Book Title: Jinvijay Muni Abhinandan Granth
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jinvijayji Samman Samiti Jaipur

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Page 398
________________ २८८ ] Substance- Country made Paper. Size - 6x9 inches. Folio – 12 ( Marked by M. M. Harprasad Shastry, vice President of Asiatic Society, Calcutta. Lines 9 to 12 in a page. Character - Modern Nagar. Appearance ——Solid, written length wise & on the one side. The former owner of the manuscript thought the 7th leaf to be the first on which he wrote पृथ्वीराज विजय - एक ऐतिहासिक महाकाव्य "गोकुल प्रशादस्येदं पुस्तकं पृथ्वीराज विजय खण्डित् १२ पत्राणि । " इस ग्रन्थ में ६२४ वें पद्य से ७७६ पद्य तक उपलब्ध हैं । इनमें आमेर के कछवाह शासकों का इतिहास है । इतिहास के आधार पर हम इसकी आलोचना प्रस्तुत करते हैं । ग्रन्थ के नाम का औचित्य विचारणीय है । लेखक का नाम कहीं भी नहीं आया है । इसे ऐतिहासिक महाकाव्य न कहकर केवल काव्य की ही संज्ञा देंगे। जो १२ पत्र उपलब्ध हैं, वे अपने में पूर्ण हैं । कहीं कहीं पर प्रशुद्ध अवश्य हैं और दुर्वाच्य भी । उपलब्ध १५६ पद्यों में २० शासकों का वर्णन है । इस ग्रन्थ का प्रथम श्लोक ( उपलब्ध ६२४ वां इस प्रकार है- 11 " स श्रीमानुपग्रह्य हर्षदकृति स्तत्पारिवर्ह ततो विस्मेरीकृत सर्व लोक निवहो रम्यैरनेकैः प्रौदार्यादिभिराविधाय विधिवद् वैवाहिकां स्नान् विधीन स्तेनैनु व्रजता समं कतिपय प्रत्याययौ पद्धतिम्" ।। ६२४ ।। यह महाराज सोढदेव का वर्णन है । महाराज सोढदेव ने यादव कुल की राजकुमारी से विवाह किया था, जिसके गर्भ से 'दुलहराय' उत्पन्न हुए थे । ( जयपुर का इतिहास - पं० हनुमान शर्मा चौमू - पृष्ठ, १३-१४) जैसाकि हम विवेचन कर चुके हैं, इनके पिता का नाम महाराज ईशदेव था । इनका देहावसान संवत् १०२३ में हुआ था । इस पद्य में उल्लेख न होने पर भी यह कहा जा सकता है कि यह पद्य महाराज सोढदेव से संबद्ध है, क्योंकि इसके बाद इनके पुत्र दुलहराय की उत्पत्ति वरित है । इनके विवाह तथा शृङ्गार का विवेचन है । इनके इन्हीं सोढदेव के विषय में कुछ पद्य हैं, जिनमें विवाह से इनकी माता बहुत प्रसन्न हुई थीं । पद्य हैं Jain Education International "धीमान् नीतिविशारदो भूपालेन्द्र कन्दर्पाति विदमित प्रोन्नद्ध दस्युव्रजो विभाविता खिलविधिर्वाग्भी विदिभ्यत्खलः ॥ मनोहरो नवद्वार जहृत्करो राजा रञ्जित सर्वलोक निवहो मातुवितेने मुदम् ॥४२६ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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