Book Title: Jinabhashita 2007 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 13
________________ काल्पनिक एवं अनैतिहासिक मान लेना न तो न्यायसंगत ही। काल में वर्तमान अफगानिस्तान भी भारतवर्ष का ही अङ्ग है और न उचित ही। भारतवर्ष का प्रारंभिक इतिहास उतना | समझा जाता था। ईरानी लोग सिन्धुनद के उस पार के प्रदेश ही जैन है जितना कि वह अपने आपको वेदों का अनुयायी | को भारत ही समझते थे, इस पार का समस्त प्रदेश उनके कहनेवालों का है।' (वही पृ. 16) इसी विद्वान् तथा डॉ० लिये चिरकाल तक अज्ञात बना रहा। ईरानी भाषा में 'स' को काशीप्रसाद जायसवाल के अनुसार अथर्ववेद आदि में | 'ह' हो जाता है, अतएव वह लोग सिन्धनदी को दरियाए उल्लिखित व्रात्य अथवा अब्राह्मणीय क्षत्रिय जैनधर्म के | हिन्द या हिन्दवी कहते थे। उनका यह सूबा भी हिन्द की अनुयायी थे। (वही पृ.17) डॉ० राधाकृष्णन के अनुसार | सत्रयी (क्षेत्रयी) कहलाता था और उनकी सेना का भी एक जैनधर्म वर्धमान अथवा पार्श्वनाथ के भी बहुत पूर्व प्रचलित | अङ्ग हिन्दी सेना थी। था (वही पृ. 20), तथा यह कि यजुर्वेद में ऋषभ, अजितनाथ ईरानियों के द्वार से ही यूनानियों को सर्वप्रथम इस और अरिष्टनेमि, इन तीर्थङ्करों का नामोल्लेख है, ऋग्वेदादि | देश का ज्ञान हुआ और ईसा पूर्व 326 में सिकन्दर महान् के के यह उल्लेख तमाम, ऋषभादि, विशिष्ट जैन तीर्थङ्करों के आक्रमण द्वारा उसके साथ उनका प्रत्यक्ष सम्पर्क हुआ। ही हैं और भागवत्पुराण से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि यूनानी लोग 'ह' का उच्चारण नहीं कर पाते थे। उन्होंने ऋषभदेव ही जैनधर्म के प्रवर्तक थे (वही, प.41-42)। | | ईरानियों के 'हिन्द' को 'इन्ड' कर दिया। वह हिन्द (सिन्धु) प्रो० पार्जिटर. रहोड. एडकिन्स. ओल्डहम आदि | नदी को 'इन्डस' कहने लगे और उसके तटवर्ती उस हिन्द विद्वानों का मत है कि वैदिक एवं हिन्दू पौराणिक साहित्य | (सिन्धु) प्रदेश या देश को इन्डि या इन्डिका कहने लगे। के असुर, राक्षस आदि जैन ही थे। और डॉ० हरिसत्य। जब सिंधनदी के इस पार के प्रदेश से भट्टाचार्य का कहना है कि जैन और ब्राह्मणीय, दोनों परम्पराओं | तो पूरे भारतदेश को भी वे उसी नाम से पुकारने लगे। रोम के साहित्य के तुलनात्मक अध्ययन से आधुनिकयुग के | देश के निवासियों ने भी यूनानियों का ही अनुकरण किया कतिपय विद्वानों का यह साग्रह मत है कि वैदिकपरम्परा के | और कालान्तर में यूरोप की अन्य सब भाषाओं में भी भारतवर्ष अनुयायियों ने राक्षसों की जो अत्यधिक निन्दा, भर्त्सना की | का सूचन इन्ड, इन्डि, इन्डे, इन्डियेन, इन्डीस, इन्डिया आदि है उसका कारण यही है कि वे जैन थे, यह कि बाल्मीकि | विभिन्न रूपों में हुआ जो सब एक ही मूल यूनानी शब्द की रामायण में सक्षसजाति का जैसा वर्णन है उससे स्पष्ट है कि पर्यायें हैं। इसप्रकार अंग्रेजी में भारतवर्ष के लिए इन्डिया वे जैनों के अतिरिक्त अन्य कोई हो ही नहीं सकते और और भारतीय विशेषण के लिए इन्डियन तथा इन्डो शब्द रामायण के रचयिता ने उनका जो वीभत्स चित्रण किया है। प्रचलित हुए। वह धार्मिक विद्वेष से प्रेरित होकर ही किया है (वही, पृ. | चीनियों को भारतवर्ष की स्पष्ट जानकारी सर्वप्रथम 26, 27, 30) अन्य अनेक प्रख्यात् विद्वानों ने जैनधर्म और दूसरी शताब्दी ईस्वी पूर्व में उत्तरवर्ती हानवंश के सम्राट वूति उसके अनुयायियों की स्वतंत्रसत्ता वैदिकपरम्परा के ब्राह्मण के समय में हुई बताई जाती है और उसक (या हिन्दू) धर्म और उसके अनुयायियों के उदय से पूर्व से | ग्रन्थ में उसका सर्वप्रथम उल्लेख हुआ बताया जाता है। चली आई निश्चित की है, कुछ ने सिन्धुघाटी की | उसमें सिन्धुनद के लिए शिन्तु' शब्द प्रयुक्त हुआ है और प्रागेतिहासिक सभ्यता में भी जैनधर्म के उससमय प्रचलित | यही के निवासियों के लिए 'युआन्तु' अथवा 'यिन्तु',कालान्तर रहने के चिह्न लक्ष्य किये हैं। (वही पृ. 39 आदि)। उसके | में 'ध्यान्तु' शब्द का प्रयोग भी मिलता है। ब्राह्मण (हिन्दू) धर्म की कोई शाखा या उपसम्प्रदाय होने का सातवीं शताब्दी ई० से मुसलमान इस देश में आने प्रायः सभी विद्वानों ने सबल प्रतिवाद किया है। प्रारम्भ हुए और वे ईरानियों के आक्रमण से इसे 'हिन्द' और अब 'हिन्दू' शब्द को लें। प्रथम तो यह शब्द भारतीय | इसके निवासियों को अहले हिन्द कहने लगे। दसवीं शताब्दी है ही नहीं, विदेशी है और अपेक्षाकृत पर्याप्त अर्वाचीन है। के अन्त में अफगानिस्तान को केन्द्र बनाकर तुर्क मुसलमानों इतिहासकाल में सर्वप्रथम जो विदेशीजाति भारतवर्ष और | का साम्राज्य स्थापित हुआ और वे गजनी के सुल्तानों के रूप स्पष्ट सम्पर्क में आयी वह फारसदेश के निवासी में भारतवर्ष पर लुटेरे आक्रमण करने लगे। तुकी का मूलस्थान ईरानी थे। छठी शताब्दी ईसापूर्व में ईरान के शाहदारा ने | चीन की पश्चिमी सीमा पर था और भारत एवं चीन के बीच भारतवर्ष के पश्चिमोत्तर सीमान्त पर आक्रमण किया था यातायात प्रायः उन्हीं के देश में होकर होता था। यह तुर्क और उसके कुछ भाग को उसने अपने राज्य में मिला लिया | लोग मुसलमान बनने के पूर्व चिरकाल तक बौद्धादि था तथा उसे उसकी एक क्षेत्रयी (सूबा) बना दिया था। उस । भारतीयधर्मों के अनुयायी रहे थे अतएव दसवीं-ग्यारहवीं - अक्टूबर 2007 जिनभाषित 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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