Book Title: Jinabhashita 2008 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 32
________________ नारेली में श्रावक संस्कार शिविर अखिल भारतवर्षीय श्री दिगम्बर जैन ज्ञानोदयतीर्थ । ले सकते थे। क्षेत्र नारेली (अजमेर, राज.) में प.पू. मुनिपुंगव १०८ श्री अपरान्ह ३ बजे से मुनि श्री सुधासागर जी महाराज सुधासागर जी महाराज ससंघ का भव्य ऐतिहासिक चातुर्मास | का मार्मिक दस धर्म पर प्रवचन। हो रहा है। कमेटी द्वारा पूर्व निर्धारित आध्यात्मिक, धार्मिक | | सायं ५ बजे जलपान, पानी, दूध व फल जो भी अनुष्ठानों के साथ पर्वाधिराज पयूषण पर्व के पावन प्रसंग | | शिविरार्थी लेना चाहे। सायं ६ से सामूहिक प्रतिक्रमण, गुरु पर दस दिवसीय 'श्रावक संस्कार शिविर' समायोजित किया | सान्निध्य में उसके पश्चात् गुरु वन्दना, आचार्य भक्ति एवं गया। तत्पश्चात् सामूहिक आरती । संगीत के साथ आरती में भक्तजन १७वें शिविर में भारतवर्ष भर से लगभग नौ सौ | भाव विभोर हो जाते थे। (९००) शिविरार्थियों ने भाग लिया। दिनांक ४.९.२००८ ७.३० बजे 'द्रव्यसंग्रह' पर अलग-अलग ग्रुप के को प्रातः ध्वजारोहण एवं मंगलकलश स्थापना से शुभारम्भ अनुसार अलग-अलग स्थान पर कक्षा लगाई जाती थी। हुआ। इस शिविर के पुण्यार्जव श्रेष्ठी श्री पूरनचन्द्र जी | ६ स्थानों पर छः ग्रुप 'द्रव्यसंग्रह' पर अध्ययन कराते थे। देवेन्द्र कुमार जी सुथनियाँ अजमेर एवं श्रेष्ठी श्री कपूरचंद रात्रि ९ बजे कक्षा समाप्ति के पश्चात् ४५ मिनट तक अध्ययन नाथूलाल जी पल्लीवाल अजमेर ने सातिशय पुाजन किया। में पढ़ाये गये विषय को याद करना आदि। ज्ञातव्य रहे दोनों ही पुण्यार्जकों ने पिछले १४ शिविरों | रात्रि ठीक १० बजे पूर्णतया विश्राम। इस प्रकार में शिविरार्थी बनकर शिविर में दिये जानेवाले संस्कार अर्जित | प्रभात में ३.५० बजे से रात्रि १० बजे तक शिविरार्थी किये, परिणामतः उनके मनोभावों का समादार करते हुए कार्यक्रमानुसार समय के साथ इस प्रकार व्यस्त हो जाता अपार जनसमूह के समक्ष मुनिश्री ने आशीर्वाद दिया। था, मानो घर परिवार आदि सब को छोड़कर चतुर्थकालीन प्राकृतिक मनोहारी छटाओं से परिपूर्ण बहुआयामी आश्रम में मात्र अध्ययन, स्वाध्याय एवं संस्कारित होने आया क्षेत्र परिसर में शिविरार्थियों के आवास आदि की समुचित | हो। व्यवस्था की गई। नव निर्मित विशाल संतशाला में उनके | करुणा के सागर, कृपानिधान, वात्सल्यता की जीती लिये आवास व्यवस्था की गई। जागती मूर्ति प्रातः स्मरणीय गुरुदेव श्री सुधासागर जी महाराज शिविरार्थी ३.५० बजे उठकर सुप्रभात विनय प्रार्थना ने प्रत्येक शिविरार्थी को कुम्हार पद्धति से घट को इस ४ से ४.४५ बजे स्नानादि से निवृत होकर ५ बजे से आदिनाथ प्रकार घड़ दिया कि उस माटी के घड़े से मात्र शीतल मंदिर के प्रागंण में ध्यानकक्षा में शामिल होते थे। जल ही मिलेगा, जो पिपासुओं की प्यास बुझायेगा। प्रत्येक प्रातः ६ बजे से ७.४५ बजे तक विशाल पाण्डाल | शिविरार्थी को इस प्रकार सुसंस्कारित कर देते है कि, उस में गीत, संगीत के साथ सामूहिक जिनपूजा, इससे पूर्व शान्ति- शिक्षा, दीक्षा व जीवन जीने की कला को व्यक्ति जीवन धारा प्रातः ८ बजे से ९.४५ बजे तक शिविरार्थियों को | पर्यन्त कभी भी विस्मरण नहीं कर सकता। गहन अध्ययन प्रशिक्षण। 'द्रव्य संग्रह' की कक्षा स्वयं मुनिश्री शिवरार्थी व्यक्तिगत संकल्प लेकर जाते है कि, जो सुधासागर जी महाराज लेते थे। मुनि श्री के द्वारा इस कक्षा | संस्कार गुरुदेव ने डाले हैं हम आजीवन उन नियमों, व में शिविरार्थी इतना निमग्न एवं केन्द्रित हो जाता था, कि | संयम का परिपालन करेंगे। ऐसा लगता था जैसे सहस्राधिक व्यक्ति मौन होकर मात्र अंत में इस प्रकार के शिविर में व्यक्ति निश्चित श्रवण करते हुए हृदयंगम कर रहे हों।। ही संस्कारित होकर जाता है। देव-शास्त्र-गुरु की सच्ची प्रातः १० बजे आहारचर्या, शिविरार्थी त्यागी व्रतियों | पहचान का सूत्र सीख कर जाता है। यही नहीं पढ़ाये गये की भांति मौन रहकर श्रावक के सादर अनुनय पर उनके | विषयों की परीक्षा लिखित होती है। शिविरार्थियों में यह घर आहार हेतु जाते थे। श्रावकजन शिविरार्थियों को किशनगढ़, | भावना जागृत रहती है कि मैं परीक्षा में अधिक से अधिक नसीराबाद तक ले जाते थे। अंक प्राप्त करूँ। पिछले १७ शिविरों में हजारों व्यक्ति उसके पश्चात प्रतिक्रमण. पढाये गये विषयों का | संस्कारित हए, यह एक बहत बड़ी उपलब्धि है। अध्ययन आदि। मध्यान्ह २ बजे से २.४५ तक 'तत्त्वार्थसूत्र'। प्रस्तुति-भीकमचन्द्र पाटनी, की पूजा होती थी। शिविरार्थी इसमें अर्घसमर्पण हेतु भाग अजमेर 'शिविर परामर्शक' 30 अक्टूबर 2008 जिनभाषित उसका सरमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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