), ९५६९३ (+४), ९५७३१-२ (४) ९५७६८-१(+४) ९५७७१(+३), ९६०२०-३(+), ९६०६३-१(+), ९६१७३ (+#$), ९६३७४ (+), ९६३८८- २ (+), ९६६१६ - १(+#), ९६६४७(+#S), ९६९०२-३ (+), ९७००८-२ (+), ९७४०६-१(+), ९७४०६-२ (+), ९७५१३-११(+#S), ९७६२३-१(+#), ९७९२९-९(+#), ९८०६२-१० (+#), ९८१५६-१० (+#), ९८३२१(+), ९८४६४(+), ९९१०३-२ (+) १०००५५-२(+), ९५८४०-२, ९७६६३, ९८१७४-२, ९७६१४-१(२), १००८८९(३), ९५४८६(४) 3 (२) नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., ( जयति श्रीमहावीर), ९४६७२(+#) , (२) नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिनमती जीवाने पदार्थ), ९५४५६ (+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-वालावबोध, मु. सोमसुंदरसूरि शिष्य, मा.गु., गद्य, म्पू, (यथा स्थित साचर्ड जे), ९५५७३(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, ग. हर्षवर्द्धन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानप्रभु), ९७४०६-२(+), ९५४८६ (३) (२) नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू, (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व) ९५४९८ (+), ९६१७३ ( **७), ९९७५८(१), ९४७६६ (MS), ९६७७४(१) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir י: (२) नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू (सम्यक् दृष्टि जीवनई), ९५२१२(+5), ९५७७१ (+), ९५१५७/३) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव कहतां च्यार), ९४७९० (+#), ९५०५० (+$), ९५१६१-१(+), ९५४९३(+#), ९५५४२-२(*), ९५५५२(+), ९५५६७(+), ९५६९३(०४), ९६३७४(*), ९६६१६-१ (+), ९७००८-२ (+) ९८३२१ (+), ९८४६४+६) (२) नवतत्त्व प्रकरण २५ बोल, संबद्ध, मु. रत्नचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (सासणपति श्री वीरजिन), ९६४०० (+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू, (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व) ९४७१०-१(१), ९४८९७ (१), ९५०८० (+5), १००८५४(३) " (२) नवतत्त्व प्रकरण-बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेलो जीवतत्त्व बीजो), ९४७३७(+) नवपद खमासणा विधि, सं., गद्य, मूपू. (स्वर्ण सिंघासन स्थित ), ९५३५८(+) नवपदतप विधि-काउसग्ग संख्या, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत पदै १२ लोगस्स), ९५६५६-२ (+) नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., सं., पूजा. ९, पद्य, मूपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), ९५३७६-१(+), ९६५३२ (+s), 7 ९६६२९-१(*), ९८३१४(+), ९९८७१-३५(*), ९९८७८-३ (+९१) ९७२४५, ९७७९८(२) ९८७९५ (AS) नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं. स्मर. ९, प+ग, मूपू., नमो अरिहंताणं हवइ मंगलम् ), ९४७१५-१ (+०३), ९५२०५ (+३), ९५३८५ (+०३), ९५४०८-१(+), ९५५५३(०) ९५७२६-१(+), ९५७७६-१(+), ९५८१४-१ (+), ९६००९ (+#5), ९६९५९-२(+), ९७०४४-१(०), ९७३४५ (+), ९८०४९-२(+), ९८३३९(३), ९८३७८-१(+), ९८५७३ (+), ९९१०६-१(mm), ९९८७१३७(+), ९९८८८-३(+#$), १००३१७(+$), १००४६३(+#$), १००५५१-१(+#$), १००८८५ (+#), ९७२७४-१, ९६३६८(#$), ९७३३२(MS), ९८२१७(MS), १००७९३-२(४६), ९८३१७(३), ९८६५१(३), ९९१११(३) (२) नवस्मरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., ( नमो नमस्कारोस्तु), ९९८७१-३७(+) (२) नवस्मरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (अरिहंतनई माहरो नमस्कार), ९५२०५ (+४), ९६००९ (+), ९६९५९-२(*), ९७०४४-१(०) ९६३६८ (३) नाडी परीक्षा, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., इतर, (सुप्ता च सरला दीर्घा), १००७०६-२ नाभेय स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. २५, पद्य, भूपू (नमिय जिणमुसभमुभयं ), ९६२३८-२ निरंजनाष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (स्थानं न मानं न च), ९५४४२-२९(०) निशीधसूत्र, प्रा. उ. २० नं. ८९५, गद्य, भूपू (जे भिखु हत्थकम्म), प्रतहीन. " ५०९ For Private and Personal Use Only (२) निशीथसूत्र - विशेषचूर्णि# ग. जिनदास महत्तर प्रा. सं., ग्रं. २८०००, वि. ८वी, गद्य, मूपु. ( नमिऊण अरहंताणं सिद्ध), प्रतहीन. (३) निशीथसूत्र- विशेषचूर्णि का पर्याय, सं., गद्य, मूपू., (निशीथचूर्णि प्रभृति), ९८०८८-९(+४) (२) निशीथसूत्र- २५ बोल, मा.गु., गद्य, भूपू (सूत्रवादी इम कहइ जे), ९६७५२-२(१) Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) निशीथसूत्र-अपवाद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (निशीथसूत्र महाउत्सूत), ९६७५२-१(+) (२) निशीथसूत्र-वचनिका, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवौ श्रुतदेव), ९५०४२(+#$) नीतिशतक, भर्तृहरि, सं., श्लो. १०९, पद्य, वै., इतर, (दिक्कालाद्यनवच्छिन्न), ९५३३२(+$), १००८५३-२(+#$) (२) नीतिशतक-टबार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, मपू., वै., इतर, (सर्वदर्शिनमानम्य), ९५३३२(+$) नेमिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा.१५, पद्य, मप., (मयनाह सरिस विलसिर देहपहा), ९६२३८-४ नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (मानेनानून मानेनानोन्), ९६११४-४(+) (२) नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र-व्याख्या, सं., गद्य, दि., (आनुमः स्तुमः के), ९६११४-४(+) नेमिजिन बोली-गिरनारतीर्थमंडन, अप., गा. ७, पद्य, मूपू., (ता धन धन सोरठ देस), ९८१३५-१६(+) नेमिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, स्पू., (श्रीनेमिः पंचरूपस्त्रिदश), ९५७७०-२(+#) न्यायदीपिका, आ. धर्मभूषण महाराज, सं., प्रका. ३, गद्य, दि., (श्रीवर्धमानमहँत), ९४९४८($) पंचतंत्र, विष्णु शर्मा, सं., गद्य, वै., इतर, (ब्रह्मा रुद्रः कुमार), प्रतहीन. (२) पंचाख्यान भाषा, संबद्ध, मु. गुणमेरुसूरि-शिष्य, मा.गु., अधि.५, चौपा. २०१५, ग्रं. २७००, वि. १६२६, पद्य, मूपू., वै., इतर, (श्रीअंबा श्रीसारदा), ९५८९१(#$) पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (श्रीशत्रुजयमुख्यतीर्थ), ९५५३४-३(+#), ९७२५२-२(+), ९५४४२-२३(#) पंचपरमेष्ठि बीजयंत्र साधना विधि, सं., प+ग., श्वे., (श्रीवामेयं जिन), ९८०८५ (+$) पंचपरमेष्ठी मंत्र संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (सिद्धेभ्यः कानिचित्), ९५६४३ पंचलिंगी प्रकरण, आ. जिनेश्वरसूरि , प्रा., अ. ४, गा. १०१, पद्य, मप., (उवसम संवेगो वि य निव), ९८०६५-२६(+$) पंचवर्गपरिहार नाममाला, आ. जिनभद्रसूरि, सं., श्लो. १३४, पद्य, मपू., इतर, (नत्वा पंचेषु पंचास्य), ९८०३९-२(+#) पंचविधिचैत्यस्वनामप्रतिपादना गाथा, प्रा., गद्य, मूपू., (अंगुलवग्गमूलं छन्नउइछेयण), ९५६०१-८(+#) पंचांगुलीदेवी कल्प, सं., गद्य, मूपू., (--), १००३२४-१(#$) पक्खि चउमासी संवत्सरी पडिक्कमण विधि, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (मूहपत्ति वंदिणयं), प्रतहीन. (२) पक्खि चउमासी संवत्सरी पडिक्कमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मप., (भगवान पाखितप प्रसाद), ९५२६७(+#) पच्चक्खाण आगार गाथा, प्रा., पद्य, पू., (नवकार १ पोरिसीए २), ९६९६७-२(5) पट्टावली, सं., गद्य, मपू., (प्रणिपत्य जगन्नाथं), ९५१६८(5) पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर), ९५५७७(+#) पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (गुब्बरग्रामवासी वसु), ९६२४४(+$), ९५८३३(१) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., श्लो. १५, वि. १८९२, पद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ९५४३०-१(4) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., श्लो. १४, पद्य, मप., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ९६२३०(+), ९४८६४($) पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागर गणि, प्रा., गा. २१, पद्य, मप., (सिरिमंतो सुहहेउ), ९४७९२(+#$) (२) पट्टावली तपागच्छीय-स्वोपज्ञ वत्ति, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, मप., (सिरिमंतोत्ति यत्तदो), ९४७९२(+#S) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य त्रिविधं), ९४९२०(+#) पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्धमानस्वामी), ९५४२१(+#S), ९८४२२(+$) पट्टावली-दिगंबर मूलसंघ, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (त्रैलोक्याधिपं नत्वा), ९६८६९(#$) पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., गा. २८, पद्य, स्पू., (पडिलेहणाविसेस), प्रतहीन. (२) पडिलेहण कुलक-हिस्सा गाथा १-५, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुत्तत्थदिट्ठी १), ९५५३८-५ पडिलेहणा कुलक, प्रा., गा. ३६, पद्य, मप., (भयवं दसन्नभद्दो सदसणो), ९८०६५-१३(+), ९८१३५-२६(+) पद्मावतीदेवी अष्टक, मु. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (चिदानंदसंपद्विलासैक), ९५८४५-५(+) पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ९८५८५-५(+) पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., गा. १०, पद्य, मपू., (ॐ ह्रीं कलिकुंडदंड), ९६०२२-२(+) For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ܬ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, म्पू, (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), १००१५० (+), १००८९१-२, ९६२५९-२ (क), ९९८२५-१(३) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाण), ९९२६४(+) पद्मावती मंत्रजाप विधि सहित, सं., प+ग. म्पू. (ॐ ह्रीं नमो भगवती). १००८९१-१ " "" पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, सं. शत. १०, श्लो. ११६, पद्य, मूपु., (प्रणम्य परया भक्त्या), ९६७२७ (७) परमाणुमान कुलक, प्रा., गा. २५, पद्य, म्पू, (पुढवाइ आसत्ता सव्वं), ९६६१६-२ (+) (२) परमाणुमान कुलक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (पृथ्वी १ पाणी २ ते ३ वाय), ९६६१६-२(+) परमात्म प्रकाश, मु. योगींद्रदेव, अप., गा. ३४५, वि. ६वी, पद्य, दि., (जे जाया झाणग्गियए), प्रतहीन.. , (२) परमात्मप्रकाश-पद्यानुवाद, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., ढा. ३५, गा. ७७० नं. ११२५, वि. १७४२, पद्य, मूपू. दि., (परम ज्योति प्रणमुं), ९६४९७(*) १००३२१ (+) परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. २५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (परमानंदसंपन्नं), ९५६४९-२(+) परिपाटीचतुर्दशक, उपा. विनयविजय, प्रा., गा. २७, वि. १८वी, पद्य, म्पू (नमिऊण वद्धमाणं), ९५४०० (+) (२) परिपाटी चतुर्दशक टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी), ९५४०० (+) परिस्थापनिका श्लोक सं., श्लो. २, गद्य म्पू, (क्वापि शक्रस्तव त्रितयं), ९८१३५-८(*) 1 3 पर्वताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, ग्रं. २४५, पद्य, मृपू., (नमिउण भणइ एवं भगवं), ९४७८९(*), ९५४०७(*), ९५६९०(+$), ९५६९९(+), ९५७४७ (+), ९५८०१ (+#), ९६३०३ (+#), ९७५४६ (+$), १००००७(+), १००३६२ (+#), ९४७१९ ($) (२) पर्यताराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु., (नमस्कार करिने) ९४७८९(+), ९५४०७(*), ९५६९० (+), ९५६९९(+), ९५७४७(+), ९५८०१ (+), ९६३०३(+) १००००७(+), १००३६२ (+) पर्वलेखपर्यायविधिभावसमर्थन विचार, सं., गद्य, मूपू., ( तिस्रः खलु विधेर्विधाः), ९६४७४-२(+) " पर्वविज्ञप्ति लेख, मु. नित्यविजय, सं., श्लो. ९५ वि. १७५२, पद्य, मूपू. (स्वस्तिश्रियो वा विविधा), ९६४७४-१(+) पल्योपम सागरोपम विचार संग्रहणीमध्ये, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., मूपू., (इहतावत्तत्रपल्योपम), ९५३४१-१(+) पल्योपम सामायिक फल, प्रा., सं., गा. ७, पद्य, मूपू., (शाश्वत् सामायकं कुर्यात्), ९६४२०-४(+#) पल्लीपतन विचार, मा.गु. सं., गद्य, वे. इतर (बार उघाड पडतां गिलोई), ९६३९९-४(**) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पांडव चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., स. १८, ग्रं. ८०००, पद्य, मूपू., (श्रियं विश्वत्रयत्रा), ९४८४० (# ), ९४७९४($) ', पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग. मूपू., (धर्मतः सकलमंगलावली), ९४७९५ (+३), ९५५७९ (+३), ९७६३०-१(+) पार्श्वजिन अष्टक, मु. सागरचंद्र, सं., श्लो. ११, पद्य, भूपू., (श्रीपार्श्वनाथ हृदये), ९५३७९-२(+) पार्श्वजिन चरित्र, सं., गद्य म्पू. (--), ९५९९६ (+#S) पार्श्वजिन-चिंतामणि मंत्र साधनाविधि, मा.गु. सं., गद्य, मृपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अह), ९८१८६-३(४) पार्श्वजिन बृहत्कल्पस्तोत्र, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (भुजगेंद्र निर्मितमहं ), ९८६४९-२ (+#$) पार्श्वजिन बोली, आ. जिनपद्मसूरि, अप, गा. ६, पद्य, मूपू (पढमधुरंधर पढमनाहु निरसाउ), ९८१३५-२० (+) पार्श्वजिन मंत्रराज कल्प-चिंतामणि, आ. धर्मघोषसूरि, सं., श्लो. ४७, पद्य, मूपू., ( किंचिद् गुरूणां वदन), ९६५२२-७ (+), ९८१८६-२ पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्व: पातु वो), ९५३७८-६(+#), ९६५२२-६ (+), ९८६४९-४(+#$), १९४७७-६(+३) पार्श्वजिन स्तव, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (लक्ष्मीनिदानं गुरु), प्रतहीन. (२) पार्श्वजिन स्तव अवचूरि, सं., गद्य, म्पू., ( अहं पार्थं नुवामि), ९५५३९-२(+) " ५११ पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., श्लो. ४१, वि. १८५७, पद्य, स्था., (महिम्नः पारं ते परम), ९४८७२ - १(+#), ९५३७९-१(+$) पार्श्वजिन मालामंत्र स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते पार्श्व), ९५३७८-११(+#$) पार्श्वजिनसहस्रनाम स्तोत्र, सं. लो. १५०, पद्य, मृपू. (पार्श्वः पातु नतांगि), ९५७२८(M) " ७ पार्श्वजिन स्तव - चिंतामणि, सं. सो. ११, पद्य, मृपू. (किं कर्पूरमयं सुधारस ), ९६५२२-११(*) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमलप्रभ, प्रा., गा. ७, पद्य, म्पू., " (जस्स फणिंद फणी होई), ९६५२२-१४(*) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्नकीर्ति, प्रा. गा. ७, पद्य, मूपू (नमिऊण पासनाहं विसहर), ९६५२२-१३ (*) For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (जय जय गोडीजी महाराज), ९६९५५-८(+) पार्श्वजिन स्तवन-घोघामंडन, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., श्लो. १६, पद्य, मप., (अंभोधिवीचिचयचंबितभ), ९७९६२-३(+$) पार्श्वजिन स्तव-शंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मपू., (सर्वदेवसेवितपदपा), ९९५२८-५५ पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., श्लो. २, पद्य, मप., (श्रीसेढीतटिनीतटे), ९७९२९-१२(+#), ९८१५६-२(+#) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (अमरगिरिशिरस्थस्फार), ९८४२३-९ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (दसावतारो भुवनैकमल्लो), ९७९२९-१३(+#) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १९, पद्य, मप., (देवपूजा दया दानं तीर्थ), ९५७३९-२($) (२) पार्श्वजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतनी पूजा करवी), ९५७३९-२($) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (हर्षनतासुरनिर्जरलोकं), ९५३१३-४५(+), ९८०९३-१३(+), १००८४९-५($) पार्श्वजिन स्तुति-अष्टविभक्तियुक्त, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (पार्श्वः पातु नतांग), ९९७१२-८(+) पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (नै दें कि धप), ९५३१३-४०(+), ९५८०२-२(+), ९६४०९-१५(+), ९७६६५-१५(+), ९७९२९-८(+#), ९८०९३-२३(+$), ९८१५६-७(+#), ९५४४२-१७(#) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (श्रीसर्वज्ञं ज्योतिरूपं), ९५३१३-३८(+), ९८१५६-८(+#), १००८४९-४ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), ९५३१३-४४(+), ९७९२९-६(+#), ९८०९३-२२(+), ९८१५६-९(+#), ९५४४२-९(2), १००८४९-१(६) पार्श्वजिन स्तति-शंखेश्वरतीर्थ, मु. कल्याणविजय-शिष्य, सं., श्लो. १, पद्य, मप., (श्रीशंखेश्वरतीर्थेश), ९९८७१-८(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १५, पद्य, मपू., (गुणमणिनिहिणो जस्सुवरि फणि), ९६२३८-५ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मपू., (श्यामो वर्ण विराजिते), ९६८८८-१ पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं तं नमह), ९५२८३-११(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मूपू., (नमु सारदा सार), ९५४९२-१० पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), ९५०५६(+), ९८१५६-१८(+#), ९९४७७-१(+) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि-अवचरि, उपा. भोजसागर, सं., गद्य, मप., (ॐ ह्रीं चिंतामणि प्रायं), ९५०५६(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. १०, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (दोसावहारदक्खो नालिया), ___ ९५३१३-३१(+), ९७०४५-३(+), ९७५१३-८(+#$), ९८०६२-४(+#), ९८११२-५(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), ९५८१४-५(+), ९८३९०-३(+), ९८७१८-२(+#), ९९७१२-१०(+), १००६६०-६(+), ९७२७४-२ पार्श्वजिन स्तोत्र-शृंखला वृद्धिकाव्य, सं., श्लो. ७, पद्य, मूप., (सुरनरासुर नायक पूजित), ९९४७७-२(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-स्तंभनतीर्थ, आ. तरुणप्रभसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मपू., (श्रीस्तंभनस्तंभनपार्श्व), ९६५२२-१२(+) पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, म्पू., वै., इतर, (महादेवं नमस्कृत्य), ९४९२७(+), ९५७२५(+), ९६७५१(+#), ९७५३२(+#), ९७६५३(+#), ९८१९०(+$), ९८२८२(+$), १००५८८(+), १००६६७-१(+), १००९४०-१(+), ९६८५७, ९७२६६, ९९६२९, ९६४४९(2), १०००३८() (२) पाशाकेवली-पाशा ढालन विधि, संबद्ध, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., वै., इतर, (ॐ नमो भगवती कुष्मांड), ९८२८२(+s), ९७२११-२ (२) पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (१११ उत्तम थानक लाभ), ९४९८०(+), ९६१३९(+), ९६१४६(+), ९६३८०(+#$), ९७६२२(+), ९७९७५-२(+#$), १००३१३(+#$), ९७२११-१, ९९५९३, १००११७, १००६२१, ९६०११(२), ९९५९१(१), १००१११(#$), १००८२०(#$), ९६१३५(s), १००४१३($) पिंडविशद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, मप., (देविंदविंदवंदिय पयार), ९६३६४(+#), ९८९९२-२(+) (२) पिंडविशुद्धि प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (देवि० शोभनं विहित), ९६३६४(+#) पिपीलिका विचार गाथा संग्रह, प्रा., गा. ९, पद्य, भूपू., (घयतिल्लनेह कुंकुम), ९५४५७-३(+) For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा. गा. १६. वि. १५वी, पद्य, मूपू., (छत्तीसदिवस सहस्सा), ९५८०३-९(+) पुद्गलपरावर्तद्रव्यस्वरूप विचार, सं., गद्य, मूपू., (जीवोनंतकालमेकेंद्रिये), ९७५१७ -२(+#) पुराणहुंडी, मा.गु. सं., श्लो. २७८, पद्य, वे, वै. (श्रूयतां धर्म्म), ९४९५० (३) " पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा. अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते समणेणं०), ९५५४५-३(+०), ९६९९७-४(+४) (२) पुष्पचूलिकासूत्र टवार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू (श्रीवीतरागदेवने नमस), ९५५४५-शक्क ', पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा. द्वा. २० गा. ५०५, वि. १२वी, पद्य, भूपू (सिद्धं कम्ममविगह), ९५७६३(+१७) पुष्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, भूपू (जति णं भंते समणेनं०) १५५४५-२ (+३), ९६९९७-३ (+४) (२) पुष्पिकासूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जी हे पूज्य०), ९५५४५-२(+०७) पूर्वाह्निक स्वाध्याय, प्रा. मा.गु., प+ग, जै.? (शुद्धज्ञान प्रकाशाय लोका), ९८०२९-२(+#६) पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, मूपू (प्रणम्य पार्श्वनाथ), ९५०१७) (२) पौषदशमीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (नमस्कार करीने पार्श्वनाथ), ९५०१७(7) प्रकृतिविच्छेद प्रकरण, आ. जयतिलकसूरि, सं., श्लो. १३९, पद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा), १००२८९-१(+) प्रकृतिस्वरूपसंरूपण प्रकरण, आ. जयतिलकसूरि, सं., श्लो. १८१, पद्य, स्था. (देवभद्रं सकल्याणं), १००२८९-३(+) प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य प्रा. पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मूपू, नमो अरिहंताणं० ववगव) ९४८८१(३), " " ९५३१८(०३), ९५४३३*) (२) प्रज्ञापनासूत्र- पर्याय, सं., गद्य, भूपू (प्रज्ञापना इष्टदशपदेशतो), ९८०८८-८*) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९५३१८(+#$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-२३ पदवी विचार, संबद्ध, मा. गु, गद्य, म्पू, (तीर्थंकर चक्रवर्ति) ९८२६८-१ (०४) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) प्रज्ञापनासूत्रबोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू, (मनुक्षलोक मध्ये), ९६२४९ (+४) (२) प्रज्ञापनासूत्र-संमूर्च्छिमनुष्योत्पत्ति १४ स्थान आलापक, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (कहिणं भंते समुच्छिम ), १००४१७-२(+) प्रज्ञाप्रकाशषत्रिशिका, मु. रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे. (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन), ९५०७० (+), ९६४३५-१(+) , יי (२) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रज्ञा क० बुद्धि), ९५०७० (+) (२) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (बुद्धि प्रकाशने अर्थ), ९६४३५-१ •०६) प्रत्याख्यान भाष्य, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. ४८, पद्य, मृपू., (दस पच्चक्खाण चउविहि), प्रतहीन. (२) प्रत्याख्यान भाष्य-अवचूर्णि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (दस० दश प्रत्याख्याना), १००३०२(+) प्रत्याख्यान भेद, प्रा., गा. १, पद्य, म्पू, (दुबिहारि असणं खाइमं ए). ९८०६५-१७(+) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं. परि. ८, वि. १९५२-१२२६, प+ग. म्पू, ( रागद्वेषविजेतारं ज्ञातारं ), ९७०९४ (+) प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., द्वा. २७६, गा. १५९९, ग्रं. २०००, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण जुगाइजिणं), ९५३०६ (०३), ९५६६८(४) (२) प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., ग्रं. १८०००, वि. १२४२, गद्य, मूपू., (सन्नद्धैरपि यत्तमोभि), ९५३०६ (०४) (२) प्रवचनसारोद्धार-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (-), ९५६६८ (६) " (२) प्रवचनसारोद्धार - हिस्सा १७० जिन २० विहरमानजिन कालस्थितिविचार गाथा, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा. गा. १. वि. १२वी, पद्म, मूपू (सत्तरिसय १७० कोर्स जहन्नउ), १००६५४-३(०) (३) प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा १७० जिन २० विहरमानजिन कालस्थितिविचार गाथा का अर्थ, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., वि. १७९६, गद्य, म्पू, (उत्कृष्ट कालई), २००६५४-३(७) ५१३ . (२) प्रवचनसारोद्धार - हिस्सा १७० जिन उत्कृष्टमध्यमजघन्य कालस्थिति विचार गाथा, आ. नेमिचंद्रसूरि प्रा. गा. २, वि. १२वी, पद्य म्पू. (उक्कि जहन्नेहि संखा), १००६५४-२शक (३) प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा १७० जिन उत्कृष्टमध्यमजघन्य कालस्थिति विचार गाथा का बालावबोध, आ. भावप्रभसूर मा.गु., वि. १७९६, गद्य, मूपू., (उत्कृष्टइ पदई एक कालइं), १००६५४-२ (#) For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (संसार विसमसायर भवजल), ९५३१३-१३(+), ९५७९९-२(+#), ९७५१३-२(+#), ९७९२९-११(+#), ९८१५६-१७(+#) (२) प्रव्रज्या कुलक-टीका, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरस्य पदांभोज), ९५७९९-२(+#), १००२६४(+#$) प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५०, ग्रं. १३००, प+ग., मूपू., (जंबू अपरिग्गहो संवुड), ९५९४३(+), ९६४९४(+#$) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., अ. १०, ग्रं. ५६३०, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ९५९४३(+) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-पर्याय, सं., गद्य, मपू., (यथा सूत्रं व्यवस्थाप्यमतो), ९८०८८-६(+) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे जंबू एह प्रत्यक्ष), ९६४९४(+#$) प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मप., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ९७५१७-१५(+#) (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-कल्पलतिका वृत्ति, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ७३२६, वि. १४२९, गद्य, मूपू., (श्रीनाभिभूर्जिनवरः), ९५९५२(+$) प्रश्नोत्तररत्नाकर, गच्छा. सेनसूरि ; मु. शुभविजय, सं., उल्ला. ४ प्रश्न १०१४, गद्य, मपू., (प्रणिपत्य परं ज्योति), ९४७४५(#$) प्रश्नोत्तर संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (तारा सातसेनेउ जोजने), ९४७५९(+), ९६७६२(+$), ९६६२४ प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., प्रश्न. १५१, वि. १८५१, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं नत्वा), प्रतहीन. (२) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., प्रश्न. १५१, वि. १८५३, गद्य, मप., (पहिलै बोलै तीर्थंकर), ९४७२२(#$) प्रहेलिका श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, इतर, (जीव चोरासी लख तु), ९८२८३-१४(#) प्रासुकजल विचार, प्रा.,सं., प+ग., श्वे., (सीयर फासुय चउहादब्वे), ९५६०१-९(+#$) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., वै., (--), ९६४५०(5) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २८, पद्य, मपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), ९४८७०-२(+), ९६३२२-३(+$), ९५४९१(-६) प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ३७३, पद्य, श्वे., वै., (भमरा भमत नभ जिइ निगुणन), ९६२७२(+#$) प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., वै., (संताप्यो सज्जन घणु भंडू), ९९७०६(+#$) प्रास्ताविक श्लोक, सं.,मा.गु., गा. ३४, पद्य, इतर, (काह की हीर हरक्कन), ९६४२०-१(#) प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मप., (चलंति तारा विचलंति), ९८२८३-१६(#) प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., इतर, (देयं भोजधनं धनं), ९६४२०-३(+#) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, सं., पद्य, वै., इतर, (अधरस्यमधुरमाणं), ९६२०१-२(+$) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ११०, पद्य, श्वे., इतर, (कोटं च बूटं च पतलून), ९८०२०(+$) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., गा. ३६, पद्य, श्वे., (जिवदया जिण धमो सावय), १०००९६-५(+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ५७, पद्य, जै., इतर?, (दाता दरीद्री कृपणो), ९६३९९-६(+#$) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ६१, पद्य, मूपू., (धर्माज्जन्मकुले शरीर), ९७०२४-२(+), ९७२१५-५(+#), १००३०३-२(#), ९४८८५() बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २५, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (बंधविहाणविमुक्कं), ९५०६२(+#), ९५३११-३(+), ९५५२०-३(+), ९५६७०-१(+#$), ९५७०१-३(+), ९६०४४-२(+), ९६९६०-३(+), ९५१०८-३, ९५५३५-३, ९४९८२-३(#) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.ग., गद्य, मप., (बंध सामित्त विचार), ९९६६५-१(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (कर्म बंधना प्रकारथी), ९५०६२(+#), ९५३११-३(+), ९५५२०-३(+), ९६०४४-२(+), ९५५३५-३, ९४९८२-३(#) बंधस्वामित्व प्रकरण, आ. जयतिलकसूरि, सं., श्लो. ४७, पद्य, मूपू., (अबंधस्वामिनं देवं प्रणम्य), १००२८९-४(+) बंधहेतूदयत्रिभंगी प्रकरण, मु. हर्षकुल, प्रा., गा. ६५, पद्य, मूपू., (बंधण हेउ विमुक्कं), ९७४३३(+) (२) बंधहेतूदयत्रिभंगी प्रकरण-टीका, ग. विजयविमल, सं., वि. १६०२, गद्य, मप., (जयति जगत्त्रयनाथः), ९७४३३(+) For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ "" वप्यभट्टिसूरि चरित्र, आ. राजशेखरसूरि सं श्लो. ७९, ग्रं. ६०० वि. १५वी प+ग, मूपू (गुर्जरदेशे पाटलिपुरे) ९५८३४(+) बलभद्र कथानक, सं., श्लो. २६१, पद्य, मूपू., (अस्त्यत्र भरते स्वर्णमयी), ९८३८८(+) बालात्रिपुरा स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (देवि त्वं आदिशक्तिस), ९५४९२-७ बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमंडणं पुन्नसोवन्न), ९५३१३-४३ (+), ९५८०२-९ (+), ९७९२९-३ (+#), ९८०९३-१४(+), ९८१५६-३(०) ९५४४२-२०१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बृहच्छांति मेघदूतयोः पादपूर्ति:, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भो भो भव्याः श्रृणुत), ९५७४५-२(#) बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. ६ नं. ४७३, गद्य, म्पू. (नो कप्पड़ निगंधाण), ९५५१००) बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा. अधि. ५, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मूपू.. (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), ९७००८-४(*६, ९८०५७ (+25) (२) बृहत्क्षेत्रसमास-चयनित पाठ, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अ. ५, गा. ८८, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजल जलहर), ९५४९६ (+४) (३) वृहत्क्षेत्रसमास- चयनित पाठ का टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू. (नमीने जे भगवंत सजल), ९५४९६ (+) (२) बृहत् क्षेत्रसमास जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १४२ पद्य म्पू (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), ९६६२८(+), ९५५०९ (३) जंबूद्वीप प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमीनइ जलसहित मेघ), ९६६२८ (+), ९५५०९ ($) (३) बृहत्क्षेत्रसमास - जंबूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहेतां नमस्कार), ९७००८-४(+) वृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा. गा. ३८७, वि. १३७३, पद्य, भूपू (सिरिनिलयं केवलिणं), ९५६८८(२३) (२) वृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वीरजिनवरेंद्रं सर्वे), ९५६८८ (MS) " वृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग, मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ९६६६५-२(*), ९७७४३ (+०६), ९८६८०-३(०४), ९८७१३-३(+), ९८७१८-३(+#S), १००३०१-२(+), १००८४८-१(+#$), १००८६० - १ (+), १००१४५, ९८३६४(#), ९८६८६.१(२७) 1 ५१५ (२) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भो भो भव्य जीवो), १००३०१-२(+) " बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा. गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिह), ९४६६२ (+), ९५११६ (+४), ९५१३५ (+९), ९५३०९(+), ९५४२४(+), ९५५३० (+३), ९५६५३(+), ९५६५९(+), ९५७८५ (+#), ९५८७१(+), ९५९२३ (+), ९५९५९(१३), ९५९९९(+$), ९७०४५-४ (+), ९७२९२ ( +$), ९७३४१(+#$), ९७४८१-१(+#), ९७५२७ (+#$), ९७५३० (+#), ९८०३७ (+$), ९८०६२-१३(+४), ९८०६३ (+), ९८१०२(+), ९८११०-२(+), ९८१९७(+४), ९८३२९(+), ९८३७१(+#६), ९८४४७(*), ९८४६७(+#७), १००३६४(+३), ९७५२४(३) ९९३८२(३) १०००४७(#), १००२६६-२(७), ९५६१९(३), ९७४५२शा (२) बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., ग्रं. ३५००, गद्य, मूपू., (अत्यद्भुतं योगिभिरप्यगम्य), ९७०४६(+) (२) बृहत्संग्रहणी अवचूरि. सं., गद्य, भूपू (नत्वा प्रणम्य). १६३५९(+३) १००३६४(३) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. हेमचंद्रशूरि मलधारि शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथफलर्द्धिका), ९५३०९(+) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नत्वा अरिहंतादी), ९५५३० (+$), ९८०३७(+$) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंता), ९५११६ (+), ९५५३० (+), ९५८७१(+#$), ९५९२३(+#$), ९५९५९(+$), ९८१०२(+), ९८३२९ (+), ९७५२४(#$) बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा. गा. ३५३, वि. ७यू, पद्य, म्पू, (निविय अड्डुकम्म), ९५१७० (+) बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (ॐ बृहस्पतिः सुरा), ९५८१४-६ (+) बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (जीवाय १ लेसा ८ पखीय २), ९५००१-४ (+), ९५३४१-३ (+), ९५७५५ (+$), ९८१९२-५(+), ९६४५७-१३ बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, वे., (हिवै शिष्य पूछे हे भगवन्), ९५०४३ (+), ९७५१७-४/*#), ९७६६२-४(+), ९४८९०(३) " बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, श्वे., (सर्वथी थोडा चरित), ९५३६४ (+#), ९७३३१(+), ९७५१९+७) For Private and Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती विवरण, पुहिं.,प्रा.,रा., गद्य, मूपू., (ब्रह्मदत्त), ९४९४४-११(+#), ९७५१७-३(+#) भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूप., (भक्तामरप्रणतमौलि), ९४६८१(+), ९४७०५(+$), ९४७५१(+), ९५०२२-१(+), ९५१६६(+$), ९५३१३-२१(+), ९५४२६(+#), ९५४९५-१(+), ९५५४३-१(+$), ९५६७३-१(+), ९५७५१-४(+#$), ९६१२५(+#$), ९६२२७-१(+), ९६२७६-१(#$), ९६२९७(+$), ९६३८३-१(+), ९७३९९-१(+), ९७४८४(+), ९७५४०-३(+#$), ९७६६४(+), ९७९२९-१५(+#), ९८०६२-६(+#), ९८१५६-१५(+#), ९८५७६-१(+$), ९८६४८-१(+-#$), ९८६८०-२(+), ९८७१३-१(+$), ९९००९-१(+#$), ९९८३४(+#), १०००८५(+),१००१४३(+), १००३७१(+#$),१००७११(+#), १००९०१-१(+#), ९४९९५-१, ९५४१६, ९६३७०, ९६८९९, ९५१३९-१(२), ९५७२४(#), ९५७४५-१(#$), ९९४०७(#$), १०००९८(१), १०००७९(5) (२) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., ग्रं. १५७२, वि. १४२६, गद्य, मपू., (पूजाज्ञानवचोपायापगमा), ९४७०५(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, उपा. रत्नचंद्र, सं., ग्रं. ४८१, गद्य, मप., (प्रणतसुरासुरनरवर), ९८४१८(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., वि. १६८३, गद्य, मप., (नत्वा वृषोपदेष्टारं वृषभं), ९५६७३-१(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मपू., (भव्यवाताब्जराजीविक), १०००८५(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, मु. साधुकीर्ति, सं., गद्य, मूपू., (सर्वत्र काव्येषु वसंततिलक), ९४९९५-१ (२) भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (किल इति सत्ये अहमपि), ९८२०६(+#$), ९५७४५-१(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.ग., वि. १५२७, गद्य, मप., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ९५४६६-१(+), ९६३९८(+), ९६३७०, ९५७२४(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (किल इति सत्ये), ९५५०२(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध+ कथा, मा.ग., गद्य, मप., (--), ९६१२५ (+#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-वार्तिकबालावबोध, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ९४७५१(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., वि. १७१०, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीगुरोः पादान्), ९५४२६(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मु. रूपचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिनपादयुगं प्रणम्य), ९५४९५-१(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (भक्तिवंत जे देवता), ९४६८१(+), ९५५४३-१(+s), ९७४८४(+$), ९९००९-१(+#$), ९५४१६ (२) भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. देवविजय, पुहिं., गा. ४४, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (भक्त अमरगण प्रणत मुकुटमणि), ९४७७९(+#), ९४८७४(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-भावार्थ, मा.गु., गद्य, मप्., (भक्तिवाळा देवोना), ९६२९७(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., दि., (गंभीरताररविपुरि), ९९००९-२(+#) (२) भक्तामरमंत्र श्लोक, संबद्ध, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (ऋष हाटक कोटिभूर्जूटा), ९८८४२-२(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूप., (ॐ नमो वृषभनाथाय), ९६२९७(+$) भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, मपू., (नमो अरहंताणं० सव्व), ९४७९३(+$), ९५२९३(+$), ९५६१५(+$), ९६१२०(5), ९६६३५(६), ९८२४९() । (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि ,सं., शत. ४१, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंत), ९४८०३-१(+) (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (लोगस्सेगपएसे जहणयपय), ९५०७१(+) (४) निगोदषट्त्रिंशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (इम लोकाकाश प्रदेशनें), ९५०७१(+) (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. १०६, वि. ११२८, पद्य, स्पू., (पन्नवण वेय रागे कप्प), ९६३६०(+) (४) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण का बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीमहावीरदेव नमीनइ), ९६३६०(+) (२) भगवतीसूत्र-अवचूरि, सं., ग्रं. ३११८, गद्य, मप., (अथ समस्तप्रत्यवभासनस), ९८२४९(5) For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ (२) भगवतीसूत्र- पर्याय, सं., गद्य, म्पू, (तिरियाणं चारितं इत्यादि), ९८०८८-५ (ण (२) भगवतीसूत्र- टबार्ध, मु. सत्यसागर, मा.गु. ग्रं. १५७७५, गद्य, मूपू (सुखसंततिवृद्ध्यर्थ), ९६१२०(३) " (२) भगवतीसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते कालनइ विषइ ते), ९५२९३ (+$), ९५६१५ (+$), ९६६३५ ($) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२५ उद्देश- ६गत नियंडा-संजया आलापकगाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गा. ३, पद्य, मूपू., (पनवणा १ वेय २ रागे ३), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-नियंडा - संजया आलापक- बोल, मा.गु.. गद्य, मूपू., (हिवै पनवणा द्वार), ९५४०३ (+) (२) भगवती सूत्र - हिस्सा शतक-७ उद्देश-२ पच्चक्खाण गाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गा. १, पद्य, म्पू., (अणागयमइक्कंते), प्रतहीन. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-७ उद्देश-२ पच्चक्खाण गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनागत पचक्खाण ते जे), ९६३२३.२(*) (२) भगवतीसूत्र-गम्माशतक यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकी सर्व सघात ऊपना), ९४६९३(+) (२) भगवतीसूत्र प्रश्नोत्तर संग्रह, संबद्ध, मा.गु., पद्य, मूपू. (पहेली नरके ३० लाख नर), ९८५६८(+) (२) भगवती सूत्र बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू. (एक मासनी दिक्षा सुभ), ९६३५६ (+) " (२) भगवतीसूत्र शतक २४-संबद्ध दंडक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात नारिकीयानो दंडक ), १००७३५ (+) (२) भगवतीसूत्र-शतक २५ उद्देश ६गत संजया विचार, संबद्ध, मा.गु., द्वा. ३६, गद्य, मूपू., (पन्नवणा १ वेयरागे), ९५७४२ (+) (२) भगवतीसूत्र- शतक ८ उद्देशक ९ संबद्ध, प्रा. गद्य, मूपू (कम्मसरीरपयोग बंधेणं), ९७७९५ (+) (३) भगवतीसूत्र- शतक ८ उद्देशक ९-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. ( करमा का सरीरी विचारणा क०), ९७७९५ (+#S) भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरत्न, सं., वि. १५वी, गद्य भूपू (देवदेवं नमस्कृत्य), ९५७०७ (+#), ९७४४८(#) भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा. गा. ५३१, पद्य, मूपू (नमिऊण नमिरसुरवर मणि), ९४७७२ (+), ९८३०३ . (२) भवभावना चयनित गाथासंग्रह, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा. पद्य, मूपू (तह रज्जतह विहवो तह रंगचल), ९८३३० (३) " (३) भवभावना चयनित गाथासंग्रह की कथा, सं., गद्य, म्पू., (कीसंख्यां चंद्रसेनो राजा), ९८३३०(5) भव्याभव्य लक्षण विचार, सं., गद्य, मूपू., (भव्यस्वाभव्यत्वलक्षणमेव) ९७५१७-२८ (+) भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ३०, वि. १६२३, पद्य, मूपू., ( आणंदभरिय नयणो आणंद), ९५८०३-२(+#) भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., भाष्य. ३, वि. १४वी प+ग, मूपू. ( वंदित्तु वंदणिज्जे), ९४६७७ (*), ९४६९४(२) ९५३४७-१(०), ९६४३७*), ९७४३२(*), ९८३२७ (३) १०००४८ (4) (२) भाष्यत्रय - अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वंदि० वंदनीयान् सर्व), ९७४३२ (+) (२) भाष्यत्रय वालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. ग्रं. ३५०, वि. १७५८, गद्य, मृपू. (ऐंद्रश्रेणिनुतं), ९५३४७- १) (२) भाष्यत्रय-टबार्थ, मु. मेरुधीर, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्तु क० वांदीने वांदव), ९४६७७(+) (२) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्तु क० वांदीने), ९४६९४(+) भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि सं., श्लो. १७० वि. १३पू, पद्य, मूपू इतर (सारस्वतं नमस्कृत्य), ९५१०२ (७), ९५३८८-१(+), ९६०५८(+), ९६४४१(+), ९७४५० (+), ९९०४९-१(+), २००९९५ (+), १००५७६ (०), ९७५४१, १९९९६५ (३) (२) भुवनदीपक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., इतर (सरस्वती संबंधीओ मह), ९५३८८-१(+), ९६४४१(३) १००१९५(१४) , भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., प्र. १८००, गद्य, मूपू., (अस्तीह जंबूद्वीपे ), ९५२४३ (+) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु., सं., प+ग., मूपू., (ॐ ह्रीँश्री अर्हंत), ९५७३०-५ (+#), ९८०७१-७ (+), १००४९५-३(#) नमः आदि सुदिन), ९७२३७-२४(+) Ng " मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ., पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पग, वै., इतर (श्री ॐ मंत्र संग्रह, मा.गु. सं., गद्य, जे. वै., बी., इतर (ॐ नमः काली नै ९४९५७ (+९१) ९५६२५-२(१), १०००८९-७(+) मणिविजय गुरूनिर्वाण वर्णन, पं. गुलाबविजय, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्यानंतविज्ञानं ), ९५२६२(*) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा.मा.गु. सं., श्लो. ११, पद्य, ओ., (चुल्लग पासग धन्ने), ९५४३३ (५) (२) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत काव्य-कथा, मा.गु., गद्य, श्वे. (कपिलपुरनगरे ब्रह्मदत), ९५४३३(०) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे. (चूलग पासग धन्ने जूए), ९८३१३-३ For Private and Personal Use Only ५१७ Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम चूलक भोजन खीर), ९८३१३-३ महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्य. ६ चूलिका २, ग्रं. ४५४४, गद्य, मूपू., (ॐ नमो तित्थस्स ॐ), ९५९०८(+) महावीरजिन २७ भव विचार, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (प्रथम भवि पश्चिम माह), ९५३७४(+) महावीरजिन कलश, मु. नन्निग ऋषि, प्रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (जम्ममज्जणि जिणह), ९८१३५-१३(+) महावीरजिन कलश, आ. मंगलसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. १८, पद्य, मप., (श्रेयः पल्लवयतु वः), ९५४७६-३(+#) (२) महावीरजिन कलश-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीआदिनाथनों जन्माभिषेक), ९५४७६-३(+#) महावीरजिन कलश, प्रा., गा. २९, पद्य, मपू., (पणमेवि तिजयनाहं सिद्धत्थ), ९८१३५-१५(+) महावीरजिन चरित्र, अप., पद्य, मूपू., (भवसिरि भत्तार हो निज्जिय), ९५५९०(5) महावीरजिन जन्मपत्रिका, सं., गद्य, मपू., इतर, (गतकलि संवत युग २६९), ९५३८८-२(+) महावीरजिनदेशना भावांश, मा.ग.,सं., गद्य, मप., (अनित्यानि शरीराणि), ९६५९२-७(+#) महावीरजिन पारणा स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (यत्पारणासु प्रथमासु), ९८०९३-६(+) महावीरजिनमहिम्न स्तोत्र, सं., पद्य, मूपू., (शिवः शक्त्यायुक्तो नधिगत), ९४९२८(+5) (२) महावीरजिनमहिम्न स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (शिव हेतुत्वात् पराक्रमेण), ९४९२८(+$) महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. २२, पद्य, मूपु., (जइज्जा समणे भगवं), ९५३१३-२८(+), ९५५३४-७(+#) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ३०, पद्य, मपू., (भावारिवारणनिवारणदारु), ९५३१३-२३(+), ९५५५६(+), ९७५१३-१५(+#), ९८०६२-८(+#), ९८१३५-३४(+$) (२) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-बालावबोध, वा. महिमासिंह, मा.गु., वि. १६८१, गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वजिनं नत्वा), ९५५५६(+) महावीरजिन स्तुति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरः सर्वसुरासुरेंद), ९९७१२-९(+) महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूल), १००६०६ महावीरजिन स्तुति, प्रा.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (परसमयतिमिरतरणिं भव), ९७९२९-२(+#s), ९८०९३-२(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यदंह्रिनमनादेव देहिन), ९५३१३-५२(+), ९५८०२-११(+), ९८०९३-११(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरं देवं नित्यं), ९५३१३-४८(+), ९६४०९-९(+), ९९८७१-११(+), ९६१०९-२७(#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सुचंडमाडंवर पंचबाण), ९८०९३-१६(+) महावीरनिर्वाण पश्चात् ऐतिहासिक घटनाचक्र कालमान, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (श्रीपार्श्व० वीरनि०), ९५२६०-१(+) महावीरविज्ञप्तिद्वात्रिंशिका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., श्लो. ३२, वि. १६१९, पद्य, मूप., (श्रीमत्स्वर्गिजनार्च), १००३६३(+$) महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., गा. १८०९, ग्रं. २५००, पद्य, मूपू., (नमिऊण रिसहनाहं केवल), ९४८२७(+), ९५४१२(+$) (२) महीपालराजा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी श्रीऋषभनाथने), ९४८२७(+) मांगलिक काव्य, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (ॐकार बिंदसंयुक्तं), ९९७१२-२(+) मांगलिक गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मपू., (दीवोविनाणु मरउ महउ), ९८१३५-१२(+) मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू., (ॐकार बिंदु संयुक्तं), ९५३१३-६(+) मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (कृतापराधेपिजने कृपा), ९९७१२-४(+), ९८६९९-२(#) मांगल्योपदेश, सं., प+ग., मूपू., (दिने दिने मंजुल मंगल), ९५७९२(+$) मार्जारी दोषनिवारण विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (देवसीराई पाखी चउमासी), ९६५६०-२(+) मिथ्यात्वमथन प्रकरण, प्रा., गा. २६, पद्य, मपू., (न गुले मणिए गुलियं), प्रतहीन. (२) मिथ्यात्वमथन प्रकरण-दानविधि, संबद्ध, प्रा., गा. २५, पद्य, मपू., (धम्मोवग्गह दाणं दिज), ९८०६५-१४(+), ९८१३५-२३(+) मुखवस्त्रिका विचार, प्रा., गद्य, मपू., (चउरंगुल पइट्ठाणा अटुंगुल), ९८०६५-७(+) मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ६४६, ग्रं. ६४४, वि. ११७२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं चउ), ९५७६४(+#) मुहूर्तचिंतामणि, राम दैवज्ञ, सं., अ. १३प्रकरण, ग्रं. १००५०, वि. १६५७, पद्य, वै., इतर, (गौरीश्रवः केतकपत्रभं), प्रतहीन. (२) मुहूर्तचिंतामणि-हिस्सा संस्कार प्रकरण, राम दैवज्ञ, सं., वि. १६५७, पद्य, वै., इतर, (--), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ " (३) मुहूर्तचिंतामणि - हिस्सा संस्कार प्रकरण का वालावबोध, मा.गु., गद्य, वै., इतर (विनाइक जुवारा तोरण करिवा), ९६९८७-२(*) त्रयोदशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू (प्रणम्य भारती), ९५४७० (+) त्रयोदशीपर्व व्याख्यान, मु. क्षमाकल्याण, सं. ग्रं. १६५, वि. १८६०, गद्य, मूपू. (मारुदेवं जिनं नत्वा), ९६३९३ (+), ९६४३९(२०), ९५०१२, ९५०१९, ९५९८३(२) १५०२७(३) זי (२) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), ९५०२० मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर सं., श्लो. २०१, वि. १६५७, पद्य, मूपू (प्रणम्य ऋषभदेव), ९४८७५ (+5), ९५९९८(+5) मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), ९५०५१-१ (+), ९५१४० मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, भूपू (श्रीवीरं नत्वा गौतमः), १००३२३(+) (#$) " मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा. गा. १५७, पद्य, मूपू (सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ), १५०९२-२ (ङ) (२) मौनएकादशीपर्व कथा बालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू. ( श्रीमहावीरदेवने), ९५२६६-४ मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., को., मूपू., (जंबूद्वीपे भरते क्षेत्रे), ९७२२८(+) मौनएकादशीपर्व व्याख्यान - सुव्रतश्रेष्ठिकथायां, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमिऊण), ९७२८३(+) मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन), ९५३१३-५३(+), ९८०१३-१० (+), १००८४९-२ यशोधर चरित्र, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३९, गद्य, मूपू., (सकलसुरनरेंद्रश्रेणि), ९५८८७ (*) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यशोधर चरित्र, आ. माणिक्यदेवसूरि, सं. स. १४, श्लो. १०४४, पद्य, मूपू. (करामलकवद्विश्वं), ९७४१४(*) " युगप्रधान साधुसाध्वी राजा आवकश्राविका संख्या गाधा, प्रा.मा.गु. गा. १० प+ग, भूपू (जुगपहाण समणा एकारस). 1 ९५००१-३ (+) योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. अ. ७. वि. १७वी, पद्य, मूपू. इतर ( यत्र वित्रासमायांति), ९५९२० (+३) ९६५९१२ (०३), ९७०८१(०), १००२९५ (+) (२) योगचिंतामणि खालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, इतर ( प्रथम स्त्री योग्य), ९६५१२ (+), १००२९५ (+#5) " י: ५१९ (२) योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (जबइ वित्रासनइ), ९७०८१(+) (२) योगचिंतामणि-चौपाई, संबद्ध, मा.गु., पद्य, मूपू., इतर, (अजीरण२ आहार२ पित३), ९६७१२ (+#$) 2 , योगनिधान, श्राव. हरिपाल प्रा. अ. ८ गा. १०८ वि. १३४१, पद्य . इतर (णमिऊण वीयरायं जोयविस), ९५४५७-२(+) योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., ( नमो दुर्वाररागादि), ९५३६५ (+), ९६२७६-२(+#$), ९६३८१(+#), ९७४१०(+), ९७४८८(+#), ९५४८७ (#$), ९६१४०(#$), ९६७०९(# ), ९९१०२-११(#$) (२) योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, म्पू, (अत्र महावीरायेति), ९७४१ ला (२) योगशास्त्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (दुवरिण अत्र महावीराय), ९६२४०(#$) (२) योगशास्त्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९५४८७(#$) (२) योगशास्त्र - हिस्सा प्रकाश १ से ४ आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, मूपू ( नमो दुर्वाररागादि), ९५९५३), " , ९८०३३ (+$), ९५३४० (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ की अवचूरि, सं., प्रका. ४, गद्य, मूपू., (नमस्कारोस्तु कचिनराग), ९६३६६(+) (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., प्रका. ४, गद्य, मूपू., (प्रणम्य जिनसिद्धादीन्), ९८०३३(+$) (२) योगशास्त्र सुभाषितानि संबद्ध से, श्लो. ८६८, पद्य, भूपू (--), ९४७२० (३) योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपु., (श्री आवश्यक सुअक्खंधो), ९४७८१ (+), ९५२४७ (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, मा.