Book Title: Jinendra Archana
Author(s): Akhil Bansal
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 110
________________ इसी दिवस गौतम स्वामी को, सन्ध्या केवलज्ञान हुआ। केवलज्ञान लक्ष्मी पाई, पद सर्वज्ञ महान हुआ।। देवों ने अति हर्षित होकर, रत्न-ज्योति का किया प्रकाश। हुई दीपमाला द्विगुणित, आनन्द हुआ छाया उल्लास ।। प्रभु के चरणाम्बुज दर्शन कर, हो जाता मन अति पावन । परम पूज्य निर्वाणभूमि शुभ, पावापुर है मन-भावन ।। अखिल जगत में दीपावली, त्यौहार मनाया जाता है। महावीर निर्वाण महोत्सव, धूम मचाता आता है। हे प्रभु! महावीर जिन स्वामी, गुण अनन्त के हो धामी। भरतक्षेत्र के अन्तिम तीर्थंकर, जिनराज विश्वनामी ।। मेरी केवल एक विनय है, मोक्ष-लक्ष्मी मुझे मिले । भौतिक लक्ष्मी के चक्कर में, मेरी श्रद्धा नहीं हिले ।। भव-भव जन्म-मरण के चक्कर, मैंने पाये हैं इतने । जितने रजकण इस भूतल पर, पाये हैं प्रभु दुख उतने ।। अवसर आज अपूर्व मिला है, शरण आपकी पाई है। भेदज्ञान की बात सुनी है, तो निज की सुधि आई है ।। अब मैं कहीं नहीं जाऊँगा, जब तक मोक्ष नहीं पाऊँ । दो आशीर्वाद हे स्वामी! नित्य नये मंगल गाऊँ ।। ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां निर्वाणकल्याणकप्राप्ताय श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय जयमालापूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा। (दोहा) दीपमालिका पर्व पर, महावीर उर धार । भावसहित जो पूजते, पाते सौख्य अपार ।। (पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्) श्रुतपंचमी पूजन (श्री राजमलजी पवैया कृत) स्याद्वादमय द्वादशांगयुत माँ जिनवाणी कल्याणी। जो भी शरण हृदय से लेता हो जाता केवलज्ञानी ।। जय जय जय हितकारी शिवसुखकारी माता जय जय जय। कृपा तुम्हारी से ही होता भेदज्ञान का सूर्य उदय ।। श्री धरसेनाचार्य कृपा से मिला परम जिनश्रुत का ज्ञान । भूतबली मुनि पुष्पदन्त ने षट्खण्डागम रचा महान ।। अंकलेश्वर में ग्रंथराज यह पूर्ण हुआ था आज के दिन । जिनवाणी लिपिबद्ध हुई थी पावन परम आज के दिन ।। ज्येष्ठशुक्ल पंचमी दिवस जिनश्रुत का जय-जयकार हुआ। श्रुतपंचमी पर्व पर श्री जिनवाणी का अवतार हुआ।। ॐ ह्रीं श्री परमश्रुतषट्खण्डागमाय ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री परमश्रुतषट्खण्डागमाय ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं श्री परमश्रुतषट्खण्डागमाय ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । शुद्ध स्वानुभव जल धारा से यह जीवन पवित्र कर लूँ। साम्यभाव पीयूष पान कर जन्म-जरामय दुख हर लूँ।। श्रुतपंचमी पर्व शुभ उत्तम जिन श्रुत को वंदन कर लूँ। षट्खण्डागम धवल जयधवल महाधवल पूजन कर लूँ। ॐ ह्रीं श्री परमश्रुतषट्खण्डागमाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। शुद्ध स्वानुभव का उत्तम पावन चन्दन चर्चित कर लूँ। भव दावानल के ज्वालामय अघसंताप ताप हर लूँ।।श्रुत. ।। ॐ ह्रीं श्री परमश्रुतषट्खण्डागमाय संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। शुद्ध स्वानुभव के परमोत्तम अक्षत शुद्ध हृदय धर लूँ। परम शुद्ध चिद्रूप शक्ति से अनुपम अक्षय पद वर लूँ।।श्रुत.।। ॐ ह्रीं श्री परमश्रुतषट्खण्डागमाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। जिनेन्द्र अर्चना 10000000000२१९ जिनेन्द्र अर्चना 110

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