________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 196 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची 96118. (+) शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 8-3(1 से 3)=5, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (25.5411.5, 12436-38). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. 1678, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-८ दोहा-४ अपूर्ण तक है.) 96120 वियाहपन्नत्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८,प्र.वि. हंडी:विवाहपन्न०., दे., (24410.5, 5-18444-56). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., शतक-१ उद्देश-२ सूत्र-२ अपूर्ण तक लिखा है.) भगवतीसूत्र-टबार्थ, मु. सत्यसागर, मा.गु., गद्य, आदि: सुखसंततिवृद्ध्यर्थं; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. 96121. (+) गच्छाचार प्रकीर्णक सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 9-1(6)=8, प्र.वि. हुंडी:गच्छाचार., पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ., जैदे., (23.5411, 5-8438-42). गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीर तियसंदनमंसिअ; अंति: इच्छंता हियमप्पणो, गाथा-१३६, (पू.वि. गाथा-७६ अपूर्ण से गाथा-९३ अपूर्ण तक नहीं है.) गच्छाचार प्रकीर्णक-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आदौ शास्त्रकारः स्वे; अंति: द्यताः इति गाथार्थः. 96125. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह प्राकृतवार्तावृत्ति, अपूर्ण, वि. 1692, वैशाख कृष्ण, 11, रविवार, मध्यम, पृ. 18-9(1 से 9)=9, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. जयसींगदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भक्तामरनीवृत्तिःटी०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (25.5411, 14-15432-48). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-१९ से है.) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध+कथा, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: लक्ष्मी स्वयं वरइ. 96126. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 51-43(1 से 26,31 से 47)=8, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:उपदेसमाला., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (25411.5, 2-9438-57). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०३ से 125 अपूर्ण तक व गाथा-३६३ अपूर्ण से 444 अपूर्ण तक है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). उपदेशमाला-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). 96128. (+) देवसिप्रतिक्रमण सूत्र विधिसहित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 9-1(8)=8, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पडीक्कमणासुत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (25412, 11430-32). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. संसारदावानल स्तुति तक है व वंदित्तु गाथा-३७ से वरकनक स्तुति गाथा-२ अपूर्ण तक नहीं हैं.) 96129. (+) शांतिक विधि, अपूर्ण, वि. 1946, माघ शुक्ल, 4, मध्यम, पृ. 10-3(1 से 3)-7, ले.स्थल. जेपूर, प्रले. मु. मनसाराम ऋषि (बृहत्विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (24.5411.5, 12-13435-45). शांतिक विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: रोगशोक० दूरतो यांति, (पू.वि. 10 दिक्पाल विधि अपूर्ण से है.) 96130 (+) प्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. 15-3(1,13 से 14)=12, कुल पे. 3, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (25412.5, 9435). १.पे. नाम. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र विधिसहित, पृ. २अ-१२आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र हैं. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक इरियावही पाठ अपूर्ण से लघुशांति गाथा-११ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only