Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 23
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 428
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४१५ ४. पे. नाम. वेंकटेश्वर कवच, पृ. २२अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं., पे.वि. हुंडी:वेंकट०. सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. "नित्यं यद्विपुलाश्रयं" पाठ से "इंद्राधिष्ठत लोकपाल" पाठ तक व "ॐ नमो नमस्ते" पाठ से "आयुष्यं लभते" पाठ तक है.) ५.पे. नाम. जिनरक्षा स्तोत्र, पृ. ३७अ-३८आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., पे.वि. हंडी:जिनर०. सं., पद्य, आदि: सर्वातिशयसंपूर्णान; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१४ अपूर्ण तक है.) ६. पे. नाम. सत्तरसय स्तोत्र, पृ. ४१अ-४२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:सत्तर०. तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेय, गाथा-१४, (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण से है.) ७. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, पृ. ४२अ-४२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) ९९३८१. (+#) संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १७९५, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१२४७, ८x१८-२०). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरूं; अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-७४. ९९३८२ (4) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२-१०(१ से ८,१०,१८)=१२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक-१०७ से १२० भी है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (११.५४७.५,११४२५-२८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९८ अपूर्ण से ११० अपूर्ण तक, गाथा-१२३ अपूर्ण से २०८ अपूर्ण तक व गाथा-२१९ अपूर्ण से २६७ अपूर्ण तक है.) ९९३९३. (+) पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७-८(१ से ३,५ से ७,१४ से १५)=९, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (१३.५४७.५, ८x१५). १. पे. नाम. अज्ञातजैन पद्य कृति, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से १३ अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. णमोथुणं स्तवन, पृ. ८अ-९अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.. णमोत्थुणं गीत, मु. विनयचंद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: विनय० पिता तुम मायो, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. जै.क. भूधरदास, पुहि., पद्य, आदि: ऐसी समझ कै सिरधुर ऐसी समझ; अंति: ऐसो नफा रहै नहि मूल, गाथा-४. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १०अ-१३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: पाप पछाडे नरक में रमत; अंति: (-), (पू.वि. "तिलतेलेन माधव अॅसिझामणीरा" पाठांश तक है.) ५. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १६अ-१६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. महावीरजिन स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सासणना नायक सांभलो, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-५ से है.) ६. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १६आ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ९९३९७. (+#) स्तुतिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रावण शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. १०, ले.स्थल. पिंडवाडा, प्रले. मु. अमरविजय (गुरु पं. मेघविजय गणि); गुपि.पं. मेघविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (८८५) लेखण उर मस डबडी, (१३७५) न दोसो दियते आत्मा, जैदे., (११X८, ८x१३). १. पे. नाम. पंचतीर्थंकर स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. २. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. For Private and Personal Use Only

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