गु., प्रका. ४, गद्य, म्पू., (श्रीमहावीरदेव भक्ति), ९५९५३(+) (३) योगशास्त्र-हिस्सा १ से ४ प्रकाश का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हउ दुरावई), ९५३४० (२) योगशास्त्र- लघु योगशास्त्र, संक्षेप, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. १२, श्लो. १८५, पद्य, म्पू, नमो दुर्वाररागादि), ९८९९२-३ (+३) For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ रघुवंश, क. कालिदास, सं., स. १९, पद्य, वै., इतर, (वागर्थाविव संपृक्तौ), प्रतहीन. (२) रघवंश-टीका, मु. धर्ममेरु, सं., स. १९, वि. १७४८, गद्य, मप., वै., इतर, (वागर्थेति कवीनां), ९६४२४(+#$) (२) रघवंश-विशेषार्थबोधिका वत्ति, पं. गुणविनय गणि, सं., स. १९, वि. १६४६, गद्य, मप., वै., इतर, (ध्यात्वा तां ब्रह्म), ९५९१२(+६), ९७४२१(+#s) रजस्वला स्त्री विचार गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, मपू., (जा पुप्फपवाहं जाणिउण), ९६४०६-३(+) रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., गा. ५५०, पद्य, स्पू., (नमिऊण जिणवरिंदे उवया), ९६६०८(+#), ९७४५१(+#s), ९९६३१(+#$) (२) रत्नसंचय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (नमिऊण क० श्रीमहावरप), ९९६३१(+#$) (२) रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरनै नमस्कार), ९६६०८(+#$), ९७४५१(+#$) राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सू. १७५, ग्रं. २१००, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), ९५८५३(+#$), ९५८६७(+६), ९५९१४(+), ९५९३९(+), ९७५२२(+#s), ९८२१०(+#S), ९५३१९ (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ३७००, गद्य, मूपू., (प्रणमत वीरजिनेश्वर), ९५९१४(+), ९५९३९(+) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., ग्रं. ५५००, गद्य, मप., (देवदेवं जिनं नत्वा), ९५३१९ (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवउ० चउथा), ९५८५३(+#5), ९५८६७(+$), ९७५२२(+#s), ९८२१०(+#$) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-चौपाई, संबद्ध, वा. सहजकीर्ति गणि, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ९५९३१(+$) राजसोमाष्टक, मु. क्षमाकल्याण कवि, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे., (श्रेयस्कारि सतां), ९५८४५-१(+) राजारीसालू की वार्ता, नरबद चारण, मा.गु.,सं., गा. ६९, प+ग., जै., वै., इतर, (श्रीपुर नगर को राजा), ९५४४५-३(+) रुद्राक्षमाला श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (रुद्राक्षान्कंठदेशे दशन), ९८२८३-१५(#) रूपचंद्र पाठक अष्टक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (पुण्यैर्गुणैरप्रमितैर्यदी), ९५८४५-२(+) रूपसेनकनकावती चरित्र-चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., ग्रं. १५३०, प+ग., मूपू., (श्रीमंतं विदुरं शांत), ९५९६२(+), ९६३७७(+$) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय), ९५४१५-१(+), ९५५१८(+), ९५८२८(+#), ९५९५१(+#$), ९६०२१(+$), ९६३९७(+$), ९६९८५(+#S), ९८०९१(+), ९४७२७(#) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध , पंन्या. दयासिंह, मा.गु., ग्रं. ४११७, वि. १५२९, गद्य, मूपू., (हुं ब्रह्मज्ञाननु पद), ९५८२८(+#) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध , आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मपू., (वीर क० श्रीमहावीर), ९५४१५-१(+) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीर श्रीमहावीर केहवा), ९५५१८(+), ९६०२१(+$), ९६९८५(+#$) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-विवरण, सं., गद्य, मूपू., (मनुष्यक्षेत्रपरिधिः), ९५९५१(+#$) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-यंत्र संग्रह*, मा.गु., को., मपू., (--), ९६३९७(+$) । लघुजातक, वराहमिहिर, सं., अ. १६, पद्य, वै., इतर, (यस्योदयास्तसमये), ९८३००(+$) (२) लघुजातक-बालावबोध, उपा. मतिसागर, मा.गु., गद्य, मपू., वै., इतर, (प्रणम्य परमानंदः संपदः), ९८३००(+$) लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., कां. ३, श्लो. ४६१, ग्रं. ५५०, पद्य, मूपू., इतर, (प्रणम्य परमात्मानं), ९६०७१(६) लघशांति, आ. मानदेवसरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मप., (शांति शांतिनिशांतं), ९४७१५-२(+#), ९४९९१-३(+$), ९५३१३-२०(+), ९५४०८-२(+#), ९५४७७-२(+$), ९५५३४-६(+#), ९५५४३-२(+), ९५७२६-२(+#), ९५७५१-२(+#), ९५७७६-२(+), ९६३५२-१(+), ९६३८३-२(+), ९६६६५-१(+), ९७०४४-२(+#), ९७३९९-२(+), ९७५१३-९(+#$), ९७९२९-१७(+#$), ९८०६२-२(+#), ९८१५६-१६(+#), ९८३९०-१(+9), ९८६४८-३(+#), ९९१०३-५(+#), ९९१०६-२(+#), ९९८८८-४(+#), १००३०१-१(+), १००३२०(#), १००८६०-२(+), १००९०१-२(+#), ९८६८६-२(#), ९९८७२-१०(#$), १००७९३-३(#) (२) लघुशांति-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं श्री शांतिजिनं मंत्र), १००३२०(+#) (२) लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीशांतिनाथ शांति), ९५५४३-२(+), ९७०४४-२(+#), १००३०१-१(+) लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं सव्वन्नु), ९५७४८(+#), ९६९६२-३(+), १००२६६-१(#) (२) लघुसंग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिय क० नमस्कार करी), ९५७४८(+#) For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org י कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ (२) लघु संग्रहणी १० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू (खंडा जोवण वासा पव्वय), १००३६७ (+३) (२) लघु संग्रहणी - खंडाजोवण बोल", संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू., (लाख जोयणनो जंबूद्वीप), ९४९२३-१ (०४), ९५१०४(क) ९८१७८(+#S), ९९९५३ (+), ९५२८०-१, ९६००८(#), ९४७३८($) लीलावती भास्कराचार्य, सं. श्री. २७९ प+ग. वै., इतर (प्रीति भक्तजनस्य), प्रतहीन. " " (२) लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., अ. १६, गा. ७०७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., वै., इतर, (सोभित सिंदूर पुर), ९५४६०-१(*), ९६१००-१००) ९६४२१(*) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. गा. ३२, वि. २४वी, पद्य, मूपू., (जिणदंसणं विणा जं), ९४७३५ (+), ९५८०३-६(१), ९६७४९-१(+), ९६७४९-२(+), ९७४८५-१(+) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका - वालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू. (श्रीवीतरागीना दर्शन), ९४७३५ (+#) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे वीतराग देव ताहरु), ९६७४९-१(+), ९७४८५-१(+) वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि प्रा., पद्य, मूपू. (भत्तिब्भरनमियसुरवर), ९५१४३ (+) (२) बंगचूलिका प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (भक्तिना समुहे करीने) ९५१४३ (*) वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (ॐ परमेष्ठिनमस्कारं सारं), ९४८७२-२ (+#), ९८५८५-१ (+), ९९७१२-११(+), ९९५२८-७८ वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु., सं., गद्य, म्पू, (ज्ञानं सारं सर्व), ९५३९७ (*) वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १५०, वि. १६५५, पद्य, मूपू., ( श्रीमत्पार्श्वजिन), ९५३८३-१(+#), ९६३४४ (+), ९७०९१ (+), ९७२३५ (+#), ९७४९६ (+), ९७५३७ (+), १०००५३(+$), ९५११९, ९७५४३-२ (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा - सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीफलवर्द्धिमंडण), १७२३५ (+) (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (श्रीपार्श्वनाथ प्रत) ९७४९६(+), १०००५३(७), ९५११९ (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये का टबार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १७०९१(+), 19 ९७५३७ (+) १ वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., उल्ला. १०, ग्रं. ४३००, गद्य, मूपू., ( नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ९४८२९-२ (+), ९५१९४(+$) वर्द्धमानदेशना, पं. शुभवर्द्धन गणि, प्रा., उल्ला. १० प्र. ५२०० वि. १५५२, पद्य, मूपू (वीरजिणंदं देविंदनंदि), ९५८१६ (+) वर्द्धमानविद्या कल्प, आ. वज्रस्वामि, प्रा.सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ अह हूं), ९६८१४-१ वर्द्धमानविद्या कल्प, आ. सिंहतिलकसूरि, प्रा. सं., श्लो. ९६ वि. १३२२, प+ग. म्पू. (श्रीवीरं जिनं नत्वा), ९६८१४-२ वसुदेवहिंडी, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण ग. धर्मसेन, प्रा., उपा. २८ नं. १०४८०, प+ग. मूपू (जवइ नवनलिणिकुवलयवियस ), "" वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., श्लो. १२५. वि. १५०७, पद्य, म्पू, इतर (प्रणम्यात्मविदं), ९५६२६ (३) (२) वाक्यप्रकाश-टीका, मु. हर्षकुल, सं., वि. १५८०, गद्य, मूपू., इतर, (श्रीमज्जिनेंद्रमानम्), ९५६२६(#$) वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., परि. ५, वि. १२वी, पद्य, मूपू., इतर, (श्रियं दिशतु वो देवः), ९५३४३(+) विचारगाथा संग्रह, प्रा. सं., गा. ३, प+ग. म्पू (बत्तीसं कवलाहारो), ९७५१७-२० (0) (+#) ५२१ ९५८७५/०१ वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू. बौ., (संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह), ९४७७८ (+), ९५१०५ (+), ९५२६१(*), ९६२६६ (०) ९७३५८(+) ९७४६७(*), ९८०५४(+), ९९२२७(+), ९८९५८, ९४९०१(२) ९४९९६-१४), ९५१०९-१ (२), ९७७४४-१(२), ९८३०९(२), ९५१५४ ($), ९७९६४ ($), ९८३८७-१($) (२) वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., बौ., (पुत्रवती स्त्री पासे), ९४९९६-२ (#), ९५१०९-२(#), ९७७४४-२(#) वखपूजा लोक सं., श्लो. २, पद्य, मूपू. (शक्रो यथा जिनपते), ९४७५७-४५) 3 विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ५१, पद्य, मूपू., (वीरपयकयं नमिउं देवा), ९५३८६ (+), ९५८०३ - ४(+#) (२) विचारपंचाशिका-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीर पय क० महावीरदेव), ९५३८६(+) विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अद्दामलग पमाणे पूढवि), ९८५८५-७(+$) विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., मूपू., (समरवीर राजा महावीरनउ), ९४९४४-२०(+#) विचार संग्रहणी, आ. रूपसिंह ऋषि, प्रा. गा. २७३, वि. १६९३, पद्य, वे ( तियसिंदनरिणये पणमित्तु), ९४७३० (+) For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) विचार संग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्था., (त्रिदशदेवताना इंद्रना), ९४७३०(+) विचारसार प्रकीर्णक, आ. महेश्वरसूरि, प्रा., गा. ८८, वि. १५७३, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं धम्म), ९६०२८(+) विचारामृतसार संग्रह, ग. जिनहर्ष, सं., कथा. २०, ग्रं. २८००, वि. १५०२, पद्य, मूपू., (श्रीभूर्भुवः स्व), ९५९४०(+#) विजयप्रभसूरि स्तुति, पं. केसरसागर, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (श्रीविजयप्रभसूरि स्तवीमिव), १००८८८ विद्वद्गोष्ठी, पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., श्लो. २१, पद्य, मपू., इतर, (येषां न विद्या न तपो), ९६४२०-२(+#) विधि संग्रह, मु. शिवनिधान, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (प्रथम सामायिक ग्रहण), ९५६६९(2) विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), १००७१३(+$), ९४९५५, ९६४९५, ९६३५५(#s) (२) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ विपाकश्रुत किसउ), ९६४९५, ९६३५५(#$) (२) विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ९६४१३(+) (३) विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते उत्सर्पणीनो चोथो), ९६४१३(+) विवाहपटल, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., श्लो. २४८, पद्य, पू., इतर, (प्रणम्य परमानंद), ९५४९७-२(+), ९७८६४-२(+) विवाहपटल, सं., श्लो. ९७, पद्य, मप., इतर, (धनाढ्य माघे सुभगा च),१००६६०-२(+) । विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्य, वै., इतर, (जंभाराति पुरोहिते), ९८०१३-१ (२) विवाहपडल-बालावबोध, मु. अमरसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (प्रणम्य शिरसा), ९८०१३-१ (२) विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., वै., इतर, (वाणी पद वांदी करी), १००१९१(#$) विविध विचार संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., पू., (उस्सेइम संसेइम चाउलो), ९८०६५-९(+) विविध विचार संग्रह, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मप., (जईया होही पुच्छा), ९६५६०-७(+), ९७५१७-५(+#), ९७५१७-२३(+#) विविध विचार संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., मपू., (तस जीवाणविधाउ तेह), ९५२६०-२(+) विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि , प्रा., गा. १४४, वि. १२४८, पद्य, मूपू., (सिद्धिपुरसत्थवाह), १००५६६(+#) विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., उल्ला. १२, पद्य, मूपू., (शाश्वतानंदरूपाय तमस्तौमेक), ९६७५०(+#s), ९५५५८(5) (२) विवेकविलास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते को एक परमात्मानइ), ९६७५०(+#$), ९५५५८(5) (२) विवेकविलास-हिस्सा प्रतिमादोष वर्णन, आ. जिनदत्तसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मप., (रौद्री निहंति), ९७८२४-१(+) (३) विवेकविलास-हिस्सा प्रतिमादोष वर्णन का बालावबोध, मु. वरसिंघजी, मा.गु., गद्य, मप., (प्रतिमायाः निर्मापणे), ९७८२४-१(+) विशेषशतक, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा.,सं., प्रश्न. १००, वि. १६७२, पद्य, मूप., (सुधर्मस्वामिनं नत्वा), प्रतहीन. (२) विशेषशतक संक्षेप, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (सुधर्मास्वामिनं नत्वा), ९६२२८(+s) विषापहार स्तोत्र, जै.क. धनंजय कवि, सं., श्लो. ४०, ई.७वी, पद्य, दि., (स्वात्मस्थितः सर्वगत), ९६२२७-३(+), ९५६६४(2) (२) विषापहार स्तोत्र-टीका, मु. चंद्रकीर्ति, सं., गद्य, दि., (पुराणः पुरुषः श्रीमद), ९५६६४(#) वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (यः परात्मा परं), ९६३६५(+), ९७१९१(+), ९७९६२-२(+), ९५५३७ (२) वीतराग स्तोत्र-अवचूरि, मु. विशालराजसूरि-शिष्य, सं., प्रका. २०, ग्रं. ६२५, वि. १५१२, गद्य, मप., (जयति श्रीजिनो वीरः), ९७१९१(+) (२) वीतराग स्तोत्र-हिस्सा २०वां प्रकाश, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ८, वि. १२वी, पद्य, मप., (पादपीठलुठन्मूर्ध्नि), ९६२३८-१ वृत्तरत्नाकर, केदार भट्ट, सं., अ.६, ग्रं. १८९, पद्य, वै., इतर, (सुखसंतानसिध्यर्थं नत्वा), ९४६८६-१(+#$) (२) वृत्तरत्नाकर-बृहद्वत्ति, ग. सोमचन्द्र, सं., ग्रं. ११९०, वि. १३२९, गद्य, पू., वै., इतर, (यत्पादाग्रनखांशुराजिररुणा), ९४६८६-१(+#s) वृष्णिदशासूत्र, प्रा., अध्य. १२, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते० पंचमस्स), ९५५४५-४(+#$), ९६९९७-५(+#) (२) वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे पूज्य० पांचमान), ९५५४५-४(+#$) For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५२३ वेंकटेश्वर कवच, सं., प+ग., वै., (--), ९९३६४-४(+#$) वैदिकग्रंथों में जिननाम वर्णन, सं., गद्य, मपू., (ब्रम पुराण १ भोरुह), ९७४१३(+$) वैद्यक शास्त्र, श्राव. हरिपाल, प्रा., गा. २५७, वि. १३४१, पद्य, मप., इतर, (णमिऊण जिणो विज्जो), ९५४५७-१(+) (२) वैद्यक शास्त्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., इतर, (नमस्कार करीने जिण द्वितीय), ९५४५७-१(+) वैद्यजीवन, क. लोलिंबराज, सं., विला. ५, पद्य, वै., इतर, (प्रकृति सुभगगात्रं), १००७०६-१(६) वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., विला. ९, श्लो. ३२६, वि. १७२६, पद्य, मप., इतर, (सरस्वतीं हृदि), ९५११८(+), ९६१४१(+#S), ९८८४५(६) (२) वैद्यवल्लभ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मपू., इतर, (श्रीसरस्वती देवता), ९५११८(+), ९६१४१(+#$), ९८८४५(६) वैराग्यशतक, प्रा., गा. १०४, पद्य, मपू., (संसारंमि असारे नत्थि सुह), ९४७६२(+#), ९५०८९-२(+), ९५४८३(+), ९६०४३(+), ९६६४२(+), ९७९६६-१(+#) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (सं० चार गतिरूप संसारनै), ९४७६२(+#) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (संसार असारमाहि नथी), ९५०८९-२(+), ९५४८३(+), ९६०४३(+), ९६६४२(+) व्याख्यान पीठिका, मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (अशरणशरण भवभयहरण), ९६५९२-६(+#), ९५७३९-३ व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. १००, पद्य, पू., (जिनेंद्रपूजा गुरू), ९५७६७(5) व्याख्यान संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., मूपू., (देवपूजा दया दान), ९५६७७-१(+), ९५६७७-३(+), ९६५९२-५(+), ९९९६४(+#$), ९४६७०, १००१४९, ९५३८०(5), ९७५४९(६) (२) व्याख्यान संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत भगवंत गुरु), ९४६७० व्याख्यान संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., मप., (सज्ञानलोचनविलोकितसर), ९५६७७-२(+) शक्रस्तव-अर्हन्सहस्रनाम, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., मूपू., (ॐ नमोर्हते भगवते), ९७७६२(+), ९८८४७-१(+$), ९८१८६-१ शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), ९५३११-५(+), ९५४२०-१(+#$), ९५५२०-७(+), ९५६७०-३(+#$), ९५७०१-५(+s), ९६४०६-२(+s), ९८७४०(+$), ९५१०८-५ (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नमिअ जिणं० मिथ्यात्वादि), ९५६७०-३(+#s) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीतराग नमस्करीनइ), ९८७४०(+$) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मूपू., (जिनप्रति नमस्कार), ९५३११-५(+) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (परमात्मानइं भव्य), ९५५२०-७(+) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मपू., (--), ९६५४४(#$) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-प्रकृति यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, पू., (४७ ध्रुवबंधनी प्रकृत), ९६२००(+$) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, पंन्या. सुमतिवर्धन, मा.गु., ग्रं. ९००, वि. १८७५, को., मप., (श्रीजिन प्रते नमस्का), ९५४८०(+) शतक प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., गा. १०५, पद्य, मूपू., (अरहते भगवंते अणुत्त), प्रतहीन. (२) शतक प्राचीन कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, म्पू., (शतकेउवउगोजोमेत्यादिगाथा), ९५६०१-३(+#) शतपदी, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., वि. १२६३, गद्य, मपू., (--), प्रतहीन. (२) शतपदी-शतपदीसारोद्धार, संबद्ध, आ. मेरुतुंगसरि, सं., श्लो. १५७०, ग्रं. १५७०, पद्य, मप., (अर्हतं जिनं नत्वा भव्या), ९८२८६ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूप., (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), ९५८१४-८(+), ९६११४-२(+) (२) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन-व्याख्या , सं., गद्य, मूपू., (हे आदिनाथ आदिः), ९६११४-२(+) शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., स. १४, ग्रं. १००००, पद्य, मूपू., (ॐ नमो विश्वनाथाय), ९५२९१(+) (२) शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., ग्रं. १२०००, वि. १७६७, गद्य, पू., (नत्वा वीरं सुबोधाय), ९५२९१(+) शनिभाव फल विचार-१२ राशिगत, सं., गद्य, मपू., इतर, (मेषस्यो भानुपुत्रे), १००९३१-३ शस्यादिपतिफल विचार, सं., गद्य, मपू., इतर, (सूर्येनृपे अल्पजला च मेघा), १००९३१-४ शांतसुधारस, उपा. विनयविजय, सं., भा. १६, श्लो. २३४, वि. १७२३, पद्य, मप., (नीरंध्रे भवकानने), ९६२७४ For Private and Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ शांतिक विधि, मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (प्रथम विशाल जिनभुवन), ९६१२९(+$) शांतिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ३३, पद्य, मपू., (अप्पडिहयधम्मचक्केण), ९६२३८-३ शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., प्र. ६, वि. १५३५, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः सर्वान्), ९४७०१(+$), ९४८०१(+), ९५०६५(+#S), ९५३०७(+), ९५४५४(+$) शांतिजिन बोलिका, आ. जिनेश्वरसूरि, अप., गा. ४, पद्य, मूप., (ता उत्तर दक्षिण पुरब), ९८१३५-१८(+) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (अंघ्री कूर्मयुगं करौ), ९९७१२-७(+) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (देवदेवाधिपैः सर्वतो), ९८०९३-२१(+) शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., प्र. ६, श्लो. ४८९०, ग्रं. ५०००, वि. १३०७, पद्य, मपू., (श्रेयोरत्नकरोद्भतामह), ९५५६२(+#S), ९७०१५(+), ९५५२१(६), ९५९७८(६) शांतिपर्व विधि, सं., गद्य, मूपू., (एवमष्टान्हिकासु संपूर्णा), ९५७४०-३(+) शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., पद्य, मपू., (अथ प्रतिष्ठायां वा), ९८८०३(5) शालिभद्र चरित्र, मु. धर्मकुमार, सं., प्रक्र. ७, श्लो. ११७०, ग्रं. १२२४, वि. १३३४, पद्य, मूपू., (श्रीदानधर्मकल्प), ९४९०९(+#) शाश्वतजिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (दीवे नंदीसरम्मि), ९५३१३-५७(+) शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., श्लो. १५, पद्य, मप., (नित्ये श्रीभवनाधिवासिभवन), १००९३२-२(+) शिवपंचाक्षर स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (नागेंद्रहाराय), ९८२८३-१७(#) शिवमानसपूजा, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (रत्नैः कल्पितमासन), ९९८२५-३(#) शीलगप्ति कलक, प्रा., गा. २२, पद्य, मप., (नमिऊण महावीरं भणामिह), ९८०६५-१९(+) शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., कथा. ४३, गा. ११५, वि. १०वी, पद्य, मूपू., (आबालबंभयारिं नेमि), ९५८५२(+), ९६२५५(+), ९६४१८-२(+$), ९८०९७(+), ९४७२५, ९७०२२, ९७०५० (#s), ९५२५४(६) (२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., ग्रं. ६२५०, वि. १५५१, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयममेय), ९५८५२(+), ९८०९७(+), ९७०२२, ९७०५०(#$), ९५२५४(६) शीलोपदेशमाला, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ११५, पद्य, मूपू., (आबालबंभयारिं नेमिकुम), ९८९९२-१($) शेषनाग विधि, मा.गु.,सं., श्लो. ७, पद्य, जै., वै., इतर?, (ईसानत सर्पत काल सौ), ९५४९७-१(+) श्राद्धविधिविनिश्चय, मु. हर्षभूषण, सं., अधि. ४, ग्रं. १८७५, गद्य, मप., (ऐंदवमंडलनिर्मलकेवलकम), ९६३६२(+$) श्रावक ११ पडिमा विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., मप., (दसण वय सामाई पोसह), ९४९४४-१८(#) श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, मप., (श्रीसर्वशं प्रणिपत), ९५७९६-३(+#), ९७०९९(+६), ९५५०४, ९७६१५(5) श्रावक आराधना विधि, आ. जयशेखरसूरि, प्रा.,मा.गु., प+ग., पू., (--), ९४६६६(६) श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (स्मारं स्मारं जिनेंद्रादि), १००२६३(+) श्रावक पाक्षिकादि अतिचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणंमि दंसणंमि अचरणंमि), ९७५५३(+#$), ९७९८२(+), ९४८६८(#) श्रावक मर्यादा के २६ बोल, प्रा., गद्य, मप., (उल्लणिया विहं १), ९६५९९-२ श्रावकलक्षण श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, मप., (अंगुष्टमात्रमपियः प्रकरोत), ९६६२७-२२(2) श्रावकविधि, जै.क. धनपाल, प्रा., गा. २४, पद्य, मप., (जत्थ पुरे जिणभवणं), ९८१३५-२२(+) श्रावकविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., वि. १८३८, गद्य, म्पू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीशं), ९५४८१(+), ९५९७९(+#$) श्रावकव्रतभंग प्रकरण, प्रा., गा. ४१, पद्य, मूपू., (पणमिअसमत्थपरमत्थवत), ९५८०३-५(+#) श्रावक सामाचारी, प्रा., गा. २०, पद्य, मपू., (णमिऊण जिणं वीरं ससुर), प्रतहीन. (२) श्रावक सामाचारी-टीका, सं., गद्य, मप., (येन ध्यानसमन्वितेन), ९४९१९(+) श्रुतावतार, जै.क. वासवसेन, सं., स. ६, पद्य, दि., (वर्द्धमान महावीर वीर), ९८०४०-१(+) (२) श्रुतावतार-स्वोपज्ञ टीका, जै.क. वासवसेन, सं., गद्य, दि., (श्रुतं श्रुताप्तये), ९८०४०-२(+) (२) श्रुतावतार-टिप्पण, सं., गद्य, दि., (--), ९८०४०-४(+) For Private and Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५२५ श्रेष्ठी लाखावंश प्रशस्ति, सं., श्लो. १६, पद्य, मप., (प्राग्वाटवंशे विशदे), ९४८०३-२(+) श्लोक संग्रह*, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता श्यामलवर्ण), ९४६५८-२(+), १०००७७-३(+s), १००८०७(+$), १००९०३-२ (२) श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (काया हंस विना किण कामरी), १००९०३-२ श्लोक संग्रह-, सं., श्लो. १००, पद्य, जै., वै., (जिनेंद्र पूजा गुरु), १००२७७(+#$) (२) श्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, जै., वै., (अल्त भगवंत असरण), १००२७७(+#$) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., श्लो. ५०, पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), ९४७१०-४(+) षट्पंचाशिका, आ. पृथुयशा, सं., अ. ७, श्लो. ५६, पद्य, वै., इतर, (प्रणिपत्य रविं), ९९०४९-२(+#) षट्स्थानक प्रकरण, आ. जिनेश्वरसूरि , प्रा., स. ६, पद्य, मपू., (कयवयकम्मयभावो सीलत्त), ९८०६५-२५(+$), ९९०९४(+#$) (२) षट्स्थानक प्रकरण-टीका, उपा. जिनपाल, सं., ग्रं. १४९४, वि. १२९२, गद्य, मूपू, (धर्मोपदेशनविधौ), ९९०९४(+#$) षडदर्शन विचार, सं., श्लो. ६६, पद्य, मप., (जैनं मैमासिकं बौद्ध), ९८०६५-१(+) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ८६, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं जियमग्गण), ९५३११-४(+), ९५५२०-४(+), ९५६७०-२(+#), ९५७०१-४(+), ९६०४४-३(+$), ९६४०६-१(+$), ९६९६०-४(+$), ९५१०८-४, ९४९८२-४(#$) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीजिनं नत्वा जीवस), ९५६७०-२(+#$) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (वीतरागदेव नमस्कार), ९९६६५-२(+$) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (हवइं चउथा कर्मग्रंथ), ९५५२०-४(+), ९६०४४-३(+६), ९४९८२-४(#$) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मूपू., (श्रीजिनने नमस्कार कर), ९५३११-४(+) षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा.८६, पद्य, मूपू., (निच्छिन्नमोहपासं), प्रतहीन. (२) षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (मिच्छेसासाणेति षडशीतिगाथा), ९५६०१-२(+#) षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अधि. ७, श्लो. ८७, पद्य, मूपू., (सद्दर्शनं जिनं नत्वा वीरं), ९८४४५(#) षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., गा. १६१, पद्य, मपू., (अरिहं देवो सुगुरू), ९५४१०(+#$), ९६३६३(#) (२) षष्ठिशतक प्रकरण-वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., (देवो अर्हन् चारित्रलक्षणो), ९५४१०(+#$) (२) षष्टिशतक प्रकरण-बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., वि. १४९६, गद्य, मपू., (सिरिवद्धमाणजिणवरपाएन), ९६३६३(१) संगीतोपनिषत्सारोद्धार, मु. सुधाकलश, सं., अ. ६, पद्य, मूपू., इतर, (आनंदनिर्भरपुरंदरपंकजाक्षी), १००५८३(+#) संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (संतिकरं संतिजिणं), ९५५३४-५(+#) संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मपू., (निसीहि निसीहि निसीहि), ९७५१३-३(+#), ९७९६५(+) संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५, पद्य, मूपू., (नमिऊण तिलोअगुरुं), ९५२६५(+5), ९६३२२-१(+), ९९३८१(+#), ९९६६०(+), १०००५९(+#), १००४२९(+5), १००८९८(+$), ९४९९७, ९५३९९(#) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.ग., गद्य, मप., (नमस्कार करीनइ तिन), ९५२६५(+$), ९९६६०(+), १००४२९(+$), ९४९९७, ९५३९९(4) संयम के १७ भेद, प्रा.,सं., गा. १, पद्य, मप., (पंचाश्रवाद्विरमणं), ९४७१०-३(+) संयोगी भांगा गाथासंग्रह, प्रा., पद्य, पू., (गणियम्मि तिन्निलोगा), ९५०१५(+$) (२) संयोगी भांगा गाथासंग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अट्ठनवेति प्रथमगाथोदाहरणं), ९५०१५(+$) (२) संयोगी भांगा गाथा- यंत्र, मा.गु., को., श्वे., (--), ९९४५२(5) सचित्त अचित्त जल विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (अपर समोसरणने विषइ), ९५७८८-१(+$) सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, प्रा., कां. ३, गा. १६८, वि. १वी, पद्य, मपू., (सिद्ध सिद्धट्ठाणं), ९५४५१(+#S) (२) सन्मतितर्क प्रकरण-तत्त्वबोधविधायिनी टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., कां. ३, गद्य, मपू., (शास्यते जीवादयः पदार्था), ९५४५१(+#$) सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ९१, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूप., (सिद्धपएहिं महत्थं), ९५४२०-२(+#$), ९५१०८-६ (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सिद्ध० सिद्धानि चालयितुम), ९५६५२(#$) For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., गा. ९१, पद्य, मूपू., (सिद्धपएहिं महत्थं), ९५३११-६(+) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (सिद्धपदा निश्चला), ९५३११-६(+) सप्तव्यसन कथासमुच्चय, आ. सोमकीर्ति, सं., स. ७, श्लो. ६७७, ग्रं. २०६७, वि. १५२६, पद्य, दि., (प्रणम्य श्रीजिनान्), ९५४७९(5) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., स्मर. ७, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं० हवइ), ९५३१३-१९(+), ९५४७७-१(+), ९५६२२+), ९५७५१-१(+#), ९५७७४(+#$), ९६२९५(+$), ९७०४५-१(+), ९७५१३-६(+#S), ९८०६२-१(+2), ९८११२-३(+), ९८१३५-३(+), १००६६०-१(+), १००८८३(+#), ९७५५१(#S), ९८०३०-३(#s), ९६३६१($) समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., अधि. ९, गा. ४१५, पद्य, दि., (वंदितु सव्वसिद्धे), ९४८४३(+#) (२) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. ९, श्लो. २७८, प+ग., दि., (नमः समयसाराय स्वानुभूत्या), ९४८४३(+#) (३) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. १२, श्लो. २७८, पद्य, दि., (नमः समयसाराय), प्रतहीन. (४) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., अधि. १३, गा. ७२७, ग्रं. १७०७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमिर हरन), ९४७९८(+), ९४९१७(+$), ९४९७०(+$), ९५३०२(+), ९५३९३(+#$), ९५६७२-१(#), ९६५०५(+$), ९५२२८(६), ९६९१७(5) (५) समयसार नाटक-पद्यानुवाद का टबार्थ, उपा. रामविजय, पुहिं., वि. १७९८, गद्य, मूपू., दि., (जिन वचन समुद्रकौ), ९४७९८(+$) (५) समयसार-टबार्थ, पं. रूपचंद, मा.गु., गद्य, मूपू., दि., (जगमां जे आठ कर्मरूप), ९५३०२(+) समराइच्चकहा, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., भव. ९, गद्य, मूपू., (पणमह विजिअसुदुज्जय), ९६१६१(+#$) (२) समराइच्चकहा-छाया, सं., प+ग., मूपू., (--), ९६१६१(+#$) (२) समराइच्चकहा-स्नात्र विधि, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, भूपू., (ओवणेओ मंगलं वो जिणाण), ९५४७६-४(+#) (३) समराइच्चकहा-स्नात्र विधि का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (स्नात्राभिषेक- तोय पाणी), ९५४७६-४(+#) समरादित्यकेवली चरित्र, उपा. क्षमाकल्याण; पंन्या. सुमतिवर्धन, सं., अ. ९, ग्रं. १००००, वि. १८७२-१८७४, प+ग., मूपू., (श्रीमंतं परमात्मतापद), ९४८४८(+$), ९६१०१(+) समवसरणवक्तव्यता स्तवन, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (तिहुयण सिरिकुलभवणं), ९५६०१-६(+#) समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (थुणिमो केवलीवत्थं), ९७८२४-२(+) (२) समवसरण स्तव-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (थुणिमो इति वयं एहवो), ९७८२४-२(+) समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०३, सू. १५९, ग्रं. १६६७, गद्य, मूप., (सुयं मे० इह खलु समणे), ९५९११(+), ९८०९०(+$) (२) समवायांगसूत्र-पर्याय, सं., गद्य, मूपू., (वामणमंतराणं सोहंमाउ तोषाम), ९८०८८-४(+) (२) समवायांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (--), ९८०९०(+$) सम्यक्त्व कौमदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद. ४४४, ग्रं. १६७५, वि. १४५७, पद्य, मप., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ९५९१९(+), ९६३७१(+, १००३३०(+#S) सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, मपू., (जह सम्मत्तसरूव), प्रतहीन. (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (यथा येन औपशमिकत्वादि), ९७३०१-२(5) सम्यक्त्व सप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, ग्रं. ७७११, पद्य, मूपू., (दंसणसुद्धिपयास), ९५४१७ (२) सम्यक्त्व सप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सम्यक निर्मलाईनइ), ९५४१७($) सम्यक्त्व स्वरूप, आ. विबुधविमलसूरि, सं., पद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या), ९५९७२(+$) (२) सम्यक्त्व स्वरूप-बालावबोध, आ. विबुधविमलसूरि, मा.गु., वि. १८१३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य कहेता), ९५९७२(+$) सम्यक्त्वादि व्रत आरोपण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नांदि मांडिइ), १००९००(5) सरस्वतीदेवी कल्प, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., गद्य, स्पू., (गुरुक्रमेण सर्वतत्व), ९६८१४-३ For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५२७ सरस्वतीदेवी स्तुति संग्रह, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (सरस्वती महाभागे वरदे), ९९७१२-१(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, उपा. विद्याविलास, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (त्वं शारदादेवी समस्त), ९९७१२-५(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (राजते श्रीमती देवता भारती), ९५३१३-११(+) सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., इतर, (--), प्रतहीन. (२) सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, वै., इतर, (नमस्कृत्य महेशानं मत), ९६१५१(+#$) (३) सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., प्रक. १९, वि. १७९९, गद्य, भूपू., वै., इतर, (पुराणपुरुषं ध्यात्वा), ९५३०१(+), ९६१५१(+#s) (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., इतर, (प्रणम्य परमात्मानं), ९५९४६(+#$), ९८२८५(+#$) (३) सारस्वत व्याकरण-टीका, सं., गद्य, मपू., वै., इतर, (सकलार्थ स्वार्थ निष्पाद), ९८२८५(+#$) (३) सारस्वत व्याकरण-टीका, सं., गद्य, वै., इतर, (सूत्रसप्तशति यस्मै), १०० ६६०-३(+) (३) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., वृ. ३, ग्रं. ७५००, वि. १६२३, गद्य, मूपू., वै., इतर, (नमोस्तु सर्वकल्याण), ९५९४६(+#$), ९६१५९(+$), ९६२५७(+$), ९७०४७(+), ९७४५४(+$), ९८१८३(+#$) (३) सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६६३, पद्य, मूपू., इतर, (श्रीसर्वज्ञं जिनं नत्वा), ९५६०५ (४) सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ की स्वोपज्ञ धातुतरंगिणी टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मपू., इतर, (नमस्कृत्य महोतं), ९५६०५ सरस्वती स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (--), ९९३६४-२(+#$) सर्वजिन स्तवन, प्रा., पद्य, मप., (--), ९९१०२-४(45) सर्वतीर्थमहर्षि कुलक, जिनेश्वरसूरि-शिष्य, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (अट्ठावयम्मि उसभो), ९८१३५-२८(+) सर्वमंगल स्तव, प्रा., पद्य, मूपू., (--), ९९०६९(#$) सर्वसिद्धांत विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (--), ९६३१०(६) सवाविश्वा जीवदया गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जीवा सुहमा थूला), ९७५१७-२९(+#) (२) जीवदया गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवना दोय भेद), ९७५१७-२९(+#) साधारणजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. १, पद्य, मूप., (न कोहो न मानो माया न लोभो), ९८४२३-१२ साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (देवाः प्रभो यं), ९४९९५-२($) (२) साधारणजिन स्तव-अवचूरि, ग. वानर्षि, सं., गद्य, मपू., (--), ९४९९५-२(६) साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थराजः पदपद्मसेवा), ९६११४-५(+), ९८०९३-८(+) (२) साधारणजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीतीर्थाधिपतिर्वो), ९६११४-५(+) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (अविरल कमल गवल मुक्ता), ९५३१३-४१(+), ९५८०२-५(+) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (जिनो जयति यस्याही), ९८०९३-१८(+) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूप., (पाताले यानि बिंबानि), ९९८७१-१५(+) साधारणजिन स्तुति, मा.गु.,सं., गा. ५, पद्य, मूप., (सकल करम वारी मोक्षमार्गा), ९५१०६-२(+#) साधारणजिन स्तुति-नैवेद्यगर्भित, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (घात्या घेवर लापसी), ९६११४-६(+) (२) साधारणजिन स्तुति-नैवेद्यगर्भित-टीका, सं., गद्य, मूपू., (अयीति को० हे प्रभो), ९६११४-६(+) साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा.८, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो मंगलं), ९५८१४-४(+), ९८६१९-१, ९५४४२-३१(#s), १००५९२(६) । साधु को १४ प्रकार के दान गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मप., (फासुयं एसणिज्जेणं असणं), ९६५९९-५ (२) साधु को १४ प्रकार के दान गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (फा० अचित ए० एषणीक साधुने), ९६५९९-५ साधुगुण स्तुति, प्रा., गा. २३, पद्य, मूपू., (--), ९९१०२-९(#$) । साधुप्रतिमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (मासाईय सतंता पढमा), ९४९४४-१९(+#) (२) साधुप्रतिमा गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहली प्रतिमा एक मास तलक), ९४९४४-१९(+#) For Private and Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सामाचारी*, सं., पद्य, मपू., (प्रथम सामाचारी पर्य), ९५४६२(#) सामान्य कृति, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., ?, (च्यार सरना करना कर), ९९०७१-३(#) सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, श्लो. २७१, पद्य, मूपू., इतर, (आदिदेवं प्रणम्यादौ), ९६०३६(#S), ९६११२(१), ९७९७४(#S) (२) सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (आदिदेव प्रते प्रथम), ९६११२(#) (२) सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (पुरुष स्त्रीना लक्षण), ९६०३६(#$) सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, इतर, (--), ९८०३९-८(+#$) सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., द्वा. २२, श्लो. १००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः), ९४६५१(+), ९४६६९(+#), ९४६७९(+), ९४६९१(+), ९४७१४(+), ९४७२८(+), ९४८६२(+#$), ९५१०६-१(+#), ९५३५१(+#), ९५३८२(+#), ९५४०९(+#$), ९५४२५(+$), ९५५२५(+), ९५५८५(+#$), ९५७२२(+#), ९५७८८-२(+$), ९६२५२(+#$), ९६४३६(+#$), ९६६०६(+), ९७०७०(+), ९७१०८(+#$), ९७३५०(+$), ९७४८९(+), ९७५५६(+६), ९८०६४(+#), ९८०६६(+), ९८२२५(+), ९८३६५(+#), ९८४१९(+#), ९८६३०(+#), ९८६५२(+#$), १०००५७(+), १०००७७-१(+) (२) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५५, गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा), ९४६९१(+), ९८०६६(+) (२) सिंदूरप्रकर-बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू., (सिंदूरनो प्रकर कर कह), ९५४२५ (+$) (२) सिंदूरप्रकर-बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिंदूरनो प्रकर कहिइं), १०००५०(+) (२) सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिंदूरनउ समूह तापरूप), ९५५२५(+), ९५७८८-२(+$), ९८६३०(+#) (२) सिंदूरप्रकर-पद्यानुवाद, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ९९, पद्य, मूपू., (--), ९५५५०-१(+$) (२) सिंदूरप्रकर-बालावबोध कथा, पा. राजशील, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (शारदाचरणयुग्ममतीतपापं), ९७०७०(+) (२) सिंदूरप्रकर-व्युत्पत्ति, सं., गद्य, मूप., (तप एव करी तपः करी तपः करि), ९७७५१(६) सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, ग. क्षेमंकर, सं., कथा. ३२, वि. १५वी, गद्य, मप., (अनंतशब्दार्थगतोपयोगिनः), ९५७८२(+#$) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., गा.६, वि. १८वी, पद्य, मप., (उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण), ९७४९२-२६(+#), ९९५२८-७५ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, अप., गा. ३, पद्य, मूपू., (जो धुरि सिरि अरिहंत), ९९५२८-७४ सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (भत्तिजुत्ताण सत्ताण), ९९५२८-७३ सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ.८, सू. ४६८५, ग्रं. २१८५, वि. ११९३, गद्य, मूपू., इतर, (अर्ह सिद्धिः स्याद्वादात), प्रतहीन. (२) सिद्धहेमशब्दानशासन-स्वोपज्ञ लघवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं.६०००, गद्य, मप., इतर, (अर्हमित्येतदक्षरं), ९७१८९(+) (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति की अवचूर्णि, मु. धनचंद्र पंडित, सं., गद्य, मूपू., इतर, (--), ९५८९२ (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति के आख्यातवृत्ति की अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (वृधूड वृद्धौ वृध), ९६०३४(5) (२) प्राकृत व्याकरण, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पाद. ४, सू. १११९, वि. १२वी, गद्य, मपू., इतर, (अथ प्राकृतम् बहुल), ९५८५६(#s) (३) प्राकृत व्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. २१८५, गद्य, मपू., इतर, (अथ शब्द ___आनंतर्यार्थो), ९५८५६(48) (२) धातपारायण, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ६०३, गद्य, मप., इतर, (अहँ भू सत्तायां), ९५८२९(+#s), ९५९३८(+), १००४१५(+#$) (३) धातुपारायण-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२वी, गद्य, मूपू., इतर, (भू इत्यविभक्तिको), ९५८२९(+#$), ९५९३८(+) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-समासशोभा, संबद्ध, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, सं., वि. १७६०, प+ग., मूपू., इतर, (श्रीमद्वागीश्वरी देवीम), १००९२०(2) सिद्धांतविचार गाथा संग्रह, प्रा., गा. २२२, पद्य, मप., (कंचणगिरि पव्वेस), ९५६०२-१ For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५२९ (२) सिद्धांतविचार गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (कंचनगिरि पर्वतनइ), ९५६०२-१ सिद्धांतषट्त्रिंशिका, प्रा.,मा.गु.,सं., अधि. ३६, प+ग., मपू., (प्रथमं तावत्जिनाझै), ९७९७९($) सिद्धांत हुंडी, पंन्या. सहजकुशल, प्रा.,मा.गु., ग्रं. २०१६, गद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवराई सुय), ९५४४६(+) (२) सिद्धांत हुंडी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिनादिक प्रति), ९५४४६(+$) सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १३४१, ग्रं. १६७५, वि. १४२८, पद्य, मप., (अरिहाइ नवपयाइं झायित), ९५८६८(+$), ९४७००(६), ९६७९०६) (२) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मपू., (अरिहंतादिक नवपद), ९५८६८(+s), ९६७९०(5) सीताराम चरित्र, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (इहेव भरतक्षेत्रे मिथिलां), ९६२३९(+) सीताराम चरित्र, प्रा.,सं., श्लो. १५१, प+ग., मूपू., (शुद्धं शीलं श्रियां मूलं), ९४६७३-१ सीमंधरजिन मुहपत्तिप्रमाण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सोलेसयस्स हत्था), ९६०६३-५(+) सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (उसभस्सय पारणए इक्खुर), ९८०९३-४(+) सुभाषित कोश, सं., द्वा. ५४, पद्य, मूपू., (कर्तव्यं जिनवंदनं विधि), ९५११७(5) सभाषित श्लोक संग्रह, मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, श्वे., (अपुत्रस्य गृहं सुन), ९८२२२-३(+) सुभाषित श्लोक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४०, पद्य, श्वे., (दानं सुपात्रे विशुद्धं च), ९५५८२-६(+), ९६०९७(+#), ९६३२३-१(+$), ९६५५४-२(+#$), ९७२७८(+#$), ९८२३२(+), ९८९०७-२(+), ९४७८०, ९८२८३-१०(#) (२) सुभाषित श्लोक संग्रह- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल क० समस्त कुसल), ९७२७८(+#$) सुभाषित श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ४५, पद्य, मूपू., इतर, (विद्यालक्ष्मीसंपन्नाद्), ९७९७५-१(+#), ९८०६५-६(+), ९८०६५-२४(+), ९६८८८-३() सुभाषित संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ७७, पद्य, श्वे., (अन्ना सत्थे पेमं पाव), ९४६७३-३ सुसढ चरित्र, प्रा., गा. ५१६, पद्य, पू., (जे परमाणंदमय परप्पमा), ९५४३५(+#$) (२) सुसढ चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ९५४३५(+#$) सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., वर्ग. ४, श्लो. १७६, वि. १७५४, पद्य, मपू., (सकलसुकृत्यवल्लीवृंद), ९५१०१(+#$), ९५२९६(+), ९५३७७(+#$), ९५५८८(+$), ९५९८९(+#$), ९८३२५(+), ९८४२७(+), ९८१६१, ९४७०६(३), ९४९०४(#$), ९७५२८(#$), १००११२-१(#$), ९४९७३($), ९६६७०(६) (२) सूक्तमाला-बालावबोध, मु. प्रतापविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (तदनुक्रम संग्रहो), १००११२-१(#$) (२) सूक्तमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्व जे शुभ करणीनी), ९४९७३(६) सूक्तमौक्तिक, सं., पद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा), ९५६५७($) सूक्तावली, सं., श्लो. १३८, पद्य, श्वे., इतर, (राज्यं निःसचिवं गतप्रहरणं), ९४९००(+9), ९५५२६(s), ९५८६९(६) (२) सूक्तावली संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (राज्य प्रधान बिना न शोभई), ९४९००(+$), ९५५२६(), ९५८६९($) सूक्तावली, सं., श्लो. १२९, पद्य, मूप., (शरीरं नीरोगं सहति), ९६५५४-१(+#$) सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २६०, पद्य, मूपू., (वीरं विश्वगुरुं), १०००७६(+$) सूक्ति संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मपू., (स्वस्ति श्रीवर्धमानं०), ९४६८०(+$) सूक्ष्मनिगोद विचार, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (लोए असंखजोयण माणे), ९४९४४-१६(+#) (२) सूक्ष्मनिगोद विचार-वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., (अस्मिन् चतुर्दश रज्व), ९४९४४-१६(+#) सूक्ष्मार्थसंग्रह प्रकरण, आ. जयतिलकसूरि, सं., श्लो. २०२, पद्य, मूपू., (सूक्ष्मार्थसार्थवक्तारं), १००२८९-२(+) सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मूपू., (बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज), ९५३१०(+#), ९५९०४(+), ९६१५२(+$) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-दीपिका वृत्ति, मु. हर्षकुल, सं., ग्रं. ७०००, वि. १५८३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिन), ९५९०४(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-पर्याय, सं., गद्य, मपू., (सव्वामगध आधाकर्मिकं), ९८०८८-२(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (बुज्झि० छकाय जीवना), ९५३१०(+#) For Private and Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कंध अध्ययन ५ नरकविभक्ति वर्णन, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्लो. ५२, पद्य, मूपू., (पुच्छिस्सहं केवलियं), ९८६४६-२($) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कंध अध्ययन ५ नरकविभक्ति वर्णन का नरकवेदना चौपाई, संबद्ध, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ९८६४६-२() (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं समणा माहण), ९४८७०-१(+), ९५०२८,१००८७१ (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पु० पुछता हवा कोण), ९५०२८, १००८७१ सूर्यचंद्रनक्षत्रचारवश मनुष्यसुखदःख विचार, प्रा.,सं., प+ग., मप., (रयणिकर दिणयराणं नरकत्ताणं), ९७५१७-२२(+#) सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., प्राभृ. २०, ग्रं. २२००, गद्य, मूपू., (नमो अरि० तेणं० मिथिल), प्रतहीन. (२) सूर्यप्रज्ञप्ति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ९०००, गद्य, मूपू., (यथास्थितं जगत्सर्वमी), ९७०५६(+) सौभाग्यपंचमी कथा, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथ), प्रतहीन. (२) सौभाग्यपंचमी कथा-व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मप., (प्रणम्य पार्श्वनाथां), ९४७७६(+) स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैकतरण), ९४६७१(+$), ९५६२८(+$), ९५७१७(+), ९५७७५ (+#$), ९७२५२-१(+), ९६१७८(६) स्थविरावली, आ. हिमवदाचार्य, प्रा.,सं., वि. ३वी, प+ग., म्पू., दि., (नमिऊण वद्धमाणं), ९६७८५(+), ९६७८६(+), ९६७६० स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०, सू. ७८३, ग्रं. ३७००, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं तेणं), ९८१०७(+$), ९५०४८($) (२) स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., स्था. १०, ग्रं. १४२५०, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवीरं जिननाथं नत्वा), ९८१०७(+$) (२) स्थानांगसूत्र-पर्याय, सं., गद्य, मूपू., (वैषच्चं जाड्यं आश्रवण), ९८०८८-३(+) (२) स्थानांगसूत्र-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एगे अरिहंता एगे समए), ९५९२५(#$) स्थूलिभद्रमुनि बोली, अप., गा. ७, पद्य, मपू., (सूरराय समहरि करवि), ९८१३५-१७(+) स्नात्रपंचाशिका, ग. शुभशील, सं., कथा. ५०, श्लो. ५०, पद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनान्), प्रतहीन. (२) स्नात्रपंचाशिका-कथा, प्रा.,सं., पद्य, मप., (नत्वा प्रथमसार्वीद श्री), ९७२९१(+$) स्नात्रपूजा विधिसहित, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मपू., (पूर्वे तथा उत्तरदिसे), ९७३७८(+), ९५२७९(#s), १००९५०(#$) स्नात्रविधिपंजिका, आ. शांतिसूरि, सं., पर्व. ५, गद्य, मप., (श्रीमत पुण्यपवित्र), ९५७४०-१(+$) स्वरोदयज्ञान, सं., श्लो. १४४, पद्य, वै., इतर, (अथान्यतः प्रवक्ष्याम), ९८२३०(+) (२) स्वरोदयज्ञान-भाषाटीका, मु. लालचंद, हिं., वि. १५५३, गद्य, मूपू., वै., इतर, (अब मैं स्वरोदय का), ९८२३०(+) स्वेतार्कगणेश कल्प, सं., प+ग., वै., (अथ स्वेतार्क गोरोचने), ९७७३०-५(+#) हरिबलधीवर कथा, सं., प+ग., मप., (एकेकोपि कृतो धर्मो), ९८३१५(+#$) हस्तसंजीवन, उपा. मेघविजय, सं., श्लो. २८३, ग्रं. ५२५, वि. १८वी, पद्य, मूप., इतर, (स्वस्ति श्रीभरणं सिद्धेः), ९६७००(+) हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रक. ८, श्लो. १३८, वि. १२वी, पद्य, मूपू., इतर, (पुल्लिंगं कटणथपभमयर), ९६३५०(+$), ९८०३९-५(+#) (२) हैमलिंगानुशासन-अवचूरि, सं., गद्य, मप., बौ., इतर, (नामेति वक्ष्यमाणमिह), ९६३५०(+$) (२) हैमलिंगानुशासन-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., इतर, (कटणथपभम० इत्येतदंत), ९८०३९-५(+#) ह्रस्वसंज्ञा विचार, प्रा., पद्य, मूपू., (वाससहस्सं उग्गंतवंत), ९५६०१-७(+#) For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ४ कषाय परिहार-दृष्टांत कथा, रा., गद्य, मपू., (कोहे घेवर खवगे माणा), ९८०८९(+) ४ पडवा असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, भूपू., (वैसाख वदि१ श्रावण वदि१), ९८०६९-७(+) ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४५, गा. ८६२, ग्रं. ११२०, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ शशिकुलतिलो), ९४६८७(+), ९८१३९(+$) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (चिहं दिसथी च्यारे), ९५५२२-५१(+), ९६९५५-३७(+$) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (नगर कंपिलानो धणी रे), ९९३५९(+$) ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ भूपति सोहे), ९७७४८-३(5) ४ मंगल पद, मु. रूपचंद, मा.