Book Title: Jiva Ajiva
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 126
________________ बीसवां बोल गुण से वह चलने में उदासीन सहायक है। प्रश्न -- गतिशील पदार्थ कितने हैं? उत्तर -- गतिशील पदार्थ दो हैं--जीव और पुद्गल । प्रश्न- गति-शक्ति धर्मास्तिकाय में विद्यमान है या जीव और पुद्गल में? उत्तर -- गति-शक्ति जीव और पुद्गल में है, धर्मास्तिकाय में नहीं । धर्मास्तिकाय केवल जीव और पुद्गल के हलन चलन में सहकारी कारण है, जैसे -- मछलियों के लिए जल । उसका उपादान कारण (आत्मीयकारण) जीव और पुद्गल ही हैं। धर्मास्तिकाय के बिना जीव व पुद्गल गमनागमन नहीं कर सकते, अतः धर्मास्तिकाय का अस्तित्व अनिवार्य है। तीनों ही काल में जीव तथा पुद्गल की गमन-क्रया विद्यमान रहती है, अतः उसका त्रिकाल वर्ती होना भी आवश्यक है । जीव और पुद्गल सम्पूर्ण लोक में गति करते हैं, अतः धर्मास्तिकाय का विश्व व्यापी होना भी अनिवार्य है। कृष्ण आदि पांच वर्ण उसमें नहीं हैं, अतः उसका अरूपित्व भी निश्चित है। गुण के बिना वस्तु का अस्तित्व टिक नहीं सकता। धर्मास्तिकाय वस्तु है, अतः उसमें गति - क्रिया सहायक गुण विद्यमान रहना भी जरूरी है। अलोक में धर्मास्तिकाय का अभाव है, अतः जीव और पुद्गल वहां नहीं जा सकते। २. अधर्मास्तिकाय अधर्म का अर्थ है- जो स्थिति में उदासीन सहायक है, वह द्रव्य । अस्तिकाय का अर्थ है-प्रदेश- समूह । द्रव्य से अधर्मास्तिकाय एक द्रव्य है । ११७ क्षेत्र से वह समस्त विश्व में व्यापक है । काल से वह अनादि और अनन्त है । भाव से वह अरूपी है। गुण से वह स्थिर रहने में उदासीन सहायक है। प्रश्न- स्थिर पदार्थ कितने हैं । उत्तर -- सभी पदार्थ स्थिर हैं। जीव और पुद्गल के सिवाय और सब पदार्थ तो स्थिर हैं ही, परन्तु जीव और पुद्गल में भी निरन्तर गति नहीं होती । वे कभी गति करते हैं, कभी स्थिर रहते हैं । चलना और स्थिर होना - यह क्रम बराबर चालू रहता है। प्रश्न- अधर्मास्तिकाय गतिशील जीव तथा पुद्गल के स्थिर रहने में ही सहायक होता है या स्वभावतः स्थिर रहने वाले पदार्थों का भी सहायक होता है? उत्तर--अधर्मास्तिकाय स्वभावतः स्थिर रहने वाले पदार्थों के स्थिर रहने में सहायक नहीं होता है। वह सहायक होता है न्वन गतिशील पदार्थों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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