Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 23
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 473
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: दर्शन जय करो, ढाल १२, गाथा- ११७, (पू. वि. गाथा - ११ अपूर्ण से २८ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. शनैश्वर छंद, पृ. १५-१५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. शनैश्चर छंद, मा.गु., पद्य, आदि छाया नंदन जगिजयो अति (-), (पू.वि. अंत के पाठांश नहीं हैं.) १००३४४ (+) अनुयोगना अर्ध वार्तिक, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ६ प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैदे., 1 ( २२x१०, ३४X१६ ). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगद्वारसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ठप्पा कहतां निस्थाप्यानि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "अवियतकस्स भिक्खुणो क० मानरहित साधु" पाठ तक लिखा है.) १००३६०. जीवविचार प्रकरण सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३, ले. स्थल, वगडीनगर, प्रले. पं. जयंतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: जीवचार०. बा०, जैदे. (२४.५x१०, १२५४४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण भणामि; अंति: रुद्दाओ सु समुदाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसिद्धार्थराजानुं; अंति: माहिथी उद्धरीने कह्युं छे. १००३६२. (+#) आराधना प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. हुंडी: आराधना ०. पत्र०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जै, (२५X१०, ६x२९-३२). पर्वताराधना - गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिउण भणइ एवं भयवं अंति ते सासयं सोक्खं गाधा- ७०. पर्यंताराधना-टबार्थ, मा.गु.. गद्य, आदि: महावीर प्रतई नमस्करी नई अति: पुरुष शाश्वता सौर्य लहई. १००३६३. (+) महावीरविज्ञप्तिद्वात्रिंशिका, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. (२३.५x१०, १०x२६-३५). महावीरविज्ञप्तिद्वात्रिंशिका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., पद्य, वि. १६१९, आदि: श्रीमत्स्वर्गिजनार्च; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २६ अपूर्ण तक है.) १००३६४ (+#) बृहत्संग्रहणी सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. पाठ खंडित है, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें - पंचपाठ-संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२३४१०, ११४४३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिकं अरिहंताई ठिइ अति: (-) (पू.वि. गाथा- २३ अपूर्ण तक 1 , है.) बृहत्संग्रहणी - अवचूरि सं. गद्य, आदि (-); अति: (-). " १००३६५. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. हुंडी : कल्या०., जैदे., ( १७.५x९.५, ९×२१-२५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि अंति कुमुद० प्रपद्येते श्लोक-४४. १००३६७ (+) जंबूद्वीपादिनां बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, दे. (२३४१०, ९३०). " लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडा जोयण वासा पव्वय; अंति: (-), (पू.वि. "१ लाख जो पेठे" पाठ तक है.) १००३६८. जिनरस, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७ जैये. (२३१०, ९-१४x२७-३७) जिन रास, मु. वेणीराम, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: गणपत सारद पय नमी आखु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १६१ अपूर्ण तक लिखा है.) १००३६९ (#) इलाचीकुमार चौपाई व प्रियमेलक चौपाई दानाधिकारे, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ११-५ (१ से ५) ६, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, १५X४६-४९). १. पे. नाम एलाचीकुमर चउपई, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only

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