गु., पद. ५, पद्य, मूपू., (आज घरे नाथजी पधारे), ९७४९२-५(+#) ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ११०, पद्य, स्था., (अनंत चोवीसी जे नमु), ९८४१६-१(६) ४ विकथा निवारण गीत, मु. रत्ननिधान, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वृथा करम बांधत जीउ), ९८०२३-६ ५इंद्रिय २३ विषय विचार, मा.गु., गद्य, पू., (चक्षुइंद्री१ कामीविषय५), ९४९४४-८(+#) ५ इंद्रिय विषय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जघन्यतो अंगुलनो), ९७५१७-२५(+#) ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (काम अंध गजराज अगाज), ९५५२२-२१(+) ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथसुत वंदिये), ९७३८६-१३(+) ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धुर समरुं श्रीआदिदेव), ९९८७१-१७(+), १००८९३-३(+#), ९८०१६-३८(2), १००७९०-६(2) ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (प्रथम तिर्थंकर आदनाथ), १००७९०-७(#) ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आदि हे आदिजिणेसरु ए), ९६९५५-३०(+), ९५२३५-३(2), ९९८८५-६(#$) ५ परमेष्ठि आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, दि., (इहविधि मंगल आरती), ९९८७२-६(#$) ५ प्रमाद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मद्यपान विषपान कषाय), १००६६०-२१(+) ५ साधु चौपाई-अभयकुमारसंबंधे, मु. कान्हजी, मा.गु., ढा. १२, वि. १७५९, पद्य, मप., (जगगुरु प्रणम् वीरजिन), ९५२५२(#) ५ सुमति प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (चलैनीर्ष १ भाषैउचित २), १००६६०-२०(+) ५ स्थान जीवगति विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (जेहनो जिव पगे निकले ते), ९९८६७-२(+) ६ आरा मान, मा.गु., गद्य, मपू., (वीस कोडाकोडि सागरोपम), ९५५१२-२(+) ६ ऋतु नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (चैत्र वैशाख वसंत जेठ), ९८०६९-१०(+) ६ जीव पंचढालियो, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, पद्य, मूपू., (प्रणमि पास जिणंदने), ९७४९४(+) ६ दर्शन नाम देवगुरु विचार, मा.गु., गद्य, मप., (जैन१ नैयायिकर सांख्य३), ९८०६९-८(+) ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (धर्मद्रव्य शुद्ध लोक), ९८०६९-२(+) ६ भावना स्वरूप, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो औदयिक भाव ते ज्ञाना), ९५४७८-४(+) ६ मत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जैनमत वीतरागदेव नव), ९४९४४-१७(+#) ६ संगीतराग नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (श्रीराग१ वसंतराग२ पंचमराग), ९८०६९-११(+) ७ नरक पाथडा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहली नरगमध्ये १३ पाथडा), १००११३-२ ७ व्यसन निवारण सज्झाय, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (जूआ विसने वाहीऊ नल), १००७९०-१५(#) ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जयरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (पर उपगारी साध सुगुरु), ९५५२२-२८(+), ९९५८४-२२ ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (समरुं हुं सरसति सामिनी), ९४६९८(2) ८ कर्म१५८ प्रकृति विचार, पुहिं.,मा.गु., गद्य, श्वे., (न्यानावरणी की ५), ९७३५७-१ ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), ९४७१०-२(+), ९५०५९(+), ९७६६२-१(+), ९४९१२($) For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ८ कर्म नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावर्णनी १ दर्शनावर्ण), १०००५६-३(+), १००६६०-१९(+) ८ कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आठ कर्म ते केहा पहिल), ९४७१६(#$) ८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु., गद्य, मूप., (प्रथम ज्ञानावरणी), ९४९४७-२(+) ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (ज्ञानावरणीयकर्म), ९६९६९-२(#) ८ कर्म विचार, मा.गु., गद्य, मप., (ज्ञानावरणी कर्म आंख), ९५५२०-५(+), ९८७८०(+$) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७७, वि. १८२१, पद्य, मपू., (अजर अमर निकलंक जे), ९५७७२(2) ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ७८, गा. २०९४, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (अजर अमर अविनाश जे), ९४८१७(+$) ८ मद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (जाति १ लाभ २ कुलमद), १००६६०-२२(+) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा. ७६, पद्य, मपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), ९६६३३(+), ९८३३८(+), ९९८९१(+), ९७१८७। (२) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (निरुपद्रव्य सुखनु), ९८३३८(+) ८ साहित्यगण विवरण, मा.गु., गद्य, इतर, (मगण यगण रगण सगण तगण), ९४६५८-३(+) ९ वाड-ब्रह्मचर्य, मा.गु., गद्य, श्वे., (वसति निरदूषण १ स्त्रीनी), ९४९४४-५(+#) ९ वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (रमणी पशु पंडग तणी रे), ९९८८५-२२(#S) ९ वासुदेव द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पेला त्रिपृष्ठवासु), ९६२८३-४(+#$) १० ठाणा बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (एगे आया१ एगे अणाया२), ९६३३३-१(६) १० दान दोहरा, पुहि., गा. १४, पद्य, श्वे., (गो सुवर्ण दासी भवन), ९५८१०-१(+#$) १० दृष्टांत गीत, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., ढा. १०, पद्य, मूप., (सरसति मझ मति दिउ), १००१२७-१(+) १० पच्चक्खाण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (नवकारसी सागार पोरसी), ९५५३८-४ १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (दसवे प्र उठी पचखांण सगुरु), ९९५८६-४(+-) १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (दसविह प्रह उठी), ९७२६४-३०(#) १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनंदन नमुं), ९६९५५-११(+) १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (स्याद्वादमत श्रीजिनवरनो), ९९५८४-१३ १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ११, गा. १३६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुकृतलता वन सींचवा), ९४९५३(+$) १० श्रावक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८२९, पद्य, श्वे., (आणंदने सेवानंदा रे), ९५८१०-३(+#) १० संज्ञा विचार-वनस्पति, मा.गु., गद्य, श्वे., (वनस्पतिनी दस संज्ञा), ९७५१७-३३(+#) ११ अंग नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (आचारांगसूत्र १), ९६४५७-१ ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्वा. ११, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (आचारांग पहेलुं का), ९९०१३(4) ११ गणधर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (इंद्रभूति अग्निभूति), ९६४५७-३ ११ गणधरपद स्थापना अधिकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मध्यम अपापानगरीइं महेसेन), ९५६२३(+) ११ रुद्र नाम, मा.गु., पद्य, वै., (१ भीमीवलीन २ जितसतुन), ९६४५७-४ १२ उपयोग नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मतिज्ञान१ श्रुतज्ञान२), ९६४५७-७ १२ गणपतिपूजा विधि, मा.गु., प+ग., वै., (अथातः संप्रविक्ष्यामि), ९७७३०-३(+#) १२ गुण अरिहंत, मा.गु., अंक. १२, गद्य, मूपू., (अशोकवृक्ष प्राति), १०००८४-३(+#) १२ चक्रवर्ती द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (पेला भरतचक्रवर्ती), ९६२८३-३(+#) १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम भर्थजी१ सगर२), ९६४५७-१० १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अग्निकूण में पर्षदा), ९६४५७-९ १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली अनित भावना ते), ९६४५७-८ १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., गा. ५२, वि. १७२७, पद्य, मपू., (प्रणमि चरणयुग पास), ९५५५०-७(+$), ९७२८०-७(#) For Private and Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १२, गा. ७२, वि. १६४६, पद्य, मप., (आदिसर जिणवर तणा पद), ९७३९७-४(+), ९७४६०(+) १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. १४, गा. ९०, पद्य, मूपू., (विमलकुलकमलना हंस तुं), ९५५३३-२(+), ९५५७०(+) १२ भेद वनस्पति, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ वृक्षआछादिक २ गुछाबीजोर), ९६४५७-६ १२ मास सूर्यकिरणसंख्या विचार, पुहिं., गद्य, मप., (चतक महिन साढीबारास), ९५६५५-२(+) १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम सम्यक्त्व देव), ९६८५४(+5), ९४७८७ १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणातिपातव्रत मृषा), १००६६०-१८(+) । १२ व्रतपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १३, गा. १२४, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (उच्चैर्गुणैर्यस्य), ९५००५(+#) १२ व्रत सज्झाय, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (जीवदया व्रत पेले), ९६६०५-९(#) १२ व्रत सज्झाय, मु. कीर्तिसागर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (गौतम गणधर पाय प्रणमी), ९४७३२-२, ९८४३३-४ १२ व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., ढा. १३, पद्य, मूप., (जिनवाणी धन वुठडो भवि), ९६६८७-१(#) १२ व्रत सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, पू., (गौतम गणधर पाय नमीजे), ९५७४४-५ १२ संपदा-मनुष्य की, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुष्यपणओ१ आर्य), ९६४५७-११ १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आलस सो धरम उद्यम रहित १), ९४९४४-७(+#), ९५६७७-६(+) १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सोभागी भाई काठीया), ९४९९२-१३(+#) १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मप., (आलस पेलो काठियो धर्म), ९५७४४-२ १३ काठिया सज्झाय, म्. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गा.१५, पद्य, मप., (समरूं श्रीगौतम गणधार), १००००९-१०(+) १३ जीव स्थानक विचार, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९४७८५(+#$) १४ गुणठाणा २१ द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नामद्वार १ लखण २), ९७१५२-१(+) १४ गुणस्थानक ४१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नामद्वार लक्षणद्वार), ९७३४२(+#$) १४ गुणस्थानक ५७ कर्मबंधहेतु, मा.गु., गद्य, मपू., (मिथ्यात्व १ सास्वादन), ९५५७६-३(+#) १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व गुणठाणो १), ९७६६२-२(+), १०००५५-४(+) १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीसर्वज्ञ जिन), ९५४७८-३(+) १४ गुणस्थानके २५ द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नामद्वार लक्षणद्वार), ९५०३०(+), १०००९२(#) १४ गुणस्थानके ८ कर्म १२० प्रकृति विचार यंत्र, मा.गु., को., मूप., (प्रथम १४ गुणस्थानक), ९९७३०(#$) १४ स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, पू., (स्वप्न पाठक कहइ छइ), ९५६८९(#) १५तिथि दहा, मा.गु., गा.१६, पद्य, वै., इतर, (पख पिडवा थी उलसे), ९८४६६-४(+) १५ तिथि सज्झाय, मु. डुंगरसी, रा., गा. १६, पद्य, श्वे., (चतुरनर ग्यान विचारो), १००११४-१२(+$) १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्तु. १६, गा. ६४, पद्य, मूपू., (एक मिथ्यात असंयम अविरति), ९७१८३-१(६) १६ ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आर्तध्यानना च्यार पाया), ९८०६९-६(+) १६ सती लावणी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीवीरणी तणां तु), ९८५७२-२($) १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदि जिनवर), ९९८७१-२३(+) १६ सती सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (शीतल जिणवर करी), ९७३१२-८(+#) १६ स्वप्न चौढालियो-चंद्रगुप्त, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., ढा. ५, वि. १८७५, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणेसर पय कमल नमतां), ९८१४५-१(+) १७ भेदी पूजा, मु. मेघराज, मा.गु., पूजा. १७, पद्य, मूपू., (सर्वज्ञं जिनमानम्य), ९६४२९(+#) १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. १७, वि. १६१८, पद्य, मूपू., (भाव भले भगवंतनी पूजा), ९५५५१(+), ९७४५९-१(+), ९८४३६(+#), ९९८७१-३४(+), ९५६७८, ९४७५७-१(#), ९६७४६(5) १८ दोष पोसह सज्झाय, मु. कपूरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पास जिनेसर प्रणमी पाया), १००००९-१(+) For Private and Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १८ नातरा चौपाई, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ३०, वि. १८१९, पद्य, श्वे., (प्रथम जिनेसर आददेइ प्रणम्), ९५३८४(#) १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (कुमेरदत्त राजा मथुरानगर), ९५८४९-२ १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मथुरा नगरी मे कुबेर), ९६५५२-३(+#) १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३२, पद्य, मूपू., (पहला ते प्रणमुंपास), ९७७०३-३(2) १८ नातरा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., ढा. ४, गा. ७५, पद्य, मूपू., (मानव भव पायो जी), ९५८४९-१ १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, मपू., (समरु सरसतमाय निज गुरु), ९४९०७-२(+$) १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक पहिलं कहि), ९४९९२-१(+#), ९९०२४-१(+$), ९४७५५, ९७१९७९), ९५०९५($) । १८ पापस्थानक परिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मा.गु., ढा. १८, ग्रं. ३५०, पद्य, श्वे., (सुंदर रूप विचार चतुर), ९७२६४-३(+#$) २० जिन पद-सम्मेतशिखर, मु. रतन, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (मेरी वंदना हां रे मेरा), ९८६८१-१२(+#) २० बोल सज्झाय, मु. जसराज ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८७७, पद्य, स्था., (करम हनी केवल लही), ९५८१०-१३(#) २० विहरमानजिन १६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम श्रीमंधीरस्वामी१), ९६२८३-२(+#) २० विहरमानजिन विवरण, मा.गु., को., म्पू., (श्रीमंधरस्वामी), ९६७६४-२(६) २० विहरमानजिन विवरण दोहा, मु. आणंदरुचि कवि, मा.गु., गा. २०, पद्य, मप., (विवरो ए गाथातणौ कवि), १००६५४-४(#) (२) २० विहरमानजिन विवरण दोहा का अर्थ, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., वि. १७९६, गद्य, मपू., (चढत काल उत्सर्पिणीना), १००६५४-४(#) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. आणंद, मा.गु., स्त. २०, पद्य, म्पू., (--), ९५१२८(5) २० विहरमानजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीस जिनेसर जग जयवंता), ९८०७१-१(+) २० विहरमानजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (वंदु मन सुध विहरमाण), ९७६५५-१, ९९५२८-४६ २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (बीदेक्षेत्र बीरंताजी), १००४४५-३ २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मपू., (मुज हीयडौ हेजालूवौ), ९९५२८-३९ २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २०, वि. १८वी, पद्य, मूप., (श्रीसीमंधर जिनवर), ९४९१४(+) २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (पुखलवई विजये जयो रे नयर), ९६५७२(+), ९७५८९-२७(+#), ९७७१०-१(+), ९५१७९() २० विहरमानजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचविदेह विषय विहरंता वीस), ९५३१३-४६(+), ९५८०२-६(+), ९७९२९-५(+#), ९८१५६-४(+#), ९५४४२-८(#), ९५६४८-३(#$) २० स्थानक खमासमणदान विधि, मा.गु., गद्य, मप., (तिहां प्रथम स्थानके), ९४९३३(+$) २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (पहेले पद अरिहंत नमु), १००१३०-१० २० स्थानकतप विधि, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, पुहिं., प+ग., मूपू., (तिहां प्रथम शुभ दिन), ९५२०८(+#) २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. १९, पद्य, मूपू., (वीशस्थानक तप सेवीयै), ९६९५५-२(+) २० स्थानकतप स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (पुछे गौतम वीरजिणंदा),१००१३०-९ २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पूजा. २०, वि. १८५८, पद्य, मपू., (सुखसंपतिदायक सदा), ९८५७० २० स्थानक विचार, मा.गु., गद्य, भूपू., (अरिहंतजी गुणगीराम), ९९८६७-४(+5) २० स्थानक विचारसार रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३१, गा. ३४०३, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धि संपतिकरण), ९७०५९(+$) २२ अभक्ष्य सज्झाय, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर केरी वाण सुणि), ९८१४५-८०(+) २२ परिषह दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (उजेणी नगरीयइ हस्तमित), ९५१८१(६), ९८३१३-२(६) । २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २२, वि. १८२२, पद्य, स्था., (श्रीआदेसर आद दै), ९५८१०-२४(+#) २४ जिन २१ स्थान कोष्टक, मा.गु., को., म्पू., (--), ९६०१९(+$) For Private and Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ २४ जिन ८४ द्वार बोल, मा.गु., गद्य, भूपू (पेला सर्वार्थथी चव्य), ९६२८३-१ (+#5) " २४ जिन अष्टक, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अविचल धानक पहुता), ९७३१२-४(+) २४ जिन कलश, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., ( कलस निसुणो २ रिसहअजि), ९९१०२-८(#$) २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. कमलरत्न, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (प्रणमुं प्रहसम प्रथम जिण), ९८०७१-४(+) २४ जिन चौपाई, मा.गु., स्त. २४, गा. ६८, वि. १९००, पद्य, स्था., (वंदु बेकर जोडनै जुग), ९७७४५-१(+) २४ जिन छास्थकालमान, मा.गु., गद्य, भूपू (आदिनाथने १ हजारवरसई केवल ), ९५४६६-२(+) २४ जिन छपइआ, उपा. सूर्यविजय पाठक, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (छत्रत्रय चामर त्रिगड्ड), ९५५८२-१) २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (शत्रुंजे ऋषभ समोसर्य), १००८९३-५(+#$), ९५००४-९१) २४ जिनदेहमान स्तवन, मु. रंगविनय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू. (प्रणमं ऋषभ जिनेसर), ९९५२८-४९ २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (ऋषभ१ अजित२ संभव३), ९६७६१ (+#), ९६७४२ २४ जिननाम अतीत, मा.गु., गद्य, म्पू., (केवलज्ञानी निर्वाणी), १७१३८-२ २४ जिन नाम राशी जन्मनक्षत्र लंछनादि विचार, मा.गु., को. मूपू. (--), ९७३४८-१(१) " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन पंचकल्याणक स्तवन, मु. विद्याविजय, मा.गु., गा. ४६, वि. १६६०, पद्य, मूपू., (सकल समिहित पुरवा), ९५१८२-१(+#$) २४ जिन पद, मु. सुविधिसागर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुज पर महर करो जिन), ९८०२३-११ २४ जिन मोक्षस्थान स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू. (अष्टापदे श्री आदिजिन), ९५४४२-२४(क) २४ जिन सवैया, मु. सार, पुहिं., सवै. २५, पद्य, श्वे., (नाभिनरिंद के नंद नंदन चंद), ९९८७१-३६(+) २४ जिन साधुसाध्वी श्रावकक्षाविकासंपदा सज्झाय, मु. करमसी, मा.गु., गा. ६, पद्य, वे (चोवीस तीर्थंकरनो), ९५४८९-३ (+) " २४ जिन स्तवन, मु. क्षेमकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., (ऋषभ अजित संभव), ९५६८५-१(#) २४ जिन स्तवन, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मृपू. (पहिला प्रणमुं प्रथम), १००८९३-२(+) २४ जिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( इणि परिभाव भगति मनि आणी), ९७२९८ - २ ( +#$) २४ जिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (--), ९८२४३-१($) २४ जिन स्तवन, मु, जीतचंद, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू.. ( कासमीर मुख मंडणी त्रिभुवन), ९७०९२-१ २४ जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रह समे भाव धरी), ९४७८२-१० २४ जिन स्तवन, ग. फतेंद्रसागर, मा.गु., स्त. २४, पद्य, श्वे., (हां रे माहरा आदि जिणंदनी), ९७२८१(+) २४ जिन स्तवन, मु. लालचंद, पुहिं. गा. ९, पद्य, मूपू.. (ऋषभ अजित संभव स्वामी), ९५८१०-२३(+) " २४ जिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय जय आदि नमुं अरिहं), ९७२३७-१५ (+), ९९५२८-३० २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. १७, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (धुर प्रणमु रिषभजिणंद), ९८२६८-३ (५) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (पीरात सम नित समरीये), १००४४५-५ . २४ जिन स्तवन- अनागत, मु. केसरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (पद्मनाभ पिहिला नम रे), ९७३५१-२ (क) "" , For Private and Personal Use Only २४ जिन स्तवन-अनागत, मु. लाभकुशल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणी पाय), ९८०१६-१०(#) २४ जिन स्तवन- आयुचतुर्विधसंघसंख्यागर्भित, मु. रंगविनय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू. (ऋषभदेव प्रणमुं), ९९५२८-४८ २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु, आणंद, मा.गु. गा. २९, वि. १५६२, पद्य, मूपू (सयल जिणेसर प्रणम्), ९७२३७-१४(*), ९८३०२-९(+), ९८२०४-२ (०) ९८६८६-४(५), ९९८८५-२ (०४), ९६९६७-३(४) २४ जिन स्तुति, मु. दयाल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मंगल कर जिणराय मणै), १००४३३-३(+#) २४ जिन स्तुति, ग. सिवचंद्र, मा.गु., स्तु. २४, पद्य, मूपू., (प्रथम युग आदि अवतार प्रभु), ९४९७७-१(+) २४ तीर्थंकर २९ बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अशोकवृक्ष श्रीऋषभदेवनउ), ९८०६९-३(+) २४ तीर्थंकर नाम राशि विचार, मा.गु., को.. म्पू., (--). १००२५९ (४) २४ तीर्थकर भव विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., ( धनसार्थवाह१ कुरुक्षेत्र), ९८०६९-४(१ ५३५ Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २४ तीर्थंकर स्तवन, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (--), ९९८८५-१६(#$) २४ तीर्थंकर स्तवन, मु. केसरविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (ऋषभदेव जणेसर जयकारि), ९७३५१-३(2) २४ तीर्थंतर गोत्रकर्म उपार्जन स्थानक विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीऋषभदेवे धनसारनै भवे), ९८०६९-५(+) २४ दंडक २३ पदवी गतिआगति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (बार गुणे करी विराजमा), ९७५१७-१२(+#) २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (शरीर अवगाहणा संघयण), ९७६९२-१(+$), १००३७०(+#) २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम नामद्वार बीजु), ९७३७६(+#) २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मप., (दंडक लेश्या ठित्ति), ९७४०५(#) २४ दंडक ५६३ भेद विवरण-गतागति, मा.गु., गद्य, मूपू., (सप्त नरके समुचे गति), ९७५१७-११(+#) २४ दंडक के ५ बोल, रा., गद्य, मूपू., (दंडक १ लेश्या २ थिति ३), ९६७४८(+#$) २४ दंडक बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मपू., (दंडक २४ ना शरीर ५), ९७१२३(+$) २४ दंडक संक्षिप्तविचार, रा., गद्य, मप., (साते नरकरो एक दंडक), ९७४४३(+) २४ द्वारे अल्पबहत्व विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (जीव गइ इंदिय काए जोग), ९५५७६-१(+#$) २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, श्वे., (नरकगति १ तिर्यंचगति २), ९५१११(+#$) २५ भावना विवरण-५ महाव्रत, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनोगुप्ति १ एषणासमिति २), १०००९१(+#) २७ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, म्पू., (मित्रथी कांइ पण अंतर), ९८१९२-३(+) ३० रागनाम कवित्त-संगीत, जसराज, पुहिं., गा. २, पद्य, इतर, (रसिक हिडोल राग ता के पीया), ९६०७८-२(+#) ३१ आगमगत विषयवस्तु निरूपण टीप, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम आचारांग तेहना स्कंध), ९६२८६(#$) ३१ बोल थोकड़ो, मा.गु., गद्य, मप., (पहेलौ उदै द्वारकर कहै छै), ९५९८१ ३२ अनंतकाय सज्झाय, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू., (श्रीजिणवर इण पर उपदिसै), ९८१४५-७९(+) ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उकाबाइ कहता तारो तूट), ९५२८०-२ ३२ सामायिकदोष सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा.१०, पद्य, मपू., (संयम धर सुगुरु प्राय), १००६६०-८(+) ३३ बोल थोकडा-जैन पदार्थज्ञान, मा.गु., गद्य, श्वे., (सात्त भये इहलोक भय), ९४७५२-१(६) ३४ अतिशय ३५ वाणी नाम विवरण, मा.गु., गद्य, मप., (१ पहलो अतिसय तीर्थंकररो), ९६७५७-१ ३६ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, मूपू., (एगे असंजमे १ एगे), १००६५९ ४५ आगम नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आचारांग१ सुयगडांग२), ९७३६२-३(+) ४५ आगम पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १७, वि. १८८१, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ९५०२६ ६२ मार्गणा २४ बोल यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ९५५०५(+) ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मप., (नमिउं अरिहंताई बोले), ९७६६२-३(+) ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., मूप., (देवगति मनुष्यगति), ९७३६६(+) ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन सुद्ध मन सुद्ध), ९४७८३(-) ८४ आशातनापरिहार स्तवन-जिनभवन, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर प्रणमइ), १००००९-११(+) ८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., गा. १८, पद्य, मपू., (जय जय जिण पास जगडा), ९९५२८-५२(६) ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ओसवालगच्छ १ खरतरगच्छ), १००८९० ८४ गच्छ विवरण, मा.ग., गद्य, श्वे., (गच्छपरंपरा श्रीमहावी), ९७७२७ ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. २३, वि. १७४३, पद्य, मूपू., (वरतमान चोवीसै वंदु), ९९०७२-४(+#s), ९९५२८-४१ १७० जिननाम स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, म्पू., (--), ९६५४६-१(+#$) ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, स्था., (जीव गइ इंदीये काए), ९९९६०(+#) ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सात नारकी पर्याप्ता), ९४७३६ ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकी सात नरकना), ९४९४४-१३(+#) For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५३७ अंगस्फुरण विचार, मु. हीररत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., इतर, (माथै फुरके पुहवीराज), १०००८९-२(+#) अंगस्फुरण विचार, मा.गु., गद्य, जै., इतर?, (मांथो फूरकें तो), ९६३९९-१(+#$) अंजनासती चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ९९८७३(#$) अंजनासती रास, मा.गु., गा. १५९, पद्य, मपू., (--), ९६४५१(+#$) अंजनासंदरी चौपाई, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु.,खं. ३ ढाल ४३, गा. २५३, ग्रं.७०७, वि. १७०६, पद्य, मप., (करतां सगली साधना), ९५६८०(+$) अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., खं. ३ ढाल २२, गा. ६३२, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (गणधर गौतम प्रमुख), ९५३३७(+), ९६७२६(+$) अंजनासुंदरी रास, मा.गु., ढा. २२, गा. १६५, पद्य, मूपू., (शील समो वड को नही), ९५४२२(+), ९५४५९(+), १००१७५(+), ९४९४१(६) अंजनासुंदरी रास-बृहद्, मा.गु., गा. ३१८, पद्य, मूपू., (पहिलै नइ कडवइ पय नमु), ९६४४८(+) अंबिकादेवी स्तति, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (मा अंबाई तो दरसणथी अडसिध), ९८१४५-४०(+) अइमुत्तामुनि सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गुण आदरीइ प्राणीया), ९६५९३-३(+) अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूप., (वीरजिणंद वांदीने), ९४८६९-८(+), ९७५८९-२(+#), ९९३९३-६(+$) अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. १४, वि. १९४४, पद्य, श्वे., (एवंतामुनिवर नाव तराइ), ९५२४५-४($) अक्षरबत्तीसी, मु. महेश, मा.गु., गा. ३२, वि. १७२५, पद्य, श्वे., (कका कछु कारज करो), ९७३१४-२(+) अक्षरबावनी, मु. उदैराज, मा.गु., गा. ५९, वि. १६७६, पद्य, श्वे., (अकल अवतार अपरंपर), १००२७५(+$), ९७२८०-२(#) अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहि., गा. ६२, वि. १७३६, पद्य, मूप., (ॐकार सदा सुख देत), ९७४७३-२(+), १००४६२-३ अक्षरबावनी, मु. जसराजजी; मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ५६, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (ॐकार अपार जगत आधार), ९६३९२(२), ९८३३६(२) अक्षरबावनी, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. ५८, वि. १७४९, पद्य, मूपू., (ॐकार अपार सुअक्षर सार), ९७४७३-४(+) अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., गा. ५७, वि. १७२५, पद्य, मपू., (ॐकार उदार अगम अपार), १००४६२-२, ९४९९८(2) अग्निभूति-वायुभूति सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (प्रणमुं ते ऋषिरायनइ), ९६५९३-४(+) अचलदास उमासांखली लाला मेवाडी की वार्ता, क. सूर कवि, रा., गद्य, जै., इतर?, (विघन हरण मंगल करण गणपति), ९५४४५-२(+) अचलदासजीरी वार्ता, रा., गद्य, वै., (गणपति गवरिनंद विधन), ९७६१६-१ अचलदासभोजा चौपाई, मा.गु., पद्य, मप., (तु वीसहथी विरोल), ९५८६३-१(#) अजितजिन पद, मु. भीम, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अजित जिनेसर भावि वंदीई), ९६१०९-२४(#) अजितजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पंथडो निहालुरे बीजा), ९९६८१-२(+), ९५६४८-४(#$) अजितजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (बीजा अजित जिणंदजी रे), ९४९४०-११(+$) अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (तार किरतार संसार), १००३२५-१०(+) अजितजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (आदि अजित श्रीशांतिनो), १००३२५-३(+) अजितजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (अजित जिणेसर चरणनी), १०००९०-१० अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू, (ओलग अजित जिणंदनी), ९७२६४-३१(+#), ९७४९२-१(+#), ९८४३३-८ अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, पू., (अजित जिणंदस्यु प्रीत), ९६९५५-२९(+), ९४८७९-२, ९८४३३-६, ९८४४४-३, ९९८८५-२६(#) अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अजितदेव मुज वालहा), ९६७१५-२३(#) अजितजिन स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (अजितजिणेशर सेवीइ रे), ९८४३५-७(+#) For Private and Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अजितजिन स्तवन-रतनापुरमंडण, मु. खेम, रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (विजयासुत वड भाग थै), ९९२२८-६(+#) अजितजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (विश्वनायक लायक), ९५३१३-३५(+) अजितजिन स्तुति, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अजित जिणंदा मुख पुनिम), ९७६६५-२(+) अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनीय, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., गा. ३२, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (मंगल कमलाकंद ए सुख), ९५५२२-३५(+), ९८१३५-३५(+) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति, मा.गु., पद्य, मूपू., (सोवार दीन चाडी प्रणी), ९९३९३-१(+$) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-अशुद्ध पाठ भ्रष्ट अक्षर, पुहि.,मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (वाणी वीर की याय वसी), ९९८८६-२(#$) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-स्तवनात्मक, मा.गु., गा. ३१, पद्य, श्वे., (--), ९४९९३(#), ९९०३२-७(#$), ९४९६७(5) (२) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-स्तवनात्मक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ९४९९३(१), ९४९६७(5) अढीद्वीप चंद्रसूर्यसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (जंबूदीप २ सूर्य), ९७४९२-३९(+#) अतीतअनागतवर्तमान चौवीसीनाम स्तवन, पं. विनयकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (केवली निरवाणी सागर महा), १००८९३-४(+#) अध्यात्म पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मपू., (कंचनवरणो नाह रे), ९४८९५-५(+#), ९६३६९-१६ अध्यात्म पद, जै.क. बनारसीदास, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (हम बइठे अपने मौन), ९४९२४-६ अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, स्था., (अजर अमर पद परमेसर), ९७४७३-५(+), १००४६२-१ अनंतजिन स्तवन, आ. सौभाग्यलक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (अनंत जिन सहेज विलासी), ९८४२३-१४ अनाथीमुनि पंचढालियो, उपा. विमलविनय वाचक, मा.गु., ढा. ५, गा.७१, वि. १६४७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन नायक), ९८३८६-१(+) अनाथीमनि सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (मगध देस राजग्रही नगरी), ९४७८२-१७ अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो), ९५५२२-२७(+), ९७५२९-३(+), ९७५८९-५(+#) अनाथीमनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुहिं., गा. १९, पद्य, मप., (मगध देश को राज राजे), ९४८६९-४(+) अनानुपूर्वी, मा.गु., को., मूपू., (--), ९९६६४(६) अबयद शुकनावली, मा.गु., प्रक. ४, पद्य, म्पू., इतर, (महावीर कुं ध्याय कं), ९७६८८(2) अबयदी प्रश्न, पुहिं., गद्य, जै.?, (ए च्यारि अक्षर पाशे), १००९४०-२(+) अभयकुमार चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ९७२६९(5) अभयकुमार रास, वा. पद्मराज, मा.गु., गा. ५०८, वि. १६५०, पद्य, मप्., (अविचल सुखसंपतिकरण), ९८३१६(+S) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अभिनंदनजी अरज हमारी), ९६६८७-३(#) अभिनंदनजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (बे करजोडी वीनवु रे), ९५४८९-२(+) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (--), ९६५४६-११(+#$) अभिनंदनजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (प्रभु तुम दर्सण), १०००९०-८ अभिनंदनजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (प्रभु तेरे नयन की), ९६७१५-२५(2) अमरकुमार रास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., ढा. १८, पद्य, मूपू., (आदीसर प्रथम जिन शांत), ९५४५३-४(+) अमरदत्तमित्रानंद चौपाई, मु. नेमिविजय, मा.गु., ढा. २४, गा. ५०५, पद्य, मूपू., (शासन नायक वीरजिन प्रणमी), ९८२५०(+) अमीचंद ढाल, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९१५, पद्य, मूपू., (अमीचंद मोटा अणगार ऐ तप), ९७७४५-२(+) अमृत धून, गोविंद, मा.गु., पद्य, वै., (ध्रुकटि ध्रुकटि द्रांकुटि), ९६५५२-२(+#) । अरणिकमुनि सज्झाय, मु. खीमा, पुहिं., गा. १२, पद्य, श्वे., (कचा था सोई चल गया), ९५८१०-१४(+#) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १५, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (चंपानगरथी चालिया), ९८५३१-२(+) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ९७२३७-१७(+), ९७५८९-१(+#$), ९९८७१-२०(+), ९७०९२-२ For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (अरणिक मुनिवर चाल्या), ९८८७६-८-३) अरिहंतपद सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वारी जाउं श्रीअरिहंत), ९५५२२-६४(+) अर्द्धपुद्गलपरावर्त्तनविचार सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीजिन उपदेशें सुलल), ९६५६८-३(#) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. नित्यविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सकल करम पाल्हें), १०००९०-१३ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. सिंहकुशल, मा.गु., गा. १८, वि. १८०५, पद्य, मूपू., (अरबुद सीखर सोहामणो), ९९८८५-९ (#) अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु. दा. १३, गा. १०७. वि. १७४१, पद्य, मूपू. ( मुनिवर आर्य सुहस्ति) ९४९५६ (+), ९५८३२-५ (+), ९६२९६-१ (+), ९४८५९, ९६७६५, ९५२३५-५(४) ९६९६९-१(०) ९८०१६-२१(०), १००१७६-१(०), ९६६४०(३) ९८७६३ (३) יי अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जगचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वंदो अयवंती सुकुमालन), ९६९५५-२६(+) अष्टप्रकारी पूजा, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (गंधोदक जल भरीया भरीया कलस), ९७३५१-४(-#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हां रे मारे ठाम धर्म), ९६५६६-२ (+#), ९७३४८-४(+३) १००८२२-४(+), ९५६४८-६ (# ) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनवर प्रणमुं), १००८४९-३, ९५४४२-११(#) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (चौबीसे जिनवर प्रणम्), ९५३१३-५५(५) " अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु गा. ४. वि. १८वी, पद्य, म्पू, (मंगल आठ करी जिन आगल), ९५१८२-४/+#), , ९७६६५-७(*), ९९८७१-७(*) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (अष्टमी अष्ट परमाद), ९७९८३-२ (३) अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अभिनंदन जिनवर परमानं), ९७६६५-१९(+) अष्टमीतिथि स्तुति, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (अष्टमी तप महिमा मोटो), ९६१०९-१२ (#) अष्टमीतिथि स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू., (श्रीरिसहेसर रंगधरने ), ९८६८६-६ (४) अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामंगलं अष्ट सोहे), ९५३१३-३२(+), ९६२७१-४+४), ९७९२९-७ (+), ९८०९३-२५१०१, ९८१५६-५ (+१) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (तिरथ अष्टापद नित), १००१२६-३(+), ९७५०५-२(#) अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनडो अष्टापद मोह्यो), ९४७८२-१९ अष्टापदतीर्थ स्तुति, आ. सिद्धिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (-), ९६४०९-१४(०४) अष्टापदमहिमा स्तवन, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., गा. १०८, पद्य, मूपू., (सरसति समरु सदगुरुनी वाणी), ९७५०५-१(#) अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पितापितामह पडपितामह), ९७८६५ असंख्यात अनंत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (यथोक्त भेद स्पष्ट), ९४९४३-२(#$) असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु, गा. १८, वि. १७वी, पद्य, भूपू (प्रणमुं श्रीगौतम), ९७५८९-६ (+) अहमदाबाद नगरवर्णन गजल, मु. कपूरविजय, मा.गु., गा. ७६, वि. १८५०, पद्य, मूपू., (देस सकलमांहे दीपतो गुज्जर), १००००८ (+) ५३९ For Private and Personal Use Only आगमवचन चौपाई, पंन्या. हीरकलश, मा.गु.. गा. २१२, वि. १६१७, पद्य, मूपू., (बंदु चउवीसे जिणराय), ९५९९० (8) आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., (हिवै भव्यजीवने), ९५८५९ (+$), ९८१९३(+), १००२९८(+) (२) १४ गुणस्थानक विचार आगमसारगत, प्रा. मा.गु., प+ग. म्पू., (--), ९६२९९ (+४) "" आगमसूत्रवृत्ति के कर्तासंवत विचार, रा., गद्य, श्वे., (वीर मुक्त गया पुठे जोडाणी), ९४९३१-२($) आगमादि ग्रंथसूची, मा.गु., गद्य, मृपू., (१ रावपसेणी प १०६), ९५१४७/**) आचारछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ३७, पद्य, श्वे. (गुर समज मेको नहीं), ९९०७१-१(०४) आचार्यपद सज्झाय-नवकार पदाधिकारे तृतीय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आचारी आचार्यनुंजी), ९५५२२-६६ (+) आत्मज्ञान पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (औधू आतम तत गति बूझी), ९५६४१-५ (०) " आत्मप्रतिबोध सज्झाय, ग. नवसुंदर वाचक, मा.गु., ढा. ८. गा. ८२, पद्य, भूपू (जिनशासन पामीय गुरू) ९८८४२-१(+४) Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४० देशी भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आत्मप्राप्ति गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे कारण आतम स्वरूप), ९५४७८-२(+) आत्मशिक्षा, क. हंसरत्न, मा.गु., गा. ११०, वि. १७८६, पद्य, मपू., (सकल सास्त्रे वर्णव्य), ९४७०७-४(+#) आत्मशिक्षा भावना, मु. रतनहर्ष, मा.गु., गा. १८५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (जिनवर मुख वासिनी जग), ९९०३१(+$) आत्मस्वरूप पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जाग रे सब रैन विहानी), ९५६४१-४६(+#) आत्मा विषे सज्झाय, पं. विजयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (इम सद्गुरु जीवने समज), ९९५८४-३ आदिजिन कवित्त, मा.गु., पद. १, पद्य, मप., (आदीजीणंद नमे नर इंद), ९८९०७-४(+) आदिजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (सिंहासण पद्मासन बैठे), ९४९४०-८(+) आदिजिन गीत, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मपू., (सरस्वती माता द्यो), ९६७४७-१(#) आदिजिन चरित्र, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ९६००६(#$) आदिजिन चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू., (प्रथम तीर्थंकर नमुं), ९९८७१-२९(+) आदिजिन चैत्यवंदन, मु. रुपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं श्रीआदिनाथ), ९५५३४-९(+#) आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. ६३, वि. १८७५, पद्य, मपू., (आदि करण आदि जग आदि), ९८९०७-३(+) आदिजिन पद, मु. अमर, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (ऋषभ जिणेसर है अलवेसर सकल), ९८१४५-२६(+) आदिजिन पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (जगतनौ नाथ जिनराय जगगुरु), ९८१४५-८(+) आदिजिन पद, मु. अमरसिंधूर, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (जगपत आदजिणंदा हो भविजन), ९८१४५-१७(+) आदिजिन पद, मु. अमरसिंधूर, पुहिं., गा. ३, पद्य, पू., (सांवरी सूरत की बलिहारी), ९८१४५-६४(+) आदिजिन पद, मु. कुशल, रा., गा. ४, पद्य, भूपू., (रीषभ केसरीया थारा गुण गाउ), १००११४-२(+) आदिजिन पद, वा. जैसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (साहिबा चरणे चित्त लीनौ), ९८१४५-१२(+) आदिजिन पद, म. नवल, हिं., गा.३, पद्य, श्वे., (लगी लगन कहो कैसे), ९६६२७-१५(2) आदिजिन पद, मु. प्रतापविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (शेज गिरि चलो जइये), १००००९-१३(+) आदिजिन पद, ग. महिमराज, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जाग जगमुगटमणि नाभि), ९६६२७-९(#) आदिजिन पद, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (मीठी मनि लागी साहिबा), ९५५२२-९(+) आदिजिन पद, मु. वीर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव मोरि मन वसे उंची), ९६१०९-२०(#) आदिजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (तुम दरिसण भलो पायो ऋषभजिन), ९८४३५-५(+#) आदिजिन पद, मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (श्रीआदिसर आदिजिनवरा), ९६१०९-२३(#) आदिजिन पद-केसरियाजी, पं. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (गजरो चढाउं रे सहेरो), ९६६२७-२४(#) आदिजिन पद-जन्मबधाई, श्राव. पीतांबर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (आज तो बधाई राजा नाभि के), ९६३२२-२(+) आदिजिन पद-धुलेवामंडन, पं. ऋषभदास, मा.गु., गा.४, पद्य, मूपू., (धूलेवा नगर मारो ऋषभ), ९६६२७-१६(#) आदिजिन पद-धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अंतरजामी प्रभु अलवेसर आदी), ९८१४५-७४(+) आदिजिन पद-धूलेवामंडन केसरीयाजी, मु. अमर, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू., (म्हारा धूलेवा धणीनी पूजा), ९८१४५-४३(+) आदिजिन पद-संध्याकाल, मु. जिनदास, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (सांझ समें जिन वंद), ९७४९२-१४(+#) आदिजिन लावणी, मु. हीरालाल, रा., गा. ४, पद्य, स्था., (यों कहै ऋषभजिन ब्राह्मी), ९६६४८-५ ।। आदिजिन लावणी, पुहिं., गा. २५, वि. १८६०, पद्य, मूपू., (सरसती माता सुमति की), ९९८७२-५(#$) आदिजिन लावणी-धूलेवा, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ५०, वि. १८७३, पद्य, मूपू., (रिसहेसर जिनराज विराजै गढ), ९८१४५-२(+) आदिजिनविनती स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मूप., (श्रीसरसतीजी वरसती), ९६००१-३(+$) आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (जय पढम जिणेसर), ९६००१-१(+$), ९६४०९-१६(+$) । आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ६७, पद्य, मप., (आदि धर्म जिणि उधों), ९४६६५(+#) For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५४१ आदिजिन विवाहलो, मु. गुणनिधानसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ४४, गा. २४३, पद्य, मपू., (सासनदेवीय पाय प्रणमेवीय), ९४७७०(+#), ९५६२१(#$), ९८५९६() आदिजिन स्तवन, मु. अमर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (जय जय ऋषभजिणंद त्रिजग तार), ९८१४५-९६(+) आदिजिन स्तवन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (जगपति जय जय रिषभजिणंद परम), ९८१४५-४७(+) आदिजिन स्तवन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (जय जय रिषभजिणंद दिणंद), ९८१४५-८३(+) आदिजिन स्तवन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (जय जय श्रीरिसहेसर जगदानंद), ९८१४५-६३(+) आदिजिन स्तवन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (दिल रंजण प्रभू दरसण दीजीय), ९८१४५-४२(+) आदिजिन स्तवन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ध्यावौ ध्यावौ ध्यावौ हो), ९८१४५-७०(+) आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मप., (ऋषभ जिणेसर प्रीतम), ९९६८१-१(+) आदिजिन स्तवन, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (आगलि उभो आदरी रे अरज करुं), ९८०१६-१९(#$), ९८०१६-३५(#S) आदिजिन स्तवन, मु. कृष्णविमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (आदिजिणेसर साहिबो), १०००९०-१२ आदिजिन स्तवन, मु. केशरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणेशर वालहो मुज), ९८४३५-६(+#) आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (जे जगनायक जगगुरु जी), ९५३६७-१३(+#) आदिजिन स्तवन, मु. खुस्यालविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (रीषभ जिणेसर सांभलो मुज), ९५३६२-५(+#) आदिजिन स्तवन, मु. जिनचंद, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (धुसो वाजे रे माहराज), ९७४९२-३१(+#) आदिजिन स्तवन, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (नित ध्यावो रे रिषभ), ९६६२७-३२(#) आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन मधुकर मोही राउ), ९५४८९-४(+) आदिजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेश्वर पूजवा), ९५०३८-५ आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (लग्या मेरा नेहरा), १००३२५-७(+) आदिजिन स्तवन, पंडित. टोडरमल , पुहिं., गा. ६, पद्य, दि., (उठ तेरो मुख देखं), ९६६१४-१०(#) आदिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (प्रभु ताहरी मूरति), ९६५४६-१०(+#$) आदिजिन स्तवन, मु. फतेचंद, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ९९८८४-१(#$) आदिजिन स्तवन, मु. भीमचंद, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (सकल कला संपूर्ण पूनम), ९६६८७-४(#) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पीउडा जिनचरणानी सेवा), ९७४९२-२०(+#) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बालपणे आपण ससनेहि), ९५०३८-४ आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (जगजीवन जगवाल हो), ९४९९२-८(+#), ९९८७१-२२(+), ९८४४४-२, ९८०१६-१२(२) । आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन), ९६९५५-२३(+) आदिजिन स्तवन, मु. सिंहकुशल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (म्हे तो उदीयापुरसुं), ९५३६२-११(+#$), १००८५९-३ आदिजिन स्तवन, रा., गा.१३, पद्य, श्वे., (इखागवंसना उपना सामी), ९५८१०-६(+#) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (रीषभदेव कूरणानीध स्वामी), १००४४५-४ आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं प्रथम जिनेसर), ९५५२२-३८(१), ९९५२८-५० आदिजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., ढा. ४, गा. ५२, पद्य, मूपू., (आदीसर पहिलो अरिहंत भयभंजण), ९५५२२-३६(+) आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (रिसहेसर साहिब जिनराया), ९८१४५-६२(+) आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी, मु. ऋषभदास, रा., गा.५, पद्य, मपू., (मरुदेवीना नंद थारा मुखडा), ९६०६०-२(#) आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी धुलेवामंडन, मु. अमर, पुहिं., गा.१२, पद्य, मपू., (सुणौ सदा सिव वात हमारी), ९८१४५-२७(+) आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (केसरीयानाथ कैसा है अखं), ९८१४५-६७(+) आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (तुम तौ भलै विराजौजी गढ), ९८१४५-६९(+) For Private and Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धन धन धूलेव सुधाम साचौ), ९८१४५-८८(+) आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधर, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (रिषभजिणंद राजै कि गाजी), ९८१४५-६१(+) आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शिवरमणी वर हेत हीयै धर), ९८१४५-९०(+) आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज तो बधाइ राजा नाभि), ९४७८२-९ आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (पहिलु पणमिअ देव), ९५४९०(+), ९७३५३(+), १००२५७(+) (२) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (हं पहिलु धुरि), ९७३५३(+) (२) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीविजयतिलक महोपाध), ९५४९०(+), १००२५७(+) आदिजिन स्तवन-धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ६, वि. १८७६, पद्य, मपू., (जय जगनायक लायक जगपती रे), ९८१४५-६०(+) आदिजिन स्तवन-धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (प्रणमु प्रथम जिणंद वंदित), ९८१४५-७५(+) आदिजिन स्तवन-धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (राजे रिषभजिणंद धूलेव सुधन), ९८१४५-६५(+) आदिजिन स्तवन-धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (राजै रिषभजिणंद जग धूलेव), ९८१४५-६८(+) आदिजिन स्तवन-धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (राजै रिषभजिणंद धूलेवधरा), ९८१४५-७२(+) आदिजिन स्तवन-धूलेवामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रिषभजिणंदसु वीनतवारू कीजै), ९८१४५-६६(+) आदिजिन स्तवन-धूलेवामंडन, मा.