Book Title: Jiva Ajiva
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 155
________________ जीव-अजीव सामायिक और छेदोपस्थाप्य चारित्र छठे से नौवें गुणस्थान तक होते हैं। परिहार विशुद्धि चारित्र-परिहार का अर्थ है-विशुद्धि की विशिष्ट साधना । इस विशुद्धिमय चारित्र का नाम परिहार-विशुद्धि है। इस चारित्र में परिहार नाम की तपस्या की जाती है। नौ मुनि मिलकर इस चारित्र की आराधना में अठारह महीनों तक कठोर तपस्या करते हैं। प्रथम छह महीनों में चार साधु तपस्या करते हैं। चार साधु उनकी सेवा करते हैं। एक साधु को आचार्य चुन लिया जाता है। दूसरे छह महीनों में जो चार साधु सेवा करते थे, वे तपस्या करते हैं और जो तपस्या करते थे, वे सेवा करते हैं। आचार्य वही रहता है। तीसरे छह महीनों में आचार्य पद धारण करने वाला तपस्या करता है और अवशिष्ट आठ में से किसी एक को आचार्य पद पर नियुक्त कर देते हैं और बाकी के सात सेवा-रत रहते हैं। तपस्या का विधान क्रमांक काल जघन्य मध्यम उत्कृष्ट १. ग्रीष्मकाल में उपवास बेला तेला २. शीतकाल में बेला तेला ३. वर्षाकाल में तेला पंचोला' चोला चोला यह चारित्र सातवें और छठे गुणस्थान में होता है। सूक्ष्म-सम्पराय चारित्र-जिस अवस्था में क्रोध, मान और माया का उपशम व क्षय हो जाता है, केवल सूक्ष्म लोभ का अंश विद्यमान रहता है, उस समुज्ज्वल अवस्था में सूक्ष्म-सम्पराय नामक चारित्र प्राप्त होता है। यथाख्यात चारित्र-जिस अवस्था में मोह सर्वथा उपशांत या क्षीण होता है, उसे यथाख्यात चारित्र कहते हैं। इसे वीतराग चारित्र भी कहा जा सकता है। इसमें पाप-कर्म का लगना सर्वथा बन्द हो जाता है। इस चारित्र के अधिकारी दो प्रकार के मुनि होते हैं-उपशांत मोह वाले तथा क्षीण मोह वाले। उपशांत मोह वाले मुनि उसी भव में मोक्ष नहीं जा सकते । क्षीण मोह वाले मुनि उसी भव में मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। १. बेला-दो दिन तक लगातार उपवास। २. तेला-तीन दिन तक लगातार उपवास। ३. चोला-चार दिन तक लगातार उपवास। ४. पंचोला-पांच दिन तक लगातार उपवास। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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