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श्री सम्मेदशिखरजी का अर्घ्य जल गन्धाक्षत फूल सु नेवज लीजिए। दीप धूप फल लेकर अर्घ चढाइये ।। पूजों शिखर सम्मेद सु मन वच काय
श्री पावापुरजी का अर्घ्य कार्तिक वदि मावस गये शेष कर्म हनि मोक्ष । पावापुरतें वीर जिन जजूं चरण गुण धोक ।। महावीर जिन सिद्ध भये पावापुर से जोय । मन वच तन कर पूजहूँ शिखर नमूं पर दोय ।।
नरकादिक दुख टरै अचल पद पाय
श्री कैलाशगिरिजी का अर्घ्य माघ असित चउदश विधि सैन, हनि अघाति पाई िश व द न सुर नर खग कैलाश सुथान, पू0 मैं पूजूं धर ध्यान ।। ऋषभ देव जिन सिध भये, गिर कैलाश से जोय । मन वच तन कर पूजहूँ शिखर नमूं पर सोय ।।
श्री सोनागिरिजी का अर्घ्य नंगानंग कुँवर द्वै राजकुमारजू, मुक्ति गये सोनागिर सों हितकारजू ।। साढे पाँच करोड़ भये शिवराज जी, पूजों मन वच काय लहों सुखसागरजी ।। तिनके चरण जजों मैं मन वच काय के, भवदधि उतरो पार शरण मैं आय के ।।
श्री गिरनारजी का अर्घ्य अष्ट द्रव्य का अर्घ संजोयो, घण्टा नांद बजाई। गीत नृत्य कर जजों 'जवाहर', आनन्द हर्ष बधाई ।। जम्बू द्वीप भरत आरज में, सोरठ देश सूहाई। सेसावन के निकट अचल तह, नेमिनाथ शिव पाई ।।
श्री नयनागिरिजी का अर्घ्य पावन परम सुहावनों, गिरि रेशिन्दी अनूप । जजहूँ मोद उद धरि अति, कर त्रिकरण शुचिरूप ।। शुचि अमृत आदि समग्र, सजि वसु द्रव्य प्रिया। धारों त्रिजगत पति अग्र, धर वर भक्त हिया ।।
श्री चम्पापुरजी का अर्घ्य वासुपूज्य जिनकी छबी, अरुन वरन अविकार । देहु सुमति विनती, करुं ध्याऊँ भवदधितार ।। वासुपूज्य जिन सिद्ध, भये चम्पापुर से जेह। मन वच तन कर पूज हूँ, शिखर सम्मेद यजेह ।।
श्री द्रोणगिरिजी का अर्घ्य फलहोड़ी बडगांव अनूप, पश्चिम दिशा द्रोणगिरि रूप। गुरूदत्तादि मुनिश्वर जहाँ, मुक्ति गये बन्दो नित वहाँ ।।
जल सु चन्दन अक्षत लीजिए, पुष्प धर नैवेद्य गनीजिये। जिनेन्द्र अर्चना 1000
जिनेन्द्र अर्चना
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