Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 23
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 425
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुगुण स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जंदीसय सुगुरु मुहकमलं, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) १०. पे. नाम, जयकेसरीसूरि गुण स्तुति, पृ. ६४आ-६५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जयकेसरीसूरि गुरुगुण स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: सयलसुरअसुरनरसामिमयसेवीयं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ११. पे. नाम. योगशास्त्र, पृ. ८३अ-९२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-१ श्लोक-७ अपूर्ण से प्रकाश-२ श्लोक-८६ अपूर्ण तक है.) ९९१०३. (+#) चतुःशरण प्रकीर्णकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १६८३-१७७९, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. ५, प्रले. आ. पद्मरत्नसूरि (गुरु भट्टा. देवरत्नसूरि); गुपि. भट्टा. देवरत्नसरि; पठ. श्राव. हरीचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्री पार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४९, १०४२०). १. पे. नाम. चोसरण, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चोसरण. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३. २.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ६अ-९आ, संपूर्ण, वि. १६८३, ?, फाल्गुन शुक्ल, १४, शुक्रवार, पे.वि. हुंडी:चउसजीव. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. ३. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ९आ-१४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चोसन०जी०. ___आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. ४. पे. नाम, सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १४अ-१६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सक०. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: श्रीवीर भद्रं दिशः, श्लोक-२९. ५. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १६अ-१७आ, संपूर्ण, वि. १७७९, माघ शुक्ल, १, ले.स्थल. सीरोहिनगर, पे.वि. हुंडी:शांति. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूर श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ९९१०६. (+#) नवस्मरण व लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७.५४८.५, ९-१२x२४-२७). १. पे. नाम, नवस्मरण-स्मरण ५, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. नवकार मंत्र, उवसग्गहर, संतिकर, तिजयपहुत्त व नमिऊण स्तोत्र है.) २. पे. नाम, लघुशांति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांति निशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ९९१११. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७-२१(१ से २१)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (१६.५४१०, ९४२१). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति स्तव गाथा-६ अपूर्ण से ३८ अपूर्ण तक है.) ९९१२३. (+#) पच्चीसी, विनती व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४३, पौष शुक्ल, ३, जीर्ण, पृ. ८३-५(३५ से ३९)-७८, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१५.५४१०, ११४२०-२३). १.पे. नाम. राजुलपचीसी आदि पदादि संग्रह, पृ. १अ-३४आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः पत्र व पत्रांक भाग खंडित होने से पाठ अस्त-व्यस्त है. अतः राजुलपचीसी के अलावा अन्य कृतियाँ भी इसमें समाहित है. राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम हि समरूं; अंति: न सब संघ को मंगल करे, गाथा-२६, (वि. इसके साथ-साथ ज्ञानपचीसी, उपदेशपचीसी, सोल सुपना, ११प्रतिमा पद व आध्यात्मिक पदादि संकलित है.) २.पे. नाम. साधारणजिन विनती, पृ. ४०अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only

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