गु., गद्य, मपू., (वरदाईमाईवडी रहे सदा), ९९४७८-२(+) आदिजिन स्तवन-नारदपुरीमंडन, मु. वल्लभ, मा.गु., गा.७, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (चालो सहेली आपण सहु), ९५३६७-१५(+#) आदिजिन स्तवन-बृहत् शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मपू., (प्रणमवि सयल जिणंद), ९८३०२-७(+$), ९८०१६-७(#), ९६४०५-२($) आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (राणपुरे रलीयामणो रे), ___ ९५५२२-८(+), १००३२५-९(+) आदिजिन स्तवन-राणपुरमंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ९, वि. १८७६, पद्य, मूपू., (राणपुरै राजेस राजै रिषभ), ९८१४५-५९(+) आदिजिन स्तवन-राणपुरमंडन, मु. कवियण, मा.गु., गा. १५, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (राणपुरे मन मोहियो रे), ९६५३०-२ आदिजिन स्तवन-विक्रमपरमंडन, मु. करमसिंह, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (नाभीनंदन प्यारो लागै), ९५६७७-५(+) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (रिसहेसर जिनराय हो लाला), ९८१४५-४६(+) आदिजिन स्तवन-शत्रंजयमंडन, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (म्हे तो सहिपुराथी उमाया), ९५३६२-४(+#) आदिजिन स्तवन-श@जयमंडन, मु. शुभविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (लालण ईण डुंगरीइं मन मोहीउ), ९८०१६-८(4) आदिजिन स्तवन-श्रृंखलाबंध, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (आदीश्वर आदि करि ध्या), ९९५२८-५४ आदिजिन स्तुति, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर रिसहेसर), ९६४०९-१(+$) आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), ९७३१२-९(+#), ९९३९७-६(+#), १००६६०-१६(+), ९६१०९-१५(१), ९९४८५-४(#) आदिजिन स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (विमलाचलमंडण जिनवर), ९५४४२-२६(2) आदिजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मप., (आदि जिनवर राया जास), १००१३०-६ आदिजिन स्तुति-निंदागर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. १६, पद्य, म्पू., (हिय निधि विनती त्रिकरण), ९४९९२-११(+#) आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गजकुंभे बेसी आवे), ९७६६५-२६(+) आदिजिन स्तुति-राधनपुरमंडन, मु. ऋद्धिचंद्र, मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (आदि जिणेसर अति अलवेस), ९७६६५-५(+) आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विसलपुर वांदु), १००८७८-८(#) आदिजिन स्तुति-शत्रुजयतीर्थ, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (पहिला पूजो श्रीआदि), ९८२२०-२ For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५४३ आदिजिन स्तुति-शत्रुजय मंडण, आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (सेत्तुंज मंडण), ९५७७०-४(+#) आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (सुधर्म देवलोक पहिलो), ९७६६५-२८(+) आदित्यवार कथा, मा.गु., गा. १५७, पद्य, श्वे., (रिसहणाह प्रणमु जिणंद), ९९१२३-९(+#), १००१००(2) आधाशीशी निवारण पद, मा.गु., गा. २, पद्य, जै., वै., इतर, (हिमज फटकडी थांनसुं अंजन), ९७६६५-२९(+) आधाशीशी निवारण मंत्र विधिसहित, मा.गु., गद्य, जै., वै., इतर, (ॐअट्ठावली वनगहनमांहि), ९५८०२-१२(+) आध्यात्मिक गीत, मु. आनंदघन, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (मेरी सुमेरी सुमेरी सौमेरी), ९६३६९-२०(5) आध्यात्मिक गीत, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सुन हो हमारी सीख), १००७९३-१(#) आध्यात्मिक गीत, मु. लब्धिविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जब लगे विषय घटा न घट), ९४९५४-२(+#), ९७२१५-२(+#) आध्यात्मिक गीत-देहस्थहंस, मु. हंसतिलक, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (अरिहंतदेव सुसाध गुरु), ९८६४६-१(5) आध्यात्मिक जकडी, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कबहुं न करिहुं री), ९९५२८-२७ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अणजोवंता लाख जोवे तो एके), ९४८९५-३(+#), ९६३६९-१४ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मप., (अनंत अरूपी अविगत), ९४८९५-४७(+#), ९६३६९-२३($) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (अनुभव तूं है हेतु), ९४८९५-१८(+#), ९६७९६-६(2) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अनुभव प्रीतम कैसी), ९४८९५-४२(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अनुभव हम तो रावरी), ९४८९५-१९(+#), ९६७९६-७(4) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूप., (अवधू अनुभव कलिका), ९४८९५-१४(+#), ९६३६९-६, ९६७९६-१५(२) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधू क्या मांगुगुनहीना), ९४८९५-१२(+#), ९६३६९-४, ९६७९६-१३(२) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, पू., (अवधू नट नागर की बाजी), ९४८९५-१३(+#), ९६३६९-५, ९६७९६-१४(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधू नाम हमारा राखे), ९४८९५-१५(+#), ९६७९६-१६(4), ९६३६९-७(5) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधू राम राम जग गावे), ९४८९५-११(+#), ९६३६९-३, ९६७९६-१२(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आतम अनुभव फूल की), ९४८९५-१७(#), ९६७९६-२८(#$) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (आतम अनुभव रस कथा), ९४८९५-२१(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (आतम अनुभव रस कथा पाला अजब), ९६७९६-२३(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, हिं., गा. ४, पद्य, मप., (आपही बाजी आपही बाजीग), ९४८९५-३४(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आस्या औरन की कहा), ९४८९५-१०(+#), ९६३६९-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऐसी कैसी धरवरी), ९४८९५-७(+#), ९६३६९-१८ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मप., (औ● क्या सौवे तन मढ), ९४८९५-९(+#), ९६७९६-१०(#), ९६३६९-१(६) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (किन गुन भयो रे उदासी), ९९८७१-२१(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूप., (कुबुद्धि कूबरी कुटिल), ९६७९६-२२(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कैरे ज्यारे ज्यारे), ९४८९५-३३(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कोउ राम कहो रहमान), ९६७९६-९(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मपू., (क्यारे मने मलशे मारो), ९५६४१-६७(+#), ९६७९६-२१() For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मप., (क्यारे मने मलस्ये), ९६७९६-२०(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (क्या सोवै उठि जाग), ९५६४१-६३(+#), ९६७९६-१(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ग्यान भाण भयो भोर मे), ९४८९५-४०(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मप., (चेतन चतुर चोगान लरी), ९६७९६-४(2) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मप., (चेतन सकल वियापक होइ), ९४८९५-३९(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मप., (जिया जानै मेरी सफल), ९५६४१-६४(+#), ९६७९६-३(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूप., (ठगोरी भगोरी लगोरी), ९६७९६-२५(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मपू., (तरस कीजइ दइको दइकी सवारी), ९४८९५-८(+#), ९६३६९-१९ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ता योगी चित ल्याउं), १००७८९-१(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (तेरी हुं तेरी हुं), ९६७९६-२६(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूप., (देखो आली नट नागरको), ९४८९५-३१(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (नट नागर संजोरी हो), ९६३६९-११ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मप., (नाथ निहारो आप मतासी), ९४८९५-२०(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (निसदीन जोउं थारी), ९६३६९-१० आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (निसाणी कहा बतावु रे), ९४८९५-२९(+), ९६७९६-८(2) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (नीस दिस सोहामणो निर), ९४८९५-४६(+#$), ९६३६९-२२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, पद्य, मूप., (परपुद्गल के सहु को रागी), ९४९२४-१५ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मप., (परम नरममति और न भावै), ९६७९६-२४(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मपू., (पिया विनु सुद्धि), ९४८९५-२(+#), ९६३६९-१३ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूप., (पीया बिन सुधबुद्ध), ९४८९५-१(#$) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पीया विना निस दिन), ९६७९६-५(2) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ६, पद्य, मूप., (पीया विनु सुधि बुद्धि), ९६३६९-१२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मपू., (प्रीत की रीत न होइ), ९४८९५-३२(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (बालुडी अबला जोर किश), ९४८९५-४८(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (भादंकी राति कातसी), ९४८९५-२५(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (भोले लोगा हुं रडु), ९६३६९-९ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मप., (माला पूछीयै आली खबर), ९४८९५-२४(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (माहरओ बालूडो सन्यासी), ९६७९६-१९(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मीठडो लागे कंतडो), ९४८९५-३७(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मपू., (मुने महारा नाहलीयाने), ९४८९५-६(+#), ९६३६९-१७ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरा माझि मजेठी सुण), ९६३६९-८() आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (मेरिसुं मेरिसुं० तुम्ह), ९४८९५-३६(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मपू., (मेरी तुं मेरी तुं), ९६७९६-२७(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद. ५, वि. १८वी, पद्य, मप., (मेलापी यान मलावो अनु), ९४८९५-२८(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (रीसानी आप मनावो रे), ९४८९५-२७(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रे घरियारी बाउ रे मत), ९५६४१-६२(+#), ९४९२४-९, ९६७९६-२(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (विचार कहा विचारे रे), ९४८९५-३०(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (विवेकी वीरा सह्यो न), ९४८९५-२३(+#) For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५४५ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मप., (सलौणे साहिब आवेंगे), ९४८९५-२२(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, मप., (साधु भाई अपना रुप), ९४८९५-३५(+#S) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साधु संगति बिनु कैसे), ९४८९५-४५(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साधो भाई सुमता रंग), ९४८९५-१६(+), ९६७९६-१७(2) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुहागणि जागी अनुभव), ९५६४१-६५(+#), ९६७९६-१८(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मप., (हठीली आख्यां टेक न), ९४८९५-४४(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूप., (हमारी लै लागी प्रभु), ९४८९५-४१(2) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ७, पद्य, पू., (हरि पतित के ओ धारन), ९६३६९-२१(६) आध्यात्मिक पद, कबीरदास संत, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (उदर भरण के कारणेरी सुरभि), ९४९२४-१२ आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (संतो मन माया मे राजी घर), ९९५८४-२३ आध्यात्मिक पद, मु. जिनराज, पुहिं., चौपा. ३, पद्य, मप., (अबहइ मदन नृपति कउ), ९९५२८-३३ आध्यात्मिक पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (कहा कोइ होर करै काहु की प), ९९५२८-३४ आध्यात्मिक पद, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (मेरे मोहन अब कुण पुर), ९९५२८-१४ आध्यात्मिक पद, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (रे जीओ आपणपउ अब सोच), ९९५२८-१९ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (अनुभो हम कबके संसारी मेरे), ९५६४१-२५(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (अनुभौ ढौलन कब घर), ९५६४१-१३(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (अरी मै कैसे मनावै री मेरो), ९५६४१-५२(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., पद. ३, पद्य, श्वे., (आतम अनुभौ आंबकौ नवलो), ९५६४१-२२(#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (एही अजब तमासा औधू), ९५६४१-१५(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (औधु आतम भरम भुलाना), ९५६४१-२९(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (औधु घरणी विण घर कैसो), ९५६४१-३७(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (औधु या जाग के जगवासी), ९५६४१-२१(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (औधु हेम विन जग), ९५६४१-३८(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (औधू आतम धरम सुभावै), ९५६४१-५४(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (और खेल भव खल वाव रे), ९५६४१-२४(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कंत कह्यो हूं न मानै), ९५६४१-५०(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (कहा कहियै हो आप सयान), ९५६४१-८(#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (क्यं आज अचानक आए), ९५६४१-४४(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मप., (ग्यान कला गनि घेरी), ९५६४१-१८(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मूप., (घर के घर विन मैरो), ९५६४१-५७(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (छकी छवी वदन नीहार), ९५६४१-२६(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (जब हम तुम इक ज्योत), ९५६४१-५८(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (नाथ विचारो आप विचारी), ९५६४१-३९(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (पर परणांम नवी भाये), ९५६४१-२७(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (प्यारे नाह घर विन), ९५६४१-५६(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (मनडानी अमै केनै जो), ९५६४१-४५(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनुआ वस नही आवै अबधु), ९५६४१-१६(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (माई रे मेरे कंत), ९५६४१-३२(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (मेरा आतम अतहि अयांना), ९५६४१-२८(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (यूही जनम गमायो भेख), ९५६४१-४७(+#) For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४६ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद. ३, पद्य, श्वे. (रहे तुम आज क्युं जीव), ९५६४१-२३(+#) "" " " आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू (विसम अति प्रीत निभान), ९५६४१-५५ (+) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सासरे आज रंग वधाई), ९५६४१-२०(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू (हमारी अखियां अति ऊलस), ९५६४१-१४(+) आध्यात्मिक पद, जे.क. द्यानत, पुहि., गा. ९, पद्य, दि., ( आतमराम सयाना कोई झूठा), ९९१२३-६ (+) आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (तुं आतमगुण जाण रे), ९४९२४-७ आध्यात्मिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (देख्या दुनियां बीचि), ९९१२३- ४(+#$) आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजब गति चिदानंद घन), ९६७१५-४मक " आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि पुहिं. गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू (सबल या छाक मोह मदिरा), ९६७१५-१७(45) आध्यात्मिक पद, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मानुं जिन पदकज लीनो भंग), ९८६८१-१५(+#) आध्यात्मिक पद, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (विदेसी मेरे आइ रहे), ९९५२८-२८ आध्यात्मिक पद, मु. राज, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू (हिलि मिलि साहिब कउ), ९९५२८-३५ " आध्यात्मिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( है इस सहिर विचको), १००००९-५ () आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं. गा. ७, पद्य, मूपू., (किसके वे चेले किसके), ९६७१५-१२(७) आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (चेतन चेतन अथिर संयोगा जलध), ९४९५४-९ (+#), ९६७६३-७(#) आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं. गा. ११, पद्य, म्पू. ( धरम सखायत धरमबल परबल संचल), ९४९५४-१० (+) 1 आध्यात्मिक पद, मु. श्रीसार, पुहिं. गा. ६, पद्य, मूपु. ( मेरी आतमा अति अभिमान), ९८०२३-२२ , आध्यात्मिक पद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (एसो ज्ञान बिच्यारे हो ), ९८६८१-२१(+#) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जब जानो पेउ प्राहुना), ९९५२८-९ आध्यात्मिक पद, पुहिं. गा. ४, पद्य, श्वे. (मोहा मन की हो बात), ९८०२३-१९ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आध्यात्मिक पद काया, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (सुणि बहिनी पीउडो), ९५५२२-२३(+) आध्यात्मिक पद जकडी, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मृपू., (राशि राशि तारा कला जोसी), ९४८९५-२६ (१०) आध्यात्मिक पद-ज्ञान गोदडी, पुहिं., मा.गु., गा. ३, पद्य, क्षे., (गुदडी प्यारी रे वाल), ९८०२३-१२ आध्यात्मिक पद भाद्रवमास, मु. अमर, पुहिं, गा. ५, पद्य, भूपू (भाद्रवडी भल आयो हो भविजन), ९८१४५-२२(*) आध्यात्मिक पद-सुमति, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू., (अलवेसर वीनत अवधारी मनमोहल), ९८१४५-९४(क) आध्यात्मिक पद-सुमतिकुमति, पुर्हि गा. ५, पद्य, भूपू.. (सुमत सुहागण सुणरी सुगुणां), ९८१४५-५३(+) " " आध्यात्मिक फाग, पुहिं. गा. ६, पद्य, क्षे., (अहो वालम घरि फागुण हो), ९५६६७-५क आध्यात्मिक सज्झाय, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सिज्या भली रे संतोषनी वाण), ९९५८४-१० आध्यात्मिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन जो तुं ग्यान), ९६७१५-३(#) आध्यात्मिक सवैया-माला, पुहिं., सवै. १, पद्य, मूपू., (कहे गोरि तेरा बदन ज ऐसा ), ९८३७९-२(+) आध्यात्मिक होली पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू (सुध वसंत क्यु यात चतुर), ९५६४१-१९(+#) , आनंदघन गीतबहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं, पद. ७८, पद्य, मूपू., ( क्या सोवेउठि जाग), ९४९५४-१(०), ९७२१५-१९००), ९७३९४ (+$), १००५९१(s) आनंदश्रावक डाल, मु. रायचंद ऋषि, रा. डा. ४, गा. ६५, वि. १८२९, पद्य, खे, (अनरी जात अनेक छै), ९८५३१-३(१) आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. १५, गा. २५२, वि. १६८४, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनवर चरण), ९५८३२-६(+), ९७२१८-१(+), ९७३२५ (+), ९७३९७-७ (+), ९७८०४(+$), १०००८८ (+), ९५१२०, ९८६२३, ९५६१८($), ९८६६० ($) आबुतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३४, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (आज अनोपम पुन्यधी मह भेटीआ), ९७५८९-२४(१०) आबुतीर्थ स्तवन- चैत्यपरीपाटी, पं. रूपविजय, मा.गु. गा. ४४, पद्य, म्पू, (पणमवि जिन चुवीश देवा सेवक), ९८८३१(३) आराधना पाठ, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. १६, पद्य, दि. (मैं देव नित अरहंत), ९९५२८-३१ आराधनासूत्र, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु गा. ४०६, वि. १५९२, पद्य, मूपू (जिनवर चरण युगल पणमेस ) ९४६८२ (*) " " For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५४७ आर्द्रकुमार चोढालियो, उपा. रत्नविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ९१, पद्य, मप., (चरमजिणेसर नित नमी), ९७२१८-२(+) कुमारमुनि सज्झाय, वा. कनकसोम, मा.गु., ढा. ५, गा. ४९, वि. १६४४, पद्य, मपू., (सकल जैन गुरु प्रणमुं), ९५५२२-३९(+$) आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (१ सूत्रार्थ पोरसी ९), ९४९२३-२(+) आशापुरादेवी छंद, किसना, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (प्रग व्यथा आसापुरा), ९५४९२-४ आषाढभूति चौपाई, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गा. १५४, वि. १६७२, पद्य, पू., (पणमिय विमल विमलमतिदाई), ९८४२४(+) आषाढभूति रास, मा.गु., गा.८५, पद्य, मूपू., (सिरि शांति जिणेसर भुवण), ९७१८४-४(१) आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. ६७, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवदन निवासिनी), ९५५२२-४१(+), ९५६६०(+#), ९५८३२-२(+), १००८५९-१ आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. २१८, ग्रं. ३५१, वि. १७२४, पद्य, मपू., (सकल ऋद्धि समृद्धिकर), ९८१८२(+#), ९८४५३(+#), ९५५४४, ९४७५६(5) आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ७, वि. १७३७, पद्य, पू., (सासणनायक सुरवरूं), ९८२०४-१(#S) आषाढाभूतिमुनि चौपाई-सम्यक्त्व परिषह, मु. कृष्ण, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीजिनराज सुहंकरू समर्या), ९५४७१(+$) आषाढाभूति रास, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ९, वि. १८८३, पद्य, श्वे., (गणधर गौतम गुणनीलो), ९५२४५-२ इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नारी रे मी दीठी एक), ९८४३५-३(#) इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. १८७, ग्रं. २९९, वि. १७१९, पद्य, मपू., (सकल सिद्धदायक सदा), ९५७५७(+$), ९६०६०-१(+#), ९८३४३, ९७४१९(#S), ९८२५२(#$), १००३६९-१(#s), ९५२७२(७) इलाचीकुमार छढालियुं, मु. माल, मा.गु., ढा. ६, वि. १८५५, पद्य, स्था., (मात मया करो सरस्वती), ९९९५१ इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (धनदत्त शेठनो दीकरो ए), ९५८१०-२६(+#) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नाम इलापुत्र जाणीए), ९५५२२-२४(+), ९७५८९-४(+#), ९४७८२-७ इलाचीपुत्र लावणी, मु. हीरालाल, रा., गा. ४, वि. १९६३, पद्य, स्था., (या पूर्व जन्मकी), ९६६४८-१(६) इलाचीपुत्र सज्झाय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नाम एलापुत्र जांणीइं धनदत), ९५०३८-७ उग्रसेन प्रति मजलसराय का पत्र, श्राव. मजलसराय अग्रवाल, मा.गु., वि. १८०२, गद्य, मूपू., (सीधश्री पाणीपंथ सुभसुथान), १००१२४ उच्चनीच गोत्र उपार्जन विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे सोले बोले उच्च गोत्र), ९४९४४-१०(+#) उदाईराजा वखाण, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ६, पद्य, स्था., (चंपानगर पधारीया), ९६३७५-१(+#) उपधानतप स्तवन, पंडित. प्रेमविजय, मा.ग., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७८५, पद्य, मप., (प्रणमी वीर जिणंदने), १०००९०-११ उपाध्यायपद सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (चोथे पद उवज्झायन ग), ९५५२२-६७(+) ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (--), ९६५९३-१(+) ऋषिदत्तासती चरित्र, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ९६०३९(+$) ऋषिपंचमी कथा, रा., गद्य, श्वे., (पुष्पवती नगरीने विषै), ९५६९१-२ एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मप., (आज एकादसी रे नणदल), ९४७८२-२ एकादशीतिथि सज्झाय, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, पद्य, मूप., (हिवे एकादशी तप तणौ माधवजी), ९७२६४-१४(+#) एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, स्पू., (गोपीपति पुछे पभणे नेम), ९७५८९-११(+#) एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (श्रीरिषभ अजित), ९७६६५-१६(+) ओसवाल गोत्र उत्पत्ति कवित्त, मु. भूरभद्र, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (प्रथम राज करै परमार), ९७२८०-३(#) औपदेशिक कथा संग्रह, मा.गु., पद्य, श्वे., (कुमारनंदेर्न परोस्तु), ९५३३१(+#$), ९६१९०(३) औपदेशिक कवित्त, पुहिं., दोहा. १, पद्य, मपू., (प्रीत आप पर जलै प्रीत अवर), ९५७९६-२(+#) औपदेशिक कवित्त, क. गद, मा.गु., गा. १, पद्य, जै., (राजा चंसल होय कै भोम अपणी), ९७४९२-३६(+#) औपदेशिक कवित्त, पहि., दोहा. १, पद्य, श्वे., (धरि के धनिकेन के हार के),१००४६२-३० For Private and Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४८ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ औपदेशिक कवित्त, पुहिं. गा. १, पद्य, वै., इतर (मोर मेर पर चुरी केहर), ९९८६६-२(*) " , औपदेशिक कवित्त- चंचल मन क. गद, पुहिं., गा. ३, पद्य, ., (चंचल पिपलपान मनराजानुं), १००४६२-२२ औपदेशिक कवित्त प्रभुदर्शन, पुहिं. गा. २, पद्य, थे. (पे कर उभा तप करे) १००४६२-३९ औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं. पद. ४, पद्य, वै., इतर (ग्यान घटे नरमूड की), १००४६२-१९८(४) औपदेशिक कुंडलिया, पुहिं., मा.गु., पद्य, वै., इतर, (हरि वण साथी कुणे है कीइ), ९८८७६-६(-$) औपदेशिक गजल, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ६, पद्य, स्था., (अब ज्ञान का दरपण देख), ९४७५८-८ " औपदेशिक गजल- गुरुज्ञान, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ७, पद्य, स्था. (मिलीये मनुष्यकी काया कभी), ९४७५८-३ " יי औपदेशिक गजल- तकदीर, मु. हीरालाल, पुहिं. गा. ६. वि. १९६४, पद्य, स्था. (अपनी अपनी तगदीर के) ९४७५८-७ औपदेशिक गजल तकदीर, मु. हीरालाल, पुहिं. गा. ७, वि. १९६४, पद्य, स्था., ( फिकर नहीं कीजीये कोई सवी), ९४७५८-६ औपदेशिक गजल-नशीयत, मु. हीरालाल, उ., पुहिं., गा. ७, पद्य, स्था., (मुरशद की नशीयत को), ९४७५८-४ औपदेशिक गजल- हिदायत, मु. हीरालाल, उ. पुहिं., गा. ५, पद्य, स्था. (आलिम से मालूम होना), ९४७५८-५ " औपदेशिक गहुली, पं. वीरविजय, मा.गु. गा. ९, पद्य, मृपू. (मुनिवर मारगमां वसिया), १७२९८-३(०) औपदेशिक गीत, मु. कवियण, पुहिं. गा. १५, पद्य, मूपू (वनि वनि कुसमि रुपइ भला), १७१८४-३ (#) औपदेशिक गीत, मु. जिनराज, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (परदेसी मीत न करीये), ९९५२८-३७ औपदेशिक गीत, मु. भद्रसेन पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्राणी मेरउ न डरइ रे), ९५५००-३ औपदेशिक गीत, मु. विनय, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (थिर नांहि रे थिर), ९४९५४-६(+#), ९६७१५-७(#), ९६७६३-४(#) औपदेशिक गीत, मु. विनय, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू., (मन नेहे काहु के वस मन की), ९६७१५-८(४) औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भगवति भारति चरण), १००१९८-२(+) औपदेशिक जकडी-जीवकाया, मु. विनय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (काया कामनी वेलाल), ९४९५४-१३ (+#), ९६७१५-१०(#), ९६७६३-११(#) औपदेशिक दुहा, पुहिं., दोहा १, पद्य, इतर (सोरठ गढवी उत्तरी कंस), ९७४९२-३३(०) ९६९७६-२, ९८२२९-३, ९७७०३-२(४) " , , " औपदेशिक दुहा संग्रह, क. गंग, पुहिं., गा. ५, पद्य, जै. इतर (कहा नीच का संग कहा मूरख), ९७४९२-३७ (+०) औपदेशिक दहा संग्रह, पुहिं. गा. १३, पद्य, इतर ? (एक समे जब सींह कूं), ९७२१५-३(४), ९७४९२-३४(४) औपदेशिक दुहा संग्रह, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (लगे भुख ज्वर के गये), ९५९४५-२ औपदेशिक दोहा, क. दिन, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (मनखा देही पाय कै), १०००८९-८(+#) औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि., दोहा, ४६, पद्य, वै. इतर (चोपड खेले चतुर नर). १०००८९-४(५) " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक पद, मु. अखेराज, पुहिं. गा. ३, पद्य, श्वे. ? (सारी सलवट कोय अहरन खंडीया), १०००८९-६ ( +#) " औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जग आशा जंजीर की गति), ९६७९६-११(#) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुष्टिं गा ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वारो रे कोई पर घर भम), ९४८९५-४** ९६३६९-१५ औपदेशिक पद, मु. आनंदराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपु. ( छोटी सी जान जरा सा ), ९७२३७-२३(१), ९६६१४-१३(*) औपदेशिक पद, कबीर, पुहि., गा. ५, पद्य, वै., ( उठ चलणा एकलि गार में). २००९२६-६(*) . औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुर्हि, दोहा. ५, पद्य, वै., (जागे क्युंनी नींद वटाउडा), १००१२६-४(+) औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, वै., (जोगारंभ कौ मारग वांके रे), १००११४-४(+) औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहिं, दोहा ४, पद्य, वै. (देख दिवाना हुवा रे नर देख), १००११४-३(+) औपदेशिक पद, मु. केशवदास, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जा घरि तेल फूलेल), १००४६२-३२ औपदेशिक पद, मु. केशवदास पुहिं. गा. २. वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मालव देश नरेस महिपति), १००४६२-७ " " " औपदेशिक पद, मु. गुणविलास, पुहिं., गा. ४, पद्य, म्पू., (दया विन करणी दुःखदान), १००७८९-५(#) औपदेशिक पद, मु. जिनरंग, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सब स्वारथ के मित्र), १००११४-६(+) औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुष्टिं गा ३, पद्य, मूपू (कहा रे अग्यानी जीव), १००११४-७(+), ९५५००-५, ९९५२८-८ "" औपदेशिक पद, वा. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जीय रे चल्यो जात जहा), ९९५२८-२१ For Private and Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ औपदेशिक पद, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (रे जीव काहे करत गुमान कु), ९९५२८-१८ औपदेशिक पद, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू., (कइसउ सासकउ वेसार कुस), ९५५००-२, ९९५२८-२० औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अनुभव अपनी चाल चलीजै), ९५६४१-१७(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अनुभौ ग्यान्न नयन), ९५६४१-११(#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (अनुभौ या मै तुमरी), ९५६४१-४३(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अनुभौ हम तौरा उरै खो), ९५६४१-१०(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. १२, पद्य, मपू., (आप मतीयै भला मुंढ), ९५६४१-४९(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (ओधू सुमति सुहागन), ९५६४१-३३(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (औधू कैसी कुटंब सगाई), ९५६४१-३१(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (दरवाजा छोटा रे नीक), ९५६४१-३(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (पीया विन खरी दोहेली), ९५६४१-४२(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (प्रीतम पतियां कौन्न), ९५६४१-६(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रीतम पतियां क्यौं), ९५६४१-९(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (भाई मति खेलै तू माया), ९५६४१-४८(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मरणा तो आया माया), ९५६४१-५१(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ६, पद्य, मप., (साधो भाइ जब हम भए), ९५६४१-३५(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (साधो भाई आतम खेल), ९५६४१-४१(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (साधो भाई ऐसा योग), ९५६४१-३०(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ६, पद्य, मपू., (साधो भाई जग करता कहि), ९५६४१-३४(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. १४, पद्य, मूपू., (साधो भाई निहचै खेल), ९५६४१-३६(+#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. २, पद्य, मप., (साधौ भाइ आतम भाव), ९५६४१-४०(+#) औपदेशिक पद, मु. दानतिलक, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (तु आतम हीत कर रे हो आतिम), ९८६८१-३०(+#) औपदेशिक पद, मु. द्यानत, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (देख्या आतम के कोई), ९९१२३-५(+#$) औपदेशिक पद, मु. द्यानत, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (मानोसांढी वतीया यह देही), ९८०२३-९ औपदेशिक पद, मु. धर्मपाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (काहें जीव डरे दुख सु), ९८०२३-३ औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (इस पुद्गलदा की विसवासावो), ९८०२३-८ औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (जैनधर्म पायो दोहिलो), ९९८८४-८(#) औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (लगजा प्रभु चरणे सेती), ९६६१४-८(#) औपदेशिक पद, मु. नवललाभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (भव वन धरणी के विषे), ९५४८९-१४(+) औपदेशिक पद, नामदे, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (रे मन मंखीया म पडिस), ९५५००-७($) औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, दि., (देखो भाई महाविकल), ९९५२८-६७ औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (चरखा भया पुराना रे), ९८०२३-१६ औपदेशिक पद, जै.क. भूधरदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (समज के सिर धूल ऐसी स), ९९१२३-३(+#), ९९३९३-३(+), ९९८८५-१८(#$) औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ६, पद्य, मप., (चेतन अब मोहे दरशन), ९६७१५-१८(#) औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. १०, पद्य, मपू., (परम गुरु जैन कहो), ९६६०५-१४(2), ९६७१५-१(#$) औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मन की तहु न लाहे), ९६७१५-१९(#) औपदेशिक पद, राज, पुहि., दोहा. ३, पद्य, वै., इतर, (आज प्रीउ सुपनै खरीय), ९९५२८-१६ औपदेशिक पद, मु. राज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुं भ्रम भुल्यो रे), ९९५२८-१३ औपदेशिक पद, राज, पुहि., गा. ३, पद्य, म्पू., (रे जीउ काहे• पछि), ९९५२८-२४ For Private and Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद, मु. राजसमुद्र, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (कउण धरम को मरम लहैरी), ९९५२८-१२ औपदेशिक पद, मु. राजसागर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरो नाह नहेजो अब मई), ९९५२८-१० औपदेशिक पद, मु. राज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (हरिबोलो बोली हिरणाखी तुम्), ९९५२८-३६ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (समझ समझ जिया ग्यांन), ९७४९२-१६(+#) औपदेशिक पद, मु. लाल, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (ध्यान जिनराज तणा धरना रे), ९९५८४-९ औपदेशिक पद, मु. लावण्यसमय, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (न मलि मीडालमसौ ससौ), १००४६२-२१ औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ६, पद्य, मप., (अज हुं कहाल्युं प्या), ९४९५४-१५(+#), ९६७६३-१३(#) औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (कहां करू मंदिर कहां), ९४९५४-३(+#), ९५३७३-११(+#), ९६७६३-१(2) औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (घोरा जूठा हे रे तु), ९४९५४-७(+#), ९६७६३-५(#) औपदेशिक पद, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. १७, वि. १८६५, पद्य, श्वे., (बाहिर साग अध्यातम), ९५८१०-१५(+#) औपदेशिक पद, मु. विनयविवेक, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मगन भयो माह मोह मे), ९४९५४-५(+#), ९६७६३-३(#) औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (सांइ सलुणां केसे), ९६७१५-६(#) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (एसी विध तेने पाई रे), ९६६१४-१५(#$) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (घोर परिसा सहिये भाई), ९८०२३-२० औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (चेतन एक बात सुणी), ९८२०२-१(६) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (जिन नाम कुं समरलै रे), ९८६८१-१३(+#) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, जै., वै., बौ., (जीवन कीस जीवन के वासते रे), १०००८९-५(+#) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (जेसेने तेसा मिल्या सुणीये), ९७२३७-१२(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (तु सुणिरै तु सुणि), ९५४८९-१५(+) औपदेशिक पद, पुहिं., पद. ५, पद्य, श्वे., (मान ले रलीया कोइ दिन), ९७२३७-३(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (वटाउडा गुजर गइ सारी), ९५७९६-४(+#) औपदेशिक पद-आत्मनिंदा, मु. अमरसिंधूर, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (औगण अंग अनेक है ताकौ पार), ९८१४५-१०४(+) औपदेशिक पद-आलस त्याग, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (सुयो तु वोहत निंद), ९५००४-२(#) औपदेशिक पद-कर्मगति, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ७, पद्य, स्था., (क्या कणा कुछ करमगति), ९४७५८-९ औपदेशिक पद-काया विषे, मु. जिनदास, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (इस तन का कोई गरव), ९९९५२-२(+) औपदेशिक पद-जिनभक्ति, मु. कीर्तिसेनविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (भजन विन यू ही जनम गमायो), ९६६२७-१०(#) औपदेशिक पद-जिनभक्ति, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (कोइक रागी कोइक द्वेषी कोइ), ९६६१४-११(2) औपदेशिक पद-जीवकाया, मु. विनय, पुहिं., गा. ५, पद्य, पू., (सुनि सुहागन वे दिल), ९४९५४-११(+#), ९६७१५-९(#S), ९६७६३-९() औपदेशिक पद-नरभव, मु. अमरसिंधर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मप., (पुन्यै नरभव पायोरि अब तै), ९८१४५-१६(+) औपदेशिक पद-पकवानवर्णन गर्भित, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., सवै. ४, पद्य, श्वे., (आछी फूल खंड के अखंड), ९५५५०-३(+) औपदेशिक पद-परनारी परिहार, मु. शियलविजय, पुहिं., गा.६, पद्य, मूप., (परनारि छे कालि नागणी), १००४४५-८(5) औपदेशिक पद-परभव, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरो जीव परभव थे न डरे), ९९५२८-२६ औपदेशिक पद-परभावे, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूप., (जिउ लागी रह्यो परभाव), ९५३६७-४(+#), ९६७१५-५(२) औपदेशिक पद-प्रभु की ममता, मु. रुपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूप., (तुं तो भूल्यो मुसाफर गठरी), ९६६२७-१८(#) औपदेशिक पद- मोह माया, मा.गु., पद्य, वै., इतर, (आधो नच्यावो पारधी अंगन), १००४६२-४५(5) औपदेशिक पद-वैराग्य, आ. जिनराजसूरि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूप., (मेरे मन मूढ म कहि), ९९५२८-२३ औपदेशिक पद- वैराग्य, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (पांच तत्त्व की भीत वणाई), १००८५९-५ औपदेशिक पद-वैराग्यपरक, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (औधू ए जगका आकारा), ९५६४१-२(+#) For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ औपदेशिक पद-वैराग्यपरक, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (औधू हम विन जग कछु), ९५६४१-४(+#) औपदेशिक पद-वैराग्यपरक, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (कहा भरोसा तन का औधू), ९५६४१-१(#) औपदेशिक पद-श्रावकधर्म, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुछिउ दान लुका तणो), १००४६२-२३ औपदेशिक पद-संयम पालन, मु. हीरालाल, रा., गा. ६, पद्य, स्था., (चतुर नर देखो ग्यान), ९४७५८-१० औपदेशिक रेखता, जादुराय, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (खलक इक रेणका सुपना), ९७२३७-२२(+) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कब देखुं जिनवर देव), १००४९५-६(#) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (गइ सब तेरी शील समता), ९८२०२-३ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मपू., (तुम भजो निरंजन नाम), ९७२३७-१(+$) औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (प्रभु संघाते प्रीत), १००२४२-५(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. कर्मसिंह, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (वली वली नरभव दोहिलो), ९५५२२-३१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल, पुहि., गा. १४, वि. १८६०, पद्य, श्वे., (सासणनायक दीयो उपदेस धर्म), ९५८१०-९(+#) औपदेशिक सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (करयो मती अहंकार तन), ९५५२२-१८(+) औपदेशिक सज्झाय, न्यामत, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (परदेशीया में कोण चले), ९९५८४-२४ औपदेशिक सज्झाय, मु. भाण, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (मारग वहे रे उतावलो), १००१९८-४(+) औपदेशिक सज्झाय, जै.क. भूधरदास, पुहिं., गा. १२, पद्य, दि., (अहो जगत गुर एक सुणिय), ९९१२३-२(+#$) औपदेशिक सज्झाय, महम्मद, मा.गु., गा. १८, पद्य, इतर, मु., (भूलो मन भमरा कांइ), ९५५२२-६(+$) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २३, वि. १८३४, पद्य, मूपू., (शासननायक सीव सुखदायक गौतम), ९९५८४-७ औपदेशिक सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, पुहिं., वि. १८६३, पद्य, श्वे., (जन्मउ मर्ण कर भम्यो भव), ९५८१०-२१(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूप., (सुधो धर्म मकिस विनय), ९६६८७-६(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूप., (मंगल करण नमीजे चरण), ९८०१६-३१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, पुहिं., गा.५, पद्य, मप., (क्या करुं मंदिर क्या), ९६७१५-११(२) औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (पांचे घोरो रथ एक), ९४९५४-४(#), ९६७६३-२(#) औपदेशिक सज्झाय, श्राव. शंभु, मा.गु., गा. ५४, पद्य, मपू., (जेह हुवा उतसपरांणी), ९७६९२-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. सकलकीर्ति, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (मोरी सदा सोहागण आतमा), ९५५०७-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धोबीडा तुं धोजे मननु), ९६२२४-२(+), ९६६८७-५(2) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (अब मन मेरे बे सुणि), ९७२३७-९(+s) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मपू., (आद अनादरो जीवडो रे), ९९८८४-४(#$) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., दोहा. ३१, पद्य, श्वे., (एक जो कुत्ता कु ते), ९७२३७-११(+) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. २०, पद्य, मूपू., (दुर्लभ लाधो मनुष्य), ९५८१०-७(+#) औपदेशिक सज्झाय, पुहि.,रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (मन रे तुं छाडि माया), ९५५००-६, ९९५२८-२२ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. १५, पद्य, श्वे., (रे जीव को कहना नही), ९६३२४-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, भूपू., (रे जीव भ्रमवश तु), ९८८७६-९(-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रमण नमुं निजिन नमुंए), १००१२७-२(+$) औपदेशिक सज्झाय-२० नारी उपदेश, मु. भोज, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (महापुरुषनो उछव मांडो रचना), ९५७४४-८ औपदेशिक सज्झाय-असार संसार, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (अनंत दरसण अनंतन ग्यानी), ९५४८९-१८(+) औपदेशिक सज्झाय-आत्मा, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूप., (ग्यानत्रयी आराधवी आतमजी), ९६६२७-२३(2) औपदेशिक सज्झाय-आत्मोपदेश, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मप., (नही एसो जनम वारोवार चित्त), १००००९-४(+) औपदेशिक सज्झाय-कलियुग, मु. प्रीतिविमल, पुहिं., गा. १२, पद्य, मप., (यारो कूडो कलियुग), ९८५०९-३(+#$), ९६६८७-८(#) औपदेशिक सज्झाय-क्षमा, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (--), १००४४५-१(६) For Private and Personal Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), ९७२४६-२, १००१२३, ९६५६९(#) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (गरभावासमे चिंतवइ है), ९७४९२-३०(+#), ९४७३२-३ औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासदुःखवर्णन, जिनदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तने संसारी सुख किम), ९९५८४-४ औपदेशिक सज्झाय-गर्व, श्राव. मोतीदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (थाका चरणा सुमेरो मन), ९६६१४-३(#) औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (लोभी गुरु इम कहै तु मेरी), ९७२३७-२१(+) औपदेशिक सज्झाय-गुरु शिष्य संवाद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (वेलु मांगा डुए डरीउ), १००४६२-४४ औपदेशिक सज्झाय-गुरुशिष्य संवाद, मा.गु., गा. १०१, पद्य, मप., (सीख पूछे कहो सामी कांणो), ९६३१७(+#) औपदेशिक सज्झाय-तमाकु त्याग, मु. आणंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूप., (प्रीतम सेती विनवे), ९७५८९-२३(+#) औपदेशिक सज्झाय-तमाकु परिहार, ग. उत्तमचंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रीतम सेती वीनवइ), ९६९५५-२४(+) औपदेशिक सज्झाय-दयाधर्म, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पांमी दुलभ नरभव भमतां), ९५८१०-२७(+#) औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूप., (एक घर घोडा हाथीया जी), ९७५८९-७(+#) औपदेशिक सज्झाय-दीवा, मा.गु., ढा. २, गा. ९, पद्य, म्पू., (दस द्वारे दिवो कह्यो), ९९५८४-२० औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. नरसिंग, मा.गु., गा. ९, वि. १८१९, पद्य, श्वे., (नवघाटी माहे भटकत), १००१२६-१(+) औपदेशिक सज्झाय-नारी, पुहि., गा. १७, पद्य, श्वे., (मुरख के मन भावे नही), ९५८१०-३०(+#) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, मु. राम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (निंदक तु मत मरजे रे मारि), ९९५८४-१२ औपदेशिक सज्झाय-निदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (निंदा म करजो कोईनी), ९७६३१-३(+#) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गुण छे पुरा रे), ९९८८५-२०(#) औपदेशिक सज्झाय-निदात्याग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (म कर हो जीव परतांत), ९७५८९-१६(#), ९९५८४-५ औपदेशिक सज्झाय- नींद परिहार, मु. अमर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (नींदडली लोभन परिहरौ जागौ), ९५५२२-५८(+) औपदेशिक सज्झाय-पंचमआरा, मा.गु., गा. १४, पद्य, मप., (अरिहंत जिनवर सीध कह्या), ९५४८९-१९(+) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (जीव वारु छु मोरा वालमा), ९९५८६-१(+-), १००४१९-४(+) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (नर चतर सूजाण परनारी सूपी), १००४४५-७ औपदेशिक सज्झाय-परनिंदा, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (म करि करि म म करि पर), १००७९०-१३(2) औपदेशिक सज्झाय-पुण्योदय, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पुन्यउदयमांहि पाप बंधीजे), ९७४७३-३(+) औपदेशिक सज्झाय-मनमांकड, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (मन मांकडलो आण न माने), १०००९०-६ औपदेशिक सज्झाय-मनवशीकरण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (हाती हुव तो अपर मंगावु), ९७६९२-३(+) औपदेशिक सज्झाय-मानवभवदर्लभ, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ९५०९६-२(+$) औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (माया कारमी रे माया), ९५५२२-६३(+) औपदेशिक सज्झाय-मिथ्यादृष्टि, क. बनारसीदास, पुहि., गा. ९, पद्य, दि., (धर्म कुं न जात वखानत भरम), १००४६२-२८ औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपता त्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (बापलडी रे जीभलडी तुं), ९९८८५-२१(2) औपदेशिक सज्झाय-लीखहत्यानिषेध, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. १२, वि. १६७५, पद्य, मूपू., (सरसति मति सुमति द्यो), ९८५०९-२(+#) औपदेशिक सज्झाय-विषय परिहार, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (रे जीव विषय न राचीइं), ९९८८५-२५(#$) औपदेशिक सज्झाय- वैराग, मु. हेमचंद, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मपू., (प्रभु थकि डरि डगला भरिए), ९५७४४-१ For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. कर्मसागर-शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गयवरहाथिणी परिवरिउ फिरतउ), ९४६६४-१९ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., गा. ३५, पद्य, स्था., (मोह मिथ्यात की नींद), ९८५७२-१, १००८५९-२ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (धर्म करो रे प्राणिया), ९९५८४-११ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. साधुहंस, मा.गु., गा. १४, पद्य, मप., (सुणि सिखामण जीवडा म करिसि), ९४६६४-२३ औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (ओरन से रंग न्यारा), ९८४२३-१७ औपदेशिक सज्झाय-सत्कर्म, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (आक धतुरानां बोय रे), ९७२३७-६(+) औपदेशिक सज्झाय-सुखदखविषये, मु. दाम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुखदुख सरज्या पामिइ), ९७५८९-२०(+#) औपदेशिक सज्झाय-हिंसानिवारण, रा., ढा. ६, पद्य, श्वे., (--), ९७१७३(#$) औपदेशिक सज्झाय-हितशिक्षा, मु. जिनकीर्ति, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (--), ९५५२२-४५(+$) औपदेशिक सज्झाय-हितोपदेश, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नगर रतनपुर जाणीइं), ९८०१६-३२(2) औपदेशिक सवैया, क. गंग, पुहिं., सवै. १, पद्य, श्वे., (वाडी नहोत तिहां कंचन), १००४६२-१४ औपदेशिक सवैया, क. गद, पुहिं., पद्य, जै., (नांहि वडौ नर उत्तम जाति), ९५८३६-२(+) औपदेशिक सवैया, मु. जसराज, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ९७३६३(+$) औपदेशिक सवैया, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (ओषधने वाषद करे झाडोने), १००४६२-२४ औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ३६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसद्गुरु उपदेश), १००६६०-४(+) औपदेशिक सवैया, मु. प्रेम, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (इक नुर आदमी हजार नुर कपरा), १००४९५-९(#) औपदेशिक सवैया, मु. राम, पुहिं., सवै. १, पद्य, श्वे., (जट कहा जाणे भट की वात), १००४६२-११ औपदेशिक सवैया, पुहिं., सवै.७, पद्य, वै., इतर, (अली मोती को हार), ९८४६६-३(+) औपदेशिक सवैया, रा., सवै. २, पद्य, श्वे., (ईकां परी घल आथ एकमां गण), १००४६२-४३ औपदेशिक सवैया, पुहि., सवै. १, पद्य, श्वे., (एकन के घर कंचन भाजन), १००४६२-१२ औपदेशिक सवैया, पुहिं., सवै.