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जीव-अजीव
उत्तर--जानने का गुण चेतना का है, जड़ का नहीं। चेतना का जब तक पूर्ण विकास नहीं हो जाता तब तक वह जिस विषय पर ध्यान देती है उसे ही जान सकती है, दूसरे को नहीं। यह लब्धि और उपयोग का आधार है। चेतन को जो ज्ञान करने की क्षमता या योग्यता प्राप्त होती है, वह लब्धि-इन्द्रिय है। इस योग्यता की प्राप्ति होने पर भी यह बात नहीं कि हम निरंतर उस विषय का ज्ञान करते रहें। जिस समय जिस इन्द्रिय को उपयोग में लाएं उस समय उसके द्वारा ज्ञान कर सकते हैं-यह उपयोग इन्द्रिय है।
इंद्रिय-ज्ञान स्वतंत्र नहीं है, उसे अपने विषय की जानकारी में पौद्गलिक इन्द्रियों का सहयोग लेना पड़ता है। जानने की क्षमता होने पर भी यदि आंख का गोला विकृत हो जाए तो चक्षु-इंद्रिय अपने विषय का ज्ञान नहीं कर सकती। अतः निर्वृत्ति-इन्द्रिय की भी आवश्यकता जानी जाती है। निर्वृत्ति के होते हुए भी कभी-कभी इंद्रिय अपने विषय को ग्रहण नहीं कर सकती। अतः जाना जाता है कि निर्वृत्ति के सिवाय एक और भी शक्ति है, जो जानने में उपकार करती है। वह उपकरण-इंद्रिय है। निर्वृत्ति और उपकरण-इन्द्रिय ज्ञान के साधन हैं, लब्धि ज्ञान की शक्ति है और उपयोग उस शक्ति का कार्य-रूप में परिणमन है। ये चारों मिलकर अपने-अपने विषय का ज्ञान कर सकती हैं, एक-दो-तीन नहीं।'
इन पांच इन्द्रियों के अतिरिक्त एक और भी इन्द्रिय है, जिसे मन कहते हैं। मन ज्ञान का साधन है, पर स्पर्शन आदि की तरह बाह्य साधन न होकर
आंतरिक साधन है, अतः उसे अंतःकरण भी कहते है। मन का विषय बाह्य इन्द्रियों की तरह परिमित नहीं है। बाह्य-इंद्रियां केवल मूर्त पदार्थों को ग्रहण करती हैं और वह भी अंश रूप से। परन्तु मन मूर्त-अमूर्त सभी पदार्थों को ग्रहण करता है और वह भी अनेक रूप से। मन का काम विचार करने का है। वह सभी विषयों में विकास-योग्यता के अनुसार विचार कर सकता है। वह
१. इस विषय में अन्य दर्शनों का मन्तव्य कुछ भिन्न है। वे मानते हैं कि इन्द्रियां स्वयं जड़ हैं, किंत मन के संयोग से ज्ञान करती है। इस प्रश्न का जैन दर्शन यों समाधान करता है जो दृश्यमान बाहय इन्द्रियां हैं, वे जड़ हैं, किन्तु उनकी सहायता से जो ज्ञान करने वाली शक्ति वह जड़ नहीं है, जो स्वयं चेतन नहीं होता वह किसी के सहयोग से भी ज्ञान नहीं कर सकता। यदि जड़ वस्तु में भी संयोग से ज्ञान-शक्ति आ जाए तब तो जड़ और चेतन में अत्यन्ताभाव '(त्रिकालवर्ती विरोध) ही नहीं रह पाता। अतः कहा जा सकता है कि जो जानती हैं वे इन्द्रियां चेतन हैं, जड़ नहीं।
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