Book Title: Jiva Ajiva
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 66
________________ दसवां बोल आयुष्यकर्म की उदीरणा है । उदीरणा का अर्थ है नियत काल से उदय में आने वाले कर्म को विशेष प्रयत्न के द्वारा उस (नियतकाल ) से पूर्व उदय में लाकर भोग लेना। जो-जो आकस्मिक घटनाएं घटती हैं, उनमें उदीरणा का मुख्य हाथ है । परिस्थिति एक प्रकार में कर्म का फल है। जिसके जैसे कर्म किये हुए होते हैं उसको वैसी ही अवस्था में अपना जीवन बिताना पड़ता है । परिस्थिति का जो परिवर्तन होता है उसका कारण तो कर्म ही है। एक बड़े घराने में जन्मता है और आखिर धूल फांकता हुआ मरता है। एक गरीब घर में जन्मता है और आखिर सारे विश्व पर शासन करता है। किसी के जीवन का पूर्वार्द्ध सुखमय है और किसी के जीवन का उत्तरार्द्ध । कोई धनी देश में भी गरीब है और कोई गरीब देश में धन-कुबेर । धन है, पर शरीर स्वस्थ नहीं । शरीर स्वस्थ है, पर धन नहीं । इन सब परिस्थितियों का परिवर्तन कर्म से ही होता है । इसलिए कर्म ही मुख्य है । कर्म ही परिस्थिति को बदलने वाला है । कर्म का प्रभाव अचूक है। यदि पूर्व में बुरे कर्म बंधे हैं और वे नियत हैं, तो वर्तमान में धर्मपरायण होने पर भी वे अपना फल देंगे और यदि अच्छे कर्म बंधे हुए हैं और नियत हैं, तो वर्तमान में पापी होने पर भी वे अपना फल देंगे ही। इस प्रसंग में एक बात और जानने की है--कर्म पर भरोसा रखकर उद्योग को भूल जाने वाली बात जैन- दर्शन ने कभी नही सिखाई। जैन- दृष्टि से जैसा कर्म है, वैसा ही उद्योग । कर्म की मुख्यता नहीं, उद्योग का विरोध नहीं, किन्तु दोनों का समन्वय है। आत्म-विकास के लिए इसमें विशाल क्षेत्र है । कर्मवाद का सिद्धान्त जीवन में आशा, उत्साह और स्फूर्ति का संचार करता है। उस पर पूर्ण विश्वास होने के बाद निराशा, अनुत्साह और आलस्य तो रह ही नहीं सकते । सुख-दुःख के झोंके आत्मा को विचलित नहीं कर सकते। कर्म ही आत्मा को जन्म-मरण के चक्र में घुमाता है । हमारी वर्तमान अवस्था हमारे ही पूर्वकृत कर्मों का फल है। मनुष्य जो कुछ पाता है, वह उसी की बोयी हुई खेती है। 'हम अपने विचारों और वासनाओं के अनुरूप अपना भाग्य- निर्माण करते हैं। आज हम जो कुछ हैं वह हमारे ही पूर्वजन्मों का फल है। हमारी वर्तमान अवस्था के लिए ईश्वर जिम्मेवार नहीं। हम स्वयं अपनी इस अवस्था के लिए जिम्मेवार हैं- यदि इस तथ्य को, आत्मा के इस गुप्त भेद को हम अच्छी तरह समझ लें तो हम अपने भविष्य का ऐसा सुन्दर निर्माण कर सकते Jain Education International ५७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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