२, पद्य, श्वे., (कहिज्यो नाईणकंत लोक), १००४६२-३१ औपदेशिक सवैया, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (काम न आवत काज न आवत), ९५९३४-२(+), १००४९५-७(#) औपदेशिक सवैया, पुहिं., सवै. १, पद्य, श्वे., (खमीआ जिन पकडीखरी), १००४६२-१९ औपदेशिक सवैया, मा.गु., सवै. १, पद्य, श्वे., (जाके घट प्रगट विवेक गुणधर), १००४६२-२७ औपदेशिक सवैया, पुहिं., सवै. ४, पद्य, श्वे., (जीग जीग बेठीई कबिली अंगन), १००४६२-१७ औपदेशिक सवैया, मा.गु., गा. ७, पद्य, जै., वै.?, (बहू दीन्न आस्यामांहि), ९५३५२-१(+$) औपदेशिक सवैया, पुहिं., सवै. ४, पद्य, श्वे., (स्वारथ के साचे), १००४६२-२६ औपदेशिक सवैया-अभिमान, मु. हेमराज, रा., सवै. १, पद्य, श्वे., (थोरो सो गुमांन करि काल), १००४६२-३५ औपदेशिक सवैया-ज्ञान, मु. उदयराज, मा.गु., सवै. १, पद्य, श्वे., (कहा करेवां नरीहार मुगताफल), १००४६२-३७ औपदेशिक सवैया-ज्ञान, पुहिं., सवै. ४, पद्य, श्वे., (आवत आवत जावत जावत कहे नहि), १००४६२-१३ औपदेशिक सवैया-दर्भाग्य, रा., सवै. १, पद्य, श्वे., (काद झाझो कीच विच जलमांहे), १००४६२-४१ औपदेशिक सवैया-प्रकृति, मु. हेम, पुहि., सवै. ६, पद्य, मूप., (जिण दिन पवन प्रचंड लूयझड), १००४६२-१५ औपदेशिक सवैया-प्रभु स्मरण, रा., सवै. १, पद्य, श्वे., (ससी कीद्धने सुरंग काआ अमन), १००४६२-४० औपदेशिक सवैया-प्रेम, पुहि., सवै. २, पद्य, वै., इतर, (स्यांम जोवन शालिनी मधुर), १००४६२-३८ औपदेशिक सवैया-मन, मु. उदयराज, पुहिं., पद. १, पद्य, मूपू., (गरज थकी मन और है), ९५५५०-६(+) औपदेशिक सवैया-लक्ष्मी, मु. केशव, पुहि., सवै. ३, पद्य, श्वे., (आलसकुं थिरता धनवंतकुं), १००४६२-३३ औपदेशिक सवैया-संकचित विचार, गंग, पुहिं., सवै.२, पद्य, वै., (गंग केरु नीर छोडी खरबारे), १००४६२-२० औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (उठी सवेरे सामायिक), ९७६६५-१३(+), ९५४४२-१९(2), १००६५४-१(२) (२) औपदेशिक स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (संसारि जीव छइ प्रकार), १००६५४-१(2) For Private and Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औषध संग्रह , मा.गु., गद्य, वै., इतर, (लूंग टा१ जाईफल टा२), ९५६५६-३(+), ९८२०२-६ कक्काबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., गा. ३३, पद्य, म्पू., (कका करमनी वात करी), ९५३९६-१ कडवाछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ४३, वि. १८६०, पद्य, श्वे., (सूत्र न्याय परूपणा), ९९०७१-२(#) कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ९६७०४(#) कनकावती रास-शीलविषये, पं. कांतिविमल, मा.गु., ढा. ४१, वि. १७६७, पद्य, मपू., (सकल सुरासुर सामनी), ९५७५०(+#) कयवन्ना चौपाई, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., ढा. २५, गा. २१९, पद्य, मूपू., (दान न देखइ दलिद्रहि), ९५५९७(+) हा. ३१, गा. ५५५, वि. १७२१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक), ९५४०२(+६), ९८३६७(+#S), ९९९८८(+), ९९८७२-३(#S) कयवन्ना चौपाई-दानविषये, आ. पद्मसागरसूरि, मा.गु., गा. ३९२, वि. १५६३, पद्य, मूपू., (सरसवचन आपय सदा सरसति), ९८३५१-१(+#) करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपानगरी अतिभली हु), ९५५२२-४७(+) कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (देव दानव तिर्थंकर), ९५५२२-२५(+) कर्मप्रभाव सवैया, श्राव. ऋषभ, मा.गु., सवै. १, पद्य, श्वे., (कर्मे रावण राय राहधडसवे),१००४६२-१० कर्मप्रभाव सवैया, मु. मोहन, मा.गु., सवै. १, पद्य, श्वे., (कर्मप्रतापथें तिहे अतिखार), १००४६२-८ कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मप., (देवदाणव तीर्थंकर), ९६९५५-३४(+), ९९०२४-५(+), ९९८७२-७(#s), ९५०८२-२($) कर्मसिंहजी गुरुगुण भास, मु. सेवक, रा., ढा. २, गा. ३५, वि. १६९८, पद्य, श्वे., (श्रीसुमति जिणेसरजी सरसति), ९५३६२-१(+#) कलावतीसती रास, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. ८४, पद्य, मप., (भरतक्षेत्रइ रे नयरी), ९६३८७-२(+) कलियुग सज्झाय, मु. रामचंद, रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (हलाहल कलजुग चल आयो), ९९५८४-८ कवित्तबावनी, आ. ज्ञानसागरसूरि, मा.गु., गा. ५५, पद्य, पू., (ॐकार अपारपार परमेस्वर), ९५७५४(2) काउसग्ग १९ दोष सज्झाय, मु. प्रतापविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (प्रणमी वीर जिनेसर देव सुर), १००००९-२(+) कागस्वरसकुन विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (ग्रामांतरि चालना), ९६३९९-२(+#) कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (पारसनाथ प्रणमुं सदा), ९७६१२-३(+), ९७८६१, १००६५५, ९७१३९-१(#) कामदेवश्रावक सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (इक दिन इंद्र प्रसस्या), ९८५३१-१(+) कालिकाचार्य कथा, पंन्या. कल्याणविजयजी गणी, पुहिं., गद्य, मप., (आर्य कालक अथवा कालकाचार्य), ९६६३१-२(+) कालिकाचार्य कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां पूर्वइ स्थविरावली), ९५३५९(१) कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कुंथुजिन मनडुं किमहि), ९९६८१-३(+), ९५६४८-५(१) कुंथुजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्री कुंथुजिनेसर प्रणमुं), ९६५४६-७(+#) कुंथुजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मपू., (रात दिवस नित सांभरो), ९९६८१-४(+), ९८४३३-५ कुंथुजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कुंथु जिणेसर जाणज्यो), १०००९०-१८ कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहि., गद्य, मपू., (मनोमती झठी प्ररुपणा), ९५६९५(+#$) कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४९४९, ग्रं.५८००, वि. १६७०, पद्य, मूपू., (सकल सिद्ध सुपरि नमुं), ९७०५७ कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १२९, गा. २८७६, ग्रं. ४१६०, वि. १७४२, पद्य, मूप., (श्रीसरसति भगवति नमुं), ९५६५४(+s) कृष्णभक्ति गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (अपने नगर पर जायो), ९७४९२-२१(+#) कृष्णभक्ति पद, ध्यानदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (लीख्यो मृगजात लख्यो री हे), ९८६८१-१०(+#) कृष्णभक्ति पद, सुखानंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (जाउ जाउ छु बाईजी जल भरवा), ९४९२४-१४ कृष्णभक्ति पद, सूरदास, पुहि., गा. ५, पद्य, वै., (कुबजानूं वैरण पूरव जनम की), ९४९२४-१३ कृष्णभक्ति पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (खेलत वसंत पिया प्यारी), ९७४९२-२२(+#) For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५५५ कृष्णभक्ति पद, रा., गा. ४, पद्य, वै., (सांवरीया वालम वालम जावो), १००११४-५(+) कृष्णभक्ति पद, मा.गु., पद्य, वै., (हरि एकवारने समे रे काहनो), १००४४९-२(#) कृष्णमहाराज के ७२ सहस्र माता नमस्कार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (७२ सहस्रने १८०नो भाग दीजै), ९६५६०-८(+) कृष्णरुक्मणी चौपाई, पुहिं., पद्य, श्वे., (--), ९५०१६(+#S) कृष्णरुक्मणी वेलि, रा. पृथ्वीराज राठोड , मा.गु., गा. ३०४, वि. १६३७, पद्य, वै., इतर, (परमेसर प्रणमि), ९५३४९(+#), ९५५८४(+), ९८३८१(+$) (२) कृष्णरुक्मणी वेलि-टबार्थ, मु. शिवनिधान, मा.गु., वि. १६३८, गद्य, मूपू., वै., इतर, (श्रीहर्षसारसद्गुरु), ९५३४९(+#), ९८३८१(+$) (२) कृष्णरुक्मणी वेलि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., इतर, (ग्रंथनी आदइ करी मंगल), ९५५८४(+$) कृष्णलीला, सूरदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (भीज रही गरमी सेरी अंगीया), ९७४९२-२३(+#) कृष्ण सवैया, मा.गु., सवै. १, पद्य, वै., (उड़ जांण के वात सीवांण),१००४६२-९ केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. ४१, गा. ५९४, वि. १७वी, पद्य, मप., (प्रणमी श्रीअरिहंत), ९५६०८(+) केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ए दोय गणधर प्रणमीये), ९९५८४-२ कोणिकराजा चौपाई, मा.गु., ढा. २२, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (कूटुंब तणी जागरका), ९७३४९(+), ९५८०८(5) क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमागुण), ९८०१६-२९(2) क्षमाविजयगुरुगुण भास, मु. अमीकुंअर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गुरु गुणवंता वांदीये), ९६६०५-८(2) क्षेत्रपाल छंद, माधो, मा.गु., गा. ५, गद्य, वै., (धूवै मादलां मृदंग), ९६५८८-३(+#) क्षेत्रसमास विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (हवे कांइएक बोल जंबूद), ९४८०७(+$) खंधकमुनि चरित्र शतक, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १०२, वि. १६००, पद्य, श्वे., (आदि जिन रिषभ श्रीवीर), ९६४२२(+#) खंधकमुनि चौढालियो, मु. संतोषराय, मा.गु., ढा. ४, गा. ५३, वि. १८०५, पद्य, श्वे., (आदि सिद्ध नमोकार), ९५८३२-४(+), ९९८८६-१(S) खामणा कुलक, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (अरिहंतजीने खामणां), ९६६०५-११(#) गजसुकुमालमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., ढा. ३०, गा. ५००, वि. १६९९, पद्य, मूप., (नेमीसर जिनवरतणा चरण), ९५४५३-३(+), १००८७३(+$) गजसुकुमालमुनि चौपाई, मु. लावण्य, मा.गु., ढा. ११, गा. १२८, वि. १७१५, पद्य, श्वे., (अरिष्टनेमी नामे हुआ लक्षण), ९७२४६-१ गजसकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., गा. ९१, पद्य, मपू., (देस सोरठ द्वारापुरी), ९६३८७-१(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. कान, मा.गु., गा. ९, वि. १७५३, पद्य, श्वे., (श्रीजिननेम आगमसुणि), १००८५९-४ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, पू., (श्रीनेमिसर जिनवर), ९९०२४-६(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. ३८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (द्वारिकानगरी ऋद्धि), ९४९९२-२(+#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (द्वारिकानगरी अति भली), ९५५२२-५२(+), ९९८८६-५(#$) गजसकमालमनि सज्झाय, ग. शिवनिधान, मा.गु., गा. १४, पद्य, मप., (एहवा साधुजीनेइं वंदना रे), ९७५८९-१४(+#) गजसकुमालमुनि सज्झाय, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (दजै दिन श्रीकृष्णजी), ९५८१०-३५(+#) गणधरगुण गहुंली, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (गणधर हे के गणधर चारि), ९७३८६-११(+) गणधरवाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंभीका नगरीइ केवल), ९७१९९(+) गणधरस्थापना गहुँली, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अनिहारे नयरी अपापा), ९६६०४-३(+) गणपति आम्नाय उपासना, मा.गु., प+ग., वै., (द्वे भार्ये सिद्धिबुद्धि), ९७७३०-४(+#) गणेश छंद, मु. हेमरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, पू., वै., (जय जय गूणपति गुण), ९५४९२-९ गम्मा यंत्र, मा.गु., को., श्वे., (संख्याता जीव उपजै ते), ९८३८२-१(#) गर्भउत्पत्ति सज्झाय, मु. रंग, मा.गु., ढा. ३, गा. ३८, पद्य, मपू., (हिवे समान पदेथी कहिये जीव), ९६५६८-२(#) गर्भचिंतामणी, मा.गु., ढा. ७, गा. १८०, पद्य, मूपू., (चौवीसे जिनराज कू पूजीजै), १००१०१(+) For Private and Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ गर्भावास सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पच, मूपू (प्रणमु प्रेमे सरसती वरसती). १६५६८-१(७) गांगेयभंग संख्या आनयन विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (किणही पूछयो दोय), ९८३८२-२(#) गिरनारतीर्थोद्धार रास, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १३, गा. १८४, पद्य, मूपू., (सयल वासव सयल वासव), ९६४३१(+#$) गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारो सोरठ देश देखाओ), ९६६१४-७(#) गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., डा. २८, गा. १६०३, वि. १७५७, पद्य, . ( संपति सुखदायक सरस), ९८१५५ (+), ९८२११.०७ ९५५०७.१ 3 www.kobatirth.org गुणकरंडकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २६, गा. ४९३, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण सेवे), ९४८६७/*०७), ९६९९४२च्या गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., अ. ४, गा. ४२५, वि. १५७२, पद्य, मूपू., (शशिकरनिकर समुज्वल), ९४८९९ (+#$), ९७६१९(१) गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., डा. २९, गा. ५१९, वि. १७१४, पद्य, म्पू., (सकल मनोरथ पूरवे), ९५२७०(*), ९५११३(३), ९५६०९-१(म) गुरुगुण गहुली, मु. अमीकुंअर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मृपू. (जी रे मारे देशना वो), ९६६०५-५(१) गुरुगुण गहुली, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (तुमे शुभ परिणामें), ९७३८६-७(+) " , गुरुगुण गहुंली, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आतिम धरम शुणण भणी), ९७३८६-१० (+) गुरुगुण गहुली, उपा. मेघजी पाठक, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू., (आंणी हरख अपार भला सुंदर), ९८१४५-२३(+) गुरुगुण गहुली, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (जिनवयणे अनुरंगी मुनि), ९७२९८-१२ (+*) गुरुगुण पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपु. ( सदगुरु अरज सुणीजे देखी), ९८१४५-२९ (*) गुरुगुण भास, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (आवो आवो रे सेहियर वांदायै) ९६६०५-६(क) गुरुगुण भास, आ. विजयमहेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अहो सखी संजममां रमता), ९७२९८-४(+#) יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " गुरुगुण सज्झाय, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मृपू. (देश प्रदेश विचरताजी करता). १६६०५-१२२१ गुरुगुण सज्झाय, ग. राजविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (आज उछरंग रसरंग मंगल), ९७२६४-९ (+४) १०००९०-१४ गुरुगुण स्तुति- खरतरगच्छ मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (दीप गुरु देवीकोटे मतवंत), ९८१४५-३१(०) गुरुमहिमा पद, मु. आनंदघन, पुहि. गा. ५. वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( जगतगुरु मेरा मैं जगत का), १९४८९५-३८(३) गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (उद्गम दोष श्रावकथी), ९८२२६-१(+) गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., गा. ६१७, वि. १६४५, पद्य, मूपू. इतर ( सुखसंपतिदायक सकल), ९५१८९ (+), ९६२१९ (+5) गोराबादल रास, श्राव. जटमल नाहर, मा.गु., गा. १४६, वि. १६८०, पद्य, जै., (चरण कमल चितलाय कै), ९८३१९, ९५८६३-४ (#) गोरावादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु खं. ३ ढाल ३९ गा. ८१६ नं. ११५७, वि. १७०७, पद्य, मूपू (श्रीआदिसर प्रथम जिण), , ग्रं. ९८१०३(+), ९७९४४, ९५६०४ (६) गौतमगणधर आरती, मु. चंद, गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जयो जयो गौतम गणधार), ९७१४५-२(+#) गौतमपृच्छा चौपाई, मु. नवरंग, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद तणा पय वंदि), ९७३९७-८ (*) गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १२९, वि. १५४५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), ९६३२४-२(+), १९०५२/०६) गौतमस्वामी गहुली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजगृही उद्यानमा गुर), ९७४२०-५ गौतमस्वामी गली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू, (राजग्रहि शुभ ठाण), ९७४२०-४ गौतमस्वामी गहुली, मु. दीपविजय, मा.गु.. गा. ९, पद्य, मूपू. (चालो रे बाई चालो रे जोओ), ९६६०४-६ (+) गौतमस्वामी गहुली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (हां रे महारे जिन आणा), ९६६०४-४(*) गौतमस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हस्तियाम वनखंड मझारि), ९७३८६-१(+) गौतमस्वामी गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (गौतम नाम जपो परभाते), ९६३२७-२(+) For Private and Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष्य), ९४८६९-१(+), ९८०७१-६(+), १००४३३-१(+#), ९५००४-८(#), ९८०२५-२६) गौतमस्वामी प्रभाति, मु. रूपचंद, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (मे नवि जान्यो नाथजी), १००११४-८(+), १००१४८-२(+#) गौतमस्वामी रास, मु. उदयवंत, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), १००४३०(+#$), ९८०३०-१(#$) गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६६, पद्य, मप., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ९६३०७(+), ९७१४५-१(+#), ९८४३५-१(+#), १००७१२-१(+) गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मप., (वीरजिणेसर चरणकमल कमला), ९४७८४(+#), ९५८३२-१०(+), ९९८६६-१(+), १००१४८-१(#), ९४९७२(#$), ९८६१९-२(5) गौतमस्वामी रास, मा.गु., ढा. ६, गा. ४६, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर चरण कमल), ९८१३५-३२(+$), ९५१४९(#) गौतमस्वामी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जिनवर श्रीवर्धमान), ९७३१२-२(+#) गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू., (प्रभाते गोतम प्रणमी), ९५३७३-१५(+#), ९९०७२-५(+#) गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (पहेलो गणधर वीरनो रे), ९९४८५-१(#) गौतमस्वामी स्तुति-प्रार्थना, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (कामधेन गो शब्दथी ते), ९८४३५-२(+#) घडिया, अज्ञा., गद्य, इतर, (--), ९७६७२-१(+$) चंदनबालासती चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. १४, गा. ९२, वि. १८५२, पद्य, मपू., (फणीमणीमंडित निलतन), ९५२४५-१ चंदनबालासती सज्झाय, मा.गु., गा. ५५, पद्य, मप., (कसुंबी नगरी पधारीया), ९७५२९-५(+$) चंदनमलयागिरि चौपाई, मु. कल्याण कलश, मा.गु., ढा. ७, गा. १२८, वि. १६९३, पद्य, मपू., (पास जिनेसर चित धरी), ९७७२४ चंदनमलयागिरि चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २३, गा. ४०७, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर पयकमल सेवै धर), ९५६७६(+) चंदनमलयागिरि सज्झाय, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (विजय कहे विजया प्रति), १००१९८-६(+) चंदराजा चौपाई, पा. रतनविमल, मा.गु., ढा. २५, गा. १५९०, पद्य, मूपू., (सकलसुरासुर स्वामिनी सारद), ९७०११(+) चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु., गा. १२५, पद्य, मूपू., (समरु सरसती मात मनाय), ९५४४५-१(+) चंद्रप्रभजिन पद, मु. राजनंदन, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (छबि चंद्राप्रभु की), ९८६८१-२३(+#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभु प्राह), ९५४८९-५(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. देवकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभुजीसु), ९५३६७-६(+#) । चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (सकल मंगल कलागुण नीलउ), ९६९५५-४(+), १००३२५-६(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चांदलीया संदेशो कहे), ९९८८५-१५(#S) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८२६, पद्य, श्वे., (चंद्रपुरी नगरी भली), ९५८१०-१२(#) चंद्रप्रभजिन स्तवन-सूत्रार्थ विचारगर्भित, मु. चारित्रसागर, मा.गु., ढा. ११, गा. ८१, पद्य, मपू., (सरसती वरसती सगतिरूप), ९७१७०-२ चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मपू., (प्रथम धराधव तीम), ९४८४६(+#), ९५२९५(+#$), ९५३०५(+#), ९६९८९(+$), ९७००१(+#), ९७३००(+#S), ९७३६१(+$), ९७३८१(+$) चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., खं. ६ ढाल १०३, गा. २५०५, ग्रं. ३०५५, वि. १७१७, पद्य, मपू., (श्रीजिननायक समरीइं), ९५३१२(+#S) चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., ढा. २९, गा. ६२४, वि. १७२८, पद्य, मूप., (सरसति भगवति नमी करी), ९५५५५(+), ९८८०६(+#s), ९९९८९(+), ९४७५८-१, ९५९४५-१, ९५५३१(2) चंपकमाला रास, मा.गु., गा. ९२, पद्य, श्वे., (नमिय निरंजन जिनवरू), ९८१८८(+) चंपकश्रेष्ठि रास, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ५७५, वि. १६२२, पद्य, मूपू., (श्रीवीरं शारदां नत्व), ९७४५७(+) चक्रेश्वरीदेवी गरबो, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अलबेली रे चक्केसरी), ९६६०४-८(+) चक्रेश्वरीदेवी स्तवन, मु. अमर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (देवी चक्केसरी संघसकल), ९८१४५-३९(+) For Private and Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ चतुर्दशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (चौद सुपन सुचित हरि), ९५१८२-६(+#S) चातुर्मासिक व्याख्यान*, रा., गद्य, मूपू., (पंचापि परमेष्टिन), ९७८२५-१(६) चिदानंदबहोत्तरी, मु. चिदानंद, मा.गु., अ.७२, पद्य, मूपू., (पिया परघर मत जावो), ९५१४२ चेडाराजा की सात पत्री नाम, मा.ग., गा.७, पद्य, मप., (चेडाराजानी सात बेटी ते), ९५६३७-२(+) चेतनसुमतिमिलन सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (अवीनासीनी सेजडीइं), ९९४८५-३(#) चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरे वखाणी राणी), ९५५२२-२०(+), ९४७८२-१४, १००१७६-२(२), १००७९०-१७(#) चेलणासती सत्तरढालियो, मु. रायचंद ऋषि; मु. दयाचंद ऋषि; मु. गोरधन ऋषि, रा., ढा. १७, पद्य, स्था., (अवसर जो नर अटकलो चेतो), १००११८(+) चैत्यवंदनचौवीसी, क. ऋषभ, मा.गु., चैत्यव. २४, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरिहंत नमु), ९६५४१(+) चैत्यवंदन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम त्रण खमासमण), ९८०२४(+) चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., देवजो. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रतिमा ४ माडी), ९४७८८($) चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मपू., (सा चैत्री पूर्णिमा), ९५२६६-२ चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशेजयतीरथ आदिनाथ), ९८०९३-२०(+) चौथमाता छंद, क. कान्ह, मा.गु., गा. ४१, पद्य, वै., (ब्रह्माणी वीणा धरणी), ९५४९२-६ चौभंगी रूपकार वचनिका संग्रह, पुहिं., गद्य, दि., (एक जीव द्रव्यता के), ९६२०२(+) चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (विमलकेवलज्ञान कमला), ९६७३६(+$), ९६७४५(+), ९७४६३(+) छंदछप्पनी, वा. मालदेव, मा.गु., सवै.५६, पद्य, मपू., (ॐकाराक्षर प्रथम जैन), ९५५८२-५(+) छरी नाम, मा.गु., गद्य, मप., (सचित्त परिहारी धरतीय), ९८०६९-९(4) छींक निवारण विधि, मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम ईरियावही पडिक्), ९६५६०-३(+) छीहल बावनी, छीहल्ल, मा.गु., गा. ५३, वि. १५८४, पद्य, इतर, (ओमकार आकार रहित), ९५५८२-३(+) जंबुकुमार गहुंली, मु. दर्शनसागर पंडित, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (नयरी राजगृही सार लोक), ९५०३८-१ जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीप एक लक्ष), ९८३९१(+), ९५९९७ जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (जंबुद्वीप लांबो पहुल), ९७६४८(+$) जंबुद्वीपादि परिधि परिमाण, मा.ग., को., मप., (--), ९५६८२(+) जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., ढा. १३, पद्य, मपू., (पहिली ढाल सोहामणी), ९६३०६(#$), १००११३-१($) जंबूस्वामी गहंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (सोल वरसें संयम लिओ), ९७२९८-६(+#$), ९७३८६-३(+), ९५०३८-३ जंबूस्वामी गहुंली, मु. मनमोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गाम नगर पुर विचरतां), ९६६०४-१६(+$) । जंबूस्वामी रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.ग., गा. १८५, वि. १५२२, पद्य, मप., (गोयम गणहर पय नमी), ९८२७९(+), १००२७४(+) जंबूस्वामी रास, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., अधि. ४ ढाल ५५, गा. १३५३, वि. १७०५, पद्य, मूपू., (जोति पुरातन मन धरइ), ९५९७१(+) जंबूस्वामी रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६४, ई. १५१६, पद्य, मूपू., (सरसति सहि गुरु पय), ९७४२९(+) जंबूस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (संयम लेवा संचर्या), ९९५८४-१८ जंबूस्वामी सज्झाय, श्राव. पुनो, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (श्रेणिकनरवर राजीयो), १००७९०-३(#) जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (ए आठौहि कामिणि जंबू), ९९५८४-२५ जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसरि, मा.गु., गा. १४, वि. १७६६, पद्य, मप., (सरसत सामीने विनवू), ९९५८४-१९ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (राजग्रही नगरीनो वासी), ९५८१०-५(+#) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी वसे ऋषभदत्त), ९५८१०-४(+#), १००१३२-३(+) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रेणिक नरवर राजिओ), ९४८६९-७(+) । जगदंबा छंद, सारंग कवि, मा.गु., गा. २८, पद्य, वै., (विजया सांभलि वीनती), ९४७६१-३(#) जमाली सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., गा. ११, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (सासणनायक श्रीवीर), ९५८१०-१६(+#) For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५५९ जिनकल्पी के १२ उपकरण, मा.गु., गद्य, मप., (पात्रो१ झोली२ रहेछलो), ९६४५७-१२ जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ८, वि. १८५३, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा गुरुपदांभोज), ९७४५९-२(+) जिनकुशलसूरि गीत, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (कुशल गुरु० जगत सहु को कहौ), ९८१४५-७(+) जिनकुशलसूरि गीत, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुगुरु जिनकुशलनौ ध्यान), ९८१४५-६(+) जिनकुशलसूरि गीत, मु. धर्मसीह, पुहि., पद्य, पू., (प्रेम मन धारि नित), ९५५८७-५() । जिनकुशलसूरि गीत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (कुशल वडो संसार कुशल), ९५५८७-६(4) जिनकुशलसूरि छंद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (गहिर गुणे राजै सुगुरु), ९८१४५-४(+) जिनकुशलसूरि छंद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ३५, वि. १८७३, पद्य, भूपू., (सरसत उकत समप्पीयै वाणी), ९८१४५-३(+) जिनकुशलसूरि छंद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसत विमलवाण मुझ दीजै), ९८१४५-५(+) जिनकुशलसूरि छंद, मु. कविराज, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वदनकमल वाणी विमल), ९५५८७-९(#) जिनकुशलसूरि छंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूप., (सुध मन समरु सारदा प्रणमु), ९५५८७-८(#) जिनकुशलसूरि निसाणी, मु. दोलत, रा., गा. ११, वि. १८३५, पद्य, मूपू., (सरसती माता जग), ९५५८७-१(#) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरज सुणौ इक सदगुरु), ९८१४५-८६(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशल गुरु तुम्ह भल नाम), ९८१४५-१०५(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कुशलसुरिंदा अधिक आनंदा), ९८१४५-८९(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (कुशलसूरीसर ध्यावो रे), ९८१४५-३०(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (केसरसुं कुशलेस सुगुरु के), ९८१४५-८५(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, रा., गा. ३, पद्य, मपू., (दादाजी दौलत दीजै दखीया), ९८१४५-१९(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (देश कुंकण मझ दीपतो ममुई), ९८१४५-९७(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (पाया० सुगुरु का दरसण पाया), ९८१४५-३६(+), ९८१४५-७१(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (महिमावंत सुगुरु मणधारी से), ९८१४५-८४(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (राज श्रीजिनकुशलसुरीसरू गछ), ९८१४५-९८(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (लायक सदगुरु लाज हमारी हाथ), ९८१४५-१००(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशलसुरिंद गुरु), ९८१४५-९९(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशलसुरिंदजी इक), ९८१४५-३४(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशलसूरि सुखकारी), ९८१४५-५१(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशलसूरीसरू रे सेव), ९८१४५-१०२(+) जिनकशलरि पद, म्. अमरसिंधर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सदगुरुनी चरण कमल सेवा मन), ९८१४५-४५(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सदगुरु भेटीजै सदा रे), ९८१४५-३५(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सदगुरु श्रीकुशलसूरिंद सदा), ९८१४५-४९(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (सबल भरोसो सदगुरु तेरो मै), ९८१४५-१०१(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (सुख संपत दायक जग लायक), ९८१४५-८१(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सुख संपति ऋद्ध समृद्ध सदा), ९८१४५-८७(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (सुगुरु कुशलसुरिंद सेवो), ९८१४५-३८(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (सुगुरु तै देव साचा है), ९८१४५-३३(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (हित वंछक गुरुदेव हमारै), ९८१४५-१०३(+) जिनकुशलसूरि पद, वा. जयसार, पुहिं., गा. ४, वि. १८७२, पद्य, भूपू., (भविजन भेटौ मन शुध करकै), ९८१४५-३७(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. रुघपति, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (मिश्री घिरत खीर रलीय मिला), ९५५८७-७(#) जिनकुशलसूरि लावणी, मु. अमर, पुहि., गा. १४, पद्य, मूपू., (अव सदा नमु गुरु कुशलसुरी), ९८१४५-१३(+) जिनकुशलसूरि लावणी, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कुशल कुशल कहीयैक धरतां मन), ९८१४५-७६(+) For Private and Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जिनकशलसरि सवैया, उपा. ध्रमसी, पुहि., गा. १, पद्य, मप., (राजे धुंभ ठौर ठौर एसो देव), ९५५८७-३(#) जिनकुशलसूरि सवैया, मु. हरखचंद, पुहिं., गा. १, पद्य, मपू., (दीपे देव प्रतक्ष देव सुर), ९५५८७-४(2) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. अमर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (दादा सुख दीयै जाणी), ९८१४५-२५(+) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (तुम्हतो भलै विराजौजी गुण), ९८१४५-७७(+) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (तेवीसमजिन जग तिलय पणमीय), ९८१४५-२०(+) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भगतज मुकी भीर पधारो), ९८१४५-७३(+) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशलसुरीसर साहिब), ९८१४५-२४(+) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (समरु माता सरसती), ९८७०२-२(-) जिनकुशलसूरि स्तवन-जीवनचरित्र, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (तेवीसमजिण जगतिलय पणमवि), ९८१४५-१०६(+) जिनकुशलसूरि स्तुति, मु. अमरचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भेट्या अधिकै भाव श्रीजिन), ९८१४५-४१(+) जिनकुशलसूरि स्तुति, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशलसुरिंद जी हो), ९८१४५-२८(+) जिनकुशलसूरि स्तुति, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशलसूरीसर साहिब), ९८१४५-८२(+) जिनकुशलसूरि स्तुति, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशलसूरीसरू राजै), ९८१४५-३२(+) जिनचंद्रसूरिनिर्वाण रास, मु. समयप्रमोद, मा.गु., ढा. ४, गा. ७०, पद्य, मूपू., (गुणनिधान गुरु पाय), ९७५४३-१ जिनदत्तसूरि गीत, मु. जयचंद, रा., गा. १३, पद्य, मपू., (जसु हरिदयकमल गुरुनाम), १००४३३-२(+#) जिनदत्तसूरि सवैया, मु. धर्मसी, पुहिं., सवै. १, पद्य, मूपू., (बावन वीर कीए अपने वस), ९५५८७-२(#) जिनदासश्रावक कथा-नवकारप्रभाव बिजोराफलप्रदाने, मा.गु., गद्य, मप., (पोतनपुर नगर तिहां एक नदी), ९५६९१-४($) जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ६८, पद्य, मूप., (अनंत चोवीसी आगे हुई), ९७५४२-३(2) जिनपूजा विधि स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (झारी रतन जडाव की), ९९८८४-६(#$) जिनप्रतिमावंदनफल स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.ग., गा.१०, पद्य, मप., (जिनवर जिनप्रतिमा), ९६९५५-५(+) जिनप्रतिमा स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनप्रतिमा हो), ९५५२२-११(+) जिनप्रतिमास्थापना प्रबंध, मु. ब्रह्म, मा.गु., अधि. १३, गा. ६७१, ग्रं. १६००, वि. १६७७, पद्य, मप., (श्रीजिणवर वंदउं चउवी), ९५१९०(+#) जिनप्रतिमाहंडी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६७, वि. १७२५, पद्य, मप., (सुयदेवी हीयडै धरी), ९९०४४(#S) जिनबलविचार छंद, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सुणो वीर्य बोलु), १००४६२-३६ जिनभक्ति पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (जिन दरसण बीना नैण जरत मुज), १००४९५-८(#) जिनमंदिरपूजा विधिविधान संबंधी विविध विचार संग्रह, पंन्या. सुमतिवर्धन, रा., गद्य, मपू., (वांदवा योग्य तीर्थंकर), ९५०३४(+#$) जिन रास, मु. वेणीराम, मा.गु., गा. १९५, वि. १७९९, पद्य, मपू., (गणपद सारद पाय नमी), ९४९०७-१(+), ९८४६६-१(+$), १००३६८($) जिनवंदन लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अब जूगचंदा जिम जाण जपो), १००४४५-६ जिनवाणी गहुंली, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (साहेली हो आवी हु), ९६६०५-७(#) जिनवाणी गहुंली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (अमृत सरखी रे सुणीइं), ९६६०४-२(+), ९७२९८-७(2) जिन शकनावली, मा.गु., गद्य, मप., (तीर्थंकर २४ मांहि एक),१००६६७-२(+$) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, जै.क. बनारसीदास, पुहि., शत. १०, गा. १०१, वि. १६९०, पद्य, दि., (परम देव परनाम करि), ९५४२९(5) जिनस्तवनचौवीसी, आ. हंसरत्नसूरि, मा.गु., स्त. २४, वि. १७५७, पद्य, मूपू., (सकल वंछित सुख आपवा), ९४७२४(+) जीव ४७ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुए विहाणं भंति समोसरणा), ९८१९२-१(+) जीवदया रास-हरिबलराजा, मु. विनयकुशल, मा.गु., गा. २९६, वि. १६३८, पद्य, मपू., (--), ९५१८०(+#$) जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवरा २ भेद एक मुक्त), ९४६६०(+$) For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५६१ जीवविचार स्तवन- पार्श्वजिन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु. डा. ९, गा. ८३. वि. १७९२, पद्य, मूपू. (श्रीसरसती रे वरसती), ९५६४९-१ (९), ९६६७९-१(+), ९९८६७-१ (+) जीवादि विविधद्वार विचार, मा.गु., गद्य म्पू. (--), १७१२४(+३), ९७२३६ (+३) " जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (उतपति जोइनइ आपणी), ९८०१६-२४(#) जैनधर्म महिमा पद, मु, अमर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू (धन्य धन्य जिनधर्म जगतमैरि), ९८१४५-१५ (+) जैनधार्मिक प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, म्पू., ( नवकारमांहे पहिला पद पाठ), ९८०६९-१(*) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पूजा. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रगट नवकार), १०००८७-१(+) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु. देवजो. ५, गा. १५०, पद्य, मृपू (श्रीसौभाग्यपंचमी), ९५०३५-१(१), " ९८००५- १(३) 5 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, पद्य, भूपू (प्रणमं श्रीगुरु पाय), ९७३४८-३(*), ९७९९८-१(+४), ९८०७१-५ (+), १००४१९-१ (+), १००८२२-२(+), १६६८७-२(१), ९७५६३-११०१ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. १६, पद्य, मूपू., ( श्रीवासुपूज्य जिणेसर वयण), ९५०३५-२(+), ९७५२९-४ (+), ९७६१३-२, ९८००५-२ (६) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणेसर), ९५३८३ - २(+#$), ९७२६४-१७(+#), ९७३४८-२(+), ९७३५२-२ (+#), ९८५०९-५ (+#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ६८, वि. १७९३, पद्य, भूपू (सुत सिद्धारथ भूषनो), ९५३९४(३) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., डा. ४, पद्य, म्पू., (ज्ञानावरणी क्षय करीन), ९६६०४-१३(*) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचमीतप तुमे करो रे), ९९६८१-५(+), १००४१९-२(+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (श्रीजिन नेमि जिनेसर), ९६४०९-४ (०३), ९६१०९-७(#) ज्ञानपंचमीव्रत स्तवन, आ. भावप्रभसूरि, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानजिन इम कहै ), ९६५६६ -१ (+#) ज्ञानपच्चीशी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु. गा. २५, वि. १८३५, पच, स्था., (आदि अनादिनो जीवडो), ९५८१०-१९(१४) ज्ञानपच्चीसी, मु. उदयकरण, पुहिं. गा. २४, पद्य, म्पू, (शुरनर तिरीजग योनी), ९७२३७-१६(*) ज्योतिषचक्र विचार, मा.गु., गंध, भूपू (चदरमाना पदरा माडला), ९४७१०-५ (ख) ज्योतिषपद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू (पंचम प्रवीण वार), १००४६२-२९ ज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य म्पू, (चंद्रमानौ आउखो), ९५४१५-२ (+), ९६९००-३(+) ', "" " ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., गा. १६, पद्य, म्पू, इतर (35 नमो आनंदपुर अजयपाल), ९७७०७-२(+०३) " झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (सरसति चरणे शीश नमावी), १००११५(+), १००५१०-१ ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), ९५५२२-१७(+), ९५८१० -१०(+#), ९६२२४-५(+), ९४७८२-६, ९९८७२-४ (#$), ९९८८६-४(#) ढुंढकउत्पत्ति चौढालियो, मु. हेमविलास, मा.गु., ढा. ४, गा. ९६, वि. १८७६, पद्य, मूपू., (सरसति माता समरि करि), ९६६५९ ढुंढक रास, मु. अविचल, मा.गु., गा. १०८, पद्य, श्वे. (सरसति मात मया करी आप), ९४९४०-१२(+$) ढुंढक रास, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ७, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (सरसती चरण नमी करी), ९५२७३(+#$) ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ७००, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सामिनी), ९५७६१ (+#$), ९६३४०(+३), ९८२७० (+25), ९५७४९ (७), ९८०५८- १(ख) णमोत्थुणं गीत, मु. विनयचंद, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे., (श्रीमहावीर धीर वीरो), ९९३९३-२(+$) तपावली, मा.गु., गद्य, भूपू (पुरिमट्ट१ एकासनां२) ९५१४४ (*) तिष्यकुरुदत्त सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (चोखइ चित्तइ चारित्र), ९६५९३-५(+) तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेवादि जघन्य-मध्यम-उत्कृष्ट संख्या विचार-ढाईद्वीपस्थित, मा.गु., को., मूपू., (--), १६५६०-६(+) For Private and Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६२ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तीर्थमाला स्तवन, मा.गु., पद्य, म्पू (--) ९८६४९-३(+#$) तुंगीयाश्रावक सज्झाय, मु. कनिराम, मा.गु., गा. १६, वि. १८९७, पद्य, श्वे. (श्रावक तुंगीया तणा), ९७१२१-१ तेजसारकुमार रास, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ४०६, वि. १६२४, पद्य, मूपू. (श्रीसिद्धारथ कुलतिलो) ९५६३२ (६) तेजसिंह रास, मु. चोथमल, मा.गु., वि. १९७७, पद्य, वे (श्रीभक्तामर शिरमणि अमित), ९६५८७ तेलीपुत्र चौढालिया, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., डा. ४, गा. १६३, वि. १८२५, पद्य, श्वे. (अरिहंत सिधनै आवरिया), ९५२७७(+5), ९६०१०-१ (*) त्रिभुवनदीपक प्रबंध, आ. जयशेखरसूरि, मा.गु., गा. ४४८, वि. १५वी, पद्य, म्पू. (पहिलु परमेसर नमी), १००२६५ (+) त्रिभुवनसिंहकुमार रास, ग. उत्तमसागर, मा.गु., ढा. ४४, गा. ६४७, वि. १७१२, पद्य, मूपू (श्रीश्रुतदेवी सार), ९७०२५(४०) त्रैलोक्यसार चौपाई, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., गा. २०५, वि. १६२७, पद्य, दि., (सरसति सद्गुरू सेवु), ९५५६४(+$) त्रैलोक्यसुंदरी रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु. बा. १२, वि. १८५२, पद्य, श्वे. (विहरमान वीसे नमुं), १००१२९-१(+), १००६५७(*) थावच्चाकुमार भास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. १९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (नयरी द्वारामती जाणीइ), ९७१८४-२(#) धावच्चापुत्र चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २, गा. ४३७, ग्रं. ६५०, वि. १६९९, पद्य, मूपू (नेमिनाथना पाय नम), ९६६३०(+) . धावच्चापुत्र सज्झाय, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., डा. ४, गा. ५३. वि. १८४७, पद्य, भूपू (द्वारिका नगरी अति भली रे) ९४९२५ दमयंतीसती कथा, मा.गु., गद्य, मृपू., (इणहिज जंबूद्वीप भरतक्षेत्), ९५६१३-४(का "" दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु प्रणाम), ९७५८९-२२(+#) " दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., डा. ४, गा. २८, वि. १७८६, पद्य, म्पू., (सारदमात मनरली समरु), ९५५२२-७० (+) दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., डा. ६, वि. १७५७, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर बंदिने), ९५४५३-५ (+) दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सारद बुधदाईक सेवक नयणानंद), ९७५८९-९(+#) दशार्णभद्रराजा रास, आ. हीरानंदसूरि, मा.गु., गा. ३१, वि. १५वी, पद्य, म्पू, (वीर जिणेसर पर नमी), ९७१८४-६ (M) दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (रे जीव जिन धरम कीजीय), ९७३१२-६(+#), ९८०७१-२(+), ९५००४-५(#) दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय), ९५५२२-४०(+), ९५८३२-१(+), ९६४१० (+#$), ९७३९७-१ (+$), ९८३४४ (+#), १०००९४(+), १०००९६ - ४ (+), १००१०२(+), ९५०८२-१, ९७३०७(#), ९७५६३-४ (#), ९७८०२(#$), ९८३८० (#), ९५२५१($) दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयेतादास, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे. (दान एक मन देह जीवडे), ९७२३७-१० (+) दानाधिकार सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु. गा. १४, पद्य, म्पू (समरू सरसति सामिणीजी), १००१२२-२ (५), ९९४८६-२(-) दीपावलीपर्व कल्प, मा.गु., गद्य, मूपू., (मांगल्य पीत कार्ती), ९४९१३(+$) יי दीपावलीपर्व व्याख्यान, रा., गद्य, मूपू., (पणमिय वीरं वुच्छं), ९७८२५-३(S) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू. (जय जय कर मंगलदीपक), ९७६६५-२३(*) दीपावली पर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (सासननायक श्रीमहावीर), ९८४२३-१, ९५४४२-१८(क) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पर्व पनोता पुन्ये), ९६१०९-२१(#) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. शुभविजय शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वर्द्धमान प्रभु विचरतां), ९७६६५-६(+) दूमराय - प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नगर कपीलानो धणी रे), ९५५२२-४८(+) देवकी ढाल, मा.गु., पद्य, वे (उत्तम नगरी दुहारका), ९८८७६-१(३) " देवदर्शन फलवर्णन स्तवन, मु. मान, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सति देव नमुं मनरंग), १००००९-८(+) देवराजवच्छराज चौपाई, उपा. आनंदनिधान पाठक, मा.गु., ढा. ३५, गा. ८०४, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (मनशुध संतिजिणेसरु), ९७५१६(*) देवराजवच्छराज चौपाई, ग. कनकविलास, मा.गु., ढा. ४६, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (प्रहसमि पणमुं पेम धरि पास), ९५७२१(+#) For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ देवराजवच्छराज चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ९४७०९(#$) देवसूरि भास, ग. रंगकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (कांमणगारो रे गुरुजी), ९७२६४-२३(+#) दोहा संग्रह, मा.गु., दोहा. ५०, पद्य, इतर, (सजन तोरा गुण घणा), ९६३९९-३(+#) द्रव्यगुण पर्याय स्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्मास्तिकाय द्रव्य तेहना), ९९६८५(#$) द्रव्यभावना गहुंली, आ. उदयप्रभसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परम प्रभातें उठीने रे), ९७२९८-८(+#) द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., ढा. ३९, गा. १११७, वि. १६९३, पद्य, मूप., (पुरिसादाणी पासजिण), ९५३७१(+#), ९५५१३(+), ९७९२४(६) द्वादश मास-कोष्ठक, मा.गु., को., इतर, (--), ९५२३५-६(#) द्वादशव्रत टिप्पणक, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ९५०३९(+) द्वारिकानगरी विस्तार, मा.गु., ढा. १२, पद्य, मप., (बावीसमा श्रीनेमजिणंद ए), ९७१३३-१(+#) धन्नाअणगार गहंली, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (गहुंली पूरो रे सोहाग), ९६६०४-७(+) धन्नाअणगार रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., गा. ३३०, वि. १५१४, पद्य, मूपू., (पहिलउं पणमी पयकमल), ९८५९७(5) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. सिंघ, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सरसति सामिनि वीनवू), ९५७४४-६, ९५७४४-७ धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (धन धन्नो ऋषि वंदीय), ९५५२२-२२(+) धन्नाशालिभद्र गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.ग., गा.८, पद्य, मप., (धन्नौ सालिभद्र बेउ), ९५५२२-५४(+) धन्नाशालिभद्र चरित्र, मा.गु., गा. १८, पद्य, मपू., (मोटुं छइ चरित श्रीधनातणउअ), ९४६६४-२२(६) धन्नाशालिभद्र रास, मु. जिनविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ८५, गा. २२४२, ग्रं. २५००, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिं नत क्रम), ९४८३९(+#), ९४९८९(+$) धम्मिल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., खं. ३ ढाल २०, गा. १००६, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखदायिक), ९५०९९(+$) धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (धरमजिनेश्वर गाउं रंग), ९४९२४-१६, ९९८८५-८(2) धर्मजिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (इक सुणलौ नाथ अरज), ९५८१०-३१(+#) धर्मजिन स्तवन, पं. जिनहर्ष, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (धर्म जिनेसर ध्याइईये), ९७४९२-३(+#) धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, भूपू., (हां रे मारे धरमजिणंद), १००७१२-२(+) धर्मजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (थास्युं प्रेम बन्यौ), ९६९५५-३३(+) धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. १३८, वि. १७१६, पद्य, मूपू., (चिदानंद चित चिंत), ९७२६४-५ (+#$) धर्मसूरि सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (पूज्यजी पधारो हो मरुधर), ९७२६४-१२(+#) ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. १६३, वि. १६९६, पद्य, मपू., (सकल जिणेसर पाय वंदे), ९५२१७-१(#) नंदबहुत्तरी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७३, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (सबै नयर सिरि सेहरो), १००४१४(#) नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, ग्रं. ४२१, वि. १७२५, पद्य, पू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), ९५५८३(+), ९५७८९(+#), ९६४२७(+), ९७०९७(+) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरीनो वासी), ९७२६४-२४(+#) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (रहो रहो रहो वालहा), ९७२६४-२६(+#) नंदीश्वरद्वीपजिन स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नंदीसर बावन जिनालये), ९९५२८-७२ नंदीश्वरद्वीप पूजा, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., ढा. १२, वि. १८९६, पद्य, मूपू., (प्रणमुंशांति जिणंद), ९४८७६(+$) नंदीषण लावणी, मु. हीरालाल, रा., गा. ४, पद्य, स्था., (या जिनमारग की शोभा), ९६६४८-२ नगरस्थापना वर्षवर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (सं. १४९४ राणपुररो), ९७४७३-७(+) नमस्कार महामंत्र चौपाई, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ४१, गा. ८८१, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (अरिहंत आदि देईन), ९४८७७(#$) नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मपू., (वंछित० श्रीजिनशासन), ९९८७१-१९(+) For Private and Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नमस्कार महामंत्र छंद, मु. गुणप्रभुसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ९५४८९-९(+), ९९५२८-६१ नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा.७, पद्य, मूप., (सुखकारण भवियण समरो), ९७१४५-३(+#), ९७७०३-१(#s) नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (किं कप्पतरु रे आयाण), ९५३१३-२९(+) नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २२, पद्य, मपू., (पहिलो लीजि), ९९५२८-६३ ।। नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (ए पंचपरमेष्टि पद), ९५५२२-६९(+) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. ४१, वि. १८वी, पद्य, मपू., (वारी जाउ अरिहंतनें), ९९०२४-८(+) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीनवकार जपो मनरंग), ९५४८९-११(+), ९९५२८-६२ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कहेजो चतुर नर ए कोण), १००२४२-३(+#) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. विमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (श्रीजिनप्रवचन जग जयकार), ९४८६९-२(+) नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (अष्ट लबध नव नीध भंडा), ९७३१२-५(+#), ९५००४-६(#) नमिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (आज जिनराज सिरताज दिन), ९६५४६-१२(+#) नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (जी हो मिथीला नगरीनो), ९४८६९-५(+), ९७५८९-१२(+#) नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू., (नयर सुंदरसण राय हो), ९५५२२-४९(+) नरकविस्तार स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ३४, पद्य, मूपू, (वर्द्धमान जिन विनवू), ९७२२७-२(+#) नरकवेदना वर्णन दोहा, मा.गु., अंक. ५४, पद्य, मप., (तिहां प्रथम कयी नरक),१००१२८ नलदमयंती चरित्र, वा. ज्ञानसागर, मा.गु., वि. १७५८, पद्य, मपू., (प्रणमु पारसनाथना चरण कमल), ९८४३१(+$) नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ६ ढाल ३९, गा. ९३१, ग्रं. १३५०, वि. १६७३, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी प्रमुख), ९५३३५(+), ९५५११(+), ९५५२८(+#), ९५७०३(+#), ९५९३०(+#$), ९६१९६(+$), ९७०२१(+#$), ९७३२०(+#$), ९७४१२(+#), ९८९६३(+#$), ९७०४०(5) नवकार प्रभावदर्शक दोहे, पुहि., दोहा. ४, पद्य, मपू., (पढ़ो मंत्र नवकार), ९५४८९-१०(+) नवकार मंत्र गीत, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (मंत्र जपो नवकार), ९७२३७-५(+) नवकारमंत्र चौढालिया, मु. दयाकुशल वाचक, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, पद्य, मूपू., (लोक अलोका एहनी समरउ), ९५५२२-४३(+) नवकार सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सकल ऋद्धिदायक नायक), ९४८६९-३(+) नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ९, गा. २०४, पद्य, मप., (सकल जिनेसर प्रणमी), ९५०९६-१(+६), ९७३०१-१ नवतत्त्व वर्णन, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ९५४८९-१३(+$) नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, मपू., (जीवाजीवा पुन्नं पावा), ९६४५५ नवतत्त्व स्तवन, ग. भाग्यविजय, मा.