Book Title: Jinvijay Muni Abhinandan Granth
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jinvijayji Samman Samiti Jaipur

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Page 405
________________ डॉ. प्रभाकर शास्त्री [ २९५ श्रीसीताराम भट्ट ने जयवंश महाकाव्य में लिखा है कि ग्वालियर के राजा द्वारा बुलाये जाने पर दाक्षिणात्यों से युद्ध करते हुए ही महाराज दुलहराय की मृत्यु हुई थी। पतिर्गवालेर पदस्य वार्तामश्रावद्द तमुखेन : राज्ञे । इदं पदं ते बलिनो ग्रहीतुकामाः प्रसहये ति हि दाक्षिणात्याः ।। हेतोरतस्त्वं समुपेहि शीघ्र तेभ्यः पदं स्वं परिपालय त्वम् । वयं न तादृग्बलिनो यतःस्युः पराजितास्मे विमुखाभवेयुः ।। गत्वा गवालेरमसौ नरेन्द्रसौर्दाक्षिणात्य बैलिभिस्त्वनन्तः । शास्त्रास्त्र विद्यानिपुणः ससेनैरयुद्ध दोर्दण्डपराक्रमेण ।।३।। स छिन्नभिन्नापधनो घनोऽपि पेपीय्यमानश्रु तशोणितोस्त्रः । लेभे महेन्द्रादवनीमहेन्द्रः सत्कारमहत्तममाशु नाकं ॥३६।। - (द्वितीय सर्ग-३१ से ३६ श्लोक पृष्ठ-६/१०) 'मानवंश महाकाव्य' में श्री सूर्यनारायणजी शास्त्री व्याकरणाचार्य ने लिखा है 'दुर्गे नवीने निवसन् प्रवीरो भुज्जान आसीद् विविधान् सुभोगान । प्रथैकदापत्रमवाप दीनं ग्वालेरराजस्य जयाभिधस्य ।।६।। लेखीऽभवत् तत्र तु राजपत्रे यद् दाक्षिणात्या रिपव: सुधीराः । हतु पतन्ते मम राज्यमेतत् संत्रायतामेत्य भवान् सुशीघ्रम् ।।७।। लब्ध्वव संदेशमिम स वीरः स्वदत्तराज्यं परिशंक्य नष्टम । तत्त्रारणहेतोः स्वयमेव गत्वा ग्वालेरराजून तरसा जंघान ।।८।। जातो जयी यद्यपि दुलरायरे वीराङ्कशस्त्रक्षतपूर्ण देहः । स्वल्पदिनैरेव जगाम धाम तद् यत्र वीरेतरसं प्रवेश्यम् || (मानवंश- तृतीय सर्ग- संस्कृतरत्नाकर वर्ष ८ संचिका ३ पृ० ८८) इस 'पृथ्वीराज महाकाव्य' में यह वर्णन इन पद्यों से प्रस्तुत किया गया है । इसमें भी यही बताया गया है कि राजा दुलहराय की मृत्यु ग्वालियर में ही हुई थी । अतः यही बात प्रमाणित है "राजन् दक्षिणदिक्पतेर्बलवतो योधाश्चमूचारिणो राज्यं जातु जिघृक्षवो नपशवो गर्जन्ति संपित्सवः ।। भूपालेशकदिनोऽपि भवतो भूपालसिंहस्य तत् नीतिहरवधीयता यदहिते सावज्ञतैवाज्ञता ॥१५॥ श्रुत्वा विश्र तपौरुषो नृपवरो दूतस्यवाचं रुषो वेगं संशमयान्निषोद्गत मिति प्रत्युक्तिमुच्चर्जगी। क्षात्रं धर्ममिहोज्झतामितिवचो भीत्य न च क्षत्रिया वीक्ष्यन्ते निजजीवितक्षयमपि क्षात्रकरक्षापराः ।।१६।। "प्रापत्य प्रणिहत्य यान्ति विमुखादूरादरं खादिव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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