Book Title: Jinvijay Muni Abhinandan Granth
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jinvijayji Samman Samiti Jaipur

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Page 397
________________ पृथ्वीराज विजय-एक ऐतिहासिक महाकाव्य आमेर-जयपुर के शासक सूर्य वंशी कछावाह हैं, जिनका संबन्ध भगवान श्रीराम के पुत्र कुश के साथ जोड़ा जाता है। इतिहास में इन्हें "कच्छपघात" के नाम से भी लिखा है। सं० १०८८ के एक शिलालेख से, जो देवकुण्ड नामक स्थान पर मिला था, विदित होता है कि ६७७ ई० (संवत् १०३४) में वहां पर 'वज्रदामन्' नामक एक प्रतापी राजा राज्य करता था। इसने कन्नौज के राजा विजयपाल परिहार पर विजय प्राप्त कर ग्वालियर राज्य को अपने अधिकार में कर लिया था। वज्रदामन के पुत्र का नाम मङ्गलराज था । श्री मङ्गलराज के छोटे पुत्र सुमित्र और उनके क्रमशः मधु ब्रह्म, कहान, देवानीक ईश्वरीसिंह (ईशदेव) तथा सोढदेव हुए। महाराज सोढदेव ही प्रथम व्यक्ति हैं जिन्होंने ढूढाड प्रदेश पर अपना अधिकार किया था । इस कच्छवंशीय शासकों की वंशावली के मूल पुरुष हैं-महाराज ईशदेव । ये ग्वालियर के शासक थे जिसे तत्कालीन इतिहास में 'गोपाद्रि' कहते हैं। इस पर उनके भगिनी पुत्र-श्री जयसिंह तवर का शासन हो गया था, जिसके संबन्ध में अनेक मतभेद हैं। प्राचीन रिकार्ड से यही सिद्ध है कि महाराज सोढदेव को अपने पिता का राज्य नहीं मिला। इन्होंने करोली की तरफ अमेठी नामक स्थान पर शासन किया था। उनके पुत्र का नाम 'दूलहराय' था । इनका विवाह मोरां के राजा रालणसी (रालणसिंह चौहान की पुत्री 'सुजानकुवरी' के साथ सम्पन्न हुआ था। इनकी सहायता से ही श्री दूलहराय ने 'द्यौसा' (दौसा) पर अधिकार किया और वहां के शासक मीणों एवं बजगूजरों को युद्ध में परास्त किया । इनको 'दूल्हा' भी कहते थे और इसी को अंग्रेजी में लिखने की भ्रान्ति से राजस्थान के इतिहासकार कर्नल जेम्स टाड ने इन्हें 'ढोला' के रूप में प्रस्तुत किया हैं । इन्होंने 'जमवाय माता' का मन्दिर बनाया था, जब 'माची' पर विजय प्राप्त की थी। यह मन्दिर माची से ३ कोस पर आज भी विद्यमान है । इनके पुत्र का नाम कोकिल जी था, जिन्होंने आमेर बसाया था-'काकिल जी आमेर बसायो'-(मुहता नैणसीरी ख्यात जयपुर भाग) । तभी से सवाई जयसिंह द्वितीय तक प्रामेर इन कछावाहों की राजधानी रही। श्री जयसिंह ने जयपुर बसाकर राजधानी में परिवर्तन किया था। जयपुर के कछवाहों की वंशावली बहुत विस्तृत है, उसकी यहाँ आवश्यकता भी नहीं। जिस काव्य का विवेचन कर रहे हैं, उसमें यह वंशावली उपलब्ध है, इससे साहित्यिक प्रमाण भी उपलब्ध हो जाता है । जैसाकि इसका नाम है, श्री पृथ्वीराज १८वीं पीढी में हुए थे । यह इतिहास से प्रमाणित तथ्य है। एशियाटिक सोसायटी, कलकत्त में संगृहीत हस्तलिखित ग्रन्थों में इतिहास विषयक एक ग्रन्थ आमेरजयपुर के शासकों से संबद्ध भी है। इसका नाम 'पृथ्वीराज-विजय है। यह क्रमांक १०४३४ पर उपलब्ध है। प्रकाशित सूचीपत्र में इसकी विगत इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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