Book Title: Jinsahastranamstotram Author(s): Jinsenacharya, Pramila Jain Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan View full book textPage 3
________________ भगवान नहीं हो सकते। परन्तु आचार्यदेव ने अर्थ किया है कि जन्म, जरा एवं मृत्यु रूपी तीन शत्रुओं का नाश किया अतः आप त्रिपुरारि हैं। इस प्रकार सर्व नामों का जैन शास्त्रानुसार अर्थ करके जिनधर्म का प्रकाशन किया है। जैनाचार्यों के हृदय में जैनधर्म के प्रति अतिगाढ़ भक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी। इसलिए उन्होंने जिनधर्म का प्रकाशन करने के लिए स्तुतिपरक ग्रन्थों की रचना की। जैसे समन्तभद्राचार्य ने न्याय के बड़े-बड़े ग्रन्थ लिखे युक्त्यनुशासन, देवागम स्तोत्र, स्तुति विद्या, स्वयंभू स्तोत्र आदि भक्ति ग्रन्थ हैं परन्तु वस्तु-सिद्धि के लिए न्याय के बेजोड़ ग्रन्थ हैं, जिनके समक्ष प्रमेय कमल मार्तण्ड आदि न्याय ग्रन्थ भी अधूरे प्रतीत होते हैं। उसी प्रकार जिनसेन आचार्य का जिनसहस्रनाम स्तोत्र न्याय-व्याकरण और शब्दकोश का एक खजाना है। इस पर श्री अमरकीर्ति तथा श्रुतसागर आचार्य ने विस्तृत टीका लिखी है जिसमें व्याकरण के अनुसार शब्दों के अनेक अर्थ करके समझाया है। शब्दों की सिद्धि के लिए पाणिनी, शकटायन, जैनेन्द्र प्रक्रिया, कातंत्र रूपमाला, जैनेन्द्र कोश आदि अनेक ग्रन्थों के द्वारा शब्दों को सिद्ध किया है। जिस प्रकार एक तत्त्वार्थसूत्र को पढ़लेने पर अनेक शास्त्रों का ज्ञान हो जाता है उसी प्रकार जिनसहस्रनाम का पठन करने पर तत्त्वों का ज्ञान और व्याकरण ___ का ज्ञान सहज ही हो जाता है। भक्तिपूर्वक इसके पठन से अनेक कार्यों की सिद्धि होती है। उक्तं च इदं स्तोत्रमनुस्मृत्य पूतो भवति भाक्तिकः, यः संपाठं पठत्येनं स स्यात्कल्याणभाजनम्। ततः सदेदं पुण्यार्थी पुमान्पठति पुण्यधी: पौरूहुतीं श्रियं प्राप्तुं परमामभिलाषुकः ।। भव्य प्राणी स्वकीय परिणामों की विशुद्धि के लिए प्रात:काल उठकर __ इस महास्तोत्र का पठन-मनन करते हैं। अपने परिणामों की विशुद्धि के लिए बालब्रह्मचारिणी डॉ. कुमारी प्रमिला __ जैन ने इसका अर्थ करने का साहस किया है, वह सराहनीय है। मेरा हृदयPage Navigation
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