गु., अ. ९, गा. १६७, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतना पायजुगल), ९६०३३-१(+#$) नवपद उलाला, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. २१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तीर्थपति अरिहा नमुं), ९६६२९-२(+) नवपद पद, मु. अमर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (ए नवपद नित ध्यावो हो भवि), ९८१४५-१४(+) नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३०, पद्य, मप., (श्रीगोडी पासजी नीति), ९७४५८-१(+) नवपद पूजा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३८, पद्य, मूपू., (श्रुतदायक श्रुतदेवता), ९८८५७(+) नवपद महिमा, पं. दलीचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (सिद्धचक्रकी सेवना आणी), ९९५२८-६४ नवपदमहिमा दृष्टांत कथा, मु. प्रेमविशाल, मा.गु., पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवता अणहुँ), ९५६९२(5) नवपदमहिमा स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, पू., (इण परि भवियण नवपद ध्याइये), ९७६१२-४(+) नवपदवासक्षेपपूजा दोहा, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (अरिहंत पद ध्यातो थको), ९४७५७-५(#$) नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (गोयम नाणी हो कहै), ९५३७३-४(+#) नवपद स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., स्त. ९, पद्य, मूपू., (जय जय श्रीअरिहंतभानु), ९७६९४ नवपद स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तीरथनायक जिनवरू रे), ९४९९२-९(+#), ९६९५५-१७(+) नवपद स्तवन, आ. जिनपद्मसूरि, मा.गु., स्त. ९, पद्य, मूपू., (अरिहंतपद आराधीय आणी ऊलट), ९६६२७-४४(#) For Private and Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ नवपद स्तवन, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (नवपद के गुण गाय रे), ९६६२७-३३(#) नवपद स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (नवपद महिमा ध्यावो), ९६६२७-४३(#) नवपद स्तुति, मु. भीमराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन भविक विभासन), ९६५९२-८(+#) नववाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., ढा. ९, गा. ७२, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर इम भणे), ९७२४६-३(5) नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, पू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), ९५८३८-१ नवाणुप्रकारीपूजा विधि, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १२, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ९५२४४(#s) नागकेतु कथा, मा.गु., गद्य, मपू., (चंद्रकांता नाम नगरी), ९५६९१-१ नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घेर आवीया), ९६२२४-१(+) नारकी बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ समचइ नारगी), ९८१९२-२(+) नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, पू., (चित्रलिखित जे पूतली), ९५५२२-२६(+) निगोद स्वरूप विचार, मा.ग., गद्य, मप., (चौद राजलोकमां असंख्य), ९५५७६-४(+#) नियंठा बोल, मा.गु., गद्य, स्था., (पन्नवणा वेय रागे), ९७१५२-३(+), ९४६८५ निर्मोहीराजा पंचढालीयो, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १८७४, पद्य, श्वे., (निरमोही गुण वरण), ९४७५८-२ निह्नवमतखंडन झलणा, रा., पद. ५, पद्य, श्वे., (सूत्रसिद्धांतरा अरथ), ९७४७३-१(+) नीगइराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पुंडपुर वर्धन राजीयो), ९५५२२-५०(+) नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., चोक. २४, वि. १८३९, पद्य, मप., (एक दिवसे नेमकुमर निज), ९५६४१-५९(+#$), ९६९५५-१५(+), ९७५७२(+#$), ९७२१९, ९७९११, ९५०००(2), ९७६११(२), ९८५२५($) नेमराजिमती गरबा, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (रहो नेमजी रहो रे जाण्य), ९६६०४-१२(+) नेमराजिमती गरबो, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (चंदा संदेसो केहेज्यो), ९६६०४-१०(+) नेमराजिमती गीत, मु. कंत, मा.गु.,गा. ५, पद्य, श्वे., (पुढी गउखि पूनिम निसि पेखि), ९४६६४-९ नेमराजिमती गीत, मु. गणपति, मा.गु., पद्य, मूपू., (नेमि जिणेसर परमयोगीसर राय), ९४६६४-१० नेमराजिमती गीत, मु. चारित्रसुंदर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (नेमिजिण तोरणि आविउ ए परणे), ९४६६४-१५ नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहि., गा.१५, पद्य, मप., (तोरण आया हे सखी कहे), ९५३६२-७(+#) नेमराजिमती गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ६, पद्य, भूपू., (रहो रहो रे प्रीतम), ९५३६७-५(+#) नेमराजिमती गीत, मु. प्रतापविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मप., (सखि पडवेतो वेग पधारो रे), १००००९-६(+) नेमराजिमती गीत, मु. राजसमुद्र, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (श्रावण मइ प्रीउ संभर), ९९५२८-६० नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, म्पू., (नेम मले तो बातां), ९६६२७-१९(#) नेमराजिमती गीत, मु. साधुहंस, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जान लेई नइ तोरणि आविउ पसू), ९४६६४-६ नेमराजिमती गीत, श्राव. सामल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (राजलि भणइ रे हरिणाला), ९४६६४-१७ नेमराजिमती गीत, मा.ग., गा. ४, पद्य, मप., (अगर चंदन घन कस्तूरी कपूर), ९४६६४-१६ नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (आज सजनी रजनी भरि भरि), ९४६६४-८ नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (झिरमरि झिरमरि वरिसी नीर), ९४६६४-११ नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा.३, पद्य, मपू., (ते जोईइ गोपीवर गोविंद इंद), ९४६६४-१४ नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. २, पद्य, मप., (परणावण प्रिइ परिहरी रे), ९४६६४-१२ नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (भोग भला भरता भरता भला रे), ९४६६४-२० नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (यादव जे मनि आदरं रे), ९४६६४-१३ नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (सुणउ यादवजी वात अम्हारी), ९४६६४-१८ नेमराजिमती पद, मु. अमीचंद, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (हरीयालो डुंगर प्यारो हे), ९७२३७-४(+) नेमराजिमती पद, मु. अमृत, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (काहां रे लगाई एती बेरीया), ९८६८१-२५(+#) नेमराजिमती पद, मु. अमृत, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (लेज्या लेजा लेजाजी), ९८६८१-१८(+#) For Private and Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमराजिमती पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. २, पद्य, मप., (माहरो मोहन ए कब मिलसे मन), ९५६४१-६६(+#) नेमराजिमती पद, मु. चंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (यादव मन मेरो हर लीयो), ९९०७२-८(+#) नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कब मीलसी म्हारो), ९८२०२-४ नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महाराज मो मन भावे सुण), ९६६१४-१२(#) नेमराजिमती पद, म. जैराम, पहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (दिल महिर न आनी तजि), ९५३७३-१२(+#) नेमराजिमती पद, मु. ज्ञान, पुहिं., पद. १, पद्य, मूपू., (जदुराय चढे वर राजुल), ९५५५०-५(+) नेमराजिमती पद, मु. ज्ञानसुंदर, पुहिं., पद. २, पद्य, मूप., (लाल घोडो लाल पाघ लाल), ९५५५०-८(+) नेमराजिमती पद, मु. दीप, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (बेचुंगी बिन मुल नीदतो ये), ९८६८१-१६(+#) नेमराजिमती पद, मु. दीपविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (स्यांम रहो रे हां रे), ९८६८१-७(+#) नेमराजिमती पद, मु. प्रतापविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (तेरो गुनो में कौन कीउ हे), १००००९-७(+) नेमराजिमती पद, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (नव भव केरी प्रीत धरी), ९६९५५-३५(+) नेमराजिमती पद, मु. भूदर, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (भगवंत भजनकुं भूला रे इह), ९८०२३-१४ नेमराजिमती पद, श्राव. मूलचंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांवरीयो नाथ हमारो छे), १००१२६-७(+) नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (देखन दे मुझ नेम), ९८६८१-२४(+#) नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सखी स्यामवरण सहसा), ९६६२७-४२(#) नेमराजिमती पद, मु. विजयप्रभ, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (राजुल पोकारे नेम पीया इसी), ९८६८१-१४(+#) नेमराजिमती पद, उपा. सूर्यविजय पाठक, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (बरषइ अति जोर कीइ बहु बादर), ९५५८२-२(+) नेमराजिमती पद, मु. हरखचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूप., (देखो माई उमडि घुमडि), ९८०२३-५ नेमराजिमती पद, मु. हरखचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (नेमजी थे काई हठ माड), ९८०२३-२३ नेमराजिमती पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कहि कहि रे बाई कुणि रथि), ९४६६४-२१ नेमराजिमती पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (ख्याला में तो खडी पुकारु), ९६६२७-५(#) नेमराजिमती पद, मा.गु., पद्य, मपू., (जोवन प्रहणो रे हो प्राणी), ९४९४०-१९(+$) नेमराजिमती पद, मा.ग., गा. ४, पद्य, मप., (साजन हो तेरे साथ चलूंगी), ९६६२७-२९(2) नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, श्वे., (हो कछु डार्यो रे० यद्पति), ९८६८१-३२(+#$) नेमराजिमती फाग, पं. निधानविजय गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (नेमजी के दरबार चालो खेलीइ), ९४९४०-१६(+) नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सांवण मासे स्वाम), ९९८७२-२(#$) नेमराजिमती बारमासा, मु. लालविनोद, पुहिं., गा. २६, पद्य, मपू., (विनवे उग्रसेन की), १००४१९-७(+$) नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (सारद पय पणमी करी), ९५८३९(+), ९७३२२(+), १००४१९-६(+), ९९८७२-१(६) नेमराजिमती रेखता, मु. चंदविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजुल पुकारे नेम), ९८०२३-२ नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (एजी तुम तजकर राजुल), ९७२३७-१९(+) नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सजन विना गुना तजी हम), ९८२०२-२ नेमराजिमती लावणी, मु. नंदराम, पुहि., गा. १६, पद्य, श्वे., (नेमजी की जान बणी भारी), १००१२९-२(+#) नेमराजिमती विवाहलो, मु. जिनदास, मा.गु., ढा. ८, गा. ८२, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पय नमो), ९७२३७-२०(+) नेमराजिमती श्लोक, मु. कुशलविजय, मा.ग., गा. २०, वि. १७५९, पद्य, मप., (समरु गणपतिनै सारिद), ९५७२०-३(+) नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., गा. ३२, पद्य, मूप., (हठ करी हरीय मनावीयै), १०००९६-१(+) नेमराजिमती सज्झाय, उपा. अमरसी, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (पंथीडा हरकर कहै रे), ९५४८९-६(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. केवल, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (ग्याननो लाभो ध्याननै पछै), ९८४५१-२(+#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिसर नित नमु), १००४१९-५(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (काइ रिसाणो हो नेम), ९८३८६-३(+$), ९८०१६-१५(#) For Private and Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ नेमराजिमती सज्झाय, मु. मान, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (सुंदरसारी बालकुंयारी नव), ९४९२४-८ नेमराजिमती सज्झाय, आ. रत्नसागरसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (--), ९९८८५-१९(#S) नेमराजिमती सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (--), ९८५०९-४(+#) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ३९, पद्य, मूपू., (माधुकुलनो मोडवो अलबेला), ९५७४४-३ नेमराजिमती सवैया, मु. उदयराज, पुहिं., सवै. २, पद्य, श्वे., (दमनि चमके महरा टमके), १००४६२-३४ नेमराजिमती स्तवन, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (सांभल सजनी रे मारी ह), ९६६०५-२(2) नेमराजिमती स्तवन, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (वा ऋतु खेलनकी अब), ९६५४६-४(+#$) नेमराजिमती स्तवन, मु. गजाणंद, पुहि., गा.५, पद्य, मप., (घन आयो हो पीया गरजी), ९८०२३-४ नेमराजिमती स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (--), ९५३६२-९(+#$) नेमराजिमती स्तवन, मु. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (तुमे रहो रे यादव), ९४९२४-१७, ९९८८४-२(#$) नेमराजिमती स्तवन, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (नहि ज्याने दगी मे), ९८६८१-३(+#) नेमराजिमती स्तवन, मु. राम, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (माइ री गिर जान दे मोहे), ९५३७३-१०(#) नेमराजिमती स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (नेमजी करी वात रे), ९५३६७-१०(+#) नेमराजिमती स्तवन, पुहिं., गा. ७, पद्य, मपू., (सुद्ध लीजे नेमकुंवर मेरी), ९५८१०-३२(+#) नेमराजिमती हरियाली, क. गंग, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (ए सखी एह पान न खाउं मझमख), ९४६६४-४ नेमराजिमती हरियाली, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कामिनी कालीमइ दीठउ), ९४६६४-५ नेमराजिमती हरियाली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (सलूणी सुकमाल सुंदरि एकलडी), ९४६६४-७ नेमिजिन गहुंली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सखीए वगारो नमएने सुं कहीइ), ९६६०४-११(+) नेमिजिन गहुंली, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (द्वारिकानगरी दीपती), ९७४२०-६ नेमिजिन गीत, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (हरी नारी टोले मिली), ९६७१५-२०(#$) नेमिजिन चरित्र, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ५२, वि. १८७४, पद्य, स्था., (नगरा सुरीपुर राजीयो), ९५२४५-३ नेमिजिन चरित्र, मा.गु., गा. ५१, पद्य, श्वे., (नगरी सोरिपर राजीयो), ९८८७६-२(-5) नेमिजिन छंद, मु. हेमचंद्र, मा.गु., अधि. ३, गा. १९१, पद्य, स्पू., (वंदेहं विमलं वंदे), ९८३६६-१ नेमिजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (आछी गति छवि मारै मन), १००३२५-११(+) नेमिजिन पद, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (अब मोहि यादव जीवन), ९५५२२-१३(+) नेमिजिन पद, मु. दीपविजय, पुहि., गा.७, पद्य, म्पू., (नेम प्रभु एतलो मान), ९८६८१-४(+#) नेमिजिन पद, मु. दोलत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेमीसर वांदवा नेमी), ९५४८९-१६(+) नेमिजिन पद, मु. धर्मसिंह, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (प्रगटा विकटा उमटा), ९५५५०-२(+) नेमिजिन पद, मु. भूपत, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (नेम निरंजन ध्यावो रे), ९७४९२-१३(+#) नेमिजिन पद, मु. मानविजय शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्यारे तुम नेम जिनंदावो), १००००९-१४(+) नेमिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. २, पद्य, मपू., (सयन की नयन की वयन), ९६७१५-१३(#$) नेमिजिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हेली गिरनारै बोल्या), ९६६१४-६(2) नेमिजिन पद, मु. हरखचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (निपट ही कठन कठोर), ९५३७३-१३(+#) नेमिजिन पद, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (जादव कोड वस दर दंतक), १००१२६-२(+) नेमिजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (तेरी सांवरी सूरत मन वस गई), १००१२६-११(+) नेमिजिन बलगीत, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (समुद्रविजय सुत चंदलो), १०००९६-२(+) नेमिजिनबहुत्तरी स्तवन, मु. मूलचंद्र, मा.गु., गा. ७४, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणेसर पाय), ९९९५२-१(+) नेमिजिन बारमासो, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रंगीला नेमजी चैत्र), १००१३२-१(+) नेमिजिन रास, पुहिं., गा. ६५, पद्य, श्वे., (आदिपुरुष कहीयें जगति), ९५३५२-२(+$) नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ६, पद्य, मप., (में अबला अब जाण लाल तेरे), ९७२३७-२(+) For Private and Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५६८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमिजिन विवाहलो, पं. बीरविजय, मा.गु., डा. २२, गा. १५१, वि. १८४९, पद्य, म्पू., (सरसती सरण नमी रे) ९७६२४(क) नेमिजिन विवाहलो, मा.गु., डा. ६, गा. १६५, वि. १८६३, पद्य, मूपू., (द्वारामती नगरी भली), ९५८१०-११(+) नेमिजिन सज्झाय, मु. धनराज, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ९९८७२-९(#$) नेमिजिन सलोको क. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५७, पच, भूपू (सिद्धि बुद्धि दाता), ९९९५४ 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिजिन सलोको, मा.गु., गा. ५३, पद्य, मूपू., (समरूं सारद सुण माता), ९८६३८ नेमिजिन स्तवन, मु. अमृतविजय, पुहिं., पद्य, मूपू., (मनमोहन मेरे सिवावेविनंदन ), ९६९७६-५ (5) (प्रभु नमो नमो नेमि जिणंदा), ९६६२७-३६ (*) मूपू., ( नेमकुमर फागुण रमे), ९८०१६-१३(#) (समुदविजेसुत लाडलो जायो), ९५८१०-१८(+) नेमिजिन स्तवन, मु. उदयचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू नेमिजिन स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, नेमिजिन स्तवन, मु. छीत्रमल, पुहिं. गा. २१, पद्य, वे नेमिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांभल रे सांवलीया), ९९६८१-६(+) नेमिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (राजुल छोडी नेमजी), १०००९६-३ (+), १९४८६-४२०० नेमिजिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पर उपगारी रे वाहाला), ९६६०४-९(+) नेमिजिन स्तवन, मु. नित्यरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मुझ मन हेज धरै तुम), ९७२६४-२९(+#) नेमिजिन स्तवन, पं. नित्यविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (नेमप्रीत बनी छै प्यारी रे) ९७४९२-२५(+) "" नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सौरीपुर नगर सुहामणो), ९७२६४-१६(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. यशोविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सहेली हे तोरण आयो), ९९८८५-५ (#$) नेमिजिन स्तवन, मु. रामविजय, पुहिं. गा. ७, पद्य, भूपू (सुन साई प्याराचे), ९५५२२-१०(*) नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (घेर आवोने नेम वरणागी), ९५०३८-८ नेमिजिन स्तवन, मु. विवेक, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (श्रीनेमीसर वंदीये रे आतम), ९६५९३-८(*) नेमिजिन स्तवन, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विनवे राणी राजिमति), ९८५०९-१(+#$) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जय जय नेमिजिणंद समुद), ९८९९०-२(३) ', नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू (प्रीतम प्यारो हो राजल), ९५३६२-६(+#) नेमिजिन स्तवन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मत छोडो म्हांने), ९६६२७-६(#) नेमिजिन स्तवन-चातुर्मासवर्णनगर्भित, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मोरा सम मा जावो रे), ९५३७३-३(+) नेमिजिन स्तवन- ज्ञानपंचमीपर्व, ग. दयाकुशल, मा.गु., डा. ३, गा. ३४, पद्य, मूपु. ( शारद मात पसाउले निज), ९७२६४-२० (+), १०००१०-२ नेमिजिन स्तवन- नाडोलाईमंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ५, वि. १८७६, पद्य, म्पू., (नाडोलाई राजै हो जगमंडण), ९८९४५-५६) नेमिजिन स्तवन-सौभाग्यपंचमी महात्म्यगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पवयणदेवी रे ), ९७२६४-२१ (+४) १०००१०-१ नेमिजिन स्तुति, क. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीगिरनारे जे गुण), ९६४०९-६(+$), ९६१०९-१९(#) नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (श्रावण सुदि दिन), ९६२७१ - ३(+#), ९८४२३-१५, ९९४८५-६(क) नेमिजिन स्तुति, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू ( गिरनार गिरिवर नेमि ज), ९८४२३-८ मिजिन स्तुति, मु. संघविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( श्रीगिरनार शिखर), ९७६६५-२७(+) मिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुर असुर वंदित पाय पंकज), ९५३१३-३९(+), ९९८७१-४(५) पंखीप्रबोध कुंडलीया, केसरीसिंह बारहठ ठाकुर, मा.गु., गा. ४४, पद्य, वै., (करता भजीयो कै हरी ज्यां), ९८४६६-२(+) पंचकल्याणक पूजा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९६५३६(+$) पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., ढा. ५, गा. २५, पद्य, श्वे. (पणमवि पंच परम गुरु), ९८६३४(+#) " पंचकल्याणक महोत्सव स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ५, श. १६८२, पद्य, मूपू., (प्रणमी पासजिनेसरु), ९७३८६-१४(+) For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ पंचजिन आरती, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहली आरती प्रथम), ९७४९२-८(+#) पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू. (सकल मनोरथ पूरवा प्रणमी), ९८४२३-११ पंचपरमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतना गुण बारा), ९६३३३-२ पंचमीतिथिपर्व सज्झाब, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सद्गुरू चरण पसाउले), ९७५८९-१० (+), १००८२२-३(०) पंचमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (धरमजिणंद परमपद पाया), ९७६६५-१८(+) पंचमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचवरण कलसे करी जेइ), ९५१८२-३(+#) पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचरूप करि मेरुशिखर), ९७६६५-१(*), ९७१८३-४ " पंचांगगणित विधि, उपा. महिमोदय, मा.गु., गा. १६४, वि. १७३३, पद्य, म्पू, इतर ( परम जोति प्रभुकुं), १००८४४-१ (+४६) पट्टावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (महावीर देव चोवीसमो), ९४९३१-१ पट्टावली*, मा.गु., गद्य, भूपू (श्रीवर्द्धमानतीर्थ) ९६२३२ (+), ९६८४४० ', पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुबरग्रामवासी वसुभूति नाम), ९४६५३(१) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान), ९५४६४ (+), ९७३१३-१(+), ९७४६४(+) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानसामी), ९४७१३(+) पद्मनाभजिन लावणी, मु. हीरालाल, रा. गा. ४, पद्य, स्था., (श्री पद्मनाभ महाराज), ९६६४८-७ , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मप्रभजिन पद, मु. जिन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयो जिनराज जयो री जिनराज), ९८६८१-११(+#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभु तुम सेवना), ९७२६४-८(+#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. हितविजय शिष्य, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभुजीस्युं), ९७२६४-२५ (+#) पद्मप्रभजिन स्तवन- नाडोलमंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ७, वि. १८७६, पद्य, मृपू., (पदमप्रभू दरसण दीये महिर), ९८९४५-५५११ पद्मप्रभजिन स्तवन- नाडोलमंडन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (नाडूलनगर विराजे तिहा), ९५३६७-१७ (+४) पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धन धन संप्रति साचो), ९५३७६-२(+), ९५५२२-२९(+), ९८०१६-११(१ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), ९५५२२-७१(*), ९८०७१-९(१), ९८०१६-२५(४) ९७१७४-२ (६) पर्युषणपर्व स्तुति, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (सासन नायक वीरजिनेसर), ९८४२३-४ पर्युषण पर्व स्तुति, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( पर्व पजुसण पुण्यें), ९७१८३-११ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुन्य), ९७६६५-१२(+), ९८४२३-६ पर्युषण पर्व स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू, (शासनपति सोहे साचो) ९५७४५-३(१) ५६९ परदेशीराजा केशीकुमार संवाद, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ६, पद्य, स्था., (ये मुनिराज महाराज), ९६६४८-६ परनारी परिहार सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नयनां अटकमां नयनां), ९८०२३-२१ परमात्मछत्रीसी, मु. चिदानंद, पुहिं. गा. ३६, पद्य, मूपू., (परमदेव परमातमा परम), ९४७०७-१(+) परमार्थ अष्टपदी, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (ऐसे ज्यौं प्रभु पाईइ), ९९५२८-६९ पर्युषण पर्व अठाई स्तवन, मु. हेमसीभाग्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मृपू., (प्रणमुं पास जिणंदा), १६७४७-२ (४) पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रणमु सरस्वती), ९७४२०-८ पर्युषणपर्व स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीपजुसण परव सेवो), ९६६०४-१४(+) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुण्ये), ९६४०९-२(+) पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू. (वली क्ली हुं ध्यावु), ९५३१३-५४(*) , पर्युषणपर्व स्तुति, मु. धर्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू. (त्रिभुवनमा मोटु परव) ९८४२३-७ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सत्तर भेदे जिन पूजा), ९७६६५-४ (+), ९९८७१-१६(+), ९७१८३-१०, ९६१०९-२२(#) For Private and Personal Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७० www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पर्युषणा महापर्व के कर्तव्य माहात्म्य कथा संग्रह, पुहिं., गद्य, खे, (--), ९४९८१ (+३) " 1 पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु. ख. ९ ढाल १५१ . ५७५०, वि. १६७६, पद्य, मूपू. (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू), ९५३८१ (+) पाहूराजा पवाडा, मा.गु., गा. ३०१, पद्य, जे. वै. बौ. इतर (देवी द्यो वरदान मुण तो यू), ९७२८०-१(१) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. लालचंद, मा.गु., ढा. ३९, गा. ५३५, वि. १७४२, पद्य, मूपू., ( प्रथम जिणेसर परगडो), ९५४४० (+#), ९५८४४(+०३), ९७०४३(+४), ९७३२३ (+#5) יי " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir י पार्श्वचदसूरि गीत, आ. पद्मचंदसूरि, मा.गु., गा. ९. वि. १७७५, पद्य, म्पू. (श्रीसूरीसर सुरतरु श्रीपास), ९६९५५-२८) पार्श्वजिन आरती व अगरचंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू ( आरती करत श्रीपासजिणं), ९७४९२-२७(**) " पार्श्वजिन आरती, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ७, पद्य, म्पू, ( आरती करूं श्रीपार्श्वनाथ), ९७२११-३ पार्श्वजिन आरती, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू., (जय जय आरती पास जिनंदा हुं), ९६६२७-११(क) पार्श्वजिन कलश-नवपल्लव मांगरोलमंडन, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (श्रीसौराष्ट्र देश), ९४८६१-२(+#$) पार्श्वजिन कलश-मांगरोलमंडन, मु. महिमासागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसुराटदेस मध्ये), ९५४७६-१(+) पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे एही ज चाहीइं), १००११४-९(+), ९५००४-३(#), ९७५६३-३ (#) पार्श्वजिन गीत-गोडीजी, वा. दाम, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जेश्री गोडी पास जे जे), ९७०९२-३ पार्श्वजिन गीत-गोडीजी, मु. रामविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुख नीकौ गौडी पास कौ को), ९९८८५-१४(#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय श्रीपार्श्वनाथ), ९९८७१-२६ (*) पार्श्वजिन छंद, मु. धानत, पुहिं. गा. १०, पद्य, मुपू., (नरेंद्र फर्णीद्र), ९५८१०-२९(+#) पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., (सरसत मात मना करी), ९८३०२-६(+), ९७७४८-२, १००२७६(क) पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, ग. भावविजय, मा.गु., गा. ४५, पद्य, मूपू., (सरस्वती मात मया करी), १००४४९-१(#$) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५५, वि. १५८५, पद्य, मूपू., (सरस वचन दियो सरसति), १०००१०-२(+), १००१२०१९०१ पार्श्वजिन छंद-अमीझरा, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., ( उठत प्रभात अमीझरो), १०००१०-१ (+) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धवल धींग गोडी धणी सेवक जन), ९९७१२-१२(+) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. करमसी, मा.गु. गा. ८, पद्य, थे. (गवरीपुत्र गणेशवर), ९५४९२-३ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपु. ( सुवचन दे मुझ शारद), ९६३९९-५ (क) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू. (सरस वचन दे सरसती एह), ९७८९४(५) ९४७६१-२(७) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. रूप, मा.गु., गा. ११२, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन मझ ततसार), ९५६८७ (+), ९९०१८(+) पार्श्वजिन छंद गोडीजी, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, म्पू., (सरसतीमात नमीकरी वली), १००५६५-१ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी मा.गु.. गा. २४, पद्य, मूपू (गोडी गिरुड गाजलो धवल) १००१२०- २(क) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. ४२, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (समरी माता सारदा प्रणमी), ९५४९२-२ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु. गा. ७, पद्य, श्वे. (सरसति द्यो मुझ) १००५६५-२(६) " पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (सुवचन आपो शारदा मया), ९४७६१-१(#), १००७९०-१(#) पार्श्वजिन छंद- नाकोडामंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, म्पू. (आपण घर बेठा लील करो), ९६९५५-२१(+), ९७३५२-१ (+#), ९८४२३-१८ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), ९७३१२-१० (+#), ९८२०४-३(#), ९८०२५-१(३) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (सकल सुरासुर सेवे), १००१२०-३०) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पं. महिमारूचि गणि, मा.गु., गा. २४, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सरसति सूखदाता तुं जग), ९८०१६-३६(#) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थमंडन, ग. नित्यविजय, मा.गु., गा. ३७, वि. १७४५, पद्य, म्पू. ( सारदा माता सरस्वति), ९५४९२-१ For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५७१ पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूप., (थंभणपूरवर पासजिणंदो), ९८०१६-४(#), ९९८८५-७(#) पार्श्वजिन देशांतरी छंद, क. राज, मा.गु., गा. ४७, पद्य, श्वे., (प्रवचन आपो शारदा), १००९१२-२ पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), १००९३६ पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ८, वि. १८८९, पद्य, मूप., (संखेश्वर साहेब सुर), १०००९५(+#), ९५०६० ।। पार्श्वजिन पद, मु. चंदखुसाल, मा.गु., पद. ५, पद्य, मूपू., (नन्नडायो गोद खिलावै), १००१२६-५(+) पार्श्वजिन पद, मु. चंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (रूप भलौ जिनजी कौ), ९६६२७-२०(#) पार्श्वजिन पद, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (आज लगी रे आज लगी अंखिया), ९६६२७-३१(#) पार्श्वजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (देखी मुरत पास की), ९६६१४-२(#) पार्श्वजिन पद, श्राव. मूलचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर प्राण पीयारो), १००१२६-८(+) पार्श्वजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वामानंदन जगदानंदन), ९६७१५-२२(2) पार्श्वजिन पद, मु. राम, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (जय जय तु जिनराज आज पुन्ये), ९६१०९-३(#) पार्श्वजिन पद, मु. रुपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (कोन खबर ले मेरी मे वारी), ९६६२७-३७(#) पार्श्वजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (मै मुख देख्यो पारस), ९६६२७-१७(#) पार्श्वजिन पद, मु. विद्याविलास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (मेरी प्रीति लगी वामा), ९५६७७-४(+) पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (तेवीसमा जिनराज जोडी), ९५५२२-१२(+), १००१२६-१२(+) पार्श्वजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (दिल मेडा पातस्याहा), ९८०२३-१० पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (पास जिनंदा साढी निजर), ९८०२३-१७ पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मोतियन थाल भर के मै करहु), ९८०२३-१५ पार्श्वजिन पद-अंतरिक्ष मंडन, मु. माणिक, पुहिं., गा. २, पद्य, मप., (तोसुं दिल लागा हो), ९७४९२-१८(+#) पार्श्वजिन पद-अवंतीमंडन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंथीडा पंथ चलेगो), ९७४९२-४(+#) पार्श्वजिन पद-उनामंडण, मु. लक्ष्मीरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वंदो वामासुत जिनराया कमठ), ९६१०९-१८(2) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ले लागी ले लागी रे), ९४९४०-३(+) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. रतनसुंदर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (जिनंदा मोरे नयना लागे रे), ९६९५५-१३(+) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. लाल, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (रंगरस भेनु रे सुरत), ९५३७३-१४(+#) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (जलवट थलवट जंगमै दुसम), ९५५५०-१०(+$) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (चिंतामणिसामी साचा), ९७४९२-२४(+#) पार्श्वजिन पद-दृष्टिकूटार्थगर्भित, जै.क. मल्ल कवि, मा.गु., गा. ३, पद्य, दि., (अठवदन कर दोय जीभ पनरह), ९५८०२-१३(+) पार्श्वजिन पद-फलवर्धापूरस्थंभण मंडन, श्राव. मूलचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीफलवधीपूरथंभण पारस साह), १००१२६-९(+) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. रंगविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, पू., (सांयां तु भलावे), ९८६८१-९(+#) पार्श्वजिन लघु स्तवन, मु. जयतसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पारस सरस कृपारस प), ९९५२८-४३ पार्श्वजिन लघु स्तवन, मु. रूप, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुजस तुम्हीणी सांभल्यौ रे), ९९५२८-३८ पार्श्वजिन सवैया, मु. धर्मसिंह, पुहि., सवै. १, पद्य, पू., (ताल कंसाल मृदंग), ९५५५०-४(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. अनूपचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (जीवन मांहरा तेवीसम ज), ९६९५५-२५(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (घोर घटा करी आयो री), ९५६४१-६१(+#), १००७८९-४(2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रीसुगुरु चिंतामणि), ९६९५५-३१(+), ९७१२१-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर आस पूरीजै मनतणी), ९९२२८-२(2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. गजकुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जय जय जयकर सुखकारि मोहन), ९८३०२-३(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. गुणशेखर, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (अदभूतरूप अनुप विराजै छाजै), १००७९०-४(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. चंद, पुहि., गा. ६, पद्य, मपू., (मन मोह्यो री मा पासजिनंदा), ९६९५५-१४(+) For Private and Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. जयमाणिक्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अक्षयसद्गुणगण शुभसरण), ९९५२८-५६ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (सुगण सनेही जिनजी अरज), ९७४९२-१२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (आज बधाई म्हारै आज), ९९५२८-५८ पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आ आछी वेला औ आछौ साज), ९९५२८-२ पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (आज आनंदघनन मट्यो जी), ९९५२८-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (वयण अम्हारा लाल हीयड), ९५५२२-१४(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जेतसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुगण सोभागी साहब), ९८०१६-१८(2) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (अंखीयां हरखण लागी), ९९२२८-९(+#), ९८२०४-५(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज सफल अवतार असाडा), ९५८१०-२०(2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. नंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अलवसर अवधारो सेवक तारो), १००२४२-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. नेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (वारु वारु रे म्हारा), ९७२६४-२७(+#), १०००९०-५ पार्श्वजिन स्तवन, मु. प्रधानसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पारसना पसायथी रे), १०००८९-३(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. भाग्यउदय, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (प्रभु तु साचो पारस), ९८६८१-२०(2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. पुण्यविजय, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (पीयानइ चुंदरवा भीजन लागी), ९४९२४-४ पार्श्वजिन स्तवन, श्राव. मकन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (प्रह समे पासने देह रे), ९४९४०-७(+) पार्श्वजिन स्तवन, श्राव. मकन, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (सुरपति सुरपति सुरपति प्रभ), ९४९४०-१८(+) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप्., (पासजी प्रगट प्रभावी), १०००९०-९ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (श्रीपासजी प्रगट), ९४७८२-११ पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.ग., गा.७, पद्य, मप., (राग छैजी छैजी राग छैजी), ९४९२४-१० पार्श्वजिन स्तवन, आ. यशोदेवसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मूरित ताहरी पेखता सामी), १००७९०-१०(2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रंग, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (तारीइं हो जिनराज), ९८६८१-६(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्नविजयशिष्य, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (पास जिणंदनी जाउ बलीहारी), ९८४३३-१० पार्श्वजिन स्तवन, मु. राज, पुहि., गा. ६, पद्य, मप., (जय बोलो अश्वसेन लाला), ९७४९२-६(+#), ९६६२७-२७(२) पार्श्वजिन स्तवन, पंडित. ललितसागर, मा.गु., गा. १०, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (समरथ साहिब सांभलो), ९८०१६-१४(#) पार्श्वजिन स्तवन, ग. लाभसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (चाह धरे श्रीपास जिणेसर), ९९५२८-७० पार्श्वजिन स्तवन, ग. विनयभक्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (त्रेवीसम पार्श्वजिन सेवू), ९९५२८-५७ पार्श्वजिन स्तवन, शंकर, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे.?, (सरसति माता सेवकां), ९८९०७-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (अश्वसेन कुल चंद्रमा), ९८०१६-१६(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुंदर, मा.गु., गा. ११, वि. १८०६, पद्य, मूपू., (--), ९७२६४-१३(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सारद वरदायक समरी सदा), ९९८८५-४(#) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (आज भलइ दिन उगियो), ९५५०७-३ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. १४, वि. १८५३, पद्य, श्वे., (भवीक जीन भजलो भगवान), ९५८१०-२८(+#) पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मु. मतिविसाल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (श्रीसारद हो पाय), ९८३०२-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (पूर मनोरथ पासजिणेसर), ९५६३०-२(+$), ९५६३३-१(+), ९६५८८-१(+#), ९६६७९-२(+$), ९९५२८-५१ पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८५५, पद्य, मूपू., (अंतरिक्षप्रभु अंतर), ९९५२८-७१ पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (श्रीअंतरीक विराजै श्रीपुर), ९८१४५-९५(+) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जय जय जय जय पास जिणं), ९६७१५-२१(#) For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वाणी ब्रह्मवादिनी), ९७५३१(+-), १०००८६, ९५२३५-२(#), ९८०१६-१(#), ९९०६८-१(#$) पार्श्वजिन स्तवन-अमीझरा, मु. जगरुपसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरसति सामण विनवू), ९५३६२-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-आध्यात्मिक, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (प्रीउडा जिनचरणांरी सेवा), ९५३६७-८(+#) पार्श्वजिन स्तवन-कापरडामंडन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अंग सुरंगी अंगीयां), ९५५२२-६०(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. अनोपचंद, मा.गु., ढा. ८, वि. १८२५, पद्य, मूपू., (जिन वदन निवासनी), १००६५६ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (गवडी प्रभु जिनवर गुण गावौ), ९८१४५-१०(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. आगम, मा.गु., गा. ९, वि. १८६३, पद्य, मप., (साहिबा तुं थलवटनो रे), ९७२६४-७(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पं. उत्तमविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (आज आनंद भयो गोडी पासजी), ९६५८८-४(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मप., (श्रीथलपति थलदेशे), ९६०२२-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्री गोडी प्रभु पासजी), ९८४४४-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ९, वि. १७२२, पद्य, मपू., (अमल कमल जिम धवल विराजे), ९६९५५-१६(+), ९४६५७-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (वाल्हेसर मुझ विनती), ९८०१६-२(2) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (विनय सजीने साहिबा), ९८४३३-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (गुण गिरूऔ गोडी धणी), ९९२२८-८(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पीया सुंदर मूरति गुण), ९५५२२-४(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुणज्यौ गोडीजी), ९५५२२-३(+), ९६९५५-७(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. धर्मसी, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (पासजी मन मान्यौ), ९५५२२-१५(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेम, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (आसणरा रे जोगी पासजिण), ९८४३३-३($) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १५, गा. १३७, वि. १८१७, पद्य, मपू., (प्रणमुं नित परमेश्वर), ९८२७६-२(+), ९७३०८(#), ९६६९७(5) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १४, वि. १८७७, पद्य, मप., (भावधरी भजन करु आपे), ९८०७३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मतिसागर, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (तुम्ह चालोने तुम्ह), ९८२०२-१० पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रंगविजय, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (तुम विना मेरी कुण), ९८६८१-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (इक अरज सुणौ गवडीस्वामी जग), ९८१४५-४८(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म.रूपविजय, रा., गा.७, पद्य, मप., (पुरसादाणी पासजी थे), ९९२२८-३(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. विनयविबुध शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मीठो मुने लागे रे), ९८४३५-९(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४१, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (वदन अनोपम चंदलो गोडि), ९८३०२-१(+$), ९८०१६-२७(१) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (अकल मुरति अलवसरू), ९५३७३-६(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सूरजचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (वारी जाउ गोडी गांमने), ९९४८६-५(-2) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गवडी प्रभु जगनायक लायक), ९८१४५-४४(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. ज्ञानमहोदय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (चिंतामणी चिंता सब), ९५३७३-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, श्राव. मूलचंद, पुहि., गा. ११, पद्य, मप., (चिंतामिण पासजी मारी चिंता), १००१२६-१४(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नीलकमल दल सामली रे), ९८०७१-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. वसतो वाचक, मा.गु., गा. १३, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (जय जय चिंतामणिस्वामी निज), ९९५२८-६ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आणी मनसुध आसता देव), ९५५२२-५(+$), ९६९५५-२०(+), ९७३५२-४(+#), ९७५८९-२६(+#), ९८३०२-१०(+), ९५१३९-२(4) For Private and Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५७४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणी, मु. फतेकुसल, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (--), ९९८८५-३(०४) पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू (जीराउलि मंडण श्रीपास), ९७७४८-१ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (महानंदकल्याणवल्ली), ९८३०२-८(+$) पार्श्वजिन स्तवन- जेसलमेरमंडन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुंदर मूरति सूरति), ९९०७२- २ (+) पार्श्वजिन स्तवन- नवपल्लव, मु. अक्षयकुसल, मा.गु., गा. ७, पद्य, वे. (नायक तुं नवपल्ला स्वामी), ९६५९३-७(*) पार्श्वजिन स्तवन- नवलखा, मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, मूपू. श्रीनवलखा प्रभु पास), ९६६०५-१(७) पार्श्वजिन स्तवन- पुरिसादानी, आ. यशोदेवसूरि, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू (पुरिसादाणी पासजी भेटण), १००७९०-८(क) पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुखकारी हो साहिब), ९९०७२-३ (+#$), ९९२२८-५(+#) पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धि, मु, उत्तम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वंछित फलदायक स्वामी), १००१३२-४(+) " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धि, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (देव सकल सिरसेहरौ लाल), ९५५२२-७(+) पार्श्वजिन स्तवन- मघसी, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमंता प्रभु पारस मघसी), ९८१४५-९१(+) पार्श्वजिन स्तवन- मसी, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मया करौजी प्रभु पारस मघसी), ९८१४५ ९२(*) पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. पुण्य, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिन से नेह बन्यो ), ९८६८१-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन- रत्नपूरमंडण, आ. शांतिसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जय जय श्री तेवीस जिणवर), १००७९०-६१) पार्श्वजिन स्तवन- लघु, मु. दानकमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय बोलो अससेन लाला की ), ९९५२८-६६ पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रपुरमंडण, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (लोद्रवपुर मंडण जग लायक), ९८१४५- ९३(+) पार्श्वजिन स्तवनलोद्रवपुरमंडण, वा विनय, मा.गु. गा. ९, पद्य, मूपु, (लोद्रपुर उछव मंड्यौ भवीया), ९९५२८-७ " पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुरमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १८१७, पद्य, मूपू., ( धन धन धुनी पाणट लोद्रवो ज), י ९९५२८-३ पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणामंडन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ७, वि. १८७६, पद्य, मूपू. (आज भले दिन ऊगो हो भेट्या), " ९८९४५-५४९ पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणामंडन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू., (वरकाणापुर राजीया), ९९८८४-७(B) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनलाभसूरि, रा., गा. ७, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (वरकांणा प्रभु थाहरै), ९९२२८-४(+#) पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपु., (कांइ रे जीव तुं मन), १७३१२-३ (+*) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, मु. नित्यप्रकाश, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सारद हो पाय प्रणमवी), ९७५६३-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (कांइ रे जीव मनमें), ९८०१६-५(#) पार्श्वजिन स्तवन- वाराणसीमंडन, मु. रूप, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (जय जय हो तिहुअण राया), ९९५२८-४ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. उत्तमसागर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू (रे दीदार की दिलभ्यंतर), ९६५४६-५ (+४) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (लगी लगी आंख आने रही), ९५३६२-८ (+A) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. कांति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू.. (तत घेई तत्त घेई राज), ९६५९३-९(+) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. कीर्ति, मा.गु गा. ४, पद्य, मूपू (वामादेवीनंदन विश्व) ९६४०९-१० (+) , " पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (श्रीशंखेश्वर पासजिन), ९५५२२-१(+), ९६९५५-१९(१), ९९०७२-१(+), ९९८७१-२५(*), ९८४३३-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अंतरजामी सुण अलवेसर), ९४९९२-४ (+#), ९८३६३-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रहिनें रहिनें रहिनें), ९६९५५-३६(+$), १००१२०-४(#) " , पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू., (समय समय सो वार संभार), ९९८८५-११(३) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., (श्रीशंखेश्वर पास), ९६५८८-५ (+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., गा. ४६, वि. १६१०, पद्य, मूपू., (सासना देवी मन धरीए), ९६००१-२(+) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु, ऋद्धिहर्ष, मा.गु, गा. ८, पद्य, मूपू (सामी सुणो मुज वीनती), ९८०१६-३(*), ९९८८५-१२ (२) For Private and Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ मपू., पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर पंचकल्याणकगर्भित प्रतिष्ठाकल्प, मु. रंगविजय, मा.