Book Title: Jinvijay Muni Abhinandan Granth
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jinvijayji Samman Samiti Jaipur

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Page 409
________________ डॉ. प्रभाकर शास्त्री [ २६६ नागौर विजय तक श्री प्रजवनजी जीवित थे। यहां जो श्लोक दिया गया है, उसमें श्री मलयसीजी के उत्तराधिकार प्राप्ति की पुष्टि करता है। यहां संवत् की समानता तो है परन्तु तिथि की समानता नहीं है। इतिहास में उनके शासन प्रारम्भ करने की तिथि ज्येष्ठ कृष्णा ३ है जब कि इस काव्य में माघ शुक्लाह है । संवत् के विषय में श्री हनुमान शर्मा ने 'जयपुर के इतिहास' (नाथावतों का इतिहास) पृष्ठ-२५ पर लिखा है ___(१) संवत् ११५१ में अपने पिता (पजोनजी) के उत्तराधिकारी हुए ।....(३) कन्नौज युद्ध के एक वर्ष बाद मलसी जी ने नागौर गढ विजय किया और गुजरात मेवाड़ एवं मांडू आदि में अपनी वीरता दिखलाई।" 'जयपुर की वंशावली' में भी ज्येष्ठ वदि ३ सं० ११५१ मिलता है। इस काव्य में यह श्लोक तिथि का संकेत करता है "वर्ष विक्रमतो यतीन्द्रशरचन्द्र प्रमेये मधौ ११५१ शुक्ले धूनित धन्वनि ध्वनदलिज्ये जे, नवम्या तिथी। लब्ध्वा राज्यमसौ विधातुमधिकं वीरश्चमत्कारिधायुद्धाय प्रबलैर्बलैरनुगतो गर्जत्पुरा निर्ययो" ॥७४७।। अग्रिम पद्य में मलैसीजी का गुजरात विजय का उल्लेख है "तस्मिन् भूपवरे विभुज्य विभवान् पुण्येन याते दिवं 'मल्लेषी' पदमाप तस्य तनयो ज्यायानजय्योरिभिः । जित्वा गुर्जरराजमानिचतुरो निजित्य भूपान् पराम् बाहूजित भूरिकीर्ति कनको भुङ्कस्म भौमं सुखम्" ।।७४८।। इनके ६ पत्नियां तथा ३२ पुत्र हुए थे । 'जयपुर के इतिहास' में श्री हनुमान शर्मा ने लिखा है(४) "इनके १ मनलदे (खींचणजी) राव अतल की, २ महिमादे (सोलखणी) राव जीमल [ की, ४ बडगूजरजी, ५ चौहागजी, ६ दूसरा चौहाणजी-ये ६ राणी थी। इनके (१) बीजल, (२) बालो (३) सीवरण (४) जेतल (५) तोलो (६) सारंग (७) सहसो (८) हरे (९) नंद (१०) बाधो (११) घासी (१२) अरसी (१३) नरसी (१४) खेतसी (१५) गांगो (१६) गोतल (१७) अरजन (१८) जालो (१६) बीसल (२०) जोगो (२१) जगराम (२२) ग्यानो (२३) बीरम (२४) भोजो (२५) बेगो (२६) चांचो (२७) पोहथ (२८) जनार्दन (२६) द्र दो (३०) गबूदेवो (३१) लूणो और (३२) रतनसिंह ये बत्तीस बेटे थे।" 'इतिहास राजस्थान' में लिखा है कि मलसी के ३२ पुत्रों में से अधिकांश तो कछवाहे रहे और कुछ ने दूसरी जाति ग्रहण करलो ।' (पृ० ६२) इस काव्य में भी इनका उल्लेख संकेत में है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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