Book Title: Jinvijay Muni Abhinandan Granth
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jinvijayji Samman Samiti Jaipur

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Page 457
________________ ३४७ ] श्री म० स० महेन्दले मात्र सत्य होवाथी उपरना वाक्य नो अर्थ ऋषि सत्यतेज मेलवे छे' एम लेवो जोइये। ऋषि अनत के वीजा लोको मेलवतो नथी, कारण ऐनुए साध्य नथी। प्रा नवा अर्थनी योग्यायोग्यता तपासवा माटे उपनिषदोमां 'सत्यं' अने'जी'ए शब्दो तो बापर के वी रीते करवामां आव्यो छे ए जोवू ईष्ट गणाय । एमांथी ब्रह्म एटलेज अन्तिम सत्य ए सिद्धान्त उपनिषदो मां अनेक ठेकाणे मूकवामां आव्यो छे। छांदोग्यमां उद्दालक प्रारुपीए श्वेतकेतु ने जे प्रात्मक्य नी शीखामण पापी तेमां आ बधी चराचर सृष्टिी नो जे प्रात्मा तेनेज सत्य कह्य छे, रसयः एष अणिमा, ऐ तदा त्वमिदं सर्वम् तत् सत्यं, स आत्मा तत् त्वम् आमे श्वेतकेता (६,८-१६) ए शीखामरण अापता पहेला प्रारुपीए श्वेतकेतू ने जे प्रश्न पूछयो तेनो थोडो उकेल करती बखते पण 'सत्य शब्द मूलभूत सत्य ए अर्थ माँ वपरायो छे (एकेन मृत्पिन्डेन सर्व मृन्मयं विज्ञातं स्यात् वाचारम्मणं विकारो नामधेयं मृत्तिका इत्येव सत्यम् । "लोहम् इत्येव सत्यम् । ...."विगेरे ६.१) । एज उपनिषदमां पागल ब्रह्मनु नाम सत्य एवू स्पष्ट रीते का छे (तस्य हवा एतस्य ब्रह्मणो नाम सत्यम् इति । ८,३) जे मुण्डक मां "सत्यमेव जयते' ए वाक्य छे ते मां पण ब्रह्म प्रानु स्वरूप कहेती बखते 'अक्षर पुरुष एज सत्य' एम कह्य छ (योनाक्षर पुरुष वेद सत्य प्रोवाच तां तत्वतो ब्रह्मविद्याम् । १.२.१३ तेमज, तद् एनद् अक्षर ब्रह्म ... तद् एतत् सत्यं, तद् अमृतं ... (२.२.२.) एजे पाखरो सत्य कां तो ब्रह्म तेना पर आदित्य रूप सोनानु ढांका होई ते दुर कर्या पछी सत्य जोई शकाय छे एन केटलाक ठेकाणे वर्णन छ (हिरण्यमयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् । तत् त्वं पूषन् अपावृणु सत्य धर्मपि दृष्टये ।। ईशा० १५ वृह० ५१५) । 'सत्यमेव जयते' ए बाक्यमां सत्यने कर्ता तरीके लेतां पहेलां एक बात ध्यान माँ राखवी जोइए ते एके सत्य ए ब्रह्मनु एक अभिधान होवा थी उपनिषद मां सत्यने कयांय कर्तृत्व प्रापवामां अाव्यु नथी । वृहदारण्यक माँ एक ठेकाणे (५.५.१.) सृष्टी ना उत्पत्ति नु वर्णन करती वखते अावा वाक्यो छेः प्रापः एव इदम् अग्रे पासुः । ता: पापः सत्यं असृजन्त, सत्यं ब्रह्म. ब्रह्म प्रजापति प्रजापति देवान्... । प्रा वाक्यो उपर उपर जोतां पहेला तो एम लागे के अहियां सत्य ने ब्रह्म उत्पन्न करवानु कर्तृत्व प्रापवामां आव्यूछे पण वस्तुस्थिति तेवी नथी । आना पहेला नां खड मां (५.४) सत्य एटलेज जे ब्रह्म ते 'प्रथमज' होवानु का छे (सयोर एतं महद्यक्षं प्रथमजं वेद सत्यं ब्रह्म इति......) या पर थी ए स्पष्ट थशे के उपरनां वाक्यो मां 'सत्यं ब्रह्म ए शब्दो मां सामानाधिकरण्य छ। अने तेनो अर्थ पाणी ए सत्य उत्पन्न कयु"। ए सत्य एटलो ब्रह्म, ब्रह्मा ए प्रजापति, प्रजापति ए देवो ने उत्पन्न कर्या एवो ले वानो छ। उपनिषदो मां बधेज ठेकाणे सत्य एटले ब्रह्म एवो अर्थ होय छे एनूसूचन करवानो हेतु न थी। केटलेक ठेकारणे सत्य एटले 'साचु' बोल' एवो व्यावहारिक अर्थ पण होय छे दाखला तरीके वेदाभ्यास पूरोथाय पछी गुरु ए शिष्य ने जे उपदेश करवाने होय छे तेमां 'सत्यंवद । .. सत्यान्न प्रमदितव्यम्' (तति १.१११) एवा वाक्यो छे छांदोग्य माँ (१.२,३.) पण का छे 'तस्मात् तया (X वाचा) उभय वदनि सत्यं च अनृतम् द, कोई के चोरी करी छे के नहीं ए बाबत मां चुकादो प्रापवा माटे तप्त परथु नो जे प्रख्यात दाखलो छ तेमां पण आवा प्रसंगे जेना हाथ दझाय ते अनृताभि संधी अने जेनो हाथ न दझाय ते सत्याभि संधी एवो निर्णय को छे (छांदोग्य ६-६). आँखे जोएल ते सत्य काने सांभले ल नहीं: प्रा सत्य अत्मवार व्यावहारिक सत्य होई ते बस प्रतिष्ठित होय छ। एम वृहदारण्यक कहे छ। चक्ष सत्यम ।.."तस्माद पद इदानी द्वौ विवध्यानौ एया ताम्, अहम् प्रदर्शन, अहम् अश्रौषम् इति, यो एवं ब्रयात् अहम् प्रदर्शम् इति, तस्मै एव श्रद्दध्याय (५.१४.४) ब्रह्म मेलबवाना साधनो माँ ज्य रे सत्यनी गणत्री होय छे त्यारे त्यापरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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