गु., ढा. १९, ग्रं. ३७५, वि. १८४९, पद्य, (स्वस्ति श्रीदायक ), ९५५७५ (98) . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन-शेरीसा, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३०, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (स्वामि सुहंकर श्रीसेरिस ए), ९७१८४-१(#) पार्श्वजिन स्तवन- समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., डा. २ गा. २७, पद्य, मूपू (श्रीजिनशासनसेहरो जग), ९५६३०-१(*), ९५६३३-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-समी, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वलिजाउं समी ना पास की वलि), ९९८८५-१०(१) पार्श्वजिन स्तवन-सहस्रफणा, मु. कीर्तिसागर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सहेस फणा मोरा साहेबा), १००१२६-१०(+), ९६६१४-१४(#) पार्श्वजिन स्तवन- सिरोहीमंडन, मु. तेजरुचि शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (इण संसारि जिनजी म्हारा ), ९८०१६-६(१) पार्श्वजिन स्तवन- सूरतमंडण, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (सूरतमंडण मूरत प्यारि ९६५४६- २(क) पार्श्वजिन स्तवन-सूरतमंडन, मु. विनयविजय, पुहिं., गा. २५, पद्य, मूपू., (जिणंदराय सरण तुम्हारे आयो), ९४९५४-१४(+#), " ९६७६३-१२(१) पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., डा. ५, गा. १८, पद्य, पू., (प्रभु प्रणमुं रे पास), ९६९५५-६०% ९५२३५-४११ पार्श्वजिन स्तवन-स्थभणतीर्थ, आ. यशोदेवसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू., (समुदा रे पैले पार पार), १००७९०-९०) पार्श्वजिन स्तुति, आ जिनभक्तिसूरि, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू. (अश्वसेन नरेसर वामा), ९५३१३-४९(+) पार्श्वजिन स्तुति, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (सकल सुरासुर सेवु पाया), ९७६६५-९(*) पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीपास जिणेसर पुजा), ९७६६५-२४ (+), ९५४४२-१३(#) पार्श्वजिन स्तुति, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., सवै. ३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमर हरन), ९५५५०-९(+) पार्श्वजिन स्तुति, आ. भावरत्नसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल कुसल मंगल वन संचत), ९६४०९-११(+) पार्श्वजिन स्तुति, पंडित लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (सिरिपास जिनवर सकल), ९६४०९-१२(+) पार्श्वजिन स्तुति, मु. लक्ष्मीरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपु., (--), ९६४०९-७ (+5) पार्श्वजिन स्तुति-जीरावला, मु. वीरमुनि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( पास जीरावलो पुजी), ९७६६५-२१(+) पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जय पास देवा करुं ), १००८७८-१२(#) पार्श्वजिन स्तुति-भीलडी पुरमंडन, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (भीलडीपुर मंडण सोहिए), ९७६६५-२२(*) पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीपास जिणेसर भुवन), ९७६६५-३(+) पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. महिमारुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शंखेसर पास जिणंद), ९७६६५-२५(+) पार्श्वजिन स्थविर सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासनमां कहिउं), ९६५९३-२(+) पालामान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीप लाख जोजन), ९५५१५-२(+) पिंडबत्रीसी सज्झाय, मु. सहजविमल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर प्रणमुं), १००००९-१२(+) पुण्यपालनृप चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ९६६०९ ($) पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धिदायक सदा), ९६१६५, ९७१७४-१, ९८९४६, ९९०२१, १००५९० (85) पुण्यफल सज्झाय, मा.गु., गा. १०८, पद्य, थे. (आदि जिणेसर आदि देहे रे), ९६५८३(+) " ९८२२१) पुगलगीता, मु. चिदानंद, पुहिं. गा. १०८, पद्य, म्पू, (संतो देखीयें बे), ९४७०७-३(+) "" पुलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, मूपु. ( द्रव्य क्षेत्र काल), ९६९५२(५४) , पुण्यसार रास, मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सुख दाता श्रीसंतिजिन), ९४९२२(+४) पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., डा. ९, गा. २०५, वि. १६६६, पद्य, मूपू. ( नाभिरावनंदन नमुं शांति), ९८०५९(१), ५७५ पुप्फचूलासाध्वी सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ९, वि. १८४७, पद्य, स्था. (संतनाथ जिन सोलमो), ९८५९८ " , पुरंदर चरित्र, मु. कुसालचंद, रा., ढा. २०, वि. १८९८, पद्य, मूपू., (अनंत चौवीसी नित नमु), ९७१५८ For Private and Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५७६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेश्वर पास), ९९३९७-८(+#) प्रतिक्रमणविधि संबंधी दूहा, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. (श्रीजिनचंदसुरिंद नितु राज), ९४७३३-३ (*) प्रतिमासंबंधि बोल, मा.गु., गद्य, मुपू. (श्रावकनां बारव्रत छै), ९६१४५-१ प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २ गा. १७. वि. १७३, पद्य, मूपू (धुरि समरुं सामिणी), ९८०१६-३० (४) प्रत्याख्यान सज्झाय-दुविहार, मु. मानविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमी सरसति), ९७५८९-२५(+#) स्था. (सतगुरु चरणकमल नमी), ९८१७१ * , " प्रदेशीराजा चौपाई, मु. गिरधर ऋषि, मा.गु., डा. ७. वि. १९५८, पद्य, प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल ऋषि, रा. डा. ३८ गा. ७००, पद्य, वे (अरिहंत सिद्धने आयरिआ). ९६२१० (+३), ९७८०९ (+) प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., डा. २७, वि. १८०७, पद्य, स्था., (रायप्रसेणीसूत्रमे), १००१७८ (+) प्रदेशीराजा राम, मु, जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, स्था., (वंदण करीने इम कहई हु), ९८७६९) " प्रदेशीराजा रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. २६१, ग्रं. ३००, पद्य, मूपू., (त्रिभोवन नयणानंदकर), १००३७२(#) प्रद्युम्नकुमार चौपाई, मु. रंगसार पं, मा.गु., डा. ७, गा. ३४१, पद्य, भूपू (शेडुंजगिरसिणगार आदिदेव) ९४६७४(१०) प्रबोधचिंतामणि रास, मु. सुमतिरंग, मा.गु., ढा. ४७, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (परमज्योति प्रकासकर परम ), ९५३४५ प्रभाती सज्झाय, मु. अमृत, अज्ञा., गा. ३, पद्य, मूपू., (सोयो तूं बहोत काल अबधो), ९६६२७-२१(#) प्रभावती हरण, मु. नयशेखर, मा.गु., गा. ७३, पद्य, म्पू., (सरसवयण रस सरसती मति आपु), ९८२१५ (+) प्रश्नोत्तररत्नमाला, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ६२, वि. १९०६, पद्य, मूपु., (परम ज्योति परमात्मा), ९४७०७-२ (+#) प्रश्नोत्तर संग्रह- आगमिक, मा.गु., प्रश्न. ३२, गद्य, मूपू., (नवकार मांहि पहिला पद), ९७५१७-१०(+#) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. लक्ष्मीरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (राज छोडी रलीयामणो), ९७५४२-४(#) प्रहेलिका दोहा, पुहिं. पद. १, पद्य, जे. वै., इतर ? ( वायस वीकमराय बुद्धि विणि), ९५५८२-४(*) " יי प्रहेलिका संग्रह, पुहिं., मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुनीवर बाणी बागरी), ९७४७३-६(+) प्रहेलिका हरीयाली, मु. गुणरत्नविजय कवि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मापति वाहण तास भख्य तस), ९७३१४-४(+) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं., मा.गु., दोहा. ७१, पद्य, श्वे., इतर, (पडिवन्नइ माछा भला), ९९३९३-४(+$) प्रास्ताविक पद संग्रह, पुहि. मा.गु., पद. १, पद्य, धे. इतर (सखी आज वदन कमलाय कहो ), ९४९२४-५ " प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सद्गुरु पाय), ९८२१६ (+०३), ९५६५८, १००३६९-२(३) १५०९७(३) फूलडा सज्झाय, पुहिं., रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (बाई रे कोतिग दीठ), प्रतहीन. (२) फूलडा सज्झाय-टीका, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीर निर्वाणात्), १००८८४ - १ बंधउदयउदीरणासत्ता विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (मिध्यात्वगुणठाणइ ११७), ९५३७२(७) बलचंद रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., ढा. १३, वि. १८६०, पद्य, श्वे. (श्रीशांतिनाथ जिनना), ९८६४१(#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ३०, पद्य, म्पू, (द्वारिका हंती निकल), १००९९८-३(*) वासठीयो बृहत् मा.गु., गद्य, मूपु. ( जीव १ गइ २ इंदीय ३क), ९५४७२(+) " बिल्हणपंचाशिका चौपाई, मु. सारंग, मा.गु. गा. ४१२, वि. १६३९, पद्य, मूपू (प्रणमू सामिण सारदा सकल), ९७३८५- १(क) बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बीज कहे भव्य जीवने), ९४७८२-१३ बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., गा. १९, वि. १८१९, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवि पसाउले), ९४७८२-३ बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (जंबूद्वीपे अहनीस), ९५१८२-२(१०) तिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), ९६२७१ -२ ( +#), ९६४०९-३ (+$), ९९३९७-२(+#), ९९८७१-३ (+), १००६६०-११(+), ९७१०६-५, ९७१८३-९, ९५४४२-५(#), ९५६४८-२ (#), ९६१०९-६(#), ९७३५६-२(५), ९८६८६.५ (१), १९४८५-५(४), १००८७८-१(१) बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., ढा. १२, वि. १८४५, पद्य, श्वे. (जंबुद्वीपनै भरतमै ), ९६६१५(+), ९६६४९(#$) बुढापा रास, मु. चंद, रा. डा. २२, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (दया ज माता वीनवु), ९८५००(M) "" बुढ़ापा रास, श्राव, मोतीचंद, रा. डा. २२, वि. १८३६, पद्य, म्पू. (दया ज माता बीनबु), ९६०४० (+) " For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५७७ बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूप., (प्रणमुं देवी अंबाई), ९७६७२-२(+$), ९९८८८-५(+#) बृहद् आलोचना, श्राव. रणजीतसिंह लालाजी, मा.गु., गा. ८९, प+ग., दि., (सिद्ध श्री परमात्मा), ९७७९३(६) बोल संग्रह-आचारांगसूत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ९७४०३(+) बोल संग्रह-जीवादि भेद, मा.गु., गद्य, स्था., (एगेंदीएसु पंचसु बार), ९४९३१-३ ब्रह्मचर्यद्विपंचाशिका, मु. समरसिंघ, मा.गु., गा. ५३, पद्य, मपू., (गोयम गणहर पाय प्रणमी), ९५११०(+) ब्राह्मण द्वारा हेमाचार्य परीक्षा गाथा, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (नगर भमंतो दिठडो केसरि), ९५६६७-४(#) भरतचक्रवर्ति विवरण, मा.गु., गद्य, मपू., (ज्ञानावरणी दंसणावरणी), १०००८४-२(+#) भरतबाहुबलि सज्झाय, क. राजकवि, मा.गु., गा. १०३, पद्य, श्वे., (संपत करण सदा सरस्वती), ९७४७८-३(+) भरतबाहुबली लावणी, मु. हीरालाल, रा., गा.५, पद्य, स्था., (यह दिया दान प्रजा को), ९६६४८-४ भरतबाहबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ३८, वि. १७७१, पद्य, मूप., (स्वस्ति श्रीवरवा), ९६५८८-२(+#), १०००९०-१६ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (बाहुबल चारित लीयो), ९५५२२-५३(+) भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, वि. १७वी, पद्य, मप., (राजतणा अति लोभीया), ९५५२२-३०(+) भरतेश्वरबाहबली लावणी, मु. हीरालाल, रा., गा. ६, पद्य, स्था., (या करी तपस्या भाग उद), ९६६४८-८ भवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सातमी नारकीनां नाम), ९५०४१(+) भवानीदेवी पद, हनवंत, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (सुन सेवक की अरज सगत), ९५२८३-७(+) भवानीदेवी स्तुति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मात साखंभराज राणी लाज), ९५२८३-९(+) भवानीमाता पद, मा.ग., गा. १, पद्य, वै., (जब लग भवानी शिवसेनानी),१००४६२-६ भवानी वाक्य, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., वै., इतर, (बारां मास वीडोतरौ प्रभू), ९५७३०-२(+#) भावछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ३९, वि. १८६५, पद्य, मूप., (क्रिया अशुद्धता कछु), ९५४१९(+), ९५६७१(+#) (२) भावछत्रीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (क्रियानो असुद्धपणो), ९५४१९(+), ९५६७१(+#$) भावना सज्झाय, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (भावनामालती चूसीइं भमरिंरि), १००१९८-५(+) भीमसेन चरित, आ. सुंदरसूरि, मा.गु., ढा. ६०, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (श्रीसुत देव नमु सदा धरी), ९७०७१(+#) भुवनभानुकेवली चरित्र, मा.गु., गद्य, म्पू., (--), ९५३४६(+#$) भैरवीमाता छंद, मु. सुमतिरंग, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सांभलि माता संकरी), ९५२८३-१२(+) भोजराजभूप माघपंडित वार्ता, रा., गद्य, वै., इतर, (एक दिनरा समाजोगरे विषै), ९८८७६-७(-) मंगलकलश चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २१, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (पास जिनेसर पय कमल), ९७३२६(+) मंगलकलश चौपाई, उपा. रत्नविमल, मा.गु., ढा. २६, वि. १८३२, पद्य, म्पू., (प्रणमुं चौवीस जिनवरु), ९५७३५(+) मंगलकलश चौपाई, पुहिं., पद्य, मपू., (--), ९६५३१(+$) मंगलकलश रास, मु. ज्ञानरुचि, मा.गु., गा. ३५०, वि. १५२५, पद्य, मूप., (आदि जिणवर जिणवर सुख), ९५५०३(+) मंगलकलश रास, मु. दीप्तिविजय, मा.गु., वि. १७४९, पद्य, मपू., (प्रणमुं सरसति स्वामी), ९४९९४(#$) मंगल दीवो, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दीवो रे दीवो मंगलिक), ९५४७६-५(+#) मछोदर चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ३३, गा. ९४८, वि. १७१८, पद्य, मूपू., (पोहो ऊठी प्रणमु), ९८२४२(+#), ९८३८४(२) मतमतांतर पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (औधू जिन मत जग उपगारी), ९५६४१-५३(+#) मदनकुंवर लावणी, मु. हीरालाल, रा., गा. ६, वि. १९६३, पद्य, स्था., (ये चरम शरीरी जीव जगत), ९६६४८-३ मदनरेखासती कथा-शीलविषये, मा.ग., गद्य, मप., (नीय शील रक्खणत्थं तणं), ९५६१३-२(+) मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., गा. १७६, पद्य, मपू., (सात कुव्यसनरा तीजा), ९५६३७-१(+) मदनरेखासती रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., गा. ३६०, वि. १५३७, पद्य, मूपू., (श्रीजिणचउवीसइ नमी), ९५५९६(+) मदनरेखासती रास, मु. हीर ऋषि, मा.गु., गा. १५७, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (जोवो मांस दारु थकी), ९५००६(+$) मदनरेखासती रास, मा.गु., गा. १८८, पद्य, मप., (जूआ मांस दारु तणी), १००२७२(+$) For Private and Personal Use Only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ मदनरेखासती सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (लघु बंधव जुगबाहूनो), ९७२६४-१९(+#) मदनरेखासती सज्झाय, मा.गु., गा. १६३, पद्य, मपू., (अरिहंत सिद्धने आयरिय), ९६६१०(#s) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३७, पद्य, स्था., (नगरी वनीतां भली वीर), ९५८१०-८(+#) मलयासुंदरी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., खं. ४ ढाल १४८, गा. ३००६, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिसर सोलमो), ९४८३५(+$) मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (मोहे केसे तारोगे दीन), ९६६१४-५(#) महादंडक ३० द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक १ लेस्या २ ठिती), ९६२१३(+$), ९७५१४(+-) महादेव छंद, पंडित. नारायण, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (कटिकटाशंकटकटा घटिघटि), ९५४९२-८ महाविदेहक्षेत्रे पात्रादि प्रमाण विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीमहाविदेहे ऋषि), ९६०६३-६(+) महावीर-गौतम संवाद, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ११८, पद्य, स्पू., (वरदै तूं वरदायनी), ९७४७८-२(+) महावीरजिन उपसर्ग, मा.गु., गद्य, मपू., (क्षत्रियकुंड ग्राम), ९७२००(+) महावीरजिन गहुंली, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सहीयर मोरा हो वीर), ९६६०५-४(#) महावीरजिन गहंली, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूप., (जग उपकारी रे वीर), ९७२९८-५(+#S) महावीरजिन गहंली, पं. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सहि चालो श्रीमहाविर), ९६६०४-१(+) महावीरजिन गहंली, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (प्रभु मारो दीइ छे), ९७२९८-९(2) महावीरजिन गहुंली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु मारो भोग करम), ९७४२०-७ महावीरजिन गहंली, मा.ग., गा. ७, पद्य, मप., (राजग्रही नयरी मनोहार), ९७३८६-६(+) महावीरजिन चौढालिया, म. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ६३, वि. १८३९, पद्य, स्था., (सिद्धार्थकुलमई जी), ९५८१०-२५(+#) महावीरजिन देशना पद, मु. अमर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (चलौरी सखी वंदन जईयै गिरवी), ९८१४५-११(+) महावीरजिन पद, मु. कीर्ति, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर सेवीइं मनवंछित), ९७४९२-२९(+#) महावीरजिन पद, मु. खेम, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिद्धारथसुत सांभलौ), ९६६२७-८(4) महावीरजिन पद, वा. जयसार, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (जय जय जगधणी ध्रम पंथ), ९८१४५-९(+) महावीरजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मारु सफल थओ छे), ९६६१४-९(#) महावीरजिन पद, मु. नंदलाल, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (वाजत रंग बधाइ नगर में), ९६६२७-२५(2) महावीरजिन पद, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (जयजयकार भयो जिनशासन वीर), ९८२०२-७ महावीरजिन पद, मु. भीमविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, पू., (श्रीसिद्धारथ त्रिसलनानंद), ९६१०९-२५(4) महावीरजिन पद, मु. रत्न, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (विर तेरो वचन अगोचर), ९८६८१-२७(+#) महावीरजिन पद, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (मनमोहन मेरे समझे), ९६६०५-३(2) महावीरजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (स्वामि माहावीरजी), ९६६१४-१(2) महावीरजिन भास, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूप., (सरसती मात मया करी), ९७२९८-१०(+#) महावीरजिन भास, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (वीरजी आया रे गुणशैल), ९७२९८-१३(+#), ९५०३८-२ महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूप., (वीर सुणो मुज विनती), ९८३८५-२(+#), ९९०७२-६(+#S), ९९०३२-४(#$) महावीरजिन स्तवन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीर प्रभू मै भावै वंदीया), ९८१४५-५८(+) महावीरजिन स्तवन, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (राग विना तुं रीजवे), ९८०१६-९(#) महावीरजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (म्हारे भले उगो रे), ९४९४०-६(+) महावीरजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (वीर जिणेसर वंदीये), ९८४३५-८(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., गा. ९, पद्य, मप., (वीर विना वाणी कोण), ९४७८२-१८ महावीरजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, म्पू., (वीर जिणेसर वंदीए हरख), ९६७५७-२(६) महावीरजिन स्तवन, उपा. पुण्यप्रधान गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमी पाय मुनिरायज), ९९५२८-४४ महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु धरी पीठ वैताल), ९६७१५-१६ (#$) For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (प्रभु बल देखी सुरराज), ९६७१५-१५(#) महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि *, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीरजी दृष्टि मानु प्रेम), ९८६८१-१७(+#) महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (साहिब ध्याया मन मोहन), ९६७१५-१४(#) महावीरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, पुहि., गा.६, पद्य, श्वे., (सवि दख टालेगे महावी), ९५८१०-२(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ते दिननो विसवास छे), ९७४९२-१७(+#), ९८२०२-११ महावीरजिन स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (--), ९९३९३-५(+$) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (खत्रीकुंडनगररो अधिपती), ९६०१०-२(+$) महावीरजिन स्तवन, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (सबे दुख टालेंगे महावीर सब), ९५४८९-१७(+) महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., गा. २८, पद्य, मपू., (एक मन वंधु श्रीवीर), ९८०२५-३($) महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९१, ग्रं. १६२, पद्य, मूपू., (सुखकर स्वामी वीरजिन), ९७५३८(+$), ९८४२०(+s) (२) महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (सुखनउ करणहार ठाकुर), ९७५३८(+$), ९८४२०(+$) महावीरजिन स्तवन-२४ दंडकगर्भित, क. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ८९, पद्य, मूप., (प्रणमी सरसति भगवती), ९५१००(+$), ९६०३३-२(+#) महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ८४, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (विमल कमल दल लोयणा), ९७२२७-१(#) महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ४, गा. ३०, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (ए धन सासन वीर जिनवर), ९७६५५-४ महावीरजिन स्तवन-आत्मबोधगर्भित, मु. उदयरत्न, रा., गा. ७, पद्य, मपू., (नीजरां रहस्यांजी), ९९९६७-२ महावीरजिन स्तवन-कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, श्राव. शाह वघो, मा.गु., गा. ४०, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवीने चरण), ९७५८९-२१(+#), ९८३०२-५(+) महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., ढा. ५, गा. ६६, वि. १६११, पद्य, मूपू., (सकल जिणंद पाय नमी), ९७६५५-२, ९८०१६-२६(#) महावीरजिन स्तवन-तपगर्भित, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू., (गौतमस्वामीजी बुद्धि), ९९०३२-३(#$) महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मारग देशक मोक्षनो रे), ९४९९२-१०(+#) महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२५, पद्य, मूप., (श्रमणसंघतिलकोपम), ९४९४९(+$), ९५५६१(+) महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, मपू., (शासननायक शिवकरण वंद), ९४९७६, ९६७४७-३(2) महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १२, गा. ७९, वि. १७वी, पद्य, मपू., (सरसती भगवती दीउ मति), ९५०९३(+#) महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मप., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ९५५२२-५९(+), ९५८३२-८(+) महावीरजिन स्तवन-पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूप., (चोमासी पारणो आवे), ९७६१३-१ महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ सारदा), ___९८०१६-२८(#$), ९९८८५-१(#s) महावीरजिन स्तवन-संयमश्रेणीगर्भित, पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., ढा. ४, गा. ५१, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा), १००२४३(#) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. १४८, ग्रं. २२८, वि. १७३३, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुना पय), ९४९२१(+), ९५४४७(+), ९६१४३(+), ९६३७८(+$), ९६५९६(+), ९६९५५१८+), ९७२२७-३(+#$), ९५१३७(5) For Private and Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५८० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ (२) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू. (ए स्तवनमा प्राइ पद), ९६१४३(+), ९६३७८ (७), ९५१३७ (३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तुति, मु. विजयदेव, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (जय गौतम हितकर वीर), ९६१०९-२६(#) महावीरजिन स्तुति, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (तरण तारण दुख निवारण), ९९५२८-३२ महावीरजिन स्तुति-गंधारमंडन, मु, जसविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (गंधारें श्रीवीरजिणंद), ९७६६५-२०+) मांकण सज्झाय, मु. भवसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मांकणनो चटको दोहि), ९६२२४-३ (+) मांगीतुंगीतीर्थ सज्झाय, मु. अभयचंद्र, मा.गु., गा. ४५, पद्य, दि., (हां जी श्रीपति नित्य जिण), ९९१२३-८(+#) , माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ५५२, वि. १६१६, पद्य, भूपू (देवि सरसति देवि) ९५४८८(*), ९५७९० (+as), יי ९५८५० (+), ९७२२४(+), ९७३०३ (६) ९९६८० (+), ९७१४३(३) ९८३२०(३) मानतुंगमानवती चौपाई, आ. सुंदरसूरि, मा.गु., वि. १७५०, पद्य, मूपू., (--), मानतुंगमानवती रास, अनुपचंद-शिष्य, मा.गु., डा. ८. वि. १८७०, पद्य, मूपू मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु. डा. १४. वि. १७२७, पद्य, मूपू. (प्रणम् माता सरसती), ९५४५३-८ (+), ९८०८० (+), ९८२६७/**७), ९५७११, ९५६६७-१ (४०), १७१३७(१) ९७२१७ (+$), ९७२२०(+#$) (सरी संत जणेसरु नमतां), ९६६३९ (३) मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु, मोहनविजय, मा.गु., डा. ४७ गा. २०१५, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद पदांबुजे), ९५२३४-१ (+), ९५२४२(+), ९५३३६ (०) ९५४४१(+), ९५४४९(२०), ९५७०९(+), ९५८४८(+०), , ९५८५५(+$), ९६७५५(+#), ९७२४४ (+#), ९७४६१ (+#S), ९८१०५ (+), ९५२०७, ९५८५४ (# ), ९४८६३ (१) मास दशा विचार, मा.गु., गद्य, इतर ( रविकां२० शां सुख नही पावे) १०००७७-२(५) मुनिपति चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रणिपत्य पार्श्वनाथ), ९४८११(+) मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मा.गु., डा. २७, गा. ६०६, वि. १५५०, पद्य, मूपु., (गोयम गणहर गोयम गणहर), १७१८६ (+६) मुनिपति रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ९३, गा. ४००५, वि. १७६१, पद्य, मूपू., (सकल सुख मंगल करण), ९४९११(+$) मुनिमालिका स्तवन ग चारित्रसिंह, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १६३६, पद्य, म्पू. (ऋषभ प्रमुख जिन पय), ९५८३२-९ (+), ९७३९७.२(+) मुनिशिक्षा स्वाध्याय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (शांति सुधारस कुंडमां ), ९९८८८-६(+#), ९४९२४-१ मुनिसुव्रतजिन पद-सांतलपुरमंडण, मा.गु., पद्य, मूपू.. (सांतलपुरमंडण दूरीत खंडण), ९६१०९-३०(३) मुहपत्ति पडिलेहण सज्झाय, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (सूत्र अरथ उपरि मनधरो), ९९८८८-७ (+) मुहपत्तिबोल सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर करि जुहार), ९८०१६-२२(#) मुहपत्ति सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु. गा. १३, पद्य, मूपू (मांडवमंडण जगदानंद), ९७६३१-५ (+) मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (ऐसे क्युं प्रभु पाईइ), ९५५००-४, ९९५२८-६८ मृगांकलेखा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., डा. ६२, वि. १८३८, पद्य, ., (आवेसर जिन आददे चोवीस), १७१०५ (+#६) मृगापुत्र चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२८, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (परतक्षि प्रणमुं वीर), ९८३८६-२(+) मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुगरीपुर नगर सोहामणी), ९५५२२-१६ (+), १००१२२-५(+) मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु, गा, २४, पद्य, भूपू (सुग्रीवनयर सुहामणो) ९४८६९-६ (+), १००१२२.१(०) ९९४८६-१(१) " मृगापुत्र सज्झाय, मु. हंसविमल, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (सूगरीव नयरी सोहामणी), ९९५८४-१६ मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., गा. २७, पद्य, भूपू (सुग्रीवनगर सुहामणों), १७१८१ (६) मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु खं. ३ ढाल ३७ गा. ७४५ नं. ११००, वि. १६६८, पद्य, मूपू, (समरु सरसति सामिणी), ९५६८१(+$), ९५८४२ (+$), ९७२०१ (+$) मृगावतीसती रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु. गा. ४२१, पद्य, मूपु (सिद्धारथ नरपति कुलिं), ९६३७२ (+३) मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., ढा. ४, गा. ४७, पद्य, मूपू., (देस मगधमाहे जाणीयइ), ९५५२२-४२(+), ९५८३२-३(+), ९७३९७-३(+) मेघकुमार चौडालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, ओ., (मोटी बणाई एक सेवकाजी), ९७५४५-३(७) श्वे. " For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५८१ मेघकमार पंचढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा.५, पद्य, श्वे., (गुण गाउ गीरवा तणा गुणधर), ९७५४५-१(-) मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ६२, पद्य, मूपू., (समरी शारद स्वामिनी), १००८५५(६) मेघकुमार सज्झाय, मु. माणिकविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, स्था., (धारणी मनावे रे मेघकुमारने), ९७६३१-४(+#) मेघकुमार सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १४, पद्य, श्वे., (धारणी समजावे हो मेगकुवार), ९७५४५-२(-) मेघकुमार सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (चारित्र लइ चित्त), ९५५२२-५६(+) मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं.,मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समदम गुणना आगरु जी), ९४७८२-१५ मेतारजमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (धन धन मेतारज मुनि), ९७२६४-६(+#$) मेतारजमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुमत गुपतना आगरुजी पंचमहा), ९७५२९-१(+$) मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ५, गा. १०३, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सुंदर रुप सोहामणो), ९४९१५(+), ९५४५३-६(+), ९८०१६-३७(#$) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.ग., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मप., (द्वारिकानयरी समोसर्या रे), ९६५६६-३(#), ९७२६४-११(+#), ९७९९८-२(+), १००८२२-५(+), ९५६७९(2), १०००९३-१(#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मपू., (समवसरण बेठा भगवंत), ९४९९२-३(+#), ९५५२२-२(+), ९४७८२-१ मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., ढा. १२, गा. ६२, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (धुरि प्रणमुं जिन), ९५८३५ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (एकादशी अति रुअडी), ९६१३०-३(+$), ९९८७१-९(+), १००६६०-१४(+), ९७१०६-२, ९७१८३-८, ९५४४२-१४(#), ९६१०९-९(2), ९९४८५-७(#), १००८७८-३(#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नयरी द्वारामती कृष्ण), ९५१८२-५(+#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गौतम बोले ग्रंथ संभाली), ९६४०९-५(+), ९७६६५-११(+), ९९३९७-९(+#), ९६१०९-१०(#), ९९४८५-८(#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमिजिन उपदेशी मौनएक), ९७६६५-१७(+) युगप्रधान विवरण कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (त्रयोविंशति रुदयैः कृत्वा), ९५००१-१(+), ९६९३९(#) युगबाहुजिन स्तवन, मु. जिनदेव, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (इण जंबुदीवइ जाणीय), ९५४८९-१२(+$) योगपावडी, गोरखनाथ, मा.गु., गा. ६८, पद्य, वै., (क्रोध लोभ दूरइं परि), ९७३१४-३(+) योगी माहात्म्य पद, मु. राज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (याली धनओ पीउ धनउ), ९९५२८-५ रंगनिर्माण विधि, मा.ग., गद्य, इतर, (गुजराती चोखी गली), ९५३४७-२(+) रक्षाबंधनपर्व कथा, आ. विद्याभूषणसूरि, पुहिं., गा. ७६, पद्य, दि., (श्रीजिनवर सारद सुखकार), ९६९४७ रतनकुमर सज्झाय, मा.गु., ढा. १०, गा. ५३, पद्य, मूपू., (रतनगुरु आगलीजी आगली), ९७१२१-२ रत्नगुरु सज्झाय, मु. देवजी, मा.गु., ढा. १०, गा. ४५, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण मीठडा रे), १००२४२-२(+#) रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., ढा. २४, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसोभा), ९७०२३(+), ९८३३७(+), ९७१५७(#$) रत्नपालरत्नावती चौपाई, पं. माणिक्यराज, मा.गु., ढा. ३५, गा. ६६५, ग्रं. ९०५, वि. १८१९, पद्य, मपू., (स्वस्ति श्रीप्रभु), ९४९८८(१) रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ६६, गा. १३७२, वि. १७६०, पद्य, मूप., (सकल श्रेणि में दुर), ९५३२२-१(+#), ९५३३४(+#s), ९७०१९(+#), ९८१२४(+#$) रत्नपालरत्नावती चौपाई, उपा. रत्नविमल, मा.गु., ढा. ४५, वि. १८४०, पद्य, मपू., (चौवीसे जिनवर नमु), ९५५१४(+) रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., खं. ३ ढाल ३२, गा. ७७४, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (रीषभादिक जिनवर नमुं), ९५६०७(+#s) रत्नसूरि सज्झाय, मु. दौलतविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (पवयण देवी मनधरी रे लाल), ९७२६४-२(+#) For Private and Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ रत्नहास चौपाई-दानशीलाधिकारे, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., ढा. १२, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि पय नमी पामी), ९५४५३-१(+) रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., गा. ५, पद्य, मप., (छेडो नाजी नाजी छेडो), ९५५४२-१(+), १००२५८-२($) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, पू., (काउसग व्रत रहनेम), ९७५२९-२(+) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. सुखविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (राजुल घरथी नीसरी रे), ९७५८९-१७(+#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सदगुरु पाय गायसु), ९७५८९-१३(+#) रमल शुकनावली, पुहि., गद्य, मूपू., इतर, (अरे यार वहुत दिन), १००७४९ रविवारव्रत चौपाई, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ९६०००(+$) । रविव्रत कथा, मा.गु., गा. ११४, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणेसर पाय नमी लागु), ९८३६३-१(#) राचाबत्तीसी, श्राव. राचो, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (जीवडा जाग रे सोवे), ९५५२२-३२(+), ९७३१४-१(+) राजसिंहरत्नवती कथा नवकारप्रभावे, मु. गौडीदास, मा.गु., ढा. २४, गा. ६०५, ग्रं. ८८५, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (सारद शुभमतिदायिनी), ९५१९१(+) राजा और धोबी कथा-दहा, पुहि., गा. २, पद्य, जै., इतर?, (आठ च्यार के काम नाए नीकल), ९५६६७-३(#) राजारतन चौपाई, मा.गु., पद्य, वै., इतर, (गुणपति गुण गहगीरं), ९५८६३-२(#) राजासैन्य परिमाण कवित्त, मा.गु., कडी. ५, पद्य, वै., इतर, (त्रीसपदम तुष्यार पदम पनरह), ९५८०२-१(+) राजिमती कवित्त, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (राजलोक रिष इण वीस पडदा), ९५६६७-२(#) राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, म्पू., (प्रथम हि समरूं), ९९१२३-१(+#) राजिमती सज्झाय, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (निंदडलीनी होजी चंद्रावदनी), ९६२२४-४(+) राजिमतीसती विलाप लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (दे गया दगा दिलदार), ९९०६८-२(2) रात्रिभोजन चौढालिया, मु. पानाचंद, मा.गु., ढा. ४, गा. ८८, पद्य, मपू., (पंचपरमेष्ठि पद नमुं जेहथी), ९६५३५(+#$) रात्रिभोजन चौपाई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., ढा. २६, वि. १७३८, पद्य, मूप., (वर्धमान जिनवर तणा), ९५४५३-२(+) रात्रिभोजन चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., ढा. २४, गा. ४०५, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (सुबुधि लबधि नव निध), ९५०८३(+#s), ९५७५३(+) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (ग्यान भणो गुण खाणी), ९४९९२-१२(+#) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (अवनितल नयरी वसे जी), ९६२२४-६(+$) राधाकृष्ण संवाद, ब्र., दोहा. २२, पद्य, वै., (आजु महि आवीचलिमे वचकु), १००४६२-४ राधाकृष्ण सवैया, गंग, पुहिं., सवै. ६, पद्य, वै., (श्रीनंद गोविंद के कारणे), १००४६२-१६ राधाकृष्ण होरी गीत, पुहि., गा. ४, पद्य, जै., इतर?, (कुंण खेले रंग होरी), ९७४९२-२८(+#) रामकृष्ण चौपाई, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., खं. ६ ढाल ६८, गा. १२५१, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (जगत आदिकर जगतगुरु आद), ९५६१४(+) रामचंद्रजी की मुंदरी, मा.गु., गा. ३१, पद्य, श्वे., (सरसत सामण विनउं), ९५५०६-२(+) रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., अधि. ४ ढाल ६२, गा. ३१९१, ग्रं. ४३७५, वि. १६८३, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रतस्वामीजी), १००१२५(+#$), ९७५४२-१(#) रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.ग., समु.७, गा.१६१७, ग्रं. ३३२५, वि. १७२०, पद्य, मप., इतर ९५१९८-२(+#S), ९५९४७-१(+), ९६०५०(+#S), ९९८२७(+#$), १००८४२(+$) (२) रामविनोद-बीजक, मा.गु., गद्य, म्पू., इतर, (१ ग्रंथारंभ साध्वलक्षण पत), ९५९४७-२(+) रायचंद गुरुगुण वर्णन लावणी, मु. रायचंद ऋषि शिष्य, मा.गु., गा. २८, वि. १८९६, पद्य, मपू., (श्रीराईचंदजी का गुणो की), १००४४५-२ रावणमंदोदरी गीत, मु. राज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मंदोदरि वार इम भाखइ), ९९५२८-१७ रावण सज्झाय, मु. जीतमल ऋषि, रा., गा. १७, वि. १८७३, पद्य, श्वे., (कहै भमीछण सुन हो), ९५८१०-१७(+#) For Private and Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५८३ राशिफल वर्णन, मा.गु., गा. ४, पद्य, इतर, (वृहमेष तन में लगी), ९७२३७-१३(+) राहुल प्रतिबोध लोरी, क. मैथिलीशरण गुप्त, पुहिं., पद्य, वै., बौ., (सो अपने चंचलपन सो), ९६६३१-१(+) रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (विचरता गामोगाम नेमि), ९७२६४-१०(+), ९४७८२-१६ रुपसेनसुजाणदेवी रास, मा.गु., गा. २९२, पद्य, मूपू., (संखेसरपुर मंडणो), ९८२२२-१(+) रूपसेनराजा रास-दानविषये, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., ढा. १९, गा. २९७, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (कामितदायक कल्पतरू कमला), ९८१९५(+#$) रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (सोवन सिहासन रेवति), ९९४८५-२(#) रेवतीश्राविका सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सोवन संघासन रेवती), ९९०२४-४(+) रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३१, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (हां रे मारे वासुपूज), १००७८५ (#$), ९८४२३-१३($) रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सासणदेवता सामणीए मुझ), ९६८५८(+#$) रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनवर वासपूज), ९५४४२-१५(#) लक्ष्मीसूरि गहुंली, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.ग., गा. ६, पद्य, मप., (आर्यदेश नरभव लह्यो), ९७२९८-११(+#) लग्नदोषावली, मा.गु., गद्य, इतर, (जे समे जे लग्न होइ ते समे), १००९४०-३(+) लघुदंडक, मा.गु., गद्य, मपू., (सरीरोगाहण संघयण संठा), ९८०२८(+) लीलावती रास, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, श्वे., (तेवीसमो त्रिभुवनतिलो जग), ९५४५३-७(+$) लीलावतीसमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २१, गा. ३४८, वि. १७६७, पद्य, स्पू., (परम पुरुष प्रभु पास), ९८३६१(+#S), ९५४८५, ९७४९५ लूणीयागोत्र उत्पत्ति सज्झाय, मु. देवीदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जिण वंस मानवजौन धारी हुआ), ९७२८०-६(#) लूंणीयागोत्र उत्पत्ति सज्झाय, मु. देवीदास, मा.गु., गा. १८, पद्य, मपू., (सुबधि भंडार मात सरसती), ९७२८०-५(#) लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नामाइं पण रस गंध फरस), ९४९४४-९(+#) वंकचूल रास, मु. गंगदास, मा.गु., ढा. ६, गा. १२८, वि. १६७१, पद्य, मपू., (संति जिणेसर चिरंजीओ), ९७६१२-१(+$) वंकचल सज्झाय-४ नियम, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (गुरु आदेसी लही दोइ मुनिवर), १००७९०-११(२) वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १५, गा. ८९, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (अरध भरतमांहि शोभतो), ९८७०७(+$), ९५६३४ वज्रस्वामी-रूखमणी सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (पदमिणी पोईणी पातली), ९९०२४-३(+) वज्रस्वामी सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (गणधर दश पूरवधर सुंदर), ९९०२४-२(+) वज्रस्वामी सज्झाय, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सांभलजो तुमे अद्भूत), ९९५८४-१७ वर्णमाला, मा.गु., गद्य, श्वे., (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लु), ९७७१०-२(+$) वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ६१, गा. ४५६, पद्य, मूपू., (ऋषभ अजित संभव जिनो), ९५७९४(+#), ९७१७८(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूप., (स्वामि तुमे कांइ), ९४९९२-७(+#) विंशतिस्थानक पूजा विधिसहित, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पूजा. २०, प+ग., मूपू., (सुख संपत्ति दायक सदा), ९६७५६(#$) विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १७, ग्रं. ३२५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्तक धारणी), ९८३८५-१(#), ९८२१३ विक्रमराजा चौपाई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., खं. ६ ढाल ७५, गा. ३१६८, वि. १७२८, पद्य, मपू., (प्रणमु पासजिणंद पय), ९८०४७(+#$) विक्रमराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, स्पू., (देवसरसित देवसरसति पाय), ९५८००(+#$) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., ढा. ६४, वि. १७२४, पद्य, मप., (परम ज्योति प्रकास), ९७५६२(+) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ५२, गा. ११६२, ग्रं. १६२४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सुखदाता संखेश्वरो), ९५७०२(#), ९७५२५(+#$), ९८१२०(+#), ९५६७५(#$), ९६२३५(#) For Private and Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., ढा. २७, गा. ५८५, वि. १७२३, पद्य, मपू., (पुरिसादाणी प्रणमीइं), ९४७५४(+$), ९४९०६(+$) विचाररत्नसार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ९५१४१(+#$), ९६५१३(#$) विचारश्रेणी, अज्ञा., ?, (--), प्रतहीन. (२) विचारश्रेणी-व्याख्या, आ. मेरुतुंगसूरि, सं.,प्रा., गद्य, मूपू., (जं रयणिं कालगओ इति), ९६५३४-१(+) विचार संग्रह-विविधविषयक, मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिं त्रीजे), ९५८८२, ९६६८०(#S) विचार संग्रह-विविधविषयक, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (समजवा हेतु सूत्रमाहि), ९५५५९(+#$), ९८५४०(+) विजयकुमार रास, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ९५८३७(+$) विजयधर्मसूरि गुरुगुण सज्झाय, मु. विनोदसागर, मा.गु., श्लो. ७, पद्य, मपू., (जयजयो श्रीविजयधर्म), १०००९०-१५ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, पद्य, मप., (भरतक्षेत्रे रे), १००१२२-४(+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अहो लाल सुंदर रूप), ९८५०९-६(+#$) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (शुक्लपक्ष विजया व्रत), ९९८६६-३(+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८६१, पद्य, स्था., (मनुष जमारो पायने जे), ९६३७५-२(+#$) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय-शीलगर्भित, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, मूप., (प्रह उठी रे पंचपरमेष्ठी), ९५५२२-४४(+$), ९७६१३-४, ९९५८४-६ विद्याविलास चरित्र, उपा. आज्ञासुंदर, मा.गु., गा. ३६३, वि. १५१६, पद्य, मपू., (गोयम गणहर पय नमी), ९५७३३(#) विद्याविलास चौपाई, मु. राजसिंह, मा.गु., ढा. १९, गा. ६४२, वि. १६७९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर मुखवासिनी), ९४६६३(+) विनय सज्झाय, आ. विमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (विनय करो चेला गुरु), ९९५८४-१४ विमलजिन स्तवन, पं. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पूजो जिनवर प्रेमस्युरे), ९७४९२-२(+#) विमलमंत्री सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., गा. १०९, पद्य, मूप., (सरसति समरूं बे करजोड), ९७३४६-२(+s), ९८४५१-१(+#), ९६४०५-१, ९८०१६-२०($) विमलमंत्री सलोको, पंडित. शांतिविमल, मा.गु., गा. १११, पद्य, मूपू., (सरसती सामण बे करजोडी), ९५७२०-१(+) विवाहमंडपस्थापन विचार, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (विवाह समें संक्रांत हुई), ९७८६४-३(+) विविध विचार मत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १, पद्य, मप., (तपा कहि इरीया पहिली), ९४७३४-२(+#) विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहि., गा. ४२, वि. १७१५, पद्य, दि., (आत्मलीन अनंतगुण), १००४१२-२, ९८८३५(#) विसहरा शकुन विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (वार अदीत१ मंगल२ शनि३), १०००८९-१(#) विहरमान २० जिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीसे विहरमाण जिणवर), ९५५२२-३७(+) वीर वंशावली, मा.गु., प+ग., मप., (आदिदेवादि जिनान्), ९५४३७(#$) वीशस्थानक माहात्म्य दूहा, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (वीशस्थानक तप आदरे), ९५०३२-२(+) वैतालपच्चीसी कथा, मु. देवशील, मा.गु., गा. ८२१, वि. १६१९, पद्य, मपू., इतर, (सरसति सामनि पाय नमि), ९६३००(#$) वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., गा. २०९, पद्य, श्वे., (जिणधरमसुं जागता हुवो), ९६०४५(+#$), ९९५८७(+#), १००९११(+#), ९८७११(#$) वैद्यमनोत्सव, नयनसुख केसराज, मा.गु., अ.७, गा. ३१०, वि. १६४९, पद्य, वै., इतर, (शिवसुत पद प्रणमुं), ९५१९८-१(+#) वैराग्यपच्चीसी, मु. गोपालदास, पुहि., गा. २५, पद्य, श्वे., (इह प्रमादी जीव जग), ९५५२२-५७(+) वैराग्य सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धर्मसखायत धर्मबल परबल), ९६७६३-८(2) वैराग्य सज्झाय, मु. हर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (मयगल मातुरे वनमाहि), ९९०२४-७(+) व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ९, गा. १६१, वि. १६९६, पद्य, मपू., (शांतिनाथ जिन सोलमो), ९६०१५(+#s) शंभुनाथ स्तुति, पुहि., गा. १, पद्य, वै., (प्रथम वासकिवलास गवरी), ९७३९३-२(+#) शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनमांहे तिरथ), ९९८७१-१३(+) For Private and Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल), ९७२३८(+), ९७३३८(+$),१००३४१-१(+$), ९४७६०, ९७४६२, ९९८८५-२३(#$), १००१३१(#5), ९५८३८-२($) शत्रुजयतीर्थ गीत, मु. दलिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चालो चालो सिद्धाचल), ९६६२७-३४(2) शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (वागवाणि सुपसाउ करे), ९८९९०-१ शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, मा.गु., गा. २५, पद्य, मपू., (समरवि सरसति हंसला गामिणि), ९८१३५-३३(+) शत्रंजयतीर्थ पद, मु. धर्मसी, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (विमलगिर क्युं न भए), ९५६४१-६०(+#), ९८२०२-९ शत्रुजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मप., (जगजीवन जालम जादवा), ९७२६२-१(+) शत्रुजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. १०, गा. १५२, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल वाल्हा वारु रे), ९५६२९(+), ९७७७२(+$), १००११९(+#$) शत्रुजयतीर्थ रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., खं. ९, गा. ६४५२, ग्रं. ८९९४, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (विश्वनाथ चरणे नमुं), ९४९१८(5), ९५१०३(+#s) शत्रुजयतीर्थ रास, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, मूपू., (सकल पदारथना धणी), ९६७८८(+$) शत्रंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मप., (श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी), ९४६५४(+#S), ९४९०५(+#), ९५३६१(+#), ९५८३२-७(+), ९६७९८-१(+), १००५९५(+), १००१७७, ९५२३५-१(#$), ९७९६३(4), ९८०३०-२(4), १००७३४(#), ९६५३०-१(६), ९७३५१-१(-2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४६, पद्य, मूपू., (तीरथ तीरथ बहु परिक्रोवता), १००९१२-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ६, वि. १८७५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल गिरवर भेटीयै जसु), ९८१४५-५०(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचलना गुण गावो), ९६६०५-१५(#$) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, पू., (आंखडीये रे में आज), ९९५८६-३(+-) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सहीयां मोरी चालो), ९८०१६-३४(#$) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्री रे सिद्धाचल), ९४९४०-१५(+), ९५३६७-७(+#), ९५००४-१(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १८८३, पद्य, मूपू., (सिद्धाचलगिरि भेट्या), ९६६२७-२(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (करजोडी कहे कामिनी), ९८२०२-१२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सेजतीरथ सासतो), ९९२२८-१(+#) श–जयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (अंग उमाहो अति घणो), ९६२९६-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (आज आपे चालो सहीयां), १००११४-१(+) शत्रंजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनचंदसरि, मा.ग., गा. ३, पद्य, मप., (भाव धर धन्य दिन आज), ९६६२७-१३(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (माहरुं मन मोह्यं रे), ९४९४०-१३(+), ९५३६७-१९(+#), ९९२२८-७(+#), ९४७८२-८ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शेजानो वासी), ९७४९२-१५(+#), ९९८८५-१३(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (पालीताणुं नगर सोहामण), ९५३६७-१८(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (जात्रा नवाणु करीए वि), ९४९४०-१(+), ९५३६७-२२(+#), ९६९५५-३२(+), ९९८७१-२८(+), ९८४२३-१९, ९६६२७-१(4) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार माह), ९६९५५-३(+), १००३२५-५(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (प्रथम जिनेश्वर सेवना), ९४९४०-१०(+), ९५३६७-२०(+#) शत्रंजयतीर्थ स्तवन, ग. रामविजय, मा.ग., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, मप., (अंगि अवल बनी छे रे आवो), १००४४९-४(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. रामविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (म्हारुं मन मोह्यु रे), ९७२६४-३३(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १८०१, पद्य, मूपू., (साहिबा सेजो), ९९८८५-२४(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्री उपनो सुणो विनती हो), ९७५८९-१९(+#) For Private and Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शजयतीर्थ स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विमलाचल विमला पाणी), १००१३०-११ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. श्रीभद्र, मा.