Book Title: Jiva Ajiva
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 129
________________ १२० जीव-अजीव हैं पर निकट आने पर वे ऐसे प्रतीत नहीं होते। दूर से आकाश जमीन को छूता हुआ दीखता है, परन्तु पास आने पर ऐसा नहीं। जो लोग केवल एक प्रत्यक्ष प्रमाण ही मानते हैं, उनकी मान्यता है कि स्पर्श, रस, रूप, गंध, शब्द आदि इन्द्रिय के विषय-भूत पदार्थ हैं, उनसे भिन्न कोई अमूर्त पदार्थ नहीं है। अतः प्रत्यक्ष के सिवाय अन्य किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। किन्तु जब आकाश के अस्तित्व का प्रश्न सामने आता है तब वे असमंजस में पड़ जाते हैं। आकाश या उसके समान दूसरा कोई आश्रय देने वाला द्रव्य मानना ही होता है और वह दृष्टिगम्य नहीं होता, अतः उसकी जानकारी के लिए प्रत्यक्ष के सिवाय अनुमान आदि प्रमाण मानने की जरूरत हो ही जाती है। आकाश लोक तथा अलोक-दोनों में व्याप्त है। लोक-आकाश के प्रदेश असंख्य हैं। उसका परिमाण चौदह रज्जु है। रज्जु का अर्थ एक कल्पना के द्वारा समझाया जाता है। एक व्यक्ति एक निमेष में एक लाख योजन की गति करता है। इस प्रकार की शीघ्र गति से छह महीने में वह जितने क्षेत्र का अवगाहन करता है उतने क्षेत्र को एक रज्जु कहते हैं अथवा असंख्य योजन जितने क्षेत्र को रज्जु कहते हैं। लोकाकाश की तुलना धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और एक आत्मा के प्रदेश के परिमाण से की जाती है। धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय के असंख्यात प्रदेश हैं और एक-एक आकाश-प्रदेश पर उनका-एक-एक प्रदेश फैला हुआ है। एक आत्मा के प्रदेश भी असंख्य होते हैं। केवली-समुद्घात के समय लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर आत्मा का एक-एक प्रदेश व्याप्त हो जाता है। __ आकाश का दूसरा भाग, जिसमें आकाश के सिवाय कुछ नहीं है, उसका नाम अलोक-आकाश है। यह लोक को चारों तरफ से घेरे हुए है और अनन्त ४. काल मुहूर्त, दिन, रात, पक्ष, मास आदि काल-व्यवहार सिर्फ मनुष्य-लोक में ही होता है, उसके बाहर नहीं । मनुष्य-लोक के बाहर अगर कोई काल-व्यवहार करने वाला हो और ऐसा व्यवहार करे तो वह मनुष्य-लोक के प्रसिद्ध व्यवहार के अनुसार ही करेगा। काल-व्यवहार सूर्य, चन्द्रमा आदि ज्योतिष्कों की गति पर ही निर्भर करता है। सिर्फ मनुष्य लोक के ज्योतिष्क ही गति क्रिया करते हैं, अन्य ज्योतिष्क गति-क्रिया नहीं करते। काल-विभाग ज्योतिष्कों की विशिष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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