Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 23
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 434
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ ४२१ ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वर्तमान चोवीसी; अंतिः सदा जिणचंदसुर ए, ढाल-५, गाथा-२३. ४२. पे. नाम. त्रैलोक्यशाश्वत चैत्यप्रतिमा प्रमाण स्तव, पृ. ३८आ-४३अ, संपूर्ण. शाश्वतजिन प्रतिमा स्तवन, मु. नयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ१अजितरसंभव३ सदा अभिनंद; अंति: नयरंग० कमला भोगवइ, गाथा-४१. ४३. पे. नाम. पार्श्वजिन लघु स्तवन, पृ. ४३अ-४३आ, संपूर्ण. म. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पारस सरस कृपारस प; अंतिः सुख साधन साधनमो भणइ जयतसी, गाथा-५. ४४. पे. नाम. द्वीतीय सूत्रकृतांगस्थ निरूपित वर्धमान स्तुति, पृ. ४३आ-४५आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. पुण्यप्रधान गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नमै पाय मुनिरायज सु हाथ ज; अंति: आपो पह संपो अचलठाण, गाथा-२१. ४५. पे. नाम. सुमतिजिन चौतीसातिसय स्तवन, पृ. ४५आ-४७आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिसर प्रणमु सुधै मनै; अंति: ___जिनचंद०पाय प्रणमै अमरसी, गाथा-१७. ४६. पे. नाम. विसविहरमाणजिन स्तवन, पृ. ४८अ-५१अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वांद मन सुध वैहरमाण; अंति: धरमसी०धरी ध्रमसी नमे, ढाल-३, गाथा-३६. ४७. पे. नाम, चतुर्दशगुणस्थानवृद्ध स्तवन, पृ. ५१अ-५४आ, संपूर्ण.. समतिजिन स्तवन-१४ गणस्थानविचारगर्भित, म. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति; अंति: सांनिधि पाय प्रणमै धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४. ४८. पे. नाम. चतुर्विंसति जिनायुर्दाय स्तवन, पृ. ५४आ-५६अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-आयचतुर्विधसंघसंख्यागर्भित, म. रंगविनय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव प्रणमं; अंति: रंग० प्रणमें हित घणे, गाथा-१३. ४९. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिनंदेह प्रमाणनिरूपणानिवृद्धि स्तवन, पृ. ५६अ-५७अ, संपूर्ण. २४ जिनदेहमान स्तवन, मु. रंगविनय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं ऋषभ जिनेसर; अंति: रंग श्रीरंगविनेपभणै मनरंग, गाथा-१३. ५०. पे. नाम. अठावीसलब्धिस्तवन, पृ. ५७अ-५९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुं प्रथम जिणेसर; अंति: प्रगट ज्ञान प्रकास ए, ढाल-३, गाथा-२५. ५१. पे. नाम. चतुर्विंशतिदंडक विचार सूचक स्तवन, पृ. ५९आ-६२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ५२. पे. नाम. ८४ आशातना स्तवन, पृ. ६२आ-६३आ, संपूर्ण. उपा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: जयि जयि जिन पास जगत्र धणी; अंति: (-), गाथा-१८, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१८ अपूर्ण तक लिखा है.) ५३. पे. नाम, थूलभद्रकोस्यानो नवरस, पृ. ६४अ-७२आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: उदयरतन० सहु फल्या रे, ढाल-९, गाथा-७४. ५४. पे. नाम, संखलाबध स्तवन, पृ. ७२आ-७३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-श्रृंखलाबंध, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: आदीश्वर आदि करि ध्या; अंति: महोपभणै घणै हरख धरी सदा, गाथा-११. For Private and Personal Use Only

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