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जीव
भाषाटीकासहित.
विचार
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(मोत्थ) नागरमोथा, (वत्थुला) बथुआ, (थेग) एक किस्मका कन्द, (पलंका) पालका-शाकविशेष ॥९॥ (कोमलफलं च सर्व ) सब तरहके कोमल फल-जिनमें बीज पैदा न हुये हों, (गूढ सिराई सिणाइ पत्ताई) जिनकी नसें प्रकट न हुई हों, वे, तथा सन आदिके पत्ते, (थोहरि) थूहर, (कुंआरि) कुवारपाठो, (गुग्गुलि) गुग्गुल, (गलोय) गिलोय-गुर्च, (पमुहाइ) आदि, (छिन्नरुहा) छिन्नरुह-काटनेपर भी ऊगनेवाली कुछ वनस्पतियाँ ॥१०॥ __ भावार्थ-आलू , सूरन, मूलीका कन्द, अङ्कुर, नये कोमल पत्ते, और फुल्लि जो कि बासी अन्नमें पाँच रंग की पैदा | होती है और सेवाल, वर्षा ऋतुमें पैदा होनेवाली छत्राकार वनस्पति, अद्रक, हल्दी, कचूंक, गाजर, नागरमोथा, बथुआ, थेग नामक कन्द, पालको, जिनमें बीज पैदा न हुये हों, ऐसे कोमल फल, जिनमें नसें प्रकट न हुई हों, वे,
और सन आदिके पत्ते, थूहर, घीकुवार, गुग्गुल तथा काटनेपर वोह देनेसे ऊगनेवाली गुर्च नीबगिलोय आदि वन स्पतियाँ, ये सब साधारण-वनस्पतिकाय कहलाते हैं, इनको अनन्तकाय और बादर निगोदके जीव भी कहते हैं. यहाँ यह समझना चाहिये कि ये सब गीली वनस्पतियाँ ही सजीव होती हैं, सूखी नहीं. इच्चाइणो अणेगे, हवंति भेया अणंतकायाणं । तेसिं परिजाणणत्थं, लक्खणमेयं सुए भणियं ॥११॥
(इच्चाइणो) इत्यादि, (अणेगे) अनेक (भेया) भेद, (अणंतकायाणं) अनन्तकाय जीवोंके, (हवंति) हैं, (तेसिं) उनके, (परिजाणणत्थं) अच्छी तरह जाननेके लिये, (सुए) श्रुतमें-शास्त्र में, (एयं) यह (लक्खणं) लक्षण (भणियं) कहा है ॥११॥
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