________________
नौवां बोल
४३
अवधिदर्शन और केवलदर्शन। १. चक्षुःदर्शन-चक्षुःदर्शनावरणीय कर्म का क्षयोपशम होने पर चक्षु के द्वारा पदार्थों का जो सामान्य बोध होता है, उसे चक्षुःदर्शन कहते हैं। २. अचक्षु-दर्शन-अचक्षुःदर्शनावरणीय-कर्म का क्षयोपशम होने पर चक्षु के सिवाय शेष स्पर्शन, रसन, प्राण, श्रोत्रेन्द्रिय तथा मन के द्वारा पदार्थों का जो सामान्य बोध होता है, उसे अचक्षुदर्शन कहते हैं। ३. अवधिःदर्शन-अवधिदर्शनावरणीय-कर्म का क्षयोपशम होने पर इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना रूपी द्रव्य का जो सामान्य बोध होता है, उसे अवधिदर्शन कहते हैं। यह अवधिज्ञान का सहवर्ती है।। ४. केवल दर्शन-केवलदर्शनावरणीय-कर्म का क्षय होने पर आत्मा को जो सर्व पदार्थों का सामान्य बोध होता है, उसे केवलदर्शन कहते हैं। यह केवलज्ञान का सहवर्ती है।
प्रश्न--चक्षुःदर्शन और अचक्षुःदर्शन न कहकर केवल इन्द्रिय-दर्शन कह देते तो एक ही में पांचों इन्द्रियों का समावेश हो जाता । यदि यह अभिप्रेत नहीं था तो पांचों इन्द्रियों के पांच भेद क्यों नहीं किए गए?
उत्तर--दर्शन की व्यवस्था वस्तु के सामान्य और विशेष--इन दो स्वभावों के आधार पर हुई है। चक्षुःदर्शन यद्यपि सामान्य बोध है फिर भी अन्य इन्द्रियों की अपेक्षा वह अधिक विश्वस्त है। इसमें विशेषता की कुछ झलक आ जाती है, उसी को ध्यान में रखकर चक्षुःदर्शन को अन्य इंद्रियों से भिन्न रखा गया
प्रश्न--मनःपर्यवज्ञान की भांति मनःपर्यवदर्शन क्यों नहीं?
उत्तर--मनःपर्यवज्ञान सिर्फ मनोगत पर्यायों का ही ज्ञान कराता है। उसका विषय मानसिक अवस्थाएं हैं, जो विशेष ही हैं। अतः सामान्य बोध अर्थात् मनःपर्यवदर्शन नहीं हो सकता ।
प्रश्न--इन्द्रियज्ञान, चक्षुः-अचक्षुः-दर्शन, इन्द्रिय-पर्याप्ति और इंद्रियप्राण में क्या अन्तर है?
उत्तर--इन्द्रियज्ञान दो प्रकार का होता है-साकार और अनाकार। ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से जो ज्ञान प्राप्त होता है, वह साकार होता है और दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम से जो बोध होता है, वह अनाकार होता है। पर्याय (अवस्था) सहित द्रव्य का जो ज्ञान किया जाता है, वह साकार होता है और पर्याय-रहित द्रव्य का जो ज्ञान किया जाता है, वह अनाकार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org