Book Title: Jinabhashita 2008 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 9
________________ वोट से चुनकर भेजा है। अब जब कि वह कह रहे । कितने लोग राजा से रंक और ईमानदार से बेईमान बन हैं कि मैं सच्चा भारतीय हूँ और इसी के साथ दूसरे | चुके हैं, इसका कोई विचार ही नहीं करता। भारतीयों का शोषण कर रहा है, विनाश कर रहा है, आज हम आजाद हैं। हमारा देश आजाद है, हमारे तो हम अपना बचाव कैसे करें? यदि हम विकल्प पर देश में प्रजातंत्र है। सारे लोग स्वतंत्रता का गुणानुवाद विचार करते हैं, तो बड़ी मुश्किल से कोई अच्छी छविवाला कर रहे हैं। गुणानुवाद करना भी चाहिए। इसी के साथ व्यक्ति मिलता है और ज्यों ही हम उसे चुनकर नेता ज्यों ही १५ अगस्त-स्वतंत्रता दिवस आता है त्यों ही बनाकर संसद या विधान सभा में भेजते हैं कि कुछ | लोग मुगलों, अंग्रेजों की निन्दा करना प्रारंभ कर देते ही दिनों में वह हमारे साथ अपरिचितों जैसा व्यवहार | हैं, किन्तु यह विचार क्यों नहीं आता कि आज जो स्वतंत्र करने लगता है और कल तक जिसे हम अच्छा मान | देश में स्वतंत्र घूम रहे हैं और जिनके कारनामें मुगलों, रहे थे, जो हमारे लिए आदर्श था, जब उसकी सीबीआई अंग्रेजों से भी बुरे और बद से बदतर हैं, उनकी हम जाँच होती है तो आस्तीन का साँप वही निकलता है। | निन्दा करने का साहस क्यों नहीं जुटा पाते? क्यों उनसे सब से ज्यादा खतरनाक वही सिद्ध होता है। ऐसा कौन | सार्वजनिक रूप से इस्तीफे की माँग नहीं कर पाते? व्यक्ति है, जो राज्य सत्ता का स्वाद चख चुका हो और | आज के सच्चे समाजसेवी कब कल के आतंकवादी अपनी हथेलियों को दूध से धुला बता दे? कोई भी | बन जायेंगे, यह कोई नहीं कह सकता। आज हिंसक, नहीं, सारी की सारी हथेलियाँ या, तो दूसरों के खून | बलात्कारी, चोर, रिश्वतखोर, हत्यारे अनेक नेतागण सिद्ध से लाल हैं, या काले धन या काले कारनामों से काली | हो चुके हैं। कानून से उन्हें सजा मिल चुकी है, किन्तु हैं। यह अलग बात है कि ऊपर से भले ही सुर्ख मेंहदी | कानूनी बारीकियों का सहारा लेकर ही वे बेखौफ घूम लगा रखी हो। रहे हैं। यह स्वतंत्र देश की कैसी न्यायव्यवस्था है? यहाँ मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि इस भौतिक हमारा भारत अध्यात्मप्रधान देश है। यही कारण सत्ता में ऐसा क्या आकर्षण है, जिसके के लिए व्यक्ति | है कि वह पाश्चात्य देशों से अलग दिखाई देता है, किसी का भी खून कर देता है और उसी खून की | किन्तु इस देश में एक आध्यात्मिक साधु को स्वतंत्रताहोली खेल कर अपने आपको पाक-साफ सिद्ध करता | दिवस पर भी कोई ध्वजारोहण के लिए आमंत्रित नहीं है? कभी-कभी तो जो हत्यारा है वही नेता, जिसकी | करेगा। आखिर क्यों? साधु भी तो एक बहुत बड़ी शक्ति हत्या हुई है, उसके परिवार में जाकर घड़ियाली आँसू | है और इन नेताओं को इनसे भी खतरा नजर आता बहाता है, सांत्वना देता है, जाँच और न्याय की बात | है। वे तो यही चाहते हैं कि साधु उनके लिए कुर्सी करता है, टी.वी. पर बयान देता है कि दोषियों को बख्शा | उपलब्ध कराने का साधन बनें। अरे. जब वे भगवान नहीं जायेगा। कैसे कर लेते हैं यह सब अभिनय? क्या को भी नहीं छोड़ते, तो भक्तों को कैसे छोड़ेंगे? आज इनकी आत्मा इन्हें धिक्कारती नहीं है? इन्होंने राजनीति | के राजनेताओं में यह आदर्श है ही नहीं, जो राम और के सेवाधर्म को खून का दरिया बना दिया है और स्वयं, भरत के समय में था कि लो यह गद्दी, इस पर आप तो इसमें तैर ही रहे हैं और चाहते हैं कि दूसरे लोग | बैठो, नहीं इस पर आप बैठो, आज, तो जो जहाँ जिस भी इसमें तैरें, इनका अनुकरण करें। यह अपने आप | कुर्सी पर बैठ जाता है, वहाँ से उतरने का नाम ही को बहुत बड़ा उपकारी, परोपकारी मानते हैं कि देश | नहीं लेता। जब तक यह प्रवृत्ति बनी हुई है, तब तक बड़ा उपकार कर रहा हूँ। देश की बहुत | कोई भी स्वतंत्रता हमारे जीवन में कार्यकारी नहीं बन बड़ी सेवा कर रहा हूँ और इनकी तथाकथित सेवा से | सकती। 'पार्श्वज्योति' जुलाई-अगस्त 2008 से साभार रहिमन लाख भली करो, अगुनी अगुन न जाय। राग सुनत पय-पियत हूँ, साँप सहज धरि खाय॥ रहिमन ओछे नरन सों, बैर भलो न प्रीत। काटे चाटे श्वान के, दुहूँ भाँति विपरीत ॥ - अक्टूबर 2008 जिनभाषित 7 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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