Book Title: Jinvijay Muni Abhinandan Granth
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jinvijayji Samman Samiti Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 376
________________ श्री गौड़ी पार्श्वनाथ तीर्थ : यक्ष ने मेघा से कहा कि काजलशाह तुम्हें ले जाने के लिए पा रहा है । उसके मन में तुम्हारी घात है । तुम वहां मत जाना । वह तुम्हें दूध में जहर पिलाकर मारने का षडयंत्र कर रहा है। यक्ष के जाने के बाद काजलशाह मेघा के पास आया और नाना प्रकार से प्रेम प्रदर्शित कर हठ करके अपने गांव मुदेसर ले गया । विवाह और जातिभोज का काम निपट जाने पर काजल ने अपनी स्त्री को संकेत कर दिया कि जब हम दोनों एक साथ जीमेंगे, तुम दूध में विष मिलाकर दे देना। स्त्री ने कहा-मेघा को मत मारिये, अपने कुल में कलंक लगेगा । स्त्री ने लाख समझाया पर मन और मोती टूटने पर नहीं मिलता । काजल और मेघा दोनों साथ जीमने बैठे । स्त्री ने दूध लाकर दिया। काजल ने कहा मुझे दूध पीने की सौगन्ध है । मेघा ने दूध पिया और पीते ही शरीर में विष फैल गया और उसका देहान्त हो गया। सर्वत्र काजल की अपकीर्ति हुई । मिरणादे और महियो, मेहरा विलाप करने लगे। मेघा की अंत्येष्टि करके काजल ने अपनी बहिन को समझा बुझाकर शान्त किया। काजलशाह ने जिनालय को पूरा कराया । जब शिखर स्थिर न हया तो काजलशाह चिन्तित हो गया। दूसरी बार भी शिखर गिर गया तो यक्षराज ने महिनो को स्वप्न में कहा कि तुम शिखर चढ़ाना, स्थिर रहेगा। मेघा के हत्यारे काजल को यश कैसे मिलेगा? यक्षराज की आज्ञानुसार महियो ने शिखर चढ़ाया संघ पाया, 'प्रतिष्ठा हई, चमत्कारी तीर्थ की सर्वत्र मान्यता हुई। गौड़ी पार्श्वनाथ के प्रगटन व सवारी का चित्र लगा हुआ है । परिचय प्रस्तुत है- . गौड़ी पार्श्वनाथजी-यह चित्र ३१४३० इन्च माप का है । इसके मध्य में सात सूड वाले हौदा युक्त श्वेत गजराज पर भगवान की प्रतिमाजी विराजमान है । पास में प्रकट होने का उल्लेख है। उभय पक्ष में नरनारी वृन्द अपने हाथ में कलश व पूजन सामग्री लिए उपस्थित है। चित्र के ऊपरी भाग में मेघ घटाओं से ऊपर छः विमान हैं जो अश्वमुखी, गजमुखी हंसमुखी आदि विभिन्न रूपों मेंहैं और २-२ देव उनमें बैठे हुए पुष्प वर्षा कर रहे हैं । चित्र के निम्न भाग में तम्बूडेरा-कनातें लगी हुई हैं। इस चित्र के परिचय स्वरूप बोर्ड में निम्नांकित अभिलेख है। "गौडी पार्श्वनाथ स्वामी प्रगट हा तिसका भाव" "कलम गणेश मुसवर की मुकाम जयपुर शहर कलकत्ता में बनी।" "सम्वत १९२५ मिति कार्तिक सूदि १५ वार शनि श्रीमाल ज्ञाती फोफलिया रीघुलाल तत् पुत्र शिखरचन्द्रन कारापितम" श्री नेमविजय कृत श्री गौड़ी पार्श्वनाथ स्तवन भाव धरी भजना करु, आपे अविचल मत । लघुता थी गुरुता कर, तू सारद सरसत्ति ॥ १॥ मुझ ऊपर माया धरो, देजो दोलत दान । गुण गावु गोड़ी तणा, भवे भवे भगवान् ॥२॥ धवल धींग गौड़ी धरणी, सह को आवै संग ।। महिमदा वादें मोटको, नारंगो नवरंग ॥ ३ ॥ प्रतिमा त्रणे पास नी, प्रगटी पाटण मांहि । भगत करे जे भविजनां, कूरण ते कहिवाय ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462