Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 23
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 404
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ www.kobatirth.org ३९१ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. विनयविबुध शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: मीठो मुने लागे रे; अंतिः प्रभुजी पूरो आश रे, गाथा-५. ९८४३६. (+) सत्तभेदी पूजा, संपूर्ण वि. १८६३, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ८ ले स्थल. बीलाडा, प्रले. पं. सोभाचंदमुनि (आचार्यीयागच्छ); पठ. पं. खेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : पूजासत०., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२x१०.५, १३३६). १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: भाव भले भगवंतनी पूजा; अंति: सब लीला सुख साजै, , ढाल- १७. ९८४४४. पार्श्व, ऋषभ व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, जैवे. (२०.५x९.५, १३४३२-३८). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम गौडीपार्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्री गोडी प्रभु पासजी, अंति: जसविजय०जिनराज प्रभुप्यारा, गाथा ११. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: यशविजये० पोष लाल रे, गाथा ५. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: वाचक यस० गुण गाय के, गाथा-५. ९८४४५, (#) षड्दर्शन समुच्चय, संपूर्ण, वि. १८९४, वैशाख शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १०, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५X१०, ७X२५). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा वीरं; अंति: पर्यालोच्य सुबुद्धिभिः, अधिकार - ७, श्लोक ८७. विशेष ९८४४६ (+) दृष्टांतशतक सह वालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण: युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जरो., (२२x९.५, १४X३६-४६). दृष्टांतशतक, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवृषभं सदावृषधरं अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४६ तक है.) दृष्टांतशतक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिम कोइक पुरुष वन मध्ये; अंति: (-). ९८४४७. (+) संघयणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८३६, आषाढ़ कृष्ण, १२, मध्यम, पू. १७, ले. स्थल, श्रीमालपुर, पठ. ग. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २१.५x९.५, १२X३५-३९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति : जा वीरजिण तित्थं, गाथा-४१०. ९८४५०. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८३९, पौष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १४-३ (१,५ से ६) = ११, ले. स्थल. जालोरनगर, पठ. मु. खुबचंद (गुरु मु. जगनाथ); गुपि. मु. जगनाथ (गुरु पं. जसविजय); पं. जसविजय (गुरु पं. प्रीतविजय); पं. प्रीतविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:पक्खीसूत्र. श्रीसंतनाथजी सहाय छे, श्रीबरडाजी सहाय छे., जैदे., (२२.५x९.५, १३x२९-३२). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: समत्तं देवसीयं भणीजासु, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.,' पाठ "दिउवसगुण पडिपुन्नेभारियाए साया" से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९८४५१. (+) विमलरो सलोको व नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण वि. १८३४, मध्यम, पृ. ८. कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५x९.५, ११x२६-३४). सीख्यौ, गाथा- ११२. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. १. पे. नाम. विमलरो सलोको, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण, ले. स्थल. स्याणानगर, प्रले. पं. रामविजय (गुरु पं. हस्तिविजय); गुपि. पं. हस्तिविजय (गुरु पं. भाणविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. विमलमंत्री सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरू वे करजोड अति: मुनी अजितविजैये For Private and Personal Use Only

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