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भक्ति खण्ड देवभक्ति
जगत के देव सब देखे, कोई रागी कोई द्वेषी। किसी के हाथ आयुध है, किसी को नार भाती है।।२।। जगत के देव हठग्राही, कुनय के पक्षपाती हैं। तू ही सुनय का है वेत्ता, वचन तेरे अघाती हैं ।।३।। मुझे कुछ चाह नहीं जग की, यही है चाह स्वामी जी। जपूँ तुम नाम की माला, जो मेरे काम आती है।।४।। तुम्हारी छवि निरख स्वामी, निजातम लौ लगी मेरे। यही लौ पार कर देगी, जो भक्तों को सुहाती है।।५।।
एक तुम्ही आधार हो जग में, अय मेरे भगवान ।
कि तुम-सा और नहीं बलवान ।। सँभल न पाया गोते खाया, तुम बिन हो हैरान ।
कि तुम-सा और नहीं बलवान ।।टेक ।। आया समय बड़ा सुखकारी, आतम-बोध कला विस्तारी। मैं चेतन, तन वस्तु न्यारी, स्वयं चराचर झलकी सारी।। निज अन्तर में ज्योति ज्ञान की अक्षयनिधि महान ।।
कि तुम-सा और नहीं बलवान ।।१।। दुनिया में इक शरण जिनंदा, पाप-पुण्य का बुरा ये फंदा। मैं शिवभूप रूप सुखकंदा, ज्ञाता-दृष्टा तुम-सा बंदा ।। मुझ कारज के कारण तुम हो, और नहीं मतिमान ।।
कि तुम-सा और नहीं बलवान ।।२।। सहज स्वभाव भाव दरशाऊँ , पर परिणति से चित्त हटाऊँ। पुनि-पुनि जग में जन्म न पाऊँ, सिद्धसमान स्वयं बन जाऊँ।। चिदानन्द चैतन्य प्रभु का है 'सौभाग्य' प्रधान ।।
कि तुम-सा और नहीं बलवान ||३||
मेरे मन-मन्दिर में आन, पधारो महावीर भगवान ।।टेक।। भगवन तुम आनन्द सरोवर, रूप तुम्हारा महा मनोहर । निशि-दिन रहे तुम्हारा ध्यान, पधारो महावीर भगवान ।।१।। सुर किन्नर गणधर गुण गाते, योगी तेरा ध्यान लगाते। गाते सब तेरा यशगान, पधारो महावीर भगवान ।।२।। जो तेरी शरणागत आया, तूने उसको पार लगाया। तुम हो दयानिधि भगवान, पधारो महावीर भगवान ।।३।। भगत जनों के कष्ट निवारें, आप तरें हमको भी तारें। कीजे हमको आप समान, पधारो महावीर भगवान ।।४।। आये हैं हम शरण तिहारी, भक्ति हो स्वीकार हमारी। तुम हो करुणा दयानिधान, पधारो महावीर भगवान ।।५।। रोम-रोम पर तेज तुम्हारा, भू-मण्डल तुमसे उजियारा । रवि-शशि तुम से ज्योतिर्मान, पधारो महावीर भगवान ।।६।।
तिहारे ध्यान की मूरत, अजब छवि को दिखाती है। विषय की वासना तज कर, निजातम लौ लगाती है।।टेक।। तेरे दर्शन से हे स्वामी! लखा है रूप मैं तेरा। तनँ कब राग तन-धन का, ये सब मेरे विजाती हैं।॥१॥
00000000000 जिनेन्द्र अर्चना
निरखो अंग-अंग जिनवर के, जिनसे झलके शान्ति अपार ।।टेक।। चरण-कमल जिनवर कहें, घूमा सब संसार । पर क्षणभंगुर जगत में, निज आत्मतत्त्व ही सार ।।
यातें पद्मासन विराजे जिनवर, झलके शान्ति अपार ।।१।। जिनेन्द्र अर्चना /000000
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