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जिज्ञासा-समाधान
पं. रतनलाल बैनाड़ा प्रश्नकर्ता- कु. बीना गोधा जयपुर
और स्वयं शब्द से रहित है। जिज्ञासा- परमाण में चार स्पर्श के बजाय दो स्पर्श
३. श्री आदिपुराण २४/१४८ में इस प्रकार कहा हैही क्यों पाये जाते हैं?
अणवकार्य लिङ्गाः स्युः द्विस्पर्शाः परिमण्डलाः। समाधान- पुद्गल के २० गुण हैं। पांच रूप, पांच एकवर्णरसा नित्याः स्फुरनित्याश्च पर्ययः॥ १४८॥ रस, दो गंध, ८ स्पर्श। इनमें से एक परमाणु में एकरूप, अर्थ- परमाणु अत्यंत सूक्ष्म होते हैं, वे इन्द्रियों से एकरस, एकगंध और दो प्रकार का स्पर्श ही पाया जाता | नहीं जाने जाते। घट-पट आदि परमाणुओं के कार्य हैं उन्हीं है। स्पर्श के आठ भेद हैं हल्का-भारी, रूखा-चिकना, | से उनका अनुमान किया जाता है। उनमें कोई भी दो कड़ा-नरम, ठंडा-गरम। इनमें से दो या दो से ज्यादा | अविरूद्ध स्पर्श होते हैं, एक वर्ण, एक रस, एक गन्ध रहता परमाणुओं के मिलने से जो स्कंध बनता है उसमें ४ स्पर्श | है। वे परमाणु गोल और नित्य होते हैं तथा पर्यायों की पाये जाते हैं, अर्थात् हल्का-भारी में से एक, कड़ा नरम | अपेक्षा अनित्य भी होते हैं॥ १४८॥ में से एक, रूखा-चिकना में से एक तथा ठंडा-गरम में उपर्युक्त आगम प्रमाणों के अनुसार पुद्गल के स्कंध से एक। परंतु परमाणु में रूखा-चिकना में से एक तथा | में चार स्पर्श पाये जाते हैं, जबकि परमाणु में रूखा-चिकना ठंडा-गरम में से एक, कुल दो स्पर्श ही पाये जाते हैं। | में से एक तथा ठंडा-गरम में से एक, कुल दो ही स्पर्श इसका कारण यह है कि हल्का-भारी तथा कड़ा-नरम ये पाये जाते हैं। ४ गुण व्यंजन पर्याय न होकर द्रव्य की पर्याय हैं। इनका प्रश्नकर्ता- पं. देवेन्द्र कुमार शास्त्री सागर संबंध स्कंध के ही साथ है, परमाण के साथ नहीं। जैसा जिज्ञासा- परिहारविशुद्धि चारित्र छठें तथा सातवें कि
गुणस्थान में ही क्यों पाया जाता है? क्या आठवें आदि १. राजवार्तिककार ने तत्त्वार्थसूत्र ५/२५ की टीका | गुणस्थानों में इसकी सत्ता नहीं रहती? में कहा है--
समाधान- आपकी जिज्ञासा के समाधान में श्री एक रसवर्णगन्धोऽणुः -- ॥१३॥द्विस्पर्शी --- ॥१४॥ | धवला पुस्तक एक पृष्ठ ३७५-३७६ में इस प्रकार कहा --- को पुनः द्वौ स्पी। शीतोष्णस्पर्शयोरन्यतर: स्निग्धरूक्षयोरन्यतरश्च। एकप्रदेशत्वाद्विरोधिनोः युगपदन प्रश्न- ऊपर के आठवें आदि गुणस्थानों में यह वस्थानम्। गुरुलघुमृदुकठिनस्पशानां परमाणुष्वभावः | परिहारविशद्धि संयम क्यों नहीं होता? स्कन्धविषयत्वात्।
उत्तर- नहीं, क्योंकि जिनकी आत्मायें ध्यानरूपी अर्थ- परमाणु में एक रस, एक गंध और एक वर्ण
सागर में निमग्न हैं, जो वचन यम (मौन) का पालन करते है। १३ । दो स्पर्श। कौन से दो स्पर्श ? शीत-उष्ण में से
हैं और जिन्होंने आने जाने रूप संपूर्ण शरीर संबंधी व्यापार कोई एक तथा स्निग्ध-रूक्ष में से कोई एक। एक प्रदेश
संकुचित कर लिया है, ऐसे जीवों के शुभाशुभ क्रियाओं वाला होने से विरोधी स्पर्श युगपत् नहीं पाये जाते। गुरु
का परिहार बन ही नहीं सकता है। क्योंकि, गमनागमनरूप लघु, और मृदु व कठिन स्पर्श परमाणु में नहीं पाये जाते,
क्रियाओं में प्रवृत्ति करनेवाला ही परिहार कर सकता है, क्योंकि वे स्कंध के विषय हैं।
प्रवृत्ति करनेवाला नहीं। इसलिए ऊपर के ८वें आदि भावार्थ- परमाणु में एक रूप, एक रस, एक गंध
गुणस्थानों में परिहारविशुद्धि संयम नहीं बन सकता है। तथा दो स्पर्श पाये जाते हैं।
प्रश्न- परिहारऋद्धि की ८वें आदि गुणस्थानों में भी २. श्री हरिवंश पुराण सर्ग-७/३३ में इस प्रकार कहा
सत्ता पाई जाती है, अतएव वहाँ पर इस संयम का सद्भाव
मान लेना चाहिए। एकदैकं रसं वर्णं गंधं स्पर्शावबाधकौ।
उत्तर- नहीं, क्योंकि ८वें आदि गुणस्थानों में परिहार दधत् स वर्ततेऽभेद्यः शब्द हेतुरशब्दकः॥ ३॥
ऋद्धि पायी जाती है, परंतु वहाँ पर परिहार करनेरूप कार्य अर्थ- वह परमाणु एक काल में एक रस, एक
नहीं पाया जाता, इसलिये ८ वें आदि गुणस्थानों में इस वर्ण, एक गन्ध, और परस्पर में बाधा नहीं करनेवाले दो
संयम का अभाव है। स्पर्शो को धारण करता है। अभेद है, शब्द का कारण है
उपर्युक्त प्रमाण के अनुसार सप्तम गुणस्थान से ऊपर 28 अक्टूबर 2007 जिनभाषित -
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