Book Title: Jinvijay Muni Abhinandan Granth
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jinvijayji Samman Samiti Jaipur

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Page 416
________________ पृथ्वीराज विजय-एक ऐतिहासिक महाकाव्य राजा राज्यसुखं चतुभिरधिका संवत्सराणामसौ भेजे विंशतिमेकविंशति दिनामष्टौ च मासानपि ।।७७६।।" १६ महराज पूर्णमलजी (कार्तिक शु० ११ सं० १५८४ से माघ शु० ५ सं० १५६०) इनके संबन्ध में इतिहास में मतभेद हैं । इतिहास-लेखक श्री हनुमानप्रसाद शर्मा ने लिखा है कि ये १८ भाइयों में एक से बड़े तथा अन्य सबसे छोटे थे। किसी कारणवश महाराज पृथ्वीराज ने इन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया था। इस काव्य में भी इनके लिए कहीं ज्यायान शब्द का प्रयोग नहीं हया है । लिखा है "पृथ्वीराजसमाह्वये नरपतौ याते पदं नाकिनाम् कीनाशाति भयङ्करे भगवतो व्युत्थापनार्हे तिथो । प्रत्येद्य स्तनयोस्य भास्वरवपुः श्री पूर्णमल्लाभिधो राज्यं प्राज्यगुणं गुणरगणितैराय प्रजारजयन् ।।७७७।।" इन्होंने ६ वर्ष २ मास २३ दिन राज्य किया था। इनकी मृत्यु संदिग्ध है। कुछ लोग भीमसिंह (भाई) द्वारा मारे गए थे, ऐसा कहते हैं, कुछ प्राकृतिक मृत्यु बतलाते हैं। इनकी मृत्यु के पश्चात् इनके पूत्र सुजाजी बालक थे और इसलिये इनके भाई महाराज भीमसिंह गद्दीनशीन हुए। षड़वर्षाणि षडाननोन्नतरुचि नीचीकृतान्यद्य ति द्वौमासौ दिवसानपि श्रु तवतां वर्यस्त्रयोविंशातिम् । भुक्त्वा भौमसमौ सुखं सुखसखौ राजा बुभूबुर्दिवं पूष्पोद्य रनघोजितां जितरिपूः श्री पूर्णमल्लो ययौ ।।७७८।।" २०. महाराज भीमसिंहजी (माघ शु. ५ सं १५६० से श्रावण शु. १५ सं. १५६३) यहां पहुंच कर नियमित चला आ रहा कछवाहों का इतिहास अपने नियमों से च्युत हो गया। गद्दी पर श्री पूर्णमल के बेटे श्री सूजासिंह नहीं बैठे। उनके भाई श्री भीमसिंहजी ने संभाली। उनके विषय में इतिहास अभी तक संदिग्ध है । कोई इन्हें पितृहन्ता तथा भ्रातृहन्ता बतलाते हैं। उपलब्ध काव्य का यह अन्तिम पद्य है जिसमें महाराज भीमसिंह को उत्तराधिकार मिलने का वर्णन है "याते तूवरिकासुते सुरपुरं बालासुतो विक्रमी संचक्राम च वैक्रमे बलनिधि ?माङ्ग बारणेन्दुभिः । वर्षे संकलिते सहस्राधिक धी शुक्ले मृडानी तिथौ राज्यं भ्रातुरलंचकार चतुरो भीमोभिधस्स्वैबलः । ७७६।। यावन्मात्र वंशावलियों एवं इतिहास ग्रन्थों में श्री पूर्णमल की निधनतिथि तथा महाराज भीमसिंह की राज्याभिषेक तिथि माघ शु. ५ सं १५६० दी गई है, परन्तु इस काव्य में संवत् तो ठीक है परन्तु मास व तिथि का उल्लेख ठीक नहीं है । 'सहस्य' का अर्थ पौष मास होता है - 'पौधे तैष सहस्यो है।" अमरकोश में लिखा है। 'अधिक धी' शब्द से तात्पर्य यदि एक मास अधिक है तो मास ठीक है । 'मृडानी' तिथि से तात्पर्य पंचमी तो नहीं होता । षष्ठी या एकादशी होता है। एक तिथि का अन्तर कोई महत्वपूर्ण अन्तर नहीं। पद्य में - 'भ्रात रलंचकार' पद इस बात को सिद्ध करता है कि श्री भीमसिंह अपने भाई के उत्तराधिकारी बने थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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