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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: (-), (पू.वि. अस्वाध्याय
अध्ययन गाथा-९८ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९६०३२. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५४५, पौष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २,
प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४११.५, १०-१६४३२-५२). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह अवचूरि, पृ. १अ-१५अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि,
अध्ययन-१० चूलिका २. दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: धर्म उत्कृष्टमंगलंभवतीति; अंति: इति ब्रवीमीति प्राग्वत्. २.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य सह अवचूरि, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिज्जभवं गणहरं जिण; अंति: कहणाय
विआलणा संघे, गाथा-४.
दशवकालिकसूत्रगत गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नियूंढानि उद्धृतानि; अंति: नोपसंहृतं प्रवचनगुरुणेति. ९६०३३. (+#) नवतत्व चौपाई व द्वार स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २४-१७(१ से १७)=७, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:द्वार.,
संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, ११४३६-३८). १.पे. नाम. नवतत्व चौपाई, पृ. १८अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व स्तवन, ग. भाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदिः (-); अंति: समक्षे चित्तमे धरी, अध्याय-९,
गाथा-१६७, (पू.वि. गाथा-१६२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. द्वार स्तवन, पृ. १८अ-२४आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-२४ दंडकगर्भित, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सरसति भगवती; अंति: पद्मविजय
गुण गाय, ढाल-६, गाथा-८९. ९६०३४. सिद्धहेमचंद्रशब्दानशासन-स्वोपज्ञ लघवत्ति के आख्यातवत्ति की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-५(५ से ९)=७, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक-१० आ पर रिक्ताक्षर में 'ही' लिखा है., जैदे., (२६४११, २९४७२-८७). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति के आख्यातवृत्ति की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वृधूड वृद्धौ वृध; अंति: (-),
(पू.वि. अध्याय-४ पाद-३ सूत्र-९१ तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९६०३५. (4) जयतिहुणस्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, ६४२६-३४). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण तक है.)
जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे त्रिभुवनवरश्रेष्ठ; अंति: (-). ९६०३६. (#) सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१२(२ से ३,६ से ७,९ से १६)=५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३५-४५). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: (-), (पू.वि. स्त्रीनेत्र लक्षण अपूर्ण तक है व बीच-बीच के
पाठांश नहीं है.)
सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुष स्त्रीना लक्षण; अंति: (-). ९६०३७. (+) दशवैकालिकसूत्र की लघुटीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-३(२,४,११)=१६, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, २४४६५-७५). दशवैकालिकसूत्र-लघुटीका, आ. सुमतिसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति विजितान्यतेजाः०; अंति: (-),
(पू.वि. अध्ययन-९ की टीका अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ९६०३८. (+#) आदिनाथदेशनोद्धार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६x२५-४५).
हाह.)
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