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मुनि श्री क्षमासागर जी
की कविताएँ
भाई तुम महान् हो मैंने आकाश से कहातुम बहुत ऊँचे हो आकाश ने मुस्कराकर कहातुम मुझसे भी ज्यादा ऊँचे हो मैंने सागर से कहातुम खूब गहरे हो सागर ने लहराकर कहातुम मुझसे भी
अधिक गहरे हो मैंने सूरज से कहासूरज दादा! तुम बहुत तेजस्वी हो सूरज ने हँसकर कहातुम मुझसे भी कई गुने तेजस्वी हो मैंने आदमी से कहाभाई तुम महान् हो आदमी झट से बोलातुम ठीक कहते हो।
सुबह की तलाश कई बार सोचा कि सुबह होते ही पक्षियों का मधुर गान सुनूँगा। कि सुबह होते ही उगते सूरज खिलते फूल
और बहती नदी का सौन्दर्य देखूगा। किसी वृक्ष के नीचे शीतल शिला पर अपने में मगन होकर बैलूंगा। पर अपने ही मन के मलिन अँधेरे में अपने ही जीवन के आर्त स्वरों में
और अपने ही बनाये बन्धनों में घिरा सिमटा मैं सुबह की तलाश में हूँ।
'अपना घर' से साभार
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