Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 23
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 450
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ नेमिजिनबहुत्तरी स्तवन, मु. मूलचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रथम जनेसर पाये नमु प्रण; अंति: तस घर होवे जयजयकार, गाथा-७३. २. पे. नाम. औपदेशिक पद-काया विषे, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: इस त का कोइ गरब न करणा; अंति: जिनदास०निफल सब ही गमाय रे, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गिना है.) ९९९५३. (+) खंडाजोयण विस्तार, संपूर्ण, वि. १९५५, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २८, ले.स्थल. विंझोवा, प्रले. मु. गणपत सौभाग्य; अन्य. मु. पद्मसुंदर (कवलागच्छ); मु. प्रतापसुंदर (कवलागच्छ),प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हई है-संशोधित., दे., (२१४११, २०४३०-३३). लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जंबूद्वीप तेस्यु; अंति: लवण समुद्र नाम जाणवो. ९९९५४. (#) नेमिनाथनो सलोको, संपूर्ण, वि. १७९१, फाल्गुन कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ५, प्रले. पं. राजसी; पठ. मानसंघ मनोर ठाकुर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४११.५, ११४२८). नेमिजिन सलोको, क. उदयरत्न, मा.ग., पद्य, आदि: सिद्धि बुद्धि दाता; अंति: र न आवे कोइ तस तोलि, गाथा-५७. ९९९५६. अजितशांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९१०, श्रावण शुक्ल, २, शनिवार, मध्यम, पृ. १०-३(१ से ३)=७, ले.स्थल. मुरारछावनिग्राम, प्रले. मु. कुसलसुंदर (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११.५, १२४२५). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अजिय संतिनाहस्स, गाथा-४२, (पू.वि. गाथा-६ से ९९९६०. (+#) ५६३ जीवरां भेदारो थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. श्राव. मुलचंद; अन्य. मु. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जिवरा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२०.५४११, १५४३२). ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंदीये काए; अंति: तिरजं च एवं ३५१ थया छै. ९९९६३. उपधानतप विधि व बिंबप्रवेश विधि, अपूर्ण, वि. १९१९, कार्तिक शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १७-८(३,६,८ से ९,१२ से १३,१५ से १६)=९, कुल पे. २, ले.स्थल. पूनानगर, लिख. ग. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११,१०४२६). १. पे. नाम. उपधानतप विधि, पृ. १अ-१४अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम शुभदिवसइ पोषध; अंति: पवेमि नवकार१ उभो केहे, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं २.पे. नाम. बिंबप्रवेश विधि, पृ. १४अ-१७आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. जिनबिंबप्रवेश विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम उतम सुभ मुहूर्त जोइ; अंति: पांच आंबिल छ नीवी दिन३५, (पू.वि. "थालीमा साथीओ" पाठ से "ए पोसामां उपवास करवो" पाठ तक नहीं है.) ९९९६४. (#) दानशीलतपभावना विशे व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२-१८(१ से १०,१२ से १३,२० से २५)=१४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११, १३४२५). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "वाचफलं प्रीतिकरं"पाठ से "ते फलनो वृक्षने किणे" पाठ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ९९९६५. भुवनदीपक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१.५४११, १२४२३). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११२ अपूर्ण तक है.) ९९९६६ (#) सुषमछत्तीसी, संपूर्ण, वि. २१वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२१४११.५, १०४२६). सुषमछत्रीसी, मु. उदय ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: सुखम भाव तु सुण रे प्राणी; अंति: उदो० कियो ज्ञान विचारजी, गाथा-७२, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गिना है.) ९९९६७. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १५, कुल पे. २, जैदे., (१९x११, ८-१०४१७-२०). For Private and Personal Use Only

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