गु., गा. ८, वि. १८७६, पद्य, मपू., (श्रीसिद्धाचल गिरवर भेटवा), ९८१४५-२१(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. ३, गा. १३, पद्य, मपू., (पय पणमी रे जिणवरना), १००३२५-८(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मारुं डुंगरिये मन), ९९५८६-२(+-) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (बे करजोडी विनवू जी), ९६९५५-१०(+), ९८०७१-८(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (श्रीशत्रुजय तीरथसार), १००१३०-१, ९५४४२-२७(#$), १००८७८-१३(#), ९८४२३-१६($) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (आगे श्रीसिद्धाचल स्वामि), ९७६६५-१०(+) श@जयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशजयमंडण), ९५३१३-५०(+), ९५८०२-४(+), ९६७९८-२(+), ९८०९३-१९(+), ९८२१२-२, ९६१०९-१६(#), १००८७८-११(२) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पुंडरिकमंडण पाय), ९७२६४-२८(+#), ९९८७१-१२(+), ९८४२३-५ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. हितप्रमोद, मा.गु., गा. ४, वि. १८४५, पद्य, मपू., (श्रीसेनंजो तीरथ प्रणमु), ९५४४२-२५(#) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आगे पूरव वार नीवाणु), १००६६०-१७(+), १००८७८-९(#$) शत्रुजयतीर्थे मोतीशाट्रॅक स्तवन-अंजनशलाकाइतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मूपू., (उठी प्रभाते प्रभु), ९८५६९(#) शनिश्चर चौपाई, पं. ललितसागर, मा.गु., गा. ४७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसती सामिणी मन दियो), १००६१७(१) शनिश्चर छंद, खेतल, मा.गु., गा. ६, पद्य, वै., (बाहण महिख बडाला), ९७७०७-१(+#) शनैश्चर छंद, मा.गु., पद्य, वै., (छाया नंदन जगिजयो), १००३४१-२(+$) शांतिक विधि, मा.गु., गद्य, मप., (तणी बांधी माटी प्रति), ९५७९५-१(+) शांतिजिन आरती, सेवक, पुहिं., गा. ६, पद्य, मप., (जय जय आरती शांति), ९४६५९-४(+) शांतिजिन आरती, गु., गा. ६, पद्य, मपू., (जय जय आरती शांति), ९६६२७-१२(#) शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सारद माय नमुं सिरनाम), ९७३१२-११(+#), ९९०३२-१(#s) शांतिजिन पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सांतिजिणेसर सेवीयै सुखदाइ), ९८१४५-७८(+) शांतिजिन पद, वा. जैसार, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (शांतिजिणंद सुखदाई हो), ९८१४५-१८(+) शांतिजिन पद, मु. नेम, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (सोलमां श्रीशांतिनाथ), ९५००४-४(#) शांतिजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (दरवाजा तेरा खोलि बे हम), ९८०२३-१८ शांतिजिन पद-सादडीमंडन, मु. अमरचंद, मा.गु., गा.४, वि. १८७६, पद्य, मूपू., (सादडीनयर सुचंग राजै शांती), ९८१४५-५७(+) शांतिजिन विवाहलो, मु. सहजकीर्ति, मा.गु., पद्य, मूपू., (संतिकरणजिन सोलमउ तित्थंकर), ९७४६६(+#$) शांतिजिन स्तवन, मु. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काम्मित पूरण चूरण), १००७९३-५(2) शांतिजिन स्तवन, मु. करमचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (शांतिकरण प्रभु विरद धरावो), ९७२६४-१५(+#) शांतिजिन स्तवन, आ. कीर्तिसरि, पुहिं., गा.१२, वि. १७२३, पद्य, मप., (सकल मुरत श्रीशांतिजि), ९७३१२-१(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा.५, पद्य, म्पू., (शांति जिनेश्वर साचो), ९४९४०-९(+), ९७४९२-७(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (अचिरा नंदनंदन प्रणमी), ९७५८९-२८(#) शांतिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जगत दिवाकर जगत कृपानिधि), ९६५९३-६(+) शांतिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (तूं तो अचिरानंदन देव रे), ९६५४६-६(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, पुहि., गा. ६, पद्य, मप., (श्रीजिनशांति वडे महराजा), ९६५४६-८(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. पुण्यविजय, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (अखियन में गुलजारा जिनंद), ९४९२४-११ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (अजब बनी रे माहाराज के), ९४९२४-२ For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५८७ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (शांति जिनेश्वर साहिबा रे), ९८४३५-४(+#), ९४७८२-५, ९८४३३-९ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सोलमा श्रीजिनराज उलग), ९५०३८-६, १००४४९-५(2) शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हम मगन भए प्रभुयान), ९४९२४-१८ शांतिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांति सलूणा साहिबा मुजरो), १००७९०-२(2) शांतिजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (शांति तेरे लोचन है), ९४९५४-१२(+#), ९६७६३-१०(2) शांतिजिन स्तवन, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (वंछितपूरण आदि नमो), ९८३०२-४(+) शांतिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (अहिपुरमंडण सोलमौ), १००३२५-१(+) । शांतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानकगर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ८५, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर जग हित), ९७१९४(#) शांतिजिन स्तवन-जालोरनगरमंडन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (शांति जिणेस्वर राया हु), ९४६५९-२(+) शांतिजिन स्तवन-जालोर मंडण, आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (जालोर मंडण सांति), ९५७७०-३(+#) शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर अरचित जग), ९५२१७-२(#) शांतिजिन स्तवन-शांतिपर मंडण, मा.गु., पद्य, मप., (शांतिपुर मंडन प्रभु सोहै), ९७१८३-१२($) शांतिजिन स्तुति, श्राव. अगरचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिजिणेसर पूजो नित), ९५४४२-१०(२) । शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर समरीइं), ९६४०९-१३(+5), ९९३९७-७(+#), ९६१०९-१४(#) शांतिजिन स्तुति-जावरापुरतीर्थमंडन, मु. पुण्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांतिकर शांतिकर), १००८७८-६(2) शारदादेवी छंद, नरसिंह, पुहि., गा. १५, पद्य, वै., (सरसति सरस वचन शुभवांणी), ९५४९२-५ शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.ग., पद्य, स्पू., (--), ९५१८४(#$) शालिभद्रधन्नाजी सिलोको, मु. सिंह, मा.गु., गा. १४७, वि. १७८१, पद्य, मप., (सरसति साम्मण समरु), ९५७२०-२(+), ९७३४६-१(+) शालिभद्रमुनि गीत, श्राव. भुंभच संघवी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (कमलवदनी मृगलोयणी चित्तहरण), ९४६६४-१ शालिभद्रमुनि गीत, श्राव. भुंभच संघवी, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (रुयडा पोलि पगारे रुयडा), ९४६६४-२ शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सासननायक समरिय), ९५३३३(+), ९५६१२(+#), ९६११८(+$), ९६१७९-१(+#S), ९६३१६-१(+$), ९६६७१(+#s), ९७०१८(+), ९७०९०(+-#$), ९८३६८(+#$), ९८४७४(+), ९८०७०-१ शालिभद्रमनि सज्झाय, आ. विजयसूरि, मा.ग., गा. २५, पद्य, मप., (शालिभद्रकेरि बे नारि), ९५७४४-४ शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रथम गोवालतणे भवेइंजी), ९७५८९-८(+#) शालिभद्र सवैया, मु. तेजपाल, रा., सवै. १, पद्य, श्वे., (गोवाल वखत जागीओ मातकने),१००४६२-४२ शाश्वतजिन चैत्यवंदन, मु. भावसागरसूरि-प्रशिष्य, मा.गु., गा. ११४, पद्य, मपू., (सयल जिणेसर पणमीअ), ९८३०१ शाश्वतजिन प्रतिमा स्तवन, मु. नयरंग, मा.गु., गा. ४१, पद्य, पू., (ऋषभ अजित संभव सदा), ९७३९७-६(+), ९९५२८-४२ शिवकुमार कथा-नमस्कार महामंत्र विषये, मा.गु., गद्य, मपू., (नवकारनइ प्रभाविइ), ९५६९१-३ शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतलजिन सहजानंदी थयो), ९४९४०-२(+) शीतलजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, गु., गा.११, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (शीतल जिनपति प्रभुता), १००१३०-३ शीतलजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सफल आज तणौ दिन आवियौ), १००३२५-२(+) शीतलजिन स्तवन, मु. श्रीसार, पुहि., गा. १८, पद्य, मूपू., (सीतल जिणवरराया तुम), ९६७५७-४ शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. १५, पद्य, मप., (मोरा साहेब हो), ९७५४२-३(-2) शीतलजिन स्तवन-उदयापुरमंडन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), ९५३६७-११(+#), ९७६१६-२ शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन जननायक दायक), ९५३१३-३६(+) For Private and Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुख समिकित दायक कामि), ९५३१३-३७(+) शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, वि. १६३७, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणाम करूं), ९५५७२(+$), ९७३४७(+), ९७३७३(+#s) शीयलव्रत सज्झाय, मु. करणो, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (शीयल मुंद्रडी खरी रे), ९५५२२-४६(+) शीयलव्रत सज्झाय-नारीचरित्र विषे, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुखडानो मटको देखाडी), १००२४२-४(+#) शीलदृष्टांत कथा चौपाई, मा.ग., पद्य, मप., (प्रथमही मनसौ श्रीजिनदेव), ९९८९४($) शीलसुंदरीसती चौपाई, पंन्या. राजविजय, मा.गु., ढा. ३८, गा. ८५६, वि. १७९०, पद्य, मपू., (त्रिहुं जगनो शंकर), ९६१८५(+$) शुकराज रास, मु. रत्नविजय, मा.गु., ढा. ६५, वि. १८११, पद्य, मप., (श्रीरीसहेसर वीन), ९८१४७(+#) शुक्लपक्षकृष्णपक्षतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सासयने असासय चैत्यतण), ९७१८३-३ श्रावक ११ प्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (दरसन प्रतिमा१ज्ञान), ९६४५७-२ श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणातिपात अतिचार), ९६५६०-१(+$) श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., अंक. २१, गद्य, मपू., (धर्मनई विषइ १ मन वचन), ९४९४४-६(+#) श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रावक तुं उठे परभात), ९९८७१-२४(+), १००११४-१०(+), ९९०३२-२(#s), ९८७०२-१(-), ९८८७६-४(-१) श्रावककरणी सज्झाय, मु. नित, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (श्रावक धर्म करो), ९५३७३-१६(+#) श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (कहिए मिलस्ये रे), ९५५२२-३४(+), ९५५००-१($) श्रावक बारहव्रत ढाल, मा.गु., ढा. ११, वि. १८३२, पद्य, मूपू., (पांच अणुव्रत परवरया), ९८८७६-५(-) श्रीपाल रास, मु. तत्त्वकुमार मुनि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, श्वे., (आदिपुरुष आदीसरू आदि), ९५५६०(5) श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, स्पू., (कल्पवेल कवियण तणी), ९४८७८(+#$), ९५०४४(+$), ९५०५४(+s), ९५५२३(+#$), ९५५३६(+), ९५६१०+#), ९६४९३(+$), ९७०००(+), १००८७७(+s), ९५८३०, ९५२३८(१), ९५७०८(२), ९८०४३(६) (२) श्रीपाल रास-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिगुणसुंदरी चौसठकला), १००८७७(+$) (२) श्रीपाल रास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (त्रीजो खंड पूरो थयो), ९५५३६(+), ९५६१०(+#$) (२) श्रीपाल रास-अजितसेनमनि देशना, हिस्सा, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४१, वि. १७३८, पद्य, मप., (प्राणी वाणी जिनतणी तुम्हे), ९४९४५(+#) (३) श्रीपाल रास-अजितसेनमुनि देशना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते वाणीमां हिंसा निवारी), ९४९४५(+#) श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४९, गा. ८६१, वि. १७४०, पद्य, मूपू., (अरिहंत अनंतगुण धरीये), ९५३२४(+#), ९६९९८(+) श्रीपाल रास-लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २०, गा. २७१, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (चउवीसे प्रणमु जिनराय), ९५५८६(+#$), ९७२९६(+#) श्रीसारबावनी, मु. श्रीसार कवि, मा.गु.,रा., गा. ५६, वि. १६८९, पद्य, मपू., (ॐ ॐकार अपार पार न), ९९२६०(#) श्रुत बाराखडी, पुहिं., गा. ७७, पद्य, श्वे., (प्रथम जपो अरहंत कौ), ९८६९७(#$) श्रेणिकराजा चौपाई, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., खं. ४, वि. १६८४, पद्य, स्था., (श्रीजिननायक भावभुं वंदु), ९४७७५(+) श्रेणिकराजा सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. ४२, पद्य, मपू., (श्रेणिकने समकित नहीं), ९९५८४-१ श्रेयांसजिन स्तुति, मु. विद्याविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रेयांस जिनवर भविय हितकर), ९६४०९-८(+) षड्द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकाय १ अधर्म), ९६५६०-६(+) संतानोत्पत्ति आयु विचार-स्त्री पुरुष, मा.गु., गद्य, मूपू., (तथा शत वर्षायु कालै प्राय), ९७५१७-३२(+#) संध्यावती कवित्त, समधर, पुहि., गा. ४, पद्य, जै., वै., अन्य, इतर, (संझ्या वंदण फुर वयण कर), ९७२८०-४(#) संभवजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूप., (संभव जिन सब नय मिल्य), ९६७१५-२४(2) संभवजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८२०, पद्य, भूपू., (श्रीसंभवजिन गाई रे गाई), ९५५२२-६१(+) For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ संभवजिन स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (साहिब सांभलो रे संभव), ९६५४६-३(+#$) संभवजिन स्तवन, आ. भावप्रभसूरि, गु., गा.५, पद्य, मूपू., (संभव जिनस्युं चित्त), ९५३७३-८(+#) संभवजिन स्तवन, मु. माणिक्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (समझ जा गुमानी हो दिलजानी), ९४९४०-४(+) संभवजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मप., (साहिब सांभलो विनति), १०००९०-७ संभवजिन स्तवन, मु. सुजाण, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (श्रीसंभवजिणंदसु विनती), ९५३६२-३(+#) संभवजिन स्तवन, मु. सुमतिविजयशिष्य, मा.गु., गा. ७, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (मुने संभवजिनस्यु), ९४९४०-१४(+) संयमश्रेणिविचार स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, पू., (प्रणमी श्रीगुरुना), ९६५३३(+#) (२) संयमश्रेणिविचार स्तवन-स्वोपज्ञ टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, मप., (ऐंद्रवंदनतं नत्वा), ९६५३३(+#) संवतवार ऐतिहासिक घटनाक्रम, मा.गु., गद्य, मूपू., (संवत् २१३ वर्षे राजा), ९५४४५-४(+) सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मप., (प्रवचन अमरी समरी), ९६९७६-१ सचित्तअचित्त सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (प्रथम प्रणमु सहिगुर), ९८०१६-२३(#) सच्चकादेवी स्तुति, वा. हेमरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरदाता वागेश्वरीदेवी), ९५२८३-५(+) सज्जनदर्जन गीत, श्राव. भुंभच संघवी, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (एक इस्या नर जिस्या), ९४६६४-३ सत्यकादेवी स्तुति, मु. धर्मचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (महरकर सुभमनिजर मात सिचिया), ९५२८३-६(+) सदयवत्स सावलिंगा कथा, मा.गु., प+ग., मपू., (न्यायसूतारा नरवहण), ९७३९३-१(+#), ९९८८७(#S) सदयवत्स सावलिंगा चउपई, मु. कीर्तिवर्द्धन, मा.गु., गा. ३९०, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसोहगसुजस), ९८७६५(#S) सदेवच्छसावलिंगा रास, मु. नित्यलाभ, मा.गु., ढा. २४, वि. १७८२, पद्य, मूपू., (सकल सुख संपतिकरण गुणनिधि), १००४७२(७) सदेवच्छसावलिंगा रास, मा.गु., गा. ३००, पद्य, श्वे., (शिवसगति पाय लागी), ९५६९६(+$), ९५७५२-१(+#) सदेववत्स सावलिंगा दोहा, क. संघकविसर, मा.गु., गा. २१९, वि. १७९७, पद्य, श्वे., (सातलख्य संध राख वा), ९७२९४(६) सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (साचा सुज्ञानी ध्यानी), ९५५२२-५५(+) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १६, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (सुरनर परसंशा करे), ९९५८४-२१ सनत्कुमार रास, मु. लक्ष्मीमूर्ति, मा.गु., ढा. ७, गा. ४४, पद्य, मूप., (जोए विमासी जीव तुं), ९५६३८(+) सप्तनय विवरण-नैगमादि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नैगम संग्रह व्यवहार), ९७१७१(+#$) सप्तव्यसननिवारण सज्झाय, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., गा. ११, वि. १९०३, पद्य, मूपू., (ग्यानी इणविधि चलणारी तेरा), १००४९५-१(#) समवसरण बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीवाए लेसपखाए दिट्ठी), ९८१९२-४(+$) समुद्रपालमुनि सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (नगरी चंपामां वसे एतो), ९४७८२-४ समुद्रपालमुनि सज्झाय, मु. ब्रह्म, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (चंपापुरि पालित नामै), ९६९५५-२७(+) । सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मधुवन में जाय मची रे), ९९०७२-७(+#) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. नवलदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सीखरगीर वांदन जानां), ९६६२७-१४(#), ९६६२७-४१(2) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. वल्लभसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (समतिशिखर चालो जइए), ९६६२७-३(#) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, श्राव. वृंदावन साह, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (समेतशिखर चल हो जियरा वीस), ९८०२३-२४ सम्मेतशिखर तीर्थमाला, ग. जयविजय पंडित, मा.गु., गा. ९८, वि. १६१४, पद्य, मूप., (प्रणमीअ सहगुरूतणा पा), ९५६९७(+) सम्मेतशिखर तीर्थमाला, मु. जयसागर, मा.गु., ढा. ६, गा. १३२, वि. १६११, पद्य, मप., (प्रणमीय प्रथम परमेसर), १००२७३(+#) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.६, वि. १७४४, पद्य, मपू., (अष्टापद आदिसर सीद्धा), ९५३६७-१२(+#), ९५३७३-९(+#), ९८४३३-७ सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, पद्य, म्पू., (सुकृतवल्लि कादंबिनी), ९५२२३(+#), ९८४९५ सम्यक्त्व कौमदी कथाष्टक, मु. विनयचंद, मा.ग., ढा. ४२, ग्रं. १८००, वि. १८८५, पद्य, स्था., (विज समान श्रीवीरजिन), ९७०५४(+) सम्यक्त्व पद, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रीउडा जिनसरणारी सेवा), ९५६६७-६(#) For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सम्यग्दृष्टि, देशविरति व सर्वविरति ११ बोल, मा.गु., गद्य, मप., (विधिवाद १ जे वितरागइ), ९४९४४-२(+#), ९५५७६-२(#) सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), ९७६१३-३ सर्वार्थसिद्धविमानादि परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सरवारथसिद्ध विमान), ९६३४६(६) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २ ढाल २२, गा. ५३५, ग्रं. ८००, वि. १६५९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर गुणनिलउ), ९४८६०(+$), ९५६२०(+#), ९७६५१(+), ९८०७२(+), ९५६०६(#) साचलदेवी गीत, चूहड, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., वै., (सरसति गणपति वीनवुने), ९५२८३-२(+) साचलदेवी गीत, मु. तुलसी, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (साचल ज्यौति सवाई मनसा), ९५२८३-३(+) साचलदेवी स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (भवानी लाज रखो मोरी भक्त), ९५२८३-८(+) साधारणजिन आरती, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (आरती श्रीजिणराज तुम), ९९८८५-१७(#) साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (रखे नाचतां प्रभुजी), ९८६८१-८(+#) साधारणजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय तुं जिनराज आज), १००१३०-४ साधारणजिन पद, मु. अमरसिंधूर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (धन्य धन्य जिनराज जगतगुरु), ९८१४५-५२(+) साधारणजिन पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मप., (अब मेरे पति गति देव), ९४८९५-४३(+#) साधारणजिन पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूप., (मेरो निरंजन यार हो), १००७८९-३(#) साधारणजिन पद, मु. आनंदराज, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (मैं तो खडी निहारू पिया), ९६६२७-४(#) साधारणजिन पद, मु. उत्तमविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरो दिल बस कीयो जिन), ९८२०४-४(#) साधारणजिन पद, मु. किसनगुलाब, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (देखो री जिणंदा), ९६६२७-४०(2) साधारणजिन पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., गा. ५, पद्य, मूप., (तू ही तू ही याद आवे री), ९६६२७-३९(2) साधारणजिन पद, मु. खुशालराय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (तोरी सांमली सूरत पर वारी), ९६६२७-३५(#) साधारणजिन पद, मु. जगराम, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूप., (तोसुं जोडी प्रीत जिनराज), ९८०२३-२५ साधारणजिन पद, श्राव. जीवनदास, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (हकीम घरि आइये हो वैद घरि), ९७२३७-८(+) साधारणजिन पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (क्या करियै अरदास साध), ९५६४१-१२(+#) साधारणजिन पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा.३, पद्य, मप., (नाथ तुमारी तुमही), ९५६४१-७(+#) साधारणजिन पद, मु. नयनसुख, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु सिमेटो व्यथा), ९९८८४-३(#) साधारणजिन पद, मु. नवल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (एही सभाव पड्या हो), ९८६८१-५(+#) साधारणजिन पद, मु. नवल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (चउरे मास वरस ही चउरे मग), ९९५२८-११ साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (चालो री सखी प्रभु), ९६६२७-२६(4) साधारणजिन पद, मु. भूधर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेटो विथा हमारी प्रभु तुम), ९८०२३-७ साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मपू., (परम प्रभु सब जन शब्द), ९६७१५-२(2) साधारणजिन पद, मु. रतनविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (प्यारे प्यारे तेरे), ९८६८१-१९(+#) साधारणजिन पद, मु. रामदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (नैना सफल भये प्रभु), ९७४९२-१०(+#), ९६६२७-३०(#) साधारणजिन पद, मु. वखता, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (तारण तरण जिहाज प्रभु), ९९५२८-६५ साधारणजिन पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (जागो प्यारे भयो सुवि), ९४९५४-१६(+#$), ९६७६३-१४(4) साधारणजिन पद, मु. विनय, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (सांई सलूना के सई), ९४९५४-८(#), ९६७६३-६(2) साधारणजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. ५, पद्य, मप., (रूप वण्यो अति नीको), ९९५२८-५९ साधारणजिन पद, मु. सेवाराम, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (प्रभुजीसू लागो मारो नेह), ९६६१४-४(#) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अपन तुरी ए बनता वृंद), ९८६८१-२२(+#) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (टुक सुनीयो नाथ), ९५८१०-३३(+#) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (तेरे दरसण के देखे), १००७८९-२(#) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (तोसं जोरी प्रीत जिन), ९८०२३-१३ For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रभुजी तुम हो अंतर), ९८०२३-१ साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (फरसे जिनराज राजरीध), ९६६२७-३८(#) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (लग लग गइ लगन हमारी), ९८०२३-२६($) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ४, वि. १८३९, पद्य, मप., (लागो मारो वीर जिणंदा), ९९०७२-९(+#$) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (सरण पकड़ी आंण प्रभु तेरी), ९७२३७-७(+) साधारणजिन फाग, मु. चंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (ऐसी होरी में प्रीतम), ९६६२७-७(#) साधारणजिन विनती स्तवन, पंन्या. भूधर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (त्रिभूवनगुरु स्वामी), ९९१२३-७(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरिहा प्रभुजी त्रिगड), ९६६०५-१०(2) साधारणजिन स्तवन, मु. आसकर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु मूरत थारी सारी), ९६९५५-१२(+) साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (वंदु श्रीजिनराय मन), ९९८८४-५(#$) साधारणजिन स्तवन, मु. कनककुशल, पुहि., गा.५, पद्य, म्पू., (छवी मो पै वरती न जाय जिन), ९५३६७-२(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (खतरा दूर करणा दूर), ९८२०२-५ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (मिल जाज्यो रे साहिब), ९५३६७-३(+#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुझरो छे जी मुझरो छे), १००२५८-१ साधारणजिन स्तवन, मु. नवल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अटके नेणुदीजे जिन), ९८६८१-२८(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. रामचंद, रा., गा. ७, पद्य, मपू., (अमे जिन चरणे चीत धर सार), ९८४१६-३ साधारणजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (प्रभु तोरी वाणी सुणी), ९७२६४-३२(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (निरंजन यार वोरे अब), ९७४९२-११(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (यातन काची माटी का), ९५३६७-१(+#) साधारणजिन स्तवन, पंडित. हरसुख, रा., गा. ८, वि. १८९५, पद्य, मूपू., (म्हे तो म्हारै जिन पुजणनै), १००४९५-२(4) साधारणजिन स्तवन, मा.ग., गा.७, पद्य, मप., (अतुली बल अरिहंतजी सिवदायक), ९९८८५-२७(#) साधारणजिन स्तवन, पुहि., गा. ९, पद्य, मपू., (भेटा बीना परमातमा जनम), १००४९५-४(#) साधारणजिन स्तवन-जिनवाणी महिमा, मु. कांति, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिणंदा तोरी वाणीइ), ९५३६७-९(+#) साधारणजिन स्तवन-पूजन, मा.गु., गा. ६, वि. १९१५, पद्य, मूपू., (पाय पडु परणम करुणा परभुजी), १००४९५-५(#) साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (चंपक केतकी पाडल जाई), ९५३१३-४७(+), ९८०९३-२४(+s), ९८२७६-१(+), ९९३९७-१०(+#), ९६१०९-१७(#), १००८७८-१०(#$) साधारणजिन स्तोत्र, क., पद्य, दि., (श्रीपुरसोतम रच्यु तरु रूप), ९६७०२(#$) साधारणजिन होरी, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (कुण खेले तोसें होरी), ९६६२७-२८(#) साधु आचार १०८ बोल, पुहि.,मा.गु., गद्य, श्वे., (जति थइनै आधाकर्मी), ९९६८४(+) साधुगुण गहुंली, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (षट्व्रत सुधा पालता), ९७३८६-८(+) साधुगुण सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ते मुनिने करूं वंदन), ९५५२२-६८(+) साधुगुण सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पंच महाव्रत जे धरइ), ९५५२२-३३(+) साधुगुण सज्झाय, मु. भुदर, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (वंदु श्रीजिनगुरु चरण), ९५४८९-१(+) साधुगुण सज्झाय, ग. हर्षविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (ते बळीयो भाई ते बळीय), ९७५८९-३(+#) साधुपद सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८६३, पद्य, श्वे., (समकितधारी सुधमती जी), ९५८१०-३४(+#) साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ७, गा. ८८, पद्य, मूपू., (रिसहजिण पमुह चउवीस), ९५४२८(+5), ९५८१५(#$) साधुवंदना, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., गा. ८८, पद्य, मूपू., (पंच परमेठि पयकमल), ९५८४१(+$), ९६३२७-१(+), ९८६५९() साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., ढा. १३, गा. ३७७, पद्य, मूपू., (पंच भरत पंच एरवय), ९६३३७(+#$) साधुवंदना, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. १४४, पद्य, मूपू., (तुं जिनवदन कमलनी), ९५५३३-१(+$) साधुवंदना तेरहढाला, मु. देवमुनि, मा.गु., ढा. १३, गा. १६७, पद्य, मूप., (पंचभरत पंचएरव जाण), ९७१७०-१ For Private and Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, स्था., (नमुं अनंत चोवीसी ऋषभादिक), ९४६६१(2) साधुवंदना बृहद, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. १३, गा. १९०, वि. १८वी, पद्य, मपू., (अरिहंत सिद्ध साधु), ९६६६१(+#$) साधुवंदना रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. १४, गा. ५०२, पद्य, मूपू., (शासननायक गुणनिलो), ९६६९६(+$) साधुवंदना लघु, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ५९, वि. १८०७, पद्य, श्वे., (नमुं अनंत चोविसी), ९८८७६-३(-5) साधुस्तुति सवैया, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद. २, वि. १७वी, पद्य, दि., (ग्यान्न को उजागर), १००४६२-२५ सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. विमल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (प्रणमी नेमी जिनेसर पाय), १००००९-३(+) सामायिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामायिक मन शुद्धे कर), ९७३१२-७(+#) सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (सामायिक मन सुधे करो), ९७६३१-६(+#) सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूप., (चतुर नर साय नायक), ९६६०५-१३(१) सारी-हीणीस्त्री कवित, क. गद, मा.गु., गा. २, पद्य, जै.?, (वरष पनर षटमास), ९८३७९-३(+$) सिंधुचतुर्दशी, पुहि., गा. १४, पद्य, जै.?, (जैसे काहु पुरुष कौ पार), ९७९६६-२(+#) सिंहासनबत्रीसी, ग. संघविजय कवि, मा.गु., कथा. ३२, गा. १५४७, ग्रं. १६००, वि. १६७८, पद्य, मपू., (सकल मंगल धर्म धुरि), ९८१०४-१(+$) सिंहासनबत्रीसी चौपाई-दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., कथा. ३२, गा. २४३०, ग्रं. ३५००, वि. १६३६, पद्य, मप., (आराहि श्रीरिषभप्रभु), ९६२२१(+), ९७०२४-१(क) सिचियायदेवी स्तुति, मु. जयरतन, रा., गा. ३३, वि. १७६४, पद्य, मपू., (मन सुध ज्यां महिर कर), १००११४-११(+) सिचीयादेवी स्तुति, मु. महिमासुंदर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ऊएशगढरे ईश्वरी आप पधारिया), ९५२८३-४(+) सिचीयायदेवी स्तुति-ओसिया, मु. जुगति पाठक, पुहिं., गा. ७, वि. १७७२, पद्य, मूप., (आज सफल दिन आया गढ), ९५२८३-१(+$) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. उदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, स्पू., (आदि जिनवर आदि जिनवर), ९६१०९-२(#) सिद्धचक्र पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (नवपद ध्यान धरो रे), ९६६२७-४५(#) सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, मु. कनककीर्तिशिष्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (नवपदनो ध्यान धरीजे), ९९५२८-७६ सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद वखाण्यौ), ९५३६७-१४(+#) सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (गौतम पूछत श्रीजिनभाष), ९९५२८-७७ सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधिय), ९७१८३-६ सिद्धचक्र स्तवन, मु. माणेक, मा.ग.,गा. ६, पद्य, मप., (ऐहवे वीर समोसर्यो सुखदाई), ९८४२३-२० सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. २५, पद्य, मप., (जी हो प्रणमु दिन), ९७६१३-५ सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १४१७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवित), ९७२६२-२(+) सिद्धचक्र स्तवन, क. हिम्मत, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भवी जिव जपीये रे), ९४७८२-१२ सिद्धचक्र स्तवन, मा.गु., पद्य, मप., (सिद्धचक्र सेवो भवी प्राणी), ९८४२३-२१(६) सिद्धचक्र स्तुति, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अंगदेश चंपापुरी वासी), ९६१०९-४(#) सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (पहिले पद जपीइं अरिहंत बीज), ९७६६५-८(+) सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (समरु सुखदायक मन), ९५४४२-१२(2) सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरुपम सुखदायक), ९५३१३-३४(+) सिद्धचक्र स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (अरिहंत नमो वळी सिद्ध), १००१३०-५ सिद्धचक्र स्तुति, मु. पद्म, मा.गु., गा. १, पद्य, भूपू., (सिद्धचक्र आराधो साधो), १००१३०-२ सिद्धचक्र स्तुति, पं. मणिविजय गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र सदा भवि), ९५७४५-४(4) सिद्धचक्र स्तुति, मु. महिमाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर भुवण), ९७१८३-५ सिद्धचक्र स्तुति, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आसो चैत्र आंबिल ओली), ९८४२३-२ सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर अति अलवेस), ९६१०९-२९(2) For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ . सिद्धचक्र स्तुति, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनशासन वंछित पूरण), १००१३०-७ सिद्धपद स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. ८, पद्य, म्पू, नमो सिद्धाणं बीजे पद), ९५५२२-६५ (+) सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम पृच्छा करे), ९६९७६-३ सिद्धांत प्रश्नोत्तर, मु. दोलतराय, मा.गु., गद्य, वे (सिद्धत्य सवसंजलया), १००१४४(क) सिद्धांत सारोद्धार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम जंबूद्वीपविचार), ९५५१५-१(+), १००२८५ सिद्धांत सारोद्धार विचार, रा., गद्य, मूपू., (एक बोल रे विचार जंबू), ९६२७३ (+$) सिद्धिऋषि कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (हरिभद्राचार्यशिष्य सिद्धि), ९८०६५-८(+) सिध्धचक्र स्तुति, मु. जिनमहिमा, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर, भवनदिणेस), ९८४२३-३ सीतासती कथा, मा.गु. गद्य, मृपू. (तिहुयणपहुणाविहु रावणेण), ९५६१३-३ (+) सीतासती कृत आलोयणा, मु. कुशल, मा.गु., ढा. ६, गा. ९३, पद्य, म्पू, (सती न सीता सारिखी), १००५१०-२ सीतासती चरित्र, मु. बाल कवि, पुहिं., गा. २५५०, वि. १७१३, पद्य, मूपू.. (प्रणमुं परम पुनीत), ९४८०५ (+क Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीतासती सज्झाय, मु, भोजसागर, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूषू, (दशरथ नरवर राजीयो), १००१९८-१(+) सीतासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, मृपू., (कुलधि कंत गरब नीवारो रे), ९५५०६-३(+३) सीतासती सज्झाय- शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९. वि. १८वी, पद्य, मूपू (जलजलती मिलती घणी रे) ९९८७२-८(MS) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर वीतराग), ९५५३४-८(+#) सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार हुं), ९५५२२-६२(+), ९६९५५-९(+), १००४१९-३ (१) १००८२२-१(*) सीमंधरजिन विनती स्तवन- १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., डा. ११, गा. १२५ ग्रं. १८८, वि. १८वी, पद्य, भूपू (स्वामी सीमंधर विनती), ९५६५० (+), ९६१८९(+), ९७१७२(+३), ९५७१९ (२) सीमंधरजिन विनती स्तवन- १२५ गाथा-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, मृपू., (प्रणम्य पार्श्वदेव), ९५६५० (+5), ९६१८९(+$) सीमंधरजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सहज विलासी सुदरुं), ९५३६७-१६ (+#), ९७४९२-१९(+#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (महाविदेह क्षेत्रनो), ९५४८९-८(+) सीमंधरजिन स्तवन, श्राव. गोरधन माली, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आज भलो दिन उग्यो हो), ९५४८९-७(+) ५९३ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जगरूप, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चंदाजी हो मे), १०००९०-१७ सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुणो चंदाजी सीमंधर), ९७४९२-९(+#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (बाल्या सनेही तुं प्रभु), ९८४१६-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महाविदेह में थे वसो), ९८४१६-४ सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू. (श्रीसीमंधर साहिबा हु, ९४९२४-३ सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु.. गा. ८. वि. १८५३, पद्य, वे (श्रीमंदरजिन बंदु), ९५८१०-२२ (+४) " सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरजी सुणजो), ९८२०२-८ सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ७, गा. ४०, पद्य, मूपू., (सुण सुण सरसती भगवती तोरी), १०००९३-२(#), ९८०२५-४(४) सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., डा. ७ गा. ११५, वि. १७१३, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी जिन नमुं), १००९१२-३ , ९६६८७-७(१) सीमंधरजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरदेव सुहंकर), १००१३०-८ सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर मुजनेवाला), ९५४४२-२२(३) सीमंधरजिन स्तवन, मु, हीरविजय, मा.गु. गा. २१, पद्य, मूपु. (-), ९६७५७-३(5) ', सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, भूपू., (सीमंधरजिन साहिबा आगल), ९६५४६-१३(४) सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५६, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (आज अनंता भवतणां कीधा), For Private and Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सीमंधरजिन स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पूरव दिशि इशान कुण), ९८४२३-१० सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकलसुरासुर नरवर), ९५४४२-२१#) सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मप., (सीमंधरस्वामी केवला), ९७६६५-१४(+), ९९८७१-१४(+), ९६१०९-२८(#) सुंदरशृंगार, क. राजसुंदर, पुहि., गा. ३६४, वि. १६८८, पद्य, वै., इतर, (देवी पूजि सरस्वती), १००४६२-५ सुकोशल कीर्तिधर संबंध, मु. मान, मा.गु., ढा. ६, गा. १५३, वि. १६७०, पद्य, भूपू., (श्रीसरसति मतिदायिनी पामी), ९६२७५(+#) सुकोशलमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., गा. ११८, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (प्रणमुं प्रथम जिणंद), ९७६१२-२(+) सुदर्शनशेठ चौपाई, मु. ब्रह्म ऋषि, मा.गु., ढा. ३७, गा. ८३९, पद्य, मूपू., (श्रीजिणचरण प्रणीमइ), ९४९३४(+$) सुदर्शन श्रेष्ठि कथा-शीलविषये, मा.गु., गद्य, मप., (शील पभाव पभाविय सुदंसणं), ९५६१३-१(+) सुदर्शनसेठ रास, मु. मुनिसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २५५, वि. १५०१, पद्य, मूपू., (पहिलउ प्रणमिसु), ९७४२२(+#S) सुदामा सार, मा.गु., पद्य, वै., इतर, (सरसती ऊजलमती गुणपति साहा), ९५८६३-३(2) सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चंपानयरी उद्यानमां), ९७४२०-३ सुधर्मास्वामी गहुंली, पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ज्ञान दरसण गुण धरता), ९७३८६-९(+) सुधर्मास्वामी गहंली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बेहनी वीर पटोधर सोहम), ९६६०४-५(+) सुधर्मास्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (पंचम गणधर वीरना रे), ९७३८६-२(+) सधर्मास्वामी गहंली, मु. मोहन, मा.ग., गा.७, पद्य, मप., (चउनाणी चोखें चित्तें), ९७४२०-२ सुधर्मास्वामी गहंली, मु. मोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सोहमस्वामी समोसर्या), ९७४२०-१ सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. सोहव, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चेलणा लावे गहुँली), ९७३८६-५(+) सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चंपानयरी उद्यान सुरत), ९७३८६-४(+) सुधर्मास्वामी सज्झाय, पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (मुनिवरमां परधान), ९७३८६-१२(+) सुपार्श्वजिन पद, मु. हरखचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (आज में देख्योरी मुख), ९८६८१-२९(+#) सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सहज सलुणो हो मिलियो), ९८०१६-१७(4), १००४४९-३(#) सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. गुणविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांभलि अरज सुपास सनेही), १००७९०-१४(#) सुपार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसुपास जिनराज), ९४९९२-६(+#) सुबाहुकुमार चरित्र, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., ढा. ७, गा. २०५, वि. १८७२, पद्य, मूपू., (नमु वीर सासणघणी सर्वहित), ९७४९३ सुबाहुकुमार संधि, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., गा. ८९, ग्रं. १४०, वि. १६०४, पद्य, मूपू., (पणमि पास जिणेसर केरा), ९५६३९(#) सुमतिकुमति सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, जै., (सुमति सदा सुलेणी वीनवे), ९७२६४-१८(+#) सुमतिजिन गीत-समवसरण, ग. जीतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज हुं गइती रे समवसर), ९५३७३-५(+#) सुमतिजिन स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुतियडे मेह वुठारे आज), ९४९४०-५(+) सुमतिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वैस ईक्ष्यागइ राजीओ), १००३२५-४(+) समतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (सुमतिनाथ गुणस्यु), ९४९९२-५(+#) समतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (सुमतिनाथ साचा हो), ९६७१५-२६(#$) सुमतिजिन स्तवन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मन वंछित पुरन सुमति जिणंद), ९८६८१-२६(+#) सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सुमतिजिणंद सुमति), ९५६३३-२(+), ९९५२८-४७ सुमतिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (सुमतिसर प्रणमु सुधै मनै), ९९५२८-४५ सुमतिजिन स्तवन-उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुस्युं तो बांधी), ९५३६७-२१(+#) सुमतिशांतिजिन स्तवन, मु. रामसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (भवि तमे वंदो रे सुमत), ९४९४०-१७(+) सुमित्रकुमार चौपाई, ग. धर्मसमुद्र वाचक, मा.गु., गा. ४३१, वि. १५६७, पद्य, मपू., (पस्ममि सुमण वयण तण), ९५६२५-१(+#), ९८३५१-२(+#) सुरपतिराजा रास-दानधर्मे, मु. दामोदर, मा.गु., गा. ३६१, वि. १६६५, पद्य, मपू., (प्रणमु स्वामि शांति), ९८०५३(+$) For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२३ ५९५ सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., खं. ४ ढाल ४०, गा. ६१३, वि. १७३६, पद्य, मृपू., (सासण जेहनउ सलहिवइ), ९५६१६ ( +*), ९५७०६ (+#) सुरसुंदरी रास, मु. नवसुंदर, मा.गु., ढा. २१, गा. ५१७, वि. १६४४, पद्य, म्पू, (आदि धरमने करवा ए भीम), ९५५१७(*) सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (भोरी अमांणी आया रे), १०००९०-४ सुविधिजिन स्तवन, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू, (प्रभुजी प्रीतम प्राण), ९५३६२-१० (+४) सुव्रतजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु., (मोहनगारि हो प्यारी सूरति), ९६५४६-९ (+) सुषमछत्रीसी, मु. उदय ऋषि, मा.गु., गा. ५३ वि. १८४९, पद्य, वे (सुषमछतीसी सांभल), ९९९६६ (४) सूर्ययशराजा कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुन कहतां फेर इण परव) ९५०८४ (+#) सेनसूरि रास, ग. दयाकुशल, मा.गु., गा. १४१, वि. १६४९, पद्य, मूपू., (सरसति मति अति निरमली), ९७१९२ ($) सोहमकुलरत्न पट्टावली रास, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल ६५, पद्य, म्पू, (स्वस्ति श्रीत्रिसला), ९४८३६ (*), ९६४९२(+#) स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २४, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), ९४७६९ (+$), ९७२२९(*), ९९८७१-१(०), ९४८७९-१ (२) स्तवनचीवीसी टवार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. ग्रं. ८२८, गद्य, म्पू, (आनंदघनस्यास्या गीत) ९४७६९(+६), ९९८७१-१(+) स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मरुदेवीनो नंद माहरो ), ९७१०६-१ स्तवनचौवीसी, मु. कवियण, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (साहिबा वालेसर अरिहंत), ९४७४७(+) स्तवनचीवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, भूपू., (सगुण सुगुण सोभागी), ९६३१४(*) स्तवन चौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु. स्त. २४ वि. १७वी, पद्य, मूपू. (मनमधुकर मोही रह्यो रिषभ) ९७२९८-१(+४), " , ९७३९७-५(+), ९९५२८-४० स्तवनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (आदिकरण अरिहंतजी ओलगड), ९५३७३-१(+#) स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २४, गा. २०५, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणिंदसु प्रीतडी), ९९८७१-३९(+) स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंदा), ९५५६८(+#), ९६६८९(#) स्तवनचौवीसी, उपा. मेघविजय, मा.गु., स्त. २४ वि. १८वी, पद्य, मूपू (श्रीजिन जगआधार), ९५३७३-७(*) स्तवनचीवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, गा. १२१, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (जगजीवन जगवाल हो माता), ९६९८४(३), ९७२०४(*), ९८२८० (+) स्तवनचीवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ओलगडी आदिनाथनी जो), ९८३७९-१ (+), १००१३३०) स्तवनचौवीसी, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभ ऋषभ जिणंद निरखी), ९७१३८ - १ ($) स्तवनचौवीसी, ग. वनीतविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर साहब माहरो अरज), ९८२७८(+$) स्तवनचीवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., स्त. २४, वि. १९०६, पद्य, वे (श्री आदिश्वर सामी हो), ९६४०२ (०४) स्तवनवीसी, मु. केशरकुशल, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू (सीमंधरजिनराज सुहंकर लागा), ९७६५४ स्तवनवीसी-अतीत, मु. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २१, पद्य, मूपू., (जिणंदा तारा नामथी), ९५०४०(+) स्थापनाचार्यजी परीक्षा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीभद्रबाहुस्वामी), ९७२१५-४मा स्थूलभद्रएकवीसो, मु. लावण्यसमय, मा.गु. गा. ४२, वि. १५५३, पद्य, मूपू (आव्यो आव्यो रे जलहर), ९४७४९ (+) " " ९७९८४-५ (१) स्थूलभद्रकोशा सज्झाय, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (पावस काल विसम मंडलायो), २००७९०-१२(क) स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., डा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, म्पू., ( सुखसंपत दायक सदा पायक जास), ९५४७३(+), ९५५०६-१ (+), ९५१६५, ९९५२८-५३, ९७७२९(#), ९५१२३($) स्थूलभद्रमुनि पद, मु. जिनराज, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपु. ( धुलिभद्र न्यारी भांत), ९९५२८-२५ स्थूलभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १८. वि. १८६२, पद्य, मूपू (सयल सुहंकर पासजिन), ९५३६६ (७), ९७३३० (+), ९८२८१ For Private and Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. अमरचंद, मा.गु., गा.११, पद्य, श्वे., (लाछलदे सुत लाडलो), ९४८६९-११(+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. अमरचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आवो रे थुलिभद्र रंगे), ९४८६९-१०(+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पिउडा आवो हो मंदिर), ९६९५५-२२(+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., गा. २२, पद्य, मपू., (कोस्या कामिनि कहे), ९४८६९-१२(+), ९७५८९-१८(+#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पा. रुघपत, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सखीरी पाडलीपुर नगर), ९८२४३-२ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मप., (लाछलदे मात मल्हार बह), ९७५८९-१५(+#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मुनिवर रहण चोमासे), ९५५२२-१९(+), ९७२६४-२२(#), १०००९०-३ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीतडली न किजीये), १००१२२-३(+), ९९४८६-३(-#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (०मुनीसरने पाय नमुं), ९९८८६-३(#) स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (अकल अरूपी आतमा अविना), ९४८६९-९(+) स्नात्र पूजा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (पूर्व दिसे तथा उत्तर), ९६०७८-१(+#) स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ८, गा. ६०, वि. १८वी, पद्य, मपू., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), ९४६५९-३(+), ९९८७१-३२(+$), ९९८७८-१(+#), १००००५(+$), ९४७५७-२(#) स्वरोदयसार, मु. कपुरचंद, मा.गु., गा. ४५३, ग्रं. ५५०, वि. १९०७, पद्य, मूपू., इतर, (नमो आदि अरिहंत देव), ९५२५५(+), ९५१३२ हंसराजवच्छराज चौपाई, उपा. रत्नविमल, मा.ग., ढा. ५१, वि. १८३८, पद्य, मप., (रिषभादिक चोवीसजिन प्रणमी), ९८२४०(+$) हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४८, गा. ९०५, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (आदिसर आदे करी चोवीसे), ९५१६७(+#$), ९५२०३(+), ९५३६८(+), ९५५९८(+$), ९५७०४(+), ९९९७१(+#), १००३७५ (+#$), १००८७४(+#$), १००७३७(#$), १००१३७($) हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., उल्ला . ४ ढाल ५९, ग्रं. ३७५१, वि. १८१०, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधर जगधणी), ९५५३२(+), १००६४२(#$) हरिवाहनराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ३१, पद्य, मूप., (परमानंदमई प्रभु), ९४८५३(+$), ९६७८७(+) हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., खं. ५ ढाल ३९, गा. ७८१, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर पाय नमु), ९५९३४-१(+),१००३७४(+#) हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. प्रेम, रा., ढा. २३, वि. १८३४, पद्य, श्वे., (आदेसर आदी करी वीतराग), ९७३८४ हरिश्चंद्रराजा रास, मु. लालचंद, मा.गु., ढा. ३८, ग्रं. ८०८, वि. १६७९, पद्य, मूपू., (शुभ मति आपो सारदा), ९५६९४(+), ९८११७६६) हितोपदेश सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मनडा तुं माहरी सुणि), ९६६०४-१५(+) हीरविजयसूरि सलोको, ग. कुंअरविजय, मा.गु., गा. ८१, पद्य, मूप., (सरसती वरसती वाणी), ९८२७५ (#) हीरविजयसूरि सलोको, मु. विद्याधर, मा.गु., गा. ८१, वि. १६५२, पद्य, मपू., (शासनदेवी तुम पाये), ९७३६९(+#$) हीरावेधि बत्रीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (राजनगर सम एह नारि), ९५२१४(5) होलिकापर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (फागुण चौमासी पर्वनें), ९५२६६-१ होलिकापर्व सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (नवगाटी नवल वर पाया), ९९५८४-१५ For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobarth.org Acharya Shri Kallassagassuri Gyanmandir NCERTRENERAciracel नandनपnि परिशिशिविकायक amerikanuman गदपारगमेवादाविरोगविजन 4 जा आराधना महावार कोबा. श्री 卐 ) अमतं 5 विद्या तु Stacाकारकर Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail : gyanmandir@kobatirth.org Website : www.kobatirth.org ISBN: 978-93-85803-08-6 Set: 81-89177-001 For Private and Personal Use Only